भारत में परिवार नियोजन की असफलता के कारण
- भारत में परिवार नियोजन को एक राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में सन् 1952 में अपनाया गया । देश में इस नीति का आरम्भ पहली पंचवर्षीय योजना से ही हो गया था परन्तु इसका प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन चौथी पंचवर्षीय योजना के बाद ही हो सका । यह नीति अपने उद्देश्यों की पूर्ति में कुछ हद तक सफल रही तो कुछ हद तक असफल भी रही ।
- भारत में परिवार नियोजन की उत्तर असफलता के कारण भारत में परिवार नियोजन की असफलता के कारण निम्नलिखित हैं
- कार्यकर्त्ताओं में प्रशिक्षण एवं कुशलता की कमी – किसी भी कार्यक्रम की सफलता बहुत कुछ उसको क्रियान्वित करने वाले कार्यकर्त्ताओं की कुशलता , ज्ञान , अनुभव और कर्त्तव्यनिष्ठता पर निर्भर करती है । कर्मचारियों की अकुशलता , अज्ञानता , लापरवाही तथा उपेक्षा के कारण ही ग्रामीण जनता में परिवार नियोजन के प्रति तरह – तरह के भ्रम एवं भंय उत्पन्न हो गये हैं । हानि – लाभ को ठीक से समझाया नहीं तथा जोर – जबरदस्ती की है । अतः जनमानस में इन कार्यकर्त्ताओं व कार्यक्रमों के प्रति अविश्वास व विद्रोह उत्पन्न हो गया है और लोग परिवार नियोजन से भागने की प्रवृत्ति रखते हैं ।
- विज्ञापन का अभाव एवं कर्मचारियों की लापरवाही – भारत जैसे विशाल क्षेत्र और जनसंख्या वाले देश में जहाँ शिक्षा , आवागमन और संचार के साधनों का अभाव है परिवार नियोजन कार्यक्रम को जन – जन तक पहुँचाने एवं लोकप्रिय बनाने के लिए व्यापक और कारगर रूप से विज्ञापन की आवश्यकता है । दूसरी तरफ इस कार्य के लिए नियुक्त कर्मचारियों ने निष्ठा , लगन और आत्म – विश्वास के साथ काम नहीं किया है ।
- सन्तति निरोध की आदर्श विधि का अभाव- भारत में आज भी सन्तति निरोध की आदर्श विधि और साधनों का बहुत अभाव है । जिसे एक पूर्ण उपयुक्त , प्रभावशाली तथा आदर्श विधि की संज्ञा दी जा सके । वास्तव में भारत जैसे देश के लिए सन्तति निरोध की ऐसी विधि होनी चाहिए जो सरल , विश्वसनीय , उपयुक्त , रुचिपूर्ण , नैतिक एवं धार्मिक दृष्टि से भी अनुकूल हो ताकि आम जनता को उसे अपनाने में कठिनाई न आए ।
- आवास समस्या आवास समस्या भी परिवार नियोजन कार्यक्रम की सफलता के मार्ग में बाधा है । परिवार नियोजन के रासायनिक और यान्त्रिक साधनों के प्रयोग के लिए लोगों को घर में एकान्त स्थान नहीं मिल पाता है क्योंकि उसके पास पर्याप्त आवास की कमी है ।
- नैतिकता के आधार पर विरोध – अनेक लोग नैतिकता के आधार पर भी परिवार नियोजन का विरोध करते हैं । क्योंकि लोगों को अपने पाप छिपाने का भय कृत्रिम साधनों के कारण नहीं रह जाएगा ।
- कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा परिवार नियोजन का विरोध किया जाना — परिवार नियोजन कार्यक्रम के मार्ग में एक बाधा बुद्धिजीवियों द्वारा इसका विरोध किया जाना भी है । सक्षम और कुशल जनसंख्या घटेगी और हीन किस्म की जनसंख्या बढ़ेगी । क्योंकि परिवार नियोजन के साधनों का सर्वाधिक प्रयोग शिक्षित और सक्षम वर्ग द्वारा ही किया जाता है ।
- यौन सम्बन्धी जानकारी का अभाव – भारत में यौन सम्बन्धी शिक्षा का अभाव है । यौन शिक्षा का अभाव स्वयं परिवार नियोजन के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है जिसके कारण लोग अधिक यौन क्रिया , प्रजनन , गर्भ निरोध के साधनों एवं उनके उपयोग को ठीक से नहीं समझ पाते हैं जो परिवार नियोजन कार्यक्रम की सफलता के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा का कार्य करता है ।
- धार्मिक बाधाएँ– परिवार नियोजन के कृत्रिम साधनों का प्रयोग अधार्मिक और धर्म विरोधी मानते हैं । सन्तान को ईश्वर की देन माना जाता है । विवाह की अनिवार्यता , बाल विवाह , पुत्र का अधिक महत्व , भाग्यवादिता , पितृ ऋण से उऋण होने की धारणा , यौन पवित्रता एवं नैतिकता , कृत्रिम साधनों के प्रयोग को अप्राकृतिक मानना , धर्मावलम्बियों की संख्या में वृद्धि करने से सम्बन्धित धारणा परिवार नियोजन की सफलता के मार्ग में प्रमुख धार्मिक बाधाएँ हैं ।
- सामाजिक बाधाएँ – भारत एक परम्परावादी ग्राम्य प्रधान देश है जहाँ 48 % जनसंख्या आज भी अशिक्षित है । देश में जनरीति , प्रथा , परम्परा एवं रूढ़ियों में अपार आस्था और श्रद्धा है । आम जनता का विचार है कि गर्भ निरोध के कृत्रिम साधनों के प्रयोग से यौन अनैतिकता को बढ़ावा मिलेगा , वेश्यावृत्ति पनपेगी , लड़कियाँ अपने शील को कायम नहीं रख पायेगी तथा विवाह के पूर्व यौन सम्बन्ध आम बात हो जाएगी ।
- अशिक्षा , अज्ञानता एव उपेक्षा- भारत की अधिकांश जनता आज भी अशिक्षित , अज्ञानी एवं रूढ़िवादी है । अशिक्षा और अज्ञानता के कारण जनता परिवार नियोजन की आवश्यकता , महत्त्व एवं उसके साधनों और विधियों से पूर्णतया अनभिज्ञ है ।
- निर्धनता के कारण साधनों को प्राप्त करना जहाँ सम्भव नहीं हो पाता वहीं अतिरिक्त जन्म को एक श्रमिक केरूप में देखा जाता है न कि उपभोक्ताओं के रूप में । डॉ ० आशिव बोस के अनुसार- ” हमारे परिवार नियोजन कार्यक्रम की मिथ्या धारणा यह है कि भारत जैसे देश में प्रजनन व्यवहार ( Reproductive Behaviour ) में परिवर्तन विज्ञापन एव इश्तहारों द्वारा किया जा सकता है— लोग जागृत हो चुके हैं और ‘ गरीबी हटाओ ‘ नारे को कार्य रूप देना होगा । जनता सक्रिय उपायों की माँगी करेंगी और परिवार नियोजन के नकारात्मक नारों , ‘ दो या तीन ‘ से सन्तुष्ट न होगी । “
- जन – सहयोग का अभाव ।
- जनता में शल्य चिकित्सा के प्रति भय ।
- लगातार लड़कियों का जन्म तथा ऊँची शिशु मृत्यु दर ।
- देश में प्रभावकारी , सरल , सस्ते एवं हानि रहित गर्भ निरोध के साधनों का अभाव ।
- देश में आवश्यक एवं उपयुक्त चिकित्सक व परिचारिकाओं तथा परिवार नियोजन व स्वास्थ्य केन्द्रों का अभाव । डॉ ० आशिव बोस के अनुसार- ” हमारे परिवार नियोजन कार्यक्रम की मिथ्या धारणा यह है कि भारत जैसे देश में प्रजनन व्यवहार ( Reproductive Behaviour ) में परिवर्तन विज्ञापन एवं इश्तहारों द्वारा किया जा सकता है— लोग जागृत हो चुके हैं और ‘ गरीबी हटाओ ‘ नारे को कार्य रूप देना होगा । जनता सक्रिय उपायों की माँगी करेंगी और परिवार नियोजन के नकारात्मक नारों , या तीन ‘ से सन्तुष्ट न होगी । ”
- वित्तीय कठिनाइयाँ – भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम को व्यापक और सघन रूप में चलाने के लिए काफी धन की आवश्यकता है पर देश में पूंजी और आवश्यक साधनों का अभाव है । विगत कुछ वर्षों में परिवार नियोजन कार्यक्रम में जो तेजी आयी है तथा काफी प्रगति हुई है निश्चित ही काफी प्रसन्नता और सन्तोष प्रदान करती है पर कार्यक्रम को और अधिक सक्रिय , सफल और कारगर बनने की अभी भी आवश्यकता है क्योंकि परिवार नियोजन की सफलता के बिना देश की प्रगति की कल्पना साकार नहीं हो सकती है ।
भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम का मूल्यांकन
- Evaluation of Family Planning Programme in India .
- भारत में परिवार नियोजन को एक राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में सन् 1952 में अपनाया गया । देश में इस नीति का आरम्भ पहली पंचवर्षीय योजना से ही हो गया था परन्तु इसका प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन चौथी पंचवर्षीय योजना के बाद ही हो सका । यह नीति अपने उद्देश्यों की पूर्ति में कुछ हद तक सफल रही तो कुछ हद तक असफल भी रही । अत : यह आवश्यक है कि इस नीति का मूल्यांकन किया जाए और असफलता के कारणों को खोजकर उसके निराकरण के उपाए सुझाए जाएँ ।
- कार्यक्रम की सफलताएँ देश में पंचवर्षीय योजना से लागू यह कार्यक्रम कई दृष्टियों में सफल रहा है । इस कार्यक्रम की सफलता के पक्ष में निम्न बातें कही जा सकती हैं भारत विश्व का प्रथम देश है जिनसे परिवार नियोजन कार्यक्रम को 1952 में राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में अपनाया ।
- पहली और दूसरी पंचवर्षीय योजना में परिवार नियोजन प्रोग्राम को एक साधारण स्तर पर ही अपनाया गया । उस समय शोध , प्रचार तथा क्लीनिक की सुविधाएँ उपलब्ध कराए जाने को ही महत्व दिया गया । परन्तु बाद में सरकार ने इस कार्यक्रम पर विशेष ध्यान दिया और इसके ऊपर किये वाले व्यय में निरन्तर वृद्धि की । इस कार्यक्रम में मातृ – शिशु स्वास्थ्य , आहार , महिला कल्याण तथा शिक्षा आदि गुणात्मक पहलुओं को भी लिया गया है ।
- विभिन्न योजनाओं में किए गए प्रयास से आज देश में परिवार नियोजन का पर्याप्त विकास हो चुका है । वर्तमान में नगरों में ही नहीं बल्कि गाँवों में भी समस्त आधुनिक उपकरणों से लैस परिवार नियोजन केन्द्र हैं जहाँ वैज्ञानिक एवं उच्च तकनीकी विधि से कार्य किया जाता है । ये केन्द्र परिवार नियोजन सम्बन्धी विभिन्न उपायों के बारे में उचित सलाह एवं मार्गदर्शन देते हैं । इसके अतिरिक्त देश में अनेक प्रशिक्षण एवं शोध केन्द्रों की स्थापना भी की गयी हैं ।
- लगातार प्रचार , प्रसार द्वारा लोगों के मन में छोटे परिवार के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने में यह कार्यक्रम सफल रहा है । आज अमीर हो या गरीब , शिक्षित हो या अशिक्षित सभी छोटे परिवार के महत्व को समझने लग गए हैं । आज अनेक राज्य अपने यहाँ जन्म एवं मृत्यु दरों को कुछ हद तक कम करने में सफल हो गए हैं ।
- परिवार नियोजन कार्यक्रम द्वारा देश में पुनरुत्पादन योग्य दम्पत्तियों को परिवार नियोजन के दायरे में लाकर जन्म दर में कमी लाने का प्रयास किया गया । सम्पूर्ण देश में वर्ष 1976 में9 % , 1981 में 22.7 % , 1986 में 34.9 % , 1990 में 43.3 % तथा 1992 में 43.5 % पुनरुत्पादन योग्य दम्पत्तियों को परिवार नियोजन के दायरे में लाया गया । इन्हीं वर्षों में इन दम्पत्तियों में से क्रमश 14.1 % , 20 % , 26.5 % , 31.1 % तथा 30.3 % दम्पत्तियों ने निष्कीटन को अपनाया ।
- इस प्रकार परिवार नियोजन कार्यक्रम की सफलता के परिणामस्वरूप ही देश में जन्म दर एवं मृत्यु दर जो परिवार नियोजन कार्यक्रम लागू किए जाते समय क्रमश : 43 प्रति हजार व 31 प्रति हजार थी , आज गिरकर क्रमश : 25.0 प्रति हजार तथा1 प्रति हजार हो गयी है । कार्यक्रम की असफलताएँ भारत में परिवार नियोजन को अपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं प्राप्त हुई । इसकी उपलब्धियाँ , लक्ष्यों से सदैव पीछे रही । वास्तव में निरोधित जन्मों का श्रेय केवल परिवार नियोजन कार्यक्रम को ही नहीं दिया जा सकता है ।
- इसके लिए अनेक सामाजिक , आर्थिक एवं सांस्कृतिक तत्व जिम्मेदार हैं । परिवार नियोजन कार्यक्रम अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहा । चतुर्थ पंचवर्षीय योजना में ही जन्म दर को 32 प्रति हजार तक घटाने तथा 1978 तक 25 प्रति हजार तक करने के लक्ष्य को नहीं पाया जा सका है । इस तरह , सातवीं योजना में जन्म दर को1 प्रति हजार तक तथा आठवीं योजना में 26.0 प्रति हजार तक घटाने का लक्ष्य रखा गया जबकि वास्तव में जन्म दर उन्हीं योजनाओं में क्रमश : 30.2 प्रति हजार तथा 27 प्रति हजार रही । इस तरह गर्भ नियन्त्रण की अनेक विधियों के लक्ष्यों को भी नहीं पूरा किया जा सका । छठी योजना में 24 मिलियन नसबन्दी का लक्ष्य था परन्तु उपलब्धि 17 मिलियन रही । सातवीं पंचवर्षीय योजना में नसबन्दी का लक्ष्य 31 मिलियन था जबकि 23.7 मिलियन लोगों की ही नसबन्दी की जा सकी । इसी तरह 2001-02 में मात्र 4.7 मिलियन लोगों की ही नसबन्दी की गयी ।
- दम्पत्ति संरक्षण दर लक्ष्यों के अनुरूप रहा परन्तु इसके लिए वास्तविक पात्रों का चयन नहीं किया गया । अधिकांश चयनित व्यक्ति ऊँची आयु वर्ग के रहे जो अपना पुनरुत्पादन काल पूर्ण हो जाने के करीब थे । वास्तव में दम्पत्ति संरक्षण के अन्तर्गत कम आयु वाले दम्पत्तियों को लाना चाहिए । भारत में विवाह की आयु बढ़ाकर पुनरुत्पादन काल को कम करने की कानूनी प्रावधान है फिर भी अधिकांश का विवाह निर्धारित आयु से कम आयु में ही हो रहा है जिससे दम्पत्तियों को अधिक पुनरुत्पादन का समय मिल जाता है । परिवार नियोजन कार्यक्रम इस पर रोक लगाने में असफल रहा । असफलता के कारण परिवार नियोजन की सफलता जनता की रुचि पर निर्भर करती है । यह कार्यक्रम तब तक नहीं सफल हो सकता जब तक यह आन्दोलन का रूप नहीं ले लेता । जब तक देश की अधिकांश जनता जो आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़ी सामाजिक एवं धार्मिक रूढ़ियों से प्रभावित है , तरह – तरह की बीमारियों से ग्रसित तथा उच्च शिशु मृत्यु दर से पीड़ित एवं कुपोषण का शिकार है , जब तक इनकी दशा में सुधार नहीं किया जाएगा तब तक परिवार नियोजन कार्यक्रम की सफलता संदिग्ध रहेगी ।
- परिवार नियोजन कार्यक्रम संरचनात्मक सुविधाओं के अभाव , पर्याप्त प्रचार एवं प्रसार तथा जनता को पर्याप्त जानकारी एवं शिक्षा की व्यवस्था न होने के कारण देश के बहुत से भागों में नहीं पहुँच पा रहा है । इसके अतिरिक्त प्रशिक्षित कर्यकत्ताओं के अभाव में इसका प्रयोग नहीं हो पा रहा है । भारत में अभी भी इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सुविधाएँ अपर्याप्त हैं । देश के कोने – कोने में फैले प्रत्येक समुदायों , वर्गों तथा सम्प्रदायों के लोगों की परिवार नियोजन के प्रति धरणा के अनुरूप कार्यक्रम तैयार कर उन्हें छोटे परिवार के प्रति प्रेरित करने के उपाय नहीं सुझाए गए हैं । लोगों को परिवार नियोजन की पर्याप्त जानकारी नहीं है ।