बीसवीं शताब्दी में जनसंख्या प्रवृत्तियाँ

 बीसवीं शताब्दी में जनसंख्या प्रवृत्तियाँ

( Population Trends in Twenteith Century )

 

 विश्व जनसंख्या का विकास विश्व की प्राचीन जनसंख्या अनुमानों पर आधारित है । 1886 में अनुमान लगाया कि सन् 18 ई ० में आगस्टन की मृत्यु के समय रोमन साम्राज्य की कुल जनसंख्या 540 लाख थी । इसी जनसंख्या को आधार मानकर कावाईगनक ने अनुमान लगाया कि 180 ई ० में ओरोलियस की मृत्यु के समय रोमन साम्राज्य की जनसंख्या 150 मिलियन रही होगी । वालेक सेजरनेकी के अनुसार प्लेटोलेमिक युग की समाप्ति के समय इजिप्ट की जनसंख्या 8.5 से 9 मिलियन के बीच रही होगी तथा प्रथम शताब्दी के समय कुछ अधिक हो गयी होगी । हान राजवंश के शासनकाल में हुई चीन की दो जनगणनाओं के अनुसार सन् 2 ई ० में चीन की जनसंख्या 59.5 मिलियन तथा सन् 156 ई ० में 50 मिलियन थी । परन्तु इसमें चीन का वह क्षेत्र सम्मिलित नहीं है जो उसमें बाद में मिलाया गया था । अशर के अनुसार इन दोनों कालों में चान की जनसंख्या क्रमशः 71 मिलियन तथा 60 मिलियन रही होगी । भारत के बारे में अनुमान है कि सम्राट अशोक के शासनकाल में भारत की • जनसंख्या 10 से 14 करोड़ के बीच रही होगी । अकबर के समय अर्थात् सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में भारत की जनसंख्या 10 करोड़ रही होगी । मध्यकाल में विश्व जनसंख्या का अनुमान मध्य युग में विश्व जनसंख्या में धीरे – धीरे वृद्धि हुई , परन्तु यह वृद्धि एक क्षेत्र की अपेक्षा अन्य क्षेत्रों में और एक ही क्षेत्र में भिन्न – भिन्न थी । एक अनुमान के अनुसार सत्रहवीं शताब्दी के मध्य से विश्व की जनसंख्या ईसापूर्व की जनसंख्या से दुगनी रही होगी । यदि इस काल में तत्कालीन जनसंख्या वृद्धि दर 0.5 से 100 प्रति हजार प्रतिवर्ष मानकर चलें तो यह जनसंख्या 50 से 55 करोड़ के बीच आती है । विश्व जनसंख्या में होने वाले उतार – चढ़ावों को लगभग सभी विद्वानों ने माना जाता है । कार साण्डर्स ने अनुमान लगाया था कि 1650 ई ० में चीन की जनसंख्या लगभग

आधुनिक काल में विश्व जनसंख्या विश्व जनसंख्या के सम्बन्ध में 1650 ई ० से पूर्व की सूचनाएं अनुमानों पर आधारित रहीं । जनसंख्या के सम्बन्ध में अनिश्चितता की स्थिति अनेक क्षेत्रों में सत्रहक तथा अठारहवीं शताब्दी में भी रही विश्व की जनसंख्या के विषय में ठोस जानकारी का प्रारम्भ सन् 1650 ई ० के पश्चात् ही माना जाता है जबकि यूरोप के अधिकांश देशों एवं अमेरिका में जनगणना प्रणाली प्रारम्भ हुई , परन्तु अभी भी संसार के कुछ ऐसे क्षेत्र है जहाँ का प्रचलन जनगणना नहीं है । विकास तथ नहीं है अतः वहां की जनसंख्या के बारे में कुछ भी कहना सम्भव कार साण्डर्स ने सन् 1650 से 1900 ई ० तक को जनसंख्या के बारे में अनुमान लगाए हैं । ये अनुमान विभिन्न उपलब्ध अभिलेखो व आँकड़ो पर आधारित है और लगभग सभी विद्वान उनको स्वीकार भी करते हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जनसंख्या के अनुसार 1920 और उसके पश्चात् के वर्षों के लिए ही प्राप्य हैं ।

विश्व जनसंख्या की प्रमुख विशेषताएँ कौन – सी हैं characteristics What are the main population

उत्तर विश्व जनसंख्या की विशेषताएँ विश्व जनसंख्या की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं

जन्म एवं मृत्यु दर – संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार विश्व में मौजूदा जन्म दर 24 प्रति हजार जबकि मृत्यु दर 9 प्रति हजार है । विभिन्न देशों में जन्म दर और मृत्यु दर सम्बन्धी भिन्नता है । विकसित देशों में जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों कम है । अल्प – विकसित देशों में जन्म दर तो अधिक है परन्तु मृत्यु दर घट रही है । इसके विपरीत अत्यल्प विकसित अथवा पिछड़े देशों में जन्म दर और मृत्यु दर दोनों अधिक हैं । साथ ही , विकसित देशों में सकल प्रजनन दर 1.7 प्रति स्त्री है जबकि अल्प – विकसित देशों में 3.3 प्रति स्त्री तथा अत्यल्प विकसित देशों में 5.5 प्रति स्त्री है । निम्न तालिका में विश्व तथा इसके कुछ प्रमुख क्षेत्रों की जन्म एवं मृत्यु दरों को प्रदर्शित किया गया है क्षेत्र जन्म एवं मृत्यु दर प्रति हजार ( 1995-2000 ) जन्म दर मृत्यु दर सम्पूर्ण विश्व | अधिक विकसित क्षेत्र | अल्प- विकसित क्षेत्र अत्यल्प विकसित क्षेत्र अफ्रीका एशिया | यूरोप लैटिन अमेरिका 24 12 27 40 41 24 11 25 15 19 उत्तरी अमेरिका | ओसीनिया

जीवन प्रत्याशा- विश्व में समस्त देशों में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के कारण अनेक बीमारियों को महत्वहीन बना दिया गया है जिसके फलस्वरूप सामान्य मृत्यु दर तथा शिशु मृत्यु दर में गिरावट आ गयी है जिससे जीवन प्रत्याशा बढ़ गयी है । 160 निम्न तालिका में विश्व तथा विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा को प्रदर्शित किया गया है विश्व के कुछ प्रमुख देशों में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा ( 2002 ) जीवन प्रत्याशा ( वर्षो में ) क्षेत्र देश सम्पूर्ण विश्व 66.9 उच्च आय देश 78.3 मध्यम आय देश 70.0 अल्प आय देश विकासशील देश पूर्वी एशिया एवं पैसेफिक यूरोप एवं मध्य एशिया लैटिन अमेरिका अरब देश चीन भारत संयुक्त राज्य अमेरिका ब्रिटेन जापान पाकिस्तान श्रीलंका

बीसवीं शताब्दी में जनसंख्या प्रवृतियाँ इस तालिका से स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण विश्व में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में सुधार हुआ है । इसका मुख्य कारण विश्व में स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि करना है । विकसित राष्ट्रों में मृत्यु दर कम होने से वहाँ जीवन प्रत्याशा अधिक है जबकि विकासशील एवं पिछड़े देशों में जीवन प्रत्याशा कम है । विश्व में जीवन प्रत्याशा बढ़ने का कारण औद्योगीकरण में तेजी से हुई वृद्धि , कृषि उपज में वृद्धि , अन्तर्राष्ट्रीय एवं अन्तर्देशीय व्यापार की सुविधा में वृद्धि के कारण दुर्भिक्ष एवं अकाल के भय का समाप्त होना आदि है । एशिया , अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के राष्ट्रों द्वारा अनेक रोगों के उन्मूलन हेतु चलाए गए अभियान से इन देशों में मृत्यु दरों में कमी आ गयी है जिससे यहाँ जीवन प्रत्याशा बढ़ गयी है ।

वार्षिक वृद्धि दर ( 1990–2000 ) – विश्व में जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर 1.4 प्रतिशत है । अधिक विकसित देशों में यह वृद्धि दर 0.7 प्रतिशत , अल्प विकसित देशों में 1.8 प्रतिशत तथा विकसित अथवा पिछड़े देशों में 2.6 प्रतिशत है । अफ्रीका में यह वृद्धि दर 3.0 प्रतिशत प्रतिवर्ष है । इसी तरह , यूरोप में यह दर 0.2 प्रतिशत , एशिया में 1.5 प्रतिशत , लैटिन अमेरिका में 1.9 प्रतिशत , उत्तरी अमेरिका में 1.0 प्रतिशत था ओसीनिया में 1.4 प्रतिशत प्रतिवर्ष है । 4. आयु संरचना- किसी जनसंख्या की आयु संरचना उसकी प्रजननशीलता , मरणशीलता तथा प्रवास का प्रतिफल होती है । इन सब तत्वों में आयु संरचना को प्रजननशीलता सर्वाधिक प्रभावित करती है ।

विश्व आनु संरचना का अध्ययन तीन वर्गों में बाँटकर किया जाता है

  1. शिशुओं एवं बच्चों का आयु वर्ग ( 0-14 वर्ष ) — इस आयु वर्ग में 15 वर्ष से कम आयु वाले शिशुओं एवं बच्चों को रखा जाता है । यह आयु वर्ग आर्थिक दृष्टि से अनुत्पादक है तथा समाज तथा देश पर बोझ है क्योंकि इनके भोजन , वस्त्र , शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर व्यय करना पड़ता है । परन्तु यही आयु वर्ग भविष्य का आधार भी है । विश्व को लगभग 30 प्रतिशत जनसंख्या इसी आयु वर्ग में है । विकसित देशों में सम्पूर्ण जनसंख्या का 18 प्रतिशत भाग , कम विकसित देशों में 35 % भाग तथा अल्यल्प तथा पिछड़े देशों में लगभग 45 % भाग इसी वर्ग में आता है । संयुक्त राज्य अमेरिका , ग्रेट ब्रिटेन , जापान तथा अन्य यूरोपीय देशों में इस आयु वर्ग में सम्पूर्ण जनसंख्या का 22 % से कम ही भाग आता है । जबकि लैटिन अमेरिका , अफ्रीका , भारत , पाकिस्तान तथा अन्य एशियाई देशों में इस आयु में 32 से 46 प्रतिशत तक जनसंख्या आती है । वर्ग ( 15-64 वर्ष ) इस आयु वर्ग में सामान्यतया 15 से 64 वर्ष के लोग आते हैं । इसी कार्यशील जनसंख्या पर देश के विकास भार है । यह आयु वर्ग

  1. प्रौढ़ आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक उत्पादक तथा जनांकिकीय दृष्टि से सर्वाधिक गतिशील होता है । विश्व की लगभग 63 प्रतिशत जनसंख्या इसी आयु वर्ग में है । विकसित देशों में इस आयु वर्ग में सम्पूर्ण जनसंख्या का लगभग 67 प्रतिशत भाग रहता है , जबकि विकासशील एवं देशों में अम्पूर्ण जनसंख्या का 60 प्रतिशत भाग इस आयु वर्ग में आता है ।

  1. वृद्ध आयु वर्ग ( 65 वर्ष से अधिक ) – इस आयु वर्ग में 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग आते हैं । विश्व की लगभग 7.0 प्रतिशत जनसंख्या इस आयु वर्ग में आती है । सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न देशों में इस आयु वर्ग के लोगों की संख्या अधिक है । इसका प्रमुख कारण इन देशों में जन्म दर से आई कमी तथा जीवन प्रत्याशा में होने वाली वृद्धि है । विकसित देशों में इस आयु वर्ग में लगभग 15 प्रतिशत जनसंख्या आती है । पिछड़े एवं विकासशील देशों में जीवन प्रत्याशा कम होने के कारण इस आयु वर्ग में लोगों की संख्या कम रहती है । पिछड़े एवं विकासशील देशों में इस आयु वर्ग में लगभग 5 % जनसंख्या आती है । अतः यह बात स्पष्ट है कि विकसित देशों में प्रौदों की जनसंख्या अधिक है जबकि विकासशील देशों में शिशुओं एवं बच्चों की अधिक संख्या है । अर्थात् विकसित देशों में विकासशील देशों की अपेक्षा आश्रितों की संख्या बहुत कम है ।

  1. जनसंख्या का घनत्व – विश्व की वर्ष 2002 में जनसंख्या 6 , 225 मिलियन थी , परन्तु यह जनसंख्या कहीं सघन बसी हुई थी तो कहीं विरल । सम्पूर्ण विश्व का जनघनत्व 47 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ० है । विकसित देशों में जनघनत्व 22 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ० है जबकि विकासशील देशों में जनघनत्व 55 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ० है । अफ्रीका महाद्वीप में जनघनत्व 24 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ० , यूरोप में 32 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ० , एशिया में 110 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ० , लैटिन अमेरिका में 24 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ० , उत्तरी अमेरिका में 14 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ० तथा ओसीनिया में जनघनत्व 3 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ० है । विश्व में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ जन घनत्व अत्यधिक कम है । इन क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व 10 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ० से भी है । इन क्षेत्रों को जनरिक्त क्षेत्र कहते हैं ।

 इसके अन्तर्गत निम्न क्षेत्र आते हैं— 1. यूरोप में उत्तरी यूरोप 2. दक्षिणी अमेरिका में अमेजन की घाटी तथा मध्य एण्डीज से पैटागोनिया तक का क्षेत्र । 3. अंटार्कटिका का जनरिक्त क्षेत्र । 4. आस्ट्रेलिया का पश्चिमी हिस्सा । 5. एशिया में मध्य एशिया , गोबी , अरब , उत्तरी साइबेरिया , मंगोलिया । 6. अफ्रीका में सहारा मरुभूमि , कालाहारी मरुभूमि तथा दक्षिणी – पश्चिमी अफ्रीका । 7. उत्तरी अमेरिका में अलास्का से लेकर ग्रीनलैण्ड तक तथा अलास्का से दक्षिण की तरफ राकी पर्वतीय क्षेत्र तथा मैक्सिको । विश्व में कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ जनसंख्या बहुत घनी बसी है । इन क्षेत्रों से जनसंख्या घनत्व 80 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ० से अधिक है । इन क्षेत्रों में निम्नलिखित क्षेत्र आते हैं Kallel 1. उत्तरी – पश्चिमी तथा मध्य यूरोप 2. पूर्वी एशिया ( चीन , जापान , कोरिया को सम्मिलित करते हुए ) 3. मिस्र में नील नदी की घाटी । 4. दक्षिणी एशिया ( भारत , बांग्लादेश , श्रीलंका को सम्मिलित करते हुए )5. उत्तरी – पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका । 6. आस्ट्रेलिया में सिडनी का समीपवर्ती क्षेत्र । 7. दक्षिणी पूर्वी ब्राजील

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