समाज मनोविज्ञान का क्षेत्र

समाज मनोविज्ञान का क्षेत्र

समाज मनोविज्ञान का क्षेत्र अति विस्तृत है । उसकी विषय – वस्तु को कई भागों में विभक्त किया जा सकता । है । समाज मनोविज्ञान के सम्पूर्ण क्षेत्र को हम पाँच भागों में विभक्त कर सकते हैं

. अन्तर्वैयक्तिक सामाजिक मनोविज्ञान प्रक्रम ( Interpersonal Social Psychology Process ) – व्यक्ति केवल दूसरों के प्रति अनुक्रियाएँ ही नहीं करता वरन् दूसरों की अनुक्रियाओं के लिए उद्दीपक का कार्य भी करता है । व्यक्तियों के बीच होने वाली अन्त : क्रिया के परिणामस्वरूप अन्तर्वैयक्तिक आकर्षण आक्रामकता व समाजोपयोगी व्यवहारों की उत्पत्ति होती है । व्यक्तियों के परस्पर अन्त : क्रिया के फलस्वरूप होने वाले व्यवहारों के स्वरूप वर्गीकरण व उनको प्रभावित करने वाले कारकों इत्यादि का अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान का महत्वपूर्ण अंग है ।

. प्रयोगात्मक सामाजिक मनोविज्ञान ( Experimental Social Psychology ) – समाज में रहने वाला मानव सामाजिक मानव कहलाता है , उसका व्यवहार किसी भी भौगोलिक क्षेत्र की जलवायु , भूमि की उर्वरता , जनसंख्या घनत्व , उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानव संसाधनों इत्यादि से प्रभावित होते हैं । इस तरह के सभी पर्यावरणीय कारकों के प्रभावों का अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान का अंग बन गया है । सामाजिक व्यवहारों का प्राकृतिक एवं मानव निर्मित पर्यावरण के प्रभावों का अध्ययन इसी क्षेत्र में आता है । शिक्षा भी एक प्रकार का सामाजिक प्रक्रम ही है और शिक्षक , शिक्षार्थी , शिक्षा के पराक्रमों से जुड़े शिक्षा सामग्री उपलब्ध कराने वाले लोग भी शिक्षा की विशेषताओं से प्रभावित होते हैं । इन सभी पक्षों का विस्तृत अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान के अन्तर्गत ही आता है ।

. समाजीकरण एवं सांस्कृतिक प्रभाव ( Socialization & Cultural Effect ) – जन्म लेने के बाद बच्चों का विकास जिस रूप में होता है उसे समाजीकरण कहते हैं । व्यक्ति के समाजीकरण से उसके समस्त सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रक्रम एवं व्यवहार प्रभावित होते हैं । समाज मनोविज्ञान में समाजीकरण के विभिन्न रूपों का एवं सांस्कृतिक भिन्नता के भिन्नताकारी प्रभावों का व्यापक रूप से अध्ययन किया जाता है । उपर्यक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक मनोविज्ञान की विषय – वस्तु अत्यन्त विस्तत है तथा यह मनोविज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा है ।

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. सामाजिक मनोविज्ञान समूह प्रक्रम ( Social Psychology Group Process ) – एक समाज में व्यक्तियों द्वारा बहुत से ऐसे व्यवहार होते हैं , जो उस समूह विशेष के व्यवहारों या विशेषताओं तथा उसमें अन्तनिर्हित क्रिया तत्वों के अन्तर्गत माने जा सकते हैं । समूह प्रभाव भी इसके अन्तर्गत आता है । सामहिक प्रभावों के अन्तर्गत मानक एवं मानक निर्माण सम्बन्धी प्रक्रमों , समरूपता , नेतृत्व आज्ञाकारिता जैसे पक्षों को रखा जा सकता है । समूह प्रक्रम के अन्तर्गत ही समूह निष्पादन जनमत , लोक संचार एवं प्रभावोत्पादकता जैसी सामाजिक समस्याओं को लेकर समाज मनोवैज्ञानिकों ने इनके विविध पक्षों का वैज्ञानिक अध्ययन किया ।

. वैयक्तिक सामाजिक मनोविज्ञान प्रक्रम ( Individuals Social Psychology Process ) समाज मनोविज्ञान के अन्तर्गत सामाजिक मनोविज्ञान इसका अध्ययन करते हैं कि किसी भी मानव के मूलभूत मनोविज्ञान प्रक्रमों को समाज व उस समाज में प्रचलित रीति – रिवाज , सामाजिक मूल्य आदि किस प्रकार प्रभावित करते हैं ? व्यक्ति सामाजिक कारकों से प्रेरित होकर अन्य व्यक्तियों सामाजिक अवसरों तथा व्यक्ति के चारों ओर घटित होने वाली घटनाओं का प्रत्यक्षीकरण करता है । व्यक्ति का यह गुण और स्वभाव होता है कि वह घटना का प्रत्यक्षीकरण करने के तुरन्त बाद उस घटना के कारण का अनुमान लगा लेता है । कार्य कारण सम्बन्ध प्रत्यक्षीकरण का अध्ययन गुणारोपण शीर्षक के अन्तर्गत किया जाता है । समाज मनोविज्ञान का एक विस्तृत भाग आत्मा प्रत्यक्षीकरण , व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण , सामाजिक संज्ञान एवं सामाजिक प्रत्यक्षीकरण के अध्ययनों पर केन्द्रित है । व्यक्ति अपने सामाजीकरण के परिणामस्वरूप अनेक प्रकार की सामाजिक अभिवृत्तियों को विकसित कर लेता है । समाज मनोविज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में अभिवृत्ति के स्वरूप , बनावट व निर्माण तथा मापन का अध्ययन करने के साथ – साथ अभिवृत्ति परिवर्तन का भी अध्ययन किया जाता है । अनेक मनोविज्ञान समाज मनोविज्ञान के विषय के अन्तर्गत सामाजिक अभिप्रेरणा तथा स्व : के विकास को भी रखते हैं ।

ऊपर चर्चित परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि प्रायः समाज मनोविज्ञान को प्राकृतिक विज्ञानों के ढरें पर वैज्ञानिक स्वरूप वाला माना गया है और यूरो – अमेरिकी परम्परा के अनुसार व्यक्ति के व्यवहार को प्रधानता दी गयी है । ऐसा होना स्वाभाविक ही था क्योंकि पाश्चात्य जगत् में पुनर्जागरण के आलोक में विज्ञान और आधुनिकता दोनों का प्रमुख वैचारिक शक्तियों के रूप में उदय हुआ । व्यक्तिवादी दृष्टि आधुनिकता की उपज थी । व्यक्तिवादी संस्कृत्ति में वैज्ञानिक ढंग से किये गये प्रदत्त संग्रह के फलस्वरूप मात्र व्यक्तिवादी दृष्टि से ही मानव व्यवहार का वस्तुवादी अध्ययन संभव था । इस परिप्रेक्ष्य में यह अकारण नहीं है कि समाज मनोविज्ञान के अधिकांश सिद्धान्त व्यक्तिकेन्द्रित होते गये और सामाजिक प्रक्रमों को व्यक्ति से उद्भूत या व्यक्ति में केन्द्रित ठहराया गया । परन्तु राजनैतिक , आर्थिक , बौद्धिक प्रभुत्व के चलते इस प्रकार के तथ्यों और सिद्धान्तों को सार्वभौमिक होने का दर्जा दिया गया । इतना ही नहीं , विज्ञान के प्रभाव में इन सिद्धान्तों को ( वैज्ञानिक होने के कारण ) देश काल से निरपेक्ष भी मान लिया गया । विज्ञान से यह भी आशा बनी थी कि व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार के अधिकाधिक पक्षों की व्याख्या हो सकेगी । परन्तु अब तक के सैद्धान्तिक विकास के इतिहास से इसकी पुष्टि नहीं हो पाती है । कोई भी सिद्धान्त केवल इसलिए अस्वीकृत नहीं हुआ है कि प्रदत्तों से उसकी पुष्टि नहीं हुई । सिद्धान्तों में जो बदलाव आया , वह वैचारिक ढाँचों में बदलाव के कारण आया और सामाजिक – आर्थिक , सांस्कृतिक और राजनैतिक परिस्थितियों तथा मानदंडों की वरीयताओं में परिवर्तन के कारण आया ।

सामाजिक व्यवहार का स्वरूप और उसे समझने का प्रयास अनेक स्तरों पर और अनेक विधियों के साथ किया जाता है । समाज मनोविज्ञान की परम्परा में अधिकांश अध्येता अपनी

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अध्ययन प्रणाली को ही नहीं , विषयवस्तु को भी व्यक्तिकेन्द्रित तथा व्यक्ति के अन्तर्गत घटित होने वाली प्रक्रियाओं के आधार पर निरूपित करने का प्रयास करते हैं । सच कहा जाय तो यही समाज मनोविज्ञान की केन्द्रीय प्रवृत्ति है । समाज या सामाजिकता केवल उसी अर्थ में स्वीकृत है जो व्यक्ति से व्युत्पत्र की जा सकती है । अपने प्रवल रूप में इस प्रकार का आग्रह व्यक्ति और समाज की सत्ता को एक दूसरे के विरोध में खड़ा करता है , द्वन्द्व का कारण बनता है और उनकी पारस्परिकता तथा अभिन्नता को अनदेखा करता है । व्यक्ति सामाजिक प्राणी केवल इस अर्थ में नहीं होता है कि वह समाज में रहना चाहता है अपितु यह मनुष्य के अस्तित्व की अनिवार्यता है ( एरिक फ्राम , 1941 )

समाज मनोविज्ञान उन पारस्परिक सम्बन्धों और प्रक्रमों ( यथा – चिंतन , भाव , व्यवहार , चेष्टा ) को समझने का प्रयास है जो व्यक्तियों तथा सामाजिक इकाइयों के संयुक्त प्रयत्न या प्रतिभागिता के फलस्वरूप विभिन्न रूप ग्रहण करते हैं । वैसे तो ये सामाजिक व्यवहार प्रत्यक्ष रूप में व्यक्ति या व्यक्तियों के कार्यों के माध्यम से पहचाने जाते हैं , परन्तु वे सदैव प्रत्यक्ष या परोक्ष पारस्परिक सम्बन्धों से अनुप्राणित रहते हैं । सामाजिक व्यवहारों को केवल सम्बन्धों में ही लक्षित किया जा सकता है । इनसे हटकर सामाजिक व्यवहार की परिकल्पना ही नहीं की जा कती । इस प्रकार सामाजिक व्यवहार की रचना व्यक्तिगत व्यवहार के विपरीत , जो कम से कम सिद्धान्ततः स्वतंत्र कहा जा सकता है , केवल सम्बन्ध , अंत : क्रिया , साहचर्य , साझेदारी , सम्पर्क , संसर्ग , संप्रेषण , सहयोग आदि प्रक्रियाओं के द्वारा ही संभव है । इस दृष्टि से सामाजिकता का केन्द्र किसी भी प्रकार व्यक्ति नहीं हो सकता । वह उसका निमित्त या घटक हो सकता है , क्योंकि सामाजिकता साझे की उपलब्धि है ।

व्यक्ति का जीवन पहले से ही विद्यमान समाज में आरम्भ होता है और संचालित होता है । ऐसी स्थिति में व्यक्ति का व्यक्ति होना अन्य व्यक्तियों पर निर्भर करता है । परिवार और समाज के सदस्य , भाषा , संप्रेषण आदि सामाजिक प्रक्रियाएँ आपस में मिलकर व्यक्ति का निर्माण करती हैं और उसे एक पहचान प्रदान करती हैं । व्यक्ति एक सामाजिक सृजन है । यह अवश्य है कि अस्तित्व में आने के बाद व्यक्ति एक स्वतंत्र इकाई का रूप ले लेता है ।

इस प्रकार यदि ध्यान से देखा जाय तो समाज मनोवैज्ञानिक अध्ययन संबंधों व रिश्तों पर केन्द्रित हैं । मानव जीवन के लिये ये सम्बंध निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं । परन्तु इन्हें समझना और इनकी उचित व्याख्या प्रस्तुत करना तथा उन व्याख्याओं को दैनिक जीवन से जोड़ना सरल कार्य नहीं है । इस प्रकार के अध्ययन का प्रमुख लक्ष्य मानव जीवन की परिस्थितियों में सुधार लाना होता है । इस दृष्टि से देखने पर समाज मनोविज्ञान के विस्तृत क्षेत्र का आभास होता है ।

समाज मनोविज्ञान को मानव अंतःक्रिया और उसके मनोवैज्ञानिक आधार का व्यवस्थित अध्ययन कहा जा सकता है ( गर्गेन एवं गर्गेन , 1981 ) । इस कार्य में अध्ययन की इकाई भूमिका निर्वाह में संलग्न मनुष्य है । विगत वर्षों में सामाजिक व्यवहार पर विभिन्न संस्कृतियों – में किये गए अध्ययन यह दर्शाते हैं कि सांस्कृतिक विभिन्नताएँ सामाजिक व्यवहार के अनेक पक्षों को प्रभावित करती हैं ।

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