मोस्का रोबर्ट मिटचेल्स
2023 NEW SOCIOLOGY – नया समाजशास्त्र
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मोस्का ने परेटो के अभिजन सिद्वान्त (जो मुख्यतः सामाजिक मनोवैज्ञानिक है) को एक राजनीतिक शास्त्री की दृष्टि से और अधिक विकसित करने का प्रयास किया तथा शासक वर्ग को और अधिक स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है इन्होंने अभिजन और आमजन में विधिवत् भेद करके राजनीति के एक नवीन विज्ञान की रचना करने का प्रयास किया है।
मोस्का के अनुसार सभी प्रकार के राजनीतिक संगठनों अथवा शासन में एक तत्व ऐसा है जिसे हम विहंगम दृष्टि डालने पर भी देख सकते हैं। यह तत्व है प्रत्येक समाज का दो वर्गो में विभाजन-प्रथम, शासक वर्ग, अर्थात जो शासन करता है तथा द्वितीय, शासित वर्ग अर्थात जिस पर शासन किया जाता है।
मोस्का के अनुसार, अभिजन (जिसे वह शासक वर्ग कहते है) तथा आम-जन में निम्नांकित तीन प्रमुख भेद पाये जाते हैं –
- शासक वर्ग के लोगों की संख्या कम होती है अर्थात वह अल्पसख्ंयक हैं, जबकि शासित वर्ग बहुसंख्यक है।ं
- सभी राजनीतिक कार्यों का निष्पादन शासक वर्ग द्वारा होता है न कि शासित वर्ग द्वारा, तथा
- शासक वर्ग के हाथों में ही सारी सत्ता केन्द्रित होती है एवं यही वर्ग सत्ता के लाभों का रस लेता है, जबकि इसके विपरीत शासित वर्ग शासक वर्ग द्वारा निर्देशित और नियन्त्रित होता है।
मोस्का ने शासक वर्ग तथा आम जन में भेद करने के अतिरिक्त यह बताने का भी प्रयास किया है कि शासक वर्ग के पास शक्ति कहाँ से आती है अर्थात् यह वर्ग जन समूह पर शासन कैसे करता है। शासक वर्ग की शक्ति का प्रमुख स्रोत इसका संगठित होना तथा सामथ्र्य की दृष्टि से अन्य लोगांे से श्रेष्ठ होना है। शासक वर्ग इसलिए संगठित है क्योंकि वह अल्पसंख्यक है और साथ ही श्रेष्ठ भी है। मोस्का के शब्दों में अल्पसंख्यक शासक वर्ग के सदस्यों में कोई न कोई गुण ऐसा अवश्य होता है जो उनके समाज में बहुत प्रतिष्ठित अथवा बहुत प्रभावशाली होता है, भले ही वह गुण यथार्थ हो अथवा केवल दिखावा मात्र।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि मोस्का ने शासक वर्ग के निम्नांकित लक्षणों को महत्वपूर्ण बताया है।
- शासक वर्ग में उन व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो शासन करते हंै।
2ण्शासक वर्ग अल्पसंख्यक होता है।
ऽ शासक वर्ग शक्ति से प्राप्त होने वाले लाभों का आनन्द लेता है और शासित वर्ग को इससे वंचित रखता है।
ऽ शासक वर्ग समाज के महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली समूहों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है।
ऽ शासक वर्ग नवीन मध्य वर्ग द्वारा समाज से घनिष्ठता पूर्वक जुड़ा होता है।
ऽ शासक वर्ग संगठित होता है।
ऽ शासक वर्ग सभी राजनीतिक कार्यों का निष्पादन करता है।
मोस्का के अभिजन सिद्धान्त में एक नवीन बात यह है कि इन्होंने प्रबन्धकों, सफेदपोश कर्मचारियों, वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों, विद्वानों एवं बुद्धिजीवियों को नवीन मध्य वर्ग मंे रखा है तथा उनके अनुसार इस वर्ग के द्वारा ही अभिजन वर्ग आम जन समूह से जुड़ा होता है। किसी राजनीतिक संगठन का स्थायित्व इसी वर्ग के नैतिक बौद्धिक या क्रियात्मक स्तर पर निर्भर करता है।
मोस्का ने भी पैरेटो के समान संभ्रांतजनों के परिचालन की व्याख्या प्रस्तुत की है जिसका आधार मनोवैज्ञानिक न होकर सामाजिक है। इनके शब्दोें में, यदि समाज में सम्पत्ति का नवीन स्रोत उभर आता है अथवा ज्ञान का व्यावहारिक महत्व बढ़ जाता है, किसी पुराने धर्म का विनाश हो जाता है और नये धर्म का विकास होता है अथवा यदि समाज में कोई नवीन विचारधारा फैल जाती है, तब उसके साथ ही शासक वर्ग में दूरगामी असामंजस्य पैदा हो जाता है निम्न स्तर के अन्तर्गत
एक निर्देशक अल्पसंख्यक वर्ग विकसित हो जाता है जो शासक वर्ग के साथ वैध शासन की सत्ता सभ्ं शालने के लिए संघर्ष करता है। अतः मोस्का ने भी पैरेटो के समान संभ्रातजनों के परिचालन की व्याख्या निम्नतम स्तर से आये अभिजनों तथा स्वंय अभिजनों में परस्पर संघर्ष द्वारा की है।
मोस्का द्वारा मनोवैज्ञानिक लक्षणों को महत्व न देने का कारण उनकी यही मान्यता थी कि व्यक्ति-परक गुणों की उत्पत्ति सामाजिक गुणों के आधार पर होती है।
मोस्का के विचार यद्यपि कार्ल माक्र्स के विचारों से काफी सीमा तक मिलते-जुलते हैं, फिर भी इन्होंने माक्र्स की भाँति इतिहास की व्याख्या केवल आर्थिक आधार पर न देकर सामाजिक परिवर्तन में नैतिक तथा धार्मिक प्रभावों पर भी बल दिया है। बाॅटोमोर ने मोस्का के सम्भ्रांतजन के सिद्धान्त को पैरेटो के सिद्धान्त की अपेक्षा अधिक तार्किक बताया है यद्यपि इससे भी समूहों के संचार और सम्भ्रातंजनों के उत्थान एवं पतन में पाये जाने वाले सम्बन्धों का कोई पता नहीं चलता है।
पैरेटो प्रथम विद्वान हैं जिन्होंने अभिजन एंव आमजन मंे भेद करने का प्रयास किया है। इनके अनुसार अभिजन वर्ग में उन सभी सफल व्यक्तियों की गणना की जा सकती है जो प्रत्येक मानवीय
गतिविधि और समाज के प्रत्येक स्तर पर उचतम शिखरों तक पहुँच जाते है।ं
वकीला,ें
वैज्ञानिकों
तथा यहाँ तक कि चोरों व वैश्याओं के भी अपने-अपने अभिजन होते हैं। परेटो के अनुसार, प्रत्येक समाज को दो वर्गो में विभाजित किया जा सकता है –
रोबर्ट मिटचेल्स
राॅबर्ट मिशेल्स ने अपनी पुस्तक ‘पाॅलिटिकल पार्टीज : सोसियोलाॅजिकल स्टडी आॅफ द ओलिगार्किकल आॅफ माॅर्डन डेमोक्रेसी’ (1915) में अपना सिद्धान्त प्रस्तुत किया है। मिशेल्स का अधिकांश विश्लेषण अब भी मान्य है उनका कार्य अभी भी अल्पतंत्र के शोध के क्षेत्र में संदर्भ बिन्दु है। मिशेल्स ने अल्पतंत्र का लौह नियम प्रतिपादित किया अर्थात प्रत्येक दीर्घ समूह एक अल्पतंन्त्र
द्वारा संचालित होता है
लम्बे समय से समाजशास्त्री इस तथ्य से परिचित हैं कि अधिकांश वृहत ऐǔिछक संगठनों में, चाहे कैसा भी उनका औपचारिक ढाँचा अथवा विचारधारा हो, बहुत थोड़े से व्यक्ति (अल्पतंत्र) अपने
को सत्ता में जमा लेते हैं और लम्बे समय तक वहीं बने रहते है।ं अधिक सामान्य रूप से, यह
अल्पतन्त्रीय शासन की प्रवृत्ति उन सभी वृहत् संगठनों में पायी जाती है जिनमें कि अधिकांश सहयोगियों के लिए अपेक्षाकृत निष्क्रिय रहना सम्भव हो। इस प्रकार अल्पतंत्र ‘सेवा’ संगठनों जैस रोटरी, अमरीकन लीजियाॅन व रेडक्राॅस में ही नहीं पाया जाता वरन् यह श्रमिक संघों में भी एक प्रकार से सर्वव्यापी है, जो कि सदैव ऐǔिछक संगठन नहीं होते।
‘अल्पतंत्र’ मोटे अर्थो मंे यह हो सकता है कि शीर्ष नेता सदैव ही संगठन की कुल सदस्यता की अपेक्षाकृत एक छोटी सी श्रेणी में से आती है। अल्पतंत्र में कठिन निर्णयों वाली संश्लिष्ट समस्याओं वाले वृहत संगठनों में प्रशिक्षित तथा अनुभवी सदस्यों को ही सत्ता सौंपने की प्रवृत्ति पाई जाती है। अल्पतंत्र का यह भी अर्थ हो सकता है कि कुछ व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह ही सत्ता में सदैव बना रहता है। यद्यपि नेतृत्व मेें जो व्यक्ति है वह बदल जाते हैं फिर भी वह छोटी मण्डली नये नेताओं को उन नियमों के आधार पर चुनती है जो कुछ अंशांे तक संगठन के उद्देश्यांे
की अवहेलना करते हैं और उन योग्य व्यक्तियों की आकांक्षाओं को कुंठित कर देते हैं जो कि उन उद्देश्यों के प्रति अधिक निष्ठावान हो सकते थे। अल्प तन्त्र के विश्लेषक अंतिम दो अर्थो में ही
रूचि रखते हैं।
जिन संगठनांे की स्वीकृत विचार धारा ही खुले रूप में प्रजातंत्र विरोधी हो, जैसे कि फाशसिस्ट दल या जिन संगठनों जैसे कि सम्यवादी दल, में ‘केन्द्रीयता’ प्रजातंशत्रिक ढांचे का एक अपूर्ण स्परूप हो, उनमें अल्पतंत्र को समझने में कोई दिक्कत नहीं होती। किन्तु अल्पतंत्र समाजवादी दलांे में भी पाया जाता है, जो कि औपचारिक दृष्टि से और यथार्थ में, अन्य दलों की अपेक्षा, जिनके
विषय में हम जानते है,ं अधिक प्रजातंशत्रिक है। समाजवादी दलों में चोटी के नेताओं का अधिक
समय तक बने रहना ध्यान देने योग्य बात ळें
सी0 राइट मिल्स
सी0 राइट मिल्स ने शासक वर्ग सम्बन्धी अनेक कठिनाइयों का समाधान अपनी पुस्तक ‘द पाॅवर एलीट (1939)’ में किया है। मिल्स जहाँ एक तरफ पैरेटो तथा मोस्का से प्रभावित थे वहीं दूसरी तरफ माक्र्स का भी उन पर प्रभाव कुछ कम न था। मिल्स ने ‘शासक वर्ग’ की अवधारणा जो कि एक बोझिल शब्द है, का प्रयोग न करके ‘शाक्तिशाली अभिजन वर्ग’ संप्रत्यय का प्रयोग किया है। वर्ग एक आर्थिक रूप से परिभाषित शब्द है। शासक वर्ग के संप्रत्यय से
यह आभास होता है कि एक आर्थिक वर्ग राजनीतिक दृष्टि से शासन कर रहा है जो सदैव ठीक नहीं उतरता है। साथ ही शासक वर्ग सैनिक अधिकारियों को सम्मिलित नहीं करता जबकि अगर अमरीका की स्थिति को देखा जाये तो आर्थिक निर्णायकवाद की व्याख्या राजनीतिक निर्णायकवाद तथा सैनिक निर्णायकवाद के आधार पर की जा सकती है।
मिल्स ने शाक्तिशाली अभिजन की परिभाषा शक्ति साधनों, अर्थात आदेश देने वाले पदों पर आसीन व्यक्तियों के रूप में की है इनके शब्दों में, शाक्तिशाली अभिजन की रचना उन व्यक्तियों के
द्वारा होती है जो अपने पदों के कारण सामान्य पुरूषों एवं स्त्रियों के सामान्य पर्यावरण से ऊपर उठ जाते है तथा ऐसे पदों पर आसीन हैं जो प्रमुख परिणामांे से सम्बन्धित निर्णय ले सकते हैं। शाक्तिशाली अभिजन वास्तव में निर्णय लेते हैं या नहीं, यह इतना महत्वपूर्ण प्रश्न नहीं जितना कि
यह तथ्य कि वे महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त हैं। वे आधुनिक समाज में बड़े संगठनों को भी नियंत्रित
करते हैं तथा सैनिक प्रस्थान के लिए दिशा प्रदान करते हैं। सामाजिक संरचना में भी शाक्तिशाली सम्भ्रांतजनों का काफी महत्वपूर्ण तथा प्रभावशाली स्थान होता है।
मिल्स ने भी मोस्का के समान शक्तिशाली अभिजनों को पृथक शासकों के रूप में स्वीकार नहीं किया है अपितु इन्हें मध्य स्तर के राजनीतिज्ञों द्वारा जन समूह से सम्बन्धित बताया है। इनके शब्दों में ‘शक्तिशाली’ अभिजन पूर्णतः पृथक शासक नहीं हैं। सलाहकार, प्रवक्ता तथा नीति निर्माणकर्ता उनके ऊच विचारों तथा निर्णयों के आधार है।ं अभिजनों के नीचे मध्य स्तर के व्यवसायिक राजनीतिज्ञ हैं। जिनमें कांगे्रस प्रभाव समूहों, कस्बों, नगर अथवा क्षेत्र के उǔच वर्ग के व्यक्तियों को सम्मिलित किया जा सकता है।
मिल्स ने अमरीकी समाज में पाये जाने वाले तीन प्रकार के शक्तिशाली अभिजनों का उल्लेख किया है:
कंपनी अध्यक्ष
राजनीतिक नेता
सेनापति
इन तीनों को एक श्रेणी में रखने का प्रमुख कारण यह है कि तीनो ही उच वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं और शासक वर्ग का निर्माण करते हैं। इनमें एकीकरण का आधार एक समान सामाजिक पृष्ठभूमि, व्यक्तिगत एवं पारिवारिक सम्बन्ध तथा तीनों में सामान्य परिचालन हैं मिल्स ने अमरीकी समाज को जन समाज की संज्ञा दी है क्योंकि इसमंे शक्तिशाली संभ्रांतजन जन समूह को खुशामद, धोखा धड़ी और मनोरंजन के द्वारा खामोश रखता है। यद्यपि राजनीतिक निर्णय लेने के
लिए अनेक छोटे एवं स्वायत्त समूह पाये जाते है,ं फिर भी समस्त महत्वपूर्ण मुद्दों पर अन्तिम रूप
से निर्णय लेने का अधिकार शक्तिशाली अभिजनों के पास ही है। मिल्स के अनुसार शक्तिशाली अभिजन अपने निर्णयों के लिए जनता के समक्ष उत्तरदायी न होने के कारण तथा सम्पत्ति संग्रहण को प्रमुख मूल्य मान लेनेे के कारण भ्रष्ट हो जाते हैं। इनके अनुसार शक्तिशाली अभिजन का सिद्धान्त इतिहास का सिद्धान्त नहीं है क्योंकि राष्ट्रीय महत्व एवं दूरगामी परिणामों वाले मामलों के बारे में निर्णय लेने के बावजूद शक्तिशाली अभिजन इतिहास के निर्माता नहीं कहे जा सकते।
बौद्धिकों और विचारधाराओं की महत्वपूर्ण भूमिका
किसी भी समाज की राजनीति में बौद्धिकों और विचारधाराओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बौद्धिक राजनीतिक व्यवस्थाओं का मूल्यांकन करते हैं, नवीन विचारधाराओं को जन्म देते है,ं कानून तथा समाज मंे असमानता, राजा की स्वेछाचारिता एवं दैवी अधिकारांे पर विचार व्यक्त करते हैं और तर्क की कसौटी पर परम्परागत संस्थाओं का अनौचित्य सिद्ध करते हैं। बौद्धिक नवीन
आन्दोलनों को जन्म देते है,ं क्रान्तियों एवं राजनैतिक परिवर्तन की पृष्ठभूमि तैयार करते है।ं बौद्धिकों की राजनैतिक भूमिका ‘फ्रांस की क्रांन्ति (1789ई0)’ में आदर्श उदाहरण के रूप में उभर कर सामने आयी। क्रांति के सन्दर्भ में नेपोलियन बोनापार्ट का कथन है कि यदि रूसो न हुआ होता तो फ्रांस की क्रांति न हुई होती। लुई सोलहवां अपने को बचा सकता था यदि उसने लेखन को नियंत्रित किया होता। इस कथन से रूसो और उसके समकालीन बौद्धिकों वाॅल्टेयर, माॅन्टेसक्यू दिदरो, कांडोर्सेट तथा क्वेटलेट आदि का क्रान्ति पर स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है।
विचारकों ने न केवल प्राचीन व्यवस्था को तोड़फोड़ कर नष्ट करने का संकेत दिया, वरन् उस पुरातन व्यवस्था के स्थान पर नवयुग के निर्माण का संदेश दिया। ये विचारक सामाजिक जीवन की दुर्बलताओं पर प्रकाश डालकर तथा उनकी कड़ी आलोचना करके जनता के रोष तथा उनकी आकांक्षाओं को व्यक्त कर रहे थे। क्रान्ति के समय इन विचारकों की प्रमुख विचारधाराओं के अनुरूप ही फ्रांस को निर्मित करने का प्रयास किया गया तथा क्रान्ति के प्रमुख नेतागण इन विचारकों की विचारधाराओं के ऋणी थे। इन लेखकों के साहित्य की विशेषताएं कटु आलोचनाएं और निन्दा थी और उसमें भविष्य को अधिक सुन्दर और सुखी बनाने के लिए विलक्षण सुझाव भरे पड़े थे वास्तव मंे, वे महान् क्रान्तियाँ थी जिनका प्रभाव पहले फ्रांस में और फिर समस्त यूरोप में फैल गया। विचारों के इस व्यापक आन्दोलन में प्रचलित दोषों तथा उनके निवारण से सम्बन्धित इस निरन्तर और गम्भीर वाद-विवाद ने आने वाली उन महान घटनाओं का मार्ग प्रशस्त किया जो फ्रांस तथा समस्त
यूरोप के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुईं।
विचारकों में सर्वप्रथम माॅन्टेस्क्यू का नाम उल्लेखनीय है। माॅन्टेस्क्यू ने राजा के दैवी सिद्धान्त को गलत बताया तथा उसकी स्वेǔछा-चारिता का विरोध किया। उसने सांविधानिक राजतंत्र स्थापित करने का सुझाव रखा। उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द स्प्रिट आॅफ लाॅ’ में बताया कि राज्य द्वारा सम्पादित तीनों शक्तियों कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्याय-पालिका एक ही व्यक्ति द्वारा
संचालित होने से शासक परम स्वेछाचारी हो जाता है। अतः व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए इन तीनों शक्तियों का पृथक-पृथक रहना आवश्यक है। वाॅल्टेयर ने धार्मिक व्यवस्था और चर्च को अपने प्रहार का शिकार बनाया। उसने जनता को बताया कि उन्हें वही बातें ठीक माननी चाहिए जो उनके विवाद और विवेचना की कसौटी पर खरी उतरें। विचार के द्वारा ही किसी संस्था के गुण दोषों को माना जा सकता है तथा अन्धविश्वासों को दूर किया जा सकता है।
रूसो
रूसो एक नवीन कार्यक्रम लेकर जनता के समक्ष उपस्थिती हुआ। उसने अपनी पुस्तक ‘सोशल काॅन्टैªक्ट’ के माध्यम से उसने बताया कि राजा का पद कोई दैवी वस्तु नहीं था। रूसो ने मानव के अधिकारों की घोषणा की और स्वतंत्रता तथा समानता को मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार बताया जिनकी प्राप्ति एक प्रजा- तान्त्रिक व्यवस्था मेें हो सकती है। अतः राजतंत्र के स्थान पर प्रजातंत्र की स्थापना होनी चाहिए। उसके सुप्रसिद्ध नारे ‘प्राकृतिक दशा में लौटो’ ने फ्रांस की जनता को विशेष रूप से आकर्षित किया।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि बौद्धिक परिवर्तन क्रान्ति और सुधारों के लिए आधार तैयार करते हैं। विचारकों का प्रभाव क्रान्ति और परिवर्तन के प्रवाह पर पड़ता है। क्रान्ति और परिवर्तन के नेता अपने कृत्यों को उचित बताने के लिए बौद्धिकों का हवाला देते हैं। उनकी यही राजनैतिक भूमिका उल्लेखनीय है।