प्रस्थिति तथा भूमिका

प्रस्थिति तथा भूमिका

( Status and Role )

 

 

 सामान्यतः प्रस्थिति या स्टेटस से व्यक्ति किसी की हैसियत समझने की कोशिष करता है कि किसी भी व्यक्ति की हैसियत किससे ऊची या नीची है । लेकिन जब हम समाज वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं तो प्रस्थिति किसी भी व्यक्ति का एक समय विशेष में सामाजिक व्यवस्था में जो स्थान प्राप्त होता है उसी को उस व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति कहा जाता है । उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति शिक्षक या डाक्टर है तो यह एक सामाजिक प्रस्थिति है । प्रत्येक प्रस्थिति के साथ कई कार्य जुड़े हुए होते हैं जिसे भूमिका कहते हैं । उदाहरण के तौर पर एक शिक्षक का कार्य पढ़ाना तथा परीक्षण कराना है यह एक शिक्षक की भूमिकाएं हैं । ( ASupelapbelonb ) प्रस्थिति समाजशास्त्र की एक वैज्ञानिक तथा महत्वपूर्ण अवधारणा है । यह समाज का आधार है इसके अभाव में सामाजिक व्यवस्था की कल्पना नहीं की जा सकती है । यही कारण है कि बीयरस्टीड ने कहा है कि

 

 ” समाज सामाजिक प्रस्थितियों का जाल है । ‘ इस आधार पर स्पष्ट होता है कि समाज व्यक्तियों का समूह न होकर बल्कि प्रस्थितियों की व्यवस्था है । साथ ही उन प्रस्थितियों का गतिशील रूप भूमिका है जो सामाजिक संरचना का निर्माण करती है । विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रस्थिति को विभिन्न तरीके से परिभाषित करने का प्रयास किया है । बीयरस्टीड ने लिखा है कि समाज सामाजिक प्रस्थितियों का जाल है । ‘ अनेक प्रस्थितियां व्यवस्थित रूप से मिलकर ही सम्पूर्ण समाज का निर्माण करती हैं । सामाजिक प्रस्थिति एवं भूमिका के बारे में महत्वपूर्ण विचार प्रकट करने वालों में लिण्टन , हिलर , मर्टन , पारसन्स एवं डेविस आदि समाजशास्त्री प्रमुख हैं ।

 

 प्रस्थिति का अर्थ एवं परिभाषा :

 प्रस्थिति की अवधारणा को समझने के लिए हम यहां विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रस्तुत कुछ परिभाषाओं का उल्लेख करेंगे ।

 

1 लिण्टन के अनुसार , ‘ सामाजिक व्यवस्था के अन्तगर्त किसी व्यक्ति को एक समय विशेष में जो स्थान प्राप्त होता है , उसी को उस व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति कहा जाता है ।

 

2जॉन लेवी के अनुसार , ‘ किसी सामाजिक संरचना में व्यक्ति अथवा समूह के संस्थान में पदों की सम्पूर्णता का नाम ही प्रस्थिति है । ‘

 3 बीयरस्टीड के अनुसार , ” सामान्यतः एक प्रस्थिति समाज अथवा एक समूह में एक पद है । ‘

 

 

 4 ऑगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार , प्रस्थिति की सबसे सरल परिभाषा यह है कि यह समूह में व्यक्ति के पद का प्रतिनिधित्व करती है ।

 5 इलियट एवं मैरिल के अनुसार , ‘ प्रस्थिति व्यक्ति का यह पद है कि व्यक्ति इसे किसी समूह में अपने लिंग , आय , परिवार , वर्ग , व्यवसाय , विवाह अथवा प्रयत्नों आदि के कारण प्राप्त करता है ।

6 मेकाइवर एवं पेज के अनुसार , ‘ प्रस्थिति वह सामाजिक पद है जो व्यक्तिगत गुण तथा सामाजिक सेवा से पृथक व्यक्ति के आदर , प्रतिष्ठा तथा प्रभाव की मात्रा का निर्धारण करती है ।

 

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्रस्थिति समूह को समाज में व्यक्ति के पद की सूचक है । यह पद व्यक्ति अपने गुणों एवं योग्यता के आधार पर प्राप्त कर सकता है । एक व्यक्ति की प्रस्थिति सदैव ही दूसरे व्यक्तियों की प्रस्थितियों की तुलना में ही होती है । अकेले व्यक्ति की कोई प्रस्थिति नहीं होती है । अर्थात जब हम यह कहते हैं कि अमुक व्यक्ति अध्यापक है तो इसका अर्थ यह है कि कोई उसके छात्र भी हैं ।

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 प्रस्थिति और भूमिका के आवश्यक तत्व

 

1 एक ही प्रस्थिति एवं भूमिका का निर्वाह पृथक – पृथक व्यक्तियों द्वारा अपने – अपने ढंग से किया जाता हा

2 प्रस्थिति एवं भूमिका की अवधारणा को दूसरे व्यक्तियों के संदर्भ में ही समझा जा सकता है । एक व्यक्ति की प्रस्थिति एवं भूमिका का सम्बन्ध अन्य व्यक्तियों की प्रस्थितियों एवं भूमिकाओं से होता है जो उनसे प्रभावित होते हैं ।

3 प्रत्येक समाज में एक प्रस्थिति और उससे सम्बन्धित कारकों एवं मूल्यों द्वारा होता है । संस्कृति ही यह तय करती है कि किसे कौन सी प्रस्थिति प्रदान की जायेगी और वह क्या भूमिका निभायेगा ।

 4 एक व्यक्ति एक समय में कई प्रस्थितियों को धारण करता है किन्तु वह सभी का  निर्वाह समान योग्यता एवं कुशलता के साथ नहीं कर पाता है ।

5 प्रत्येक प्रस्थिति के साथ एक विशेष मूल्य एवं प्रतिष्ठा जुड़ी होती है जो संस्कृति द्वारा निर्धारित होती है । जैसे पश्चिमी देशों में भारत की अपेक्षा स्त्री की प्रतिष्ठा ऊंची है ।

 6 प्रत्येक प्रस्थिति एवं भूमिका व्यक्ति के सम्पूर्ण सामाजिक पद का केवल एक भाग ही होती है । व्यक्ति समाज में एक साथ अनेक प्रस्थितियां प्राप्त करता है और विभिन्न अवसरों पर उनके अनुरूप ही अपनी भूमिका निभाता है ।

प्रस्थिति एवं भूमिका के आधार पर सम्पूर्ण समाज विभिन्न प्रस्थिति – समूह में बंटा होता है । इन प्रस्थिति – समूहों के आधार पर हम किसी समाज की विशेषताओं को ज्ञात कर सकते हैं ।

8 समाज में कुछ प्रस्थिति प्रदत्त होती हैं जो एक व्यक्ति को समाज स्वयं प्रदान करता है और दूसरी ओर कुछ प्रस्थितियां व्यक्ति अपनी योग्यता एवं प्रयत्नों के द्वारा अर्जित करता है ।

9 समाज में उच्च एवं निम्न प्रस्थितियों के कारण ही सामाजिक संस्तरण तथा विभेदीकरण पैदा होता है जो उदग्र Vertical ) या क्षैतिज ( Horizontal ) रूप में हो सकता है ।

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प्रस्थिति की विशेषताएं और उनके मुख्य तत्व

( Essential Elements and characteristics of Status )

 

 1 परिस्थिति को भूमिका से पृथक नहीं किया जा सकता ( Status Can not be Isolated Form Role प्रस्थिति का अविर्भाव भूमिका से होता है यदि समाज की आवश्यकताएं न हो तो भूमिकाओं सम्पन्न करने के लिए प्रास्थितियों की आवश्यकता नहीं पड़ती है । आदिवासी गाँवों में कम्प्यूटर की पहुँच नहीं है और यह इसलिए कि उन्हें लम्बे चौड़े हिसाब की जरूरत नहीं है और इसलिए इस समाज में कम्प्यूटर इंजीनियर या प्रोग्रामर की आवश्यकता नहीं होती । इसका अर्थ यह हुआ कि किसी भी प्रस्थिति की कल्पना के दो पहलुओं की तरह है ।

2 प्रस्थिति सापोक्षिक होती है ( Status is Relative ) अपने आप में किसी भी प्रस्थिति का कोई महत्व नहीं है यह हमेंशा सापेक्षिक होती है । सापेक्षिक इसलिए कि प्रस्थिति से जुड़े हुए कार्यों का सम्बन्ध समाज और उसके समूहों के

 साथ होता है । चिकित्सक की प्रस्थिति बीमारी से जुड़ी है यदि बीमार नहीं हुए तो चिकित्सक किस मतलब का , अध्यापक विद्यार्थि नहीं होते कोई भी प्रास्थिति अपने स्वयं में अर्थहीन है , उसका महत्व तभी बनता है जब उसके उपभोग हो , किसी गॉव में सितारा होटल का महत्व अप्रासंगिक है इसलिए कि गाँव के लोग ऐसी होटल में खाने – पीने की आदत नहीं है । तथ्यपूर्ण बात यह है कि कोई भी प्रस्थिति तभी महत्वपूर्ण होती है जब उससे जुड़े हुए कार्य ( भूमिका ) अन्य प्रस्थितियों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं । इसी अर्थ में प्रस्थिति की विशेषता सापेक्षिक है ।

3 प्रस्थिति समाज स्तीकरण की घोतक है ( Status Indicates Social Stratification ) यह सामान्य बात है कि जिन समाजों में श्रम विभाजन बहत सामान्य होता है उनमें प्रस्थितियाँ न्यूनतम होती है नगर जितना महानगर होगा शहर जितना आद्यौगिक और पूँजीवादी होगा प्रस्थितियाँ उतनी ही अधिक होगी यह महानगरों में ही है कि चिकित्सा के क्षेत्र में अनेकानेक विशिष्ट चिकित्सा होती है कोई चिकित्सक कान , नाक , गले का विशिष्ट चिकित्सक है कोई दिल का और कोई आँखों का या हड्डियों का , सामान्य समाज में विभिन्न प्रस्थितियों को धारण करने वाले लोग हरफन मौला होते हैं । शहरों की प्रस्थितियों विशिष्ट है कि समाज की स्तरीकरण अधिक पैना हो जाता है ।

 4 प्रस्थिति के साथ प्रतिष्ठा जुड़ी होती है ( Status has Prestige ) हम यह बराबर दोहरा रहे है कि प्रस्थिति के साथ समाज की आवश्यकताएँ जुड़े होते हैं दूसरा प्रस्थिति के साथ कार्य सम्पादन भी जुड़ा होता है इसे भूमिका कहते हैं । जिस प्रस्थिति के कार्य समाज के लिए अधिक महत्वपूर्ण शिक्षा की आवश्यकता होती है । उस प्रस्थिति को समाज ऊचा समझता है और इसके ऊंची पगार भी देता है प्रस्थिति से जुड़े हुए पगार पारितोषिक आदर सम्मान आदि प्रस्थिति का मूल्यांकन या उसकी प्रतिष्ठा है । समाज में पायलट की प्रस्थिति प्रतिष्ठापूर्ण है इसके साथ बहुत बड़ी कुसलता और जोखिम जुड़ी हुई है । लेकिन हर अर्थ में कोई प्ररिस्थिति बिना प्रतिष्ठा के नहीं होती । प्रतिष्ठा को प्रास्थिति से अलग नहीं देखा जा सकता है ।

5 प्रस्थितियाँ समाज की आवश्यकओं की परिभाषा है ( Starusis is the Result or Needs Interests of Socity ) ट्रोबियन्ड टापू में रहने वाले आदिवासी अपने नावों में बैठकर मछलियों का शिकार करने जाते हैं । मेलिनोस्की बताते हैं कि इन आदिवासियों को समुद्र में कई खतरे उठाने पड़ते हैं उन्हें डर लगा रहता है कि कभी भी समुद्र की तूफानी लहरें कहीं उनकी नाव को ही न निगल जाएँ । इस भाग से बचने के लिये नाव को जादू – टोने से बाँध दें । यहाँ समाज की आवश्यकता जादू – टोना करने वाले जादूगरों की प्रस्थिति का तैयार करना हैं ।

इसका अर्थ यह हुआ कि समाज में जितनी भी प्रस्थितियों है वे सब समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हैं ।

 

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 प्रस्थिति या पद के प्रकार

( Kinds of Status )

 

 1.प्रदत्त प्रस्थिति या पद ( Ascribed Status ) – जो प्रस्थितियों व्यक्ति को अपने समाज से अपने आप बिना प्रयास के ही प्राप्त हो जाती है उन्हें प्रदत्त प्रस्थितियों कहते हैं और भी स्पष्ट रूप में एक विशेष परिवार में जन्म लेने के कारण या परम्परागत रूप में मान्य होने के कारण जब व्यक्ति को कई विशिष्ट प्रस्थिति प्राप्त हो जाती है तो उसे प्रदत्त प्रस्थिति की संज्ञा दी जाती है । उदाहरणार्थ जातीय संरचना में ब्राह्मणों को परम्परागत दृष्टिकोण से उच्च प्रस्थिति या शुद्रों को निम्न प्रस्थिति केवल इस कारण प्राप्त हो जाती है । कि उनका जन्म कुछ विशेष परिवारों में हुआ होता है । इसी प्रकार पिता या माता को जो प्रस्थिति प्राप्त होती है वह परम्परा द्वारा मान्य प्रस्थिति होती है चूंकि एक व्यक्ति मों या पिता है । इस कारण समाज उसे एक विशेष प्रस्थिति प्रदान करता है यही प्रस्थिति के नाम से पुकारी जाती है । ये प्रदत्त प्रस्थितियाँ जन्म के बाद अनेक प्रस्थितियों से होकर गुजरती हैं उदाहरणार्थ जन्म के बाद बच्चे की प्रस्थिति एक शिशु की होती है फिर बालक या बालिका को फिर युवक या युवती की उसके पश्चात विवाह होने पर पति या पत्नी की तत्पश्चात पिता या माता की और अन्त में दादा या दादी इत्यादि आयु – भेद , लिंग – भेद , जाति – भेद , आदि प्रदत्त प्रस्थितियों के प्रमुख आधार है इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि प्रत्येक समाज द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रस्थितियों सार्वभौम नियमों के अनुसार ही होती हैं यद्यपि उनका विकास विभिन्न समाजों की अपनी निजी प्रस्थितियों के अनुसार अलग ढंग से ही होता है ।

 2.अर्जित प्रस्थिति या पद ( Achieved status ) – जिन पदों या प्रस्थितियों का व्यक्ति अपने वैयक्तित्व प्रयासों से प्राप्त करता है उन्हें अर्जित प्रस्थिति कहते हैं । वास्तव में प्रत्येक समाज के व्यक्तिगत क्षेत्र में सफलताएं तथा असफलताएं मिला करती हैं सफल व्यक्ति समाज में उच्च पस्थिति प्राप्त कर लेते हैं जबकि असफल व्यक्ति निम्न प्रस्थिति में ही पड़े रह जाते हैं इस प्रकार व्यक्ति की योग्यता तथा प्रयत्नों पर भी उसकी समाजिक प्रस्थिति निर्भर करती है । उदाहरणार्थ आज एक निरक्षर व्यक्ति यदि भविष्य में अपने व्यक्तिगत प्रयासों से विद्वान बनकर समाज में ऊंची प्रस्थिति प्राप्त कर लेता है तो यह उसकी अर्जित प्रस्थिति ही होगी इस सम्बन्ध में एक बार और यह है कि इस प्रकार की अर्जित प्रस्थितियों को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक नहीं कि व्यक्ति को सामाजिक सुविधाएं अवश्य प्राप्त हो समाज में सदैव ही कुछ व्यक्ति इतने प्रबुद्ध उन्नतिशील कुशल तथा महत्वकाक्षी होते हैं कि किसी प्रकार की सुविधा न मिलने पर भी वे सामाजिक नेता जैसी महत्वपूर्ण प्रस्थितियों आर्जित कर लेते हैं इस लिए कहा जाता है कि प्रत्येक युग में ऐसे व्यक्ति होते हैं जो इतिहास का निर्माण करते हैं तथा सम्पूर्ण सामाजिक संरचना को इस प्रकार परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं कि समाज का स्वरूप बदल जाता है । और स्वयं उन्हें उच्चतम सामाजिक प्रस्थिति प्राप्त हो जाती है । हिटलर , मुसोलिनी , गाँधी , सभाष . जवाहरलाल , लाल बहादुर आदि का जीवन इसी बात का साक्षी है ।

 

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