लोक जीवन में भ्रष्टाचार
वर्तमान समाज के लोक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार आधनिक परिस्थितियों का ही प्रतिफल है । सम्भया के बढ़ने के साथ – साथ सामाजिक आवश्यकताओं व अन्तः क्रियाओं का तथा प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र दिन – प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है और उसी के साथ – साथ भ्रष्टाचार भी अपने एकाधिक विकराल रूप में लोक जीवन में प्रगट हो रहे हैं । इसीलिए प्रतिदिन ही समाचार – पत्रों में हमें व्यापारियों द्वारा की जाने वाली मिलावट , काला बाजारी , सट्टा बाजार में अनैतिकता , सार्वजनिक निर्माण विभाग में धूसखोरी , डाक्टरों व वकीलों के काले कारनामें , उद्योगपतियों द्वारा टैक्स की चोरी , गैर – कानूनी व्यापार आदि के समाचार देखने को मिलते हैं । ये सभी लोक – जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार के ही रूप या स्वरूप हैं । पर इस सम्बन्ध में और कुछ विवेचना करने से पूर्व भ्रष्टाचार के अर्थ को सपझ लेना अधिक उपयोगी होगा । भ्रष्टाचार शब्द का प्रयोग बहुत विस्तृत अर्थों में किया जाता है । इनमें राजनीतिक दलों द्वारा किया गया गोल – माल व दल – बदल , ऊँचे अधिकारियों द्वारा की गई अनियमितता , पुलिस के लोगों द्वारा घूस लेने का कार्य , पढ़े – लिखे व्यक्तियों द्वारा कानून तोड़ना आदि सम्मिलित हैं । कभी – कभी ‘ भ्रष्टाचार ‘ ( Corruption ) शब्द के स्थान पर अनुचित – लाभ ( Graft ) शब्द का प्रयोग किया जाता है ।
अनुचित लाभ का अर्थ भ्रष्ट साधनों द्वारा नियमों को तोड़कर लाभ उठाना हैं , जबकि भ्रष्टाचार , सर्वश्री इलियट तथा मैरिल ( Elliot and Merrill ) के अनुसार , किसी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष लाभ को प्राप्त करने . के लिए जान – बूझकर कजव्य का पालन न करना है । भ्रष्टाचार सदैव किसी स्पष्ट अथवा अस्पष्ट लाभ के लिए कानून तथा समाज के विरोध में किया जाने वाला कार्य है । ” भ्रष्टाचारी व्यक्ति सहयोग , सेवा कर्तव्य और नियमकानून के प्रति निष्ठा की भावना को तिलांजलि देकर केवल अपने ही स्वार्थों की अधिकतम पूर्ति में लगा रहता है । भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है – राजनीतिक व सरकारी कर्मचारियों से लेकर व्यापारियों , डाक्टरों , नसों तथा पुजारियों तक इसका अपना क्षेत्र है ।
भ्रष्टाचार के कारण ( Causes of Corruption ) भ्रष्टाचार के अनेक कारण हो सकते हैं , पर उनमें निम्नलिखित कारण विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं :
आत्म – स्वार्थ की पूर्ति भ्रष्टाचार का सबसे प्रथम व सर्वप्रमुख कारण है आधुनिक भौतिकवादी सभ्यता ने लोगों को अत्याधिक स्वार्थी बना दिया है । प्रत्येक व्याक्ति अपने स्वार्थों की अधिकतम पूर्ति करता है चाहे वह उचित ढंग से हो अथवा अनुचित ढंग से । यह स्वार्थ – भावना दोनों तरफ भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करती है । उदाहरणार्थ , एक ठेकेदार सार्वजानिक निर्माण विभाग ( PWD . ) के – अधिकारी को घूस इसलिए देता हैं कि ठेका प्राप्त करने पर ही उसके स्वार्थों की पूर्ति सम्भव होगी , और अधिकारी घूस इसलिए लेता हैं कि उसे बिना परिश्रम धन मिल जाता है और उसकी आर्थिक स्थिति – ऊंची हो जाती है ।
नियम – कानून के सम्बन्ध में ज्ञान का अभाव भी भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करता है । आम जनता विशेषकर अनपढ़ जनता को नियम कानून की वास्तविकताओं का ज्ञान नहीं होता है और उसी अज्ञानता का फायदा वकील , पुलिस अदालत के अधिकारी , सरकारी दफ्तर के क्लर्क आदि उठाते हैं और लोगों को कानून का दांव – पेच दिखाकर पैसा ऐंठते हैं ।
कानून की अपनी कमियां भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती हैं । अनेक कानून ऐसे होते हैं जिससे बचने के अनेक रास्ते हो सकते हैं । इस परिस्थिति का पूरा – पूरा फायदा कानून से सम्बन्धित लोग लेते हैं और व्यापारी आदि को वे कमियों बताकर उनसे पैसा लेते हैं और व्यापारियों को अनुचित लाभ उठान में मदद करते हैं ।
अदालत के झंझट से दूर रहने की अभिलाषा भी भ्रष्टाचार का एक कारण बन जाती हैं । अदालती कार्यवाही व उससे उत्पन्न परेशानियों से लोग बचना चाहते हैं और इसीलिए वे पुलिस अधिकारी . आबकारी अधिकारी , टैक्स अधिकारी , कस्टम अधिकारी को घूस देकर अदालतों के झंझटों से अपना पीछा छुड़ाना चाहते हैं ।
व्यापारिक विज्ञापन भी भ्रष्टाचार का एक कारण बन गया है । तड़क – भडक व आकर्षक विज्ञापन के मार्फत लोगों को बेवकूफ बनाकर धन कमाया जा सकता है , यह बात आज हर कोई जानता है । केवल दस रुपये में रेडियो अथवा सवा रूपए में सर्व दुखहारी तावीज या केवल पांच रूपए में निःसन्तान माता – पिता को पत्र प्राप्ति के साधनों का लालच दिखाने वाले विज्ञापन हमें रोज समाचार – पत्र , पत्रिकाओं आदि में देखने को मिलते हैं । ये सभी लोगों को ठगने के उपाय है ।
भौतिकवादी आदर्शों ने भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है । भौतिकवाद धन – सम्पत्ति व अन्य भोग – विलास की चीजों के महत्त्व को अत्यधिक महत्त्व प्रदान करता है । ये चीजें जिनके पास हैं उनकी सामाजिक स्थिति व मर्यादा भी ऊंची है । अतः ‘ अधिकाधिक धन चाहिए ‘ यही आधुनिक मानव की सर्वोच्च अभिलाषा है , चाहे वह धन कानूनी तौर पर कमाया जाए अथवा गैर – कानूनी तौर पर । इसी गैर – कानूनी तौर पर धन कमाने का दूसरा नाम भ्रष्टचार हैं । मन्दिर का पूजारी भी अधिक धन कमाने के चक्कर में देवी – देवाताओं पर चढ़ाने के लिए भक्तजनों द्वारा लाएं गए प्रसादों का अधिकांश भाग निकाल लेता है , उन्हें इकट्ठा करता जाता है और फिर आस – पास के दुकानदारों को उन्हें बेच देता हैं । वे दुकानदार उन चढ़ाए हुए प्रसादों को फिर दुबारा अपने ग्राहकों को बेच देते हैं ।
अत्यधिक प्रतिस्पदर्धा ( Competition ) : भ्रष्टाचार का एक और उल्लेखनीय कारण हैं । आज के योग मे हर क्षेत्र में , विशेषकर राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्र में , एक – दूसरे को निगल लेने वाली प्रतिस्पर्धा को दौड़ मे जब लोग नियम व कानून के अनुसार सफल नहीं हो पाते हैं तो भ्रष्ट उपायों को अपनाने में भी हिचकिचाते नहीं । इन लोगों मे एक गलत धारणा पनप गई है । कि प्रेम की भांति राजनीति व व्यापार में कुछ भी अनुचित नहीं है ; इनमें तो सफलता ईमानदारी और खरे व्यवहार के आधार पर सम्भव ही नहीं है । यह विकृत आदर्श भ्रष्टाचार को ही प्रोत्साहित करता हैं ।
उच्च अधिकारियों का सहयोग भी भ्रष्टाचार को फैलाने तथा बनाए रखने में सहायक होता है । उच्चस्तरीय सरकारी अधिकारी , विधान सभा तथा लोक सभा के सदस्य तथा मिनिस्टर आदि का सक्रिय सहयोग कुछ निश्चित प्रकार के अपराधियों , व्यापारी , उद्योगपति , तस्कर व्यापारी आदि के साथ होता है जो कि उन्हें धन देते है अथवा चुनाव के समय तन – मन – धन से उसकी मदद करते हैं । इन उच्च अधिकारियों की छत्रछाया में भ्रष्टाचार व्यक्ति अपने काले कारनामों को निडर होकर करते रहते हैं ।
परिवर्तित राजनीतिक व शासकीय संरचना भी भ्रष्टाचार का एक कारण हैं । आधुनिक युग में बड़े – बड़े राजनीतिक संगठनों का तो विकास हुआ है , पर उन्हें नियंत्रित करने के लिए आवश्यक आचरण संहिताओं ( code of conduct ) का आज भी नितान्त अभाव है । अतः राजनीतिक सत्ता जिस पार्टी के हाथों में आती है वह सरकारी मशीनरी का प्रयोग अपने तथा अपनी पार्टी के स्वार्थ – साधन के लिए करती है । बहत से राजनीतिज्ञ , उच्च अधिकारी , बैकर , उद्योगपति . मिनिस्टर , संसद सदस्य अपने ReीNिOTE आड़ में अपनी स्वार्थ – सिद्धि कर लेते हैं , जबकि साधारण जनता को सरकार द्वारा प्रदान ब के बराबर मिल पाती है । दूसरी और नौकरशाही ( Bureaucracy ) व्यवस्थान भ्रष्टाचार को और भी बढ़ावा दिया हैं । मिनिस्टर आदि तेजी से बदलते रहते हैं और अपने सब कामी के अभाव है । अतः के लिए करती है । हाथों में आती है वह मा conduct ) का आज भी राजनीतिज्ञ , उ सानरी का प्रयोग अ लिए नौकरशाही पदाधिकारियों , जैसे सचिव आदि पर पूर्णतया निर्भर रहना पड़ता है । ये पदाधिकारी मंत्रियों की अज्ञानता का पूरा – पूरा फायदा उठाते हैं अपने – अपने स्वार्थों की अधिकतम पूर्ति हर उचित – अन चित ढंग से करते रहते हैं ।
आबादी की भिन्नता भी भ्रष्टाचार का एक कारण है । बड़े – बड़े समुदायों में बहत से लोग रहते हैं जो कि एक – दूसरे को बिल्कुल ही जानते – पहचानते नहीं हैं । अतः उनमें भाईचारे की भावना पनप नहीं पाती हैं और एक – दूसरे का गला घोंटने में उन्हें संकोच का अनुभव भी नहीं होता है इसी प्रकार परिचित व्यक्ति से घस लेने में संकोच हो सकता है , पर अपरिचित व्यक्ति से घूस लेना सरल हो जाता है ।
बड़े – बड़े व्यापारियों तथा राजनीतिज्ञों का गठनबन्धन भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है । ये व्यापारी या उद्योगपति अनुचित लाभ उठाने , लाइसेन्स आदि लेने के लिए राजनीतिज्ञों की नाना प्रकार से सहायता करते रहते है और यदि उनकी पार्टी चुनाव में जीत जाती है तो थोड़े दिनों में सब लागत वसूल हो जाती है इस गठबन्धन में करोड़ों रूपए का भ्रष्टाचार होता है और आम जनता को उसका बोझ उठाना पड़ता है ।
भारत में भ्रष्टाचार के विविध रूप ( Different Types of Corruption in India ) प्रतिदिन के समाचार – पत्रों से हमें भारतीय लोक जीवन में प्रचलित भ्रष्टाचार के विविध रूपों का पता चलता है , जो कि इतने अधिक है कि एक अध्याय में उनका सम्पूर्ण वर्णन सम्भव नहीं हो सकता । ‘ स्पेशल पुलिस स्थापन , दिल्ली ( Special police Establishment , Delhi ) द्वारा समय – समय पर प्रकाशित रिपोर्ट से पता चलता है कि व्यभिचार भ्रष्टाचार , या गैर – कानूनी कार्यों के मामले में फंसे हुए व्यक्तियों में इन्जीनियर , डायरेक्टर ऑफ सप्लाइज एवं डिस्पोजल्स , मन्त्रीगण , सेना के कमी अधिकारी , वन अधिकारी , आयात और निर्यात विभाग ( Import and Export Dapartment ) , सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिकारी , आय – कर व विक्री – कर अधिकारी आदि ही अधिक होते हैं । कहने का तात्पर्य है कि जीवन के प्रायः हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार कूट – कूट – कर भरा हुआ है । भारतीय सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार की रूपरेखा जानने के लिए हमें उनके विभिन्न रूपों ( Types ) या स्वरूपों को भी जानना होगा जिसकी कि एक रूपरेखा मात्र निम्नलिखित वर्णन से स्पष्ट
उद्योगपतियों में भ्रष्टाचार ( Corruption in Industrialists ) उद्योगपतियों में भ्रष्टाचार के दर्शन करने को मिल सकते हैं । इन उद्योगपतियों का कार्य नाना प्रकार से श्रमिकों का आर्थिक शोषण करके धन कमाना होता है । अभी हाल में ही एक विद्वान द्वारा अध्ययन के आधार पर यह पता चला है कि अनेक उद्योगपतियों असत्य विज्ञापन , पेटेण्ट टेडमार्क और कापी राइट के उल्लंघन , अनुचित श्रम – सम्बन्धी कार्य , आर्थिक ठगी और विश्वासघात तथा युद्ध – सम्बन्धी नियमों के उल्लंघन के दोषी हैं । इस विद्वान के अध्ययन के आधार पर यह पता चला है कि इन उद्योगपतियों के स्वामित्व में चल रहे कॉरिशनों की कार्यकारिणी के सदस्य स्वयं तो पर्याप्त धनराशि बोनस के रूप में लेते थे और साझेदारों ( Share Holders ) को कोई भी लाभ नहीं मिलता था । वार्षिक रिपोर्ट में कॉपोरेशन की आर्थिक स्थिति के सम्बन्ध में झूठी बातें छापकर जनता को धोखा दिया जाता था । विज्ञापनों में असत्य कथन प्रकाशित किया जाता था । वैसे भी सामान्यतः निरीक्षण से भी इस उद्योगपति वर्ग में हमें अनेक प्रकार का भ्रष्टाचार देखने को मिलता है । श्रमिकों का आर्थिक शोषण मुख्य है । बाल तथा स्त्री – श्रमिकों तक को वे नहीं छोड़ते हैं । उन्हें भी उचित वेतन नहीं दिया जाता है और सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी हितलाभों ( benefits ) से उन्ह वंचित किया जाना है । नाहगार्थ , भारत में स्त्री श्रमिक के गर्भवती होने का समाचार पाते ही उद्योग त उसे – से निकाल देता हतृत्व हितलाभ न देना पड़े । उसी प्रकार कुमारियों के विवाह हो जाने परउन्हें काम से निकाल देते हैं या इस बात की धमकी देते हैं कि अगर वे हितलाभ माँगेंगी तो उन्हें काम से निकल दिया जाएगा । यही बात दुर्घटना आदि हो जाने पर श्रमिकों को क्षतिपूर्ति ( Compensation ) देने के सम्बन्ध में कही जा सकती है मालिक क्षतिपर्ति देने से बचने का भरसक प्रयत्न करते हैं । श्रमिकों को यह कहकर धमकाया जाता हैं कि अगर वे हर्जाना मांगेंगे तो उन्हें काम से निकाल दिया जाएगा । कभी – कभी बहुत कम रकम देकर उनसे हजनि की परी रकम पाने की रसीद पर हस्ताक्षर या अंगूठा लगवा लिया जाता है । मौसमी कारखानों मे तो दुर्घटनाएँ चुपचाप दबा दी जाती हैं । उपरोक्त बातों के अतिरिक्त यह वर्ग अन्य तरीकों से भी बेईमानी करते हैं जो कि भ्रष्टाचार का ही एक अन्य रूप हैं । श्रमिकों के कम वेतन देकर उनसे अधिक धन की रसीद लिखवा लेते हैं । साथ ही , उन्हें श्रम – सम्बन्धी सरकारी नियमों से अनभिज्ञ रखते हैं । उन्हें बात – बात पर काम से निकालने की धमकी देते हैं । इतना ही नहीं , जनता और सरकार को भी ये उद्योगपति अनेक प्रकार से धोखा देने का प्रयत्न करते हैं । अनेक उद्योगपति तो अपने मिल या कारखानों में बने सामानों को छुपे तौर पर पाकिस्तान या अन्य देशों को भेजते हैं ।
प्रतिष्ठित व्यापारी वर्ग में भ्रष्टाचार ( Corruption in Big Businessmen ) इस देश के प्रतिष्ठित व्यापारी वर्ग के अधिकांश सदस्य भ्रष्टाचार के शिकारी हैं । अवैध प्रतिस्पर्धा , असत्य विज्ञान , पेटेण्ट ट्रेडमार्क और काफी राइट के नियमों का उल्लंघन , मिलावट तथा काला बाजारी इस देश के बड़े व्यापारी ही करते हैं । अक्सर हमें समाचार – पत्रों में ऐसे समाचार पढ़ने को मिलते हैं कि इन काले कारनामों के लिए प्रतिष्ठित व्यापारी पकड़े गए हैं । पर मामला वहीं तक आगे बढ़ता है और बहुत कम व्यापारियों को सजा मिलती है । युद्ध जैसे आपत्ति काल में भी व्यापारी अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं और वस्तुओं की कृत्रिम कमी ( artificial shortage ) देश में उत्पन्न कर देते हैं ताकि कीमतें बढ़ जाएँ और उन्हें खूब आर्थिक लाभ हो । जब देश पर विदेशी शत्रुओं का आक्रमण होता है और संकट के बादल छाए होते हैं , तब भी यह व्यापारी काला बाजारी करते हैं , नकली दवाइयाँ बेचते हैं तथा खाने – पीने की चीजों में अचिन्तनीय मिलावट करते हैं । अभी हाल में बरेली के एक आटा मिल के मालिक को आटे में मिट्टी या खडिया मिलाकर बेचने के अपराध में पकड़ा गया था । एक मशहर हलवाई को टेठगी धी के स्थान पर चर्बी का प्रयोग करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था । और तो और , दिल्ली में भी मिठाई के एक अच्छे दुकानदार को मलाई की परतों के बीच सोखते ( Blotting Paper ) का प्रयोग करने के जुर्म में पकड़ा गया था । मिलावट के ये तो अति साधारण उदाहरण हैं । अब तो बाजार में आपको कोई भी वस्तु शुद्ध नहीं मिल सकती । प्रत्येक वस्तु का कोई विकल्प ( substitute ) इन व्यापारियों ने ढूंढ़ लिया है । बादाम व अखरोट के स्थान पर मूंगफली का प्रयोग किया जाता हैं । दूध तो मक्खन निकालकर ही बेचा जाता है । खोए में शकरमन्द मिलाया जाता है । घी का तो शुद्ध मिलना अत्यन्त दुष्कर कार्य है । यह तो रही मिलावट । चीजों पर असत्य मार्का भी डालकर जनता को गुमराह किया जाता है । बम्बई के एक उल्लासनगर में सिंधियों का एक संगठन काफी वस्तुओं का उत्पादन करता है जो कि गुण में अत्यन्त हीन होती है परन्तु प्रत्येक वस्तु पर ‘ Made in U . S . A . ‘ लिखा होता है । बेचारी जनता उन्हें अमरीका की बनी समझकर लेती है । पुलिस को यह कहकर फुसलाया जाता है कि U . S . A . का तात्पर्य Ullasnagar Sindhi Association ‘ है । ये कुछ कतिपय उदाहरण हैं भ्रष्टाचार के । इतना ही नहीं , बड़े – बड़े व्यापारियों द्वारा आय – कर या बिक्री – कर के मामले में सरकार को धोखा देना और लाखों रूपए घोंट जाना एक सामान्य घटना है । कुछ बड़े उद्योगपतियों के बारे में तो यह कहा जाता है कि उन लोगों ने अपने यहां अवकाश – प्राप्त ( Retired ) आय – कर अधिकारी ( Income Tax Officer ) को केवल इसलिए नियुक्त कर लिया कि वे आय – कर से बचने के लिए आवश्यक सुइव देते हैं ।
दारों में भ्रष्टाचार ( Corruption in Contractors ) चार के शिकारी इस देश के अधिकतर ठेकेदार भी हैं । इस देश में सीनियरिंग , सीमेंट ,कागज , खान , बन्दरगाहों के उद्योगों में तथा राजकीय व केन्द्रीय सार्वजनिक निर्माण विभाग ( P . W . D ) . एम . ई . एस . ( M . E . S . ) , व रेलवे विभाग में अधिकतर काम ठेकेदारों के माध्यम से ही होता है । ये ठेकेदार अपने अनुकुल ठेका लेने के लिए सम्बन्धित अधिकारियों को खूब घूस देते हैं ; और फिर उस घूम की रकम या चौगना ठेके के व्यापार से वसूल करते हैं । इसलिए ठेकेदार जो भी काम करता है वह ठेके के नियमों के प्रतिकूल ही होता है , परन्तु जाँच करने वाले अधिकारी भी घूस लेकर ठेकेदार द्वारा बनाई गई चीज को पास कर देते हैं । यही कारण है कि इस देश में बनाए गए पुल , बाँध , कारखाने आदि अपने निश्चित समय से कहीं पहले दम तोड़ देते हैं । अभी नानक सागर डैम , जो कि लाखों की लागत से बना था , टूट गया । यह सब ठेकेदारों की भ्रष्टाचारिता के कारण ही है । इतना ही नहीं , ओवरसियरों एवं इन्जीनियरों आदि सबको कमीशन का एक निश्चित प्रतिशत ठेकेदारों से प्राप्त होता है जो कि काम के माप ( measurement ) के तरन्तु बाद ही ठेकेदार दे देता है , यद्यपि इससे राष्ट्र को कितनी भारी हानि होती है इसका अन्दाजा लगाना सरल नहीं है । इस बात का ज्ञान मन्त्रीगणों तक को होता है परन्तु मजे की बात तो यह है कि कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती । श्रमिकों के हित व कल्याण के दृष्टिकोण से भी ये ठेकेदार भ्रष्टाचार के शिकार होते हैं । वे कम से कम वेतन देकर श्रमिकों से अधिक से अधिक काम लेते हैं और साथ ही दुर्धटना आदि हो जाने पर कोई मुआवजा नहीं देते । कभी – कभी तो घातक दुर्घटना के बाद मुआवजा देने के उत्तरदायित्व से बचने के लिए ठेकेदार श्रमिकों की लाश तक गायब करवा देते हैं । बहुत से ठेकेदार श्रमिकों को रुपया उधार देकर उन्हें ऋण के जाल में फांस लेते और फिर उनका खूब आर्थिक व नैतिक शोषण करते हैं । नैतिक शोषण विशेषकर स्त्री – श्रमिकों का होता है और उन्हें अपनी इज्जत तक बेच टेनी पड़ती हैं । इतना ही नहीं , लाखों रुपयों का माले भी , जैसे सीमेंट , लोहा व अन्य ऐसी ही मूल्यवान व दुर्लभ वस्तुएँ , ये ठेकेदार काले बाजार में बेच देते हैं , जिससे वे सरकार को दोहरा नुकसान पहुंचाकर अपने को लाभ पहुंचाते हैं । अन्य और भी अनेक गलत तरीकों से यह वर्ग अपने को लाभ पहुंचाने का प्रयत्न करता है ।
सरकारी अधिकारी एवं भ्रष्टाचार ( Government officers and Corruption ) सम्भवतः इस कथन में तनिक भी अतिशयोक्ति न होगी कि देश में जितना अधिक भ्रष्टाचार सरकारी वर्ग में घसा हुआ है , इतना शायद अन्य किसी वर्ग में नहीं । प्रायः प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रत्येक अवैध कार्य का उत्तरदायित्व आज सरकारी अधिकारी का होता है । सरकारी अधिकारियों में भ्रष्टाचार रिश्वत या घूस के रूप में है । यह कहा जाता है कि यदि केवल सरकारी अधिकारी ईमानदार बन जाएँ तो शायद भ्रष्टाचार नामक रोग का अधिकांश भाग निरोग हो जाए । सरकारी अधिकारी प्रत्येक स्तर पर घूस लेते हैं , उपकार ग्रहण करते हैं तथा अन्य प्रकार से अपराधी से सेवाएँ प्राप्त करते हैं । इस घूस लेने में एक तो वह अपराधियों को अपराध करने में प्रोत्साहन देते हैं और दूसरी ओर अपराधी को अपराध करते हुए देखकर भी उन्हें पकड़ते नहीं हैं या पकडने के बाद घस लेकर छोड़ देते हैं । इसीलिए पेशेवर चोर सरकारी अधिकारी को घूस देकर अपना काम करता रहता हैं , ठेकेदार घूस देकर अनुकूल ठेका प्राप्त कर लेता है , अपने गलत बिल सरकारी क्ल कमीशन देकर आसानी से पास करवा लेता है । इन्हीं सरकारी अधिकारियों को खुश रखकर ही अनेक अनैतिक र्कों एवं अफसरों को व्यापार , जुए के अड्डे , गैर – कानूनी शराब का व्यापार , स्मगलिंग का व्यापार और वेश्यालय आदि चलाए जाते हैं । ट्रैफिक नियम का उल्लंधन करने वाला व्यक्ति भी पुलिसमैन के हाथ में दो – चार रुपए रखकर अपने को कानून के पंजों से छुड़ा लेता है । इतना ही नहीं , अनेक प्रकार के अभिजात अपराधी ( White Collar Criminals ) नियमित नजराना आदि देकर अपना सम्बन्ध सरकारी अधिकारियों से बनाए रखते हैं ताकि वे कभी भी पकड़े न जा सकें जैसे , एक अनैतिक व्यापार करने वाला अभिजात अपराधी ऐसे पुलिस अधिकारी , सरकारी वकील , जज आदि से घनिष्ठ सम्बन्ध बनाए रखता हैं जो कि घस आदि लेते हैं और लेकर काम कर देते हैं । यह तो हुआ एक पक्षा सरकारी अधिकारियों में भ्रष्टाचार का एक अन्य पक्ष यह भी है कि अब OTESभवनहा हाता । अफसर से लेकर एक दफ्तर का चपरासी तक बिना कुछ नहीं होता । अफसर से लेकर लिए आपका काम नहीं करेगा । इस बीमारी का नमूना तनिक न्यायालयों में जाकर देखिए । वहां न्याय की कीमत देखिए । वहां एक मामूली 50 रुपये मासिक पाने वाला चपरासी मुवक्किल को ऐसा लताडता है कि तबियत झक्क हो जाती हैं । आपका नाम तभी बोलेगा , जब आप उसके हाथ पर ‘ कुछ ‘ बख्शीश रख देंगे साना टालमटोल कर देगा । और इसी तरह का नक्शा आपको उच्च स्तर तक की नौकरशाही ( Bureaucracy ) में मिलेगा । प्रत्येक व्यक्ति अपना न बनता हुआ कार्य आसानी से करवा लेता है – यदि वह कछ घस दे देता है । आप रेल में बिना टिकट बिना किसी भय के सफर कर सकती हैं । हाँ , टिकट के आधे पैसे टिकट चेकर को अवश्य ही देने होगें । जरा सोचिए , इससे राष्ट्र को कितनी भारी हानि होती हैं । और यह तो एक ही उदाहरण है । इस प्रकार के भ्रष्टाचार से कितनों का नुकसान होता है , यह तो जनता के दिल से पूछिए !
डाक्टर और भ्रष्टाचार ( Doctor and Corruption ) भ्रष्टाचार के क्षेत्र में डाक्टर वर्ग भी पिछड़ा हुआ नहीं हैं । इस वर्ग में काफी मात्रा में भ्रष्टाचार दृष्टिगोचर होता है । डाक्टर की एक सामाजिक प्रतिष्ठा होती है । साथ ही रोग – मुक्त कराने वाले तथा इस प्रकार नव – जीवन दान देने वाले के रूप में डाक्टर का लोग सम्मान भी करते हैं और विश्वास भी । इसी सम्मान व विश्वास का दुरुपयोग करने वाले डाक्टरों का भी नितान्त अभाव समाज में नहीं होता है । सम्पत्ति पाने के लालच मे यदि एक व्यक्ति अपने किसी रिश्तेदार को मार डालना चाहता हैं तो डाक्टर उसकी मदद कर सकता है और उस रिश्तेदार को धीमे – धीमे काम करने वाला जहर ( Slow Poisoning ) दे सकता है या इन्जेक्शन आदि के द्वारा उसे मार सकता है । अवैध भ्रूणहत्या ( abortions ) में सहायता करना तो कई डाक्टरों का पेशा होता है । इसके लिए वे सम्बन्धित पक्ष ( Party ) से कई सौ रुपये फीस के रूप में लेते हैं । झूठे प्रमाण – पत्र ( Certificates ) देकर डाक्टर अपराधी को फाँसी के तख्ते पर जाने से बचा सकता है । शव – परीक्षा ( Postmortem ) की रिपोर्ट में वास्तविकता को छपाकर अपराधी को निरपराध प्रमाणित करने में भी डाक्टर मदद करते हैं । उसी प्रकार यह प्रमाणित करने के लिए कि घटना घटित होते समय अपराधी घटना स्थल पर था ही नहीं , डाक्टर उस अपराधी के नाम को अपने क्लीनिक के रजिस्टरों में फर्जी तौर पर लिख लेते हैं कि घटना होने के दो – चार दिन पहले और उस घटना के दो या दस दिन बाद तक वह अपराधी मरीज के रूप में डाक्टर साहब की क्लीनिक में भर्ती था । इससे भी अपराधी छूट जाता हैं । इसके अतिरिक्त , शराबियों को तथा निद्राकारी द्रव्यों ( Narcotics ) का प्रयोग करने वालों को झूठे तौर पर पर्चा ( Prescription ) लिखकर भी डाक्टर भ्रष्टाचार करते हैं । मरीज को फांसने के लिए कुछ डाक्टर दलालों को भी रखते हैं । उसी प्रकार कुछ डाक्टरों में आपस में यह समझौता रहता है कि अगर आवश्यकता पड़ी तो वे अपने मरीजों को एक – दूसरे को देंगे । इस समझौते के अनुसार एक डाक्टर एक मरीज का दो – चार दिन तक तो स्वयं इलाज करता है और फिर यह कहता है कि इस रोग को उचित चिकित्सा के लिए किसी एक और डाक्टर की सलाह की आवश्यकता है । यह अन्य डाक्टर कौन होगा , इस बात का सुझाव भी वह स्वयं देता है । इस प्रकार मरीज को दोहरी फीस देने को बाध्य कर उसका अधिक से अधिक आर्थिक शोषण किया जाता है । इतना ही नहीं बहुत से ऐसे डाक्टर होते हैं जो कि पहले तो मरीज को ऐसी दवा देते हैं कि उसे फौरन आराम हो जाए और फिर मरीज के अच्छे हो जाने के सम्बन्ध में इस प्रकार विश्वास उत्पन्न करके फिर मर्ज को बहुत धीरे – धीर ठीक होने देते हैं । बड़े – बड़े शहरों में तो कुछ और ही नजारा है । यहां पर कुछ ऐसे भी डाक्टर पाए जाते हैं जो कि सरकारी कर्मचारियों के झूठे रोग से झूठे बिल बनाते हैं । इससे कई करोड़ रुपयों की राष्ट्र की प्रतिवर्ष हानि होती है । यहां के अस्पतालों में डाक्टर तथा अधिकारी दवा , इन्जेक्शन आदि को तो बाजार में बेच देते हैं और दवा के बदले में प्रायः पानी ही मरीजों को मिलता है । कुछ डाक्टर तो गांव के मरीजों को ऐसी दुकानों से दवा रित करते हैं जहां नकली या खराब किस्म की दवा मिलती है क्योंकि दुकानदार डाक्टर को I दले में नियमित रूप से पैसा देता रहता है ।
लिए आपका काम नहीं करेगा । इस बीमारी का नमूना तनिक न्यायालयों में जाकर देखिए । वहां न्याय की कीमत देखिए । वहां एक मामूली 50 रुपये मासिक पाने वाला चपरासी मुवक्किल को ऐसा लताडता है कि तबियत झक्क हो जाती हैं । आपका नाम तभी बोलेगा , जब आप उसके हाथ पर ‘ कुछ ‘ बख्शीश रख देंगे साना टालमटोल कर देगा । और इसी तरह का नक्शा आपको उच्च स्तर तक की नौकरशाही ( Bureaucracy ) में मिलेगा । प्रत्येक व्यक्ति अपना न बनता हुआ कार्य आसानी से करवा लेता है – यदि वह कछ घस दे देता है । आप रेल में बिना टिकट बिना किसी भय के सफर कर सकती हैं । हाँ , टिकट के आधे पैसे टिकट चेकर को अवश्य ही देने होगें । जरा सोचिए , इससे राष्ट्र को कितनी भारी हानि होती हैं । और यह तो एक ही उदाहरण है । इस प्रकार के भ्रष्टाचार से कितनों का नुकसान होता है , यह तो जनता के दिल से पूछिए !
वकील और भ्रष्टाचार ( Legal Practitioners and Corruption ) देश में वकील – वर्ग भी भ्रष्टाचार रूपी भयंकर रोग से अछूता नहीं रह गया । ‘ वकील या अटानी अपने मुवक्किलों की पूंजी का अनुचित प्रयोग ( misappropriation ) करते हैं , गवाहों से झूठी शहादत दिलवाते हैं , और मोटर – गाड़ी दुर्घटना का पता लगाकर उसमें फंसे हुए व्यक्तियों से चालबाजी से मुआवजे वसूल कर लेते हैं । यह जानते हुए भी एक व्यक्ति वास्तव में अपराधी हैं , वकील धन के लालच में पड़कर उसे बचाने के लिए कठोर परिश्रम करता है । असली अपराधियों से घूस लेकर अपने मुवक्किलों की ओर से लापरवाह ढंग से अदालत में बहस करने में भी देश के कतिपय वकील हिचकिचाते नहीं है । बहुत से वकीलों के तो दलाल होते हैं जो कि मुवक्किलों को न केवल फांसकर लाते हैं , बल्कि वकाल साहब का और से उन मुवक्किलों से नाना प्रकार के झूठे कारण दिखलाकर पैसे वसूल करते हैं । गांव वालों को इस तरह से फाँसना एवं उनका पर्याप्त आर्थिक शोषण करना तो यहां के अनेक वकीलों का सामान्य पेशा बन गया है इतना ही नहीं , ऐसे भी कुछ वकील होते हैं जो कि अपने मवक्किलों में यह झूठा प्रचार करते है कि जज साहब से उनकी मित्रता है और अगर उन्हें ‘ खश ‘ कर दिया गया तो मुकदमे में सफलता अनिवार्य है । इस – प्रकार से खुश करने के लिए मुवक्किलों से धन या अन्य चीजें लेकर वकील खुद उसे हड़प जाता है ।
शैक्षिक संस्थाएँ एवं भ्रष्टाचार ( Educational Institutions and Corrption ) भ्रष्टाचार के एक और साधन के रूप में अनेक प्राइवेट शिक्षा संस्थाओं की प्रबन्धक कमेटी के . सेक्रेटरी अध्यक्ष एवं सदस्यों का भी उल्लेखनीय स्थान हैं । ये लोग स्कूल कालेज की स्थापना पैसा कमाने के लिए करते हैं । लाइब्रेरी के लिए पुस्तकें खरीदने , स्कूल या कालेज के लिए भवन निर्माण करने तथा शिक्षाकों को वेतन देने के मामलों में इन संस्थाओं के प्रबन्धक कमेटी के सदस्य कितनी बेईमानी करते हैं , इसका कोई ठिकाना नहीं है । महीनों शिक्षकों का वेतन न देना , रकम वेतन देकर उनसे अधिक कम पर हस्ताक्षर करवा लेना तथा अनुचित सेवाएँ लेना तो उन सदस्यों के लिए एक सामान्य चीज है । किन्हीं – किन्हीं संस्थाओं में तो हजारों रुपयों का गबन तक होता रहता है । शिक्षकों या अध्यापकों की नियुक्ति के सम्बन्ध में इन विद्यामन्दिरों में जितनी घाँधलेबाजी होती हैं उसका तो कोई लेखा जोखा ही नहीं । जिस उम्मीदवार का प्रबन्धक कमेटी के सदस्यों से किसी न किसी प्रकार का सम्बन्ध होता है , अधिकतर उसी की नियुक्ति होती हैं । यदि किसी विशेष कारणवश किसी व्यक्ति की नियुक्ति होती भी है तो उसके लिए बिना किसी ‘ सोर्स ( Source ) के अपनी नौकरी चलाते रहना कठिन हो जाता हैं या प्रबन्धक कमेटी के सदस्यों की ‘ चमचेबाजी ‘ करनी पड़ती हैं ।
धार्मिक संस्थाएँ और भ्रष्टाचार ( Religious Institutons and Corruption ) बड़े – बड़े अभिजात अपराधी धर्म के नाम पर बड़े से बड़ा भ्रष्टाचारी कदम उठाने में नहीं हिचकिचाते । तीर्थस्थान पर गए यात्रियों का धर्म के नाम पर ही पण्डों द्वारा भयंकर आर्थिक शोषण किया जाता है । अनेक उदाहरण इस प्रकार के मिले है कि व्यक्ति को डराया गया कि यदि वह अमुक वस्तु दान में नहीं देगा तो उसका पुत्र कल मर जाएगा । जिन्दा जानवरों , यहां तक कि व्याक्तियों को जलाकर , काटकर बलिदान करने की घटनाएँ आज भी मिलती हैं । इतना ही नहीं , मां – बह – बेटियों की इज्जत भी इन्ही धार्मिक स्थानों पर धर्म की आड़ लेकर लूटी जाती हैं जो कि सम्पूर्ण मानव जाति के लिए गहरा धब्बा एवं शर्मनाक बात है । इसी प्रकार अन्य अनेक तरीकों से धर्म की आड़ में भ्रष्टाचार और व्यभिचार होता रहता है । देवदासी प्रथा इसी प्रकार के भ्रष्टाचार का एक नमूना हैं ।
राजनीति और भ्रष्टाचार ( Polities and Corruption ) राजनीति में भी हमें कम भ्रष्टाचार देखने को नहीं मिलता । राजनीति देश के लिए लाभदायक सिद्ध होने के बजाय हानिकारक सिद्ध हो रही है । आज राजनीति लडाई – झगड़े , दंगा – फसाद एवं व्यक्तिगत लाभों का एक साधन – मात्र बन गई हैं । राजनीति में आज चरित्र नाम की कोई वस्तु नहीं है । इस बात से सभी सहमत होगें कि वर्तमान समय में राजनीतिक नेताओं का चरित्र स्तर गिर रहा TO REDMINलालच में वे किसी भी समय किसी राजनीतिक दल के सदस्य होने में नही हिचकिचाते । कुछ व्यक्ति या विधायक तो केवल इस कारण निर्दलीय बने रहते हैं कि जैसे ही कोई दल सत्तारूढ होगा । उसी की सदस्याता वे स्वीकार करेंगे , ताकि उन्हें भी कोई अच्छा – सा पद प्राप्त हो जाए और धन कमाने का मौका मिल जाए । आजकल दल बदलने की प्रवृत्ति राजनीतिक भ्रष्टाचार का एक सामान्य लक्षण राई हैं । मिनिस्टर , संसद सदस्य आदि द्वारा भ्रष्टाचार का सामान्य रूप यह है कि वह अनचित संरक्षण कर विशिष्ट लोगों को देते हैं और उसका उद्देश्य चुनाव के समय अधिक से अधिक वोट प्राप्त करना होता है । नौकरियां , लाइसेन्स , परमिट आदि जो कुछ भी वे देते हैं उसकी एवज में वे अधिक से अधिक वोट दिलवाने का वादा करवा लेते हैं . बड़े – बड़े उद्योगों को स्थापित करने का लाइसेन्स या नाना प्रकार की चीजों को खरीदने का परमिट दिया जाना अथवा उच्च पदों पर अपने ही भाई – भतीजें या साला – बहनोई की नियुक्ति होना राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार के ही कुछ ‘ तुच्छ ‘ उदाहरण हैं ।