प्राकृतिक संसाधनों के अन्तर्गत भूमि तथा अन्य साधनों का उल्लेख कीजिए

प्राकृतिक संसाधनों के अन्तर्गत भूमि तथा अन्य साधनों का उल्लेख कीजिए ।

 Explain Land and other Resources on behalf of Nature Resources .

भूमि तथा अन्य साधन ( Land and Other Resources ) मनुष्य आज भी अपने भोजन के लिए कृषि पर निर्भर है । भूमि के अतिरिक्त खाद्यान्न उत्पादन कर सकने से सम्बन्धित सम्भावित विकास के अतिरिक्त खाद्यान्नों की पूर्ति कृषि योग्य भूमि पर तथा भूमि की प्रति इकाई उत्पादन में वृद्धि पर निर्भर करती है ।

 बचतें ( Saving ) – जब बचतों का निवेश संयन्त्रों में किया जाता है , तब उनकी सहायता से प्राकृतिक साधनों का विदोहन होता है । बहुत से विद्वानों ने प्रति व्यक्ति उत्पादन की वृद्धि में पूँजी निर्माण के महत्व का उल्लेख किया है । अनेक विद्वानों ने इस पर विचार किया है कि क्या पूँजी निर्माण की दी इतनी अधिक होगी जिससे कि विश्व प्रति व्यक्ति उत्पादन में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि की दर से अधिक हो सके ? इन विचारकों के अनुसार अर्द्ध – विकसित देशों में बचतों तथा पूंजी निर्माण की दर घटेगी जिससे कि श्रमिकों को सयन्त्रों के लिए आवश्यक पूँजी प्रदान करना कठिन होगा । मुख्य समस्या विश्व के प्रमुख क्षेत्रों में पूंजी के वितरण की है जिसके द्वारा अर्द्ध – विकसित क्षेत्रों में साधनों तथा उद्योगों का विकास हो सके ।

कृषि योग्य भूमि की मात्रा ( The Amount of Cultivable Land ) – पृथ्वी के सम्पूर्ण धरातल को केवल 30 % ही भू – भाग है । पृथ्वी के 30 % भू – भाग में से आधे भाग में मानवीय जीवन की सम्भावनाएँ बहुत कम हैं क्योंकि इसका अधिकांश भाग पर्वतीय तथा मरुस्थलीय है । इसके अन्तर्गत कनाडा , रूस , अफ्रीका , एशिया तथा दक्षिणी अमेरिका के अनेक भाग हैं । इस प्रकार कृषि योग्य भू भाग सम्पूर्ण पृथ्वी के धरातल का केवल 7.5 % भाग है । इस कृषि योग्य भूमि का 75 % भाग उन देशों में स्थित है जहाँ कि विश्व की सम्पूर्ण जनसंख्या का केवल एक – तिहाई भाग निवास करता है । कृषि योग्य भूमि के शेष 25 % भाग को शेष दो – तिहाई जनसंख्या का पेट पालना पड़ता है । बहुत से विद्वानों ने कृषि योग्य भूमि के निर्धारण में दो सीमाओं का उल्लेख किया है- प्रथम , प्रकृति द्वारा निर्धारित निरपेक्ष तथा बाह्य सीमा द्वितीय विश्व खाद्यान्न पूर्ति सम्बन्धी सापेक्षिक सीमाओं का निर्धारण सांस्कृतिक तथा मानवीय अभिरुचियों एवं क्रियाओं द्वारा निर्धारित होता है जो भूमि के वास्तविक तथा सम्भावित सीमाओं का निर्धारण करते हैं ।

जिमरमैन के शब्दों में , ” उपलब्ध साधनों के अध्ययन के सन्दर्भ में भूमि की सतह की कुल मात्रा का अध्ययन उसी प्रकार निरर्थक है , जिस प्रकार कि विश्व के सन्दर्भ में पदार्थ तथा शक्ति की कुल मात्रा का अध्ययन । मनुष्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमि तथा प्रकृति की अन्य अवस्थाएं हैं । भूमि को समय तथा स्थान के सन्दर्भ में परिभाषित करना चाहिए । परम्परागत अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन के तीन साधनों का उल्लेख किया , भूमि , श्रम , पूँजी जिमरमैन ने उत्पादन के साधनों को परिभाषित किया है । उनके अनुसार , ” प्रकृति , मनुष्य तथा संस्कृति , उत्पादन के साधन हैं क्योंकि भूमि का अर्थ मानव प्रवृत्तियों तथा क्रियाओं में परिवर्तन तथा सदा – परिवर्तनशील प्रकृति के कारण परिवर्तित होता रहता है । ” कृषि योग्य भूमि के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अनुमान प्रस्तुत किये हैं । प्रसोलोव के अनुमानों के अनुसार विश्व के सम्पूर्ण भू – भाग की लगभग आधी भूमि कृषि योग्य भूमि है जो कि लगभग 18,000 मिलियन एकड़ है । शैन्त्ज के अनुसार लगभग 15,600 मिलियन एकड़ भूमि कृषि योग्य है । जिमरमैन के अनुमानों के अनुसार विश्व की लगभग चालीस प्रतिशत भूमि कृषि योग्य भूमि है जो कि अनुमानतः 13,400 मिलियन एकड़ है ।

विश्व जनसंख्या वितरण चीन अर्जेण्टाइना कनाडा जर्मनी फ्रांस पोलैण्ड स्पेन ईरान मन्चूरिया व जैसल इटली ऑस्ट्रेलिया विश्व 1.777 644 634 499 493 472 446 408 384 356 349 18,778 13.8 9.3 2.9 12.9 36.3 49.2 35.6 10.2 10.8 . 49.9 1.7 0.29 4.56 5.29 0.72 1.22 1.47 1.56 2.47 0.89 0.77 4.71 8.2 2.6 2.5 1.9 151 1.9 1.8 ——- 1.6 1.5 1.4 1.4 Source : U.N. Statistical Year Book of Different Years . कुछ वर्षों में जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण खाद्यान्नों की समस्या उत्पन्न हो गयी है । विश्व जनसंख्या जो कि 1650 में 54.5 करोड़ थी , 2000 में बढ़कर 6.05 बिलियन हो गयी । संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमानों के अनुसार विश्व जनसंख्या इक्कीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक के अन्त तक लगभग 7 बिलयन हो जायेगी । विगत वर्षों में विश्व के खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है किन्तु जनसंख्या की वृद्धि का प्रतिशत इससे अधिक रहा है । खाद्यान्नों के अतिरिक्त भोजन की कमी को समुद्री मछलियों को सहायता से कुछ सीमा तक दूर किया जा सकता है किन्तु इनके पकड़ने की समस्या बहुत अधिक है । सम्पूर्ण कृषि योग्य भूमि का प्रयोग केवल खाद्यान्नों के उत्पादन के लिए ही नहीं किया जाता है बल्कि लगभग 10 से 15 प्रतिशत भूमि पर अभोज्य कृषि पदार्थों जैसे — कपास , जूट , पटसन आदि का भी उत्पादन किया जाता है । पियरसन तथा हार्पर के अनुसार विश्व की सम्पूर्ण कृषि योग्य भूमि के लगभग केवल छः / दसवें भाग का ही प्रयोग खाद्यान्नों के उत्पादन में किया जाता है । सम्पूर्ण विश्व में लकड़ी के लट्ठों का उत्पादन लगभग 3,600 मिलियन एकड़ उत्पादक गलों का प्रतिनिधित्व करता है । विश्व की जनसंख्या तथा आय में वृद्धि होने पर अभोज्य कृषि पदार्थों तथा इमारती लकड़ी की माँग में वृद्धि होने की तीव्र सम्भावना है ।

प्रति एकड़ उत्पादकता में सुधार की सम्भावनाएँ ( The Possibilities of Improving Output per Acre ) – हैलिनर के मतानुसार , ” यह कहना कठिन है कि विगत वर्षों में मनुष्य की उपलब्धि भूमि की मात्रा में वृद्धि के कारण हुई है अथवा भूमि के बेहतर प्रयोग के कारण । आज अनेक देशों में खाद्यान्नों तथा अकार्बनिक वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि का सबसे अधिक प्रभावपूर्ण उपाय प्रति एकड़ उत्पादकता में वृद्धि है । पैपी के अनुसार , ” मध्य पूर्व तथा सुदूरपूर्व देशों में जहाँ कि जनसंख्या अधिक है तथा प्रति एकड़ उत्पादकता कम है , वहाँ प्रति एकड़ उत्पादकता में वृद्धि के द्वारा कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है किन्तु इसके लिए अधिक मात्रा में पूँजीगत विनियोग आवश्यक होगा । यह विनियोग पश्चिमी यूरोप के घने बसे क्षेत्रों मात्रा में भी आवश्यक है । जहां कि वर्तमान में प्रति एकड़ उत्पादकता अधिक है । दूसरी और उत्तरी अमेरिका , दक्षिणी अमरीका अफ्रीका आदि जहाँ घनी आबादी नहीं है वहाँ पर उत्पादन तथा कृषि भूमि का क्षेत्रफल बढ़ाये जाने की सम्भावनाएं हैं । ” बेकर के अनुसार , विश्व की प्रति एकड़ उपज में कम से कम 50 प्रतिशत की वृद्धि की जा सकती है । साल्टर के अनुसार कृषि भूमि की उत्पादकता में एक दशक में लगभग 20 प्रतिशत वृद्धि कर सकना सम्भव है ।

 खनिज तथा शक्ति के साधन ( Mineral and Energy Resources ) – आधुनिक समय में खनिज पदार्थों का बहुत अधिक महत्व है । जिन में खनिज अधिक मात्रा में है , उन देशों की औद्योगिक , आर्थिक तथा व्यापारिक प्रगति हुई है । कृषि , उद्योग , यातायात आदि का विकास खनिज पर आधारित है । खनिज सम्पदा मात्रा में सीमित होती है क्योंकि खनन के पश्चात् ये समाप्त हो जाती है । विभिन्न राष्ट्रों के औद्योगीकरण के साथ – साथ इन पदार्थों के प्रयोग में भी वृद्धि होती जाती है । शक्ति के प्रमुख साधन तेल , कोयला , गैस , जल – प्रवाह अथवा विद्युत है । जल विद्युत का राष्ट्र के औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान है । इसके दो प्रमुख प्रयोग हैं- प्रथम , जल प्रवाह का प्रयोग सिंचाई में किया जाता है तथा दूसरे , इससे विद्युत प्राप्त होती है जिसका प्रयोग विद्युत के अतिरिक्त बहुत से यन्त्रों के संचालन में किया जाता है । इस प्रकार यह आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । वैज्ञानिकों के एक अनुमान के अनुसार यदि तेल उपभोग की वर्तमान मात्रा बनी रही , तब इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक विश्व के ज्ञात तेल स्रोतों का आधा भाग समाप्त हो जायेगा । विश्व के अन्य खनिज पदार्थों की मात्रा भी सीमित है । जनांकिकी दृष्टिकोण से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि इन शक्ति के साधनों का प्रयोग सीमित किया जाय जिससे कि भविष्य में इनका अभाव न हो । शक्ति के परम्परागत साधनों के अतिरिक्त सूर्य ऊर्जा , वायु शक्ति तथा ज्वार ( Tide ) आदि का भी शक्ति के साधन के रूप में सीमित मात्रा में प्रयोग किया जा रहा है । इन साधनों के साथ इनके संग्रहण की समस्या है । यदि इस समस्या का निदान हो जाय , तब ये शक्ति के स्रोत के लिए मनुष्य को उपलब्ध हो जायेंगे ।

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