ग्रामीण नेता

 ग्रामीण नेता

2023 NEW SOCIOLOGY – नया समाजशास्त्र
 https://studypoint24.com/top-10-link-for-all-2022/2023-new-sociology-%e0%a4%a8%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0

ग्रामीण शक्ति संरचना में नेतृत्व का महत्त्वपूर्ण स्थान है । वर्तमान जटिल समाज में हमारी सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से नेतृत्व पर ही आधारित है । इसका कारण यह है कि समाज में ऐसे व्यक्तियों की संख्या बहुत कम होती है जिनमें से किसी विषय पर स्वयं निर्णय लेने की अथवा परिस्थितियों का पूर्वानुमान करने की क्षमता हो । इसका तात्पर्य है कि जिन व्यक्तियों में एक . विशेष समूह अथवा समुदाय की समस्याओं को समझने और उनका समाधान करने की अधिक क्षमता होती है ए वे स्वाभाविक रूप से एक छोटे अथवा बड़े . क्षेत्र का नेतत्व करने लगते हैं । इसी दृष्टिकोण से नेतृत्व को एक सामाजिक तथ्य ; ैवबपंस च्ीमदवउमदवद द्ध कहा जाता है यह ध्यान रखना प्रावश्यक है कि नेतृत्व भी एक तुलनात्मक अवधारणा ; त्मसंजपअम ब्वदबमचज द्ध है । इसका अभिप्राय है कि जिस व्यक्ति में नेतृत्व के गुण होते हैं उसमें अनुसरण करने के गुण भी पाए जाते हैं । लेकिन जब अनुसरण करने की अपेक्षा व्यक्ति की नेतृत्वशील प्रवृत्ति अधिक विकसित हो जाती है तथा एक बड़ी संख्या में व्यक्तियों द्वारा इसे स्वीकार कर लिया जाता है तब वह व्यक्ति समूह में नेता की प्रस्थिति प्राप्त कर लेता है । जनतान्त्रिक समाजों में प्राज समाजशास्त्रियों ए राजनीतिशास्त्रियों तथा मनोवैज्ञानिकों की रुचि नेतृत्व के अध्ययन के प्रति निरन्तर बढ़ती जा रही है ए लेकिन ग्रामीण नेतृत्व के सन्दर्भ में अध्ययन करने वाले विद्वानों की संख्या अपेक्षाकृत रूप से ग्राज भी बहुत कम है । प्रस्तुत विवेचन से हमारा उद्देश्य ग्रामीण नेतृत्व की अवधारणा को स्पष्ट करने के साथ ही यह देखना भी है कि परम्परागत ए ग्रामीण नेतत्व की अवधारणा को स्पष्ट करने के साथ ही यह देखना भी है कि परम्परागत ए ग्रामीण नेतृत्व की तलना में आज नेतृत्व से सम्बन्धित कौनसी नवीन प्रवृत्तियां जन्म ले रही हैं तथा उन्होंने ग्रामीण जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया है  

 

नेतृत्व की अवधारणा 

 

नेता और नेतृत्व प्रत्येक समाज ए संस्था ए संगठन एवं देश के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं । सामाजिक संगठन के प्रत्येक स्तर पर उसके संचालन और संगठन के लिए नेता को उत्तरदायी माना जाता है । नेता भी समूह का ही एक सदस्य होता है । वह समूह को अपनी विशेषताओं औरर व्यवहारों के द्वारा अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में प्रभावित करता है । नेता यह कार्य किस तरह करता है घ् नेता कौन होता है घ् नेता का व्यवहार किन बातों पर निर्भर करता है घ् इन सभी प्रश्नों के सन्दर्भ में व्यापक अध्ययन किए गए हैं ।

 

नेता वह व्यक्ति होता है जो समूह पर अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा सर्वाधिक प्रभाव डालता है और जिस प्रक्रिया द्वारा वह समूह को प्रभावित करने का लक्ष्य प्राप्त करता है ए उसे नेतृत्व व्यवहार कहा जाता है ; बेरन तथा बर्न ए 1987 द्ध । नेता का समूह के अन्य सदस्यों के साथ जो सम्बन्ध होता है ए उसे नेता . अनुगामी सम्बन्ध कहते हैं । नेता अपने अनुगामियों के विचार ए व्यवहार और कार्य को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से निर्देशित करता है । यदि हम किसी समूह के नेता को पहचानना चाहते हैं तो हमें यही देखना होगा कि समूह के किस सदस्य का समूह पर सबसे ज्यादा प्रभाव है । इस तरह समूह का हर सदस्य थोड़ा बहुत नेता होता है । नेतृत्व गुणात्मक नहीं बल्कि मात्रात्मक परिवर्त्य है । साथ ही यह भी स्पष्ट है कि नेतृत्व व्यवहार अन्तःक्रियात्मक होने के कारण इकतरफा नहीं होता । नेता और अनुगामी रू दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं । इस दृष्टि से औपचारिक नेता वास्तविक नेता नहीं होगा य यदि उसका अनुयायियों पर प्रभाव न हो ; क्रच ए क्रचफील्ड तथा बैलेकी ए 1962 द्ध ।

 

समूह के प्रसंग में चर्चा करते हुए कहा जा चुका है कि समूह के विस्तार के साथ पद और भूमिकाओं का विभेदन ; कपििमतमदजंजपवद द्ध होता है । यह स्थिति विभिन्न व्यक्तियों के द्वारा प्रभावित करने वाली क्षमता को निर्देशित करती है । यह भी पाया गया कि जब समूह के लक्ष्यों को पाने में बाधाएँ आती हैं या समूह के अस्तित्त्व के लिए बाहर से खतरा उत्पन्न होता है तो नेतृत्व की आवश्यकता पड़ती है । समूह के अन्दर यदि कलह हो ए अस्थिरता हो या औपचारिक नेता अपना काम ठीक ढंग से न करता हो तो नेतृत्व व्यवहार उपजता है । समूह के सदस्यों में ऐसी आवश्यकताएँ कितनी मात्रा में हैं ए जिनकी पूर्ति के लिए नेतृत्व परिस्थिति तथा समूह के सदस्यों की विशेषताओं पर निर्भर करता है । नेता को एक अलग व्यक्ति की श्रेणी मानना उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि समूह के सभी सदस्य नेतृत्व व्यवहार में सदस्यों पर सामाजिक शक्ति का उपयोग करते हैं और उन्हें प्रभावित कर एक निश्चित दिशा में ले जाते नेतृत्व को समझने के लिए अनेक प्रकार के सिद्धान्त प्रस्तुत किए गए हैं । इन सिद्धान्तों में तीन प्रकार के दष्टिकोण प्रमुख है दृ

व्यक्तित्त्व सिद्धान्त 

परिस्थिति सिद्धान्त तथा

अन्तः किया सिद्धान्त ।

 

व्यक्तित्व सिद्धान्त

जब हम महान नेताओं की ओर ध्यान देते हैं तो यह प्रतीत होता है कि वे साधारण व्यक्ति नहीं थे । आज के युग में अधनंगे फकीर की वेशभूषा वाले महात्मा गाँधी की क्षमता निश्चित रूप से अविश्वसनीय लगती है । नेतृत्व के प्रारम्भिक सिद्धान्त इसी विश्वासपा आधारित थे कि नेताओं में कुछ ऐसी विशेषता होती है जो दूसरों में नहीं होती हैं । यह सिद्धान्त ऐसा मानता है कि नेतृत्व व्यक्तित्व की एक सामान्य विशेषता है अर्थात् एक व्यक्ति ए जो नेता होता है ए वह हर स्थिति में नेता बन जाता है । नेतृत्व व्यवहार के विभिन्न परिस्थितियों में एक . सा मिलने के तथ्य की आंशिक रूप से ही पुष्टि हो चुकी हैं । नेतृत्व को सामान्य विशेषता स्वीकार करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं है । नेतृत्व को महान व्यक्तित्त्व से जोड़ने वाला यह सिद्धान्त यह भी मानता है कि नेता अनोखा होता है । परन्तु इतिहास बताता है कि अच्छे नेता अच्छे अनयायी भी रहे है । फलतः नेतृत्व का व्यक्तित्त्व सिद्धान्त बहुत उपयुक्त नहीं प्रतीत होता है । स्टागहिल ; 1974 द्ध तथा मैन ; 1969 द्ध ने नेताओं की विशेषताओं से जुड़े लगभग 250 अध्ययनों का विश्लेषण करते हुए शारीरिक गुणों ए व्यक्तित्व तथा अर्जित विशेषताओं पर तुलनात्मक अध्ययन किया हैं । उनके विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि नेता उम्र में थोड़ा अधिक ए लम्बा ए स्वस्थ्य और अधिक सक्रिय होता है । खेल के क्षेत्र को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में यह सामान्यीकरण नहीं पाया जाता । उदाहरणार्थ . गाँधी ए नेपोलियन और हिटलर अपने अनुयायियों से न तो अधिक लम्बे थे ए न बलवान थे । अत रू इन विशेषताओं के आधार पर कोई स्पष्ट अन्तर नहीं प्राप्त होता है । व्यक्ति . विशेषताओं के अध्ययनों में बुद्धि और वाकपटुताः दो विशेषताएँ महत्वपूर्ण पाई गई हैं । कुछ अध्ययनों में नेता के लिए दृढ़ता ए अन्तर्वैयक्तिक संवेदनशीलता और आत्मविश्वास महत्त्वपूर्ण पाए गए हैं । एक और विशेषता ए जो नेतृत्व के साथ जोड़ी गई ए है वह है रू करिश्मा ; प्रभामण्डल द्ध । यह अलौकिक विशेषता मानी गई है । बहुत से नेताओं के साथ यह प्रभामण्डल सम्बंधित किया गया है परन्तु यह नेतृत्व का कारण नहीं माना जा सकता । लासवेल ; 1948 द्ध तथा वोल्फेन्स्टाइन ; 1947 द्ध ने अनेक महान नेताओं के मनोइतिहास ; च्ेलबीवीपेजवतल द्ध का विश्लेषण करके यह प्रदर्शित किया है कि अनेक महान नेता शक्ति ए अभिप्रेरणा और अनेक प्रकार के द्वन्दों से पीड़ित थे । अतः उनकी महानता क्षतिपूर्ति का ही प्रयास थी ।

 

परिस्थिति सिद्धान्त

 

व्यक्तित्व सिद्धान्त से असंतुष्ट होकर कुछ मनोवैज्ञानिकों ने परिस्थिति सिद्धान्त प्रस्तावित किया है । इसके अनुसार परिस्थिति की विशेषताएँ यह निश्चित करती हैं कि किस तरह के नेतृत्व की आवश्यकता है घ् प्रारम्भ में इस सिद्धान्त के प्रतिपादकों ने तो यहाँ तक कहा कि दी हुई परिस्थिति में कौन व्यक्ति नेतृत्व करेगा घ् यह संयोग की बात है ; कपूर एवं मेगाफ ए 1968 द्ध । परिस्थिति से जुड़े अनेक कारक नेतृत्व को प्रभावित करते हैं । अनेक अध्ययनों में यह पाया गया है कि समूह का आकार एवं स्वरूप यह निर्धारित करता है कि किस प्रकार का नेतृत्व विकसित होगा । उदाहरण के लिए बड़े आकार के समूहों की अपेक्षाएँ अधिक होती हैं । इसी प्रकार समूह में जिस व्यक्ति को समूह के अन्य सदस्यों के साथ अधिक संचार ; बातचीत द्ध करने का अवसर मिलता है ए उसकी अन्य सदस्यों की अपेक्षा नेतृत्व करने की सम्भावना बढ़ जाती है ; यूटको ए 1968 द्ध । ऐसा सम्भवत रू इसलिए भी होता है कि अधिक संचार करने वाला व्यक्ति ऐसा समझता है कि समूह के अन्य सदस्य उस पर निर्भर करते हैं । नेतृत्व का चयन इस बात पर भी निर्भर करता है कि समूह के सदस्यों की जरूरतें क्या है घ् और कौन व्यक्ति उन्हें रचित रूप से परा करने में मदद कर सकता है । इस बात का प्रभाव यह भी होता है कि समह की आवश्यकताओं या कार्यों में परिवर्तन होने पर नेतत्व में भी परिवर्तन होता है ; बर्नलन्द 1962 द्ध । इस प्रकार परिस्थिति की विशेषताएँ नेतृत्व को प्रभावित करती है । इस बात की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि नेता बनने का इच्छक सदस्य समह में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है जिससे समूह के सदस्य उसे नेतृत्व का अवसर दें ; रेबी तथा बेभर्स ए 1976 द्ध । परिस्थिति के कारकों में समूह सदस्यों की विशेषताओं को शामिल किया जा सकता है । उदाहरण के लिए . निरंकुश व्यक्तित्त्व वाले अनुगामी निरंकुश नेता का ही चुनाव करना चाहेंगे । अतः इस सिद्धान्त के अनुसार नेता होना इस पर निर्भर करता है कि नेता की विशेषताएँ और परिस्थिति की सीमाएँ क्या है 

 

अन्तःक्रियात्मक सिद्धान्त

 

ऊपर चर्चित दोनों ही सिद्धान्तों में नेतृत्व व्यवहार के एक महत्वपूर्ण पक्ष रू अनुयायी की ओर उपेक्षा का दृष्टिकोण अपनाया गया । जैसा कि नेतृत्व व्यवहार की व्याख्या करते हुए संकेत किया जा चुका है य नेता और अनुयायी के बीच प्रभावित करने की क्षमता को लेकर अन्तर होता है । अत रू यह आवश्यक है कि नेतृत्व व्यवहार को समझने में अनुयायियों की भूमिका को भी महत्व दिया जाए । हालेंडर ; 1978 द्ध ने इस प्रश्न पर विचार करते हुए नेता . अनुयायी के पारस्परिक प्रभाव ; त्मबपचतवबंस पदसिनमदबम द्ध का उल्लेख किया है । हम अपने अनुभव में भी पाते हैं कि एक सफल नेता वही होता है जो अपने अनुयायियों के विचारों और भावनाओं का सशक्त प्रतिनिधित्व कर सकता हो । जो नेता अपने अनुयायियों की आवश्यकताओं और इच्छाओं पर ध्यान नहीं दे पाते ए उनके अनुयायी उनसे दूर चले जाते हैं । इस प्रकार नेतृत्व व्यक्ति और परिस्थिति की अन्तक्रिया पर निर्भर करता है । नेतृत्व का कोई सार्वभौमिक रूप नहीं होता है । कोई व्यक्ति एक परिस्थिति में नेता हो सकता है । दूसरी में नहीं । नेता की सक्षमता ; म्ििमबजपअमदमेे द्ध व्यक्ति की विशेषता और परिस्थिति के सामंजस्य पर निर्भर करती है । लेबिन ए लिप्पिट एवं ह्वाइट ; 1939 द्ध ने बच्चों को ए निरंकुश ए प्रजातांत्रिक तथा स्वतंत्र नेतृत्व की परिस्थितियों में रखकर उनके व्यवहार का अध्ययन किया । निरंकुश नेता ने समूह से अपना सम्बन्ध नहीं रखा । प्रजातांत्रिक नेता ने नीति निर्धारण के जिस समूह को अवसर दिया ए सदस्यों को कार्य करने की स्वतंत्रता दी तथा समूह के कार्यों में भाग लिया । स्वतंत्र नेता ने समूह को पूरी छूट दी और समूह के कार्यों में भाग नहीं लिया ।

 

परिणामों से यह ज्ञात हुआ कि निरंकुश नेता के अन्तर्गत काम करने वाले बच्चों ने प्रजातांत्रिक नेता वाले समूह की तुलना में अत्यधिक मात्रा में आक्रोश प्रदर्शित किया । समूह की एकता प्रजातांत्रिक समूह में अधिक थी । निरंकुश नेता के हट जाने पर कार्य की रचनात्मकता कम हो गई । प्रजातांत्रिक समूह में ऐसा नहीं हुआ । जहाँ तक उत्पादकता का प्रश्न

 

 

है निरंकश नेतृत्व के अन्तर्गत इसकी मात्रा अन्य समूहों से अधिक थी । बाद के अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया कि नेतृत्व की प्रभाविकता केवल नेता की शैली के कारण नहीं होती अपित परिस्थिति ण् समूह की माँगें और समूह के लक्ष्य ही यह निर्धारित करते हैं कि कौन सा नेतत्व अधिक सक्षम होगा घ्

 

फीडलर ; 1964 . 1971 द्ध ने नेतृत्व के सोपाधिक ; ब्वदजपदहमदबल द्ध सिद्धान्त का विकास किया जिसमें इन दोनों तत्त्वों को सम्मिलित किया गया है । वस्तुतः नेतृत्व का समूह के प्रसंग में योगदान कई प्रकार का होता है । कुछ नेता समूह के मनोबल और निष्पादन में प्रभावशाली योगदान करते हैं ए जबकि दूसरे ऐसा नहीं कर पाते । कोई नेता अधिक सक्षम होता है तो कोई कम । इन प्रश्नों की ओर आधुनिक मनोवैज्ञानिकों का विशेष ध्यान गया है । फीडलर ; 1978 द्ध तथा फीडलर एवं गारसिया ; 1987 द्ध ने अपने सिद्धान्त में यह माना है कि समूह के सफल निष्पादन में नेता का योगदान नेता तथा परिस्थिति रू दोनों की विशिषताओं पर निर्भर करता है । नेतृत्व की प्रभाविकता को पूर्ण रूप से समझने के लिए दोनों ही तरह के कारकों पर विचार करना होगा । फीडलर ने न्यूनतम पसन्दगी वाले सहकर्मी ; वाले व्यक्ति के सम्मान  को सबसे महत्त्वपूर्ण माना है । इसका तात्पर्य है कि नेता उस व्यक्ति का किस तरह मूल्यांकन करता है जो उसकी दृष्टि में साथ काम करने के लिए उपयुक्त नहीं है या अत्यन्त कम उपयुक्त है । जो नेता ऐसे व्यक्ति को पसन्द नहीं करता ए वह मुख्यत रू कार्य के सफल निष्पादन को महत्त्व देता है । दूसरी ओर जो व्यक्ति इस तरह के सहयोगी को धनात्मक रूप से पसन्द करता है ए वह अपने सहयोगियों के साथ अच्छा सम्बन्ध बनाए रखना चाहता है । इन दोनों तरह के नेताओं में कौन अधिक सफल होगा ए यह परिस्थिति नेता के पक्ष में तब होती है जब नेता को समूह के सदस्यों का समर्थन और प्रतिबद्धता अधिक प्राप्त हो । कार्य के लक्ष्य व भूमिकाएँ सुपरिभाषित हों और नेता अपने पद के प्रभाव से आदेशों का पालन कराने में सक्षम हो । फीडलर के अनुसार वे नेता जो कार्योन्मुख ; ज्ंेश वतपमदजमक द्ध होते हैं । व्यक्ति . उन्मुख नेताओं की अपेक्षा उन परिस्थितयों में अधिक सक्षम होते हैं जिनमें परिस्थिति का नियंत्रण कम या अधिक होता है । दूसरी ओर व्यक्ति . उन्मुख नेता उन परिस्थितियों में अधिक सफल होते हैं जब परिस्थितियों का नियन्त्रण मध्यम स्तर का होता है और समूह कार्य के निष्पादन के लिए अधिक दिशा निर्देश चाहता है । ऐसी स्थिति में कार्योन्मुख नेता व्यक्ति . उन्मुख नेता की अपेक्षा अधिक संरचना प्रदान करता है । इसी तरह कार्योन्मुख नेता उन स्थितियों में भी अधिक प्रभावशाली होते हैं जिनमें परिस्थितियों का उच्च नियन्त्रण रहता है । ऐसी स्थिति में कार्योन्मुख नेता ऐसा सोचते हैं कि परिस्थितियाँ ठीक है और वे अपना हस्तक्षेप कम कर लेते हैं । यह कार्य उनके अनुयायियों द्वारा सराहा जाता है । इसी परिस्थिति में व्यक्ति . उन्मुख नेता ऐसा सोचते हैं कि ष् समूह के सदस्यों के साथ उनके सम्बन्ध अच्छे है ष् और काम की ओर ध्यान देते हैं । उनका यह प्रयास काम करने में बाधा जैसा माना जाता है ।

 

ऐसी परिस्थितियाँ ए जिनमें नियन्त्रण मध्यम श्रेणी का होता है ए निश्चित रहती हैं । अच्छे अन्तर्वैयक्ति सम्बन्धों की ओर ध्यान देना आवश्यक हो जाता है ण् चूँकि व्यक्ति उन्मुख नेताओं की रुचि व्यक्तियों में होती है । इस प्रकार के नेता ऐसी स्थिति में अधिक प्रभावशाली हो जाते है । दसरी ओर कार्योन्मुख नेता काम में रुचि होने के कारण निरंकुश हो सकते हैं और सहयोगियों का उनके साथ सम्बन्ध बिगड़ सकता है ।

 

इस प्रकार फीडलर का सिद्धान्त आधुनिक अन्त क्रियात्मक सिद्धान्त के अनुकूल है । इस सिद्धान्त की जाँच अनेक अध्ययनों में की गई है य और सफलता भी प्राप्त हुई है । यह सिद्धान्त उद्योग ए अन्तः सांस्कृतिक परिवेशों तथा सैनिक अकादमियों में काफी सफल पाया गया है ; स्टवर्ग तथा गारसिया ए 1981 द्ध । यह सिद्धान्त नेतृत्व के शिक्षक के लिए कई सुझाव देता है । नेताओं को उन परिस्थितियों को बदलने का प्रशिक्षण देना चाहिए जिसमें वे काम कर सकें । यह उपागम कई दृष्टियों से प्रभावशाली है क्योंकि इस के अन्तर्गत परिस्थितियों की संरचना के द्वारा नियन्त्रण की मात्रा बढाई जा सकती है । नेताओं के व्यक्तित्त्व और उनकी प्रेरणाओं को बदलने की आवश्यकता नहीं है । फीडलर और उनके सहयोगियों ने इसके लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाया है जिसमें नेता अपना न्यूनतम पसन्दगी वाले सहकर्मी के साथ काम का स्तर नाप सकता है य और परिस्थिति किस हद तक उसके पक्ष में है घ् यह देख भी सकता है । बाद में परिस्थितियों को परिमार्जित करने की तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाता है । इस प्रकार का प्रशिक्षण सफल भी हुआ है । फिर भी इस सिद्धान्त की कुछ सीमाएँ है । कार्योन्मुख तथा व्यक्ति . उन्मुख नेताओं की क्या विशेषताएँ हैं घ् परिस्थिति नेता के कितने पक्ष में है घ् इसका निर्धारण करना कठिन है । परन्तु परिस्थिति को और भी विशेषताएँ होती हैं जिनको ध्यान में नहीं रखा गया । फिर भी यह सिद्धान्त काफी लोकप्रिय हुआ है ।

 

जे बी  पी सिन्हा ; 1980  ने परिपोषक कार्योन्मुख नेतृत्व ; छनतजनतंदज जंेश उंेजमत द्ध की नेतृत्व शैली को भारतीय परिस्थितियों में उपयुक्त पाया है । यह शैली प्रतिभागिता का विरोध नहीं करती हैं ए सांस्कृतिक प्रत्याशाओं के अनुरूप एक संक्रान्ति की स्थिति वाले नेतृत्व ; ज्तंदेपजपवदंस समंकमतेीपच द्ध को व्यक्त करती है । भारतीय परिवेश में जहाँ निर्भरता प्रचुर मात्रा में पाई जाती है ए लोग नेता के साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाने के लिए उन्मुख हो जाते हैं । इस दृष्टि से यदि नेता अपने अधीन व्यक्तियों या समूह के सदस्यों की स्वीकति प्राप्त करना चाहता है तो उनके प्रति परिपोषक का रूप अपनाकर ही कर सकता है । इस माडल में परिपोषण की तकनीक की सहायता से नेता अपने सहायकों से कार्य करा सकता है । नेतृत्व की यह शैली भारतीय संगठनों में प्रचलित पाई गई ; जे ण् बी ण् पी सिन्हा ए 1984 द्ध । सम्भवतः नेतृत्व की यह शैली हमारे मन की प्रतिमा जैसी है ; वर्मा ए 1985 द्ध । वस्तुत रू वास्तविक व्यवहार तथा व्यक्त किए गए मूल्यों के बीच पर्याप्त अन्तर विद्यमान रहता है । संगठनों में कार्यरत अधिकांश नेता परिपोषक कार्योन्मुख नेतृत्व का वाचिक स्तर पर उल्लेख तो करते हैं परन्तु व्यवहार में इसका उपयोग नहीं करते । जो प्रशासक ऐसा वस्तुतः अपनाते हैं उनके संगठन वास्तव में अधिक सक्षम पाए गए । बाद के अध्ययनों से स्पष्ट है कि इस प्रकार का नेतृत्व मध्यम स्तर के प्रबन्धकों के लिए लागू होता है । उच्चस्तर के प्रबन्धकों में पथप्रदर्शक . नवाचारी ; च्पवदममत पददवअंजपअम द्ध शैली ही प्रभावशाली होती है ; खांडवाला 1988 द्ध

 

पाण्डेय ; 1975 द्ध ने नेतृत्व की शैली ए व्यक्ति विशेषताओं तथा नेता के चयन की पद्धति का नेता तथा समूह के सदस्यों के व्यवहारों पर पड़ने वाले प्रभावों का प्रायोगिक अध्ययन किया है । इस अध्ययन से स्पष्ट है कि कार्योन्मुख नेतृत्व की अपेक्षा सम्बन्धों को महत्त्व देने वाली नेतृत्त्व शैली ए समूह के सदस्यों में अधिक विचारों को जन्म देती है । चुने हुए नेता और बारी . बारी से नेता का कार्य करने वालों का व्यवहार अधिक प्रजातान्त्रिक था । नेताओं के

 

प्राथमिक कार्य

कार्य सम्पादन प्रत्येक नेता के ऊपर यह दायित्व होता है कि वह समूह को संयोजित के विभिन्न सदस्यों में काम को बाँटकर उसे पूरा कराएँ ।

नियोजक रू नेताओं को कार्यों की योजना बनाना पड़ती है । विशेष रूप से किन तरीकों और स्रोतों की सहायता से समूह लक्ष्य पा सकेगा घ् उसके अल्पकालिक और दीर्घकालिक कार्य क्या होंगे घ् इसका निर्णय भी नेता को करना पड़ता है ।

नीतिनिर्माण रू नेता समूह के कार्यक्रमों के लिए नीति को निर्धारित करता है । यह नीति सहयोगियों या ऊपर के अधिकारियों या स्वयं नेता को ही निश्चित करना पड़ती है ।

विशेषज्ञता रू नेता को सूचनाओं और समूहों का जानकार माना जाता है । यह जानकारी उसे अधिक शक्तिशाली बनाती है ।

 

समूहों का प्रतिनिधित्व रू नेता अन्य समूहों के साथ अपने समूह का सम्बन्ध स्थापित करने के बारे में निर्णय लेता है य अपने समूह का प्रतिनिधित्व करता है । वह बाह्या सूचनाओं को समूह तक पहुंचाने के माध्यम का भी कार्य करता है ।

 

आन्तरिक सम्बन्धों का नियंत्रक रू नेता समूह के सदस्यों के आपसी सम्बन्धों को नियंत्रित करने का भी कार्य करता है ।

पुरस्कार तथा दण्ड की व्यवस्था रू नेता समूह के सदस्यों को उनके निष्पादन के आधार पर यथोचित पुरस्कार और दण्ड देता है । यह सदस्यों के पदों में भी परिवर्तन करता है ।

 

मध्यस्थता नेता अपने लक्ष्यों को ध्यान में रखकर समूह के सदस्यों के लिए निर्णायक का काम करता है । बीच बचाव भी करता है ।

 

द्वितीयक प्रकार्य

 

समूह के लिए उदाहरण रू अपने कार्यों और विचारों के माध्यम नेता समूह के सदस्यों के लिए आदर्श का वास्तविक उदाहरण प्रस्तुत करता है ।

समूह का प्रतीक रू नेता समूह के आपसी सम्बन्धों को दृढ़ बनाए रखने के लिए एक संज्ञानात्मक केन्द्र उपलब्ध कराता है य समूह को निरन्तरता प्रदान करता है ।

कार्यभार का वितरण रू नेता अपने सदस्यों को व्यक्तिगत दायित्व से मुक्त रहने का अवसर देता है । अच्छे बुरे हर कार्य के लिए समूह के सदस्य नहीं बल्कि नेता को उत्तरदायी माना जाता है ।

विचारधारा का निर्धारक रू नेता समूह के मूल्यों मानदण्डों ए तथा विश्वासों का एक ढाँचा निधारित करता है य और दृष्टिकोण को एक दिशा प्रदान करता है ।

अभिभावक का कार्य रू नेता एक ऐसा व्यक्ति होता है जो समूह के लिए भावानात्मक मथन प्रदान करता है । उसके साथ तादात्मीकरण के लिए व्यक्ति अपने को अच्छी मन स्थिति पाता है । नेता इस प्रकार के कार्य से समह का विश्वास अर्जित करता है और अधिक सामर्थ्यवान् बनता है ।

बलि का बकरा बनना रू जहाँ अच्छी स्थितियों में समूह के सदस्य नेता के साथ बामाकरण करते हैं वहीं असंतुष्ट और कण्ठित होने पर समूह के सभी सदस्यों की कुण्ठा ए

 

 

 

 

क्रोध का पात्र भी नेता को ही बनना पड़ता है । जो नेता समूह के दायित्व का जितना ही अधिक निर्वाह करता है ए असफलता मिलने पर उतना ही अधिक दोषी भी ठहराया जाता है । नेतत्व के जिन प्रकार्यों का ऊपर उल्लेख किया गया है ए वे विभिन्न मात्रा में नेताओं लिए महत्वपूर्ण होते हैं । इनमें से कौन कितना महत्वपूर्ण होगा घ् यह समूह के स्थायिक आकार ए लक्ष्य और संरचना पर निर्भर करता है ।

 

नेतृत्व व्यवहार का आयाम

कई अध्ययनों में यह जानने का प्रयास किया गया है कि नेतृत्व व्यवहार में जो भिन्नता पाई जाती है उसकी व्याख्या कैसे की जाये । इस सन्दर्भ में हाल्पिन तथा बिनर ; 1957 द्ध ने दो आयाम प्रस्तावित किए हैं . ; 1 द्ध ख्याल रखना ; ब्वदेपकमतंजपवद द्ध तथा ; 2 द्ध पहल तथा निर्देशन ; प्दपजपंजपअम ंदक कपतमबजपवद द्ध । इनमें से ख्याल रखने का सम्बन्ध ऐसे व्यवहारों से है जो समूह सदस्यों की अभिप्रेरणा ए आन्तरिक संतुलन तथा सदस्यों की संतुष्टि से सम्बन्धित है तथा पहल . निर्देशन का सम्बन्ध ऐसे माध्यमों की खोज से है जो समूह के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक हों तथा सदस्यों के क्रिया कलापों के समन्वय में योग देते हों । वेल्स ; 1953 द्ध ने कार्य . विशेषज्ञ ; ज्ंेश ेचमबपंसपेज द्ध तथा सामाजिक सांवेगिक विशेषज्ञ ; ैवबपंस . मउवजपवदंस मगचमतप द्ध दो प्रकार के नेतृत्व की चर्चा है । कार्य विशेषज्ञ का चुनाव इसलिए किया जाता है कि वह समूह को सही दिशा देता है । कार्य पर केन्द्रित होने के कारण वह आक्रामक भूमिका अपनाता है य और लोग उसे नापसन्द करने लगते हैं । तब एक दूसरा व्यक्ति नेता बनता है जो सामाजिक . सांवेगिक समस्याओं से जुड़ा रहता है ।

 

समूह संरचना तथा नेतृत्व

जब किसी लक्ष्य को लेकर कई व्यक्तियों के समूह आपस में अन्तःक्रिया करते हैं तो कौन व्यक्ति किस मात्रा मे नेतृत्व व्यवहार करेगा घ् यह पुरस्कार और लागत ; च्मूंतक ंदक बवेज द्ध के परिणाम पर निर्भर करता है । समूह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उपयुक्त व्यक्ति को नेता का पद देता है । इस प्रकार की सामूहिक अन्तःक्रिया प्रयोगशालाओं की स्थिति में पाए जाने वाले अल्पकालिक समूहों में दिखाई पड़ती है । अपेक्षाकृत स्थायी समूहों में नेतृत्व की दीर्घकालिक निरन्तरता पाई जाती है । एक दूसरे को पुरस्कृत करने की व्यवस्था के कारण संचारशक्ति और पदस्थिति में स्थिरता आती है तथा स्थापित हुए नेतृत्व संरूपों की पुष्टि होती है । संरचना का यह स्थायित्व कई प्रकार से स्थापित किया जाता है । जब किसी व्यक्ति का योगदान समूह के कार्य में अधिक होता है तो उसे ऊँचा पद मिलता है और यह बात दुहराई जाती है । बाद के नेता अपनी साख को अन्यय परिस्थितियों में कार्य सम्पादन के लिए उपयोग में लाता है । नेतृत्व का स्थायित्व समूह के मानकों की संरचना पर भी निर्भर करता है । धीरे . धीरे समूह के सदस्य ऐसा मानने लगते हैं कि नेता का काम समूह को आगे ले चलना है तथा अनुयायियों का काम अनुगमन करना है । वस्तुतः समूह द्वारा लादे गए प्रावधान नेता की प्रभुता ; ंनजीवतपजल द्ध का आधार बन जाते है ; ब्लाऊ ए 1964 द्ध । इस प्रसंग में एक कठिनाई उत्पन्न होती है । नेता बनने के लिए सामर्थ्य चाहिए और समूह द्वारा सामर्थ्य के उपभोग की स्वीकृति परन्तु सामर्थ्य प्राप्त करना और सामाजिक अनुमोदन प्राप्त करना दोनों एक दूसरे के साथ मेल नहीं खाते । शक्ति के आधार पर नेता अपने अनुयायियों से जो माँग करता है ए वह अनुयायियों की शक्ति को कम करता है । शक्ति पाने के लिए जरूरी है कि नेता दूसरों को संसाधन प्रदान करें जिससे उन्हें फायदा हो और वे निर्भर बने रहें । यह भी जरूरी है कि नेता अन्य व्यक्तियों द्वारा बदले में दिए जाने वाले संसाधनों से स्वतंत्र रहे । इस तरह नेता न तो समूह के अन्य सदस्या द्वारा दिए जाने वाले लाभों को स्वीकार कर सकता है और न अस्वीकार सकता है ए क्योंकि अस्वीकार करने पर नापसन्दगी मानी जाएगी । इस तरह नेता को अपने लिए अनुमादन प्राप्त करना बड़ा कठिन होता है । इस समस्या का समाधान समय के साथ ही होता है । आरम्भिक अवधि में नेता अपने सामर्थ्य को उसी ढंग से प्राप्त करता है जिससे नेतृत्व को स्थापित करने के लिए आवश्यक अनुमोदन प्राप्त हो सके । बाद में वह अपने सामर्थ्य का इस तरह से प्रयोग करने लगता है कि उसे अनुमोदन भी मिले और वैधता भी । इस तरह नेता आरम्भ में अपने समूह के सदस्यों के साथ शक्ति हेतु प्रतियोगिता कर सकता है परन्तु स्थापित हो जाने के बाद वह अपने स्रोतों का उपयोग समूह के सदस्यों को प्रसन्न रखने के लिए कर सकता है य और एक वैध नेता के रूप में उनका अनुमोदन तथा स्वीकृति प्राप्त कर सकता है । जब व्यक्ति को औपचारिक प्रभुता मिली रहती है ए जैसे . किसी संस्था का निर्देशक ए तो ऐसे नेता की आरम्भिक सामर्थ्य नौकरी की दशाओं के बारे में अनुबन्ध पर निर्भर करती है । धीरे . धीरे ण् अपने सामर्थ्य के उपयोग के साथ वह वैध प्रभुता भी प्राप्त कर लेता है । इस तरह नए स्तर पर नेता और समूह के बीच विनिमय आरम्भ होता है । कुछ परिस्थितियों में नेता की शक्ति अन्तक्रिया पर नहीं अपितु समाजीकरण की प्रक्रिया पर निर्भर करती है । इसे संस्थागत प्रभुत्व ; प्देजपजनजपवदंसप्रमक ंनजीवतपजल द्ध कहा गया है ।

 

 

 

कि विभिन्न विद्वानों ने नेतृत्व की अवधारणा को अनेक प्रकार से स्पष्ट किया है । शाब्दिक रूप से ; नेता द्ध का तात्पर्य किसी भी ऐसे व्यक्ति से समझा जाता है जो मार्गदर्शक ए मुखिया किसी विषय में कशल ए प्राज्ञा देने वाला अथवा व्यवहार कुशल हो । लोकतान्त्रिक दृष्टिकोण से नेतृत्व का अर्थ ऐसी स्थिति से समझा जाता है जिसमें कुछ व्यक्ति स्वेच्छा से किसी दूसरे व्यक्ति के आदेशों का पालन कर रहे हों । यदि किसी व्यक्ति में शक्ति के आधार पर अन्य व्यक्तियों से इच्छित व्यवहार करा लेने की । क्षमता है तो इसे भी नेतृत्व की अवधारणा के अन्तर्गत सम्मिलित कर लिया जाता है । वास्तव में यह सभी अर्थ अत्यधिक संकुचित हैं । व्यावहारिक रूप से नेतृत्व व्यवहार का वह ढंग है जिसमें एक व्यक्ति सरों के व्यवहार से प्रभावित होने की अपेक्षा अपने व्यवहार से दूसरे व्यक्तियों को अधिक प्रभावित द्य करता है । यह कार्य चाहे दवाव के द्वारा किया गया हो अथवा व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों को प्रशित करके ।

 

पिगर ; च्पहमत द्ध ने नेतृत्व को परिभाषित करते हुए कहा है कि ष् नेतृत्व व्यक्तित्व और पर्यावरण के सम्बन्धों को नष्ट करने वाली एक धारणा है । यह उस स्थिति की विवेचना करती है । जिसमें एक व्यक्ति ने एक विशेष पर्यावरण के अन्तर्गत इस प्रकार स्थान ग्रहण कर लिया हो कि उसकी इच्छा भावना और अन्तष्टि किसी सामान्य लक्ष्य को पाने के लिए दूसरे व्यक्तियों को अनुशासित करती है तथा उन पर नियन्त्रण रखती है । ष् इस परिभाषा के आधार पर समीकरण के रूप में कहा जा सकता है कि का विशिष्ट पर्यावरण ़ व्यक्ति की स्थिति ग निर्देश नेतृत्व । इसका तात्पर्य है कि व्यक्ति एक विशेष पर्यावरण में यह प्राथिक ए धार्मिक ए राजनीतिक ए शिक्षा सम्बन्धी अथवा मनोरंजन और कोई भी क्षेत्र हो सकता है ए जब एक विशेष स्थान प्राप्त कर लेता है तो वह अपने गुणों अथवा क्षमता के द्वारा दूसरे व्यक्तियों के व्यवहारों को प्रभावित करने लगता है । यही स्थिति नेतृत्व की स्थिति कहलाती है । लेपियर तथा फार्क्सवर्थ ; स्ंचपमत – थ्ंतदेूवतजी द्ध के अनुसार ष् नेतृत्व वह व्यवहार है जो दूसरे लोगों के व्यवहारों को उससे कहीं अधिक प्रभावित करता है जितना कि दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार नेता को प्रभावित करते हैं । ष् इस परिभाषा के द्वारा लेपियर ने नेतत्व को नेता और उसके अनुयायियों के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों के आधार पर स्पष्ट किया है । एक नेता केवल अनुयायियों के व्यवहारों को प्रभावित नहीं बल्कि उनके व्यवहारों से स्वयं भी प्रभावित होता है । लेकिन जब नेता का प्रभाव तुलनात्मक रूप से अधिक हो जाता है तभी उसके व्यवहार को नेतृत्व के रूप में स्वीकार किया जाता है । माम सीमेन तथा मॉरिस ; ैममउंद ंदक डवततपे द्ध के शब्दों में ष् नेतृत्व का तात्पर्य एक व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले उन कार्यों से है जो दूसरे व्यक्तियों को एक विशेष दिशा में प्रभावित करते हैं । ष् इससे स्पष्ट होता है कि दूसरे व्यक्तियों के व्यवहारों को प्रभावित कर लेना ही नेतृत्व नहीं है बल्कि नेतृत्व का तात्पर्य उनके व्यवहारों को एक निश्चित अथवा इच्छित दिशा की पोर मोड़ना है । लगभग इसी आधार पर टीड ने लिखा है ए ष् नेतृत्व एक ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लोगों को सहयोग देने के लिए प्रभावित किया जा सके । ष् उदाहरण के लिए ग्राम एक सामाजिक इकाई है जिसमें एक अथवा अनेक ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता होती है जो अन्य व्यक्तियों के सामने उनके लक्ष्यों का निर्धारण कर सकें तथा उनको प्राप्त करने के लिए सभी लोगों को मिलजुल कर कार्य करने की प्रेरणा दे सकें । टीड के अनुसार ए ष् प्रभाव के इसी प्रतिमान को हम नेतत्व कह सकते हैं । ष्

 

नेतृत्व की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए यह आवश्यक है कि नेतृत्व एवं प्रभूत्व के अन्तर को स्पष्ट कर लिया जाये । किम्बाल यंग के शब्दों में ए ष् प्रभुत्व को शक्ति के एक ऐसे साधन के रूप में देखा जा सकता है जिसका उपयोग एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति की मनोवत्तियों और क्रियाओं को नियन्त्रित करने तथा उन्हें परिवर्तित करने के लिए किया जाता है । ष् इस दृष्टिकोण से प्रभत्व में शक्ति अथवा सत्ता का तत्त्व आवश्यक रूप से जुड़ा हुअश रहता है । प्रभुत्व द्वारा व्यक्तियों के व्यवहारों में जो परिवर्तन लाए जाते हैं वह साधारणतया दबाव के द्वारा होते हैं । इसके विपरीत नेतत्व व्यक्तियों के व्यवहारों में जो परिवर्तन उत्पन्न करता है वह ऐच्छिक होता है । उदाहरण के लिए यदि एक अधिकारी अपने कार्यालय में दूसरे कर्मचारियों के व्यवहारों में इच्छित परिवर्तन करता है तो इसे प्रभुत्व कहा जाएगा ए नेतृत्व नहीं । इसके अतिरिक्त नेतृत्व की सफलता के लिए नेता और उसके अनुयायियों तथा पारस्परिक त्याग का होना आवश्यक है जबकि प्रभुत्व को बिना किसी घनिष्ठता और त्याग के भी बनाए रखा जा सकता है । एण्डरसन ; ।दकमतेवद द्ध का कथन है कि नेतृत्व से सम्बन्धित व्यवहार साधारणतया प्रगतिशील होते हैं जबकि प्रभुत्व में रूढ़िवादी तत्त्व अधिक होते हैं । इसके उपरान्त भी यह स्वीकार करना होगा कि नेतृत्व और प्रभुत्व को पूरी तरह एक दूसरे से पृथक् नहीं ण् किया जा सकता । इसका कारण यह है कि नेतृत्व में भी कुछ व्यक्ति नेता के अनुयायी होते हैं और प्रभुत्व में भी कुछ व्यक्तियों को किसी व्यक्ति के अधीन रहकर कार्य करना पड़ता है । इसी ग्राधार पर किम्बाल यंग ने लिखा है जिसे हम साधारणतया नेतृत्व कहते हैं ए उसकी विवेचना सही तौर पर प्रभुत्व के रूप में ही की जानी चाहिए ।

 

उपयूक्त परिभाषाओं से नेतृत्व की चार प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं । वे हैं . नेता ए अनुगामी ए परिस्थिति एवं कार्य ; स्मंकमत ए थ्वससवूमते ए ैपजनंजपवद ंदक ज्ंेश द्ध । नेता दृ प्रत्येक समूह का एक नेता होता है जो समूह के लोगों के साथ विभिन्न समयों में अन्तः क्रिया करता है और उनसे सम्बन्ध स्थापित करता है । वह समूह के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य करता है । इसका यह तात्पर्य नहीं है कि जिस प्रकार का कार्य नेता करता है ए समूह के दूसरे व्यक्ति नहीं कर सकते । नेतत्व का कार्य समूह के सदस्यों में विभाजित किया जा सकता है किन्तु विशिष्ट रूप से उन्हें पूरा करने का भार नेता पर ही होता है । किसी भी समूह के नेता की पहचान करने की अनेक विधियाँ हैं जिसमें से समाजमिति ; ैवबपवउमजतल द्ध भी एक है । नेता अधिक कुशल ए योग्य ए अनुभवी एवं बुद्धिमान होता है इसलिए वह समूह में अन्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक प्रभावी होता है । मागअनुगामी . समूह में नेता के अतिरिक्त वे व्यक्ति होते हैं जो नेता का अनुगमन करते हैं ए उन्हें हम अनुगामी कहते हैं । बिना अनुगामी के कोई नेता नहीं हो सकता ; ॅम बंददवज जीपदा व िस्मंकमत ूपजीवनज थ्वससवूमते द्ध । अतः जब तक ऐसे कुछ व्यक्ति नहीं होंगे जो एक व्यक्ति की प्राज्ञा माने या उसका अनुगमन करें तब तक नेतृत्व उत्पन्न नहीं होगा । सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि नेता एवं अनुगामियों में सक्रिय अन्त रू क्रिया हो । उद्देश्य की प्राप्ति एवं अशन्दोलन के लिए यह भी आवश्यक है कि अनुगामी नेता का नेतृत्व स्वीकार करें और नेता अनुगामियों की अपेक्षानों के अनुसार कार्य करें । अनुगामी अपने नेता के व्यवहार से अधिक प्रभावी होते हैं । इसका यह अर्थ नहीं कि अनुगामियों का नेता के व्यवहार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ए किन्तु प्रभाव सापेक्ष रूप में देखा जा सकता है । नेतृत्व उभयपक्षीय है । ; स्मंकमतेीपच पे ं जूव . ूंल ंििंपत द्ध ए किन्तु पारस्परिक प्रभाव की मात्रा में अन्तर होता है । किन परिस्थिति . नेता और अनुयायी किसी परिस्थिति में ही अन्तःक्रिया करते हैं । परिस्थिति में हम मूल्यों एवं अभिवृत्तियों को सम्मिलित करते हैं । नेता एवं उसके अनुगामियों को अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सामाजिक मूल्यों एवं अभिवृतियों को ध्यान में रखकर ही योजना बनानी होती है । हम परिस्थिति में कुछ पक्षों को गिन सकते हैं ए जैसे . ; 1 द्ध समुह के लोगों के पारस्परिक सम्बन्ध ए ; 2 द्ध समूह की एक इकाई होने के नाते विशेषताएँ ए ; 3 द्ध समूह के सदस्यों की संस्कृति की विशेषताएँ ए ; 4 द्ध भौतिक परिस्थितियां ए जिनमें समूह को क्रियाशील होना है ए ; 5 द्ध सदस्यों के मूल्य ए अभिवृत्तियों एवं विश्वास ग्रादि । परिस्थिति का समूह के नेतृत्व निर्धारण में महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है । कार्य . कार्य से तात्पर्य उन क्रियानों से है जो कि समूह द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सामूहिक रूप से दी जाती है । कार्य को पूरा करने के लिए नेता से विभिन्न प्रकार की क्षमताओं की अपेक्षा की जाती है । कार्य की प्रकृति नेता को कार्य करने के लिए प्रेरणा प्रदान करती है । इस प्रकार हम देखते हैं कि नेतृत्व में नेता ए अनुयायी ए परिस्थिति और कार्य चार महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं । नेतृत्व किसी एक अथवा कुछ का विशेषाधिकार नहीं कहा जा सकता । जैसा कि लूथर कहते हैं ए ष् कोई भी व्यक्ति जो साधारण लोगों की तुलना में दूसरों को सामाजिक . मनोवैज्ञानिक प्रेरणा प्रदान करने में दक्ष हो और सामूहिक प्रत्युत्तर को प्रभावी बना देता हो वह नेता कहा जा सकता है । ष् नेतृत्व को और अधिक स्पष्ट रूप से समझने के लिए हम उसके कुछ महत्त्वपूर्ण पक्षों पर विचार करेंगे

 

 

नेता का समूह में केन्द्रीय स्थान होता है । कई बार नेता बिना अपने अनुयायियों के सुझाव के ही समूह के लिए कई क्रिया . कलाप प्रारम्भ करता है । ।

 

नेतृत्व का प्रभाव यह होता है कि सारे समूह द्वारा सामूहिक रूप से क्रिया की जाती है ।

 

नेतृत्व संचयी प्रकृति का है । एक व्यक्ति जब किसी परिस्थिति में अपनी भूमिका निभाता है तो उस पर अनेक प्रकार से दबाव पाते हैं ।

 

नेतृत्व प्रौपचारिक अथवा अनौपचारिक हो सकता है । समाज की शक्ति संरचना में औपचारिक नेतृत्व का प्रभाव अनौपचारिक की तुलना में कम होता है ।

 

नेतृत्व का क्षेत्र विस्तृत होता है । एक छोटे समूह की क्रियानों को निर्देशन देने से लेकर सम्पूर्ण राष्ट्र की गतिविधियों तक नेतत्व का क्षेत्र व्याप्त है ।

औपचारिक एवं अनौपचारिक प्रभावों की दृष्टि से नेतत्व में भेद पाया जाता है ण् किन्त नेतत्व की परिस्थिति में दोनों ही पक्ष सम्मिलित होते हैं । एक औपचारिक परिस्थिति में जो व्यक्ति नेता होता है वह अनौपचारिक में भी हो सकता है और इसके विपरीत स्थिति भी हो सकती है जब एक औपचारिक नेता अनौपचारिक व प्रभावी नेता की उपस्थिति में प्रभावहीन हो ।

 

 

नेतृत्व का निर्धारण मात्रा के सन्दर्भ में ही मापना सम्भव है । एक व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न समय में और विभिन्न परिस्थितियों में नेतृत्व की अलग . अलग मात्रा को प्रकट कर सकता है । नेतृत्व समूह अथवा समाज के लोगों में विभिन्न मात्रा में विभाजित और वितरित हो सकता है । एक ही व्यक्ति सभी स्थितियों एवं समय में नेतत्व करे यह आवश्यक नहीं । अलग . अलग समय एवं परिस्थितियों में नेता बदल सकते हैं ।

 

जो व्यक्ति नेतृत्व करते हैं उनमें कार्य को पूरा करने की प्रभावी योग्यता एवं क्षमता होती है । विभिन्न कार्यों को पूरा करने तथा विभिन्न समय एवं परिस्थिति के अनुसार अलग . अलग गुणों वाले नेतानों की आवश्यकता होती है । इसलिए ही एक व्यक्ति सभी परिस्थितियों में सफल नेतृत्व नहीं कर सकता ।

नेतृत्व की विशेषताएं व्यक्तिगत होती हैं । वे जिस परिस्थिति में कार्य किया जा रहा है उससे सम्बन्धित होती हैं । यही कारण है कि एक व्यक्ति किसी एक परिस्थिति में नेता होता है वही दूसरी में नहीं ।

 

नेतृत्व केवल प्रतिष्ठा पद और क्षमता से ही सम्बन्धित नहीं वरन् इसका सम्बन्ध प्रभावपूर्ण ढंग से कार्य को पूरा करने से भी है । अगर नेता की कोई भी गतिविधि दिखाई नहीं देती है तो हम कहेंगे की नेतृत्व बड़ा कमजोर है ।

 

नेतृत्व में सामाजिक अन्तःक्रिया सम्मिलित है जो समूह के सदस्यों में परस्पर तथा नेता और अनुयायियों के बीच और व्यक्ति तथा समूहों के बीच होती है । पिगर का मत है कि नेतृत्व पारस्परिक उत्तेजना की प्रक्रिया है ।

 

 

एक नेता के गुण ;

एक व्यक्ति के सफल नेता बनने के लिए उसमें अनेक शारीरिक एवं मानसिक विशेषताएं होनी चाहिए । ये विशेषताएँ क्या हों घ् इस वात पर मनोवैज्ञानिकों में मतभेद हैं । टीड ने 10 सामान्य गुणों को एक नेता के लिए प्रावश्यक माना है । श्रीबनार्ड 31 गुणों को वांछनीय मानते हैं । वाइण्ड ने 20 मनोवैज्ञानिकों द्वारा बताए गए नेता के 79 गुणों का उल्लेख किया है ।

 

श्री एम ण् एन ण् बसु ने एक नेता में निम्नांकित 10 गुणों को आवश्यक माना है

; 1  नेता का व्यक्तित्व सुदृढ़ हो ।

; 2  नेता दूसरों के प्रति सहानुभूति रखने वाला हो ।

; 3  नेता एक अच्छा वक्ता होना चाहिए क्योंकि वह अपने भाषण से भीड को अपने ंस प्रभाव में लाता है ।

; 4  नेता की अभिव्यक्ति स्पष्ट होनी चाहिए । उसकी मौखिक अभिव्यक्ति से लोग सरलता से आकषित हो जाते हैं

; 5 नेता को समूह मनोविज्ञान का अच्छा ज्ञान होना चाहिए ।

; 6 नेता ईमानदार होना चाहिए । ;

7  नेता में नैतिकता एवं दयालुता होनी चाहिए ।

; 8 नेता में अपने आपको परिस्थितियों के अनुकूल ढालने की क्षमता होनी चाहिए ।

; 9  नेता को सभी प्रकार की सूचनाओं से अवगत होना चाहिए ।

; 10  नेता अनेक हितों को लेकर चलने वाला होना चाहिए ।

 

उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त भी नेता में कुछ और गुणों की अपेक्षा की जाती है जो इस प्रकार से हैं

 

शारीरिक गुण . नेता शारीरिक दृष्टि से हृष्ट . पुष्ट होना चाहिए । स्टागडिल तथा गोविन की मान्यता है कि लम्बाईनेतत्व का विशेष गुण है । बेलिग्रेथ ए गोविन तथा पेट्रीज प्रादि ने अपने अध्ययन में पाया कि नेता भारी भरकम शरीर वाले थे । शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ ए सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्व वाला व्यक्ति नेता के रूप में अधिक पसन्द किया जाता है ।

 

बुद्धिमान . एक नेता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सामान्य लोगों की तुलना में अधिक बुद्धिमान हो ए क्योंकि कई बार विकट परिस्थितियों में उसे निर्णय लेना होता है ए वह लोगों का मार्गदर्शन और नियन्त्रण करता है ।

 

प्रात्म . विश्वास दृ नेता में दृढ़ प्रात्म . विश्वास होना चाहिए । कई बार वह संघर्षमय परिस्थितियों से जूझता है । अपने साहस एवं आत्म . विश्वास के आधार पर ही वह लोगों को अपने भाषण से आकर्षित करता है । कॉक्स ए ड्रेक तथा गिब आदि विद्वानों ने अपने अध्ययनों में पाया कि नेता अपूर्व प्रात्म . विश्वास से भरपूर थे ।

 

सामाजिकता . नेता व्यवहार कुशल एवं सभी के साथ सम्बन्ध बनाए रखने वाला होना चाहिए । गुडएनफ ए कंटेल तथा स्टाइस ए मूर तथा न्यू कॉम्ब प्रादि सभी विद्वान् सफल नेतृत्व के लिए व्यक्ति में सामाजिकता को आवश्यक मानते हैं ।

 

संकल्प शक्ति . नेता में दृढ़ संकल्प शक्ति होनी चाहिए । अनेक विद्वानों ने अपने अध्ययनों में यह पाया कि नेता की संकल्प शक्ति सामान्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक थी । संकल्प शक्ति के आधार पर ही व्यक्ति निर्णय लेने ए उत्तरदायित्व निभाने और प्रात्म . संयम बनाए रखने के योग्य होता है ।

 

परिश्रमी . नेता बनने के लिए आवश्यक है कि वह परिश्रमी हो । कठोर परिश्रम एवं लगन के कारण ही वे समूह के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल होते हैं । नेता को परिश्रम करते देख अन्य लोग भी उसका अनुसरण करते हैं । गांव में ऐसे व्यक्ति की प्रतिष्ठा अधिक होती है जो कठोर परिश्रम करता है ।

 

 कल्पना शक्ति . नेता में कल्पना शक्ति होना आवश्यक है । उसी आधार पर वह योजना बनाता है ए उन्हें क्रियान्वित करता है और भविष्य में आने वाली कठिनाइयों का अन्दाज लगाकर उनका समाधान ढूंढता है ।

 

अन्तर्दष्टि . एक नेता में अन्तर्दृष्टि का होना आवश्यक है । इस गुण के आधार पर वह अपने अनुयायियों की मानसिक स्थिति का पता लगा लेता है और उसके अनुरूप अपने आचरण को बदलता है । भविष्य की परिस्थितियों का वह पहले से ही मूल्यांकन कर उनके अनुसार कदम उठाता है ।

 

लचीलापन . अच्छा नेता वहीं माना जाता है जो समय एवं परिस्थितियों के अनुरूप अपने को ढाल ले । नवीन परिस्थितियों के अनुसार प्राचरण में परिवर्तन लाना सफल नेतृत्व के लिए पावश्यक है अन्यथा वह रूढ़िवादी और परिवर्तन विरोधी माना जाता है ।

 

उद्दीपकता . एक नेता को कुशल ए प्रफुल्ल ए कार्य के लिए तत्पर ए स्पष्टवादी ए मौलिक ए प्रसन्नचित्त ए उत्साही एवं स्फूर्ति वाला होना चाहिए ।

 

उपर्युक्त सभी सामान्य गुणों की उपस्थिति एक सफल नेता के लिए आवश्यक है । इसका यह तात्पर्य नहीं कि नेता में इनके अतिरिक्त और कोई गुण नहीं होने चाहिए अथवा जिनमें ये सभी गुण होंगे वह अशवश्यक रूप से नेता बनेगा ही । यदि समय एवं परिस्थितियों से उपयुक्त विशेषताएं रखने वाले व्यक्ति का मेल हो जाता है तो उसके नेता बनने की पूरी . पूरी सम्भावना रहती है ।

 

 

 

नेतृत्व के प्रकार  

 

 

नेतृत्व की उत्पत्ति ए नेता के व्यवहार ए नेता एवं अनुयायियों के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों के आधार पर नेताओं के अनेक प्रकार देखने को मिले हैं । हमन्यहाँ कुछ प्रकार के नेताओं का उल्लेख करेंगे रू

 

 बार्टलेट का वर्गीकरण बार्टलेट ने नेतानों के तीन प्रकार बताए है ।

; 1  संस्थात्मक नेता . यह किसी संस्था का प्रशासक अथवा मैनेजर होता है । ऐसे नेता की सत्ता परम्परा ए प्रथाओं ए मन्दिर ए चर्च ए मस्जिद ए स्कूल अथवा आर्थिक व्यवस्था पर आधारित होती है ।

; 2  प्रभुत्वशील नेता . ऐसा नेता आक्रामक दबाव रखने वाला और कठोर कार्यवाही करने वाला होता है ।

; 3 हृदयग्राही नेता . ऐसा नेता शब्दों एवं संकेतों के द्वारा अपना नियन्त्रण कायम रखता है ए वह चापलूसी ए सुझाव एवं मौखिक सलाह का प्रयोग भी करता है ।

 

ण्किम्बाल यंग द्वारा नेता का वर्गीकरण ।  यंग ने सात प्रकार के नेताओं का उल्लेख किया है

 

; 1राजनीतिक नेता . ऐसा नेता अशधुनिक प्रजातन्त्र की देन है । उसका कार्य क्षेत्र साधारणत रू शहर अथवा राज्य स्तर पर होता है । वह किसी राजनीतिक दल से सम्बन्धित होता है । वह संघर्ष की देन होता है और सत्ता हथियाने के लिए संघर्ष का वातावरण बनाता है । अतः वह एक अच्छा संघर्षका होना चाहिए तथा उसमें संगठन बनाने की योग्यता होनी चाहिए जिससे कि चुनाव में सफलता प्राप्त कर सके ।

 

; 2  प्रजातन्त्रात्मक नेता . . ऐसे नेता भी प्रजातन्त्र की देन हैं किन्तु ये राजनीतिक दल के बाहर भी क्रियाशील होते हैं । ऐसे नेता सहिष्णु ए अनुकूलन करने वाले और समझौता कराने वाले होते हैं । वे कानून और व्यवस्था में दृढ़ विश्वास रखते हैं ।

 

; 3  नौकरशाही नेता . ऐसे नेता सरकारी तन्त्र की देन हैं । ये नेता व्यावहारिक ए संद्धान्तिक बुद्धिमान और अपने कर्तव्य एवं कार्य के प्रति अनुशासित होते हैं । वे कानून के आधार पर ही कोई निर्णय लेते हैं । वे एक निश्चित कार्य प्रणाली को ही बनाए रखने का प्राग्रह करते हैं ।

 

; 4  कटनीतिज्ञ . . ऐसे नेता सरकार द्वारा निश्चित किए गए नियमों के अनुसार ही कार्य करते हैं । ये किसी सरकार अथवा संस्था के प्रतिनिधि होते हैं । अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ये दोहरी नीति का प्रयोग करते हैं । वे अपने शब्दों का प्रयोग बड़े नाप . तौल के करते हैं । कहा जाता है कि जब एक कटनीतिज्ञ श् हाँ श् कहता है तो उसका अर्थ होता है श् शायद श् जब वह श् शायद श् कहता है तो उसका प्रर्थ है श् नहीं श् और जब वह नहीं कहता है तो इसका अर्थ है कि वह कूटनीतिज्ञ नहीं है ।

 

; 5  सुधारक . प्रजातन्त्रात्मक समाज में ऐसे नेता सामान्यतः कई मिल जाते हैं जो प्रचलित सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था में पाए जाने वाले अनेक दोषों को दूर करने और नई व्यवस्था लाने का प्रयास करते हैं । वे उग्र क्रान्तिकारी तो नहीं होते किन्तु परिवर्तन एवं सुधार के प्रति भावूक अवश्य होते हैं । वे अपने सिद्धान्तों के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहते ।

 

; 6  प्रान्दोलक . प्रान्दोलक कट्टर सुधारवादी विचारों का होता है । वह मूल सिद्धान्तों ण् का प्रसार चाहता है और उनका विरोध करने पर शीघ्र उत्तेजित हो जाता है । उसमें समझौते का अभाव होता है ए वह स्वभाव से उग्र और असहिष्णु होता है । वह हिंसा के द्वारा अपने लक्ष्य की प्राप्ति चाहता है ।

 

; 7  सिद्धान्तवादी . ऐसा नेता अव्यावहारिक होता है । वह आन्दोलन में विश्वास नहीं करता है । वह ताकिक अधिक होता है । इस बात की उसे परवाह नहीं होती कि उसके सिद्धान्त व्यवहार में लाए जा सकते हैं अथवा नहीं । वह अपने सिद्धान्तों को संगठित व योजनाबद्ध रूप में प्रस्तुत करता है ।

 

ग्रामीण नेता के कार्य 

पंच एवं मध्यस्थ के रूप में कार्य करना . समूह के सदस्यों में संघर्ष पैदा होने के समय नेता पंच एवं मध्यस्थ का कार्य भी करता है और दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अपना निर्णय भी देता है । वह समूह में गुटबन्दी की प्रक्रिया को रोककर समूह के संगठन को बनाए रखता है ।

 

प्रादर्श बनना . ग्रामीण नेता ग्रामवासियों के लिए एक आदर्श व्यक्ति होला है । गाँव का प्रत्येक व्यक्ति उसे अपने से श्रेष्ठ मानता है और उसके आचरण का अनुकरण करने का प्रयास करता है । वह गाँव वालों के लिए प्रेरणा स्रोत होता है ।

 

समूह का प्रतीक बनना . नेता अपने समूह का प्रतीक माना जाता है । नेता के प्राचरण और व्यवहार को देखकर उसके समूह के प्राचरण और व्यवहार का पता लगाया जा सकता है । अन्य व्यक्ति नेता को देखकर ही उसके अनुयायियों व समूह के बारे में अनुमान लगा लेते हैं ।

 

समूह के पथ . प्रदर्शक के रूप में कार्य करना . ग्रामीण नेता ग्रामवासियों का मार्गदर्शक होता है । संकटकाल में वह उनके साथ होता है और रचनात्मक कार्यों में उनके एक शिक्षक और सहयोगी के रूप में कार्य करता है । जब लोग यह निर्णय नहीं कर पाते कि उन्हें अमुक परिस्थिति से निपटने के लिए क्या करना चाहिए तो वह नेता की शरण में जाते हैं और उसे राह का दीपक समझकर उसकी सलाह के अनुसार कार्य करते हैं और उसकी दिशा को स्वीकार करते हैं ।

 

संरक्षक के रूप में कार्य करना . ग्रामीण नेता सारे समुदाय का संरक्षक माना जाता है । जब गांव में बाहर का अधिकारी अथवा पुलिस पाती है तो वह गांव वालों का पक्ष लेता है । वह उन्हें संरक्षण प्रदान करता है । हिचकॉक ने अपने खालापुर गांव के अध्ययन में नेता की इस भूमिका का उल्लेख किया है ए जब एक बार पास के रेल्वे स्टेशन पर डकैती हो गई और पुलिस खालापुर के उन लोगों को जिन पर डकैती करने का शक था ए पकड़ने पहुंची तो राजपूत नेता ने स्पष्ट इन्कार कर दिया कि गाँव का कोई भी व्यक्ति डकैती में सम्मिलित नहीं था । गांव के लोग भी इस नेता को दयालु और पिता तुल्य मानते थे । जनहित के लिए इस नेता ने अपने कई व्यक्तिगत हितों का बलिदान किया । या

 

एक सुधारक के रूप में कार्य करना . गाँव का नेता अपने गांव में अधिकाधिक विकास और सुधार के कार्यक्रम प्रारम्भ करता है । हिचकॉक ने अपने खालापुर गांव के अध्ययन में यह पाया कि राजपूत नेता वहाँ के लोगों की शराब पीने एवं अफीम खाने की प्रादत और चोरी करने की प्रवृत्ति छडाने का प्रयास कर रहा था । उसने आर्य समाज द्वारा संचालित समाज सुधार के कार्यक्रमों को लाग किया और कांग्रेस के प्रान्दोलन से लोगों को परिचित कराया । ष् दृ

 

 

प्रबन्धकारी कार्य . ग्रामीण नेता मांव में एक प्रबन्धक के रूप में कार्य करता है । वह लोगों में कार्य का विभाजन करता है । वह अकाल ए प्राकृतिक प्रकोप आदि के समय गांव वालों की आवश्यकतानों को जुटाने के लिए सरकार से सहायता के लिए प्रबन्ध करने को कहता है और गांव की मांग सरकार के सम्मुख रखता है ।

 

योजना बनाना . ग्रामीण नेता ग्राम विकास एवं जनहित के लिए योजनाएं बनाता है । यदि वह ग्राम पंचायत ए सहकारी समिति और अन्य संस्थानों में पदाधिकारी होता है तो गांव के हित के लिए अनेक योजनाएं बनाता है और उनके क्रियान्वयन के लिए सरकार से सहायता प्राप्त करता है । वह अपनी योजना को पूरी करने के विभिन्न तरीके भी सुझाता है । वह यह भी देखता है कि योजना ए उसके लक्ष्य और साधन व्यावहारिक हैं अथवा नहीं । योजनाएँ दो प्रकार की बनाई जाती हैं तात्कालिक व दीर्घकालिक । ग्राम विकास एवं कल्याण की योजनाएँ दीर्घकालिक होती हैं जबकि छोटे . मोटे कार्य जिन्हें थोड़े ही समय में पूरा करना जरूरी होता है ए उनके लिए तात्कालिक व अल्पकालीन योजनाएँ बनाई जाती हैं ।

 

नीति का निर्धारण . ग्रामीण नेता समूह के आदर्श ए उद्देश्य और नीति को तय करता है । नीति . निर्धारण में वह अपनी सझ . बूझ का प्रयोग कर सकता है अथवा अपने से उच्च नेता का मार्ग . दर्शन प्राप्त कर सकता है । वह नीति के प्रति अपने अनुयायियों की प्रतिक्रिया का भी ध्यान रखता है और अनुयायियों के द्वारा अस्वीकार किए जाने पर नीति में संशोधन भी करता है ।

 

विशेषज्ञ के रूप में कार्य करना . ग्रामीण लोगों के लिए उनका नेता एक विशेषज्ञ की भूमिका निभाता है । वह योजना बनाने और उन्हें लागू करने में आने वाली कठिनाइयों को विशेषज्ञ होने के नाते दूर करता है । नेता ग्रामवासियों के लिए तैयार सूचना और तैयार हल श् का कार्य करता है । सरकारी काम . काज कराने और न्यायिक मामलों में गांव वालों के लिए वह एक विशेषज्ञ के रूप में होता है ।

 

समूह का प्रतिनिधित्व . नेता अपने समूह के प्रतिनिधित्व का कार्य भी करता है । जैसे गाँव का सरपंच पंचायत समिति में ए जिला स्तर के अधिकारियों एवं अन्य लोगों के सम्मुख सम्पूर्ण गांव के प्रतिनिधित्व के रूप में बोलता है और उन्हें गांव की सही स्थिति से परिचित कराता है । दो गाँवों के आपसी विवादों के समय अथवा गाँव में ही विधिज्ञ जातियों एवं गटों के बीच विवाद होने पर गाँव ए जाति एवं गुटों के नेता अपने अपने समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं और अपनी मांगों एवं पक्ष की दूसरे नेता एवं अधिकारियों के सम्मुख रखते हैं । नेता समूह के लिए द्वार . रक्षक का कार्य करता है । इस रूप में वह समूह की प्रान्तरिक सूचना को बाहर एवं बाहर की सूचना को समह के अन्दर पहुंचाता है ।

 

प्रान्तरिक सम्बन्धों का नियन्त्रण करना . गाँव के नेता अपने . अपने समुदाय ए दल ए गुट एवं जाति के प्रान्तरिक मामलों की देखरेख करते हैं । सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों को नियन्त्रित करते हैं और उनमें तनाव पैदा होने पर पारस्परिक तालमेल बैठाते हैं । सन हों के उद्देश्यों की पूति के लिए वे सभी सदस्यों का सहयोग प्राप्त करते हैं ।

 

पुरस्कार व दण्ड की व्यवस्था दृ नेता अपने उन सदस्यों के लिए पुरस्कार की व्यवस्था करता है जो समूह हित के लिए कार्य करते हैं । वह उनकी प्रशंसा करता है और उन्हें आर्थिक लाभ पहुँचाने का प्रयास करता है । जो सदस्य सामूहिक हितों के विपरीत कार्य करते हैं ए उनकी बालोचना करता है और उन्हें समूह से बहिष्कृत करता है । जाति का मुखिया जाति के नियमों का उल्लंघम करने वाले सदस्यों को जाति से बहिष्कृत कर सकता है ए उन्हें जाति भोज देने के लिए कह सकता है अथवा उन पर जुर्माना कर सकता है ।

 

उपयुक्त कार्यों के अतिरिक्त ग्रामीण नेता को कई नए प्रकार के कार्य भी करने पड़ते हैं जो सामदायिक विकास योजना और पंचायतीराज की देन हैं तथा जो गांवों में सुधार एवं विकास से सम्बन्धित हैं । उदाहरणार्थ ए एक ग्रामीण नेता को गांव में सड़क ए कुनों ए तालाबों एवं नहरों के निर्माण कार्यों में निर्णायक भूमिका निभानी होती है । गाँव वालों को वह नवीन खाद ए बीज ए कृषि यन्त्रों एवं कृषि की विधियों से परिचित कराता है और इन कार्यों के लिए वह ग्राम सेवक तथा विकास अधिकारियों की सहायता करता है । सामुदायिक कार्यो के लिए चन्दा एकत्रित करता है और श्रमदान की व्यवस्था व सासदायिक विकास की नई योजनाओं को स्वीकार करता है तथा उनकी जानकारी ग्रामवासियों को प्रदान करता है । इन योजनानों को अपनाने के लिए वह ग्रामवासियों को प्रोत्साहित करता है । ग्रामीरा नेता लोगों को सरकारी ऋण एवं प्रशदान दिलाने का कार्य भी करता है । वह विकास अधिकारियों एवं गांव वालों के बीच एक कड़ी का कार्य करता है और दोनों को एक . दूसरे की इच्छा से अवगत कराता है । वही सरकार में गाँव का प्रतिनिधित्व करता है और सरकारी सूचनाओं से गाँव वालों को परिचित कराता है । वही गाँव के लिए पंचायत समिति ए जिला परिषद् एवं राज्य सरकार से प्राप्त होने वाली सहायता प्राप्त करता है । साथ ही ऐसी योजनाओं और कार्यों का विरोध करता है जो ग्राम के हित में न हो ।

 

ग्रामीण नेतृत्व के परम्परागत प्राधार ;

 

बहुत प्रारम्भिक काल से ही आयु ग्रामीण नेतृत्व का एक प्रमुख प्राधार रही है । अनेक अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि परम्परागत ग्रामीण नेतृत्व ऊंची प्रायु समूहों के हाथ में ही था । गाँव में अधिक आयु के व्यक्ति को न केवल अनुभवी एवं सम्मानित समझा जाता है ए बल्कि किसी भी निर्णय में उसके विचारों को जानना भी आवश्यक समझा जाता है । जन सामान्य की धारणा है कि वयोवृद्ध व्यक्ति परम्पराओं के रक्षक होते हैं ए इसलिए उनके द्वारा दिया गया नेतृत्व अधिक उपयोगी एवं सार्थक होता है ।

 

आर्थिक प्रस्थिति ;  ग्रामीण नेतृत्व के निर्धारण में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति का भी विशेष महत्त्व रहा है । ग्रामीण जीवन एक प्रभाव . ग्रस्त जीवन है । यहाँ जो व्यक्ति भी जन . सामान्य की आथिक अशवश्यकतानों को पूरा करने अथवा समय . समय पर उन्हें पाथिक महायता देने में सहायक होता है ए उसका जल्दी ही सामान्य ग्रामीणों पर प्राधिपत्य स्थापित हो जाता है । सम्भवतः यही कारण है कि परम्परागत ग्रामीण नेतृत्व साधारणतया बड़े भ . स्वामियों तथा । साहकारों तक ही सीमित रहा । यदि कोई व्यक्ति प्रार्थिक रूप से सम्पन्न व्यक्तियों के नेतत्व को चुनौती देता है तो उसे बहुत कठिन प्राथिक समस्यानों का सामना करना पड़ता है ।

 

परम्परागों का ज्ञान  गाँव में प्रशिक्षित व्यक्तियों की संख्या अधिक होने के कारण उन व्यक्तियों को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है जो ग्रामीण उसका जल्दी ही म । सम्भवतः यही का परम्परामों से परिचित होते हैं तथा उनकी कुशलतापूर्वक व्याख्या करने में प्रवीण होते हैं । वर्तमान युग में भी आधुनिकता तथा प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति को ग्रामीण जीवन के लिए उतना महत्त्वपूर्ण नहीं समझा जाता जितना कि परम्परागत ढंग से व्यवहार करने वाले व्यक्ति को । यही कारण है कि गांव में नवीन शिक्षा ग्रहण करके रहने वाले व्यक्ति भी तब तक ग्रामीण नेतृत्व ग्रहण नहीं कर पाते जब तक कि वे अपने जीवन प्रतिमानों को परम्पराओं के अनुसार न ढाल लें ।

 

बाह्य दुनिया से सम्पर्क ; अधिकांश ग्रामीणों का जीवन आज भी सरल ए प्रशिक्षित तथा बाह्य दुनिया के सम्पर्क से पृथक् है । ऐसी स्थिति में सामान्य ग्रामीण अपनी सामाजिक ए आर्थिक तथा शैक्षणिक आवश्यकतानों की पूर्ति के लिए उन व्यक्तियों पर निर्भर होता है जो अपने बाह्य सम्पर्क की सहायता से ग्रामीणों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होते हैं । साधारणतया यदि किसी व्यक्ति का गांव के पटवारी ए पुलिस अधिकारी अथवा नगर के अन्य अधिकारियों से कोई सम्बन्ध होता है तो वह समय . समय पर ग्रामीणों की सहायता करके तथा उन्हें नवीन जानकारी देकर उनका नेतृत्व ग्रहण कर लेता है । ग्रामों में भूमि ए सम्पत्ति तथा अन्य प्राधारों को लेकर अक्सर झगड़े और विवाद चलते रहते हैं । ग्रामीणों को न्यायिक प्रक्रिया का समुचित ज्ञान न होने के कारण जो व्यक्ति उन्हें न्यायिक प्रक्रिया में सहायता देते हैं ए उन्हें भी सरलता से ग्रामीण नेतृत्व प्राप्त हो जाता है ।

 

; बहुमखी व्यक्तित्व ;  ग्रामीण नेतृत्व के निर्धारण में किसी व्यक्ति की वैयक्तिक विशेषताओं का भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता है । एक ऐसा व्यक्ति जो गांव के सार्वजनिक जीवन में भाग लेता रहता हो तथा जिसमें किसी विवाद के समय मध्यस्थता करने की अधिक क्षमता होती है ए उसे नेता बनने के अधिक अवसर प्राप्त हो जाते हैं । इसी प्रकार किसी विपत्ति के समय ग्रामीणों की सहायता करना ए गाँव में कुएं अथवा तालाबों की व्यवस्था कराना ए ग्रामीणों के साथ नम्रतापूर्वक तथा मृदु व्यवहार करना एवं गाँव के बड़े . बूहों का आदर करना आदि ऐसे गुण हैं जिन्हें परम्परागत ग्रामीण नेतृत्व के लिए आवश्यक समझा जाता रहा है ।

 

परम्परागत ग्रामीण नेतृत्व की विशेषताएं ;

अत्यधिक प्रारम्भिक काल से ही ग्रामीण नेतृत्व में अनेक ऐसी विशेषताओं का समावेश रहा है जो वृहत् समूहों में देखने को नहीं मिलती । यह सच है कि वर्तमान युग में ग्रामीण नेतृत्व की विशेषताओं में अत्यधिक परिवर्तन हो चुके हैं लेकिन तो भी ग्रामीण नेतृत्व का परिवर्तित स्वरूप अपने परम्परागत स्वरूप से अधिक दूर नहीं हट सका है । इस स्थिति में यह आवश्यक है कि हम सर्वप्रथम परम्परागत ग्रामीण नेतृत्व की विशेषताओं की विवेचना करें जिससे उन्हीं के सन्दर्भ में हम परिवर्तन की वर्तमान प्रक्रियाओं को समझ सकें ।

 

जातीय प्रस्थिति ; भारत की ग्रामीण संरचना में जातिगत स्तरीकरण का प्रभाव सबसे अधिक स्पष्ट रहा है । परम्परागत रूप से गाँव में केवल उच्च जातियों के प्रभावशाली व्यक्तियों को ही नेतृत्व करने का अधिकार प्राप्त होता था । एक निम्न जाति में कोई व्यक्ति चाहे कितना ही शक्तिशाली ए साधन . सम्पन्न अथवा प्रतिभाशाली क्यों न हो ए उसे गाँव में नेता अथवा मुखिया मान सकना अत्यधिक कठिन था ।

 

परिवार का प्राकार तथा प्रतिष्ठा ;परिवार का आकार तथा परिवार की प्रतिष्ठा ग्रामीण संरचना में वह महत्त्वपूर्ण प्राधार रहा है जिसके अनुसार ग्रामीण नेतृत्व में व्यक्ति को एक विशेष प्रस्थिति प्राप्त होती रही है । परिवार का प्राकार बड़ा होने से उसके सदस्यों को न केवल नेतृत्व के लिए अतिरिक्त समय प्राप्त हो जाता है बल्कि प्रत्येक स्थिति में अधिक व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त करने के अवसर भी बढ़ जाते हैं । दूसरी ओर व्यक्ति यदि एक प्रतिष्ठित परिवार का सदस्य होता है तो गांव के अन्य व्यक्ति सामान्य रूप से उसकी प्रभुता को स्वीकार कर लेते हैं । गांव में यह विश्वास किया जाता है कि प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य अधिक प्रतिभावान ए सदाचारी तथा व्यवहार . कुशल होते हैं और वे उनकी समस्याओं का सरलता से समाधान कर सकते हैं ।

 

 

ग्रामीण नेतृत्व में रक्त . सम्बन्धों की प्रधानता . परम्परागत रूप से ग्रामीण नेतृत्व के अन्तर्गत रक्त . समूहों की स्थिरता तथा उनकी प्रधानता स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है । यह सच है कि प्रत्येक गाँव का एक मुखिया अथवा पंच अवश्य होता है लेकिन व्यक्तियों के व्यवहार उस नेता से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं जो उन्हीं के वंश अथवा स्वजन . समूह का प्रतिनिधित्व करता हो । व्यावहारिक रूप से प्रत्येक ग्रामीण तथा जन . जातीय क्षेत्र में सभी रक्त समूहों का अपना . अपना पृथक मूखिया होता है तथा उसका कार्य अपने समूह के सभी सदस्यों के विवादों का निपटारा करना और उनका मार्ग निर्देशन करना होता है । इसके फलस्वरूप नेतृत्व के प्राधार पर ग्रामीण जीवन अनेक गूटों में अवश्य विभाजित हो जाता है लेकिन समूह के सदस्यों पर नियन्त्रण रखने के लिए यह विभाजित नेतृत्व अधिक सफल भी प्रमाणित हुआ है ।

 

आनुवंशिकता का प्रभाव . ग्रामीण नेतृत्व सदैव ही अपनी प्रकृति से आनुवंशिक रहा है । इसका तात्पर्य है कि किसी समूह अथवा सम्पूर्ण गांव में जिस व्यक्ति को एक बार नेता अथवा मुखिया का पद प्राप्त हो जाता है वह साधारणतया उसी की आगामी पीढ़ियों को हस्तान्तरित होता रहता है । नेतृत्व में परिवर्तन केवल तभी होता है जब कोई नेता या तो ग्रामीणों की आकांक्षाओं को पूर्ण न कर सके अथवा उसमें ऐसे चरित्रगत दोष उत्पन्न हो जाएँ कि उसे नेता के रूप में मान्यता देना हानिकारक समझा जाने लगे ।

 

नेतृत्व जातियों में विभक . परम्परागत रूप से भारत के ग्रामों में जाति पंचायत का अत्यधिक प्रभाव होने के कारण प्रत्येक जाति का अपना . अपना प्रथक नेता होता था ए जिसका कार्य अपनी जाति के सभी सदस्यों के व्यवहारों पर नियन्त्रण रखना तथा प्रावश्यकतानुसार उन्हें दण्ड अथवा पुरस्कार देना था । इस दृष्टिकोण से एक जाति के नेता का दूसरी जातियों के लिए कोई महत्त्व नहीं था ए यद्यपि अनेक अवसरों पर विभिन्न जातियों के नेता मिलकर गाँव में सार्वजनिक जीवन से सम्बन्धित निर्णय लिया करते थे । साधारणतया विभिन्न जातियों के सभी मखिया मिलकर एक सर्वसम्मत नेता के अधीन रहकर कार्य करते थे । सम्पुर्ण गाँव के नेता का पद भी जाति . व्यवस्था के ही आधार पर किसी उच्च जाति के व्यक्ति को प्राप्त होता था ।

 

अनौपचारिक नियन्त्रण की प्रधानता . अनौपचारिक नियन्त्रण परम्परागत ग्रामीण नेतृत्व की एक प्रमुख विशेषता है । नियन्जण को स्थापित करने के लिए हास्य ए व्यंग ए पालोचना ए तिरस्कार तथा सामाजिक बहिष्कार आदि ऐसे साधन रहे हैं जिनका ग्रामीण नेता के द्वारा व्यापक उपयोग किया जाता था । कुछ विशेष अवसरों पर गांव के नेता को यह भी अधिकार था कि वह ग्रामीणों को शारीरिक दण्ड दे सके ए लेकिन यह कार्य साधारणतया जमींदारों की प्रभूता से ही सम्बद्ध था । ;

 

नेतृत्व का सामाजिक स्वरूप . . मारत में एक लम्बे समय तक ग्रामीण . जीवन मूलरूप से सामाजिक . सांस्कृतिक जीवन था ए याथिक राजनीतिक नहीं । इस दृष्टिकोण से ग्रामीण नेतृत्व के अन्तर्गत उन्हीं कार्यों का विशेष महत्त्व था जिनका सम्बन्ध प्रथानों ए कर्मकाण्डों ए सामाजिक व्यवहारों तथा समाज के प्रादर्श नियमों के पालन से था । इस दृष्टिकोण से गांव के नेता की प्रतिष्ठा का मूल्यांकन उसकी राजनीतिक शक्ति के आधार पर नहीं बल्कि उसकी सामाजिक . सांस्कृतिक प्रवीणता के माघार पर किया जाता था ।

 

नेतृत्व में पारस्परिकता . ब्राउन ने यह स्पष्ट किया है कि भारत के ग्रामीण नेतत्व में पारस्परिकता एक प्रमुख तत्त्व रहा है । इसका तात्पर्य है कि गांवों में नेता का मापने अनुयायियों पर प्रभाव एक . पक्षीय नहीं होता बल्कि सामान्य ग्रामीणों के विचार तथा भावनाएँ नेता के व्यवहार को भी बहत बड़ी सीमा तक प्रभावित करती हैं । इसका तात्पर्य है कि गांव में नेता तथा अनुयायी एक समन्वित इकाई हैं । दूसरे शब्दों में ए अनुयाथियों को निकाल कर नेता तथा नेतृत्व की कल्पना नहीं की जा सकती ।

 

नेतृत्व में प्रतिष्ठा की प्रधानता . परम्परागत ग्रामीण नेतत्व में प्रतिष्ठा का तत्त्व अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रहा है । इस प्रतिष्ठा के निर्धारण में व्यक्ति की नैतिकता ए कार्य . कुशलता ण् दरशिता तथा सेवा की भावना का विशेष महत्त्व रहा है । अपनी इसी नैतिक शक्ति के आधार पर नेता सामान्य ग्रामीणों को किसी विशेष प्रकार के प्राचरण करने को बाध्य करता है । ग्रामीण नेता अपनी प्रतिष्ठा खना सबसे अधिक अनिवार्य समझता है और इस दृष्टिकोण से वह कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहता जो सार्वजनिक प्राकक्षिानों के प्रतिकूल हो ।

 

नेतृत्व में सर्वांगीणता ग्रामीण नेतृत्व का स्वरूप नगरों के समान विशेषीकृत नहीं सायी नेता अपने गाँव के लिए वे सभी कार्य करता है जिनकी ग्रामीणों को आवश्यकता होती हाउदाहरण के लिए विभिन्न योजनाएं बनाना ए नीतियों का निर्धारण करना विवाह तथा उत्सवों के यावश्यक प्रबन्ध करना ए विशेषज्ञ के रूप में कार्य करना ए सदस्यों के पवहारों पर नियन्त्रण लगाना ए पंच एवं मध्यस्थ के रूप में कार्य करना तथा किसी विशेष अबसर पर सम्पूर्ण गांव का प्रतिनिधित्व करना नेता के विभिन्न कार्य हैं । यही कारण है कि ग्रामीण जीवन में नेता एक सत्ताधिकारी नहीं होता बल्कि समूह का प्रादर्श होता है । भारत में ग्रामीण नेतृत्व की उपयुक्त विशेषतायों से स्पष्ट होता है कि यहाँ नेतृत्त्व का स्वरूप व्यापक रूप से अनौपचारिक ही रहा है । यह अनौपचारिक नेतृत्व न केवल ग्रामीण सरचना के अनुकूल या बल्कि ग्रामीण समस्याओं के समाधान तथा विभिन्न जाति . समूहों की एकता के लिए भी इसने रचनात्मक योगदान दिया ।

 

 

भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात ग्रामीण नेतत्व के परम्परागत स्वरूप में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हा है । स्वतन्त्रता के पश्चात एक धर्म . निरपेक्ष ए समतावादी और लोकतान्त्रिक समाज की स्थापना के लिए ग्रामीण विकास ण् को सर्वप्रमुख आवश्यकता के रूप में स्वीकार किया गया । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ग्रामों में न केवल नवीन विकास योजनाएँ प्रारम्भ की गई बल्कि सामाजिक ए राजनीतिक एवं प्राधिक जीवन में ग्रामीणों के सहभाग को भी अनिवार्य समझा जाने लगा । इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के प्रभाव से ग्रामीण नेतृत्व के अन्तर्गत अनेक ऐसे प्रतिमान विकसित होने प्रारम्भ हो गए जिनका परम्परागत ग्रामीण नेतृत्व में पूर्ण अभाव था । नेतृत्व के इन नवोदित प्रतिमानों को समझ लेने के उपरान्त ही ग्रामीण शक्ति संरचना से सम्बद्ध इस महत्त्वपूर्ण पक्ष की प्रकृति को अधिक अच्छी तरह समझा जा सकता है ।

 

 

नेतृत्व में परिवर्तनशीलता ; परम्परागत नेतृत्व की पपेक्षा वर्तमान ग्रामीण नेतृत्व परिवर्तन की विशेषता से युक्त है । आनुवंशिकता का सिद्धान्त समाप्त हो जाने के कारण अब ग्रामीणों की आकांक्षानों के अनुरूप ग्रामीण नेतृत्व में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है । एक समय जो व्यक्ति नेता होता है ए कुछ समय बाद वही व्यक्ति ग्राम वालों के आक्रोश का शिकार भी बन सकता है । इस प्रवृत्ति के फलस्वरूप अब ग्रामीण नेता केवल अधिकार सम्पन्न व्यक्ति ही नहीं होता बल्कि उसे अधिकारों की अपेक्षा ग्रामीणों के प्रति अपने कर्तव्यों के लिए अधिक जागरुक रहना पड़ता है । डॉ ण् सिंह ने लिखा है कि भारत के ग्रामों में परम्परा से चले आने वाला निरंकुशतापूर्ण और एकाधिकारवादी नेतृत्व अब इस दृष्टिकोण से परिवर्तनशील बन गया है कि ग्रामीणों को अब कभी भी अपने नेता को बदल देने का अधिकार प्राप्त हो गया है ।

 

सामूहिक नेतृत्व का विकास ; गांवों में नेतृत्व प्राज एक सीमित स्तर से हटकर सामूहिक स्वरूप ग्रहण कर रहा है । इसका अभिप्राय है कि परम्परागत रूप से जहां प्रत्येक परिवार ए जाति तथा समूह के नेता पृथक् . पृथक् होते थे और उनकी स्थिति आनुवंशिक रूप से निर्धारित होती थी वहीं आज एक ऐसे नेतृत्व का प्रादुर्भाव हुआ है जिसमें सभी जातियां तथा परिवार मिलकर एक . एक सामूहिक नेतृत्व से सम्बद्ध हो गए हैं । यह सच है कि सामूहिक नेतृत्व भी बहुधा उच्च जातियों में विभाजित है ए लेकिन ऐसे विभाजन की दृढ़ता अब काफी सीमा तक दुर्बल पड़ती जा रही है ।

 

नेतृत्व राजनीति से सम्बद्ध ; . ग्रामीण शक्ति संरचना में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रवेश के कारण अब नेतृत्व का सामाजिक सुधार से उतना सम्बन्ध नहीं रहा है जितना कि विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों से । वर्तमान स्थिति में अधिकांश गाँव अब भिन्न . भिन्न राजनीतिक दलों के केन्द्र ; च्वबामजे द्ध बन गए हैं । परम्परागत रूप से ग्रामीण नेतृत्व का किसी राजनीतिक विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं था । गाँव के प्रभावशाली व्यक्ति जिस दल के पक्ष में होते थे उसी को सम्पूर्ण गाँव का समर्थन प्राप्त हो जाता था । इसके विपरीत आज प्रत्येक राजनीतिक दल गाँव की जातिगत संरचना को ध्यान में रखते हुए वहाँ अपनी गतिविधियों का संचालन करता है जिसके फलस्वरूप एक ही गांव अनेक राजनीतिक दलों से तथा विभिन्न प्रकार के नेतृत्व से सम्बद्ध हो गया है । लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण के सन्दर्भ में मेहता कमेटी की रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया था कि गाँव से लेकर जनपद स्तर तक के सभी चुनावों में राजनीतिक दलों को सक्रिय सहभाग लेना चाहिए । इस सुझाव का स्पष्ट रूप अब ग्रामीण जीवन में स्पष्ट होने लगा है । इसके फलस्वरूप ग्रामीण नेतृत्व का सामाजिक स्वरूप अब राजनीतिक स्वरूप में परिवर्तित हो रहा है ।

 

भू . स्वामित्व ए परिवार तथा जाति के प्रभाव में  परम्परागत रूप से ग्रामीण नेतृत्व केवल उन्हीं व्यक्ति में केन्द्रित था जो बड़ी भूमि के स्वामी थे ए प्रतिष्ठित परिवारों से सम्बद्ध थे अथवा उच्च जाति के सदस्य थे । वर्तमान युग में ग्रामीण नेतृत्व का एक ऐसा प्रतिमान विकसित हुआ है जिसमें इन प्राधारों का कोई महत्त्व नहीं है । जनतान्त्रिक चुनाव पद्धति में नेतृत्व का निर्धारण अब किसी समूह को संख्या शक्ति के आधार पर होने लगा है । इसी का परिणाम है कि ग्राज ग्रामीण नेतृत्व में पिछड़ी और अनुसचित जातियों का प्रतिनिधित्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है । पंचायत राज . व्यवस्था के प्रत्येक स्तर पर अनुसूचित जातियों ए जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के लिए स्थान सुरक्षित हो जाने के कारण भी ग्रामीण नेतृत्व में इन जातियों की सहभागिता में वृद्धि हुई है ।

 

अधिशाली नेतृत्व पर बल ;  गांवों में नवीन विकास योजनामों के क्रियान्वयन के कारण एक ऐसे नेतृत्व का प्रादुर्भाव हया है जिसे अपनी प्रकृति से नौकरशाही अथवा अधिशासी ; ठनतमंनबतंजपब द्ध कहा जा सकता है । उदाहरण के लिए सामदायिक विकास कार्यक्रमों के फलस्वरूप गाँवों में ग्राम सेवक की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है । डॉ दबे ने इसे श् नवीन नेता श् के नाम से सम्बोधित किया है । अशपके अनुसार ए ग्राम सेवक से एक राजकीय अधिकारी के समान कार्य करने की आशा नहीं की जाती लेकिन तो भी ग्रामीण निर्णयों क

 

प्रजातान्त्रिक नेतृत्व का प्रादुर्भाव ; ग्रामों में आज एक नए प्रजातान्त्रिक नेतृत्व का विकास हुआ है जिसमें व्यक्ति की प्रानुवंशिक स्थिति भू स्वामित्व तथा जातिगत सदस्यता का विशेष महत्त्व नहीं है । गांव का नेतत्व अब उन व्यक्तियों में केन्द्रित है जो सामान्य ग्रामीणों के द्वारा निर्वाचित होते हैं अथवा जिन्हें बहमत का समर्थन प्राप्त होता है । एक विशेष तथ्य यह है कि इस प्रजातान्त्रिक नेतृत्व में नेता तथा उसके अनुयायियों की शक्ति अथवा प्रतिष्ठा में कोई स्पष्ट विभेद नहीं होता । इसका तात्पर्य है कि ग्रामीण नेता अन्य व्यक्तियों को अपने व्यवहारों से प्रभावित करने के साथ ही स्वयं ग्रामीणों की आकांक्षाओं से भी प्रभावित होता है । गांव में नेतृत्व का स्वरूप अब अधिक लौकिक और धर्म . निरपेक्ष है । नेता की शक्ति की व्याख्या किसी धर्म शास्त्र अथवा परम्परागत विश्वासों के आधार पर नहीं होती बल्कि जन . आकांक्षानों एवं राजकीय नीतियों के आधार पर होती है । यह ग्रामीण नेतृत्व में उत्पन्न एक ऐसा परिवर्तन है जिसने सम्पूर्ण ग्रामीण शक्ति संरचना के स्वरूप को परिवर्तित कर दिया है ।

 

शिक्षा का महत्त्व ; कुछ समय पूर्व तक ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक निरक्षरता होने के कारण नेतृत्व में भी शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं था । वर्तमान समय में नेतृत्व के लिए शिक्षा को प्रावश्यक समझा जाने लगा है । इसका कारण यह है कि गांव में आर्थिक ए सामाजिक एवं राजनीतिक सम्बन्धों के क्षेत्र में विस्तार होने के फलस्वरूप उसी व्यक्ति से अच्छे नेतत्व की प्राशा की जाती है जो शिक्षित हो । नए नियमों के अन्तर्गत अब राज्य की प्रोर से भी ऐसे निर्देश दिए जाने लगे हैं कि गाँवों में प्रोपचारिक पदों पर कोई पढ़ा . लिखा व्यक्ति ही आसीन हो सकता । है । प्रो ण् योगेन्द्रसिंह का विचार है कि ग्रामीण नेतृत्व में युवा एवं शिक्षित व्यक्तियों द्वारा भाग लेने के कारण भी शिक्षा को नेतत्व का प्रावश्यक प्राधार समझा जाने लगा है । हिचकॉक ने भी अपने अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि गांव में शिक्षित नेता की उपयोगिता पहले की तुलना में कहीं अधिक बढ़ गई है । एक अन्य अध्ययन में प्रो ण् सिंह एवं पारिख ने यह ज्ञात किया कि गावा में केवल वही व्यक्ति मंत्रणा नेता ; व्चपदपवद स्मंकमत द्ध बन पाता है जो कुछ सीमा तक वित होता है । इन सभी अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षित नेताओं को ही प्राज ग्रामीणों का विश्वास प्राप्त है तथा उन्हीं को ग्रामीण जीवन के लिए अधिक उपयोगी समझा जाता है ।

 

नेतृत्व में विशेषीकरण ; ग्रामीण नेतृत्व में उत्पल प्रमुख परिवर्तनों में से एक यह है कि ग्राज नेता में ही गांव की सम्पूर्ण शक्ति कन्द्रित नहीं होती बल्कि जीवन के प्रत्येक विशिष्ट पक्ष तथा विशिष्ट कार्यों से सम्बद्ध पृथक . पृथक व्यक्तियों को नेता के रूप में मान्यता दी जाने लगी है । वास्तव में ग्रामीण जीवन भी अब इतना विविधतापूर्ण हो गया है कि विभिन्न प्रावश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के नेताओं की आवश्यकता होती है । उदाहरण के लिए ग्राम सभा का प्रधान ए न्याय पंचायत के पंच ए सहकारी समिति का अध्यक्ष ए स्कूल का शिक्षक ए युवक मण्डल का अध्यक्ष तथा कल्याण समितियों के पदाधिकारी आदि ऐसे नेता हैं जिनमें सम्पूर्ण ग्राम का नेतृत्व विभाजित रूप में देखने को मिलता है । डॉ ण् बैजनाथसिंह ने अपने अध्ययन के प्राधार पर यह स्पष्ट किया है कि ग्रामीण नेतृत्व की विविधता मूल रूप से सामुदायिक विकास योजनाओं के क्रियान्वयन का परिणाम है ।

 

युवकों का बढ़ता हुमा प्रतिनिधित्व ;. ग्रामीण नेतृत्व में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह हुमा है कि अब किसी व्यक्ति को नेता बनने के लिए अधिक पायु का होना आवश्यक नहीं है । कुछ समय पूर्व तक ग्रामीणों का यह विश्वास था कि केवल दृद्ध और अनुभवी व्यक्ति ही नेता बन सकता है ए लेकिन अब अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में नेतृत्व धीरे . धीरे युवा वर्ग के हाथों में प्राता जा रहा है । सम्भवतः इसका मुख्य कारण यह है कि कृषि से सम्बन्धित वर्तमान नवाचारों का प्रशिक्षण तथा ज्ञान प्राप्त करके जब युवा वर्ग ग्राम में प्राता है तो वह सरलता से ग्राम का सलाहकार बन जाता है और धीरे . धीरे उनका नेतृत्व ग्रहण कर लेता है । सरकार द्वारा चलाए जा रहे ग्रामीण विकास कार्यक्रों में भी युवा वर्ग की सहभागिता ही सबसे अधिक है । पंजाब में इन्द्रसिंह द्वारा किए गए अध्ययन तथा उत्तर प्रदेश में रंगनाथ द्वारा किए गए अध्ययन से भी इसी प्रकार के निष्कर्ष प्राप्त हुए हैं । इन दोनों अध्ययनकर्तामों ने यह विचार व्यक्त किया है कि भारत के ग्रामीण नेतृत्व में आयु का महत्त्व तेजी से घट रहा है । इस सम्बन्ध में लर्नर ने बताया है कि ग्रामीण जीवन में नेतृत्व आज भी अधिक प्रायु के लोगों में ही केन्द्रित है । लेकिन लनर का अध्ययन प्रब इतना पुराना हो चुका है कि तात्कालिक विशेषताओं को वर्तमान ग्रामीण समाज की विशेषतामों के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता । युवा . वर्ग सदैव ही अधिक क्रियाशील ए विचारों में उदार ए व्यवहार में परिवर्तनशील तथा जीवन के प्रति तर्कपूर्ण मनोवृत्ति रखने वाला होता है । ये विशेषताएँ एक परिवर्तनशील समुदाय में नेतृत्व के लिए अधिक उपयोगी समझी जाती हैं ।

 

 

मध्यम वर्ग की प्रधानता ;  . भारतीय ग्रामों में नेतृत्व का परम्परागत स्वरूप मुख्य रूप से उस वर्ग से सम्बद्ध था जो या तो बड़ी . बड़ी भूमियों का स्वामी था अथवा जिसके पास धन की अतुल शक्ति थी । नवीन प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के पश्चात् आज ग्रामों में एक ऐसे नेतत्व का प्रादुर्भाव हुपा है जो मुख्यतः साधारण किसानों ए पशु पालकों एवं कारीगरों से सम्बद्ध मध्यम वर्ग के व्यक्तियों से सामान्य ग्रामीण जल्दी ही अपनी अनुरूपता स्थापित कर लेता है जिसके फलस्वरूप उन्हें नेतृत्व ग्रहण करने तथा किसी विशेष कार्य को करने का निर्देश देने के अधिक अवसर प्राप्त हो जाते हैं । ;

 

प्रभावित करने तथा विकास योजनाओं में सहभाग देने के क्षेत्र में उसकी भूमिका निरन्तर महत्त्वपूर्ण बनती जा रही है । इसी प्रकार विकास खण्ड अधिकारी ए नियोजन अधिकारी तथा नियोजन से सम्बद्ध अन्य कार्यकर्ताओं ने भी गांवों में नेतृत्व के नवीन स्वरूप को प्रोत्साहन दिया है । उपर्युक्त विवेचन से

 

नगरों में शिक्षा प्राप्त करके गांव में पाकर रहने वाले नवयुवक ऐसे विचारों का प्रसार कर रहे हैं जिनके अन्तर्गत नेतृत्व का परम्परागत स्वरूप स्थिर नहीं रह सकता । यह सच है कि परम्परागत ग्रामीण नेतृत्व से सम्बद्ध अधिकारों का उपयोग कर लेने के पश्चात् गाँव के परम्परागत मुखिया आज भी बदलती हुई परिस्थितियों में अपने प्रभाव कों बनाए रखने का प्रयत्न कर रहे हैं ए परन्तु इन परिवर्तित दशाओं के अन्तर्गत उन्हें अधिक सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है ।

 

स्पष्ट होता है कि ग्रामीण जीवन में नेतृत्व के केवल नवीन प्रतिमान ही विकसित नहीं हुए हैं बल्कि उन परिस्थितियों में भी परिवर्तन हुआ है जो नेतृत्व के एक विशेष स्वरूप का निर्धारण करते हैं । उदाहरण के लिए संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकाकी परिवारों की संख्या बढ़ने के कारण नेतृत्व के निर्धारण में परिवार का महत्त्व कम हुआ है । भू . स्वामित्व के नवीन कानूनों के कारण परम्परागत जमींदारों तथा बड़े भू . स्वामियों की स्थिति में ह्रास हुआ है । समाजवादी मूल्यों का प्रसार होने से गांव के छोटे और सीमान्त कृषकों ने उन अधिकारों की मांग करना प्रारम्भ कर दिया है जिनकी कुछ समय पहले तक सम्भावना भी नहीं की जा सकती थी ।

2023 NEW SOCIOLOGY – नया समाजशास्त्र
 https://studypoint24.com/top-10-link-for-all-2022/2023-new-sociology-%e0%a4%a8%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top