History Basics NCERT Important Points
प्राचीन भारतीय इतिहास अध्ययन के मुख्य रूप से तीन स्रोत हैं— ( 1 ) पुरातात्विक स्रोत ( Archaeological Sources ) ( 2 ) साहित्यिक स्रोत ( Litrary Sources ) एवं ( 3 ) विदेशियों के यात्रा – वृतांत ( Journey accounts of Foreigners ) ।
पुरातात्विक स्रोतों में अभिलेख , सिक्के , चित्र – कला , मूर्तियाँ स्मारक तथा भवन हैं । जीवाश्मों ( Fossils ) की प्राचीनता का निर्धारण रेडियो कार्बन ( C14 ) पद्धति से होता है ।
C ‘ की अर्द्ध – आयु ( Half – Life ) 5568 वर्ष होती है । निर्जीव वस्तुओं के अवशेषों की प्राचीनता यूरेनियम डेटिंग से ज्ञात की जाती है ।
सिक्कों का अध्ययन न्यूमिजमेटिक्स ( Numismetics ) कहलाता है शिलालेखों से सम्बन्धित अध्ययन एपिग्राफी ( Epigraphy ) के अन्तर्गत किया जाता है अभिलेखों के अध्ययन को पैलियोग्राफी ( Paleography ) कहा जाता है ।
भारत में ऐतिहासिक स्थलों की खुदाई का कार्य सर्वप्रथम जॉन मार्शल ने 1901 ई ० में आरंभ किया । भारत में प्राचीनतम अभिलेख जिन्हें पढ़ा गया है , मौर्य शासक अशोक के शासनकाल के मिलते हैं अशोक के अधिकांश अभिलेखों की लिपि ब्राह्मी है ।
ब्राह्मी लिपि को पढ़ने में सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप को 1837 ई . में सफलता मिली । अशोक का अरामाइक लिपि में अभिलेख लमगान ( अफगानिस्तान ) से प्राप्त हुआ है । अशोक के खरोष्ठी लिपि में अभिलेख मनसेहरा एवं शहबाजगढ़ी से प्राप्त हुए हैं ।
रामायण की रचना संस्कृत भाषा में की गई है । रामायण से इक्ष्वाकु कुल के सूर्यवंशीय शासक दशरथ तथा उनके वंश का ऐतिहासिक विवरण प्राप्त होता है ।
रामायण में मूल रूप से 24000 श्लोक थे जो कि दूसरी शताब्दी तक 12000 रह गये । रामायण से हमें बुद्ध ( तथागत ) , यूनानी , शक तथा सीथियनों के विषय में ऐतिहासिक विवरण प्राप्त होता है ।
महाभारत विश्व का सबसे विस्तृत महाकाव्य है , इसकी रचना सम्भवत : ई ० पू ० 400 से 400 ई ० के बीच महर्षि व्यास के द्वारा हुई ।
महाभारत में आरम्भिक रचना में 8800 श्लोक थे जो बाद में बढ़कर 2400 ) हो गये तथा वर्तमान में इसे । लाख श्लोकों तक बढ़ाया जा चुका है ।
महाभारत में कौरवों पर पांडवों की विजय का इतिहास होने के कारण महाभारत को जय संहिता तथा गुप्तकाल में शतसहस्त्री संहिता कहा जाता था । महाभारत में यूनानियों , रोमनों , शक , यवन , पहलव आदि के शासन सम्बन्धी जानकारी मिलती है ।
दक्षिण भारत के प्राचीन इतिहास की जानकारी का प्रमुख साधन संगम साहित्य है । संगम साहित्य का संभावित रचनाकाल 250 ई . से 100 ई ० तक माना जाता है ।
‘ संगम ‘ का अर्थ कवियों का एक संघ अथवा ‘ मण्डल ‘ है , जिन्हें राजकीय संरक्षण प्राप्त रहने के कारण विशाल साहित्य की रचना हुई है ।
संगम 9990 वर्ष चले तथा लगभग 8598 कवियों ने अपना योगदान . न में . दिया । . . तमाम संगम साहित्य 9 संग्रह – ग्रंथों में संकलित है तथा इनमें अब मात्र 2289 रचनाएँ बची हुई हैं । इरेयनार अगप्पोरूल की 8 वीं शताब्दी की रचनाओं से ज्ञात होता है कि 197 पांड्य शासकों ने उपर्युक्त संगमों को संरक्षण प्रदान किया ।
संगम साहित्य तमिल भाषा में रचित है , ‘ तमिल रामायण ‘ की रचना कंबन ने की ।
संगम ग्रन्थों के अलावा इस काल में कुछ अन्य तमिल ग्रंथों की रचना हुई – तोल्कापियम ( तमिल व्याकरण ) एवं तिरूकुरल ( दार्शनिक विचार और सूक्तियाँ ) महत्वपूर्ण हैं ।
प्रथम संगम का आयोजन मदुरा नामक स्थान पर अगस्त्य ऋषि की अध्यक्षता में हुआ ।
द्वितीय संगम का आयोजन कपाटपुरम में अगस्त्य एवं तोल्कापियर की अध्यक्षता में हुआ ।
तीसरे संगम का आयोजन उत्तरी मदुरा में नकीरर की अध्यक्षता में हुआ ।
बौद्ध साहित्य से भारतीय इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है , ये जातक , त्रिपिटक , पालि ग्रंथ एवं संस्कृत ग्रन्थों के रूप में प्राप्त होते हैं ।
जातक 550 कथाओं का एक संकलन है जिसे 12 भागों में संकलित किया गया है बुद्ध के पूर्व जन्मों का विवरण प्राप्त होता है ।
जातक कथाओं से मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी भी प्राप्त होती है । बौद्ध साहित्य में सर्वाधिक प्राचीन एवं महत्वपूर्ण ‘ त्रिपिटक ‘ है , इनकी रचना गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद हुई । त्रिपिटकों का संकलन प्राकृत भाषा में किया गया है ।
त्रिपिटकों की संख्या 3 है – सुत्तपिटक , अभिधम्म पिटक एवं विनयपिटक ।
त्रिपिटक को बौद्ध धर्म का बाइबिल कहा जाता है ।
चतुर्थ बौद्ध संगीति में त्रिपिटकों की टीका का संकलन महाविभाष सूत्र में किया गया ।
‘ वसुमित्र ‘ द्वारा रचित महाविभाष सूत्र बौद्ध धर्म का विश्वकोष कहा जाता है ।
बौद्ध साहित्य अंगुत्तर निकाय ई ० पू ० छठी शताब्दी में 16 महजन पदों की जानकारी देता है ।
बौद्ध साहित्य सुत्तपिटक से बुद्ध के धार्मिक विचारों एवं उपदेशों की जानकारी मिलती है ।
बौद्ध साहित्य विनय पिटक से मठ – निवासियों के अनुशासन संबंधी जानकारी मिलती है ।
बौद्ध साहित्य अभिधम्मपिटक से बौद्ध दर्शन की व्याख्या प्राप्त होती है ।
ऋग्वेद 10 मण्डल , 8 अष्टक , एवं 108 सूक्त ( 11 बालखिल्य सुक्त सहित ) 1028 ऋचाओं ( श्लोक ) में संग्रहित हैं ।
ऋग्वेद का लोकप्रिय मंत्र गायत्री मंत्र है ।
ऋग्वेद का दूसरा एवं 7 वाँ मण्डल प्राचीनतम एवं पहला तथा 10 वाँ मण्डल नवीनतम है । जिसे सबसे अन्त में जोड़ा गया है । ऋग्वेद के 9 वें मण्डल से आर्यों के देवता सोम तथा 10 वें मण्डल में शूद्र शब्द की जानकारी प्राप्त होती है ।
ऋग्वेद से आर्यों के पाँच जनों की जानकारी प्राप्त होती है ये पाँच जन थे – यदु , द्रहु , तुर्वस , द्रद्य् , पुरू । ऋग्वेद 7 वें मंडल से प्रसिद्ध दशराज युद्ध ( Battle of 10 kings ) के विषय में जानकारी मिलती है ।
ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रंथ – ऐतरेय एवं कौषीतिकी हैं । गद्यरूप में वेदों की व्याख्या ब्राह्मण ग्रन्थ कहलाती है ।
सामवेद को ‘ गीतों का संग्रह ‘ कहते हैं , साम का अर्थ ‘ गान ‘ होता है । सामवेद में कुल 1549 ऋचाएँ हैं इनमें 75 को छोड़कर सभी ऋग्वेद से लिये गये हैं ।
सामवेद का स्थान भारतीय संगीत के इतिहास में महत्वपूर्ण है , इसे भारतीय संगीत का जनक माना जाता है ।
सामवेद से हमें आर्यों के मत्वपूर्ण देवताओं सूर्य , इन्द्र एवं सोम के विषय में जानकारी प्राप्त होती है ।
यजुर्वेद में यज्ञ सम्बन्धी नियमों का उल्लेख पाया जाता है – यह कर्मकाण्ड प्रधान है ।
यजुर्वेद के दो भाग हैं – कृष्ण यजुर्वेद एवं शुक्ल यजुर्वेद । ण अथर्ववेद 20 मण्डल , 731 सुक्त , एवं 6000 मंत्रों में संकलित है ।
अथर्ववेद के दूसरे ‘ मंत्रद्रष्टा ( वाचक ) ‘ महर्षि अंगिरस थे । इस वेद से हमें ब्रह्मज्ञान , औषधि – प्रयोग , रोग – निवारण , जंत्र – तंत्र एवं टोना – टोटका जैसे विषय का ज्ञान होता है । अथर्ववेद में कर्मकांडों की आलोचना की गई है ।
आरण्यकों की रचना ब्राह्मण ग्रंथों के बाद हुई । आरण्यक का शाब्दिक अर्थ जंगल ( अरण्य ) होता है । इन ग्रन्थों का पठन – पाठन वानप्रस्थी , मुनि तथा वनवासियों द्वारा जंगल में किया जाता उपनिषदों में दार्शनिक प्रश्नों , ईश्वर , आत्मा , इहलोक तथा परलोक की समस्याओं पर विश्लेषण किया गया है ।
भारत का प्रसिद्ध आदर्श राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते है जो कि मुंडकोपनिषद् से लिया गया है ।
उपनिषदों की संख्या 108 है ।
उपनिषदों का रचनाकाल सम्भवत : 600 ई.पू. है , जो कि उत्तरवैदिक काल ( Later Vedic Period ) के आरम्भ का काल माना जाता है । उपनिषदों में वैदिक यज्ञों एवं आडंबरों के विरुद्ध प्रतिक्रिया व्यक्त की गई हैं । वेदांग ( Vedangas ) वेदांगों की रचना वैदिक काल के अन्त में वेदों को ठीक प्रकार से समझने के लिए की गई ।
. भारत में पहली बार हिन्द – यूनानियों ने लेख – युक्त ‘ स्वर्ण सिक्के ‘ जारी किए ।
जिन सिक्कों पर लेख नहीं होने सिर्फ चिन्ह होते हैं , उन्हें आहत सिक्के ( Punch – Marked coins ) कहा जाता है ।
भारत में शक , बैक्ट्रियन , कुषाण तथा इंडो – पार्थियन आदि राजवंशों के इतिहास की जानकारी के एकमात्र ग्रोत सिक्के हैं ।
शुद्धता के लिहाज से सर्वाधिक शुद्ध स्वर्ण सिक्कं कुषाणों द्वारा जारी किये गये । संख्या की दृष्टि से सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएँ गुप्त शासकों ने जारी किये ।
समुद्रगुप्त के सिक्कों पर अश्वमेध यज्ञ एवं उसको वीणा बजाते हुए तस्वीर उत्कीर्ण है । अन्तरजीखेरा से 800 ई ० पू ० में लोहे ( iron ) के प्रयोग का साक्ष्य प्राप्त हआ है ।
पुदुचेरौ के अरिकामेहु से प्राप्त रामन सिक्कों से प्राचीन काल दक्षिण भारत – रोम व्यापारिक एवं सांस्कृतिक संबंधों पर प्रकाश पड़ता है ।
• अंकोरवट ( कंबोडिया ) का विश्व का सबसे बड़ा विष्णु मन्दिर वैष्णव धर्म के भारत के बाहर प्रसार को रेखांकित करता है । भारत का सर्वाधिक प्राचीन धर्मग्रंथ वेद है ।
वेद का अर्थ पवित्र एवं आध्यात्मिक ज्ञान ( Knowledge Par Excellence ) होता है । महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को वेदों का संकलनकर्ता माना जाता है ।
वैदिक साहित्य के अन्तर्गत 4 वेद ( वाग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद , अथर्ववेद ) ब्राह्मण ग्रंथ , आरण्यक , उपनिषद् , वेदांग तथा उपवेद आते हैं ।
प्रत्येक वेद की ऋचाओं का उच्चारण करने वाले ऋषि को मंत्रद्रष्टा कहते होत ( ऋग्वेद ) , उदगात्र ( सामवेद ) , अध्वायु ( यजुर्वेद ) तथा अथर्वा ( अथर्ववेद ) चारों वेदों के मंत्रद्रष्टा थे ।
वैदिक साहित्य से आर्यों ( Aryans ) के राजनैतिक जीवन के संदर्भ में कुछ कम एवं सामाजिक , आर्थिक एवं धार्मिक जीवन की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है ।
वेदों में सर्वाधिक प्राचीन ऋग्वेद है तथा वेदों में सबसे नवीन वेद अथर्ववेद है ।
Ancient India ) . . . . . ग्रीक लिपि में उत्कीर्ण अशोक का अभिलेख शार – ए – कुन्हा ( कन्धार ) से प्राप्त हुआ है ।
अशोक का एक द्विलिपीय ( Biscriptual ) अभिलेख ग्रीका – अरामाइको में शार – ए – कुन्हा ( कंधार ) से प्राप्त हुआ है ।
1750 ई ० में सर्वप्रथम टीफेन्थलर ने दिल्ली में दिल्ली – मेरठ अशोक स्तंभ का पता लगाया । स्तंभ अभिलेख दिल्ली – टोपरा , प्रयाग , दिल्ली – मेरठ , रामपुरवा ( बिहार ) , लौरिया – अरेराज ( चम्पारण बिहार ) , लौरिया – नन्दनगढ़ ( चम्पारण , बिहार ) से प्राप्त हुए हैं ।
रामपुरवा ( चम्पारण , बिहार ) स्थित स्तंभ की खोज 1872 ई ० में कारलायल ने की । लघु स्तंभ अभिलेख सारनाथ में 1905 ई ० में ओटैल द्वारा खोजा गया । साँची , कौशांबी , रूमिन्देयी के अभिलेख 1896 ई ० में कीहरर ने खोजा ।
निग्लीवा ( 1895 ई ० में कोहरर ) तथा इलाहाबाद से रानी स्तंभ लेख प्राप्त हुए हैं ये अशोक की राजकीय घोषणाओं का उल्लेख करते हैं ।
तराई लेख रूम्मिनदेई एवं निग्लीवा में नेपाल की तराई में स्थित है । अशोक के तमाम स्थलों पर अभिलेखों में सिर्फ मास्की एवं गुजरा ( मध्य प्रदेश ) को छोड़कर शेष सभी स्थलों पर अशोक के नाम से स्थान पर देवानामपियसिन् उत्कीर्ण है । अशोक के 14 – शिलालेखों ( Rock Edicts ) में 7 वाँ शिलालेख ( Seventh Rock Edict ) सबसे लंबा है । अशोक के 13 वें शिलालेख ( Thirteenth Rock Edict ) से उसके द्वारा अपने शासन के 9 वें वर्ष में कलिंग का विवरण प्राप्त होता है ।
अशोक का रानी स्तंभ अभिलेख अथवा ‘ प्रयाग स्तंभ अभिलेख ‘ पूर्व में कौशांबी ( इलाहाबाद ) में स्थित था , बाद में ‘ अकबर ‘ ने उसे इलाहाबाद के किले में स्थापित करवाया ।
\अशोक का दिल्ली – टोपरा स्तंभ – लेख दिल्ली में सुल्तान ‘ फिरोज तुगलक ‘ ने स्थापित किया ।
अशोक के बाद के महत्वपूर्ण अभिलेख इस प्रकार हैं कलिंगराज खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख ।
सातवाहन शासक पुलवामी का नासिक गुहालेख ।
समुद्रगुप्त के दरबारी हरिषेण का प्रयाग स्तंभ लेख ।
मालवा नरेश यशोवर्मन का मंदसौर अभिलेख ।
संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण प्रथम अभिलेख रुद्रदामन || का जूनागढ़ अभिलेख है ।
एहियोल अभिलेख से चालुक्य नरेश पुल्केशिन- || के संबंध में एतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है ।
प्रतिहार नरेश ‘ भोज ‘ के विषय में ग्वालियर प्रशस्ति अभिलेख से ऐतिहासिक विवरण प्राप्त होता है ।
सम्राट हर्षवर्द्धन की प्रशासनिक एवं धार्मिक नीति पर बांसखेड़ा – मधुबन अभिलेख से पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । बंगाल के शासक विजयसेन का देवपाड़ा अभिलेख तत्कालीन इतिहास की जानकारी देता है ।
यवन राजदूत हेलियोडोरस का बेसनगर ( विदिशा ) से प्राप्त गरूड़ स्तंभ लेख द्वितीय शताब्दी ई ० पू ० में भारत में भागवत धर्म के विकसित होने का साक्ष्य प्रस्तुत करता है ।
प्रमुख संवत् 1 ( 1 ) शक संवत् – 78 ई ० से । ( ii ) विक्रम संवत् – 57 ई ० पू ० से । ( ii ) गुप्त संवत् – 319 ई ० से । ( iv ) हिजरी संवत् – 622 ई ० से । ( v ) इलाही संवत् – 1583 ई ० से ।
सिन्धु सभ्यता
( Indus Civilisation )
सिन्धु सभ्यता की खोज 1921 में दयाराम साहनी ने की ।
सिन्धु सभ्यता भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता थी ।
सिन्धु , सभ्यता का काल मेसोपोटामिया एवं मिस्र की सभ्यता के समकालीन थी ।
सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है , क्योंकि सिन्धु सभ्यता में सर्वप्रथम हड़प्पा नामक स्थल की खोज हुई ।
सन् 1922 ई ० में राखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की । सिन्धु सभ्यता का इतिहास आद्य ऐतिहासिक काल का इतिहास है ।
सिन्धु सभ्यता का विस्तार 12,99,600 वर्ग किमी . में उत्तर से दक्षिण की ओर त्रिभुजाकार आकृति में था । सिन्धु सभ्यता में मेडिटेरेनियन , अल्पाइन , मंगोलॉयड तथा प्रोटो – ऑस्ट्रोलॉयड प्रजाति के लोग निवास करते थे ।
अभी तक सिन्धु सभ्यता के 1000 से अधिक स्थल भारत के विभिन्न क्षेत्रों से खोजे जा चुके हैं ।
गुजरात में सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक स्थल खोजे गए हैं ।
लोथल से गोदीवाड़ा ( बंदरगाह ) , मकान बनाने का कारखाना एवं कपास के साक्ष्य मिले हैं ।
अल्लादीनोह सिन्धु सभ्यता का सबसे छोटा स्थल था ।
धौलावीरा सिन्धु सभ्यता का तकनीकी रूप से सर्वाधिक विकसित स्थल था ।
सिन्धु सभ्यता के काल निर्धारण का नवीनतम स्रोत रेडियोकार्बन विधि है ।
रेडियो कार्बन ( C ) विधि से प्राप्त जानकारी से इस सभ्यता का कालानुक्रम 2350-1750 ई ० पू ० तक माना गया है ।
मोहनजोदड़ो का अर्थ ‘ मुर्दो का टीला ‘ होता है ।
. . . सिन्धु घाटी सभ्यता के हड़प्पा नगर से एक ही आकार के छोटे – छोटे घरों की एक बस्ती मिली है , जो सम्भवतः तत्कालीन श्रमिकों का निवास स्थान कर रहा हो । उपर्युक्त बस्ती के आगे 16 भट्ठियाँ मिली हैं , जो सम्भवतः ताँबा गलाने का कारखाना है ।
सिन्धु घाटी सभ्यता की सड़कें एक – दूसरे को समकोण पर काटती थी और सड़कों का निर्माण अधिकांशतः कच्ची ईंटों से किया गया था । भवन का दरवाजा और खिड़कियाँ सड़क की ओर न खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलते थे ।
सड़कें तीन प्रकार की थी – मुख्य सड़क , सहायक सड़क और गली की सड़क । सिन्धु सभ्यता के लोगों का पुनर्जन्म पर विश्वास था ।
सिन्धु सभ्यता के लोगों के लिए पीपल का वृक्ष सर्वाधिक पूजनीय था । यहाँ के लोग शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों थे ।
सिन्धु सभ्यता के मोहनजोदड़ो से मातृदेवी के गर्भ से उगता हुआ वृक्ष वाला शील प्राप्त हुआ है ।
सिन्धु सभ्यता के लोग भूत – प्रेतों तथा जादू – टोने में विश्वास करते थे , क्योंकि कई स्थलों के उत्खनन से ज्ञात होता है कि सिन्धुवासी ताबीजों का प्रयोग करते थे । लोथल से फारस की मुहरें तथा कालीबंगा से ऊँट की हड्डियों के साक्ष्य मिले हैं ।
सिन्धु सभ्यता के स्थल राणा गुंडई के निम्नस्तरीय धरातल की खुदाई में घोड़े के दाँतों के अवशेष प्राप्त हुए हैं । भारतीय गैंडा का एकमात्र प्रमाण आमरी से प्राप्त हुआ है ।
हड़प्पा के पूर्वी टीले को नगर टीला एवं पश्चिमी टीले को दुर्ग टीला की संज्ञा दी जाती है ।
सिन्धु सभ्यता में मोहनजोदड़ो , गणवारी वाला , लोथल , कालीबंगन , हड़प्पा , धौलावीरा आदि बड़े नगर थे । सभ्यता के स्थल में प्रवेश करने वाला पहला चौराहा ऑक्सफोर्ड सर्कस कहलाता है ।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत् स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है , जिसके मध्य स्थित स्नानकुण्ड 11.88 मीटर लम्बा , 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है । जल – कुण्ड में उतरने के लिए 2.44 मीटर चौड़ी सीढ़ियाँ थी ।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्नागार सम्भवत :सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी . इमारत है ।
हड़प्पा से 6 अनाज – शालाएँ मिली हैं । दुर्ग के दक्षिण में सभा भवन स्थित था , ये भवन 27.43 मी . के वर्गाकार में था , जो 20 स्तंभों पर टिका था , सम्भवतः इसका उपयोग धार्मिक सभाओं के लिए होता था ।
सिन्धु लिपि के सबसे बड़े लेख में लगभग 17 चिन्ह हैं अभी हाल में इतिहासकार के ० एस ० आर ० राव ने इस लिपि को पढ़ने का दावा किया है ।
सिन्धु सभ्यता के पतन का प्रमुख कारण सम्भवतः बाढ़ था । पंजाब प्रान्त के मॉन्टगोमरी जिले में स्थित हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक कब्रिस्तान स्थित था , जिसे ‘ समाधि R – 37 ‘ कहा जाता है ।
मोहजजोदड़ो से विशाल स्नानागार के साक्ष्य मिले हैं । भारत में सबसे बड़ा सिन्धु सभ्यता का स्थल धौलावीरा तथा राखीगढ़ी था ।
मोहनजोदड़ो से हड़प्पा सभ्यता के मशहूर काँस्य नर्तकी की प्रतिमा मिली है , अत : यह कौस्ययुगीन सभ्यता थी । अल्लादीनोह सिन्धु सभ्यता का सबसे छोटा स्थल था ।
सिन्धु सभ्यता का समाज मातृप्रधान था । सिन्धु सभ्यता से प्राप्त अधिकांश मूर्तियाँ मातृदेवी की मिली है । बनवाली से खिलौना तथा हल की प्राप्ति हुई है 1
कालीबंगा से जोते हुए खेत एवं नक्काशीदार ईंटों के प्रमाण प्राप्त हुए हैं ।
सिन्धु सभ्यता की चित्राक्षर लिपि को लिखने की तकनीक को बुस्त्रोफेंडन कहा जाता है ।
रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं , जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है ।
सिन्धु सभ्यता के लोगों का मुख्य पेशा कृषि एवं पशुपालन था । वे गेहूँ , कपास , जौ , गेहूँ , राई , मटर एवं खजूर आदि की खेती करते थे ।
सिन्धु सभ्यता के लोग बैल , ऊँट , भैंस , भेंड , गधे , बकरी , सुअर , हाथी , कुत्ते एवं बिल्ली पालते थे । सिन्धु सभ्यता के लोग गाय तथा घोड़ा के महत्व से परिचित नहीं थे ।
हड़प्पा सभ्यता के लोग कुबड़ वाले साँढ़ की पूजा करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग पशुपति एवं शिव की पूजा करते थे । सुरकोतदा से घोड़े की हड्डियों के अवशेष मिले हैं ।
मोहनजोदड़ो एवं आमरी नामक स्थल सिन्धु नदी के किनारे स्थित है ।
हड़प्पा पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में स्थित है ।
मोहनजोदडो पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित है । बहावलपुर ( राजस्थान ) सूखी नदी ‘ सरस्वती ‘ के किनारे स्थित है ।
सिन्धु सभ्यता के सबसे बाद ( 1974 ई ० ) खोजा गया स्थल बनवाली है ।
सिन्धु सभ्यता के लोगों का समाज चार भागों में विभक्त था – व्यापारी , विद्वान , श्रमिक तथा सैनिक ।
सिंधु सभ्यता में व्यापारी वर्ग के हाथ में सभ्यता के शासन – प्रशासन की जिम्मेवारी होने का अनुमान लगाया जाता है ।
सिन्धु घाटी सभ्यता में वस्तु – विनिमय प्रणाली प्रचलित थी ।
सिंधु सभ्यता में माप – तौल की इकाई सम्भवतः 16 के अनुपात में ( 16 , 32 , 64 , 128 , 256 … ) थी ।
सिन्धु क्षेत्र में मापने के लिए कई स्केल पाये गये हैं , इनमें एक दशमलव स्केल भी है । दशमलव स्केल की लम्बाई 13.2 ईंच है , इसका एक भाग 1.32 इंच का है ।
कालीबंगन का अर्थ होता है काले रंग की चूड़ियाँ , यहाँ से शल्य – क्रिया के साक्ष्य मिले हैं ।
सिंधु सभ्यता में अन्तिम संस्कार का सबसे प्रचलित तरीका शवाधान ( सम्पूर्ण रूप से शव को दफनाया जाना ) था । सिंधु सभ्यता में पर्दा – प्रथा एवं वेश्यावृत्ति सिन्धु सभ्यता में प्रचलित थी ।
सिन्धु सभ्यता के निवासी सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे तथा वृक्ष – पूजा करते थे ।
सिन्धु सभ्यता के लोग मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे ।
रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं जिनसे धान की खेती का प्रमाण मिलता है ।
चान्हुदड़ो से गुड़िया निर्माण हेतु एक कारखाने तथा लिपिस्टिक के अवशेष मिले हैं ।
धौलावीरा सिन्धु सभ्यता का तकनीकी रूप से सर्वाधिक विकसित स्थल था ।
पिग्गट महोदय ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानी ( Twin capital ) की संज्ञा दी थी ।
• सिन्धु निवासी मिट्टी के बर्तन निर्माण , मुहरों के निर्माण , मूर्ति निर्माण , वर्गाकार एवं आयताकार ताबीज का निर्माण तथा मटके के निर्माण आदि कुशल थे कपास उगाने के कारण समकालीन मिस्र सभ्यता के लोग सिन्धु क्षेत्र को शिंडन कहते थे ।
मेसोपोटामिया के लोग सिन्धु क्षेत्र को मेलूहा कहते थे ।
सिन्धु सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रिड पद्धति अपनाई ।
वैदिक सभ्यता
( Vedic Civilisation )
भारत में लगभग ई ० पू ० 1500 में इस सभ्यता की नींव , पड़ी । इसकी जानकारी वेदों से होने के कारण इसे ‘ वैदिक सभ्यता ‘ भी कहते हैं ।
‘ मैक्समूलर ‘ के सर्वमान्य मत के अनुसार आर्यों का मूल उत्पति स्थान मध्य एशिया में बैक्ट्रिया था । जेंद – अवेस्ता ( ईरानी धर्मग्रन्थ ) में भारतीय आर्यों के देवता इन्द्र , वरूण तथा मित्र का उल्लेख है । ‘ आर्य ‘ शब्द का अर्थ पवित्र वंश वाला होता है , संस्कृत भाषा बोलते थे ।
ऋग्वेद से आरम्भिक आर्यों के उत्तर – पश्चिम भारत में बसने का ज्ञान होता है । नदी सूक्त ( ऋग्वेद ) के अनुसार सिन्धु एवं उसकी 7 सहायक नदियों के इर्द – गिर्द ऋग्वैदिक सभ्यता विकसित हुई ।
नदी सूक्त सरस्वती एवं सिन्धु को सर्वाधिक पवित्र नदी के रूप में प्रतिष्ठित करता है ।
वर्तमान में ‘ सरस्वती ‘ नदी का कोई अस्तित्व नहीं है , यह राजस्थान के रेगिस्तान में विलीन हो चुकी है । वैदिक काल में सम्पूर्ण उत्तर भारत के क्षेत्र को आर्यावर्त कहा जाता था ।
बाद में आर्यों ने सदानीरा ( गंडक ) नदी का भी पता लगाया । प्रारम्भ में आर्य समुद्र से परिचित नहीं थे , तथा इसका अर्थ वे जल के विपुल भण्डार अथवा बड़ी नदियाँ समझते थे ।
ऋग्वैदिक आर्य हिमालय पर्वत से परिचित थे , इसकी एक चोटी मुंजावत पर सोम ( आधुनिक भांग ) नामक पौधा प्राप्त होता था । सोम पौधे से तैयार नशीले पेय का सेवन आर्यों द्वारा वाजपेय यज्ञों की समाप्ति के उपरान्त किया जाता था ।
ऋग्वेद में आर्यों की प्रमुख जनजातियों का उल्लेख पंचजन के रूप में किया गया है ।
दशराज युद्ध में आर्यों को ऋषि वाल्मिकि का तथा अनार्यों को ऋषि विश्वामित्र का समर्थन प्राप्त था । दशराज युद्ध में भरतवंशी राजा ‘ सुदास ‘ के नेतृत्व में आर्यों की विजय हुई । हमारे देश का नाम भारतवर्ष आर्यों के ‘ भारतवंशी ‘ राजा भरत के नाम पर पड़ा ।
वर्गीकरण व्यवसाय के आधार पर इस प्रकार किया गया था 1. पुरोहित ( ब्राह्मण ) , 2. राजन्य ( क्षत्रिय ) , 3. वैश्य ( कृषक , कारीगर , – व्यापारी ) तथा शूद ( दास तथा अनार्य ) ।
ऋग्वैदिक समाज में परिवार के मुखिया को कुलप्पा कहा जाता था । ऋग्वैदिक समाज पितृसत्तात्मक होते हुए भी उसमें ‘ महिलाओं ‘ की स्थिति अच्छी थी ।
समाज में एक – विवाह ( Monogamy ) की प्रथा थी तथा इस काल में सती प्रथा एवं पर्दा प्रथा का अस्तित्व नहीं था । 11-8 .
. ऋग्वैदिक काल में प्रयुक्त महत्त्वपूर्ण शब्द .
-उवेश – जुते हुए खेत ,
ऊर्दर – अनाज नापने वाला यंत्र ,
• करीष – गोबर की खाद ,
वृक – बैल ,
लांगल – हल सीता – हलरेखा , अवत – कूप ,
कीवाश – हल लगाने वाला ,
स्थिवि – अनाज रखने का कोठार ,
पर्जन्य – बादल ।
ऋग्वेद के 24 श्लोकों में शब्द कृषि का उल्लेख है । खेतों को जोतने के लिए हल का प्रयोग होता था जिसमे साधारणतया 6 . 8 या 12 बैलों का प्रयोग होता था । ऋग्वेद में खाद्यान्नों को सामूहिक रूप से यव अथवा धान्य कहा गया है ।
ऋग्वेद में चावल की कृषि के प्रमाण नहीं प्राप्त होते । बर्तन बनाना , बुनाई , बढ़ईगिरी , धातुकर्म एवं चर्मकारी जैसे कुछ अन्य व्यवसाय भी प्रचलन में थे ।
ऋग्वैदिक आर्यों को टिन , सीसा , चाँदी , ताँबा , काँसा तथा स्वर्ण की जानकारी थी ।
ऋग्वैदिक काल में स्वर्ण को हिरण्य , काँसे को अस्म तथा ताँबे को अयस कहा गया है ।
ऋग्वैदिक देवताओं में इन्द्र एवं अग्नि सबसे श्रेष्ठ माने जाते थे ।
ऋग्वेद में इन्द्र की प्रार्थना में सर्वाधिक 250 सूक्त दिये गये हैं तथा इन्हें पुरंदर ( दुर्गों को ध्वस्त करनेवाला ) कहा गया है ।
पृथ्वी के देवताओं में अग्नि को सर्वश्रेष्ठ माना गया है । ऋग्वेद में इससे सम्बन्धित 200 सूक्तों का समावेश किया गया है । जल के देवता ‘ वरुण ‘ का भी जत्याधक महत्व था , ईरानी ग्रन्थों में इन्हें अहुरमाजदा एवं यूनानी ग्रंथों में ओरनोज कहा गया है ।
ई ० पू ० 1000-600 का काल उत्तर वैदिक काल कहलाता है । इस काल में आर्यों का प्रसार पूरब में सदानीरा ( गंडक ) नदी एवं दक्षिण में विंध्य पर्वत तक हुआ । सदनीरा नदी के पूर्वी किनारे पर आर्यों का एक जत्था विदेह माधव के नेतृत्व में आकर बसा । कालीतर में सदानीरा नदी के क्षेत्र में विदेह राज्य की स्थापना हुई । तकनीकी विकास की दृष्टि से यही वह काल था जब उत्तर भारत में लौह युग आरम्भ हुआ ।
. . . स्त्रियों को वेदों का अध्ययन करने तथा अपने पति के साथ सार्वजनिक सभाओं तथा उत्सवों में भाग लेने का अधिकार था ।
ऋग्वे ऋग्वैदिक काल की कुछ स्त्रियाँ विश्ववरा , अपाला , घोष एवं लोपमुद्रा वैदिक मंत्रों की रचना करने के लिए जानी जाती हैं ।
आर्यों ने स्वयं को द्विज ( दो बार जन्में ) एक बार तब जब वे माता के पेट से उत्पन्न होते हैं तथा दूसरी बार तब जब उनका उपनयन संस्कार होता है )
इस काल में विधवा विवाह का प्रचलन तो था परन्तु बाल – विवाह का कोई अस्तित्व नहीं था ।
ऋग्वैदिक काल में ‘ दहेज प्रथा ‘ जैसी सामाजिक बुराई का प्रचलन था तथा स्त्रियाँ पैतृक संपत्ति की हकदार नहीं थी । आर्य भोजन के रूप में अन्न , फल , दूध एवं दूध से तैयार पदार्थ तथा ( ix ) भेंड़ , बकरी , घोड़े के मांस एवं मछलियाँ ग्रहण करते थे । सुरा , मधु एवं सोमरस ( सोम नामक पौधे से तैयार ) आदि आर्यों के मुख्य पेय पदार्थ थे । वास , अधिवास तथा उष्णीश ( पगड़ी ) आदि आर्यों के प्रमुख पहनावे थे , अंदर पहनने वाले कपड़ों को नीवि कहा जाता था ।
आर्यों के मनोरंजन के मुख्य साधन संगीत , रथ – दौड़ , दूत – क्रीड़ा एवं घुड़दौड़ आदि थे । ऋग्वेद में दास एवं दस्यु का उल्लेख किया गया है ।
ऋग्वैदिक समाज एक कबायली – समाज था , कई परिवारों को मिलाकर एक गाँव बनता था जिसका प्रमुख ग्रामणी होता था । कई ग्रामों को मिलाकर जन का निर्माण होता था ।
ऋग्वेद में ‘ जन ‘ का उल्लेख 275 बार किया गया है । एक जन के सभी व्यक्ति विश कहलाते थे तथा इसका प्रधान विशपति अथवा राजा कहलाता था ।
ऋग्वेद में विश् का उल्लेख 170 बार हुआ है । ऋग्वैदिक काल में राजा का चुनाव होता था , प्रजा को उसे हटाने की शक्ति भी थी । राजा युद्धों में सेना का नेतृत्व करता था तथा उपज का 1/6 भाग वह राज्यकर के रूप में प्राप्त करता था ।
ऋग्वेद के अनुसार तत्कालीन प्रशासन में राजा के पश्चात पुरोहित का पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण था । पुरोहित राजा का मित्र , पथ – प्रदर्शक , दार्शनिक एवं प्रधान सहायक होता था । पुरोहितों के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण पद सेनानी राजा द्वारा नियुक्त होता था । उपर्युक्त के अलावा ग्रामिणी , सूत , रथकार एवं कर्मकार के उल्लेख भी ऋग्वेद से प्राप्त होते हैं । ग्रामीणी , सूत , रथकार एवं कर्मकार को ऋग्वेद में सम्मिलित रूप से रलिन ( Ratnins ) कहा गया है ।
ऋग्वैदिक काल में निम्न पदाधिकारियों के उल्लेख मिलते हैं 1. क्षत्र ( प्रतिहारी ) , 2. भागदुधा ( कर – संग्राहक ) , 3. संग्रहीत ( कोषाध्यक्ष ) , 4. अक्षवाय ( पांसे के खेल मेंराजा का सहयोगी ) , 5. पालागल ( राजा का मित्र ) ।
ऋग्वेद में हमें कुछ गुप्तचरों एवं समाचार – वाहकों का उल्लेख मिलता है जो स्पश कहलाते थे । इस काल में उग्र अपराधियों को पकड़ने वाला पदाधिकारी तथा ब्रजापति ( राजकीय चारागाह का पदाधिकारी ) जैसे पदाधिकारियों के उल्लेख भी मिलते हैं ।
ऋग्वैदिक प्रशासन में विक्ष्य ( आर्यों की प्राचीन सभा ) , समिति ( आम जनों की सभा ) तथा सभा ( कुलीनों एवं श्रेष्ठ जनों की सभा ) जैसी लोकतांत्रिक संस्थाएं भी अस्तित्व में थीं । सीमित में महिलाओं को शामिल होने की अनुमति थी । सभा में महिलाओं की उपस्थिति की अनुमति नहीं थी , यह संभवत : राष्ट्र न्यायालय का कार्य करती थी ।
शत पथ ब्राह्मण में ‘ सभा एवं समिति ‘ को प्रजापति ( ब्रह्ममा ) की । जुड़वाँ पुत्रियाँ ( Twin daughters of prayapati ) कहा गया पशुपालन एवं कृषि ऋग्वैदिक आर्यों के प्रमुख पेशे थे , सीमित व्यापार के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं ।
उत्तर – वैदिक काल
. . . . . . हस्तिनापुर , अतरंजीखेरा , आलमगीरपुर तथा बटेसर आदि से 800 ई ० पू ० से 400 ई ० पू ० तक लोहे के व्यापक प्रयोग के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं ।
उत्तर वैदिक साहित्य में लोहे ( Iron ) के लिए श्याम अयस् अथवा कृष्ण अयस् जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है । इस काल में मत्स्य , कुरु , पंचाल , काशी , गंधार , कैकेय , हैहेय , विदेह , अंग , मद एवं कोशल तथा मगध जैसे शक्तिशाली राज्यों का उदय हुआ । इस काल में हलों को खींचने के लिए 24 बैलों के प्रयोग का साक्ष्य प्राप्त होता है , कृषि कार्य में खाद का प्रयोग आरम्भ हुआ । हल को सिरा एवं हलरेखा को सीता कहा जाता था ।
उत्तर वैदिक काल में चावल एवं गेहूँ ( शतपथ ब्राह्मण के अनुसार ) प्रमुख अनाज थे ।
उत्तर वैदिक आर्य ‘ समुद्र ‘ से परिचित थे , ऐसा ऐतरेय ब्राह्मण में वर्णित अनंत सागर शब्द से ज्ञात होता है । इस काल में व्यापार उन्नति पर था , श्रेष्ठी एवं गण जैसे व्यावसायिक शब्द इस बात को सिद्ध करते हैं ।
उत्तर वैदिक काल में सूदखोरों को बेकनॉट कहा जाता था ।
उत्तर वैदिक काल में स्वर्ण का सिक्का शतमान एवं ताँबे के सिक्के कृष्णात एवं पाद प्रचलन में आया ।
उत्तर वैदिक काल में वाराणसी , हस्तिनापुर तथा इन्द्रप्रस्थ जैसे कुछ नगरों का विकास हुआ । बालि ( एक उपहार ) नामक कर ऋग्वैदिक काल में लोग स्वेच्छा से अदा करते थे उसे इस काल में अनिवार्य कर दिया गया ।
उत्तर – वैदिक काल में ‘ कर ‘ सम्भवतः कुल उपज का 1 / 6 वाँ हिस्सा लिया जाता था ।
ऋग्वेद , गोमिल गृह्यसूत्र , तथा परस्पर गृह्यसूत्र आदि ‘ कृषि सम्बन्धित देवी ‘ के लिए सीता शब्द का उल्लेख करते हैं । इस काल में बड़े पैमाने पर ‘ चित्रित धूसर – मृदभांट ‘ एवं बड़े पैमाने पर लोहे के औजार प्राप्त हुए हैं । अतः इस काल को चित्रित धूसर मृदभांड – लौहकाल ( PGW iron Phase ) भी कहा जाता है ।
उत्तर – वैदिक काल में ‘ पक्की ईंटों के प्रयोग ‘ का पहला प्रमाण कौशांबी नगर से मिलता है ।
उत्तर – वैदिक युग राजतन्त्र ( Monarchy ) के सशक्तिकरण का युग था राजाओं द्वारा इस काल में महाराज , अधिराज , सम्राट एवं सार्वभौम की उपाधियाँ धारण की गई ।
ऐतरेय ब्राह्मण में विभिन्न दिशाओं के राजाओं के लिए निम्न शब्दों का प्रयोग किया गया है ? . सम्राट – पूर्वी देश का शासक । . भोज – दक्षिणी देश का शासक । . स्वराट – पश्चिमी देश का शासक । . राजन – मध्य देश का शासक । विराट – उत्तरी देश का शासक । एकराट – चारों दिशाओं का शासक
इस युग में जिन प्रतापी राजाओं के उल्लेख मिलते हैं , उनमें जन्मेजय , प्रतिपीय , बहलीक तथा परीक्षित प्रमुख थे ।
राजा का पद अब वंशानुगत हो गया ।
इस काल का ‘ प्रशासनिक ढाँचा ‘ निम्नवत था 1. suत – रथ हाँकने वाला , 6. पालागल – राजा का मित्र , 2 ब्रजापति – चारागाह का अधिकारी , 7. पुरूप – दुर्गपाल , 3. भागदुधा – कर समाहर्ता , 8. जीवग्राह्य – पुलिस अधिकारी , 4. स्थापति – मुख्य न्यायाधीश , 9. सेनानी – सेनापति , 10. अक्षवाय – पाँसे के खेल में राजा का सहयोगी ।
अभी तक राजकीय न्यायालय का कार्य सभा ही कर रही थी । इस काल में समाज स्पष्ट रूप से चार जातियों ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्र में विभक्त था ।
जाति का निर्धारण पैत्रिक आधार पर किया जाने लगा । .1-10 . . . . 5. ग्रामणी – ग्राम का प्रमुख ,
उत्तर – वैदिक काल में लोहार , बढ़ई , व्यापारी , मलाह , चर्मकार एवं रथकार जैसी उपजातियों का उल्लेख भी मिलता है । इस काल में छुआछूत ( Untouchability ) की बुराई के आविर्भाव का प्रमाण हमें गौतम सूत्र से मिलता है । इस काल में महिलाओं की स्थित दयनीय हो गई तथा इन्हें लोकप्रिय सभाओं में भाग लेने तथा ‘ उपनयन संस्कार ‘ से वर्जित कर दिया गया ।
ऋग्वैदिक काल में महिलाओं का भी पुरुषों के समान उपनयन संस्कार होता था ।
वेश्यावृत्ति जैसी सामाजिक बुराई का अभ्युदय भी उत्तर – वैदिक काल में हुआ । हालांकि स्त्री – शिक्षा इस काल में भी पूर्व की भांति प्रचलन में रही , गार्गी , न मैत्रेयी एवं वाचनवी जैसी विदुषियों का उल्लेख मिलता है ।
ऋग्वेद में 8 प्रकार के विवाहों का उल्लेख प्राप्त होता है
उत्तर वैदिक काल में गोत्र परम्परा का अभ्युदय हुआ तथा इसी काल में गोत्र के बाहर विवाह करने की परम्परा विकसित हुई ।
उत्तर – वैदिक काल में प्राचीन भारतीय जीवन के चार महान पुरूषार्थों ध , अर्थ , काम एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए चार आश्रमों ( ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ तथा सन्यास ) को आधार बनाया गया ।
उत्तर वैदिक काल में 7 प्रकार के सोमयज्ञों का प्रचलन था – अग्निष्टोम , अत्यग्निष्टो , उक्थ्य , षोडशिन् , वाजपेय् , अतिरात्र और अप्तोर्याम ।
वाजपेय यज्ञों में ‘ रथ – दौड़ ‘ प्रतियोगिता होती थी जिसमें आमतौर पर ‘ राजा का रथ ‘ जीतता अथवा जितवाया जाता था ।
वाजपेय यज्ञों के अवसर पर सोम पौधों की पत्तियों को पीस कर तैयार किये गये नशीले पेय वाजपेय का सेवन किया जाता था ।
उत्तर – वैदिक काल में प्रचलित 40 संस्कारों की सूची परवर्ती वैदिक न साहित्य से प्राप्त होती है ।
उत्तर वैदिक काल में यज्ञों की अवधि , संख्या एवं जटिलता में वृद्धि हुई । इस काल में इंद्र , अग्नि एवं वरूण का स्थान प्रजापति ( ब्रह्मा ) , विष्णु एवं शिव ने ले लिया ।
उत्तर वैदिक काल में पशुओं के देवता पूषण को शूद्रों के देवता का स्थान प्राप्त हुआ ।
उत्तर वैदिक काल में ही भारतीय षड्दर्शन ( Six schools of Indian 7 Philoshophy ) का विकास हुआ – सांख्य , योग , न्याय , वैशेषिक , मीमांसा तथा वेदांत ।
सर्वाधिक प्राचीन सांख्य दर्शन है ।
उपनिषदों , ब्रह्मसूत्र , एवं भगवद्गीता इत्यादि पर ‘ आदि कवि ‘ शंकराचार्य के भाष्य महत्वपूर्ण है । शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित दर्शन अद्वैत वेदांत महत्वपूर्ण है । सांख्य दर्शन का प्रवर्तन महर्षि कपिल ने किया , यह अनीश्वरवादी दर्शन है ।
वैशेषिक दर्शन वेद ( Vedas ) की प्रमाणिकता को स्वीकार करता है , इसके प्रणेता कणाद मुनि थे । वैशेषिक दर्शन परमाणु ( Atom ) के अस्तित्व को मानता है ।
न्याय दर्शन का ज्ञान गौतम ऋषि द्वारा प्रतिपादित न्यायसूत्र से प्राप्त होता है ।
योग दर्शन का प्रतिपादन पतंजलि ने किया , यह दर्शन विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय है । योग दर्शन ‘ मोक्ष ‘ के लिए योगाभ्यास पर बल देता है तथ ‘ ईश्वर ‘ के अस्तित्व को । मीमांसा एक आस्तिक दर्शन है , यह पूर्णतः वेदों पर आधारित है ।
मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी थे , यह दर्शन वैदिक कर्मकांडों की पैरवी करता है ।
वेदांत दर्शन का आधार उपनिषद् है इसका विवेचन बदरायन रचित ब्रह्मसूत्र से प्राप्त होता है ।
वेदांत दर्शन को ‘ उत्तर मीमांसा ‘ अथवा ‘ शारीरिक मीमांसा ‘ भी कहते हैं ।
• ई ० पू ० छठी शताब्दी में भारत में 62 नए धार्मिक संप्रदायों का उदय हुआ । उपरोक्त में जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म का विशेष महत्व है । 1-10 . 7
जैन परम्परा में धर्मगुरुओं को तीर्थकर कहा जाता है , इनकी संख्या 24 ऋषभदेव इस परम्परा के पहले तीर्थकर हुए ।
ऋषभदेव का उल्लेख ऋग्वेद में भी है ।
ऋषभदेव , पार्श्वनाथ ( 23 वें तीर्थकर ) तथा वर्द्धमान महावीर ( 24 वें तीर्थंकर ) को छोड़कर शेष सभी तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता संदेह के घेरे में है ।
सांढ़ ऋषभ देव के शंख पार्श्व नाथ के तथा शेर वर्द्धमान महावीर के प्रतीक चिह्न थे ।
जैनों के 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म ई ० पू ० 850 ई ० में वाराणसी में हुआ था ।
पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन ‘ काशी ‘ के इक्ष्वाकु वंश के राजा थे । वे 30 वर्षों की आयु में वैराग्य उत्पन्न होने के कारण संन्यासी हो गये । 83 दिनों तक सम्मेत पर्वत ( पारसनाथ पहाड़ी , झारखण्ड ) पर कठिन तप करने के पश्चात् 84 वें दिन उन्हें ‘ कैवल्य ( ज्ञान ) ‘ की प्राप्ति हुई ।
जैन अनुश्रुतियों के अनुसार पार्श्वनाथ ने 70 वर्ष तक धर्मप्रचार किया ।
पार्श्वनाथ के अनुयायियों को निर्गंथ कहा जाता था ।
. पार्श्वनाथ के काल में ‘ निग्रंथ संप्रदाय ‘ चार गणों ( संघों ) में बँटा हुआ था , प्रत्येक गण का प्रमुख एक गणधर होता था ।
पार्श्वनाथ ने सत्य ( सदा सच बोलना ) , अहिन्सा ( किसी प्रकार की हिन्सा न करना ) , अस्तेय ( चोरी न करना ) तथा अपरिग्रह ( धन संचय ) न करने . का उपदेश दिया ।
भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्वनाथ का निधन सम्मेत पर्वत ( पारसनाथ , झारखंड ) पर हुआ था ।
पारसनाथ पहाड़ी आज भी जैनियों का एक पवित्र स्थल है ।
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वें ‘ एवं अन्तिम तीर्थकर थे ।
ई ० पू ० छठी शताब्दी में उत्तर बिहार में प्रसिद्ध वज्जि संघ था , जिसकी राजधानी वैशाली थी ।
‘ वज्जि संघ ‘ में 8 – गणराज्य सम्मिलत थे , जिसमें एक राज्य कुण्डग्राम था ।
” कुण्डग्राम ‘ में उक्त काल में ज्ञातृक क्षत्रियों का राज्य था , जिसके प्रमुख राजा सिद्धार्थ थे ।
राजा ‘ सिद्धार्थ ‘ का विवाह लिच्छवि गणराज्य के प्रमुख चेटक की बहन त्रिशला से हुआ ।
सिद्धार्थ एवं त्रिशला के संगम से ‘ वर्द्धमान महावीर ‘ का जन्म हुआ ।
महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था , उनका जन्म 540 ई ० पू ० में हुआ । बड़े होने पर यशोदा से महावीर का विवाह हुआ । ‘ यशोदा ‘ से अन्नोज्जा प्रियदर्शिनी का जन्म हुआ ।
वर्द्धमान ने 30 वर्ष की उम्र में अपने भाई राजा नंदिवर्द्धन से आज्ञा लेकर गृह – त्याग दिया ।
प्रसिद्ध जैन – ग्रन्थों कल्पसूत्र एवं अचरांगसूत्र से ज्ञात होता है , कि वर्द्धमान महावीर ने 12 वर्षों तक ऋजुपालिका नदी के तट पर जाग्राम के समीप साल वृक्ष के नीचे कठोर तपस्या की । 12 वर्षों के कठोर तप के पश्चात् 42 वर्ष की उम्र में महावीर को कैवल्य +( सर्वोच्च ज्ञान ) की प्राप्ति हुआ ।
‘ कैवल्य ‘ की प्राप्ति कर लेने के कारण उन्हें केवलिन कहा गया । अपनी समस्त इंद्रियों को जीत लेने के कारण उन्हें जिन कहा गया ।
तप – काल में अपरिमित पराक्रम दिखाने के कारण उन्हें महावीर कहा गया । महावीर को ‘ जिन ‘ की उपाधि मिलने के बाद ‘ निग्रंथ सम्प्रदाय ‘ जैन संप्रदाय ‘ एवं उनका धर्म जैन धर्म कहलाया ।
468 ई ० पू ० में 72 वर्ष की अवस्था में ‘ महावीर ‘ की मृत्यु पावा ( पावापुरी ) के मल्ल राजा सृस्तिपाल के राजप्रासाद में हुआ ।
महावीर ने अपने उपदेश प्राकृत ( अर्द्धमागधी ) भाषा में दिये ।
महावीर के सबसे पहले शिष्य उनके दामाद जमाली बने । महावीर की प्रथम महिला शिष्य राजा दधिवाहन की पुत्री चम्पा थी ।
जैन धर्म के अनुयायी कुछ प्रमुख शासक थे – अजातशत्रू ( आरंभ में ) , उदयन , चंद्रगुप्त मौर्य , कलिंगराज खारवेल , अमोघवर्ष ( राष्ट्रकूट शासक ) , चंदेल शासक । . .
जैन संघ की स्थापना महावीर के पहले ही हो चुकी थी ।
महावीर का शिष्य आर्य सुधरमन उनकी मृत्यु के पश्चात् जैन संघ का प्रमुख बना । जैन धर्म में निर्वाण की प्राप्ति के लिए त्रिरत्न का पालन आवश्यक माना गया है ।
जैन धर्म के त्रिरत्न हैं – सम्यक दर्शन ( सत्य में विश्वास ) , सम्यक ज्ञान ( शंकविहीन वास्तविक ज्ञान ) तथा सम्यक आचरण ( सुख – दुख के प्रति समभाव ) ।
त्रिरल के अनुशीलन में निम्न पंचमहाव्रत का पालन आवश्यक माना गया . 1. अहिन्सा ( Non – violence ) – मन , वचन तथा कर्म से किसी के प्रति असंयत व्यवहार नहीं करना । 2. सत्य वचन ( Truth ) – असत्य बोलने से परहेज करना । 3. अस्तेय ( Non – stealing ) – चोरी नहीं करनी चाहिए । 4. ब्रह्मचर्य ( Brahamcharya ) –
किसी नारी से वार्तालाप , उसे देखना तथा उसके संसर्ग का ध्यान करने की भी मनाही है । 5. अपरिग्रह ( Non – attachment ) – भिक्षुओं के लिए किसी भी प्रकार से संग्रह करने की प्रवृत्ति वर्जित है । उपर्युक्त पंचमहाव्रत में अहिन्सा , सत्य वचन , अस्तेय एवं अपरिग्रह पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित किये गये थे । पंचमहाव्रत में ब्रह्मचर्य व्रत महावीर स्वामी द्वारा जोड़ा गया । ‘ प्रथम जैन संगीति ‘ का आयोजन ई ० पू ० 322-298 के बीच पाटलिपुत्र में हुआ ।
प्रथम जैन संगीति की अध्यक्षता स्थूलभद्र अथवा स्थलबाहु ने की । प्रथम जैन संगीति को मौर्य सम्राट ‘ चंद्रगुप्त मौर्य ‘ ने संरक्षण प्रदान किया ।
प्रथम जैन संगीति में जैन साहित्य के 12 अंगों का प्रणयन किया गया ।
द्वितीय जैन संगीति का आयोजन 512 ई ० में वल्लभी ( गुजरात ) में हुआ ।
द्वितीय जैन संगीति की अध्यक्षता देवर्धिक्षमाश्रमण द्वारा की गई ।
‘ महावीर स्वामी ‘ की मृत्यु के 200 वर्षों के बाद ‘ मगध ‘ में एक भीषण अकाल पड़ा ।
अकाल की विभीषिका से बचने के लिए ‘ मौर्य सम्राट ‘ चंद्रगुप्त एवं भद्रबाहु अपने अनुयायियों के साथ दक्षिण भारत के कर्नाटक चले गये ।
मगध में रह गये जैनियों की जिम्मेदारी स्थूलभद्र को सौंपी गई । भ्रदबाहु के अनुयायी जब दक्षिण से लौटे तो जैन संप्रदाय दो खेमों में बँट गया भद्रबाहु के खेमे ने महावीर की शिक्षा के अनुसार ‘ पूर्ण नग्नता ‘ को स्वीकार किया ।
स्थलबाहु के खेमे ने पार्श्वनाथ की शिक्षा के अनुसार ‘ श्वेत वस्त्र ‘ धारण करने को समर्थन दिया । उपरोक्त कारण से स्थलबाहु के समर्थक श्वेतांबर एवं भद्रबाहु के समर्थक दिगंबर कहलाये ।
जैन धर्म में विभाजन प्रथम जैन संगीति ( First Jaina Council ) में हुआ । जैन धर्म के आध्यात्मिक विचार सांख्य दर्शन से प्रेरित हैं ।
मौर्य काल के पश्चात् मथुरा जैन धर्म का एक प्रसिद्ध केंद्र बना ।
बौद्ध धर्म में दीक्षित होने वाली प्रथम महिला गौतम बुद्ध की विमाता प्रजापति गौतमी थी ।
80 वर्ष की आयु में 483 ई ० पू ० में मल्ल राज्य की राजधानी कुशीनगर ( देवरिया जिला ) में महात्मा बुद्ध का निधन हो गया । बौद्ध परम्पराओं में महात्मा बुद्ध के निधन को महापरिनिर्वाण ( Buddha leaving the world ) कहा गया है । बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी है तथा इसके अनुसार आत्मा ( Soul ) का कोई अस्तित्व नहीं है । बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं , बुद्ध , धम्म एवं संघ । गौतम बुद्ध ने संघ जैसी व्यवस्था को संस्थागत स्वरूप प्रदान किया । आधुनिक युग में लाखों बौद्ध निम्न वाक्य कहकर त्रिरल में अपनी आस्था व्यक्त करते हैं बुद्धं शरणं गच्छामि , धम्मं शरणं गच्छामि , संघं शरणं गच्छामि ……… संघ की सभा में पठित प्रस्ताव को ‘ अनसावन ‘ कहा जाता था । किसी व्यक्ति के संघ में प्रवेश करने की प्रक्रिया उपसंपदा कहलाती थी । बौद्ध संघ में प्रवेश की न्यूनतम उम्र – सीमा 15 वर्ष थी । अपने प्रिय शिष्य आनन्द के आग्रह पर बुद्ध ने महिलाओं को भी संघ में प्रवेश की अनुमति दी । ‘ वैशाली की नगरवधू ‘ के नाम से विख्यात आम्रपाली बौद्ध संघ की सदस्य बनने वाली पहली महिला थी । संघ में शामिल होने वाले बौद्ध धर्मावलम्बी भिक्षुक कहलाते थे । गृहस्थ जीवन बिताने वाले बौद्ध धर्मावलम्बी उपासक कहलाते थे । बौद्ध धर्म के विषय में ज्ञान पालि भाषा में रचित त्रिपिटक ( Tripitak ) से होता है । बौद्ध धर्म का मूल आधार इसके चार आर्य सत्य हैं 1. सर्वम् दुःखम् – इसके अनुसार संसार दु : खमय है । यह तथ्य उपनिषद् से लिया गया है । 2. दुःख समुद्दय – तृष्णा ( Desire ) दुखों का कारण है । 3. दुःख निरोध दुख का निवारण तृष्णा को त्याग कर किया जा सकता है । 4. दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा – दुख का निरोध आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करने से सम्भव है ।
अष्टांगिक मार्ग ( Astangik Marg ) 1. सम्यक् दृष्टि — बौद्ध धर्म के चार आर्य – सत्यों के ज्ञान से वाकिफ होना । 2. सम्यक् संकल्प – तृष्णा तथा हिन्सा रहित संकल्प करना । 3. सम्यक् वाणी – सदा सत्य एवं मृदु वाणी का प्रयोग करना जो कि ध मसम्मत हो । 4. सम्यक कर्म – सम्यक अथवा अच्छे कर्मों में संलग्न रहना । | 5. सम्यक् आजीव विशुद्ध रूप से सदाचार का पालन करते हुए जीवन व्यतीत करना । 6. सम्यक् व्यायाम – विवेकपूर्ण प्रयत्न करना । 7. सम्यक् स्मृति – अपने कर्मों के प्रति विवेक तथा सावधानी को निरन्तर स्मरण रखना । ( 8. सम्यक् समाधि – चित्त की समुचित एकाग्रता ।
अष्टांगिक मार्ग के अनुशीलन से व्यक्ति निर्वाण को प्राप्त कर सकता है । बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग के अन्तर्गत अत्यधिक सुखपूर्ण जीवन तथा अत्यन्त कठोर जीवन के बीच का मध्यम मार्ग अपनाने की वकालत की , इसे बौद्ध परम्पराओं में मध्यमा प्रतिपदा कहा गया । बुद्ध ने इसके लिए 10 शीलों का प्रतिपादन किया , उनके अनुसार इसका अनुशीलन ही नैतिक जीवन का आधार है 1. सत्य , 2. अहिन्सा , 3. अस्तेय ( चोरी न करना ) , 4. व्यभिचार न करना , 5. मद्य सेवन न करना , 6. असमय भोजन न करना , 7. सुखप्रद बिस्तर पर न सोना , 8. धन – संचय न करना , 9. अपरिग्रह ( सांसारिक बंधनों का मोह न करना ) , 10. स्त्री मोह का त्याग करना ।
बौद्ध संगीतियाँ ( Buddhist Councils ) 1.प्रथम संगीति ( First Council ) प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन 487 ई ० पू ० में सप्तपर्णि गुफा ( राजगृह ) में हुआ ।
. इस संगीति को मगध के सम्राट अजातशत्रु का संरक्षण प्राप्त हुआ ।
प्रथम बौद्ध संगीति की अध्यक्षता महाकस्सप ने की । इस संगीति में बुद्ध की शिक्षाओं को ग्रन्थ का स्वरूप प्रदान करते हुए इन्हें . विनय पिटक एवं अभिधम्मपिटक के रूप में संकलित किया गया । बुद्ध के प्रिय शिष्यों उपालि एवं आनन्द में क्रमश : विनयपिटक ‘ एवं ‘ ध म्मपिटक ‘ का संपादन किया । 2. द्वितीय संगीति ( Second Council )
द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन 387 ई ० पू ० में वैशाली में हुआ । इस बौद्ध संगीति की अध्यक्षता सबाकमी ने किया । इस संगीति को ‘ मगध ‘ के शिशुनाग वंशीय शासक कालाशोक का संरक्षण मिला । द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन बुद्ध की मृत्यु के 100 वर्षों के पश्चात् 3. तृतीय बौद्ध संगीति ( Third Council ) तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन 251 ई ० पू ० में पाटलिपुत्र में हुआ । तृतीय बौद्ध संगीति की अध्यक्षता मोगालिपुत्त तिस्सा ने किया । तृतीय बौद्ध संगीति को मौर्य सम्राट अशोक ने संरक्षण प्रदान किया ।
तृतीय बौद्ध संगीति में एक नवीन बौद्ध ग्रन्थ ‘ अभिधम्म पिटक ‘ का संकलन किया गया ।
4. चतुर्थ बौद्ध संगीति ( Fourth Council ) चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन प्रथम शताब्दी ई ० में कुण्डलवन ( कश्मीर ) में हुआ । चतुर्थ बौद्ध संगीति के अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष अश्वघोष थे ।
चतुर्थ बौद्ध संगीति को कुषाण सम्राट कनिष्क का संरक्षण प्राप्त हुआ । इस संगीति में बौद्ध ग्रन्थ ‘ त्रिपिटक ‘ पर महाभाष्यों की रचना हुई ।
वैशाली के बौद्धों ने 387 ई ० पू ० में विनयपिटक से अलग कुछ सिद्धान्तों को अपना लिया ।
चतुर्थ बौद्ध संगीति में बौद्ध संप्रदाय स्पष्ट रूप से दो संप्रदायों हीनयान ( Lesser vehichle ) एवं महायान ( Greater vehicle ) में विभाजित हो कर गया । परिवर्तन – विरोधी संप्रदाय हीनयान तथा परिवर्तन समर्थक महायान कहलता ।
महायान संप्रदाय बुद्ध को देवता मानकर उनकी मूर्ति – पूजा के समर्थक थे । हीनयान बुद्ध की मूर्ति – पूजा के विरोधी थे ।
चीन , तिब्बत , कोरिया , मंगोलिया तथा जापान में वर्तमान में महायान संप्रदाय के अनुयायी फैले हुए हैं । श्रीलंका , जावा एवं म्यांमार में ‘ हीनयान ‘ संप्रदाय के लोग फैले हुए कालान्तर में हीनयान संप्रदाय भी वैभाषिक एवं सौत्रान्तिक में बँट गया । ‘
महायान ‘ संप्रदाय भी बाद में शून्यवाद ( माध्यमिक ) एवं विज्ञानवाद ( योगचार ) में विभक्त हो गया । Lon ” शून्यवाद ‘ का प्रतिपादक नागार्जुन था ,
‘ विज्ञानवाद ‘ का प्रवर्तक मैतन्य था ।
7 वीं शताब्दी में तंत्र – मंत्र से युक्त बौद्ध संप्रदाय वज्रयान का उदय हुआ । 7 वीं शताब्दी में बिहार के भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय ‘ वज्रयान संप्रदाय ‘ का प्रमुख केंद्र था । वैदिक युग में स्थापित ब्राह्मण धर्म का गुप्त काल में पर्याप्त विकास हुआ । आधुनिक काल में भारत में इसी धर्म के सर्वाधिक अनुयायी हैं । ।
भागवत् धर्म का उदय ई ० पू ० , छठी शताब्दी में हुआ । इस धर्म का आरम्भ महाकाव्य महाभारत के नारायण उपस्थान प्रसंग से होता है ।
इस धर्म के आरम्भिक सिद्धान्त भगवतगीता में प्राप्त होते हैं । महाकाव्य महाभारत इस धर्म को एक दिव्य धर्म के रूप में प्रतिष्ठापित करता है तथा विष्णु का उल्लेख भागवत् के रूप में करता है ।
भागवत धर्म विष्णु के तीन अवतारों पुरुषावतार , गुणावतार , लीलावतार का उल्लेख करता है ।
भागवत् संप्रदाय का प्रथम ज्ञात यूनानी अनुयायी हेलियोडोरस था । हेलियोडोरस ने विदिशा में गरुड़ध्वज की स्थापना की । विशिष्टाद्वैत दार्शनिक संप्रदाय भागवत् धर्म की मुख्य शाखा है ।
‘ विशिष्टाद्वैत ‘ संप्रदाय के संस्थापक रामानुज थे । ‘ भागवत धर्म ‘ के गर्भ से छठी शताब्दी ई ० पू ० में वैष्णव धर्म का उदय हुआ । मथुरा के कृष्णा ने वैष्णव धर्म की स्थापना की । ‘ कृष्ण ‘ के पिता वसुदेव यादव वंश के वृष्णि या सतवत् शाखा के प्रमुख थे ।
यात्रा वृत्तांत इंडिका ( मेगास्थनीज ) से ज्ञात होता है कि मथुरा के लोग हेराक्लीज ( कृष्ण का यूनानी नाम ) का विशेष आदर करते थे । ब्राह्मण ग्रन्थों में वर्णित ‘ विष्णु ‘ के 39 अवतारों में से वैष्णव धर्म 10 अवतारों को मान्यता देता है ।
वैष्णव धर्म में स्वीकृत ‘ विष्णु ‘ के 10 अवतार हैं -1 . मत्स्य , 2. वामण , 3. परशुराम , 4. कच्छप , 5. राम , 6. कृष्ण , 7. कलि , 8. वराह , 9. नृसिंह , 10. बुद्ध । ‘ चंद्रगुप्त- ।। ‘ सहित कई गुप्त सम्राटों ने परमभागवत् की उपाधि धारण की । गुप्त सम्राटों समुद्रगुप्त एवं चन्द्रगुप्त- ।। के सिक्कों पर विष्णु के वाहन गरुड़ के चित्र उत्कीर्ण हैं ।
गाजीपुर जिले के भितरी नामक स्थान से गरुड़ – मुद्रायें प्राप्त हुई हैं । वैष्णव धर्म के अन्य प्रतीक शंक , चक्र , गदा , पद्म तथा लक्ष्मी के चित्र भी गुप्तकलीन मुद्राओं पर अंकित प्राप्त हुए हैं । • विष्णुपद पर्वत पर गुप्त सम्राट ‘ चन्द्रगुप्त- II ‘ द्वारा विष्णुध्वज स्थापित किया गया । गुप्तकाल में वैष्णव धर्म से सम्बन्धित महत्वपूर्ण अवशेष झांसी के देवगढ़ स्थित दशावतार मन्दिर से प्राप्त होते हैं । निम्बार्क द्वारा स्थापित निम्बार्क संप्रदाय वैष्णव धर्म से ही सम्बन्धित है ।
• सिन्धु सभ्यता के अवशेष शिवलिंग की पूजा के प्राचीनतम साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं ।
दक्षिण भारत में पल्लव वंश के शासकों ने शैव धर्म को संरक्षण दिया । पाशुपत शैव धर्म को मानने वाले लोग ‘ शिव ‘ के पशुपति रूप के उपासक होते हैं ।
पाशुपत शैव संप्रदाय की स्थापना भगवान शिव का एक अवतार माने गये लकुलीश ने की । पशुपति संप्रदाय भगवान शिव के 18 अवतारों को मान्यता देता है ।
कापलिक शैव संप्रदाय के अनुयायी भैरव के उपासक थे । कापालिक संप्रदाय का मुख्य केन्द्र श्री शैल नामक स्थान माना जाता है । कापालिक संप्रदाय में भैरव को सुरा एवं नरबलि पेश करने की परम्परा थी ।
कालामुख संप्रदाय भी कापालिक संप्रदाय की तरह आसुरी प्रवृत्ति का था । इस संप्रदाय के लोग नर – कपाल में ही भोजन , जल एवं सुरापान करते . . लिं
गायत शैव संप्रदाय दक्षिण भारत में प्रचलित था , इसे वीर शैव भी कहते हैं । ‘ लिंगायत शैव ‘ के अनुयाइयों को जंगम भी कहा जाता है
मथुरा कला जैन धर्म से ही सम्बन्धित है । 1 ‘ चंदेल शासकों ‘ ने खजुराहो में जैन मन्दिरों का निर्माण कराया । मैसूर के ‘ गंगवंश ‘ के मन्त्री चामुंड ने कर्नाटक के श्रवणवेलगोला में गोमतेश्वर की मूर्ति स्थापित की ।
प्रसिद्ध जैनग्रन्थ कल्पसूत्र ( रचनाकार – भद्रबाहु ) में जैन तीर्थंकरों की जीवनी संग्रहित है । जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल हाथी – सिंह जैन मन्दिर गुजरात में स्थित है । जैनियों का एक अन्य प्रसिद्ध तीर्थस्थल जल – मन्दिर बिहार राज्य के पावापुरी में स्थित है ।
बौद्ध धर्म का प्रवर्तन गौतम बुद्ध ने किया । गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई ० पू ० में नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु के एक ग्राम लुम्बनी में हुआ था । गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोद्धन तथा माता का नाम मायादेवी था । गौतम बुद्ध के पिता शुद्धोद्धन शाक्य क्षत्रिय कुल के प्रमुख थे । गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था । सिद्धार्थ की माता मायादेवी का निधन बचपन में ही हो गया था । सिद्धार्थ का लालन – पालन विमाता प्रजापति गौतमी ने किया ।
बौद्ध परंपरा में गौतम के गृह – त्याग की घटना को महाभिनिष्क्रमण कहा . . जाता है । गृहत्याग के पश्चात् गौतम ने सर्वप्रथम वैशाली में अलारकलाम से सांख्य । दर्शन की शिक्षा ग्रहण की । इस प्रकार ‘ अलारकलाम ‘ गौतम के प्रथम गुरु थे । इसके बाद गौतम ने रामपुत्त से शिक्षा ग्रहण की । परन्तु , उपर्युक्त शिक्षाओं से वे संतुष्ट नहीं हुए तथा वे गया के समीप 1 . उरुवेला की वनस्थली में पहुंचे तथा वहाँ कठिन तप किया , परन्तु उन्हें 2 . वाछित ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई । 3 . तत्पश्चात् , गौतम ‘ गया ‘ के निकट निरंजना ( फल्गू ) नदी के किनारे कठिन तप के लिए पीपल – वृक्ष के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गये । 4 . अपने जीवन के 35 वें वर्ष में गौतम को वैशाखी पूर्णिमा की रात्रि को 5 . ‘ सच्चा ज्ञान ‘ प्राप्त हुआ ।
• बुद्ध को सम्बोधि – प्राप्ति का स्थान कालान्तर में बोध गया ( Bodh Gaya ) के नाम से प्रसिद्ध हुआ । जिस वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ उसे कालान्तर में बोधि – वृक्ष के नाम से जाना गया । बोध गया से महात्मा बुद्ध ऋषिपत्तन ( वाराणसी के नजदीक सारनाथ ) पहुँचे । ‘ ऋषिपतन ( सारनाथ ) ‘ में उन्होंने पाँच तपस्वियों को अपना पहला उपदेश दिया ।
महाजनपदों का उदय
( Rise of Mahajanpads )
ई ० पू ० 6 वीं शताब्दी का काल भारत में महाजनपदों ( बड़े राज्यों ) के उदय का काल माना जाता हैं । ई ० पू ० 6 वीं शताब्दी का काल . भारत में द्वितीय नगरीकरण ( second yobanisation ) का कल माना जात है ।
बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय एवं जैन साहित्य भगवती सूत्र से 16 महाजनपदों का उल्लेख प्राप्त होता है । सोलह महाजनपदों में मगध , कोसल , वत्स और अवन्ति सर्वाधिक शक्तिशाली थे । सोलह महाजनपदों में अश्मक एकमात्र जनपद था , जो दक्षिण भारत में , अवस्थित था
. कुल 16 महाजनपदों में वीज्ज एवं मल्ल गणतांत्रिक ( Republican ) राज्य थ ।
बौद्ध एवं जैन ग्रंथों से ज्ञात होता है , कि ई ० पू ० 6 वीं शताब्दी में 10 गणतांत्रिक राज्य थे , जिनमें विदेह , मल्ल ( पावा ) , मल्ल ( कुशीनगर ) , शाक्य तथा लिच्छवी प्रमुख थे ।
16 महाजनपद
अंग – अंग महाजनपद मगध राज्य के पूरब में आधुनिक भागलपुर के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित था । अंग की राजधानी चम्पा थी । उसका मगध के साथ संघर्ष होता रहता था ।
2 . मगध – मगध राज्य वर्तमान पटना एवं गया जिलों ( बिहार ) के स्थान पर स्थित था । मगध की राजधानी गिरिव्रज थी जो अपने वैभव के लिए प्रसिद्ध थी । मगध में सर्वप्रथम राजवंश की स्थापना ब्रहदथ ने की थी ।
3 . काशी – काशी राज्य की राजधानी वाराणसी थी , जो वरुणा एवं असी नदियों के तट पर बसी हुई थी । काशी एक शक्तिशाली राज्य था , जिसका कौशल राज्य से सदैव संघर्ष चलता रहता था ।
4. अवन्ति – प्राचीन भारतीय अवन्ति राज्य आधुनिक मालवा था । इस राज्य की मुख्य राजधानी उज्जयिनी नगरी थी । वत्स जनपद के साथ इस राज्य का निरन्तर संघर्ष रहता था ।
5. कुरू – वर्तमान दिल्ली एवं मेरठ के प्रदेश इस राज्य के अन्तर्गत आते थे । इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी , महाभारत में कुरू महाजनपद का उल्लेख है ।
6 . मत्स्य – मत्स्य जनपद कुरू राज्य के दक्षिण एवं यमुना नदी के पश्चिम में स्थित था । इसकी राजधानी विराट नगरी थी ।
7 . गान्धार – इस जनपद में कश्मीर , पश्चिमोत्तर प्रदेश , पेशावर एवं तक्षशिला के प्रदेश आते थे । इसकी राजधानी तक्षशिला थी । अवन्ति के शासक प्रद्योत- के साथ पुक्कुसाती के अनेक युद्ध हुए थे जिसमें गान्धार शासक की विजय हुई थी ।
8. कम्बोज – बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार कम्बोज , गन्धार जनपद का पड़ोसी राज्य था । कम्बोज की राजधानी राजपुर थी ।
9 . वत्स – वत्स काशी महाजनपद के दक्षिण – पश्चिम व चेदि के उत्तर – पूर्व में स्थित था । वत्स की राजधानी कौशाम्बी थी , जो यमुना नदी के किनारे स्थित थी । वत्स का अवन्ति राज्य से संघर्ष होता रहता था ।
10. कोशल – कोशल जनपद लगभग आधुनिक अवध के बराबर था । कोशल की राजधानी राप्ती के किनारे श्रावस्ती थी । काशी एवं कोशल में निरन्तर संघर्ष होता रहा ।
11. चेदि – आधुनिक बुन्देलखण्ड और उसके सीमावर्ती क्षेत्र चेदि राज्य के अन्तर्गत आते थे । चेदि की राजधानी शुक्तिमति थी ।
12. वज्जि – रीज डेविस ( Rhus Davis ) के अनुसार वज्जि राज्य आठ राज्यों का संघ था , जो प्राचीन विदेह और वैशाली राज्यों के टूट जाने पर उन्हीं के स्थान पर बना । इन आठ राज्यों में लिच्छवि , विदेह और ज्ञात्रिक प्रमुख थे । जिनकी राजधानियाँ क्रमश : वैशाली , मिथिला एवं कुण्डग्राम थी ।
13. मल्ल – वज्जि के समान मल्ल भी एक संघीय प्रजातन्त्रात्मक राज्य था । hi इस संघ में कुशीनारा एवं पावा दो मल्ल के शाखा थे । कुशीनगर , कुशीनारा की तथा दूसरी शाखा की राजधानी पावा थी ।
14. अश्मक – यह दक्षिण भारत में गोदावरी नदी तट पर स्थित था । इस जनपद की राजधानी पौदन्य ( आधुनिक पोतन ) थी ।
15. पांचाल – सम्पूर्ण रुहेलखण्ड एवं गंगा यमुना के दोआब के पूर्वी भाग में यह जनपद स्थित था । इस जनपद की दो शाखाएँ थी । प्रथम उत्तरी पांचाल द्वितीय , दक्षिणी पांचाल । उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र तथा दक्षिणी पांचाल की राजधानी काम्पिल्य थी ।
16. सूरसेन – सूरसेन जनपद , मत्स्य राज्य के उत्तर में स्थित था । यहाँ पर पहले यदुवंशी अंधक – वृष्णियों का गणराज्य था । उपरोक्त महाजनपदों में से अधिकांश राजतन्त्र थे , किन्तु वज्जि , मल्ल , सूरसेन आदि गणतंत्र थे ।
मगध साम्राज्य
( Magadh Empire )
16 महाजनपदों में मगध सर्वाधिक शक्तिशाली था । ई ० पू ० शताब्दी के पूर्व मगध में ‘ वार्हद्रथ वंश ‘ का शासन था । ‘ वार्हद्रथ वंश ‘ का संस्थापक वृहद्रथ था , उसकी राजधानी राजगृह या गिरिव्रज थी । जरासंध बृहद्रथ का पुत्र था , वह इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था ।
मगध की गद्दी पर बिम्बिसार ने 545 ई ० पू ० में हर्यक वंश का शासन स्थापित किया । बिम्बिसार भारत का पहला शासक था , जिसने स्थाई सेना ( Permanent Standing Army ) रखने की प्रथा आरंभ की । उपर्युक्त कारण से बिम्बिसार को सौणिय या श्रोणिक ( महती सेना वाला ) पड़ा । महावंश के अनुसार बिम्बिसार ने 52 वर्षों तक शासन किया था ।\
बिम्बिसार ने कोशल नरेश प्रसेनजीत की बहन कोशला वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्लना तथा पंजाब की राजकुमारी क्षेमामद्र से विवाह किया । बिम्बिसार ने अंग – शासक ब्रह्मदत्त को हराकर उसका राज्य मगध में मिला लिया । बिम्बिसार के विशाल साम्राज्य की राजधानी गिरिव्रज थी , एवं राजगृह को नयी राजधानी बनाया । बिम्बिसार बौद्ध धर्म का अनुयायी था ।
बिम्बिसार ने महात्मा बुद्ध एवं अवन्तिरराज प्रद्योत की सेवा में राजवैद्य जीवक को भेजा । विम्बिसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को अंग का प्रान्तपति नियुक्त किया ।
बौद्ध साहित्य के अनुसार 493 ई ० पू ० में बिम्बिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने की । जैन – साहित्य यद्यपि उपर्युक्त तथ्य को नकारता है तथा अजातशत्रु को पितृ – भक्त बताता है । अजातशत्रु 493 ई ० पू ० में मगध की गद्दी पर बैठा , उसे कुणिक भी कहते थे ।
कोशल नरेश प्रसेनजीत ने अजातशत्रु को पराजित कर बन्दी बना लिया तथा सन्धि करके अपनी पुत्री वजिरा का विवाह उससे करा दिया ।
अजातशत्रु ने उत्तर में वैशाली के शक्तिशाली वज्जि संघ से युद्ध किया । वस्सकार ( वर्षकार ) अजातशत्रु का सुयोग्य मन्त्री था
अजातशत्रु ने वैशाली के विरुद्ध युद्ध में दो नवीन युद्धास्त्रों रथमूसल एवं . महाशिलाकण्टक का प्रयोग किया था । लिच्छवियों के पश्चात् उसके मल्ल संघ को भी अजातशत्रु ने अपने साम्राज्य में मिला लिया । प्रारम्भ में अजातशत्रु जैन धर्म का अनुयायी था , परन्तु बाद में बौद्ध धर्म , ग्रहण कर लिया । अजातशत्रु ने 32 वर्षों तक मगध पर शासन किया ।
अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदयन ने 462 ई ० पू ० में कर दी और . वह मगध की गद्दी पर बैठा । उदयन ने पाटलीपुत्र ग्राम की स्थापना की । उदयन के शासन काल में पहली बार पाटलीपुत्र मगध की राजधानी बनी ।
उदयन जैन धर्मावलम्बी था , उसने लगभग 16 वर्ष तक राज्य किया । हर्यक वंश का अन्तिम राजा उदयन का पुत्र नागदशक था । 412 ई ० पू ० में नागदशक को उसके अमात्य शिशुनाग ने अपदस्थ करके मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना की ।
शिशुनाग ने पाटलिपुत्र के स्थान पर वैशाली को अपना राजधानी बनाया । शिशुनाग ने अवन्ति पर विजय प्राप्त कर , उसे मगध साम्राज्य में विलय कर दिया । 396 ई ० पू ० शिशुनाग की मृत्यु हो गयी । शिशुनाग के पश्चात् उसका पुत्र कालाशोक मगध का शासक बना ।
कालाशोक ने पुनः पाटलिपुत्र को मगध साम्राज्य की राजधानी बनाया । शिशुनाग वंश का अन्तिम शासक नन्दिवर्धन था । शिशुनाग वंश के पतन के पश्चात् मगध में नन्द वंश की स्थापना हुई । पुराणों के अनुसार नन्द वंश का संस्थापक महापद्म नन्द था ।
यूनानी इतिहासकार कार्टेयस ने महापद्म को शूद्र बताया है । महापद्म नन्द ने अनेक क्षत्रिय राजवंशों का उन्मूलन किया था , इसी कारण उसे अखिलक्षेत्रान्तकारी और क्षत्रविनाशकृता कहा गया है । खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से पता चलता है कि नन्द – राजा का कलिंग पर भी अधिकार था ।
\नन्द राजा ने वैशाली के समीप स्थित मिथिला राज्य को भी मगध का अंग बना लिया था । मैसूर के अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि दक्षिण भारत के भी अनेक भागों पर नन्द शासक का अधिकार था । नन्द वंश ने 322 ई ० पू ० तक राज्य किया , इस वंश का अन्तिम शासक धनानन्द था । सिकन्दर का भारत पर आक्रमण धनानन्द के शासन काल में ही हुआ ।
322 ई ० पू ० में मौर्यवंशीय चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की सहायता से धनानन्द को परास्त कर मगध में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की ।
विदेशी आक्रमण
( Foreign Invasion )
भारत पर पहला विदेशी आक्रमण 550 ई ० पू ० में ईरान के साइरस द्वारा क्रिया गया , जो विफल रहा । भारत पर दूसरा ईरानी आक्रमण डैरियस प्रथम ( हखामनी वंश ) द्वारा 518 ई ० पू ० के आस – पास किया गया । ई ० पू ० 326 में यूनान के ‘ सिकन्दर ‘ ने भारत पर हिन्दुकुश के रास्ते आक्रमण किया ।
सिकन्दर मकदूनिया के शासक फिलिप का पुत्र था । सिकन्दर ई ० पू ० 336 में राजसिंहासन पर बैठा , वह अरस्तू का शिष्य था । सिकन्दर के सेनापति का नाम सेल्यूकस निकोटर था , नियार्कस सिकन्दर का जल – सेनापति था । सिकन्दर को पुरु राज्य से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा ।
झेलम और चिनाब नदी के मध्य के प्रदेश पर पोरस का राज्य था । सिकन्दर को पोरस के साथ युद्ध करना पड़ा , जिसे हाइडेस्पीज के युद्ध के नाम से जाना जाता है ।
सिकन्दर ने पुरू के राजा पोरस को हरा दिया परन्तु , उससे प्रभावित होकर उसे विजित प्रदेश लौटा दिया । सिकन्दर ने पोरस के विरुद्ध विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में निकाइया ( Nikaia ) की स्थापना की ।
. सिकन्दर ने स्वामी भक्त घोड़े के नाम पर बुकाफेला ( Bokkephala ) नामक नगर का निर्माण करवाया ।
सिकन्दर ने मिस्र पर विजय के उपलक्ष्य में सिकन्दरिया नामक नगर की स्थापना की थी । व्यास नदी के तट पर मगध की शक्तिशाली सेना से डरकर सिकन्दर के सैनिकों ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया । सिकंदर स्थल मार्ग द्वारा ई ० पू ० 325 में वापस लौटा ।
‘ सिकन्दर की मृत्यु 323 ई ० पू ० में बेबीलोन में हो गयी , वह भारत में 19 महीनों तक रहा ।
मौर्य साम्राज्य
( Mourya Empire )
मौर्य साम्राज्य की स्थापना ई ० पू ० 322 में ‘ चन्द्रगुप्त मौर्य ‘ ने की । चन्द्रगुप्त का जन्म ई ० पू ० 345 में शाक्यों के पिप्पलिवन गणराज्य की मोरिय शाखा में हुआ था । यूनानी साहित्य में चन्द्रगुप्त मौर्य को मौर्य वंश के शासक सैंड्रोकोट्टस कहा
चन्द्रगुप्त मौर्य ( ई ० पू ० 322-298 )
बिन्दुसार ( ई ० पू ० 298-273 ) ।
अशोक ( ई ० पू ० 269-232 ) ।
चन्द्रगुप्त एवं सेल्यूकस के बीच हुए युद्ध का विवरण एप्पियस नामक यूनानी व्यक्ति ने किया है । सेल्यूकस ने अपनी बेटी कारनेलिया की शादी चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ कर दी तथा काबुल , गन्धार , मकरान और हेरात प्रदेश चन्द्रगुप्त को दहेज के रूप में प्रदान किया ।
प्लूटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त ने सेल्युकस को 500 हाथी उपहार में दिया । सेल्यूकस ने मेगास्थनीज को दूत बनाकर चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा ।
मेगास्थनीज काफी दिनों तक पाटलिपुत्र में रहा तथा उसने चन्द्रगुप्त के बारे में अपनी पुस्तक इंडिका ( Indica ) में लिखा ।
चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमन्त्री चाणक्य ( अथवा , विष्णुगुप्त , या कौटिल्य ) था । चन्द्रगुप्त ने बाद में जैन धर्म स्वीकार कर लिया तथा जैन आचार्य भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली ।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रचार किया । 300 ई ० में कर्नाटक के श्रवणवेलगोला में अनशन व्रत करके चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने शरीर का त्याग कर दिया । चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार मगध की गद्दी पर ई ० पू ० 300 में बैठा । यूनानी लेखों में बिन्दुसार को अमित्रोकेट्स कहा गया है , जिसका संस्कृत रूपान्तरण अमित्रघात ( शत्रुओं को नष्ट करनेवाला ) होता है , वह ( बिन्दुसार ) आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था ।
वायुपुराण में बिन्दुसार के लिए भद्रसार नामक शब्द का प्रयोग किया गया । सीरिया के एण्टियोकस नामक राजा से ‘ बिन्दुसार ‘ ने मदिरा , सूखे अंजीर और दार्शनिक भेजने की अपील की थी ।
चाणक्य की मृत्यु के बाद राधागुप्त बिन्दुसार का प्रधानमन्त्री बना ।
एंटियोकस प्रथम ने अपने राजदूत डायमेकस को बिन्दुसार के दरबार में मेगास्थनीज के स्थान पर भेजा था । टॉलमी द्वितीय फिलाडेल्फस ने डायनिकस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था । . . . . . . .
. बिन्दुसार के शासनकाल में तक्षशिला में विद्रोह हुआ , उसका पुत्र सुसीम विद्रोह को दबाने में असफल रहा । उज्जैन के तत्कालीन सूबेदार अशोक ने तक्षशिला के विद्रोह को सफलतापूर्वक को दबा दिया ।
बिन्दुसार को जैनग्रन्थों में सिंहसेन की संज्ञा दी गई है ।
बिन्दुसार की मृत्यु के बाद ई ० पू ० 269 में अशोक मगध की गद्दी पर बैठा । अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी था ।
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष लगभग 261 ई ० पू ० में कलिंग पर आक्रमण कर और राजधानी तोसाली पर अधिकार कर लिया ।
कलिंग युद्ध में 2.5 लाख व्यक्ति मारे गये एवं इतने ही घायल हुए । कलिंग युद्ध ने अशोक का हृदय परिवर्तन कर दिया ।
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने भेरीघोष के स्थान पर उसने धम्मघोष अपनाने की घोषणा की ।
अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया एवं उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली ।
अशोक ने आजीवकों को रहने हेतु बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाओं का निर्माण करवाया । उपर्युक्त गुफाओं का नाम कर्ज , चौपार , सुदामा तथा विश्व झोंपड़ी था ।
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा । : को श्रीलंका भेजा ।
अशोक ने अपने जीवन में दो आक्रमण किए , पहला आक्रमण कश्मीर पर किया ।
अशोक की तुलना डेविड एवं सोलमान ( इस्रायल ) तथा मार्कस ओरलियस एवं शार्लमा ( रोम ) जैसे विश्व के महानतम सम्राटों से की जाती है । अशोक ने यवन शासकों एंटियोकस- ।। ( सीरिया ) , टॉलमी- II ( मिस्र ) , एंटिगोनस गोनाटस ( मकदूनिया ) , मरास ( साइरिन ) एवं एलेक्जेंडर से मित्रतापूर्ण संबंध कायम किये एवं उनके दरबार में अपने दूत भेजे ।
चोल , पांड्य , सतियपुत्र , केरलपुत्र एवं ताम्रपर्णि आदि दक्षिण भारतीय राज्यों में अशोक ने धर्म प्रचार के लिए दूत भेजा । अशोक ने बौद्ध धर्म को राजधर्म , ब्राह्मी लिपि को राजकीय लिपि घोषित किया था ।
भबू शिलालेख से स्पष्ट होता है अशोक बुद्ध , धम्म एवं संघ में विश्वास रखता था ।
अशोक के तीसरे शिलालेख के अनुसार , प्राचीन काल में विहार यात्रा के नाम से प्रचलित यात्रा को धम्म यात्रा में बदल दिया ।
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 12 वें वर्ष में धर्म प्रचार के लिए राजुका , प्रदेशका एवं युक्त जैसे पदाधिकारियों को लगाया ।
अशोक के ‘ 8 ‘ शिलालेख के अनुसार अपने शासन के 13 वें वर्ष में उसने धम्म महामात्र की नियुक्ति की । मौर्य प्रशासन के विषय में कौटिल्य के अर्थशास्त्र एवं मेगास्थनीज की इंडिका से महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है ।
राजा प्रधान सेनापति , प्रधान न्यायाधीश तथा प्रधान दंडाधिकारी होता था ।
. हिरण्य एक प्रकार का कर था जो अनाज के रूप में न लेकर नकद के रूप में देना पड़ता था
देश में सोना , चाँदी , ताँबा , लोहा तथा जस्ता भी काफी मात्रा में उपलब्ध
मौर्यकाल में जल – मार्गीय व्यापार के लिए 8 प्रकार की नौकाओं के प्रयोग के प्रमाण मिले हैं जिनमें वहण , संयात एवं क्षुद्रक प्रमुख थीं ।
शराब बेचने वाले को शौण्डिक कहा जाता था ।
अस्त्र – शस्त्र का निर्माण करने वाले विभाग का प्रमुख आयुधागाराध्यक्ष होता था । मौर्यकाल में पाटलिपुत्र , तक्षशिला , उज्जैन , तोशाली , कौशांबी , वाराणसी आदि प्रमुख व्यापारिक केन्द्र थे । भारत के समुद्र तटों पर अनेक बंदरगाह थे जहाँ से लंका , वर्मा , मिस्र , सीरिया , सुमात्रा , जावा , फारस , यूनान तथा रोम से विदेशी व्यापार होते थे । श्रेणियाँ प्रायः अपने शिल्पियों के लिए बैंक का कार्य करती थी । राजकीय कला के अन्तर्गत राजाप्रसाद , स्तम्भ , गुहाविहार स्तूप तथा लोक कला के अन्तर्गत प्रमुख रूप से यक्ष – यक्षी मूर्तियाँ आती हैं । डॉ ० स्पूनर ने बुलंदीबाग एवं कुम्हरार ( पटना स्थित ) लकड़ी के विशाल भवन के अवशेषों का पता लगाया , इस भवन की लम्बाई 140 फुट और चौड़ाई 120 फुट . उपर्युक्त सभा भवन 40 खम्भों वाला हॉल था । इस भवन का फर्श और छत लकड़ी का था ।
भवन के स्तम्भ बलुआ पत्थर के बने हुए थे और उसमें चमकदार पॉलिस की गयी थी । • फाह्यान के अनुसार यह प्रासाद मानव कृति नहीं है वरन देवों द्वारा निर्मित . स्तम्भों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अशोक द्वारा निर्मित सारनाथ ( वाराणसी ) का सिंह स्तम्भ है जिसमें चार सिंह का चित्र बना है । अशोक ने सर्वाधिक स्तूपों ( लगभग 84,000 ) का निर्माण करवाया इनमें साँची ( मध्यप्रदेश ) तथा भरहुत का स्तूप प्रमुख है । गया के निकट बराबर की पहाड़ियों में अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 12 वें वर्ष में सुदामा गुहा आजीवक भिक्षुओं को दान में दी । अशोक के पुत्र दशरथ ने नागार्जुनी पहाड़ियों में आजीवको
को 3 गुफाएँ प्रदान की , इसमें से एक प्रसिद्ध गुफा गोपी गुफा है मौर्य शासन 137 वर्षों तक रहा , इसका अन्तिम शासक बृहद्रथ था ।
बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई ० पू ० में कर दी एवं मगध पर ‘ शुंग वंश ‘ की नींव डाली ।
मौर्योत्तर काल
( Post – Maurya Period )
187 ई ० पू ० से 240 ई ० तक का काल भारतीय इतिहास में ‘ मौर्योत्तर काल ‘ के नाम से जाना जाता है । इस काल में मगध सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में ब्राह्मण साम्राज्यों ( शुंग , कण्व , सातवाहन एवं वाकाटक ) का उदय हुआ तथा विदेशी आक्रमण हुए । इस काल में क्षेत्रीय राजा स्वतन्त्र होने लगे जिसमें कलिंग का राजा खारवेल प्रमुख था । हर्षचरित से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण था । पुष्यमित्र शुंग ने अपनी राजधानी बिदिशा में स्थापित किया । पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण धर्मावलम्बी था अत : उसने अपने शासनकाल में दो अश्वमेघ यज्ञ किये । पुष्यमित्र के शासनकाल में यवन आक्रमण हुए जिसका नेतृत्व डेमेट्रियस ने किया । पुष्यमित्र शुंग ने इण्डो – यूनानी शासक मिनांडर को पराजित किया । पतंजलि जैसे महान विद्वान पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में हुए थे शुंगकाल में भरहुत , बोध गया तथा साँची के स्तूपों को नया रूप प्रदान किया गया ।
पुष्यमित्र ने वैदिक धर्म को राजधर्म घोषित किया तथा पालि के स्थान पर संस्कृत को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया ।
.
कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार मौर्य – प्रशासन विभागों में बंटा हुआ था । प्रत्येक विभाग को तीर्थ कहते थे । प्रत्येक ‘ तीर्थ ‘ के अध्यक्ष को अमात्य ( मन्त्री ) कहा जाता था ।
अर्थशास्त्र में कुल मिलाकर 18 अमात्यों का वर्णन किया गया है । इनमें महामन्त्री एवं पुरोहित अति महत्वपूर्ण थे । . . .
( अर्थशास्त्र में वर्णित 18 अमात्य 1. महामन्त्री – मुख्यमन्त्री 10. नायर – नगराध्यक्ष 2. पुरोहित – राजा का प्रमुख सलाहकार 11. करमांतिक – खनन एवं कारखाने का अध्यक्ष 3. सेनापति – सशस्त्र सेना का प्रधान 12. सन्निधाता – राजकोष का अध्यक्ष 4. युवराज – राजा का ज्येष्ठ पुत्र 13. व्यावहारिक – मुख्य न्यायाधीश 45. दौवारिक – द्वारपाल मंत्रिमण्डलाध्यक्ष – मंत्रिमण्डल का अध्यक्ष 6. दंडपाल – पुलिस का प्रधान अधिकारी 15. अन्तपाल – सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक 7. समाहर्ता – आय संग्रहकर्ता 16. दुर्गपाल – देश के अंदर दुर्गों का रक्षक 8. प्रदेष्ट्रा – कमिश्नर 17. अन्तर्वेदिक – अन्तःपुर का रक्षाधिकारी 9. पौर – नगर कोतवाल 18. प्रशास्त – कारागार युक्त ( खोई हुई संपत्ति के प्राप्त होने पर उसकी सुरक्षा करनेवाला ) , प्रतिवैदिक ( सम्राट को प्रतिदिन की सूचना देने वाला ) , ब्रजभूमिक ( गौशाला का निरीक्षण करने वाला पदाधिकारी ) , एग्रोनोमोई ( सड़कों का निरीक्षण करने वाला पदाधिकारी ) आदि मौर्यकाल के कुछ प्रमुख पदाधिकारी थे ।
मौर्य काल में गुप्तचर सेवा को भी दो भागों में बाँटा गया था – संस्थान तथा संचारण । संस्थान वर्ग के गुप्तचर एक स्थान पर टिककर वहाँ के गतिविधियों की सूचना राजा को देते थे । संचारण वर्ग के गुप्तचर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमण करके विभिन्न स्थानों की सूचना राजा को देते थे ।
प्लिनी के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में 6 लाख पैदल सैनिक , 30 की हजार घुड़सवार , 9 हजार हाथी तथा 8000 रथ थे ।
इंडिका के अनुसार सम्पूर्ण सेना के प्रबन्धन हेतु एक 30 सदस्यीय समिति होती थी । सेना का प्रबन्ध 6 भागों में विभक्त था तथा प्रत्येक विभाग की समिति में अध्यक्ष सहित 5 सदस्य होते थे 1 . प्रथम समिति – ये जल सेना का प्रबन्ध करती थी । 2. द्वितीय समिति – सेना को हर प्रकार की सामग्री तथा रसद भेजने का प्रबन्ध करती थी । 3. तृतीय समिति – पैदल सेना का प्रबन्ध करती थी । चतुर्थ समिति – अश्वरोहियों का प्रबन्ध देखती थी । 5. पाँचवीं समिति हाथियों की सेना का प्रबन्ध देखती थी । तथा , 6 . छठी समिति – रथ सेना का प्रबन्ध देखती थी ।
सेना के साथ एक चिकित्सा – विभाग होता था जो घायल सैनिकों का इलाज करता था । धर्मस्थेय ( दीवानी मामले ) तथा कंटकशोधन ( फौजदारी मामले ) मौर्यकालीन न्यायालय थे ।
अशोक के समय जनपदीय न्यायालय का न्यायाधीश राजुका कहलाता था ।
मौर्य कालीन प्रांतों को चक्र कहा जाता था ।
प्रान्तों का प्रशासन राज्य परिवार के ही किसी व्यक्ति द्वारा होता था जिन्हें कुमार या आर्यपुत्र कहा जाता था । प्रान्तों में कई मण्डल होते थे ।
. पुष्यमित्र के प्रोत्साहन से पतंजलि के महाभाष्य तथा मनु – स्मृति ( Manu Script ) की रचना हुई । पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु 148 ई ० पू ० में हुई , शुंग वंश का अन्तिम शासक देवभूति था । देवभूति की हत्या उसके मन्त्री वासुदेव कण्व ने कर दी ।
शुंग वंश का पतन 73 ई ० पू ० में हुआ । विदिशा का गरुड़ध्वज , भाजा का चैत्य एवं विहार , अजन्ता का नवाँ चैत्य मन्दिर , नासिक तथा काने के चैत्य , मथुरा की अनेक यक्ष – यक्षिणियों को मूर्तियाँ शृंग – कला के ही उदाहरण हैं । मगध पर कण्व वंश की स्थापना वासुदेव कण्व ने 72 ई ० पू ० में की । कण्व वंश ने कुल 45 वर्षों तक ( 72 ई ० पू ० से 27 ई ० पू ० ) तक शासन किया । कण्व वंश के शासक ब्राह्मण थे । कण्व वंश का अन्तिम राजा सुशर्मा था , जिसकी हत्या उसके सेनापति सिमुक ने कर दी तथा सातवाहन वंश की स्थापना की । सातवाहन शासकों ने अपनी राजधानी प्रतिष्ठान में स्थापित की । सातवाहन वंश के प्रमुख शासक थे सिमुक , शातकर्णि , गौतमीपुत्र शातकर्णि , वशिष्ठी पुत्र , पुलवामी तथा यज्ञश्री शातकर्णि । इस वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक शातकर्णि प्रथम था । गौतमीपुत्र शातकर्णि को सातवाहन – वंश का पुनरूद्धारक कहा जाता है ।
गौतमीपुत्र शातकर्णि का शासनकाल 106 ई ० से 130 ई ० तक माना जाता . . गौतमीपुत्र शातकर्णि ब्राह्मण – धर्म का अनुयायी था । उसने दो अश्वमेघ तथा एक राजसूय यज्ञ किया । गौतमीपुत्र शातकर्णि की विजयों के विषय में नासिक अभिलेख से पता चलता है । गौतमीपुत्र शातकर्णि की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र वशिष्ठीपुत्र पुलमावी शासक बना ।
वशिष्ठीपुत्र ने 130 ई ० से 154 ई ० तक शासन किया । वशिष्ठीपुत्र के पश्चात् सातवाहन वंश का अन्तिम शासक यज्ञश्री शातकर्णि था जिसने 165 ई ० से 193 ई ० तक शासन किया । सातवाहन शासकों के समय प्रसिद्ध साहित्यकार हाल एवं गुणाढ्य थे ।
हाल ने गाथा सप्तशतक तथा गुणाढ्य ने बृहत्कथा नामक पुस्तकों की रचना की । सातवाहन शासकों ने चाँदी , ताँबे , सीसा , पोटीन और काँसे की मुद्राओं का प्रचलन किया । गौतमीपुत्र शतकर्णि ने अपने शासन के 24 वें वर्ष में ब्राह्मणों को भूमि – अनुदान ( Land Grants ) देने की प्रथा आरम्भ की । सातवाहन समाज मातृसत्तात्मक था तथा उनकी भाषा प्राकृत एवं लिपि ब्राह्मी थी । कार्ले का चैत्य , अजंता – एलोरा की गुफाओं का निर्माण एवं अमरावती कला का विकास कला के क्षेत्र में सातवाहनों के उल्लेखनीय योगदान हैं ।
कथा सरितसागर एवं कथाकोष नामक प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना सातवाहन काल में हुई । नासिक अभिलेख ( गौतमी बल श्री ) में उल्लिखित है कि गौतमीपुत्र शतकर्णि के घोड़े तीन समुद्रों का पानी पीते थे । सातवाहनों के पतन के पश्चात् दक्षिण में उठने वाली शक्तियों में सबसे प्रवल वाकाटक थे । इस वंश की स्थापना एक ब्राह्मण विन्ध्यशक्ति ने विदर्भ में की । एकमात्र वाकाटक शासक प्रवरसेन ( विन्ध्यशक्ति का पुत्र ) था जिसे सम्राट की उपाधि दी गयी । प्रवरसेन का राज्य उत्तर में बुन्देलखंड से लेकर दक्षिण में हैदराबाद तक विस्तृत था । प्रवरसेन ने अनेक वैदिक यज्ञ किये जिनमें चार अश्वमेघ यज्ञ थे । प्रवरसेन ने एक प्रसिद्ध कृति सेतुबंध की रचना की ।
मौर्य – शासन के पतन के उपरान्त भारत पर निरन्तर विदेशी आक्रमण हुए । जो इस प्रकार थे – हिन्द – यूनानी , शक , पहल्व एवं कुषाण । .
डेमेट्रियस ने हिन्दुकुश को पार कर पंजाब के विस्तृत भू – भाग पर अधिकार कर लिया तथा साकल को अपनी राजधानी बनायी । उपर्युक्त काल में डेमेट्रियस के देश बैक्ट्रिया में यूक्रेटाइडीज के नेतृत्व में विद्रोह हो गया । यूक्रेटाइडीज भी भारत की ओर बढ़ा और कुछ भागों को जीतकर तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया । यवन साम्राज्य डेमेट्रियस एवं यूक्रेटाइडीज के वंशों में बँट गया । डेमेट्रियस के पश्चात् उसके वंश का सबसे प्रतापी शासक मीनाण्डर हुआ ।
मीनाण्डर को बौद्ध – ग्रन्थों में मिलिन्द कहा गया है । मीनाण्डर बौद्ध था , उसने नागसेन से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली । मिलिन्दपान्हों नामक ग्रन्थ में मीनाण्डर की राजधानी साकल ( स्यालकोट ) का वर्णन मिलता है । भारत में सबसे पहले हिन्द – यूनानियों ने ही सोने के सिक्के जारी किए । जन्म – पत्री के लिए भारत में प्रयुक्त शब्द होरा – चक्र यूनानी संस्कृति से ही लिया गया है । भारत में प्रचलित राशियाँ यूनानियों से ही ली गई हैं । हिन्द – यूनानी शासकों ने भारत के पश्चिमोत्तर सीमा – प्रान्त में यूनान की हेलेनिस्टिक आर्ट का प्रचलन किया । भारत के गन्धार कला को इण्डो – ग्रीक कला भी कहा जाता है । भारतीयों ने यूनानियों से ही कैलेण्डर बनाने का ज्ञान प्राप्त किया । ई ० पू ० पहली सदी के अन्त में पार्थियन शासकों का पश्चिमोत्तर भारत पर राज था । पार्शियन पहलव वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक गोण्डोफर्नीज था , जिसने 20-41 ई ० के दौरान शासन किया । इसाई धर्म का प्रचारक सेंट टॉमस गोण्डोफर्नीज के दरबार में आया था । कुषाणों ने भारत में हिन्द – पार्थियन शासन का अन्त किया ।
कुषाण पश्चिमी चीन में गोबी प्रदेश में रहने वाली यू – ची ( Yueh – chi ) जाति से सम्बन्धित थे । कुषाण वंश का संस्थापक कुजूल कडफिसस था । भारत में कुषाण साम्राज्य की स्थापना कुजुल कडफिसस के पुत्र विम कडफिसस ने की । कुषाण वंश का सबसे प्रतापी राजा कनिष्क 78 ई ० में गद्दी पर बैठा । कनिष्क ने 78 ई ० में एक संवत् चलाया , जो शक संवत् कहलाता है । कनिष्क ने अपने राज्य का विस्तार मगध तक किया । कनिष्क के साम्राज्य में अफगानिस्तान , सिन्ध का भाग , पार्थिया एवं बैक्ट्रिया के प्रदेश सम्मिलित थे । कनिष्क की राजधानी पुरूषपुर ( पेशावर ) में थी । कनिष्क ने कश्मीर को जीत लिया तथा एक नये नगर कनिष्कपुर की स्थापना की । कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का अनुयायी था । कनिष्क ने मगध के बौद्ध – विद्वान अश्वघोष को अपना राज – कवि नियुक्त किया । कनिष्क ने अश्वघोष से बौद्ध धर्म में दीक्षा ली । कनिष्क की मुद्राओं पर यूनानी , ईरानी व हिन्दू – देवताओं जैसे हेराक्लीज , सेरापीज , सूर्य , चन्द्र , अग्नि , शिव आदि की आकृतियाँ उत्कीर्ण मिलती हैं । कनिष्क ने बौद्ध – धर्म को राजधर्म बनाया तथा कनिष्कपुर , पुरूषपुर , मथुरा व तक्षशिला आदि स्थानों पर स्तूप एवं विहार बनवाये । कनिष्क के शासनकाल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन कश्मीर के कुण्डलवन में हुआ । चरक कनिष्क का राजवैद्य था , जिसने चरकसंहिता की रचना की थी । अश्वघोष , चरक , नागार्जुन , महाचेत , संघरक्ष तथा पार्श्व कनिष्क के दरबार की शोभा बढ़ाते थे । कनिष्क के शासनकाल में एक नवीन कला शैली गंधार कला का आविर्भाव हुआ । कनिष्क की मृत्यु 102 ई ० में हो गयी , उसकी हत्या उसके सेनापतियों ने ही कर दी ।
कुषाण वंश का अन्तिम शासक वासुदेव था । . .
बौद्ध – धर्म को संरक्षण प्रदान करने के कारण कनिष्क को दूसरा अशोक कहा जाता है । शक एक घुमक्कड़ जाति थी और उनका मूल निवास स्थान मध्य एशिया था । यूची नामक एक अन्य घुमन्तु जाति ने शकों को मध्य एशिया से निकाल दिया , तो वे बैक्ट्रिया में बस गये । कुछ समय पश्चात् शक बलूचिस्तान से होकर निचले सिन्ध प्रदेश पहुँचे तथा वहीं बस गए । भारतीय शक राजाओं में सम्भवतः पहला शासक माउस ( Maues ) था ।
भारत में शक शासक स्वयं को क्षत्रप ( फारसी प्रणाली ) कहते थे । पश्चिमी भारत ( महाराष्ट्र ) में शकों के प्रसिद्ध क्षहरात – वंश का आविर्भाव हुआ । क्षहरात वंश का सबसे प्रमुख शासक नहपान था , सम्भवतः उसने 119 ई ० से 124 ई ० तक राज्य किया था । नहपान ने महाराष्ट्र के सातवाहन शासक को परास्त करके उस प्रदेश पर अधिकार कर लिया । शकों के एक वंश का उज्जैन में भी आविर्भाव हुआ , जिसे चष्टन वंश कहा जाता है । चष्टन वंश का संस्थापक चष्टन था जो राजा यसामोतिक का पुत्र था । चष्टन वंश का सबसे प्रतापी शासक रूद्रदामन -1 ( 130-150 ई ० पू ० ) था तथा उसकी राजधानी उम्जैन थी । रूद्रदामन- I
सिक्कों एवं जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने महाक्षत्रप की उपाधि धारण की थी । रूद्रदामन- I ने कठियावाड़ की सुदर्शन झील का पुनर्निमाण करवाया था । रूद्रदामन- I संस्कृत भाषा और अलंकार शास्त्र का प्रकांड पंडित था । रूद्रदामन -1 ने प्रथम संस्कृत नाटक की रचना कराई । रूद्रदामन- I ने पहली बार भारतीय इतिहास में शुद्ध संस्कृत भाषा में अभिलेख खुदवाये । भारत में शुद्ध संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण प्रथम अभिलेख , गिरनार – अभिलेख है ।
गुप्तवंशीय शासक चन्दगुप्त द्वितीय ने चष्टन – वंश के शासक रूदसिंह तृतीय की हत्या करके शक राज्य पर अधिकार कर लिया । 58 ई ० पू ० में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शकों को पराजित करके बाहर कर दिया तथा विक्रमादित्य की उपाधि धारण की । शकों पर विजय के उपलक्ष्य में 57 ई ० पू ० से एक नया संवत् , विक्रम संवत् के नाम से प्रारम्भ हुआ । अशोक के बाद कलिंग स्वतन्त्र हो गया तथा वहाँ एक नवीन राजवंश का उदय हुआ , जिसे चेति ( चेदि ) वंश कहा जाता है । कलिंग के ‘ चेति वंश ‘ का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक खारवेल था । कलिंगराज खारवेल के विषय में जानकारी का प्रमुख स्रोत हाथीगुम्फा ” अभिलेख है । खारवेल 24 वर्षों की आयु में राजगद्दी पर बैठा । राजा खारवेल जैनधर्म का अनुयायी था तथा उसे भिक्षुराज भी कहा गया भारहुत स्तूप का निर्माण यों तो अशोक के समय हुआ था , परन्तु शुंगकाल . में इसमें चार तोरणद्वार लगाये गये । मौयोत्तर काल में कुषाणों ने गंधार कला – शैली का विकास किया । मथुरा में जैनियों ने मथुरा कला का विकास किया । ‘ मथुरा कला शैली ‘ , गंधार कला से प्रभावित थी । सातवाहन काल की कलात्मक कृतियों को दो भागों में बाँटा गया है – स्तूप और चैत्य । ई ० पू ० दूसरी शताब्दी में दक्कन में अमरावती कला का विकास हुआ । कार्ले का चैत्य , अजंता एवं एलोरा की गुफाओं का निर्माण सातवाहनों की महत्वपूर्ण स्थापत्य कृतियाँ हैं । हेनसांग ने कनिष्क के 178 विहारों तथा स्तूपों का वर्णन किया है ।
सर्वप्रथम बुद्ध की मूर्ति गान्धार शैली में ही बनी ।
मौर्योत्तर कालीन चित्रकला के उदाहरण अजंता की गुफा संख्या 9 एवं 10 में मिलते हैं ।
बुद्धचरित् ( संस्कृत भाषा में ) तथा सूत्रालंकार की रचना अश्वघोष ने की । बुद्धचरित् को बौद्ध धर्म का महाकाव्य माना जाता है । सौन्दरानन्द नामक प्रसिद्ध काव्य की रचना अश्वघोष ने इसी काल में की । कनिष्क काल के एक प्रसिद्ध विद्वान नागार्जुन ने शून्यवाद का प्रतिपादन । नागार्जुन को भारतीय आइंस्टीन कहा गया ।
नागार्जुन ने अपने ग्रन्थ माध्यमिक सूत्र में सृष्टि सिद्धान्त ( Theory of Relativity ) को प्रस्तुत किया । चरक संहिता ( आयुर्वेदिक ग्रन्थ ) की रचना कनिष्क के राजवैद्य चरक म द्वारा की गयी । गुप्त काल ( Gupta Period ) . कुषाणों के साम्राज्य के पतन के पश्चात् गुप्त – साम्राज्य स्थापित हुआ ।
गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण – युग ( Golden Age ) कहा जाता है । गुप्त लोग कुषाणों के सामन्त थे ।
गुप्त वंश का उदय प्रयाग के निकट कौशाम्बी में हुआ था । 7 गुप्त वंश की स्थापना श्री गुप्त ने लगभग 275 ई ० में की । श्री गुप्त के मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र घटोत्कच शासक बना । घटोत्कच का पुत्र चन्द्रगुप्त प्रथम ( 319-340 ई ० ) गुप्त वंश का पहला प्रसिद्ध शासक हुआ । चन्द्रगुप्त प्रथम गुप्तवंश का प्रथम स्वतन्त्र शासक था , जिसकी उपाधि ने महाराजाधिराज थी । चन्द्रगुप्त ने अपने राज्यारोहण के समय ( 319-320 ई ० ) गुप्त – सम्वत् । । आरंभ किया । ।
चन्द्रगुप्त प्रथम की मृत्यु के कुछ समय बाद उसका पुत्र समुद्रगुप्त 335 ई ० में राजगद्दी पर बैठा । में समुद्रगुप्त का इतिहास जानने का प्रमुख स्रोत इलाहाबाद स्थित प्रयाग – प्रशस्ति स्तंभ अभिलेख है इसकी रचना उसके दरबारी कवि हरिषेण ने की थी । समुद्रगुप्त एक महान योद्धा तथा कुशल सेनापति था , उसने आर्यावर्त के 9 शासकों एवं दक्षिणावर्त के 12 शासकों को पराजित किया । ह उपर्युक्त विजयों के कारण स्मिथ ने समुद्रगुप्त को एशियन नेपोलियन कहा है । के समुद्रगुप्त इतिहास में 100 युद्धों के नायक ( Hero of 100 battles ) के नाम से प्रसिद्ध है । समुद्रगुप्त विष्णु का उपासक था , उसने अश्वमेघ यज्ञ किया था । समुद्रगुप्त संगीत – प्रेमी एवं वीणावादन का शौकीन था , उसने कविराज ग की उपाधि धारण की थी । समुद्रगुप्त ने श्रीलंका के राजा मेघवर्मन को बोधगया में महाबोधि संघाराम नामक बौद्ध – विहार बनाने की अनुमति दी ।
गुप्त वंश का महानतम शासक चंद्रगुप्त- II था । चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन काल 380 ई ० से 412 ई ० तक रहा । चन्द्रगुप्त द्वितीय ने नागवंशीय राजकुमारी कुबेरनागा से विवाह किया था । मा चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों को परास्त कर पश्चिमी भारत से उनका प्रभुत्व समाप्त कर दिया । शकों पर विजय के उपलक्ष्य में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने चाँदी के सिक्के चलाए । चन्द्रगुप्त द्वितीय वैष्णव था तथा उसने परमभागवत की उपाधि धारण की । । चन्द्रगुप्त विद्या – प्रेमी था उसके दरबार में नवरत्न विद्वानों की एक मण्डली सामरहती थी । नवरलमण्डली में कालिदास , धन्वंतरी , क्षपणक , अमरसिंह , शंकु , वो तालभट्ट , घटकर्पर , वाराहमिहिर , वररुचि जैसे विद्वान थे । प्रसिद्ध चिकित्सक धन्वंतरि चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में था । 1 चन्द्रगुप्त द्वितीय के पश्चात् उसका पुत्र कुमारगुप्त ( 413 ई०-455 ई ० ) नों सिंहासन पर बैठा । कुमारगुप्त ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी । कुमारगुप्त- | का उत्तराधिकारी स्कन्दगुप्त ( 455-467 ई ० ) हुआ । . स्कन्द गुप्त ने हूणों को परास्त कर गुप्त साम्राज्य की रक्षा की थी ।
स्कन्द गुप्त ने हूणों को परास्त करने के पश्चात् विक्रमादित्य व क्रमादित्य की उपाधियाँ धारण कीं । H – . .
गुप्त युग में ही आर्यभट्ट जैसा गणितज्ञ एवं महान खगोलज्ञ हुए । आर्यभट्ट ने सर्वप्रथम प्रमाणित किया कि पृथ्वी अपनी धूरी पर घूमती है । आर्यभट्ट ने ही सर्वप्रथम बताया कि पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा के आ जाने से सूर्यग्रहण होता है । दशमलव प्रणाली का भी आविष्कार आर्यभट्ट ने इसी युग में किया । आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीय एवं सूर्यसिद्धान्त नामक ग्रन्थों की रचना की जो नक्षत्र विज्ञान से संबोधत थी । आर्यभट्ट , वराहमिहिर , धन्वन्तरि , ब्रह्मगुप्त आदि चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहने वाले प्रमुख विद्वान थे । ब्रह्मगुप्त गुप्त काल के प्रसिद्ध गणितज्ञ थे , उन्होंने ब्रह्म सिद्धान्त नामक ग्रन्थ की रचना की । वाराहमिहिर गुप्तकाल के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री थे , उन्होंने वृहत् संहिता एवं पंचसिद्धांतिका नामक प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना की । पाल्काल नामक पशु चिकित्सक ने ‘ हाथियों के रोगों से सम्बन्धित चिकित्सा हेतु हस्त्यायुर्वेद नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की । नागार्जुन इस काल का प्रसिद्ध चिकित्सक था , उसने रस चिकित्सा नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की । धातु विज्ञान का इस युग में अत्यधिक विकास हुआ । नागार्जुन ने इस काल में सिद्ध किया कि सोना , चाँदी , लोहा , ताँबा आदि खनिज धातुओं में रोग निवारण की शक्ति विद्यमान है । लगभग 1.5 हजार वर्ष पूर्व निर्मित दिल्ली में एक लौह स्तम्भ में अभी तक जंग नहीं लगा है , जो तत्कालीन धातुकर्म विज्ञान के काफी विकसित होने का प्रमाण है ।
गुप्तोत्तर काल
( Post – Gupta Period )
हूण मध्य एशिया की एक बर्बर जाति थी । हूणों ने अपने मूल निवास स्थान को छोड़कर पश्चिम की ओर बढ़ना प्रारम्भ किया । F छठी शताब्दी ई ० के अन्त में हूण एक विशाल साम्राज्य पर शासन करते थे , जिनकी राजधानी बल्ख में थी । फारस पर अधिकार हो जाने से हूणों के लिए भारत का रास्ता खुल गया । स्कन्दगुप्त की मृत्यु के 33 वर्षों के पश्चात् लगभग 500 ई ० में तोरमाण के नेतृत्व में हूणों ने गंगा घाटी पर आक्रमण किया ।
तोरमाण ने प्रारम्भ में काबुल , गन्धार , सीमाप्रान्त , पंजाब और कश्मीर पर विजय प्राप्त की । ग्वालियर अभिलेख से ज्ञात होता है कि तोरमाण की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र मिहिरकुल शासक बना , उसकी राजधानी सांकल ( स्यालकोट ) थी ।
मिहिरकुल एक अत्याचारी शासक था , उसने 15 वर्षों तक शासन किया । मिहिरकुल बौद्ध धर्म के प्रति अनुदार था , उसने बौद्धों की हत्या की एवं उनके स्तूपों एवं विहारों को नष्ट किया । मन्दसौर अभिलेख से ज्ञात होता है कि मिहिरकुल को मालवा के शासक यशोधर्मा ने परास्त किया । मिहिरकुल की मृत्यु के बाद हूणों का पतन हो गया । गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद थानेश्वर में पुष्यभूति ने पुष्यभूति वंश की नींव डाली । इस वंश का प्रथम महत्वपूर्ण शासक प्रभाकर वर्द्धन था प्रभाकर वर्द्धन ने परमभट्टारक या महाराजाधिराज की उपाधि धारण की ।
प्रभाकर वर्द्धन के दो पुत्र राज्यवर्द्धन तथा हर्षवर्द्धन तथा एक पुत्री राज्य श्री थी । प्रभाकर वर्द्धन की मृत्यु के बाद राज्यवर्द्धन थानेश्वर का शासक बना लेकिन अल्पकाल में ही गौड़ के शासक शशांक ने उसकी हत्या कर दी ।
राज्यवर्द्धन के बाद लगभग 606 ई ० में 16 वर्ष की आयु में हर्षवर्द्धन थानेश्वर का शासक बना । हर्षवर्द्धन के शासन के विषय में जानकारी के प्रमुख स्रोत बाणभट्ट की रचनाएँ , ह्वेनसांग का यात्रा विवरण तथा स्वयं हर्ष के नाटक हैं । हर्षवर्द्धन स्वयं एक बड़ा , विद्वान , लेखक , नाट्यकार तथा कवि था ।
हर्षवर्धन ने प्रियदर्शिका , रत्नावली और नागानन्द नामक तीन नाटक लिखे थे । .
बाणभट्ट हर्षवर्द्धन का राजकवि था , उसने हर्षचरित , कादम्बरी तथा पार्वती – परिणय नामक ग्रन्थों की रचना की । राजा बनते ही हर्षवर्द्धन ने अपनी बहन राज्यश्री को शशांक के कैद से मुक्त कराया ।
हर्षवर्धन ने शशांक से युद्ध किया और पराजित कर कन्नौज पर अधि कार कर लिया ।
आरम्भ में हर्षवर्द्धन की राजधानी थानेश्वर थी , बाद में उसने कनौज को अपना राजधानी बनाया । हर्षवर्द्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत की यात्रा की थी ।
हेनसांग को यात्री सम्राट एवं नीति का सम्राट कहा गया है । हेनसांग भारत में नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने तथा बौद्ध ग्रन्थ संग्रह करने के उद्देश्य से आया था ।
हर्षवर्द्धन का एक अन्य नाम शिलादित्य था ।
हर्षवर्द्धन के दरबार में बाणभट्ट , मयूर , हरिदत्त एवं जयसेन जैसे प्रसिद्ध कवि एवं लेखक थे । वह प्रतिदन 500 ब्राह्मणों एवं 1000 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराता था । हर्ष ने 643 ई ० में कन्नौज तथा प्रयाग में दो विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन किया था । प्रयाग में आयोजित सभा को मोक्ष – परिषद् कहा जाता है । । हर्षवर्द्धन को दक्षिण भारत के शासक पुलकेशिन द्वितीय ( चालुक्य वंश ) . ने ताप्ती नदी के किनारे 630 ई ० में पराजित किया ।
हर्षवर्द्धन के शासन प्रबन्ध में राजा का सर्वोच्च स्थान था । राजा को ‘ परम भट्टारक ‘ , ‘ परमेश्वर ‘ , ‘ परम देवता ‘ , ‘ महाराजाधिराज ‘ आदि की उपाधियाँ प्राप्त थी । हर्ष का साम्राज्य शासन की सुविधा के लिए इकाइयों में बँटा हुआ था ।
हर्षवर्द्धन के शासनकाल में भूमि – कर कुल उपज का 1/6 हिस्सा लिया जाता था । ने हर्षवर्द्धन की मृत्यु 647 ई ० में हुई । पल्लव वंश की स्थापना सिंह विष्णु ( 575-600 ई ० ) ने की । सिंहविष्णु ने काँची ( तमिलनाडु ) को अपनी राजधानी बनाया , वह वैष्णव धर्म का उपासक था ।
किरातार्जुनीयम के रचनाकार भारवि सिंह विष्णु का दरबारी कवि था ।
पल्लव वंश का अन्तिम शासक अपराजित ( 879-897 ई ० ) था । पल्लव वंश के शासक नरसिंहवर्मन- द्वारा एकाश्मक रथ ( महाबलिपुरम् ) त् का निर्माण कराया गया । एकाश्म रथ चट्टान काटकर बनाया गया है तथा इसे धर्मराज रथ भी कहा जा जाता है । धर्मराज रथ तथा उसी स्थान पर बने 6 अन्य मन्दिर सामूहिक रूप से वं सप्तरथ अथवा 7 – पैगोडा कहलाते हैं ।
कैलाशनाथ मन्दिर ( काँची ) का निर्माण नरसिंहवर्मन- II , मुक्तेश्वर एवं बैकुंठ पेरुमाल मन्दिर ( दोनों काँची में ) का निर्माण पल्लव शासक नन्दीवर्मन ने किया । पल्लव शासक नरसिंहवर्मन -1 ने द्वारा वातापीकोंडा की उपाधि धारण की । श पल्लव शासक महेन्द्रवर्मन- I ने द्वारा मतविलास प्रहसन नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की ।
दशकुमारचरितम् का रचनाकार दंडी पल्लव शासक नन्दीवर्मन का ‘ T दरबारी कवि था । पल्लव शासक ‘ नन्दीवर्मन ‘ के ही समकालीन प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरूमङग ना अलवर थे । काँची के पल्लवों के संदर्भ में हमें प्रथम जानकारी हरिषेण के प्रयाग 11 प्रशस्ति एवं चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण से प्राप्त झेती है ।
पल्लव वंश के प्रथम शासक सिंहविष्णु ने माम्मलपुरम् के आदि वराह की गुहा मन्दिर का निर्माण किया । इस वंश के शासक नरसिंहवर्मन -1 ने चालुक्य शासक पुलकेशिन- II को । तीन युद्धों में परास्त किया ।
. नरसिंहवर्मन -1 ने एक बंदरगाह नगर महाबलिपुरम् ( काम्मलपुरम् ) की स्थापना काँची के नजदीक की ।
स्कन्दगुप्त ने गिरनार स्थित सुदर्शन झील पर बाँध का जीर्णोद्धार किया था । स्कन्दगुप्त की मृत्यु 467 ई ० में हुई । विष्णुगुप्त , कुमारगुप्त तृतीय का पुत्र था , वह अन्तिम गुप्त शासक था । गुप्तकालीन शासन – व्यवस्था में सम्राट दीवानी विभाग , सेना एवं न्याय प्रत्येक विभागों का सर्वोच्च अधिकारी होता था ।
गुप्त शासक परमदैवत , महाराजाधिराज , एकाधिराज , परमेश्वर तथा चक्रवर्तिन उपाधि धारण करते थे । राजा युद्धों में सेना का संचालन करता था तथा अमात्यों व मन्त्रियों की सहायता से शासन करता था । राज्य के सभी केन्द्रीय विभागों का प्रमुख सर्वाध्यक्ष कहलाता था ।
सम्राट से मिलने वालों के लिए आज्ञापत्र का वितरक अन्त : पुर एवं राजमहल का प्रमुख रक्षक प्रतिहार एवं महाप्रतिहार कहलाता था । सर्वोच्च सेनापति को महादंडनायक कहा जाता था । गजसेना का अध्यक्ष महापीलुपति तथा अश्वसेना का अध्यक्ष महाश्वपति कहलाता था ।
गुप्तकाल में कुमारामात्य नामक एक महत्वपूर्ण अधिकारी होता था , जो आधुनिक प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के समान था । गुप्तकाल में दण्डपाशिक पुलिस विभाग का प्रधान अधिकारी था । गुप्तकाल में मुख्य न्यायाधीश को महादण्डनायक कहा जाता था । गुप्तकाल में न्यायालयों की चार श्रेणियाँ कुल , श्रेणी , पुत्र तथा राजा का न्यायालय थी । प्रशासनिक सहुलियत के लिए साम्राजय को देश , भुक्ति अथवा अपनी जैसे प्रांतों में बाँटा गया था । भुक्ति के प्रशासक को उपरिक कहा जाता था , उसकी नियुक्ति सम्राट करता था । नगरों का प्रशासन महापालिकाओं द्वारा चलाया जाता था । पुरपाल नगर का मुख्य अधिकारी होता था ।
प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी जिसका ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था । गुप्तकाल में स्थानीय स्वशासन के अस्तित्व में होने का प्रमाण दामोदरपुर ताम्रपत्र अभिलेख से प्राप्त होता है । गुप्तकालीन समाज मुख्य रूप से चार वर्गों ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्र में विभाजित था । गुप्तकालीन अभिलेखों में सर्वप्रथम कायस्थ का उल्लेख मिलता है । 510 ई ० में सती प्रथा का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य ऐरण अभिलेख में मिलता है । गुप्त राजाओं ने सर्वाधिक संख्या में स्वर्ण मुद्राएँ जारी की , जिन्हें दिनार कहा जाता था ।
गुप्तकाल में प्रमुख शिक्षा केन्द्र नालन्दा , उज्जैन , पाटलिपुत्र , काँची , मथुरा , अयोध्या आदि थे । गुप्तकाल में गणिकाओं का उल्लेख मिलता है , वृद्ध वेश्याओं को कुट्टनी कहा जाता था । गुप्तकाल में कृषकों को कुल उपज का 1/6 हिस्सा कर के रूप में देना पड़ता था । दशपुर , बनारस , मथुरा और कामरूप कपड़ा उत्पादन के बड़े केन्द्र थे । वृहत्संहिता में गुप्त – काल के 22 रनों का उल्लेख मिलता है । गुप्तकाल में स्थिति में था । पेशावर , भड़ौंच , उज्जैयनी , बनारस , प्रयाग , मथुरा , पाटलिपुत्र , वैशाली एवं ताम्रलिप्ति आदि प्रमुख व्यापारिक केंद्र थे ।
उज्जैन सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था । इस काल में जल एवं स्थल मार्ग द्वारा मिस्र , फारस , रोम , यूनान , लंका , बर्मा , सुमात्रा , तिब्बत , चीन एवं पश्चिम एशिया से व्यापार होता था । नगरों में व्यापार करने वाले श्रेष्ठी व वैदेशिक व्यापार करने वालों का मुखिया सार्थवाह कहलाता था । गुप्तकाल में जिन महत्वपूर्ण चीजों का व्यापार होता था , वे थीं – रेशम , मसाले , कपड़ा , धातुएँ , हाथी दाँत एवं समुद्री उत्पाद आदि ।
गुप्तकाल में हिन्दू – धर्म के दो मुख्य सम्प्रदाय वैष्णव ( भागवत ) और शैव . . . . विकसित हुए ।
. अनेक गुप्त शासक वैष्णव धर्म के अनुयायी थे अत : उन्होंने इस धर्म को राजाश्रय प्रदान किया । गुप्तवंश के दो सर्वाधिक प्रतापी शासक समुद्रगुप्त व चन्द्रगुप्त द्वितीय भी वैष्णव धर्मावलम्बी ही थे । गुप्तकाल में वैष्णव धर्म सम्बंधी सबसे महत्वपूर्ण अवशेष देवगढ़ के दशावतार मन्दिर ( झाँसी ) से प्राप्त हुआ है ।
गुप्तकालीन प्रसिद्ध मन्दिर मन्दिर एवं स्थान
दशावतार मन्दिर – देवगढ़ ( झाँसी ) ।
2 . विष्णु मन्दिर – तिगवा ( म ० प्र ० , जबलपुर ) ।
शिव मन्दिर – खोह ( नगौद म ० प्र ० ) ।
पार्वती मन्दिर – नयना कुठार ( म ० प्र ० ) ।
भीतरगाँव मन्दिर – भीतर गाँव ( कानपुर ) ।
शिव मन्दिर भूमरा ( नगौद म ० प्र ० ) ।
गुप्तकाल में निर्मित भीतरी गाँव का मन्दिर कानुपर जिला ( उ ० प्र ० ) में स्थित है ।
विष्णु के 10 अवतारों में वराह एवं कृष्ण की पूजा का प्रचलन गुप्त काल में विशेष रूप से हुआ । गुप्त काल में कालीदास , शुद्रक , विशाखदत्त , भारवि , भोट्ट , भास , विष्णु शर्मा आदि जैसे कई साहित्यकार हुए । कालिदास ने मालविकाग्निमित्रम् , अभिज्ञानशाकुंतलम् तथा रघुवंशम् की रचना की । विशाखदत्त ने देवी चंद्रगुप्तम तथा भाष ने स्वप्नवासवदत्तम् जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की ।
सारनाथ से प्राप्त धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा में बुद्ध की मूर्ति गुप्तकाल की मूर्तिकला का सबसे भव्य नमूना 1 इसके अतिरिक्त बिहार के भागलपुर से मिली बुद्ध की ताममूर्ति एवं मथुरा से मिली बुद्ध की खड़ी मूर्ति विशेष है । साहित्यिक व कला के विकास के साथ ही गुप्त – युग में विज्ञान के क्षेत्र में भी प्रगति हुई । आर्यभट्ट गुप्त युग में ही सर्वप्रथम यह प्रमाणित किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है तथा पृथ्वी व सूर्य के मध्य चन्द्रमा आ जाने से सूर्यग्रहण होता है । 1-20 . गुप्तकाल में । .
Gyasuddin तुगलक ने दिल्ली पर तुगलक वंश ( 1320-98 ई . ) का शासन प्रारंभ किया ।
1321 ई . में प्रताप रुद्रदेव के विरूद्ध तेलंगाना में ग्यासुद्दीन तुगलक ने सैन्य अभियान करवाया । तेलंगाना का सैन्य अभियान जौना खाँ ( मुहम्मद – बिन – तुगलक ) के नेतृत्व में हुआ । ग्यासुद्दीन तुगलक ने 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया । ग्यासुद्दीन ने अपने साम्राज्य में सिंचाई की व्यवस्था की तथा सम्भवतः नहरों ( canals ) का निर्माण करने वाला पहला शासक था । ग्यासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के समीप तुगलकाबाद नाम का एक नया नगर स्थापित किया । रोमन शैली में निर्मित तुगलकाबाद में छप्पनकोट नामक एक दुर्ग का निर्माण भी हुआ । ग्यासुद्दीन तुगलक की मृत्यु 1325 ई ० में बंगाल के अभियान से लौटते समय जूना खाँ द्वारा निर्मित लकड़ी के महल में दबकर हो गयी । बिहार के मैथिली कवि विद्यापति की रचनाओं में ग्यासुद्दीन तुगलक के महत्वपूर्ण विवरण प्राप्त होते हैं । ग्यासुद्दीन तुगलक के मृत्यु के बाद जौना खाँ , मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा । भारतीय इतिहास में मुहम्मद बिन तुगलक पागल , सनकी , रक्तपिपासु आदि नामों से जाना जाता है । मुहम्मद बिन तुगलक के काल में दिल्ली सल्तनत का साम्राज्य सर्वाधि क विस्तृत था । मुहम्मद बिन तुगलक मध्यकालीन सभी सुल्तानों में सर्वाधिक शिक्षित तथा विद्वान था । मुहम्मद बिन तुगलक ने चार योजनाओं को क्रियान्वित किया जो इस प्रकार थे ( i ) राजधानी दिल्ली का दौलताबाद स्थानान्तरण । ( i ) सोना चाँदी के स्थान पर ताँबे एवं पीतल के सांकेतिक मुद्रा ( Token currency ) का प्रचलन । ( i ) दोआब क्षेत्र में भू – राजस्व की दर कुल उपज का 1/2 करना । ( iv ) कराचिल एवं खुरासन का विफल अभियान । . मुहम्मद तुगलक ने एक नये कृषि विभाग दीवान – ए – अमीर कोही की स्थापना की । अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता मुहम्मद तुगलक के समय में भारत आया था । 1333 ई ० में मुहम्मद – बिन – तुगलक ने इब्नबतूता को दिल्ली का काजी नियुक्त किया । मुहम्मद – बिन – तुगलक ने इब्नबतूता को 1342 ई ० में राजदूत बना कर चीन . भेजा । मुहम्मद – बिन – तुगलक के शासनकाल में दक्षिण में हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने 1336 ई ० में स्वतन्त्र राज्य विजयनगर की स्थापना की । 1347 ई ० में महाराष्ट्र में अलाउद्दीन बहमन शाह ने बहमनी साम्राज्य की स्थापना की । मुहम्मद – बिन – तुगलक के शासनकाल में सर्वाधिक विद्रोह हुए जिसके परिणामस्वरूप लगभग पूरा दक्षिण का राज्य स्वतन्त्र हो गया । मुहम्मद – बिन – तुगलक के शासनकाल में कान्हा नायक ने विद्रोह कर स्वतन्त्र वारंगल राज्य की स्थापना की । मुहम्मद – बिन – तुगलक ने इंशा – ए – महरु नामक पुस्तक की रचना की । 1341 ई ० में चीनी सम्राट तोगनतिमुख ने अपना राजदूत भेजकर मुहम्मद • बिन तुगलक से हिमाचल प्रदेश के बौद्ध मन्दिरों के जीर्णोद्धार के लिए अनुमति मांगी । जैन सन्त जिन चन्द्रसूरी को मुहम्मद तुगलक ने सम्मानित किया । मुहम्मद – बिन – तुगलक की मृत्यु थट्टा में हुई । मुहम्मद तुगलक की मृत्यु पर बदायूनी ने लिखा कि ” सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गई । “
मुहम्मद – बिन – तुगलक की मृत्यु के पश्चात् उसका चचेरा भाई फिरोजशाह -तुगलक ( 1351-88 ई . ) दिल्ली की गद्दी पर बैठा ।
मालवा के शासक महमूद खिलजी ने मुहम्मद शाह के समय दिल्ली पर 3 . आक्रमण किया । मुहम्मद शाह की मृत्यु ( 1444 ई . ) के बाद उसका पुत्र अलाउद्दीन 5 . आलमशाह के नाम से गद्दी पर बैठा । आलमशाह ( 1445-51 ई . ) अपनी राजधानी दिल्ली से हटाकर बदायूं ले 7 . गया । 1451 ई ० में आलमशाह ने बहलोल लोदी को दिल्ली का राज्य पूर्णत : सौंप दिया और स्वयं बदायूं की जागीर में रहने लगा । 37 वर्ष के शासन के बाद सैय्यद वंश का अन्त हो गया तथा लोदी वंश की नींव पड़ी । लोदी वंश ( 1451-89 ई . ) की स्थापना बहलोल लोदी ने 1451 ई . में किया । बहलोल लोदी ( 1451-89 ई . ) दिल्ली में प्रथम अफगान शासक था । बहलोल लोधी ने शाह गाजी की उपाधि धारण की । बहलोल लोदी ने बहलोल सिक्के का प्रचलन किया । 1489 ई ० में बहलोल लोदी की मृत्यु हो गयी । बहलोल लोदी का पुत्र सुल्तान सिकन्दर शाह लोदी 1489 ई . में सिंहासन पर बैठा । सिकन्दर लोदी ने 1504 ई ० में आगरा शहर की स्थापना की तथा इसे अपनी नयी राजधानी बनाया । सिकन्दर लोदी ने भूमि माप के लिए सिकन्दरी गज का प्रचलन करवाया । सिकन्दर लोदी ( 1489-1517 ई . ) गुलरुखी के उपनाम कविताएँ लिखता था । सिकन्दर लोदी ने मुसलमानों द्वारा ताजिया निकालने तथा मुस्लिम स्त्रियों 2 . 3 द्वारा पीरों एवं सन्तों की मजार पर जाने को प्रतिबंधित कर दिया । 3 . सिकन्दर लोदी ने संस्कृत के ग्रन्थ आयुर्वेद का फरंहग – ए – सिकन्दरी के नाम 4 . व से फारसी में अनुवाद करवाया । 5 . सिकन्दर लोदी ने नगरकोट के ज्वालामुखी मन्दिर की मूर्ति को तोड़कर 6 . उसके टुकड़ों को कसाइयों को मांस तौलने के लिए दे दिया था । 7 . 21 नवम्बर , 1517 ई ० को सिकन्दर लोदी की मृत्यु हो गयी । अ सिकन्दर लोदी के मृत्यु के बाद 22 नवम्बर 1517 ई ० को उसका पुत्र PO इब्राहिम शाह लोदी गद्दी पर बैठा । बा इब्राहिम लोदी ( 1517-26 ई . ) के शासनकाल की महत्वपूर्ण घटना निः पानीपत का प्रथम युद्ध है । अब पानीपत का प्रथम युद्ध ( अफगानिस्तान ) के शासक ‘ बाबर ‘ तथा इब्राहिम लोदी के बची 1526 ई . में हुआ । 8 . सर उपरोक्त युद्ध में इब्राहिम लोदी को परास्त कर भारत में मुगल वंश की 9 . शह स्थापना की । 11. बरी बाबर को भारत पर आक्रमण का न्यौता पंजाब के शासक दौलत खाँ 10. अर्म लोधी ने दिया था । दौलत खाँ लोधी , इब्राहिम लोधी का चाचा था । में ) सल्तनत साम्राज्य एक प्रकार का ‘ धार्मिक राजतन्त्र ‘ ( Religious Monarchy ) बिह था । सल्तनत काल में इस्लाम को राजधर्म घोषित किया गया । प्रान्त अलाउद्दीन खिलजी ने सर्वप्रथम ‘ खलीफा ‘ के वर्चस्व को चुनौती दी तथा सल उसके नाम का ‘ खुतबा ‘ पढ़ने एवं उसके नाम के सिक्के ‘ ढालने की प्रथा जात बन्द कर दी । इक्त अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी ने स्वयं को 147 ” खलीफा ‘ घोषित कर खलीफा के महत्व को नकार दिया । ” शित सल्तनत काल में , सुल्तान प्रशासन के सभी विभागों का प्रमुख होता था । अधि सुल्तान को प्रशासन में मदद करने के लिए मजलिस – ए – खिलवत नामक गाँवों मंत्रिपरिषद् थी । होते . परंतु , सुल्तान मजलिस – ए – खिलवत की सलाह मानने को बाध्य नहीं था । सबस सुल्तान अपने दैनिक कार्य बार – ए – आजम ( जनसभा हॉल ) में निपटाता ग्राम र था । . सल्तनतकालीन केन्द्रीय शासन में निम्न विभाग थे इब्नब समूह 1. वित्त मन्त्रालय ( Finance Ministry ) – प्रधानमंत्री विभाग । २. दीवान – ए – रिसालत ( Department of Apeals ) – अपील विभाग ।
. 3 . दीवान – ए – इंशा ( Department of Drafting ) – आलेख विभाग । 4 . दीवान – ए – आरज ( Department of Military ) – सैन्य विभाग । न 5 5 . दीवान – ए – खैरात ( Department of Charity ) – दान विभाग । 6 . दीवान – ए – वंदगान ( Slave Department ) – दास विभाग । ले 7. दीवान – ए – इस्तेफाक – पेंशन विभाग ( Department of Pension ) | मुहम्मद – बिन – तुगलक ने दीवान – ए – अमीर कोही नाम कृषि विभाग की 7 : स्थापना की । अलाउद्दीन खिलजी ने वित्त मंत्रालय के अधीन दीवान – ए – मुस्तखराज श नामक एक नया विभाग स्थापित किया । दीवान – ए – मुस्तखराज का कार्य कर अधिशेष ‘ का हिसाब रखना था । में जलालुद्दीन खिलजी ने भी एक नए विभाग दीवान – ए – वकूफ की स्थापना की । 1 ‘ दीवान – ए – वकूफ ‘ की स्थापना आय – व्यय के कागजातों की देखभाल करने के लिए किया गया था । सल्तनत प्रशासन में सुल्तान के बाद सर्वाधिक शक्तिशाली मन्त्री वजीर था । वजीर , वित्त मंत्रालयका प्रधान होता था । न वजीर गुप्तचर , डाक , धर्मार्थ संस्थाएँ तथा कारखानों आदि का भी प्रधान होता था , वह सुल्तान की अनुपस्थिति में उसके कार्यों का सम्पादन करता था । नायब वजीर वजीर का सहायक था तथा वजीर की अनुपस्थिति में उसके कार्यों को देखता था । सल्तनत काल में कुछ अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारी निम्नवत् धे 1 . मजमुआदार – आय – व्यय को ठीक रखने वाला पदाधिकारी । 2. आरिज – ए – मुमालिक – सेना मन्त्री । 3 . सद्र – उस – सुदूर – धर्म एवं राजकीय दान विभाग का अध्यक्ष । 4 . वकील – ए – दर – सुल्तान की व्यक्तिगत सेवाओं का प्रबन्धक । 5 . अमीर – ए – हाजिब – दरबारी शिष्टाचार को लागू करवाने वाला पदाधिकारी । 6. खजीन – खजाँची । 7. काजी – उल – कुजात – मुख्य न्यायाधीश । अलाउद्दीन खिलजी ने बाजार नियंत्रण व्यवस्था ( Market controll Policy ) लागू की । बाजार नियंत्रण व्यवस्था के अंतर्गत सभी वस्तुओं के सरकार दाम निर्धारित थे । अलाउद्दीन ने व्यापारियों की बेईमानी से आम जनता को बचाने के लिए मुहतसिब एवं बरीद जैसे गुप्तचार नियुक्त किए थे । 8. सरजांदार – सुल्तान के अंग – रक्षकों का नायक । 9 . शहना – ए – पील – हस्तिशाला का अध्यक्ष । 11. बरीद – गुप्तचर । 10. अमीर – ए – आखुर – अश्वशाला का अध्यक्ष । सल्तनत काल में ‘ सूबों ‘ ( प्रान्तों ) की संख्या 2 से 31 ( विभिन्न कालों में ) तक थी । बिहार के उत्तरी हिस्से में तिरहुत नामक एक नये प्रान्त का गठन ग्याशुद्दीन तुगलक द्वारा किया गया । प्रान्तीय शासन का संचालन नायब , वली अथवा मुक्ति के हाथों में था । सल्तनत को 13 वीं शताब्दी में सैनिक क्षेत्रों में बाँटा गया , जिसे इक्ता कहा जाता था । इक्ता का प्रधान मुक्ति ( एक शक्तिशाली सैन्य – अधिकारी ) होता था । 14 वीं शताब्दी में शिक्कों ( जिलों ) का गठन हुआ । ‘ शिक्क ‘ का शासन देखने की जिम्मेदारी नाजीम या अमील नामक अधिकारी की थी । गाँवों में मुकदम की सहायता के लिए पटवारी एवं कारकून ( क्लर्क ) होते थे । सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई ग्राम थी । . ग्राम का प्रमुख मुकदम ,, खुत अथवा चौधरी कहलाता था । इब्नबतुता में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई सादी ( 100 गाँवों का समूह ) को माना है ‘ नगर ‘ का प्रशासन अमीर – ए – सदा नामक अधिकारी के हाथों में थी ।
‘ इस्लामिक शरा ‘ में राजकीय आय के पाँच साधनों , जकात , जजिया , . .
.
. फिरोजशाह तुगलक का राज्याभिषेक थट्टा में हुआ तथा पुन : 1351 ई ० में दिल्ली में दोबारा राज्याभिषेक हुआ । फिरोज तुगलक ने 24 कष्टकारी करों को समाप्त किया । फिरोज तुगलक ने शरीयत द्वारा स्वीकृत 4 करों जजिया , जकात , खराज एवं खम्स को ही मुख्य रूप से रखा । ‘ जजिया ‘ गैर – मुसलमानों पर लगाया जाने वाला कर था । फिरोज तुगलक ने ‘ ब्राह्ममर्गों पर भी ‘ जजिया कर ‘ लगाया । फिरोज ने सिंचाई कर हक – ए – शर्ब लगाया जो सिंचित भूमि के कुल उपज का 1/10 था । फिरोज तुगलक ने 5 बड़ी नहरों का निर्माण करवाया । उसने फिरोजाबाद , हिसार , जौनपुर , फतेहाबाद आदि नगरों की स्थापना की । फिरोज तुगलक ने सर्वप्रथम राज्य के आय का प्रमाणिक ब्यौरा तैयार करवाया । फिरोज तुगलक ने अशोक के खिजाबाद ( टोपरा ) एवं मेरठ में स्थित दो स्तम्भों को वहाँ से स्थानांतरित कर दिल्ली में स्थापित किया । फिरोज तुगलक ने अनाथ मुस्लिम महिलाओं , विधवाओं एवं लड़कियों के लिए दीवान – ए – खैरात ( दान – विभाग ) की स्थापना की । फिरोज तुगलक के शासनकाल में सल्तनतकालीन सुल्तानों में दासों की संख्या सर्वाधिक ( लगभग 1,80,000 ) थी । उसने दासों के लिए दीवान – ए – वन्द्गान ( दास विभाग ) की स्थापना की । फिरोज के दरबार में विद्वान जियाउद्दीन बरनी तथा शम्से शिराज अफीफ रहता था । बरनी और शम्से शिराज अफीफ ने तारीख – ए – फिरोजशाही की रचना की । फिरोज तुगलक ने स्वयं आत्मकथा लिखी जो फुतूहाते – फिरोजशाही के नाम से जाना जाता है । फिरोज तुगलक ने दिल्ली के निकट दार – उल – सफा नामक एक खैराती अस्पताल खोला । फिरोज तुगलक ने चाँदी एवं ताँबे के मिश्रण से शशगनी , अद्धा एवं विश्व जैसे सिक्के चलाये । फिरोज तुगलक के काल में खान – ए – जहाँ तेलंगानी के मकबरे का निर्माण . . . हुआ । खान – ए – जहाँ तेलंगानी के मकबरे की तुलना जेरुशलम के उमर मस्जिद से की जाती है । दिल्ली स्थित फिरोजशाह कोटला दुर्ग फिरोज तुगलक द्वारा ही निर्मित करवाया गया । फिरोजशाह ने अपने जाजनगर ( उड़ीसा ) अभियान के दौरान पुरी के जगन्नाथ मन्दिर को ध्वस्त किया तथा नागरकोट अभियान के दौरान ज्वालामुखी मन्दिर को ध्वस्त कर इसे लूटा । फिरोज तुगलक ने लगभग 300 प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों का फारसी अनुवाद आजउद्दीन खालिद द्वारा दलायले – फिरोजशाही के नाम से करवाया । नासिरुद्दीन महमूद तुगलक तुगलक वंश का अन्तिम शासक था । नसिरूँद्दीन महमूद तुगलक के ही शासनकाल में तैमूरलंग ने 1398 ई ० में भारत पर आक्रमण किया । तैमूरलंग के सेनापति खिज्र खाँ ने दिल्ली पर सैय्यद वंश ( 1414-50 ई . ) के शासन की स्थापना की । खिज खाँ ( 1412-21 ई . ) ने रैय्यत – ए – आला की उपाधि धारण की । 20 मई , 1421 ई ० को खिज्र खाँ की मृत्यु हुई । खिज्र खाँ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मुबारक शाह ( 1421-34 ई . ) सुल्तान बना । मुबारक शाह ने यमुना के तट पर मुबारकाबाद नामक नगर बसाया । उसके आश्रय में प्रसिद्ध इतिहासकार ‘ याह्या – बिन – अहमद सरहिन्दी ‘ थे । इसकी पुस्तक तारीख – ए – मुबारक शाही से सैय्यद वंश के विषय में जानकारी मिलती है । 19 फरवरी , 1434 ई ० को उसके एक सरदार सरवर – उल – मुल्क ने एक षड्यन्त्र द्वारा उसकी हत्या करवा दी ।
मुहम्मद शाह ( 1414-43 ई . ) के काल में दिल्ली सल्तनत में अराजकता व कुव्यवस्था व्याप्त रही ।
. खिराज , खम्स एवं उश का उल्लेख है । खराज गैर – मुसलमानों से तथा उथ मुसलमानों से वसूला जाने वाला कर था । 6 जकात गैर – मुसलमानों से वसूला जाने वाला एक धार्मिक कर था । 7 . जजिया कर हिन्दुओं से वसूला जाता था । 8 युद्ध से प्राप्त लूट के माल में राज्य के हिस्से को खम्स कहा जाता था । 9 खानों से होने वाली आय , निर्यात – आयात कर , आबकारी कर , यात्रा कर , गृह कर एवं सिंचाई कर इत्यादि राजकीय आय के अन्य स्रोत थे । सिंचाई कर को हक – ए – शर्ब कहा जाता था । ‘ हक – ए – शर्ब ‘ फिरोज तुगलक के शासनकाल में अध्यारोपित किया गया । फिरोज तुगलक ने ब्राह्मणों पर भी ‘ जजिया कर ‘ लगाया । सल्तनत काल में राज्य की समस्त भूमि को चार वर्गों में बाँट दिया गया इक्ता , 2. खालसा , 3. अनुदान , 4. समांतों की भूमि । खालसा भूमि पूर्णतः केन्द्रीय सरकार के अधीन थी । भू – राजस्व की सिंचित भूमि पर 10 % तथा गैर – सिंचित भूमि पर 5 % लिया 1 जाता था । ‘ खराज ‘ नामक कर कुल उपज का 1/3 से 2/3 भाग वसूला जाता था । दिल्ली सल्तनत के शासकों में सर्वप्रथम इल्तुतमिश ने शुद्ध अरबी सिक्के सल्तनत काल में जीतल ( ताँबे का ) , टंका ( चाँदी का ) , दिल्लीवाल तथा बहलोली आदि सिक्के तथा स्वर्ण मुहरें प्रचलित थीं । चाँदी के ‘ टंका ‘ का मूल्य 175 ग्रेन था । सल्तनत काल में देश का सबसे बड़ा उद्योग वस्त्रोद्योग था । बंगाल , गुजरात , बनारस , उड़ीसा , सूरत , काम्बे , पटना , बुरहानपुर , दिल्ली , आगरा , मुल्तान एवं थट्टा सल्तनत काल के प्रमुख व्यापारिक केन्द्र थे । सल्तनत काल में बंगाल रेशमी एवं सूती वस्त्रों के उत्पादन के लिये विख्यात था । सल्तनत काल में भारत का विदेश व्यापार ( Foreign Trade ) प्रशांत महासागर तथा भूमध्य सागरीय देशों से होता था । सल्तनत काल में देवल अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह के रूप में प्रसिद्ध था । सल्तनत काल में सेना का गठन ‘ दशमलव पद्धति ‘ पर किया गया था । सल्तनत काल में सेना मूल रूप से दो प्रकार की थी । ( i ) हश्म – ए – कल्ब – सुल्तान द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नियुक्त एवं सीधे उसके ( सुल्तान के ) नियन्त्रण में रहने वाले सैनिक । सा ( ii ) हश्म – ए – अतरफ – सुल्तान के सामंतों एवं प्रान्तपतियों द्वारा नियुक्त तथा उनके ही नियन्त्रण में रहने वाले सैनिक । सैन्य – विभाग को दीवान – ए – आरज कहा जाता था । 10 अश्वारोहियों की टोली को सर – ए – खैल कहा जाता था । 10 सर – ए – खैल के ऊपर एक सिपहसलार तथा 10 सिपहसलार के ऊपर एक अमीर होता था । 10 अमीर मलिक के अधीन तथा 10 मलिक एक खान के अधीन होते थे । सल्तनत काल में साम्राज्य का प्रधान न्यायाधीश सुल्तान होता था । सुल्तान के पश्चात् इस विभाग का सर्वोच्च पद काजी – उल – कुजात ( मुख्य काजी ) का था । काजी – उल – कुजात शीर्ष स्तर पर मुकदमों का निर्णय देता था । कस्बों एवं गाँवों के विवादों का निपटारा पंचायतों द्वारा किया जाता था । प्रान्तों में वली , काजी – ए – सूबा , दीवान – ए – सूबा तथा सद – ए – सूबा आदि के चार प्रकार के न्यायालयों के अस्तित्व में रहने का प्रमाण मिलता है । इस्लामी कानूनों की व्याख्या मुजतहिद करता था । शान्ति व्यवस्था को बनाने के लिए एक ‘ पुलिस विभाग ‘ था , जिसका प्रमुख कोतवाल होता था ।
कुवावुत – ईस्लम – मस्जिद भारत में पहली तुर्क मस्जिद थी , इसका निर्माण के 1193 ई ० में हुआ । इल्तुतमिश के मकबरे की दीवारें कुरान की आयतों से सजी हैं । भारत में वैज्ञानिक रूप से पहली बार गोल गुंबद का निर्माण ‘ अलाई दरवाजा ‘ में किया गया । त ‘ अटाला मस्जिद ‘ का निर्माण जहाँ हुआ वहाँ पहले अटाला देवी का मन्दिर था । झंझरी मस्जिद का निर्माण ‘ हजरत सईद सद्र जहाँ अजमली ‘ के सम्मान । में करवाया गया । 1301 ई ० में साहुदेव नामक एक हिन्दू ने कश्मीर में हिन्दू राज्य की 1 स्थापना की । 1339-40 ई ० में शाह मीर ( शमशुद्दीन शाह ) ने कश्मीर में प्रथम का मुस्लिम वंश की स्थापना की । हिन्दू मन्दिर एवं मूर्तियों को तोड़ने के कारण कश्मीर के शासक सिकन्दर को बुतशिकन कहा गया । 1420 ई ० में जैन – ऊल – आबदीन कश्मीर के सिंहासन पर बैठा । धार्मिक रूप से आबदीन सहिष्णु था , अत : उसे कश्मीर के अकबर की संज्ञा दी गई । जैन – ऊल – आबदीन ने महाभारत एवं राजतरंगिणी का फारसी में अनुवाद श करवाया ।
जैन – ऊल – आबदीन ने वूलर झील में जैनालंका नामक कृत्रिम द्वीप का निर्माण करवाया ।
. . 1588 ई ० में अकबर ने कश्मीर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया । मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में बंगाल स्वतन्त्र हो गया था । शम्सुद्दीन इलियास शाह बंगाल 1345 ई ० में बंगाल का नवाब बना । शम्सुद्दीन ने एक नए राजवंश इल्यास शाही राजवंश की स्थापना की । 1375 ई ० में शम्सुद्दीन के मृत्यु के बाद सिकन्दर सुल्तान बना । सिकन्दर शाह ने पांडुआ में अदीना मस्जिद का निर्माण करवाया । 1493 ई ० में शासक बने ‘ अलाउद्दीन हुसैन शाह ‘ ने अपनी राजधानी को पांडुआ से गौड़ स्थानान्तरित किया । चैतन्य महाप्रभु अलाउद्दीन के समकालीन थे । अलाद्दीन ने सत्यपीर नामक आन्दोलन की शुरूआत की । अलाउद्दीन के शासन काल में मालधर बसु ने श्री कृष्ण विजय की रचना कर गुणराज खान की उपाधि धारण की । बंगाल के एक अन्य शासक ‘ नसीब खाँ ‘ के कार्यकाल में महाभारत का बंगला भाषा में अनुवाद तथा गौड़ में कदमरसूल मस्जिद का निर्माण करवाया । बंगाल में हुसैनशाही वंश का अन्तिम शासक ‘ ग्याशुद्दीन महमूदशाह ‘ था । मालवा राज्य 1398 ई ० में तैमूर के आक्रमण के बाद स्वतन्त्र हो गया । मालवा के सूबेदार दिलावर खाँ गोरी 1401 ई ० में मालवा को स्वतन्त्र घोषित कर दिया । दिलावर खाँ ने धार की लाट मस्जिद का निर्माण करवाया । 1405 ई ० में शासक बने हुशंगशाह ने मालवा की राजधानी से माण्डू को स्थानान्तरित किया । ‘ माण्डू के किले ‘ का निर्माण हुशंगशाह ने करवाया था , जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है – दिल्ली दरवाजा । हुशंग शाह ने नर्मदा तट पर होशंगाबाद नगर की स्थापना की । 1435 ई ० में शासक बने महमूदशाह खिलजी ने माण्डू में सात मंजिलों वाले महल का निर्माण करवाया । मेवाड़ के राणा कुंभा ने महमूद खिलजी को युद्ध में परास्त कर चित्तौड़ में कैद कर लिया । Ye राणा कुंभा ने विजय की स्मृति में विजय स्तम्भ ( चित्तौड़ ) का निर्माण करवाया । जहाज महल का निर्माण 1469 ई ० में शासक बने ग्यासुद्दीन खिलजी ने मांडू में करवाया । 1500 ई ० में शासक बने नासिरुद्दीन शाह ने बाज बहादुर एवं रुपमति महल का निर्माण करवाया । खिलजी वंश के अन्तिम शासक ‘ महमूदशाह द्वितीय ‘ ने फतेहाबाद नामक स्थान पर महमूद खिलजी के कुश्क महल का निर्माण करवाया । गुजरात के बहादुरशाह ने महमूदशाह द्वितीय को युद्ध में परास्त कर दिया तथा 1531 ई ० में मालवा का गुजरात में विलय हो गया । 1401 ई ० में जफर खाँ के नेतृत्व में गुजरात स्वतन्त्र हो गया । अहमदशाह गुजरात के स्वतन्त्र राज्य का वास्तविक संस्थापक था । अहमदशाह ने असावल के समीप अहमदनगर नामक नगर की स्थापना की । उसने अपनी राजधानी अहमदनगर स्थानान्तरित की । महमूद बेगड़ा गुजरात का प्रसिद्ध शासक था । महमूद बेगड़ा ने गिरनार के निकट मुस्तफाबाद नामक नगर और चम्मानेर के निकट मुहम्मदाबाद नगर बसाया । महमूद बेगड़ा ने गुजरात के समुद्रतट से पुर्तगालियों को भगाने के लिए मिन तथा कालीकट के शासकों से सन्धि की । 1 . 1507 ई ० में ड्यू द्वीप के पास हुए सामुद्रिक युद्ध में महमूद बेगड़ा ने 2 . पुर्तगालियों को पराजित किया , परन्तु , 1509 ई ० में वह पुर्तगालियों से 3 . हार गया । गुजरात को अकबर ने 1572 ई ० में मुगल साम्राज्य के अधीन कर लिया । जौनपुर की स्थापना फिरोज तुगलक ने अपने भाई जौना खाँ की स्मृति में की थी । जौनपुर में स्वतन्त्र शर्की राज्य का संस्थापक ख्वाजा जहाँ था ।
1394 ई ० में फिरोजशाह तुगलक के पुत्र सुल्तान महमूद ने खाजा जहान को मलिक- उस – शर्क ( पूर्व का स्वामी ) की उपाधि प्रदान की । . .
शर्की वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक शम्सुद्दीन इब्राहीम शाह हुआ । शम्सुद्दीन इब्राहिम शाह के समय में , जौनपुर को साहित्य एवं स्थापत्य के कारण भारत का सीराज कहा गया । जौनपुर का अन्तिम शर्की शासक हुसैन शाह शर्की था । जौनपुर राज्य लगभग 75 वर्षों तक स्वतन्त्र रहने के बाद बहलोल लोदी द्वारा दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया । मेवाड़ मध्य काल में सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था तथा इसकी राजधानी चितौड़ थी । 1303 ई ० में अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ के गुहिलौत राजवंश के शासक रत्नसिंह को पराजित कर मेवाड़ को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया । अलाउद्दीन रत्नसिंह की रानी पद्मिनी को प्राप्त करना चाहता था , लेकिन पद्मिनी ने जौहर व्रत ( सती होना ) धारण कर स्वयं को समाप्त कर लिया । 1314 ई ० में सिसोदियों वंश के हम्मीरदेव ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया । मेवाड़ के अन्य प्रसिद्ध शासक राणा कुंभा ( 1433-68 ई ० ) एवं राणा सांगा ( 1509-28 ई ० ) थे । राणा कुंभा ने मेवाड़ में 22 दुर्गों का निर्माण करवाया , जिसमें कुम्भलगढ़ का दुर्ग मुख्य रूप से प्रसिद्ध है । 1527 ई ० में राणा सांगा एवं बाबर के बीच खनवा का युद्ध हुआ जिसमें बाबर विजयी हुआ । 1576 ई ० में मेवाड़ के प्रसिद्ध शासक राणा प्रताप को अकबर ने हल्दी घाटी के युद्ध में परास्त किया । मेवाड़ को मुगल सम्राट जहाँगीर ने मुगल साम्राज्य में मिला लिया । आधुनिक मारवाड़ का संस्थापक चुन्द था , उसने 1394 ई ० में उसकी स्थापना की । मारवाड़ पर राठौर वंश का शासन था । मारवाड़ के शासक जोधा ने जोधपुर एवं बिक्का ने बिकानेर शहरों की स्थापना की । जोधा ने नन्दौर के प्रसिद्ध दुर्ग का निर्माण करवाया । मारवाड़ का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक मालदेव ( 1532-62 ई ० ) था , उसने शेरशाह को मारवाड़ जीतने नहीं दिया । महमूद गजनी ने 1010 ई ० में सिन्ध पर अधिकार कर लिया तथा 50 वर्षों तक शासन किया । 1210 ई ० में सिन्ध पर नासिरुद्दीन कुबाचा ने अधिकार कर लिया । 1382 ई ० में फिरोजशाह तुगलक के सूबेदार मलिक राजा फारुकी ने खानदेश की स्थापना स्वतन्त्र मुस्लिम राज्य के रूप में की थी । उसके नाम पर उसके वंश का नाम फारुखी वंश पड़ा । खानदेश की राजधानी बुरहानपुर थी । खानदेश का सैनिक मुख्यालय असीरगढ़ में स्थित था । मल्लिक नासिर ने 1399-1438 ई ० तक तथा आदिल शाह ने 1457-1503 ई ० तक खानदेश पर शासन किया ।
1601 ई ० में मुगल सम्राट अकबर ने खानदेश को मुगल साम्राज्य में . मिला लिया ।
विजय नगर साम्राज्य की राजधानी ‘ तुंगभद्रानदी के किनारे हम्पी थी ।
वि हरिहर एवं बुक्का ने अपने पिता संगम के नाम पर संगम वंश की स्थापना बुक्का प्रथम ने वेदमार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की । देवराय प्रथम के शासनकाल में इटली के यात्री निकोलस कॉण्टी ने विजय नगर की यात्रा की । देवराय द्वितीय संगम वंश का सबसे प्रतापी राजा था तथा इसे इमाडिदेवराय के नाम से भी जाना जाता है । देवराय द्वितीय के शासनकाल में फारसी राजदूत अब्दुर्रज्जाक ने विजयनगर की यात्रा की । देवराय द्वितीय को एक अभिलेख में जगबेटकर ( हाथियों का शिकारी ) की उपाधि दी गई है । विजयनगर में सालुव वंश की स्थापना सालुव नरसिंह ने 1485 ई ० में की । सालुव नरसिंह के शासनकाल में आने वाला प्रसिद्ध पुर्तगाली यात्री नूनिज . था । वीर नरसिंह ने विजयनगर में तुलुव वंश की स्थापना 1505 ई ० में की । कृष्णदेव राय तुलुव वंश का महान शासक था , वह 8 अगस्त 1509 ई ० को गद्दी पर बैठा । वि कृष्णदेव राय ने यवनराज स्थापनाचार्य की उपाधि धारण की । प्र कृष्णदेव राय ने अपने प्रथम सैनिक अभियान ( 1509-10 ई ० ) में बीदर fe के सुल्तान महमूद शाह को हराया । TC कृष्णदेव राय का अन्तिम सैनिक अभियान बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिल के विरुद्ध हुआ , उसे हराकर गुलबर्गा के किले को नष्ट कर दिया । कृष्णदेव राय के शासनकाल में पुर्तगाली शासक अल्बुकर्क था । पुर्तगाली यात्री डोमिगोस पायस कृष्णदेव राय के शासनकाल में विजयनगर की यात्रा पर आया था । कृष्णदेव राय ने नागलपुर नामक नए नगर की स्थापना की थी । कृष्णदेव राय के शासनकाल को तेलुगु साहित्य का क्लासिक युग कहा गया है । कृष्णदेव राय के दरबार में तेलुगु साहित्य के आठ सर्वश्रेष्ठ कवि थे , जिन्हें अष्टदिग्गज कहा गया है । कृष्णदेव राय के अष्टदिग्गज में सर्वाधिक उल्लेखनीय तेलुगु कवि अल्लसानि पेद्वन था , जिन्हें तेलुगु कविता के पितामह की उपाधि प्रदान की गयी थी । ” तेनाली राम ‘ कृष्णदेव राय के दरबार का अन्तिम व आठवाँ कवि था । इनकी प्रसिद्ध रचना पाण्डुराम महात्म्य है । कृष्णदेव राय ने तेलुगु में अमुक्त्माल्यम एवं संस्कृत में जाम्बबती कल्याणम् की रचना की । कृष्णदेव राय वैष्णव धर्म का अनुयायी था । कृष्णदेव राय ने हजारा और विट्ठलस्वामी मन्दिरों का निर्माण करवाया था । कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 ई ० में हो गयी । तुलुव वंश का अन्तिम शासक सदाशिव था । सदाशिव राय के शासनकाल में प्रसिद्ध युद्ध तालीकोटा या राक्षसीतंगड़ी का युद्ध 25 जनवरी 1565 में हुआ । तालीकोटा या राक्षसीतंगड़ी का युद्ध बीजापुर , अहमदनगर , गोलकुण्डा एवं बीदर के संयुक्त मोर्चा का नेता अली अदिल शाह और विजयनगर के सेना का नायक रामराय के बीच हुई , जिसमें रामराय पराजित हुआ । विजयनगर साम्राज्य के चौथे वंश , अरवीडु वंश का संस्थापक ‘ तिरुमल ‘ था । इस वंश की स्थापना तिरुमल ने सदाशिव को अपदस्थ कर 1570 ई ० में पेनुकोंडा में की । अरवीडु शासक वेंकट द्वितीय के शासन काल में ही वाडयार ने 1612 ई ० में मैसूर राज्य की स्थापना की । विजयनगर साम्राज्य का अन्तिम शासक रंग -1 || था । विजयनगर साम्राज्य के शासक को राय कहा जाता था ।
विजयनगर साम्राज्य में सारी शक्तियाँ असैनिक और सैनिक दोनों प्रशासन का प्रधान राजा था ।
विजयनगर साम्राज्य
( Vijaynagar Dynasty ) )
1. संगम वंश 1336-1485ई ०
2. सालुव वंश 1485-1505 ई ०
3. तुलुव वंश 1505-1570 ई ०
4. अरवीडु वंश1570-1650 ई ०
विजयनगर साम्राज्य मध्य युग का प्रथम हिन्दू साम्राज्य था । विजय नगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई ० में दक्षिण भारत में तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर हुई । विजय नगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने की है । . हरिहर एवं बुक्का काकतीय शासक प्रताप रूद्र देव के सेवक थे ।
विजयनगर साम्राज्य 6 प्रान्तों में विभक्त था तथा प्रत्येक प्रान्त राजप्रतिनिधि या नायक के अधीन थे । विजयनगर में प्रत्येक गाँव स्वत : पूर्ण इकाई थी । साम्राज्य कई छोटी – छोटी प्रशासनिक इकाइयों में विभक्त थी । सबसे बड़ी प्रशासनिक इकाई मण्डलम ( प्रान्त ) थी जिसका प्रशासनिक अधिकारी नायक अथवा मण्डलेश्वर होता था । मण्डलम के बाद नाडू ( जिला ) , स्थल अनुमण्डल तथा ग्राम होता था । प्रत्येक गाँव के प्रशासन के लिए स्थानीय सभाएँ थी । गाँवों के समूह नाडू में स्थानीय सभाएं कार्य करती थी जिसे नात्वर कहते हैं । इस साम्राज्य की सेना नायकों को नायक कहा जाता था । नायक को वेतन के बदले भूखंड प्रदान किया जाता था , जिसे अमरम कहा जाता था । इस साम्राज्य में आयंगर और नायंकर व्यवस्था प्रचलित थी । बारह प्रशासकीय अधिकारियों की नियुक्ति संगठित ग्रामीण इकाइयों पर शासन हेतु किया गया था जिसको सामूहिक रूप से आयंगर कहा गया 1 1 भू – राजस्व कुल उपज के 1/6 हिस्से की दर से वसूला जाता था । विजयनगर के काल में देवदासी प्रथा , सती प्रथा तथा दास प्रथा का प्रचलन था । विजय नगर में मनुष्यों की खरीद – बिक्री को बेसवग कहते थे । विजय नगर में व्यापारियों के श्रेणियों को चेट्टि कहा जाता था । बहमनी साम्राज्य की स्थापना 1347 ई ० में मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में हुआ था । बहमनी साम्राज्य का संस्थापक अलाउद्दीन बहमनशाह था । बहमनशाह ने गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाया तथा उस का नाम अहसनाबाद रखा । उसने अपने साम्राज्य को चार प्रान्तों में गुलबर्गा , दौलताबाद , बरार एवं बीदर में बाँटा । मुहम्मदशाह प्रथम के काल में ही बारुद का उपयोग पहली बार प्रारम्भ 7 हुआ , जिसने रक्षा – संगठन में नई क्रान्ति ला दी थी । 1397 ई ० में ताजउद्दीन फिरोज बहमनी का शासक बना , वह बहमनी सम्राटों में सर्वाधिक विद्वान था । ताजउद्दीन के शासनकाल में 1417 ई ० में रुसी यात्री निकितिन बहमनी व साम्राज्य की यात्रा पर आया था । ताजउद्दीन फिरोज ने भीमा नदी के तट पर फिरोजाबाद नामक शहर की नींव डाली । फिरोज के शासनकाल में सोनार की बेटी का युद्ध हुआ जिसमें विजयनगर साम्राज्य के शासक देवराय प्रथम की हार हुई थी । 1361 ई ० में मिस्र के खलीफा ने मुहम्मद शाह- । को मान्यता प्रदान की तथा दक्षिण भारत का सुल्तान स्वीकार किया । फिरोज की मृत्यु के पश्चात् शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ( 1422-46 AD ) | निबहमनी के सिंहासन पर बैठा । शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ने अपनी राजधानी गुलबर्गा से हटाकर बीदर में स्थापित किया तथा इसका नाम मुहमदाबाद रखा ।
शिहाबुद्दीन इतिहास में शाह वली अथवा सन्त अहमद के नाम से भी जाने जाते हैं । 7 बहमनी – विजयगनर के संघर्ष का मुख्य क्षेत्र रायचूर दोआव था । र बहमनी राजवंश के शासक हुमायूँ को उसकी क्रूरता एवं विलासिता के कारण जालिम हुमायूँ एवं पूर्व का नीरो कहा गया । हुमायूँ ने महमूद गवाँ को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया । वह एक योग्य एवं कुशल राजनायक था । हुमायूँ के काल में बहमनी को मिली सफलताओं का श्रेय महमूद गवाँ को जाता है । 2 महमूद गवाँ ने बीदर में एक विद्यालय की स्थापना कराया । महमूद गवाँ ने राज्य को आठ प्रान्तों अथवा अतराफ में विभाजित कर दिया और प्रत्येक में तरफदार की नियुक्ति की । बहमनी वंश का सबसे अन्तिम शासक कलीमउल्लाह था ।
बहमनी राज्य के पतन के बाद पाँच स्वतन्त्र राज्यों का उदय दक्कन में हुआ ।
विजय नगर साम्राज्य की राजधानी ‘ तुंगभद्रानदी के किनारे हम्पी थी । वि हरिहर एवं बुक्का ने अपने पिता संगम के नाम पर संगम वंश की स्थापना बुक्का प्रथम ने वेदमार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की । देवराय प्रथम के शासनकाल में इटली के यात्री निकोलस कॉण्टी ने विजय नगर की यात्रा की । देवराय द्वितीय संगम वंश का सबसे प्रतापी राजा था तथा इसे इमाडिदेवराय के नाम से भी जाना जाता है । देवराय द्वितीय के शासनकाल में फारसी राजदूत अब्दुर्रज्जाक ने विजयनगर की यात्रा की । देवराय द्वितीय को एक अभिलेख में जगबेटकर ( हाथियों का शिकारी ) की उपाधि दी गई है । विजयनगर में सालुव वंश की स्थापना सालुव नरसिंह ने 1485 ई ० में की । सालुव नरसिंह के शासनकाल में आने वाला प्रसिद्ध पुर्तगाली यात्री नूनिज . था । वीर नरसिंह ने विजयनगर में तुलुव वंश की स्थापना 1505 ई ० में की । कृष्णदेव राय तुलुव वंश का महान शासक था , वह 8 अगस्त 1509 ई ० को गद्दी पर बैठा । वि कृष्णदेव राय ने यवनराज स्थापनाचार्य की उपाधि धारण की । प्र कृष्णदेव राय ने अपने प्रथम सैनिक अभियान ( 1509-10 ई ० ) में बीदर fe के सुल्तान महमूद शाह को हराया । TC कृष्णदेव राय का अन्तिम सैनिक अभियान बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिल के विरुद्ध हुआ , उसे हराकर गुलबर्गा के किले को नष्ट कर दिया । कृष्णदेव राय के शासनकाल में पुर्तगाली शासक अल्बुकर्क था । पुर्तगाली यात्री डोमिगोस पायस कृष्णदेव राय के शासनकाल में विजयनगर की यात्रा पर आया था । कृष्णदेव राय ने नागलपुर नामक नए नगर की स्थापना की थी । कृष्णदेव राय के शासनकाल को तेलुगु साहित्य का क्लासिक युग कहा गया है । कृष्णदेव राय के दरबार में तेलुगु साहित्य के आठ सर्वश्रेष्ठ कवि थे , जिन्हें अष्टदिग्गज कहा गया है । कृष्णदेव राय के अष्टदिग्गज में सर्वाधिक उल्लेखनीय तेलुगु कवि अल्लसानि पेद्वन था , जिन्हें तेलुगु कविता के पितामह की उपाधि प्रदान की गयी थी । ” तेनाली राम ‘ कृष्णदेव राय के दरबार का अन्तिम व आठवाँ कवि था । इनकी प्रसिद्ध रचना पाण्डुराम महात्म्य है । कृष्णदेव राय ने तेलुगु में अमुक्त्माल्यम एवं संस्कृत में जाम्बबती कल्याणम् की रचना की । कृष्णदेव राय वैष्णव धर्म का अनुयायी था । कृष्णदेव राय ने हजारा और विट्ठलस्वामी मन्दिरों का निर्माण करवाया था । कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 ई ० में हो गयी । तुलुव वंश का अन्तिम शासक सदाशिव था । सदाशिव राय के शासनकाल में प्रसिद्ध युद्ध तालीकोटा या राक्षसीतंगड़ी का युद्ध 25 जनवरी 1565 में हुआ । तालीकोटा या राक्षसीतंगड़ी का युद्ध बीजापुर , अहमदनगर , गोलकुण्डा एवं बीदर के संयुक्त मोर्चा का नेता अली अदिल शाह और विजयनगर के सेना का नायक रामराय के बीच हुई , जिसमें रामराय पराजित हुआ । विजयनगर साम्राज्य के चौथे वंश , अरवीडु वंश का संस्थापक ‘ तिरुमल ‘ था । इस वंश की स्थापना तिरुमल ने सदाशिव को अपदस्थ कर 1570 ई ० में पेनुकोंडा में की । अरवीडु शासक वेंकट द्वितीय के शासन काल में ही वाडयार ने 1612 ई ० में मैसूर राज्य की स्थापना की । विजयनगर साम्राज्य का अन्तिम शासक रंग -1 || था ।
विजयनगर साम्राज्य के शासक को राय कहा जाता था ।
विजयनगर साम्राज्य में सारी शक्तियाँ असैनिक और सैनिक दोनों प्रशासन का प्रधान राजा थ
शर्की वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक शम्सुद्दीन इब्राहीम शाह हुआ । शम्सुद्दीन इब्राहिम शाह के समय में , जौनपुर को साहित्य एवं स्थापत्य के कारण भारत का सीराज कहा गया । जौनपुर का अन्तिम शर्की शासक हुसैन शाह शर्की था ।
जौनपुर राज्य लगभग 75 वर्षों तक स्वतन्त्र रहने के बाद बहलोल लोदी द्वारा दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया । मेवाड़ मध्य काल में सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था तथा इसकी राजधानी चितौड़ थी । 1303 ई ० में अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ के गुहिलौत राजवंश के शासक रत्नसिंह को पराजित कर मेवाड़ को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया । अलाउद्दीन रत्नसिंह की रानी पद्मिनी को प्राप्त करना चाहता था , लेकिन पद्मिनी ने जौहर व्रत ( सती होना ) धारण कर स्वयं को समाप्त कर लिया । 1314 ई ० में सिसोदियों वंश के हम्मीरदेव ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया । मेवाड़ के अन्य प्रसिद्ध शासक राणा कुंभा ( 1433-68 ई ० ) एवं राणा सांगा ( 1509-28 ई ० ) थे । राणा कुंभा ने मेवाड़ में 22 दुर्गों का निर्माण करवाया , जिसमें कुम्भलगढ़ का दुर्ग मुख्य रूप से प्रसिद्ध है । 1527 ई ० में राणा सांगा एवं बाबर के बीच खनवा का युद्ध हुआ जिसमें बाबर विजयी हुआ । 1576 ई ० में मेवाड़ के प्रसिद्ध शासक राणा प्रताप को अकबर ने हल्दी घाटी के युद्ध में परास्त किया । मेवाड़ को मुगल सम्राट जहाँगीर ने मुगल साम्राज्य में मिला लिया । आधुनिक मारवाड़ का संस्थापक चुन्द था , उसने 1394 ई ० में उसकी स्थापना की । मारवाड़ पर राठौर वंश का शासन था । मारवाड़ के शासक जोधा ने जोधपुर एवं बिक्का ने बिकानेर शहरों की स्थापना की । जोधा ने नन्दौर के प्रसिद्ध दुर्ग का निर्माण करवाया । मारवाड़ का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक मालदेव ( 1532-62 ई ० ) था , उसने शेरशाह को मारवाड़ जीतने नहीं दिया । महमूद गजनी ने 1010 ई ० में सिन्ध पर अधिकार कर लिया तथा 50 वर्षों तक शासन किया । 1210 ई ० में सिन्ध पर नासिरुद्दीन कुबाचा ने अधिकार कर लिया ।
1382 ई ० में फिरोजशाह तुगलक के सूबेदार मलिक राजा फारुकी ने खानदेश की स्थापना स्वतन्त्र मुस्लिम राज्य के रूप में की थी । उसके नाम पर उसके वंश का नाम फारुखी वंश पड़ा । खानदेश की राजधानी बुरहानपुर थी । खानदेश का सैनिक मुख्यालय असीरगढ़ में स्थित था । मल्लिक नासिर ने 1399-1438 ई ० तक तथा आदिल शाह ने 1457-1503 ई ० तक खानदेश पर शासन किया । 1601 ई ० में मुगल सम्राट अकबर ने खानदेश को मुगल साम्राज्य में . मिला लिया ।
महमूद गजनवी की पंजाब विजय के पश्चात् कई सूफी सन्त भारत आये । सूफीमत इस्लाम धर्म में उदार , रहस्यवादी और संश्लेषणात्मक प्रवृतियों का प्रतिनिधित्व करने वाली विचारधारा है । सूफियों का मुख्य उपदेश वाहदत – उल – वजूद था । के सूफी जिन आश्रमों में निवास करते थे , उन्हें खनकाह या मठ कहा जाता था । सूफियों के धर्मसंघ दो भागों बा – शारा ( इस्लामी सिद्धान्त के समर्थक ) और बे – शारा ( इस्लामी सिद्धान्त से बँधे नहीं ) में विभाजित थे । भारत में आने वाला पहला सूफी सन्त शेख इस्माल था , जो लाहौर रा आया ।
भारत में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती , हमीहुन नागौरी , कुतुबुद्दीन बख्तियार की काकी , सरीदुद्दीन गजशंकरी , निजामुद्दीन औलिया आदि सूफी मत के प्रमुख प्रचारक हुए ।
. . 1588 ई ० में अकबर ने कश्मीर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया । मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में बंगाल स्वतन्त्र हो गया था । शम्सुद्दीन इलियास शाह बंगाल 1345 ई ० में बंगाल का नवाब बना । शम्सुद्दीन ने एक नए राजवंश इल्यास शाही राजवंश की स्थापना की । 1375 ई ० में शम्सुद्दीन के मृत्यु के बाद सिकन्दर सुल्तान बना । सिकन्दर शाह ने पांडुआ में अदीना मस्जिद का निर्माण करवाया । 1493 ई ० में शासक बने ‘ अलाउद्दीन हुसैन शाह ‘ ने अपनी राजधानी को पांडुआ से गौड़ स्थानान्तरित किया । चैतन्य महाप्रभु अलाउद्दीन के समकालीन थे । अलाद्दीन ने सत्यपीर नामक आन्दोलन की शुरूआत की । अलाउद्दीन के शासन काल में मालधर बसु ने श्री कृष्ण विजय की रचना कर गुणराज खान की उपाधि धारण की । बंगाल के एक अन्य शासक ‘ नसीब खाँ ‘ के कार्यकाल में महाभारत का बंगला भाषा में अनुवाद तथा गौड़ में कदमरसूल मस्जिद का निर्माण करवाया । बंगाल में हुसैनशाही वंश का अन्तिम शासक ‘ ग्याशुद्दीन महमूदशाह ‘ था । मालवा राज्य 1398 ई ० में तैमूर के आक्रमण के बाद स्वतन्त्र हो गया । मालवा के सूबेदार दिलावर खाँ गोरी 1401 ई ० में मालवा को स्वतन्त्र घोषित कर दिया । दिलावर खाँ ने धार की लाट मस्जिद का निर्माण करवाया । 1405 ई ० में शासक बने हुशंगशाह ने मालवा की राजधानी से माण्डू को स्थानान्तरित किया ।
‘ माण्डू के किले ‘ का निर्माण हुशंगशाह ने करवाया था , जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है – दिल्ली दरवाजा । हुशंग शाह ने नर्मदा तट पर होशंगाबाद नगर की स्थापना की । 1435 ई ० में शासक बने महमूदशाह खिलजी ने माण्डू में सात मंजिलों वाले महल का निर्माण करवाया । मेवाड़ के राणा कुंभा ने महमूद खिलजी को युद्ध में परास्त कर चित्तौड़ में कैद कर लिया । Ye राणा कुंभा ने विजय की स्मृति में विजय स्तम्भ ( चित्तौड़ ) का निर्माण करवाया । जहाज महल का निर्माण 1469 ई ० में शासक बने ग्यासुद्दीन खिलजी ने मांडू में करवाया । 1500 ई ० में शासक बने नासिरुद्दीन शाह ने बाज बहादुर एवं रुपमति महल का निर्माण करवाया । खिलजी वंश के अन्तिम शासक ‘ महमूदशाह द्वितीय ‘ ने फतेहाबाद नामक स्थान पर महमूद खिलजी के कुश्क महल का निर्माण करवाया । गुजरात के बहादुरशाह ने महमूदशाह द्वितीय को युद्ध में परास्त कर दिया तथा 1531 ई ० में मालवा का गुजरात में विलय हो गया ।
1401 ई ० में जफर खाँ के नेतृत्व में गुजरात स्वतन्त्र हो गया । अहमदशाह गुजरात के स्वतन्त्र राज्य का वास्तविक संस्थापक था । अहमदशाह ने असावल के समीप अहमदनगर नामक नगर की स्थापना की । उसने अपनी राजधानी अहमदनगर स्थानान्तरित की । महमूद बेगड़ा गुजरात का प्रसिद्ध शासक था । महमूद बेगड़ा ने गिरनार के निकट मुस्तफाबाद नामक नगर और चम्मानेर के निकट मुहम्मदाबाद नगर बसाया । महमूद बेगड़ा ने गुजरात के समुद्रतट से पुर्तगालियों को भगाने के लिए मिन तथा कालीकट के शासकों से सन्धि की ।
1507 ई ० में ड्यू द्वीप के पास हुए सामुद्रिक युद्ध में महमूद बेगड़ाने . पुर्तगालियों को पराजित किया , परन्तु , 1509 ई ० में वह पुर्तगालियों से 3 . हार गया । गुजरात को अकबर ने 1572 ई ० में मुगल साम्राज्य के अधीन कर लिया । जौनपुर की स्थापना फिरोज तुगलक ने अपने भाई जौना खाँ की स्मृति में की थी । जौनपुर में स्वतन्त्र शर्की राज्य का संस्थापक ख्वाजा जहाँ था ।
1394 ई ० में फिरोजशाह तुगलक के पुत्र सुल्तान महमूद ने खाजा जहान को मलिक- उस – शर्क ( पूर्व का स्वामी ) की उपाधि प्रदान की ।
1699 ई ० में गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की । गुरु गोविंद सिंह के बाद सिक्खों में गुरु की परम्परा समाप्त हो गयी । गुरु गोविंद सिंह ने पाहुल प्रणाली को प्रारम्भ किया । इन्होंने सिक्खों के धार्मिक ग्रन्थ आदिग्रन्थ को वर्तमान रूप दिया । • गुरु गोविन्द सिंह की मृत्यु के बाद सिक्खों का नेतृत्व बन्दा सिंह ने किया । बन्दा का उद्देश्य पंजाब में एक सिक्ख राज्य स्थापित करने का था । इसके लिए उसने लौहगढ़ को राजधानी बनाया । मुगल बादशाह फर्रुखसियर के आदेश पर 1716 ई ० में बन्दा सिंह को गुरुदासपुर नांगल नामक स्थान पर पकड़कर मौत के घाट उतार दिया गया ।
शिवाजी के नेतृत्व में मराठों का उदय
( Rise of Marathas under Sivaji )
सत्रहवीं शताब्दी में शिवाजी ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी । शिवाजी का जन्म 20 अप्रैल , 1627 ई ० में शिवनेर नामक स्थान पर हुआ था । शिवाजी के पिता का नाम शाहजी भोंसले तथा माता का नाम जीजाबाई था । शिवाजी के गुरु दादाजी कोणदेव थे , शिवाजी ने इन्हीं से प्रारम्भिक शिक्षा ली । . शिवाजी के आध्यात्मिक एवं धार्मिक गुरु रामदास थे । 1640 ई ० में शाहजी ने शिवाजी को पूना की जागीर सौंप दी एवं स्वयं बीजापुर के रियासत में नौकरी कर ली । • 1640 ई ० में साईं बाई निम्बालकर से शिवाजी का विवाह हुआ । 1644 ई ० में शिवाजी अपने सैन्य अभियान के अन्तर्गत सर्वप्रथम बीजापुर के तोरण नामक पहाड़ी किले पर अधिकार किया । शिवाजी ने 1655 ई ० में जावली एवं 1656 ई ० में रायगढ़ पर अधिकार कर लिया तथा रायगढ़ में अपनी राजधानी स्थापित की । 1665 ई ० में बीजापुर के सुल्तान ने अपने सेनापति अफजल खाँ को शिवाजी को पराजित करने के लिए भेजा । 1663 ई ० में औरंगजेब के दक्षिण के सूबेदार शाइस्ता खाँ को शिवाजी f ने पराजित किया । 1664 ई ० में शिवाजी ने गुजरात को लूटा तथा 1664 ई ० में रायगढ़ के किले का निर्माण किया । 24 अप्रैल , 1665 ई ० को शिवाजी और राजा जयसिंह के बीच पुरन्दर की सन्धि हुई ।
1666 ई ० में शिवाजी ने आगरा की यात्रा की । शा आगरा पहुँचकर मुगल दरबार में उपस्थित हुए जहाँ उन्हें औरंगजेब ने धोखे से जयपुर भवन में कैद कर लिया , साथ में उनका पुत्र शम्भाजी क रा भी था । क 1670 ई ० में शिवाजी ने पुनः सूरत को लूटा । 16 जून , 1674 ई ० को शिवाजी का राज्याभिषेक रायगढ़ के किला में तान हुआ । 17 . शिवाजी का राज्याभिषेक काशी के प्रसिद्ध विद्वान श्री गंगाभट्ट द्वारा किया शा गया । जिन शिवाजी ने छत्रपति , हैंदव धर्मोधारक एवं गौ – ब्राह्मण प्रतिपालक की 22 उपाधि धारण की । . ‘ जिंजी ‘ को शिवाजी ने मराठा राज्य के दक्षिणी क्षेत्र की राजधानी बनाया । गण शिवाजी का अन्तिम महत्वपूर्ण अभियान 1676 ई ० में कर्नाटक का अभियान था । मुग – शिवाजी की मृत्यु मात्र 53 वर्ष की अवस्था में 14 अप्रैल , 1680 में हो गयी । . शिवाजी का मंत्रिमण्डल अष्टप्रधान था । शिवाजी के मंत्रिमण्डल में पेशवा का पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण था । –
शिवाजी के प्रशासन में पेशवा शासन – सम्बन्धी सभी कार्य करता था और मुगन सरकारी पत्रों एवं कागजों पर अपनी मुहर लगाता था ।
शेरशाह के साम्राज्य में कश्मीर को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण उत्तर भारत शामिल था । शेरशाह के बाद उसका पुत्र इस्लाम शाह ( 1545-53 ) शासक बना । 1555 ई ० में हुमायूँ ने मच्छीवाड़ा के युद्ध में अफगानों को बुरी तरह परास्त किया तथा मुगल वंश की पुनर्स्थापना की । शेरशाह के मकबरे का निर्माण सासाराम ( बिहार ) में हुआ । रोहतासगढ़ के किले एवं किला – ए – कुन्हा मस्जिद ( दिल्ली ) का निर्माण 1.3 शेरशाह ने करवाया । शेरशाह के कार्यकाल में सुल्तान या शासक सभी शक्तियों का केन्द्रबिन्दु था और एक निरंकुश शासक के रूप में कार्य करता था । शेरशाह ने सम्पूर्ण साम्राज्य को 47 सरकारों ( प्रान्तों ) में जिसके शीर्षस्थ अधिकारी कहीं हकीम , कहीं अमीन या फौजदार कहलाते थे 5 . । प्रत्येक सरकार में शेरशाह ने दो पदाधिकारी नियुक्त किया – 1. शिकदार – ए – शिकदान कानून व्यवस्था का पदाधिकारी । 2. मुन्सिक – ए – मुंसिकान लगान से संबंधित मुकदमों की देख – रेख करने वाला पदाधिकारी । सरकारों को ‘ परगनों में बाँटा गया था 1. शिकदार – कानून – व्यवस्था का पदाधिकारी । 2. अमीन – लगान बसूलने वाला पदधिकारी । 3. मुंसिफ – मुकदमों की देख – रेख करने वाला पदाधिकारी । शेरशाह के शासनकाल में ग्राम में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए मुकद्दम होता था । शेरशाह ने जब्ती प्रणाली को लागू किया , जिसके अन्तर्गत लगान का निर्धारण भूमि के माप के आधार पर किया जाता था । शेरशाह ने भूमि की माप के लिए 32 अंकों वाला सिकन्दरी गज चलाया । शेरशाह के शासनकाल में भू – राजस्व , कुल उपज का 1/3 भाग वसूला जाता था । शेरशाह ने चाँदी के रुपया का प्रचलन शुरू किया , जो 178 ग्रेन का था तथा 380 ग्रेन ताँबे का दाम चलवाया । शेरशाह ने ‘ कबूलियत एवं पट्टा ‘ प्रथा की शुरूआत की । शेरशाह ने ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण करवाया , जो सुनारगाँव से पेशावर तक जाती थी । 1541 ई ० में शेरशाह ने पाटलिपुत्र को पटना के नाम से पुनः स्थापित किया । शेरशाह ने डाक – व्यवस्था प्रारम्भ की थी । शेरशाह ने कन्नौज के स्थान पर शेरसूर नामक नगर बसाया । शेरशाह ने जनता की सुविधा के लिए सरायों की स्थापना की जिसकी संख्या लगभग 1700 थी । शेरशाह का वित्तमन्त्री टोडरमल था । शेरशाह के काल में प्रमुख कवि मलिक मोहम्मद जायसी थे , उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तक पद्मावत की रचना हिन्दी में की थी । सिक्ख धर्म की स्थापना गुरु नानक द्वारा पन्द्रहवीं शताब्दी में की गई । गुरु नानक के अनुयायी ही सिख ( शिष्य ) कहलाए ।
गुरु नानक ने संगत ( धर्मशाला ) एवं पंगत ( साथ बैठकर भोजन करना ) , जिसे लंगर भी कहते हैं की परम्परा आरम्भ की । सिक्खों के दूसरे गुरु अंगद ने गुरुमुखी लिपि का आविष्कार किया । • अंगद के नेतृत्व में गुरु नानक के जीवन चरित्र की रचना की गयी तथा उनकी वाणियों एवं शब्दों को एकत्रित करके गुरुमुखी में लिपिबद्ध किया गया । सिक्खों के चौथे गुरु अमरदास ने देश भर में 22 गद्दियों की स्थापना की म तथा प्रत्येक पर एक महंथ की नियुक्ति की । सिक्खों के चौथे गुरु रामदास को अकबर ने 500 बीघा भूमि प्रदान की ग थी । • उपर्युक्त भूमि पर रामदास ने अमृतसर तथा सन्तोष नामक दो सरोवरों का निर्माण किया और इनके आसपास अमृतसर नगर को बसाया । गुरु ल रामदास ने मसनद प्रणाली चलाई ।
सिक्खों के पाँचवें गुरु अर्जुन देव के काल में गुरु पद वंश – परम्परानुगत ग हो गया ।
औरंगजेब के शासनकाल में जाटों ने 1669 ई ० में गोकुल के नेतृत्व में एवं 1686 ई ० में राजाराम तथा रामचेरा तथा 1689 ई ० के बाद चुरामन के नेतृत्व में विद्रोह किए । औरंगजेब कट्टर सुनी मुसलमान था , उसे औरंगजेब को जिदापीर कहा हो . जाता था । औरंगजेब ने सिक्खों के 9 वें गुरु तेग बहादुर को इस्लाम धर्म न स्वीकारने के कारण 1675 ई ० में हत्या करवा दी । औरंगजेब के शासनकाल में सिक्खों के 10 वें गुरु गोविंद सिंह ने 30 मार्च , 1699 ई ० को ‘ वैशाखी ‘ के दिन खालसा पंथ की स्थापना की । 1643 ई ० में औरंगजेब ने मराठा नेता शिवाजी का दमन करने के उद्देश्य से शाइस्ता खों को एक सेना के साथ भेजा , परन्तु वह असफल रहा । 1665 ई ० में औरंगजेब एवं शिवाजी के बीच पुरन्दर की सन्धि हुई । औरंगजेब ने 1669 ई ० में हिन्दू मन्दिरों को तोड़ने का आदेश दिया । औरंगजेब ने 1679 ई ० में हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया । औरंगजेब ने झरोखा दर्शन तथा तुलादान प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया । औरंगजेब ने आबवाब ( राहदारी परिवहन कर ) , पानडारी ( चुंगी कर ) नामक कर समाप्त कर दिया । औरंगजेब ने मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद रखा था ।
औरंगजेब के समय में हिन्दू मनसबदारों की संख्या लगभग 337 थी , जो अन्य मुगल सम्राटों की तुलना में अधिक थी । औरंगजेब ने कुरान को अपने शासन का आधार बनाया तथा इस्लाम को पुनः राजधर्म घोषित किया । fot औरंगजेब ने औरंगाबाद में अपनी बीबी रविया – उद – दौरानी की समाधि पर बीबी का मकबरा बनवाया । औरंगजेब ने लाहौर में बादशाही मस्जिद का निर्माण करवाया । औरंगजेब ने अपने दरबार में संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया । औरंगजेब की मृत्यु 4 मार्च , 1707 ई ० को हुई । उसके मृत शरीर को दौलताबाद स्थित फकीर खुरहानुद्दीन की कब्र के अहाते में दफन किया . . गया । . . औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसका दूसरा पुत्र मुहम्मद मुअज्जम बहादुर शाह के नाम से सिंहासन पर बैठा , उत्तराधिकार के में गुरु गोविन्द सिंह ने उसका साथ दिया था । • बहादुरशाह के शासनकाल में मराठा नेता शाहू को मुगल कैद से मुक्त कर दिया गया था । बहादुरशाह ने दक्षिण में मराठों के बीच चौथ एवं सरदेशमुखी वसूल करने के अधिकार को मान्यता प्रदान कर दिया था । जमान बहादुरशाह को शाह – ए – बेखबर के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है । बहादुरशाह की मृत्यु 16 फरवरी , 1711 ई ० को हुई । बहादुरशाह के बाद जहाँदारशाह 29 मार्च , 1712 ई ० को गद्दी पर बैठा । • जहाँदार शाह एक अयोग्य व्यक्ति था , अत : उसे लम्पट मूर्ख कहा गया है । फर्रुखसियर ने जहाँदारशाह को युद्ध में पराजित कर दिया । • फर्रुखसियर के आदेश पर 11 फरवरी , 1713 ई ० को जहाँदारशाह की हत्या कर दी गयी । • जहाँदारशाह लाल कुमारी नामक एक वेश्या के साथ रंगरेली मनाने में . व्यस्त रहता था । जहाँदारशाह के पतन के बाद 11 जनवरी , 1713 ई ० को फर्रुखसियर गद्दी पर बैठा । • सैय्यद बन्धु हुसैन अली खाँ एवं अब्दुला खाँ को मुगलकालीन इतिहास में शासक निर्माता के रूप में जाना जाता है , सैय्यद बन्धुओं की मदद से ही फर्रुखशियर गद्दी पर बैठा । फर्रुखसियर के शासनकाल में जाट नेता चूरामन का दमन किया गया था । • फर्रुखसियर ने सिक्ख नेता बन्दा सिंह की हत्या करवा दी । • फर्रुखसियर को मुगल वंश का घृणित कायर कहा गया है । फर्रुखसियर को गद्दी से हटाये जाने के बाद 28 फरवरी 1719 ई ० को रफी – उद – दरजात दिल्ली का सम्राट बना । रफी – उद – दरजात शासन को अच्छे ढंग से संचालित करने में असफल रहा तथा सैय्यद बन्धुओं के हाथों का कठपुतली बनकर रह गया ।
रफी – उद – दरजात के शासनकाल में निकृसियर का विद्रोह हुआ ।
6 जून , 1719 को रफी – उद – दरजात को सैय्यद बन्धुओं की मदद से अपदस्थ कर रफी – उद – दौला हुसैन अली खाँ ने निकूसियर के विद्रोह को दबाया । रफी – उद – दौला का निधन क्षय रोग के कारण 17 सितम्बर , 1719 ई ० में हो गया । सैय्यद अब्दुला ने 28 सितम्बर , 1719 ई ० को मुहम्मद शाह को गद्दी पर मुहम्मदशाह ने 1720 ई ० को अब्दुला को युद्ध में पराजित किया तथा साम्राज्य को सैय्यद बन्धुओं से मुक्ति मिल गयी । मुहम्मदशाह के शासनकाल में 1739 ई ० में प्रसिद्ध ईरानी लुटेरा नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया था । मुहम्मदशाह तख्ते – ताउस ( मयूर सिंहासन ) पर बैठने वाला अन्तिम मुगल शासक था । मुहम्मदशाह नाच – गानों में अधिक दिलचस्पी लेता था इसी कारण इतिहास में मुहम्मद शाह को रंगीला बादशाह की संज्ञा से सम्बोधित किया जाता है । नादिरशाह अपने साथ धनराशि , शाहजहाँ का तख्ते – ताउस ( मयूर सिंहासन ) तथा कोहिनूर हीरा उठाकर ले गया । मुहम्मदशाह के शासनकाल में निजाम – उल – मुल्क ने विद्रोह कर स्वयं को दक्षिण के 6 सूबों का शासक घोषित कर दिया एवं हैदराबाद को अपनी राजधानी बनाया । मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद 28 अप्रैल , 1748 ई ० को अहमदशाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा । अहमदशाह के शासनकाल में अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया था । अहमदशाह के बाद गद्दी पर बैठे शाहआलम का नाम अली गौहर था । शाहआलम द्वितीय के शासन काल में 1761 ई ० में अहमदशाह अब्दाली ने पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को हराया । अहमदशाह अब्दाली ने आठ बार भारत पर आक्रमण किया था । पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों का नेतृत्व सदाशिव राव भाउ एवं इब्राहिम गार्दी ने किया । शाह आलम द्वितीय के शासन काल में अंग्रेजों ने 1803 ई ० में दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया । शाहआलम द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र अकबर द्वितीय मुगलों की गद्दी पर बैठा । अकबर द्वितीय के समय तक भारतवर्ष में अंग्रेजों की शक्ति एवं सत्ता का तीव्रता से विकास हो रहा था । अकबर द्वितीय की मृत्यु 1837 ई ० में हो गयी । बहादुरशाह जफर अन्तिम मुगल सम्राट था , उसने 1857 ई ० की क्रान्ति में भाग लिया था । 1857 ई ० के विद्रोह के दमन के बाद अंग्रेजों ने उसपर मुकदमा चलाया और उसे रंगून भेज दिया ।
शेरशाह ने सूर साम्राज्य की स्थापना की थी । शेरशाह का बचपन का नाम फरीद खाँ था । शेरशाह का जन्म 1472 ई ० में बजवाड़ा ( होशियारपुर ) में हुआ था । शेरशाह के पिता का नाम हसन खाँ था , वह सासाराम का जागीदार था । शेरशाह ने एक बार एक शेर को तलवार के एक ही वार से मार गिराया इसी कारण मुहम्मद बहार खाँ लोहानी ने उसे शेर खाँ की उपाधि प्रदान की । शेर खाँ 1529 ई ० में बिहार एवं 17 मई , 1540 ई ० को हुए बिलग्राम युद्ध में हुमायूँ को हराकर दिल्ली का शासक बना । दिल्ली की गद्दी पर बैठते समय शेर खाँ ने शेरशाह की उपाधि धारण की । • शेरशाह लाड मलिका नाम की एक विधवा से शादी कर चुनार प्राप्त . . किया । 1539 ई ० में शेरशाह ने चौसा पर अधिकार कर लिया । 1540 ई ० में शेरशाह ने कन्नौज के बाद लाहौर पर कब्जा किया ।
1545 ई ० में कालिंजर फतह के दौरान बारूद के ढेर में आग लगने के कारण शेरशाह की मृत्यु हो गयी ।
गुरु के अधिकारों में वृद्धि हुई उन्हें राज्याधिकारों से विभूषित किया गया और सिक्खों के बीच गुरुओं की पूजा चल पड़ी । गुरु अर्जुन देव प्रथम गुरु थे , जिन्होंने राजनीति में रुचि ली । अर्जुनदेव ने सन्तों वाले वस्त्र त्याग कर राजसी वस्त्रों को अपनाया ।
अर्जुनदेव ने 1595 ई ० में व्यास नदी के तट पर गोविन्दपुर नामक एक शहर बसाया । अर्जुनदेव ने अमृतसर एवं सन्तोष नामक सरोवरों के बीच हर मन्दिर साहिब का निर्माण करवाया ।
गुरु हरगोविन्द मीरी एवं पीरी नामक दो तलवार बाँधकर गद्दी पर बैठते के 7 । 7 . . न 1 गुरु हरगोविंद ने अकालतख्त की स्थापना की । गुरु हरगोविंद ने अमृतसर की रक्षा हेतु लौहगढ़ किले का निर्माण करवाया । सिक्खों के ‘ 7 वें गुरु हर राय ने जब शाहजहाँ के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार के युद्ध का प्रारम्भ हुआ तो अपना समर्थन दारा शिकोह को दिया । • सिक्खों के ‘ 8 वें ‘ गुरु हर किशन की मृत्यु 30 मार्च , 1664 को चेचक से हो गयी । सिक्खों के नौवें गुरु तेगबहादुर हुए । सिक्खों के ‘ नौवें ‘ गुरु तेगबहादुर ने कीर्तिपुर से 5 मील दूर आनन्दपुर नामक एक ग्राम बसाया तथा उसे अपना केन्द्र बनाया । इस्लाम नहीं स्वीकार करने के कारण औरंगजेब ने तेगबहादुर को वर्तमान शीशगंज गुरुद्वारा के निकट फाँसी दे दी । सिक्खों के 10 वें ‘ गुरु गोविंद सिंह का जन्म 1666 ई ० में पटना साहिब में हुआ था । • गुरु गोविन्द सिंह के नेतृत्व में सिक्खों ने मुगलों को 1695 ई ० में नादोन तथा 1706 ई ० में खिदराना में पराजित किया । गुरु गोविंद सिंह ने सिक्खों के लिए पंजककार अनिवार्य किया और सभी लोगों को अपने नाम के अन्त में सिंह शब्द जोड़ने के लिए कहा । • गुरु गोविंद सिंह ने सिक्खों से पंजककार के तहत केश , कच्छा , कंघी , कड़ा एवं कृपाण धारण करने के लिए कहा । .
फर्रुखसियर द्वारा जारी इस फरमान को कम्पनी का महाधिकार पत्र ( Magna carta ) कहा जाता है । भारत में फ्रांसीसियों का आगमन सबसे बाद में हुआ । 1664 ई ० में फ्रेंच सम्राट लुई- XIV ने कम्पनी डि इंड्ज ओरिएंटेल्स ( Company des Indes orientales ) नाम से फ्रेंच ईस्ट कम्पनी की स्थापना की । फ्रांसीसियों की पहली कोठी फ्रेको कैरो के प्रयास से 1668 ई ० में सूरत में स्थापित हुई । 1674 ई ० में फ्रैंक मार्टिन ने पांडिचेरी की स्थापना की । 1721 ई ० में फ्रांसीसियों का मारीशस पर अधिकार हो गया । दूसरा कनार्टक युद्ध 1749-54 ई ० में हुआ , इस युद्ध में फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले की हार हुई । • डूण्ले को वापस बुला लिया गया और गोडेहू कैनोबिन को भारत में अगला फ्रांसीसी गवर्नर बनाया गया । 1760 ई ० में अंग्रेजों ने सर आयरकूट के नेतृत्व में वांडिवाश की लड़ाई में फ्रांसीसियों को परास्त कर दिया तथा 1761 ई ० में उनसे पांडिचेरी छीन लिया ।
1763 ई ० मे हुई पेरिस सन्धि के द्वारा अंग्रेजों ने चन्दरनगर को छोड़कर 10 शेष अन्य प्रदेशों को लौटा दिया , जो 1749 ई ० तक फ्रांसीसी कब्जे में थे । .
. . 1668 ई ० में चार्ल्स- ॥ ने बंबई को मात्र 10 पाउण्ड वार्षिक किराया पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी को प्रदान कर दिया । अंग्रेजों ने पूर्वी भारत में अपना पहला कारखाना उड़ीसा में 1633 ई ० में स्थापित किया । – 1639 ई ० में अंग्रेजों द्वारा सेंट जॉर्ज किले की आधारशिला रखी गई जहाँ बाद में मदास शहर बस गया । 1686 ई ० में अंग्रजों ने हुगली को लूटा तथा हिजली एवं बालासोर स्थित मुगल घेराबन्दी पर हमले किये । परिणामस्वरूप , 1688 ई ० में औरंगजेब ने अंग्रेजों पर आक्रमण के आदेश दिये एवं ब्रिटिश सेना को हार का सामना करना पड़ा । 1690 ई ० में अंग्रेजों एवं मुगलों के बीच समझौता हो गया । 1698 ई ० में अंग्रेजों का सुतनाती , कलिकत्ता ( कालीघाट – कोलकता ) एवं गोविंदपुर तीन गाँवों की जमींदारी मिली तथा यहाँ पर फोर्ट विलियम का निर्माण किया गया । कालान्तर में जॉब चरनॉक ने यहाँ पर कलकत्ता ( कोलकाता ) शहर का निर्माण कराया ।
फर्रुखसियर ने 1717 ई ० में अंग्रेजों को कई व्यापारिक सुविधाओं वाला शाही फरमान जारी किया ।
. राजा के बाद मराठी शासन – व्यवस्था में पेशवा का स्थान दूसरा था । सेनापति या सर – ए – नौबत शिवाजी के प्रशासन में सेना – विभाग का प्रधान होता था । शिवाजी के प्रशासन में आमात्य समस्त राज्य की आय – व्यय का ने लेखा – जोखा करता था । शिवाजी के प्रशासन में सचिव राजा के पत्र – व्यवहार का अधीक्षक था । शिवाजी के प्रशासन में सुमन्त का पद परराष्ट्र मन्त्री का था । शिवाजी के प्रशासन में सुमन्त गुप्तचरों द्वारा दूसरे राज्यों की गुप्त खबरें मंगवाता और उसे राजा तक पहुंचाता था । शिवाजी के प्रशासन में पण्डितराव अथवा दानाध्यक्ष राज्य के सभी धार्मिक कार्यों का निरीक्षण करता था । शिवाजी के प्रशासन में न्यायाधीश राज्य के साथ न्याय विभाग का प्रधान होता था । शिवाजी के प्रशासन में मन्त्री अथवा नवीस सूचना , गुप्तचर तथा सन्धि विग्रह के विभागों का अध्यक्ष होता था । .
शिवाजी के प्रशासन में पण्डितराव एवं न्यायाधीश को छोड़कर अष्टप्रधान के सभी सदस्यों को समय – समय पर सैनिक कार्य करने पड़ते थे । ‘ अष्टप्रधान ‘ के सदस्य ‘ क्षत्रपति ‘ के प्रति उत्तरदायी होते थे और शिवाजी उनके ऊपर अपना पूरा नियन्त्रण रखता था । शिवाजी के अधीन मराठी सेना के तीन महत्वपूर्ण अंग – पागा , सिलहदार तथा पैदल सेना थे । शिवाजी के राजस्व के स्रोत भूमिकर , चौथ एवं सरदेशमुखी थे । • शिवाजी ने भूमि के नाप के लिए काठी एवं मानक छड़ी का प्रयोग आरम्भ किया । शिवाजी के प्रशासन में लगान की दर उपज का 2/5 यानी 40 प्रतिशत निर्धारित थी । शिवाजी के प्रशासन में ‘ चौथ ‘ पड़ोसी मुगल या दक्कनी राजाओं से वसूला जाता था जो आमदनी का 1/4 भाग होता था । शिवाजी के प्रशासन में चौथ की तरह ‘ सरदेशमुखी ‘ भी मराठा राज्य की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत था । यह राज्यों की आय का 1 / 10 वाँ भाग होता था । शिवाजी की कर व्यवस्था मलिक अम्बर के व्यवस्था पर आधारित था ।
स्मिथ ने शिवाजी के राज्य को डाकू राज्य ( Robber State ) की संज्ञा दी है । 4 अप्रैल , 1680 ई ० को शिवाजी का स्वर्गवास हो गया । शिवाजी का उत्तराधिकारी उसका ज्येष्ठ पुत्र शम्भाजी था । शिवाजी के मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र शम्भाजी और राजाराम के बीच हुए उत्तराधिकार के युद्ध में शम्भाजी विजयी रहे तथा राजाराम को कैद कर लिया गया । शम्भाजी के पश्चात् 1689 ई ० में राजाराम गद्दी पर बैठा , उसने ‘ सतारा ‘ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया , 1700 ई ० में वह मुगलों से संघर्ष करता हुआ मारा गया । राजा राम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र कर्ण सिंह सिहांसन पर बैठा । • कर्ण के बाद मराठा सिंहासन पर ताराबाई का चार वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय पर बैठा और तारा उसका संरक्षक बन गई । – ताराबाई महान शासिका थी और उसने कई मराठा क्षेत्र को पुनः जीता । 1707 ई ० में शम्भाजी के पुत्र शाहू जो औरंगजेब के कैद में था मुक्त हुआ । – शाहू एवं ताराबाई के बीच उत्तराधिकार के लिए खेड़ा का युद्ध हुआ जिसमें शाहू विजयी हुआ । ताराबाई पराजित होकर कोल्हापुर चली गई । 22 जनवरी 1708 ई ० को शाहूजी का सतारा में राज्याभिषेक हुआ । • शाहू के शासनकाल में पेशवाओं का उदय हुआ तथा मराठा राज्य गणसंघों में बदल गया । • शाहू ने 1713 ई ० में बालाजी विश्वनाथ को पेशवा नियुक्त किया । • मुगल सम्राटों बाबर , हुमायूँ तथा औरंगजेब ने अपने शासन का आधार कुरान को बनाया ।
मुगल प्रशासन
( Mughal Administration )
मुगल शासक अकबर ने प्रशासन में धर्मनिरपेक्ष ( Secular ) तत्वों का समावेश किया तथा इस्लाम का ‘ राजधर्म ‘ का दर्जा समाप्त कर दिया । .
सूर वंश के सम्राट शेरशाह को प्रशासनिक मामलों में मुगल सम्राट अकबर का अग्रगामी माना जाता है । मुगल सम्राट सभी विभागों का प्रधान था । सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी जिसे विजारत कहा जाता था । सम्राट के लिए ‘ विजारत ‘ का परामर्श मानने की कोई बाध्यता नहीं थी । 2 . वकील – ए – मुतलक सम्राट की अनुपस्थिति में उसके सभी कार्य देखता था । वकील – ए – मुतलक ‘ विजारत ( मंत्रिपरिषद् का अध्यक्ष ) ‘ होता था । वकील – ए – मुतलक को अन्य मंत्रियों की नियुक्ति अथवा पमुक्ति का अधिकार था । वकील – ए – मुतलक के नीचे निम्न मन्त्री कार्य करते थे ( 6 ) दीवान – ए – वजीरात – ए – कुल : इसकी नियुक्ति अकबर के शासनकाल में 8 वें वर्ष में हुई , वह राजस्व एवं वित्तीय मामलों का प्रबन्धक था । ( ii ) मीर बख्शी : वह सेना – मन्त्री था तथा मनसबदारों की नियुक्ति एवं वेतन का निर्धारण करना उसका प्रमुख कार्य था । उसे पे – मास्टर जनरल भी कहा गया है । मीर बख्शी , के अधीन निम्न पदाधिकारी कार्यरत थे .मीर आतिश : तोपचियों का अध्यक्ष , . वकिया नवीस : प्रान्तों की खबर मीर बख्शी तक पहुँचाने वाला अधिकारी , • हुजूर बख्शी : प्रान्तीय सैन्य अधिकारी । ( iii ) सद्र – उस – सुदूर : यह धार्मिक सम्पत्तियों तथा ‘ दान विभाग ‘ का प्रमुख था । अकबर के शासनकाल में प्रान्तों में भी इनकी नियुक्ति हुई । ( a ) ( iv ) मीर – सामान : इसके अन्तर्गत राजकीय गृह – विभाग आता था । वह ‘ शाही कारखानों की देखभाल करता था तथा वहाँ के कर्मचारियों की नियुक्ति मान करता था । ( b ) ( v ) काजी – उल – कुजात : यह प्रधान काजी था तथा सम्राट के नीचे न्याय विभाग का प्रधान होता था । ( vi ) मुहतसिब : जनता के सदाचार का निरीक्षण करने वाले विभाग का प्रधान , ( c ) जो कि शरीयत के विरुद्ध होने वाले कार्यों को रोकता था । मुगल प्रशासन में उपर्युक्त मंत्रियों के अलावा निम्न पदाधिकारी भी थे ( 6 ) दारोगा – ए – डाक – चौकी : ‘ सूचना ‘ एवं ‘ गुप्तचर विभाग ‘ का प्रधान जो प्रायः ‘ वकील – ए – मुतलक ‘ के मातहत कार्य करता था । ( ii ) मीर – मुंशी : सम्राट के पत्रों , आदेशों अथवा फरमानों को लिपिबद्ध करने वाला प्रधान अधिकारी । ( iii ) दारोगा – ए – टकसाल : सिक्के ढालने वाला पदाधिकारी तथा ‘ टकसाल ‘ का प्रमुख । ( iv ) दीवान – ए – तान : वेतन विभाग का प्रमुख । ( v ) मुफ्ती : कानून की व्याख्या करने वाला प्रमुख अधिकारी । 1. गल ( vi ) मीर अदल : मुकदमों की पेशी में सहायता करने वाला प्रमुख अधिकारी । ( vii ) बालाशाही : अंगरक्षकों को ‘ बालाशाही ‘ कहा जाता था । ( viii ) मीर बर्र : वह वनों ( Forest ) का अधीक्षक था । ( ix ) खानसामा : शाही – परिवार का प्रबन्धन देखने वाला प्रमुख अधिकारी । मुगल साम्राज्य में अकबर के काल में 15 , शाहजहाँ के काल में 18 एवं औरंगजेब के काल में 20 प्रान्त थे ।
मुगलों का प्रान्तीय प्रशासनिक ढाँचा ‘ केन्द्रीय शासन ‘ का ही लघु रूप 2. जब था । मुगल प्रशासन में ‘ सुबेदार ‘ प्रान्तीय कार्यकारिणी ( Provincial Executive ) का तथा ‘ दीवान ‘ प्रान्तीय राजस्व ( Provincial Revenue ) का प्रधान था । प्रान्तीय न्यायपालिका ( Provincial Judiciary ) का प्रमुख सदर काजी होता था । मुगलकालीन प्रान्त सरकारों ( जिलों ) में बँटे हुए थे । ‘ सरकार ‘ ( जिले ) के प्रशासन हेतु फौजदार ( जिलाधिकारी ) की नियुक्ति 3. आ की गई थी । प्रशासन की सबसे छोटी इकाई परगना या महाल थी जो सरकार के अधीन होती थी । कि ar शिकदार परगने का मुख्य प्रशासक था तथा उसकी सहायता के लिए निम्न कर्मचारी होते थे ।
‘ अकबर ‘ द्वारा 1512 ई ० में राजा टोडरमल की नियुक्ति दीन – ए – अशरफ ( राजस्व प्रवन्ध का संयोजक के रूप में की गई ।
राजा टोडरमल ने भूमि को उसी की ऊपज के आधार पर चार श्रेणियों में बाँटा पोलज – प्रथम श्रेणी की भूमि जो काफी उपजाऊ होती थी । इस श्रेणी की जमीन में वर्ष में कम – से – कम दो फसलें उगाई जाती थी । 2. पड़ती – यह जमीन ‘ पोलज ‘ की तरह निरन्तर उर्वरा नहीं थी । कुछ दिनों तक ‘ कृषि कार्य करने के उपरान्त इस भूमि की उर्वरता नष्ट हो जाती थी । चांचर – यह तृतीय श्रेणी की भूमि थी । इस भूमि को कुछ दिनों तक जोतने के बाद 3-4 वर्षों तक के लिए पड़ती छोड़ दिया जाता था । बंजर – यह निम्नतम श्रेणी की भूमि थी । इस भूमि में ऊपज न के बराबर होती थी । …..
. मुगल काल में भूमि के मुख्य प्रकार
( i ) खालसा – प्रत्यक्ष रूप से सम्राट के अधीन भूमि , जो कि सम्पूर्ण साम्राज्य की भूमि का ’20 वाँ ‘ हिस्सा थी । ( ii ) जागीर – वेतन के बदले दी गई भूमि ‘ जागीर ‘ कहलाती थी । ( i ) सयूरगल – यह भूमि अनुदान में दी जाती थी तथा इस पर लगान नहीं देना पड़ता था । इस भूमि को ‘ मिल्क ‘ तथा ‘ मदद – ए – माश ‘ भी कहा जाता था । अबुल फजल की रचना आइन – ए – अकबरी से हमें मुगल कालीन कृषकों के त्रिस्तरीय वर्गीकरण की जानकारी प्राप्त होती है ( a ) खुदकाश्त – इस वर्ग के खेतिहर उसी गाँव की जमीन पर कृषि कार्य करते थे । जिस गाँव के वे निवासी थे । इन्हें बारुघला या गावेति कहा गया है । ( b ) पाहीकाश्त – यह वर्ग ‘ पाही ‘ अथवा ‘ बाहरी ‘ कहलाता था । ये कृषक दूसरे गाँव में जाकर कृषि कार्य करते थे तथा वहीं अस्थाई रूप से निवास करते थे । ( c ) मुजारियन – यह कृषकों का ऐसा वर्ग था , जिनके पास उपयुक्त मात्रा में भूमि नहीं थी । वे कृषि कार्य हेतु खुदकाश्त कृषकों से किराये पर जमीन लेते थे । वित्तीय प्रबन्ध हेतु एक पृथक विभाग दीवान – ए – वजीरात की स्थापना की न 1 न प . 1 गई थी । . . . . ने दीवान – ए – वजीरात का प्रमुख दीवान – ए – वजीरात – ए – कुल होता था । मुगल सम्राट अकबर ने 1573 ई ० में कर वसूली के लिए करोड़ी नामक एक पदाधिकारी की नियुक्ति की । मुगल काल में भू – राजस्व ( ( Land Rvenue ) की निम्न व्यवस्थाएँ लागू थी 1. गल्ला बख्शी प्रणाली 1 इस पद्धति के तहत भू – राजस्व नकद के रूप में अदा नहीं किया जाता था । इस पद्धति के तहत गल्ले की ‘ बटाई ‘ का प्रचलन था । । बटाई , खेत बटाई , लंक बटाई तथा रास बटाई के रूप में प्रचलित थी । वं ‘ रास बटाई ‘ के तहत खेतों से फसल काटकर उनके ढेर लगा दिये जाते थे । तथा विभिन्न पक्षों के बीच एक करार करके गल्ले का बंटवारा होता था न 2. जब्ती , नस्क एवं कानकूत प्रणालियाँ कानकूत प्रणाली ‘ का उल्लेख अबुल फजल द्वारा रचित आईन – ए – अकबरी में किया गया है । । उपर्युक्त प्रणालियों में सर्वाधिक प्रचलित जब्ती प्रणाली थी । 7 जब्ती प्रणाली के तहत ‘ प्रति बीघा उपज ‘ को एक मानक मानकर उसका 1/3 हिस्सा सरकारी कोष में राई ( सरकार के राजस्व ) के रूप में जमा करना पड़ता था ।
. आइन – ए – दहसाला प्रणाली मुगल सम्राट ‘ अकबर ‘ ने अपने शासन के 24 वें वर्ष ( 1580 ई ० ) में यह के प्रणाली लागू की । इस प्रणाली के तहत कृषि की श्रेणियों तथा कीमतों के स्तरों के विषय में 10 वर्षों का आंकलन ( हाल – ए – दहसाला ) किया जाता था ।
10 वर्षीय आंकलन के पश्चात् उसका 10 वां हिस्सा वार्षिक भू – राजस्व क के रूप में लिया जाता था ।
. आइन – ए – दहसाला पद्धति को सफल बनाने में राजा टोडरमल तथा ख्वाजा मंसूर शाह ने अत्यधिक योगदान दिया ।
मुगल सम्राट ‘ जहाँगीर ‘ ने अकबर की प्रणाली को ही लागू किया । परन्तु उसने जागीरदारी प्रथा को भी प्रोत्साहन दिया । जहाँगीर के शासनकाल में अलतमगा नामक जागीर प्रथा की शुरूआत . . . . . शाहजहाँ के शासनकाल में ‘ जागीरदारी ‘ प्रथा को इतनी प्राथमिकता दी गई कि 70 प्रतिशत खालसा भूमि जागीरों में परिवर्तित हो गई । औरंगजेब के शासनकाल में भी जागीरदारी एवं इजारेदारी प्रथाएँ प्रचलित थीं । मुगलकाल में भू – राजस्व की दर कुल उपज का 1/8 हिस्सा थी परन्तु इसे औरंगजेब ने बढ़ाकर 12 हिस्सा कर दिया । भू – राजस्व से मुगल साम्राज्य की वार्षिक आय आइन – ए – अकबरी के अनुसार 30 करोड़ रुपये थी । भू – राजस्व के अलावा मुगल साम्राज्य को जजिया , जकात , खम्स , नजर , जब्ती आदि प्रकार के करों से भी राजस्व की प्राप्ति होती थी । शासन की सबसे छोटी इकाई ‘ ग्राम ‘ थी । प्रत्येक ग्राम का प्रशासन प्रजातांत्रिक पंचायतों के हाथों में था । नगर के प्रशासन का दायित्व कोतवाल का था । कोतवाल की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा होती थी । मुगलकालीन सेना चार विभागों में बंटी थी -1 . पैदल सेना , 2. घुड़सवार सेना , 3. तोपखाना , 4. हस्ति सेना ।
मुगलों के सैन्य प्रशासन में 1577 ई ० में एक नवीन प्रथा अकबर द्वारा लागू की गई , उसे मनसबदारी प्रथा कहते हैं मनसबदारी प्रथा
( MansabdariSystem )
.
. . . . . . . मुहम्मद फकीर एवं मीर हासिम शाहजहाँ के दरबार के प्रमुख चित्रकार थे । .
पंडित जगन्नाथ ने अपनी रचनाओं में शाहजहाँ को ‘ दिल्लीश्वरी एवं जगदीश्वरी ‘ की उपाधियों से विभूषित किया । र शाहजहाँ ने अपने शासनकाल में सजदा की प्रथा बन्द करवा दी तथा सम्राट के चित्र में टोपी एवं पगडी लगाने पर पाबन्दी लगा दी । 9 शाहजहाँ ने अध्यादेश निकालकर हिन्दुओं को मुस्लिम दास – दासी रखने , मुस्लिम वेश में रहने एवं मुस्लिम स्त्रियों से विवाह करने से प्रतिबंधित 9 कर दिया । शाहजहाँ ने प्रशासन में राजपूतों को ऊँचे पद देने एवं राजपूत घरानों से वैवाहिक संबंध स्थापित करने की नीति का परित्याग किया । न शाहजहाँ दारा शिकोह को गद्दी सौंपना चाहता था , किन्तु औरंगजेब बलपूर्वक अपने तीनों भाइयों को मारकर स्वयं गद्दी पर बैठ गया । 1650 ई ० में सामूगढ़ का युद्ध दारा एवं औरंगजेब के बीच हुआ , इस युद्ध में भी दारा की हार हुई । 1659 ई ० में शाहजहाँ के उत्तराधिकार का अन्तिम युद्ध देवराई की घाटी में हुआ । • इस युद्ध में दारा के पराजित होने पर उसे इस्लाम धर्म की अवहेलना करने के अपराध में हत्या कर दी गई । औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को गिरफ्तार कर आगरे के किले में कैद कर दिया ।
1666 ई ० में 74 वर्ष की अवस्था में शाहजहाँ की मृत्यु हो गयी । शाहजहाँ को आगरे के ताजमहल में मुमताज की कब्र के बगल में दफना किया गया । इलियट , डॉसन , ट्रैवर्नियर , लेनपुल , मनूची आदि इतिहासकारों ने शाहजहाँ के शासनकाल को स्वर्णयुग कहा है । औरंगजेब का जन्म 3 नवम्बर 1618 ई ० को दोहद उज्जैन में हुआ था । औरंगजेब , शाहजहाँ एवं मुमताज की छठी सन्तान था । औरंगजेब का 1658 ई ० में अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजी के नाम से राज्याभिषेक हुआ । औरंगजेब को 1659 ई ० में देवराई – युद्ध में सफलता मिली । 1659 ई ० में दिल्ली में शाहजहाँ के महल में दूसरी बार औरंगजेब का राज्याभिषेक किया गया । . औरंगजेब ने 1678 ई ० में मारवाड़ तथा 1680 ई ० में मेवाड़ को साम्राज्य में मिला लिया । मुगल औरंगजेब के शासनकाल में सिक्खों के साथ युद्ध में मुगलों की नादौन में ( 1685 ई ० ) , खिदराना ( 1706 ई ० ) में दो युद्धों में पराजय हुई । औरंगजेब ने 1686 ई ० में बीजापुर एवं 1697 ई ० में गोलकुण्डा को साम्राज्य में मिला लिया ।
अफ्रीदियों का विद्रोह ( नेता – अकमल खाँ ) दिसम्बर , 1675 ई ० में औरंगजेब द्वारा दबा दिया गय . . .
ने ग्वालियर , जौनपुर एवं चुनार को जीतकर मुगल साम्राज्य में अकबर मिला लिया ।
मालवा , गुजरात , बिहार , बंगाल एवं उड़ीसा , काबुल , कश्मीर , सिन्ध , ब्लुचिस्तान , कन्धार , राजस्थान , कालिंजर , गोंडवाना , अहमदनगर आदि प्रदेशों में अकबर ने विजय प्राप्त की । गुजरात – विजय के दौरान अकबर सर्वप्रथम पुर्तगालियों से मिला एवं पहली बार यहीं से सख़ुद को देखा । 1562 ई ० में अकबर ने आमेर के राजा भारमल की पुत्री मरियम जमानी से विवाह किया । अकबर ने सभी धर्मों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के उद्देश्य से दीन – ए – इलाही की स्थापना की तथा इसे राजकीय धर्म घोषित किया । दीन – ए – इलाही धर्म को स्वीकार करने वाला एकमात्र हिन्दू राजा बीरबल था ।
अकबर ने आगरा के निकट फतेहपुर सीकरी का निर्माण करवाया । जैन आचार्य हरिविजय सूरी को अकबर ने जगद्गुरु की उपाधि प्रदान
बाबर का पूरा नाम जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर था । . उसके पिता का नाम उमर शेख मिर्जा था , वह फरगना ( अफगानिस्तान ) का शासक था ।
मुगल वंश के प्रमुख शासक .
शासक शासनकाल 1. बाबर 1526-1530ई ० 2. हुमायूँ 1530-1540 ई ० 1555-1556 ई ० 3. अकबर 1556-1605 ई ० 4. जहाँगीर 1605-1627 ई ० 5. शाहजहाँ 1627-1658 ई ० 6. औरंगजेब 1658-1707 ई ० 7. बहादुरशाह प्रथम 1707-1712 ई ० 8. जहांदारशाह 1712-1713 ई ० 9. फर्रुखसियर 1713-1719 ई ० 10. मुहम्मदशाह 1719-1748 ई ० 11. अहमदशाह 1748-1754 ई ० 12. आलमगीर 1754-1759 ई ० 13. शाहआलम द्वितीय 1759-1806 ई ० 14. अकबर द्वितीय 1806-1837 ई ० 15. बहादुरशाह जफर 1837-1857 ई ०
बाबर पिता की ओर से तैमूरलंग तथा माता की ओर से चंगेज खाँ का वंशज था । पिता की मृत्यु के बाद बाबर 1494 ई ० में 11 वर्ष की आयु में फरगना का शासक बना । बाबर ने 1507 ई ० में बादशाह की उपाधि धारण की । बाबर ने 1519 ई ० से 1526 ई ० तक भारत पर पाँच आक्रमण किए । बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण पंजाब के शासक दौलत खाँ लोधी एवं मेवाड़ के शासक राणा साँगा ने दिया था । 21 अप्रैल 1526 ई ० को इब्राहिम लोदी एवं बाबर के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ , जिसमें इब्राहीम लोदी की पराजय हुई । 17 मार्च 1527 ई ० को राणा साँगा एवं बाबर के बीच खनवा का युद्ध हुआ , जिसमें राणा साँगा पराजित हुआ ।
29 जनवरी , 1528 ई ० को मेदनी राय एवं बाबर के बीच चन्देरी का युद्ध हुआ , जिसमें हिन्दू शासक मेदनी राय पराजित हुआ । पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने पहली बार तुगलुमा युद्ध नीति एवं तोपखाने का प्रयोग किया । बाबर की उदारता के कारण उसे कलन्दर की उपाधि दी गई । खनवा के युद्ध में बाबर ने राणा सांगा के विरुद्ध जिहाद का नारा दिया था । रा बाबर ने खनवा युद्ध में विजय के बाद गाजी की उपाधि धारण की । बाबर ने मुबईयान नामक पद्य – शैली को जन्म दिया । बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजूक – ए – बाबरी की रचना तुर्की भाषा में की । तुजुक – ए – बाबरी का फारसी अनुवाद बाद में अब्दुल रहीम खान – ए – खाना ने किया । बाबर ने सड़कों की माप के लिए गज – ए – बाबरी चलाई । बाबर ने विस्फोटकों का प्रयोग कुस्तुनतुनियाँ से एवं बन्दूक का प्रयोग करने की कला ईरानियों से सीखी । बाबर ने तुर्की छंद – शास्त्र पर एक निबंध की रचना की । बाबर की मृत्यु 26 दिसम्बर 1530 ई ० को आगरा में हुई । पर प्रारम्भ में बाबर के शव को आगरा के आरामबाग में दफनाया गया , बाद बैर में उसकी ख्वाहिश के अनुसार काबुल के मनमोहक स्थान पर दफनाया ना गया । ख बाबर के चार पुत्र हुमायूँ , कमरान , अस्करी तथा हिन्दाल थे । बाबर का उत्तराधिकारी हुमायूँ हुआ ।
हुमायूँ का पूरा नाम ‘ नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ ‘ था ।.
हुमायूँ का जन्म 6 मार्च , 1508 ई ० को काबुल में हुआ था । हुमायूँ की माता का नाम माहम अंगा था । हुमायूँ को 1520 ई ० में 12 वर्ष की अल्पायु में बदख्शां के सुबेदार के पद पर नियुक्त किया गया । बाबर के मृत्यु के समय हुमायूँ सम्भल का सूबेदार था । बाबर के मृत्यु के पश्चात् 30 दिसम्बर , 1530 ई ० को हुमायूँ सिंहासन पर बैठा । हुमायूँ ने कमरान को काबुल और कन्धार , मिर्जा असकरी को संभल , मिर्जा हिन्दाल को अलवर एवं मेवाड़ की सूबेदारी प्रदान की । अपने चचेरे भाई सुलेमान मिर्जा को हुमायूँ ने बदख्शाँ प्रदेश दिया । हुमायूँ ने 1532 ई ० में गुजरात के शासक बहादुर शाह की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने के लिए कालिंजर अभियान किया । गुजरात के शासक बहादुर शाह एवं हुमायूँ के बीच 1535 ई ० में सारंगपुर में संघर्ष हुआ , जिसमें बहादुर शाह पराजित हुआ । हुमायूँ तथा शेर खाँ ( शेरशाह ) के बीच बक्सर के निकट चौसा ( 1539 ई ० में ) संघर्ष हुआ जिसमें हुमायूँ पराजित हुआ , तथा आगरा एवं दिल्ली पर शेर खाँ का अधिकार हो गया । बिलग्राम युद्ध के बाद हुमायूँ सिन्ध चला गया , जहाँ उसने 15 वर्षों तक घुमक्कड़ों जैसा निर्वासित जीवन व्यतीत किया । निर्वासन के समय हुमायूँ ने हमीदन बेगम से 29 अगस्त 1541 ई ० को निकाह किया । हमीदन बेगम से 1542 ई ० में उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम 1 उसने जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर रखा । 1555 ई ० में मच्छिवारा के युद्ध में सिकन्दर सूर को हरा कर हुमायूँ पुनः 7 दिल्ली की गद्दी पर बैठा । हुमायूँ की मृत्यु 27 जनवरी , 1556 ई ० को दीनपनाह भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने से हो गयी । । 1553 ई ० में हुमायूँ ने दिल्ली में दीनपनाह नामक नए भवन की स्थापना की थी । हुमायूँ की सौतेली बहन गुलबदन बेगम ने हुमायूँनामा की रचना की । अकबर का जन्म 23 नवंबर , 1542 ई ० को , अमरकोट में राणा वीरसाल के महल में हुआ । अकबर का राज्याभिषेक लगभग 14 वर्ष की आयु में 14 फरवरी , 1556 ई ० को पंजाब के ‘ कलानौर ‘ नामक स्थान
18 जून , 1576 ई ० को हल्दीघाटी का युद्ध मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप एवं अकबर के बीच हुआ तथा अकबर विजयी हुआ । अकवर का सेनापति मानसिंह था । 36 . लोगों के प्रवेश की अनुमति । .
अकबर के शासनकाल में राजस्व प्राप्ति की जब्ती प्रणाली प्रचलित थी । अकबर के दीवान टोडरमल ने 1580 ई ० में दहसाला बन्दोबस्त व्यवस्था लागू की । अकबर ने अपने प्रशासन में मनसबदारी प्रथा लागू की । अकबर के दरबार में प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन तथा प्रसिद्ध चित्रकार अब्दुस्समद थे । सूफी सन्त शेख सलीम चिश्ती अकबर के समकालीन थे । . .
. तानसेन , बाजबहादुर , बाबा रामदास और बैजू बाबरा अकबर के शासन काल के प्रमुख गायक थे । राजा टोडरमल ने दीन – ए – इलाही स्वीकारने से इंकार कर दिया । अकबर ने टोडरमल को ‘ राजा ‘ की उपाधि से विभूषित किया एवं अपने प्रशासन में प्रधानमन्त्री पद पर नियुक्त किया । अकबरनामा , आइन – ए – अकबरी नामक ऐतिहासिक साहित्य की रचना अकबर के मुख्य सचिव अबुल फजल ने की । फैजी द्वारा भी अकबरनामा नामक एक पुस्तक लिखी गई । अकबर कालीन अन्य साहित्यिक ग्रन्थ – अहसान – उत – त्वारीख रुमलु , मुंतखाब – उत – त्वारीख ( बदायूनी ) , तबकात – ए – अकबरी ( निजामुद्दीन बख्शी ) , तारीख – ए – मुहम्मद ( हाजी मुहम्मद आरिफ ) , लुबउत – त्वारीख ( मीर यहया ) , तारीख – ए – अलफी ( मुल्ला अहमद ) , तोहफा – ए अकबरशाही ( अब्बास खाँ शेरवानी ) , नफाइस – उल – मासिर अल्लाउद्दौला काजवीनी द्वारा लिखी गई । अकबर ने संगीत सम्राट तानसेन को कण्ठाभरण वाणी – विलास की उपाधि से सम्मानित किया । अकबर सहित सम्पूर्ण मुगल साम्राज्य की राजभाषा फारसी थी ।
अकबर ने भगवानदास को अमीर – उल – उमरा की उपाधि प्रदान की । बीरबल को अकबर द्वारा कविप्रिय की उपाधि से सम्मानित किया गया । अकबर ने आगरे के किले के भीतर 500 इमारतों का निर्माण कराया । अकबर ने सुदृढ़ दुर्गों का निर्माण ‘ अटक एवं इलाहाबाद ‘ में भी करवाया । बुलन्द दरवाजा का निर्माण अकबर ने गुजरात – विजय के उपलक्ष्य में करवाया था । • बुलन्द दरवाजे की ऊँचाई पास की भूमि से 134 फीट और उसकी सीढ़ियाँ 42 फीट हैं । कुल मिलाकर यह 176 फीट ऊँचा है । अकबर ने शीरी कलम की उपाधि अब्दुस्समद को एवं जड़ी कलम की उपाधि मुहम्मद हुसैन कश्मीरी को दिया । आइन – ए – अकबरी के अनुसार अकबर के दरबार में 100 उच्च कोटि के तथा अनेक निम्न कोटि के चित्रकार थे । अकबर की मृत्यु 1605 ई ० में हुई । अकबर के मृत्यु के बाद उसका पुत्र जहाँगीर 5 नवंबर , 1605 ई ० को आगरा के गद्दी पर बैठा । जहाँगीर का जन्म 30 अगस्त , 1569 ई ० में फतेहपुर सीकरी में स्थित शेख सलीम चिश्ती की कुटिया में हुआ था । . जहाँगीर के बचपन का नाम सलीम था । अकबर ने अपने पुत्र का नाम सलीम सूफी सन्त शेख सलीम चिश्ती के नाम पर रखा । जहाँगीर के माता का नाम मरियम उज्मानी ( हरवाबाई ) था ।
जहाँगीर नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर बादशाही गाजी की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा । जहाँगीर ने अकबर के नौरत्न अङ्गुरहीम खानेखाना से शिक्षा प्राप्त की । . जहाँगीर का विवाह 15 वर्ष की अवस्था में अम्बर के राजा भगवान दास की पुत्री मानबाई के साथ हुआ । हमान • जहाँगीर के राज्यारोहण के कुछ ही दिनों बाद सका पुत्र खुसरो ने 1606 ई ० में अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया । खुसरो और जहाँगीर की सेना के बीच जालंधर के निकट भैरावल नामक मैदान में युद्ध हुआ । जहाँगीर ने खुसरो को परास्त कर दिया तथा कैद में डाल दिया गया । खुसरो को सहायता करने के कारण सिक्खों के पाँचवें गुरु अर्जुन देव को जहाँगीर ने मृत्युदण्ड दिया । जहाँगीर ने 1599 ई ० से 1603 ई ० तक अपने पिता सम्राट अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया । जहाँगीर ने न्याय की जंजीर के नाम से प्रसिद्ध सोने की जंजीर को आगरे के किले के शाहबुर्ज एवं यमुना तट पर स्थित पत्थर के खम्भे पर लगवाया । जहाँगीर ने 1606 ई ० में कन्धार को जीता परन्तु 1622 ई ० में कन्धार मुगलों के हाथ से निकल गया तथा कन्धार पर शाह अब्बास का अधि कार हो गया ।
1586 ई ० में जहाँगीर ने उदय सिंह की पुत्री जगत गोसांई से विवाह किया क्र जिससे शाहजादा खुर्रम का जन्म हुआ । .
शहजादा खुर्रम ने अहमदनगर के वजीर मलिक अम्बर का दमन किया इस कारण जहाँगीर ने उसे शाहजहाँ की उपाधि प्रदान की । 1611 ई ० में जहाँगीर ने ईरान निवासी मिर्जा ग्यासबेग की पुत्री मेहरुनिस्सा नने से विवाह किया । जहाँगीर ने शादी के बाद मेहरुनिस्सा को नूरमहल एवं नूरजहाँ ( Light of the world ) को उपाधि प्रदान की । जहाँगीर ने ग्यासबेग को एतमाद – उद् – दौला की उपाधि प्रदान किया । • नूरजहाँ ने एक दल का संगठन किया तथा राज्य शासन की पूरी बागडोर अपने हाथों में ले ली । नूरजहाँ के इस दल को नूरजहाँ गुट ( Nurjahan Junta ) के नाम से पुकारा जाता है । • नूरजहाँ के गुट के सदस्य थे – ग्यासबेग , आसफ खाँ , अस्मत बंगम , खुर्रम । 1626 ई ० में महावत खाँ ने झेलम नदी के तट पर विद्रोह किया तथा उसने ती जहाँगीर , नूरजहाँ एवं उसके भाई आसफ खाँ को बन्दी बना लिया । नूरजहाँ की माता अस्मत बेगम को गुलाब से इत्र निकालने के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है ।
लाडली बेगम शेर अफगान एवं मेहरुनिस्सा की पुत्री थी , जिनकी शादी जहाँगीर के पुत्र शहरयार के साथ हुई थी । जहाँगीर के पाँच पुत्र थे – खुसरो , परवेज , खुर्रम , शहरयार और जहाँदार । • जहाँगीर की मृत्यु 7 नवम्बर 1627 ई ० को भीमवार नामक स्थान पर हुई । जहाँगीर को शहादरा ( लाहौर ) में रावी नदी के किनारे दफनाया गया । • नूरजहाँ ने जहाँगीर के मकबरे ( शाहदरा – लाहौर ) का निर्माण करवाया । 7 जहाँगीर के शासनकाल में कैप्टन हॉकिन्स , सर टॉमस रो ( 1608-1616 ई ० ) अंग्रेजों के दूत के रूप में आया था । । जहाँगीर ने अपने राज्य में अलतमगा नामक नयी जागीर प्रथा का प्रचलन किया । 5. जहाँगीर का शासनकाल मुगल चित्रकारी का स्वर्णयुग माना जाता है । उस्ताद मंसूर , विशनदास , आगारजा , अबुल हसन , मुहम्मद नासिर , मुहम्मद मुराद , मनोहर एवं गोवर्धन , फारुख बैग एवं दौलत आदि जहाँगीर के दरबार के चित्रकार थे । जहाँगीर ने आगरा में एक ‘ चित्रशाला ‘ स्थापित की ।
जहाँगीर ने जम्मू – कश्मीर के श्रीनगर में शालिमार बाग का निर्माण करवाया । जहाँगीर द्वारा स्थापत्य के क्षेत्र में निर्मित मकबरे हैं – अकबर का मकबरा ( सिकन्दरा ) , एतमादुद्दौला का मकबरा तथा मरियम – उज – जमानी का मकबरा । एतमाद – उद् – दौला का मकबरा ऐसी प्रथम इमारत है जो पूर्णतः श्वेत संगमरमर से निर्मित है । • जहाँगीर कालीन निर्मित फारसी भाषा के ऐतिहासिक ग्रन्थों में तुजूक – ए – जहाँगीरी ( जहाँगीर ) इकबालनामा – ए – जहाँगीरी ( मौतमिद खाँ ) , मुहासिर – ए – जहाँगीरी ( ख्वाजा कामगार ) , मजखान- ए – अफगान ( नियामतुल्ला ) एवं तारीख – ए – फरिश्ता ( मुहम्मद कासिम फरिस्ता ) आदि प्रमुख हैं । जहाँगीर ने 1612 ई ० में प्रथम बार रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया था । जहाँगीर ने हिजड़ा व्यापार पर प्रतिबंध लगाया था । . शाहजहाँ का जन्म 1592 ई ० में लाहौर में हुआ था , उसकी माता का नाम जगत गोसाई था । शाहजहाँ के बचपन का नाम शहजादा खुर्रम था । 4 फरवरी , 1628 ई ० में शाहजादा खुर्रम ( शाहजहाँ ) का राज्याभिषेक आगरा में हुआ । शाहजहाँ के शासनकाल में खान – ए – जहाँ लोदी का विद्रोह ( 1628-31 ) तथा बुन्देलखण्ड के ‘ जूझर सिंह ‘ का विद्रोह हुआ जिसे सफलता पूर्वक दमन किया गया । शाहजहाँ ने पुर्तगालियों के बढ़ते प्रभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से 1632 ई ० में उनसे युद्ध किया तथा हुगली पर अधिकार कर लिया । शाहजहाँ के शासनकाल में 1628 ई ० , 1631 ई ० एवं 1634 ई ० में क्रमशः अमृतसर , लाहौर एवं करतारपुर में संघर्ष हुआ । • शाहजहाँ के शासनकाल में करतारपुर में मुगल एवं सिक्खों के बीच संघर्ष हुआ जिसमें सिक्खों की पराजय हुई ।
सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद ने कश्मीर में शरण ली एवं वहाँ कीर्तिपुर नामक नये नगर की स्थापना की । शाहजहाँ ने 1632 ई ० में अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया । 1632-56 ई ० की अवधि में शाहजहाँ के शासनकाल में बीजापुर के साथ एक शान्ति – सन्धि हुई जो 20 वर्षों तक कायम रही । शाहजहाँ ने अपने पुत्र औरंगजेब को दक्षिण का सुबेदार नियुक्त किया था । शाहजहाँ के शासनकाल में यूरोपीय यात्री फ्रांसिस बर्नियर , ट्रैवर्नियर तथा मनूची ( इटली ) ने भारत की यात्रा की थी । शाहजहाँ सम्राट बनने पर अबुल मुजफ्फर हुसैन शहाबुद्दीन मुहम्मद साहब किरान – ए – सानी की उपाधि धारण की । शाहजहाँ की शादी मुमताज महल के साथ हुई , उससे 14 सन्तानें हुई . जिनमें चार पुत्र और तीन पुत्रियाँ जीवित बचे । शाहजहाँ के चार पुत्रों के नाम हैं – दारा शिकोह ( युवराज ) , शुजा ( बंगाल का गर्वनर ) , औरंगजेब ( दक्कन का गर्वनर ) , मुराद बखा ( मालवा और गुजरात का गर्वनर ) । शाहजहाँ की तीन पुत्रियों के नाम थे – जहाँआरा बेगम , रोशन आरा और गौइरारा । . शाहजहाँ ने आसफ खाँ को वजीर का पद प्रदान किया । • शाहजहाँ ने महावत खाँ को खान – खाना की उपाधि प्रदान की । 1631 ई ० में मुमताज महल की मृत्यु हो गयी । मुमताज महल की याद में शाहजहाँ ने आगरे में उसकी कब्र के ऊपर ताजमहल का निर्माण करवाया । विश्व का सबसे महंगा हीरा कोहिनूर शाहजहाँ के सिंहासन तख्ते – ताउस में लगा हुआ था । शाहजहाँ के शासनकाल को मध्यकालीन इतिहास और वास्तुकला की दृष्टि से स्वर्णकाल कहा जाता है । कश्मीर स्थित निशातबाग का निर्माण शाहजहाँ ने करवाया था । ‘ मयूर सिंहासन ‘ का निर्माण शाहजहाँ ने करवाया था , इसका मुख्य कलाकार बादल खाँ था ।
1627 ई ० में आगरा स्थित दीवान – ए – आम शाहजहाँ का प्रथम निर्माण था । 1637 ई ० में शाहजहाँ ने दीवान – ए – खास का निर्माण आगरे के किले में करवाया था । 1648 ई ० में शाहजहाँ ने दिल्ली के लाल किले का निर्माण करवाया था । • लाल किले के पश्चिमी दरवाजा का नाम लाहौर दरवाजा है शाहजहाँ के शासनकाल में अनेक फारसी साहित्य में ग्रन्थों की रचना हुई – अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा पादशाहनामा , अमीनी काजविनी द्वारा शाहजहाँनामा , इनायत खाँ द्वारा अमल- ए – सालीह , सादिक खाँ द्वारा तारीख – ए – शाहजहाँनी , अमीनी काजविनी द्वारा पादशाहनामा , चन्द्रभान ब्राह्मण द्वारा चहारचमन । . शाहजहाँ का राजकवि पंडित जगन्नाथ था , गंगालहरी और रस – गंगाधर इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । शाहजहाँ के शासनकाल के अन्तिम दिनों में वेनिस यात्री मनूची भारत की यात्रा पर आया था ।
शाहजहाँ के शासनकाल में इलाही संवत् के स्थान पर हिजरी संवत् प्रारम्भ
धर्मसंसद ( parliament of religion ) को सम्बोधित किया । रामकृष्ण मिशन की शिक्षाओं का मूल आधार वेदान्त दर्शन था । थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना 1875 ई . में अमेरिका में हुई । थियोसोफिकल सोसायटी के संस्थापक मैडम हेलेना पेट्रोवेना ब्लात्वस्की ( रूस ) , एवं कर्नल हेनरी स्टील ऑल्कॉट ( अमेरिका ) थे । भारत में 1882 ई . में मदास ( चेन्नई ) के समीप अड्यार नामक स्थान पर थियोसोफिकल सोसायटी का मुख्यालय स्थापित हुआ । आयरिश महिला एनी बेसेंट द्वारा 1907 ई . में इस संस्था का नेतृत्व सम्भाला गया । एनी बेसेंट ने हिन्दू एवं बौद्ध धर्मों के उत्थान का आह्वान किया । एनी बेसेंट ने बनारस में सेंट्रल हिन्दू स्कूल ( CHS ) की स्थापना की ।
सेंट्रल हिन्दू स्कूल 1898 ई ० में सेंट्रल हिन्दू कॉलेज ( CHC ) में तब्दील हो गई । सेंट्रल हिन्दू स्कूल 1915 ई ० में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ( BHU ) में परिवर्तित हो गया । बनारस हिन्दू विश्विद्यालय ( BHU ) की स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने की । एनी बेसेंट ने काली – द मदर तथा द वे ऑफ इंडियन लाइफ नामक पुस्तकें लिखी । प्रथम ब्राह्मण – इतर संस्था का गठन 1917 ई . में दक्षिण भारतीय उदारवादी संघ ( South Indian Liberal Federation ) का गठन हुआ । दक्षिण भारतीय उदारवादी संघ को पी • त्यागराज तथा टी 0 एम 0 नायर ने स्थापित किया । कुछ दिनों बाद ‘ दक्षिण भारतीय उदारवादी संघ ‘ का नाम बदलकर जस्टिस पार्टी रख दिया गया । 1937 ई ० में रामास्वामी नायकर को जस्टिस पार्टी का अध्यक्ष चुना गया । रामास्वामी नायकर ने अस्पृश्ता ( छूआछूत ) के खिलाफ संघर्ष किया । 1920 ई ० में दक्षिण भारत में गैर – ब्राह्मण जातियों ने सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट चलाया । रामास्वामी नायकर के अनुयायी सी ० एन ० अन्नादुरई ने 1944 ई . में ‘ जस्टिस पार्टी ‘ का नाम बदलकर दविड़ कड़गम रखा । ‘ द्रविड़ कड़गम ‘ में 1949 ई . में विभाजन हो गया तथा सी ० एन ० अन्नादुरई ने अपने दल का नाम द्रविड़ मुन्नेत्रकड़गम ( DMK ) रखा । 1873 ई ० में ज्योतिबा फूले द्वारा सत्यशोधक समाज की स्थापना की गई । ‘ ज्योतिबा फूले ‘ 1876 ई ० में पूणे नगरपालिका के सदस्य चुने गये । 1888 ई . से ज्योतिबा फूले लोगों के बीच महात्मा के नाम से पुकारे जाने लगे । अछूतोद्धार के उद्देश्य से डॉ ० भीमराव अम्बेडकर ने ऑल इण्डिया डिप्रेस्ड क्लास फेडरेशन की स्थापना की । अछूतोद्धार के उद्देश्य से ही 1924 ई . में ‘ डॉ . भीमराव अम्बेडकर ‘ ने 1924 ई ० में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना बंबई में की । डॉ . भीमराव अंबेडकर ने अछूतों के प्रतिनिधि ( Representative of Untouchables ) के रूप में 1930 , 1931 एवं 1932 ई . में लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया । 1932 ई . में ‘ अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारण संघ ‘ की स्थापना हुई । कालान्तर में इसका नाम हरिजन सेवक संघ हो गया । डॉ . भीमराव अम्बेडकर ने 1942 ई ० में अनुसूचित जाति फेडरेशन नामक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना की । डॉ . भीमराव अम्बेडकर ने स्वयं हिन्दू धर्म त्यागकर ‘ बौद्ध धर्म स्वीकार किया ।
मुसलमानों की पाश्चात्य प्रभावों के खिलाफ उत्पन्न प्रथम प्रतिक्रिया वहाबी अथवा वलीउल्लाह आन्दोलन अथवा , वहाबी के रूप में प्रकट हुई ।
इस आन्दोलन के नेता सैय्यद अहमद बरेलवी एवं शाह वलीउल्लाह थे ।
के विरुद्ध था , परन्तु 1849 ई ० में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध हो गया । बाद में इस आन्दोलन को मौलवी अब्दुल अजीज ने सांप्रदायिक दिशा देते हुए भारत को दार – उल – हर्ब ( काफिरों का देश ) घोषित कर दिया । ‘ मौलवी अब्दुल अजीज ‘ ने भारत को दार – उल – इस्लाम ( इस्लामी देश ) बनाने का आह्वान किया । पूर्वी भारत में वहाबी आन्दोलन का प्रसार मुख्य रूप से हाजी शरीयतुल्ला एवं शेख करामत अली ने किया । वहाबी आन्दोलन 1870 ई . तक चला , एवं उसके बाद ‘ ब्रिटिश फौजों ‘ के द्वारा कुचल दिया गया । अलीगढ़ आन्दोलन के प्रणेता सर सैय्यद अहमद खाँ ( 1817-98 ई . ) 1870 ई . में विलियम हंटर की पुस्तक इंडियन मुसलमान्स का प्रकाशन हुआ । ‘ इंडियन मुसलमान्स ‘ में अंग्रेजी सरकार को सुझाव दिया गया था कि वह मुसलमानों के प्रति ‘ सहयोग ‘ की नीति रखें । मुसलमानों का एक वर्ग अंग्रेजी सरकार के संरक्षण भरे रुख को स्वीकार करने को आतुर था , इस वर्ग के नेता सर सैय्यद अहमद खाँ थे । सर सैय्यद अहमद खाँ का जन्म ‘ दिल्ली ‘ के एक समृद्ध मुस्लिम परिवार में हुआ था ।
सर सैय्यद अहमद खाँ ने 1839 ई ० में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ की न्यायिक सेवा में नौकरी कर ली , उन्होंने कुरान पर एक टीका लिखी ।
सैय्यद अहमद खाँ द्वारा एक पत्रिका तहजीब – उल – अखलाक का प्रकाशन भी किया गया ।
19 वीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए हुए प्रयास
1870 ई . में अंग्रेजी सरकार द्वारा बालिका – वध रोकने के लिए कुछ कानून बनाए गये । ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ( संस्कृत कॉलेज , कलकत्ता के आचार्य ) ने हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम -1856 के तहत ‘ विधवा विवाह ‘ को कानूनी मान्यता दिलाई । प्रो . डी के कर्वे ने 1899 ई ० में पुणे में एक विधवा आश्रम की स्थापना की । ब्रिटिश सरकार ने समाज – सुधारकों के दबाब में 1930 में बाल विवाह के विरुद्ध शारदा एक्ट पारित किया । शारदा एक्ट के तहत् लड़कों की न्यूनतम आयु 18 वर्ष तथा लड़कियों के लिए 14 वर्ष रखी गई । कलकत्ता ( कोलकाता ) में 1819 ई . में कलकत्ता तरुण स्त्री सभा की स्थापना हुई । ‘ कलकत्ता तरुण स्त्री सभा ‘ के अध्यक्ष जे.ई.डी. बेथुन ने 1849 ई . में एक बालिका विद्यालय की स्थापना की जो आगे चलकर बेथुन स्कूल के नाम से प्रसिद्ध हुआ । 1927 ई ० में अखिल भारतीय महिला सभा स्थापित हुई । 1857 ई . के विद्रोह के वक्त सैय्यद अहमद खाँ ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेवा में थे । 1 हिन्दू – मुस्लिम एकता के संदर्भ में कहा “ Hindus and Muslims are two स eyes of a beautiful bride l.e. India . ( हिन्दू एवं मुसलमान भारत – रूपी 2 2 सुन्दर दुल्हन की दो आँखें हैं । ) 1864 ई . में सर सैय्यद अहमद खाँ ने साइंटिफिक सोसायटी की स्थापना की । 1875 ई . में सर सैय्यद अहमद खाँ ने अलीगढ़ में ‘ मोहम्मडन एंग्लो – ओरिएन्टल कॉलेज ‘ की स्थापना की । दान का ‘ मोहम्तुन एंग्लो – आरिएंटल कॉलेज ‘ 1920 ई ० में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ( AMU ) में तब्दील हो गया ।
सैय्यद अहमद के आन्दोलन का केन्द्र चूँकि अलीगढ़ में स्थित था , अत : त्रिी इनके आन्दोलन को अलीगढ़ आन्दोलन कहा गया ।
सैय्यद अहमद के अलीगढ़ स्कूल के अन्य नेताओं में मौलवी चिराग अली एवं अल्ताफ हुसैन प्रमुख थे । सर सैय्यद अहमद खाँ ने काँग्रेस का विरोध करने के लिए 1886 ई . में इंडियन पैट्रियॉट एसोसिएशन एवं मुस्लिम – एजुकेशनल काक्रेन्स की स्थापना भी की । 1886 ई ० में सैय्यद अहमद खाँ ऑल इण्डिया मुहम्मडन एजुकेशनल काँग्रेस की स्थापना की । देवबन्द आन्दोलन सहारनपुर ( उत्तर प्रदेश ) में 1866-67 ई ० में मुहम्द कासिम वन्तोवी के नेतृत्व में शुरू हुआ । देवबन्द में एक विद्यालय खोला गया जो देवबन्द स्कूल के नाम से प्रसिद्ध हुआ । अहमदिया आन्दोलन का प्रमुख केंद्र पंजाब के गुरूदासपुर जिले में था । अहमदिया आन्दोलन के प्रवर्तक मिर्जा गुलाम अहमद थे । मिर्जा गुलाम अहमद स्वयं को कृष्णा का अवतार कहता था । 1851 ई . में धार्मिक रूढ़िवाद के विरुद्ध पारसी संगठन रहनुमाई मजध्यासन सभा अस्तित्व में आई । रहनुमाई मजध्यासन समाज की स्थापना दादाभाई नौरोजी तथा एस ० एस ० बंगाली ने की । रहनुमाई मजध्यासन सभा के प्रयासों से ‘ पारसी समाज ‘ वर्तमान में भारत का सर्वाधिक आधुनिक समाज बन गया । 19 वीं शताब्दी के अन्त में अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना हुई । 1920 ई . में अकाली आन्दोलन को शुरूआत हुई । अकाली आन्दोलन के दबाव में अंग्रेजी सरकार को सिक्ख गुरुद्वारा अधिनियम ‘ 1922 पारित करना पड़ा । गुरूद्वारा अधिनियम की सहायता से गुरुद्वारों को भ्रष्ट महन्तों से मुक्त कराया गया । कलकत्ता ( कोलकता ) में 1817 ई . में हिन्दू कॉलेज की स्थापना हुई । ‘ हिन्दू कॉलेज ‘ के छात्रों ने हेनरी विवियन डिरोजियो के नेतृत्व में ‘ यंग बंगाल आन्दोलन ‘ किया । ‘ यंग बंगाल आन्दोलन ‘ मैजिनी के यंग इटली आन्दोलन से प्रेरित था । ‘ यंग बंगाल आन्दोलन ‘ पर 1789 ई . के फ्रांसीसी क्रान्ति ( French Revolution ) वृहद प्रभाव पड़ा ।
डिरोजियो के निधन के बाद कृष्ण मोहन बनर्जी , रामगोपाल घोष तथा महेश चंद्र जैसे उनके शिष्यों ने ‘ यंग बंगाल आन्दोलन ‘ को आगे बढ़ाया ।
आधुनिक भारत
( MODERN INDIA )
दिल्ली में 1707 ई ० से 1748 ई ० तक बहादुर शाह ( 1707-12 ई ० ) , जहाँदार शाह ( 1712-13 ई ० ) , फरूर्खशियर ( 1713-19 ई ० ) , मुहम्मद शाह रंगीला ( 1719-48 ई ० ) आदि मुगल शासकों ने शासन किया । ब्रिटेन के भारत विजय में निम्नलिखित महत्वपूर्ण पड़ाव हैं –
1707 ई ० में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया । 1739 ई ० में नादिर शाह एवं 1747 ई ० में अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों से मुगल सामाज्य के पतन की गति और भी तेज हो गई । मुगल साम्राज्य की दुर्बलता का लाभ उठाकर हैदराबाद , अवध एवं बंगाल अलग हो गए । हैदाराबाद के आसफजाही वंश का प्रवर्तक चिनकिलिच खाँ था , उसे निजाम – उल – मुल्क भी कहा जाता था । निजाम – उल – मुल्क के मृत्यु के बाद हैदराबाद पर शासन करने वालों में नासिर जंग , मुजफ्फरजंग एवं सालारजंग थे । अवध के संस्थापक सआदत खाँ थे , जिन्हें मुगल सम्राट मुहम्मद शाह ने बुरहान – उल – मुल्क की उपाधि से सम्मानित किया । सआदत खाँ के बाद अवध पर सफदर जंग एवं शुजाउद्दौला ने शासन किये । 1701 ई ० में मुर्शिद कुली खां को बंगाल की दीवानी प्राप्त हुई । मुर्शिद कुली खाँ ने 1717 ई ० में बंगाल को मुगल साम्राज्य से स्वतंत्र घोषित कर दिया । 1740 ई ० से 1756 ई ० तक बंगाल पर अलीवर्दी खाँ का शासन रहा । बंगाल का अन्तिम नवाब 1756 ई ० में ‘ सिराजुद्दौला ‘ बना । 1707 ई ० में मुगल कैद से आजाद हुए साहू को प्रशासन का ज्ञान नहीं था । साहू जी ने प्रशासन की देख – रेख पेशवाओं के हाथ में सौंप दी । मराठों के पेशवा इस प्रकार थे – बालाजी विश्वनाथ ( 1713-20 ई ० ) , बाजी राव -1 ( 1920-40 ई ० ) , बालाजी बाजी राव ( 1740-61 ई ० ) , माधव राव- ।। ( 1761-62 ई ० ) , नारायण राव -1 ( 1772-73 ई ० ) , माध व राव- ।। ( 1773-96 ई ० ) , बाजी राव- || ( 1796-1818 ई ० ) । बालाजी विश्वनाथ पेशवाओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथा प्रथम पेशवा था । मुगल दरबार के सैयद बंधुओं का दमन करने में बालाजी विश्वनाथ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । बाजी राव -1 ने ‘ मराठा संघ ‘ की स्थापना कर मराठा शक्ति का विस्तार किया । होल्कर ( इंदौर ) , भोंसले ( नागपुर ) , सिन्धिया ( ग्वालियर ) , गायकवाड़ ( बड़ौदा ) , तथा पेशवा ( पूना ) मराठा संघ के सदस्य थे । 1733 ई ० में पेशवा बाजीराव- । ने पुर्तगालियों सालसेट एवं बेसीन के प्रदेश जीते । बाजीराव -1 ने पालखेड़ा के युद्ध में हैदराबाद के निजाम – उल – मुल्क को ( i ) हराया तथा दोनों के बीच मुंशी शिवगांव की सन्धि हुई । मराठों के तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव ने 1757 ई ० में मुगलों की ( ii ) तत्कालीन राजधानी दिल्ली पर अधिकार कर लिया ।
1761 ई ० में पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमद शाह अब्दाली ने बालाजी ( ii ) बाजीराव को परास्त कर दिया तथा यहीं से मराठों का पतन आरम्भ हो गया । 18 वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में हैदरअली के अधीन मैसूर राज्य का ( iv ) उदय हुआ । हैदरअली का जन्म मैसूर में 1721 ई ० में हुआ । 1766 ई ० में मैसूर का शासक बनने के बाद हैदर ने अपनी राज्य की सीमाएँ पूरब में पूर्वी घाट , पश्चिम में पश्चिमी घाट एवं दक्षिण में कावेरी नदी तक बढ़ाई । हैदर अली को मराठों के पेशवा माधव राव ने 1764 ई ० में युद्ध में परास्त कर दिया । हैदर अली ने 1782 ई ० तक तथा उसके बाद उसके पुत्र टीपू सुल्तान . ने 1799 ई ० तक मैसूर पर शासन किया ।
1748 ई ० में खालसा दल का निर्माण तथा पंजाब में सिक्खों के 12 मिसलों का गठन हुआ ।
इन्हीं मिस्लों में राजा रणजीत सिंह एक मिस्ल शुक्रकिया का प्रतिनिधित्व करता था । रणजीत सिंह ने 1799 में लाहौर , 1802 में अमृतसर पर अधिकार कर लिया । रंजीत सिंह की राजधानी लाहौर थे । रणजीत सिंह की सरकार को ‘ सरकार खालसा ‘ कहा जाता था । रणजीत सिंह का राज्य 4 सूबों पेशावर , कश्मीर , लाहौर तथा मुल्तान में विभक्त था । अमृतसर की सन्धि ( 1809 ई ० ) अंग्रेजों और रणजीत सिंह के बीच हुए । हरि सिंह नलवा की मदद से रणजीत सिंह ने मुल्तान , कश्मीर तथा पेशावर पर भी अधिकार कर लिया । 1839 ई ० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद 10 वर्षों के बाद उनका राज्य विलुप्त हो गया । 18 वीं शताब्दी के आरम्भ में केरल अनेक छोटे – छोटे क्षेत्रों में विभाजित था । इस काल में कालीकट , कोचीन , करिक्काल एवं ट्रावणकोर आदि महत्त्वपूर्ण थे । ट्रावणकोर के राजा मार्तण्ड वर्मा ने अपने राज्य का विस्तार किया तथा डचों को पूर्णरूपेण केरल से बाहर निकाल दिया ।
1805 ई ० में ट्रावणकोर सहायक सन्धि के तहत ब्रिटिश साम्राज्य के प्रभुत्व में आ गया । 18 वीं शताब्दी के आरम्भ में अहोम , कछार , जयंतिया तथा मणिपुर पूर्वोत्तर के प्रमुख राज्य थे । ब्रिटिश काल में असम समेत पूर्वोत्तर का तमाम क्षेत्र असम प्रान्त के नाम से जाना जाता था । असम क्षेत्र में रूद्रसिम्हा ( 1694-1714 ई ० ) एवं शिव सिंह ( 1714-44 ई ० ) प्रमुख शासक हुए । रूद्रसिम्हा को पूर्वी भारत का शिवाजी कहा जाता है । 18 वीं शताब्दी के आरम्भ में राजपूताने में जोधपुर एवं आमेर ( जयपुर ) दो प्रमुख राज्य थे । उपरोक्त के अलावा दिल्ली से सटा समस्त क्षेत्र राजपूतों के अधीन था । जोधपुर ( मारवाड़ ) का प्रमुख शासक अजीत सिंह था तथा आमेर का शासक जय सिंह था । जयपुर के शासक सवाई जय सिंह एक उच्च स्तरीय विद्वान एवं विज्ञान की समझ रखने वाला शासक था ( 1 ) जय सिंह से खगोल विद्या के अध्ययन के लिए 5 वेधशालाओं का निर्माण कराया । ( i ) जय सिंह ने सारणियों के सेट तैयार कराये तथा त्रिकोणमिति की कई प्रसिद्ध पुस्तकों का अनुवाद कराया । ( it ) सवाई जय सिंह द्वारा वैज्ञानिक पद्धति से जयपुर शहर का निर्माण कराया गया । ( iv ) जय सिंह ने रेखा गणित के तत्व नामक यूक्लिड रचित ग्रन्थ का संस्कृत भाषा में अनुवाद कराया । दिल्ली के पास आगरा एवं मथुरा जाटों के प्रभुत्व में थे । भरतपुर में बदन सिंह के दत्तक पुत्र सूरजमल ( 1756-63 ई ० ) का शासन था । सूरजमल द्वारा अपने राज्य का विस्तार पूर्व में गंगा , दक्षिणी में चंबल , पश्चिम में आगरा एवं उत्तर में दिल्ली तक किया गया । 1763 ई ० में सूरजमल की मृत्यु के पश्चात इस राज्य का पतन हो गया ।
अंग्रेज समर्थित कर्नाटक के नवाब ‘ अनवारूद्दीन ‘ की सेना एवं फेंच सेना के बीच कार्नेटिक युद्ध -1 ( 1746-48 ई ० ) हुआ । उपर्युक्त युद्ध में फ्रांसीसियों की सेना की एक छोटी टुकड़ी ( 1000 सैनिक ) ने नवाब की बड़ी सेना ( 10000 सैनिक ) को हरा दिया । एक्स – लॉ – शॉपल की सन्धि ( 1748 ई ० ) के द्वारा यूरोप में फ्रांस एवं ब्रिटेन के बीच युद्ध समाप्त हो गया तथा साथ ही भारत में भी प्रथम कार्नेटिक युद्ध समाप्त हो गया । हैदराबाद , कर्नाटक तथा तंजौर के उत्तराधिकार के प्रश्न पर द्वितीय कार्नेटिक युद्ध ( 1749-54 ई ० ) हुआ । 1748 ई ० में हैदराबाद के निजाम आसफजाह की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र नासिरजंग एवं पौत्र मुजफ्फरजंग में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष आरम्भ हो गया । कार्नेटिक में नवाब अनवरुद्दीन एवं उसके जीजा चंदा साहिब के बीच भी . संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी । फ्रेंच गवर्नर डूप्ले ने हैदराबाद में ‘ मुजफ्फर जंग ‘ एवं कार्नेटिक में ‘ चंदा साहिब ‘ का समर्थन किया । अंग्रेजों ने हैदराबाद में ‘ नासिर जंग ‘ तथा कार्नेटिक में ‘ अनवरुद्दीन ‘ का समर्थन किया । कई झड़पों के बावजूद 1753 ई ० तक कार्नेटिक युद्ध- । अनिर्णीत रहा । 1754 ई ० में अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों के बीच पांडिचेरी की सन्धि हुई । C ‘ पांडिचेरी की सन्धि ‘ के तहत दोनों पक्षों ने भारतीय शासकों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की सहमति बनी । 1756 ई ० में यूरोप में ‘ सप्तवर्षीय युद्ध ‘ के आरम्भ के साथ ही भारत में अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों के बीच शान्ति की स्थिति समाप्त हो गई ।
1760 ई ० में अंग्रेजों की सेना ने वान्डिवाश के युद्ध में सर आयरकूट के नेतृत्व में फ्रांसीसियों को बुरी तरह से पराजित कर दिया । वान्डिवाश युद्ध के बाद ‘ फ्रांसीसियों ‘ की ताकत समाप्त हो गई तथा वे पांडिचेरी में सिमट कर रह गए । 1767 ई ० में अंग्रेजों , निजाम तथा मराठों ने मिलकर ‘ हैदर अली ‘ के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाया । हैदर अली ने कूटनीति के प्रयोग से मराठों तथा निजाम को अपने पक्ष में कर लिया । 1767-69 ई ० के बीच आंग्ल – मैसूर युद्ध- हैदर अली एवं अंग्रेजों के बीच हुआ । अंग्रेजों को 1769 ई ० में ‘ हैदर अली ‘ के साथ अपमानजनक सन्धि करनी पड़ी तथा दोनों पक्षों ने एक – दूसरे के जीते हुए प्रदेश लौटा दिये । 1779 ई ० में पश्चिमी तट पर स्थित फ्रांसीसी उपनिवेश माहे पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया । ‘ माहे ‘ से हैदर अली के महत्वपूर्ण सामरिक संबंध थे । हैदर अली , निजाम मराठों के संयुक्त मोर्चा तथा अंग्रेज समर्थिक कर्नाटक के नवाब के बीच आंग्ल – मैसुर युद्ध -11 ( 1780-84 ई ० ) इसी बीच 1782 ई ० में हैदर अली एवं सर आयरकूट का निधन हो गया । अब युद्ध में मैसूर की कमान टीपू सुल्तान ( हैदर का पुत्र ) एवं अंग्रेजों 1 की कमान जेनरल स्टुआर्ट के हाथों में थी
अंग्रेजों एवं टीपू सुल्तान के बीच मंगलोर की सन्धि ( 1784 ई ० ) में हुई , जिसके तहत दोनों पक्षों ने एक – दूसरे के जीते हुए प्रदेश को वापस कर दिए ।
1790 ई ० में गर्वनर जेनरल ‘ लॉर्ड कार्नवालिस ‘ निजाम एवं मराठों के साथ मैसूर के खिलाफ त्रिदलीय मोर्चा ( Triple Alliance ) बना । टीपू सुल्तान एवं अंग्रेज समर्थित ट्रावणकोर के राजा के बीच हुए आंग्ल – मैसुर युद्ध -11 ( 1790-92 ई ० ) का परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में गया । 1792 ई ० में टीपु सुल्तान तथा अंग्रेजों के बीच श्रीरंगापट्टम की सन्धि . . श्रीरंगापट्टम की अपमानजनक सन्धि के तहत टीपू को अपना आधा राज्य अंग्रेजों एवं उनके मित्रों के बीच बांटना पड़ा । श्रीरंगापट्टम को अपमानजनक सन्धि के तहत क्षेत्र को अपने दो पुत्रों को जमानत के तौर पर लॉर्ड कार्नवालिस को सौंपना पड़ा । 1798 ई ० में आंग्ल – मैसुर- IV ( 1798-99 ई ० ) आरम्भ हुआ और इस युद्ध में टीपू बुरी तरह हार गया एवं मारा गया । 1799 ई ० में श्रीरंगापट्टम ( मैसूर की राजधानी ) . पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया । वडियार वंश के एक बालक को अंग्रेजों ने मैसूर की गद्दी पर बैठा दिया तथा उस पर सहायक सन्धि ( Subsidiary Alliance ) थोप दी । 1756 ई ० में बंगाल की गद्दी पर नवाब के रूप में अलीवर्दी खाँ का नाती सिराजुद्दौला बैठा । सिराजुद्दौला की मौसी घसीटी बेगम तथा उसका पुत्र शौकत जंग , उसके प्रमुख विरोधी थे । सिराजुद्दौला को शौकत जंग की दीवान राजवल्लभ तथा अंग्रेजों से भी चुनौती मिल रही थी । सिराजुद्दौला ने 20 जून , 1776 ई ० को ‘ कलकत्ता ‘ पर आक्रमण कर फोर्ट विलियम पर कब्जा कर लिया । माणिकचंद को कलकत्ता का प्रभारी बनाकर ‘ सिराजुद्दौला ‘ स्वयं वापस लौट गया ।
Black hole tragedy
कलकत्ता युद्ध के बाद ‘ फोर्ट विलियम ‘ के 146 कैदियों को 20 जून , 1756 ई ० की रात को 18 फुट x 14 फुट के अंधेरे कमरे में बन्द कर दिया गया । 21 जून को सवेरे में उनमें से मात्र 23 व्यक्ति जीवित बचे थे । अंग्रेजों ने कुछ वर्ष तक इसे दुष्प्रचार के हथकंडे के रूप में इस्तेमाल किया । अधिकांश समकालीन इतिहासकार इस घटना को प्रमाणिक नहीं मानते . . . • आधुनिक भारत के इतिहासकार गुलाम हुसैन ने समकालीन भारत पर अपनी रचना सियार – उल – मुख्खरैन में भी इसका कोई जिक्र नहीं किया है । माणिक चंद को घूस देकर अंग्रेजों ने अपनी ओर मिला लिया तथा कलकत्ता एवं हुगली पर अधिकार कर लिया । अंग्रेजों एवं सिराजुद्दौजा के बीच 9 फरवरी , 1757 को अलीनगर की सन्धि हुई । ‘
अलीनगर की सन्धि ‘ के तहत अंग्रेजों को व्यापार के पुराने अधिकार मिल गये ।
उपर्युक्त संधि से ही अंग्रेजों को कलकत्ता ( कोलकाता ) की किलेबन्दी करने की भी अनुमति प्राप्त हुई । अंग्रेजों ने सिराजुद्दौजा के विरुद्ध मीर जाफर ( सिराजुद्दौला का सेनापति ) , जगत सेठ ( बंगाल का बैंकर ) , रायदुर्लभ ( एक बिचौलिया ) तथा अमीर चंद ( बंगाल का एक व्यापारी ) के साथ मिलकर साजिश की । सिराजुद्दौला एवं अंग्रेजों की सेना के बीच 23 जून , 1757 ई ० को ‘ मुर्शिदाबाद ‘ से 22 मील दक्षिण में प्लासी का युद्ध ( 1757 ई ० ) हुआ । प्लासी युद्ध साजिश में शामिल लोगों द्वारा धोखा दिये जाने के कारण सिराजुद्दौला हार गया तथा उसकी हत्या कर दी गई । 25 जून , 1757 ई ० को मीर जाफर द्वारा स्वयं को बंगाल का नवाब घोषित किया गया । मीर जाफर ने अंग्रेजों को इनामस्वरूप 24 परगने की जमींदारी प्रदान की । मीर जाफर युद्ध की क्षति की पूर्ति के लिए अंग्रेज सेनापति क्लाइव को 234000 रु ० दिये । मीर जाफर ने कम्पनी को बिना शुल्क अदा किये ही व्यापार करने की छूट दे दी । 24 परगने ‘ की जमींदारी ने अंग्रेजों को अत्यन्त फायदा पहुंचाया , परिणामस्वरूप धन की उनकी मांगें बढ़ने लगीं । ‘
मीर जाफर ‘ अंग्रेजों की दिनोंदिन बढ़ते मांग को पूरा करने में असमर्थ साबित हो रहा था । अंग्रेजों ने 27 दिसंबर 1760 को मीर कासिम ( मीर जाफर का दामाद ) को बंगाल का नया नवाब घोषित किया । मीर कासिम ने अपनी राजधानी मुंगेर में स्थापित की । मीर कासिम ने बिहार के तत्कालीन गर्वनर राम नारायण को अपदस्थ .. . किया । मीर कासिम एक योग्य व्यक्ति था , शीघ्र ही अंग्रेजों से दस्तक के सवाल पर उलझ पड़ा । 1763 ई ० में कम्पनी एवं मीर कासिम के बीच युद्ध आरम्भ हो गया । उदयनाला के युद्ध में बुरी तरह पराजित होने के पश्चात् ‘ मीर कासिम ‘ अवध चला गया । बंगाल के नवाब की गद्दी पर पुन : मीर जाफर को पदस्थापित किया गया । अंग्रेजों को चुंगी रहित व्यापार की सुविधा बहाल कर दी गई जबकि भारतीयों के लिए चुंगी की दर 25 प्रतिशत निर्धारित की गई । अवध पहुँचकर मीर कासिम ‘ ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध एक मोर्चा तैयार किया ।
22 अक्टूबर , 1764 को मीर कासिम की संयुक्त सेना एवं अंग्रेज सेना के बीच बक्सर का युद्ध ( 1764 ई ० ) हुआ । इस युद्ध में मेजर हेक्टर मुनरो ने अंग्रेजों को सेना का नेतृत्व किया । इस युद्ध में घमासान लड़ाई के पश्चात् अंग्रेजों की जीत हुई तथा मीर कासिम पलायन कर गया तथा 12 वर्षों के पश्चात् उसका निधन हो गया । ‘ इलाहाबाद की पहली सन्धि ‘ 12 अगस्त , 1765 को हुई । न ‘ दस्तक ‘ एक प्रकार का पास था जो कर – मुक्त व्यापार के लिए East India Co. को प्रदान किया गया था । ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारी एवं अधिकारी ‘ दस्तक ‘ का प्रयोग अपने निजी व्यापार के लिए करके बंगाल के राजकोष को हानि पहुँचाते थे । उपर्युक्त सौंध के तहत ईस्ट इंडिया कं . को बिहार , बंगाल एवं उड़ीसा के दीवानी अधिकार प्राप्त हो गए । दीवानी अधिकार मिल जाने से बंगाल , बिहार , उड़ीसा क्षेत्र का वास्तविक स्वामित्व कंपनी के हाथ में आ गया । बदले में मुगल बादशाह को 26 लाख रुपये वार्षिक अदा करने एवं उसे अवध के इलाहाबाद एवं कड़ा जिले प्रदान करने की सहमति हुई ।
‘ इलाहाबाद की दूसरी सन्धि ‘ 16 अगस्त , 1765 को हुई , जिसके तहत अवध के नवाब शुजाउद्दौला को युद्ध की क्षतिपूर्ति हेतु 50 लाख रूपये अंग्रजों को देना तय हुआ ।
. 50 लाख रुपये देने के एवज में अंग्रेजों द्वारा अवध का जीता हुआ राज्य नवाब को वापस लौटाना था ।
बंगाल में द्वैध शासन ( Dual Government in Bengal )
1765 ई ० में ‘ मीर जाफर ‘ की मृत्यु हो गई । अंग्रेजों ने ‘ मीर जाफर ‘ के पुत्र नजमुद्दौला को निम्न शर्तों के साथ नवाब के रूप में स्वीकार किया ( i ) निजामत ( सैन्य संरक्षण एवं विदेशी मामले ) पूर्णतया कम्पनी के हाथ में होंगे । ( ii ) दीवानी मामलों के लिए एक डिप्टी गर्वनर हो , जिसकी नियुक्ति कम्पनी द्वारा हो तथा कम्पनी के अनुमति बगैर उसे हटाया न जाय । इस प्रकार प्रशासन की वास्तविक शक्ति कम्पनी के हाथों में रही एवं दैनिक प्रशासन नवाब के हाथों में । उपर्युक्त विचित्र प्रशासनिक व्यवस्था को ‘ द्वैध – शासन ‘ कहते हैं ।
यह व्यवस्था 1765 ई ० से 1772 ई ० तक चली । आंग्ल – मराठा यु -1 ( 1775-82 ई ० ) गवर्नर जेनरल ‘ बारेन हेस्टिंग्स ‘ के शासनकाल में हुआ । आंग्ल – मराठा युद्ध -1 , अंग्रेजों द्वारा बड़गाँव की संधि के उल्लंघन के कारण हुआ । अंग्रेज सेना ने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया , ग्वालियर के शासक ‘ महादजी सिंधिया ‘ को साल्बाई की सन्धि ( 1782 ई ० ) करनी पड़ी । दोनों पक्षों के बीच अगले 20 वर्षों तक शान्ति बनी रही । 1805 ई ० में मराठों के सबसे बड़े नेता नाना फड़नवोस की मृत्यु हो गई । पेशवा वाजीराव- II , जसवंत राव होल्कर तथा दौलत सिंधिया में प्रमुत्व के लिए संघर्ष छिड़ गया । 1802 ई ० में जसवंत राव होल्कर ने पूना पर कब्जा कर पेशवा बाजी राव- II को अपदस्थ कर दिया । जसवंत राव होल्कर ने विनायक राव को नया पेशवा नियुक्त कर दिया । अपदस्थ पेशवा बाजीराव- ।। ने लॉर्ड वेलेस्ली के साथ बेसिन की सन्धि ( 1802 ई ० ) की । यह सन्धि ‘ लॉर्ड वेलेस्ली ‘ की बहुचर्चित सहायक सन्धि ( Subsidiary Alliance ) थी । इस सन्धि के तहत् दोनों पक्षों ने संकट काल में एक – दूसरे का साथ देने का आश्वासन दिया । पेशवा ने पूना में एक सहायक सेना रखने एवं उसके खर्चे के लिए 27 लाख रुपये वार्षिक देने की स्वीकृति दे दी । बेसीन की अपमानजनक सन्धि मराठा संघ के अन्य सरदारों द्वारा स्वीकार नहीं की गई । असाई नामक स्थान पर अंग्रेजों ने सिन्धिया एवं भोंसले की संयुक्त सेना को आंग्ल – मराठा युद्ध- II ( 1803 ई ० ) में बुरी तरह हरा दिया । अंग्रेजों ने पुनः मराठों को अरगाँव तथ लासबाड़ी में हराया । भोंसले ने हारकर देवगाँव की सन्धि की जिसके तहत् उसे कटक का सूबा अंग्रेजों को प्रदान करना पड़ा । 30 दिसम्बर , 1803 को सिन्धिया ने भी सूर्जी अर्जुन गाँव की सहायक सन्धि कर ली ।
आंग्ल – मराठा युद्ध- II ( 1804-06 ई ० ) लौर्ड वेलेस्ली एवं होल्कर के . बीच हुआ । . 1804 ई ० में लॉर्ड वेलेस्ली ने ‘ जयपुर ‘ को सुरक्षित करने की गरज से ‘ होल्कर ‘ पर आक्रमण किया । अंग्रेजों एवं होल्कर के बीच 7 जनवरी , 1806 को राजपुर घाट की सन्धि . राजपुरघाट की सन्धि के तहत चंबल नदी के उत्तर में अंग्रेजों का एवं दक्षिण में ‘ होल्कर ‘ का राज्य स्थापित हो गया । आंग्ल – मराठा युद्ध- II ( 1813-23 ई ० ) लॉर्ड हेस्टिंग्स के कार्यकाल में हुआ । अंग्रेजों एवं भोंसले सरदार अप्पा साहिब के बीच नागपुर की सन्धि हुई जिसके तहत ‘ नागपुर ‘ पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया ।
अप्पा साहिब ने फिर से संघर्ष किया परन्तु 1817 ई ० में सीताबर्डी के युद्ध में हार गया । -48 .
महीदपुर में 1817 ई ० में पेशवा भी पराजित हो गया , उसने पूर्णरूपेण हथियार डाल दिए । मंदसौर में 1818 ई ० के आरम्भ में होल्कर ने सहायक सन्धि स्वीकार कर ली । ‘ पूना ‘ का ब्रिटिश राज्य में विलय कर दिया गया । सम्पूर्ण महाराष्ट्र पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो गया तथा मराठा संघ पूर्णरूपेण समाप्त हो गया । रणजीत सिंह द्वारा छोड़े गये 4000 सैनिकों ने पंजाब में अराजकता फैलाने का कार्य किया । रणजीत सिंह के अल्प – वयस्क पुत्र दिलीप सिंह को सितम्बर , 1843 ई ० में महाराजा घोषित किया गया । रानी जिंदा को दिलीप सिंह का संरक्षक एवं हीरा सिंह को वजीर नियुक्त . किया गया । 1844 ई ० में आए गर्वनर जनरल लॉर्ड हार्डिंग ने पंजाब के गवर्नर मेजर ब्राडफुट को पंजाब से पेशावर तक ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित करने का निर्देश दिया । 13 दिसम्बर , 1845 ई ० में मुदकी में हुए आंग्ल – सिख युद्ध- II . ( 1845-46 ई ० ) सिख जीत सकते थे , परन्तु , तेज सिंह तथा लाल सिंह के विश्वासघात के कारण हार गये । सिखों एवं अंग्रेजों के बीच निर्णायक भिड़त सबराओं में 10 फरवरी , 1846 को हुई , जिसमें विश्वासघात के कारण सिक्ख हार गये । इस युद्ध के परिणामस्वरूप लाहौर पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया ।
9 मार्च , 1846 को सिक्खों एवं अंग्रेजों के बीच लाहौर की सन्धि हुई । इस सन्धि के तहत् सतलज पार के सिक्खों के तमाम प्रदेश अंग्रेजों के अधिकार में चले गये । 1848 में पंजाब कांउसिल के अध्यक्ष हेनरी लॉरेंस ने बड़ी संख्या में सेना को भंग कर दिया । इससे पंजाब में बेहद अराजक स्थिति उत्पन्न हो गई । उपर्युक्त घटना ने दूसरे आंग्ल – सिक्ख युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार की , जबकि मुल्तान के विद्रोह ने तात्कालिक कारण उत्पन्न किये । शेर सिंह के नेतृत्व में सिक्खों एवं कमांडर गफ के नेतृत्व में अंग्रेजों के बीच 13 जनवरी , 1849 को चिलियानवाला में आंग्ल – सिख युद्ध- II ( 1848-49 ई . ) हुआ । द्वितीय आंग्ल – सिख युद्ध अनिर्णीत रहा परन्तु , अंग्रेजों को अत्यधिक क्षति उठानी पड़ी । तीसरा आंग्ल – सिख युद्ध 21 फरवरी , 1849 को लड़ा गया । इस युद्ध में सिख बुरी तरह पराजित हुए एवं आत्मसमर्पण कर दिया । 29 मार्च , 1849 को लॉर्ड डलहौजी ने पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया । पानीपत के तृतीय युद्ध के पश्चात् ‘ पिंडारी ‘ मालवा में बस गये तथा मराठों के सहायक सैनिक की भूमिका निभाने लगे । 19 वीं शताब्दी के आरम्भ में , चीतू , वासिल मुहम्मद तथा करीम पिंडारियों के प्रमुख नेता थे । पिंडारियों द्वारा अंग्रेजी शासन के अधीन मिर्जापुर एवं शाहाबाद जिलों पर 1812 ई ० में आक्रमण किये गये । पिंडारियों ने 1815 ई ० में निजाम के राज्य तथा 1816 ई ० में उत्तरी सरकार को लूटा । तत्कालीन गर्वनर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स ने 1817 ई ० में पिंडारियों का दमन आरम्भ किया । 1824 ई ० तक पिंडारियों का पूर्णरूपेण सफाया हो गया । नेपाल 1768 ई ० में एक गोरखा राज्य के रूप में अस्तित्व में आया । 1814 ई ० में अंग्रेजों एवं गोरखों के बीच लॉर्ड हेस्टिंग्स के कार्यकाल में हुए संघर्ष में ‘ गोरखे ‘ हार गए । गोरखों एवं अंग्रेजों के बीच मार्च , 1816 ई ० में सुगौली की सन्धि हुई । सुगौली की सन्धि के तहत कुमाऊँ तथा गढ़वाल अंग्रेजों के अधिकार में आ गये ।
सुगौली को सन्धि क तहत गोरखे सिक्किम छोड़ने एवं काठमांडु में एक अंग्रेज रेजीडेंट रखने पर तैयार हो गये ।
1843 ई ० में चार्ल्स नेपियर ने सिंध पर आक्रमण कर दिया एवं इमामगढ़ का दुर्ग जीत लिया । 1843 ई ० के अन्त तक सम्पूर्ण सिन्ध का ब्रिटिश राज में विलय हो गया । ‘ लॉर्ड डलहौजी ‘ के कार्यकाल से पूर्व भरतपुर ( 1826 ई ० ) , कछार ( 1832 ई ० ) , कुर्ग ( 1834 ई ० ) एवं सिक्किम ( 1850 ई ० ) का विलय ब्रिटिश राज्य में हो चुका था । लॉर्ड डलहौजी के व्यपगत् सिद्धान्त ( Doctrine of Lapse ) के तहत् सतारा ( 1848 ई ० ) , बघात ( 1850 ई ० ) , उदयपुर ( 1852 ई ० ) , नागपुर ( 1854 ई ० ) , झांसी ( 1853 ई ० ) . अवध ( 1856 ई ० ) का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय हुआ । अंग्रेजी शासन के विरूद्ध 1768-1921 ई . के बीच कई विद्रोह हुए । • उपर्युक्त में 1857 का विद्रोह सबसे महत्वपूर्ण था । 1770 ई . में पड़े भयानक अकाल के प्रति अंग्रेज सरकार ने उदासीनता . बरती । . . . 1770 ई . में सन्यासियों की तीर्थयात्रा भी अंग्रेजें प्रतिबंधित कर दी । उपर्युक्त दोनों कारणों से सन्यासी विद्रोह ( 1770-1800 ई . ) हुआ । सन्यासी विद्रोह की जानकारी ‘ बंकिम चंद्र चटर्जी ‘ की आनंदमठ ( उपन्यास ) से होती है । 1768 ई . में अकल एवं भूमि – कर के विरोध में बंगाल के मिदनापुर जिले में चुआर विद्रोह हुआ । 1776-77 ई . में बंगाल में ‘ मजनू शाह एव चिराग अली ‘ के नेतृत्व में फकीर विद्रोह ( 1776-77 ई . ) हुआ । ब्रिटिश भूमि – कर व्यवस्था के खिलाफ ‘ वीर काट्टावायान ‘ के नेतृत्व में तमिलनाडु में पॉलीगार विद्रोह ( 1799-1809 ई . ) हुआ । ट्रावणकोर रियासत में 1805 ई . में सहायक संधि के विरोध में दीवान वेलूथम्पी का विद्रोह हुआ । भारत के पश्चिमी घाट में स्थित ‘ खान देश ‘ ‘ सेवरम ‘ के नेतृत्व में झील विद्रोह ( 1812-46 ई . ) हुआ । पश्चिमी घाट पर निवास करने वाली ‘ रामोसी ‘ जाति ने ‘ सरदार चित्तर सिंह के नेतृत्व में रामोसी विद्रोह ( 1822-29 ई . ) किया । 1828 ई . में ‘ गोमधर कुंवर ‘ के नेतृत्व में अहोम राज्य हथियाने के विरोध में अहोम विद्रोह हुआ । बरासात ( बंगाल ) में ‘ टीट मीर ‘ के नेतृत्व में दाढ़ी पर कर लगाए जाने . के विरोध में वहाबी विद्रोह ( 1831 ई . ) हुआ । 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बढ़े भूमि कर एवं क्षेत्र में मुसलमानों एवं सिखों को बसाने के विरोध में ‘ नारायण राव ‘ के नेतृत्व में झारखंड क्षेत्र में कोल विद्रोह ( 1831-32 ई . ) हुआ । पूर्वोत्तर भारत में ‘ राजा तिरूत सिंह के नेतृत्व में खासी विद्रोह ( 1838 ई . ) हुआ । बंगाल के ढ़ाका एवं फरीदपुर जिलों में ‘ हाजी शरीयतुल्ला एवं दादू मिया ‘ के नेतृत्व में भूमि – कर शोषण के विरूद्ध फरायजी आंदोलन ( 1838-57 ई . ) हुआ । भूमि अधिकारी , जमीन्दार तथा साहूकारों के अत्याचार के खिलाफ ‘ सिद्ध कान्हू ‘ के नेतृत्व में संथाल परगना में संथाल विद्रोह ( 1855-56 ई . ) हुआ ।
संथाल विद्रोह के 1856 ई . में कमीश्नर ब्राउन एवं जनरल लॉयड ने दबाने में सफलता प्राप्त की । जमींदारों , ठेकेदारों , अनियों , सूदखोरों एवं अंग्रेजों के अत्याचार के विरूद्ध दक्षिणी छोटानागपुर के आदिवासियों ने मुंडा विद्रोह ( 1898-1900 ई . ) किया । मुंडा विद्रोह को नेतृत्व बिरसा मुंडा ने प्रदान किया । बिरसा मुंडा ने उलगुलान की उपाधि धारण की तथा स्वयं को ईश्वर का दूत घोषित किया । मुंडा विद्रोह को 1900 ई . तक दबा दिया गया । उड़ीसा में ‘ जगबंधु बख्शी ‘ के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरूद्ध पाइक विद्रोह ( 1817-25 ई . ) हुआ ।
आंध्र प्रदेश के तटवर्ती क्षेत्रों के आस – पास निवास करने वाले आदिवासियों ने रम्पा विद्रोह ( 1879 ई . ) किया ।
कच्छ एवं काठियावाड़ में राजा भारमल को अपदस्थ किए जाने के कारण उसके समर्थकों ने 1819 ई . एवं 1831 ई . में कच्छ विद्रोह . किया । सूरत में नमक कर 50 पैसे से बढ़ाकर | रुपया किए जाने के विरोध में सूरत का नमक विद्रोह ( 1844 ई . ) हुआ । उपर्युक्त विद्रोह की प्रचंडता देखकर अंग्रेजी सरकार ने कर – वृद्धि वापस ले ली । 9 वीं शताब्दी में ‘ दक्षिणी मालाबार ( केरल ) ‘ के मुसलमान पट्टेदारों तथा खेतिहरों को मोपला कहा जाता था । अंग्रेजों ने मालाबार में ‘ स्थाई बंदोबस्त ( Permanent settlement ) ‘ स्थाई बंदोबस्त के कारण जमींदारों के अधिकार बढ़ गए एवं उन्होंने मालाबार के मोपला किसानों को भूमि से बेदखल करना आरंभ कर दिया । उपर्युक्त के विरोध में ‘ सैयद अली मुसलियार ‘ के नेतृत्व में मोपला विद्रोह ( 1836-21 ई . ) हुआ । भारत में अंग्रेजों के विरूद्ध पहला बड़ा विद्रोह 1857 का विद्रोह था । 1857 के विद्रोह की शुरुआत मेरठ में 10 मई 1857 को हुई । 1857 के विद्रोह के तात्कालिक कारण नई एनफील्ड राइफलों में चर्बीदार कारतूसों ( गाय एवं सुअरों की ) का उपयोग था । 29 मार्च , 1857 ई ० को मंगल पाण्डे ने अपने एजुटेंट पर बैरकपुर ( पश्चिम बंगाल ) में आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी । मंगल पाण्डे को सार्जेंट मेजर पर गोली चलाने के जुर्म में 8 अप्रैल 1857 को फाँसी दे दी । 1857 की क्रांति की शुरूआत 10 मई , 1857 को मेरठ की पैदल टुकड़ी 20 नेटिक्इन्फैन्ट्री द्वारा हुई । 11 से 30 मई , 1857 की अवधि में दिल्ली , फीरोजपुर , बम्बई , अलीगढ़ , इटावा , बरेली , मुरादाबाद एवं उत्तर प्रदेश के कई नगरों में विद्रोह का प्रसार हुआ । दिल्ली में विद्रोहियों ने अन्तिम मुगल बादशाह बहादुशाह जफर- II को भारत का सम्राट घोषित कर दिया । जून , 1857 में ग्वालियर , भरतपुर , झाँसी , इलाहाबाद , फैजाबाद , सुल्तानपुर एवं लखनऊ आदि में विद्रोह फैल गया । अगस्त , 1857 ई . तक जगदीशपुर ( बिहार ) इंदौर , सागर एवं नर्मदा घाटी . में विद्रोह का प्रसार हुआ । सितम्बर , 1857 ई ० में दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया , परन्तु मध्य – भारत में विद्रोह हो गया । मई 1858 ई ० तक अंग्रेजों का कानपुर , लखनऊ , झाँसी आदि पर अधि कार हो गया । जुलाई – दिसम्बर , 1858 ई ० तक सम्पूर्ण भारत में विद्रोह को दबा दिया गया एवं अंग्रेजी राज की पुनर्स्थापना कर दी गई ।
बंगाल में ‘ दिगंबर एवं विष्णु विश्वास ‘ के नेतृत्व में नीलहा – किसानों पर अत्याचार के विरूद्ध नील विद्रोह ( 1859-61 ई . ) हुआ । 1859 ई . के नील विद्रोह का विवरण ‘ दीनबंधु मित्रा ‘ की चर्चित पुस्तक नील दर्पण में मिलता है । बाद में हिन्दू पैट्रियॉट ‘ के हरीशचंद्र मुखर्जी ने उपर्युक्त आंदोलन को समर्थन दिया । जमीन्दारों की ज्यादती के खिलाफ ‘ यूसुफसराय ‘ के कृषक – संघ ने पाबना विद्रोह ( 1859-61 ई . ) किया । मारवाड़ी एवं गुजराती साहुकारों के शोषण के खिलाफ दक्कन विद्रोह ( 1875-79 ई . ) हुआ । उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में लगान – वृद्धि के विरोध में ‘ बाबा रामचंद्र ‘ के नेतृत्व में किसान आंदोलन ( 1920 ई . ) हुआ । बाबा राम चंद ने 1920 ई . में अवध किसान सभा की स्थापना की । अवध किसान सभा को जवाहर लाल नेहरू , गौरीशंकर मिश्र तथा केदारनाथ जैसे राष्ट्रवादियों का समर्थन मिला । पंजाब में कृषि से संबंधित समस्याओं खलाफ जवाहर मल एवं बाबा राम सिंह के नेतृत्व में कूका आंदोलन ( 1872 ई . ) हुआ । ऊँची लगान एवं चौकीदारी कर के विरूद्ध झारखंड में ‘ जतरा भगत ‘ के नेतृत्व में ताना भगत आंदोलन ( 1914 ई . ) हुआ । ऊँची भूमि – कर के विरोध में ‘ कंपा राम सिंह एवं भुवन सिंह ‘ के नेतृत्व में तेभागा आंदोलन ( 1946 ई . ) हुआ । जमींदारों , साहुकारों एवं सूदखोरों के शोषण के विरूद्ध आंध्र प्रदेश के किसानों ने तेलंगाना आंदोलन ( 1946 ई . ) किया । अंग्रेजों के विशाल भारतीय साम्राज्य का प्रशासन 1757 ई . से 1857 ई . तक ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में रहा । 1857 ई . से 1947 ई . भारत में अंग्रेजी साम्राज्य प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश क्राउन के अधीन था । दोनों ही प्रशासन में भारत के प्रशासन के रूप में गवर्नर , गवर्नर जेनरल एवं वायरायों की नियुक्ति हुई । 1773 ई . के रेग्यूलेटिंग ऐक्ट के अनुसार बंगाल का गवर्नर , बंगाल का गवर्नर जेनरल हो गया । रेग्यूलेटिंग ऐक्ट , 1773 के तहत मद्रास एवं बंबई गवर्नर को ‘ बंगाल के गवर्नर जेनरल ‘ के अधीन कर दिया गया । 1774 ई ० में वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का प्रथम गवर्नर जेनरल बनाया गया ।
1833 ई ० में चार्टर एक्ट के प्रावधानों के अनुसार बंगाल के गवर्नर जेनरल को भारत का गवर्नर जेनरल बनाया गया । लार्ड विलियम बेंटिक भारत का प्रथम गवर्नर जेनरल बना । अधिनियम 1858 के द्वारा गवर्नर जनरल को वायसराय की उपाधि दी गई । भारत का प्रथम वायसराय लार्ड कैनिंग था , वह भारत का अन्तिम गवर्नर जेनरल भी था । 1750 ई . में बारेन हेस्टिंग्स ( 1772-85 ई . ) ईस्ट इंडिया कंपनी के क्लर्क के रूप में कलकता पहुंचा । अपनी कार्यकुशलता से वारेन हेस्टिंग्स कासिम बाजार का अधीक्षक बन गया । वारेन हेस्टिंग्स 1772 ई . में बंगाल का गवर्नर तथ 1773 ई . ‘ बंगाल का गवर्नर जेनरल ‘ बना ।
वारेन हेस्टिंग्स के काल में पिटस इण्डिया एक्ट , रोहिला युद्ध , रोहिल खण्ड पर अधिकार , प्रथम मराठा युद्ध , सलवाई की सन्धि तथा द्वितीय मैसूर युद्ध इत्यादि हुए ।
. . 1772 ई ० में वारेन हेस्टिंग्स ने क्लाइव द्वारा लागू की गई द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त कर दिया ।
वारेन हेस्टिंग्स ने 1772 ई . में प्रत्येक जिले में दीवानी एवं एक फौजदारी न्यायालय की स्थापना की । वारेन हेस्टिंग्स ने 1781 में भारत में प्रथम मदरसा , कलकत्ता मदरसा की स्थापना की । वारेन हेस्टिंग्स के शासनकाल में 1782 ई ० में जोनाथन डंकन ने बनारस में एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की । 1776 ई ० में वारेन हेस्टिंग्स के शासनकाल में Code of Gentoo Laws नामक पुस्तक का संस्कृत अनुवाद प्रकाशित हुआ । 1781 ई ० में वारेन हेस्टिंग्स के काल में विलियम जोंस तथा कोलबुक की Digest of Hindu Laws का प्रकाशन हुआ । 1784 ई ० में हेस्टिंग्स के काल में सर विलियम जोंस द्वारा कलकत्ता में . Royal Asiatic society की स्थापना की गई । वारेन हेस्टिंग्स ने चार्ल्स विलिकिंस द्वारा किये गए गीता के प्रथम अंग्रेजी अनुवाद की प्रस्तावना लिखी । चार्ल्स विलिकिंस ने फारसी तथा बांग्ला मुद्रण के लिए ढलाई के अक्षरों का आविष्कार किया । वारेन हेस्टिंग्स के कार्यकाल में 1778 ई ० में हॉलहेड ने ‘ संस्कृत . व्याकरण ‘ प्रकाशित किया । वारेन हेस्टिंग्स ने फतवा – ए – आलमगीरी नामक ग्रन्थ का अनुवाद करवाने का प्रयास किया । 1781 ई ० में वारेन हेस्टिंग्स के कार्यकाल में विलियम जोंस एवं कोलबुक • ने Digest of Hindu Laws प्रकाशित की । वारेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता में एक टकसाल का निर्माण कराया । हेस्टिंग्स ने मुगल सम्राट को मिलने वाली 26 लाख रुपये की वार्षिक पेंशन बन्द कर दी एवं इलाहाबाद तथा ‘ कड़ा ‘ जिले अवध के नवाब को सौंप दिये । वारेन हेस्टिंग्स के काल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को नमक के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त हुआ । 1784 ई . में वारेन हेस्टिंग्स के कार्यकाल में बंगाल में अरेबिक सोसायटी . की स्थापना की गई । वारेन हेस्टिंग्स ने इण्डिया क्ट ( 1784 ई . ) के विरोध में त्यागपत्र दे दिया एवं फरवरी 1785 में वह इंग्लैण्ड चला गया । वारेन हेस्टिंग्स जब 1785 ई ० में वापस इंग्लैण्ड लौटा तो उस पर ब्रिटिश संसद में महाभियोग चलाया गया । अभियोग लगाने वालों में फॉक्स एवं बर्क प्रमुख वक्ता थे ।
1795 ई ० में हेस्टिंग्स को महाभियोग के सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया । वारेन हेस्टिंग्स के समय में प्रथम एवं द्वितीय आंग्ल – मराठा युद्ध लड़े गए । 1786 ई ० में कम्पनी ने लार्ड कार्नवालिस ( 178-98 ई . ) को पिट्स . इण्डिया एक्ट के अन्तर्गत गवर्नर जनरल बनाकर भारत भेजा । लार्ड कार्नवालिस ने न्याय प्रशासन में सुधार के लिए ‘ कार्नवालिस कोड ‘ का निर्माण करवाया । ‘ कॉर्नवालिस कोड ‘ के अन्तर्गत राजस्व प्रशासन को न्याय प्रशासन से . अलग कर दिया गया ।
लार्ड कार्नवालिस को सिविल ( नागरिक ) सेना का जन्मदाता माना जाता .
कैनिंग ने इंडियन हाईकोर्ट एक्ट के अन्तर्गत बंबई , कलकत्ता तथा मद्रास में एक – एक उच्च न्यायालय की स्थापना की । कैंनिग के शासनकाल में शिक्षा विभाग खोला गया । कैनिंग के काल में 1857 में कलकत्ता , बंबई और मद्रास विश्वविद्यालय की स्थापना हुई । कैनिंग के शासनकाल में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम -1856 पारित हुआ । मैकॉले द्वारा प्रस्तावित भारतीय दंड सहिता -1858 ( Indian penal code ) को कानून बना दिया गया । कैनिंग के शासनकाल में 1861 ई . में एक भयंकर अकाल पड़ा । 1859-60 ई ० में नील उगाने वाले यूरोपीय और बंगाल के कृषकों के बीच झगड़े हुए । लॉर्ड कैनिंग के समय व्यपगत सिद्धान्त ( Doctrine of Lapase ) यानी राज्य – विलय की नीति को समाप्त कर दिया गया । कैनिंग के बाद 1862 ई . में वायसराय बनें लॉर्ड एल्गिन ( 1862-63 ई . ) बहावी आन्दोलन का दमन किया । लॉर्ड एल्गिन के उपरान्त लार्ड जॉन लॉरेंस ( 1864-63 ई . ) ने भारत का वायसराय बना । लारेंस ने चेम्बवेल हेनरी की अध्यक्षता में एक अकाल आयोग का गठन किया । भारतीय जनपद सेवा में भर्ती होने वाले प्रथम भारतीय सत्येन्द्र नाथ टैगोर थे । सत्येन्द्र नाथ टैगोर की भारतीय जनपद सेवा में भर्ती लॉर्ड लॉरस के शासनकाल में 1864 ई . में हुई । लारेंस ने 1865 ई . में भारत तथा यूरोप के बीच प्रथम समुदी टेलीग्राफ सेवा की शुरूआत की । लॉरेंस ने अफगानिस्तान के सम्बन्ध में अहस्तक्षेप की नीति अपनाई , जिसे शानदार निष्क्रियता के नाम से जाना जाता है । लॉरेंस के बाद लॉर्ड मेयो ( 1869-72 ई . ) भारत का वायसराय बना ।
लॉर्ड मेयो ने अजमेर में मेयो कॉलेज की स्थापना की । 1872 ई ० में मेयो के शासनकाल में पहली बार भारत में प्रायोगिक जनगणना कराई गई । 1872 ई ० में एक अफगान ने अंडमान में मेयो की चाकू मारकर हत्या कर दी । पंजाब का प्रसिद्ध ‘ कूका आंदोलन ‘ लॉर्ड नॉर्थब्रुक ( 1872-76 ई . ) के शासनकाल में हुआ । नार्थब्रुक के शासनकाल में स्वेज नहर के खुल जाने से भारत – ब्रिटेन व्यापार में भारी वृद्धि हुई । सर रिचर्ड स्ट्रेची के अध्यक्षता में अकाल आयोग का गठन लॉर्ड लिटन ( 1876-80 ई . ) ने किया । भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए 1878 में वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम लॉर्ड लिटन ने पारित किया । लिटन ने भारतीयों को सिविल सर्विस में प्रवेश से रोकने के उद्देश्य से परीक्षा की आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दिया । ब्रिटिश संसद ने लिटन के शासनकाल में राज उपाधि अधिनियम ( Royal Tities Act ) -1876 पारित किया । लिटन के काल में ‘ भारतीय शस्त्र अधिनियम ‘ 1878 ई . में पारित किया गया । लॉर्ड रिपन ( 1880-84 ई . ) ने भारत में स्थानीय स्वशासन की शुरूआत रिपन ने समाचारपत्रों की स्वतन्त्रता को बहाल करते हुए 1882 ई . में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को समाप्त कर दिया । लिटन सिविल सेवा में प्रवेश की आयु को 19 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष कर दिया । लार्ड रिपन ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के उद्देश्य से विलियम हण्टर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया ।
रिपन के शासनकाल में 1881 ई . में सर्वप्रथम भारत में प्रथम नियमित जनगणना करवायी गई ।
रिपन द्वारा ही 1881 ई . में पहला कारखाना अधिनियम ( First Factory Act ) लागू किया गया ।
रिपन के समय में इलबर्ट विधेयक लाया गया , यह विधेयक फौजदारी दण्ड व्यवस्था से संबंधित था ।
इलबर्द बिल विवाद
. पूर्व में यूरोपीयों के मुकदमों की सुनवाई भारतीय न्यायाधीशों द्वारा नहीं होती थी । . इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए रिपन के एक काउंसिल के सदस्य सी ० पी ० इलबर्ट ने एक बिल प्रस्तुत किया , जिस पर अंग्रेजों ने विद्रोह कर दिया इसे श्वेत विद्रोह ( White revolt ) कहा गया । . परिणामस्वरूप इल्बर्ट बिल वापस लेना पड़ा । लार्ड रिपन को भारतीय गवर्नर जनरल या वायसरायों में सबसे उदार था , अतः फ्लोरेंस नाइटिंगल ने रिपन को भारत के उद्धारक को संज्ञा दी । लार्ड रिपन के बाद 1884 ई . में लार्ड डफरिन ( 1884-88 ई ० ) गवर्नर जेनरल बना । लार्ड डफरिन के काल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 ई . में ए ० ओ ० ह्यूम के प्रयासों से हुई । डफरिन के समय बंगाल टेनेन्सी एक्ट , पंजाब टेनेन्सी एक्ट , अवध टेनेन्सी एक्ट पारित हुआ । 1888 ई ० में लॉर्ड लैन्सडाउन ( 1888-94 ई ० ) भारत का वायसराय बना ।
लॉर्ड लैन्सडाउन ने भारत और अफगानिस्तान के बीच सुनिश्चित कराया । ” भारत को तलवार के बल पर विजित किया गया है और तलवार के बल पर ही इसकी रक्षा की जाएगी ” यह वक्तव्य ‘ लार्ड एल्गिन- II ‘ ( 1894-99 ई . ) ने दिया था । एल्गिन- II के बाद लॉर्ड कर्जन ( 1889-1905 ई . ) भारत का वायसराय बना । Hai लॉर्ड कर्जन पुलिस सुधार के लिये 1902 में ‘ सर एण्ड्यू फ्रेजर ‘ की अध्यक्षता में एक पुलिस आयोग की स्थापना की । लॉर्ड कर्जन ने 1904 ई . में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पास किया गया । कर्जन के कार्यकाल में सैन्य अफसरों के प्रशिक्षण के लिए इंग्लैण्ड के किम्बरले कॉलेज की तर्ज पर क्वेटा में एक कॉलेज खोला गया । लॉर्ड कर्जन ने 1899 ई . के कलकत्ता कॉरपोरशन ऐक्ट पारित किया । कलकत्ता कॉर्प ० ऐक्ट के तहत निगम में चुने हुए सदस्यों की संख्या कम एवं अंग्रेजों की संख्या अधिक कर दी गई । लार्ड कर्जन द्वारा भारत में पहली बार प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1901 पारित करवाया गया । लॉर्ड कर्जन ने 1905 ई ० में बंगाल का विभाजन किया । 1901 ई ० में विक्टोरिया मेमोरियल हॉल का निर्माण लॉर्ड कर्जन ने कलकत्ता में करवाया । लॉर्ड मिन्टो ( 1905-10 ई . ) के काल में बंगाल विभाजन विरोधी एवं स्वदेशी आन्दोलन ( 1906 ई ० ) तथा सूरत में काँग्रेस का विभाजन ( 1907 ई ० ) हुआ । माले मिन्टो सुधार ( 1909 ई ० ) अथवा भारतीय परिषद अधिनियम लॉर्ड मिन्टो के शासनकाल में लाया गया । मिटरों के काल में ढाका में सलीमुल्लाह , आगा खाँ एवं उनके साथियों द्वारा मुस्लिम लीग की स्थापना हुई । बंगाल विभाजन 1911 ई ० में लॉर्ड हार्डिंग- II ( 1910-15 ई . ) द्वारा समाप्त कर दिया गया । लाई हार्डिंग ने 1912 ई . में राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित किया । 23 दिसम्बर , 1912 को दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग पर बम से हमला किया गया ।
विश्वयुद्ध- लॉर्ड हार्डिंग -11 के कार्यकाल में आरम्भ हुआ ।
1916 ई . में लॉर्ड हार्डिंग- || को बनारस हिन्दू विश्वद्यिालय ( BHU ) का कुलाधिपति नियुक्त किया गया । 1919 का ‘ रॉलेट ऐक्ट ‘ लॉर्ड चेम्सफोर्ड ( 1916-21 ई . ) के कार्यकाल में वारित हुआ 13 अप्रैल , 1919 का जालियाँवाला बाग कांड , लॉर्ड चेक्सफोर्ड के शासनकाल में घटित हुआ । 1917 ई ० में शिक्षा पर ‘ सैडलर अयोग ‘ का गठन चेक्सफोर्ड के काल में किया गया । पुना में एक महिला विश्वविद्यालय की स्थापना 1916 ई . में चेक्सफोर्ड के काल में हुई । 1919 ई ० के भारत सरकार अधिनियम मांटेग्यू – चेम्सफोर्ड सुधार भी लॉर्ड चेम्सफोर्ड के काल में लाये गये । लॉर्ड रीडिंग ( 1921-26 ई . ) के काल में चौरी – चौरा घटना घटी ( 5 फरवरी 1922 ) और उसके कारण गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन । वापस लिया गया । र रीडिंग के कार्यकाल में प्रिंस ऑफ वेल्स ने नवम्बर 1921 ई ० में भारत की यात्रा की । . इसके शासनकाल में 1922 ई . में विश्व भारतीय विश्वविद्यालय ने कार्य करना प्रारम्भ किया । लॉर्ड रीडिंग के काल में रॉलेट एक्ट रद्द कर दिया गया । 1923 में भारतीय सिविल सेवा में इंग्लैंण्ड एवं भारत दोनों स्थानों पर एक 1 साथ परीक्षा की शुरूआत लॉर्ड रीडिंग के काल में की गई । 1925 ई . में प्रसिद्ध आर्यसमाजी राष्ट्रवादी स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या T लॉर्ड रीडिंग के काल में हुई । लॉर्ड इरविन ( 1926-31 ई . ) के काल में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरूआत हुई । 5 मार्च 1931 को गाँधी – इरविन समझौते के उपरान्त सविनय अवज्ञा आन्दोलन समाप्त कर दिया गया । लंदन में 1 सितम्बर से 1 दिसम्बर 1931 ई ० तक द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन लॉर्ड विलिंग्टन ( 1931-36 ई . ) के काल में हुआ । की लार्ड विलिंग्टन के समय ही अगस्त 1932 में मैकडोनाल्ड ने प्रसिद्ध सांप्रदायिक निर्णय की घोषणा की । या विलिंग्टन के शासनकाल में 1932 ई . में गोलमेज सम्मेलन -1 || का भी आयोजन हुआ । के विलिंग्टन के शासनकाल में गवर्मेंट ऑफ इण्डिया ऐक्ट -1935 पारित हुआ । । 1942 ई . में भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरूआत लॉर्ड लिनलिथगो के -म समय में हुई थी । लॉर्ड वेवेल ( 1944-47 ई . ) के समय 1945 ई . में शिमला समझौता हुआ । म लार्ड वेवेल के समय ही भारत को जून 1948 के पहले स्वतन्त्र करने की घोषणा तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री लॉर्ड क्लीमेन्ट एटली ने की । लॉर्ड माउन्टबेटन ( मार्च , 1947 – जून , 1948 ) के समय में 4 जून 1947 को भारतीय स्वतन्त्रता विधेयक एटली द्वारा ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत किया गया । ने लार्ड माउन्टबेटन के समय में ही भारत स्वतन्त्र हुआ तथा भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान का निर्माण हुआ । एवं स्वतन्त्र भारत का प्रथम एवं अन्तिम विदेशी / ब्रिटिश गवर्नर जेनरल लार्ड नन माउन्टबेटन था । परतन्त्र भारत का अन्तिम वायसराय लार्ड माउन्टबेटन था । ॉर्ड स्वतन्त्र भारत के प्रथम एवं अन्तिम भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी हुए ।
. . राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा गया है ।
1828 ई ० में राजा राममोहन राय ने ‘ ब्रह्म समाज ‘ की स्थापना की । ब्रह्म समाज ने मूर्ति पूजा तथा बलि प्रथा का विरोध किया । 1843 ई ० में देवेन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज का नेतृत्व सम्भाला । देवेन्द्र नाथ टैगोर ने केशवचन्द्र सेन ( 1834-84 ई ० ) को ब्रह्म समाज का आचार्य नियुक्त किया । केशव चन्द्र के अतिशय उदारवाद के कारण ब्रह्म समाज मूल ब्रह्म समाज ( डी ० एन ० टैगोर ) तथा आदि ब्रह्म समाज ( के ० सी ० सेन ) में विभाजित हो गया । बाद में केशव चन्द्र सेन ने ‘ आदि ब्रह्म समाज ‘ से अलग होकर साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना की । दक्कन क्षेत्र में ब्रह्म समाज की नीतियों के प्रसार के लिए गोपाल हरि देशमुख द्वारा 1849 ई ० में परमहंस सभा की स्थापना महाराष्ट्र में की गई । गोपाल हरि देशमुख को लोकहितवादी भी कहा जाता है । 1867 ई . में केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा पर बंबई में प्रार्थना समाज की स्थापना हुई । एम ० जी ० राणाडे , एन ० जी ० चन्द्रावरकर तथा आत्मा राम पांडुरंग प्रार्थना समाज के संस्थापक थे । प्रार्थना समाज ने दलित जाति मिशन ( Depressed class Mission ) तथा समाज सेवा संघ ( social service League ) की स्थापना की । महाराष्ट्र में वीडो रिमैरेज एसोसिएशन तथा दक्कन शिक्षा सभा ( Deccan Educational Society ) की स्थापना ‘ एम . जी . राणाडे द्वारा की गई । गोपालकृष्ण गोखले ( राणाडे के शिष्य ) ने भारत सेवक समाज ( Servants of India society ) की स्थापना की । . . . . |
आर्य समाज की स्थापना बंबई ( मुंबई ) में 1875 ई . में की गई । स्वामी दयानन्द सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक थे । स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म मौरवी ( काठियावाड़ , गुजरात ) में 1824 ई . में हुआ । दयानंद के बचपन का नाम मूल शंकर था , उनका निधन अजमेर में 1883 ई . में हुआ । स्वामी दयानन्द ने स्वामी विरजानन्द ( मथुरा ) से ‘ वेद ‘ एवं ‘ हिन्दू दर्शन ‘ की शिक्षा ग्रहण की । स्वामी दयानन्द ने अपना प्रथम उपदेश आगरा में दिया । स्वामी दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की । . स्वामी दयानन्द ने 1882 ई ० में गोरक्षिणी सभाओं की स्थापना की । स्वामी दयानन्द ने वेदों की ओर लौट चलो ( Go back to vedas ) का नारा दिया । स्वामी दयानन्द ने हिन्दू धर्म छोड़ चुके लोगों को वापस इस धर्म में लाने के लिए शुद्धि एवं समागम आन्दोलन चलाया । स्वामी दयानन्द का मानना था – बुरे – से – बुरा देशी राज , अच्छे – से – अच्छे . देश के विभिन्न भागों में विदेशी राज से बेहतर होता है । स्वामी दयानन्द ने स्वदेशी एवं राजनीतिक स्वतन्त्रता के परिप्रेक्ष्य में India for Indians का नारा दिया । शिक्षा के प्रसार के लिए 1886 ई ० में आर्य समाज द्वारा लाहौर में दयानन्द – द एंग्लो वैदिक ( DAV ) स्कूल की स्थापना की गई । भविष्य में सम्पूर्ण देश में DAV स्कूलों की श्रृंखला स्थापित हुई । दयानन्द एंग्लो वैदिक स्कूल DAV College में 1889 ई . में तब्दील हो गया । आर्य समाज ने मूर्ति – पूजा , बहुदेववाद , अवतारवाद , पशुबलि , श्राद्ध , झूठे कर्मकाण्ड आदि का विरोध किया ।
1902 ई ० में स्वामी श्रद्धानन्द ने ‘ हरिद्वार ‘ के समीप गुरूकुल कांगड़ी स्थापना की । रामकृष्ण परमहंस ( 1884-86 ई . ) के शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने 1897 ई . में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । रामकृष्ण मिशन की स्थापना वराह नगर ( कोलकाता ) में हुई तथा बाद में इसका मुख्यालय बेलूर मठ ( कोलकाता ) ले जाया गया । स्वामी विवेकानन्द का जन्म 1862 ई . में हुआ , इनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था । स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दू धर्म के पुनरूत्थान के उद्देश्य से ‘ रामकृष्ण मिशन ‘ की स्थापना की । रामकृष्ण मिशन ने निराकार ईश्वर की भक्ति एवं एकेश्वरवाद का प्रचार किया ।
स्वामी विवेकानन्द ने 1893 ई . में शिकागो ( अमेरिका ) में आयोजित .
अंग्रेजों की भू – राजस्व नीति
( British Land Revenue Policy )
अंग्रेजों ने भारत में तीन प्रकार की भू – राजस्व व्यवस्था विकसित की 1. स्थाई बंदोबस्त , 2. रैय्यबाड़ी , 3. महालबाड़ी । स्थायी बन्दोबस्त ( Permanent Settlement ) , समरत भारत की 19 % न्या भूमि पर लागू की गई । स्थाई बंदोबस्त व्यवस्था लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा 1793 ई ० में बंगाल , बिहार , उड़ीसा , बनारस एवं उत्तरी कर्नाटक में लागू की गई ।
राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन
भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रारम्भ 1885 ई ० में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना से हुआ । . 1836 ई ० में पहली राजनीतिक संस्था बंग प्रकाशक सभा की स्थापना की गई । 1838 ई ० में बंगाल के जमींदारों ने लैण्ड होल्डर्स सोसायटी की स्थापना की । 1843 ई ० में एक अन्य राजनीतिक सभा बंगाल ब्रिटिश इण्डिया सोसायटी बनी । 28 अक्टूबर , 1851 को ब्रिटिश इण्डिया एसोसिएशन कलकत्ता में बनाया गया । महादेव गोविन्द राणाडे ने 1870 ई ० में पूना में पूना सार्वजनिक सभा या- गठित की । . दादा भाई नौरोजी ने 1866 ई ० में लंदन में ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन की स्थापना की । 1859 ई ० में मद्रास नेटिव एसोसिएशन बनाई , जो यह कलकत्ता की ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की एक शाखा थी । 1884 ई ० में मद्रास महाजन सभा गठित की गई । . .
. . . . .
1875 ई ० में कलकत्ता में ‘ शिशिर कुमार घोष ‘ ने एक संस्था इंडियन लीग का गठन किया । 26 जुलाई , 1875 को ‘ इंडियन लीग ‘ का स्थान इंडियन एसोसिएशन ने इंडियन एसोसिएशन के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनन्द मोहन बोस थे । 1885 ई ० में फिरोजशाह मेहता , के ० टी ० तेलंग एवं बदरुद्दीन तैय्यबजी के प्रयासों से बंबई में एक अन्य संगठन बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन की स्थापना की । भारत का राष्ट्रीस आंदोलन तीन चरणों में हुआ ( 1885-1905 ई . ) , 2. द्वितीय चरण ( 1905-19 ई . ) , 3. तृतीय चरण 1. प्रथम चरण ( 1919-47 ई . ) भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रथम चरण की मुख्य घटना 1885 ई ० में ए.ओ. ह्यूम द्वारा भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना थी । कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर , 1885 ई ० को बम्बई स्थित To गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में हुआ था ।
कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमेशचन्द्र बनर्जी थे । उपर्युक्त अधिवेशन में 72 प्रतिनिधि शामिल हुए । काँग्रेस की स्थापना के समय लॉर्ड डफरीन भारत का वायसराय था । काँग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष 1887 ई ० में मद्रास में आयोजित ‘ तीसरे ‘ अधिवेशन में बदरुद्दीन तैय्यबजी हुए । काँग्रेस के प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष 1888 ई ० में इलाहाबाद के चौथे अधि वेशन जॉर्ज यूले बने । काँग्रेस के अध्यक्षों में गैर – भारतीयों की संख्या 6 थी , जिनमें विलियम वेडरबर्न को दो बार भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का अध्यक्ष बनने का श्रेय प्राप्त है । काँग्रेस का अध्यक्ष बनने वाली प्रथम महिला / गैर – भारतीय महिला होने का श्रेय एनी बेसेंट को 1917 ई ० में कलकत्ता में आयोजित ’33 वें ‘ अधि वेशन में मिला । काँग्रेस का अध्यक्ष बनने वाली प्रथम भारतीय महिला होने का श्रेय सरोजिनी नायडू को 1925 ई ० में कानपुर में आयोजित ’41 वें ‘ अधि वेशन में प्राप्त हुआ । भारतीय पुरुषों में सर्वाधिक 4 बार काँग्रेस का अध्यक्ष बनने का श्रेय पं ० जवाहर लाल नेहरू को प्राप्त है । राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने सिर्फ एक बार वेलगाँव में काँग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता की जो 1924 ई ० में आयोजित हुआ । देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ ० राजेन्द्र प्रसाद ने भी एक बार 1934 ई ० में बंबई में आयोजित ’49 वें ‘ अधिवेशन में काँग्रेस की अध्यक्षता की । काँग्रेस के इतिहास में दिसंबर1920 में नागपुर अधिवेशन सबसे बड़ा अधिवेशन था , इसमें 14582 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया ।
जिस वक्त भारत आजाद हुआ ( 15 अगस्त , 1947 को ) , उस वक्त काँग्रेस के अध्यक्ष आचार्य जे ० बी ० कृपलानी थे ।
प्रथम चरण ( 1885-1905 ई ० )
काँग्रेस की स्थापना के बाद अगले 20 वर्षों तक उसकी नीति अत्यन्त उदार थी । इसे बाद के उग्रपन्थी नेताओं ने राजनीतिक भिक्षावृत्ति ( Political Mendicancy ) ELI उदारवादियों में प्रमुख नेता थे – दादाभाई नौरोजी , सुरेन्द्रनाथ बनर्जी , फिरोजशाह मेहता , गोविन्द रानाडे , दीनशा वाचा , गोपालकृष्ण गोखले , मदनमोहन मालवीय आदि । उदारवादियों का उद्देश्य संवैधानिक तरीके से भारत को स्वतन्त्रता दिलाना था । उदारवादियों की मुख्य उपलब्धि अंग्रेजों द्वारा पारित 1892 का भारतीय परिषद् अधिनियम था ।
उदारवादियों के काल में काँग्रेस का व्यापक प्रसार हुआ और उसकी लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई । .
1889 ई ० में गठित काँग्रेस की ब्रिटिश समिति ने इण्डिया नामक एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया । काँग्रेस द्वारा प्रान्तीय परिषद् एवं इम्पीरियल काउंसिल में कुछ परिवर्तन करने के माँग के फलस्वरूप इण्डिया काउंसिल एक्ट -1892 ई ० पारित हुआ । . . . 18 फरवरी , 1905 को ‘ लंदन ‘ में एक भारतीय श्यामजी कृष्ण वर्मा ने इण्डिया हाउस की स्थापना की ।
द्वितीय चरण ( 1905 ई०-1919 ई ० )
द्वितीय चरण में काँग्रेस के भीतर एक नयी विचारधारा उग्रवाद का उदय हुआ । उग्रवादी विचारधारा के प्रमुख नेता थे – बाल गंगाधर तिलक , विपिन चन्द्र पाल , लाला लाजपत राय तथा अरविन्दो घोष । उग्रवादी नेताओं का मानना था कि भीख माँगने से कभी स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती , उसके लिए स्वाबलम्बन , संगठन और संघर्ष की आवश्यकता है । भारत में क्रान्तिकारी गतिविधियों का सूत्रपात 1897 ई ० में महाराष्ट्र में हुआ । बंगाल , पंजाब व महाराष्ट्र भारत में क्रांतिकारी आतंकवाद ( Revolutionary Terrorism ) के प्रमुख केन्द्र थे । 19 वीं शताब्दी के अन्त में बंगाल प्रान्त में असम , बिहार एवं उड़ीसा शामिल थे । लार्ड कर्जन ने 20 जुलाई , 1905 ई ० को बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा की । 16 अगस्त , 1905 ई ० को बंगाल – विभाजन का निर्णय प्रभावी हुआ । इसके तहत् बंगाल के मुस्लिम बहुल क्षेत्र को ‘ पूर्वी बंगाल ‘ एवं हिन्दू बहुल क्षेत्र को ‘ पश्चिमी बंगाल ‘ में विभाजित कर दिया पूर्वी बंगाल ( मुस्लिम बहुल ) का मुख्यालय ढाका को बनाया गया । पश्चिमी बंगाल का मुख्यालय पूर्व की भाँति कलकत्ता में ही रहा । काँग्रेस द्वारा 7 अगस्त , 1905 ई ० को कोलकत्ता के टाउन हॉल में बंग – भंग के विरोध में स्वदेशी आन्दोलन की घोषणा के साथ ‘ बहिष्कार प्रस्ताव पारित किया गया । 16 अक्टूबर 1905 को पूरे बंगाल में शोक दिवस मनाया गया । स्वदेशी आन्दोलन के दौरान ही रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने प्रसिद्ध गीत अमार सोनार बांगला की रचना की । रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित गीत अमार सोनार बांगला को अपनी स्वतन्त्रता ( 1971 ई ० ) के उपरान्त बंग्लादेश ने राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया । स्वदेशी आन्दोलन के दौरान हिन्दू – मुस्लिम ने एक दूसरे की कलाइयों पर राखियाँ बाँधी । इस आन्दोलन में स्वदेशी यानी देशी वस्तुओं का उपयोग तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया । स्वदेशी आन्दोलन के प्रमुख नेता तिलक , अजीत सिंह , लाला लाजपत राय , विपिन चन्द्र पाल , अरविन्दो घोष , लियाकत हुसैन , दादा भाई नौरोजी इत्यादि थे ।
काँग्रेस के उदारवादी नेताओं के आशिक दबाव के परिणामस्वरूप 1892 ई ० का भारतीय परिषद् अधिनियम पारित हुआ । उपर्युक्त अधिनियम द्वारा स्थानीय निर्वाचित निकायों को कुछ अधिकार प्रदान किए गए थे ।
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने कलकत्ता से बंगाली नामक पत्रिका का सम्पादन किया ।
. . 1906 ई ० में कलकत्ता में हुए काँग्रेस में दादाभाई नौरोजी ने पहली बार ऑस्ट्रेलिया एवं कनाडा के उपनिवेशों की तर्ज पर स्वराज की माँग प्रस्तुत की । 1882 ई ० में दयानन्द सरस्वती ने गोरक्षिणी सभाओं का गठन किया , तब से 1895 ई ० तक पश्चिम भारत में अनेक दंगे हुए । काँग्रेस के कई सदस्य गोरक्षिणी सभाओं के सदस्य थे जिनको अनुशासित करने में काँग्रेस विफल रही तथा काँग्रेस की धर्मनिरपेक्ष छवि को धक्का पहुँचा । 30 दिसम्बर 1906 ई ० को ढाका में नवाब सलीमुल्ला के नेतृत्व में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई । मुस्लिम लीग के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता वकार – उल – मुल्क ने की । 1908 ई ० में मुस्लिम लीग का पहला स्थाई अध्यक्ष आगा खाँ को बनाया गया । 1907 ई ० के काँग्रेस के सूरत अधिवेशन ( 1907 ई . ) में काँग्रेस उदारवादी एवं उग्रवादी दो गुटों में विभाजित हो गई । उदारवादियों ( नरम दल ) का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले ने किया तथा उग्रवादियों ( गरम दल ) का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक ने किया । ‘ ऐनी बेसेंट ‘ ने इसे काँग्रेस के इतिहास में सबसे दुख – दायो घटना बताया । तत्कालीन वायसराय ‘ लॉर्ड मिन्टो ‘ तथा ‘ मॉर्ले ‘ ने उदारवादियों को पुचकारने एवं हिन्दू – मुस्लिम सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न करने के उद्देश्य से इण्डिया काउंसिल एक्ट -1909 पारित कराया ।
1909 ई ० से पहली बार साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली ( Communal Electorate ) आरम्भ हुई तथा मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र एवं प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई । ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम तथा मेरी के स्वागत के लिए 1911 ई ० में . दिल्ली दरबार का आयोजन वायसराय लार्ड हार्डिंग द्वारा किया गया । दिल्ली दरबार में ही लार्ड हार्डिंग ने बंगाल विभाजन को रद्द करते हुए एक नवीन प्रान्त बिहार के गठन की घोषणा की जिसमें बिहार एवं उड़ीसा शामिल थे । बिहार पूर्ण रूपेण 1912 ई ० में ही अस्तित्व में आ पाया । बांग्ला भाषियों के लिए दोनों बंगालों को मिलाकर एक बंगाल प्रान्त अस्तित्व में आया । दिल्ली दरबार में लार्ड हार्डिंग ने भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाने की घोषणा की । • हिन्दू महासभा की स्थापना 9 अप्रैल , 1915 ई ० को मदन मोहन मालवीय ने हरिद्वार में की । • हिन्दू महासभा में बी.एस. मुंजे एवं लाला लाजपतराय जैसे राष्ट्रवादी नेता थे । • हिन्दू महासभा ने अखण्ड भारत का नारा दिया । 1915 ई ० में मुहम्मद अली जिन्ना के प्रयास से बम्बई में काँग्रेस और मुस्लिम लीग के अधिवेशन साथ – साथ हुए । कांग्रेस एवं लीग पारस्परिक सहयोग द्वारा अंग्रेजी सरकार पर दबाव बनाने की नीति अपनाने पर सहमत हुए । 1916 ई . में हुए उपर्युक्त काँग्रेस – लीग समझौते को लखनऊ समझौता . कहा गया । 1916 ई ० के लखनऊ अधिवेशन में बाल गंगाधर तिलक के प्रयासों से कांग्रेस के दोनों दल एक हो गये । लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता अंबिकाचरण मजूमदार ने किया । लखनऊ अधिवेशन ( 1916 ई . ) में काँग्रेस ने पहली बार साम्प्रदायिक निर्वाचन को स्वीकार किया । अब काँग्रेस एवं मुस्लिम लीग के बीच अगले 3-4 वर्षों के लिए एकता स्थापित हो गई । 28 अप्रैल 1916 ई ० को बाल गंगाधर तिलक ने पूना में इण्डियन होमरूल लीग की स्थापना की । सितम्बर 1916 ई ० में एनी बेसेंट ने मद्रास में होमरूल लीग की स्थापना की ।
एनी बेसेंट की होमरूल लीग से जुड़ने वाले राष्ट्रवादियों में मोतीलाल नेहरू , जवाहरलाल नेहरू , खलीकुज्जमा , तेज बहादुर सपु , सी ० वाई .
चिंतामणि , सी ० पी ० रामास्वामी अय्यर सुब्रह्मण्यम अय्यर हसन इमाम एवं मजहरूल हक आदि प्रमुख थे । एनी बेसेंट ने 1914 में कॉमन वील नामक पत्रिका तथा न्यू इण्डिया नामक दैनिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया और इसके माध्यम से आन्दोलन छेड़ दिया जिसका समर्थन बाल गंगाधर तिलक ने भी किया । तिलक ने मराठा एवं केसरी तथा एनी बेसेंट ने अपने पत्रों कॉमनवील , न्यू इण्डिया तथा यंग इण्डिया ( बंबई ) के माध्यम से होमरूल का व्यापक प्रचार किया । होमरूल आन्दोलन भारत में संवैधानिक तरीके से स्वशासन की माँग को लेकर चलाया गया था ।
एनी बेसेंट ने 20 अगस्त 1917 को होमरूल लीग समाप्त कर दिया । क्रान्तिकारी आतंकवादी आन्दोलन का आरम्भ 1897 ई ० से हुआ जब चापेकर बन्धुओं ने दो ब्रिटिश अधिकारी की हत्या कर दी । बारीन्द्र कुमार बोष द्वारा 1907 ई . में स्थापित बंगाल की अनुशीलन समिति पहली क्रान्तिकारी संस्था थी । बारीन्द घोष ने ‘ भवानी मन्दिर ‘ नामक पुस्तक की रचना की , जिसमें क्रान्तिकारी संस्थाओं की स्थापना से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त होती है । खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने 1908 ई ० में मुजफ्फरपुर में जॉन किंग्सफोर्ड की हत्या करने के लिए बम फेंका । इसके उपरान्त गिरफ्तारी से बचने के लिए प्रफुल्ल ने खुद को गोली मार लिया । खुदीराम को गिरफ्तार कर फाँसी दे दिया गया । महाराष्ट्र के क्रान्तिकारी विनायक दामोदर सावरकर ने 1904 ई ० में अभिनव भारत नामक गुप्त क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की । क्रान्तिकारी आतंकवादी विचारधारा के प्रचार में बंगाल का समाचार – पत्र संध्या तथा युगांतर और महाराष्ट्र के समाचार – पत्र काल की भूमिका भी महत्वपूर्ण थी । महाराष्ट्र में क्रान्तिकारी आन्दोलन उभारने का श्रेय तिलक के पत्र केसरी को भी जाता है । सचिन्द्रनाथ सन्याल ने क्रान्तिकारी आन्दोलन पर बन्दी जीवन नामक पुस्तक लिखी । 1895 ई . में दामोदर चापेकर एवं बालकृष्ण चापेकर ( दोनों भाई थे ) ने हिन्दू धर्म संरक्षिणी सभा का गठन किया । 1895 ई ० में पूना के प्लेग कमिश्नर रैण्ड एवं आयरेस्ट की हत्या कर दी गई । 1912 ई ० में रास बिहारी बोस और सचिन्द्र सन्याल ने वायसराय लार्ड हार्डिज की हत्या करने के लिए बम फेंका , लेकिन वह बच गया । लॉर्ड हार्डिज पर बम फेंकने के अपराध में जो मुकदमा चला उसे दिल्ली षड्यन्त्र केस कहा गया । विनायक दामोदर सावरकर ने THE INDIAN WAR OF 1 INDEPENDENCE नामक पुस्तक लिखी जिसको अंग्रेजी सरकार ने प्रकाशन से पूर्व ही जब्त कर लिया । अंग्रेजी सरकार ने वी ० डी ० सावरकर को कालापानी की सजा देकर अण्डमान भेज दिया । 21 दिसम्बर , 1909 ई ० को अभिनव भारत संगठन के अनन्त कन्हेरे ने गणेश सावरकर पर राजद्रोह लगाये जाने के विरोध में जैक्सन की हत्या कर दी , कन्हेरे पर नासिक षड्यन्त्र केस चलाया गया । । जुलाई 1909 को ‘ अमृतसर से लंदन गये मदन लाल ढींगरा ने कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी । 1910 ई ० में हावड़ा षड्यन्त्र केस में जतीन मुखर्जी मुख्य अभियुक्त थे । 1912 ई . में दिल्ली षड्यन्त्र केस में मास्टर अमीन चन्द्र ( 1915 ई ० ) , अवध बिहारी ( 1915 ई ० ) एवं बालमुकुन्द को फाँसी की सजा दी गई । 1910 ई ० में ढाका षड्यन्त्र केस में पुलिनदास को 7 वर्षों की सजा दी गई । अलीपुर या मनिकतल्ला षड्यन्त्र केस ( 1908 ई ० ) अरविन्द घोष सहित कई व्यक्तियों पर चलाया गया ।
लाला हरदयाल ( 1884-1938 ई ० ) ने अमेरिका में 1913 ई ० में एक क्रान्तिकारी संगठन गदर पार्टी की स्थापना की ।
सोहन सिंह भाखना ‘ को गदर पार्टी का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया । 1914 ई ० में कोमगाटामारू की घटना घटी । बजबज में यात्रियों और पुलिस के बीच खूनी संघर्ष हुआ , जिसमें 18 व्यक्ति मारे गये एवं 25 घायल हुए । 1926 ई ० में भगत सिंह ने नौजवान सभा ( पंजाब ) की स्थापना की । भगत सिंह , चन्द्रशेखर आजाद , शचीन्द्रनाथ सान्याल , जोगेश चन्द्र चटर्जी एवं राम प्रसाद बिस्मिल ने 1928 ई ० में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की । अगस्त , 1925 ई ० को ‘ काकोरी काण्ड ‘ हुआ , जिसमें रामप्रसाद बिस्मल , राजेन्द्र लाहिड़ी , अशफाकउल्ला खाँ को फाँसी एवं शचीन्द्र बख्शी को आजीवन कारावास की सजा मिली । 30 अक्टूबर 1928 ई ० को लाहौर में साइमन आयोग के विरूद्ध प्रदर्शन करते समय पुलिस की लाठी से लाला लाजपत राय घायल हो गए और . बाद में उनकी मृत्यु हो गयी । हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने ‘ लाला लाजपत राय ‘ की मौत को राष्ट्रीय अपमान मानते हुए 17 दिसम्बर , 1928 ई ० को ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या कर दी । पब्लिक सेफ्टी बिल पास होने के विरोध में 8 अप्रैल 1929 ई ० को बटुकेश्वर दत्त एवं भगत सिंह ने सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में खाली बेंचों पर बम फेंका । 23 मार्च 1931 ई ० को सुखदेव , भगत सिंह एवं राजगुरू को फाँसी पर लटका दिया गया ।
27 फरवरी , 1931 को चन्द्रशेखर आजाद की एक ब्रिटिश अधिकारी नॉट बाबर के साथ इलाहाबाद के अल्फेड पार्क में हुई मुठभेड़ में मृत्यु हो गई । 18 अप्रैल 1930 ई ० को क्रान्तिकारियों ने सूर्यसेन के नेतृत्व में चटगाँव शस्त्रागार को लूट लिया । सूर्यसेन को फाँसी की सजा दी गई । 1916 ई . में अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना से भारतीय राजनीति में महात्मा गाँधी का प्रवेश हुआ । चंपारण सत्याग्रह ( 1917 ई . ) , खेड़ा सत्याग्रह ( 1918 ई . ) , अहमदाबाद मिल सत्याग्रह ( 1918 ई . ) , तथा रॉलेट सत्याग्रह ( 1919 ई . ) आदि महात्मा गाँधी के आरंभिक प्रयोग थे । 1917 ई ० में चम्पारण आन्दोलन हुआ । चंपारण आन्दोलन नील की खेती और उससे सम्बन्धित तीन कठिया पद्धति के कारण हुआ । चम्पारण में यूरोपीय बगान मालिक किसानों से जबरन नील की खेती करवाते थे तथा उसका 3/20 वाँ हिस्सा अधिशेष के रूप में वसूलते थे । चम्पारण के किसान नेता राज कुमार शुक्ल के आग्रह पर महात्मा गाँधी चम्पारण गये ।
महात्मा गाँधी ( एक नजर में )
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर , 1869 ई ० में गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था । इनका विवाह 13 वर्ष की अवस्था में कस्तूरबा के साथ हुआ । उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए ये लंदन गये । वहाँ से इन्होंने बैरिस्ट्री की परीक्षा पास की । 1893 ई ० में एक मुकदमें के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए । दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष किया । 1915 ई ० में गाँधीजी वापस भारत आये । 1916 ई ० में उन्होंने साबरमती आश्रम की स्थापना की । 1919 ई ० में ये राजनीति में प्रवेश किए । महात्मा गाँधी ने यंग इंडिया , नवजीवन , हरिजन आदि पत्र – पत्रिकाओं का प्रकाशन किया । गाँधीजी ने हिन्द स्वराज नामक पुस्तक की रचना की । . II – 60 .
1914-19 ई ० में प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन करने को वजह से उन्हें कैसर – ए – हिन्द उपाधि से सम्मानित किया गया था । गाँधीजी ने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बनाया । ग्राम उद्योग संघ , तालीमी संघ एवं गो – रक्षा संघ आदि संगठन गाँधीजी से सम्बन्धित थे । उन्होंने अछूतों को हरिजन की संज्ञा दी तथा उन्हें शेष हिन्दुओं से बराबरी दिलाने के उदेश्य से ‘ मन्दिर प्रवेश कार्यक्रम ‘ चलाया । • गाँधीजी के नेतृत्व में 1919 ई ० से 1947 ई ० तक जो स्वतन्त्रता संग्राम लड़ा गया । उसमें सत्य , अहिन्सा एवं सर्वोदय उनके हथियार थे । महात्मा गाँधी ने चंपारण सत्याग्रह ( 1917 ई . ) किया जिसमें ब्रज किशोर प्रसाद , राजेन्द्र प्रसाद , महादेव देसाई , नरहरिक पारिख , जे ० बी ० कृपलानी ने उनका साथ दिया । विवश होकर ब्रिटिश सरकार को एक कमीशन बैठाना पड़ा और चम्पारण अधिनियम पारित हुआ , यह गाँधी जी की एक बड़ी जीत थी । चम्पारण सत्याग्रह के समय ही रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘ गाँधीजी ‘ को महात्मा की संज्ञा दी । 1918 ई ० में गुजरात के खेड़ा नामक स्थान पर किसानों ने फसल खराब होने के कारण लगान देने से इंकार कर दिया । गाँधी जी ने यहाँ भी किसानों को नेतृत्व प्रदान किया तथा सत्याग्रह किया । खेड़ा आन्दोलन को सरदार वल्लभ भाई पटेल का भरपूर सहयोग मिला । खेड़ा सत्याग्रह को भारत में गाँधीजी द्वारा चलाया जाने वाला पहला वास्तविक किसान सत्याग्रह कहा गया । 1918 ई ० में अहमदाबाद के कपड़ा मिल में वेतन – वृद्धि के सवाल पर मिल मालिकों एवं मजदूरों में झगड़ा हो गया । गाँधीजी ने 35 % तक की मजदूरों के वेतन में बढ़ोत्तरी की माँग की परन्तु सरकार ने अस्वीकार कर दिया । अहमदाबाद मिल मजदूरों ने गाँधीजी के नेतृत्व में हड़ताल की तथा सफलता पायी । ‘ सर रॉलेट ‘ की अनुशंसा पर 18 मार्च , 1919 को ‘ आतंकवादी अपराध अधिनियम ( TCA ) ‘ पारित किया गया । उपर्युक्त अधिनियम को रॉलेट अधिनियम ( Rowlat Act ) भी कहते हैं । रॉलेट अधिनियम के तहत राजद्रोहात्मक कार्यों का संदेह मात्र हो जाने पर ही किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए दो वर्षों के लिए कैद किया जा सकता था । इसे ‘ बिना अपील , बिना वकील तथा बिना दलील ‘ वाला काला कानून कहा गया । रॉलेट एक्ट के विरोध के लिए गाँधीजी ने 6 अप्रैल 1919 को देश – भर में हड़ताल का आह्वान किया । भारतीय जनमानस हड़ताल ( strike ) शब्द से पहली बार परिचित हुआ ।
तृतीय चरण ( 1919-47 ई ० )
इस चरण में राष्ट्रीय आन्दोलन को ‘ बाल गंगाधर तिलक ‘ के निधन ( 1920 ई ० ) से महान क्षति पहुँची । तृतीय चरण में देश को महात्मा गाँधी जैसा महान नेता मिला जिनके नेतृत्व में 1947 ई ० में आजादी हासिल हुई । अत : तृतीय चरण को गाँधीवादी राष्ट्रीयता का युग भीकहा जाता है । रॉलेट ऐक्ट के विरोध में पंजाब में जगह – जगह पर जनसभाएँ आयोजित की जा रही थी । 9 अप्रैल , 1919 ई ० को अंग्रेजी सरकार ने अमृतसर के लोकप्रिय नेताओं डॉ . सत्यपाल एवं डॉ ० किचलू को पंजाब से निष्कासित कर दिया । 13 अप्रैल , 1919 को लोकप्रिय नेताओं के निष्कासन के विरोध में अमृतसर के ‘ जालियाँवाला बाग ‘ में भारी भीड़ जमा हुई ।
13 अप्रैल , 1919 को ही ‘ जेनरल डायर ‘ में जालियाँवाला बाग कांड को अंजाम दिया । जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी नाइट हुड की उपाधि वापस कर दी तथा जमनालाल बजाज ने राय बहादुर की उपाधि लौटा दी । महात्मा गाँधी ने जालियाँवाला बाग घटना के विरोध में कैसर – ए – हिन्द की उपाधि वापस कर दी । वायसराय की कार्यकारिणी के भारतीय सदस्य शंकरन नायर ने जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध स्वरूप इस्तीफा दे दिया । जालियाँवाला बाग कांड की जाँच करने वाले हण्टर आयोग की रिर्पोट में जेनरल डायर के कृत्य को वैध ठहराया गया । प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा टर्की विभाजन के विचार के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा खिलाफत आन्दोलन ( 1919-22 ई . ) शुरू किया गया । खिलाफत आन्दोलन का नेतृत्व मुहम्मद अली एवं शौकत अली ने किया । मौलाना अबुल कलाम आजाद ने भी खिलाफत आन्दोलन को सक्रिय नेतृत्व प्रदान किया । मौलाना आजाद एवं मुहम्मद अली ने क्रमश : अपने पत्रों अल – हिलाल एवं द कॉमरेड के माध्यम से खिलाफत आन्दोलन का प्रचार किया । मुहम्मद अली एवं शौकत अली ने 1919 के आरम्भ में बम्बई में खिलाफत कमेटी बनाई । गाँधीजी ने खिलाफत आंदोलन को ‘ हिन्दू – मुस्लिम एकता ‘ के स्वर्णिम अवसर के रूप में देखा । 23 नवम्बर 1919 को अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का अधिवेशन Immm हुआ जिसकी अध्यक्षता गाँधीजी ने की । 17 अक्टूबर , 1919 को खिलाफत दिवस के रूप में मनाया गया । तुर्की के कमाल पाशा द्वारा खलीफा के पद को 1924 में समाप्त करने के उपरान्त खिलाफत आन्दोलन समाप्त हो गया । कोलाकाता में ‘ लाला जालपत राय ‘ की अध्यक्षता में 20 जून , 2104 को आयोजित अधिवेशन में गाँधी जी के ‘ असहयोग प्रस्ताव को पारित कर दिया गया । गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन 1 अगस्त , 1920 से शुरू हुआ । असहगोग आन्दोलन गाँधीजी के नेतृत्व में काँग्रेस का पहला जन – आन्दोलन था ।
असहयोग आन्दोलन में बहिष्कार कार्यक्रम के अन्र्तगत विदेशी माल का बहिष्कार तथा स्वदेशी माल के उपयोग पर जोड़ दिया गया । असहयोग आन्दोलन पश्चिमी भारत , बंगाल तथा उत्तरी भारत में पूर्ण से सफल रहा । गाँधीजी के आह्ववान पर तिलक स्वराज फण्ड की स्थापना की गई जिसमें एक करोड़ से अधिक रूपया जमा किया गया । इस आन्दोलन के अन्य कार्यक्रम के तहत् नवम्बर , 1921 ई ० को भारत दौरे पर आये प्रिन्स ऑफ वेल्स का बहिष्कार किया गया । सरकारी दमन के तहत अनेक नेता गिरफ्तार कर लिये गये तथा काँग्रेस एवं खिलाफत कमेटियों को गैर – कानूनी घोषित कर दिया गया । असहयोग आन्दोलन के दौरान सर्वप्रथम गिरफ्तार होने वाले नेता मुहम्मद अली थे । माम असहयोग आन्दोलन की शुरूआत के समय भारत का वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड था । लार्ड रीडिंग के वायसराय बनने के उपरान्त असहयोग आन्दोलन पर व्यापक रूप से दमन किया गया ।
5 फरवरी , 1922 ई ० को गोरखपुर जिले के चौरी – चौरा नामक स्थान पर कांग्रेस एवं खिलाफत कमेटी ने एक जुलूस निकाला । पुलिस के व्यवहार से क्रुद्ध होकर जुलूस ने पुलिस एवं थाने पर हमला कर दिया , बड़े पैमाने पर हिन्सा हुई एवं 22 पुलिसकर्मी मारे गये । चौरी – चौरा घटना से आहत हो कर गांधी जी ने 12 फरवरी , 1922 ई ० को असहयोग आन्दोलन का समाप्त कर दिया ।
. . . आन्दोलन समाप्त होते ही सरकार ने 10 मार्च , 1922 ई ० को गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया तथा असन्तोष भड़काने के अपराध में छ : वर्ष की कैद की सजा दी गई । भारत में पहली मजदूर हड़ताल 1877 ई ० में एप्रेस मिल में हुई । 1884 ई ० में भारत का पहला श्रमिक संघ बंबई में बंबई मिलहैंड एसोसिएशन के नाम से स्थापित किया गया , इसके अध्यक्ष एम ० एम ० लोखण्डे थे । 1919 ई ० में जेनेवा में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ( ILO ) की स्थापना हुई । भारत के पहले आधुनिक श्रमिक संघ मद्रास श्रमिक संघ की स्थापना बी ० पी ० वाडिया द्वारा किया गया । ‘ 1920 ई ० में ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस ( AITUC ) का गठन किया गया । AITUC के प्रथम अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे । 1926 ई ० में बी ० पी ० वाडिया के प्रयासों से ‘ ट्रेड यूनियन ऐक्ट ‘ पारित हुआ । 1929 ई ० में अंग्रेजी सरकार ने देश के प्रमुख मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया तथा उन पर मेरठ में ( Meerut Conspiracy Case ) मुकदमा चलाया । सुभाषचन्द्र बोस के प्रयासों से 1938 ई ० में हिन्द मजदूर सेवक संघ की स्थापना की गई । सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा 1947 ई ० में भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस ( INTUC ) की स्थापना की गई । समाजवादियों ने 1948 ई ० में हिन्द मजदूर सभा की स्थापना की । भारत का प्रथम क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियन ” लाल बापटा गिरनी कामगार यूनियन ” था जिसकी स्थापना बम्बई में 1928 में श्रीपाद् अमृत डांगे ने की । एन ० दत्त मजुमदार ने 1939 ई ० में भारतीय वोल्शेविक दल की स्थापना की । सौम्येन्द्रनाथ टैगोर ने ‘ क्रान्तिकारी साम्यवादी दल ‘ का गठन किया । नरेन्द्रनाथ भटाचार्य ( उर्फ मानवेन्द्रनाथ राय ) ने भारत में सबसे पहले non कम्युनिज्म् का प्रचार किया । मामला 1916 ई ० में नरेन्द्रनाथ ने मास्को में आयोजित थर्ड कम्युनिस्ट इन्टरनेशनल Time में भाग लिये । मार 1920 ई ० में एम ० एन ० राय ने ताशकंद में हिन्दुस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया । racel 1924 ई ० में सत्य भक्त ने कानपुर में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की । 1925 ई ० में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( CPI ) की स्थापना हुई , एस ० पी ० घाटे को इसका महामन्त्री बनाया गया । पेशावर षडयन्त्र केस ( 1922-23 ई ० ) , कानपुर षडयन्त्र केस ( 1924 ई ० ) , एवं मेरठ षडयन्त्र केस ( 1924-33 ई ० ) में संलिप्तता के कारण कम्युनिस्टों की ख्याति बहुत बढ़ गई । 1934 ई ० में अंग्रेजी सरकार ने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबन्ध आरोपित कर दिया । अच्युत पटवर्धन , अशोक मेहता तथा जय प्रकाश नारायण बंबई में 1933 ई ० में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ( PSP ) की स्थापना की ।
पंजाब में भी 1933 ई ० में ही ‘ पंजाब सोशलिस्ट पार्टी ‘ की स्थापना हुई । 17 मई , 1934 ई ० को जय प्रकाश नारायण , आचार्य नरेंद्र देव , मीनू मसानी तथा अशोक मेहता ने मिलकर काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की । कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का पहला अधिवेशन पटना में हुआ जिसकी अध्यक्षता आचार्य नरेन्द्र देव ने की । 1920 ई ० से प्रारम्भ होनेवाले दशक में बंगाल , बिहार , पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में किसान सभाओं का गठन किया गया । बंगाल में अबुल रहीम एवं फजलुल हक के नेतृत्व में कृषक प्रजा पार्टी काली का गठन हुआ । 1930 ई ० में बिहार में स्वामी सहजानन्द के नेतृत्व में बिहार किसान सभा का गठन किया गया ।
11 अप्रैल , 1936 ई ० को लखनऊ में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन किया गया , जिसके अध्यक्ष स्वामी सहजानन्द थे ।
एन ० जी ० रंगा ने आंध्र प्रदेश में रैय्यत संघ की स्थापना की । मार्च , 1923 में मोतीलाल नेहरू तथा सी ० आर ० दास ने इलाहाबाद में स्वराज पार्टी की स्थापना की । इस पार्टी का गठन काँग्रेस के भीतर एक दबाब समूह ( Pressure Group ) के रूप में किया गया था । स्वराजियों का उद्देश्य था कि काँग्रेस के अन्दर रहकर चुनावों में हिस्सा लेना और विधान परिषद में स्वदेशी सरकार के गठन की मांग को उठाना । स्वराज पार्टी का अध्यक्ष चितरंजन दास तथा सचिव मोतीलाल नेहरू को बनाया गया । नवम्बर , 1923 ई ० के विधानमण्डल चुनावों में स्वराज पार्टी ने हिस्सा लिया । केन्द्रीय विधान मण्डल एवं सेंट्रल प्रोविंस में इस दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ तथा बंगाल में मजबूती से उभरा । 1923 ई ० में अखिल भारतीय खादी बोर्ड ( AIKB ) की स्थापना की गयी ।
1924 ई ० में काँग्रेस की सदस्यता के लिए न्यूनतम अर्हता ‘ कताई ‘ निर्धारित की गई ।
भारत में प्रशासनिक सुधार के सवाल पर 1927 ई ० में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक कमीशन गठित किया गया । साइमन कमीशन में कोई भारतीय सदस्य नहीं था , अत : इसे white man लग commission कहा गया । साइमन कमीशन का भारत में आगमन 3 फरवरी , 1928 ई ० को हुआ । काँग्रेस ने साइमन कमीशन का बहिष्कार एवं विरोध किया । 1928 ई ० में साइमन कमीशन के विरूद्ध प्रदर्शन में पुलिस की लाठी की लि . चोट से लाला लाजपत राय घायल हो गये तथा कुछ दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गयी । साइमन कमीशन ने 1930 ई ० में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसके आधार पर लंदन के गोलमेज सम्मेलनों में विचार – विमर्श हुआ । 10 मई , 1928 ई ० को बंबई में मोती लाल नेहरू की अध्यक्षता में चार सदस्यीय कमिटी ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की , जिसे नेहरू रिपोर्ट कहा गया । नेहरू रिपोर्ट का उद्देश्य भारत के लिए संविधान की रूप – रेखा तैयार करना था । 1929 ई . में रावी नदी के तट पर लाहौर अधिवेशन आयोजित हुआ । लाहौर अधिवेशन ( 1929 ई . ) की अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू ने की । लाहौर अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार कांग्रेस के मंच से पूर्ण स्वराज की मांग की । 31 दिसम्बर , 1929 की आधी रात को नेहरू ने भारतीय स्वतन्त्रता के प्रतीक तिरंगा झण्डा फहराया । 1929 ई ० में कांग्रेस द्वारा नियुक्त एक समिति की रिपोर्ट पर 26 जनवरी , .. 1930 ई ० को ‘ प्रथम स्वतन्त्रता दिवस ‘ के रूप में मनाया गया । 12 मार्च , 1930 ई ० को महात्मा गाँधी ने ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह का प्रारम्भ करके सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरूआत की । महात्मा गाँधी ने 6 अप्रैल , 1930 ई ० को गुजरात के समुद्रतट पर स्थित दाण्डी की 78 अनुयायियों के साथ यात्रा की तथा वहाँ नमक बनाकर कानून तोडा ।
गाँधीजी की 240 मील की यात्रा इतिहास में दाण्डी यात्रा ( DANDY MARCH ) के नाम से प्रसिद्ध है
जवाहरलाल नेहरू को नमक कानून तोड़ने के जुर्म में 14 अप्रैल 1930 को गिरफ्तार कर लिया गया ।
5 मार्च , 1931 ई ० को गाँधी – इरविन समझौता हुआ । गांधी – इरविन समझौते के तहत , काँग्रेस ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन की समाप्ति तथा गाँधी जी के द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने की घोषणा की । गाँधी – इरविन समझौते को दिल्ली समझौता भी कहते हैं । प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 में लंदन में आयोजित किये गये । गोलमेज सम्मेलन -1 की अध्यक्षता तात्कालीन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री ‘ रैम्जे मैकडोनाल्ड ‘ ने की प्रथम गोलमेज सम्मेलन में काँग्रेस के किसी भी प्रतिनिधि ने भाग नहीं लिया जबकि मुस्लिम लीग , हिन्दू महासभा , दलित वर्ग , व्यापारी वर्ग तथा रजवाड़ों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया । काँग्रेस के बहिष्कार के कारण पहला गोलमेज सम्मेलन असफल हो गया । 7 दिम्बर , 1931 ई ० को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन प्रारम्भ हुआ , काँग्रेस की ओर से एकमात्र प्रतिनिधि गाँधीजी थे । दूसरा गोलमेज सम्मेलन स्वतन्त्रता प्राप्ति एवं साम्प्रदायिकता के सवाल पर असफल रहा । 17 नवम्बर , 1932 ई ० को तीसरा गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हुआ , जिसमें काँग्रेस के किसी भी सदस्य ने भाग नहीं लिया तथा यह सम्मेलन बिना किसी निर्णय के समाप्त हो गया । तीनों गोलमेज सम्मेलनों में दलितों के प्रतिनिधि के रूप में डॉ ० बी ० आर ० अम्बेडकर ने भाग लिया । जनवरी , 1932 ई ० में द्वितीय सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया गया । 4 जनवरी , 1932 ई ० को गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया काँग्रेस तथा उसके संगठनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया ।
ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रैम्जे मैकडोनाल्ड 16 अगस्त 1932 को साम्प्रदायिक अधिनिर्णय प्रस्तुत किया । सांप्रदायिक अधिनिर्णय के अनुसार दलितों को हिन्दुओं से अलग मानते हुए उन्हें अलग प्रतिनिधित्व देने एवं अलग से निर्वाचक मण्डल की व्यवस्था की गई । गाँधीजी ने सांप्रदायिक निर्णय के विरोध में 20 सितम्बर , 1932 ई ० से आमरण अनशन आरम्भ कर दिया । गाँधीजी और बी ० आर ० अम्बेडकर के बीच 26 सितम्बर 1932 को पूना समझौता हुआ जिसके तहत हरिजनों के लिए अलग निर्वाचन मण्डल समाप्त कर दिया गया । दलितों के लिए प्रान्तीय विधानमण्डलों में रिजर्व 71 स्थानों को बढ़ाकर 148 कर दिया गया । गवर्मेंट ऑफ इण्डिया ऐक्ट -1935 के प्रावधानों के अनुसार , 1937 ई ० में प्रान्तीय चुनाव हुए । 1937 के चुनावों में 7 प्रान्तों में काँग्रेस ने अपने मंत्रिमण्डलों का गठन किया । 15 नवम्बर 1939 को प्रान्तीय मन्त्रिमण्डल ने इस्तीफा दे दिया । 15 नवम्बर 1939 को प्रांतों मेंकांग्रेस मंत्रिमंडल ने इस्तीफा दे दिया ।
उपर्युक्त घटना को 22 दिसंबर , 1939 को मुस्लिम लीग ने मुक्ति दिवस के रूप में मनाया ।
जवाहरलाल नेहरू स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री तथा लॉर्ड माउण्टबेटन प्रथम गवर्नर जेनरल बने ।
पाकिस्तान के गवर्नर जेनरल मुहम्मद अली जिना तथा प्रधानमन्त्री लियाकत अली को बनाया गया
राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
17 अक्टूबर , 1940 ई ० को पवनार में गाँधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरूआत की थी । पंजाब के सुनाम नामक स्थान पर जन्मे उधम सिंह ने 13 मार्च , 1940 को लंदन में पंजाब के भूतपूर्व लेफ्टिनेंट गर्वनर जनरल डायर की की गोली मारकर हत्या कर दी । सुभाषचंद्र बोस 1939 ई ० में महात्मा गाँधी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या को हराकर काँग्रेस के अध्यक्ष बने , परन्तु गाँधी से मतभेद के कारण उन्होंने यह पद छोड़ दिया । गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान पठान सत्याग्रहियों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया । हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन 1924 ई ० में शचीन्द्रनाथ सान्याल एवं भगत सिंह द्वारा पूर्व में स्थापित हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को समाप्त करके किया गया था । काँग्रेस द्वारा जालियाँवाला बाग काण्ड की जाँच के लिए मदनमोहन मालवीय की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया । जनरल डायर को जालियाँवाला बाग काण्ड के दौरान हंसराज नामक एक भारतीय ने मदद पहुँचाई । गाँधीजी द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारतीयों को सेना में भर्ती होने का आह्वान किये जाने के कारण उन्हें सार्जेंट ( सेना में भर्ती करने वाला ) की संज्ञा दी गई । अनुशीलन समिति के हेमचन्द्र एवं पी ० एन ० वापट बम बनाने की कला क्रमशः रूस एवं पेरिस में सीखी । देश के लिए कई बार जेल यात्रा करने वाले पहले काँग्रेसी नेता बाल गंगाधर तिलक थे । ” काँग्रेस अपने पतन की ओर लड़खड़ाती हुई बढ़ रही है ” यह बात लॉर्ड डफरीन ने कही । ब्रिटिश सरकार का रूख काँग्रेस के प्रति 1887 के बाद कठोर हो गया । हरमिट ऑफ शिमला ए ० ओ ० ह्युम को कहा जाता है ।
भारत छोड़ो प्रस्ताव काँग्रेस द्वारा मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में पारित किया गया । राष्ट्रीय युवा दिवस स्वामी विवकानन्द से सम्बन्धित है । सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का बिस्मार्क कहा गया है । देशबन्धु चित्तरंजन दास नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के राजनीतिक गुरू थे । एम ० जी ० राणाडे गोपाल कृष्ण गोखले के राजनीतिक एवं आध्यात्मिक . . गुरू थे । बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद वहाँ की महिलाओं द्वारा बल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि दी गई । सुभाषचन्द्र बोस ने गाँधी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया । रवीन्द्रनाथ टैगोर सर्वप्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने गाँधी को महात्मा कहा । मुहम्म्द अली जिन्ना ने काँग्रेस को सवर्ण हिन्दुओं की फासीवादी काँग्रेस कहा ।
भगत सिंह को शहीद – ए – आजम के नाम से भी जाना जाता
भगत सिंह ने राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान इन्कलाब जिन्दाबाद का नारा दिया । . . वन्दे मातरम् . हे राम खुदी राम बोस सबसे कम उम्र में फाँसी पर चढ़ने वाले क्रान्तिकारी थे । नरेन्द्र गोसाई नामक व्यक्ति ‘ अलीपुर षड्यन्त्र ‘ मामले में सरकारी गवाह बना । मजहरूल हक ने राष्ट्रवादी अहरार आन्दोलन चलाया । पंजाब में चमनदीव ने डण्डा फौज का गठन किया था । सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को बिना ताज का बादशाह की उपाधि मिली । घनश्याम दास बिड़ला महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष थे । आजाद हिन्द फौज का झण्डा काँग्रेस के झण्डे के समान था जिसपर दहाड़ते हुए शेर का चित्र अंकित था ।
सुभाषचन्द्र बोस ने | मई , 1939 ई ० को फॉरवर्ड ब्लॉक नामक पार्टी की स्थापना की । ब्रिटिश सरकार ने इस पार्टी की गतिविधियों के कारण 1940 ई ० में सुभाषचन्द्र बोस के निवास स्थान पर नजरबन्द कर दिया जहाँ से 17 जनवरी , 1941 को वे यूरोप की ओर भाग गये । मुसलमानों के लिए अलग स्वतन्त्र राष्ट्र की परिकल्पना सर्वप्रथम 1930 ई ० में मुहम्मद इकबाल ने इलाहाबाद में प्रस्तुत की । मुसलमानों के लिए पृथक पाकिस्तान की परिकल्पना सर्वप्रथम कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र रहमत अली ने 1933 ई ० में प्रस्तुत की । 22-23 मार्च , 1940 ई ० को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में पहली बार पृथक ‘ पाकिस्तान ‘ राज्य के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया , परन्तु प्रस्ताव में ‘ पाकिस्तान ‘ शब्द का उल्लेख नहीं था । 22 मार्च , 1940 ई ० को मुहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में प्रसिद्ध द्विराष्ट्र सिद्धान्त का प्रतिपादन किया । ‘ पाकिस्तान ‘ योजना को सर्वप्रथम आंशिक मान्यता 1942 ई ० के क्रिप्स मिशन योजना से मिली । 23 मार्च , 1942 ई ० में स्टैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में क्रिप्स मिशन भारत आया । ‘ क्रिप्स मिशन ‘ में भारत को डोमिनियन स्टेटस का दर्जा तथा संविधान सभा के गठन का वादा किया गया । देश के प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा क्रिप्स का प्रस्ताव नकार दिया गया । महात्मा गाँधी ने क्रिप्स प्रस्ताव को आगे की तारीख का चेक ( Post dated cheque ) बताया । बाद में इस वाक्य में जिसका बैंक शीघ्र नष्ट होने वाला था , जवाहरलाल नेहरू ने जोड़ दिया । काँग्रेस कार्यकारिणी ने जुलाई में अपनी ‘ वर्धा बैठक ‘ में 14 जुलाई , 1942 ई ० को भारत छोड़ो नामक प्रस्ताव पारित किया गया । अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी ने बंबई अधिवेशन में गाँधीजी के ऐतिहासिक भारत छोड़ो प्रस्ताव को 8 अगस्त , 1942 ई ० को पास कर दिया । महात्मा गाँधी ने बंबई में करो या मरो ( Do or Die ) का नारा देते हुए भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरूआत की । भारत छोड़ो आन्दोलन को अगस्त क्रान्ति भी कहा जाता है । भारत छोड़ो आन्दोलन के समय ब्रिटिश प्रधानमन्त्री विंस्टन चर्चिल थे ।
आन्दोलन के दौरान 9 अगस्त 1942 को काँग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया ,
काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं ने आन्दोलन को भूमिगत तरीके से चलाने की जिम्मेदारी अपने हाथों में ली । भारत छोड़ो आन्दोलन के शुरूआत के समय भारत का वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो था । साम्यवादी दल तथा मुस्लिम लीग ने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग नहीं . लिया तथा ये भारत छोड़ो आन्दोलन के विरोधी थे । तेज बहादुर सा जैसे उदारवादी एवं डॉ ० भीम राव अम्बेडकर जैसे हरिजन नेताओं ने भी भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध किया । । सितम्बर , 1942 को कैप्टन मोहन सिंह ने मलाया में आजाद हिन्द फौज . के प्रथम डिवीजन का गठन किया जो सफल नहीं हो सका । आजाद हिन्द फौज की स्थापना का सर्वप्रथम विचार कैप्टन मोहन सिंह के . मन में आया था । आजाद हिन्द फौज की स्थापना का वास्तविक श्रेय रास बिहारी बोस को है ।
सुभाषचन्द्र बोस ने 1943 में आजाद हिन्द फौज का नेतृत्व सम्भाला ।
. सुभाषचन्द्र बोस ने हिटलर से भारत की स्वतन्त्रता के लिए सहयोग का आश्वासन प्राप्त किया तथा जर्मनी में फ्री इण्डिया सेन्टर स्थापित किया । सुभाषचन्द्र बोस ने सिंगापुर में 21 अक्टूबर 1943 ई ० को आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की । सुभाषचन्द्र बोस ने नारा दिया तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा । जापानी सेना के साथ ‘ आजाद हिन्द फौज ‘ ने अंडमान तथा निकोबार द्वीपसमूह पर अधिकार कर लिया था । नेताजी ने अंडमान द्वीप का नाम शहीद द्वीप तथा ‘ निकोबार ” का नाम स्वराज द्वीप रखा । सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त , 1945 को फॉर्मोसा द्वीप से टोक्यो जाने के क्रम में एक हवाई दुर्घटना हुई मानी जाती है । द्वितीय विश्वयुद्ध में क्रमश : 6 अगस्त एवं 9 अगस्त , 1945 को जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी पर अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराने जाने के कारण जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया । जापान के आत्मसमर्पण के साथ आजाद हिन्द फौज को जापान द्वारा मिलने वाली मदद समाप्त हो गई । आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों और अधिकारियों पर दिल्ली के लाल किला में मुकदमा चलाया गया । राजगोपालाचारी ने मुस्लिम लीग और काँग्रेस के बीच समझौते के लिए 10 अगस्त 1944 को एक फार्मूला प्रस्तुत किया जिसे सी ० आर ० फार्मुला कहा जाता है । मुस्लिम लीग ने सी ० आर ० फार्मूले को नकार दिया और पाकिस्तान की माँग पर अड़े रहे तथा गाँधीजी के साथ वार्ता को असफल कर दिया । सर्वप्रथम गाँधीजी ने ही मुहम्मद अली जिना को कायदे आजम ( महान नेता ) कहा । 14 जून , 1945 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने स्वशासन से सम्बन्धित एक योजना प्रस्तुत की जिसे वेवेल योजना कहा जाता है । लॉर्ड वेवेल ने संवैधानिक सुधारों के सवाल पर 25 जून , 1945 को शिमला में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन करवाया । एस ० एम ० आई ० एस ० तलवार नामक जहाज के कर्मचारियों द्वारा खराब खाने की शिकायत के कारण 1946 में शाही नौसेना विद्रोह बम्बई में शुरू हुआ । यह विद्रोह सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा जिन्ना के दबाव के कारण 25 फरवरी 1946 ई ० को समाप्त हो गया । सत्ता हस्तांतरण के सवाल पर कैबिनेट मिशन 24 मार्च , 1946 को दिल्ली आया ।
कैबिनेट मिशन के अध्यक्ष भारत मन्त्री लार्ड पैथिक लारेन्स थे तथा अन्य दो सदस्यों में स्ट्रैफोर्ड क्रिप्स तथा ए ० वी ० अलेक्जेण्डर थे । 16 मई , 1946 को कैबिनेट मिशन ने अपने प्रस्तावों की घोषणा की । गाँधीजी और काँग्रेस ने कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार कर लिया लेकिन मुस्लिम लीग ने इसे अस्वीकृत कर दिया । कैबिनेट मिशन योजना के तहत् 1946 में संविधान सभा का चुनाव 296 सीटों पर हुआ , जिसमें काँग्रेस को 201 तथा मुस्लिम लीग को 73 सीटें प्राप्त हुई । 6 जून , 1946 ई ० को मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन प्रस्तावों को स्वीकार करते हुए पाकिस्तान की लक्ष्य – प्राप्ति हेतु संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया । 16 अगस्त , 1946 ई ० को मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान को प्राप्त करने के लिए ‘ प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस ‘ मनाया । 2 सितम्बर , 1946 को कैबिनेट मिशन योजना ‘ के अनुसार जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अन्तरिम सरकार का गठन किया गया । पाकिस्तान की मांग पूरी न होने के कारण मुस्लिम लीग ने आरम्भ में मन्त्रिमण्डल का बहिष्कार किया । बाद में मुस्लिम लीग इसमें शामिल हुई परन्तु उसने संविधान सभा का बहिष्कार किया ।
20 फरवरी , 1947 ई ० को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार जून , 1948 ई ० तक भारतीयों को सत्ता सौंप देगी ।
. . . . . \
. . 24 मार्च , 1947 को लॉर्ड माउण्टबेटेन को भारत का वायसराय बनाकर भेजा गया । माउण्टबेटन योजना के आधार पर भारत का विभाजन हुआ और 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का निर्माण हुआ । माउण्टबेटन योजना के तहत ब्रिटिश पार्लियामेन्ट ने 18 जुलाई , 1947 ई ० में भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम पारित किया । भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम , 1947 के अनुसार 15 , अगस्त , 1947 ई ० को भारत स्वतन्त्र हुआ ।
. 1793 ई ० में लार्ड कार्नवालिस ने स्थाई बन्दोबस्त ( Permanent Settle ment ) नामक व्यवस्था भू – राजस्व के क्षेत्र में लागू की । स्थाई बन्दोबस्त के अन्तर्गत भू – राजस्व का 8/9 भाग कम्पनी को तथा 1/9 भाग अपने पास रखता था । कार्नवालिस ने ग्रामीण क्षेत्रों में जमींदारों के पुलिस अधिकार एवं दायित्व दोनों समाप्त कर दिये । लार्ड वेलेजली ( 1798-1805 ई . ) ने ‘ सहायक सन्धि ‘ की पद्धति शुरू की । वेलेजली ने हैदराबाद ( 1798 ई ० ) , मैसूर ( 1799 ई . ) , तंजौर ( 1799 ई . ) , अवध ( 1801 ई . ) पेशवा ( 1801 ई . ) , बरार एवं भोंसले ( 1803 ई ० ) तथा सिन्धिया ( 1804 ई . ) आदि के साथ सहायक सन्धि की । लार्ड वेलेजली ने मेहदी अली खाँ को 1799 ई . तथा जॉन मैल्न को 1800 ई ० में ईरान के शाह के दरबार में भेजा । लार्ड वेलेजली ने फोर्ट विलयम कॉलेज की स्थापना सिविल सेवा में भर्ती किये गये युवकों को प्रशिक्षित करने के लिए किया । लार्ड वेलेजली स्वयं को बंगाल का शेर कहता था । जॉर्ज बार्लो ( 1805-07 ई . ) के कार्यकाल में वेल्लोर का सिपाही विद्रोह हुआ । चार्टर ऐक्ट , 1813 द्वारा कंपनीके व्यापारिक अधिकार अगले 20 वर्षों तक बढ़ा दिए गए । चार्टर ऐक्ट , 1813 द्वारा कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार ( चाय , चीनी छोड़कर ) खत्म कर दिए गए । लार्ड मिन्टो के कार्यकाल में चार्टर एक्ट 1813 ई ० द्वारा पहली बार भारत में शिक्षा की व्यवस्था के लिए 1 लाख रुपये प्रदान करके भारत में पाश्चात्य शिक्षा का प्रादुर्भाव हुआ । लार्ड हेस्टिंग्स के काल में थॉमस मुनरो द्वारा 1820 ई . में मद्रास राज्य में रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू की गई । लार्ड हेस्टिंग्स ( 1813-23 ई . ) ने 28 युद्ध लड़े एवं 120 दुर्ग जीते । आगरा एवं पंजाब में लॉर्ड हेस्टिंग्स ने भू – राजस्व के क्षेत्र में महलवाड़ी व्यवस्था लागू की । भारत के पहले हिन्दी अखबार समाचार भूषण का प्रकाशन लॉर्ड हेस्टिंग्स के शासनकाल में हुआ । 1822 ई . में लॉर्ड हेस्टिंग्स ने बंगाल टेनेंसी एक्ट पारित करवाया , इसके द्वारा निर्धारित हुआ कि किसान जब तक लगान दे रहा है , तब तक उसे जमीन से वंचित नहीं किया जायेगा । लॉर्ड हेस्टिंग्स के जाने के बाद ‘ जॉन एडम्स ‘ ने अस्थाई तौर पर 7 महीने तक गवर्नर जेनरल का पद संभाला । एडम्स के बाद लॉर्ड एम्हर्स्ट ने पद संभाला । प्रथम आंग्ल – बर्मा युद्ध ( 1824-1826 ई ० ) एवं यान्डबू सन्धि लॉर्ड एकहर्ट ( 1823-28 ई . ) के काल में हुई । लार्ड एम्हर्स्ट के समय 1824 ई ० में बैरकपुर का सैन्य विद्रोह हुआ । लॉर्ड विलियम बेंटिक ( 1828-35 ई . ) के कार्य – काल में चार्टर एक्ट -1833 पारित हुआ । लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 1829 ई ० में राजा राम मोहन राय के सहयोग से सती प्रथा का अन्त किया । विलियम बेंटिक ने कर्नल – स्लीमैन की मदद से ठगी प्रथा का अन्त किया । बेंटिक ने 1835 ई . में कलकत्ता में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना की । लॉर्ड विलियम बेंटिक ने शिशु बालिका की हत्या पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया । लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 1835 में मैकाले समिति के आधार पर भारत में शिक्षा का माध्यम ( आधार ) अंग्रेजी को बनाया । लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 1832 ई . में कानून बनाकर दास – प्रथा का निषेध कर दिया । लॉर्ड विलियम बैंटिक ने कानून बनाकर हिन्दू धर्म से दूसरे धर्म को अपनाने वाले व्यक्तियों के लिए पैतृक संपत्ति अधिकार प्रदान किया ।
विलियम बेंटिक ने अदालतों में फारसी भाषा के स्थान पर विकल्प के रूप में अन्य स्थानीय भाषाओं के प्रयोग की अनुमति दी ।
लॉर्ड विलियम बेंटिक ने आगरा में एक सर्वोच्च अपील अदालत की स्थापना की । विलियम बैंटिक के समय में कलकत्ता एवं दिल्ली को जोड़ने वाली ग्रांड ट्रंक रोड का आधुनिक निर्माण हुआ था । उसने ऊपरी गंगा नहर की योजना बनाई तथा उसके लिए सिविल इंजिनियरिंग कॉलेज की स्थापना की । . . . चार्ल्स मेटकॉफ ( 1835-36 ई ० ) ने अपने एक वर्ष के कार्यकाल में प्रेस पर से नियन्त्रण हटाया , इसी कारण उसे भारतीय प्रेस का मुक्ति दाता कहा जाता है । लार्ड ऑकलैंड ( 1936-42 ई . ) के काल में आंग्ल – अफगान युद्ध -1 की समाप्ति , रणजीत सिंह , शाह शुजा एवं अंग्रेजों के बीच 1838 ई ० में त्रिपक्षीय सन्धि से हुई । ‘ आंग्ल – अफगान युद्ध- ॥ ‘ अंग्रेजों ने लॉर्ड एलिनबरो ( 1842-44 ई . ) के शासनकाल 1842 ई . में जीता । लॉर्ड एलिनबरो के शासनकाल में ब्रिटिश साम्राज्य में पूर्णरूपेण सिंध का विलय 91843 ई . ) होगया । प्रथम आंग्ल – सिक्ख युद्ध ( 1845-46 ई ० ) लॉर्ड हार्डिंग ( 1844-48 ई . ) के शासन काल में हुआ । लॉर्ड हार्डिग ने नरबलि – प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाया । लॉर्ड डलहौजी ( 1848-56 ई . ) व्यपगत सिद्धान्त ( doctrine of lapse ) के कारण इतिहास में प्रसिद्ध है । डलहौजी ने लोअर वर्मा अथवा पेगु ( 1856 ई ० ) , सिक्किम ( 1850 ई ० ) , बराड़ ( 1853 ई ० ) एवं अवध ( 1856 ई ० ) आदि का विलय अपने साम्राज्य में कर दिया । डलहौजी ने 1856 ई ० में इसने तोपखाने के मुख्यालय को कलकत्ता से मेरठ स्थानान्तरित किया । डलहौजी सेना का मुख्यालय शिमला में स्थापित किया ।
डलहौजी को भारत में रेलवे का जनक माना जाता है । डलहौजी के समय भारत में पहली बार 1853 ई . में बम्बई से थाणे के बीच प्रथम रेल चलायी गयी । डलहौजी के कार्यकाल में 1854 ई ० तक कलकत्ता से रानीगंज कोयला – क्षेत्र तक रेल लाईन बिछा दी गई । डलहौजी ने भारत में पहली बार डाक टिकटों ( Postal Stamps ) का चलन आरम्भ किया । डलहौजी ने 1852 ई ० में भारत में पहली बार विद्युत तार ( Electric Telegraph ) व्यवस्था आरम्भ की । डलहौजी ने भारत में पहली बार एक सार्वजनिक निर्माण विभाग ( PWD ) की स्थापना की । डलहौजी के समय में भारतीय नागरिक सेवा ( ICS ) हेतु पहली बार प्रतियोगिता परीक्षा शुरू हुई । 1854 ई . में डलहौजी ने स्वतन्त्र लोक सेवा विभाग की स्थापना की । डलहौजी के काल में शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया । डलहौजी ने शिक्षा सम्बन्धी सुधारों के अन्तर्गत 1854 में वुड्स डिस्पैच को लागू किया । विधवा पुनर्विवाह विधेयक ( 1856 ई ० ) डलहौजी के काल में लाया गया । डलहाजी ने सिंचाई की सुविधा के लिए गंगा नहर का निर्माण करवाया , पंजाब में बारी दोआब नहर पर निर्माण कार्य की नींव डाली । डलहौजी ने परिवहन की सुविधा के लिए ‘ ग्रांड ट्रंक ‘ रोड की मरम्मत करवायी । डलहौजी के काल में 1853 के चार्टर एक्ट आया तथा 1855 ई ० में संथाल विद्रोह हुआ । डलहौजी ने भारत के बन्दरगाहों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए खोल दिया । डलहौजी के बाद लाई कैनिंग ( 1856-62 ई ० ) भारत का गवर्नर जनरल . . . . का . रि व लि . . लार्ड कैनिंग भारत का ब्रिटिश सम्राट के अधीन प्रथम वायसराय था ।
लार्ड कैनिंग के शासन काल में 1857 का विद्रोह हुआ ।
• मोहन जोदड़ो से घोड़े के दांत , लोथल से घोडे की लय मणमनियों एवं सुरकोटदा से घोड़े की अस्थियों के अवशेष मिले हैं ।
• जते हुए खेत का प्रथम साक्ष्य प्राक् सैंधव कालीन पुरास्थल कालीबंगा से मिला है ।
• चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से मिले हैं ।
• सैंधव मुहरों में एक श्रृंगी सांड के उत्कीर्ण चित्र सर्वधिक मिले है । . हड़प्पाकालीन पुरोस्थली में कालीबंगा एवं लोथल से हवन कुण्ड के साक्ष्य मिले हैं ।
• ” मेतुहा ‘ सिंधु क्षेत्र का ही प्राचीन नाम था ।
• कुछ नवीन हड़प्पाकालीन पुरास्थल है : खर्वी , कनतासी एवं धौलावीरा ।
• सिंधुवासी बैल को शक्ति का प्रतीक मानते थे । पशुपति महादेव की पूजा किया करते थे । ऋग्वेद में हड़प्पा सभ्यता को ‘ हरियपिया ‘ कहा गया ।
• ऋग्वेद में राजा को ‘ गोप जनस्य ‘ ( प्रजा का रक्षक ) एवं पुरामभेत्ता ( नगरों पर विजय प्राप्त करने वाला ) कहा गया ।
• ऋग्वेद में ‘ बलिहत ‘ ( बलि देने वाला ) शब्द का प्रयोग राजा के प्रति निष्ठा प्रदर्शन के लिए किया गया है ।
• ‘ उपस्ति ‘ एवं ‘ इ ‘ राजा के व्यक्तिगत कर्मचारी होते थे । .ऋग्वैदिक काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी ‘ सिंधु ‘ थी ।
• ऋग्वैदिक काल की सर्वाधिक पवित्र नदी ‘ सरस्वती ‘ थी ।
• ऋग्वैदिक काल के सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता ‘ इन्द्र ‘ थे ।
• ऋग्वेद के ‘ पुरुषसूक्त में सर्वप्रथम शुद्ध शब्द का उल्लेख मिलता है । ऋग्वेद में मछली तथा नमक का उल्लेख नहीं मिलता ।
• ऋग्वेद में ‘ जन ‘ शब्द का उल्लेख 275 बार एवं ‘ विश ‘ शब्द का उल्लेख 170 बार हुआ है ।
• ऋग्वैदिककालीन समाज ‘ पितसन्तात्मक ‘ होता था । ऋग्वैदिककालीन प्रशासन तंत्र ‘ राजतंत्रात्मक ‘ था । 0 ईरानी भाषा के ग्रंथ ‘ अवेस्ता ‘ की तुलना भारतीय ग्रंथ ऋग्वेद से की जाती है ।
• आर्य भारत में सर्वप्रथम ‘ सप्तसैंधव ‘ प्रदेश में बसे ।
० पूर्व वैदिककालीन महिलायें सभा एवं विदथ में भाग लेती थीं । ..ऋग्वेद में एक मात्र थातु ‘ अयस ‘ का उल्लेख मिलता है ।
• ऋग्वेद में बढ़ई , रथकार , बुनकर , चर्मकार , कुम्हार आदि शिल्पियों का उल्लेख मिलता है ।
• ऋग्वैदिक काल में सैनिक कार्य का संचालन ब्रात , गण , ग्राम एवं सर्घ जैसी कबायली इकाईयां करती थीं ।
• ऋग्वेद में गंगा नदी का एक बार तथा जमुना नदी का तीन बार उल्लेख है ।
ऋग्वैदिक काल की महत्वपूर्ण फसल यव ( जौ ) एवं गेहँ थी । जाति व्यवस्था , गोत्र व्यवस्था एवं आश्रम व्यवस्था का उल्लेख सर्वप्रथम उत्तर वैदिक काल में ही मिलता है ।
० उत्तर वैदिक काल की महत्वपूर्ण पर्वत श्रेणियां थीं : त्रिककद , कैज एवं मैनाक ।
• उत्तर वैदिक काल के महत्वपूर्ण देवता प्रजापति ( ब्रह्मा ) के अतिरिक्त विष्या एवं शिव भी महत्वपूर्ण थे ।
भारतीय इतिहास :: 0057
• याज्ञिक प्रक्रिया की जटिलता में वृद्धि के साथ ही यज्ञ में पुरोहितों को महत्व बढ़ा ।
• स्त्रियों की स्थिति पहले की अपेक्षा बदतर हुई ।
● भारत एवं पुरु कबीलों ने मिलकर ‘ कुरु वंश ‘ की स्थापना की । .उत्तर वैदिक काल ‘ विदथ ‘ का अस्तित्व समाप्त हो गया । • अथर्वेद में सभा और समिति को प्रजापति की दो पत्रियों के रूप में प्रस्तुत किया गया ।
• व्यावसायिक संगठन के रूप में श्रेष्ठी , गण , गणपति जैसे संगठनों के प्रकाश में आने के उल्लेख मिलते हैं ।
• राज्याभिषेक के समय राजा को ‘ राजसय यज ‘ का अनुष्ठान करवाना होता था । इस यज्ञ को सम्पन्न करवाने वाले पुरोहित को दान में 2.40,000 गायें दी जाती थी । .
सर्वप्रथम ‘ जाबालोपनिषद् ‘ में चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है । ..पूर्व पापों की पूजा का प्रचलन उत्तर वैदिक काल में हुआ । जनपदों की उत्पत्ति के विषय में उत्तर वैदिक काल में ही जानकारी मिलती है ।
० राजा की उत्पत्ति के विषय में प्रथम साक्ष्य ‘ ऐतरेय ब्राह्मण ‘ से मिलता
• उत्तर वैदिक काल में तण्डल एवं ब्रीहि थान के लिए एवं ‘ ईक्षु ‘ शब्द ईख के लिए प्रयुक्त होता था । 0 ‘ शतपथ ब्राह्मण ‘ में अनेक उत्तर वैदिककालीन विदुषी कन्याओं जैसे गार्गी , गन्धर्व ग्रहीता . मैत्रेयी आदि का उल्लेख मिलता है ।
० शतपथ ब्राह्मण में कृषि की सभी क्रियाओं जैसे कर्षण , वपन , लुनन एवं मृणन का उल्लेख मिलता है । 024 बैलों द्वारा हल खींचे जाने का उल्लेख काठक संहिता से मिलता यजुर्वेद में हिरण्य ( सोना ) , त्रपु ( टिन ) , सीसा , अयस , लौह आदि का विवरण प्राप्त होता है ।
० धनी व्यक्तियों द्वारा प्रयुक्त ‘ सौम ‘ के वस्त्र का उल्लेख सर्वप्रथम ‘ मैत्रायणी संहिता ‘ में मिलता है । • अथर्वेद के अनुसार सर्वप्रथम ‘ पृथ्वैन्य ‘ ने हल और कृषि को जन्म दिया ।
• अथर्ववेद में सामूहिक वाद – विवाद के स्थल को ‘ नरिष्ठा ‘ कहा गया । • उत्तर वैदिक काल की मुख्य फसल चावल और गेहूँ थी ।
• उत्तर वैदिक काल में लाल रंग के मदभाण्ड सर्वाधिक प्रचलन में थे । पाञ्चाल उत्तर वैदिक काल के सर्वाधिक विकसित राष्ट्रों में से था ।
• भारतभूमि से बौद्ध धर्म 12 वीं शताब्दी तक विलुप्त हो गया ।
• बौद्ध धर्म का प्रचार पानि भाषा में किया गया • बुद्ध के ‘ पंचशील सिद्धान्त ‘ का वर्णन छादोग्य उपनिषद् में मिलता है ।
• बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग का स्रोत तैत्तरीय उपनिषद् है । . सुत्तपिटक ‘ को प्रारम्भिक बौद्ध धर्म का एनसाइक्लोपीडिया कहा जाता ।
• बौद्ध ग्रंथों में संस्कृत का प्रयोग ‘ अभिधम्मपिटक ‘ से प्रारम्भ होता है । धेरदाद के महत्वपूर्ण पंथ ‘ सर्वास्तिवाद ‘ की स्थापना राहुलभद्र ने की ।
• बौद्ध धर्म का सर्वाधिक प्रचार कोशल राज्य में हुआ एवं सर्वाधिक
अनुयायी यहीं पर थे । बुद्ध ने पहां सर्वाधिक 21 लास किये थे । दी निकाय में बुद्ध के समय के 6 नगरों का उल्लेख मिलता है । ये हैं – चम्पा , राजगृह , श्रावस्ती , साकेत , कौशाम्बी एवं वाराणसी ।
• बुद्ध को उनके तीन नामों : बुद्ध , तथागत एवं शाक्यमनि के नाम से जाना जाता है ।
• बौद्ध धर्म के त्रिपिटक हैं – विनयपिटक , सुत्तपिटक एवं अभिधम्म पिटक ।
• बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश ऋषिपत्तनम या मृगदाव ( सारनाथ ) में दिया ।
• महात्माबुद्ध अनात्मवादी थे , पर पुनर्जन्म में विश्वास करते थे ।
• अनसावन बौद्ध संघ में लाये गये प्रस्ताव के पाठ को कहा जाता था ।
• बौद्ध संघ में प्रवेश पाने को ‘ उपसम्पदा ‘ कहा जाता था ।
• बौद्ध धर्म के त्रिरत्न थे – बुद्ध , संघ एवं धम्म ।
• शून्यवाद के प्रवर्तक नागार्जन एवं विज्ञानवाद के प्रवर्तक मैत्रेयनाथ थे ।
• वेलवन एवं जेतनन वह स्थान थे , जहां महात्माबुद्ध वर्षाकाल में निवास करते थे ।
• प्रतीत्य समत्पाद बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी सम्पूर्ण शिक्षा का आधार – स्तम्भ है ।
• बुद्ध के नजदीकी शिष्यों में आनन्द , उपालि , सारिपुत्र , मौद्गल्यायन एवं देवदत्त थे ।
• बुद्ध के अनुयायी शासक थे बिम्बसार , प्रसेनजित एवं उदयन् ।
• बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश ‘ श्रावस्ती ‘ में दिये ।
• कमल एवं सांड़ बुद्ध के जन्म का , घोड़ा गृहत्याग का , पीपल ज्ञान का , पदचिह्न निर्वाण का एवं स्तूप मृत्यु का प्रतीक है ।
• गृहपति एवं गृहपत्नी , जो भागवत् धर्म का अनुसरण करते थे , ‘ भागवती ‘ एवं ‘ भागवतम् ‘ कहे जाते थे ।
• भागवत् धर्म का प्रथम विदेशी उपासक यूनानी दूत तक्षशिला निवासी हेलिओडोरस था । ‘ सावर्षम ‘ वासुदेव को कहा जाता था ।
• कृष्ण ‘ वृष्णि ‘ कबीले से सम्बन्धित थे ।
• कृष्ण का वासदेव नाम पाणिनि के समय से मिलता है ।
• सात्वत जाति से ही भागवत् सम्प्रदाय का उदय हुआ ।
• अवतारवाद का सर्वप्रथम स्पष्ट उल्लेख ‘ भगवद्गीता ‘ से मिलता है ।
• जब कृष्ण , विष्णु का तादात्म्य नारायण से स्थापित हुआ तो वैष्णव धर्म का एक नया नाम ‘ पाञ्चरात्रधर्म ‘ प्रकाश में आया ।
• वैष्णव धर्म में ईश्वर को प्राप्त करने के लिए ‘ भक्ति ‘ पर जोर दिया गया ।
• वैष्णव धर्म में मुंदिर एवं मर्तिपजा को विशेष महत्व दिया गया । विष्णु के दस अवतारों में ‘ कृष्ण ‘ का नाम नहीं है ।
• वासुदेव को व्यापक होने के कारण ‘ विष्ण ‘ , विजयी होने के कारण ‘ जिष्ण ‘ , दुःख और पाप हरने के कारण ‘ हरि ‘ , अपनी ओर आकृष्ट करने के कारण ‘ कृष्ण ‘ , वैकुण्ठ धाम के अधिपति होने के कारण ‘ वैकण्ठ ‘ एवं क्षर – अक्षर पुरुष से उत्पत्र होने के कारण पुरुषोत्तम ‘ कहा गया ।
• गुप्त काल में वैष्णव धर्म अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा । दक्षिण में इस M
धर्म का प्रचार – प्रसार वेगी के पूर्वी चालक्यों एवं राष्ट्रकूटों के समय में ने हुआ । दक्षिण भारत में ‘ आलवार ‘ सन्तों ने इस धर्म का प्रचार किया । जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त के अधीन सम्पूर्ण भारत था ।
• चन्द्रगुप्त मौर्य के सौराष्ट्र प्रान्त के शासक पुष्यगप्त ने सुदर्शन तडाग का निर्माण उर्जयत पर्वत पर एक सेतु बना कर किया था ।
• अशोक के लेखों में तीन प्रकार के राज्य – अन्त या प्रत्यन्त , विजित आटवी एवं अपरान्त के उल्लेख मिलते हैं । अन्त राज्य पड़ोस के स्वतन्त्र राज्यों को कहा जाता था । प्रत्यन्त वे राज्य होते हो जो अन्त राज्यों के नजदीक दूसरी सीमा पर स्थित होते थे , इनसे अशोक के राजनयिक सम्बन्ध थे । विजित आटवी जन – जातियां अर्धस्वतन्त्र होती थीं । अपरान्त जातियां राज्य की सीमा पर विद्यमान अधीन जातियाँ धीं ।
अशोक ने अपने शासन काल में 25 बार बंदियों को मुक्त किया था ।
अशोक के राज्य के सीमावर्ती राज्य थे चोल , पाण्ड्य , सत्यपुत्र , केरल 154 पुत्र , ताम्रपर्णी , यवनराज आदि ।
• अशोक ने जनसाधारण की भाषा पालि का प्रयोग किया ।
• अशोक ने अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष से लेकर दसवें वर्ष के बीच बौद्ध धर्म ग्रहण किया ।
• अशोक के बौद्ध धर्म प्रचारकों ने इस धर्म को मध्य एशिया , चीन , जापान , तिब्बत , बर्मा , थाईलैण्ड एवं कम्बोडिया में पहुँचाया ।
• अशोक ने राष्ट्रीय भाषा के रूप में पालि एवं राष्ट्रीय लिपि के रूप ब्राह्मी को अपनाया । सांची , सारनाथ एवं कौशाम्बी स्तम्भ लेखों में अशोक के उन आदेशों का उल्लेख है जिनमें वे महामात्रों को संघ भेद रोकने की आज्ञा देते थे ।
• रानी के स्तम्भ लेख ( कौशाम्बी ) में अशोक की पत्नी करुवाकी द्वारा किये गये दान का वर्णन है । अशोक के एरंगडी अभिलेख में ब्राह्मी लिपि दायें से बायीं ओर लिखी गयी है अशोक के ‘ महास्थान लेख ‘ से अन्न भण्डार के विषय में जानकारी मिलती है । अशोक के एकाश्मक स्तम्भों का सबसे अच्छा उदाहरण सारनाथ का सिंह स्तम्भ है । संकिसा स्तम्भ के शीर्ष पर हाथी बना है ।
• रुम्मिन्देई का स्तम्भ सबसे छोटा ( केवल 21 फुट ऊंचा ) है । इसके शीर्ष पर ‘ घोडा ‘ बना है ।
• रामपरवा स्तम्भ के ( लेख युक्त ) शीर्ष पर सिंह बना है ।
• रामपुरवा स्तम्भ के ( लेख विहीन ) शीर्ष पर ‘ वृषभ ‘ बना है । .1937 में अशोक के लेखों को सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप . ( James Prinsep ) ने पढ़ा । 01750 में टीफेन्थैलर ( Teffenthaler ) ने सबसे पहले दिल्ली में अशोक स्तम्भ का पता लगाया ।
• अशोक के दो लिपियों के शिलालेख ( ग्रीक + आर्मेइक ) शार – ए कना ( कन्धार ) से प्राप्त हुए हैं ।
• भान शिलालेख बैराट पर्वत की चोटी पर स्थित एक शिलाखण्ड पर अंकित
. . • O O था । यहीं से अशोक के बौद्ध धर्म स्वीकार करने उल्लेख मिलता है ।
● मौर्य काल में सर्वाधिक वेतन 48,000 पण एवं सबसे कम वेतन 60 पण था ।
• प्रवहण एक प्रकार का सामूहिक समारोह था । रंगोपजीवी एवं रंगोपजीविनी क्रमशः पुरुष कलाकार एवं स्त्री कलाकार को कहा जाता था ।
• फाह्यान के अनुसार अशोक ने 8 पुराने स्तूपों को खुदवा कर उनके अवशेषों पर करीब 84,000 स्तूप बनवाये । अधिकारियों की धर्म प्रचार यात्रा को ‘ अनसंधान ‘ कहा गया । अर्थशास्त्र में शुद्रों को ‘ आर्य ‘ कहा गया । पतंजलि के महाभाष्य से पता चलता है कि मौर्य काल में देवताओं की मतियों को बेचा जाता था ।
• मौर्य साम्राज्य के पतन के उपरान्त ब्राह्मण साम्राज्य का उदय हुआ , इस साम्राज्य के अन्तर्गत प्रमुख शासक वंश थे- शुंग , कण्व , आंध्र , सातवाहन एवं वाकाटक । .गुर्जरा एवं मास्की अभिलेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है , शेष अभिलेखों में अशोक का नाम देवानामप्रिय प्रियदस्सि उल्लिखित है ।
• ऐसी स्त्रियां जो घर से बाहर नहीं निकलती थीं , कौटिल्य ने ‘ अनिष्कासिनी ‘ कहा ।
• मौर्यकालीन पुलिस को रक्षिन कहा गया ।
• मौर्य काल में पहली बार दासों को कृषि कार्य में संलग्न किया गया ।
• ‘ उपधा परीक्षण ‘ द्वारा राजा मंत्रियों एवं पुरोहितों की नियुक्ति के पूर्व उनका चारित्रिक परीक्षण करता था ।
• राज्य के सप्तांग सिद्धांत को चाणक्य ने प्रतिपादित किया था ।
• भारतीय ग्रंथों में बैक्ट्रियन को यवन , पार्थियन को पहलव , सीथियन को शक एवं यू – ची जाति को कुषाण कहा गया ।
• भारतीय – यूनानी शासक मेनाण्डर ने बौद्ध धर्म एवं हेलियोडोरस ने भागवत धर्म स्वीकार किया ।
• भारतीय – यूनानियों ने ही सर्वप्रथम सोने के सिक्के जारी किये एवं उन पर लेख उत्कीर्ण करवाये ।
• ‘ यवनिका ‘ संस्कृत के नाटकों में पटापेक्ष के लिए प्रयोग होने वाला यूनानी शब्द है ।
• पहला ईसाई धर्म प्रचारक सेंट थामस पहलव शासक ‘ गोदोफर्निस ‘ के समय में भारत आया ।
• शक शासक रुद्रदामन का ‘ जनागढ़ अभिलेख ‘ संस्कृत भाषा का प्रथम सबसे बड़ा अभिलेख है । हिन्दुकुश पर्वत के दक्षिण तरफ सर्वप्रथम ताँबे के सिक्के चलाने का श्रेय कुजल कडफिसेस को दिया जाता है ।
• भूमिदान का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य प्रथम शताब्दी ई ० पू ० ( सातवाहनों के समय ) में मिलता है ।
• महान ‘ सिल्क मार्ग ‘ पर कुषाणों का अधिकार था ।
• कनिष्क ने कश्मीर को जीत कर ‘ कनिष्कपर ‘ नगर की स्थापना की ।
• कुषाणों के समय में राजतंत्र में दैवी तत्वों का समायोजन किया गया एवं इस वंश के राजाओं को ‘ देवपत्र ‘ कहा गया ।
• नागार्जुन की तुलना मार्टिन लूथर से की जाती है । इन्हें भारत का आईस्टाइन ‘ कहा जाता है ।
• वसुमित्र द्वारा रचित ‘ महाविभाष सूत्र ‘ को बौद्ध धर्म का विश्वकोश कहा जाता है ।
• कुषाणों ने अपने प्रांतों में द्वैध शासन की प्रणाली प्रारम्भ की ।
• ‘ मैत्रेय ‘ बुद्ध के नामों में से एक है जिसका उल्लेख सर्वाधिक बार हुआ कनिष्क द्वारा चलाये गये सिक्कों पर ही सर्वप्रथम बुद्ध की मूर्तियों के बने होने के संकेत मिलते हैं ।
• अब तक बुद्ध की मूर्ति दो रूपों में या तो खड़ी हुई या फिर बैठी हुई मिली है । बुद्ध की मर्तियाँ अधिक मात्रा में गंधार कला के अन्तर्गत बनीं ।
• मथुरा कला में सबसे कम मूर्तियाँ ‘ अवलोकितेश्वर बोधिसत्त्व ‘ की मिली है ।
• कुषाणों ने गुप्त स्वर्ण मुद्रा की तुलना में अधिक शुद्ध स्वर्ण मुद्रायें जारी की । दैनिक लेन देन में कषाण लोग ताँबे की मुद्रा का प्रयोग करते थे । ‘ शतमान ‘ चाँदी के बने सिक्के को कहते थे ।
• ‘ काकिनी ‘ ताँबे एवं राँगे से निर्मित सिक्के को कहते थे ।
• ‘ कर्षापण ‘ चार धातु- सोना , चाँदी , ताँबे व सीसे से निर्मित सिक्के को कहते थे । सर्वप्रथम रोमन साम्राज्य के साथ व्यापारिक सम्बन्ध दक्षिण के तमिल राज्यों ने स्थापित किया । पतंजलि ने मथुरा में ‘ सटका ‘ नाम के वस्त्र के पाये जाने का उल्लेख किया ।
• भारत में प्राप्त अधिकांश रोमन स्वर्ण सिक्के रोमन सम्राट आगस्टस एचं टाइबेरियस के समय के हैं । • रोमनवासी भारतीय मसाले , रत्न , वस्त्र एवं पशुपक्षियों में तोता , मोर , लंगूर को पसन्द करते थे । 24 • ‘ अरिकामेड ‘ बन्दरगाह को ‘ पेरिप्लस ऑफ दि एरिथ्रियन सी ‘ में ” पेडोक ‘ नाम से सम्बोधित किया गया है ।
● भारत के पश्चिमी तट पर ‘ बेरीगाजा ‘ बन्दरगाह सबसे अधिक प्राचीन एवं बड़े प्रवेश द्वार वाला बन्दरगाह था ।
• राजारानी वर्ग ( लिच्छवि प्रकार ) की मुद्रायें गुप्त काल की प्रथम मुद्रायें हैं । गुप्त मुना का जन्मदाता चन्द्रगुप्त प्रथम को माना जाता है ।
• समुद्रगुप्त के ‘ इलाहाबाद प्रशस्ति लेख ‘ का लेखक महादण्डनायक ध्रुवभूति का पुत्र हरिषेण था , जो समुद्रगुप्त का सन्धि विग्रहिक , कुमारामात्य एवं महादण्डनायक था । समुद्रगुप्त ने ‘ अश्वमेघाहर्ता ‘ की उपाधि धारण की ।
• समुद्रगुप्त द्वारा पराजित आर्यावर्त में 9 शासक एवं दक्षिणावर्त में 12 शासक थे ।
• गुप्त साम्राज्य का सबसे बड़ा अधिकारी मारामात्य होता था ।
• गुप्तकाल में ‘ द्कूल ‘ रेशम से निर्मित अच्छ वस्त्र को कहा जाता था । चीनाशुक चीनी रेशम को कहा जाता था । गुप्तकाल के अन्तिम चरण में ‘ पाटलिपुत्र ‘ का पतन एवं कन्नौज का उत्थान हुआ । गुप्तकालीन सिक्कों के प्राप्त 16 ढेरों में महत्वपूर्ण ढेर बयाना ( भरतपुर ) का ढेर है । । 7
C / 290 :: सामान्य अध्ययन प्रारम्भिक मूला –
• अजन्ता से मिली 60 गुफाओं में सर्वाधिक प्राचीन गुफा , गुफा संख्या . 9.10 हैं । गुप्तकाल में निर्मित गुफो संख्या 16 , 17 हैं । बाघ की गुफाओं की खोज 1818 में डेंजरफील्ड ने किया था । मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्त काल में हुआ । ‘ गुप्त काल में निर्मित देवगढ़ का दशावतार मंदिर सम्भवतः मंदिर निर्माण का पहला ऐसा उदाहरण है जिसमें ‘ शिखर ‘ का प्रयोग हुआ ।
गुप्त काल में सारनाथ में निर्मित ‘ घमेख का स्तप ‘ अन्य गुप्तकालीन स्तूपों की तरह चबूतरे पर न बनकर घरातल पर ईटो का बना है । – गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की तुलना कुबेर , वरुण , इन्द्र एवं यमराज से की गयी ।
• दण्डपाशिक गुप्तकाल में पुलिस विभाग के प्रमुख को कहा जाता था ।
• प्रस्तपाल अभिलेखों को सुरक्षित रखने वाले अधिकारी को कहा जाता था ।
• गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राओं को अभिलेखों में ‘ दीनार ‘ कहा गया ।
• गुप्तकालीन भारत के पूर्वी तट पर सबसे बड़ा बन्दरगाह ताम्रलिप्ति एवं पश्चिमी तट पर भडौच था । गुप्तकालीन भारत में चीन से रेशम , इधोपिया से हाथी दांत , अरब , ईरान एवं बैक्ट्रिया से घोड़े आयात किये जाते थे ।
फाह्यान के अनुसार गुप्तकालीन बाजारों में साधारण लेन – देन में कौड़ियों के प्रचलन के प्रमाण मिलते हैं । गुप्तकालीन समाज में जाति प्रथा की जटिलता कुष्ठ कम हुई । बाह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्रों को आपात काल में अपने व्यवसाय को छोड़ कर अन्य व्यवसायों को अपनाने की छूट थी ।
• सती होने का प्रथम अभिलेखीय प्रमाण 510 ई ० के एरण अभिलेख से मिलता है । गुप्तकाल में ” शिव ‘ के अर्धनारीश्वर रूप की कल्पना करते हुए शिव एवं पार्वती की मूर्तियों का एक साथ निर्माण प्रारम्भ हुआ । शैव एवं वैष्णव धर्म के समन्वय को दर्शाने वाली भगवान ‘ हरिहर ‘ की मूर्ति का निर्माण एवं त्रिमर्ति के अन्तर्गत ब्रह्मा , विष्णु एवं महेश की पूजा का आरम्भ गुप्त काल में ही हुआ ।
• गुप्त सम्राट कमारगुप्त ने ही सम्भवतः नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी । इसे शक्रादित्य भी कहा जाता था ।
• गुप्तकालीन मंदिर कला का सर्वोत्तम उदाहरण देवगढ़ का दशावतार मंदिर है । गुप्तकालीन मूर्तियों में कुषाणकालीन मूर्तियों की तरह नग्नता एवं कोमकता का दर्शन नहीं होता । गुप्तकाल में ही एकमुखी एवं चतर्मखी शिवलिंग का निर्माण प्रारम्भ हुआ । विष्ण शर्मा द्वारा रचित गुप्तकालीन ग्रंथ ‘ पंचतंत्र की गणना संसार के सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ ‘ बाइबिल ‘ के बाद दूसरे स्थान पर की जाती है ।
गुप्त काल में ही दो जैन सभायें क्रमशः मथुरा एवं बल्लभी में आयोजित की गयी ।
गुप्तकालीन मंदिरों के पावों पर गंगा और यमुना के चित्र सर्वप्रथम गुप्तकाल में ही बनाये गये । कत्रीज पर अधिकार को लेकर हुए त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेने वाली महत्वपूर्ण शक्तियां थीं – गुर्जर – प्रतिहार , राष्ट्रकूट एवं पाल ।
C / 290 :: सामान्य अध्ययन प्रारम्भिक मूला –
• अजन्ता से मिली 60 गुफाओं में सर्वाधिक प्राचीन गुफा , गुफा संख्या . 9.10 हैं । गुप्तकाल में निर्मित गुफो संख्या 16 , 17 हैं । बाघ की गुफाओं की खोज 1818 में डेंजरफील्ड ने किया था ।
मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्त काल में हुआ । ‘ गुप्त काल में निर्मित देवगढ़ का दशावतार मंदिर सम्भवतः मंदिर निर्माण का पहला ऐसा उदाहरण है जिसमें ‘ शिखर ‘ का प्रयोग हुआ ।
गुप्त काल में सारनाथ में निर्मित ‘ घमेख का स्तप ‘ अन्य गुप्तकालीन स्तूपों की तरह चबूतरे पर न बनकर घरातल पर ईटो का बना है । – गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की तुलना कुबेर , वरुण , इन्द्र एवं यमराज से की गयी ।
• दण्डपाशिक गुप्तकाल में पुलिस विभाग के प्रमुख को कहा जाता था ।
• प्रस्तपाल अभिलेखों को सुरक्षित रखने वाले अधिकारी को कहा जाता था ।
• गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राओं को अभिलेखों में ‘ दीनार ‘ कहा गया ।
• गुप्तकालीन भारत के पूर्वी तट पर सबसे बड़ा बन्दरगाह ताम्रलिप्ति एवं पश्चिमी तट पर भडौच था । गुप्तकालीन भारत में चीन से रेशम , इधोपिया से हाथी दांत , अरब , ईरान एवं बैक्ट्रिया से घोड़े आयात किये जाते थे ।
फाह्यान के अनुसार गुप्तकालीन बाजारों में साधारण लेन – देन में कौड़ियों के प्रचलन के प्रमाण मिलते हैं ।
गुप्तकालीन समाज में जाति प्रथा की जटिलता कुष्ठ कम हुई । बाह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्रों को आपात काल में अपने व्यवसाय को छोड़ कर अन्य व्यवसायों को अपनाने की छूट थी ।
• सती होने का प्रथम अभिलेखीय प्रमाण 510 ई ० के एरण अभिलेख से मिलता है ।
गुप्तकाल में ” शिव ‘ के अर्धनारीश्वर रूप की कल्पना करते हुए शिव एवं पार्वती की मूर्तियों का एक साथ निर्माण प्रारम्भ हुआ । शैव एवं वैष्णव धर्म के समन्वय को दर्शाने वाली भगवान ‘ हरिहर ‘ की मूर्ति का निर्माण एवं त्रिमर्ति के अन्तर्गत ब्रह्मा , विष्णु एवं महेश की पूजा का आरम्भ गुप्त काल में ही हुआ ।
• गुप्त सम्राट कमारगुप्त ने ही सम्भवतः नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी । इसे शक्रादित्य भी कहा जाता था ।
• गुप्तकालीन मंदिर कला का सर्वोत्तम उदाहरण देवगढ़ का दशावतार मंदिर है ।
गुप्तकालीन मूर्तियों में कुषाणकालीन मूर्तियों की तरह नग्नता एवं कोमकता का दर्शन नहीं होता ।
गुप्तकाल में ही एकमुखी एवं चतर्मखी शिवलिंग का निर्माण प्रारम्भ हुआ ।
विष्ण शर्मा द्वारा रचित गुप्तकालीन ग्रंथ ‘ पंचतंत्र की गणना संसार के सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ ‘ बाइबिल ‘ के बाद दूसरे स्थान पर की जाती है ।
गुप्त काल में ही दो जैन सभायें क्रमशः मथुरा एवं बल्लभी में आयोजित की गयी । गुप्तकालीन मंदिरों के पावों पर गंगा और यमुना के चित्र सर्वप्रथम गुप्तकाल में ही बनाये गये । कत्रीज पर अधिकार को लेकर हुए त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेने वाली महत्वपूर्ण शक्तियां थीं – गुर्जर – प्रतिहार , राष्ट्रकूट एवं पाल ।
पशन त्रिपक्षीय संघर्ष में अन्तिम विजय गुर्जर – प्रतिहारों की हुई ।
त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेने वाली राष्ट्रकूट शक्ति दक्षिण की पहली ऐसी शक्ति थी जिसने उत्तर भारत पर आक्रमण करने का श्रेय प्राप्त किया ।
त्रिपक्षीय संघर्ष की वास्तविक पहल प्रतिहार नरेश वत्सराज ने की । प्रतिहारवंशी शासक भोज ने ‘ आदिवराह ‘ एवं ‘ प्रभास ‘ की उपाधि धारण की , इसे मिहिर भोज भी कहा जाता है ।
परमार शासक भोज ने ‘ भोजपुर नगर ‘ एवं भोजसर नामक तालाब का निर्माण करवाया । इसने कवि राज नाम की उपाधि धारित की । ‘ चालुक्य शासक मूलराज द्वितीय ने 1178 में आबू पर्वत के निकट मुहम्मद गोरी को पराजित किया ।
• महमूद गजनवी ने ब्राह्मण शाही शासक जयपाल के समय में लगभग 1001 में भारत पर आक्रमण किया । महिपाल को पाल वंश का द्वितीय संस्थापक माना जाता है ।
पाल नरेश धर्मपाल ने प्रसिद्ध ‘ विक्रमशिला विश्वविद्यालय ‘ की स्थापना की । इसने ‘ परमसंगत ‘ की उपाधि धारण की ।
गुजरात के चालुक्य ( सोलंकी ) वंशी शासक भीम प्रथम के शासन काल में लगभग 1025 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया ।
कश्मीर में 724 से लेकर लगभग 1003 के मध्य तीन राजवंश कार्कोट , उत्पल एवं लोहर वंश ने शासन किया । लोहर वंश के अन्तिम शासक जयसिंह के शासन काल में ही कल्हण ने ‘ राजतरंगिणी ‘ की रचना की । इस कृति से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है ।
कश्मीर के लोहर वंश के शासक ‘ हर्ष ‘ को ‘ कश्मीर का नीरो ‘ कहा गया ।
गुप्तोत्तर काल में सूद पर रुपया उधार देने को ‘ कुसीदवृत्ति ‘ कहा गया ।
सर्वप्रथम विदेशी यात्री एवं लेखक हवेनसांग ने कृषि को शुद्रों का व्यवसाय बताया । कायस्थों का सर्वप्रथम वर्णन ‘ याज्ञयवल्क्य स्मृति ‘ में मिलता है । जाति के रूप में इनका पहला उल्लेख ‘ ओशनम स्मति ‘ में मिलता है । ‘ इस समय मूर्तिपूजा से जीविकोपार्जन करने वाले ब्राह्मणों को ‘ देवलक ‘ कहा गया ।
मल्लकर या तरुष्क नामक दण्ड कर अशान्ति फैलाने वाली जातियों से निपटने के लिए लगाया जाता था ।
• गुप्तोत्तर काल का सर्वाधिक प्रसिद्ध बन्दरगाह ताम्रलिप्ति ( बंगाल ) था , कालान्तर में इसका स्थान सप्तग्राम ने ले लिया । इस समय ‘ टुकल ‘ पौधों के रेशे से बनने वाले वस्त्र को , वरोज भड़ौच में बनने वाले एवं चूनारी मध्यदेश में बनने वाले वस्त्र को कहा गया ।
• गुप्तोत्तर काल में श्रेणी के प्रमुख को ‘ महत्तक ‘ एवं वणिकों की श्रेणी के मुखिया को ‘ श्रेष्ठि ‘ कहा जाता था ।
‘ गुप्तोत्तर काल में बंगाल – मलमल , पान सपाडी एवं सन के लिए , कलिंग अच्छे किस्म के धान के लिए , मालवा गत्रा , नील एवं अफीम हेतु तथा गुजरात सूती कपडे एवं चमड़े द्वारा निर्मित वस्तुओं हेतु प्रसिद्ध था । दक्षिण भारत में प्राप्त ‘ ऐरी पत्ती ‘ किस्म की भूमि से होने वाली आय का प्रयोग सिंचाई के साधनों के विकास के लिए किया जाता था । द्वितीय संगम काल का एकमात्र ग्रंथ है- ‘ तोलकाप्पियम ‘ ।
– • संगम कालीन ग्रंथों में शिलप्पदिकारम , मणिमेखलै एवं जीवक चिन्तामणि को महाकाव्य कहा गया । संगमकालीन श्रेष्ठ संग्रह काव्य ग्रंथ तिरुक्कक्करल जिसे कुरल या मुप्पाल भी कहते हैं , को ‘ तमिल बाइबिल ‘ के नाम से जाना जाता है ।
औवैयार एवं नच्चेलियर संगमकालीन प्रसिद्ध कवियत्रियां थीं । शेन गुट्टवन अथवा लालचेर के समय में कण्णगी या पत्नी पूजा की प्रथा प्रारम्भ हुई । दक्षिणी भू – भाग में सर्वप्रथम गन्ने की खेती को आरंभ करवाने का श्रेय तगडूर के राजा अडिगयमान अथवा नइमान को दिया जाता है ।
● चोल शासक करिकाल का उल्लेख तमिल ग्रंथों में ‘ सात सरो के ज्ञाता ‘ के रूप में मिलता है । चेर . चोल एवं पाण्ड्य राज्यों के राजचिह्न क्रमशः धनुष , बाघ , एवं मछली थे ।
पाण्ड्य शासकों ने रोमन सम्राट ऑगस्टस के दरबार में दूत मण्डल भेजे थे । परिप्लस ऑफ एरीट्रियन सी ग्रंथ से नौरा ( कन्नौर ) तोण्डी ( पोत्रानी ) , मुशिरी , नेल्सिड़ा ( कोट्टयम के निकट ) एवं पुहार ( कावेरीपट्टनम ) बन्दरगाहों के विषय में जानकारी मिलती है ।
संगमकालीन कविताओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण बन्दरगाह के रूप में शालियर एवं बन्दर नामक तटों की गणना की जाती है । पहार ( कावेरीपट्टनम ) , तोण्डी एवं मुशिरी में यवन बस्तियों के अवशेष मिले हैं । मुजिरिस में रोमन सम्राट ऑगस्टस के मंदिर के भग्नाशेष मिले हैं ।
अरिकामेड ( पांडेचेरी ) भारत और रोम के मध्य महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध था । पालर नदी पर वसव समुद्र ( मद्रास ) बन्दरगाह था ।
• उरैयर सूती वस्त्रों का सबसे बड़ा केन्द्र था ।
• संगम काल में छात्रों को पिल्लै एवं शिक्षकों को ‘ कणक्काटार ‘ कहा गया ।
• संगम काल में मरवा गोहरण कर्ता को , पुलैयन रस्सी बनाने वालों को , मलवर डाका डालने वालों को एवं एनियर शिकारी को कहा गया । विरुवाम्पलियर ‘ चेर , चोल एवं पाण्ड्य राज्यों के संगम स्थल के रूप में प्रसिद्ध था ।
संगमकालीन समाज 5 वर्गो- ब्राह्मण , अरसर , बेनिगर , बल्लाल एवं वेल्लानर में विभक्त था । संगमकालीन ग्रंथों में प्रेम विवाह को पंचतिण , एकपक्षीय प्रेम को कैकिणै एवं अनुचित प्रेम को पेरुन्दिणै कहा गया ।
. – संगमकालीन सर्वाधिक प्राचीन एवं प्रचलित देवता मुरुगन था , कालान्तर में इसे सब्रह्मण्यम कहा गया । प्रशासककीय कार्यों में राजा के सहयोग के लिए बनाई गयी परिषद को ‘ पंचवारम ‘ कहा जाता था ।
राजा की सभा को नलर्वे एवं राज्य के सर्वोच्च न्यायालय को ‘ मनरम ‘ कहा जाता था । – चोल सत्ता ( 800 से 1200 ) का संस्थापक विजयालय था , इसने ‘ नरकेसरी ‘ की उपाधि धारण की । -चोल लोग कांची के पल्लव राजवंश के सामन्त थे । अकाममानमा नपुमान
का मा अमिमान नमान भारतीय इतिहास :: C / 291
चौलों की प्रारम्भिक राजधानी उरैयर में थी । राजाराज प्रथम ने श्रीलंका के विजित क्षेत्रों का नाम मामण्डी चोलमण्डलम रखा एवं पोल्लोनरुआ को इसकी राजधानी बनाया ।
गंगा घाटी व बंगाल विजय अभियान के बाद राजेन्द्र प्रथम ने ‘ गंगैकोण्डचोल ‘ की उपाधि धारण करते हुए नवीन राजधानी ‘ गंगकोण्डचोलपरम ‘ की स्थापना की ।
– परान्तक प्रथम ने ‘ मदरैकोण्ड ‘ की उपाधि धारण की । परान्तक द्वितीय pl को ‘ सन्दरचोल ‘ कहा जाता था । PD राजाराज प्रथम ने सर्वप्रथम – सर्वेक्षण करवाया , इसने चोल अभिलेखों को ‘ ऐतिहासिक प्रशरित ‘ के साथ लिखवाने की प्रथा की शुरुआत की ।
नगरम स्थानीय समिति व्यापारिक वर्ग से सम्बंधित थी । सभा की कार्यकारी समिति को वरियम कहा जाता था । .. चोल चालुक्य नरेश कुलोत्तुंग प्रथम ने व्यापारिक दूतमण्डल को चीन भेजा था । चोल काल में धान को विनिमय की इकाई के रूप में प्रयोग किया जाता था ।
● चोल काल में द्रविड़ कला के अन्तर्गत निर्मित मंदिरों की विशेषता उनके पिरामिड आकार वाले शिखर होते थे ।
● चोल मंदिर के प्रवेश द्वारों को ‘ गोपुरम् ‘ कहा जाता था । चोलयुगीन स्थापत्य कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण राजाराज द्वारा निर्मित न राजराजेश्वर मंदिर था ।
तमिल भाषा में ‘ रामायण ‘ की रचना करने वाला कवि कंबन कुलोत्तुंग KT 1 तृतीय का राजकवि था । क चोल शासक कुलोत्तुंग द्वितीय के कारण विशिष्टाद्वैतवाद दर्शन के प्रवर्तक रामानुज को चोल दरबार छोड़ कर होयसलों के मैसूर राज्य में जाना पड़ा ।
चोलों के बाद चोल – चालुक्य वंश ने शासन किया । दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों में कुतुबुद्दीन ऐबक एवं खिजखाँ ने सुल्तान की उपाधि नहीं धारण की थी ।
दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक चार वंशों- मुइज्ती , कुत्बी , शम्शी एवं बलबनी को ‘ आरम्भिक तुर्क सुल्तान ‘ कहा गया । इल्तुतमिश एवं बलबन इल्बारी तुर्क कबीले के थे । एवं इल्तुतमिश ने लाहौर के स्थान पर दिल्ली को सल्तनत की राजधानी बनाया ।
* दिल्ली सल्तनत में अक्ता प्रणाली का प्रारम्भ इल्तुतमिश ने किया । – इल्तुतमिश प्रथम शासक था जिसने शुद्ध अरबी पद्धति पर आधारित नर – इल्तुतमिश ने प्रसिद्ध गुलाम तुर्क अमीरों के संघ ‘ चालीसा ‘ की स्थापना को की ।
• बलबन ने दीवान – ए – अर्ज ( सैन्य विभाग ) की स्थापना की । अलाउद्दीन सल्तनत काल का प्रथम शासक था जिसने भूमि की नाप – जोख करायी और साथ में राज्य की समस्त भूमि को ‘ खालसा टंका एवं जीतल सिक्के चलाये ।
सने भूमि ‘ के अन्तर्गत कर लिया । अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने दक्षिण में विजय की ।
Cr292 :: सामान्य अध्ययन प्रारम्भिक मसा
सल्तनतकालीन शासक मबारक खिलजी ने खलीफा की सत्ता को स्वीकारने से इंकार कर स्वयं को खलीफा घोषित किया । गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था जिसने अपने नाम के साथ गाजी शब्द लगाया ।
• दिल्ली सल्तनत का विस्तार अपने चरमोत्कर्ष पर मुहम्मद बिन तुगलक के समय में था । अलाउद्दीन ने दीवान – ए – मुस्तखराज विभाग की स्थापना की ।
भारत पर तैमर के आक्रमण के समय दिल्ली की गद्दी पर नासिरुद्दीन महमद तुगलक विराजमान था । तुगलकवंशी शासक नसीर – उहीन अहमद के समय दिल्ली सल्तनत का विस्तार दिल्ली से पालम तक ही रह गया था ।
• सैय्यदवंशी खिजखाँ ने तैमूर के पुत्र शाहरुख के राजप्रतिनिधि के रूप में शासन किया । .
लोदी वंश के शासक सिकन्दर लोदी ने सर्वप्रथम राजधानी को दिल्ली से आगरा स्थानान्तरित किया । .
मुहम्मद बिन तुगलक ने ‘ दीवान – ए – अमीरकोही ‘ विभाग की स्थापना की । जलालुद्दीन खिलजी ने ‘ दीवाने वकूफ ‘ की स्थापना की ।
• चारागाह कर एवं भवन कर की शुरुआत अलाउद्दीन खिलजी ने की ।
• इसामी के ग्रंथ ‘ फतह – उस – सलातीन ‘ में सर्वप्रथम चरखे का उल्लेख मिलता है ।
• अल बरुनी की पुस्तक ‘ तहकीकाते हिन्द ‘ अरबी भाषा में लिखी गयी है ।
• सल्तनतकालीन मंत्रिपरिषद् को ‘ मजलिस – ए – खलवत ‘ कहा गया ।
• सम्पत्ति की न्यूनतम मात्रा को ‘ निसाब ‘ कहा जाता था । • सल्तनत काल में सर्वप्रथम सिंचाई कर फिरोज तुगलक ने लगाया ।
• मंगोल सरदारों को दलचा ‘ कहा जाता था । . सिंचाई के लिए सर्वप्रथम नहरें गयासुद्दीन तुगलक ने खुदवाया । • कश्मीर के शासक जैनुल आबदीन को ‘ कश्मीर का अकबर ‘ कहा गया ।
• बीजापुर का शासक इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय को अपने राज्य में हिन्दुओं को संरक्षण देने के कारण ‘ जगदगः ‘ कहा गया ।
• इमारतों में गुम्बद एवं मेहराब का प्रयोग तर्को के रोमवासियों से सीखा ।
• अलंकरण में तुर्को द्वारा जीवित वस्तुओं जैसे मानव एवं पशु आकृतियों का प्रयोग निषिद्ध होने के कारण लिखावट एवं ज्यामितीय आकृतियों का अंकन किया जाता था ।
• भारत में प्रथम पूर्णतः इस्लामी परम्परा के आधार पर निर्मित मस्जिद ‘ जमालखाना मस्जिद ‘ है ।
• अलाउद्दीन द्वारा निर्मित ‘ अलाई दरवाजा ‘ कुब्बत उल इस्लाम मस्जिद का प्रवेश द्वार है ।
• शुद्ध रूप में मेहराब का प्रयोग सर्वप्रथम बलबन के मकबरे में हुआ ।
• तुगलक वास्तुकला की विशेषता थी लिन्टल एवं शहतीर के साथ मेहराब का प्रयोग ।
• लोदियों के समय में मकबरों का निर्माण ऊँचे चबूतरे पर किया जाने लगा । – दक्षिण भारत में चिश्ती परम्परा की शुरुआत शेखबरहानदीन गरीब ने की ।
• आइने – अकबरी में अबुल फजल ने चौदह सूफी सिलसिलों का उल्लेख किया है ।
• विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर एवं बुक्का नाम के दो भाइयों ने की ।
• विजयनगर साम्राज्य में शासन करने वाले महत्वपूर्ण 4 राजवंशों का क्रम इस प्रकार था- संगम , सालुव , तुलुव एवं आरविडु ।
• विजयनगर साम्राज्य में सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाला वंश था ‘ संगमवंश ‘ ।
• विजयनगर एवं बहमनी के मध्य संघर्ष का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण था ‘ रायचूर एवं तुंगभद्रा के दोआब ‘ क्षेत्र पर अधिकार । विद्यारण्य नामक वैष्णव सन्त ने हरिहर एवं बुक्का को पुनः हिन्दू बनाया और साथ ही विजयनगर साम्राज्य की स्थापना में सहयोग किया । बुक्का प्रथम ने एक दूतमण्डल चीन भेजा था । . विजयनगर साम्राज्य ‘ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित था । कृष्णदेव राय ने ‘ अमुक्तमाल्यद ‘ , ‘ जाम्बवतीकल्याण ‘ एवं ‘ उषा परिणय ‘ की रचना की । . कृष्णदेव राय का राजकवि पेड्डाना था । इसके राजदरबार में रहने वाले तेलुगु साहित्य के आठ कवियों को ‘ अष्टदिग्गज ‘ कहा गया ।
• कृष्णदेव राय ने ‘ यवनराज स्थापनाचार्य ‘ ‘ आंध्र भोज ‘ ‘ आन्ध्र पितामह ‘ आदि उपाधि धारण किया । • तालिकोटा के युद्ध को ‘ राक्षसी – तंगडी ‘ एवं बेत्री हट्टी की लड़ाई के नाम से भी जाना जाता है ।
• विजयनगर के विरुद्ध बने मुस्लिम महासंघ के सदस्य थे – बीजापुर , अहमद नगर , गोलकुण्डा एवं बीदर । – विजयनगर के चौथे राजवंश आरविड़ वंश के संस्थापक तिरुमल्ल ने ‘ पेनुकोण्डा ‘ को अपनी राजधानी बनाया । विजयनगर साम्राज्य में जुलाहे को ‘ कैकोल्लार ‘ एवं दस्तकारों को ‘ वीर पांचाल ‘ कहा गया । . नाडु की सभा के सदस्यों को ‘ नात्तवर ‘ कहते थे । मनयम आयंगारों को दी गई कर- मुक्त भूमि को कहते थे ।
• विजयनगर नरेश कृष्णदेव राय ने भूमि का सर्वेक्षण करवाया । . गीली भूमि को ‘ नन्जाई ‘ कहते थे । .नकद लगान को सिद्दम कहा जाता था । भंडारवाद ग्राम वे होते थे जिनकी भूमि राज्य के प्रत्यक्ष नियंत्रण में होती थी ।
‘ उम्बलि ‘ भूमि उस भूमि को कहते थे , जो गाँव में कुछ विशेष सेवाओं के बदले दी जाती थी , यह भूमि लगान मुक्त होती थी ।
‘ कुट्टगि ‘ भूमि कुछ बड़े भूस्वामियों तथा मन्दिरों द्वारा पट्टे पर दी जाती था । वेसबाग मनुष्यों के क्रय – विक्रय को कहते थे । ‘ बोमलाट ‘ छाया नाटक को कहते थे । विजयनगर के शासक शैव एवं वैष्णव धर्म के अनुयायी थे ।
विजयनगर आये विदेशी यात्रियों में अब्दुल रज्जाक राजदूत की हैसियत से आया था । • विजयनगर दरबार के महत्वपूर्ण कवि पेड्डाना को ‘ आन्य कविता का
. पितामाई ‘ कहा गया । मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर को माना जाता है ।
1507 में बाबर ने ‘ पादशाह ‘ की उपाधि धारण की । .पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोदी के विरुद्ध ‘ तुगमा नीति ‘ का प्रयोग किया था । पहली बार तोपों का इस्तेमाल बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध में किया । बाबर ने ‘ तुजुके बाबरी ‘ नाम से तुर्की भाषा में आत्मकथा लिखी ।
• 23 जुलाई , 1555 को हुमायूँ एक बार पुनः दिल्ली के तख्त पर बैठा । हुमायूँ ने सप्ताह के सात दिन में सात रंग के कपड़े पहनने का नियम बनाया ।
चौसा के युद्ध ( 1539 ) को जीतने के बाद शेरखाँ ( अफगान ) शेरशाह की उपाधि धारण कर दिल्ली राजसिंहासन पर आसीन हुआ ।
भूमि की पैमाईश के लिए शेरशाह ने 32 अंक वाले ‘ सिकन्दरी गज ‘ एवं ‘ सन की डंडी ‘ का प्रचलन करवाया । शेरशाह ने सिक्का ढलाई के क्षेत्र में चांदी का रुपया एवं तांबे का दाम जारी करवाया ।
शेरशाह ने दिल्ली के पुराने किले के अन्दर 1542 में , किला- ए- कुहना ‘ मस्जिद का निर्माण करवाया ।
• अकबर का जन्म अमरकोट के राणा वीरसाल के महल में हुआ । अकबर को 9 वर्ष की अवस्था में पहली बार गजनी का सुबेदार बनाया गया ।
• अकबर के अल्पायु होने के कारण 1556-1560 तक मुगल साम्राज्य के शासन की जिम्मेदारी बैरम खाँ के हाथों में रही ।
• 13 वर्ष की कम आयु में अकबर का राज्याभिषेक 14 फरवरी , 1556 को कलानौर में हुआ । . अकबर के समय आदिलशाही हिन्दू प्रधानमंत्री हेमू ने ‘ विक्रमादित्य ‘ की उपाधि धारण की । .बैरम खाँ की एक लोहानी अफगान ने 1560 में छुरा भोक कर हत्या कर दी । अकबर ने 1562 में दास प्रथा , 1563 में तीर्थयात्रा कर , 1564 में जजिया कर को समाप्त किया था । अकबर की प्रथम विजय मालवा ( 1561 ) एवं अन्तिम विजय असीरगढ़ ( 1601 ) की थी । अकबर को अपने सैन्य अभियानों में सर्वाधिक सफलता राजस्थान में मिली ।
• 1573 में अकबर द्वारा गुजरात पर किये गये दूसरे आक्रमण को इतिहासकार स्मिथ ने ‘ ऐतिहासिक दृतगामी आक्रमण ‘ कहा ।
• 1562 से पूर्व के अकबर के शासन को हरम की स्त्रियों के प्रभाव में रहने के कारण कुछ इतिहासकारों ने इस काल को ‘ पर्दाशासन ‘ या . ‘ पेटीकोट सरकार ‘ कहा ।
• गुजरात में 1584 में हुए विद्रोह को सफलतापूर्वक दबाने के कारण अकबर ने अब्दुर्रहीम को ‘ खान – खाना ‘ की उपाधि प्रदान की ।
• युसुफजाहियों के विद्रोह को दबाते हुए 1585 में बीरबल की मृत्यु हो गयी । 2 अकबर ने 1571 में ‘ फतेहपुर सीकरी ‘ को अपनी राजधानी बनाया । 1575 में अकबर ने यहाँ पर ‘ इबादतखाने का निर्माण करवाया ।
भारतीय इतिहास :: C / 293 – 1579 में
अकबर ने ‘ महज़र ‘ नामक दस्तावेज जारी कर ‘ सुल्ताने आदिल ‘ की उपाधि धारण की । -1582 में अकबर ने तौहीद – ए – इलाही या दीन – ए – इलाही की घोषणा की । अबुल फजल ने बादशाह अकबर में आग , हवा , पानी एवं भूमि जैसे चार तत्वों के समावेश की बात कही ।
• अकबर ने सूफी मत में आस्था जताते हुए ‘ चिश्ती सम्प्रदाय ‘ को आश्रय दिया । 1583 में अकबर ने नया कैलेण्डर ‘ इलाही संवत ‘ जारी किया ।
• अकबर की भू- राजस्व व्यवस्था का प्रवर्तक टोडरमल था , जिसे ‘ जाब्ती प्रणाली ‘ का जन्मदाता माना जाता है ।
• अकबर ने अपने शासन काल के चौबीसवें वर्ष ( 1580 ) में आइने दहसाला- पद्धति को लागू किया । अकबर ने भूमि की पैमाइश हेतु 41 अंगुल के ‘ इलाही गज ‘ का प्रचलन करवाया । .अकबर की ‘ आईने दहसाला प्रणाली’को टोडरमल बन्दोबस्त भी कहा गया ।
• मुगल काल में कृषकों को ‘ खुदकाश्त ‘ , ‘ पाहीकाश्त ‘ एवं ‘ मुजारियान ‘ में बांटा गया था । • अकबर जहांगीर को ‘ शेखोबाबा ‘ के नाम से पुकारता था ।
• जहाँगीर ने 1602 में वीरसिंह देव द्वारा अबुल फजल की हत्या करवा दी ।
• जहाँगीर ने सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव को फाँसी की सजा दी थी ।
• नूरजहाँ गुट के प्रमुख सदस्य थे- अस्मत बेगम ( नूरजहाँ की माँ ) एत्मादुद्दौला हा ( नूरजहाँ के पिता ) , आसफ खाँ ( नूरजहाँ का भाई ) आदि ।
जहाँगीर के शासनकाल की महत्वपूर्ण उपलब्धि उसकी मेवाड विजय थी । .टामस रो जहाँगीर के समय में भारत आया ।
खुर्रम द्वारा दक्षिण भारत के सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण सफलता अर्जित करने के कारण खुश होकर जहाँगीर ने 1617 में उसको ‘ शाहजहाँ ‘ की उपाधि प्रदान की ।
• शाहजहाँ के शासनकाल का वर्णन बर्नियर , मनूची एवं टेवर्नियर ने L औरंगजेब को ‘ जिंदापीर ‘ के नाम से भी जाना जाता था ।
• औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना , नौरोज त्यौहार , भांग की खेती , गाने बजाने आदि पर प्रतिबंध लगाया था ।
• औरंगजेब ने अपने शासन काल के ग्यारहवं वर्ष में ‘ झरोखा दर्शन ‘ एवं बारहवें वर्ष में ‘ तलादीन ‘ जैसी प्रथा को प्रतिबन्धित कर दिया , इन्होंने 1679 में पुनः ‘ जजिया कर ‘ लगाया , 1669 में औरंगजेब ने हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया ।
• औरंगजेब ने सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर का इस्लाम धर्म न स्वीकार करने के कारण कत्ल करवा दिया । औरंगजेब ने ‘ मुहतसिब ‘ ( सार्वजनिक सदाचार निरीक्षक ) नाम के अधिकारी की नियुक्ति की । • मुगल काल में भूमि का वर्गीकरण पोलज , परती , छच्छर एवं बंजर भूमि में किया गया था । 7 7
C / 294 :: सामान्य अध्ययन प्रारम्भिक C
– मुगल काल में सोने की मुहर , चाँदी का रुपया एवं ताँबे का दाम प्रचलन में थे ।
‘ इलाही ‘ सोने का सर्वाधिक प्रचलित सिक्का एवं ‘ शंसब ‘ सोने का सबसे बड़ा सिक्का होता था । . अकबर ने चौकोर आकार के जलाली ‘ सिक्के वलवाये । .
शाहजहाँ ने ‘ आना ‘ सिक्के का प्रचलन करवाया । .
कोवाड मुगलकाल में दक्षिण भारत में प्रचलित नाप की एक इकाई थी जिससे सूती एवं ऊनी वस्त्रों को मापा जाता था ।
• मुगलकालीन सैन्य संगठन मनसबदारी व्यवस्था पर आधारित था ।
अकबर के शासनकाल के ग्यारहवें वर्ष ( 1567 ) में पहली बार मनसब प्रदान किये जाने का उल्लेख मिलता है ।
– अबुल फजल के अनुसार अकबर ने अपने शासनकाल के अठारहवें वर्ष में दाग प्रथा का प्रचलन करवाया । मनसबदारी प्रथा के अन्तर्गत मराठे सर्वप्रथम जहाँगीर के समय में शामिल किये गये ।
• सर्वाधिक हिन्दू मनसबदार औरंगजेब के समय में थे ।
• मुगलकालीन सेना को ‘ एक भारी चलायमान शहर ‘ की उपमा दी जाती धी ।
• मनसबदारी व्यवस्था में दु- अस्पा एवं सिंह- अस्पा प्रथा की शुरुआत जहाँगीर ने की । .
औरंगजेब ने मनसबदारी व्यवस्था में एक नयी प्रथा ‘ मशरुत ‘ की शुरुआत की ।
• पुगलकालीन स्थापत्य कला के क्षेत्र में पहली बार ‘ आकार ‘ एवं डिजाइन की विविधता का प्रयोग किया गया ।
संगमरमर के पत्थर पर जवाहरात से की गयी जड़ावट , जिसे पित्रा दुरा ( Pitra Dura ) के नाम से जाना जाता है , का प्रथम प्रयोग एत्माद्दौला के मकबरे में किया गया ।
सिकंदराबाद में बने अकबर के मकबरे में हिन्दु , बौद्ध , तैमूरी एवं फारसी शैली का अनोखा संगम देखने को मिलता है ।
. अकबर द्वारा निर्मित अजमेर का किला सर्वाधिक दुर्गीकृत किला है ।
.शाहजहाँ के शासनकाल को ‘ स्थापत्य कला का स्वर्णकाल ‘ कहा जाता है ।
– अकबर के समय में पहली बार भित्ति चित्रकारी की शुरुआत हुई ,
बसावन अकबर के समय का प्रमुख चित्रकार था ।
• जहाँगीर के समय में चित्रकारी अपने चरमोत्कर्ष पर थी , मनोहर इस समय का प्रसिद्ध चित्रकार था ।
अकबर के समय में संगीत के क्षेत्र में गायन की ‘ ध्रुपद शैली ‘ एवं वाद्य यंत्र वीना या वीणा का प्रचार हुआ ।
सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन को अकबर ने ‘ कण्ठाभरणवाणी ‘ की उपाधि प्रदान की ।
• औरंगजेब ने संगीत पर प्रतिबन्ध लगाया , फिर भी इसके समय में . ‘ भारतीय शास्त्रीय संगीत ‘ पर सर्वाधिक पुस्तकें छापी गयीं । .
मुहम्मद शाह पहला मुगल शासक था जिसने उर्दू भाषा के विकास के लिए कार्य किया । उर्दू का रख्ता ‘ भी कहा गया ।
• मुगल काल को गुप्तकाल के बाद का ‘ द्वितीय क्लासिकी युग ‘ कहा जाता है । . . • . .
‘ शिवाजी के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव माँ जीजाबाई एवं गुरु तथा संरक्षक कोणदेव का पड़ा । शिवाजी ने मावल प्रदेश को अपने जीवन की प्रारम्भिक कार्यस्थली बनाया ।
1666 में औरंगजेब ने शिवाजी को कैद कर जयपर भवन में रखा था । .
शिवाजी ने 14 जून , 1674 को गंगाभट्ट द्वारा ‘ छत्रपति ‘ एवं हैंदव धर्मोद्धारक उपाधियों के साथ अपना राज्याभिषेक करवाया था ।
• शिवाजी के पुत्र राजाराम की विधवा ताराबाई मराठाकुल की सर्वाधिक योग्य एवं बहादुर महिला थी ।
.शिवाजी के आठ मंत्रियों की परिषद् को ‘ अष्टप्रधान ‘ कहा जाता था , जिसका प्रधान होता था ‘ पेशवा ‘ । दानाध्यक्ष एवं न्यायाधीश के अतिरिक्त अष्टप्रधान के अन्य मंत्रियों को सैन्य कार्यवाही में भाग लेना होता था ।
• शिवाजी की नियमित सेना को पागा कहा जाता था ।
• शिवाजी ने रस्सी द्वारा माप की व्यवस्था के स्थान पर ‘ काठी ‘ एवं ‘ मानक छडी ‘ का प्रयोग प्रारम्भ करवाया ।
• शिवाजी के समय में मुगल क्षेत्रों से ‘ सरदेशमुखी ‘ एवं ‘ चौथ ‘ वसूला जाता था ।
. शिवाजी की कर व्यवस्था कुछ – कुछ मलिक अम्बर की ‘ कर व्यवस्था ‘ पर आधारित थी ।
.शिवाजी के समय में जमीन पर वंशागत अधिकार रखने वाले व्यक्ति को ‘ मिराजदार ‘ कहा जाता था ।
• शम्भाजी ने औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर को शरण दी थी ।
• शाहू ने 1713 में बालाजी विश्वनाथ को अपना पेशवा बनाया ।
शाहू के द्वितीय पेशवा बाजीराव प्रथम ने हिन्दु जाति की कीर्ति को विस्तृत करने का बीड़ा उठाया । इसने ‘ हिन्दू पद पादशाही ‘ के आदर्श को प्रतिपादित किया । .
बाजीराब प्रथम पेशवाओं में सर्वाधिक योग्य पेशवा था ।
बाजीराव ने 1739 में पुर्तगालियों से सालसेट और बसीन को छीना । बाजीराव ने मार्च , 1737 में दिल्ली पर धावा बोल कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया ।
.शिवाजी के बाद गरिल्ला युद्ध का सबसे बडा संचालक बाजीराव प्रथम था ।
• बाजीराव प्रथम को मराठा राज्य का द्वितीय संस्थापक भी माना जाता . शाहू का तीसरा पेशवा बालाजी बाजीराव संगोला की संधि द्वारा राजा का सर्वोच्च अधिकार सम्पन्न पेशवा बन गया ।
.14 जनवरी , 1761 को हुए पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठा सेना का प्रधान सेनापति विश्वास राव था 1771 में शाह आलम को दिल्ली की गद्दी पर अपने संरक्षण में पुनः बैठाने का कार्य माधवराव की राजनैतिक सफलता की पराकाष्ठा है ।
• बाजीराव द्वितीय मराठा राज्य का अंतिम पेशवा था , इसकी अकुशलता एवं अयोग्यता के कारण ही मराठा शक्ति का पतन हुआ 1
चिनकिलिच खौँ अथवा निजामुल मुल्क ने 1724 में दक्कन में स्वतन्त्र हैदराबाद राज्य की स्थापना की । • स्वतन्त्र अवध राज्य की स्थापना सआदत खाँ बुरहान उल – मुल्क ने 1723 में की ।
• स्वतन्त्र बंगाल राज्य की स्थापना मुर्शिद कुली खाँ तथा अलीवर्दी खाँ ने की ।
• स्वतन्त्र मैसर राज्य की स्थापना हैदर अली ने 1761 में की ।
• रुहेलखण्ड का स्वतन्त्र संस्थापक वीर दाऊद एवं वंगश ( फर्रुखाबाद ) का स्वतन्त्र संस्थापक मुहम्मद खाँ वंगश को माना जाता है ।
• औरंगजेब की मृत्यु के बाद जाट नेता बदन सिंह ने स्वतन्त्र भरतपुर राज्य की स्थापना की ।
• जाट नेता सूरजमल को उसकी योग्यता के कारण ‘ जाटों का अफलातून ‘ या ‘ जाट जाति का प्लूटो ‘ कहा गया ।
• मुगल सम्राट बहादुरशाह प्रथम ( मुअज्जम ) को ‘ शाहे बेखबर ‘ के नाम से भी जाना जाता था ।
बहादुर शाह प्रथम के बारे में सिडनी ओवन का कहना है ‘ यह अन्तिम मुगल सम्राट था , जिसके विषय में कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते हैं । ‘
• मुगल शासक जहाँदार शाह को ‘ लम्पट मूर्ख ‘ की संज्ञा दी गयी थी ।
• सम्राट फर्रुखशियर को ‘ घृणित कायर ‘ कहा जाता था ।
‘ मुहम्मद शाह को ‘ रंगीलाशाह ‘ की उपाधि मिली थी , मुहम्मद शाह के समय में ही दिल्ली पर नादिरशाह एवं अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण हुआ था ।
.1713 से 1720 तक मुगल प्रशासन में सैय्यद बंधुओं ( अब्दुल्ला खाँ एवं हुसैन अली ) का दबदबा बना रहा , इन्हें ‘ नृप निर्माता ‘ की उपाधि मिली थी ।
फर्रुखशियर ने सिख नेता बन्दा बहादर की हत्या करवा दी , इसकी मृत्यु के बाद 1717 में हिन्दुओं पर से जजिया कर को हटा लिया गया ।
शाह आलम द्वितीय के समय में ( 1803 ) अंग्रेजों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया । इसी के समय में 1764 में बक्सर का युद्ध हुआ ।
• बहादुर शाह जफर अंतिम मुगल शासक था ।
• 17 मई , 1498 को पुर्तगाली अन्वेषक वास्को डि गामा कालीकट बन्दरगाह पर उतरा ।
• फ्रांसिस्को डी अल्मेडा भारत में नियुक्त प्रथम पुर्तगाली गवर्नर था । भारत में पुर्तगाली सत्ता का वास्तविक संस्थापक अल्बुकर्क को माना जाता है , वह 1503 में एक छोटी जहाज के नायक के रूप में भारत आया था ।
• अल्बुकर्क ने 1510 में गोवा को बीजापुर के सुल्तान से छीन लिया जिसे ‘ ऐस्तादो डि इण्डिया ‘ या गोवा के नाम से जाना गया । .
अल्बुकर्क ने ‘ कैसाडोस ‘ लोगों को भारत में पुर्तगालियों की आबादी बढ़ाने के लिए भारतीय स्त्रियों से विवाह के लिए प्रोत्साहित किया ! .
फ्रांसिस्को डी अल्मेडा ‘ नीलापानी ‘ नीति के लिए प्रसिद्ध था ।
• 16 वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने सुरक्षित व्यापार के लिए ‘ काफिला प्रणाली ‘ की शुरुआत की ।
• पुर्तगाली दूत अन्तानियो कैनाल अकबर के समय में भारत आया ।
। न भारतीय इतिहास :: C / 295
• हालैण्ड की डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1602 में की गयी ।
• अंग्रेजों ने डचों को 1757 तक भारतीय व्यापार से बेदखल किया था ।
• अंग्रेजी ‘ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ की स्थापना 1602 में की गयी ।
• अंग्रेजों ने पहली व्यापारिक फैक्टरी 1608 में सूरत में खोली ।
अंग्रेजों की ‘ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ को सिक्का डालने का अधिकार पहली बार 1617 में मिला ।
1632 में गोलकुण्डा के सुल्तान द्वारा कम्पनी के लिए जारी किये गये फरमान को ‘ सुनहरा फरमान ‘ कहा गया । .
1639 में मद्रास में की गयी किलेबन्दी को ‘ फोर्ट सेण्ट जार्ज ‘ नाम दिया गया ।
• दक्षिण में अंग्रेजों ने पहली व्यापारिक कोठी की स्थापना 1611 में मसुलीपट्टम में की ।
ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स द्वितीय द्वारा 1668 में बम्बई को दस पौण्ड वार्षिक किराये पर कम्पनी को दे दिया गया ।
1690 में जाब चार्नाक ने आधुनिक कलकत्ता की नींव डाली ।
.1698 में अंग्रेजों ने सुतानटी , कालीकट एवं गोविन्दपुर की जमींदारी 1200 रु ० में प्राप्त कर ‘ फोर्ट विलियम ‘ की स्थापना की । इसके पहले अध्यक्ष ‘ सर चार्ल्स आयर ‘ थे ।
• ‘ फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ की स्थापना 1664 में हुई । फ्रैंको कैरो ने सूरत में 1668 में पहली फ्रेंच फैक्टरी खोली । .
फ्रांसीसियों ने शाइस्ता खाँ द्वारा प्राप्त चन्दरनगर के कारखाने की स्थापना की ।
• रीसवीक संधि द्वारा फ्रांसीसियों को 1697 में पुनः पाण्डिचेरी पर । अधिकार प्राप्त हुआ । .
पाण्डिचेरी फ्रांसीसियों का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था ।
. डेनिशकम्पनी ( डेनमार्क ) की स्थापना भारत में 1661 में हुई ।
1845 में डेनिश कम्पनी को ब्रिटेन ने खरीद लिया । .
मुगल सम्राट फर्रुखशियर द्वारा अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी को जारी किये गये फरमान को ‘ कम्पनी का मैग्नाकार्टा ‘ कहा जाता है ।
रेड डेगन भारत में आने वाला पहला ब्रिटिश जलपोत था ।
• सिराजुद्दौला के बंगाल के नवाब बनने पर पूर्णिया के शौकतजंग एवं ढाका की घसीटी बेगम ने इसका विरोध किया । कम्पनी द्वारा व्यापार के क्षेत्र में की जा रही मनमानी से त्रस्त आकर सिराजुद्दौला ने 20 जून , 1756 को कलकत्ता को अंग्रेजों से छीन लिया ।
• 20 जून , 1756 की रात्रि में चर्चित ‘ काल कोठरी ‘ या ‘ ब्लैकहोल ‘ की घटना घटी । 2 जनवरी , 1757 को क्लाइव ने दोबारा कलकत्ता पर अधिकार कर लिया । 23 जून , 1757 को मुर्शिदाबाद के समीप प्लासी नामक स्थान पर कम्पनी और बंगाल के नवाब के मध्य प्लासी का युद्ध हुआ ।
1758 में क्लाइव को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया । – क्लाइव ने बंगाल में द्वैध शासन की शुरुआत की , इसके समय में अंग्रेजी सैनिकों ने भत्ते को लेकर विद्रोह कर दिया , जिसे ‘ श्वेत विद्रोह ‘ कहा गया ।
40279 1१०५
• बंगाल के नवाब मीरकासिम ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानान्तरित किया । मीरजाफर ( बंगाल के नवाब ) को कर्नल क्लाइव का गीदड़ कहा जाता था ।
.22 अक्टूबर , 1764 को मुगल सम्राट शाह आलम अवध के नवाब शुजाउद्दौला एवं मीरकासिम की सम्मिलित सेना का मुकाबला अंग्रेजी सेना से बक्सर में हुआ । विजयी अंग्रेजी सेना का नेतृत्व हेक्टर मनरो ने किया था ।
.12 अगस्त , 1765 को सम्पन्न इलाहाबाद की संधि के द्वारा कम्पनी को बंगाल , बिहार एवं उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई । .
के ० एम ० पत्रिकर ने बंगाल में क्लाइव के शासनकाल को ‘ लुटेरा राज ‘ की संज्ञा दी ।
• पिण्डारियों का उन्मूलन वारेन हेस्टिंग्स ने किया । भारत में आधुनिक स्वशासन की शुरुआत लार्ड रिपन ने किया । लार्ड कर्जन ने भारत के प्राचीन स्मारकों के पुनरुद्धार और संरक्षण में विशेष रूप से रुचि दिखाई । .लार्ड वेलेजली की ‘ सहायक सन्धि ‘ के तहत अंग्रेजों के साथ सबसे पहले संधि हैदराबाद के निजाम ने किया ।
• विवादास्पद व्यपगत नीति ( डाक्ट्रिन ऑफ लैप्स ) के प्रतिपादक लार्ड डलहौजी थे । . कर्नल स्लीमैन ने विलियम बैंटिक के शासनकाल में ठगी प्रथा का उन्मूलन किया । ब्रिटिश संसद द्वारा वारेन हेस्टिंग्स पर महाभियोग चलाया गया था । .बंगाल में द्वैष शासन व्यवस्था को क्लाइव ने शुरू किया और इसे वारेन हेस्टिग्स ने समाप्त किया । 91760 के बांडीवाश के युद्ध में अंग्रेजो के हाथों पराजित होकर भारत में फ्रांसीसी शक्ति का अन्त हुआ । ,
अंग्रेजों और मराठों के बीच एवं अंग्रेजों और मैसूर के बीच चार – चार युद्ध हुए ।
• विवादास्पद इलबर्ट विधेयक का सम्बन्ध फौजदारी दण्ड विधान से है ।
• 1857 के विद्रोह का महत्वपूर्ण कारण आर्थिक शोषण था ।
• 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण था ‘ चर्बी लगे कारतूसों ‘ का प्रयोग । ये कारतूस एनफील्ड राइफल में प्रयोग किये जाते थे ।
29 मार्च 1857 को अकेले ही विद्रोह करने वाला मंगल पाण्डे 34 वीं नेटिव इन्फैन्ट्री का जवान था । 10 मई , 1857 दिन इतवार समय 5 से 6 बजे के बीच मेरठ की 20 एन ० आई ० पैदल सैनिक टुकड़ी ने विद्रोह की शुरुआत की ।
• 11 मई को मेरठ के विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली पर अधिकार कर मुगल बादशाह शाह आलम को सम्राट घोषित किया ।
• उत्तर प्रदेश में विद्रोह के प्रमुख केन्द्र झांसी , मेरठ , लखनऊ , कानपुर , बरेली , अलीगढ़ , आगरा एवं मथुरा थे । बिहार में जगदीशपुर , राजस्थान में कोटा एवं आवा विद्रोह के मुख्य केन्द्र थे ।
• विद्रोह के मुख्य नेता नाना साहब , रानी लक्ष्मी बाई , तात्या टोपे , कुँवर सिंह , वख्त खान , बेंगम हजरत महल , खान बहादुर खान आदि थे ।
• विद्रोड़ को कुचलने वाले महत्वपूर्ण अंग्रेज कमाण्डर थे- कॉलिन कैंपबेल , यूरोज , कर्नल नील , हेवलाक , जॉन निकल्सन , विलियम टेलर , विन्सेंट आयर आदि । .
1857 के विद्रोह के समय भारत के गवर्नर – जनरल लार्ड कैनिंग थे ।
वीर सावरकर ने 1857 के विद्रोह को राष्ट्रीय संग्राम कहा । .
लारेन्स ने 1857 के विद्रोह को ‘ सैनिक विद्रोह ‘ कहा ।
.टी ० आर ० होम्स ने इस विद्रोह को ‘ बर्बरता तथा सभ्यता के मध्य युद्ध ‘ कहा ।
.1857 के विद्रोह के बाद कम्पनी का शासन समाप्त हो गया । –
इलाहाबाद में आयोजित एक दरबार में लार्ड कैनिंग ने क्राउन के घोषणा पत्र को पढ़कर सुनाया । इस घोषणा पत्र को कुछ इतिहासकारों ने ‘ भारतीय स्वतन्त्रता का मैग्नाकार्टा ‘ की संज्ञा दी ।
.1770 में बंगाल में हुआ संन्यासी विद्रोह नागरिक विद्रोहों में सबसे था , इस विद्रोह में शामिल सन्यासी शंकराचार्य के समर्थक थे ।
• बंकिम चन्द्र चटर्जी के उपन्यास आनन्दमठ में संन्यासी विद्रोह का उल्लेख मिलता है ।
त्रावणकोर राज्य के दीवान वेला टम्पी ने 1805 में विद्रोह किया ।
• 1855-56 में हुए संथाल विद्रोह का नेतृत्व सिद्ध एवं कान्हू ने किया । .1822 में हुए रामोसी विद्रोह का नेतृत्व ‘ चित्तर सिंह ‘ ने किया । .
असम मे 1833 में हुए ‘ खासी विद्रोह ‘ का नेतृत्व तीरत सिंह ने किया । .
असम में 1828 में हुए ‘ अहोम विद्रोह ‘ का नेतृत्व ‘ गोमधर कुँवर ‘ ने किया ।
• बिहार में 1874 में हुए मुंडा विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुण्डा ने किया । 01879-80 में आन्ध्र के तटीय क्षेत्रों में रहने वाली रम्पा जाति के लोगों ने जमींदारों के नये जंगल कानून के विरुद्ध विद्रोह किया ।
• पंजाब के ‘ कूका आन्दोलन ‘ के संस्थापक भगत जवाहरमल थे , इन्हें ‘ सैन साहब ‘ के नाम से भी जाना जाता था । .
सैय्यद अहमद के नेतृत्व में ‘ वहाबी आन्दोलन ‘ ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष गम्भीर चुनौती उत्पत्र की ।
• किसान आन्दोलनों में 1859-60 का नील आन्दोलन , जिसकी चपेट में बंगाल और बिहार के क्षेत्र शामिल थे , तत्कालीन बड़े किसान आन्दोलनों में से एक था ।
• निलहों के शोषण के बारे में दीनबंधु मित्र के नाटक ‘ नील दर्पण ‘ में जानकारी मिलती है ।
1875 में ‘ कुन्बी ‘ किसानों का विद्रोह हुआ । .
मालाबार के मोपला किसानों ने 1836 से 1854 के बीच 22 बार विद्रोह किया । बंगाल में 1776-77 में हुए ‘ फकीर आन्दोलन ‘ का नेतृत्व मजनूशाह ने किया ।
• महाराष्ट्र , बिहार एवं मध्य प्रांत के आदिवासी किसानों द्वारा जंगल नियम के विरुद्ध चलाये गये सत्याग्रह को ‘ जंगल सत्याग्रह ‘ के नाम से जाना जाता है ।
• फरवरी 1918 में ‘ उत्तर प्रदेश किसान सभा ‘ का गठन मदन मोहन मालवीय , गौरीशंकर मिश्र एवं इन्द्र नारायण द्विवेदी के प्रयासों से हुआ ।
• अक्टूबर 1920 में प्रतापगढ़ में ‘ अवध किसान सभा ‘ का गठन किया गया । रामचन्द्र
. . . उत्तर प्रदेश के जिलो हरदोई , बहराइच एवं सीतापुर में ‘ एका आन्दोलन ‘ चलाया गया ।
पहली बार किसान आन्दोलन में भाग लेने के कारण जवाहर लाल नेहरू 1921 में जेल गये ।
करमशाह के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध उत्तरी बंगाल में 1840 से 1850 तक पागलपंथी विद्रोह चलाया गया ।
‘ दादमियाँ के नेतृत्व में फरीदपुर ( बंगाल ) में अंग्रेजों के खिलाफ फरायजी विद्रोह चलाया गया ।
1793 में लार्ड कार्नवालिस ने ‘ स्थायी बन्दोबस्त ‘ व्यवस्था को बंगाल और बिहार में लागू किया ।
स्थायी बन्दोबस्त की योजना जॉन शोर द्वारा बनायी गयी थी ।
1792 में पहली बार रैय्यतवाडी व्यवस्था कर्नल रीड के प्रयत्नों से बारामहाल जिले में लागू की गयी ।
1822 में अंग्रेजों ने गंगा के मैदान , उत्तर – पश्चिम प्रांतों , मध्य भारत के कुछ भागों और पंजाब में महालवाडी व्यवस्था को लागू किया ।
• अंग्रेजों ने रैय्यतवाड़ी व्यवस्था को मद्रास एवं बम्बई प्रेसीडेंसी में लागू किया ।
मार्टिन बर्ड को उत्तर भारत की भूमि कर व्यवस्था का प्रवर्तक माना जाता है ।
कृषि का व्यवसायीकरण सर्वप्रथम बंगाल में किया गया जिसमें सर्वाधिक वाणिज्यीकरण चाय एवं काफी का हुआ ।
भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद मुख्यतः तीन भागों ( क ) व्यापारिक पूँजी का साम्राज्यवाद ( 1756-1812 ) , ( ख ) मुक्त व्यापार पूँजी का साम्राज्यवाद ( 1813-1857 ) एवं ( ग ) वित्त पूँजी का साम्राज्यवाद ( 1858-1947 ) में विभाजित था ।
1756-1812 के काल को निवेश द्वारा भारत से धन के निष्कासन का काल माना जाता है ।
‘ दादनी प्रथा ‘ के अन्तर्गत रुपया पेशगी में किसानों को दिया जाता था ।
गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने ‘ दस्तक प्रणाली ‘ को समाप्त किया ।
• धन निष्कासन का सिद्धान्त दादाभाई नौरोजी ने प्रस्तुत किया
1813 के चार्टर एक्ट द्वारा चाय और चीन के साथ व्यापार को छोड़कर शेष सभी व्यापारिक अधिकारों से कम्पनी को वंचित किया गया ।
.1833 के चार्टर एक्ट द्वारा कम्पनी के सभी व्यापारिक अधिकार वापस ले लिये गये ।
• भारतीय दस्तकारी के पतन का मुख्य कारण मशीनी उत्पादों से भयंकर प्रतिद्वंद्विता थी । .
भारत में प्रथम विद्युत टेलीग्राफ लाइन कलकत्ता से आगरा के मध्य , प्रथम एयरमेल सेवा इलाहाबाद से नैनी तक तथा प्रथम डाक सेवा कलकत्ता एवं मर्शिदाबाद के मध्य शुरू की गयी ।
ब्रिटिश सरकार ने भारत में रेलवे में सर्वाधिक पूँजी निवेश किया । – प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप देशी उद्योगों को लाभ हुआ ।
• मदन मोहन मालवीय को 1916 में स्थापित भारतीय औद्योगिक आयोग का सदस्य चुना गया । . कारखाना अधिनियम 1891 में एक दिन के साप्ताहिक अवकाश
भारताय इतिहास :: C / 297
कारखाना अधिनियम 1881 में बाल श्रमिकों के कल्याण की व्यवस्था की गयी ।
. प्रथम विश्व युद्ध के समय पहली बार भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के लक्षण दिखे ।
• 1929-33 की महान मंदी का सर्वाधिक बुरा प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ा । .
वायसराय लार्ड कर्जन के समय में भारत ने ‘ गोल्ड स्टैण्डर्ड ‘ को अपनाया । .
भारत में विल्सन के सहयोग से 1859 में सर्वप्रथम कागजी महा की शुरुआत हुई ।
● भारत में प्रथम नियमित जनगणना की शुरुआत 1881 में वायसराय लार्ड रिपन ने करवाया ।
• बाल गंगाधर तिलक को बन्दी बनाये जाने के विरोध में 1908 में बम्बई में पहली बार राजनीतिक हड़ताल हुई , जिसकी प्रशंसा लेनिन ने की । .
बम्बई में 1920 में ‘ आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस ‘ A.LTU.C. ) की स्थापना हुई ।
अक्टूबर 1920 में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रथम सम्मेलन की अध्य लाला लाजपत राय ने की । .
एम ० एन ० जोशी ने 1929 में इण्डियन ट्रेड यूनियन फेडरेशन ( I.TU.F. ) की स्थापना की ।
.1921 में एम ० एन ० राय ने ‘ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की ।
.1928 में श्रीपाद अमृत डांगे एवं बेन ब्रेडले के सहयोग से स्थापित ‘ लाल बावटा गिरनी कामगार युनियन ‘ पहला क्रान्तिकारी व्यापारिक संघ था । .
1941 में ‘ इण्डियन लेबर फेडरेशन ‘ की स्थापना ।
.1918 में गांधीजी ने ‘ अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन ‘ की स्थापना की ।
कम्पनी की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश संसद ने 1773 में रेग्युलेटिंग एक्ट पारित किया । .
रेग्यूलेटिंग एक्ट के तहत ही भारत में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गयी ।
1784 में पिट्स इण्डिया एक्ट , 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट की खामियों को दूर करने के लिए पारित किया गया ।
.1813 के चार्टर एक्ट से कम्पनी का भारतीय व्यापार पर से एकाधिकार समाप्त हो गया । इसी एक्ट में सर्वप्रथम भारतीयों की शिक्षा तथा साहित्य के प्रोत्साहन के लिए 1 लाख रु ० वार्षिक खर्च करने की व्यवस्था की गयी थी ।
1833 के चार्टर एक्ट के बाद कम्पनी शुद्ध प्रशासनिक संस्था रह गयी , अब बंगाल का गवर्नर जनरल भारत का गवर्नर जनरल बन गया ।
1861 के भारतीय परिषद् अधिनियम द्वारा सर्वप्रथम भारत सरकार की मंत्रिमण्डलीय व्यवस्था की नींव रखी गयी । पहली बार विभागीय प्रणाली की शुरुआत इसी एक्ट से की गयी ।
C / 298 :: सामान्य अध्ययन प्रारम्भिक जगद
.1858 के अधिनियम के द्वारा कम्पनी से सारे अधिकार ब्रिटिश काउन के अधीन हो गये । . इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर – जनरल का पद वायसराय में परिवर्तित हो गया । . भारत का शासन क्राउन की ओर से देखने के लिए ब्रिटेन में एक ‘ भारत राज्य सचिव ‘ पद की व्यवस्था की गयी ।
1892 के अधिनियम के अन्तर्गत सर्वप्रथम भारतीय सदस्यों को वार्षिक बजट पर बहस करने व उससे सम्बन्धित प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया , पर सदस्यों को मतदान का अधिकार नहीं प्रदान किया गया । .
1909 के मिण्टो- माले सुधार में सर्वप्रथम मसलमानों के लिए पृथकू निर्वाचन क्षेत्र की सुविधा उपलब्ध करायी गयी ।
1919 के माण्टेग्यू- चेम्सफोर्ड सुधार के अन्तर्गत केन्द्र में द्विसदनात्मक व्यवस्था एवं प्रान्तों में द्वैध शासन की व्यवस्था की गयी ।
1919 के सुधारों में ही साम्प्रदायिक निर्वाचन मण्डल को विस्तृत कर सिक्खो , यूरोपीय भारतीय ईसाई , ग्लो – इण्डियन को भी इसमें शामिल कर लिया गया ।
1935 के भारत सरकार अधिनियम के तहत केन्द्र में वैध शासन की व्यवस्था की गयी ।
1935 के अधिनियम में ही प्रान्तों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करने का प्रयास किया गया ।
जवाहर लाल नेहरू ने इस अधिनियम ( 1935 ) को ‘ अनेक ब्रेको बाली , परन्त इन्जन रहित मशीन ‘ की संज्ञा दी ।
.1935 के अधिनियम के तहत ही भारतीय रिजर्व बैंक एवं केन्द्र में एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी ।
• गवर्नर – जनरल की परिषद् के पहले विधि सदस्य मैकाले थे ।
विलियम बैंटिक भारत के प्रथम एवं बंगाल के अन्तिम गवर्नर – जनरल लार्ड कैनिंग भारत के अन्तिम गवर्नर – जनरल तथा प्रथम वायसराय थे ।
भारत के अन्तिम वायसराय एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबेटन थे । .
स्वतन्त्र भारत के पहले एवं अन्तिम भारतीय गवर्नर – जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी थे ।
ग्राण्ट को आधुनिक शिक्षा का जन्मदाता माना जाता है ।
राजा राममोहन राय को आधुनिक शिक्षा का अग्रदूत माना जाता है ।
1837 के बाद सरकारी कार्यों में फारसी के स्थान पर अंग्रेजी का प्रयोग किया जाने लगा ।
• 1854 के शिक्षा के ‘ वड डिस्पैच ‘ को भारतीय शिक्षा का महाधिकार पत्र ( Magna Carta ) कहा जाता है । ..
साइमन कमीशन ने शिक्षा के क्षेत्र में हुए विकास की समीक्षा के लिए हार्टोग समिति की स्थापना की ।
प्रौढ शिक्षा के विकास पर विचार हेतु लिंडसे आयोग स्थापित किया गया ।
• 1919 में विश्वविद्यालयों का संचालन प्रान्तीय सरकारों को सौंप दिया गया ।
1937 में गाँधीजी के नेतृत्व में ‘ अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया ।
शिक्षा के क्षेत्र में ‘ अधोमुखी निस्पंदन सिद्धान्त ‘ ( Filtration Theory ) चार्ल्सवड द्वारा लागू किया गया । भारत में सर्वप्रथम ‘ मुद्रणालय ‘ लाने का श्रेय पुर्तगालियों को है ।
.1557 में गोवा के पादरियों ने भारत में पहली पुस्तक छापी ।
• जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 में भारत में ‘ बंगाल गजट ‘ नाम से पहला समाचार पत्र प्रकाशित किया ।
• जेम्स हिक्की तथा बकिंघम ने पत्रकारिता की प्रारम्भिक अवस्था में ही तटस्थ तथा आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाकर पत्रकारिता के उच्च आदर्श को स्थापित किया । .
किसी भारतीय द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित प्रथम समाचार – पत्र ‘ बंगाल गजट ‘ था । जिसे 1816 में गंगाधर भट्टाचार्य ने प्रकाशित किया ।
राजा राममोहन राय को भारत में राष्ट्रीय प्रेस का संस्थापक माना जाता है ।
स्टेटसमैन अंग्रेजों द्वारा प्रकाशित ऐसा प्रथम समाचार पत्र था जो अपने उदार विचारों के लिए प्रसिद्ध था ।
1878 में लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम से बचने के लिए अमृत बाजार पत्रिका ने रात भर में अपने को बंगाली साप्ताहिक से बदलकर अंग्रेजी साप्ताहिक बना लिया ।
1959 में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र ‘ सोम प्रकाश ‘ एकमात्र ऐसा समाचार पत्र था जिस पर वर्नाक्यलर अधिनियम लाग किया गया ।
• कृष्टोदासपाल को भारतीय पत्रकारिता का राजकुमार कहा जाता है । लार्ड मेटकॉफ को भारतीय समाचार पत्रों का ‘ मुक्तिदाता ‘ कहा जाता ‘ बंगदूत ‘ एक ऐसा समाचार पत्र था जो एक साथ बंगला . हिन्दी , फारसी एवं अंग्रेजी में प्रकाशित होता था ।
• ‘ संध्या ‘ एवं ‘ युगान्तर ‘ पत्रों ने क्रान्ति को प्रोत्साहन दिया ।
• ‘ मराठा ‘ एवं ‘ केसरी ‘ का तिलक से पहले क्रमशः आगरकर एवं केलकर ने संपादन किया ।
1921 में स्थापित प्रेस कमेटी का अध्यक्ष तेज बहादुर सप्रू को चुना गया । .लार्ड कार्नवालिस को नागरिक सेवा का जन्मदाता माना जाता है ।
• 1800 में लार्ड वेलेजली ने सिविल सेवा में चुने जाने वाले लोगों के प्रशिक्षण के लिए कलकत्ता में फोर्ट विलियम कालेज की स्थापना की ।
• सत्येन्द्र नाथ टैगोर ( रबीन्द्र नाथ ठाकुर के भाई ) 1863 में भारतीय सिविल सेवा मे चुने जाने वाले प्रथम भारतीय थे ।
• सिविल सेवा परीक्षा की अधिकतम आयु 1859 में 22 वर्ष , 1864 में 21 वर्ष , 1877 में 19 वर्ष तथा 1893 में 23 वर्ष की गयी ।
• 1870 में ‘ स्टेटयुटरी सिविल सेवा शुरू की गई ।
1886 में सर्वप्रथम राबर्ट्सन की अध्यक्षता में लोक सेवा आयोग की स्थापना हुई ।
• भारतीय नागरिक सेवा को ‘ इस्पात का चौखट ‘ की संज्ञा दी गयी ।
1844 में सरकारी सेवाओं में नियुत्ति के लिए अंग्रेजी को अनिवार्य विषय बनाया गया ।
सैनिकों की योग्यता की जाँच हेतु आयोजित की जाने वाली परीक्षा को किचनर टेस्ट ‘ कहा जाता था ।
.1901 में लार्ड कर्जन ने ‘ इम्पीरियल कैडेट कोर ‘ की स्थापना की ।
. सर्वप्रथम महाराष्ट्र में क्रान्तिकारी आन्दोलन शुरू होने का आभास मिलता है ।
अनुशीलन समिति को भारत की पहली सनियोजित संस्था माना जाता मैडम कामा को ‘ मदर आफ इंडियन रिवोल्यशन ‘ कहा जाता है ।
बाल गंगाधर तिलक को ‘ फादर ऑफ इंडियन अनरेस्ट ‘ कहा जाता है । सॉन फ्रांसिस्को में स्थापित गदर पार्टी के कार्यालय को ‘ युगान्तर आश्रम ‘ के नाम से भी जाना जाता था ।
मुस्लिम राष्ट्रवादियों द्वारा जर्मन एवं ऑटोमन साम्राज्य का समर्थन प्राप्त करने के लिये लिखा गया पत्र , जिसे अंग्रेजों ने पकड़ लिया था , को ‘ सिल्क लेटर कांसपिरेसी ‘ कहा जाता है ।
• अप्रैल 1930 में सूर्यसेन के नेतृत्व में किया गया सशस्त्र अभियान , जिसे ‘ चटगांव आमरी रेड ‘ के नाम से जाना जाता है , उस समय का सबसे बड़ा संयुक्त क्रान्तिकारी अभियान माना जाता है ।
1 नवम्बर , 1913 को सॉन फ्रांसिस्को ( सं ० रा ० अमेरिका ) में लाला हरदयाल ने रामचन्द्र और बरकतुल्ला के सहयोग से गदर पार्टी का गठन किया ।
• भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन तीन चरणों – प्रथम चरण 1885-1905 , द्वितीय चरण 1905-1919 एवं तृतीय चरण 1919-1947 से C गुजरा । .
28 दिसम्बर , 1885 को गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कालेज भवन में ए ० ओ ० राम के प्रयास से ‘ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ‘ की स्थापना की गयी ।
• 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ‘ ब्रिटिश समिति ‘ की स्थापना की गयी ।
• डफरिन ने ‘ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ‘ को अल्पमत का प्रतिनिधि कहा ।
• बदरुद्दीन तैय्यबजी कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष बने ।
• ‘ प्रैण्ड ओल्डमैन ऑफ इण्डिया ‘ के नाम से प्रसिद्ध दादाभाई नौरोजी ने तीन बार 1886,1893 एवं 1906 में कांग्रेस की अध्यक्षता की । बंदरुद्दीन तैय्यबजी एवं राजा शिव प्रसाद सितार – ए – हिंद ने ‘ कांग्रेसी बनो ‘ का नारा दिया ।
• लंदन में श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा 1905 में ‘ इण्डियन होमरूल सोसायटी की स्थापना की गयी । मारग्रेट नोबल ( सिस्टर निवेदिता ) को स्वामी विवेकानंद ने ‘ शेरनी ‘ टैगोर ने ‘ लोकमाता ‘ एवं अरविन्द घोष ने ‘ अग्निशिखा ‘ कहा ।
• डब्ल्यू ० एस ० लंट ने ‘ आइडियाज अबाउट इण्डिया ‘ , ‘ इण्डिया अण्डर रिपन ‘ एवं ‘ माई डायरीज ‘ जैसी पुस्तकों की रचना की । • गोपाल कृष्ण गोखले ने वायसराय कर्जन की तलना औरंगजेब से की ।
• महादेव गोविन्द रानाडे को ‘ महाराष्ट्र का सुकरात ‘ कहा जाता था । .
भारतीय इतिहास :: C / 299
• वित्तपावन ब्राह्मण समुदाय ने महाराष्ट्र में उग्रवाद को जन्म दिया ।
• सर सैय्यद अहमद खाँ ने ‘ तहजीब- अल अखलाक ‘ अखबार का प्रकाशन किया । .
1916 में गाँधीजी ने अहमदाबाद में ‘ साबरमती आश्रम ‘ की स्थापना 1
1918 में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ‘ इण्डियन लिबरल फेडरेशन ‘ की स्थापना की ।
बाल गंगाधर तिलक ने 1893 एवं 1895 में क्रमशः गणपति एवं शिवाजी महोत्सव को प्रारम्भ करवाया ।
गाँथी- इरविन पैक्ट को दिल्ली समझौता ‘ भी कहा जाता है 1917 में ‘ हिन्दू महासभा ‘ की स्थापना की गयी ।
• ‘ आल इण्डिया यूथ कांग्रेस ‘ की स्थापना 1928 में की गयी ।
• बल्लभ भाई पटेल को बारदोली की महिलाओं ने ‘ सरदार ‘ की उपाधि दी ।
• 13 वर्षीय की अल्पायु में रानी नैडिनैल्यू ने नागालैण्ड में गाँधीजी के समर्थन में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलन्द किया ।
.64 दिन की भूख हड़ताल के बाद 14 दिसम्बर , 1931 को लाहौर जेल में जतिन दास की मृत्यु हुई ।
• ए ० ओ ० ह्यूम को ‘ हरमिट ऑफ शिमला ‘ कहा जाता है ।
तेज बहादर सप्र ने ‘ लिबरेशन फेडरेशन ‘ नामक दल की स्थापना की ।
16 अक्टूबर , 1905 को कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया , इस दिन को पूरे बंगाल में शोक दिवस के रूप में मनाया गया ।
• दूसरा बंगाल विभाजन 1947 में किया गया । 1906 में लाका में आगा खाँ , मोहसिन उल मुल्क आदि ने मुस्लिम लीग की स्थापना की ।
• 1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस नरम दल एवं गरम दल में विभाजित हो गयी ।
1906 के कलकत्ता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने ‘ स्वराज्य ‘ की मांग की ।
• प्रथम विश्व युद्ध के समय गाँधी को ‘ रिक्रूटिंग सार्जेन्ट ‘ कहा गया ।
• मोहम्मद अली , हकीम अजमल खां , हसन इमाम आदि ने ‘ एहरार आन्दोलन ‘ की शुरुआत की ।
• गांधीजी ने भारत में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग चम्पारन में किया ।
सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा ऐसे पहले भारतीय थे जिन्हें अंग्रेजों ने किसी प्रांत का गवर्नर बनाया ।
• जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड की जाँच के लिए नियुक्त हण्टर कमीशन ‘ के भारतीय सदस्य थे : सल्तान अहमद खान , जगत नारायण , सर चिमन लाल सीतलवाड़ आदि ।
9 जून , 1937 को मध्य प्रांत ( सेन्ट्रल प्रोविन्सेज ) में डा ० एन ० बी ० खरे द्वारा देश का पहला मंत्रिमण्डल गठित किया गया । ” भारत एक नहीं दो राष्ट है ‘ मोहम्मद अली जित्रा ने कहा था ।
‘ कांग्रेस में बिल्लभ भाई पटेल , राजेन्द्र प्रसाद , डा ० ( अंसारी आदि को ‘ अपरिवर्तनवादी ‘ कहा गया ।
कांग्रेस में मदन मोहन मालवीय , ( लाल ) लाजपत राय एवं एन ० सी ० किलको को ‘ अनक्रियाशीलवादी ‘ कहा गया ।.
31 अगस्त , 1920 को ‘ असहयोग आन्दोलन ‘ शुरू किया गया ।
• गाँधीजी ने 17 अक्टूबर , 1940 को व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू किया , जिसके प्रथम सत्याग्रही विनोबा भावे एवं द्वितीय सत्याग्रही जवाहर लाल नेहरू थे ।
• गाँधीजी ने के नेतृत्व में कांग्रेस ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था । • ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनल्ड ने 1932 में ‘ साम्प्रदायिक निर्णय ‘ । ( कम्यूनल एवार्ड ) की घोषणा की ।
• कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज्य की घोषणा की । .26 जनवरी , 1930 को पहला ‘ स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया ।
• उत्तर- पश्चिम सीमा प्रांत में खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने ‘ लाल कुर्ती ‘ नामक संगठन की स्थापना की ।
• ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के विद्यार्थी रहमत अली चौधरी ने सर्वप्रथम पाकिस्तान शब्द का उल्लेख किया । ५०. पाकिस्तान की प्रथम मांग मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में की गयी ।
होमरूल लीग ‘ की स्थापना बाल गंगाधर तिलक एवं एनी बेसेन्ट ने की ।
1923 में वायसराय लार्ड रीडिंग ने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर नमक कर कानून पारित किया ।
• बंगाल का विभाजन 1911 में वायसराय लाई हार्डिंग के समय में समाप्त किया गया । इसी समय भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित की गयी ।
• 22 दिसम्बर , 1939 को मुस्लिम लीग ने ‘ मुक्ति दिवस ‘ मनाया था ।
• 1943 में हुए मुस्लिम लीग के करांची अधिवेशन में ‘ विभाजन करो और जाओ ‘ का ( Devide and Quit ) नारा दिया गया ।
• मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त , 1946 को ‘ प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस ‘ मनाया ।
रास बिहारी बोस ने टोकियो में 23 जून , 1942 को ‘ इण्डियन इंडिपेन्डेस लीग ‘ की स्थापना की ।
सुभाष चन्द्र बोस ने जुलाई , 1943 में ‘ आजाद हिन्द फौज ‘ एवं इण्डियन इंडिपन्डेन्स लीग की बागडोर को संभाला ।
.सुभाष चन्द्र बोस ने 21 अक्टूबर , 1943 को सिंगापुर में अस्थायी सरकार की स्थापना की ।
.8 अगस्त , 1942 को भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ ।
2 सितम्बर , 1946 को जवाहरल लाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन किया गया
• क्रिप्स प्रस्तावों को गाँधीजी ने ‘ उत्तरतिधीय चेक ‘ ( Post – dated गाँ Cheque ) एवं जुवाहर लाल नेहरू ने ‘ ऐसे बैंक पर जो टूट रहा हो ‘ ‘ हाँ की संज्ञा दी ।
• ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने भारत को जून , 1948 तक स्वतन्त्र करने की घोषणा की ।
1947 के भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम द्वारा 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का निर्माण हुआ ।.15 अगस्त , 1947 को भारत को स्वतन्त्रता मिली ।
9 दिसम्बर , 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई । सबसे अन्त में भारत में हैदराबाद राज्य का विलय हुआ ।
विपिन चन्द्र पाल को बंगाल में ‘ तिलक का सेनापति ‘ कहा गया । होमरूल लीग के सर्वाधिक कार्यालय मद्रास में थे ।
• रौलेट एक्ट को ‘ काला कानून ‘ एवं आतंकवादी अपराध अधिनियम कहा गया । .
18 अगस्त , 1929 को कांग्रेस ने ‘ राजनैतिक पीड़ितों का दिन ‘ मनाया ।
‘ क्रान्ति अमर रहे ‘ का नारा पहली बार 1928 में ‘ हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन ‘ ने दिया ।
• आजाद हिन्द फौज के सैनिकों पर ऐतिहासिक मुकदमा 1945 में दिल्ली के लाल किले में चलाया गया ।
• अप्रैल , 1930 में मास्टर सूर्य सेन के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने चिटगांव शस्त्रागार पर दस दिन तक अधिकार बनाये रखा ।
.1930 में आयोजित प्रथम गोलमेज सम्मेलन में मुस्लिम लीग , हिन्द महासभा , लिबरल फेडरेशन , डा ० बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के अछूत संघ और देशी रियासतों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया ।
1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में मूल अधिकार और आर्थिक कार्यक्रम नामक दस्तावेज को स्वीकार किया गया ।
• अप्रैल , 1942 में प्रकाशित ‘ हरिजन ‘ पत्रिका के अंक में गाँधीजी ने पहली बार अंग्रेजों भारत छोडो ‘ शीर्षक से एक लेख लिखा ।
• जब भारत स्वतंत्र हुआ उस समय ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार सत्ता में थी और प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली थे ।
• स्वतंत्रता प्राप्ति के समय अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष आचार्य जे ० बी ० कृपलानी थे ।
15 नवम्बर , 1930 को लंदन में प्रदर्शन के दौरान ट्रेफल्गर स्क्वायर पर तिरंगा झंडा फहराया गया ।
• जलियांवाला नरसंहार के विरोध में 1 जून , 1919 को रबीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा ‘ सर ‘ उपाधि वापस की गयी ।
अगस्त , 1920 को गाँधीजी द्वारा ‘ कैसर – ए- हिन्द ‘ मैडल ब्रिटिश सरकार को वापस किया गया ।
20 नवम्बर , 1921 को रबीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा शांतिनिकेतन में स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय का उद्घाटन हुआ ।
जार्ज पंचम भारत की यात्रा पर आने वाले पहले ब्रिटिश सम्राट थे ।
• गाँधीजी ने 1919 में ‘ यंग इण्डिया ‘ व ‘ नवजीवन ‘ और 1933 में ‘ हरिजन ‘ का प्रकाशन आरम्भ किया ।
माउंटबेटन योजना के तहत भारत का विभाजन और भारत – पाकिस्तान सीमा का निर्धारण सर सिरील रैडक्लीफ़ की अध्यक्षता में गठित बाउंडरी कमीशन की संस्तुतियों के आधार पर किया गया
.
महत्वपूर्ण बिन्दु ( भा
• सैन्धव सभ्यता में प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही नगर की संज्ञा दी जाती है , ये हैं : हड़प्पा , मोहन जोदड़ो , चान्हुदड़ो , लोथल , कालीबंगा एवं बनवाली ।
• बृहत्स्नानागार के उत्तर तथा दक्षिण की ओर सीढ़ियों का निर्माण किया गया था । सर्वप्रथम जॉन मार्शल ने स्नानागार की खोज की ।
● स्वतन्त्रता के पश्चात् हड़प्पा सभ्यता के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए हैं ।
• सैन्धव सभ्यता के अन्तर्गत केवल कालीबंगा से ही नक्काशीदार ईटों के प्रयुक्त होने के प्रमाण मिले हैं ।
• मोहन जोदड़ो से प्राप्त अत्रागार सम्भवतः सैन्धव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत थी ।
• सर्वप्रथम हड़प्पा सभ्यता से ही ‘ स्वास्तिक ‘ चिह्न के अवशेष मिले हैं । इस चिह्न से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जा सकता है ।
• गुजरात में स्थित रंगपुर और रोजड़ी सैंधव सभ्यता की उत्तरोत्तर की अवस्था का नेतृत्व करते हैं ।
बनवाली एवं कालीबंगा में सैंधव संस्कृति की दो अवस्था- हडप्पा पूर्व एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिलते हैं ।
सैंधव सभ्यता में प्रयुक्त ईंटों का अनुपात था 4 : 2 : 1 ( लम्बाई : चौड़ाई : ऊँचाई ) ।
• पहली बार कपास उपजाने का श्रेय हड़प्पावासियों को है । 5 न
बुद्ध के जीवन की विभिन्न अवस्थाओं के प्रतीक
हाथी – बुद्ध के गर्भावस्था में आने का प्रतीक
. शेर – बुद्ध के ज्ञान से समृद्ध होने का प्रतीक
साँढ – बुद्ध के यौवन का प्रतीक ।
घोड़ा – बुद्ध के गृहत्याग का प्रतीक
सल्तनत कालीन स्थापत्य | ( Architecture during Sultunate )
ढाई दिन का झोंपड़ा ( अजमेर ) कुतुबुद्दीन ऐबक
सुल्तानगढ़ी का मकबरा दिल्ली इल्तुतमिश
इल्तुतमिश का मकबरा दिल्ली इल्तुतमिश
जामी मस्जिद बदायूँ इल्तुतमिश
मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह बदायूँ इल्तुतमिश
हौज – ए – खास बदायूँ इल्तुतमिश
हौज – ए – शौम्सी बदायूँ इल्तुतमिश
शक्सी ईदगाह बदायूँ इल्तुतमिश
अतारकिन का दरवाजा नागौर इल्तुतमिश
कुवावुत – इस्लम – मस्जिद दिल्ली कुतुबुद्दीन ऐबक
कुतुबमीनार दिल्ली कुतुबुद्दीन ऐबक एवं इल्तुतमिश
जामा मस्जिद दिल्ली कुतुबुद्दीन ऐबक
लाल महल दिल्ली बलबन
अलाई दरवाजा दिल्ली अलाउद्दीन खिलजी
आदिलाबाद का किला दिल्ली मुहम्मद – बिन – तुगलक
. ‘ जहाँपनाह नगर दिल्ली मुहम्मद – बिन – तुगलक
फिरोजशाह कोटला दिल्ली फिरोज तुगलक
जामा मस्जिद ,हौज – ए – खास , दिल्ली फिरोज तुगलक
. काली मस्जिद दिल्ली फिरोज तुगलक
खिड़की मस्जिद दिल्ली फिरोज तुगलक
खान – ए – जहाँ तेलंगानी का मकबरा फिरोज तुगलक ( दिल्ली )
हौज – खास मदरसा दिल्ली फिरोज तुगलक
जमायत – ए – खाना मस्जिद दिल्ली अलाउद्दीन खिलजी
सिरी फोर्ट दिल्ली अलाउद्दीन खिलजी
हौज – ए – खास दिल्ली अलाउद्दीन खिलजी
शक्सी ताल दिल्ली अलाउद्दीन खिलजी
तुगलकाबाद नगर ग्याशुद्दीन तुगलक
बेगमपुरी मस्जिद दिल्ली फिरोज तुगलक –
मोठ मस्जिद दिल्ली सिकन्दर लोदी का वजीर
सिकन्दर लोदी का मकबरा खैरपुर इब्राहिम लोदी
अटाला मस्जिद जौनपुर इब्राहिम शाह शर्की
झंझरी मस्जिद जौनपुर इब्राहिम शाह शर्की
बड़ा सोना मस्जिद गौड़ सिकन्दर शाह
कंदम्ब रसुल मस्जिद गौड़ नुसरत शाह
हिंडोलाभवन नरवदा पठार हुशंगशाह
लाल दरवाजा मस्जिद जौनपुर मुहम्मद शाह
अदीना मस्जिद पंडुआ सिकन्दर शाह
माण्डु का किला हुशंग शाह
गोल गुम्बद मस्जिद मुहम्मद आदिलशाह
चार मीनार – कुलीकुतुब शाह |
बीबी का मस्जिद – मुजफ्फर शाह गुजराती की पुत्री
विट्ठल स्वामी मंदिर – कृष्णदेव राय ।
महत्त्वपूर्ण राज्यों के संस्थापक एवं राजधानियाँ
राज्य राजधानी संस्थापक
हर्यक वंश गिरिव्रज बिम्बिसार
शिशुनाग वंश वैशाली शिशुनाग
नन्द वंश पाटलिपुत्र महानन्दिन
मौर्य वंश पाटलिपुत्र चन्द्रगुप्त मौर्य
शुंग वंश पाटलिपुत्र पुष्यमित्र शुंग
कण्व वंश पाटलिपुत्र वसुदेव
चौहान वंश अजमेर वासुदेव
राष्ट्रकूट वंश मान्यखेत दन्तिदुर्ग
चालुक्य ( वातापी ) वातापी जयसिंह प्रथम
प्रतिहार वंश उज्जैन / कन्नौज हरिचन्द्र
पाल वंश मुंगेर गोपाल
परमार वंश उज्जैन उपेन्द्र
गहड़वाल वंश कन्नौज चन्द्रदेव
चन्देल वंश खजुराहो नत्रुक
सातवाहन वंश प्रतिष्ठान सिमुक
वाकाटक वंश नन्दिवर्धन विंध्यशक्ति
गुप्त वंश पाटलिपुत्र श्रीगुप्त
.चोल तंजौर विजयालय
.चालुक्य ( वेंगी ) वेंगी विष्णुवर्द्धन
चालुक्य ( कल्याणी ) वंश मान्यखेत विजयादित्य
पल्लव वंश कांचीपुरम् सिंहविष्णु
सेन वंश काशीपुर / लखनौती सामन्तसेन
दिल्ली सल्तनत के प्रमुख सुल्तान
कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम वंश 1206 – 1210
इल्तुतमिश गुलाम वंश 1210 – 1236
सुल्ताना रजिया गुलाम वंश 1236 – 1240
नासिरुद्दीन महमूद गुलाम वंश 1246 – 1266
बलबन गुलाम वंश 1266 – 1286
जलालुद्दीन खिलजी खिलजी वंश 1290 – 1296
अलाउद्दीन खिलजी खिलजी वंश 1296 – 1316
मुहम्मद बिन तुगलक तुगलक वंश 1325 – 1351
फिरोज तुगलक तुगलक वंश 1351 – 1388
खिज्र खाँ सेयद वंश 1414 – 1421
बहलोल लोदी लोदी वंश 1451 – 1489
सिकन्दर लोदी लोदी वंश 1489 – 1517
इब्राहिम लोदी लोदी वंश 1517 – 1526
विजयनगर के प्रमुख राजवंश
1. संगम वंश 1336-1485 हरिहर एवं बुक्का
2. सालुव वंश 1485 – 1505 नरसिंह सालुव
3. तुलुव वंश 1505 – 1570 वीर नरसिंह
4.आरवीडु वंश 1570 – 1650 तिरुमल्ल
प्रमुख सम्प्रदाय
चिश्ती सम्प्रदाय ( सूफी ) ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती
शत्तारी सिलसिला ( सूफी ) शेख अब्दुल्ला सत्तारी
कादिरी सिलसिला ( सूफी ) सैयद अब्दुल कादिर अल जिलानी
नक्शबंदी सिलसिला ( सूफी ) ख्वाजा उबैदुल्ला
सुहरावर्दी सिलसिला ( सूफी ) शेख हिसाबुद्दीन , उमर सुहरावर्दी •
निपख आन्दोलन दादू दयाल
सिख सम्प्रदाय गुरु नानक
हरि कीर्तन मण्डली महाप्रभु चैतन्य
धर्मदासी सम्प्रदाय कबीरदास
गोसाई संघ महाप्रभु चैतन्य
वारकरी सम्प्रदाय रामदास
महदवी आन्दोलन सैयद मुहम्मद महदी
फिरदौसिया सम्प्रदाय सरकुद्दीन याहिया
मुगल साम्राज्य ( 1526 – 1857 ) के प्रमुख युद्ध
पानीपत का प्रथम युद्ध 1526 बाबर – इब्राहिम लोदी
पानीपत का द्वितीय युद्ध 1556 अकबर – हेमू
चौसा का युद्ध 1539 हुमायूँ – शेरशाह
बिलग्राम की लड़ाई 1540 हुमायूँ – शेरशाह
हल्दीघाटी का युद्ध 1576 अकबर – महाराणा प्रताप
असीरगढ़ का युद्ध 1603 अकबर का अंतिम युद्ध
सामूगढ़ का युद्ध – 1658 दारा – औरंगजेब
करनाल का युद्ध 1739 नादिरशाह – मुहम्मद शाह
मुगल शासकों के मकबरे
बाबर काबुल
हुमायूँ दिल्ली
अकबर सिकन्दरा
जहाँगीर लाहौर .
शाहजहाँ आगरा .
औरंगजेब औरंगाबाद
मुगल वंश के प्रमुख शासक
1 . बाबर 1526-30
2 .हुमायूँ 1530-56
3 . अकबर 1556-1605
4 . जहाँगीर 1605-1627
5 . शाहजहाँ 1627-1658
6 . औरंगजेब 1658-1707
7 . बहादुरशाह प्रथम 1707-1712
8 . जहांदारशाह 1712-1713
9 . फर्रुखसियर 1713-1719
10 . मुहम्मदशा 1719-1748
11 . अहमदशाह 1748-1754
12 . आलमगीर द्वितीय 1754-1758
13 . शाहआलम द्वितीय 1758-1806
14 . अकबर द्वितीय 1806-1837
15 . बहादुरशाह जफर 1837-1857
मुगलकालीन इमारत स्थान निर्माता
एतमादुद्दौला का मकबरा आगरा नूरजहाँ ( सफेद संगमरमर )
लाल किला दिल्ली शाहजहाँ
जामा मस्जिद दिल्ली शाहजहाँ
जामा मस्जिद आगरा जहाँआरा बेगम
ताजमहल आगरा शाहजहाँ
. शेरशाह का मकबरा सासाराम शेरशाह सूरी
पुराना किला दिल्ली शेरशाह सूरी
. लाल किला ( लाल पत्थर ) आगरा अकबर
बुलंद दरवाजा फतेहपुर सीकरी अकबर
अकबर का मकबरा सिकंदरा जहाँगीर
उत्तरमुगलकालीन स्वतंत्र राज्य
बंगाल मुर्शीद कुली खाँ ।
कर्नाटक सआदत उल्ला खाँ ।
रुहेले एवं वंगश पठान वीर दाउद – मुहम्मद खाँ
भरतपुर ( जाट ) चूड़ामन बदन सिंह
हैदराबाद चिनकिलिच खाँ
अवध सआदत खाँ बुरहानुल मुल्क
पंजाब रणजीत सिंह
सिक्ख मिसलें तथा उनके संस्थापक
भंगी मिसल हरिसिंह
सुकरचकिया मिसल चरत सिंह
निशानवालिया मिसल सरदार संगत सिंह
करोड़सिंधिया मिसल बघेल सिंह
सिंहपुरिया मिसल नवाब कपूर सिंह
अहलूवालिया मिसल जस्सासिंह अहलूवालिया
रामगढ़िया मिसल जस्सासिंह रामगढ़िया
फुलकिया मिसल फूल सिंह
कन्हैया मिसल जयसिंह
उल्लेवालिया मिसल गुलाब सिंह
नकाई मिसल हीरा सिंह
शहीदी मिसल बाबा दीप सिंह
भक्ति आन्दोलन
शंकराचार्य अद्वैतवाद
रामानुजाचार्य विशिष्टाद्वैतवाद
निम्बकाचार्य द्वैताद्वैतवाद
वल्लभाचार्य शुद्ध अद्वैतवाद
माध्वाचार्य द्वैतवाद
श्रीकंठ शैव विशिष्टाद्वैतवाद
श्रीपति वीर शैव विशिष्टाद्वैतवाद
भास्कराचार्य भेदाभेदवाद विज्ञान
भिक्षु अविभागाद्वैतवाद
कबीर विशुद्ध द्वैतवाद
प्रमुख विदेशी यात्री
मेगस्थनीज ( यूनानी ) चन्द्रगुप्त मौर्य
डाइमेकस ( सिरिया ) बिन्दुसार
डायोनीसियस ( मिस्र ) बिन्दुसार , अशोक
फाह्यान ( चीन ) चन्द्रगुप्त द्वितीय
ह्वेनसांग ( चीन ) हर्षवर्द्धन
मार्कोपोलो ( इटली ) कायाल ( पाण्ड्य )
पीतर मुन्डी ( इटली ) 17वीं शती शाहजहाँ |
हॉकिन्स , सर टामस रो , जहाँगीर
टेवरनिए ( फ्रांस ) औरंगजेब
र मालाची ( इटली ) औरंगजेब
फ्रोसिस बीयर शाहजहाँ
इब्नबतूता ( मोरक्को ) . म . बिन तुगलक
निकोलो कोन्टी ( इटली ) देवराय – I
अब्दुर्रज्जाक ( फारस ) 1443 ई देवराय – II
अथनासिमस निकिटन ( रूस ). ताजुद्दीन फिरोज
पायस ननीज बरबोसा ( पुर्तगाल ) कृष्णदेव राय
योपीय कम्पनियाँ, स्थापना
1.पुर्तगाली ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1498 ई
2. अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1600 ई .
3.डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1602 ई .
4.डेनिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1616 ई .
5 फ्रांसीसी ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1664 ई .
6,. स्वीडिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1731 ई .
शिक्षा आयोग
1.1854 वुड का घोषणा – पत्र
2.1882 हण्टर शिक्षा आयोग
3.1902 विश्वविद्यालय आयोग .
4.1917 सैडलर आयोग
5. 1929 हर्टोग समिति
6. 1935 शिक्षा की वर्धा योजना ( गांधी जी द्वारा प्रस्तुत )
7. 1944 सार्जेन्ट योजना
1857 के विद्रोह नेतृत्वकर्ता
.इलाहाबाद लियाकत अली कर्नल नील
. बनारस लियाकत अली कर्नल नील
.ग्वालियर झाँसी की रानी ह्यूरोज
. जगदीशपुर कुँवर सिंह विलियम टेलर मेजर विसेंट आर्थर
.लखनऊ बेगम हजरत महल कैम्पबेल
.. कानपुर नाना साहब , तात्या टोपे कैम्पबेल
दिल्ली बहादुर शाह जफर निकलसन एवं हडसन
फैजाबाद मौलवी अहमदुल्ला
झॉसी , रानी लक्ष्मीबाई ह्यूरोज
.ग्वालियर रानी लक्ष्मीबाई ह्यूरोज
.फतेहपुर अजीमुल्ला जनरल रेनर्ड
. बरेली खान बहादुर खाँ
स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान प्रचलित वचन
वन्दे मातरम् बंकिमचन्द चटर्जी
करो या मरो महात्मा गाँधी
दिल्ली चलो ` सुभाषचन्द्र बोस
जय हिन्द सुभाषचन्द्र बोस
” सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ” इकबाल
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है राम प्रसाद बिस्मिल
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा सुभाषचन्द्र बोस
वेदों की ओर लौट दयानन्द सरस्वती
पूर्ण स्वराज्य जवाहरलाल नेहरू
हिन्दी , हिन्दू , हिन्दोस्तान भारतेन्दु हरिशचन्द्र
जन – गण – मन अधिनायक जय हे रवीन्द्रनाथ ठाकुर
साइमन कमीशन वापस जाओ लाला लाजपत राय
मेरे सिर पर लाठी का एक – एक प्रहार , अंग्रेजी शासन के कफ़न की कील साबित होगा
लाला लाजपत राय
हू लिव्स इफ इण्डिया डाइज जवाहरलाल नेहरू
स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है बाल गंगाधर तिलक
साम्राज्यवाद का नाश हो भगत सिंह
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा श्याम लाल गुप्ता पार्षद
सम्पूर्ण क्रांति जय प्रकाश नारायण
कर मत दो सरदार वल्लभ भाई पटेल
जय जगत विनोबा भावे
मारो फिरंगी को मंगल पाण्डे
आराम हराम है जवाहरलाल नेहरू
हे राम महात्मा गाँधी
भारत छोड़ो महात्मा गाँधी
जय जवान , जय किसान लाल बहादुर शास्त्री
इन्कलाब जिन्दाबाद भगत सिंह
प्रमुख किसान आन्दोलन
नील आन्दोलन • दिगम्बर एवं विष्णु विश्वास
ताना भगत आंदोलन • जतरा भगत
तेभागा आन्दोलन • कम्पाराम सिंह एवं भवन सिंह
तेलंगाना आन्दोलन • आन्ध्र प्रदेश
पावना विद्रोह • ईशान चंद्र राय , शम्भु पाल
दक्कन विद्रोह 1874
एका आन्दोलन • हरदोई , बहराइच , सीतापुर
मोपला विद्रोह • अली मुसलियर
कूका आन्दोलन भगत जवाहर मल
•रम्पा विद्रोह • सीताराम राजू
भील विद्रोह • सेवाराम
रामोसी विद्रोह चित्तर सिंह
संन्यासी विद्रोह . केना सरकार , दिर्जिनारायण
संथाल विद्रोह सिद्धू एवं कान्हू
अहोम विद्रोह गोमधर कुंवर
पागलपंथी विद्रोह करम शाह
फरायजी विद्रोह दादू मियां
चुआर विद्रोह • दुर्जन सिंह
हो एवं मुण्डा विद्रोह . बिरसा मुण्डा
कोल विद्रोह गोमधर कुंवर
प्रमुख सामाजिक, धार्मिक आन्दोलन
आत्मीय सभा कलकत्ता राजाराम मोहन राय 1815
धर्म सभा कलकत्ता राधाकान्त देव 1829
परमहंस मंडली बम्बई गोपालहरि देशमुख
मोहम्मडन एजूकेशनल कॉन्फ्रेंस अलीगढ़ सैयद अहमद खाँ 1886
सेवा समिति इलाहाबाद एच . एन . कुंजरु 1914
दार – उल – उलूम देवबन्द मौलाना हुसैन अहमद 1866
अहमदिया आन्दोलन पंजाब मिर्जा गुलाम अहमद
नदवाह – उल – उलूम लखनऊ मौलाना शिब्ली नुमानी 1894
आदि ब्रह्म समाज कलकत्ता केशवचन्द्र सेन 1866
इण्डियन सोशल कॉन्फ्रेंस बम्बई एम . जी . रानाडे 1887
रामकृष्ण मिशन बेल्लूर स्वामी विवेकानन्द 1897
भारतीयों द्वारा प्रकाशित समाचार – पत्र
यंग इंडिया महात्मा गाँधी अहमदाबाद
नवजीवन महात्मा गाँधी अहमदाबाद
हरिजन महात्मा गाँधी पूना
इंडिपेन्डेंस मोती लाल नेहरू पूना
आज शिव प्रसाद गुप्त
नेशनल हेराल्ड जवाहर लाल नेहरू दिल्ली
उदन्त मार्तन्ड जुगुल किशोर कानपुर
बंगवासी जोगिन्दर नाथ बोस कलकत्ता
संजीवनी जोगिन्दर नाथ बोस कलकत्ता .
सोम प्रकाश ईश्वर चंद्र विद्यासागर कलकत्ता
अमृत बाजार पत्रिका मोतीलाल घोष कलकत्ता
हिन्दू वीर राघवाचारी मद्रास
नेटिव ओपीनियन वी . एन . मांडलिक बम्बई
केसरी तिलक बम्बई
मराठा तिलक बम्बई
बंगाली सुरेन्द्र नाथ बनर्जी बम्बई
अल हिलाल मो . अबुल कलाम आजाद कलकत्ता
अल विलाग मो . अबुल कलाम आजाद कलकत्ता
भारत मित्र बाल मुकुन्द गुप्त बम्बई
हिन्दोस्तान मदन मोहन मालवीय
कामरेड मौलाना मुहम्मद अली कलकत्ता
प्रताप गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर
गदर गदर पार्टी द्वारा सैन फ्रांसिस्को
हिन्दू पैट्रियाट हरिश्चंद्र मुखर्जी
हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड सच्चिदानन्द सिन्हा उत्तर प्रदेश
ज्ञानप्रदायी नवीन चंद्र राय उत्तर प्रदेश
हिन्दी प्रदीप बाल कृष्ण भट्ट उत्तर प्रदेश
इंडियन रिव्यू जी . ए . नटेशन मद्रास
बम्बई दर्पण बाल शास्त्री बम्बई
कविवचन सुधा भारतेंदु हरिश्चंद्र उत्तर प्रदेश
मॉडर्न रिव्यू रामानंद चटर्जी कलकत्ता
धार्मिक एवं समाज सुधार आन्दोलन
एशियाटिक सोसायटी 1784 विलियम जोन्स
ब्रह्म समाज 1828 राजा राममोहन राय
तत्वबोधिनी सभा 1839 देवेन्द्रनाथ ठाकुर
प्रार्थना समाज 1867 आत्माराम पांडुरंग
आर्य समाज 1875 दयानन्द सरस्वती
रेहनुमाई मजदायासान सभा 1851 दादाभाई नौरोजी
प्रमुख गुप्त क्रान्तिकारी संगठन
अनुशीलन समिति 1902 बंगाल वारिन्द्र कुमार घोष , जतीन्द्र नाथ बनर्जी , प्रबोध मित्र , पुलिन दास ने
अभिनव भारत 1907 महाराष्ट्र वी . डी . सावरकर
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन 1924 बंगाल सचिन सान्याल
इण्डियन इण्डिपेंडेंस लीग 1942 जापान रास बिहारी घोष
मित्र मेला 1904 महाराष्ट्र सावरकर बन्धु ( गणेश एवं वी . डी . सावरकर
गदर पार्टी 1918 सेन फ्रांसिस्को लाला हरदयाल तथा ( अमेरिका ) सोहनसिंह भाकना
सोलह संस्कार
जन्म से पूर्व के संस्कार
( i ) गर्भाधान , ( ii ) पुंसवन तथा ( iii ) सीमान्तोन्नयन
बाल्यावस्था के संस्कार
( iv ) जातकर्म , ( v ) नामकरण , ( vi ) निष्क्रमण , ( vii ) अन्नप्राशन ( viii ) चूडाकर्म , ( ix ) कर्णवेध
विद्याध्ययन से सम्बन्धित संस्कार
( x ) विद्यारम्भ , ( xi ) उपनयन तथा ( xii ) वेदारम्भ
आश्रमों में प्रवेश करने के संस्कार
( xii ) विवाह , ( xiv ) वानप्रस्थ , ( xv ) संन्यास ( e ) मृत्योत्तर संस्कार ( xvi ) अन्त्येष्
दार्शनिक सम्प्रदाय
न्याय गौतम
वैशेषिक कणाद
सांख्य कपिल
योग पतंजलि
मीमांसा जैमिनी
वेदान्त बादरायण
नास्तिक दर्शन . जो वेदो को नहीं मानते हैं
माध्यमिक शून्यवाद नागार्जुन
योगाचार विज्ञानवाद मैत्रेयनाथ
चार्वाक चार्वाक
प्रमुख व्यक्तियों से सम्बन्धित स्थल
ईसामसीह जेरुसलम
आचार्य विनोबा भावे पवनार आश्रम
बाबा आम्टे ‘ आनन्द वन ‘
मां आनन्दमयी ओरेविले
मदर टेरेसा निर्मल हृदय
डॉ . राजेन्द्र प्रसाद सदाकत आश्रम
नेलसन ट्रेफलगर
गुरुनानक तलवंडी
महात्मा गांधी पोरबन्दर / साबरमती
स्वामी रामकृष्ण परमहंस वेलूर
सिकन्दर महान मेसीडोनिया / सिकन्दरिया
जवाहर लाल नेहरू शान्तिवन
नेपोलियन सेंट हेलेना , वाटरलू
गौतम बुद्ध कपिलवस्तु , बोधगया , कुशीनगर
सरदार बल्लभभाई पटेल बारदोली
महाराणा प्रताप चित्तौड़गढ़ / हल्दीघाटी
जैन धर्म
– जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हैं । – जैन धर्म के पहले ( आदि ) तीर्थंकर ऋषभदेव थे ।
– पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे । – वर्द्धमान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर के रूप में पूजे जाते हैं ।
– त्रिरत्न जैन धर्म से सम्बन्धित विचारधारा है ।
महावीर स्वामी का जन्म 599 ई . पू . या 540 ई . पू . में वैशाली के लिच्छवियों की एक शाखा ज्ञातृक वंश में हुआ था । – श्वेताम्बर जैनियों के अनुसार इनका विवाह यशोदा से हुआ जिससे एक कन्या उत्पन्न हुई । इस कन्या का नाम प्रियदर्शना था । – महावीर स्वामी ने . 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग दिया था ।
42 वर्ष की आयु में जृम्भिक गांव के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । ज्ञान प्राप्त करने के बाद महावीर ‘ जिन ‘ , ‘ निर्ग्रन्थ ‘ , ‘ जितेंद्रिय ‘ , ‘ केवलिन ‘ कहलाये । ।
महावीर को साल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई ।
– जैन धर्म के पंचमहाव्रत हैं – 1 . अहिंसा , 2 . अस्तेय , 3 . सत्य , 4 . अपरिग्रह , 5 . ब्रह्मचर्य ।
बौद्ध धर्म
– बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध थे । इनका जन्म 563 ई . पू . में |
-कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक गांव में हुआ इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था ।
– इनकी माता का नाम महामाया था तथा इनके पिता शुद्धोधन थे ।
-29 वर्ष की आयु में इन्होंने गृह त्याग दिया । – इनकी पत्नी यशोधरा थी तथा इनके एक पुत्र राहुल था ।
– घर छोड़ने के बाद ये भ्रमण करते – करते बोधगया में पहुँचे जहाँ इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । – ज्ञान प्राप्त होने पर ये महात्मा बुद्ध के नाम से जाने गये । बौद्ध धर्म की शिक्षाएं एवं सिद्धांत संक्षेप में निम्नलिखित हैं – – चार आर्य सत्य –
( a ) दुःख ,
( b ) दुःख समुदाय ,
( c ) दुःख निरोध , एवं
( d ) दुःख निरोध मार्ग ।
– अष्टांगिक मार्ग – महात्मा बुद्ध ने दुःख निरोध मार्ग के रूप अष्टांगिक मार्ग का प्रतिपादन किया । अष्टांगिक मार्ग को मध्यम मार्ग या मध्यम प्रतिप्रदा के नाम से भी जाना जाता है । इसका वर्णन इस । प्रकार हैं
( i ) सम्यक् दृष्टि ,
( ii ) सम्यक् संकल्प ,
( iii ) सम्यक् वाक् ,
( iv ) सम्यक् कर्मांत ,
( v ) सम्यक् आजीव ,
( vi ) सम्यक् व्यायाम ,
( vii ) सम्यक् स्मृति ,
( viii ) सम्यक् समाधि
हिन्दू धर्म
– हिन्दू धर्म को सनातन धर्म की संज्ञा दी गयी है । यह धर्म प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों , आस्थाओं , विश्वासों , मत मतांतरों आदि का समुच्चय माना जाता है ।
इसका विकास प्राचीन भारत में आर्यों एवं अनार्यों की आस्थाओं के समन्वय से हुआ है ।
– हिन्दू धर्म का मूल स्रोत वेदों में मिलता है ।
चार वेद – ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद एवं अथर्ववेद ही हिन्दू धर्म का आधार है ।
वेदों के अलावा हिन्दू धर्म के अन्य ग्रन्थों में ब्राह्मण ग्रन्थ , आरण्यक , उपनिषद् , स्मृति ग्रन्थ , पुराण , महाकाव्य , सूत्र साहित्य आदि आते हैं । हिन्दू धर्म को वैदिक धर्म के रूप में देखा जाता है । यह धर्म प्रकृति पूजक , बहुदेववादी तथा अनुष्ठानपरक है । वेदों को अपौरुषेय एवं सनातन माना गया है । – –
सिक्ख धर्म
– सिक्ख धर्म की स्थापना गुरु नानक ने 15वीं शताब्दी में पंजाब मे का । – नामक देव का जन्म 1469 ई . में लाहौर के समीप तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ था ।
– नानक के शिष्य मर्दाना तथा बाला बन्धु थे , जो इनके साथ सदैव रहते थे ।
– सिक्ख शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘ शिष्य ‘ शब्द से हुई है । नानक ने निवृत्ति मार्ग की आलोचना की तथा प्रवृत्ति मार्ग की व्याख्या की । नानक ने ‘ गीता ‘ के आधार पर आत्मा का विश्लेषण किया और उसी भाँति आत्मा की विशेषता दर्शित की । – नानक की मृत्यु गुरुदासपुर जिले के करतारपुर ग्राम में हुई । |
– सिक्ख धर्म में दस गुरुओं का उल्लेख मिलता है , जो इस प्रकार है – गुरु नानकदेव , गुरु अंगद , गुरु अमरदास , गुरु रामदास , गुरु अर्जुन देव , गुरु हरगोविन्द , गुरु हर राय , गुरु हर कृष्ण , गुरु तेग बहादुर तथा गुरु गोविन्द सिंह ।
– नानक के शिष्य गुरु अंगद ने उनकी वाणियों को संग्रहित कर गुरुमुखी लिपि में संकलित कराया । – चौथे गुरु रामदास ने ‘ अमृत सरोवर ‘ की नींव रखी ( वर्तमान में अमृतसर ) ।
– सिक्खों के पांचवें गुरु अर्जुन देव ने हरमंदिर साहब ( स्वर्ण मंदिर ) की अमृतसर में स्थापना की । – गुरु अर्जुन देव , गुरु तेग बहादुर , गुरु हरगोविन्द ने मुस्लिम शासकों का सदैव विरोध किया ।
सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने 1699 ई . में खालसा पंथ की स्थापना की । इन्होंने खालसा अनुयायियों को 5 वस्तुओं यानी केश , कंघा , कड़ा , कच्छा और कृपाण धारण करने पर जोर दिया ।
गुरु गोविन्द सिंह के बाद गुरुओं की परम्परा समाप्त हो गयी ।
– गुरु गोविन्द सिंह के बाद ‘ आदिग्रन्थ ‘ को ही गुरु माना जाने लगा ।
सिक्ख धर्म के पांच प्रमुख केंद्र हैं – अकाल तख्त , हरमंदिर साहिब , पटना साहिब , आनन्दपुर साहिब और हुजूर साहिब ।
राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन अवधि में बनी महत्त्वपूर्ण संस्थाएँ
एशियाटिक सोसाइटी 1784 विलियम जोन्स
युवा बंगाल ( तरुण बंगाल ) हेनरी लुई विवियन डिरोजियो ।
ब्रिटिश सार्वजनिक सभा 1843 दादा भाई नौरोजी
रहनुमाई मज्यासन समाज 1851 दादा भाई नौरोजी
साइन्टिफिक सोसाइटी 1862 सर सैयद अहमद खाँ
देश का पहला अन्तरिम मंत्रिमंडल
कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष , विदेशी मामले तथा राष्ट्रमंडल — जवाहर लाल नेहरू
गृह , सूचना तथा प्रसारण — बल्लभ भाई पटेल
रक्षा — बलदेव सिंह
शिक्षा — सी . राजगोपालाचारी
खाद्य एवं कृषि – राजेन्द्र प्रसाद
श्रम — जगजीवन राम
वाणिज्य -आई . आई . चुन्दरीग र
विधि – जोगेन्द्र नाथ मंडल
उद्योग तथा आपूर्ति – जान मथाई
कार्य , खान एवं बंदरगाह –सी . एच . भाभा –
रेलवे — आसफ अली
वित्त : –लियाकत अली खां
संचार –अब्दुल रब नश्तर
स्वास्थ्य –गजान्तर अली खां
प्रथम भारतीय पुरुष
भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति – डॉ। राजेंद्र प्रसाद (1950 – 62)
स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री – पं। जवाहरलाल नेहरू (1947 – 64)
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित, प्रथम भारतीय – डॉ। रवीन्द्र नाथ टैगोर (1913, साहित्य)
भारतीय गणराज्य के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति – डॉ। जाकिर हुSAIN
भौतिकी में नोबेल पुरस्कार के पहले भारतीय प्राप्तकर्ता – सीवी वी। रमन (1930)।
अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय स्क्वाड्रन नेता – राकेश शर्मा (1984)
भारत के पहले फील्ड मार्शल – एसके एच। एफ। जे मानेकशॉ (1971)
स्वतंत्र भारत के पहले कमांडर-इन-चीफ – जनरल करियप्पा (1949)
स्वतंत्र भारत के गवर्नर जनरल – लॉर्ड माउंटबेटन (1947 – 48)
पहले ब्रिटिश गवर्नर जनरल ऑफ़ बंगाल प्रेसीडेंसी – जनरल लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स
प्रथम ब्रिटिश गवर्नर -जेनरल ऑफ इंडिया – लॉर्ड विलियम बैंटिक
अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल और भारत के पहले वायसराय – लॉर्ड कैनिंग
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष – व्योमेश चैन टैक्स बनर्जी (1885),
प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल – सी। राजगोपालाचारी (1948)
प्रथम भारतीय एफ । आर। एस।IFS – ए । Curset G
I C। एस। होने वाले पहले भारतीय – सत्येंद्र नाथ टैगोर (1869)
आईए सी। एस। शामिल होने वाले पहले भारतीय – सत्येंद्र नाथ टैगोर
भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश – न्यायमूर्ति हीरालाल जे। कनिया (1950 – 51) •
वायु सेना के प्रथम प्रमुख – एयर मार्शल एस। मुखर्जी (1954)
नौसेना स्टाफ के पहले प्रमुख – वाइस एडमिरल आर.के. डी। कटरी (1958 – 62)
प्रथम भारतीय पायलट – जेके आर । डी। टाटा (1929)
दक्षिण ध्रुव पर पहुंचने वाले पहले भारतीय – लेफ्टिनेंट राम चरण (1960)
• अंग्रेजी चैनल में तैरने वाले पहले भारतीय – मिहिर सेन (1958):
नेपाली माउंट एवरेस्ट तक पहुँचने के लिए – शेरपा तेनजिंग (1953)
लोकसभा के पहले स्पीकर – जी । वी। मावलंकर (1952 – 57)।
राज्यसभा के पहले उपाध्यक्ष – एस के वी। कृष्णमूर्ति
प्रथम राष्ट्रKAV I – मैथिलीशरण गुप्त
वीर चक्र प्राप्त करने वाले पहले वायु सेना अधिकारी – निर्मलजीत शेखोन (मरणोपरांत)
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश – डॉ। नागेंद्र सिंह,
पहले भारतीय अंटार्कटिका अभियान के नेता – डॉ। सैयद ज़हूर क़ासिम
भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त – सुकुमार सेन
ब्रिटेन के हाउस ऑफ़ कॉमन्स के पहले भारतीय सदस्य – दादा भाई नौरोजी (1892) )
• विश्व बिलियर्ड्स खिताब जीतने वाले पहले भारतीय – विल्सन जोन्स,
सेवा में पास होने वाले पहले भारतीय सेनाध्यक्ष – जनरल विपिनचंद्र जोशी
सार्वजनिक सेवा के लिए रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति थे – सी डी देशमुख
ग्रैमी पुरस्कार से सम्मानित होने वाले भारतीय – पं। रविशंकर
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पहले भारतीय उप प्रबंधक – प्रभाकर आर आर नरवेकर
मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया – लाल बहादुर शास्त्री •
प्रथम भारतीय वैज्ञानिक नोबेल पुरस्कार से सम्मानित – चंद्रशेखर वेंकटरमन
भारत में पहला समाचार पत्र
, जेम्स ऑगस्टस हिक्की का ‘बंगाल गजट’, जो 29 जनवरी, 1781 को प्रकाशित हुआ था, भारत का पहला समाचार पत्र था। 1818 में प्रकाशित पहला भाषाई दैनिक ‘समचार दरपन’ बंगाली दैनिक था। ‘उदंत मार्तंड’ (संपादक – पं। युगल किशोर शुक्ल) पहले हिंदी समाचार पत्र थे।
डाक व तार भारत में
पहली पोस्ट ऑफिस 1727 में कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा खोला गया था,
पहले तार लाइन डायमंड हार्बर और कोलकाता (33.8 किमी) के बीच अक्टूबर 1851 में शुरू किया गया था
,भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार सेवा 1870 ई उत्पन्न (मुंबई से लंदन)।
18 फरवरी 1911 को बमरौली से नैनी (इलाहाबाद) तक पहली एयर मेल सेवा (भारत और दुनिया में) बनाई गई थी ।
FIRS POSTAL TICKET 1852 में जारी की गई थी। T
ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली देश की पहली महिला मुक्केबाज – एम. सी.मैरी कॉम
भारत में रेडियो प्रसारण सेवा की शुरुआत 1927 में मुंबई और कोलकाता में दो गैर-आधिकारिक ट्रांसमीटरों की स्थापना के साथ हुई।
भारत का पहला दूरदर्शन केंद्र प्रायोगिक तौर पर नई दिल्ली में 15 सितंबर 1959 को स्थापित किया गया था।
दूरदर्शन से रंग कार्यक्रमों का प्रसारण 15 अगस्त 1982 को शुरू हुआ।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी
पहला भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’: 19 अप्रैल 1975 को अंतरिक्ष में रखा गया था ।
पहला स्वदेश निर्मित उपग्रह ‘इनसाइट 2 ए’: अंतरिक्ष में रखा गया था। 10 जुलाई 1992.
भारत का पहला आणविक भूमिगत परीक्षण: 18 मई 1974 को पोखरण (जैसलमेर, राजस्थान)।
भारत का पहला बड़े पैमाने पर परमाणु भट्टी: अप्सरा ने 4 अगस्त 1956 को परिचालन शुरू किया।
पहला जल विद्युत केंद्र: दार्जिलिंग (1898 ई।)।
स्वदेशी डिजाइन और पहली स्वदेशी निर्मित मिसाइल: 1988 ई। ‘पृथ्वी’ मिसाइल का प्रक्षेपण किया गया।
पहला टेस्ट ट्यूब बेबी: 1986 ईस्वी बेबी हर्षा का जन्म
पहली टेस्ट ट्यूब BUFFALO में: जन्म 1990 में नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट, करनाल में हुआ। ।
। पहला परिवार नियोजन केंद्र: 1925 में मुंबई में।
अंटार्कटिका पर कदम रखने वाले पहले भारतीय: डॉ। डी। एस। सिरोही (1967 में अमेरिकी वैज्ञानिक अभियान के तहत)
पहला अंटार्कटिक अभियान: 6 दिसंबर 1981 – जनवरी 1982 जेड कासिम के नेतृत्व में ।
पहली भारतीय महिला
फॉर्मूला वन में पहली भारतीय मूल की महिला टीम की प्रिंसिपल – मोनिशा कल्टबॉर्न,
ओलंपिक खेलों के दौरान बैडमिंटन प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतने वाली पहली महिला, साइना नेहवाल
भारत की सर्वोच्च संवैधानिक पद धारण करने वाली पहली महिला हैं – श्रीमती देवी सिंह प्रतिभा पाटिल
LOKSABHA की स्पीकर पहली भारतीय महिला बनीं। 2000 में मीरा क़मर)
नॉर्मन बोरलॉग पुरस्कार पाने वाली पहली भारतीय महिला – डॉ। अमृता पटेल
ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला – एन। पॉली (1924 टेनिस)
भारत रत्न पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली महिला – श्रीमती इंदिरा गांधी,
पहली भारतीय महिला नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने के लिए – मदर टेरेसा
भारत की पहली फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ महिला – सीता वर्थम्बल और भारंगथम्बल (दोनों बहनें)
अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला – कल्पना चावला
भारतीय सिनेमा की पहली नायिका – देविका रानी
पहली बार स्पीकर बनीं राज्य विधान सभा महिलाएँ – श्रीमती शन्नो देवी
एशियाड स्वर्ण पदक विजेता – – कमल जी संधू
राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रथम अध्यक्ष – श्रीमती जयंती पटनायक (1992)
अर्जुन पुरस्कार पाने वाली पहली महिला – एन। लम्सडेन –
प्रथम भारतीय महिला सर्जन – डॉ। प्रेमा मुखर्जी,
डब्ल्यूटीए टेनिस टूर्नामेंट जीतने वाली पहली महिला – सानिया मिर्ज़ा,
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष – एनी बेसेंट (1917),
आरबीआई की पहली डिप्टी गवर्नर – के जे UDESHI
। भारत की महिला विदेश मंत्री – लक्ष्मी एन। मेनन
अंटार्कटिका में जाने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं -MEHARMOOS (1976 में),
भारतीय वायु सेना की पहली महिला पैराट्रूपर – नीता घोष,
100 विकेट लेने वाली पहली भारतीय महिला क्रिकेटर – डायना इडुलजी,
राज्यसभा की पहली महिला महासचिव – वी एस रामादेवी ।
सुप्रीम कोर्ट की प्रथम महिला न्यायाधीश – न्यायमूर्ति मीरा साहिब फातिमा बीबी (1989)
प्रथम महिला रेलवुमन – सुरेखा शंकर यादव
प्रथम भारतीय महिला बुकर पुरस्कार जीतने वाली – अरुंधति राय
प्रथम महिला पेप्सिको की सीईओ – इंद्रा नूई
प्रथम महिला संपादक – कमला स्वामीनाथन
भारतीय प्रथम एयरलाइंस की महिला पायलट
सबसे लंबे समय SPACE स्थान पर रहने वाली पहली महिला – सुनीता विलियम्स,
सबसे कम उम्र की महिला लेखिका, बुकर पुरस्कार विजेता – किरण देसाई,
ओआईसी कार्ड प्राप्त करने वाली पहली महिला – निवृत्ति राय,
संयुक्त राष्ट्र की पहली महिला अध्यक्ष विधानसभा – श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित (1953)
भारतीय राज्य। प्रथम महिला मुख्यमंत्री (यूपी) – श्रीमती सुचेता कृपलानी (1963 – 67)
प्रथम महिला मंत्री – राजकुमारी अमर ता कौर
प्रथम महिला राजदूत – श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित
पहली भारतीय महिला, जिन्होंने माउंट एवरेस्ट – कू । बछेंद्री पाल (1984)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष – एनी बेसेंट (1917)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष – सरोजिनी नायडू (1925)
प्रथम महिला विधायक – एसके मुथुलक्ष्मी रेडी (1926)
पहली महिला आई ए एस अधिकारी – अन्ना राजम जॉर्ज (1950)
राज्य की पहली डीजीपी बनने वाली पहली महिला – कंचन सी। भट्टाचार्य (उत्तराखंड)
पहली महिला राज्यपाल – सरोजिनी नायडू (यूपी)
प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश – लीला सेठ (एचपी , 1991)
• पहली महिला वकील – सी । सोराबजी (इलाहाबाद, 1923)।
प्रथम महिला न्यायाधीश – अन्ना चांडी (1949)
पहली महिला आई पी S। अधिकारी – किरण बेदी (1972)।
सेना पदक जीतने वाली पहली महिला – विमला देवी (CRPF, 1990)
, पहली महिला नोबेल पुरस्कार विजेता – मदर टेरेसा (1979),
दिल्ली की विश्व सुंदरी (मिस वर्ल्ड) – रीता फारिया (1966)
बनने वाली पहली महिला। सिंहासन पर बैठने वाली पहली और एकमात्र मुस्लिम महिला – रजिया बेगम (1236)
अंग्रेजी चैनल पर तैरने वाली पहली महिला – आरती साहा (वर्तमान में आरती गुप्ता)
पहली महिला चिकित्सक ` – आनंदी बाई जोशी
एवरेस्ट दो बार और पहली भारतीय महिला पर चढ़ने वाली । – संतोष यादव
FIRS प्रधानमंत्री – इंदिरा गांधी । ।
जिब्राल्टर जलडमरूमध्य में तैरने वाली पहली महिला _ _ – आरती प्रधान (1988)
रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली महिला _ _ _ – किरण बेदी,
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की महानिदेशक नियुक्त होने वाली पहली महिला – जी । वी। सत्यवती
फर्स्ट वुमन को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया – अमृता प्रीतम
फर्स्ट वुमन को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया – आशापूर्णा देवी (1976)
शतरंज में प्रथम ग्रैंड मास्टर का खिताब पाने वाली पहली महिला – भाग्यश्री थिप्से (1986)
प्रथम दूरदर्शन। समचार वाचिका – प्रतिमा पुरी
राज्यसभा प्रथम महिला उपप्रमुख _ _ _ _ – मार्गेट अल्वा (1962) •
लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित लड़की – अरुणा आसफ अली
प्रथम मिस यूनिवर्स – सुषमाsusmita सेन
महत्वपूर्ण संक्षिप्त नाम
ओशो – आचार्य रजनीश
एडम स्मिथ – अर्थशास्त्र के जनक
एडोल्फ हिटलर – FURER
अल्फ्रेड हिचकॉक – सस्पेंस के मास्टर
एंड्रयू डी। सखारोव – हाइड्रोजन बम के जनक
बाल गंगाधर तिलक – लोकमAMYA
भगत सिंह – शहीद – ए – आज़म
सी। राजगोपालाचारी – राजाजी
सी। । एफ। एंड्रयूज – दीनबंधु
दादाभाई नौरोजी – भारत के ग्रैंड Oldman,
और “भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के जनक”
दादा साहेब फालके – भारतीय सिनेमा पिता
एडमंड स्पेंसर – – कवि के कवि –
अर्नेस्ट रदरफोर्ड -परमाणु भौतिकी के पिता
वेलिंगटन के ड्यूक बर्फ ड्यूक के
फ्लोरेंस नाइटिंगेल – लेडी लैम्प
गियोवन्नी बकासियो – उपन्यास के पिता
गुरचरण सिंह – द ओल्ड मैन ऑफ इंडियन पॉटरी
हेनरिक जे। इबसेन – आधुनिक नाटक के पिता
हेरोडोट्स – इतिहास के पिता
हिप्पोक्रेट्स – चिकित्सा के पिता
होमी जे। भाभा – भारतीय परमाणु विज्ञान के पिता
इंदिरा गांधी – भारत की लौह महिला
जे जे आर डी टाटा – भारत में वैमानिकी के पिता
जमशेद जी। टाटा – भारतीय उद्योगों के जनक
जयप्रकाश नारायण – लोकनायक
जोसेफ प्रीस्टले – आधुनिक रसायन शास्त्र के जनक।
K म । करिअप्पा – भारतीय अमी के ग्रैंड ओल्डमैन
कालिदास – भारतीय शेक्सपियर (भारत के शेक्सपियर)
खान अब्दुल गफ्फार खान – फ्रंटियर गांधी / बादशाह खान / फकर – ए – अफगान एम ।
गोवलकर – गुरुजी
नंदलाल बोस – भारत के आधुनिक चित्रों के जनक
राजाराम मोहन रॉय – भारतीय पुनर्जागरण के पिता
समुद्रगुप्त – भारतीय नेपोलियन
सलीम अली – भारत के पक्षी विशेषज्ञ
सेंट निकोलस – सांता क्लॉज़
सुश्रुत – आधुनिक प्लास्टिक सर्जरी के जनक। ।
थॉमस कुक – आधुनिक पर्यटन के जनक
TUSAR KANTI घोष – भारतीय पत्रकारिता के ग्रैंड ओल्ड मैन।
आंध्र केसरी – टी प्रकाशम
बंगबंधु – शेख मुजीबुर रहमान
बापूजी – महात्मा गांधी
अन्ना – सी एन अन्नादुरई
चाचा – जवाहर लाल नेहरू बार्ड –
सर वाल्टर स्कॉट – उत्तर के आश्चर्य
चाचा हो -डॉ हो ची मिन्ह
टाइगर ऑफ़ स्नो – तेनजिंग नोर्गे
टी टी के टी टी कृष्णामाचारी
गौरैयाSPARROW – मेजर जनरल राजिंदर सिंह
शेर – ए – कश्मीर – शेख मोहम्मद अब्दुल्ला
नाइटिंगेल ऑफ़ इंडिया (भारत का कोकिला) – सरोजिनी नायडू
नेताजी – सुभाष चंद्र बोस
शांत व्यक्ति – लाल बहादुर शास्त्री
सरदार पटेल -IRON MAN
मार्क ट्विन – सैमुअल क्लेमेंस
मेडन क्वीन – एलिजाबेथ – प्रथम
महाम मोहन – पं। मदन मोहन मालवीय
मैन ऑफ डेस्टिनी – नेपोलियन
ली – क्वान – पर्ल एस बक
लिटिल कॉर्पोरल – नेपोलियन
पंजाब केशरी, पंजाब के शेर – लाला लाजपत राय
लाल, बाल, पाल – लाला लाजपत राय,
बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल
किपर – फील्ड मार्शल के। एम। करिअप्पा
किंग मेकर – अर्ल ऑफ़ वर्विशायर
भारत के प्रसिद्ध व्यक्ति और उनसे संबंधित स्थान
तलवंडी गुरु नानक
कपिलवस्तु / बोधगया / लुम्बनी / कुशीनगर गौतम बुद्ध
राजघाट / पोरबंदर / साबरमती / फीनिक्स फार्म महात्मा गांधी
शांति निकेतन रवींद्रनाथ टैगोर
निर्मल हृदय मदर टेरेसा।
सदाकत आश्रम डॉ। राजेंद्र प्रसाद
बाबा आमटे – आनंद वन
BAGLUR ` रामकृष्ण परमहंस
चित्तौड़गढ़ / हल्दीघाटी महाराणा प्रताप
विजयघाट लाल बहादुर शास्त्री
बारादOLI सरदार वल्लभभाई पटेल
पवनार आश्रम आचार्य विनोवा भाव
किसान घाट चौ। चरण सिंह
समता स्थली जगजीवन राम
शांति वन / किशोर मूर्ति भवन जवाहरलाल नेहरू –
शक्ति स्थली इंदिरा गांधी
वीर भूमि राजीव गांधी
जलियांवाला बाग जनरल डायर
भारत में प्रथम
भारत के प्रथम राष्ट्रपति – डॉ। राजेंद्र प्रसाद।
प्रथम प्रधानमंत्री – पंडित जवाहरलाल नेहरू।
पहले पूरी तरह से गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री – अटल बिहारी वाजपेयी।
भारत गणराज्य के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति – डॉ। ज़ाकिर हुसैन।
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले पहले व्यक्ति। -अटल बिहारी वाजपेयी
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाला पहला व्यक्ति – तेनजिंग नोर्गे।
प्रथम उप प्रधान मंत्री – सरदार वल्लभभाई पटेल।
सुप्रीम कोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश – हीरालाल जे। कनिया।
पहले गीतकार को दादा साहब फाल्के पुरस्कार – मजरूह सुल्तानपुरी
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति – CC D. देशमुख
पहले व्यक्ति जिन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। – जी शंकर बदसूरत।
नॉर्मन बोरलॉग पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति – डॉ। अमृता पटेल।
भारतीय सेना के पहले जनरल – जनरल केके एम। कृपया |
प्रथम फील्ड मार्शल – जनरल एस एच। एफ। जे। माणिक शॉ।
प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त – सुकुमार सेन –
प्रथम लोकसभा अध्यक्ष – जीके वी। मावलंकर
– प्रथम अंतरिक्ष यात्री – स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा।
पहले सेनाध्यक्ष – जनरल महाराज राजेंद्र सिंह।
प्रथम नौसेना प्रमुख – वाइस एडमिरल आरके डी। कटारी
प्रथम वायु प्रमुख – एयर मार्शल सर एस मुखर्जी।
पहली पनडुब्बी – IA N. s। Kalabheri।
• पहला विमान वाहक – IA N. s। विक्रांत। ।
पहली मिसाइल – पृथ्वी। ।
पहली मध्यम दूरी की मिसाइल – अग्नि।
पहला आणविक केंद्र 1 – तारापारा।
प्रथम मुक्त विश्वविद्यालय – आंध्र प्रदेश मुक्त विश्वविद्यालय।
पहला विश्वविद्यालय – नालंदा विश्वविद्यालय।
भारतीय प्रिंटिंग प्रेस शुरू करने वाले पहले व्यक्ति – जेम्स हिक्की।
स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री – अबुल कलाम आज़ाद।
भारत का पहला परमाणु रिएक्टर 4 – अप्सरा।
प्रोजेक्ट टाइगर के मुख्य निर्देशक – कैलाश खानखला।
। डेविस कप में खेलने वाले पहले खिलाड़ी – एमवी सलीम और एस। एम। जैकब (एकल)।
बायोस्फीयर रिजर्व – नीलगिरि।
बात कर रहे फिल्म – आलमारा।
सरदार सरोवर बांध के पानी में डूबता हुआ गाँव – बडगाम।
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पहले भारतीय – तेनजिंग नोर्गे।
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला – सुश्री बछेंद्री पाल।
पहला मोबाइल पुलिस स्टेशन – होशियारपुर, पंजाब।
पहला मोबाइल कोर्ट – मेवात, हरियाणा।
पहली शाम दरबार वाला राज्य – गुजरात।
पहली भारतीय अंटार्कटिका अभियान दल के नेता – डॉ। सैयद गहूर कासिम।
भारत – रत्न से सम्मानित प्रथम विदेशी नागरिक – खान अब्दुल गफ्फार खान।
हृदय प्रत्यारोपण के पहले सफल सर्जन, – डॉ। पी। वेणुगोपाल
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पहले अध्यक्ष – रंगनाथ मिश्रा।
एक कैलेंडर वर्ष में पांच जल-ड्रम तैरने वाले पहले भारतीय। – मिहिर सेन –
संविधान सभा के पहले अस्थायी अध्यक्ष -डॉ। सच्चिदानंद सिन्हा।
प्रथम उपराष्ट्रपति ईटी -डॉ। सर्वपल्ली राधाकृष्णन।
नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति – रवीन्द्र नाथ टैगोर।
पहला मुगल सम्राट – बाबर
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष – व्योमेश चंद्र बनर्जी।
पहला आई। सी। एस। – सत्येंद्र नाथ टैगोर
पहले मंगोल ने भारत पर आक्रमण किया – चंगेज खान।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के प्रथम भारतीय मुख्य न्यायाधीश – डॉ। नागेंद्र सिंह।
अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय व्यक्ति – डॉ। अमर्त्य सेन ।
भारत में सबसे अधिक मतों से जीतने वाले सांसद – पीवी वी। नरसिम्हा राव।
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले हिंदी साहित्यकार। -सुमित्रानंदन पंत
ग्रैमी पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति – पं। रवि शंकर।
वर्ल्ड विलियम्स का खिताब जीतने वाले पहले भारतीय – विल्सन जोन्स।
। पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले क्रिकेट खिलाड़ी – सीसी के नायडू
टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले पहले भारतीय – केके एस। रणजीत सिंहजी (इंग्लैंड से)।
परमवीर चक्र से सम्मानित प्रथम व्यक्ति – मेजर सोमनाथ शर्मा।
पहले भारतीय वैज्ञानिक ने चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया – डॉ। हरगोविंद खुराना
राष्ट्रपति भवन में रहने वाले पहले व्यक्ति – लॉर्ड इरविन।
• ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स के पहले भारतीय सदस्य – दादाभाई नौरोजी।
भारत में प्रथम ब्रिटिश गवर्नर जनरल – वारेन हेस्टिंग्स।
ब्रिटिश भारत का पहला वायसराय – लॉर्ड कैनिंग।
स्वतंत्र भारत के पहले विदेशी / पहले ब्रिटिश गवर्नर जनरल – लॉर्ड माउंटबेटन।
स्वतंत्र भारत के पहले / अंतिम भारतीय गवर्नर जनरल – सी। राजगोपालाचारी।
मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय – आचार्य विनोबा भावे।
भारत रत्न से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति – डॉ। सर्वपल्ली राधा कशनन।
अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य बनने वाले पहले भारतीय व्यक्ति – दिलीप सिंह
सैंड।
व्यक्ति को पहले राष्ट्रीय प्रोफेसर पुरस्कार से सम्मानित किया गया – डॉ। सी। वी। रमन।
लोकसभा सदस्यता के लिए पहले वैज्ञानिक चुने गए। । – मेघनाथ साहा
• एक कैलेंडर वर्ष में छह जलडमरूमध्य तैरने वाले पहले। भारतीय – कृवाली श्रवण
प्रथम भारतीय वैज्ञानिक को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया – डॉ। सी। वी। रमन।
प्रथम जनगणना वर्ष (प्रायोगिक) – 1872 ई।
। दस वर्षीय नियमित जनगणना का प्रथम वर्ष – 1881 ई ।
कांग्रेस सत्र में भारत की स्वतंत्रता का प्रस्ताव करने वाला पहला व्यक्ति – हसरत सोहनी।
प्रथम महिला प्रधान मंत्री – श्रीमती इंदिरा गांधी।
प्रथम महिला राज्यपाल – श्रीमती सरोजिनी नायडू।
दूरदर्शन केंद्र – नई दिल्ली (स्था। 1959 ई।)।
समाचार पत्र – बंगाल गजट (जेम्स हिक्की)।
टेलीग्राफ (टेलीग्राफ) – डायमंड हार्बर से कलकत्ता (1853 ई।)।
भारतीय उपग्रह – आर्यभट्ट।
एयर मेल सेवा – इलाहाबाद से नैनी (18 फरवरी, 1911)।
कॉटन टेक्सटाइल मिल – द बॉम्बे स्पिनिंग एंड वीविंग कंपनी (1854 ई।)।
फुटबॉल क्लब – मोहन बागान (स्थापना – 1889 ईस्वी)।
फिंगर प्रिंट ब्यूरो – कलकत्ता ।
आणविक परीक्षण – 18 मई, 1974।
आणविक परीक्षण – साइट – पोखरण (राजस्थान)।
अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार सेवा – बॉम्बे से लंदन।
खुला आकाश हवाई अड्डा – गया (बिहार)।
सौर झील – भुज (कच्छ क्षेत्र, गुजरात)।
हिंदी भाषा का समाचार पत्र – उदंत मार्तड (साप्ताहिक)।
जलविद्युत परियोजना – शिवसमुद्रम (स्था। 1902 ई।)।
उर्वरक कारखाना स्थापित करने के लिए राज्य तमिलनाडु(स्था।190
जिला पूरी तरह से साक्षर आदिवासी आबादी के रूपमें
डूंगरपुर(राजस्थान)।
संयुक्त राष्ट्र में पहली महिला राजदूत – विजया लक्ष्मी पंडित।
मिस यूनिवर्स बनने वाली पहली महिला – सुश्री सुष्मिता सेन ।
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली महिला – मदर टेरेसा।
। प्रथम महिला ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित – आशापूर्णा देवी।
पहली महिला केंद्रीय मंत्री -राजकुमारी अमृता कौर।
भारत की पहली मुस्लिम महिला शासक – रज़िया सुल्तान –
अशोक चक्र से सम्मानित प्रथम महिला – नीरजा मिश्रा।
भारत रत्न से सम्मानित होने वाली पहली महिला – श्रीमती इंदिरा गांधी।
• नाव द्वारा पूरी दुनिया की परिक्रमा करने वाली पहली महिला – उज्जवला पाटिल।
दूरदर्शन (रंग कार्यक्रम) – 15 अगस्त 1982,
टेस्ट ट्यूब बेबी – वीवी हर्ष (जन्म 1986)।
मूक फिल्म – राजा हरिश्चंद्र।
महिला रोजगार कार्यालय – जयपुर।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का उपयोग कर राज्य – केरल
विधानसभा उपचुनाव (अप्रैल 1982)।
• पहला सौर शहर – आनंदपुर साहिब (पंजाब)।
पहला सीएनजी बस सेवा शहर – दिल्ली।
– पहला ई-बिजनेस अखबार – फाइनेंशियल एक्सप्रेस।
– पहला पूरी तरह से कंप्यूटर शिक्षित गाँव – चामग्रावट्टम (केरल)।
पहला निर्यात संवर्धन औद्योगिक पार्क – सीतापुर (जयपुर के पास)।
पहला निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र – कांडला, गजरात।
महिलाओं के लिए पहली केंद्रीय जेल – नई दिल्ली।
टी 20 मैचों में शतक बनाने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर। । – मनीष पांडे –
अनुसूचित जातियों के पहले राष्ट्रपति – केके आर। नारायणन।
अनुसूचित जाति के पहले मुख्य न्यायाधीश – केके जी। बालकृष्णन।
सुखोई – 30, सिंधु घोष प्रथम राष्ट्रपति पनडुब्बी की सवारी करने और सियाचिन की यात्रा करने के लिए –
डॉ। ए। पी। जे। अब्दुल कलाम
प्रथम महिला राष्ट्रपति – प्रतिभा पाटिल।
प्रथम महिला / दलित महिला लोकसभा अध्यक्ष – मीरा कमर
प्रथम वैज्ञानिक राष्ट्रपति – एपीजे अब्दुलकलाम।
प्रथम महिला विदेश सचिव – चोकिला अय्यर।
प्रथम महिला कैबिनेट सचिव – निर्मला बुच।
भारतीय मूल की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री। -कल्पना चावला –
सबसे लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने वाली भारतीय मूल की पहली महिला। युग –
सुनीता विलियम्स
पहली बार बिंबलडन मिश्रित डबल खिताब जीता। भारतीय (2010 में खिताब जीतने के बाद) – लेंडर पेस।
भारत का पहला राज्य पूरी तरह से बैंकिंग – केरल (2011 में घोषित)।
पहला पूरा देश Nr।: वातानुकूलित बस टर्मिनल – मोहाली (पंजाब);
नवंबर 2011 में स्थापित किया गया। भारत का पहला वाणिज्यिक सौर ऊर्जा संयंत्र
– अवन ग्राम, अमृतसर जिला (पंजाब)।
भारत में निर्विरोध लोकसभा चुनाव जीतने वाली पहली महिला
– डिम्पल यादव (वर्ष, 2012 में कन्नौज सीट से)।
भारत का पहला मेगा फूड पार्क – श्रीनी मेगा फूड पार्क, चित्तूर, आंध्र प्रदेश (वर्ष 2012)।
पंचायतों में 50% महिला आरक्षण लागू करने वाला पहला राज्य – बिहार।
50 से अधिक महिला सदस्यों के साथ पहली लोकसभा – 15 वीं लोकसभा (2009 ई।)।
पहली ई-कोर्ट की स्थापना (वर्ष 2009 में) – अहमदाबाद (गुजरात)।
भारत में लंदन कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन का पहला कार्यालय – नई दिल्ली।
पहली स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी (2009 में लॉन्च) – आईएनएस अरिहंत।
कृषि कैबिनेट की स्थापना करने वाला देश का पहला राज्य – बिहार (2011 में)।
प्रथम राष्ट्रीय महिला बैंक की पहली निदेशक – सुब्रह्मण्यम।
15 हजार शाखा कार्यालय खोलने वाला पहला बैंक – भारतीय स्टेट बैंक।
क्रिकेट की पत्रिका ‘विजडन’ के कवर पर 14 उपस्थिति दर्ज करने वाले पहले भारतीय
– सचिन तेंदुलकर
– आर्कटिक में भारत का पहला अनुसंधान केंद्र (2008 में स्थापित) – हिमाद्री।
विश्व का पहला दोहरा शतक बनाने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज – सचिन तेंदुलकर।
ओलंपिक में पहला स्वर्ण पदक जीतने वाले भारतीय खिलाड़ी – अभिनव बिंद्रा।
। भारत का पहला अंडा बैंक – अहमदाबाद में (2012 में स्थापित)।
प्रौद्योगिकी का पहला महिला विश्वविद्यालय।
– इंदिरा गांधी दिल्ली तकनीकी विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (वर्ष 2013 में स्थापित)।
राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद की प्रथम महिला निदेशक – अरुणा बहुगुणा।
पहला राष्ट्रीय महिला बैंक – नरीमन पॉइंट (मुंबई)।
प्रथम महिला डाकघर – नई दिल्ली (स्था। – वर्ष 2013)। पहला ओशनारियम की स्थापना। – गोवा ।
पहला पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत डाकघर
– नई दिल्ली। टेस्ट क्रिकेट में पहली हैट्रिक लेने वाले भारतीय – हरभजन सिंह
टेस्ट क्रिकेट में तिहरा शतक बनाने वाले पहले भारतीय – वीरेंद्र सहवाग।
टेस्ट क्रिकेट में 30 शतक और 10000 रन पूरे करने वाले पहले भारतीय – सुनील गावस्कर –
क्रिकेट के तीनों अंतर्राष्ट्रीय प्रारूपों (टेस्ट, वनडे, ट्वेंटी 20) में शतक बनाने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर।
-सुरेश रैना
टेस्ट क्रिकेट में 15000 रनों और 51 शतकों के रिकॉर्ड तक पहुंचने वाले दुनिया के पहले खिलाड़ी।
– सचिन तेंदुलकर –
विश्व और भारत के पहले खिलाड़ी जिन्होंने 49 एकदिवसीय मैच और 18000 रन बनाए।
-सचिन तेंदुलकर –
20 मैचों में 6 गेंदों पर 6 छक्के लगाने वाले विश्व / भारत के पहले खिलाड़ी। -युवराज सिंह –
भारत के प्रमुख व्यक्तियों के समाधि स्थल
राजघाट -महात्मा गाँधी
शान्तिवन – पं . जवाहर लाल नेहरू
शक्तिस्थल -इन्दिरा गाँधी
विजय घाट -लाल बहादुर शास्त्री
किसान घाट – चौधरी चरण सिंह
समता स्थल -जगजीवन राम
वीर भूमि – राजीव गाँधी
महाप्रयाण घाट -डा . राजेन्द्र प्रसाद
कर्मभूमि -के . आर . नारायण
अभय घाट – मोरारजी देसाई
भारत के प्रमुख व्यक्तियों के लोकप्रिय उपनाम
लोकनायक -जयप्रकाश नारायण
जननायक -कर्पूरी ठाकुर।
गुरुदेव , विश्वकवि , कविगुरु – रवीन्द्रनाथ टैगोर •
शहीद – ए – आजम -भगत सिंह
– दीनबन्धु – सी . एफ . एण्डूज
लिट्ल मास्टर -सुनील गावस्कर
बाबूजी -जगजीवन राम
मास्टर ब्लास्ट – सचिन तेंदुलकर
राजर्षि -पुरुषोत्तम दास टंडन
शेरे कश्मीर – शेख अब्दुल्ला
माता वसन्त – एनी वेसेण्ट
देशरत्न , आजातशत्रु , बिहार का गाँधी- -डॉ . राजेन्द्र प्रसाद
भारतीय पुनर्जागरण के प्रभात नक्षत्र – राजा राममोहन राय
बड़े साहब , बिहार विभूति – – डॉ . अनुग्रह नारायण सिंह
लौह पुरुष – -सरदार वल्लभ भाई पटेल –
राजाजी- -चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
, बापू , युगपुरुष , नेकेड , फकीर – महात्मा गाँधी राष्ट्रपिता
ताऊ –- – चौधरी देवीलाल
चाचा – पं . जवाहर लाल नेहरू
सीमान्त गाँधी – खान अब्दुल गफ्फार खाँ
लोकमान्य -बाल गंगाधर तिलक
गुरुजी – एम . एस . गोलवलकर
आन्ध्र केशरी – टी . प्रकाशम् –
नाइटिंगेल ऑफ इण्डिया -सरोजिनी नायडू
– बिहार केशरी – श्रीकृष्ण सिंह
भारतीय मैकियावेली -चाणक्य
– लाल , बाल , पाल – लाला लाजपत राय , बाल गंगाधर तिलक , विपिन चन्द्र पाल –
पंजाब केशरी -लाला लाजपत राय –
निर्मल हृदय – मदर टेरेसा
महामना – पं . मदन मोहन मोहन मालवीय
बंगाल केशरी -आशुतोष मुखर्जी
– भारत का नेपोलियन -समुद्रगुप्त
हरियाणा हरिकेन – कपिलदेव –
– नेताजी -सुभाष चन्द्र बोस
तूति – ए – हिन्द -अमीर खुसरो
भारत का शेक्सपीयर – कालिदास
शान्तिपुरुष – लाल बहादुर शास्त्री
युवा तुर्क . -चन्द्रशेखर
निराला -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
प्रियदर्शी – – सम्राट अशोक •
विद्रोही कवि- -काजी नजरूल इस्लाम
. मिस्टर क्लीन -राजीव गाँधी
हॉकी का जादूगर -ध्यानचंद
मैसूर का शेर – टीपू सुल्तान
वयोवृद्ध पुरुष -दादा भाई नौरोजी
देशबन्धु – चितरंजन दास
उड़नपरी – पी . टी . ऊषा
स्वर कोकिला -लता मंगेशकर –
महबूब – ए – इलाही -शेख निजामुद्दीन
भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति
भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है , जिसका प्रारम्भ 1954 ई० में किया गया । भारत – रत्न पुरस्कार का संकेत – चिह्न पीपल का पत्ता होता है ।
अब तक जिन व्यक्तियों को इस सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया है उसका विवरण निम्नलिखित हैं
1954 → सर्वपल्ली राधा कृष्णन , चक्रवर्ती राजगोपालाचारी तथा डॉ . चन्द्रशेखर वेंकट रमण ।
1966 → लाल बहादुर शास्त्री ( मरणोपरान्त ) ।
1971 → इन्दिरा गाँधी ।
1991 → राजीव गाँधी ( मरणोपरान्त ) , सरदार वल्लभ भाई पटेल ( मरणोपरान्त ) , मोरारजी देसाई ।
1992 → सुभाष चन्द्र बोस ( मरणोपरान्त ) , जे . आर . डी . टाटा , गुलजारी लाल नन्दा , मौलाना अबुल कलाम आजाद ( मरणोपरान्त )
1997 → ए . P. जे . अब्दुल कलाम , अरुणा आसफ अली ।
1998 → सी . सुब्रमण्यम , एम . एस . सुब्बुलक्ष्मी ।
1999 → जयप्रकाश नारायण ( मरणोपरान्त ) , पंडित रविशंकर , गोपीनाथ बारदोलाई , प्रो० अमर्त्य सेन ।
2000 → लता मंगेशकर , उस्ताद विस्मिल्लाह खाँ ।
2009 → पण्डित भीमसेन जोशी ।
2013 → सचिन तेंदुलकर , डॉ०सी०एन०आर० राव ।
2014 → अटल बिहारी वाजपेयी , पं . मदनमोहन मालवीय ।
भारत के कुछ प्रसिद्ध स्थान
जामा मस्जिद नई दिल्ली
ताजुल मस्जिद भोपाल
शांताक्रुज मुम्बई
शालीमार बाग श्रीनगर
सारनाथ बनारस
लालकिला दिल्ली , आगरा
अमरनाथ कश्मीर
आनंदभवन इलाहाबाद
आईलैण्ड पैलेस उदयपुर
चारमीनार हैदराबाद
दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंटआबू ( राजस्थान )
गेटवे ऑफ इंडिया मुम्बई
बीजापुर गोलकुण्डा का किला हैदराबाद
शांति निकेतन कोलकाता
स्वर्ण मंदिर अमृतसर
विक्टोरिया मेमोरियल कोलकाता
रॉक मेमोरियल कन्याकुमारी तमिलनाडु
ताजमहल आगरा
सांची का स्तूप भोपाल
टावर ऑफ साइलेंस मुम्बई
साइलेंट वैली केरल
त्रिमूर्ति भवन नई दिल्ली
अजंता एलोरा की गुफाएँ औरंगाबाद
एलीफेण्टा मुम्बई
ब्लैक पैगोडा कोणार्क ( भुवनेश्वर )
इंडिया गेट नई दिल्ली
वृंदावन गार्डन मैसूर
बुलंद दरवाजा फतेहपुर सीकरी
बीबी का मकबरा औरंगाबाद
द्वारिका काठियावाड़
कुतुबमीनार नई दिल्ली
महाकालेश्वर उज्जैन
लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर
मीनाक्षी मंदिर मदुरै
गोमतेश्वर प्रतिमा श्रवणबेलगोला ( कर्नाटक )
हैंगिंग गार्डन मुम्बई .
हवामहल जयपुर
हम्पी कर्नाटक
जंतर मंतर जयपुर , दिल्ली ( पाँच स्थान )
दमदम कलकत्ता
मीनाम्बकम् चेन्नई .
पानप दिल्ली
हावड़ा ब्रिज कोलकाता
भारत को स्वतंत्रता किसने प्रदान की ? – ब्रिटिश पार्लियामेंट ने
” राजा को मंदिर का धन जब्त कर लेना चाहिए . ” यह किसका कथन है ? – कौटिल्य . बौद्ध साहित्य मुख्य रूप से किस भाषा में लिखा गया था ? . पालि
• मोहनजोदड़ो की खुदाई किस नदी के तट पर हुई थी ? सिन्धु नदी
• महाबलीपुरम् के रथ मंदिरों का निर्माण किसने कराया था ? – नरसिंह वर्मन प्रथम ने
. सुल्तान फिरोज तुगलक की आत्मकथा का नाम है – फुतुहात – ए – फिरोजशाही .
मुगल शासन में ‘ खालसा ‘ शब्द का तात्पर्य क्या था ? – वह भूमि जिसका स्वामी सम्राट् स्वयं हो .
किस सूफी संत से गयासुद्दीन तुगलक विद्वेष रखता था ? – निजामुद्दीन औलिया .
कौनसा विद्रोह 1816 में प्रारम्भ होकर 1932 तक चला ? . कोल विद्रोह .
बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चार संगोष्ठियाँ हुईं . किस स्थान पर चौथी संगोष्ठी हुई ? – कुन्डलवन .
चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को किस नदी के तट पर हराया ? . नर्मदा .
जेबुन्निसा , जहाँनारा , गुलबदन बेगम व रोशन आरा , मुगल राजकुमारियों में से कौन इतिहासकार थी ? – गुलबदन बेगम .
उत्तर – गुप्तयुग में जो विश्वविद्यालय प्रसिद्ध हो गया था , वह था – नालंदा विश्वविद्यालय .
बाणभट्ट किस सम्राट् के राजदरबारी कवि थे ? – हर्षवर्धन
प्रथम भारतीय शासक कौन था जिसने अरब सागर में भारतीय नौसेना की सर्वोच्चता स्थापित की ? . राजराजा -1 सार संग्रह ।
. मेगस्थनीज ने अपनी भारत यात्रा के वृत्तांत पर जो पुस्तक लिखी थी , उसका क्या नाम था ? – इण्डिका .
सैनिक शक्ति में वृद्धि तथा मध्यस्थों पर नियंत्रण किस शासक की बाजार नियंत्रण नीति का मुख्य उद्देश्य था ? . अलाउद्दीन की
हड़प्पा सभ्यता के किस पुरास्थल को ‘ मृतकों का टीला ‘ कहा जाता है ? मोहनजोदड़ो को
किस मौर्य शासक के पश्चिम एशिया के शासक सेल्यूकस निकेटर की पुत्री हेलेन के साथ वैवाहिक सम्बन्ध थे ? T . चन्द्रगुप्त मौर्य के
. मुहम्मद गजनी ने कितनी बार भारत पर आक्रमण किया था ? 17 बार
वर्धमान को महावीर अथवा जिन कहा जाता है द – सुख – दुःख पर विजय पाने के कारण .
महावीर स्वामी ने जैन धर्म के सिद्धान्तों में कौनसा सिद्धान्त जोड़ा था ? न . ब्रह्मचर्य .
प्रसिद्ध कोणार्क मन्दिर किस देवता के लिए है ? – सूर्य के लिए .
अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण विजय का कार्य किसे सौंपा था ? – मलिक काफूर को .
शेरशाह सूरी किस स्थान पर लड़ते हुए घायल हुआ था जिससे कुछ समय पश्चात् उसकी मृत्यु हो गई थी ? ने . कलिंजर
• सन् 1565 में किस स्थान पर हुए युद्ध के पश्चात् विजयनगर साम्राज्य का पतन हुआ था ? ई तालिकोटा के युद्ध के पश्चात् .
कौनसा सूफी सम्प्रदाय बिहार में लोकप्रिय था ? – फिरदौसी
‘ राजतरंगिणी ‘ का संस्कृत से फारसी में अनुवाद किसने किया था ? – मुल्ला मुहम्मद .
सन् 1905 में बंगाल के विभाजन की घोषणा किस प्रमुख कारण से की गई थी ? एक मुस्लिम बहुल प्रान्त की स्थापना के लिए
भारत को स्वतंत्रता किसने प्रदान की ? – ब्रिटिश पार्लियामेंट ने
” राजा को मंदिर का धन जब्त कर लेना चाहिए . ” यह किसका कथन है ? – कौटिल्य .
बौद्ध साहित्य मुख्य रूप से किस भाषा में लिखा गया था ? . पालि
• मोहनजोदड़ो की खुदाई किस नदी के तट पर हुई थी ? सिन्धु नदी
• महाबलीपुरम् के रथ मंदिरों का निर्माण किसने कराया था ? – नरसिंह वर्मन प्रथम ने .
सुल्तान फिरोज तुगलक की आत्मकथा का नाम है – फुतुहात – ए – फिरोजशाही .
मुगल शासन में ‘ खालसा ‘ शब्द का तात्पर्य क्या था ? – वह भूमि जिसका स्वामी सम्राट् स्वयं हो .
किस सूफी संत से गयासुद्दीन तुगलक विद्वेष रखता था ? – निजामुद्दीन औलिया .
कौनसा विद्रोह 1816 में प्रारम्भ होकर 1932 तक चला ? . कोल विद्रोह
. बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चार संगोष्ठियाँ हुईं . किस स्थान पर चौथी संगोष्ठी हुई ? – कुन्डलवन .
चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को किस नदी के तट पर हराया ? . नर्मदा .
जेबुन्निसा , जहाँनारा , गुलबदन बेगम व रोशन आरा , मुगल राजकुमारियों में से कौन इतिहासकार थी ? – गुलबदन बेगम .
उत्तर – गुप्तयुग में जो विश्वविद्यालय प्रसिद्ध हो गया था , वह था – नालंदा विश्वविद्यालय .
बाणभट्ट किस सम्राट् के राजदरबारी कवि थे ? – हर्षवर्धन
प्रथम भारतीय शासक कौन था जिसने अरब सागर में भारतीय नौसेना की सर्वोच्चता स्थापित की ? . राजराजा -1 सार संग्रह । 8
चोलों ने किनके साथ घनिष्ठ राजनीतिक तथा वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए थे ? – वेंगी के चालुक्य .
ऋग्वेद में सबसे अधिक मंत्र किस देवता की स्तुति में लिखे गए हैं ? – इन्द्र की स्तुति में
मगध राज्य की आरम्भिक राजधानी कहाँ थी ? – गिरिव्रज .
किस सिख गुरु ने विद्रोही राजकुमार खुसरो की सहायता धन और आशीर्वाद से की थी ? गुरु अर्जुनदेव ने
अपने प्रथम पृथक् शिलालेख में किसने कहा है कि ” सभी मनुष्य मेरी सन्तानें हैं ” ? अशोक ने
बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक की रचना हुई महात्मा बुद्ध के निर्वाण प्राप्त करने के पश्चात्
मनुस्मृति किस काल का मानक ग्रन्थ माना जाता है ? शुंग काल का .
हड़प्पा सभ्यता के लोग किसकी पूजा करते थे ? की मातृदेवी की .
सिन्धुवासी चावल का प्रयोग भोजन में करते थे . चावल होने के प्रमाण कहाँ से प्राप्त हुए हैं ? – लोथल और रंगपुर से
चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में गिरनार के समीप सुदर्शन झील का निर्माण किसके द्वारा कराया गया ? पुष्यगुप्त के
सदाह अमीरों का विद्रोह किसके शासनकाल में हुआ था ? – मोहम्मद – बिन – तुगलक के शासनकाल में
. चोलों के कट्टर दुश्मन कौन माने जाते थे ? कल्याणी के चालुक्य .
कम्बोडिया के खमेर शासक से किस चोल शासक की र मित्रता थी ? – राजेन्द्र प्रथम की
. अंग्रेजों ने आत्मरक्षा के विचार से 1700 ई . में ‘ विलियम फोर्ट ‘ की स्थापना कहाँ की ? कलकत्ता में
. किस साहित्यिक कृति से उस क्रान्ति का विवरण मिलता है जिसके द्वारा चन्द्रगुप्त ने कौटिल्य की सहायता से नन्दों का समूल नाश किया था ? – विशाखदत्त का मुद्राराक्षस
. गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल में सोने के सिक्कों के लिए प्रयुक्त होने वाला ‘ दीनार ‘ शब्द किससे निष्पन्न है ? – अरबी .
दिल्ली का वह कौनसा सुल्तान था जिसने भूमि की नाप की आज्ञा निरस्त करके उसके स्थान पर गल्ला बटाई को अपनाया ? – ग्यासुद्दीन तुगलक
कल्हण द्वारा लिखित किस ग्रन्थ में उल्लेख है कि अशोक कश्मीर के श्रीनगर का संस्थापक था ? राजतरंगिणी
. किस मुगल सम्राट ने ‘ दीवान – ए – वजीरात – ए – कुल ‘ नाम से नए पद का गठन किया ? – अकबर ने .
किस मुगल बादशाह को उसकी मृत्यु के बाद आधिकारिक तौर पर ‘ अर्श – आशियानी ‘ ( स्वर्ग में रहने वाला ) कहा गया है ? औरंगजेब .
शिवाजी के काल में परराष्ट्र मामलों के अधिकारी मंत्री की क्या संज्ञा थी ? . सुमन्त .
राजपूताना के किस राज्य ने सबसे पहले अकबर के अन्तर्गत मुगल अधीनता स्वीकार की थी ? – आम्बेर / आमेर
. रोमिला थापर भारतीय इतिहास के किस काल में अपने योगदान के लिए जानी जाती है ? – प्राचीन भारतीय इतिहास .
प्रसिद्ध चित्रकार बिशनदास को किस मुगल शासक की छत्रछाया प्राप्त हुई थी ? – जहाँगीर .
‘ तारीख – ए – फिरोजशाही का रचयिता कौन था ? • शम्स – ए – सिराज अफीफ .
प्राचीन समय में बिहार किस नाम से जाना जाता था ? . मगध .
शेख सलीम चिश्ती की दरगाह कहाँ पर स्थित है ? . फतेहपुर सीकरी में .
वैशेषिक दर्शन के प्रतिपादक कौन थे ? उलुक या कणाद .
निकोली कोन्टी , जिसने देवराय प्रथम के शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य का भ्रमण किया , वह किस देश का था ? – इटली का
सिन्धु सभ्यता का एक स्थल कालीबंगा किस नदी के किनारे स्थित है ? घग्गर .
ऋग्वेद में हल से बनी नालियों को क्या कहा गया है ? – सीता
जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी को किस नदी के किनारे कैवल्य प्राप्त हुआ ? ऋजुपालिका
. कुषाण साम्राज्य का महान् शासक कनिष्क बौद्ध धर्म की किस शाखा का अनुयायी था ? महायान .
सिकन्दर किसका शिष्य था ? अरस्तू का
. जितेन्द्र का मेगुती मन्दिर किसने बनवाया था ? पुलकेशिन द्वितीय ने
महाभारत का पूर्व नाम क्या था ? जयसंहिता
चार वेदों में से किसमें संगीत आदि का वर्णन मिलता – सामवेद
इलाहाबाद स्तम्भ शिलालेख मुख्यरूप से मौर्य शासक अशोक द्वारा स्थापित कराया गया था . यह स्तम्भ शिलालेख किसके विजय अभियानों की जानकारी देता . . समुद्रगुप्त
अब्दुल हमीद लाहौरी मुगल शासक शाहजहाँ के शासनकाल में प्रमुख राजकीय इतिहासकार था . लहौरी ने अपनी किस पुस्तक में शाहजहाँ के शासन कार्यों का वर्णन किया है ? पादशाहनामा में .
विजयनगर का प्रसिद्ध मंदिर विट्ठल स्वामी मंदिर तुलुव वंश के राजा कृष्णदेव राय द्वारा कहाँ बनवाया गया था ? – हम्पी में
विजयनगर के किस सम्राट् ने तेलुगू में ‘ अमुक्त माल्यद ‘ एवं संस्कृत में ‘ जांबवती कल्याणम ‘ नामक ग्रंथ लिखा था ? – कृष्णदेव राय ने
भूमि की माप के आधार पर भू – राजस्व का निर्धारण और प्रति बिस्वा उपज का आकलन सबसे पहले किया गया – अलाउद्दीन खिलजी के अधीन
. मुगल साम्राज्य में भू – राजस्व मुख्यतः किसमें व्यक्त किया जाता था ? चाँदी के रुपए में ( आइन – ए – अकबरी के अनुसार )
. जहाँगीर के दरबार का चित्रकार ख्वाजा मंसूर प्रख्यात चित्रकार था चिड़ियों और पशुओं के रूपचित्रों का
ख्वाजा अब्दुस सामद किसके दरबार का चित्रकार था ? अकबर
किस अभिलेख द्वारा यह ज्ञात होता है कि स्कन्दगुप्त ने मौर्यों द्वारा निर्मित सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था ? जूनागढ़ अभिलेख . .
. . मुस्लिम शासक गैर – मुसलमानों की सम्पत्ति तथा सामान की रक्षा का दायित्व अपने ऊपर लेने के बदले में उनसे कौनसा कर वसूलता था ? जजिया कर
‘ खम्स ‘ लूट का वह धन था , जो युद्ध में शत्रु राज्य की जनता से लूटा जाता था . इस लूट का कितना भाग सैनिकों में बाँट दिया जाता था ? – पाँचवाँ भाग
. एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर के निर्माण को आप किस शासक वंश से सम्बद्ध करेंगे ? राष्ट्रकूट
प्रयाग प्रशस्ति किसके सैन्य अभियान के बारे में जानकारी देती है ? – समुद्रगुप्त .
बौद्ध ग्रन्थों में उल्लिखित ‘ धर्म चक्र प्रवर्तन ‘ है – सारनाथ में दिया गया उनका प्रथम उपदेश
. राजपूताना का वह राज्य , जिसने अकबर की सम्प्रभुता स्वयं स्वीकार नहीं की थी ? – मेवाड़
महाक्षत्रप रूद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख में किन दो महान् सम्राटों का उल्लेख किया गया है ? म – चन्द्रगुप्त और अशोक
• बिहार में स्थित वह स्थल जहाँ प्रथम , द्वितीय व तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था ? – क्रमशः राजगृह , वैशाली व पाटलिपुत्र
भारत में आने वाला वह कौन – सा अरब खगोलशास्त्री था , जिसने वाराणसी जाकर और वहाँ एक दशक तक रहकर संस्कृत और खगोलशास्त्र का अध्ययन किया था ? अलमशर
अकबरनामा के प्रख्यात लेखक अबुल फजल की हत्या किसने की थी ? – वीर सिंह देव बुन्देला
विजयनगर साम्राज्य का प्रसिद्ध शासक कृष्णदेव राय किस राजवंश से सम्बद्ध था ? – तुलुव राजवंश .
महरौली अभिलेख से किस सम्राट् के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है ? – चन्द्रगुप्त द्वितीय
. नृत्य करती हुई नारी की कांस्य मूर्ति सिन्धु सभ्यता के किस स्थान से प्राप्त हुई है ? – मोहनजोदड़ो से
. विदेशी यात्री इब्नबतूता किसके शासनकाल भारत आया था ? मुहम्मद – बिन – तुगलक के शासनकाल में
कोणार्क का सूर्य मन्दिर नरसिंह प्रथम ने बनवाया था . वे किस राजवंश से थे ? • शाही ( पूर्वी ) गंगा राजवंश
फारस से आने वाले अब्दुल रज्जाक की हम्पी यात्रा के समय दक्षिण भारत में विजयनगर का शासक कौन था ? – देवराय द्वितीय
. सिन्ध से लेकर सोनारगाँव ( बांग्लादेश ) तक जाने वाले मार्ग सड़क – ए – आजम का निर्माण किसके द्वारा करवाया गया ? – शेरशाह .
लॉर्ड डलहौजी ने अपहरण की नीति ( Doctrine of Lapse ) के अन्तर्गत सर्वप्रथम किस राज्य को अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन रखा ? सतारा
. ‘ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ की बुराइयों को दूर करने के लिए ‘ रेग्यूलेटिंग एक्ट ‘ ( Regulating Act ) कब पास किया गया ? 1773 ई . में
भारत में अंग्रेजों की सर्वश्रेष्ठता किस युद्ध से स्थापित हो गई ? बक्सर युद्ध से
.अनेकान्तवाद किस धर्म का क्रोड सिद्धान्त एवं दर्शन – जैन धर्म
. प्रसिद्ध विजय विठ्ठल मन्दिर , जिसके 56 तक्षित स्तम्भ संगीतमय स्वर निकालते हैं , कहाँ अवस्थित . हम्पी में
अंगकोरवाट ( अंगकोर ) , कम्बोडिया का एक मन्दिर है . 12 वीं सदी में सूर्यवर्मन , द्वितीय के राज्यकाल में इस मन्दिर का आरम्भिक अभिकल्पना तथा निर्माण कार्य हुआ . यह मन्दिर किस भगवान को समर्पित है ? – विष्णु भगवान .
प्राचीन नगर ‘ तक्षशिला ‘ वर्तमान में इस्लामाबाद ( पाकिस्तान ) से 20 किमी उत्तर – पश्चिम में किस नदी के बीच स्थित था ? – सिन्धु तथा झेलम नदी .
इलाहाबाद ( कौशाम्बी ) अभिलेख मूलतः अशोक द्वारा उत्कीर्ण कराया गया था , किन्तु इससे अभियानों के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है . – समुद्रगुप्त .
शूद्रक द्वारा रचित ‘ मृच्छकटिकम् ‘ नाटक ( प्राचीन भारतीय पुस्तक ) का मुख्य विषय था एक धनी व्यापारी और गणिका की पुत्री की प्रेम गाथा .
चंगेज खाँ के अधीन मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया था – इल्तुतमिश के शासनकाल में
प्रसिद्ध धार्मिक ग्रन्थ भगवद्गीता का सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद 1785 ई . में किसने किया था ? • चार्ल्स विल्किन्स .
सिकन्दर के हमले के समय उत्तर भारत ( मगध ) पर किस राजवंश का शासन था ? नन्द वंश .
प्राचीन समय में राजदरबारों , बड़े – बड़े घरानों में भाटों और चारणों द्वारा प्रातःकाल में गाया जाने वाला राग था – दरबारी राग .
सिन्धु घाटी सभ्यता का स्थल हड़प्पा कहाँ स्थित था ? • ( वर्तमान ) पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर .
वर्धमान को महावीर या जिन क्यों कहा जाता है ? सुख – दुःख पर विजय पाने के कारण .
महाबलीपुरम् किसके शासनकाल में प्रसिद्ध था ? – पल्लवों के शासनकाल में
अशोक ने किस बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण की ? उपगुप्त से .
सुल्तान फिरोज तुगलक की आत्मकथा का नाम क्या – फुतुहात – ए – फिरोजशाही .
अमीर खुसरो किस सुल्तान का दरबारी कवि था ? अलाउद्दीन खिलजी का .
सैयद वंश का संस्थापक कौन था ? – खिज़ खाँ .
मेवाड का कौन सा राणा विक्षिप्त हो गया तथा उसके पुत्र द्वारा मार डाला गया ? राणा कुम्भा
राजवल्लभ , घसीटी बेगम , शौकत जंग किसके प्रधान शत्रु थे ? सिराजुद्दौला के
किसके शासनकाल में भारत में प्रथम रेलवे लाइन बिछाई गई ? – लॉर्ड डलहौजी के शासनकाल में
अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय देवगिरि का शासक कौन था ? रामचन्द्र देव
कनिष्क के शासनकाल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किस नगर में हुआ था ? – कुण्डलवन ( कश्मीर ) .
ईसा पूर्व छठी सदी में विश्व की प्रथम गणतन्त्रात्मक व्यवस्था कहाँ थी ? – वैशाली .
राजगृह का राजकीय चिकित्सक जीवक को , जिसे गणिका के पुत्र के रूप में माना जाता है , उसका नाम सलावती
पानीपत का प्रथम युद्ध इब्राहीम लोदी व के मध्य 1526 ई . में हुआ था . पानीपत के युद्ध में इब्राहीम लोदी की पराजय के प्रमुख कारण – एकता का अभाव , अकुशल सेनापतित्व तथा अफगान सरदारों की उससे क्षुब्धता . बाबर
किसके शासनकाल में मंगोल सेनानायक तैमूर ने 1398 ई . में भारत पर आक्रमण किया था ? – सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद
. प्रसिद्ध विजय विठ्ठल मन्दिर , जिसके 56 तक्षित स्तम्भ संगीतमय स्वर निकालते हैं , कहाँ अवस्थित . हम्पी में
अंगकोरवाट ( अंगकोर ) , कम्बोडिया का एक मन्दिर है . 12 वीं सदी में सूर्यवर्मन , द्वितीय के राज्यकाल में इस मन्दिर का आरम्भिक अभिकल्पना तथा निर्माण कार्य हुआ . यह मन्दिर किस भगवान को समर्पित है ? – विष्णु भगवान .
प्राचीन नगर ‘ तक्षशिला ‘ वर्तमान में इस्लामाबाद ( पाकिस्तान ) से 20 किमी उत्तर – पश्चिम में किस नदी के बीच स्थित था ? – सिन्धु तथा झेलम नदी .
इलाहाबाद ( कौशाम्बी ) अभिलेख मूलतः अशोक द्वारा उत्कीर्ण कराया गया था , किन्तु इससे अभियानों के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है . – समुद्रगुप्त .
शूद्रक द्वारा रचित ‘ मृच्छकटिकम् ‘ नाटक ( प्राचीन भारतीय पुस्तक ) का मुख्य विषय था एक धनी व्यापारी और गणिका की पुत्री की प्रेम गाथा .
चंगेज खाँ के अधीन मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया था – इल्तुतमिश के शासनकाल में
प्रसिद्ध धार्मिक ग्रन्थ भगवद्गीता का सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद 1785 ई . में किसने किया था ? • चार्ल्स विल्किन्स
. सिकन्दर के हमले के समय उत्तर भारत ( मगध ) पर किस राजवंश का शासन था ? नन्द वंश .
प्राचीन समय में राजदरबारों , बड़े – बड़े घरानों में भाटों और चारणों द्वारा प्रातःकाल में गाया जाने वाला राग था – दरबारी राग .
सिन्धु घाटी सभ्यता का स्थल हड़प्पा कहाँ स्थित था ? • ( वर्तमान ) पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर .
वर्धमान को महावीर या जिन क्यों कहा जाता है ? सुख – दुःख पर विजय पाने के कारण .
महाबलीपुरम् किसके शासनकाल में प्रसिद्ध था ? – पल्लवों के शासनकाल में
अशोक ने किस बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण की ? उपगुप्त से
. सुल्तान फिरोज तुगलक की आत्मकथा का नाम क्या – फुतुहात – ए – फिरोजशाही .
अमीर खुसरो किस सुल्तान का दरबारी कवि था ? अलाउद्दीन खिलजी का .
सैयद वंश का संस्थापक कौन था ? – खिज़ खाँ
. मेवाड का कौन सा राणा विक्षिप्त हो गया तथा उसके पुत्र द्वारा मार डाला गया ? राणा कुम्भा
राजवल्लभ , घसीटी बेगम , शौकत जंग किसके प्रधान शत्रु थे ? सिराजुद्दौला के
किसके शासनकाल में भारत में प्रथम रेलवे लाइन बिछाई गई ? – लॉर्ड डलहौजी के शासनकाल में
अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय देवगिरि का शासक कौन था ? रामचन्द्र देव
कनिष्क के शासनकाल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किस नगर में हुआ था ? – कुण्डलवन ( कश्मीर ) .
ईसा पूर्व छठी सदी में विश्व की प्रथम गणतन्त्रात्मक व्यवस्था कहाँ थी ? – वैशाली .
राजगृह का राजकीय चिकित्सक जीवक को , जिसे गणिका के पुत्र के रूप में माना जाता है , उसका नाम सलावती
पानीपत का प्रथम युद्ध इब्राहीम लोदी व के मध्य 1526 ई . में हुआ था . पानीपत के युद्ध में इब्राहीम लोदी की पराजय के प्रमुख कारण – एकता का अभाव , अकुशल सेनापतित्व तथा अफगान सरदारों की उससे क्षुब्धता . बाबर
किसके शासनकाल में मंगोल सेनानायक तैमूर ने 1398 ई . में भारत पर आक्रमण किया था ? – सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद
बंगाल के सेन वंश के राजा लक्ष्मण के किस दरबारी कवि ने ‘ गीतगोविन्द ‘ की रचना की ? . जयदेव .
सांख्य दर्शन के अनुसार संसार का निर्माण प्रकृति से हुआ है . ये द्रव्य ( प्रकृति ) और आत्मा ( पुरुष ) की सत्ता को स्वीकार करते हैं . प्राचीन सांख्य दर्शन के प्रवर्तक कौन माने जाते हैं ? – कपिल मुनि
. किस राष्ट्रकूट शासक ने एलोरा के विख्यात शिव ( कैलाश ) मंदिर का निर्माण कराया था ? – कृष्ण प्रथम ने
अकबर काल में भू – राजस्व व्यवस्था की एक प्रसिद्ध नीति ‘ आइन – ए – दहसाला ‘ पद्धति किसके द्वारा निर्मित की गई थी ? . टोडरमल .
” ईश्वर केवल मनुष्य के सद्गुण को पहचानता है तथा उसकी जाति नहीं पूछता ; आगामी दुनिया में कोई जाति नहीं होगी . ” यह सिद्धान्त किस भक्ति सन्त का है ? गुरुनानक .
कलिंग युद्ध के बाद अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया था . तत्पश्चात् उसने बौद्ध धर्म अपना लिया था . कलिंग युद्ध की विजय तथा क्षत्रियों का वर्णन अशोक के किस शिलालेख ( Rock Edict ) में है ? – शिलालेख- XIII .
शुंग राजवंश का संस्थापक कौन था ? – पुष्यमित्र शुंग .
दिल्ली के किस सुल्तान ने स्वयं को दूसरा सिकन्दर ( सिकन्दर – इ – सानी ) कहा ? . अलाउद्दीन खिलजी ने
‘ शेख – उल – हिन्द ‘ ( Shaikh – ul – Hind ) की पदवी किसको दी गई थी ? ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को .
किसके शासनकाल में मुगलों तथा मेवाड़ के राना के बीच ‘ चित्तौड़ की सन्धि ‘ हस्ताक्षरित हुई ? – जहाँगीर के शासनकाल में .
‘ अकबर ऑफ काश्मीर ‘ किसे कहा गया है ? – जैनुल आबदीन ( Zainul Abedin ) को
• दिल्ली के किस सुल्तान ने कृषि के लिए एक अलग विभाग बनाया तथा ‘ फसलों का चक्रण ‘ ( Rotation of Crops ) करने की योजना बनाई ? – मोहम्मद बिन तुगलक ने
.. कुत्ते तथा मनुष्य के एक साथ कंकाल किस . ‘ इस्तमरारी बन्दोवस्त ‘ ( Permanent Settlement ) ऐतिहासिक स्थान से प्राप्त हुए हैं ? बुर्जहोम ( Burzhom ) से
दिल्ली के किस सुल्तान ने सर्वप्रथम सिंचाई पर कर लगाया ? – फीरोज तुगलक ने
किसके शासनकाल में प्रारम्भ किया गया है ? – लॉर्ड कार्नवालिस के शासनकाल में .
किस गुप्त सम्राट् ने ‘ हूणों को पराजित किया था ? स्कन्दगुप्त ने
किस अभिलेख में रुद्रदामन प्रथम की विभिन्न उपलब्धियाँ वर्णित हैं ? जूनागढ़ अभिलेख में
मगध की प्रारंभिक राजधानी कौनसी थी ? राजगृह ( गिरिव्रज )
किस शासक द्वारा सर्वप्रथम पाटलिपुत्र का राजधानी के रूप में चयन किया गया ? . उदायिन
. विश्व का पहला गणतंत्र वैशाली में किसके द्वारा स्थापित किया गया ? – लिच्छवियों द्वारा .
अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय देवगिरि का शासक कौन था ? रामचन्द्र देव .
एत्मादुद्दौला का मकबरा आगरा में किसने बनवाया था ? नूरजहाँ ने .
मुगल प्रशासन में ‘ मुहतसिब ‘ था . लोक आचरण अधिकारी .
किस सुल्तान ने बेरोजगार युवकों के रोजगार के लिए रोजगार दफ्तर खोला था ? – फिरोज तुगलक
दशमलव प्रणाली के आधार पर सेना का गठन किया था अलाउद्दीन खिलजी ने ‘
कुमार सम्भव ‘ महाकाव्य किस कवि ने लिखा है ? – कालिदास ने
कालिदास किस गुप्त शासक के दरबारी कवि थे ? चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के
महावीर स्वामी को निर्वाण ( मृत्यु ) प्राप्त हुआ था – पावापुरी में . .
बोधगया ( बिहार ) में महाबोधि मंदिर बनाया गया है , जहाँ – गौतमबुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ
भारत के अंतिम मुगल सम्राट् बहादुरशाह जफर को 1857 ई . के विद्रोह में भाग लेने के कारण अंग्रेजों ने कैद करके कहाँ भेजा था ? – रंगून की जेल में
. किस बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म की हीनयान और महायान शाखाओं का उदय हुआ ? – चौथी बौद्ध संगीति में .
किस मुख्य उद्देश्य से अशोक ने अपनी प्रजा में ‘ धम्म ‘ का प्रचार किया था ? – बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु .
शेरशाह सूरी अपने किस कार्य के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है ? प्रशासनिक सुधार के लिए
‘ मुत्तखब – उत – तवारीख ‘ नामक पुस्तक किसने लिखी . • अब्दुल कादिर बदायूँनी ने
अकबर के दरबार में एक विख्यात हिन्दी कवि कौन थे ? अब्दुर्रहीम .
विजय नगर के राज दरबार में आने वाला विख्यात मुस्लिम यात्री कौन था ? अब्दुर रज्जाक .
मुगल सम्राटों में चित्रकला का पारखी कौन था ? – जहाँगीर
● मौर्य साम्राज्य के अन्त के बाद किसका उद्भव हुआ ? – शुंग वंश का •
भारत में यूरोपीय व्यापारियों के आगमन का सही क्रम पुर्तगाली , डच , अंग्रेज , फ्रांसीसी –
1833 के चार्टर एक्ट के अनुसार बंगाल का गवर्नर जनरल अब भारत का गवर्नर जनरल हो गया . इस प्रकार भारत का प्रथम गवर्नर जनरल बना . • लॉर्ड विलियम बैंटिक .
महमूद गजनवी ने कितनी बार भारत पर आक्रमण किए ? अन्तिम आक्रमण का लक्ष्य ( Target ) क्या था ? – 17 बार , सोमनाथ का मन्दिर .
. नूरजहाँ का वास्तविक नाम क्या था ? – मेहरुन्निसा .
किस मुगल सम्राट् की मृत्यु पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हुई , जिसके बारे में कहा गया “ वह जिन्दगी में भी गिरा तथा औंधे मुँह गिरकर जिंदगी से चला गया ? ” – हुमायूँ .
औरंगजेब ने किस सिख गुरु को फाँसी दी ? गुरु तेगवहादुर को
गुजरात का सोमनाथ मन्दिर किस देवता को समर्पित न शिव को
वास्को – डि – गामा प्रारम्भ में भारत के किस बन्दरगाह पर पहुंचा था ? कालीकट पर
बौद्ध संगीतियों के आयोजन स्थल व आयोजनकर्ताओं के सम्बन्ध में सही क्रम क्या है ? राजगृह – अजातशत्रु , वैशाली – कालाशोक , पाटलिपुत्र अशोक तथा कश्मीर – कनिष्क .
चन्द्रगुप्त के शासनकाल में कौनसा यूनानी यात्री भारत आया ? मेगस्थनीज
किस सम्राट् के सम्बन्ध में महरौली अभिलेख से जानकारी प्राप्त होती है ? चन्द्रगुप्त द्वितीय
. फिरोज तुगलक ने किसकी स्मृति में जौनपुर शहर की नींव डाली थी ? मुहम्मद तुगलक की स्मृति में
कुव्वत – उल – इस्लाम मस्जिद का निर्माण किसने करवाया था ? कुतुबुद्दीन ऐबक ने .
शेरशाह की मृत्यु उसकी अन्तिम विजय के समय हो गई थी . यह अन्तिम विजय कौनसी थी ? – कालिंजर की विजय ( 1545 ई . ) .
पानीपत का दूसरा युद्ध 1556 में किस – किस के बीच हुआ था ? हेमू और बैरम खाँ के बीच
मारवाड़ के किस वीर ने आजीवन औरंगजेब से संघर्ष किया , किन्तु आत्मसमर्पण नहीं किया ? दुर्गादास
दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने अपने बाद किसको सिखों का गुरु मनोनीत किया था ? ग्रन्थ साहिब को
. दिल्ली से दौलताबाद हेतु राजधानी के स्थानान्तरण का आदेश किसने दिया था ? – मुहम्मद बिन तुगलक ने .
किसने अपने बादशाह पति के लिए मकबरे का निर्माण कराया था ? – हाजी बेगम ने
• किस मुगल बादशाह ने अंग्रेजों को बंगाल में शुल्क मुक्त व्यापार की सुविधा प्रदान की थी ? जहाँगीर ने
. लोकप्रिय गायत्री मंत्र का उल्लेख किस वेद में किया गया है ? – ऋग्वेद में
. सम्पूर्ण वैदिक साहित्य को चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है , जो उनकी रचना के चार चरण भी माने जाते हैं . यह चार श्रेणियाँ कौनसी हैं ? – संहिता , ब्राह्मण , आरण्यक और उपनिषद् .
किस तुर्क ने लूटमार की नीति छोड़कर भारत में स्थायी शासन की नीति अपनाई ? कुतुबुद्दीन ऐबक ने
अकबर ने ‘ इबादतखाना ‘ की स्थापना कहाँ की थी ? – फतेहपुर सीकरी में .
प्लासी के युद्ध के समय मुगल साम्राज्य का शासक कौन था ? आलमगीर द्वितीय
‘ इलाहाबाद की सन्धि ‘ किन दो पक्षों के बीच हुई थी ? – अंग्रेज और शाहआलम द्वितीय के बीच .
मानव सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता काल से किन दो प्रमुख चीजों की प्राप्ति हुई ? – गेहूँ और कपास .
ऋग्वेद में किस यज्ञ का वर्णन सर्वाधिक बार आया है ? सोम यज्ञ का
मगध की राजधानी राजगृह से पाटिलिपुत्र किस शासक ने स्थानान्तरित की थी ? – उदायिन .
मोहनजोदड़ो कहाँ स्थित है ? – पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में
● प्रथम बौद्ध संगीति ( Conference ) कहाँ आयोजित हुई थी ? – राजगृह में .
बौद्ध संघ के नियम मूलतः किस पुस्तक में दिए गए हैं ? – विनय पिटक में
कनिष्क के समय में आयोजित चतुर्थ बौद्ध संगीति के सभापति कौन थे ? – वसुमित्र ( कश्मीर कुण्डलवन में आयोजित ) –
चीनी तीर्थयात्री फाह्यान किसके शासनकाल में भारत आया ? चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में
माउण्ट आबू में दिलवाड़ा मन्दिर किसने बनवाए ? चालुक्य ( सोलंकी ) शासकों ने -विमलशाह
. विजयनगर राज्य की स्थापना किसने की थी ? – हरिहर और बुक्का ने ( 1336 ई . )
• तमिल ग्रन्थ ‘ तोलकाप्पियम ‘ की विषय – वस्तु क्या है ? व्याकरण और कविता .
मंसूर और माधव किसके दरबार के मुख्य चित्रकार थे ? . जहाँगीर
1699 में ‘ खालसा ‘ की स्थापना किसने की थी ? गुरु गोविन्दसिंह ने
यूनानी लेखकों ने चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए किस नाम का प्रयोग किया है ? सैन्ड्रोकोटस तथा एन्ड्रोकोटस का
अनन्त वर्मन द्वारा निर्मित ‘ लिंगराज ‘ मन्दिर कहाँ स्थित है ? भुवनेश्वर ( ओडिशा ) में
अशोक के काल में आयोजित तृतीय बौद्ध संगीति की अध्यक्षता किस बौद्ध विद्वान् ने की थी ? – मोगलिपुत्र तिस्य ने •
मुगलों की सेना व्यवस्था किस पद्धति से जानी जाती है ? . मनसबदारी पद्धति से .
इब्राहीम खाँ गर्दी किस पेशवा शासक का महत्वपूर्ण सैनिक अधिकारी था ? बालाजी बाजीराव का
नादिरशाह ने किसके शासनकाल में भारत पर आक्रमण किया था ? – मुहम्मद शाह के शासनकाल में
नासिरुद्दीन मुहम्मद के शासनकाल में किस विदेशी आक्रमणकारी ने भारत पर आक्रमण किया था ? • तैमूर ने .
ऋग्वेद में सर्वाधिक सुक्त किन दो देवों को सम्बोधित न 2 – इन्द्र और अग्नि को …
. सन् 1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में मूल अधिकारों के प्रस्ताव का प्रारूप किसने बनाया था ? पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने
किस कांग्रेस अधिवेशन में कार्यकारी कमेटी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन ( Civil Disobedience ) प्रारम्भ करने का अधिकार दिया ? – लाहौर अधिवेशन ( 1929 में )
. 1857 के सिपाही विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल कौन था ? – लॉर्ड कैनिंग .
रौलेट एक्ट के तहत् किसी भी संदेहास्पद व्यक्ति को गिरफ्तार कर गुप्त मुकदमा चलाकर दण्डित करने का प्रावधान था . इस विधेयक को ‘ काला कानून ‘ भी कहा गया . जब रौलेट एक्ट पारित हुआ था , उस समय भारत का वायसराय कौन था ? – लॉर्ड चेम्सफोर्ड .
भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान ‘ फ्री इण्डियन लीजन ‘ नामक सेना किसने बनाई थी ? – सुभाषचन्द्र बोस ने .
सन् 1912 में उर्दू साप्ताहिक पत्र ‘ अल हिलाल ‘ ( Al Hilal ) का प्रकाशन किसके द्वारा किया गया था ? अबुल कलाम आजाद .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ए . ओ . ह्यूम ने की थी . इसका सर्वप्रथम अधिवेशन कहाँ आयोजित किया गया था ? – बम्बई ( मुम्बई ) में ‘
भारत कोकिला ‘ की उपाधि से सम्मानित किसने ‘ गोल्ड थेशहोल्ड ‘ नामक कविता संग्रह की रचना की ? सरोजिनी नायडू .
स्वदेशी आन्दोलन के प्रारम्भ का तात्कालिक कारण क्या था ? – लॉर्ड कर्जन द्वारा किया गया बंगाल विभाजन .
ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स का चुनाव जिस प्रथम भारतीय ने लड़ा था , वह था . दादा भाई नौरोजी •
मराठी पाक्षिक ‘ बहिष्कृत भारत ‘ का 1927 ई . में किसने आरम्भ किया था ? . बी . आर . अम्बेडकर ने
. महाराष्ट्र में लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जगाने के लिए बालगगाधर तिलक ने किस उत्सव की शुरूआत की थी ? – गणपति उत्सव ( 1893 ई . ) एवं शिवाजी उत्सव ( 1895 ई . )
प्रथम बार ‘ वन्देमातरम् ‘ को नारे के रूप में कब अपनाया गया ? 1905 में बंगाल के विभाजन के समय
. गाँधीजी को किसने सावधान किया था कि वह मुस्लिम धार्मिक नेताओं और उनके अनुयायियों के कट्टरपन को प्रोत्साहित न करें ? अजमल खाँ ने .
कानपुर षड्यंत्र मुकदमा किस आन्दोलन के नेताओं के विरुद्ध था ? – साम्यवादी आन्दोलन के
जिन्ना द्वारा चौदह सूत्रों के अन्तर्गत पृथक चुनाव क्षेत्र आदि की माँग के पीछे क्या कारण था ? . नेहरू रिपोर्ट में आए प्रस्तावों से असहमति .
गाँधीजी ने प्रथम आमरण अनशन कब प्रारम्भ किया था ? जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के समय
1918 में किस कारण से काँग्रेस में ( Split ) हुआ ? – मोन्टेग्यू रिपोर्ट के कारण .
1922 में ‘ भील सेवा मण्डल ‘ की स्थापना किसने की थी ? अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर ने
. भारत में पहली बार एक लोक सेवा आयोग की स्थापना किस कानून के द्वारा की गई ? द गवर्नमेण्ट ऑफ इण्डिया एक्ट 1919 के द्वारा
1857 में लखनऊ में विद्रोह ( Revolt ) का नेतृत्व किसने किया था ? बेगम हजरत महल ने
स्वतन्त्रता संग्राम के त्रिगुट ‘ लाल , बाल और पाल ‘ में से कौन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बना ? – लाला लाजपत राय
. मोहम्मद अली जिन्ना का ‘ चौदह सूत्री प्रस्ताव ‘ किसके विरुद्ध था ? – नेहरू रिपोर्ट के .
भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान ‘ कांग्रेस का रेडियो संचालन का श्रेय किसे दिया जाता है ? – ऊषा मेहता को .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष कौन थे ? – बदरुद्दीन तैयबजी .
डॉ . बी . आर . अम्बेडकर ने गोलमेज सम्मेलन की कितनी बैठकों में भाग लिया था ? – तीनों बैठकों में
. 1940 में संचालित वैयक्तिक सत्याग्रह आन्दोलन के जो पहले सत्याग्रही कौन थे ? . विनोबा भावे
यह किसकी उद्घोषणा थी कि ” स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है , मैं इसको लेकर रहूँगा ” ? बाल गंगाधर तिलक की .
बाल गंगाधर तिलक कितनी बार कांग्रेस अध्यक्ष बने ? – एक बार भी नहीं .
एशियाटिक सोसायटी के संस्थापक थे – विलियम जोन्स .
पाकिस्तान की माँग किस वर्ष की गई ? – 1940 में
. मुस्लिम के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था का प्रावधान पहली बार किस एक्ट में किया गया ? – 1909 के एक्ट में
भारत विभाजन के सिद्धान्त को सर्वप्रथम किस नेता ने स्वीकार किया था ? – चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने .
पूना समझौता का प्रमुख लक्ष्य क्या था ? – निचली जातियों का पृथक् प्रतिनिधित्व
. साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस लाठी चार्ज में घायल होने के फलस्वरूप किस राष्ट्रवादी नेता की मृत्यु हुई थी ? लाला लाजपतराय की
.8 अगस्त , 1942 को काँग्रेस के विशेष अधिवेशन में भारत छोड़ो आन्दोलन के लिए प्रस्ताव पारित किया गया यह अधिवेशन कहाँ आयोजित किया गया था ? – मुम्बई में
. 1875 में हुए मराठा कृषक विद्रोह का प्रमुख कारण क्या था ? – गुजराती एवं मारवाड़ी सूदखोरों द्वारा अत्यधिक शोषण
प्रेस पर से सभी प्रतिबन्ध किसके समय में समाप्त किए गए ? – चार्ल्स मेटकॉफ के समय में
1908 में 6 वर्ष के कारावास की सजा किस नेता को हुई थी ? बाल गंगाधर तिलक को
प्रथम विश्व युद्ध में सैनिक विप्लव की तैयारी की सूचना अंग्रेजों को देने वाला देशद्रोही कौन था ? – कृपाल सिंह
लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने वाला क्रान्तिकारी वीर कौन था ? – रासबिहारी बोस .
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के प्रथम अध्यक्ष कौन थे ? – व्योमेश चन्द्र बनर्जी .
मुस्लिम लीग ने ‘ मुक्ति दिवस ‘ कब मनाया था ? 22 दिसम्बर , 1939
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन कहाँ हुआ था ? – बम्बई में
मालाबार क्षेत्र के किसानों ने 1921 में कौनसा विद्रोह किया था ? मोपला विद्रोह
‘ हरमिट ऑफ शिमला ‘ किसे कहा जाता है ? ए . ओ . ह्यूम को
महात्मा गांधी ने प्रथम नागरिक अवज्ञा आन्दोलन ( Civil Disobedience Movement ) किस घटना के पश्चात् प्रारम्भ किया ? – रॉलेट एक्ट लगने पर
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में किस भारतीय ने वायसराय की कार्य परिषद् ( Executive Council ) से त्याग – पत्र दिया था ? सर शंकरन नायर
. किस एक्ट को काला एक्ट के नाम से भी जाना जाता है ? – रॉलेट एक्ट
यह किसका कथन है- ” भारतीय कांग्रेस दल सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करता , यह भारत के बहुमत का प्रतिनिधि नहीं है ? ” – लॉर्ड कर्जन .
संन्यासी विद्रोह का उल्लेख किस पुस्तक में मिलता आनन्द मठ
1924 में बेलगाँव में हुए 39 वें कांग्रेस के अधिवेशन के अध्यक्ष कौन थे ? महात्मा गांधी
. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एकमात्र अधिवेशन , जिसे महात्मा गांधी द्वारा सम्बोधित किया गया था , सम्पन्न हुआ था बेलगाम ( कर्नाटक )
1857 की क्रान्ति के नेता ताँत्या टोपे का वास्तविक नाम क्या था ? . रामचन्द्र पाण्डुरंग
. किसने विदेशी वस्त्रों को नष्ट करने को राष्ट्र के आत्मसम्मान से जोड़ते हुए कहा था कि ” विदेशी वस्त्रों की बर्बादी ही उनके साथ सर्वोत्तम व्यवहार है . ” महात्मा गांधी .
किस आन्दोलन में महात्मा गांधी ने पहली बार भूख हड़ताल का प्रयोग राजनीतिक हथियार के रूप में किया था ? अहमदाबाद मिल मजदूरों की हड़ताल ( 1918 ई . )
. मुस्लिम लीग द्वारा किस तिथि को ‘ सीधी कार्यवाही दिवस ‘ के रूप में निश्चित किया गया था ? 16 अगस्त , 1946 .
‘ अनुशीलन समिति का गठन 1907 ई . में किसने किया था ? . बारीन्द्र घोष और भूपेन्द्र दत्त
. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने कहा था- ” गांधी मर सकते हैं , परन्तु गांधीवाद सदैव बना रहेगा ” ? कराची अधिवेशन , 1931
‘ द इंडियन स्ट्रगल ‘ नामक प्रसिद्ध पुस्तक किसने लिखी ? – सुभाषचन्द्र बोस
‘ वानर सेना ‘ और ‘ मंजरी सेना ‘ का सम्बन्ध है . . असहयोग आन्दोलन से .
प्रमुख क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल को किस जेल में फाँसी दी गई थी ? – गोरखपुर जेल .
1857 ई . के विद्रोह के बारे में सर्वप्रथम इसे ‘ भारत की स्वतन्त्रता की पहली लड़ाई ‘ कहा था – वी . डी . सावरकर
. 1857 में इलाहाबाद में विद्रोह का नेतृत्व किसने किया था ? – लियाकत अली ने
. . ‘ चपाती एवं लाल गुलाब ‘ का सम्बन्ध किस विद्रोह / आन्दोलन से था ? – 1857 के विद्रोह से .
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सन्दर्भ में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भारत की महिला प्रतिनिधि के रूप में किसने भाग लिया ? . सरोजिनी नायडू .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस अधिवेशन में बाल गंगाधर तिलक ने घोषणा की थी कि ” स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है , मैं उसे प्राप्त करके रहूँगा ” ? लखनऊ अधिवेशन ( 1916 ) में .
1906 में लन्दन में ‘ अभिनव भारत ‘ की स्थापना किसने की थी ? – विनायक दामोदर सावरकर ने
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस अधिवेशन में नरम 1 दल एवं गरम दल में विभाजन हुआ ? – सूरत अधिवेशन
1912 में गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग की गाड़ी पर बम किस क्रान्तिकारी ने फेंका था ? -रासबिहारी बोस ने
. ‘ इण्डियन पॉवर्टी एण्ड अन – ब्रिटिश रूल इन इण्डिया ‘ ने पुस्तक किसने लिखी है ? दादा भाई नौरोजी ने
भगतसिंह , राजगुरु और सुखदेव को किस केस में ना फाँसी की सजा दी गई थी ? तु • लाहौर षड़यंत्र केस
. साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस लाठी चार्ज में घायल होने के फलस्वरूप किस ने राष्ट्रवादी नेता की मृत्यु हुई ? लाला लाजपतराय
क्रिप्स मिशन किस वर्ष भारत आया था ? 1942 ई . में
1919 में दिल्ली में हुए अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया था ? महात्मा गांधी
बंगाल विभाजन ( 1905 ) करने में लॉर्ड कर्जन का वास्तविक उद्देश्य क्या था ? – बंगाल में राष्ट्रीयता से जुड़ी शक्तियों को कमजोर करना
रॉलेट एक्ट का उद्देश्य था – मुकदमा चलाए बिना किसी भी व्यक्ति को नजरबन्द करना या
‘ राष्ट्रीय शोक दिवस ‘ कब मनाया गया था ? – बंगाल विभाजन लागू होने के दिन .
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड की जाँच के लिए ब्रिटिश सरकार ने कौनसा कमीशन नियुक्त किया ? . हण्टर कमीशन
” इस विशाल देश में कोई प्रगति सम्भव नहीं है जब तक कि हिन्दू और मुसलमान दोनों मिलकर एक नहीं हो जाते . ” यह कथन किसका है ? – महादेव गोविन्द रानाडे का
‘ भारत सेवक समाज ‘ की स्थापना किसने की ? – गोपाल कृष्ण गोखले ने
. ‘ वन्दे मातरम् ‘ घोष को राष्ट्रीय आन्दोलन से घनिष्ठ रूप से जोड़ने वाली घटना कौनसी थी ? . बंग – भंग .
किस अधिवेशन में एम . ए . जिन्ना ने दो राष्ट्रों के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया था ? – लाहौर अधिवेशन 1940 में
. सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की सामयिक सरकार ( Pro visional Government ) की स्थापना किसने की थी ? सुभाषचन्द्र बोस ने
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड का बदला लेने के लिए जनरल डायर की इंगलैण्ड में हत्या किसने की ? ऊधम सिंह ने
1916 में लखनऊ समझौता किन – किन के बीच हुआ था ? – कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच
1909 में घोषित संवैधानिक सुधारों को किस नाम से जाना जाता है ? – माले – मिण्टो सुधार के नाम से
‘ भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के किस अधिवेशन में पारित हुआ था ? – वर्धा अधिवेशन . ‘
नागपुर चलो ‘ का नारा किस सत्याग्रह के अवसर पर बुलन्द किया गया ? – झण्डा सत्याग्रह के अवसर पर
1930 में चटगाँव को मुक्त कराने में मुख्य भूमिका किस क्रान्तिकारी की थी ? – सूर्यसेन की
महात्मा गांधी की मार्च से सम्बन्धित ‘ डांडी ‘ गुजरात के किस जिले में है ? – नौसारी में
. 1906 में ‘ युगान्तर ‘ समाचार – पत्र किसने प्रकाशित किया था ? -बारीन्द्र कुमार घोष तथा भूपेन्द्रनाथ दत्ता ने
. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लाल , बाल और पाल किसे कहा जाता है ? – लाला लाजपत राय , बाल गंगाधर तिलक और बिपिनचन्द्र पाल को .
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ‘ वहाबी आन्दोलन ‘ का प्रमुख केन्द्र कहाँ था ? पटना में .
स्वदेशी आन्दोलन सबसे पहले कहाँ / कब प्रारम्भ हुआ ? . – बंगाल विभाजन के विरुद्ध प्रारम्भ हुए आन्दोलन के समय .
असहयोग आन्दोलन किस काण्ड के पश्चात् समाप्त हो गया था ? चौरी – चौरा काण्ड के पश्चात् .
कांग्रेस ने गोलमेज सम्मेलन की किस बैठक में भाग नहीं लिया ? पहली व तीसरी बैठक में
भगतसिंह किस संगठन के नेता थे ? हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक सेना के
1916 के लखनऊ अधिवेशन की प्रमुख घटना क्या रही ? – मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में निकटता .
प्रार्थना सभा की स्थापना किसने की ? एम . जी . रानाडे ने .
वी . डी . सावरकर को किस केस में फँसाया गया था ? – नासिक षड्यंत्र केस में .
तीन प्रमुख कृषक आन्दोलनों / विद्रोहों को बताइए चम्पारण सत्याग्रह , खेड़ा सत्याग्रह तथा मोपला विद्रोह
यह कथन किसका है ” वे हमारी बेड़ियों को जितना ही कसेंगे , वे उतनी ही तड़केंगी , उनकी आँखें जितनी ही लाल – पीली होंगी , हमारी आँखें उतनी ही खुलेंगी ” ? रबीन्द्रनाथ टैगोर .
किसने कहा था ” 15 अगस्त मेरे जीवन का सबसे बड़ा अद्भुत और प्रेरक दिवस सिद्ध हुआ ? ” – लॉर्ड माउण्टबेटेन .
‘ विद्रोही ‘ कविता की रचना किसने की थी ? . काजी नजरुल इस्लाम .
गोपालकृष्ण गोखले ने 1905 में सर्वेण्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की , उस समय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन थे ? – गोपालकृष्ण गोखले
कांग्रेस ने किस वर्ष देशी राज्यों की स्वतंत्रता के कार्यक्रम को अपने उद्देश्यों में शामिल किया ? – 1938 में किस स्वतंत्रता सेनानी को 1908 में
अलीपुर सेन्ट्रल जेल में फाँसी दी गई ? – खुदीराम बोस .
सन्यासी विद्रोह का उल्लेख किस पुस्तक में मिलता . आनन्द मठ .
सुभाष चन्द्र बोस ने गांधीजी के साथ मतभेद होने के बाद कौनसी पार्टी बनाई ? . फारवर्ड ब्लॉक
. चर्बी वाले कारतूस के खिलाफ पहला विद्रोह किसने किया ? – मंगल पाण्डे ने बैरकपुर में .
रोलेट एक्ट के विरोध में गांधीजी ने कौनसा आन्दोलन प्रारम्भ किया था ? – असहयोग आन्दोलन
. भारत के लिए संविधान सभा बनाने की घोषणा किसके द्वारा की गई ? – कैबिनेट मिशन द्वारा
9 अगस्त को ‘ क्रान्ति दिवस ‘ के रूप में मनाते हैं , क्योंकि यह है – 1942 में ‘ भारत छोड़ो ‘ प्रस्ताव की स्वीकृति .
किस भारतीय नेता को ‘ लौह – पुरुष ‘ कहा जाता है ? – वल्लभभाई पटेल ●
किसके द्वारा बंगाल का स्थायी मालगुजारी बन्दोबस्त शुरू किया गया था ? – कार्नवालिस
. भारत में गरमदलीय आन्दोलन का पिता किसे कहा जाता है ? . बाल गंगाधर तिलक
. ‘ राष्ट्रीय शोक दिवस कब मनाया गया ? – बंगाल विभाजन लागू होने के दिन
. किस एक्ट के खिालाफ राष्ट्रवादियों का नारा था ‘ प्रतिनिधित्व के बिना कर नहीं ? . 1909 का एक्ट
. पूना में 1905 में ‘ सर्वेन्ट्स ऑफ इण्डिया सोसाइटी ‘ की स्थापना किसने की थी ? गोपाल कृष्ण गोखले ने .
बंगाल में ‘ तत्त्वबोधिनी सभा ‘ की स्थापना किसने की थी ? . देवन्द्रनाथ टैगोर ने .
चम्पारण विद्रोह के परिणामस्वरूप सरकार को कौनसी पद्धति समाप्त करनी पड़ी थी ? – तिनकथिया .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन कहाँ हुआ था ? .
कांग्रेस का प्रथम विभाजन किस अधिवेशन में हुआ था ? – लखनऊ अधिवेशन , 1916 में
. कूका आन्दोलन कहाँ हुआ था ? – पंजाब में
महात्मा गांधी ने प्रथम नागरिक अवज्ञा आन्दोलन ( Civil Disobedience Movement ) किस घटना के पश्चात् प्रारम्भ किया ? – रोलेट एक्ट लगने पर .
गांधीजी ने भारत में प्रथम उपवास ( Fast ) किस घटना के विरोध में रखा था ? अहमदाबाद मिल मजदूरों द्वारा हड़ताल .
एनी बेसेन्ट ने मद्रास में होमरूल लीग की स्थापना कब की थी ? . 1916 में
यह किसका कथन है- ” भारतीय कांग्रेस दल सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करता , यह भारत के बहुमत का प्रतिनिधि नहीं है ? – लॉर्ड कर्जन .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन ( 1929 ) की अध्यक्षता किसने की थी ? जवाहरलाल नेहरू
‘ भारत छोड़ो ‘ ( Quit India ) प्रस्ताव के पश्चात् कांग्रेस के उच्च नेता कब बन्दी बना लिए गए थे ? .9 अगस्त , 1942 को
. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस अधिवेशन में इसका नरम दल एवं गरम दल में विभाजन हुआ ? सूरत अधिवेशन में .
एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना कब हुई थी ? 1784 में
. डाक्टरिन ऑफ लेप्स को लागू करके सतारा राज्य को ब्रिटिश प्रभुसत्ता में कब सम्मिलित कर लिया गया ? – 1848 में .
हकीम अजमल खान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस अधिवेशन के अध्यक्ष थे ? – अहमदाबाद 1921 .
1905 में बंगाल प्रान्त को दो भागों में किसने बाँटा था ? – लॉर्ड कर्जन ने .
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम , 1947 किस दिन प्रभावी हुआ ? . 15 अगस्त , 1947 को
. ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ने तथा भारत के विभाजन की घोषणा किस योजना के अन्तर्गत की थी ? माउण्टबेटन योजना
. रॉलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी ने कौनसा आन्दोलन प्रारम्भ किया था ? . नागरिक अवज्ञा आन्दोलन
स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस को किस जेल में 1908 में फांसी दी गई थी ? अलीपुर सेन्ट्रल जेल
रास बिहारी बोस ने टोकियो में ‘ इंडियन इंडिपेन्डेंस लीग ‘ की स्थापना कब की थी ? – 23 जून , 1942 .
होमरूल लीग के सर्वाधिक कार्यालय कहाँ थे ? – चेन्नई ( मद्रास ) में
1905 में इण्डियन होमरूल सोसायटी की स्थापना लंदन में किसने की ? – श्यामजी कृष्ण वर्मा ने .
भारत के अन्तिम गवर्नर जनरल कौन थे ? – चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
. किस एक्ट को काला एक्ट के नाम से भी जाना जाता है ? . – रॉलेट एक्ट .
“ भारतीय संस्कृति पूरी तरह न हिन्दू है , न इस्लामी और न ही कुछ अन्य , वह सबका संयोजन है . ” यह कथन किसका है ? . महात्मा गांधी का
स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले प्रथम स्वतंत्रता दिवस कब मनाया गया ? 26 जनवरी , 1930 को .
1943 में अस्थायी भारत सरकार की स्थापना कहाँ और किसने की ? सिंगापुर में , सुभाष चन्द्र बोस ने
स्थायी बंदोबस्त के अधीन जमा किए गए भू – राजस्व में जमींदारों का अंश था 1/11 अंश .
ब्रिटिश के विरुद्ध विद्रोही नेता रानी गाइदिल्यू कहाँ की थीं ? – नगालैण्ड की .
वह कौनसा लेखक था जिसने 1857 के विद्रोह को ” स्वतंत्रता का प्रथम युद्ध ‘ कहा ? . विनायक दामोदर सावरकर .
सुभाष चन्द्र बोस ने 1939 में काँग्रेस अध्यक्ष का चुनाव किस आधार पर लड़ा ? – वह एक आक्रामक नीति के पक्ष में थे जिसका कांग्रेस के नेता विरोध कर रहे थे .
भारत की स्वतंत्रता के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष कौन थे ? – जे . बी . कृपलानी .
पंजाब में अहमदिया आन्दोलन किसने प्रारम्भ किया ? – मिर्जा गुलाम अहमद .
नागपुर में 1929 में सम्पन्न ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रेसीडेंट कौन थे ? जवाहरलाल नेहरू ‘
यह एक डूबते हुए बैंक पर अग्रिम तिथि का चेक था . ” क्रिप्स प्रस्ताव के सम्बन्ध में यह कथन किसका था ? महात्मा गांधी का
पूना में 1905 में ‘ सर्वेन्टस् ऑफ इण्डिया सोसाइटी ‘ की स्थापना किसने की थी ? गोपाल कृष्ण गोखले .
स्वाधीन भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर – जनरल कौन थे ? सी . राजगोपालाचारी
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अरूणा आसफ अली किस भूमिगत क्रियाकलाप की प्रमुख महिला संगठक थी ? भारत छोड़ो आन्दोलन
. किस कारागार में जवाहरलाल नेहरू ने ‘ डिस्कवरी ऑफ इण्डिया ‘ पुस्तक लिखी थी ? – अहमदनगर फोर्ट जेल .
ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी को जो उपाधि दी थी और जिसे उन्होंने असहयोग आन्दोलन में वापस कर दिया था , वह थी . कैसर – ए – हिन्द .
महात्मा गांधी एवं सरदार पटेल द्वारा खेड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का कारण था . ब्रिटिश सरकार द्वारा मनमाने लगान निर्धारण तथा उसे माफ करने से मना करने के विरुद्ध विद्रोह
किस एक्ट के खिलाफ राष्ट्रवादियों का नारा था ‘ प्रतिनिधित्व के बिना कर नहीं ? 1909 का एक्ट
. बाल गंगाधर तिलक पर 1897 में किस आधार पर मुकदमा चलाया गया ? – राजद्रोह .
नमक कानून के उल्लंघन में गांधीजी ने एक आन्दोलन शुरू किया था , जिसका नाम था – सविनय अवज्ञा आन्दोलन .
कैबिनेट मिशन कब भारत आया था ? – 1946 में
जब महात्मा गांधी की हत्या हुई , तब किसने कहा था , ” कोई विश्वास नहीं करेगा कि ऐसे शरीर और आत्मा वाला कोई आदमी कभी इस धरती पर चला था ” ? – अल्बर्ट आइंस्टाइन .
नमक सत्याग्रह के समय जब गांधीजी गिरफ्तार कर लिए गए , उस समय किसने आन्दोलन के नेता के रूप में उनका स्थान लिया ? – अब्बास तैयबजी .
बाल गंगाधर तिलक को ‘ लोकमान्य ‘ की उपाधि दी गई थी – होमरूल आन्दोलन के दौरान .
महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत किस वर्ष में लौटे ? 1915 में .
मैक्डोनाल्ड द्वारा प्रस्तावित ‘ कम्यूनल एवार्ड ‘ को गांधीजी द्वारा तुकराए जाने का प्रमुख कारण क्या था ? • दलित वर्ग को हिन्दुओं से अलग करना .
महात्मा गांधी द्वारा द्वितीय सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब प्रारम्भ किया गया ? . 1932 में
. आजाद हिन्द फौज के किन नेताओं पर दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चलाया गया ? – गुरदयाल सिंह ढिल्लो , शाहनवाज खाँ तथा प्रेम सहगल पर .
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के सन्दर्भ में बाग में एकत्रित लोग किसका विरोध कर रहे थे ? सत्यपाल मलिक एवं सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी का
सुभाषचन्द्र बोस ने कांग्रेस के किस अधिवेशन में अध्यक्ष चुने जाने के पश्चात् इस्तीफा दिया था ? त्रिपुरी अधिवेशन ( 1939 ) में
. ‘ व्यक्तिगत सत्याग्रह ‘ आन्दोलन 17 अक्टूबर , 1940 को कहाँ से प्रारम्भ हुआ ? पवनार से .
बिहार में 1857 के विद्रोह का अग्रणी नेता कौन था जिसने आरा में अंग्रेजी फौज से लोहा लिया था ? कुँवरसिंह ( जगदीशपुर ) .
स्वदेशी आन्दोलन के प्रारम्भ का तात्कालिक कारण क्या था ? – लॉर्ड कर्जन द्वारा किया गया बंगाल विभाजन ( 1905 ई . ) .
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अरूणा आसफ अली किस भूमिगत क्रिया – कलाप की प्रमुख महिला संगठक थीं ? भारत छोड़ो आन्दोलन .
भारत में क्रान्तिकारियों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक कमेटी की नियुक्ति की थी . जब रॉलेट एक्ट पारित हुआ था , उस समय भारत का वायसराय कौन था ? – लॉर्ड चेम्सफोर्ड
भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान किसने ‘ फ्री इण्डियन लीजन ‘ नामक सेना बनाई ? 3 – सुभाष चन्द्र बोस .
किसने ‘ सुबहे आजादी ‘ नामक कविता लिखी थी ? – फैज अहमद फैज
गांधी के अनुयायी जे . बी . कृपलानी का पूरा नाम क्या – जीवतराम भगवानदास कृपलानी .
वर्ष 1912 ई . में उर्दू साप्ताहिक अल हिलाल का प्रकाशन किसके द्वारा किया गया था ? – डॉ . अबुल कलाम आजाद
1946 ई . में बनी अन्तरिम सरकार में डॉ . राजेन्द्र प्रसाद के पास कौनसा विभाग था ? – खाद्य तथा कृषि न
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वर्ष 1929 में लाहौर सम्मेलन , जिसमें अंग्रेजों से पूर्ण स्वतंत्रता पाने का संकल्प अंगीकृत किया गया था , किसकी अध्यक्षता में हुआ था ? जवाहरलाल नेहरू
वर्ष 1939 में कांग्रेस को छोड़ने के पश्चात् सुभाष चन्द्र बोस ने किस दल की स्थापना की ? – फॉरवर्ड ब्लॉक
असहयोग आन्दोलन के दौर में अलीगढ़ में किस राष्ट्रीय शिक्षा संस्था को स्थापित किया गया था ? – जामिया मिलिया इस्लामिया को .
तिलक पर राजद्रोह का पहला मुकदमा क्यों चलाया गया था ? – शिवाजी द्वारा अफजल खाँ की हत्या को उचित ठहराने के लिए .
‘ सवर्ण हिन्दुओं की फासीवादी कांग्रेस ‘ कह कर कांग्रेस का चरित्र निरूपण किसने किया था ? – मोहम्मद अली जिन्ना ने .
किसने कहा था ’15 अगस्त मेरे जीवन में सबसे बड़ा अद्भुत और प्रेरक दिवस सिद्ध हुआ ? लॉर्ड माउण्टबैटन ने
. गोपाल कृष्ण गोखले ने 1905 ई . में ‘ सर्वेण्ट्स ऑफ इण्डिया सोसाइटी ‘ की स्थापना की . उस समय कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन था ? – गोपाल कृष्ण गोखले .
‘ पूर्ण स्वराज ‘ ( Complete Independence ) दिवस सर्वप्रथम कब मनाया गया था ? – 26 जनवरी , 1930 ई . को .
‘ कम्युनल अवार्ड ‘ का निर्णय देते समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री कौन थे ? – रेम्जे मेकडोनाल्ड ( Ramsay McDonald ) .
बाल गंगाधर तिलक को ‘ भारतीय असन्तोष का जनक ‘ किसने कहा था ? वेलेन्टाइन शिरोल ने
• हम ब्रिटेन की तबाही की कीमत पर भारत की स्वतंत्रता नहीं चाहते . ‘ यह किसने कहा था ? – महात्मा गांधी ने •
मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन ( 1940 ) की अध्यक्षता किसने की थी ? – मोहम्मद अली जिन्ना •
सन् 1906 में लन्दन में बी . डी . सावरकर ने कौनसे क्रान्तिकारी संगठन का गठन किया था ? – अभिनव भारत
भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरू को किस ‘ वाद ‘ ( केस ) में फाँसी की सजा सुनाई गई थी ? – लाहौर षड्यंत्र केस
भारत छोड़ो आन्दोलन किसकी प्रतिक्रिया में प्रारम्भ किया गया ? . क्रिप्स प्रस्ताव
. ब्रिटिश सरकार ने जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड की जाँच के लिए कौनसा कमीशन नियुक्त किया था ? हण्टर कमीशन ।
महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन ( Civil Disobedience Movement ) कब प्रारम्भ किया था ? 12 मार्च , 1930 को
1905 में किया गया बंगाल विभाजन कब और किस अवसर पर निरस्त घोषित किया गया ? – 1911 में दिल्ली दरबार के आयोजन के समय .
किस योजना के अन्तर्गत ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ने तथा भारत के विभाजन की घोषणा की थी ? • लॉर्ड माउण्टबेटन योजना .
किस क्रान्तिकारी ने कहा था ” हमारे जीवन का उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति है . हिन्दू धर्म हमारे इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमारा पथ प्रदर्शन करेगा ? ” – अरविन्द घोष
महात्मा गांधी का लोक सत्याग्रह ( Mass Movement ) का प्रथम प्रयोग कहाँ किया गया है ? – चम्पारण ( बिहार ) में .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष कौन थी ? – श्रीमती ऐनी बेसेंट .
भारत के उदारवादी नेताओं में किसे ‘ A silvered Tongued Orator ‘ कहा जाता है ? • गोपाल कृष्ण गोखले को .
अंग्रेजों द्वारा बंगाल विभाजन ( Partition of Bengal ) का वास्तविक कारण क्या था ? – बंगाल में राष्ट्रीयता के बढ़ने को रोकना
1946 में नेवी ( Navy ) ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध खुला विद्रोह कहाँ किया था ? • बम्बई ( मुम्बई ) में
. किस एक के अन्तर्गत भारत में ब्रिटिश शासन का अन्त हुआ ? भारत स्वतंत्रता अधिनियम , 1947 ( Indian Inde pendence Act , 1947 ) के अन्तर्गत
‘ The Prophet of Indian Nationalism and Father of Modern India ‘ किसे कहा जाता है ? राजा राममोहन राय को
नीति निर्देशक सिद्धान्तों ( Directive Principles ) के विषय में किसने कहा था- ‘ a cheque payable at the convenience of the Bank ‘ ? के.टी. शाह ने
. किस प्रमुख नेता ने 1917 के चम्पारण सत्याग्रह का विरोध किया , क्योंकि यह महात्मा गांधी की अध्यक्षता में चलाया जा रहा था ? – एन . जी . रंगा ने .
काँग्रेस के किस प्रमुख नेता ने ‘ माउण्टबेटेन प्लान ‘ को अस्वीकार ( Reject ) किया था ? – मौलाना अबुल कलाम आजाद ने .
हिन्दू धर्म में पहला सुधार आन्दोलन ब्रह्म समाज था , जिसकी नींव 1828 ई . में किसने डाली ? राजा राममोहन राय ने .
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के रूप में गांधीजी ने ‘ डाण्डी मार्च ‘ किया था . 12 मार्च , 1930 को
भारत के स्वतंत्रता – संघर्ष के दौरान सबसे पहले सत्याग्रह प्रारम्भ किसने किया था ? महात्मा गांधी ने .
महात्मा गांधी ने 1915 ई . में अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की जो बाद में के रूप में प्रसिद्ध हुआ . – साबरमती आश्रम .
1928 ई . के बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व सरदार बल्लभभाई पटेल ने किया . इसी सत्याग्रह में उन्हें …. ‘ की उपाधि दी गई . सरदार .
सन् 1907 ई . में किस अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला विभाजन हुआ था ? – सूरत अधिवेशन में .
भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रारूप महात्मा गांधी ने बनाया था और इसे … ‘ ने प्रस्तुत किया था . – पं . जवाहरलाल नेहरू .
भारत में प्रथम तीन विश्वविद्यालय ( कलकत्ता , मद्रास , बम्बई ) की स्थापना किस वर्ष में हुई ? – 1857 ई . मे
‘ साइमन कमीशन ‘ भारत में कब आया ? 1927 ई . में
बंगाल का पहला विभाजन कब हुआ था ? 1905 ई . में .
किसने कहा था ” तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा ” ( Give me your blood , I shall give you freedom ) ? सुभाषचन्द्र बोस ने .
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान ‘ बहिष्कृत भारत ‘ नामक विचार पत्र किसने निकाला था ? . बी . आर . अम्बेडकर ने .
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित गोलमेज सम्मेलनों की श्रृंखला में महात्मा गांधी ने किस एक में भाग लिया था ? – द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन , 1931 की अध्यक्षता किसने की थी ? सरदार वल्लभभाई पटेल ने
1942 में किस ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने क्रिप्स मिशन भारत भेजा ? विस्टन चर्चिल ने
विवेकानन्द को आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन का ‘ आध्यात्मिक पिता ‘ किसने कहा ? सुभाषचन्द्र बोस ने
1857 नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं ? एस . एन . सेन .
‘ उत्तरी भारत के हिन्दू लूथर ‘ ( Hindu Luther of Northern India ) के नाम से कौन जाने जाते थे ? ईश्वर चन्द्र विद्यासागर .
दिल्ली के लाल किले में आई . एन . ए . ( INA ) का प्रसिद्ध मुकदमा किस वर्ष चला ? . 1945 में .
रुहेलखण्ड में किस रोहिला नेता ने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी थी ? खान बहादुर खान ने
कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज ‘ और ‘ वेदान्त कॉलेज की मकी स्थापना किसने की ? राजा राममोहन राय ने
. यंग बंगाल आन्दोलन की पहल मुख्य रूप से किसने की ? – हेनरी विवियन डेरोजियो ने
सत्यशोधक समाज की स्थापना किसने और कब की ? – ज्योतिबा फूले ने , 1873 में
. आजाद हिन्द फौज के किन नेताओं पर दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चलाया गया ? – शाहनवाज खाँ , गुरदयाल सिंह ढिल्लों तथा प्रेम सहगल पर .
‘ भारत छोड़ो आन्दोलन के समय किसने बलिया में ‘ समानान्तर सरकार स्थापित की थी ? चित्तू पांडेय
ने . फैजाबाद में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया था ? अहमदुल्ला ने
डाण्डी यात्री की तुलना नेपोलियन के एल्बा से लौटने के बाद उसकी पेरिस तक यात्रा के साथ किसने की थी ? – सुभाषचन्द्र बोस ने
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के बाद पंजाब में फैली अशान्ति की जाँच के लिए कांग्रेस द्वारा नियुक्त आयोग के अध्यक्ष कौन थे ? प . मोतीलाल नेहरू
. . किस घटना के बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अपना प्रथम असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया ? रौलेट एक्ट का बनना
. रौलेट एक्ट के माध्यम से ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य क्या था ? साधारण कानूनी प्रणाली से छुटकारा प्राप्त करके अपने हाथों में दूरगामी शक्तियाँ लेना .
जेल में अनशन के दौरान किस देशभक्त सेनानी ने अपनी जान दे दी ? जतिनदास ने
. कांग्रेस का वह अधिवेशन जिसमें पहली बार ‘ स्वराज्य ‘ की मांग रखी गई कब तथा कहाँ हुआ तथा इसकी अध्यक्षता किसने की ? – 1906 ई . , कलकत्ता में , दादाभाई नौरोजी ने अध्यक्षता की .
भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली किस वर्ष स्थानान्तरित की गई ? सन् 1911 ई . में .
गांधीजी का डाण्डी मार्च किस आन्दोलन से सम्बन्धित था ? – सविनय अवज्ञा आन्दोलन से
• बंगाल विभाजन के विरुद्ध प्रारम्भ हुए आन्दोलन के समय कौनसा अन्य आन्दोलन प्रारम्भ हुआ ? – स्वदेशी आन्दोलन
. ‘ चौरी – चौरा काण्ड ‘ के कारण कौनसा आन्दोलन समाप्त हो गया ? – असहयोग आन्दोलन
‘ भारत के राजनीतिक असन्तोष का जनक ‘ किन्हें कहा जाता है ? – बालगंगाधर तिलक को
भारत से धन निष्कासन के बारे में सर्वप्रथम किसने लिखा था ? दादा भाई नौरोजी ने
‘ पाकिस्तान ‘ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया ? चौधरी रहमत अली ने
अन्तरिम सरकार में मुस्लिम लीग के कितने सदस्य शामिल थे ? 5 ( पाँच )
भारत छोड़ो आन्दोलन के नेताओं को गिरफ्तार करने के लिए ब्रिटिश शासक द्वारा चलाए गए ऑपरेशन का क्या नाम था ? – ऑपरेशन जीरो आवर
1857 के विद्रोह की असफलता का कारण क्या आँका गया है ? – संगठन एवं नेतृत्व का अभाव
. किसने कहा था ” हिन्दू और मुसलमान भारत की दो आँखें हैं ? ” सर सैयद अहमद खाँ ने .
सत्यशोधक समाज के संस्थापक कौन थे ? ज्योतिबा फूले , तेलंग एवं रानाडे
राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज को किसने पुनर्जीवित किया ? . देवेन्द्रनाथ टैगोर ने .
अलीपुर केस में सरकारी गवाह कौन बन गया था ? . नरेन्द्र गोसाई
असम में 1857 की क्रान्ति का नेता कौन था ? – दीवान मनीराम दत्त
भारत में 1918 में प्रथम मजदूर संघ की स्थापना किसने की थी ? बी . पी . वाडिया ने
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी द्वारा स्थापित किस संगठन का विलय 1886 में इण्डियन नेशनल कांग्रेस में हुआ ? – इण्डियन एसोसिएशन का .
. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की थी ? – रास बिहारी घोष ने
‘ भारत छोड़ो प्रस्ताव ‘ कब वापस ले लिया गया ? 1944 में
जिस कांग्रेस अधिवेशन में ‘ वन्दे मातरम ‘ गान प्रथम बार बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा प्रस्तुत किया गया , उसकी अध्यक्षता किसने की थी ? – रहीमतुल्ला सयानी ने
. ‘ इण्डिपेन्डेन्ट लीग ‘ की स्थापना किसने की ? सुभाषचन्द्र बोस ने
‘ कोलोनाइजेशन बिल ‘ के विरुद्ध सशक्त आन्दोलन चलाने वाले किस भारतीय राजनेता को माण्डले जेल में बन्द किया गया ? . लाला लाजपत राय को .
कांग्रेस के किस अधिवेशन में हिन्दी को सर्वप्रथम राष्ट्रभाषा के रूप में प्रस्तुत किया गया ? बेलगाँव अधिवेशन , 1924 में
‘ व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन 17 अक्टूबर , 1940 में प्रारम्भ हुआ . सर्वप्रथम यह किस स्थान से प्रारम्भ किया गया ? – पवनार से
. क्रान्तिकारी आन्दोलन की पुस्तक ‘ बन्दी जीवन ‘ के लेखक कौन थे ? – शचीन्द्रनाथ सान्याल .
इण्डिया ऑफिस में राजनीतिक सहायक कर्नल विलियम कर्जन वाइली की गोली मारकर हत्या किसने की ? – मदनलाल धींगरा ने .
1923 में स्वराज दल का गठन किसने किया था ? – पं . मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास ने .
भारत की स्वतंत्रता के समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री कौन था ? – क्लीमेंट एटली
• मदास से प्रारम्भ हुए ‘ जस्टिस आन्दोलन ‘ ( 1915-16 ) का प्रमुख उद्देश्य क्या था ? – दलित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना .
गांधीजी के आन्दोलनों को ‘ राजनीतिक फिरौती ‘ किस वायसराय ने कहा था ? – लॉर्ड लिनलिथगो ने
1857 के ‘ बरेली विद्रोह ‘ का नेता कौन था ? खान बहादुर .
दिल्ली में मुगल सम्राट् की पत्नी ने अंग्रेजों को सूचना देकर विद्रोहियों की योजना असफल कर दी . उसका क्या नाम था ? . जीनत महल
. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के समय भारत का राज्य सचिव ( Secretary of State for India ) कौन था ? – लॉर्ड क्रास .
कौनसा वायसराय अपनी अण्डमान यात्रा के दौरान एक कैदी का शिकार हो गया था ? – लॉर्ड मेयो ‘
भारतीय प्रेस के मुक्तिदाता ‘ किनको कहा जाता है ? सर चार्ल्स मेटकॉफ तथा लॉर्ड मैकाले को .
कांग्रेस को ‘ जनता के अत्यन्त अल्पमत ‘ ( Microsco pic Minority ) का प्रतिनिधि कहा था ? लॉर्ड डफरिन ने
किस प्रसिद्ध मुस्लिम नेता को सरोजिनी नायडू ने ‘ हिन्दू – मुस्लिम एकता का राजदूत ‘ कहा था ? – मोहम्मद अली जिन्ना को .
केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकते समय भगतसिंह के साथ कौन था ? – बटुकेश्वर दत्त .
सन् 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बनारस अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की थी ? – गोपाल कृष्ण गोखले ने .
भारतीय इतिहास में 5 मार्च , 1931 एक महत्वपूर्ण तिथि है , क्योंकि इसी दिन गांधी – इरविन समझौता सम्पन्न हुआ .
1938 में कांग्रेस का अधिवेशन हरीपुरा में आयोजित हुआ . हरीपुरा कहाँ स्थित है ? – गुजरात में
. ‘ द इण्डियन स्ट्रगल ‘ ( The Indian Struggle ) नामक पुस्तक किसने लिखी ? सुभाषचन्द्र बोस ने
। प्राचीन भारतीय इतिहास अध्ययन के मुख्य रूप से तीन स्रोत हैं— ( 1 ) पुरातात्विक स्रोत ( Archaeological Sources ) ( 2 ) साहित्यिक स्रोत ( Litrary Sources ) एवं ( 3 ) विदेशियों के यात्रा – वृतांत ( Journey accounts of Foreigners ) ।
पुरातात्विक स्रोतों में अभिलेख , सिक्के , चित्र – कला , मूर्तियाँ स्मारक तथा भवन हैं । जीवाश्मों ( Fossils ) की प्राचीनता का निर्धारण रेडियो कार्बन ( C14 ) पद्धति से होता है ।
C ‘ की अर्द्ध – आयु ( Half – Life ) 5568 वर्ष होती है । निर्जीव वस्तुओं के अवशेषों की प्राचीनता यूरेनियम डेटिंग से ज्ञात की जाती है ।
सिक्कों का अध्ययन न्यूमिजमेटिक्स ( Numismetics ) कहलाता है शिलालेखों से सम्बन्धित अध्ययन एपिग्राफी ( Epigraphy ) के अन्तर्गत किया जाता है अभिलेखों के अध्ययन को पैलियोग्राफी ( Paleography ) कहा जाता है ।
भारत में ऐतिहासिक स्थलों की खुदाई का कार्य सर्वप्रथम जॉन मार्शल ने 1901 ई ० में आरंभ किया । भारत में प्राचीनतम अभिलेख जिन्हें पढ़ा गया है , मौर्य शासक अशोक के शासनकाल के मिलते हैं अशोक के अधिकांश अभिलेखों की लिपि ब्राह्मी है ।
ब्राह्मी लिपि को पढ़ने में सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप को 1837 ई . में सफलता मिली । अशोक का अरामाइक लिपि में अभिलेख लमगान ( अफगानिस्तान ) से प्राप्त हुआ है । अशोक के खरोष्ठी लिपि में अभिलेख मनसेहरा एवं शहबाजगढ़ी से प्राप्त हुए हैं ।
रामायण की रचना संस्कृत भाषा में की गई है । रामायण से इक्ष्वाकु कुल के सूर्यवंशीय शासक दशरथ तथा उनके वंश का ऐतिहासिक विवरण प्राप्त होता है ।
रामायण में मूल रूप से 24000 श्लोक थे जो कि दूसरी शताब्दी तक 12000 रह गये । रामायण से हमें बुद्ध ( तथागत ) , यूनानी , शक तथा सीथियनों के विषय में ऐतिहासिक विवरण प्राप्त होता है ।
महाभारत विश्व का सबसे विस्तृत महाकाव्य है , इसकी रचना सम्भवत : ई ० पू ० 400 से 400 ई ० के बीच महर्षि व्यास के द्वारा हुई ।
महाभारत में आरम्भिक रचना में 8800 श्लोक थे जो बाद में बढ़कर 2400 ) हो गये तथा वर्तमान में इसे । लाख श्लोकों तक बढ़ाया जा चुका है ।
महाभारत में कौरवों पर पांडवों की विजय का इतिहास होने के कारण महाभारत को जय संहिता तथा गुप्तकाल में शतसहस्त्री संहिता कहा जाता था । महाभारत में यूनानियों , रोमनों , शक , यवन , पहलव आदि के शासन सम्बन्धी जानकारी मिलती है ।
दक्षिण भारत के प्राचीन इतिहास की जानकारी का प्रमुख साधन संगम साहित्य है । संगम साहित्य का संभावित रचनाकाल 250 ई . से 100 ई ० तक माना जाता है ।
‘ संगम ‘ का अर्थ कवियों का एक संघ अथवा ‘ मण्डल ‘ है , जिन्हें राजकीय संरक्षण प्राप्त रहने के कारण विशाल साहित्य की रचना हुई है ।
संगम 9990 वर्ष चले तथा लगभग 8598 कवियों ने अपना योगदान . न में . दिया । . . तमाम संगम साहित्य 9 संग्रह – ग्रंथों में संकलित है तथा इनमें अब मात्र 2289 रचनाएँ बची हुई हैं । इरेयनार अगप्पोरूल की 8 वीं शताब्दी की रचनाओं से ज्ञात होता है कि 197 पांड्य शासकों ने उपर्युक्त संगमों को संरक्षण प्रदान किया ।
संगम साहित्य तमिल भाषा में रचित है , ‘ तमिल रामायण ‘ की रचना कंबन ने की ।
संगम ग्रन्थों के अलावा इस काल में कुछ अन्य तमिल ग्रंथों की रचना हुई – तोल्कापियम ( तमिल व्याकरण ) एवं तिरूकुरल ( दार्शनिक विचार और सूक्तियाँ ) महत्वपूर्ण हैं ।
प्रथम संगम का आयोजन मदुरा नामक स्थान पर अगस्त्य ऋषि की अध्यक्षता में हुआ ।
द्वितीय संगम का आयोजन कपाटपुरम में अगस्त्य एवं तोल्कापियर की अध्यक्षता में हुआ ।
तीसरे संगम का आयोजन उत्तरी मदुरा में नकीरर की अध्यक्षता में हुआ ।
बौद्ध साहित्य से भारतीय इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है , ये जातक , त्रिपिटक , पालि ग्रंथ एवं संस्कृत ग्रन्थों के रूप में प्राप्त होते हैं ।
जातक 550 कथाओं का एक संकलन है जिसे 12 भागों में संकलित किया गया है बुद्ध के पूर्व जन्मों का विवरण प्राप्त होता है ।
जातक कथाओं से मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी भी प्राप्त होती है । बौद्ध साहित्य में सर्वाधिक प्राचीन एवं महत्वपूर्ण ‘ त्रिपिटक ‘ है , इनकी रचना गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद हुई । त्रिपिटकों का संकलन प्राकृत भाषा में किया गया है ।
त्रिपिटकों की संख्या 3 है – सुत्तपिटक , अभिधम्म पिटक एवं विनयपिटक ।
त्रिपिटक को बौद्ध धर्म का बाइबिल कहा जाता है ।
चतुर्थ बौद्ध संगीति में त्रिपिटकों की टीका का संकलन महाविभाष सूत्र में किया गया ।
‘ वसुमित्र ‘ द्वारा रचित महाविभाष सूत्र बौद्ध धर्म का विश्वकोष कहा जाता है ।
बौद्ध साहित्य अंगुत्तर निकाय ई ० पू ० छठी शताब्दी में 16 महजन पदों की जानकारी देता है ।
बौद्ध साहित्य सुत्तपिटक से बुद्ध के धार्मिक विचारों एवं उपदेशों की जानकारी मिलती है ।
बौद्ध साहित्य विनय पिटक से मठ – निवासियों के अनुशासन संबंधी जानकारी मिलती है ।
बौद्ध साहित्य अभिधम्मपिटक से बौद्ध दर्शन की व्याख्या प्राप्त होती है ।
ऋग्वेद 10 मण्डल , 8 अष्टक , एवं 108 सूक्त ( 11 बालखिल्य सुक्त सहित ) 1028 ऋचाओं ( श्लोक ) में संग्रहित हैं ।
ऋग्वेद का लोकप्रिय मंत्र गायत्री मंत्र है ।
ऋग्वेद का दूसरा एवं 7 वाँ मण्डल प्राचीनतम एवं पहला तथा 10 वाँ मण्डल नवीनतम है । जिसे सबसे अन्त में जोड़ा गया है । ऋग्वेद के 9 वें मण्डल से आर्यों के देवता सोम तथा 10 वें मण्डल में शूद्र शब्द की जानकारी प्राप्त होती है ।
ऋग्वेद से आर्यों के पाँच जनों की जानकारी प्राप्त होती है ये पाँच जन थे – यदु , द्रहु , तुर्वस , द्रद्य् , पुरू । ऋग्वेद 7 वें मंडल से प्रसिद्ध दशराज युद्ध ( Battle of 10 kings ) के विषय में जानकारी मिलती है ।
ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रंथ – ऐतरेय एवं कौषीतिकी हैं । गद्यरूप में वेदों की व्याख्या ब्राह्मण ग्रन्थ कहलाती है ।
सामवेद को ‘ गीतों का संग्रह ‘ कहते हैं , साम का अर्थ ‘ गान ‘ होता है । सामवेद में कुल 1549 ऋचाएँ हैं इनमें 75 को छोड़कर सभी ऋग्वेद से लिये गये हैं ।
सामवेद का स्थान भारतीय संगीत के इतिहास में महत्वपूर्ण है , इसे भारतीय संगीत का जनक माना जाता है ।
सामवेद से हमें आर्यों के मत्वपूर्ण देवताओं सूर्य , इन्द्र एवं सोम के विषय में जानकारी प्राप्त होती है ।
यजुर्वेद में यज्ञ सम्बन्धी नियमों का उल्लेख पाया जाता है – यह कर्मकाण्ड प्रधान है ।
यजुर्वेद के दो भाग हैं – कृष्ण यजुर्वेद एवं शुक्ल यजुर्वेद । ण अथर्ववेद 20 मण्डल , 731 सुक्त , एवं 6000 मंत्रों में संकलित है ।
अथर्ववेद के दूसरे ‘ मंत्रद्रष्टा ( वाचक ) ‘ महर्षि अंगिरस थे । इस वेद से हमें ब्रह्मज्ञान , औषधि – प्रयोग , रोग – निवारण , जंत्र – तंत्र एवं टोना – टोटका जैसे विषय का ज्ञान होता है । अथर्ववेद में कर्मकांडों की आलोचना की गई है ।
आरण्यकों की रचना ब्राह्मण ग्रंथों के बाद हुई । आरण्यक का शाब्दिक अर्थ जंगल ( अरण्य ) होता है । इन ग्रन्थों का पठन – पाठन वानप्रस्थी , मुनि तथा वनवासियों द्वारा जंगल में किया जाता उपनिषदों में दार्शनिक प्रश्नों , ईश्वर , आत्मा , इहलोक तथा परलोक की समस्याओं पर विश्लेषण किया गया है ।
भारत का प्रसिद्ध आदर्श राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते है जो कि मुंडकोपनिषद् से लिया गया है ।
उपनिषदों की संख्या 108 है ।
उपनिषदों का रचनाकाल सम्भवत : 600 ई.पू. है , जो कि उत्तरवैदिक काल ( Later Vedic Period ) के आरम्भ का काल माना जाता है । उपनिषदों में वैदिक यज्ञों एवं आडंबरों के विरुद्ध प्रतिक्रिया व्यक्त की गई हैं । वेदांग ( Vedangas ) वेदांगों की रचना वैदिक काल के अन्त में वेदों को ठीक प्रकार से समझने के लिए की गई ।
. भारत में पहली बार हिन्द – यूनानियों ने लेख – युक्त ‘ स्वर्ण सिक्के ‘ जारी किए ।
जिन सिक्कों पर लेख नहीं होने सिर्फ चिन्ह होते हैं , उन्हें आहत सिक्के ( Punch – Marked coins ) कहा जाता है ।
भारत में शक , बैक्ट्रियन , कुषाण तथा इंडो – पार्थियन आदि राजवंशों के इतिहास की जानकारी के एकमात्र ग्रोत सिक्के हैं ।
शुद्धता के लिहाज से सर्वाधिक शुद्ध स्वर्ण सिक्कं कुषाणों द्वारा जारी किये गये । संख्या की दृष्टि से सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएँ गुप्त शासकों ने जारी किये ।
समुद्रगुप्त के सिक्कों पर अश्वमेध यज्ञ एवं उसको वीणा बजाते हुए तस्वीर उत्कीर्ण है । अन्तरजीखेरा से 800 ई ० पू ० में लोहे ( iron ) के प्रयोग का साक्ष्य प्राप्त हआ है ।
पुदुचेरौ के अरिकामेहु से प्राप्त रामन सिक्कों से प्राचीन काल दक्षिण भारत – रोम व्यापारिक एवं सांस्कृतिक संबंधों पर प्रकाश पड़ता है ।
• अंकोरवट ( कंबोडिया ) का विश्व का सबसे बड़ा विष्णु मन्दिर वैष्णव धर्म के भारत के बाहर प्रसार को रेखांकित करता है । भारत का सर्वाधिक प्राचीन धर्मग्रंथ वेद है ।
वेद का अर्थ पवित्र एवं आध्यात्मिक ज्ञान ( Knowledge Par Excellence ) होता है । महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को वेदों का संकलनकर्ता माना जाता है ।
वैदिक साहित्य के अन्तर्गत 4 वेद ( वाग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद , अथर्ववेद ) ब्राह्मण ग्रंथ , आरण्यक , उपनिषद् , वेदांग तथा उपवेद आते हैं ।
प्रत्येक वेद की ऋचाओं का उच्चारण करने वाले ऋषि को मंत्रद्रष्टा कहते होत ( ऋग्वेद ) , उदगात्र ( सामवेद ) , अध्वायु ( यजुर्वेद ) तथा अथर्वा ( अथर्ववेद ) चारों वेदों के मंत्रद्रष्टा थे ।
वैदिक साहित्य से आर्यों ( Aryans ) के राजनैतिक जीवन के संदर्भ में कुछ कम एवं सामाजिक , आर्थिक एवं धार्मिक जीवन की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है ।
वेदों में सर्वाधिक प्राचीन ऋग्वेद है तथा वेदों में सबसे नवीन वेद अथर्ववेद है ।
Ancient India ) . . . . . ग्रीक लिपि में उत्कीर्ण अशोक का अभिलेख शार – ए – कुन्हा ( कन्धार ) से प्राप्त हुआ है ।
अशोक का एक द्विलिपीय ( Biscriptual ) अभिलेख ग्रीका – अरामाइको में शार – ए – कुन्हा ( कंधार ) से प्राप्त हुआ है ।
1750 ई ० में सर्वप्रथम टीफेन्थलर ने दिल्ली में दिल्ली – मेरठ अशोक स्तंभ का पता लगाया । स्तंभ अभिलेख दिल्ली – टोपरा , प्रयाग , दिल्ली – मेरठ , रामपुरवा ( बिहार ) , लौरिया – अरेराज ( चम्पारण बिहार ) , लौरिया – नन्दनगढ़ ( चम्पारण , बिहार ) से प्राप्त हुए हैं ।
रामपुरवा ( चम्पारण , बिहार ) स्थित स्तंभ की खोज 1872 ई ० में कारलायल ने की । लघु स्तंभ अभिलेख सारनाथ में 1905 ई ० में ओटैल द्वारा खोजा गया । साँची , कौशांबी , रूमिन्देयी के अभिलेख 1896 ई ० में कीहरर ने खोजा ।
निग्लीवा ( 1895 ई ० में कोहरर ) तथा इलाहाबाद से रानी स्तंभ लेख प्राप्त हुए हैं ये अशोक की राजकीय घोषणाओं का उल्लेख करते हैं ।
तराई लेख रूम्मिनदेई एवं निग्लीवा में नेपाल की तराई में स्थित है । अशोक के तमाम स्थलों पर अभिलेखों में सिर्फ मास्की एवं गुजरा ( मध्य प्रदेश ) को छोड़कर शेष सभी स्थलों पर अशोक के नाम से स्थान पर देवानामपियसिन् उत्कीर्ण है । अशोक के 14 – शिलालेखों ( Rock Edicts ) में 7 वाँ शिलालेख ( Seventh Rock Edict ) सबसे लंबा है । अशोक के 13 वें शिलालेख ( Thirteenth Rock Edict ) से उसके द्वारा अपने शासन के 9 वें वर्ष में कलिंग का विवरण प्राप्त होता है ।
अशोक का रानी स्तंभ अभिलेख अथवा ‘ प्रयाग स्तंभ अभिलेख ‘ पूर्व में कौशांबी ( इलाहाबाद ) में स्थित था , बाद में ‘ अकबर ‘ ने उसे इलाहाबाद के किले में स्थापित करवाया ।
\अशोक का दिल्ली – टोपरा स्तंभ – लेख दिल्ली में सुल्तान ‘ फिरोज तुगलक ‘ ने स्थापित किया ।
अशोक के बाद के महत्वपूर्ण अभिलेख इस प्रकार हैं कलिंगराज खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख ।
सातवाहन शासक पुलवामी का नासिक गुहालेख ।
समुद्रगुप्त के दरबारी हरिषेण का प्रयाग स्तंभ लेख ।
मालवा नरेश यशोवर्मन का मंदसौर अभिलेख ।
संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण प्रथम अभिलेख रुद्रदामन || का जूनागढ़ अभिलेख है ।
एहियोल अभिलेख से चालुक्य नरेश पुल्केशिन- || के संबंध में एतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है ।
प्रतिहार नरेश ‘ भोज ‘ के विषय में ग्वालियर प्रशस्ति अभिलेख से ऐतिहासिक विवरण प्राप्त होता है ।
सम्राट हर्षवर्द्धन की प्रशासनिक एवं धार्मिक नीति पर बांसखेड़ा – मधुबन अभिलेख से पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । बंगाल के शासक विजयसेन का देवपाड़ा अभिलेख तत्कालीन इतिहास की जानकारी देता है ।
यवन राजदूत हेलियोडोरस का बेसनगर ( विदिशा ) से प्राप्त गरूड़ स्तंभ लेख द्वितीय शताब्दी ई ० पू ० में भारत में भागवत धर्म के विकसित होने का साक्ष्य प्रस्तुत करता है ।
प्रमुख संवत् 1 ( 1 ) शक संवत् – 78 ई ० से । ( ii ) विक्रम संवत् – 57 ई ० पू ० से । ( ii ) गुप्त संवत् – 319 ई ० से । ( iv ) हिजरी संवत् – 622 ई ० से । ( v ) इलाही संवत् – 1583 ई ० से ।
सिन्धु सभ्यता ( Indus Civilisation )
सिन्धु सभ्यता की खोज 1921 में दयाराम साहनी ने की ।
सिन्धु सभ्यता भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता थी ।
सिन्धु , सभ्यता का काल मेसोपोटामिया एवं मिस्र की सभ्यता के समकालीन थी ।
सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है , क्योंकि सिन्धु सभ्यता में सर्वप्रथम हड़प्पा नामक स्थल की खोज हुई ।
सन् 1922 ई ० में राखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की । सिन्धु सभ्यता का इतिहास आद्य ऐतिहासिक काल का इतिहास है ।
सिन्धु सभ्यता का विस्तार 12,99,600 वर्ग किमी . में उत्तर से दक्षिण की ओर त्रिभुजाकार आकृति में था । सिन्धु सभ्यता में मेडिटेरेनियन , अल्पाइन , मंगोलॉयड तथा प्रोटो – ऑस्ट्रोलॉयड प्रजाति के लोग निवास करते थे ।
अभी तक सिन्धु सभ्यता के 1000 से अधिक स्थल भारत के विभिन्न क्षेत्रों से खोजे जा चुके हैं ।
गुजरात में सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक स्थल खोजे गए हैं ।
लोथल से गोदीवाड़ा ( बंदरगाह ) , मकान बनाने का कारखाना एवं कपास के साक्ष्य मिले हैं ।
अल्लादीनोह सिन्धु सभ्यता का सबसे छोटा स्थल था ।
धौलावीरा सिन्धु सभ्यता का तकनीकी रूप से सर्वाधिक विकसित स्थल था ।
सिन्धु सभ्यता के काल निर्धारण का नवीनतम स्रोत रेडियोकार्बन विधि है ।
रेडियो कार्बन ( C ) विधि से प्राप्त जानकारी से इस सभ्यता का कालानुक्रम 2350-1750 ई ० पू ० तक माना गया है ।
मोहनजोदड़ो का अर्थ ‘ मुर्दो का टीला ‘ होता है ।
. . . सिन्धु घाटी सभ्यता के हड़प्पा नगर से एक ही आकार के छोटे – छोटे घरों की एक बस्ती मिली है , जो सम्भवतः तत्कालीन श्रमिकों का निवास स्थान कर रहा हो । उपर्युक्त बस्ती के आगे 16 भट्ठियाँ मिली हैं , जो सम्भवतः ताँबा गलाने का कारखाना है ।
सिन्धु घाटी सभ्यता की सड़कें एक – दूसरे को समकोण पर काटती थी और सड़कों का निर्माण अधिकांशतः कच्ची ईंटों से किया गया था । भवन का दरवाजा और खिड़कियाँ सड़क की ओर न खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलते थे ।
सड़कें तीन प्रकार की थी – मुख्य सड़क , सहायक सड़क और गली की सड़क । सिन्धु सभ्यता के लोगों का पुनर्जन्म पर विश्वास था ।
सिन्धु सभ्यता के लोगों के लिए पीपल का वृक्ष सर्वाधिक पूजनीय था । यहाँ के लोग शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों थे ।
सिन्धु सभ्यता के मोहनजोदड़ो से मातृदेवी के गर्भ से उगता हुआ वृक्ष वाला शील प्राप्त हुआ है ।
सिन्धु सभ्यता के लोग भूत – प्रेतों तथा जादू – टोने में विश्वास करते थे , क्योंकि कई स्थलों के उत्खनन से ज्ञात होता है कि सिन्धुवासी ताबीजों का प्रयोग करते थे । लोथल से फारस की मुहरें तथा कालीबंगा से ऊँट की हड्डियों के साक्ष्य मिले हैं ।
सिन्धु सभ्यता के स्थल राणा गुंडई के निम्नस्तरीय धरातल की खुदाई में घोड़े के दाँतों के अवशेष प्राप्त हुए हैं । भारतीय गैंडा का एकमात्र प्रमाण आमरी से प्राप्त हुआ है ।
हड़प्पा के पूर्वी टीले को नगर टीला एवं पश्चिमी टीले को दुर्ग टीला की संज्ञा दी जाती है ।
सिन्धु सभ्यता में मोहनजोदड़ो , गणवारी वाला , लोथल , कालीबंगन , हड़प्पा , धौलावीरा आदि बड़े नगर थे । सभ्यता के स्थल में प्रवेश करने वाला पहला चौराहा ऑक्सफोर्ड सर्कस कहलाता है ।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत् स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है , जिसके मध्य स्थित स्नानकुण्ड 11.88 मीटर लम्बा , 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है । जल – कुण्ड में उतरने के लिए 2.44 मीटर चौड़ी सीढ़ियाँ थी ।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्नागार सम्भवत :सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी . इमारत है ।
हड़प्पा से 6 अनाज – शालाएँ मिली हैं । दुर्ग के दक्षिण में सभा भवन स्थित था , ये भवन 27.43 मी . के वर्गाकार में था , जो 20 स्तंभों पर टिका था , सम्भवतः इसका उपयोग धार्मिक सभाओं के लिए होता था ।
सिन्धु लिपि के सबसे बड़े लेख में लगभग 17 चिन्ह हैं अभी हाल में इतिहासकार के ० एस ० आर ० राव ने इस लिपि को पढ़ने का दावा किया है ।
सिन्धु सभ्यता के पतन का प्रमुख कारण सम्भवतः बाढ़ था । पंजाब प्रान्त के मॉन्टगोमरी जिले में स्थित हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक कब्रिस्तान स्थित था , जिसे ‘ समाधि R – 37 ‘ कहा जाता है ।
मोहजजोदड़ो से विशाल स्नानागार के साक्ष्य मिले हैं । भारत में सबसे बड़ा सिन्धु सभ्यता का स्थल धौलावीरा तथा राखीगढ़ी था ।
मोहनजोदड़ो से हड़प्पा सभ्यता के मशहूर काँस्य नर्तकी की प्रतिमा मिली है , अत : यह कौस्ययुगीन सभ्यता थी । अल्लादीनोह सिन्धु सभ्यता का सबसे छोटा स्थल था ।
सिन्धु सभ्यता का समाज मातृप्रधान था । सिन्धु सभ्यता से प्राप्त अधिकांश मूर्तियाँ मातृदेवी की मिली है । बनवाली से खिलौना तथा हल की प्राप्ति हुई है 1
कालीबंगा से जोते हुए खेत एवं नक्काशीदार ईंटों के प्रमाण प्राप्त हुए हैं ।
सिन्धु सभ्यता की चित्राक्षर लिपि को लिखने की तकनीक को बुस्त्रोफेंडन कहा जाता है ।
रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं , जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है ।
सिन्धु सभ्यता के लोगों का मुख्य पेशा कृषि एवं पशुपालन था । वे गेहूँ , कपास , जौ , गेहूँ , राई , मटर एवं खजूर आदि की खेती करते थे ।
सिन्धु सभ्यता के लोग बैल , ऊँट , भैंस , भेंड , गधे , बकरी , सुअर , हाथी , कुत्ते एवं बिल्ली पालते थे । सिन्धु सभ्यता के लोग गाय तथा घोड़ा के महत्व से परिचित नहीं थे ।
हड़प्पा सभ्यता के लोग कुबड़ वाले साँढ़ की पूजा करते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग पशुपति एवं शिव की पूजा करते थे । सुरकोतदा से घोड़े की हड्डियों के अवशेष मिले हैं ।
मोहनजोदड़ो एवं आमरी नामक स्थल सिन्धु नदी के किनारे स्थित है ।
हड़प्पा पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में स्थित है ।
मोहनजोदडो पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित है । बहावलपुर ( राजस्थान ) सूखी नदी ‘ सरस्वती ‘ के किनारे स्थित है ।
सिन्धु सभ्यता के सबसे बाद ( 1974 ई ० ) खोजा गया स्थल बनवाली है ।
सिन्धु सभ्यता के लोगों का समाज चार भागों में विभक्त था – व्यापारी , विद्वान , श्रमिक तथा सैनिक ।
सिंधु सभ्यता में व्यापारी वर्ग के हाथ में सभ्यता के शासन – प्रशासन की जिम्मेवारी होने का अनुमान लगाया जाता है ।
सिन्धु घाटी सभ्यता में वस्तु – विनिमय प्रणाली प्रचलित थी ।
सिंधु सभ्यता में माप – तौल की इकाई सम्भवतः 16 के अनुपात में ( 16 , 32 , 64 , 128 , 256 … ) थी ।
सिन्धु क्षेत्र में मापने के लिए कई स्केल पाये गये हैं , इनमें एक दशमलव स्केल भी है । दशमलव स्केल की लम्बाई 13.2 ईंच है , इसका एक भाग 1.32 इंच का है ।
कालीबंगन का अर्थ होता है काले रंग की चूड़ियाँ , यहाँ से शल्य – क्रिया के साक्ष्य मिले हैं ।
सिंधु सभ्यता में अन्तिम संस्कार का सबसे प्रचलित तरीका शवाधान ( सम्पूर्ण रूप से शव को दफनाया जाना ) था । सिंधु सभ्यता में पर्दा – प्रथा एवं वेश्यावृत्ति सिन्धु सभ्यता में प्रचलित थी ।
सिन्धु सभ्यता के निवासी सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे तथा वृक्ष – पूजा करते थे ।
सिन्धु सभ्यता के लोग मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे ।
रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं जिनसे धान की खेती का प्रमाण मिलता है ।
चान्हुदड़ो से गुड़िया निर्माण हेतु एक कारखाने तथा लिपिस्टिक के अवशेष मिले हैं ।
धौलावीरा सिन्धु सभ्यता का तकनीकी रूप से सर्वाधिक विकसित स्थल था ।
पिग्गट महोदय ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानी ( Twin capital ) की संज्ञा दी थी ।
• सिन्धु निवासी मिट्टी के बर्तन निर्माण , मुहरों के निर्माण , मूर्ति निर्माण , वर्गाकार एवं आयताकार ताबीज का निर्माण तथा मटके के निर्माण आदि कुशल थे कपास उगाने के कारण समकालीन मिस्र सभ्यता के लोग सिन्धु क्षेत्र को शिंडन कहते थे ।
मेसोपोटामिया के लोग सिन्धु क्षेत्र को मेलूहा कहते थे ।
सिन्धु सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रिड पद्धति अपनाई ।
वैदिक सभ्यता ( Vedic Civilisation )
भारत में लगभग ई ० पू ० 1500 में इस सभ्यता की नींव , पड़ी । इसकी जानकारी वेदों से होने के कारण इसे ‘ वैदिक सभ्यता ‘ भी कहते हैं ।
‘ मैक्समूलर ‘ के सर्वमान्य मत के अनुसार आर्यों का मूल उत्पति स्थान मध्य एशिया में बैक्ट्रिया था । जेंद – अवेस्ता ( ईरानी धर्मग्रन्थ ) में भारतीय आर्यों के देवता इन्द्र , वरूण तथा मित्र का उल्लेख है । ‘ आर्य ‘ शब्द का अर्थ पवित्र वंश वाला होता है , संस्कृत भाषा बोलते थे ।
ऋग्वेद से आरम्भिक आर्यों के उत्तर – पश्चिम भारत में बसने का ज्ञान होता है । नदी सूक्त ( ऋग्वेद ) के अनुसार सिन्धु एवं उसकी 7 सहायक नदियों के इर्द – गिर्द ऋग्वैदिक सभ्यता विकसित हुई ।
नदी सूक्त सरस्वती एवं सिन्धु को सर्वाधिक पवित्र नदी के रूप में प्रतिष्ठित करता है ।
वर्तमान में ‘ सरस्वती ‘ नदी का कोई अस्तित्व नहीं है , यह राजस्थान के रेगिस्तान में विलीन हो चुकी है । वैदिक काल में सम्पूर्ण उत्तर भारत के क्षेत्र को आर्यावर्त कहा जाता था ।
बाद में आर्यों ने सदानीरा ( गंडक ) नदी का भी पता लगाया । प्रारम्भ में आर्य समुद्र से परिचित नहीं थे , तथा इसका अर्थ वे जल के विपुल भण्डार अथवा बड़ी नदियाँ समझते थे ।
ऋग्वैदिक आर्य हिमालय पर्वत से परिचित थे , इसकी एक चोटी मुंजावत पर सोम ( आधुनिक भांग ) नामक पौधा प्राप्त होता था । सोम पौधे से तैयार नशीले पेय का सेवन आर्यों द्वारा वाजपेय यज्ञों की समाप्ति के उपरान्त किया जाता था ।
ऋग्वेद में आर्यों की प्रमुख जनजातियों का उल्लेख पंचजन के रूप में किया गया है ।
दशराज युद्ध में आर्यों को ऋषि वाल्मिकि का तथा अनार्यों को ऋषि विश्वामित्र का समर्थन प्राप्त था । दशराज युद्ध में भरतवंशी राजा ‘ सुदास ‘ के नेतृत्व में आर्यों की विजय हुई । हमारे देश का नाम भारतवर्ष आर्यों के ‘ भारतवंशी ‘ राजा भरत के नाम पर पड़ा ।
वर्गीकरण व्यवसाय के आधार पर इस प्रकार किया गया था 1. पुरोहित ( ब्राह्मण ) , 2. राजन्य ( क्षत्रिय ) , 3. वैश्य ( कृषक , कारीगर , – व्यापारी ) तथा शूद ( दास तथा अनार्य ) ।
ऋग्वैदिक समाज में परिवार के मुखिया को कुलप्पा कहा जाता था । ऋग्वैदिक समाज पितृसत्तात्मक होते हुए भी उसमें ‘ महिलाओं ‘ की स्थिति अच्छी थी ।
समाज में एक – विवाह ( Monogamy ) की प्रथा थी तथा इस काल में सती प्रथा एवं पर्दा प्रथा का अस्तित्व नहीं था । 11-8 .
. ऋग्वैदिक काल में प्रयुक्त महत्त्वपूर्ण शब्द .
-उवेश – जुते हुए खेत ,
ऊर्दर – अनाज नापने वाला यंत्र ,
• करीष – गोबर की खाद ,
वृक – बैल ,
लांगल – हल सीता – हलरेखा , अवत – कूप ,
कीवाश – हल लगाने वाला ,
स्थिवि – अनाज रखने का कोठार ,
पर्जन्य – बादल ।
ऋग्वेद के 24 श्लोकों में शब्द कृषि का उल्लेख है । खेतों को जोतने के लिए हल का प्रयोग होता था जिसमे साधारणतया 6 . 8 या 12 बैलों का प्रयोग होता था । ऋग्वेद में खाद्यान्नों को सामूहिक रूप से यव अथवा धान्य कहा गया है ।
ऋग्वेद में चावल की कृषि के प्रमाण नहीं प्राप्त होते । बर्तन बनाना , बुनाई , बढ़ईगिरी , धातुकर्म एवं चर्मकारी जैसे कुछ अन्य व्यवसाय भी प्रचलन में थे ।
ऋग्वैदिक आर्यों को टिन , सीसा , चाँदी , ताँबा , काँसा तथा स्वर्ण की जानकारी थी ।
ऋग्वैदिक काल में स्वर्ण को हिरण्य , काँसे को अस्म तथा ताँबे को अयस कहा गया है ।
ऋग्वैदिक देवताओं में इन्द्र एवं अग्नि सबसे श्रेष्ठ माने जाते थे ।
ऋग्वेद में इन्द्र की प्रार्थना में सर्वाधिक 250 सूक्त दिये गये हैं तथा इन्हें पुरंदर ( दुर्गों को ध्वस्त करनेवाला ) कहा गया है ।
पृथ्वी के देवताओं में अग्नि को सर्वश्रेष्ठ माना गया है । ऋग्वेद में इससे सम्बन्धित 200 सूक्तों का समावेश किया गया है । जल के देवता ‘ वरुण ‘ का भी जत्याधक महत्व था , ईरानी ग्रन्थों में इन्हें अहुरमाजदा एवं यूनानी ग्रंथों में ओरनोज कहा गया है ।
ई ० पू ० 1000-600 का काल उत्तर वैदिक काल कहलाता है । इस काल में आर्यों का प्रसार पूरब में सदानीरा ( गंडक ) नदी एवं दक्षिण में विंध्य पर्वत तक हुआ । सदनीरा नदी के पूर्वी किनारे पर आर्यों का एक जत्था विदेह माधव के नेतृत्व में आकर बसा । कालीतर में सदानीरा नदी के क्षेत्र में विदेह राज्य की स्थापना हुई । तकनीकी विकास की दृष्टि से यही वह काल था जब उत्तर भारत में लौह युग आरम्भ हुआ ।
. . . स्त्रियों को वेदों का अध्ययन करने तथा अपने पति के साथ सार्वजनिक सभाओं तथा उत्सवों में भाग लेने का अधिकार था ।
ऋग्वे ऋग्वैदिक काल की कुछ स्त्रियाँ विश्ववरा , अपाला , घोष एवं लोपमुद्रा वैदिक मंत्रों की रचना करने के लिए जानी जाती हैं ।
आर्यों ने स्वयं को द्विज ( दो बार जन्में ) एक बार तब जब वे माता के पेट से उत्पन्न होते हैं तथा दूसरी बार तब जब उनका उपनयन संस्कार होता है )
इस काल में विधवा विवाह का प्रचलन तो था परन्तु बाल – विवाह का कोई अस्तित्व नहीं था ।
ऋग्वैदिक काल में ‘ दहेज प्रथा ‘ जैसी सामाजिक बुराई का प्रचलन था तथा स्त्रियाँ पैतृक संपत्ति की हकदार नहीं थी । आर्य भोजन के रूप में अन्न , फल , दूध एवं दूध से तैयार पदार्थ तथा ( ix ) भेंड़ , बकरी , घोड़े के मांस एवं मछलियाँ ग्रहण करते थे । सुरा , मधु एवं सोमरस ( सोम नामक पौधे से तैयार ) आदि आर्यों के मुख्य पेय पदार्थ थे । वास , अधिवास तथा उष्णीश ( पगड़ी ) आदि आर्यों के प्रमुख पहनावे थे , अंदर पहनने वाले कपड़ों को नीवि कहा जाता था ।
आर्यों के मनोरंजन के मुख्य साधन संगीत , रथ – दौड़ , दूत – क्रीड़ा एवं घुड़दौड़ आदि थे । ऋग्वेद में दास एवं दस्यु का उल्लेख किया गया है ।
ऋग्वैदिक समाज एक कबायली – समाज था , कई परिवारों को मिलाकर एक गाँव बनता था जिसका प्रमुख ग्रामणी होता था । कई ग्रामों को मिलाकर जन का निर्माण होता था ।
ऋग्वेद में ‘ जन ‘ का उल्लेख 275 बार किया गया है । एक जन के सभी व्यक्ति विश कहलाते थे तथा इसका प्रधान विशपति अथवा राजा कहलाता था ।
ऋग्वेद में विश् का उल्लेख 170 बार हुआ है । ऋग्वैदिक काल में राजा का चुनाव होता था , प्रजा को उसे हटाने की शक्ति भी थी । राजा युद्धों में सेना का नेतृत्व करता था तथा उपज का 1/6 भाग वह राज्यकर के रूप में प्राप्त करता था ।
ऋग्वेद के अनुसार तत्कालीन प्रशासन में राजा के पश्चात पुरोहित का पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण था । पुरोहित राजा का मित्र , पथ – प्रदर्शक , दार्शनिक एवं प्रधान सहायक होता था । पुरोहितों के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण पद सेनानी राजा द्वारा नियुक्त होता था । उपर्युक्त के अलावा ग्रामिणी , सूत , रथकार एवं कर्मकार के उल्लेख भी ऋग्वेद से प्राप्त होते हैं । ग्रामीणी , सूत , रथकार एवं कर्मकार को ऋग्वेद में सम्मिलित रूप से रलिन ( Ratnins ) कहा गया है ।
ऋग्वैदिक काल में निम्न पदाधिकारियों के उल्लेख मिलते हैं 1. क्षत्र ( प्रतिहारी ) , 2. भागदुधा ( कर – संग्राहक ) , 3. संग्रहीत ( कोषाध्यक्ष ) , 4. अक्षवाय ( पांसे के खेल मेंराजा का सहयोगी ) , 5. पालागल ( राजा का मित्र ) ।
ऋग्वेद में हमें कुछ गुप्तचरों एवं समाचार – वाहकों का उल्लेख मिलता है जो स्पश कहलाते थे । इस काल में उग्र अपराधियों को पकड़ने वाला पदाधिकारी तथा ब्रजापति ( राजकीय चारागाह का पदाधिकारी ) जैसे पदाधिकारियों के उल्लेख भी मिलते हैं ।
ऋग्वैदिक प्रशासन में विक्ष्य ( आर्यों की प्राचीन सभा ) , समिति ( आम जनों की सभा ) तथा सभा ( कुलीनों एवं श्रेष्ठ जनों की सभा ) जैसी लोकतांत्रिक संस्थाएं भी अस्तित्व में थीं । सीमित में महिलाओं को शामिल होने की अनुमति थी । सभा में महिलाओं की उपस्थिति की अनुमति नहीं थी , यह संभवत : राष्ट्र न्यायालय का कार्य करती थी ।
शत पथ ब्राह्मण में ‘ सभा एवं समिति ‘ को प्रजापति ( ब्रह्ममा ) की । जुड़वाँ पुत्रियाँ ( Twin daughters of prayapati ) कहा गया पशुपालन एवं कृषि ऋग्वैदिक आर्यों के प्रमुख पेशे थे , सीमित व्यापार के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं ।
. . . . . . हस्तिनापुर , अतरंजीखेरा , आलमगीरपुर तथा बटेसर आदि से 800 ई ० पू ० से 400 ई ० पू ० तक लोहे के व्यापक प्रयोग के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं ।
उत्तर वैदिक साहित्य में लोहे ( Iron ) के लिए श्याम अयस् अथवा कृष्ण अयस् जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है । इस काल में मत्स्य , कुरु , पंचाल , काशी , गंधार , कैकेय , हैहेय , विदेह , अंग , मद एवं कोशल तथा मगध जैसे शक्तिशाली राज्यों का उदय हुआ । इस काल में हलों को खींचने के लिए 24 बैलों के प्रयोग का साक्ष्य प्राप्त होता है , कृषि कार्य में खाद का प्रयोग आरम्भ हुआ । हल को सिरा एवं हलरेखा को सीता कहा जाता था ।
उत्तर वैदिक काल में चावल एवं गेहूँ ( शतपथ ब्राह्मण के अनुसार ) प्रमुख अनाज थे ।
उत्तर वैदिक आर्य ‘ समुद्र ‘ से परिचित थे , ऐसा ऐतरेय ब्राह्मण में वर्णित अनंत सागर शब्द से ज्ञात होता है । इस काल में व्यापार उन्नति पर था , श्रेष्ठी एवं गण जैसे व्यावसायिक शब्द इस बात को सिद्ध करते हैं ।
उत्तर वैदिक काल में सूदखोरों को बेकनॉट कहा जाता था ।
उत्तर वैदिक काल में स्वर्ण का सिक्का शतमान एवं ताँबे के सिक्के कृष्णात एवं पाद प्रचलन में आया ।
उत्तर वैदिक काल में वाराणसी , हस्तिनापुर तथा इन्द्रप्रस्थ जैसे कुछ नगरों का विकास हुआ । बालि ( एक उपहार ) नामक कर ऋग्वैदिक काल में लोग स्वेच्छा से अदा करते थे उसे इस काल में अनिवार्य कर दिया गया ।
उत्तर – वैदिक काल में ‘ कर ‘ सम्भवतः कुल उपज का 1 / 6 वाँ हिस्सा लिया जाता था ।
ऋग्वेद , गोमिल गृह्यसूत्र , तथा परस्पर गृह्यसूत्र आदि ‘ कृषि सम्बन्धित देवी ‘ के लिए सीता शब्द का उल्लेख करते हैं । इस काल में बड़े पैमाने पर ‘ चित्रित धूसर – मृदभांट ‘ एवं बड़े पैमाने पर लोहे के औजार प्राप्त हुए हैं । अतः इस काल को चित्रित धूसर मृदभांड – लौहकाल ( PGW iron Phase ) भी कहा जाता है ।
उत्तर – वैदिक काल में ‘ पक्की ईंटों के प्रयोग ‘ का पहला प्रमाण कौशांबी नगर से मिलता है ।
उत्तर – वैदिक युग राजतन्त्र ( Monarchy ) के सशक्तिकरण का युग था राजाओं द्वारा इस काल में महाराज , अधिराज , सम्राट एवं सार्वभौम की उपाधियाँ धारण की गई ।
ऐतरेय ब्राह्मण में विभिन्न दिशाओं के राजाओं के लिए निम्न शब्दों का प्रयोग किया गया है ? . सम्राट – पूर्वी देश का शासक । . भोज – दक्षिणी देश का शासक । . स्वराट – पश्चिमी देश का शासक । . राजन – मध्य देश का शासक । विराट – उत्तरी देश का शासक । एकराट – चारों दिशाओं का शासक
इस युग में जिन प्रतापी राजाओं के उल्लेख मिलते हैं , उनमें जन्मेजय , प्रतिपीय , बहलीक तथा परीक्षित प्रमुख थे ।
राजा का पद अब वंशानुगत हो गया ।
इस काल का ‘ प्रशासनिक ढाँचा ‘ निम्नवत था 1. suत – रथ हाँकने वाला , 6. पालागल – राजा का मित्र , 2 ब्रजापति – चारागाह का अधिकारी , 7. पुरूप – दुर्गपाल , 3. भागदुधा – कर समाहर्ता , 8. जीवग्राह्य – पुलिस अधिकारी , 4. स्थापति – मुख्य न्यायाधीश , 9. सेनानी – सेनापति , 10. अक्षवाय – पाँसे के खेल में राजा का सहयोगी ।
अभी तक राजकीय न्यायालय का कार्य सभा ही कर रही थी । इस काल में समाज स्पष्ट रूप से चार जातियों ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्र में विभक्त था ।
जाति का निर्धारण पैत्रिक आधार पर किया जाने लगा । .1-10 . . . . 5. ग्रामणी – ग्राम का प्रमुख ,
उत्तर – वैदिक काल में लोहार , बढ़ई , व्यापारी , मलाह , चर्मकार एवं रथकार जैसी उपजातियों का उल्लेख भी मिलता है । इस काल में छुआछूत ( Untouchability ) की बुराई के आविर्भाव का प्रमाण हमें गौतम सूत्र से मिलता है । इस काल में महिलाओं की स्थित दयनीय हो गई तथा इन्हें लोकप्रिय सभाओं में भाग लेने तथा ‘ उपनयन संस्कार ‘ से वर्जित कर दिया गया ।
ऋग्वैदिक काल में महिलाओं का भी पुरुषों के समान उपनयन संस्कार होता था ।
वेश्यावृत्ति जैसी सामाजिक बुराई का अभ्युदय भी उत्तर – वैदिक काल में हुआ । हालांकि स्त्री – शिक्षा इस काल में भी पूर्व की भांति प्रचलन में रही , गार्गी , न मैत्रेयी एवं वाचनवी जैसी विदुषियों का उल्लेख मिलता है ।
ऋग्वेद में 8 प्रकार के विवाहों का उल्लेख प्राप्त होता है
उत्तर वैदिक काल में गोत्र परम्परा का अभ्युदय हुआ तथा इसी काल में गोत्र के बाहर विवाह करने की परम्परा विकसित हुई ।
उत्तर – वैदिक काल में प्राचीन भारतीय जीवन के चार महान पुरूषार्थों ध , अर्थ , काम एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए चार आश्रमों ( ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ तथा सन्यास ) को आधार बनाया गया ।
उत्तर वैदिक काल में 7 प्रकार के सोमयज्ञों का प्रचलन था – अग्निष्टोम , अत्यग्निष्टो , उक्थ्य , षोडशिन् , वाजपेय् , अतिरात्र और अप्तोर्याम ।
वाजपेय यज्ञों में ‘ रथ – दौड़ ‘ प्रतियोगिता होती थी जिसमें आमतौर पर ‘ राजा का रथ ‘ जीतता अथवा जितवाया जाता था ।
वाजपेय यज्ञों के अवसर पर सोम पौधों की पत्तियों को पीस कर तैयार किये गये नशीले पेय वाजपेय का सेवन किया जाता था ।
उत्तर – वैदिक काल में प्रचलित 40 संस्कारों की सूची परवर्ती वैदिक न साहित्य से प्राप्त होती है ।
उत्तर वैदिक काल में यज्ञों की अवधि , संख्या एवं जटिलता में वृद्धि हुई । इस काल में इंद्र , अग्नि एवं वरूण का स्थान प्रजापति ( ब्रह्मा ) , विष्णु एवं शिव ने ले लिया ।
उत्तर वैदिक काल में पशुओं के देवता पूषण को शूद्रों के देवता का स्थान प्राप्त हुआ ।
उत्तर वैदिक काल में ही भारतीय षड्दर्शन ( Six schools of Indian 7 Philoshophy ) का विकास हुआ – सांख्य , योग , न्याय , वैशेषिक , मीमांसा तथा वेदांत ।
सर्वाधिक प्राचीन सांख्य दर्शन है ।
उपनिषदों , ब्रह्मसूत्र , एवं भगवद्गीता इत्यादि पर ‘ आदि कवि ‘ शंकराचार्य के भाष्य महत्वपूर्ण है । शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित दर्शन अद्वैत वेदांत महत्वपूर्ण है । सांख्य दर्शन का प्रवर्तन महर्षि कपिल ने किया , यह अनीश्वरवादी दर्शन है ।
वैशेषिक दर्शन वेद ( Vedas ) की प्रमाणिकता को स्वीकार करता है , इसके प्रणेता कणाद मुनि थे । वैशेषिक दर्शन परमाणु ( Atom ) के अस्तित्व को मानता है ।
न्याय दर्शन का ज्ञान गौतम ऋषि द्वारा प्रतिपादित न्यायसूत्र से प्राप्त होता है ।
योग दर्शन का प्रतिपादन पतंजलि ने किया , यह दर्शन विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय है । योग दर्शन ‘ मोक्ष ‘ के लिए योगाभ्यास पर बल देता है तथ ‘ ईश्वर ‘ के अस्तित्व को । मीमांसा एक आस्तिक दर्शन है , यह पूर्णतः वेदों पर आधारित है ।
मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी थे , यह दर्शन वैदिक कर्मकांडों की पैरवी करता है ।
वेदांत दर्शन का आधार उपनिषद् है इसका विवेचन बदरायन रचित ब्रह्मसूत्र से प्राप्त होता है ।
वेदांत दर्शन को ‘ उत्तर मीमांसा ‘ अथवा ‘ शारीरिक मीमांसा ‘ भी कहते हैं ।
• ई ० पू ० छठी शताब्दी में भारत में 62 नए धार्मिक संप्रदायों का उदय हुआ । उपरोक्त में जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म का विशेष महत्व है । 1-10 . 7
जैन परम्परा में धर्मगुरुओं को तीर्थकर कहा जाता है , इनकी संख्या 24 ऋषभदेव इस परम्परा के पहले तीर्थकर हुए ।
ऋषभदेव का उल्लेख ऋग्वेद में भी है ।
ऋषभदेव , पार्श्वनाथ ( 23 वें तीर्थकर ) तथा वर्द्धमान महावीर ( 24 वें तीर्थंकर ) को छोड़कर शेष सभी तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता संदेह के घेरे में है ।
सांढ़ ऋषभ देव के शंख पार्श्व नाथ के तथा शेर वर्द्धमान महावीर के प्रतीक चिह्न थे ।
जैनों के 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म ई ० पू ० 850 ई ० में वाराणसी में हुआ था ।
पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन ‘ काशी ‘ के इक्ष्वाकु वंश के राजा थे । वे 30 वर्षों की आयु में वैराग्य उत्पन्न होने के कारण संन्यासी हो गये । 83 दिनों तक सम्मेत पर्वत ( पारसनाथ पहाड़ी , झारखण्ड ) पर कठिन तप करने के पश्चात् 84 वें दिन उन्हें ‘ कैवल्य ( ज्ञान ) ‘ की प्राप्ति हुई ।
जैन अनुश्रुतियों के अनुसार पार्श्वनाथ ने 70 वर्ष तक धर्मप्रचार किया ।
पार्श्वनाथ के अनुयायियों को निर्गंथ कहा जाता था ।
. पार्श्वनाथ के काल में ‘ निग्रंथ संप्रदाय ‘ चार गणों ( संघों ) में बँटा हुआ था , प्रत्येक गण का प्रमुख एक गणधर होता था ।
पार्श्वनाथ ने सत्य ( सदा सच बोलना ) , अहिन्सा ( किसी प्रकार की हिन्सा न करना ) , अस्तेय ( चोरी न करना ) तथा अपरिग्रह ( धन संचय ) न करने . का उपदेश दिया ।
भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्वनाथ का निधन सम्मेत पर्वत ( पारसनाथ , झारखंड ) पर हुआ था ।
पारसनाथ पहाड़ी आज भी जैनियों का एक पवित्र स्थल है ।
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वें ‘ एवं अन्तिम तीर्थकर थे ।
ई ० पू ० छठी शताब्दी में उत्तर बिहार में प्रसिद्ध वज्जि संघ था , जिसकी राजधानी वैशाली थी ।
‘ वज्जि संघ ‘ में 8 – गणराज्य सम्मिलत थे , जिसमें एक राज्य कुण्डग्राम था ।
” कुण्डग्राम ‘ में उक्त काल में ज्ञातृक क्षत्रियों का राज्य था , जिसके प्रमुख राजा सिद्धार्थ थे ।
राजा ‘ सिद्धार्थ ‘ का विवाह लिच्छवि गणराज्य के प्रमुख चेटक की बहन त्रिशला से हुआ ।
सिद्धार्थ एवं त्रिशला के संगम से ‘ वर्द्धमान महावीर ‘ का जन्म हुआ ।
महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था , उनका जन्म 540 ई ० पू ० में हुआ । बड़े होने पर यशोदा से महावीर का विवाह हुआ । ‘ यशोदा ‘ से अन्नोज्जा प्रियदर्शिनी का जन्म हुआ ।
वर्द्धमान ने 30 वर्ष की उम्र में अपने भाई राजा नंदिवर्द्धन से आज्ञा लेकर गृह – त्याग दिया ।
प्रसिद्ध जैन – ग्रन्थों कल्पसूत्र एवं अचरांगसूत्र से ज्ञात होता है , कि वर्द्धमान महावीर ने 12 वर्षों तक ऋजुपालिका नदी के तट पर जाग्राम के समीप साल वृक्ष के नीचे कठोर तपस्या की । 12 वर्षों के कठोर तप के पश्चात् 42 वर्ष की उम्र में महावीर को कैवल्य +( सर्वोच्च ज्ञान ) की प्राप्ति हुआ ।
‘ कैवल्य ‘ की प्राप्ति कर लेने के कारण उन्हें केवलिन कहा गया । अपनी समस्त इंद्रियों को जीत लेने के कारण उन्हें जिन कहा गया ।
तप – काल में अपरिमित पराक्रम दिखाने के कारण उन्हें महावीर कहा गया । महावीर को ‘ जिन ‘ की उपाधि मिलने के बाद ‘ निग्रंथ सम्प्रदाय ‘ जैन संप्रदाय ‘ एवं उनका धर्म जैन धर्म कहलाया ।
468 ई ० पू ० में 72 वर्ष की अवस्था में ‘ महावीर ‘ की मृत्यु पावा ( पावापुरी ) के मल्ल राजा सृस्तिपाल के राजप्रासाद में हुआ ।
महावीर ने अपने उपदेश प्राकृत ( अर्द्धमागधी ) भाषा में दिये ।
महावीर के सबसे पहले शिष्य उनके दामाद जमाली बने । महावीर की प्रथम महिला शिष्य राजा दधिवाहन की पुत्री चम्पा थी ।
जैन धर्म के अनुयायी कुछ प्रमुख शासक थे – अजातशत्रू ( आरंभ में ) , उदयन , चंद्रगुप्त मौर्य , कलिंगराज खारवेल , अमोघवर्ष ( राष्ट्रकूट शासक ) , चंदेल शासक । . .
जैन संघ की स्थापना महावीर के पहले ही हो चुकी थी ।
महावीर का शिष्य आर्य सुधरमन उनकी मृत्यु के पश्चात् जैन संघ का प्रमुख बना । जैन धर्म में निर्वाण की प्राप्ति के लिए त्रिरत्न का पालन आवश्यक माना गया है ।
जैन धर्म के त्रिरत्न हैं – सम्यक दर्शन ( सत्य में विश्वास ) , सम्यक ज्ञान ( शंकविहीन वास्तविक ज्ञान ) तथा सम्यक आचरण ( सुख – दुख के प्रति समभाव ) ।
त्रिरल के अनुशीलन में निम्न पंचमहाव्रत का पालन आवश्यक माना गया . 1. अहिन्सा ( Non – violence ) – मन , वचन तथा कर्म से किसी के प्रति असंयत व्यवहार नहीं करना । 2. सत्य वचन ( Truth ) – असत्य बोलने से परहेज करना । 3. अस्तेय ( Non – stealing ) – चोरी नहीं करनी चाहिए । 4. ब्रह्मचर्य ( Brahamcharya ) –
किसी नारी से वार्तालाप , उसे देखना तथा उसके संसर्ग का ध्यान करने की भी मनाही है । 5. अपरिग्रह ( Non – attachment ) – भिक्षुओं के लिए किसी भी प्रकार से संग्रह करने की प्रवृत्ति वर्जित है । उपर्युक्त पंचमहाव्रत में अहिन्सा , सत्य वचन , अस्तेय एवं अपरिग्रह पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित किये गये थे । पंचमहाव्रत में ब्रह्मचर्य व्रत महावीर स्वामी द्वारा जोड़ा गया । ‘ प्रथम जैन संगीति ‘ का आयोजन ई ० पू ० 322-298 के बीच पाटलिपुत्र में हुआ ।
प्रथम जैन संगीति की अध्यक्षता स्थूलभद्र अथवा स्थलबाहु ने की । प्रथम जैन संगीति को मौर्य सम्राट ‘ चंद्रगुप्त मौर्य ‘ ने संरक्षण प्रदान किया ।
प्रथम जैन संगीति में जैन साहित्य के 12 अंगों का प्रणयन किया गया ।
द्वितीय जैन संगीति का आयोजन 512 ई ० में वल्लभी ( गुजरात ) में हुआ ।
द्वितीय जैन संगीति की अध्यक्षता देवर्धिक्षमाश्रमण द्वारा की गई ।
‘ महावीर स्वामी ‘ की मृत्यु के 200 वर्षों के बाद ‘ मगध ‘ में एक भीषण अकाल पड़ा ।
अकाल की विभीषिका से बचने के लिए ‘ मौर्य सम्राट ‘ चंद्रगुप्त एवं भद्रबाहु अपने अनुयायियों के साथ दक्षिण भारत के कर्नाटक चले गये ।
मगध में रह गये जैनियों की जिम्मेदारी स्थूलभद्र को सौंपी गई । भ्रदबाहु के अनुयायी जब दक्षिण से लौटे तो जैन संप्रदाय दो खेमों में बँट गया भद्रबाहु के खेमे ने महावीर की शिक्षा के अनुसार ‘ पूर्ण नग्नता ‘ को स्वीकार किया ।
स्थलबाहु के खेमे ने पार्श्वनाथ की शिक्षा के अनुसार ‘ श्वेत वस्त्र ‘ धारण करने को समर्थन दिया । उपरोक्त कारण से स्थलबाहु के समर्थक श्वेतांबर एवं भद्रबाहु के समर्थक दिगंबर कहलाये ।
जैन धर्म में विभाजन प्रथम जैन संगीति ( First Jaina Council ) में हुआ । जैन धर्म के आध्यात्मिक विचार सांख्य दर्शन से प्रेरित हैं ।
मौर्य काल के पश्चात् मथुरा जैन धर्म का एक प्रसिद्ध केंद्र बना ।
बौद्ध धर्म में दीक्षित होने वाली प्रथम महिला गौतम बुद्ध की विमाता प्रजापति गौतमी थी । 80 वर्ष की आयु में 483 ई ० पू ० में मल्ल राज्य की राजधानी कुशीनगर ( देवरिया जिला ) में महात्मा बुद्ध का निधन हो गया । बौद्ध परम्पराओं में महात्मा बुद्ध के निधन को महापरिनिर्वाण ( Buddha leaving the world ) कहा गया है । बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी है तथा इसके अनुसार आत्मा ( Soul ) का कोई अस्तित्व नहीं है । बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं , बुद्ध , धम्म एवं संघ । गौतम बुद्ध ने संघ जैसी व्यवस्था को संस्थागत स्वरूप प्रदान किया । आधुनिक युग में लाखों बौद्ध निम्न वाक्य कहकर त्रिरल में अपनी आस्था व्यक्त करते हैं बुद्धं शरणं गच्छामि , धम्मं शरणं गच्छामि , संघं शरणं गच्छामि ……… संघ की सभा में पठित प्रस्ताव को ‘ अनसावन ‘ कहा जाता था । किसी व्यक्ति के संघ में प्रवेश करने की प्रक्रिया उपसंपदा कहलाती थी । बौद्ध संघ में प्रवेश की न्यूनतम उम्र – सीमा 15 वर्ष थी । अपने प्रिय शिष्य आनन्द के आग्रह पर बुद्ध ने महिलाओं को भी संघ में प्रवेश की अनुमति दी । ‘ वैशाली की नगरवधू ‘ के नाम से विख्यात आम्रपाली बौद्ध संघ की सदस्य बनने वाली पहली महिला थी । संघ में शामिल होने वाले बौद्ध धर्मावलम्बी भिक्षुक कहलाते थे । गृहस्थ जीवन बिताने वाले बौद्ध धर्मावलम्बी उपासक कहलाते थे । बौद्ध धर्म के विषय में ज्ञान पालि भाषा में रचित त्रिपिटक ( Tripitak ) से होता है । बौद्ध धर्म का मूल आधार इसके चार आर्य सत्य हैं 1. सर्वम् दुःखम् – इसके अनुसार संसार दु : खमय है । यह तथ्य उपनिषद् से लिया गया है । 2. दुःख समुद्दय – तृष्णा ( Desire ) दुखों का कारण है । 3. दुःख निरोध दुख का निवारण तृष्णा को त्याग कर किया जा सकता है । 4. दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा – दुख का निरोध आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करने से सम्भव है ।
अष्टांगिक मार्ग ( Astangik Marg ) 1. सम्यक् दृष्टि — बौद्ध धर्म के चार आर्य – सत्यों के ज्ञान से वाकिफ होना । 2. सम्यक् संकल्प – तृष्णा तथा हिन्सा रहित संकल्प करना । 3. सम्यक् वाणी – सदा सत्य एवं मृदु वाणी का प्रयोग करना जो कि ध मसम्मत हो । 4. सम्यक कर्म – सम्यक अथवा अच्छे कर्मों में संलग्न रहना । | 5. सम्यक् आजीव विशुद्ध रूप से सदाचार का पालन करते हुए जीवन व्यतीत करना । 6. सम्यक् व्यायाम – विवेकपूर्ण प्रयत्न करना । 7. सम्यक् स्मृति – अपने कर्मों के प्रति विवेक तथा सावधानी को निरन्तर स्मरण रखना । ( 8. सम्यक् समाधि – चित्त की समुचित एकाग्रता ।
अष्टांगिक मार्ग के अनुशीलन से व्यक्ति निर्वाण को प्राप्त कर सकता है । बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग के अन्तर्गत अत्यधिक सुखपूर्ण जीवन तथा अत्यन्त कठोर जीवन के बीच का मध्यम मार्ग अपनाने की वकालत की , इसे बौद्ध परम्पराओं में मध्यमा प्रतिपदा कहा गया । बुद्ध ने इसके लिए 10 शीलों का प्रतिपादन किया , उनके अनुसार इसका अनुशीलन ही नैतिक जीवन का आधार है 1. सत्य , 2. अहिन्सा , 3. अस्तेय ( चोरी न करना ) , 4. व्यभिचार न करना , 5. मद्य सेवन न करना , 6. असमय भोजन न करना , 7. सुखप्रद बिस्तर पर न सोना , 8. धन – संचय न करना , 9. अपरिग्रह ( सांसारिक बंधनों का मोह न करना ) , 10. स्त्री मोह का त्याग करना ।
बौद्ध संगीतियाँ ( Buddhist Councils ) 1.प्रथम संगीति ( First Council ) प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन 487 ई ० पू ० में सप्तपर्णि गुफा ( राजगृह ) में हुआ ।
. इस संगीति को मगध के सम्राट अजातशत्रु का संरक्षण प्राप्त हुआ ।
प्रथम बौद्ध संगीति की अध्यक्षता महाकस्सप ने की । इस संगीति में बुद्ध की शिक्षाओं को ग्रन्थ का स्वरूप प्रदान करते हुए इन्हें . विनय पिटक एवं अभिधम्मपिटक के रूप में संकलित किया गया । बुद्ध के प्रिय शिष्यों उपालि एवं आनन्द में क्रमश : विनयपिटक ‘ एवं ‘ ध म्मपिटक ‘ का संपादन किया । 2. द्वितीय संगीति ( Second Council )
द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन 387 ई ० पू ० में वैशाली में हुआ । इस बौद्ध संगीति की अध्यक्षता सबाकमी ने किया । इस संगीति को ‘ मगध ‘ के शिशुनाग वंशीय शासक कालाशोक का संरक्षण मिला । द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन बुद्ध की मृत्यु के 100 वर्षों के पश्चात् 3. तृतीय बौद्ध संगीति ( Third Council ) तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन 251 ई ० पू ० में पाटलिपुत्र में हुआ । तृतीय बौद्ध संगीति की अध्यक्षता मोगालिपुत्त तिस्सा ने किया । तृतीय बौद्ध संगीति को मौर्य सम्राट अशोक ने संरक्षण प्रदान किया ।
तृतीय बौद्ध संगीति में एक नवीन बौद्ध ग्रन्थ ‘ अभिधम्म पिटक ‘ का संकलन किया गया ।
4. चतुर्थ बौद्ध संगीति ( Fourth Council ) चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन प्रथम शताब्दी ई ० में कुण्डलवन ( कश्मीर ) में हुआ । चतुर्थ बौद्ध संगीति के अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष अश्वघोष थे ।
चतुर्थ बौद्ध संगीति को कुषाण सम्राट कनिष्क का संरक्षण प्राप्त हुआ । इस संगीति में बौद्ध ग्रन्थ ‘ त्रिपिटक ‘ पर महाभाष्यों की रचना हुई ।
वैशाली के बौद्धों ने 387 ई ० पू ० में विनयपिटक से अलग कुछ सिद्धान्तों को अपना लिया ।
चतुर्थ बौद्ध संगीति में बौद्ध संप्रदाय स्पष्ट रूप से दो संप्रदायों हीनयान ( Lesser vehichle ) एवं महायान ( Greater vehicle ) में विभाजित हो कर गया । परिवर्तन – विरोधी संप्रदाय हीनयान तथा परिवर्तन समर्थक महायान कहलता ।
महायान संप्रदाय बुद्ध को देवता मानकर उनकी मूर्ति – पूजा के समर्थक थे । हीनयान बुद्ध की मूर्ति – पूजा के विरोधी थे ।
चीन , तिब्बत , कोरिया , मंगोलिया तथा जापान में वर्तमान में महायान संप्रदाय के अनुयायी फैले हुए हैं । श्रीलंका , जावा एवं म्यांमार में ‘ हीनयान ‘ संप्रदाय के लोग फैले हुए कालान्तर में हीनयान संप्रदाय भी वैभाषिक एवं सौत्रान्तिक में बँट गया । ‘
महायान ‘ संप्रदाय भी बाद में शून्यवाद ( माध्यमिक ) एवं विज्ञानवाद ( योगचार ) में विभक्त हो गया । Lon ” शून्यवाद ‘ का प्रतिपादक नागार्जुन था ,
‘ विज्ञानवाद ‘ का प्रवर्तक मैतन्य था ।
7 वीं शताब्दी में तंत्र – मंत्र से युक्त बौद्ध संप्रदाय वज्रयान का उदय हुआ । 7 वीं शताब्दी में बिहार के भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय ‘ वज्रयान संप्रदाय ‘ का प्रमुख केंद्र था । वैदिक युग में स्थापित ब्राह्मण धर्म का गुप्त काल में पर्याप्त विकास हुआ । आधुनिक काल में भारत में इसी धर्म के सर्वाधिक अनुयायी हैं । ।
भागवत् धर्म का उदय ई ० पू ० , छठी शताब्दी में हुआ । इस धर्म का आरम्भ महाकाव्य महाभारत के नारायण उपस्थान प्रसंग से होता है ।
इस धर्म के आरम्भिक सिद्धान्त भगवतगीता में प्राप्त होते हैं । महाकाव्य महाभारत इस धर्म को एक दिव्य धर्म के रूप में प्रतिष्ठापित करता है तथा विष्णु का उल्लेख भागवत् के रूप में करता है ।
भागवत धर्म विष्णु के तीन अवतारों पुरुषावतार , गुणावतार , लीलावतार का उल्लेख करता है ।
भागवत् संप्रदाय का प्रथम ज्ञात यूनानी अनुयायी हेलियोडोरस था । हेलियोडोरस ने विदिशा में गरुड़ध्वज की स्थापना की । विशिष्टाद्वैत दार्शनिक संप्रदाय भागवत् धर्म की मुख्य शाखा है ।
‘ विशिष्टाद्वैत ‘ संप्रदाय के संस्थापक रामानुज थे । ‘ भागवत धर्म ‘ के गर्भ से छठी शताब्दी ई ० पू ० में वैष्णव धर्म का उदय हुआ । मथुरा के कृष्णा ने वैष्णव धर्म की स्थापना की । ‘ कृष्ण ‘ के पिता वसुदेव यादव वंश के वृष्णि या सतवत् शाखा के प्रमुख थे ।
यात्रा वृत्तांत इंडिका ( मेगास्थनीज ) से ज्ञात होता है कि मथुरा के लोग हेराक्लीज ( कृष्ण का यूनानी नाम ) का विशेष आदर करते थे । ब्राह्मण ग्रन्थों में वर्णित ‘ विष्णु ‘ के 39 अवतारों में से वैष्णव धर्म 10 अवतारों को मान्यता देता है ।
वैष्णव धर्म में स्वीकृत ‘ विष्णु ‘ के 10 अवतार हैं -1 . मत्स्य , 2. वामण , 3. परशुराम , 4. कच्छप , 5. राम , 6. कृष्ण , 7. कलि , 8. वराह , 9. नृसिंह , 10. बुद्ध । ‘ चंद्रगुप्त- ।। ‘ सहित कई गुप्त सम्राटों ने परमभागवत् की उपाधि धारण की । गुप्त सम्राटों समुद्रगुप्त एवं चन्द्रगुप्त- ।। के सिक्कों पर विष्णु के वाहन गरुड़ के चित्र उत्कीर्ण हैं ।
गाजीपुर जिले के भितरी नामक स्थान से गरुड़ – मुद्रायें प्राप्त हुई हैं । वैष्णव धर्म के अन्य प्रतीक शंक , चक्र , गदा , पद्म तथा लक्ष्मी के चित्र भी गुप्तकलीन मुद्राओं पर अंकित प्राप्त हुए हैं । • विष्णुपद पर्वत पर गुप्त सम्राट ‘ चन्द्रगुप्त- II ‘ द्वारा विष्णुध्वज स्थापित किया गया । गुप्तकाल में वैष्णव धर्म से सम्बन्धित महत्वपूर्ण अवशेष झांसी के देवगढ़ स्थित दशावतार मन्दिर से प्राप्त होते हैं । निम्बार्क द्वारा स्थापित निम्बार्क संप्रदाय वैष्णव धर्म से ही सम्बन्धित है ।
• सिन्धु सभ्यता के अवशेष शिवलिंग की पूजा के प्राचीनतम साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं ।
दक्षिण भारत में पल्लव वंश के शासकों ने शैव धर्म को संरक्षण दिया । पाशुपत शैव धर्म को मानने वाले लोग ‘ शिव ‘ के पशुपति रूप के उपासक होते हैं ।
पाशुपत शैव संप्रदाय की स्थापना भगवान शिव का एक अवतार माने गये लकुलीश ने की । पशुपति संप्रदाय भगवान शिव के 18 अवतारों को मान्यता देता है ।
कापलिक शैव संप्रदाय के अनुयायी भैरव के उपासक थे । कापालिक संप्रदाय का मुख्य केन्द्र श्री शैल नामक स्थान माना जाता है । कापालिक संप्रदाय में भैरव को सुरा एवं नरबलि पेश करने की परम्परा थी ।
कालामुख संप्रदाय भी कापालिक संप्रदाय की तरह आसुरी प्रवृत्ति का था । इस संप्रदाय के लोग नर – कपाल में ही भोजन , जल एवं सुरापान करते . . लिं
गायत शैव संप्रदाय दक्षिण भारत में प्रचलित था , इसे वीर शैव भी कहते हैं । ‘ लिंगायत शैव ‘ के अनुयाइयों को जंगम भी कहा जाता है
.
मथुरा कला जैन धर्म से ही सम्बन्धित है । 1 ‘ चंदेल शासकों ‘ ने खजुराहो में जैन मन्दिरों का निर्माण कराया । मैसूर के ‘ गंगवंश ‘ के मन्त्री चामुंड ने कर्नाटक के श्रवणवेलगोला में गोमतेश्वर की मूर्ति स्थापित की ।
प्रसिद्ध जैनग्रन्थ कल्पसूत्र ( रचनाकार – भद्रबाहु ) में जैन तीर्थंकरों की जीवनी संग्रहित है । जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल हाथी – सिंह जैन मन्दिर गुजरात में स्थित है । जैनियों का एक अन्य प्रसिद्ध तीर्थस्थल जल – मन्दिर बिहार राज्य के पावापुरी में स्थित है ।
बौद्ध धर्म का प्रवर्तन गौतम बुद्ध ने किया । गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई ० पू ० में नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु के एक ग्राम लुम्बनी में हुआ था । गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोद्धन तथा माता का नाम मायादेवी था । गौतम बुद्ध के पिता शुद्धोद्धन शाक्य क्षत्रिय कुल के प्रमुख थे । गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था । सिद्धार्थ की माता मायादेवी का निधन बचपन में ही हो गया था । सिद्धार्थ का लालन – पालन विमाता प्रजापति गौतमी ने किया ।
बौद्ध परंपरा में गौतम के गृह – त्याग की घटना को महाभिनिष्क्रमण कहा . . जाता है । गृहत्याग के पश्चात् गौतम ने सर्वप्रथम वैशाली में अलारकलाम से सांख्य । दर्शन की शिक्षा ग्रहण की । इस प्रकार ‘ अलारकलाम ‘ गौतम के प्रथम गुरु थे । इसके बाद गौतम ने रामपुत्त से शिक्षा ग्रहण की । परन्तु , उपर्युक्त शिक्षाओं से वे संतुष्ट नहीं हुए तथा वे गया के समीप 1 . उरुवेला की वनस्थली में पहुंचे तथा वहाँ कठिन तप किया , परन्तु उन्हें 2 . वाछित ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई । 3 . तत्पश्चात् , गौतम ‘ गया ‘ के निकट निरंजना ( फल्गू ) नदी के किनारे कठिन तप के लिए पीपल – वृक्ष के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गये । 4 . अपने जीवन के 35 वें वर्ष में गौतम को वैशाखी पूर्णिमा की रात्रि को 5 . ‘ सच्चा ज्ञान ‘ प्राप्त हुआ ।
• बुद्ध को सम्बोधि – प्राप्ति का स्थान कालान्तर में बोध गया ( Bodh Gaya ) के नाम से प्रसिद्ध हुआ । जिस वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ उसे कालान्तर में बोधि – वृक्ष के नाम से जाना गया । बोध गया से महात्मा बुद्ध ऋषिपत्तन ( वाराणसी के नजदीक सारनाथ ) पहुँचे । ‘ ऋषिपतन ( सारनाथ ) ‘ में उन्होंने पाँच तपस्वियों को अपना पहला उपदेश दिया ।
महाजनपदों का उदय ( Rise of Mahajanpads )
ई ० पू ० 6 वीं शताब्दी का काल भारत में महाजनपदों ( बड़े राज्यों ) के उदय का काल माना जाता हैं । ई ० पू ० 6 वीं शताब्दी का काल . भारत में द्वितीय नगरीकरण ( second yobanisation ) का कल माना जात है ।
बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय एवं जैन साहित्य भगवती सूत्र से 16 महाजनपदों का उल्लेख प्राप्त होता है । सोलह महाजनपदों में मगध , कोसल , वत्स और अवन्ति सर्वाधिक शक्तिशाली थे । सोलह महाजनपदों में अश्मक एकमात्र जनपद था , जो दक्षिण भारत में , अवस्थित था
. कुल 16 महाजनपदों में वीज्ज एवं मल्ल गणतांत्रिक ( Republican ) राज्य थ ।
बौद्ध एवं जैन ग्रंथों से ज्ञात होता है , कि ई ० पू ० 6 वीं शताब्दी में 10 गणतांत्रिक राज्य थे , जिनमें विदेह , मल्ल ( पावा ) , मल्ल ( कुशीनगर ) , शाक्य तथा लिच्छवी प्रमुख थे ।
16 महाजनपद
अंग – अंग महाजनपद मगध राज्य के पूरब में आधुनिक भागलपुर के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित था । अंग की राजधानी चम्पा थी । उसका मगध के साथ संघर्ष होता रहता था ।
2 . मगध – मगध राज्य वर्तमान पटना एवं गया जिलों ( बिहार ) के स्थान पर स्थित था । मगध की राजधानी गिरिव्रज थी जो अपने वैभव के लिए प्रसिद्ध थी । मगध में सर्वप्रथम राजवंश की स्थापना ब्रहदथ ने की थी ।
3 . काशी – काशी राज्य की राजधानी वाराणसी थी , जो वरुणा एवं असी नदियों के तट पर बसी हुई थी । काशी एक शक्तिशाली राज्य था , जिसका कौशल राज्य से सदैव संघर्ष चलता रहता था ।
4. अवन्ति – प्राचीन भारतीय अवन्ति राज्य आधुनिक मालवा था । इस राज्य की मुख्य राजधानी उज्जयिनी नगरी थी । वत्स जनपद के साथ इस राज्य का निरन्तर संघर्ष रहता था ।
5. कुरू – वर्तमान दिल्ली एवं मेरठ के प्रदेश इस राज्य के अन्तर्गत आते थे । इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी , महाभारत में कुरू महाजनपद का उल्लेख है ।
6 . मत्स्य – मत्स्य जनपद कुरू राज्य के दक्षिण एवं यमुना नदी के पश्चिम में स्थित था । इसकी राजधानी विराट नगरी थी ।
7 . गान्धार – इस जनपद में कश्मीर , पश्चिमोत्तर प्रदेश , पेशावर एवं तक्षशिला के प्रदेश आते थे । इसकी राजधानी तक्षशिला थी । अवन्ति के शासक प्रद्योत- के साथ पुक्कुसाती के अनेक युद्ध हुए थे जिसमें गान्धार शासक की विजय हुई थी ।
8. कम्बोज – बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार कम्बोज , गन्धार जनपद का पड़ोसी राज्य था । कम्बोज की राजधानी राजपुर थी ।
9 . वत्स – वत्स काशी महाजनपद के दक्षिण – पश्चिम व चेदि के उत्तर – पूर्व में स्थित था । वत्स की राजधानी कौशाम्बी थी , जो यमुना नदी के किनारे स्थित थी । वत्स का अवन्ति राज्य से संघर्ष होता रहता था ।
10. कोशल – कोशल जनपद लगभग आधुनिक अवध के बराबर था । कोशल की राजधानी राप्ती के किनारे श्रावस्ती थी । काशी एवं कोशल में निरन्तर संघर्ष होता रहा ।
11. चेदि – आधुनिक बुन्देलखण्ड और उसके सीमावर्ती क्षेत्र चेदि राज्य के अन्तर्गत आते थे । चेदि की राजधानी शुक्तिमति थी ।
12. वज्जि – रीज डेविस ( Rhus Davis ) के अनुसार वज्जि राज्य आठ राज्यों का संघ था , जो प्राचीन विदेह और वैशाली राज्यों के टूट जाने पर उन्हीं के स्थान पर बना । इन आठ राज्यों में लिच्छवि , विदेह और ज्ञात्रिक प्रमुख थे । जिनकी राजधानियाँ क्रमश : वैशाली , मिथिला एवं कुण्डग्राम थी ।
13. मल्ल – वज्जि के समान मल्ल भी एक संघीय प्रजातन्त्रात्मक राज्य था । hi इस संघ में कुशीनारा एवं पावा दो मल्ल के शाखा थे । कुशीनगर , कुशीनारा की तथा दूसरी शाखा की राजधानी पावा थी ।
14. अश्मक – यह दक्षिण भारत में गोदावरी नदी तट पर स्थित था । इस जनपद की राजधानी पौदन्य ( आधुनिक पोतन ) थी ।
15. पांचाल – सम्पूर्ण रुहेलखण्ड एवं गंगा यमुना के दोआब के पूर्वी भाग में यह जनपद स्थित था । इस जनपद की दो शाखाएँ थी । प्रथम उत्तरी पांचाल द्वितीय , दक्षिणी पांचाल । उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र तथा दक्षिणी पांचाल की राजधानी काम्पिल्य थी ।
16. सूरसेन – सूरसेन जनपद , मत्स्य राज्य के उत्तर में स्थित था । यहाँ पर पहले यदुवंशी अंधक – वृष्णियों का गणराज्य था । उपरोक्त महाजनपदों में से अधिकांश राजतन्त्र थे , किन्तु वज्जि , मल्ल , सूरसेन आदि गणतंत्र थे ।
मगध साम्राज्य ( Magadh Empire )
16 महाजनपदों में मगध सर्वाधिक शक्तिशाली था । ई ० पू ० शताब्दी के पूर्व मगध में ‘ वार्हद्रथ वंश ‘ का शासन था । ‘ वार्हद्रथ वंश ‘ का संस्थापक वृहद्रथ था , उसकी राजधानी राजगृह या गिरिव्रज थी । जरासंध बृहद्रथ का पुत्र था , वह इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था ।
मगध की गद्दी पर बिम्बिसार ने 545 ई ० पू ० में हर्यक वंश का शासन स्थापित किया । बिम्बिसार भारत का पहला शासक था , जिसने स्थाई सेना ( Permanent Standing Army ) रखने की प्रथा आरंभ की । उपर्युक्त कारण से बिम्बिसार को सौणिय या श्रोणिक ( महती सेना वाला ) पड़ा । महावंश के अनुसार बिम्बिसार ने 52 वर्षों तक शासन किया था ।\
बिम्बिसार ने कोशल नरेश प्रसेनजीत की बहन कोशला वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्लना तथा पंजाब की राजकुमारी क्षेमामद्र से विवाह किया । बिम्बिसार ने अंग – शासक ब्रह्मदत्त को हराकर उसका राज्य मगध में मिला लिया । बिम्बिसार के विशाल साम्राज्य की राजधानी गिरिव्रज थी , एवं राजगृह को नयी राजधानी बनाया । बिम्बिसार बौद्ध धर्म का अनुयायी था ।
बिम्बिसार ने महात्मा बुद्ध एवं अवन्तिरराज प्रद्योत की सेवा में राजवैद्य जीवक को भेजा । विम्बिसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को अंग का प्रान्तपति नियुक्त किया ।
बौद्ध साहित्य के अनुसार 493 ई ० पू ० में बिम्बिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने की । जैन – साहित्य यद्यपि उपर्युक्त तथ्य को नकारता है तथा अजातशत्रु को पितृ – भक्त बताता है । अजातशत्रु 493 ई ० पू ० में मगध की गद्दी पर बैठा , उसे कुणिक भी कहते थे ।
कोशल नरेश प्रसेनजीत ने अजातशत्रु को पराजित कर बन्दी बना लिया तथा सन्धि करके अपनी पुत्री वजिरा का विवाह उससे करा दिया ।
अजातशत्रु ने उत्तर में वैशाली के शक्तिशाली वज्जि संघ से युद्ध किया । वस्सकार ( वर्षकार ) अजातशत्रु का सुयोग्य मन्त्री था । .
अजातशत्रु ने वैशाली के विरुद्ध युद्ध में दो नवीन युद्धास्त्रों रथमूसल एवं . महाशिलाकण्टक का प्रयोग किया था । लिच्छवियों के पश्चात् उसके मल्ल संघ को भी अजातशत्रु ने अपने साम्राज्य में मिला लिया । प्रारम्भ में अजातशत्रु जैन धर्म का अनुयायी था , परन्तु बाद में बौद्ध धर्म , ग्रहण कर लिया । अजातशत्रु ने 32 वर्षों तक मगध पर शासन किया ।
अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदयन ने 462 ई ० पू ० में कर दी और . वह मगध की गद्दी पर बैठा । उदयन ने पाटलीपुत्र ग्राम की स्थापना की । उदयन के शासन काल में पहली बार पाटलीपुत्र मगध की राजधानी बनी ।
उदयन जैन धर्मावलम्बी था , उसने लगभग 16 वर्ष तक राज्य किया । हर्यक वंश का अन्तिम राजा उदयन का पुत्र नागदशक था । 412 ई ० पू ० में नागदशक को उसके अमात्य शिशुनाग ने अपदस्थ करके मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना की ।
शिशुनाग ने पाटलिपुत्र के स्थान पर वैशाली को अपना राजधानी बनाया । शिशुनाग ने अवन्ति पर विजय प्राप्त कर , उसे मगध साम्राज्य में विलय कर दिया । 396 ई ० पू ० शिशुनाग की मृत्यु हो गयी । शिशुनाग के पश्चात् उसका पुत्र कालाशोक मगध का शासक बना ।
कालाशोक ने पुनः पाटलिपुत्र को मगध साम्राज्य की राजधानी बनाया । शिशुनाग वंश का अन्तिम शासक नन्दिवर्धन था । शिशुनाग वंश के पतन के पश्चात् मगध में नन्द वंश की स्थापना हुई । पुराणों के अनुसार नन्द वंश का संस्थापक महापद्म नन्द था ।
यूनानी इतिहासकार कार्टेयस ने महापद्म को शूद्र बताया है । महापद्म नन्द ने अनेक क्षत्रिय राजवंशों का उन्मूलन किया था , इसी कारण उसे अखिलक्षेत्रान्तकारी और क्षत्रविनाशकृता कहा गया है । खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से पता चलता है कि नन्द – राजा का कलिंग पर भी अधिकार था ।
\नन्द राजा ने वैशाली के समीप स्थित मिथिला राज्य को भी मगध का अंग बना लिया था । मैसूर के अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि दक्षिण भारत के भी अनेक भागों पर नन्द शासक का अधिकार था । नन्द वंश ने 322 ई ० पू ० तक राज्य किया , इस वंश का अन्तिम शासक धनानन्द था । सिकन्दर का भारत पर आक्रमण धनानन्द के शासन काल में ही हुआ ।
322 ई ० पू ० में मौर्यवंशीय चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की सहायता से धनानन्द को परास्त कर मगध में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की ।
विदेशी आक्रमण ( Foreign Invasion )
भारत पर पहला विदेशी आक्रमण 550 ई ० पू ० में ईरान के साइरस द्वारा क्रिया गया , जो विफल रहा । भारत पर दूसरा ईरानी आक्रमण डैरियस प्रथम ( हखामनी वंश ) द्वारा 518 ई ० पू ० के आस – पास किया गया । ई ० पू ० 326 में यूनान के ‘ सिकन्दर ‘ ने भारत पर हिन्दुकुश के रास्ते आक्रमण किया ।
सिकन्दर मकदूनिया के शासक फिलिप का पुत्र था । सिकन्दर ई ० पू ० 336 में राजसिंहासन पर बैठा , वह अरस्तू का शिष्य था । सिकन्दर के सेनापति का नाम सेल्यूकस निकोटर था , नियार्कस सिकन्दर का जल – सेनापति था । सिकन्दर को पुरु राज्य से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा ।
झेलम और चिनाब नदी के मध्य के प्रदेश पर पोरस का राज्य था । सिकन्दर को पोरस के साथ युद्ध करना पड़ा , जिसे हाइडेस्पीज के युद्ध के नाम से जाना जाता है ।
सिकन्दर ने पुरू के राजा पोरस को हरा दिया परन्तु , उससे प्रभावित होकर उसे विजित प्रदेश लौटा दिया । सिकन्दर ने पोरस के विरुद्ध विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में निकाइया ( Nikaia ) की स्थापना की ।
. सिकन्दर ने स्वामी भक्त घोड़े के नाम पर बुकाफेला ( Bokkephala ) नामक नगर का निर्माण करवाया ।
सिकन्दर ने मिस्र पर विजय के उपलक्ष्य में सिकन्दरिया नामक नगर की स्थापना की थी । व्यास नदी के तट पर मगध की शक्तिशाली सेना से डरकर सिकन्दर के सैनिकों ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया । सिकंदर स्थल मार्ग द्वारा ई ० पू ० 325 में वापस लौटा ।
‘ सिकन्दर की मृत्यु 323 ई ० पू ० में बेबीलोन में हो गयी , वह भारत में 19 महीनों तक रहा ।
मौर्य साम्राज्य ( ( Mourya Empire )
मौर्य साम्राज्य की स्थापना ई ० पू ० 322 में ‘ चन्द्रगुप्त मौर्य ‘ ने की । चन्द्रगुप्त का जन्म ई ० पू ० 345 में शाक्यों के पिप्पलिवन गणराज्य की मोरिय शाखा में हुआ था । यूनानी साहित्य में चन्द्रगुप्त मौर्य को मौर्य वंश के शासक सैंड्रोकोट्टस कहा
चन्द्रगुप्त मौर्य ( ई ० पू ० 322-298 )
बिन्दुसार ( ई ० पू ० 298-273 ) ।
अशोक ( ई ० पू ० 269-232 ) ।
चन्द्रगुप्त एवं सेल्यूकस के बीच हुए युद्ध का विवरण एप्पियस नामक यूनानी व्यक्ति ने किया है । सेल्यूकस ने अपनी बेटी कारनेलिया की शादी चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ कर दी तथा काबुल , गन्धार , मकरान और हेरात प्रदेश चन्द्रगुप्त को दहेज के रूप में प्रदान किया ।
प्लूटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त ने सेल्युकस को 500 हाथी उपहार में दिया । सेल्यूकस ने मेगास्थनीज को दूत बनाकर चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा ।
मेगास्थनीज काफी दिनों तक पाटलिपुत्र में रहा तथा उसने चन्द्रगुप्त के बारे में अपनी पुस्तक इंडिका ( Indica ) में लिखा ।
चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमन्त्री चाणक्य ( अथवा , विष्णुगुप्त , या कौटिल्य ) था । चन्द्रगुप्त ने बाद में जैन धर्म स्वीकार कर लिया तथा जैन आचार्य भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली ।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रचार किया । 300 ई ० में कर्नाटक के श्रवणवेलगोला में अनशन व्रत करके चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने शरीर का त्याग कर दिया । चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार मगध की गद्दी पर ई ० पू ० 300 में बैठा । यूनानी लेखों में बिन्दुसार को अमित्रोकेट्स कहा गया है , जिसका संस्कृत रूपान्तरण अमित्रघात ( शत्रुओं को नष्ट करनेवाला ) होता है , वह ( बिन्दुसार ) आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था ।
वायुपुराण में बिन्दुसार के लिए भद्रसार नामक शब्द का प्रयोग किया गया । सीरिया के एण्टियोकस नामक राजा से ‘ बिन्दुसार ‘ ने मदिरा , सूखे अंजीर और दार्शनिक भेजने की अपील की थी ।
चाणक्य की मृत्यु के बाद राधागुप्त बिन्दुसार का प्रधानमन्त्री बना ।
एंटियोकस प्रथम ने अपने राजदूत डायमेकस को बिन्दुसार के दरबार में मेगास्थनीज के स्थान पर भेजा था । टॉलमी द्वितीय फिलाडेल्फस ने डायनिकस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था । . . . . . . .
. बिन्दुसार के शासनकाल में तक्षशिला में विद्रोह हुआ , उसका पुत्र सुसीम विद्रोह को दबाने में असफल रहा । उज्जैन के तत्कालीन सूबेदार अशोक ने तक्षशिला के विद्रोह को सफलतापूर्वक को दबा दिया ।
बिन्दुसार को जैनग्रन्थों में सिंहसेन की संज्ञा दी गई है ।
बिन्दुसार की मृत्यु के बाद ई ० पू ० 269 में अशोक मगध की गद्दी पर बैठा । अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी था ।
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष लगभग 261 ई ० पू ० में कलिंग पर आक्रमण कर और राजधानी तोसाली पर अधिकार कर लिया ।
कलिंग युद्ध में 2.5 लाख व्यक्ति मारे गये एवं इतने ही घायल हुए । कलिंग युद्ध ने अशोक का हृदय परिवर्तन कर दिया ।
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने भेरीघोष के स्थान पर उसने धम्मघोष अपनाने की घोषणा की ।
अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया एवं उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली ।
अशोक ने आजीवकों को रहने हेतु बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाओं का निर्माण करवाया । उपर्युक्त गुफाओं का नाम कर्ज , चौपार , सुदामा तथा विश्व झोंपड़ी था ।
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा । : को श्रीलंका भेजा ।
अशोक ने अपने जीवन में दो आक्रमण किए , पहला आक्रमण कश्मीर पर किया ।
अशोक की तुलना डेविड एवं सोलमान ( इस्रायल ) तथा मार्कस ओरलियस एवं शार्लमा ( रोम ) जैसे विश्व के महानतम सम्राटों से की जाती है । अशोक ने यवन शासकों एंटियोकस- ।। ( सीरिया ) , टॉलमी- II ( मिस्र ) , एंटिगोनस गोनाटस ( मकदूनिया ) , मरास ( साइरिन ) एवं एलेक्जेंडर से मित्रतापूर्ण संबंध कायम किये एवं उनके दरबार में अपने दूत भेजे ।
चोल , पांड्य , सतियपुत्र , केरलपुत्र एवं ताम्रपर्णि आदि दक्षिण भारतीय राज्यों में अशोक ने धर्म प्रचार के लिए दूत भेजा । अशोक ने बौद्ध धर्म को राजधर्म , ब्राह्मी लिपि को राजकीय लिपि घोषित किया था ।
भबू शिलालेख से स्पष्ट होता है अशोक बुद्ध , धम्म एवं संघ में विश्वास रखता था ।
अशोक के तीसरे शिलालेख के अनुसार , प्राचीन काल में विहार यात्रा के नाम से प्रचलित यात्रा को धम्म यात्रा में बदल दिया ।
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 12 वें वर्ष में धर्म प्रचार के लिए राजुका , प्रदेशका एवं युक्त जैसे पदाधिकारियों को लगाया ।
अशोक के ‘ 8 ‘ शिलालेख के अनुसार अपने शासन के 13 वें वर्ष में उसने धम्म महामात्र की नियुक्ति की । मौर्य प्रशासन के विषय में कौटिल्य के अर्थशास्त्र एवं मेगास्थनीज की इंडिका से महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है ।
राजा प्रधान सेनापति , प्रधान न्यायाधीश तथा प्रधान दंडाधिकारी होता था ।
. हिरण्य एक प्रकार का कर था जो अनाज के रूप में न लेकर नकद के रूप में देना पड़ता था
देश में सोना , चाँदी , ताँबा , लोहा तथा जस्ता भी काफी मात्रा में उपलब्ध
मौर्यकाल में जल – मार्गीय व्यापार के लिए 8 प्रकार की नौकाओं के प्रयोग के प्रमाण मिले हैं जिनमें वहण , संयात एवं क्षुद्रक प्रमुख थीं ।
शराब बेचने वाले को शौण्डिक कहा जाता था ।
अस्त्र – शस्त्र का निर्माण करने वाले विभाग का प्रमुख आयुधागाराध्यक्ष होता था । मौर्यकाल में पाटलिपुत्र , तक्षशिला , उज्जैन , तोशाली , कौशांबी , वाराणसी आदि प्रमुख व्यापारिक केन्द्र थे । भारत के समुद्र तटों पर अनेक बंदरगाह थे जहाँ से लंका , वर्मा , मिस्र , सीरिया , सुमात्रा , जावा , फारस , यूनान तथा रोम से विदेशी व्यापार होते थे । श्रेणियाँ प्रायः अपने शिल्पियों के लिए बैंक का कार्य करती थी । राजकीय कला के अन्तर्गत राजाप्रसाद , स्तम्भ , गुहाविहार स्तूप तथा लोक कला के अन्तर्गत प्रमुख रूप से यक्ष – यक्षी मूर्तियाँ आती हैं । डॉ ० स्पूनर ने बुलंदीबाग एवं कुम्हरार ( पटना स्थित ) लकड़ी के विशाल भवन के अवशेषों का पता लगाया , इस भवन की लम्बाई 140 फुट और चौड़ाई 120 फुट . उपर्युक्त सभा भवन 40 खम्भों वाला हॉल था । इस भवन का फर्श और छत लकड़ी का था ।
भवन के स्तम्भ बलुआ पत्थर के बने हुए थे और उसमें चमकदार पॉलिस की गयी थी । • फाह्यान के अनुसार यह प्रासाद मानव कृति नहीं है वरन देवों द्वारा निर्मित . स्तम्भों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अशोक द्वारा निर्मित सारनाथ ( वाराणसी ) का सिंह स्तम्भ है जिसमें चार सिंह का चित्र बना है । अशोक ने सर्वाधिक स्तूपों ( लगभग 84,000 ) का निर्माण करवाया इनमें साँची ( मध्यप्रदेश ) तथा भरहुत का स्तूप प्रमुख है । गया के निकट बराबर की पहाड़ियों में अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 12 वें वर्ष में सुदामा गुहा आजीवक भिक्षुओं को दान में दी । अशोक के पुत्र दशरथ ने नागार्जुनी पहाड़ियों में आजीवको
को 3 गुफाएँ प्रदान की , इसमें से एक प्रसिद्ध गुफा गोपी गुफा है मौर्य शासन 137 वर्षों तक रहा , इसका अन्तिम शासक बृहद्रथ था ।
बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई ० पू ० में कर दी एवं मगध पर ‘ शुंग वंश ‘ की नींव डाली ।
मौर्योत्तर काल ( Post – Maurya Period )
187 ई ० पू ० से 240 ई ० तक का काल भारतीय इतिहास में ‘ मौर्योत्तर काल ‘ के नाम से जाना जाता है । इस काल में मगध सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में ब्राह्मण साम्राज्यों ( शुंग , कण्व , सातवाहन एवं वाकाटक ) का उदय हुआ तथा विदेशी आक्रमण हुए । इस काल में क्षेत्रीय राजा स्वतन्त्र होने लगे जिसमें कलिंग का राजा खारवेल प्रमुख था । हर्षचरित से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण था । पुष्यमित्र शुंग ने अपनी राजधानी बिदिशा में स्थापित किया । पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण धर्मावलम्बी था अत : उसने अपने शासनकाल में दो अश्वमेघ यज्ञ किये । पुष्यमित्र के शासनकाल में यवन आक्रमण हुए जिसका नेतृत्व डेमेट्रियस ने किया । पुष्यमित्र शुंग ने इण्डो – यूनानी शासक मिनांडर को पराजित किया । पतंजलि जैसे महान विद्वान पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में हुए थे शुंगकाल में भरहुत , बोध गया तथा साँची के स्तूपों को नया रूप प्रदान किया गया ।
पुष्यमित्र ने वैदिक धर्म को राजधर्म घोषित किया तथा पालि के स्थान पर संस्कृत को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया ।
.
कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार मौर्य – प्रशासन विभागों में बंटा हुआ था । प्रत्येक विभाग को तीर्थ कहते थे । प्रत्येक ‘ तीर्थ ‘ के अध्यक्ष को अमात्य ( मन्त्री ) कहा जाता था ।
अर्थशास्त्र में कुल मिलाकर 18 अमात्यों का वर्णन किया गया है । इनमें महामन्त्री एवं पुरोहित अति महत्वपूर्ण थे । . . .
( अर्थशास्त्र में वर्णित 18 अमात्य 1. महामन्त्री – मुख्यमन्त्री 10. नायर – नगराध्यक्ष 2. पुरोहित – राजा का प्रमुख सलाहकार 11. करमांतिक – खनन एवं कारखाने का अध्यक्ष 3. सेनापति – सशस्त्र सेना का प्रधान 12. सन्निधाता – राजकोष का अध्यक्ष 4. युवराज – राजा का ज्येष्ठ पुत्र 13. व्यावहारिक – मुख्य न्यायाधीश 45. दौवारिक – द्वारपाल मंत्रिमण्डलाध्यक्ष – मंत्रिमण्डल का अध्यक्ष 6. दंडपाल – पुलिस का प्रधान अधिकारी 15. अन्तपाल – सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक 7. समाहर्ता – आय संग्रहकर्ता 16. दुर्गपाल – देश के अंदर दुर्गों का रक्षक 8. प्रदेष्ट्रा – कमिश्नर 17. अन्तर्वेदिक – अन्तःपुर का रक्षाधिकारी 9. पौर – नगर कोतवाल 18. प्रशास्त – कारागार युक्त ( खोई हुई संपत्ति के प्राप्त होने पर उसकी सुरक्षा करनेवाला ) , प्रतिवैदिक ( सम्राट को प्रतिदिन की सूचना देने वाला ) , ब्रजभूमिक ( गौशाला का निरीक्षण करने वाला पदाधिकारी ) , एग्रोनोमोई ( सड़कों का निरीक्षण करने वाला पदाधिकारी ) आदि मौर्यकाल के कुछ प्रमुख पदाधिकारी थे ।
मौर्य काल में गुप्तचर सेवा को भी दो भागों में बाँटा गया था – संस्थान तथा संचारण । संस्थान वर्ग के गुप्तचर एक स्थान पर टिककर वहाँ के गतिविधियों की सूचना राजा को देते थे । संचारण वर्ग के गुप्तचर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमण करके विभिन्न स्थानों की सूचना राजा को देते थे ।
प्लिनी के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में 6 लाख पैदल सैनिक , 30 की हजार घुड़सवार , 9 हजार हाथी तथा 8000 रथ थे ।
इंडिका के अनुसार सम्पूर्ण सेना के प्रबन्धन हेतु एक 30 सदस्यीय समिति होती थी । सेना का प्रबन्ध 6 भागों में विभक्त था तथा प्रत्येक विभाग की समिति में अध्यक्ष सहित 5 सदस्य होते थे 1 . प्रथम समिति – ये जल सेना का प्रबन्ध करती थी । 2. द्वितीय समिति – सेना को हर प्रकार की सामग्री तथा रसद भेजने का प्रबन्ध करती थी । 3. तृतीय समिति – पैदल सेना का प्रबन्ध करती थी । चतुर्थ समिति – अश्वरोहियों का प्रबन्ध देखती थी । 5. पाँचवीं समिति हाथियों की सेना का प्रबन्ध देखती थी । तथा , 6 . छठी समिति – रथ सेना का प्रबन्ध देखती थी ।
सेना के साथ एक चिकित्सा – विभाग होता था जो घायल सैनिकों का इलाज करता था । धर्मस्थेय ( दीवानी मामले ) तथा कंटकशोधन ( फौजदारी मामले ) मौर्यकालीन न्यायालय थे ।
अशोक के समय जनपदीय न्यायालय का न्यायाधीश राजुका कहलाता था ।
मौर्य कालीन प्रांतों को चक्र कहा जाता था ।
प्रान्तों का प्रशासन राज्य परिवार के ही किसी व्यक्ति द्वारा होता था जिन्हें कुमार या आर्यपुत्र कहा जाता था । प्रान्तों में कई मण्डल होते थे ।
. पुष्यमित्र के प्रोत्साहन से पतंजलि के महाभाष्य तथा मनु – स्मृति ( Manu Script ) की रचना हुई । पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु 148 ई ० पू ० में हुई , शुंग वंश का अन्तिम शासक देवभूति था । देवभूति की हत्या उसके मन्त्री वासुदेव कण्व ने कर दी ।
शुंग वंश का पतन 73 ई ० पू ० में हुआ । विदिशा का गरुड़ध्वज , भाजा का चैत्य एवं विहार , अजन्ता का नवाँ चैत्य मन्दिर , नासिक तथा काने के चैत्य , मथुरा की अनेक यक्ष – यक्षिणियों को मूर्तियाँ शृंग – कला के ही उदाहरण हैं । मगध पर कण्व वंश की स्थापना वासुदेव कण्व ने 72 ई ० पू ० में की । कण्व वंश ने कुल 45 वर्षों तक ( 72 ई ० पू ० से 27 ई ० पू ० ) तक शासन किया । कण्व वंश के शासक ब्राह्मण थे । कण्व वंश का अन्तिम राजा सुशर्मा था , जिसकी हत्या उसके सेनापति सिमुक ने कर दी तथा सातवाहन वंश की स्थापना की । सातवाहन शासकों ने अपनी राजधानी प्रतिष्ठान में स्थापित की । सातवाहन वंश के प्रमुख शासक थे सिमुक , शातकर्णि , गौतमीपुत्र शातकर्णि , वशिष्ठी पुत्र , पुलवामी तथा यज्ञश्री शातकर्णि । इस वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक शातकर्णि प्रथम था । गौतमीपुत्र शातकर्णि को सातवाहन – वंश का पुनरूद्धारक कहा जाता है ।
गौतमीपुत्र शातकर्णि का शासनकाल 106 ई ० से 130 ई ० तक माना जाता . . गौतमीपुत्र शातकर्णि ब्राह्मण – धर्म का अनुयायी था । उसने दो अश्वमेघ तथा एक राजसूय यज्ञ किया । गौतमीपुत्र शातकर्णि की विजयों के विषय में नासिक अभिलेख से पता चलता है । गौतमीपुत्र शातकर्णि की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र वशिष्ठीपुत्र पुलमावी शासक बना ।
वशिष्ठीपुत्र ने 130 ई ० से 154 ई ० तक शासन किया । वशिष्ठीपुत्र के पश्चात् सातवाहन वंश का अन्तिम शासक यज्ञश्री शातकर्णि था जिसने 165 ई ० से 193 ई ० तक शासन किया । सातवाहन शासकों के समय प्रसिद्ध साहित्यकार हाल एवं गुणाढ्य थे ।
हाल ने गाथा सप्तशतक तथा गुणाढ्य ने बृहत्कथा नामक पुस्तकों की रचना की । सातवाहन शासकों ने चाँदी , ताँबे , सीसा , पोटीन और काँसे की मुद्राओं का प्रचलन किया । गौतमीपुत्र शतकर्णि ने अपने शासन के 24 वें वर्ष में ब्राह्मणों को भूमि – अनुदान ( Land Grants ) देने की प्रथा आरम्भ की । सातवाहन समाज मातृसत्तात्मक था तथा उनकी भाषा प्राकृत एवं लिपि ब्राह्मी थी । कार्ले का चैत्य , अजंता – एलोरा की गुफाओं का निर्माण एवं अमरावती कला का विकास कला के क्षेत्र में सातवाहनों के उल्लेखनीय योगदान हैं ।
कथा सरितसागर एवं कथाकोष नामक प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना सातवाहन काल में हुई । नासिक अभिलेख ( गौतमी बल श्री ) में उल्लिखित है कि गौतमीपुत्र शतकर्णि के घोड़े तीन समुद्रों का पानी पीते थे । सातवाहनों के पतन के पश्चात् दक्षिण में उठने वाली शक्तियों में सबसे प्रवल वाकाटक थे । इस वंश की स्थापना एक ब्राह्मण विन्ध्यशक्ति ने विदर्भ में की । एकमात्र वाकाटक शासक प्रवरसेन ( विन्ध्यशक्ति का पुत्र ) था जिसे सम्राट की उपाधि दी गयी । प्रवरसेन का राज्य उत्तर में बुन्देलखंड से लेकर दक्षिण में हैदराबाद तक विस्तृत था । प्रवरसेन ने अनेक वैदिक यज्ञ किये जिनमें चार अश्वमेघ यज्ञ थे । प्रवरसेन ने एक प्रसिद्ध कृति सेतुबंध की रचना की ।
मौर्य – शासन के पतन के उपरान्त भारत पर निरन्तर विदेशी आक्रमण हुए । जो इस प्रकार थे – हिन्द – यूनानी , शक , पहल्व एवं कुषाण । .
डेमेट्रियस ने हिन्दुकुश को पार कर पंजाब के विस्तृत भू – भाग पर अधिकार कर लिया तथा साकल को अपनी राजधानी बनायी । उपर्युक्त काल में डेमेट्रियस के देश बैक्ट्रिया में यूक्रेटाइडीज के नेतृत्व में विद्रोह हो गया । यूक्रेटाइडीज भी भारत की ओर बढ़ा और कुछ भागों को जीतकर तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया । यवन साम्राज्य डेमेट्रियस एवं यूक्रेटाइडीज के वंशों में बँट गया । डेमेट्रियस के पश्चात् उसके वंश का सबसे प्रतापी शासक मीनाण्डर हुआ ।
मीनाण्डर को बौद्ध – ग्रन्थों में मिलिन्द कहा गया है । मीनाण्डर बौद्ध था , उसने नागसेन से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली । मिलिन्दपान्हों नामक ग्रन्थ में मीनाण्डर की राजधानी साकल ( स्यालकोट ) का वर्णन मिलता है । भारत में सबसे पहले हिन्द – यूनानियों ने ही सोने के सिक्के जारी किए । जन्म – पत्री के लिए भारत में प्रयुक्त शब्द होरा – चक्र यूनानी संस्कृति से ही लिया गया है । भारत में प्रचलित राशियाँ यूनानियों से ही ली गई हैं । हिन्द – यूनानी शासकों ने भारत के पश्चिमोत्तर सीमा – प्रान्त में यूनान की हेलेनिस्टिक आर्ट का प्रचलन किया । भारत के गन्धार कला को इण्डो – ग्रीक कला भी कहा जाता है । भारतीयों ने यूनानियों से ही कैलेण्डर बनाने का ज्ञान प्राप्त किया । ई ० पू ० पहली सदी के अन्त में पार्थियन शासकों का पश्चिमोत्तर भारत पर राज था । पार्शियन पहलव वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक गोण्डोफर्नीज था , जिसने 20-41 ई ० के दौरान शासन किया । इसाई धर्म का प्रचारक सेंट टॉमस गोण्डोफर्नीज के दरबार में आया था । कुषाणों ने भारत में हिन्द – पार्थियन शासन का अन्त किया ।
कुषाण पश्चिमी चीन में गोबी प्रदेश में रहने वाली यू – ची ( Yueh – chi ) जाति से सम्बन्धित थे । कुषाण वंश का संस्थापक कुजूल कडफिसस था । भारत में कुषाण साम्राज्य की स्थापना कुजुल कडफिसस के पुत्र विम कडफिसस ने की । कुषाण वंश का सबसे प्रतापी राजा कनिष्क 78 ई ० में गद्दी पर बैठा । कनिष्क ने 78 ई ० में एक संवत् चलाया , जो शक संवत् कहलाता है । कनिष्क ने अपने राज्य का विस्तार मगध तक किया । कनिष्क के साम्राज्य में अफगानिस्तान , सिन्ध का भाग , पार्थिया एवं बैक्ट्रिया के प्रदेश सम्मिलित थे । कनिष्क की राजधानी पुरूषपुर ( पेशावर ) में थी । कनिष्क ने कश्मीर को जीत लिया तथा एक नये नगर कनिष्कपुर की स्थापना की । कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का अनुयायी था । कनिष्क ने मगध के बौद्ध – विद्वान अश्वघोष को अपना राज – कवि नियुक्त किया । कनिष्क ने अश्वघोष से बौद्ध धर्म में दीक्षा ली । कनिष्क की मुद्राओं पर यूनानी , ईरानी व हिन्दू – देवताओं जैसे हेराक्लीज , सेरापीज , सूर्य , चन्द्र , अग्नि , शिव आदि की आकृतियाँ उत्कीर्ण मिलती हैं । कनिष्क ने बौद्ध – धर्म को राजधर्म बनाया तथा कनिष्कपुर , पुरूषपुर , मथुरा व तक्षशिला आदि स्थानों पर स्तूप एवं विहार बनवाये । कनिष्क के शासनकाल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन कश्मीर के कुण्डलवन में हुआ । चरक कनिष्क का राजवैद्य था , जिसने चरकसंहिता की रचना की थी । अश्वघोष , चरक , नागार्जुन , महाचेत , संघरक्ष तथा पार्श्व कनिष्क के दरबार की शोभा बढ़ाते थे । कनिष्क के शासनकाल में एक नवीन कला शैली गंधार कला का आविर्भाव हुआ । कनिष्क की मृत्यु 102 ई ० में हो गयी , उसकी हत्या उसके सेनापतियों ने ही कर दी ।
कुषाण वंश का अन्तिम शासक वासुदेव था । . .
बौद्ध – धर्म को संरक्षण प्रदान करने के कारण कनिष्क को दूसरा अशोक कहा जाता है । शक एक घुमक्कड़ जाति थी और उनका मूल निवास स्थान मध्य एशिया था । यूची नामक एक अन्य घुमन्तु जाति ने शकों को मध्य एशिया से निकाल दिया , तो वे बैक्ट्रिया में बस गये । कुछ समय पश्चात् शक बलूचिस्तान से होकर निचले सिन्ध प्रदेश पहुँचे तथा वहीं बस गए । भारतीय शक राजाओं में सम्भवतः पहला शासक माउस ( Maues ) था ।
भारत में शक शासक स्वयं को क्षत्रप ( फारसी प्रणाली ) कहते थे । पश्चिमी भारत ( महाराष्ट्र ) में शकों के प्रसिद्ध क्षहरात – वंश का आविर्भाव हुआ । क्षहरात वंश का सबसे प्रमुख शासक नहपान था , सम्भवतः उसने 119 ई ० से 124 ई ० तक राज्य किया था । नहपान ने महाराष्ट्र के सातवाहन शासक को परास्त करके उस प्रदेश पर अधिकार कर लिया । शकों के एक वंश का उज्जैन में भी आविर्भाव हुआ , जिसे चष्टन वंश कहा जाता है । चष्टन वंश का संस्थापक चष्टन था जो राजा यसामोतिक का पुत्र था । चष्टन वंश का सबसे प्रतापी शासक रूद्रदामन -1 ( 130-150 ई ० पू ० ) था तथा उसकी राजधानी उम्जैन थी । रूद्रदामन- I
सिक्कों एवं जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने महाक्षत्रप की उपाधि धारण की थी । रूद्रदामन- I ने कठियावाड़ की सुदर्शन झील का पुनर्निमाण करवाया था । रूद्रदामन- I संस्कृत भाषा और अलंकार शास्त्र का प्रकांड पंडित था । रूद्रदामन -1 ने प्रथम संस्कृत नाटक की रचना कराई । रूद्रदामन- I ने पहली बार भारतीय इतिहास में शुद्ध संस्कृत भाषा में अभिलेख खुदवाये । भारत में शुद्ध संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण प्रथम अभिलेख , गिरनार – अभिलेख है ।
गुप्तवंशीय शासक चन्दगुप्त द्वितीय ने चष्टन – वंश के शासक रूदसिंह तृतीय की हत्या करके शक राज्य पर अधिकार कर लिया । 58 ई ० पू ० में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शकों को पराजित करके बाहर कर दिया तथा विक्रमादित्य की उपाधि धारण की । शकों पर विजय के उपलक्ष्य में 57 ई ० पू ० से एक नया संवत् , विक्रम संवत् के नाम से प्रारम्भ हुआ । अशोक के बाद कलिंग स्वतन्त्र हो गया तथा वहाँ एक नवीन राजवंश का उदय हुआ , जिसे चेति ( चेदि ) वंश कहा जाता है । कलिंग के ‘ चेति वंश ‘ का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक खारवेल था । कलिंगराज खारवेल के विषय में जानकारी का प्रमुख स्रोत हाथीगुम्फा ” अभिलेख है । खारवेल 24 वर्षों की आयु में राजगद्दी पर बैठा । राजा खारवेल जैनधर्म का अनुयायी था तथा उसे भिक्षुराज भी कहा गया भारहुत स्तूप का निर्माण यों तो अशोक के समय हुआ था , परन्तु शुंगकाल . में इसमें चार तोरणद्वार लगाये गये । मौयोत्तर काल में कुषाणों ने गंधार कला – शैली का विकास किया । मथुरा में जैनियों ने मथुरा कला का विकास किया । ‘ मथुरा कला शैली ‘ , गंधार कला से प्रभावित थी । सातवाहन काल की कलात्मक कृतियों को दो भागों में बाँटा गया है – स्तूप और चैत्य । ई ० पू ० दूसरी शताब्दी में दक्कन में अमरावती कला का विकास हुआ । कार्ले का चैत्य , अजंता एवं एलोरा की गुफाओं का निर्माण सातवाहनों की महत्वपूर्ण स्थापत्य कृतियाँ हैं । हेनसांग ने कनिष्क के 178 विहारों तथा स्तूपों का वर्णन किया है ।
सर्वप्रथम बुद्ध की मूर्ति गान्धार शैली में ही बनी ।
मौर्योत्तर कालीन चित्रकला के उदाहरण अजंता की गुफा संख्या 9 एवं 10 में मिलते हैं ।
बुद्धचरित् ( संस्कृत भाषा में ) तथा सूत्रालंकार की रचना अश्वघोष ने की । बुद्धचरित् को बौद्ध धर्म का महाकाव्य माना जाता है । सौन्दरानन्द नामक प्रसिद्ध काव्य की रचना अश्वघोष ने इसी काल में की । कनिष्क काल के एक प्रसिद्ध विद्वान नागार्जुन ने शून्यवाद का प्रतिपादन । नागार्जुन को भारतीय आइंस्टीन कहा गया ।
नागार्जुन ने अपने ग्रन्थ माध्यमिक सूत्र में सृष्टि सिद्धान्त ( Theory of Relativity ) को प्रस्तुत किया । चरक संहिता ( आयुर्वेदिक ग्रन्थ ) की रचना कनिष्क के राजवैद्य चरक म द्वारा की गयी । गुप्त काल ( Gupta Period ) . कुषाणों के साम्राज्य के पतन के पश्चात् गुप्त – साम्राज्य स्थापित हुआ ।
गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण – युग ( Golden Age ) कहा जाता है । गुप्त लोग कुषाणों के सामन्त थे ।
गुप्त वंश का उदय प्रयाग के निकट कौशाम्बी में हुआ था । 7 गुप्त वंश की स्थापना श्री गुप्त ने लगभग 275 ई ० में की । श्री गुप्त के मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र घटोत्कच शासक बना । घटोत्कच का पुत्र चन्द्रगुप्त प्रथम ( 319-340 ई ० ) गुप्त वंश का पहला प्रसिद्ध शासक हुआ । चन्द्रगुप्त प्रथम गुप्तवंश का प्रथम स्वतन्त्र शासक था , जिसकी उपाधि ने महाराजाधिराज थी । चन्द्रगुप्त ने अपने राज्यारोहण के समय ( 319-320 ई ० ) गुप्त – सम्वत् । । आरंभ किया । ।
चन्द्रगुप्त प्रथम की मृत्यु के कुछ समय बाद उसका पुत्र समुद्रगुप्त 335 ई ० में राजगद्दी पर बैठा । में समुद्रगुप्त का इतिहास जानने का प्रमुख स्रोत इलाहाबाद स्थित प्रयाग – प्रशस्ति स्तंभ अभिलेख है इसकी रचना उसके दरबारी कवि हरिषेण ने की थी । समुद्रगुप्त एक महान योद्धा तथा कुशल सेनापति था , उसने आर्यावर्त के 9 शासकों एवं दक्षिणावर्त के 12 शासकों को पराजित किया । ह उपर्युक्त विजयों के कारण स्मिथ ने समुद्रगुप्त को एशियन नेपोलियन कहा है । के समुद्रगुप्त इतिहास में 100 युद्धों के नायक ( Hero of 100 battles ) के नाम से प्रसिद्ध है । समुद्रगुप्त विष्णु का उपासक था , उसने अश्वमेघ यज्ञ किया था । समुद्रगुप्त संगीत – प्रेमी एवं वीणावादन का शौकीन था , उसने कविराज ग की उपाधि धारण की थी । समुद्रगुप्त ने श्रीलंका के राजा मेघवर्मन को बोधगया में महाबोधि संघाराम नामक बौद्ध – विहार बनाने की अनुमति दी ।
गुप्त वंश का महानतम शासक चंद्रगुप्त- II था । चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन काल 380 ई ० से 412 ई ० तक रहा । चन्द्रगुप्त द्वितीय ने नागवंशीय राजकुमारी कुबेरनागा से विवाह किया था । मा चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों को परास्त कर पश्चिमी भारत से उनका प्रभुत्व समाप्त कर दिया । शकों पर विजय के उपलक्ष्य में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने चाँदी के सिक्के चलाए । चन्द्रगुप्त द्वितीय वैष्णव था तथा उसने परमभागवत की उपाधि धारण की । । चन्द्रगुप्त विद्या – प्रेमी था उसके दरबार में नवरत्न विद्वानों की एक मण्डली सामरहती थी । नवरलमण्डली में कालिदास , धन्वंतरी , क्षपणक , अमरसिंह , शंकु , वो तालभट्ट , घटकर्पर , वाराहमिहिर , वररुचि जैसे विद्वान थे । प्रसिद्ध चिकित्सक धन्वंतरि चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में था । 1 चन्द्रगुप्त द्वितीय के पश्चात् उसका पुत्र कुमारगुप्त ( 413 ई०-455 ई ० ) नों सिंहासन पर बैठा । कुमारगुप्त ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी । कुमारगुप्त- | का उत्तराधिकारी स्कन्दगुप्त ( 455-467 ई ० ) हुआ । . स्कन्द गुप्त ने हूणों को परास्त कर गुप्त साम्राज्य की रक्षा की थी ।
स्कन्द गुप्त ने हूणों को परास्त करने के पश्चात् विक्रमादित्य व क्रमादित्य की उपाधियाँ धारण कीं । H – . .
गुप्त युग में ही आर्यभट्ट जैसा गणितज्ञ एवं महान खगोलज्ञ हुए । आर्यभट्ट ने सर्वप्रथम प्रमाणित किया कि पृथ्वी अपनी धूरी पर घूमती है । आर्यभट्ट ने ही सर्वप्रथम बताया कि पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा के आ जाने से सूर्यग्रहण होता है । दशमलव प्रणाली का भी आविष्कार आर्यभट्ट ने इसी युग में किया । आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीय एवं सूर्यसिद्धान्त नामक ग्रन्थों की रचना की जो नक्षत्र विज्ञान से संबोधत थी । आर्यभट्ट , वराहमिहिर , धन्वन्तरि , ब्रह्मगुप्त आदि चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहने वाले प्रमुख विद्वान थे । ब्रह्मगुप्त गुप्त काल के प्रसिद्ध गणितज्ञ थे , उन्होंने ब्रह्म सिद्धान्त नामक ग्रन्थ की रचना की । वाराहमिहिर गुप्तकाल के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री थे , उन्होंने वृहत् संहिता एवं पंचसिद्धांतिका नामक प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना की । पाल्काल नामक पशु चिकित्सक ने ‘ हाथियों के रोगों से सम्बन्धित चिकित्सा हेतु हस्त्यायुर्वेद नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की । नागार्जुन इस काल का प्रसिद्ध चिकित्सक था , उसने रस चिकित्सा नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की । धातु विज्ञान का इस युग में अत्यधिक विकास हुआ । नागार्जुन ने इस काल में सिद्ध किया कि सोना , चाँदी , लोहा , ताँबा आदि खनिज धातुओं में रोग निवारण की शक्ति विद्यमान है । लगभग 1.5 हजार वर्ष पूर्व निर्मित दिल्ली में एक लौह स्तम्भ में अभी तक जंग नहीं लगा है , जो तत्कालीन धातुकर्म विज्ञान के काफी विकसित होने का प्रमाण है ।
गुप्तोत्तर काल ( Post – Gupta Period )
हूण मध्य एशिया की एक बर्बर जाति थी । हूणों ने अपने मूल निवास स्थान को छोड़कर पश्चिम की ओर बढ़ना प्रारम्भ किया । F छठी शताब्दी ई ० के अन्त में हूण एक विशाल साम्राज्य पर शासन करते थे , जिनकी राजधानी बल्ख में थी । फारस पर अधिकार हो जाने से हूणों के लिए भारत का रास्ता खुल गया । स्कन्दगुप्त की मृत्यु के 33 वर्षों के पश्चात् लगभग 500 ई ० में तोरमाण के नेतृत्व में हूणों ने गंगा घाटी पर आक्रमण किया ।
तोरमाण ने प्रारम्भ में काबुल , गन्धार , सीमाप्रान्त , पंजाब और कश्मीर पर विजय प्राप्त की । ग्वालियर अभिलेख से ज्ञात होता है कि तोरमाण की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र मिहिरकुल शासक बना , उसकी राजधानी सांकल ( स्यालकोट ) थी ।
मिहिरकुल एक अत्याचारी शासक था , उसने 15 वर्षों तक शासन किया । मिहिरकुल बौद्ध धर्म के प्रति अनुदार था , उसने बौद्धों की हत्या की एवं उनके स्तूपों एवं विहारों को नष्ट किया । मन्दसौर अभिलेख से ज्ञात होता है कि मिहिरकुल को मालवा के शासक यशोधर्मा ने परास्त किया । मिहिरकुल की मृत्यु के बाद हूणों का पतन हो गया । गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद थानेश्वर में पुष्यभूति ने पुष्यभूति वंश की नींव डाली । इस वंश का प्रथम महत्वपूर्ण शासक प्रभाकर वर्द्धन था प्रभाकर वर्द्धन ने परमभट्टारक या महाराजाधिराज की उपाधि धारण की ।
प्रभाकर वर्द्धन के दो पुत्र राज्यवर्द्धन तथा हर्षवर्द्धन तथा एक पुत्री राज्य श्री थी । प्रभाकर वर्द्धन की मृत्यु के बाद राज्यवर्द्धन थानेश्वर का शासक बना लेकिन अल्पकाल में ही गौड़ के शासक शशांक ने उसकी हत्या कर दी ।
राज्यवर्द्धन के बाद लगभग 606 ई ० में 16 वर्ष की आयु में हर्षवर्द्धन थानेश्वर का शासक बना । हर्षवर्द्धन के शासन के विषय में जानकारी के प्रमुख स्रोत बाणभट्ट की रचनाएँ , ह्वेनसांग का यात्रा विवरण तथा स्वयं हर्ष के नाटक हैं । हर्षवर्द्धन स्वयं एक बड़ा , विद्वान , लेखक , नाट्यकार तथा कवि था ।
हर्षवर्धन ने प्रियदर्शिका , रत्नावली और नागानन्द नामक तीन नाटक लिखे थे । .
बाणभट्ट हर्षवर्द्धन का राजकवि था , उसने हर्षचरित , कादम्बरी तथा पार्वती – परिणय नामक ग्रन्थों की रचना की । राजा बनते ही हर्षवर्द्धन ने अपनी बहन राज्यश्री को शशांक के कैद से मुक्त कराया ।
हर्षवर्धन ने शशांक से युद्ध किया और पराजित कर कन्नौज पर अधि कार कर लिया ।
आरम्भ में हर्षवर्द्धन की राजधानी थानेश्वर थी , बाद में उसने कनौज को अपना राजधानी बनाया । हर्षवर्द्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत की यात्रा की थी ।
हेनसांग को यात्री सम्राट एवं नीति का सम्राट कहा गया है । हेनसांग भारत में नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने तथा बौद्ध ग्रन्थ संग्रह करने के उद्देश्य से आया था ।
हर्षवर्द्धन का एक अन्य नाम शिलादित्य था ।
हर्षवर्द्धन के दरबार में बाणभट्ट , मयूर , हरिदत्त एवं जयसेन जैसे प्रसिद्ध कवि एवं लेखक थे । वह प्रतिदन 500 ब्राह्मणों एवं 1000 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराता था । हर्ष ने 643 ई ० में कन्नौज तथा प्रयाग में दो विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन किया था । प्रयाग में आयोजित सभा को मोक्ष – परिषद् कहा जाता है । । हर्षवर्द्धन को दक्षिण भारत के शासक पुलकेशिन द्वितीय ( चालुक्य वंश ) . ने ताप्ती नदी के किनारे 630 ई ० में पराजित किया ।
हर्षवर्द्धन के शासन प्रबन्ध में राजा का सर्वोच्च स्थान था । राजा को ‘ परम भट्टारक ‘ , ‘ परमेश्वर ‘ , ‘ परम देवता ‘ , ‘ महाराजाधिराज ‘ आदि की उपाधियाँ प्राप्त थी । हर्ष का साम्राज्य शासन की सुविधा के लिए इकाइयों में बँटा हुआ था ।
हर्षवर्द्धन के शासनकाल में भूमि – कर कुल उपज का 1/6 हिस्सा लिया जाता था । ने हर्षवर्द्धन की मृत्यु 647 ई ० में हुई । पल्लव वंश की स्थापना सिंह विष्णु ( 575-600 ई ० ) ने की । सिंहविष्णु ने काँची ( तमिलनाडु ) को अपनी राजधानी बनाया , वह वैष्णव धर्म का उपासक था ।
किरातार्जुनीयम के रचनाकार भारवि सिंह विष्णु का दरबारी कवि था ।
पल्लव वंश का अन्तिम शासक अपराजित ( 879-897 ई ० ) था । पल्लव वंश के शासक नरसिंहवर्मन- द्वारा एकाश्मक रथ ( महाबलिपुरम् ) त् का निर्माण कराया गया । एकाश्म रथ चट्टान काटकर बनाया गया है तथा इसे धर्मराज रथ भी कहा जा जाता है । धर्मराज रथ तथा उसी स्थान पर बने 6 अन्य मन्दिर सामूहिक रूप से वं सप्तरथ अथवा 7 – पैगोडा कहलाते हैं ।
कैलाशनाथ मन्दिर ( काँची ) का निर्माण नरसिंहवर्मन- II , मुक्तेश्वर एवं बैकुंठ पेरुमाल मन्दिर ( दोनों काँची में ) का निर्माण पल्लव शासक नन्दीवर्मन ने किया । पल्लव शासक नरसिंहवर्मन -1 ने द्वारा वातापीकोंडा की उपाधि धारण की । श पल्लव शासक महेन्द्रवर्मन- I ने द्वारा मतविलास प्रहसन नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की ।
दशकुमारचरितम् का रचनाकार दंडी पल्लव शासक नन्दीवर्मन का ‘ T दरबारी कवि था । पल्लव शासक ‘ नन्दीवर्मन ‘ के ही समकालीन प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरूमङग ना अलवर थे । काँची के पल्लवों के संदर्भ में हमें प्रथम जानकारी हरिषेण के प्रयाग 11 प्रशस्ति एवं चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण से प्राप्त झेती है ।
पल्लव वंश के प्रथम शासक सिंहविष्णु ने माम्मलपुरम् के आदि वराह की गुहा मन्दिर का निर्माण किया । इस वंश के शासक नरसिंहवर्मन -1 ने चालुक्य शासक पुलकेशिन- II को । तीन युद्धों में परास्त किया ।
. नरसिंहवर्मन -1 ने एक बंदरगाह नगर महाबलिपुरम् ( काम्मलपुरम् ) की स्थापना काँची के नजदीक की ।
स्कन्दगुप्त ने गिरनार स्थित सुदर्शन झील पर बाँध का जीर्णोद्धार किया था । स्कन्दगुप्त की मृत्यु 467 ई ० में हुई । विष्णुगुप्त , कुमारगुप्त तृतीय का पुत्र था , वह अन्तिम गुप्त शासक था । गुप्तकालीन शासन – व्यवस्था में सम्राट दीवानी विभाग , सेना एवं न्याय प्रत्येक विभागों का सर्वोच्च अधिकारी होता था ।
गुप्त शासक परमदैवत , महाराजाधिराज , एकाधिराज , परमेश्वर तथा चक्रवर्तिन उपाधि धारण करते थे । राजा युद्धों में सेना का संचालन करता था तथा अमात्यों व मन्त्रियों की सहायता से शासन करता था । राज्य के सभी केन्द्रीय विभागों का प्रमुख सर्वाध्यक्ष कहलाता था ।
सम्राट से मिलने वालों के लिए आज्ञापत्र का वितरक अन्त : पुर एवं राजमहल का प्रमुख रक्षक प्रतिहार एवं महाप्रतिहार कहलाता था । सर्वोच्च सेनापति को महादंडनायक कहा जाता था । गजसेना का अध्यक्ष महापीलुपति तथा अश्वसेना का अध्यक्ष महाश्वपति कहलाता था ।
गुप्तकाल में कुमारामात्य नामक एक महत्वपूर्ण अधिकारी होता था , जो आधुनिक प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के समान था । गुप्तकाल में दण्डपाशिक पुलिस विभाग का प्रधान अधिकारी था । गुप्तकाल में मुख्य न्यायाधीश को महादण्डनायक कहा जाता था । गुप्तकाल में न्यायालयों की चार श्रेणियाँ कुल , श्रेणी , पुत्र तथा राजा का न्यायालय थी । प्रशासनिक सहुलियत के लिए साम्राजय को देश , भुक्ति अथवा अपनी जैसे प्रांतों में बाँटा गया था । भुक्ति के प्रशासक को उपरिक कहा जाता था , उसकी नियुक्ति सम्राट करता था । नगरों का प्रशासन महापालिकाओं द्वारा चलाया जाता था । पुरपाल नगर का मुख्य अधिकारी होता था ।
प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी जिसका ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था । गुप्तकाल में स्थानीय स्वशासन के अस्तित्व में होने का प्रमाण दामोदरपुर ताम्रपत्र अभिलेख से प्राप्त होता है । गुप्तकालीन समाज मुख्य रूप से चार वर्गों ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्र में विभाजित था । गुप्तकालीन अभिलेखों में सर्वप्रथम कायस्थ का उल्लेख मिलता है । 510 ई ० में सती प्रथा का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य ऐरण अभिलेख में मिलता है । गुप्त राजाओं ने सर्वाधिक संख्या में स्वर्ण मुद्राएँ जारी की , जिन्हें दिनार कहा जाता था ।
गुप्तकाल में प्रमुख शिक्षा केन्द्र नालन्दा , उज्जैन , पाटलिपुत्र , काँची , मथुरा , अयोध्या आदि थे । गुप्तकाल में गणिकाओं का उल्लेख मिलता है , वृद्ध वेश्याओं को कुट्टनी कहा जाता था । गुप्तकाल में कृषकों को कुल उपज का 1/6 हिस्सा कर के रूप में देना पड़ता था । दशपुर , बनारस , मथुरा और कामरूप कपड़ा उत्पादन के बड़े केन्द्र थे । वृहत्संहिता में गुप्त – काल के 22 रनों का उल्लेख मिलता है । गुप्तकाल में स्थिति में था । पेशावर , भड़ौंच , उज्जैयनी , बनारस , प्रयाग , मथुरा , पाटलिपुत्र , वैशाली एवं ताम्रलिप्ति आदि प्रमुख व्यापारिक केंद्र थे ।
उज्जैन सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था । इस काल में जल एवं स्थल मार्ग द्वारा मिस्र , फारस , रोम , यूनान , लंका , बर्मा , सुमात्रा , तिब्बत , चीन एवं पश्चिम एशिया से व्यापार होता था । नगरों में व्यापार करने वाले श्रेष्ठी व वैदेशिक व्यापार करने वालों का मुखिया सार्थवाह कहलाता था । गुप्तकाल में जिन महत्वपूर्ण चीजों का व्यापार होता था , वे थीं – रेशम , मसाले , कपड़ा , धातुएँ , हाथी दाँत एवं समुद्री उत्पाद आदि ।
गुप्तकाल में हिन्दू – धर्म के दो मुख्य सम्प्रदाय वैष्णव ( भागवत ) और शैव . . . . विकसित हुए ।
. अनेक गुप्त शासक वैष्णव धर्म के अनुयायी थे अत : उन्होंने इस धर्म को राजाश्रय प्रदान किया । गुप्तवंश के दो सर्वाधिक प्रतापी शासक समुद्रगुप्त व चन्द्रगुप्त द्वितीय भी वैष्णव धर्मावलम्बी ही थे । गुप्तकाल में वैष्णव धर्म सम्बंधी सबसे महत्वपूर्ण अवशेष देवगढ़ के दशावतार मन्दिर ( झाँसी ) से प्राप्त हुआ है ।
गुप्तकालीन प्रसिद्ध मन्दिर मन्दिर एवं स्थान
दशावतार मन्दिर – देवगढ़ ( झाँसी ) ।
2 . विष्णु मन्दिर – तिगवा ( म ० प्र ० , जबलपुर ) ।
शिव मन्दिर – खोह ( नगौद म ० प्र ० ) ।
पार्वती मन्दिर – नयना कुठार ( म ० प्र ० ) ।
भीतरगाँव मन्दिर – भीतर गाँव ( कानपुर ) ।
शिव मन्दिर भूमरा ( नगौद म ० प्र ० ) ।
गुप्तकाल में निर्मित भीतरी गाँव का मन्दिर कानुपर जिला ( उ ० प्र ० ) में स्थित है ।
विष्णु के 10 अवतारों में वराह एवं कृष्ण की पूजा का प्रचलन गुप्त काल में विशेष रूप से हुआ । गुप्त काल में कालीदास , शुद्रक , विशाखदत्त , भारवि , भोट्ट , भास , विष्णु शर्मा आदि जैसे कई साहित्यकार हुए । कालिदास ने मालविकाग्निमित्रम् , अभिज्ञानशाकुंतलम् तथा रघुवंशम् की रचना की । विशाखदत्त ने देवी चंद्रगुप्तम तथा भाष ने स्वप्नवासवदत्तम् जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की ।
सारनाथ से प्राप्त धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा में बुद्ध की मूर्ति गुप्तकाल की मूर्तिकला का सबसे भव्य नमूना 1 इसके अतिरिक्त बिहार के भागलपुर से मिली बुद्ध की ताममूर्ति एवं मथुरा से मिली बुद्ध की खड़ी मूर्ति विशेष है । साहित्यिक व कला के विकास के साथ ही गुप्त – युग में विज्ञान के क्षेत्र में भी प्रगति हुई । आर्यभट्ट गुप्त युग में ही सर्वप्रथम यह प्रमाणित किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है तथा पृथ्वी व सूर्य के मध्य चन्द्रमा आ जाने से सूर्यग्रहण होता है । 1-20 . गुप्तकाल में । .
व्याशुद्दीन तुगलक ने दिल्ली पर तुगलक वंश ( 1320-98 ई . ) का शासन प्रारंभ किया । 1321 ई . में प्रताप रुद्रदेव के विरूद्ध तेलंगाना में ग्यासुद्दीन तुगलक ने सैन्य अभियान करवाया । तेलंगाना का सैन्य अभियान जौना खाँ ( मुहम्मद – बिन – तुगलक ) के नेतृत्व में हुआ । ग्यासुद्दीन तुगलक ने 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया । ग्यासुद्दीन ने अपने साम्राज्य में सिंचाई की व्यवस्था की तथा सम्भवतः नहरों ( canals ) का निर्माण करने वाला पहला शासक था । ग्यासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के समीप तुगलकाबाद नाम का एक नया नगर स्थापित किया । रोमन शैली में निर्मित तुगलकाबाद में छप्पनकोट नामक एक दुर्ग का निर्माण भी हुआ । ग्यासुद्दीन तुगलक की मृत्यु 1325 ई ० में बंगाल के अभियान से लौटते समय जूना खाँ द्वारा निर्मित लकड़ी के महल में दबकर हो गयी । बिहार के मैथिली कवि विद्यापति की रचनाओं में ग्यासुद्दीन तुगलक के महत्वपूर्ण विवरण प्राप्त होते हैं । ग्यासुद्दीन तुगलक के मृत्यु के बाद जौना खाँ , मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा । भारतीय इतिहास में मुहम्मद बिन तुगलक पागल , सनकी , रक्तपिपासु आदि नामों से जाना जाता है । मुहम्मद बिन तुगलक के काल में दिल्ली सल्तनत का साम्राज्य सर्वाधि क विस्तृत था । मुहम्मद बिन तुगलक मध्यकालीन सभी सुल्तानों में सर्वाधिक शिक्षित तथा विद्वान था । मुहम्मद बिन तुगलक ने चार योजनाओं को क्रियान्वित किया जो इस प्रकार थे ( i ) राजधानी दिल्ली का दौलताबाद स्थानान्तरण । ( i ) सोना चाँदी के स्थान पर ताँबे एवं पीतल के सांकेतिक मुद्रा ( Token currency ) का प्रचलन । ( i ) दोआब क्षेत्र में भू – राजस्व की दर कुल उपज का 1/2 करना । ( iv ) कराचिल एवं खुरासन का विफल अभियान । . मुहम्मद तुगलक ने एक नये कृषि विभाग दीवान – ए – अमीर कोही की स्थापना की । अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता मुहम्मद तुगलक के समय में भारत आया था । 1333 ई ० में मुहम्मद – बिन – तुगलक ने इब्नबतूता को दिल्ली का काजी नियुक्त किया । मुहम्मद – बिन – तुगलक ने इब्नबतूता को 1342 ई ० में राजदूत बना कर चीन . भेजा । मुहम्मद – बिन – तुगलक के शासनकाल में दक्षिण में हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने 1336 ई ० में स्वतन्त्र राज्य विजयनगर की स्थापना की । 1347 ई ० में महाराष्ट्र में अलाउद्दीन बहमन शाह ने बहमनी साम्राज्य की स्थापना की । मुहम्मद – बिन – तुगलक के शासनकाल में सर्वाधिक विद्रोह हुए जिसके परिणामस्वरूप लगभग पूरा दक्षिण का राज्य स्वतन्त्र हो गया । मुहम्मद – बिन – तुगलक के शासनकाल में कान्हा नायक ने विद्रोह कर स्वतन्त्र वारंगल राज्य की स्थापना की । मुहम्मद – बिन – तुगलक ने इंशा – ए – महरु नामक पुस्तक की रचना की । 1341 ई ० में चीनी सम्राट तोगनतिमुख ने अपना राजदूत भेजकर मुहम्मद • बिन तुगलक से हिमाचल प्रदेश के बौद्ध मन्दिरों के जीर्णोद्धार के लिए अनुमति मांगी । जैन सन्त जिन चन्द्रसूरी को मुहम्मद तुगलक ने सम्मानित किया । मुहम्मद – बिन – तुगलक की मृत्यु थट्टा में हुई । मुहम्मद तुगलक की मृत्यु पर बदायूनी ने लिखा कि ” सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गई । “
मुहम्मद – बिन – तुगलक की मृत्यु के पश्चात् उसका चचेरा भाई फिरोजशाह -तुगलक ( 1351-88 ई . ) दिल्ली की गद्दी पर बैठा ।
मालवा के शासक महमूद खिलजी ने मुहम्मद शाह के समय दिल्ली पर 3 . आक्रमण किया । मुहम्मद शाह की मृत्यु ( 1444 ई . ) के बाद उसका पुत्र अलाउद्दीन 5 . आलमशाह के नाम से गद्दी पर बैठा । आलमशाह ( 1445-51 ई . ) अपनी राजधानी दिल्ली से हटाकर बदायूं ले 7 . गया । 1451 ई ० में आलमशाह ने बहलोल लोदी को दिल्ली का राज्य पूर्णत : सौंप दिया और स्वयं बदायूं की जागीर में रहने लगा । 37 वर्ष के शासन के बाद सैय्यद वंश का अन्त हो गया तथा लोदी वंश की नींव पड़ी । लोदी वंश ( 1451-89 ई . ) की स्थापना बहलोल लोदी ने 1451 ई . में किया । बहलोल लोदी ( 1451-89 ई . ) दिल्ली में प्रथम अफगान शासक था । बहलोल लोधी ने शाह गाजी की उपाधि धारण की । बहलोल लोदी ने बहलोल सिक्के का प्रचलन किया । 1489 ई ० में बहलोल लोदी की मृत्यु हो गयी । बहलोल लोदी का पुत्र सुल्तान सिकन्दर शाह लोदी 1489 ई . में सिंहासन पर बैठा । सिकन्दर लोदी ने 1504 ई ० में आगरा शहर की स्थापना की तथा इसे अपनी नयी राजधानी बनाया । सिकन्दर लोदी ने भूमि माप के लिए सिकन्दरी गज का प्रचलन करवाया । सिकन्दर लोदी ( 1489-1517 ई . ) गुलरुखी के उपनाम कविताएँ लिखता था । सिकन्दर लोदी ने मुसलमानों द्वारा ताजिया निकालने तथा मुस्लिम स्त्रियों 2 . 3 द्वारा पीरों एवं सन्तों की मजार पर जाने को प्रतिबंधित कर दिया । 3 . सिकन्दर लोदी ने संस्कृत के ग्रन्थ आयुर्वेद का फरंहग – ए – सिकन्दरी के नाम 4 . व से फारसी में अनुवाद करवाया । 5 . सिकन्दर लोदी ने नगरकोट के ज्वालामुखी मन्दिर की मूर्ति को तोड़कर 6 . उसके टुकड़ों को कसाइयों को मांस तौलने के लिए दे दिया था । 7 . 21 नवम्बर , 1517 ई ० को सिकन्दर लोदी की मृत्यु हो गयी । अ सिकन्दर लोदी के मृत्यु के बाद 22 नवम्बर 1517 ई ० को उसका पुत्र PO इब्राहिम शाह लोदी गद्दी पर बैठा । बा इब्राहिम लोदी ( 1517-26 ई . ) के शासनकाल की महत्वपूर्ण घटना निः पानीपत का प्रथम युद्ध है । अब पानीपत का प्रथम युद्ध ( अफगानिस्तान ) के शासक ‘ बाबर ‘ तथा इब्राहिम लोदी के बची 1526 ई . में हुआ । 8 . सर उपरोक्त युद्ध में इब्राहिम लोदी को परास्त कर भारत में मुगल वंश की 9 . शह स्थापना की । 11. बरी बाबर को भारत पर आक्रमण का न्यौता पंजाब के शासक दौलत खाँ 10. अर्म लोधी ने दिया था । दौलत खाँ लोधी , इब्राहिम लोधी का चाचा था । में ) सल्तनत साम्राज्य एक प्रकार का ‘ धार्मिक राजतन्त्र ‘ ( Religious Monarchy ) बिह था । सल्तनत काल में इस्लाम को राजधर्म घोषित किया गया । प्रान्त अलाउद्दीन खिलजी ने सर्वप्रथम ‘ खलीफा ‘ के वर्चस्व को चुनौती दी तथा सल उसके नाम का ‘ खुतबा ‘ पढ़ने एवं उसके नाम के सिक्के ‘ ढालने की प्रथा जात बन्द कर दी । इक्त अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी ने स्वयं को 147 ” खलीफा ‘ घोषित कर खलीफा के महत्व को नकार दिया । ” शित सल्तनत काल में , सुल्तान प्रशासन के सभी विभागों का प्रमुख होता था । अधि सुल्तान को प्रशासन में मदद करने के लिए मजलिस – ए – खिलवत नामक गाँवों मंत्रिपरिषद् थी । होते . परंतु , सुल्तान मजलिस – ए – खिलवत की सलाह मानने को बाध्य नहीं था । सबस सुल्तान अपने दैनिक कार्य बार – ए – आजम ( जनसभा हॉल ) में निपटाता ग्राम र था । . सल्तनतकालीन केन्द्रीय शासन में निम्न विभाग थे इब्नब समूह 1. वित्त मन्त्रालय ( Finance Ministry ) – प्रधानमंत्री विभाग । २. दीवान – ए – रिसालत ( Department of Apeals ) – अपील विभाग ।
. 3 . दीवान – ए – इंशा ( Department of Drafting ) – आलेख विभाग । 4 . दीवान – ए – आरज ( Department of Military ) – सैन्य विभाग । न 5 5 . दीवान – ए – खैरात ( Department of Charity ) – दान विभाग । 6 . दीवान – ए – वंदगान ( Slave Department ) – दास विभाग । ले 7. दीवान – ए – इस्तेफाक – पेंशन विभाग ( Department of Pension ) | मुहम्मद – बिन – तुगलक ने दीवान – ए – अमीर कोही नाम कृषि विभाग की 7 : स्थापना की । अलाउद्दीन खिलजी ने वित्त मंत्रालय के अधीन दीवान – ए – मुस्तखराज श नामक एक नया विभाग स्थापित किया । दीवान – ए – मुस्तखराज का कार्य कर अधिशेष ‘ का हिसाब रखना था । में जलालुद्दीन खिलजी ने भी एक नए विभाग दीवान – ए – वकूफ की स्थापना की । 1 ‘ दीवान – ए – वकूफ ‘ की स्थापना आय – व्यय के कागजातों की देखभाल करने के लिए किया गया था । सल्तनत प्रशासन में सुल्तान के बाद सर्वाधिक शक्तिशाली मन्त्री वजीर था । वजीर , वित्त मंत्रालयका प्रधान होता था । न वजीर गुप्तचर , डाक , धर्मार्थ संस्थाएँ तथा कारखानों आदि का भी प्रधान होता था , वह सुल्तान की अनुपस्थिति में उसके कार्यों का सम्पादन करता था । नायब वजीर वजीर का सहायक था तथा वजीर की अनुपस्थिति में उसके कार्यों को देखता था । सल्तनत काल में कुछ अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारी निम्नवत् धे 1 . मजमुआदार – आय – व्यय को ठीक रखने वाला पदाधिकारी । 2. आरिज – ए – मुमालिक – सेना मन्त्री । 3 . सद्र – उस – सुदूर – धर्म एवं राजकीय दान विभाग का अध्यक्ष । 4 . वकील – ए – दर – सुल्तान की व्यक्तिगत सेवाओं का प्रबन्धक । 5 . अमीर – ए – हाजिब – दरबारी शिष्टाचार को लागू करवाने वाला पदाधिकारी । 6. खजीन – खजाँची । 7. काजी – उल – कुजात – मुख्य न्यायाधीश । अलाउद्दीन खिलजी ने बाजार नियंत्रण व्यवस्था ( Market controll Policy ) लागू की । बाजार नियंत्रण व्यवस्था के अंतर्गत सभी वस्तुओं के सरकार दाम निर्धारित थे । अलाउद्दीन ने व्यापारियों की बेईमानी से आम जनता को बचाने के लिए मुहतसिब एवं बरीद जैसे गुप्तचार नियुक्त किए थे । 8. सरजांदार – सुल्तान के अंग – रक्षकों का नायक । 9 . शहना – ए – पील – हस्तिशाला का अध्यक्ष । 11. बरीद – गुप्तचर । 10. अमीर – ए – आखुर – अश्वशाला का अध्यक्ष । सल्तनत काल में ‘ सूबों ‘ ( प्रान्तों ) की संख्या 2 से 31 ( विभिन्न कालों में ) तक थी । बिहार के उत्तरी हिस्से में तिरहुत नामक एक नये प्रान्त का गठन ग्याशुद्दीन तुगलक द्वारा किया गया । प्रान्तीय शासन का संचालन नायब , वली अथवा मुक्ति के हाथों में था । सल्तनत को 13 वीं शताब्दी में सैनिक क्षेत्रों में बाँटा गया , जिसे इक्ता कहा जाता था । इक्ता का प्रधान मुक्ति ( एक शक्तिशाली सैन्य – अधिकारी ) होता था । 14 वीं शताब्दी में शिक्कों ( जिलों ) का गठन हुआ । ‘ शिक्क ‘ का शासन देखने की जिम्मेदारी नाजीम या अमील नामक अधिकारी की थी । गाँवों में मुकदम की सहायता के लिए पटवारी एवं कारकून ( क्लर्क ) होते थे । सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई ग्राम थी । . ग्राम का प्रमुख मुकदम ,, खुत अथवा चौधरी कहलाता था । इब्नबतुता में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई सादी ( 100 गाँवों का समूह ) को माना है ‘ नगर ‘ का प्रशासन अमीर – ए – सदा नामक अधिकारी के हाथों में थी ।
‘ इस्लामिक शरा ‘ में राजकीय आय के पाँच साधनों , जकात , जजिया , . .
.
. फिरोजशाह तुगलक का राज्याभिषेक थट्टा में हुआ तथा पुन : 1351 ई ० में दिल्ली में दोबारा राज्याभिषेक हुआ । फिरोज तुगलक ने 24 कष्टकारी करों को समाप्त किया । फिरोज तुगलक ने शरीयत द्वारा स्वीकृत 4 करों जजिया , जकात , खराज एवं खम्स को ही मुख्य रूप से रखा । ‘ जजिया ‘ गैर – मुसलमानों पर लगाया जाने वाला कर था । फिरोज तुगलक ने ‘ ब्राह्ममर्गों पर भी ‘ जजिया कर ‘ लगाया । फिरोज ने सिंचाई कर हक – ए – शर्ब लगाया जो सिंचित भूमि के कुल उपज का 1/10 था । फिरोज तुगलक ने 5 बड़ी नहरों का निर्माण करवाया । उसने फिरोजाबाद , हिसार , जौनपुर , फतेहाबाद आदि नगरों की स्थापना की । फिरोज तुगलक ने सर्वप्रथम राज्य के आय का प्रमाणिक ब्यौरा तैयार करवाया । फिरोज तुगलक ने अशोक के खिजाबाद ( टोपरा ) एवं मेरठ में स्थित दो स्तम्भों को वहाँ से स्थानांतरित कर दिल्ली में स्थापित किया । फिरोज तुगलक ने अनाथ मुस्लिम महिलाओं , विधवाओं एवं लड़कियों के लिए दीवान – ए – खैरात ( दान – विभाग ) की स्थापना की । फिरोज तुगलक के शासनकाल में सल्तनतकालीन सुल्तानों में दासों की संख्या सर्वाधिक ( लगभग 1,80,000 ) थी । उसने दासों के लिए दीवान – ए – वन्द्गान ( दास विभाग ) की स्थापना की । फिरोज के दरबार में विद्वान जियाउद्दीन बरनी तथा शम्से शिराज अफीफ रहता था । बरनी और शम्से शिराज अफीफ ने तारीख – ए – फिरोजशाही की रचना की । फिरोज तुगलक ने स्वयं आत्मकथा लिखी जो फुतूहाते – फिरोजशाही के नाम से जाना जाता है । फिरोज तुगलक ने दिल्ली के निकट दार – उल – सफा नामक एक खैराती अस्पताल खोला । फिरोज तुगलक ने चाँदी एवं ताँबे के मिश्रण से शशगनी , अद्धा एवं विश्व जैसे सिक्के चलाये । फिरोज तुगलक के काल में खान – ए – जहाँ तेलंगानी के मकबरे का निर्माण . . . हुआ । खान – ए – जहाँ तेलंगानी के मकबरे की तुलना जेरुशलम के उमर मस्जिद से की जाती है । दिल्ली स्थित फिरोजशाह कोटला दुर्ग फिरोज तुगलक द्वारा ही निर्मित करवाया गया । फिरोजशाह ने अपने जाजनगर ( उड़ीसा ) अभियान के दौरान पुरी के जगन्नाथ मन्दिर को ध्वस्त किया तथा नागरकोट अभियान के दौरान ज्वालामुखी मन्दिर को ध्वस्त कर इसे लूटा । फिरोज तुगलक ने लगभग 300 प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों का फारसी अनुवाद आजउद्दीन खालिद द्वारा दलायले – फिरोजशाही के नाम से करवाया । नासिरुद्दीन महमूद तुगलक तुगलक वंश का अन्तिम शासक था । नसिरूँद्दीन महमूद तुगलक के ही शासनकाल में तैमूरलंग ने 1398 ई ० में भारत पर आक्रमण किया । तैमूरलंग के सेनापति खिज्र खाँ ने दिल्ली पर सैय्यद वंश ( 1414-50 ई . ) के शासन की स्थापना की । खिज खाँ ( 1412-21 ई . ) ने रैय्यत – ए – आला की उपाधि धारण की । 20 मई , 1421 ई ० को खिज्र खाँ की मृत्यु हुई । खिज्र खाँ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मुबारक शाह ( 1421-34 ई . ) सुल्तान बना । मुबारक शाह ने यमुना के तट पर मुबारकाबाद नामक नगर बसाया । उसके आश्रय में प्रसिद्ध इतिहासकार ‘ याह्या – बिन – अहमद सरहिन्दी ‘ थे । इसकी पुस्तक तारीख – ए – मुबारक शाही से सैय्यद वंश के विषय में जानकारी मिलती है । 19 फरवरी , 1434 ई ० को उसके एक सरदार सरवर – उल – मुल्क ने एक षड्यन्त्र द्वारा उसकी हत्या करवा दी ।
मुहम्मद शाह ( 1414-43 ई . ) के काल में दिल्ली सल्तनत में अराजकता व कुव्यवस्था व्याप्त रही ।
.
. खिराज , खम्स एवं उश का उल्लेख है । खराज गैर – मुसलमानों से तथा उथ मुसलमानों से वसूला जाने वाला कर था । 6 जकात गैर – मुसलमानों से वसूला जाने वाला एक धार्मिक कर था । 7 . जजिया कर हिन्दुओं से वसूला जाता था । 8 युद्ध से प्राप्त लूट के माल में राज्य के हिस्से को खम्स कहा जाता था । 9 खानों से होने वाली आय , निर्यात – आयात कर , आबकारी कर , यात्रा कर , गृह कर एवं सिंचाई कर इत्यादि राजकीय आय के अन्य स्रोत थे । सिंचाई कर को हक – ए – शर्ब कहा जाता था । ‘ हक – ए – शर्ब ‘ फिरोज तुगलक के शासनकाल में अध्यारोपित किया गया । फिरोज तुगलक ने ब्राह्मणों पर भी ‘ जजिया कर ‘ लगाया । सल्तनत काल में राज्य की समस्त भूमि को चार वर्गों में बाँट दिया गया इक्ता , 2. खालसा , 3. अनुदान , 4. समांतों की भूमि । खालसा भूमि पूर्णतः केन्द्रीय सरकार के अधीन थी । भू – राजस्व की सिंचित भूमि पर 10 % तथा गैर – सिंचित भूमि पर 5 % लिया 1 जाता था । ‘ खराज ‘ नामक कर कुल उपज का 1/3 से 2/3 भाग वसूला जाता था । दिल्ली सल्तनत के शासकों में सर्वप्रथम इल्तुतमिश ने शुद्ध अरबी सिक्के सल्तनत काल में जीतल ( ताँबे का ) , टंका ( चाँदी का ) , दिल्लीवाल तथा बहलोली आदि सिक्के तथा स्वर्ण मुहरें प्रचलित थीं । चाँदी के ‘ टंका ‘ का मूल्य 175 ग्रेन था । सल्तनत काल में देश का सबसे बड़ा उद्योग वस्त्रोद्योग था । बंगाल , गुजरात , बनारस , उड़ीसा , सूरत , काम्बे , पटना , बुरहानपुर , दिल्ली , आगरा , मुल्तान एवं थट्टा सल्तनत काल के प्रमुख व्यापारिक केन्द्र थे । सल्तनत काल में बंगाल रेशमी एवं सूती वस्त्रों के उत्पादन के लिये विख्यात था । सल्तनत काल में भारत का विदेश व्यापार ( Foreign Trade ) प्रशांत महासागर तथा भूमध्य सागरीय देशों से होता था । सल्तनत काल में देवल अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह के रूप में प्रसिद्ध था । सल्तनत काल में सेना का गठन ‘ दशमलव पद्धति ‘ पर किया गया था । सल्तनत काल में सेना मूल रूप से दो प्रकार की थी । ( i ) हश्म – ए – कल्ब – सुल्तान द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नियुक्त एवं सीधे उसके ( सुल्तान के ) नियन्त्रण में रहने वाले सैनिक । सा ( ii ) हश्म – ए – अतरफ – सुल्तान के सामंतों एवं प्रान्तपतियों द्वारा नियुक्त तथा उनके ही नियन्त्रण में रहने वाले सैनिक । सैन्य – विभाग को दीवान – ए – आरज कहा जाता था । 10 अश्वारोहियों की टोली को सर – ए – खैल कहा जाता था । 10 सर – ए – खैल के ऊपर एक सिपहसलार तथा 10 सिपहसलार के ऊपर एक अमीर होता था । 10 अमीर मलिक के अधीन तथा 10 मलिक एक खान के अधीन होते थे । सल्तनत काल में साम्राज्य का प्रधान न्यायाधीश सुल्तान होता था । सुल्तान के पश्चात् इस विभाग का सर्वोच्च पद काजी – उल – कुजात ( मुख्य काजी ) का था । काजी – उल – कुजात शीर्ष स्तर पर मुकदमों का निर्णय देता था । कस्बों एवं गाँवों के विवादों का निपटारा पंचायतों द्वारा किया जाता था । प्रान्तों में वली , काजी – ए – सूबा , दीवान – ए – सूबा तथा सद – ए – सूबा आदि के चार प्रकार के न्यायालयों के अस्तित्व में रहने का प्रमाण मिलता है । इस्लामी कानूनों की व्याख्या मुजतहिद करता था । शान्ति व्यवस्था को बनाने के लिए एक ‘ पुलिस विभाग ‘ था , जिसका प्रमुख कोतवाल होता था ।
कुवावुत – ईस्लम – मस्जिद भारत में पहली तुर्क मस्जिद थी , इसका निर्माण के 1193 ई ० में हुआ । इल्तुतमिश के मकबरे की दीवारें कुरान की आयतों से सजी हैं । भारत में वैज्ञानिक रूप से पहली बार गोल गुंबद का निर्माण ‘ अलाई दरवाजा ‘ में किया गया । त ‘ अटाला मस्जिद ‘ का निर्माण जहाँ हुआ वहाँ पहले अटाला देवी का मन्दिर था । झंझरी मस्जिद का निर्माण ‘ हजरत सईद सद्र जहाँ अजमली ‘ के सम्मान । में करवाया गया । 1301 ई ० में साहुदेव नामक एक हिन्दू ने कश्मीर में हिन्दू राज्य की 1 स्थापना की । 1339-40 ई ० में शाह मीर ( शमशुद्दीन शाह ) ने कश्मीर में प्रथम का मुस्लिम वंश की स्थापना की । हिन्दू मन्दिर एवं मूर्तियों को तोड़ने के कारण कश्मीर के शासक सिकन्दर को बुतशिकन कहा गया । 1420 ई ० में जैन – ऊल – आबदीन कश्मीर के सिंहासन पर बैठा । धार्मिक रूप से आबदीन सहिष्णु था , अत : उसे कश्मीर के अकबर की संज्ञा दी गई । जैन – ऊल – आबदीन ने महाभारत एवं राजतरंगिणी का फारसी में अनुवाद श करवाया ।
जैन – ऊल – आबदीन ने वूलर झील में जैनालंका नामक कृत्रिम द्वीप का निर्माण करवाया ।
. . 1588 ई ० में अकबर ने कश्मीर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया । मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में बंगाल स्वतन्त्र हो गया था । शम्सुद्दीन इलियास शाह बंगाल 1345 ई ० में बंगाल का नवाब बना । शम्सुद्दीन ने एक नए राजवंश इल्यास शाही राजवंश की स्थापना की । 1375 ई ० में शम्सुद्दीन के मृत्यु के बाद सिकन्दर सुल्तान बना । सिकन्दर शाह ने पांडुआ में अदीना मस्जिद का निर्माण करवाया । 1493 ई ० में शासक बने ‘ अलाउद्दीन हुसैन शाह ‘ ने अपनी राजधानी को पांडुआ से गौड़ स्थानान्तरित किया । चैतन्य महाप्रभु अलाउद्दीन के समकालीन थे । अलाद्दीन ने सत्यपीर नामक आन्दोलन की शुरूआत की । अलाउद्दीन के शासन काल में मालधर बसु ने श्री कृष्ण विजय की रचना कर गुणराज खान की उपाधि धारण की । बंगाल के एक अन्य शासक ‘ नसीब खाँ ‘ के कार्यकाल में महाभारत का बंगला भाषा में अनुवाद तथा गौड़ में कदमरसूल मस्जिद का निर्माण करवाया । बंगाल में हुसैनशाही वंश का अन्तिम शासक ‘ ग्याशुद्दीन महमूदशाह ‘ था । मालवा राज्य 1398 ई ० में तैमूर के आक्रमण के बाद स्वतन्त्र हो गया । मालवा के सूबेदार दिलावर खाँ गोरी 1401 ई ० में मालवा को स्वतन्त्र घोषित कर दिया । दिलावर खाँ ने धार की लाट मस्जिद का निर्माण करवाया । 1405 ई ० में शासक बने हुशंगशाह ने मालवा की राजधानी से माण्डू को स्थानान्तरित किया । ‘ माण्डू के किले ‘ का निर्माण हुशंगशाह ने करवाया था , जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है – दिल्ली दरवाजा । हुशंग शाह ने नर्मदा तट पर होशंगाबाद नगर की स्थापना की । 1435 ई ० में शासक बने महमूदशाह खिलजी ने माण्डू में सात मंजिलों वाले महल का निर्माण करवाया । मेवाड़ के राणा कुंभा ने महमूद खिलजी को युद्ध में परास्त कर चित्तौड़ में कैद कर लिया । Ye राणा कुंभा ने विजय की स्मृति में विजय स्तम्भ ( चित्तौड़ ) का निर्माण करवाया । जहाज महल का निर्माण 1469 ई ० में शासक बने ग्यासुद्दीन खिलजी ने मांडू में करवाया । 1500 ई ० में शासक बने नासिरुद्दीन शाह ने बाज बहादुर एवं रुपमति महल का निर्माण करवाया । खिलजी वंश के अन्तिम शासक ‘ महमूदशाह द्वितीय ‘ ने फतेहाबाद नामक स्थान पर महमूद खिलजी के कुश्क महल का निर्माण करवाया । गुजरात के बहादुरशाह ने महमूदशाह द्वितीय को युद्ध में परास्त कर दिया तथा 1531 ई ० में मालवा का गुजरात में विलय हो गया । 1401 ई ० में जफर खाँ के नेतृत्व में गुजरात स्वतन्त्र हो गया । अहमदशाह गुजरात के स्वतन्त्र राज्य का वास्तविक संस्थापक था । अहमदशाह ने असावल के समीप अहमदनगर नामक नगर की स्थापना की । उसने अपनी राजधानी अहमदनगर स्थानान्तरित की । महमूद बेगड़ा गुजरात का प्रसिद्ध शासक था । महमूद बेगड़ा ने गिरनार के निकट मुस्तफाबाद नामक नगर और चम्मानेर के निकट मुहम्मदाबाद नगर बसाया । महमूद बेगड़ा ने गुजरात के समुद्रतट से पुर्तगालियों को भगाने के लिए मिन तथा कालीकट के शासकों से सन्धि की । 1 . 1507 ई ० में ड्यू द्वीप के पास हुए सामुद्रिक युद्ध में महमूद बेगड़ा ने 2 . पुर्तगालियों को पराजित किया , परन्तु , 1509 ई ० में वह पुर्तगालियों से 3 . हार गया । गुजरात को अकबर ने 1572 ई ० में मुगल साम्राज्य के अधीन कर लिया । जौनपुर की स्थापना फिरोज तुगलक ने अपने भाई जौना खाँ की स्मृति में की थी । जौनपुर में स्वतन्त्र शर्की राज्य का संस्थापक ख्वाजा जहाँ था ।
1394 ई ० में फिरोजशाह तुगलक के पुत्र सुल्तान महमूद ने खाजा जहान को मलिक- उस – शर्क ( पूर्व का स्वामी ) की उपाधि प्रदान की । . .
शर्की वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक शम्सुद्दीन इब्राहीम शाह हुआ । शम्सुद्दीन इब्राहिम शाह के समय में , जौनपुर को साहित्य एवं स्थापत्य के कारण भारत का सीराज कहा गया । जौनपुर का अन्तिम शर्की शासक हुसैन शाह शर्की था । जौनपुर राज्य लगभग 75 वर्षों तक स्वतन्त्र रहने के बाद बहलोल लोदी द्वारा दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया । मेवाड़ मध्य काल में सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था तथा इसकी राजधानी चितौड़ थी । 1303 ई ० में अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ के गुहिलौत राजवंश के शासक रत्नसिंह को पराजित कर मेवाड़ को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया । अलाउद्दीन रत्नसिंह की रानी पद्मिनी को प्राप्त करना चाहता था , लेकिन पद्मिनी ने जौहर व्रत ( सती होना ) धारण कर स्वयं को समाप्त कर लिया । 1314 ई ० में सिसोदियों वंश के हम्मीरदेव ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया । मेवाड़ के अन्य प्रसिद्ध शासक राणा कुंभा ( 1433-68 ई ० ) एवं राणा सांगा ( 1509-28 ई ० ) थे । राणा कुंभा ने मेवाड़ में 22 दुर्गों का निर्माण करवाया , जिसमें कुम्भलगढ़ का दुर्ग मुख्य रूप से प्रसिद्ध है । 1527 ई ० में राणा सांगा एवं बाबर के बीच खनवा का युद्ध हुआ जिसमें बाबर विजयी हुआ । 1576 ई ० में मेवाड़ के प्रसिद्ध शासक राणा प्रताप को अकबर ने हल्दी घाटी के युद्ध में परास्त किया । मेवाड़ को मुगल सम्राट जहाँगीर ने मुगल साम्राज्य में मिला लिया । आधुनिक मारवाड़ का संस्थापक चुन्द था , उसने 1394 ई ० में उसकी स्थापना की । मारवाड़ पर राठौर वंश का शासन था । मारवाड़ के शासक जोधा ने जोधपुर एवं बिक्का ने बिकानेर शहरों की स्थापना की । जोधा ने नन्दौर के प्रसिद्ध दुर्ग का निर्माण करवाया । मारवाड़ का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक मालदेव ( 1532-62 ई ० ) था , उसने शेरशाह को मारवाड़ जीतने नहीं दिया । महमूद गजनी ने 1010 ई ० में सिन्ध पर अधिकार कर लिया तथा 50 वर्षों तक शासन किया । 1210 ई ० में सिन्ध पर नासिरुद्दीन कुबाचा ने अधिकार कर लिया । 1382 ई ० में फिरोजशाह तुगलक के सूबेदार मलिक राजा फारुकी ने खानदेश की स्थापना स्वतन्त्र मुस्लिम राज्य के रूप में की थी । उसके नाम पर उसके वंश का नाम फारुखी वंश पड़ा । खानदेश की राजधानी बुरहानपुर थी । खानदेश का सैनिक मुख्यालय असीरगढ़ में स्थित था । मल्लिक नासिर ने 1399-1438 ई ० तक तथा आदिल शाह ने 1457-1503 ई ० तक खानदेश पर शासन किया ।
1601 ई ० में मुगल सम्राट अकबर ने खानदेश को मुगल साम्राज्य में . मिला लिया ।
विजय नगर साम्राज्य की राजधानी ‘ तुंगभद्रानदी के किनारे हम्पी थी ।
वि हरिहर एवं बुक्का ने अपने पिता संगम के नाम पर संगम वंश की स्थापना बुक्का प्रथम ने वेदमार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की । देवराय प्रथम के शासनकाल में इटली के यात्री निकोलस कॉण्टी ने विजय नगर की यात्रा की । देवराय द्वितीय संगम वंश का सबसे प्रतापी राजा था तथा इसे इमाडिदेवराय के नाम से भी जाना जाता है । देवराय द्वितीय के शासनकाल में फारसी राजदूत अब्दुर्रज्जाक ने विजयनगर की यात्रा की । देवराय द्वितीय को एक अभिलेख में जगबेटकर ( हाथियों का शिकारी ) की उपाधि दी गई है । विजयनगर में सालुव वंश की स्थापना सालुव नरसिंह ने 1485 ई ० में की । सालुव नरसिंह के शासनकाल में आने वाला प्रसिद्ध पुर्तगाली यात्री नूनिज . था । वीर नरसिंह ने विजयनगर में तुलुव वंश की स्थापना 1505 ई ० में की । कृष्णदेव राय तुलुव वंश का महान शासक था , वह 8 अगस्त 1509 ई ० को गद्दी पर बैठा । वि कृष्णदेव राय ने यवनराज स्थापनाचार्य की उपाधि धारण की । प्र कृष्णदेव राय ने अपने प्रथम सैनिक अभियान ( 1509-10 ई ० ) में बीदर fe के सुल्तान महमूद शाह को हराया । TC कृष्णदेव राय का अन्तिम सैनिक अभियान बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिल के विरुद्ध हुआ , उसे हराकर गुलबर्गा के किले को नष्ट कर दिया । कृष्णदेव राय के शासनकाल में पुर्तगाली शासक अल्बुकर्क था । पुर्तगाली यात्री डोमिगोस पायस कृष्णदेव राय के शासनकाल में विजयनगर की यात्रा पर आया था । कृष्णदेव राय ने नागलपुर नामक नए नगर की स्थापना की थी । कृष्णदेव राय के शासनकाल को तेलुगु साहित्य का क्लासिक युग कहा गया है । कृष्णदेव राय के दरबार में तेलुगु साहित्य के आठ सर्वश्रेष्ठ कवि थे , जिन्हें अष्टदिग्गज कहा गया है । कृष्णदेव राय के अष्टदिग्गज में सर्वाधिक उल्लेखनीय तेलुगु कवि अल्लसानि पेद्वन था , जिन्हें तेलुगु कविता के पितामह की उपाधि प्रदान की गयी थी । ” तेनाली राम ‘ कृष्णदेव राय के दरबार का अन्तिम व आठवाँ कवि था । इनकी प्रसिद्ध रचना पाण्डुराम महात्म्य है । कृष्णदेव राय ने तेलुगु में अमुक्त्माल्यम एवं संस्कृत में जाम्बबती कल्याणम् की रचना की । कृष्णदेव राय वैष्णव धर्म का अनुयायी था । कृष्णदेव राय ने हजारा और विट्ठलस्वामी मन्दिरों का निर्माण करवाया था । कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 ई ० में हो गयी । तुलुव वंश का अन्तिम शासक सदाशिव था । सदाशिव राय के शासनकाल में प्रसिद्ध युद्ध तालीकोटा या राक्षसीतंगड़ी का युद्ध 25 जनवरी 1565 में हुआ । तालीकोटा या राक्षसीतंगड़ी का युद्ध बीजापुर , अहमदनगर , गोलकुण्डा एवं बीदर के संयुक्त मोर्चा का नेता अली अदिल शाह और विजयनगर के सेना का नायक रामराय के बीच हुई , जिसमें रामराय पराजित हुआ । विजयनगर साम्राज्य के चौथे वंश , अरवीडु वंश का संस्थापक ‘ तिरुमल ‘ था । इस वंश की स्थापना तिरुमल ने सदाशिव को अपदस्थ कर 1570 ई ० में पेनुकोंडा में की । अरवीडु शासक वेंकट द्वितीय के शासन काल में ही वाडयार ने 1612 ई ० में मैसूर राज्य की स्थापना की । विजयनगर साम्राज्य का अन्तिम शासक रंग -1 || था । विजयनगर साम्राज्य के शासक को राय कहा जाता था ।
विजयनगर साम्राज्य में सारी शक्तियाँ असैनिक और सैनिक दोनों प्रशासन का प्रधान राजा था ।
विजयनगर साम्राज्य ( Vijaynagar Dynasty ) )
1. संगम वंश 1336-1485ई ०
2. सालुव वंश 1485-1505 ई ०
3. तुलुव वंश 1505-1570 ई ०
4. अरवीडु वंश1570-1650 ई ०
विजयनगर साम्राज्य मध्य युग का प्रथम हिन्दू साम्राज्य था । विजय नगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई ० में दक्षिण भारत में तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर हुई । विजय नगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने की है । . हरिहर एवं बुक्का काकतीय शासक प्रताप रूद्र देव के सेवक थे । –
. .
विजयनगर साम्राज्य 6 प्रान्तों में विभक्त था तथा प्रत्येक प्रान्त राजप्रतिनिधि या नायक के अधीन थे । विजयनगर में प्रत्येक गाँव स्वत : पूर्ण इकाई थी । साम्राज्य कई छोटी – छोटी प्रशासनिक इकाइयों में विभक्त थी । सबसे बड़ी प्रशासनिक इकाई मण्डलम ( प्रान्त ) थी जिसका प्रशासनिक अधिकारी नायक अथवा मण्डलेश्वर होता था । मण्डलम के बाद नाडू ( जिला ) , स्थल अनुमण्डल तथा ग्राम होता था । प्रत्येक गाँव के प्रशासन के लिए स्थानीय सभाएँ थी । गाँवों के समूह नाडू में स्थानीय सभाएं कार्य करती थी जिसे नात्वर कहते हैं । इस साम्राज्य की सेना नायकों को नायक कहा जाता था । नायक को वेतन के बदले भूखंड प्रदान किया जाता था , जिसे अमरम कहा जाता था । इस साम्राज्य में आयंगर और नायंकर व्यवस्था प्रचलित थी । बारह प्रशासकीय अधिकारियों की नियुक्ति संगठित ग्रामीण इकाइयों पर शासन हेतु किया गया था जिसको सामूहिक रूप से आयंगर कहा गया 1 1 भू – राजस्व कुल उपज के 1/6 हिस्से की दर से वसूला जाता था । विजयनगर के काल में देवदासी प्रथा , सती प्रथा तथा दास प्रथा का प्रचलन था । विजय नगर में मनुष्यों की खरीद – बिक्री को बेसवग कहते थे । विजय नगर में व्यापारियों के श्रेणियों को चेट्टि कहा जाता था । बहमनी साम्राज्य की स्थापना 1347 ई ० में मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में हुआ था । बहमनी साम्राज्य का संस्थापक अलाउद्दीन बहमनशाह था । बहमनशाह ने गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाया तथा उस का नाम अहसनाबाद रखा । उसने अपने साम्राज्य को चार प्रान्तों में गुलबर्गा , दौलताबाद , बरार एवं बीदर में बाँटा । मुहम्मदशाह प्रथम के काल में ही बारुद का उपयोग पहली बार प्रारम्भ 7 हुआ , जिसने रक्षा – संगठन में नई क्रान्ति ला दी थी । 1397 ई ० में ताजउद्दीन फिरोज बहमनी का शासक बना , वह बहमनी सम्राटों में सर्वाधिक विद्वान था । ताजउद्दीन के शासनकाल में 1417 ई ० में रुसी यात्री निकितिन बहमनी व साम्राज्य की यात्रा पर आया था । ताजउद्दीन फिरोज ने भीमा नदी के तट पर फिरोजाबाद नामक शहर की नींव डाली । फिरोज के शासनकाल में सोनार की बेटी का युद्ध हुआ जिसमें विजयनगर साम्राज्य के शासक देवराय प्रथम की हार हुई थी । 1361 ई ० में मिस्र के खलीफा ने मुहम्मद शाह- । को मान्यता प्रदान की तथा दक्षिण भारत का सुल्तान स्वीकार किया । फिरोज की मृत्यु के पश्चात् शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ( 1422-46 AD ) | निबहमनी के सिंहासन पर बैठा । शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ने अपनी राजधानी गुलबर्गा से हटाकर बीदर में स्थापित किया तथा इसका नाम मुहमदाबाद रखा । 1 शिहाबुद्दीन इतिहास में शाह वली अथवा सन्त अहमद के नाम से भी जाने जाते हैं । 7 बहमनी – विजयगनर के संघर्ष का मुख्य क्षेत्र रायचूर दोआव था । र बहमनी राजवंश के शासक हुमायूँ को उसकी क्रूरता एवं विलासिता के कारण जालिम हुमायूँ एवं पूर्व का नीरो कहा गया । हुमायूँ ने महमूद गवाँ को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया । वह एक योग्य एवं कुशल राजनायक था । हुमायूँ के काल में बहमनी को मिली सफलताओं का श्रेय महमूद गवाँ को जाता है । 2 महमूद गवाँ ने बीदर में एक विद्यालय की स्थापना कराया । महमूद गवाँ ने राज्य को आठ प्रान्तों अथवा अतराफ में विभाजित कर दिया और प्रत्येक में तरफदार की नियुक्ति की । बहमनी वंश का सबसे अन्तिम शासक कलीमउल्लाह था ।
बहमनी राज्य के पतन के बाद पाँच स्वतन्त्र राज्यों का उदय दक्कन में हुआ ।
विजय नगर साम्राज्य की राजधानी ‘ तुंगभद्रानदी के किनारे हम्पी थी । वि हरिहर एवं बुक्का ने अपने पिता संगम के नाम पर संगम वंश की स्थापना बुक्का प्रथम ने वेदमार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की । देवराय प्रथम के शासनकाल में इटली के यात्री निकोलस कॉण्टी ने विजय नगर की यात्रा की । देवराय द्वितीय संगम वंश का सबसे प्रतापी राजा था तथा इसे इमाडिदेवराय के नाम से भी जाना जाता है । देवराय द्वितीय के शासनकाल में फारसी राजदूत अब्दुर्रज्जाक ने विजयनगर की यात्रा की । देवराय द्वितीय को एक अभिलेख में जगबेटकर ( हाथियों का शिकारी ) की उपाधि दी गई है । विजयनगर में सालुव वंश की स्थापना सालुव नरसिंह ने 1485 ई ० में की । सालुव नरसिंह के शासनकाल में आने वाला प्रसिद्ध पुर्तगाली यात्री नूनिज . था । वीर नरसिंह ने विजयनगर में तुलुव वंश की स्थापना 1505 ई ० में की । कृष्णदेव राय तुलुव वंश का महान शासक था , वह 8 अगस्त 1509 ई ० को गद्दी पर बैठा । वि कृष्णदेव राय ने यवनराज स्थापनाचार्य की उपाधि धारण की । प्र कृष्णदेव राय ने अपने प्रथम सैनिक अभियान ( 1509-10 ई ० ) में बीदर fe के सुल्तान महमूद शाह को हराया । TC कृष्णदेव राय का अन्तिम सैनिक अभियान बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिल के विरुद्ध हुआ , उसे हराकर गुलबर्गा के किले को नष्ट कर दिया । कृष्णदेव राय के शासनकाल में पुर्तगाली शासक अल्बुकर्क था । पुर्तगाली यात्री डोमिगोस पायस कृष्णदेव राय के शासनकाल में विजयनगर की यात्रा पर आया था । कृष्णदेव राय ने नागलपुर नामक नए नगर की स्थापना की थी । कृष्णदेव राय के शासनकाल को तेलुगु साहित्य का क्लासिक युग कहा गया है । कृष्णदेव राय के दरबार में तेलुगु साहित्य के आठ सर्वश्रेष्ठ कवि थे , जिन्हें अष्टदिग्गज कहा गया है । कृष्णदेव राय के अष्टदिग्गज में सर्वाधिक उल्लेखनीय तेलुगु कवि अल्लसानि पेद्वन था , जिन्हें तेलुगु कविता के पितामह की उपाधि प्रदान की गयी थी । ” तेनाली राम ‘ कृष्णदेव राय के दरबार का अन्तिम व आठवाँ कवि था । इनकी प्रसिद्ध रचना पाण्डुराम महात्म्य है । कृष्णदेव राय ने तेलुगु में अमुक्त्माल्यम एवं संस्कृत में जाम्बबती कल्याणम् की रचना की । कृष्णदेव राय वैष्णव धर्म का अनुयायी था । कृष्णदेव राय ने हजारा और विट्ठलस्वामी मन्दिरों का निर्माण करवाया था । कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 ई ० में हो गयी । तुलुव वंश का अन्तिम शासक सदाशिव था । सदाशिव राय के शासनकाल में प्रसिद्ध युद्ध तालीकोटा या राक्षसीतंगड़ी का युद्ध 25 जनवरी 1565 में हुआ । तालीकोटा या राक्षसीतंगड़ी का युद्ध बीजापुर , अहमदनगर , गोलकुण्डा एवं बीदर के संयुक्त मोर्चा का नेता अली अदिल शाह और विजयनगर के सेना का नायक रामराय के बीच हुई , जिसमें रामराय पराजित हुआ । विजयनगर साम्राज्य के चौथे वंश , अरवीडु वंश का संस्थापक ‘ तिरुमल ‘ था । इस वंश की स्थापना तिरुमल ने सदाशिव को अपदस्थ कर 1570 ई ० में पेनुकोंडा में की । अरवीडु शासक वेंकट द्वितीय के शासन काल में ही वाडयार ने 1612 ई ० में मैसूर राज्य की स्थापना की । विजयनगर साम्राज्य का अन्तिम शासक रंग -1 || था ।
विजयनगर साम्राज्य के शासक को राय कहा जाता था ।
विजयनगर साम्राज्य में सारी शक्तियाँ असैनिक और सैनिक दोनों प्रशासन का प्रधान राजा था ।
शर्की वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक शम्सुद्दीन इब्राहीम शाह हुआ । शम्सुद्दीन इब्राहिम शाह के समय में , जौनपुर को साहित्य एवं स्थापत्य के कारण भारत का सीराज कहा गया । जौनपुर का अन्तिम शर्की शासक हुसैन शाह शर्की था ।
जौनपुर राज्य लगभग 75 वर्षों तक स्वतन्त्र रहने के बाद बहलोल लोदी द्वारा दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया । मेवाड़ मध्य काल में सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था तथा इसकी राजधानी चितौड़ थी । 1303 ई ० में अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ के गुहिलौत राजवंश के शासक रत्नसिंह को पराजित कर मेवाड़ को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया । अलाउद्दीन रत्नसिंह की रानी पद्मिनी को प्राप्त करना चाहता था , लेकिन पद्मिनी ने जौहर व्रत ( सती होना ) धारण कर स्वयं को समाप्त कर लिया । 1314 ई ० में सिसोदियों वंश के हम्मीरदेव ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया । मेवाड़ के अन्य प्रसिद्ध शासक राणा कुंभा ( 1433-68 ई ० ) एवं राणा सांगा ( 1509-28 ई ० ) थे । राणा कुंभा ने मेवाड़ में 22 दुर्गों का निर्माण करवाया , जिसमें कुम्भलगढ़ का दुर्ग मुख्य रूप से प्रसिद्ध है । 1527 ई ० में राणा सांगा एवं बाबर के बीच खनवा का युद्ध हुआ जिसमें बाबर विजयी हुआ । 1576 ई ० में मेवाड़ के प्रसिद्ध शासक राणा प्रताप को अकबर ने हल्दी घाटी के युद्ध में परास्त किया । मेवाड़ को मुगल सम्राट जहाँगीर ने मुगल साम्राज्य में मिला लिया । आधुनिक मारवाड़ का संस्थापक चुन्द था , उसने 1394 ई ० में उसकी स्थापना की । मारवाड़ पर राठौर वंश का शासन था । मारवाड़ के शासक जोधा ने जोधपुर एवं बिक्का ने बिकानेर शहरों की स्थापना की । जोधा ने नन्दौर के प्रसिद्ध दुर्ग का निर्माण करवाया । मारवाड़ का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक मालदेव ( 1532-62 ई ० ) था , उसने शेरशाह को मारवाड़ जीतने नहीं दिया । महमूद गजनी ने 1010 ई ० में सिन्ध पर अधिकार कर लिया तथा 50 वर्षों तक शासन किया । 1210 ई ० में सिन्ध पर नासिरुद्दीन कुबाचा ने अधिकार कर लिया । 1382 ई ० में फिरोजशाह तुगलक के सूबेदार मलिक राजा फारुकी ने खानदेश की स्थापना स्वतन्त्र मुस्लिम राज्य के रूप में की थी । उसके नाम पर उसके वंश का नाम फारुखी वंश पड़ा । खानदेश की राजधानी बुरहानपुर थी । खानदेश का सैनिक मुख्यालय असीरगढ़ में स्थित था । मल्लिक नासिर ने 1399-1438 ई ० तक तथा आदिल शाह ने 1457-1503 ई ० तक खानदेश पर शासन किया । 1601 ई ० में मुगल सम्राट अकबर ने खानदेश को मुगल साम्राज्य में . मिला लिया ।
महमूद गजनवी की पंजाब विजय के पश्चात् कई सूफी सन्त भारत आये । सूफीमत इस्लाम धर्म में उदार , रहस्यवादी और संश्लेषणात्मक प्रवृतियों का प्रतिनिधित्व करने वाली विचारधारा है । सूफियों का मुख्य उपदेश वाहदत – उल – वजूद था । के सूफी जिन आश्रमों में निवास करते थे , उन्हें खनकाह या मठ कहा जाता था । सूफियों के धर्मसंघ दो भागों बा – शारा ( इस्लामी सिद्धान्त के समर्थक ) और बे – शारा ( इस्लामी सिद्धान्त से बँधे नहीं ) में विभाजित थे । भारत में आने वाला पहला सूफी सन्त शेख इस्माल था , जो लाहौर रा आया ।
भारत में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती , हमीहुन नागौरी , कुतुबुद्दीन बख्तियार की काकी , सरीदुद्दीन गजशंकरी , निजामुद्दीन औलिया आदि सूफी मत के प्रमुख प्रचारक हुए ।
. . 1588 ई ० में अकबर ने कश्मीर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया । मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में बंगाल स्वतन्त्र हो गया था । शम्सुद्दीन इलियास शाह बंगाल 1345 ई ० में बंगाल का नवाब बना । शम्सुद्दीन ने एक नए राजवंश इल्यास शाही राजवंश की स्थापना की । 1375 ई ० में शम्सुद्दीन के मृत्यु के बाद सिकन्दर सुल्तान बना । सिकन्दर शाह ने पांडुआ में अदीना मस्जिद का निर्माण करवाया । 1493 ई ० में शासक बने ‘ अलाउद्दीन हुसैन शाह ‘ ने अपनी राजधानी को पांडुआ से गौड़ स्थानान्तरित किया । चैतन्य महाप्रभु अलाउद्दीन के समकालीन थे । अलाद्दीन ने सत्यपीर नामक आन्दोलन की शुरूआत की । अलाउद्दीन के शासन काल में मालधर बसु ने श्री कृष्ण विजय की रचना कर गुणराज खान की उपाधि धारण की । बंगाल के एक अन्य शासक ‘ नसीब खाँ ‘ के कार्यकाल में महाभारत का बंगला भाषा में अनुवाद तथा गौड़ में कदमरसूल मस्जिद का निर्माण करवाया । बंगाल में हुसैनशाही वंश का अन्तिम शासक ‘ ग्याशुद्दीन महमूदशाह ‘ था । मालवा राज्य 1398 ई ० में तैमूर के आक्रमण के बाद स्वतन्त्र हो गया । मालवा के सूबेदार दिलावर खाँ गोरी 1401 ई ० में मालवा को स्वतन्त्र घोषित कर दिया । दिलावर खाँ ने धार की लाट मस्जिद का निर्माण करवाया । 1405 ई ० में शासक बने हुशंगशाह ने मालवा की राजधानी से माण्डू को स्थानान्तरित किया । ‘ माण्डू के किले ‘ का निर्माण हुशंगशाह ने करवाया था , जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है – दिल्ली दरवाजा । हुशंग शाह ने नर्मदा तट पर होशंगाबाद नगर की स्थापना की । 1435 ई ० में शासक बने महमूदशाह खिलजी ने माण्डू में सात मंजिलों वाले महल का निर्माण करवाया । मेवाड़ के राणा कुंभा ने महमूद खिलजी को युद्ध में परास्त कर चित्तौड़ में कैद कर लिया । Ye राणा कुंभा ने विजय की स्मृति में विजय स्तम्भ ( चित्तौड़ ) का निर्माण करवाया । जहाज महल का निर्माण 1469 ई ० में शासक बने ग्यासुद्दीन खिलजी ने मांडू में करवाया । 1500 ई ० में शासक बने नासिरुद्दीन शाह ने बाज बहादुर एवं रुपमति महल का निर्माण करवाया । खिलजी वंश के अन्तिम शासक ‘ महमूदशाह द्वितीय ‘ ने फतेहाबाद नामक स्थान पर महमूद खिलजी के कुश्क महल का निर्माण करवाया । गुजरात के बहादुरशाह ने महमूदशाह द्वितीय को युद्ध में परास्त कर दिया तथा 1531 ई ० में मालवा का गुजरात में विलय हो गया ।
1401 ई ० में जफर खाँ के नेतृत्व में गुजरात स्वतन्त्र हो गया । अहमदशाह गुजरात के स्वतन्त्र राज्य का वास्तविक संस्थापक था । अहमदशाह ने असावल के समीप अहमदनगर नामक नगर की स्थापना की । उसने अपनी राजधानी अहमदनगर स्थानान्तरित की । महमूद बेगड़ा गुजरात का प्रसिद्ध शासक था । महमूद बेगड़ा ने गिरनार के निकट मुस्तफाबाद नामक नगर और चम्मानेर के निकट मुहम्मदाबाद नगर बसाया । महमूद बेगड़ा ने गुजरात के समुद्रतट से पुर्तगालियों को भगाने के लिए मिन तथा कालीकट के शासकों से सन्धि की ।
1507 ई ० में ड्यू द्वीप के पास हुए सामुद्रिक युद्ध में महमूद बेगड़ाने . पुर्तगालियों को पराजित किया , परन्तु , 1509 ई ० में वह पुर्तगालियों से 3 . हार गया । गुजरात को अकबर ने 1572 ई ० में मुगल साम्राज्य के अधीन कर लिया । जौनपुर की स्थापना फिरोज तुगलक ने अपने भाई जौना खाँ की स्मृति में की थी । जौनपुर में स्वतन्त्र शर्की राज्य का संस्थापक ख्वाजा जहाँ था ।
1394 ई ० में फिरोजशाह तुगलक के पुत्र सुल्तान महमूद ने खाजा जहान को मलिक- उस – शर्क ( पूर्व का स्वामी ) की उपाधि प्रदान की ।
1699 ई ० में गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की । गुरु गोविंद सिंह के बाद सिक्खों में गुरु की परम्परा समाप्त हो गयी । गुरु गोविंद सिंह ने पाहुल प्रणाली को प्रारम्भ किया । इन्होंने सिक्खों के धार्मिक ग्रन्थ आदिग्रन्थ को वर्तमान रूप दिया । • गुरु गोविन्द सिंह की मृत्यु के बाद सिक्खों का नेतृत्व बन्दा सिंह ने किया । बन्दा का उद्देश्य पंजाब में एक सिक्ख राज्य स्थापित करने का था । इसके लिए उसने लौहगढ़ को राजधानी बनाया । मुगल बादशाह फर्रुखसियर के आदेश पर 1716 ई ० में बन्दा सिंह को गुरुदासपुर नांगल नामक स्थान पर पकड़कर मौत के घाट उतार दिया गया ।
शिवाजी के नेतृत्व में मराठों का उदय ( ( Rise of Marathas under Sivaji )
सत्रहवीं शताब्दी में शिवाजी ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी । शिवाजी का जन्म 20 अप्रैल , 1627 ई ० में शिवनेर नामक स्थान पर हुआ था । शिवाजी के पिता का नाम शाहजी भोंसले तथा माता का नाम जीजाबाई था । शिवाजी के गुरु दादाजी कोणदेव थे , शिवाजी ने इन्हीं से प्रारम्भिक शिक्षा ली । . शिवाजी के आध्यात्मिक एवं धार्मिक गुरु रामदास थे । 1640 ई ० में शाहजी ने शिवाजी को पूना की जागीर सौंप दी एवं स्वयं बीजापुर के रियासत में नौकरी कर ली । • 1640 ई ० में साईं बाई निम्बालकर से शिवाजी का विवाह हुआ । 1644 ई ० में शिवाजी अपने सैन्य अभियान के अन्तर्गत सर्वप्रथम बीजापुर के तोरण नामक पहाड़ी किले पर अधिकार किया । शिवाजी ने 1655 ई ० में जावली एवं 1656 ई ० में रायगढ़ पर अधिकार कर लिया तथा रायगढ़ में अपनी राजधानी स्थापित की । 1665 ई ० में बीजापुर के सुल्तान ने अपने सेनापति अफजल खाँ को शिवाजी को पराजित करने के लिए भेजा । 1663 ई ० में औरंगजेब के दक्षिण के सूबेदार शाइस्ता खाँ को शिवाजी f ने पराजित किया । 1664 ई ० में शिवाजी ने गुजरात को लूटा तथा 1664 ई ० में रायगढ़ के किले का निर्माण किया । 24 अप्रैल , 1665 ई ० को शिवाजी और राजा जयसिंह के बीच पुरन्दर की सन्धि हुई । 1666 ई ० में शिवाजी ने आगरा की यात्रा की । शा आगरा पहुँचकर मुगल दरबार में उपस्थित हुए जहाँ उन्हें औरंगजेब ने धोखे से जयपुर भवन में कैद कर लिया , साथ में उनका पुत्र शम्भाजी क रा भी था । क 1670 ई ० में शिवाजी ने पुनः सूरत को लूटा । 16 जून , 1674 ई ० को शिवाजी का राज्याभिषेक रायगढ़ के किला में तान हुआ । 17 . शिवाजी का राज्याभिषेक काशी के प्रसिद्ध विद्वान श्री गंगाभट्ट द्वारा किया शा गया । जिन शिवाजी ने छत्रपति , हैंदव धर्मोधारक एवं गौ – ब्राह्मण प्रतिपालक की 22 उपाधि धारण की । . ‘ जिंजी ‘ को शिवाजी ने मराठा राज्य के दक्षिणी क्षेत्र की राजधानी बनाया । गण शिवाजी का अन्तिम महत्वपूर्ण अभियान 1676 ई ० में कर्नाटक का अभियान था । मुग – शिवाजी की मृत्यु मात्र 53 वर्ष की अवस्था में 14 अप्रैल , 1680 में हो गयी । . शिवाजी का मंत्रिमण्डल अष्टप्रधान था । शिवाजी के मंत्रिमण्डल में पेशवा का पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण था । –
शिवाजी के प्रशासन में पेशवा शासन – सम्बन्धी सभी कार्य करता था और मुगन सरकारी पत्रों एवं कागजों पर अपनी मुहर लगाता था ।
शेरशाह के साम्राज्य में कश्मीर को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण उत्तर भारत शामिल था । शेरशाह के बाद उसका पुत्र इस्लाम शाह ( 1545-53 ) शासक बना । 1555 ई ० में हुमायूँ ने मच्छीवाड़ा के युद्ध में अफगानों को बुरी तरह परास्त किया तथा मुगल वंश की पुनर्स्थापना की । शेरशाह के मकबरे का निर्माण सासाराम ( बिहार ) में हुआ । रोहतासगढ़ के किले एवं किला – ए – कुन्हा मस्जिद ( दिल्ली ) का निर्माण 1.3 शेरशाह ने करवाया । शेरशाह के कार्यकाल में सुल्तान या शासक सभी शक्तियों का केन्द्रबिन्दु था और एक निरंकुश शासक के रूप में कार्य करता था । शेरशाह ने सम्पूर्ण साम्राज्य को 47 सरकारों ( प्रान्तों ) में जिसके शीर्षस्थ अधिकारी कहीं हकीम , कहीं अमीन या फौजदार कहलाते थे 5 . । प्रत्येक सरकार में शेरशाह ने दो पदाधिकारी नियुक्त किया – 1. शिकदार – ए – शिकदान कानून व्यवस्था का पदाधिकारी । 2. मुन्सिक – ए – मुंसिकान लगान से संबंधित मुकदमों की देख – रेख करने वाला पदाधिकारी । सरकारों को ‘ परगनों में बाँटा गया था 1. शिकदार – कानून – व्यवस्था का पदाधिकारी । 2. अमीन – लगान बसूलने वाला पदधिकारी । 3. मुंसिफ – मुकदमों की देख – रेख करने वाला पदाधिकारी । शेरशाह के शासनकाल में ग्राम में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए मुकद्दम होता था । शेरशाह ने जब्ती प्रणाली को लागू किया , जिसके अन्तर्गत लगान का निर्धारण भूमि के माप के आधार पर किया जाता था । शेरशाह ने भूमि की माप के लिए 32 अंकों वाला सिकन्दरी गज चलाया । शेरशाह के शासनकाल में भू – राजस्व , कुल उपज का 1/3 भाग वसूला जाता था । शेरशाह ने चाँदी के रुपया का प्रचलन शुरू किया , जो 178 ग्रेन का था तथा 380 ग्रेन ताँबे का दाम चलवाया । शेरशाह ने ‘ कबूलियत एवं पट्टा ‘ प्रथा की शुरूआत की । शेरशाह ने ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण करवाया , जो सुनारगाँव से पेशावर तक जाती थी । 1541 ई ० में शेरशाह ने पाटलिपुत्र को पटना के नाम से पुनः स्थापित किया । शेरशाह ने डाक – व्यवस्था प्रारम्भ की थी । शेरशाह ने कन्नौज के स्थान पर शेरसूर नामक नगर बसाया । शेरशाह ने जनता की सुविधा के लिए सरायों की स्थापना की जिसकी संख्या लगभग 1700 थी । शेरशाह का वित्तमन्त्री टोडरमल था । शेरशाह के काल में प्रमुख कवि मलिक मोहम्मद जायसी थे , उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तक पद्मावत की रचना हिन्दी में की थी । सिक्ख धर्म की स्थापना गुरु नानक द्वारा पन्द्रहवीं शताब्दी में की गई । गुरु नानक के अनुयायी ही सिख ( शिष्य ) कहलाए । गुरु नानक ने संगत ( धर्मशाला ) एवं पंगत ( साथ बैठकर भोजन करना ) , जिसे लंगर भी कहते हैं की परम्परा आरम्भ की । सिक्खों के दूसरे गुरु अंगद ने गुरुमुखी लिपि का आविष्कार किया । • अंगद के नेतृत्व में गुरु नानक के जीवन चरित्र की रचना की गयी तथा उनकी वाणियों एवं शब्दों को एकत्रित करके गुरुमुखी में लिपिबद्ध किया गया । सिक्खों के चौथे गुरु अमरदास ने देश भर में 22 गद्दियों की स्थापना की म तथा प्रत्येक पर एक महंथ की नियुक्ति की । सिक्खों के चौथे गुरु रामदास को अकबर ने 500 बीघा भूमि प्रदान की ग थी । • उपर्युक्त भूमि पर रामदास ने अमृतसर तथा सन्तोष नामक दो सरोवरों का निर्माण किया और इनके आसपास अमृतसर नगर को बसाया । गुरु ल रामदास ने मसनद प्रणाली चलाई ।
सिक्खों के पाँचवें गुरु अर्जुन देव के काल में गुरु पद वंश – परम्परानुगत ग हो गया ।
औरंगजेब के शासनकाल में जाटों ने 1669 ई ० में गोकुल के नेतृत्व में एवं 1686 ई ० में राजाराम तथा रामचेरा तथा 1689 ई ० के बाद चुरामन के नेतृत्व में विद्रोह किए । औरंगजेब कट्टर सुनी मुसलमान था , उसे औरंगजेब को जिदापीर कहा हो . जाता था । औरंगजेब ने सिक्खों के 9 वें गुरु तेग बहादुर को इस्लाम धर्म न स्वीकारने के कारण 1675 ई ० में हत्या करवा दी । औरंगजेब के शासनकाल में सिक्खों के 10 वें गुरु गोविंद सिंह ने 30 मार्च , 1699 ई ० को ‘ वैशाखी ‘ के दिन खालसा पंथ की स्थापना की । 1643 ई ० में औरंगजेब ने मराठा नेता शिवाजी का दमन करने के उद्देश्य से शाइस्ता खों को एक सेना के साथ भेजा , परन्तु वह असफल रहा । 1665 ई ० में औरंगजेब एवं शिवाजी के बीच पुरन्दर की सन्धि हुई । औरंगजेब ने 1669 ई ० में हिन्दू मन्दिरों को तोड़ने का आदेश दिया । औरंगजेब ने 1679 ई ० में हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया । औरंगजेब ने झरोखा दर्शन तथा तुलादान प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया । औरंगजेब ने आबवाब ( राहदारी परिवहन कर ) , पानडारी ( चुंगी कर ) नामक कर समाप्त कर दिया । औरंगजेब ने मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद रखा था । औरंगजेब के समय में हिन्दू मनसबदारों की संख्या लगभग 337 थी , जो अन्य मुगल सम्राटों की तुलना में अधिक थी । औरंगजेब ने कुरान को अपने शासन का आधार बनाया तथा इस्लाम को पुनः राजधर्म घोषित किया । fot औरंगजेब ने औरंगाबाद में अपनी बीबी रविया – उद – दौरानी की समाधि पर बीबी का मकबरा बनवाया । औरंगजेब ने लाहौर में बादशाही मस्जिद का निर्माण करवाया । औरंगजेब ने अपने दरबार में संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया । औरंगजेब की मृत्यु 4 मार्च , 1707 ई ० को हुई । उसके मृत शरीर को दौलताबाद स्थित फकीर खुरहानुद्दीन की कब्र के अहाते में दफन किया . . गया । . . औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसका दूसरा पुत्र मुहम्मद मुअज्जम बहादुर शाह के नाम से सिंहासन पर बैठा , उत्तराधिकार के में गुरु गोविन्द सिंह ने उसका साथ दिया था । • बहादुरशाह के शासनकाल में मराठा नेता शाहू को मुगल कैद से मुक्त कर दिया गया था । बहादुरशाह ने दक्षिण में मराठों के बीच चौथ एवं सरदेशमुखी वसूल करने के अधिकार को मान्यता प्रदान कर दिया था । जमान बहादुरशाह को शाह – ए – बेखबर के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है । बहादुरशाह की मृत्यु 16 फरवरी , 1711 ई ० को हुई । बहादुरशाह के बाद जहाँदारशाह 29 मार्च , 1712 ई ० को गद्दी पर बैठा । • जहाँदार शाह एक अयोग्य व्यक्ति था , अत : उसे लम्पट मूर्ख कहा गया है । फर्रुखसियर ने जहाँदारशाह को युद्ध में पराजित कर दिया । • फर्रुखसियर के आदेश पर 11 फरवरी , 1713 ई ० को जहाँदारशाह की हत्या कर दी गयी । • जहाँदारशाह लाल कुमारी नामक एक वेश्या के साथ रंगरेली मनाने में . व्यस्त रहता था । जहाँदारशाह के पतन के बाद 11 जनवरी , 1713 ई ० को फर्रुखसियर गद्दी पर बैठा । • सैय्यद बन्धु हुसैन अली खाँ एवं अब्दुला खाँ को मुगलकालीन इतिहास में शासक निर्माता के रूप में जाना जाता है , सैय्यद बन्धुओं की मदद से ही फर्रुखशियर गद्दी पर बैठा । फर्रुखसियर के शासनकाल में जाट नेता चूरामन का दमन किया गया था । • फर्रुखसियर ने सिक्ख नेता बन्दा सिंह की हत्या करवा दी । • फर्रुखसियर को मुगल वंश का घृणित कायर कहा गया है । फर्रुखसियर को गद्दी से हटाये जाने के बाद 28 फरवरी 1719 ई ० को रफी – उद – दरजात दिल्ली का सम्राट बना । रफी – उद – दरजात शासन को अच्छे ढंग से संचालित करने में असफल रहा तथा सैय्यद बन्धुओं के हाथों का कठपुतली बनकर रह गया ।
रफी – उद – दरजात के शासनकाल में निकृसियर का विद्रोह हुआ ।
. .
6 जून , 1719 को रफी – उद – दरजात को सैय्यद बन्धुओं की मदद से अपदस्थ कर रफी – उद – दौला हुसैन अली खाँ ने निकूसियर के विद्रोह को दबाया । रफी – उद – दौला का निधन क्षय रोग के कारण 17 सितम्बर , 1719 ई ० में हो गया । सैय्यद अब्दुला ने 28 सितम्बर , 1719 ई ० को मुहम्मद शाह को गद्दी पर मुहम्मदशाह ने 1720 ई ० को अब्दुला को युद्ध में पराजित किया तथा साम्राज्य को सैय्यद बन्धुओं से मुक्ति मिल गयी । मुहम्मदशाह के शासनकाल में 1739 ई ० में प्रसिद्ध ईरानी लुटेरा नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया था । मुहम्मदशाह तख्ते – ताउस ( मयूर सिंहासन ) पर बैठने वाला अन्तिम मुगल शासक था । मुहम्मदशाह नाच – गानों में अधिक दिलचस्पी लेता था इसी कारण इतिहास में मुहम्मद शाह को रंगीला बादशाह की संज्ञा से सम्बोधित किया जाता है । नादिरशाह अपने साथ धनराशि , शाहजहाँ का तख्ते – ताउस ( मयूर सिंहासन ) तथा कोहिनूर हीरा उठाकर ले गया । मुहम्मदशाह के शासनकाल में निजाम – उल – मुल्क ने विद्रोह कर स्वयं को दक्षिण के 6 सूबों का शासक घोषित कर दिया एवं हैदराबाद को अपनी राजधानी बनाया । मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद 28 अप्रैल , 1748 ई ० को अहमदशाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा । अहमदशाह के शासनकाल में अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया था । अहमदशाह के बाद गद्दी पर बैठे शाहआलम का नाम अली गौहर था । शाहआलम द्वितीय के शासन काल में 1761 ई ० में अहमदशाह अब्दाली ने पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को हराया । अहमदशाह अब्दाली ने आठ बार भारत पर आक्रमण किया था । पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों का नेतृत्व सदाशिव राव भाउ एवं इब्राहिम गार्दी ने किया । शाह आलम द्वितीय के शासन काल में अंग्रेजों ने 1803 ई ० में दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया । शाहआलम द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र अकबर द्वितीय मुगलों की गद्दी पर बैठा । अकबर द्वितीय के समय तक भारतवर्ष में अंग्रेजों की शक्ति एवं सत्ता का तीव्रता से विकास हो रहा था । अकबर द्वितीय की मृत्यु 1837 ई ० में हो गयी । बहादुरशाह जफर अन्तिम मुगल सम्राट था , उसने 1857 ई ० की क्रान्ति में भाग लिया था । 1857 ई ० के विद्रोह के दमन के बाद अंग्रेजों ने उसपर मुकदमा चलाया और उसे रंगून भेज दिया । शेरशाह ने सूर साम्राज्य की स्थापना की थी । शेरशाह का बचपन का नाम फरीद खाँ था । शेरशाह का जन्म 1472 ई ० में बजवाड़ा ( होशियारपुर ) में हुआ था । शेरशाह के पिता का नाम हसन खाँ था , वह सासाराम का जागीदार था । शेरशाह ने एक बार एक शेर को तलवार के एक ही वार से मार गिराया इसी कारण मुहम्मद बहार खाँ लोहानी ने उसे शेर खाँ की उपाधि प्रदान की । शेर खाँ 1529 ई ० में बिहार एवं 17 मई , 1540 ई ० को हुए बिलग्राम युद्ध में हुमायूँ को हराकर दिल्ली का शासक बना । दिल्ली की गद्दी पर बैठते समय शेर खाँ ने शेरशाह की उपाधि धारण की । • शेरशाह लाड मलिका नाम की एक विधवा से शादी कर चुनार प्राप्त . . किया । 1539 ई ० में शेरशाह ने चौसा पर अधिकार कर लिया । 1540 ई ० में शेरशाह ने कन्नौज के बाद लाहौर पर कब्जा किया ।
1545 ई ० में कालिंजर फतह के दौरान बारूद के ढेर में आग लगने के कारण शेरशाह की मृत्यु हो गयी ।
गुरु के अधिकारों में वृद्धि हुई उन्हें राज्याधिकारों से विभूषित किया गया और सिक्खों के बीच गुरुओं की पूजा चल पड़ी । गुरु अर्जुन देव प्रथम गुरु थे , जिन्होंने राजनीति में रुचि ली । अर्जुनदेव ने सन्तों वाले वस्त्र त्याग कर राजसी वस्त्रों को अपनाया ।
अर्जुनदेव ने 1595 ई ० में व्यास नदी के तट पर गोविन्दपुर नामक एक शहर बसाया । अर्जुनदेव ने अमृतसर एवं सन्तोष नामक सरोवरों के बीच हर मन्दिर साहिब का निर्माण करवाया ।
गुरु हरगोविन्द मीरी एवं पीरी नामक दो तलवार बाँधकर गद्दी पर बैठते के 7 । 7 . . न 1 गुरु हरगोविंद ने अकालतख्त की स्थापना की । गुरु हरगोविंद ने अमृतसर की रक्षा हेतु लौहगढ़ किले का निर्माण करवाया । सिक्खों के ‘ 7 वें गुरु हर राय ने जब शाहजहाँ के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार के युद्ध का प्रारम्भ हुआ तो अपना समर्थन दारा शिकोह को दिया । • सिक्खों के ‘ 8 वें ‘ गुरु हर किशन की मृत्यु 30 मार्च , 1664 को चेचक से हो गयी । सिक्खों के नौवें गुरु तेगबहादुर हुए । सिक्खों के ‘ नौवें ‘ गुरु तेगबहादुर ने कीर्तिपुर से 5 मील दूर आनन्दपुर नामक एक ग्राम बसाया तथा उसे अपना केन्द्र बनाया । इस्लाम नहीं स्वीकार करने के कारण औरंगजेब ने तेगबहादुर को वर्तमान शीशगंज गुरुद्वारा के निकट फाँसी दे दी । सिक्खों के 10 वें ‘ गुरु गोविंद सिंह का जन्म 1666 ई ० में पटना साहिब में हुआ था । • गुरु गोविन्द सिंह के नेतृत्व में सिक्खों ने मुगलों को 1695 ई ० में नादोन तथा 1706 ई ० में खिदराना में पराजित किया । गुरु गोविंद सिंह ने सिक्खों के लिए पंजककार अनिवार्य किया और सभी लोगों को अपने नाम के अन्त में सिंह शब्द जोड़ने के लिए कहा । • गुरु गोविंद सिंह ने सिक्खों से पंजककार के तहत केश , कच्छा , कंघी , कड़ा एवं कृपाण धारण करने के लिए कहा । .
फर्रुखसियर द्वारा जारी इस फरमान को कम्पनी का महाधिकार पत्र ( Magna carta ) कहा जाता है । भारत में फ्रांसीसियों का आगमन सबसे बाद में हुआ । 1664 ई ० में फ्रेंच सम्राट लुई- XIV ने कम्पनी डि इंड्ज ओरिएंटेल्स ( Company des Indes orientales ) नाम से फ्रेंच ईस्ट कम्पनी की स्थापना की । फ्रांसीसियों की पहली कोठी फ्रेको कैरो के प्रयास से 1668 ई ० में सूरत में स्थापित हुई । 1674 ई ० में फ्रैंक मार्टिन ने पांडिचेरी की स्थापना की । 1721 ई ० में फ्रांसीसियों का मारीशस पर अधिकार हो गया । दूसरा कनार्टक युद्ध 1749-54 ई ० में हुआ , इस युद्ध में फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले की हार हुई । • डूण्ले को वापस बुला लिया गया और गोडेहू कैनोबिन को भारत में अगला फ्रांसीसी गवर्नर बनाया गया । 1760 ई ० में अंग्रेजों ने सर आयरकूट के नेतृत्व में वांडिवाश की लड़ाई में फ्रांसीसियों को परास्त कर दिया तथा 1761 ई ० में उनसे पांडिचेरी छीन लिया ।
1763 ई ० मे हुई पेरिस सन्धि के द्वारा अंग्रेजों ने चन्दरनगर को छोड़कर 10 शेष अन्य प्रदेशों को लौटा दिया , जो 1749 ई ० तक फ्रांसीसी कब्जे में थे । .
. . 1668 ई ० में चार्ल्स- ॥ ने बंबई को मात्र 10 पाउण्ड वार्षिक किराया पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी को प्रदान कर दिया । अंग्रेजों ने पूर्वी भारत में अपना पहला कारखाना उड़ीसा में 1633 ई ० में स्थापित किया । – 1639 ई ० में अंग्रेजों द्वारा सेंट जॉर्ज किले की आधारशिला रखी गई जहाँ बाद में मदास शहर बस गया । 1686 ई ० में अंग्रजों ने हुगली को लूटा तथा हिजली एवं बालासोर स्थित मुगल घेराबन्दी पर हमले किये । परिणामस्वरूप , 1688 ई ० में औरंगजेब ने अंग्रेजों पर आक्रमण के आदेश दिये एवं ब्रिटिश सेना को हार का सामना करना पड़ा । 1690 ई ० में अंग्रेजों एवं मुगलों के बीच समझौता हो गया । 1698 ई ० में अंग्रेजों का सुतनाती , कलिकत्ता ( कालीघाट – कोलकता ) एवं गोविंदपुर तीन गाँवों की जमींदारी मिली तथा यहाँ पर फोर्ट विलियम का निर्माण किया गया । कालान्तर में जॉब चरनॉक ने यहाँ पर कलकत्ता ( कोलकाता ) शहर का निर्माण कराया ।
फर्रुखसियर ने 1717 ई ० में अंग्रेजों को कई व्यापारिक सुविधाओं वाला शाही फरमान जारी किया ।
. राजा के बाद मराठी शासन – व्यवस्था में पेशवा का स्थान दूसरा था । सेनापति या सर – ए – नौबत शिवाजी के प्रशासन में सेना – विभाग का प्रधान होता था । शिवाजी के प्रशासन में आमात्य समस्त राज्य की आय – व्यय का ने लेखा – जोखा करता था । शिवाजी के प्रशासन में सचिव राजा के पत्र – व्यवहार का अधीक्षक था । शिवाजी के प्रशासन में सुमन्त का पद परराष्ट्र मन्त्री का था । शिवाजी के प्रशासन में सुमन्त गुप्तचरों द्वारा दूसरे राज्यों की गुप्त खबरें मंगवाता और उसे राजा तक पहुंचाता था । शिवाजी के प्रशासन में पण्डितराव अथवा दानाध्यक्ष राज्य के सभी धार्मिक कार्यों का निरीक्षण करता था । शिवाजी के प्रशासन में न्यायाधीश राज्य के साथ न्याय विभाग का प्रधान होता था । शिवाजी के प्रशासन में मन्त्री अथवा नवीस सूचना , गुप्तचर तथा सन्धि विग्रह के विभागों का अध्यक्ष होता था । . शिवाजी के प्रशासन में पण्डितराव एवं न्यायाधीश को छोड़कर अष्टप्रधान के सभी सदस्यों को समय – समय पर सैनिक कार्य करने पड़ते थे । ‘ अष्टप्रधान ‘ के सदस्य ‘ क्षत्रपति ‘ के प्रति उत्तरदायी होते थे और शिवाजी उनके ऊपर अपना पूरा नियन्त्रण रखता था । शिवाजी के अधीन मराठी सेना के तीन महत्वपूर्ण अंग – पागा , सिलहदार तथा पैदल सेना थे । शिवाजी के राजस्व के स्रोत भूमिकर , चौथ एवं सरदेशमुखी थे । • शिवाजी ने भूमि के नाप के लिए काठी एवं मानक छड़ी का प्रयोग आरम्भ किया । शिवाजी के प्रशासन में लगान की दर उपज का 2/5 यानी 40 प्रतिशत निर्धारित थी । शिवाजी के प्रशासन में ‘ चौथ ‘ पड़ोसी मुगल या दक्कनी राजाओं से वसूला जाता था जो आमदनी का 1/4 भाग होता था । शिवाजी के प्रशासन में चौथ की तरह ‘ सरदेशमुखी ‘ भी मराठा राज्य की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत था । यह राज्यों की आय का 1 / 10 वाँ भाग होता था । शिवाजी की कर व्यवस्था मलिक अम्बर के व्यवस्था पर आधारित था । स्मिथ ने शिवाजी के राज्य को डाकू राज्य ( Robber State ) की संज्ञा दी है । 4 अप्रैल , 1680 ई ० को शिवाजी का स्वर्गवास हो गया । शिवाजी का उत्तराधिकारी उसका ज्येष्ठ पुत्र शम्भाजी था । शिवाजी के मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र शम्भाजी और राजाराम के बीच हुए उत्तराधिकार के युद्ध में शम्भाजी विजयी रहे तथा राजाराम को कैद कर लिया गया । शम्भाजी के पश्चात् 1689 ई ० में राजाराम गद्दी पर बैठा , उसने ‘ सतारा ‘ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया , 1700 ई ० में वह मुगलों से संघर्ष करता हुआ मारा गया । राजा राम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र कर्ण सिंह सिहांसन पर बैठा । • कर्ण के बाद मराठा सिंहासन पर ताराबाई का चार वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय पर बैठा और तारा उसका संरक्षक बन गई । – ताराबाई महान शासिका थी और उसने कई मराठा क्षेत्र को पुनः जीता । 1707 ई ० में शम्भाजी के पुत्र शाहू जो औरंगजेब के कैद में था मुक्त हुआ । – शाहू एवं ताराबाई के बीच उत्तराधिकार के लिए खेड़ा का युद्ध हुआ जिसमें शाहू विजयी हुआ । ताराबाई पराजित होकर कोल्हापुर चली गई । 22 जनवरी 1708 ई ० को शाहूजी का सतारा में राज्याभिषेक हुआ । • शाहू के शासनकाल में पेशवाओं का उदय हुआ तथा मराठा राज्य गणसंघों में बदल गया । • शाहू ने 1713 ई ० में बालाजी विश्वनाथ को पेशवा नियुक्त किया । • मुगल सम्राटों बाबर , हुमायूँ तथा औरंगजेब ने अपने शासन का आधार कुरान को बनाया ।
मुगल प्रशासन ( Mughal Administration )
मुगल शासक अकबर ने प्रशासन में धर्मनिरपेक्ष ( Secular ) तत्वों का समावेश किया तथा इस्लाम का ‘ राजधर्म ‘ का दर्जा समाप्त कर दिया । .
सूर वंश के सम्राट शेरशाह को प्रशासनिक मामलों में मुगल सम्राट अकबर का अग्रगामी माना जाता है । मुगल सम्राट सभी विभागों का प्रधान था । सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी जिसे विजारत कहा जाता था । सम्राट के लिए ‘ विजारत ‘ का परामर्श मानने की कोई बाध्यता नहीं थी । 2 . वकील – ए – मुतलक सम्राट की अनुपस्थिति में उसके सभी कार्य देखता था । वकील – ए – मुतलक ‘ विजारत ( मंत्रिपरिषद् का अध्यक्ष ) ‘ होता था । वकील – ए – मुतलक को अन्य मंत्रियों की नियुक्ति अथवा पमुक्ति का अधिकार था । वकील – ए – मुतलक के नीचे निम्न मन्त्री कार्य करते थे ( 6 ) दीवान – ए – वजीरात – ए – कुल : इसकी नियुक्ति अकबर के शासनकाल में 8 वें वर्ष में हुई , वह राजस्व एवं वित्तीय मामलों का प्रबन्धक था । ( ii ) मीर बख्शी : वह सेना – मन्त्री था तथा मनसबदारों की नियुक्ति एवं वेतन का निर्धारण करना उसका प्रमुख कार्य था । उसे पे – मास्टर जनरल भी कहा गया है । मीर बख्शी , के अधीन निम्न पदाधिकारी कार्यरत थे .मीर आतिश : तोपचियों का अध्यक्ष , . वकिया नवीस : प्रान्तों की खबर मीर बख्शी तक पहुँचाने वाला अधिकारी , • हुजूर बख्शी : प्रान्तीय सैन्य अधिकारी । ( iii ) सद्र – उस – सुदूर : यह धार्मिक सम्पत्तियों तथा ‘ दान विभाग ‘ का प्रमुख था । अकबर के शासनकाल में प्रान्तों में भी इनकी नियुक्ति हुई । ( a ) ( iv ) मीर – सामान : इसके अन्तर्गत राजकीय गृह – विभाग आता था । वह ‘ शाही कारखानों की देखभाल करता था तथा वहाँ के कर्मचारियों की नियुक्ति मान करता था । ( b ) ( v ) काजी – उल – कुजात : यह प्रधान काजी था तथा सम्राट के नीचे न्याय विभाग का प्रधान होता था । ( vi ) मुहतसिब : जनता के सदाचार का निरीक्षण करने वाले विभाग का प्रधान , ( c ) जो कि शरीयत के विरुद्ध होने वाले कार्यों को रोकता था । मुगल प्रशासन में उपर्युक्त मंत्रियों के अलावा निम्न पदाधिकारी भी थे ( 6 ) दारोगा – ए – डाक – चौकी : ‘ सूचना ‘ एवं ‘ गुप्तचर विभाग ‘ का प्रधान जो प्रायः ‘ वकील – ए – मुतलक ‘ के मातहत कार्य करता था । ( ii ) मीर – मुंशी : सम्राट के पत्रों , आदेशों अथवा फरमानों को लिपिबद्ध करने वाला प्रधान अधिकारी । ( iii ) दारोगा – ए – टकसाल : सिक्के ढालने वाला पदाधिकारी तथा ‘ टकसाल ‘ का प्रमुख । ( iv ) दीवान – ए – तान : वेतन विभाग का प्रमुख । ( v ) मुफ्ती : कानून की व्याख्या करने वाला प्रमुख अधिकारी । 1. गल ( vi ) मीर अदल : मुकदमों की पेशी में सहायता करने वाला प्रमुख अधिकारी । ( vii ) बालाशाही : अंगरक्षकों को ‘ बालाशाही ‘ कहा जाता था । ( viii ) मीर बर्र : वह वनों ( Forest ) का अधीक्षक था । ( ix ) खानसामा : शाही – परिवार का प्रबन्धन देखने वाला प्रमुख अधिकारी । मुगल साम्राज्य में अकबर के काल में 15 , शाहजहाँ के काल में 18 एवं औरंगजेब के काल में 20 प्रान्त थे । मुगलों का प्रान्तीय प्रशासनिक ढाँचा ‘ केन्द्रीय शासन ‘ का ही लघु रूप 2. जब था । मुगल प्रशासन में ‘ सुबेदार ‘ प्रान्तीय कार्यकारिणी ( Provincial Executive ) का तथा ‘ दीवान ‘ प्रान्तीय राजस्व ( Provincial Revenue ) का प्रधान था । प्रान्तीय न्यायपालिका ( Provincial Judiciary ) का प्रमुख सदर काजी होता था । मुगलकालीन प्रान्त सरकारों ( जिलों ) में बँटे हुए थे । ‘ सरकार ‘ ( जिले ) के प्रशासन हेतु फौजदार ( जिलाधिकारी ) की नियुक्ति 3. आ की गई थी । प्रशासन की सबसे छोटी इकाई परगना या महाल थी जो सरकार के अधीन होती थी । कि ar शिकदार परगने का मुख्य प्रशासक था तथा उसकी सहायता के लिए निम्न कर्मचारी होते थे ।
‘ अकबर ‘ द्वारा 1512 ई ० में राजा टोडरमल की नियुक्ति दीन – ए – अशरफ ( राजस्व प्रवन्ध का संयोजक के रूप में की गई ।
राजा टोडरमल ने भूमि को उसी की ऊपज के आधार पर चार श्रेणियों में बाँटा पोलज – प्रथम श्रेणी की भूमि जो काफी उपजाऊ होती थी । इस श्रेणी की जमीन में वर्ष में कम – से – कम दो फसलें उगाई जाती थी । 2. पड़ती – यह जमीन ‘ पोलज ‘ की तरह निरन्तर उर्वरा नहीं थी । कुछ दिनों तक ‘ कृषि कार्य करने के उपरान्त इस भूमि की उर्वरता नष्ट हो जाती थी । चांचर – यह तृतीय श्रेणी की भूमि थी । इस भूमि को कुछ दिनों तक जोतने के बाद 3-4 वर्षों तक के लिए पड़ती छोड़ दिया जाता था । बंजर – यह निम्नतम श्रेणी की भूमि थी । इस भूमि में ऊपज न के बराबर होती थी । …..
. मुगल काल में भूमि के मुख्य प्रकार
( i ) खालसा – प्रत्यक्ष रूप से सम्राट के अधीन भूमि , जो कि सम्पूर्ण साम्राज्य की भूमि का ’20 वाँ ‘ हिस्सा थी । ( ii ) जागीर – वेतन के बदले दी गई भूमि ‘ जागीर ‘ कहलाती थी । ( i ) सयूरगल – यह भूमि अनुदान में दी जाती थी तथा इस पर लगान नहीं देना पड़ता था । इस भूमि को ‘ मिल्क ‘ तथा ‘ मदद – ए – माश ‘ भी कहा जाता था । अबुल फजल की रचना आइन – ए – अकबरी से हमें मुगल कालीन कृषकों के त्रिस्तरीय वर्गीकरण की जानकारी प्राप्त होती है ( a ) खुदकाश्त – इस वर्ग के खेतिहर उसी गाँव की जमीन पर कृषि कार्य करते थे । जिस गाँव के वे निवासी थे । इन्हें बारुघला या गावेति कहा गया है । ( b ) पाहीकाश्त – यह वर्ग ‘ पाही ‘ अथवा ‘ बाहरी ‘ कहलाता था । ये कृषक दूसरे गाँव में जाकर कृषि कार्य करते थे तथा वहीं अस्थाई रूप से निवास करते थे । ( c ) मुजारियन – यह कृषकों का ऐसा वर्ग था , जिनके पास उपयुक्त मात्रा में भूमि नहीं थी । वे कृषि कार्य हेतु खुदकाश्त कृषकों से किराये पर जमीन लेते थे । वित्तीय प्रबन्ध हेतु एक पृथक विभाग दीवान – ए – वजीरात की स्थापना की न 1 न प . 1 गई थी । . . . . ने दीवान – ए – वजीरात का प्रमुख दीवान – ए – वजीरात – ए – कुल होता था । मुगल सम्राट अकबर ने 1573 ई ० में कर वसूली के लिए करोड़ी नामक एक पदाधिकारी की नियुक्ति की । मुगल काल में भू – राजस्व ( ( Land Rvenue ) की निम्न व्यवस्थाएँ लागू थी 1. गल्ला बख्शी प्रणाली 1 इस पद्धति के तहत भू – राजस्व नकद के रूप में अदा नहीं किया जाता था । इस पद्धति के तहत गल्ले की ‘ बटाई ‘ का प्रचलन था । । बटाई , खेत बटाई , लंक बटाई तथा रास बटाई के रूप में प्रचलित थी । वं ‘ रास बटाई ‘ के तहत खेतों से फसल काटकर उनके ढेर लगा दिये जाते थे । तथा विभिन्न पक्षों के बीच एक करार करके गल्ले का बंटवारा होता था न 2. जब्ती , नस्क एवं कानकूत प्रणालियाँ कानकूत प्रणाली ‘ का उल्लेख अबुल फजल द्वारा रचित आईन – ए – अकबरी में किया गया है । । उपर्युक्त प्रणालियों में सर्वाधिक प्रचलित जब्ती प्रणाली थी । 7 जब्ती प्रणाली के तहत ‘ प्रति बीघा उपज ‘ को एक मानक मानकर उसका 1/3 हिस्सा सरकारी कोष में राई ( सरकार के राजस्व ) के रूप में जमा करना पड़ता था । त 3. आइन – ए – दहसाला प्रणाली मुगल सम्राट ‘ अकबर ‘ ने अपने शासन के 24 वें वर्ष ( 1580 ई ० ) में यह के प्रणाली लागू की । इस प्रणाली के तहत कृषि की श्रेणियों तथा कीमतों के स्तरों के विषय में 10 वर्षों का आंकलन ( हाल – ए – दहसाला ) किया जाता था ।
10 वर्षीय आंकलन के पश्चात् उसका 10 वां हिस्सा वार्षिक भू – राजस्व क के रूप में लिया जाता था ।
. आइन – ए – दहसाला पद्धति को सफल बनाने में राजा टोडरमल तथा ख्वाजा मंसूर शाह ने अत्यधिक योगदान दिया ।
मुगल सम्राट ‘ जहाँगीर ‘ ने अकबर की प्रणाली को ही लागू किया । परन्तु उसने जागीरदारी प्रथा को भी प्रोत्साहन दिया । जहाँगीर के शासनकाल में अलतमगा नामक जागीर प्रथा की शुरूआत . . . . . शाहजहाँ के शासनकाल में ‘ जागीरदारी ‘ प्रथा को इतनी प्राथमिकता दी गई कि 70 प्रतिशत खालसा भूमि जागीरों में परिवर्तित हो गई । औरंगजेब के शासनकाल में भी जागीरदारी एवं इजारेदारी प्रथाएँ प्रचलित थीं । मुगलकाल में भू – राजस्व की दर कुल उपज का 1/8 हिस्सा थी परन्तु इसे औरंगजेब ने बढ़ाकर 12 हिस्सा कर दिया । भू – राजस्व से मुगल साम्राज्य की वार्षिक आय आइन – ए – अकबरी के अनुसार 30 करोड़ रुपये थी । भू – राजस्व के अलावा मुगल साम्राज्य को जजिया , जकात , खम्स , नजर , जब्ती आदि प्रकार के करों से भी राजस्व की प्राप्ति होती थी । शासन की सबसे छोटी इकाई ‘ ग्राम ‘ थी । प्रत्येक ग्राम का प्रशासन प्रजातांत्रिक पंचायतों के हाथों में था । नगर के प्रशासन का दायित्व कोतवाल का था । कोतवाल की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा होती थी । मुगलकालीन सेना चार विभागों में बंटी थी -1 . पैदल सेना , 2. घुड़सवार सेना , 3. तोपखाना , 4. हस्ति सेना ।
मुगलों के सैन्य प्रशासन में 1577 ई ० में एक नवीन प्रथा अकबर द्वारा लागू की गई , उसे मनसबदारी प्रथा कहते हैं मनसबदारी प्रथा ( MansabdariSystem )
.
. . . . . . . मुहम्मद फकीर एवं मीर हासिम शाहजहाँ के दरबार के प्रमुख चित्रकार थे । .
पंडित जगन्नाथ ने अपनी रचनाओं में शाहजहाँ को ‘ दिल्लीश्वरी एवं जगदीश्वरी ‘ की उपाधियों से विभूषित किया । र शाहजहाँ ने अपने शासनकाल में सजदा की प्रथा बन्द करवा दी तथा सम्राट के चित्र में टोपी एवं पगडी लगाने पर पाबन्दी लगा दी । 9 शाहजहाँ ने अध्यादेश निकालकर हिन्दुओं को मुस्लिम दास – दासी रखने , मुस्लिम वेश में रहने एवं मुस्लिम स्त्रियों से विवाह करने से प्रतिबंधित 9 कर दिया । शाहजहाँ ने प्रशासन में राजपूतों को ऊँचे पद देने एवं राजपूत घरानों से वैवाहिक संबंध स्थापित करने की नीति का परित्याग किया । न शाहजहाँ दारा शिकोह को गद्दी सौंपना चाहता था , किन्तु औरंगजेब बलपूर्वक अपने तीनों भाइयों को मारकर स्वयं गद्दी पर बैठ गया । 1650 ई ० में सामूगढ़ का युद्ध दारा एवं औरंगजेब के बीच हुआ , इस युद्ध में भी दारा की हार हुई । 1659 ई ० में शाहजहाँ के उत्तराधिकार का अन्तिम युद्ध देवराई की घाटी में हुआ । • इस युद्ध में दारा के पराजित होने पर उसे इस्लाम धर्म की अवहेलना करने के अपराध में हत्या कर दी गई । औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को गिरफ्तार कर आगरे के किले में कैद कर दिया । 1666 ई ० में 74 वर्ष की अवस्था में शाहजहाँ की मृत्यु हो गयी । शाहजहाँ को आगरे के ताजमहल में मुमताज की कब्र के बगल में दफना किया गया । इलियट , डॉसन , ट्रैवर्नियर , लेनपुल , मनूची आदि इतिहासकारों ने शाहजहाँ के शासनकाल को स्वर्णयुग कहा है । औरंगजेब का जन्म 3 नवम्बर 1618 ई ० को दोहद उज्जैन में हुआ था । औरंगजेब , शाहजहाँ एवं मुमताज की छठी सन्तान था । औरंगजेब का 1658 ई ० में अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजी के नाम से राज्याभिषेक हुआ । औरंगजेब को 1659 ई ० में देवराई – युद्ध में सफलता मिली । 1659 ई ० में दिल्ली में शाहजहाँ के महल में दूसरी बार औरंगजेब का राज्याभिषेक किया गया । . औरंगजेब ने 1678 ई ० में मारवाड़ तथा 1680 ई ० में मेवाड़ को साम्राज्य में मिला लिया । मुगल औरंगजेब के शासनकाल में सिक्खों के साथ युद्ध में मुगलों की नादौन में ( 1685 ई ० ) , खिदराना ( 1706 ई ० ) में दो युद्धों में पराजय हुई । औरंगजेब ने 1686 ई ० में बीजापुर एवं 1697 ई ० में गोलकुण्डा को साम्राज्य में मिला लिया ।
अफ्रीदियों का विद्रोह ( नेता – अकमल खाँ ) दिसम्बर , 1675 ई ० में औरंगजेब द्वारा दबा दिया गय . . .
ने ग्वालियर , जौनपुर एवं चुनार को जीतकर मुगल साम्राज्य में अकबर मिला लिया ।
मालवा , गुजरात , बिहार , बंगाल एवं उड़ीसा , काबुल , कश्मीर , सिन्ध , ब्लुचिस्तान , कन्धार , राजस्थान , कालिंजर , गोंडवाना , अहमदनगर आदि प्रदेशों में अकबर ने विजय प्राप्त की । गुजरात – विजय के दौरान अकबर सर्वप्रथम पुर्तगालियों से मिला एवं पहली बार यहीं से सख़ुद को देखा । 1562 ई ० में अकबर ने आमेर के राजा भारमल की पुत्री मरियम जमानी से विवाह किया । अकबर ने सभी धर्मों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के उद्देश्य से दीन – ए – इलाही की स्थापना की तथा इसे राजकीय धर्म घोषित किया । दीन – ए – इलाही धर्म को स्वीकार करने वाला एकमात्र हिन्दू राजा बीरबल था ।
अकबर ने आगरा के निकट फतेहपुर सीकरी का निर्माण करवाया । जैन आचार्य हरिविजय सूरी को अकबर ने जगद्गुरु की उपाधि प्रदान
न ) . . . . . .
बाबर का पूरा नाम जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर था । . उसके पिता का नाम उमर शेख मिर्जा था , वह फरगना ( अफगानिस्तान ) का शासक था ।
मुगल वंश के प्रमुख शासक .
शासक शासनकाल 1. बाबर 1526-1530ई ० 2. हुमायूँ 1530-1540 ई ० 1555-1556 ई ० 3. अकबर 1556-1605 ई ० 4. जहाँगीर 1605-1627 ई ० 5. शाहजहाँ 1627-1658 ई ० 6. औरंगजेब 1658-1707 ई ० 7. बहादुरशाह प्रथम 1707-1712 ई ० 8. जहांदारशाह 1712-1713 ई ० 9. फर्रुखसियर 1713-1719 ई ० 10. मुहम्मदशाह 1719-1748 ई ० 11. अहमदशाह 1748-1754 ई ० 12. आलमगीर 1754-1759 ई ० 13. शाहआलम द्वितीय 1759-1806 ई ० 14. अकबर द्वितीय 1806-1837 ई ० 15. बहादुरशाह जफर 1837-1857 ई ०
बाबर पिता की ओर से तैमूरलंग तथा माता की ओर से चंगेज खाँ का वंशज था । पिता की मृत्यु के बाद बाबर 1494 ई ० में 11 वर्ष की आयु में फरगना का शासक बना । बाबर ने 1507 ई ० में बादशाह की उपाधि धारण की । बाबर ने 1519 ई ० से 1526 ई ० तक भारत पर पाँच आक्रमण किए । बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण पंजाब के शासक दौलत खाँ लोधी एवं मेवाड़ के शासक राणा साँगा ने दिया था । 21 अप्रैल 1526 ई ० को इब्राहिम लोदी एवं बाबर के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ , जिसमें इब्राहीम लोदी की पराजय हुई । 17 मार्च 1527 ई ० को राणा साँगा एवं बाबर के बीच खनवा का युद्ध हुआ , जिसमें राणा साँगा पराजित हुआ । 29 जनवरी , 1528 ई ० को मेदनी राय एवं बाबर के बीच चन्देरी का युद्ध हुआ , जिसमें हिन्दू शासक मेदनी राय पराजित हुआ । पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने पहली बार तुगलुमा युद्ध नीति एवं तोपखाने का प्रयोग किया । बाबर की उदारता के कारण उसे कलन्दर की उपाधि दी गई । खनवा के युद्ध में बाबर ने राणा सांगा के विरुद्ध जिहाद का नारा दिया था । रा बाबर ने खनवा युद्ध में विजय के बाद गाजी की उपाधि धारण की । बाबर ने मुबईयान नामक पद्य – शैली को जन्म दिया । बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजूक – ए – बाबरी की रचना तुर्की भाषा में की । तुजुक – ए – बाबरी का फारसी अनुवाद बाद में अब्दुल रहीम खान – ए – खाना ने किया । बाबर ने सड़कों की माप के लिए गज – ए – बाबरी चलाई । बाबर ने विस्फोटकों का प्रयोग कुस्तुनतुनियाँ से एवं बन्दूक का प्रयोग करने की कला ईरानियों से सीखी । बाबर ने तुर्की छंद – शास्त्र पर एक निबंध की रचना की । बाबर की मृत्यु 26 दिसम्बर 1530 ई ० को आगरा में हुई । पर प्रारम्भ में बाबर के शव को आगरा के आरामबाग में दफनाया गया , बाद बैर में उसकी ख्वाहिश के अनुसार काबुल के मनमोहक स्थान पर दफनाया ना गया । ख बाबर के चार पुत्र हुमायूँ , कमरान , अस्करी तथा हिन्दाल थे । बाबर का उत्तराधिकारी हुमायूँ हुआ ।
हुमायूँ का पूरा नाम ‘ नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ ‘ था ।.
हुमायूँ का जन्म 6 मार्च , 1508 ई ० को काबुल में हुआ था । हुमायूँ की माता का नाम माहम अंगा था । हुमायूँ को 1520 ई ० में 12 वर्ष की अल्पायु में बदख्शां के सुबेदार के पद पर नियुक्त किया गया । बाबर के मृत्यु के समय हुमायूँ सम्भल का सूबेदार था । बाबर के मृत्यु के पश्चात् 30 दिसम्बर , 1530 ई ० को हुमायूँ सिंहासन पर बैठा । हुमायूँ ने कमरान को काबुल और कन्धार , मिर्जा असकरी को संभल , मिर्जा हिन्दाल को अलवर एवं मेवाड़ की सूबेदारी प्रदान की । अपने चचेरे भाई सुलेमान मिर्जा को हुमायूँ ने बदख्शाँ प्रदेश दिया । हुमायूँ ने 1532 ई ० में गुजरात के शासक बहादुर शाह की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने के लिए कालिंजर अभियान किया । गुजरात के शासक बहादुर शाह एवं हुमायूँ के बीच 1535 ई ० में सारंगपुर में संघर्ष हुआ , जिसमें बहादुर शाह पराजित हुआ । हुमायूँ तथा शेर खाँ ( शेरशाह ) के बीच बक्सर के निकट चौसा ( 1539 ई ० में ) संघर्ष हुआ जिसमें हुमायूँ पराजित हुआ , तथा आगरा एवं दिल्ली पर शेर खाँ का अधिकार हो गया । बिलग्राम युद्ध के बाद हुमायूँ सिन्ध चला गया , जहाँ उसने 15 वर्षों तक घुमक्कड़ों जैसा निर्वासित जीवन व्यतीत किया । निर्वासन के समय हुमायूँ ने हमीदन बेगम से 29 अगस्त 1541 ई ० को निकाह किया । हमीदन बेगम से 1542 ई ० में उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम 1 उसने जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर रखा । 1555 ई ० में मच्छिवारा के युद्ध में सिकन्दर सूर को हरा कर हुमायूँ पुनः 7 दिल्ली की गद्दी पर बैठा । हुमायूँ की मृत्यु 27 जनवरी , 1556 ई ० को दीनपनाह भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने से हो गयी । । 1553 ई ० में हुमायूँ ने दिल्ली में दीनपनाह नामक नए भवन की स्थापना की थी । हुमायूँ की सौतेली बहन गुलबदन बेगम ने हुमायूँनामा की रचना की । अकबर का जन्म 23 नवंबर , 1542 ई ० को , अमरकोट में राणा वीरसाल के महल में हुआ । अकबर का राज्याभिषेक लगभग 14 वर्ष की आयु में 14 फरवरी , 1556 ई ० को पंजाब के ‘ कलानौर ‘ नामक स्थान
18 जून , 1576 ई ० को हल्दीघाटी का युद्ध मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप एवं अकबर के बीच हुआ तथा अकबर विजयी हुआ । अकवर का सेनापति मानसिंह था । 36 . लोगों के प्रवेश की अनुमति । .
अकबर के शासनकाल में राजस्व प्राप्ति की जब्ती प्रणाली प्रचलित थी । अकबर के दीवान टोडरमल ने 1580 ई ० में दहसाला बन्दोबस्त व्यवस्था लागू की । अकबर ने अपने प्रशासन में मनसबदारी प्रथा लागू की । अकबर के दरबार में प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन तथा प्रसिद्ध चित्रकार अब्दुस्समद थे । सूफी सन्त शेख सलीम चिश्ती अकबर के समकालीन थे । . .
. तानसेन , बाजबहादुर , बाबा रामदास और बैजू बाबरा अकबर के शासन काल के प्रमुख गायक थे । राजा टोडरमल ने दीन – ए – इलाही स्वीकारने से इंकार कर दिया । अकबर ने टोडरमल को ‘ राजा ‘ की उपाधि से विभूषित किया एवं अपने प्रशासन में प्रधानमन्त्री पद पर नियुक्त किया । अकबरनामा , आइन – ए – अकबरी नामक ऐतिहासिक साहित्य की रचना अकबर के मुख्य सचिव अबुल फजल ने की । फैजी द्वारा भी अकबरनामा नामक एक पुस्तक लिखी गई । अकबर कालीन अन्य साहित्यिक ग्रन्थ – अहसान – उत – त्वारीख रुमलु , मुंतखाब – उत – त्वारीख ( बदायूनी ) , तबकात – ए – अकबरी ( निजामुद्दीन बख्शी ) , तारीख – ए – मुहम्मद ( हाजी मुहम्मद आरिफ ) , लुबउत – त्वारीख ( मीर यहया ) , तारीख – ए – अलफी ( मुल्ला अहमद ) , तोहफा – ए अकबरशाही ( अब्बास खाँ शेरवानी ) , नफाइस – उल – मासिर अल्लाउद्दौला काजवीनी द्वारा लिखी गई । अकबर ने संगीत सम्राट तानसेन को कण्ठाभरण वाणी – विलास की उपाधि से सम्मानित किया । अकबर सहित सम्पूर्ण मुगल साम्राज्य की राजभाषा फारसी थी । अकबर ने भगवानदास को अमीर – उल – उमरा की उपाधि प्रदान की । बीरबल को अकबर द्वारा कविप्रिय की उपाधि से सम्मानित किया गया । अकबर ने आगरे के किले के भीतर 500 इमारतों का निर्माण कराया । अकबर ने सुदृढ़ दुर्गों का निर्माण ‘ अटक एवं इलाहाबाद ‘ में भी करवाया । बुलन्द दरवाजा का निर्माण अकबर ने गुजरात – विजय के उपलक्ष्य में करवाया था । • बुलन्द दरवाजे की ऊँचाई पास की भूमि से 134 फीट और उसकी सीढ़ियाँ 42 फीट हैं । कुल मिलाकर यह 176 फीट ऊँचा है । अकबर ने शीरी कलम की उपाधि अब्दुस्समद को एवं जड़ी कलम की उपाधि मुहम्मद हुसैन कश्मीरी को दिया । आइन – ए – अकबरी के अनुसार अकबर के दरबार में 100 उच्च कोटि के तथा अनेक निम्न कोटि के चित्रकार थे । अकबर की मृत्यु 1605 ई ० में हुई । अकबर के मृत्यु के बाद उसका पुत्र जहाँगीर 5 नवंबर , 1605 ई ० को आगरा के गद्दी पर बैठा । जहाँगीर का जन्म 30 अगस्त , 1569 ई ० में फतेहपुर सीकरी में स्थित शेख सलीम चिश्ती की कुटिया में हुआ था । . जहाँगीर के बचपन का नाम सलीम था । अकबर ने अपने पुत्र का नाम सलीम सूफी सन्त शेख सलीम चिश्ती के नाम पर रखा । जहाँगीर के माता का नाम मरियम उज्मानी ( हरवाबाई ) था । जहाँगीर नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर बादशाही गाजी की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा । जहाँगीर ने अकबर के नौरत्न अङ्गुरहीम खानेखाना से शिक्षा प्राप्त की । . जहाँगीर का विवाह 15 वर्ष की अवस्था में अम्बर के राजा भगवान दास की पुत्री मानबाई के साथ हुआ । हमान • जहाँगीर के राज्यारोहण के कुछ ही दिनों बाद सका पुत्र खुसरो ने 1606 ई ० में अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया । खुसरो और जहाँगीर की सेना के बीच जालंधर के निकट भैरावल नामक मैदान में युद्ध हुआ । जहाँगीर ने खुसरो को परास्त कर दिया तथा कैद में डाल दिया गया । खुसरो को सहायता करने के कारण सिक्खों के पाँचवें गुरु अर्जुन देव को जहाँगीर ने मृत्युदण्ड दिया । जहाँगीर ने 1599 ई ० से 1603 ई ० तक अपने पिता सम्राट अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया । जहाँगीर ने न्याय की जंजीर के नाम से प्रसिद्ध सोने की जंजीर को आगरे के किले के शाहबुर्ज एवं यमुना तट पर स्थित पत्थर के खम्भे पर लगवाया । जहाँगीर ने 1606 ई ० में कन्धार को जीता परन्तु 1622 ई ० में कन्धार मुगलों के हाथ से निकल गया तथा कन्धार पर शाह अब्बास का अधि कार हो गया ।
1586 ई ० में जहाँगीर ने उदय सिंह की पुत्री जगत गोसांई से विवाह किया क्र जिससे शाहजादा खुर्रम का जन्म हुआ । .
शहजादा खुर्रम ने अहमदनगर के वजीर मलिक अम्बर का दमन किया इस कारण जहाँगीर ने उसे शाहजहाँ की उपाधि प्रदान की । 1611 ई ० में जहाँगीर ने ईरान निवासी मिर्जा ग्यासबेग की पुत्री मेहरुनिस्सा नने से विवाह किया । जहाँगीर ने शादी के बाद मेहरुनिस्सा को नूरमहल एवं नूरजहाँ ( Light of the world ) को उपाधि प्रदान की । जहाँगीर ने ग्यासबेग को एतमाद – उद् – दौला की उपाधि प्रदान किया । • नूरजहाँ ने एक दल का संगठन किया तथा राज्य शासन की पूरी बागडोर अपने हाथों में ले ली । नूरजहाँ के इस दल को नूरजहाँ गुट ( Nurjahan Junta ) के नाम से पुकारा जाता है । • नूरजहाँ के गुट के सदस्य थे – ग्यासबेग , आसफ खाँ , अस्मत बंगम , खुर्रम । 1626 ई ० में महावत खाँ ने झेलम नदी के तट पर विद्रोह किया तथा उसने ती जहाँगीर , नूरजहाँ एवं उसके भाई आसफ खाँ को बन्दी बना लिया । नूरजहाँ की माता अस्मत बेगम को गुलाब से इत्र निकालने के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है । लाडली बेगम शेर अफगान एवं मेहरुनिस्सा की पुत्री थी , जिनकी शादी जहाँगीर के पुत्र शहरयार के साथ हुई थी । जहाँगीर के पाँच पुत्र थे – खुसरो , परवेज , खुर्रम , शहरयार और जहाँदार । • जहाँगीर की मृत्यु 7 नवम्बर 1627 ई ० को भीमवार नामक स्थान पर हुई । जहाँगीर को शहादरा ( लाहौर ) में रावी नदी के किनारे दफनाया गया । • नूरजहाँ ने जहाँगीर के मकबरे ( शाहदरा – लाहौर ) का निर्माण करवाया । 7 जहाँगीर के शासनकाल में कैप्टन हॉकिन्स , सर टॉमस रो ( 1608-1616 ई ० ) अंग्रेजों के दूत के रूप में आया था । । जहाँगीर ने अपने राज्य में अलतमगा नामक नयी जागीर प्रथा का प्रचलन किया । 5. जहाँगीर का शासनकाल मुगल चित्रकारी का स्वर्णयुग माना जाता है । उस्ताद मंसूर , विशनदास , आगारजा , अबुल हसन , मुहम्मद नासिर , मुहम्मद मुराद , मनोहर एवं गोवर्धन , फारुख बैग एवं दौलत आदि जहाँगीर के दरबार के चित्रकार थे । जहाँगीर ने आगरा में एक ‘ चित्रशाला ‘ स्थापित की । जहाँगीर ने जम्मू – कश्मीर के श्रीनगर में शालिमार बाग का निर्माण करवाया । जहाँगीर द्वारा स्थापत्य के क्षेत्र में निर्मित मकबरे हैं – अकबर का मकबरा ( सिकन्दरा ) , एतमादुद्दौला का मकबरा तथा मरियम – उज – जमानी का मकबरा । एतमाद – उद् – दौला का मकबरा ऐसी प्रथम इमारत है जो पूर्णतः श्वेत संगमरमर से निर्मित है । • जहाँगीर कालीन निर्मित फारसी भाषा के ऐतिहासिक ग्रन्थों में तुजूक – ए – जहाँगीरी ( जहाँगीर ) इकबालनामा – ए – जहाँगीरी ( मौतमिद खाँ ) , मुहासिर – ए – जहाँगीरी ( ख्वाजा कामगार ) , मजखान- ए – अफगान ( नियामतुल्ला ) एवं तारीख – ए – फरिश्ता ( मुहम्मद कासिम फरिस्ता ) आदि प्रमुख हैं । जहाँगीर ने 1612 ई ० में प्रथम बार रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया था । जहाँगीर ने हिजड़ा व्यापार पर प्रतिबंध लगाया था । . शाहजहाँ का जन्म 1592 ई ० में लाहौर में हुआ था , उसकी माता का नाम जगत गोसाई था । शाहजहाँ के बचपन का नाम शहजादा खुर्रम था । 4 फरवरी , 1628 ई ० में शाहजादा खुर्रम ( शाहजहाँ ) का राज्याभिषेक आगरा में हुआ । शाहजहाँ के शासनकाल में खान – ए – जहाँ लोदी का विद्रोह ( 1628-31 ) तथा बुन्देलखण्ड के ‘ जूझर सिंह ‘ का विद्रोह हुआ जिसे सफलता पूर्वक दमन किया गया । शाहजहाँ ने पुर्तगालियों के बढ़ते प्रभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से 1632 ई ० में उनसे युद्ध किया तथा हुगली पर अधिकार कर लिया । शाहजहाँ के शासनकाल में 1628 ई ० , 1631 ई ० एवं 1634 ई ० में क्रमशः अमृतसर , लाहौर एवं करतारपुर में संघर्ष हुआ । • शाहजहाँ के शासनकाल में करतारपुर में मुगल एवं सिक्खों के बीच संघर्ष हुआ जिसमें सिक्खों की पराजय हुई । सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद ने कश्मीर में शरण ली एवं वहाँ कीर्तिपुर नामक नये नगर की स्थापना की । शाहजहाँ ने 1632 ई ० में अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया । 1632-56 ई ० की अवधि में शाहजहाँ के शासनकाल में बीजापुर के साथ एक शान्ति – सन्धि हुई जो 20 वर्षों तक कायम रही । शाहजहाँ ने अपने पुत्र औरंगजेब को दक्षिण का सुबेदार नियुक्त किया था । शाहजहाँ के शासनकाल में यूरोपीय यात्री फ्रांसिस बर्नियर , ट्रैवर्नियर तथा मनूची ( इटली ) ने भारत की यात्रा की थी । शाहजहाँ सम्राट बनने पर अबुल मुजफ्फर हुसैन शहाबुद्दीन मुहम्मद साहब किरान – ए – सानी की उपाधि धारण की । शाहजहाँ की शादी मुमताज महल के साथ हुई , उससे 14 सन्तानें हुई . जिनमें चार पुत्र और तीन पुत्रियाँ जीवित बचे । शाहजहाँ के चार पुत्रों के नाम हैं – दारा शिकोह ( युवराज ) , शुजा ( बंगाल का गर्वनर ) , औरंगजेब ( दक्कन का गर्वनर ) , मुराद बखा ( मालवा और गुजरात का गर्वनर ) । शाहजहाँ की तीन पुत्रियों के नाम थे – जहाँआरा बेगम , रोशन आरा और गौइरारा । . शाहजहाँ ने आसफ खाँ को वजीर का पद प्रदान किया । • शाहजहाँ ने महावत खाँ को खान – खाना की उपाधि प्रदान की । 1631 ई ० में मुमताज महल की मृत्यु हो गयी । मुमताज महल की याद में शाहजहाँ ने आगरे में उसकी कब्र के ऊपर ताजमहल का निर्माण करवाया । विश्व का सबसे महंगा हीरा कोहिनूर शाहजहाँ के सिंहासन तख्ते – ताउस में लगा हुआ था । शाहजहाँ के शासनकाल को मध्यकालीन इतिहास और वास्तुकला की दृष्टि से स्वर्णकाल कहा जाता है । कश्मीर स्थित निशातबाग का निर्माण शाहजहाँ ने करवाया था । ‘ मयूर सिंहासन ‘ का निर्माण शाहजहाँ ने करवाया था , इसका मुख्य कलाकार बादल खाँ था ।
1627 ई ० में आगरा स्थित दीवान – ए – आम शाहजहाँ का प्रथम निर्माण था । 1637 ई ० में शाहजहाँ ने दीवान – ए – खास का निर्माण आगरे के किले में करवाया था । 1648 ई ० में शाहजहाँ ने दिल्ली के लाल किले का निर्माण करवाया था । • लाल किले के पश्चिमी दरवाजा का नाम लाहौर दरवाजा है शाहजहाँ के शासनकाल में अनेक फारसी साहित्य में ग्रन्थों की रचना हुई – अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा पादशाहनामा , अमीनी काजविनी द्वारा शाहजहाँनामा , इनायत खाँ द्वारा अमल- ए – सालीह , सादिक खाँ द्वारा तारीख – ए – शाहजहाँनी , अमीनी काजविनी द्वारा पादशाहनामा , चन्द्रभान ब्राह्मण द्वारा चहारचमन । . शाहजहाँ का राजकवि पंडित जगन्नाथ था , गंगालहरी और रस – गंगाधर इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । शाहजहाँ के शासनकाल के अन्तिम दिनों में वेनिस यात्री मनूची भारत की यात्रा पर आया था ।
शाहजहाँ के शासनकाल में इलाही संवत् के स्थान पर हिजरी संवत् प्रारम्भ
धर्मसंसद ( parliament of religion ) को सम्बोधित किया । रामकृष्ण मिशन की शिक्षाओं का मूल आधार वेदान्त दर्शन था । थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना 1875 ई . में अमेरिका में हुई । थियोसोफिकल सोसायटी के संस्थापक मैडम हेलेना पेट्रोवेना ब्लात्वस्की ( रूस ) , एवं कर्नल हेनरी स्टील ऑल्कॉट ( अमेरिका ) थे । भारत में 1882 ई . में मदास ( चेन्नई ) के समीप अड्यार नामक स्थान पर थियोसोफिकल सोसायटी का मुख्यालय स्थापित हुआ । आयरिश महिला एनी बेसेंट द्वारा 1907 ई . में इस संस्था का नेतृत्व सम्भाला गया । एनी बेसेंट ने हिन्दू एवं बौद्ध धर्मों के उत्थान का आह्वान किया । एनी बेसेंट ने बनारस में सेंट्रल हिन्दू स्कूल ( CHS ) की स्थापना की । सेंट्रल हिन्दू स्कूल 1898 ई ० में सेंट्रल हिन्दू कॉलेज ( CHC ) में तब्दील हो गई । सेंट्रल हिन्दू स्कूल 1915 ई ० में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ( BHU ) में परिवर्तित हो गया । बनारस हिन्दू विश्विद्यालय ( BHU ) की स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने की । एनी बेसेंट ने काली – द मदर तथा द वे ऑफ इंडियन लाइफ नामक पुस्तकें लिखी । प्रथम ब्राह्मण – इतर संस्था का गठन 1917 ई . में दक्षिण भारतीय उदारवादी संघ ( South Indian Liberal Federation ) का गठन हुआ । दक्षिण भारतीय उदारवादी संघ को पी • त्यागराज तथा टी 0 एम 0 नायर ने स्थापित किया । कुछ दिनों बाद ‘ दक्षिण भारतीय उदारवादी संघ ‘ का नाम बदलकर जस्टिस पार्टी रख दिया गया । 1937 ई ० में रामास्वामी नायकर को जस्टिस पार्टी का अध्यक्ष चुना गया । रामास्वामी नायकर ने अस्पृश्ता ( छूआछूत ) के खिलाफ संघर्ष किया । 1920 ई ० में दक्षिण भारत में गैर – ब्राह्मण जातियों ने सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट चलाया । रामास्वामी नायकर के अनुयायी सी ० एन ० अन्नादुरई ने 1944 ई . में ‘ जस्टिस पार्टी ‘ का नाम बदलकर दविड़ कड़गम रखा । ‘ द्रविड़ कड़गम ‘ में 1949 ई . में विभाजन हो गया तथा सी ० एन ० अन्नादुरई ने अपने दल का नाम द्रविड़ मुन्नेत्रकड़गम ( DMK ) रखा । 1873 ई ० में ज्योतिबा फूले द्वारा सत्यशोधक समाज की स्थापना की गई । ‘ ज्योतिबा फूले ‘ 1876 ई ० में पूणे नगरपालिका के सदस्य चुने गये । 1888 ई . से ज्योतिबा फूले लोगों के बीच महात्मा के नाम से पुकारे जाने लगे । अछूतोद्धार के उद्देश्य से डॉ ० भीमराव अम्बेडकर ने ऑल इण्डिया डिप्रेस्ड क्लास फेडरेशन की स्थापना की । अछूतोद्धार के उद्देश्य से ही 1924 ई . में ‘ डॉ . भीमराव अम्बेडकर ‘ ने 1924 ई ० में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना बंबई में की । डॉ . भीमराव अंबेडकर ने अछूतों के प्रतिनिधि ( Representative of Untouchables ) के रूप में 1930 , 1931 एवं 1932 ई . में लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया । 1932 ई . में ‘ अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारण संघ ‘ की स्थापना हुई । कालान्तर में इसका नाम हरिजन सेवक संघ हो गया । डॉ . भीमराव अम्बेडकर ने 1942 ई ० में अनुसूचित जाति फेडरेशन नामक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना की । डॉ . भीमराव अम्बेडकर ने स्वयं हिन्दू धर्म त्यागकर ‘ बौद्ध धर्म स्वीकार किया ।
मुसलमानों की पाश्चात्य प्रभावों के खिलाफ उत्पन्न प्रथम प्रतिक्रिया वहाबी अथवा वलीउल्लाह आन्दोलन अथवा , वहाबी के रूप में प्रकट हुई ।
इस आन्दोलन के नेता सैय्यद अहमद बरेलवी एवं शाह वलीउल्लाह थे ।
के विरुद्ध था , परन्तु 1849 ई ० में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध हो गया । बाद में इस आन्दोलन को मौलवी अब्दुल अजीज ने सांप्रदायिक दिशा देते हुए भारत को दार – उल – हर्ब ( काफिरों का देश ) घोषित कर दिया । ‘ मौलवी अब्दुल अजीज ‘ ने भारत को दार – उल – इस्लाम ( इस्लामी देश ) बनाने का आह्वान किया । पूर्वी भारत में वहाबी आन्दोलन का प्रसार मुख्य रूप से हाजी शरीयतुल्ला एवं शेख करामत अली ने किया । वहाबी आन्दोलन 1870 ई . तक चला , एवं उसके बाद ‘ ब्रिटिश फौजों ‘ के द्वारा कुचल दिया गया । अलीगढ़ आन्दोलन के प्रणेता सर सैय्यद अहमद खाँ ( 1817-98 ई . ) 1870 ई . में विलियम हंटर की पुस्तक इंडियन मुसलमान्स का प्रकाशन हुआ । ‘ इंडियन मुसलमान्स ‘ में अंग्रेजी सरकार को सुझाव दिया गया था कि वह मुसलमानों के प्रति ‘ सहयोग ‘ की नीति रखें । मुसलमानों का एक वर्ग अंग्रेजी सरकार के संरक्षण भरे रुख को स्वीकार करने को आतुर था , इस वर्ग के नेता सर सैय्यद अहमद खाँ थे । सर सैय्यद अहमद खाँ का जन्म ‘ दिल्ली ‘ के एक समृद्ध मुस्लिम परिवार में हुआ था ।
सर सैय्यद अहमद खाँ ने 1839 ई ० में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ की न्यायिक सेवा में नौकरी कर ली , उन्होंने कुरान पर एक टीका लिखी ।
सैय्यद अहमद खाँ द्वारा एक पत्रिका तहजीब – उल – अखलाक का प्रकाशन भी किया गया ।
19 वीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए हुए प्रयास
1870 ई . में अंग्रेजी सरकार द्वारा बालिका – वध रोकने के लिए कुछ कानून बनाए गये । ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ( संस्कृत कॉलेज , कलकत्ता के आचार्य ) ने हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम -1856 के तहत ‘ विधवा विवाह ‘ को कानूनी मान्यता दिलाई । प्रो . डी के कर्वे ने 1899 ई ० में पुणे में एक विधवा आश्रम की स्थापना की । ब्रिटिश सरकार ने समाज – सुधारकों के दबाब में 1930 में बाल विवाह के विरुद्ध शारदा एक्ट पारित किया । शारदा एक्ट के तहत् लड़कों की न्यूनतम आयु 18 वर्ष तथा लड़कियों के लिए 14 वर्ष रखी गई । कलकत्ता ( कोलकाता ) में 1819 ई . में कलकत्ता तरुण स्त्री सभा की स्थापना हुई । ‘ कलकत्ता तरुण स्त्री सभा ‘ के अध्यक्ष जे.ई.डी. बेथुन ने 1849 ई . में एक बालिका विद्यालय की स्थापना की जो आगे चलकर बेथुन स्कूल के नाम से प्रसिद्ध हुआ । 1927 ई ० में अखिल भारतीय महिला सभा स्थापित हुई । 1857 ई . के विद्रोह के वक्त सैय्यद अहमद खाँ ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेवा में थे । 1 हिन्दू – मुस्लिम एकता के संदर्भ में कहा “ Hindus and Muslims are two स eyes of a beautiful bride l.e. India . ( हिन्दू एवं मुसलमान भारत – रूपी 2 2 सुन्दर दुल्हन की दो आँखें हैं । ) 1864 ई . में सर सैय्यद अहमद खाँ ने साइंटिफिक सोसायटी की स्थापना की । 1875 ई . में सर सैय्यद अहमद खाँ ने अलीगढ़ में ‘ मोहम्मडन एंग्लो – ओरिएन्टल कॉलेज ‘ की स्थापना की । दान का ‘ मोहम्तुन एंग्लो – आरिएंटल कॉलेज ‘ 1920 ई ० में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ( AMU ) में तब्दील हो गया ।
सैय्यद अहमद के आन्दोलन का केन्द्र चूँकि अलीगढ़ में स्थित था , अत : त्रिी इनके आन्दोलन को अलीगढ़ आन्दोलन कहा गया ।
सैय्यद अहमद के अलीगढ़ स्कूल के अन्य नेताओं में मौलवी चिराग अली एवं अल्ताफ हुसैन प्रमुख थे । सर सैय्यद अहमद खाँ ने काँग्रेस का विरोध करने के लिए 1886 ई . में इंडियन पैट्रियॉट एसोसिएशन एवं मुस्लिम – एजुकेशनल काक्रेन्स की स्थापना भी की । 1886 ई ० में सैय्यद अहमद खाँ ऑल इण्डिया मुहम्मडन एजुकेशनल काँग्रेस की स्थापना की । देवबन्द आन्दोलन सहारनपुर ( उत्तर प्रदेश ) में 1866-67 ई ० में मुहम्द कासिम वन्तोवी के नेतृत्व में शुरू हुआ । देवबन्द में एक विद्यालय खोला गया जो देवबन्द स्कूल के नाम से प्रसिद्ध हुआ । अहमदिया आन्दोलन का प्रमुख केंद्र पंजाब के गुरूदासपुर जिले में था । अहमदिया आन्दोलन के प्रवर्तक मिर्जा गुलाम अहमद थे । मिर्जा गुलाम अहमद स्वयं को कृष्णा का अवतार कहता था । 1851 ई . में धार्मिक रूढ़िवाद के विरुद्ध पारसी संगठन रहनुमाई मजध्यासन सभा अस्तित्व में आई । रहनुमाई मजध्यासन समाज की स्थापना दादाभाई नौरोजी तथा एस ० एस ० बंगाली ने की । रहनुमाई मजध्यासन सभा के प्रयासों से ‘ पारसी समाज ‘ वर्तमान में भारत का सर्वाधिक आधुनिक समाज बन गया । 19 वीं शताब्दी के अन्त में अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना हुई । 1920 ई . में अकाली आन्दोलन को शुरूआत हुई । अकाली आन्दोलन के दबाव में अंग्रेजी सरकार को सिक्ख गुरुद्वारा अधिनियम ‘ 1922 पारित करना पड़ा । गुरूद्वारा अधिनियम की सहायता से गुरुद्वारों को भ्रष्ट महन्तों से मुक्त कराया गया । कलकत्ता ( कोलकता ) में 1817 ई . में हिन्दू कॉलेज की स्थापना हुई । ‘ हिन्दू कॉलेज ‘ के छात्रों ने हेनरी विवियन डिरोजियो के नेतृत्व में ‘ यंग बंगाल आन्दोलन ‘ किया । ‘ यंग बंगाल आन्दोलन ‘ मैजिनी के यंग इटली आन्दोलन से प्रेरित था । ‘ यंग बंगाल आन्दोलन ‘ पर 1789 ई . के फ्रांसीसी क्रान्ति ( French Revolution ) वृहद प्रभाव पड़ा ।
डिरोजियो के निधन के बाद कृष्ण मोहन बनर्जी , रामगोपाल घोष तथा महेश चंद्र जैसे उनके शिष्यों ने ‘ यंग बंगाल आन्दोलन ‘ को आगे बढ़ाया ।
आधुनिक भारत ( MODERN INDIA )
दिल्ली में 1707 ई ० से 1748 ई ० तक बहादुर शाह ( 1707-12 ई ० ) , जहाँदार शाह ( 1712-13 ई ० ) , फरूर्खशियर ( 1713-19 ई ० ) , मुहम्मद शाह रंगीला ( 1719-48 ई ० ) आदि मुगल शासकों ने शासन किया । ब्रिटेन के भारत विजय में निम्नलिखित महत्वपूर्ण पड़ाव हैं –
. . . . . .
1707 ई ० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया । 1739 ई ० में नादिर शाह एवं 1747 ई ० में अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों से मुगल सामाज्य के पतन की गति और भी तेज हो गई । मुगल साम्राज्य की दुर्बलता का लाभ उठाकर हैदराबाद , अवध एवं बंगाल अलग हो गए । हैदाराबाद के आसफजाही वंश का प्रवर्तक चिनकिलिच खाँ था , उसे निजाम – उल – मुल्क भी कहा जाता था । निजाम – उल – मुल्क के मृत्यु के बाद हैदराबाद पर शासन करने वालों में नासिर जंग , मुजफ्फरजंग एवं सालारजंग थे । अवध के संस्थापक सआदत खाँ थे , जिन्हें मुगल सम्राट मुहम्मद शाह ने बुरहान – उल – मुल्क की उपाधि से सम्मानित किया । सआदत खाँ के बाद अवध पर सफदर जंग एवं शुजाउद्दौला ने शासन किये । 1701 ई ० में मुर्शिद कुली खां को बंगाल की दीवानी प्राप्त हुई । मुर्शिद कुली खाँ ने 1717 ई ० में बंगाल को मुगल साम्राज्य से स्वतंत्र घोषित कर दिया । 1740 ई ० से 1756 ई ० तक बंगाल पर अलीवर्दी खाँ का शासन रहा । बंगाल का अन्तिम नवाब 1756 ई ० में ‘ सिराजुद्दौला ‘ बना । 1707 ई ० में मुगल कैद से आजाद हुए साहू को प्रशासन का ज्ञान नहीं था । साहू जी ने प्रशासन की देख – रेख पेशवाओं के हाथ में सौंप दी । मराठों के पेशवा इस प्रकार थे – बालाजी विश्वनाथ ( 1713-20 ई ० ) , बाजी राव -1 ( 1920-40 ई ० ) , बालाजी बाजी राव ( 1740-61 ई ० ) , माधव राव- ।। ( 1761-62 ई ० ) , नारायण राव -1 ( 1772-73 ई ० ) , माध व राव- ।। ( 1773-96 ई ० ) , बाजी राव- || ( 1796-1818 ई ० ) । बालाजी विश्वनाथ पेशवाओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथा प्रथम पेशवा था । मुगल दरबार के सैयद बंधुओं का दमन करने में बालाजी विश्वनाथ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । बाजी राव -1 ने ‘ मराठा संघ ‘ की स्थापना कर मराठा शक्ति का विस्तार किया । होल्कर ( इंदौर ) , भोंसले ( नागपुर ) , सिन्धिया ( ग्वालियर ) , गायकवाड़ ( बड़ौदा ) , तथा पेशवा ( पूना ) मराठा संघ के सदस्य थे । 1733 ई ० में पेशवा बाजीराव- । ने पुर्तगालियों सालसेट एवं बेसीन के प्रदेश जीते । बाजीराव -1 ने पालखेड़ा के युद्ध में हैदराबाद के निजाम – उल – मुल्क को ( i ) हराया तथा दोनों के बीच मुंशी शिवगांव की सन्धि हुई । मराठों के तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव ने 1757 ई ० में मुगलों की ( ii ) तत्कालीन राजधानी दिल्ली पर अधिकार कर लिया । 1761 ई ० में पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमद शाह अब्दाली ने बालाजी ( ii ) बाजीराव को परास्त कर दिया तथा यहीं से मराठों का पतन आरम्भ हो गया । 18 वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में हैदरअली के अधीन मैसूर राज्य का ( iv ) उदय हुआ । हैदरअली का जन्म मैसूर में 1721 ई ० में हुआ । 1766 ई ० में मैसूर का शासक बनने के बाद हैदर ने अपनी राज्य की सीमाएँ पूरब में पूर्वी घाट , पश्चिम में पश्चिमी घाट एवं दक्षिण में कावेरी नदी तक बढ़ाई । हैदर अली को मराठों के पेशवा माधव राव ने 1764 ई ० में युद्ध में परास्त कर दिया । हैदर अली ने 1782 ई ० तक तथा उसके बाद उसके पुत्र टीपू सुल्तान . ने 1799 ई ० तक मैसूर पर शासन किया ।
1748 ई ० में खालसा दल का निर्माण तथा पंजाब में सिक्खों के 12 मिसलों का गठन हुआ ।
इन्हीं मिस्लों में राजा रणजीत सिंह एक मिस्ल शुक्रकिया का प्रतिनिधित्व करता था । रणजीत सिंह ने 1799 में लाहौर , 1802 में अमृतसर पर अधिकार कर लिया । रंजीत सिंह की राजधानी लाहौर थे । रणजीत सिंह की सरकार को ‘ सरकार खालसा ‘ कहा जाता था । रणजीत सिंह का राज्य 4 सूबों पेशावर , कश्मीर , लाहौर तथा मुल्तान में विभक्त था । अमृतसर की सन्धि ( 1809 ई ० ) अंग्रेजों और रणजीत सिंह के बीच हुए । हरि सिंह नलवा की मदद से रणजीत सिंह ने मुल्तान , कश्मीर तथा पेशावर पर भी अधिकार कर लिया । 1839 ई ० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद 10 वर्षों के बाद उनका राज्य विलुप्त हो गया । 18 वीं शताब्दी के आरम्भ में केरल अनेक छोटे – छोटे क्षेत्रों में विभाजित था । इस काल में कालीकट , कोचीन , करिक्काल एवं ट्रावणकोर आदि महत्त्वपूर्ण थे । ट्रावणकोर के राजा मार्तण्ड वर्मा ने अपने राज्य का विस्तार किया तथा डचों को पूर्णरूपेण केरल से बाहर निकाल दिया । 1805 ई ० में ट्रावणकोर सहायक सन्धि के तहत ब्रिटिश साम्राज्य के प्रभुत्व में आ गया । 18 वीं शताब्दी के आरम्भ में अहोम , कछार , जयंतिया तथा मणिपुर पूर्वोत्तर के प्रमुख राज्य थे । ब्रिटिश काल में असम समेत पूर्वोत्तर का तमाम क्षेत्र असम प्रान्त के नाम से जाना जाता था । असम क्षेत्र में रूद्रसिम्हा ( 1694-1714 ई ० ) एवं शिव सिंह ( 1714-44 ई ० ) प्रमुख शासक हुए । रूद्रसिम्हा को पूर्वी भारत का शिवाजी कहा जाता है । 18 वीं शताब्दी के आरम्भ में राजपूताने में जोधपुर एवं आमेर ( जयपुर ) दो प्रमुख राज्य थे । उपरोक्त के अलावा दिल्ली से सटा समस्त क्षेत्र राजपूतों के अधीन था । जोधपुर ( मारवाड़ ) का प्रमुख शासक अजीत सिंह था तथा आमेर का शासक जय सिंह था । जयपुर के शासक सवाई जय सिंह एक उच्च स्तरीय विद्वान एवं विज्ञान की समझ रखने वाला शासक था ( 1 ) जय सिंह से खगोल विद्या के अध्ययन के लिए 5 वेधशालाओं का निर्माण कराया । ( i ) जय सिंह ने सारणियों के सेट तैयार कराये तथा त्रिकोणमिति की कई प्रसिद्ध पुस्तकों का अनुवाद कराया । ( it ) सवाई जय सिंह द्वारा वैज्ञानिक पद्धति से जयपुर शहर का निर्माण कराया गया । ( iv ) जय सिंह ने रेखा गणित के तत्व नामक यूक्लिड रचित ग्रन्थ का संस्कृत भाषा में अनुवाद कराया । दिल्ली के पास आगरा एवं मथुरा जाटों के प्रभुत्व में थे । भरतपुर में बदन सिंह के दत्तक पुत्र सूरजमल ( 1756-63 ई ० ) का शासन था । सूरजमल द्वारा अपने राज्य का विस्तार पूर्व में गंगा , दक्षिणी में चंबल , पश्चिम में आगरा एवं उत्तर में दिल्ली तक किया गया । 1763 ई ० में सूरजमल की मृत्यु के पश्चात इस राज्य का पतन हो गया ।
अंग्रेज समर्थित कर्नाटक के नवाब ‘ अनवारूद्दीन ‘ की सेना एवं फेंच सेना के बीच कार्नेटिक युद्ध -1 ( 1746-48 ई ० ) हुआ । उपर्युक्त युद्ध में फ्रांसीसियों की सेना की एक छोटी टुकड़ी ( 1000 सैनिक ) ने नवाब की बड़ी सेना ( 10000 सैनिक ) को हरा दिया । एक्स – लॉ – शॉपल की सन्धि ( 1748 ई ० ) के द्वारा यूरोप में फ्रांस एवं ब्रिटेन के बीच युद्ध समाप्त हो गया तथा साथ ही भारत में भी प्रथम कार्नेटिक युद्ध समाप्त हो गया । हैदराबाद , कर्नाटक तथा तंजौर के उत्तराधिकार के प्रश्न पर द्वितीय कार्नेटिक युद्ध ( 1749-54 ई ० ) हुआ । 1748 ई ० में हैदराबाद के निजाम आसफजाह की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र नासिरजंग एवं पौत्र मुजफ्फरजंग में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष आरम्भ हो गया । कार्नेटिक में नवाब अनवरुद्दीन एवं उसके जीजा चंदा साहिब के बीच भी . संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी । फ्रेंच गवर्नर डूप्ले ने हैदराबाद में ‘ मुजफ्फर जंग ‘ एवं कार्नेटिक में ‘ चंदा साहिब ‘ का समर्थन किया । अंग्रेजों ने हैदराबाद में ‘ नासिर जंग ‘ तथा कार्नेटिक में ‘ अनवरुद्दीन ‘ का समर्थन किया । कई झड़पों के बावजूद 1753 ई ० तक कार्नेटिक युद्ध- । अनिर्णीत रहा । 1754 ई ० में अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों के बीच पांडिचेरी की सन्धि हुई । C ‘ पांडिचेरी की सन्धि ‘ के तहत दोनों पक्षों ने भारतीय शासकों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की सहमति बनी । 1756 ई ० में यूरोप में ‘ सप्तवर्षीय युद्ध ‘ के आरम्भ के साथ ही भारत में अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों के बीच शान्ति की स्थिति समाप्त हो गई । 1760 ई ० में अंग्रेजों की सेना ने वान्डिवाश के युद्ध में सर आयरकूट के नेतृत्व में फ्रांसीसियों को बुरी तरह से पराजित कर दिया । वान्डिवाश युद्ध के बाद ‘ फ्रांसीसियों ‘ की ताकत समाप्त हो गई तथा वे पांडिचेरी में सिमट कर रह गए । 1767 ई ० में अंग्रेजों , निजाम तथा मराठों ने मिलकर ‘ हैदर अली ‘ के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाया । हैदर अली ने कूटनीति के प्रयोग से मराठों तथा निजाम को अपने पक्ष में कर लिया । 1767-69 ई ० के बीच आंग्ल – मैसूर युद्ध- हैदर अली एवं अंग्रेजों के बीच हुआ । अंग्रेजों को 1769 ई ० में ‘ हैदर अली ‘ के साथ अपमानजनक सन्धि करनी पड़ी तथा दोनों पक्षों ने एक – दूसरे के जीते हुए प्रदेश लौटा दिये । 1779 ई ० में पश्चिमी तट पर स्थित फ्रांसीसी उपनिवेश माहे पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया । ‘ माहे ‘ से हैदर अली के महत्वपूर्ण सामरिक संबंध थे । हैदर अली , निजाम मराठों के संयुक्त मोर्चा तथा अंग्रेज समर्थिक कर्नाटक के नवाब के बीच आंग्ल – मैसुर युद्ध -11 ( 1780-84 ई ० ) इसी बीच 1782 ई ० में हैदर अली एवं सर आयरकूट का निधन हो गया । अब युद्ध में मैसूर की कमान टीपू सुल्तान ( हैदर का पुत्र ) एवं अंग्रेजों 1 की कमान जेनरल स्टुआर्ट के हाथों में थी
अंग्रेजों एवं टीपू सुल्तान के बीच मंगलोर की सन्धि ( 1784 ई ० ) में हुई , जिसके तहत दोनों पक्षों ने एक – दूसरे के जीते हुए प्रदेश को वापस कर दिए ।
1790 ई ० में गर्वनर जेनरल ‘ लॉर्ड कार्नवालिस ‘ निजाम एवं मराठों के साथ मैसूर के खिलाफ त्रिदलीय मोर्चा ( Triple Alliance ) बना । टीपू सुल्तान एवं अंग्रेज समर्थित ट्रावणकोर के राजा के बीच हुए आंग्ल – मैसुर युद्ध -11 ( 1790-92 ई ० ) का परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में गया । 1792 ई ० में टीपु सुल्तान तथा अंग्रेजों के बीच श्रीरंगापट्टम की सन्धि . . श्रीरंगापट्टम की अपमानजनक सन्धि के तहत टीपू को अपना आधा राज्य अंग्रेजों एवं उनके मित्रों के बीच बांटना पड़ा । श्रीरंगापट्टम को अपमानजनक सन्धि के तहत क्षेत्र को अपने दो पुत्रों को जमानत के तौर पर लॉर्ड कार्नवालिस को सौंपना पड़ा । 1798 ई ० में आंग्ल – मैसुर- IV ( 1798-99 ई ० ) आरम्भ हुआ और इस युद्ध में टीपू बुरी तरह हार गया एवं मारा गया । 1799 ई ० में श्रीरंगापट्टम ( मैसूर की राजधानी ) . पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया । वडियार वंश के एक बालक को अंग्रेजों ने मैसूर की गद्दी पर बैठा दिया तथा उस पर सहायक सन्धि ( Subsidiary Alliance ) थोप दी । 1756 ई ० में बंगाल की गद्दी पर नवाब के रूप में अलीवर्दी खाँ का नाती सिराजुद्दौला बैठा । सिराजुद्दौला की मौसी घसीटी बेगम तथा उसका पुत्र शौकत जंग , उसके प्रमुख विरोधी थे । सिराजुद्दौला को शौकत जंग की दीवान राजवल्लभ तथा अंग्रेजों से भी चुनौती मिल रही थी । सिराजुद्दौला ने 20 जून , 1776 ई ० को ‘ कलकत्ता ‘ पर आक्रमण कर फोर्ट विलियम पर कब्जा कर लिया । माणिकचंद को कलकत्ता का प्रभारी बनाकर ‘ सिराजुद्दौला ‘ स्वयं वापस लौट गया ।
Black hole tragedy
कलकत्ता युद्ध के बाद ‘ फोर्ट विलियम ‘ के 146 कैदियों को 20 जून , 1756 ई ० की रात को 18 फुट x 14 फुट के अंधेरे कमरे में बन्द कर दिया गया । 21 जून को सवेरे में उनमें से मात्र 23 व्यक्ति जीवित बचे थे । अंग्रेजों ने कुछ वर्ष तक इसे दुष्प्रचार के हथकंडे के रूप में इस्तेमाल किया । अधिकांश समकालीन इतिहासकार इस घटना को प्रमाणिक नहीं मानते . . . • आधुनिक भारत के इतिहासकार गुलाम हुसैन ने समकालीन भारत पर अपनी रचना सियार – उल – मुख्खरैन में भी इसका कोई जिक्र नहीं किया है । माणिक चंद को घूस देकर अंग्रेजों ने अपनी ओर मिला लिया तथा कलकत्ता एवं हुगली पर अधिकार कर लिया । अंग्रेजों एवं सिराजुद्दौजा के बीच 9 फरवरी , 1757 को अलीनगर की सन्धि हुई । ‘
अलीनगर की सन्धि ‘ के तहत अंग्रेजों को व्यापार के पुराने अधिकार मिल गये ।
उपर्युक्त संधि से ही अंग्रेजों को कलकत्ता ( कोलकाता ) की किलेबन्दी करने की भी अनुमति प्राप्त हुई । अंग्रेजों ने सिराजुद्दौजा के विरुद्ध मीर जाफर ( सिराजुद्दौला का सेनापति ) , जगत सेठ ( बंगाल का बैंकर ) , रायदुर्लभ ( एक बिचौलिया ) तथा अमीर चंद ( बंगाल का एक व्यापारी ) के साथ मिलकर साजिश की । सिराजुद्दौला एवं अंग्रेजों की सेना के बीच 23 जून , 1757 ई ० को ‘ मुर्शिदाबाद ‘ से 22 मील दक्षिण में प्लासी का युद्ध ( 1757 ई ० ) हुआ । प्लासी युद्ध साजिश में शामिल लोगों द्वारा धोखा दिये जाने के कारण सिराजुद्दौला हार गया तथा उसकी हत्या कर दी गई । 25 जून , 1757 ई ० को मीर जाफर द्वारा स्वयं को बंगाल का नवाब घोषित किया गया । मीर जाफर ने अंग्रेजों को इनामस्वरूप 24 परगने की जमींदारी प्रदान की । मीर जाफर युद्ध की क्षति की पूर्ति के लिए अंग्रेज सेनापति क्लाइव को 234000 रु ० दिये । मीर जाफर ने कम्पनी को बिना शुल्क अदा किये ही व्यापार करने की छूट दे दी । 24 परगने ‘ की जमींदारी ने अंग्रेजों को अत्यन्त फायदा पहुंचाया , परिणामस्वरूप धन की उनकी मांगें बढ़ने लगीं । ‘ मीर जाफर ‘ अंग्रेजों की दिनोंदिन बढ़ते मांग को पूरा करने में असमर्थ साबित हो रहा था । अंग्रेजों ने 27 दिसंबर 1760 को मीर कासिम ( मीर जाफर का दामाद ) को बंगाल का नया नवाब घोषित किया । मीर कासिम ने अपनी राजधानी मुंगेर में स्थापित की । मीर कासिम ने बिहार के तत्कालीन गर्वनर राम नारायण को अपदस्थ .. . किया । मीर कासिम एक योग्य व्यक्ति था , शीघ्र ही अंग्रेजों से दस्तक के सवाल पर उलझ पड़ा । 1763 ई ० में कम्पनी एवं मीर कासिम के बीच युद्ध आरम्भ हो गया । उदयनाला के युद्ध में बुरी तरह पराजित होने के पश्चात् ‘ मीर कासिम ‘ अवध चला गया । बंगाल के नवाब की गद्दी पर पुन : मीर जाफर को पदस्थापित किया गया । अंग्रेजों को चुंगी रहित व्यापार की सुविधा बहाल कर दी गई जबकि भारतीयों के लिए चुंगी की दर 25 प्रतिशत निर्धारित की गई । अवध पहुँचकर मीर कासिम ‘ ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध एक मोर्चा तैयार किया । 22 अक्टूबर , 1764 को मीर कासिम की संयुक्त सेना एवं अंग्रेज सेना के बीच बक्सर का युद्ध ( 1764 ई ० ) हुआ । इस युद्ध में मेजर हेक्टर मुनरो ने अंग्रेजों को सेना का नेतृत्व किया । इस युद्ध में घमासान लड़ाई के पश्चात् अंग्रेजों की जीत हुई तथा मीर कासिम पलायन कर गया तथा 12 वर्षों के पश्चात् उसका निधन हो गया । ‘ इलाहाबाद की पहली सन्धि ‘ 12 अगस्त , 1765 को हुई । न ‘ दस्तक ‘ एक प्रकार का पास था जो कर – मुक्त व्यापार के लिए East India Co. को प्रदान किया गया था । ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारी एवं अधिकारी ‘ दस्तक ‘ का प्रयोग अपने निजी व्यापार के लिए करके बंगाल के राजकोष को हानि पहुँचाते थे । उपर्युक्त सौंध के तहत ईस्ट इंडिया कं . को बिहार , बंगाल एवं उड़ीसा के दीवानी अधिकार प्राप्त हो गए । दीवानी अधिकार मिल जाने से बंगाल , बिहार , उड़ीसा क्षेत्र का वास्तविक स्वामित्व कंपनी के हाथ में आ गया । बदले में मुगल बादशाह को 26 लाख रुपये वार्षिक अदा करने एवं उसे अवध के इलाहाबाद एवं कड़ा जिले प्रदान करने की सहमति हुई ।
‘ इलाहाबाद की दूसरी सन्धि ‘ 16 अगस्त , 1765 को हुई , जिसके तहत अवध के नवाब शुजाउद्दौला को युद्ध की क्षतिपूर्ति हेतु 50 लाख रूपये अंग्रजों को देना तय हुआ ।
. 50 लाख रुपये देने के एवज में अंग्रेजों द्वारा अवध का जीता हुआ राज्य नवाब को वापस लौटाना था ।
बंगाल में द्वैध शासन ( Dual Government in Bengal )
1765 ई ० में ‘ मीर जाफर ‘ की मृत्यु हो गई । अंग्रेजों ने ‘ मीर जाफर ‘ के पुत्र नजमुद्दौला को निम्न शर्तों के साथ नवाब के रूप में स्वीकार किया ( i ) निजामत ( सैन्य संरक्षण एवं विदेशी मामले ) पूर्णतया कम्पनी के हाथ में होंगे । ( ii ) दीवानी मामलों के लिए एक डिप्टी गर्वनर हो , जिसकी नियुक्ति कम्पनी द्वारा हो तथा कम्पनी के अनुमति बगैर उसे हटाया न जाय । इस प्रकार प्रशासन की वास्तविक शक्ति कम्पनी के हाथों में रही एवं दैनिक प्रशासन नवाब के हाथों में । उपर्युक्त विचित्र प्रशासनिक व्यवस्था को ‘ द्वैध – शासन ‘ कहते हैं । यह व्यवस्था 1765 ई ० से 1772 ई ० तक चली । आंग्ल – मराठा यु -1 ( 1775-82 ई ० ) गवर्नर जेनरल ‘ बारेन हेस्टिंग्स ‘ के शासनकाल में हुआ । आंग्ल – मराठा युद्ध -1 , अंग्रेजों द्वारा बड़गाँव की संधि के उल्लंघन के कारण हुआ । अंग्रेज सेना ने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया , ग्वालियर के शासक ‘ महादजी सिंधिया ‘ को साल्बाई की सन्धि ( 1782 ई ० ) करनी पड़ी । दोनों पक्षों के बीच अगले 20 वर्षों तक शान्ति बनी रही । 1805 ई ० में मराठों के सबसे बड़े नेता नाना फड़नवोस की मृत्यु हो गई । पेशवा वाजीराव- II , जसवंत राव होल्कर तथा दौलत सिंधिया में प्रमुत्व के लिए संघर्ष छिड़ गया । 1802 ई ० में जसवंत राव होल्कर ने पूना पर कब्जा कर पेशवा बाजी राव- II को अपदस्थ कर दिया । जसवंत राव होल्कर ने विनायक राव को नया पेशवा नियुक्त कर दिया । अपदस्थ पेशवा बाजीराव- ।। ने लॉर्ड वेलेस्ली के साथ बेसिन की सन्धि ( 1802 ई ० ) की । यह सन्धि ‘ लॉर्ड वेलेस्ली ‘ की बहुचर्चित सहायक सन्धि ( Subsidiary Alliance ) थी । इस सन्धि के तहत् दोनों पक्षों ने संकट काल में एक – दूसरे का साथ देने का आश्वासन दिया । पेशवा ने पूना में एक सहायक सेना रखने एवं उसके खर्चे के लिए 27 लाख रुपये वार्षिक देने की स्वीकृति दे दी । बेसीन की अपमानजनक सन्धि मराठा संघ के अन्य सरदारों द्वारा स्वीकार नहीं की गई । असाई नामक स्थान पर अंग्रेजों ने सिन्धिया एवं भोंसले की संयुक्त सेना को आंग्ल – मराठा युद्ध- II ( 1803 ई ० ) में बुरी तरह हरा दिया । अंग्रेजों ने पुनः मराठों को अरगाँव तथ लासबाड़ी में हराया । भोंसले ने हारकर देवगाँव की सन्धि की जिसके तहत् उसे कटक का सूबा अंग्रेजों को प्रदान करना पड़ा । 30 दिसम्बर , 1803 को सिन्धिया ने भी सूर्जी अर्जुन गाँव की सहायक सन्धि कर ली । आंग्ल – मराठा युद्ध- II ( 1804-06 ई ० ) लौर्ड वेलेस्ली एवं होल्कर के . बीच हुआ । . 1804 ई ० में लॉर्ड वेलेस्ली ने ‘ जयपुर ‘ को सुरक्षित करने की गरज से ‘ होल्कर ‘ पर आक्रमण किया । अंग्रेजों एवं होल्कर के बीच 7 जनवरी , 1806 को राजपुर घाट की सन्धि . राजपुरघाट की सन्धि के तहत चंबल नदी के उत्तर में अंग्रेजों का एवं दक्षिण में ‘ होल्कर ‘ का राज्य स्थापित हो गया । आंग्ल – मराठा युद्ध- II ( 1813-23 ई ० ) लॉर्ड हेस्टिंग्स के कार्यकाल में हुआ । अंग्रेजों एवं भोंसले सरदार अप्पा साहिब के बीच नागपुर की सन्धि हुई जिसके तहत ‘ नागपुर ‘ पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया ।
अप्पा साहिब ने फिर से संघर्ष किया परन्तु 1817 ई ० में सीताबर्डी के युद्ध में हार गया । -48 .
.
महीदपुर में 1817 ई ० में पेशवा भी पराजित हो गया , उसने पूर्णरूपेण हथियार डाल दिए । मंदसौर में 1818 ई ० के आरम्भ में होल्कर ने सहायक सन्धि स्वीकार कर ली । ‘ पूना ‘ का ब्रिटिश राज्य में विलय कर दिया गया । सम्पूर्ण महाराष्ट्र पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो गया तथा मराठा संघ पूर्णरूपेण समाप्त हो गया । रणजीत सिंह द्वारा छोड़े गये 4000 सैनिकों ने पंजाब में अराजकता फैलाने का कार्य किया । रणजीत सिंह के अल्प – वयस्क पुत्र दिलीप सिंह को सितम्बर , 1843 ई ० में महाराजा घोषित किया गया । रानी जिंदा को दिलीप सिंह का संरक्षक एवं हीरा सिंह को वजीर नियुक्त . किया गया । 1844 ई ० में आए गर्वनर जनरल लॉर्ड हार्डिंग ने पंजाब के गवर्नर मेजर ब्राडफुट को पंजाब से पेशावर तक ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित करने का निर्देश दिया । 13 दिसम्बर , 1845 ई ० में मुदकी में हुए आंग्ल – सिख युद्ध- II . ( 1845-46 ई ० ) सिख जीत सकते थे , परन्तु , तेज सिंह तथा लाल सिंह के विश्वासघात के कारण हार गये । सिखों एवं अंग्रेजों के बीच निर्णायक भिड़त सबराओं में 10 फरवरी , 1846 को हुई , जिसमें विश्वासघात के कारण सिक्ख हार गये । इस युद्ध के परिणामस्वरूप लाहौर पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया । 9 मार्च , 1846 को सिक्खों एवं अंग्रेजों के बीच लाहौर की सन्धि हुई । इस सन्धि के तहत् सतलज पार के सिक्खों के तमाम प्रदेश अंग्रेजों के अधिकार में चले गये । 1848 में पंजाब कांउसिल के अध्यक्ष हेनरी लॉरेंस ने बड़ी संख्या में सेना को भंग कर दिया । इससे पंजाब में बेहद अराजक स्थिति उत्पन्न हो गई । उपर्युक्त घटना ने दूसरे आंग्ल – सिक्ख युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार की , जबकि मुल्तान के विद्रोह ने तात्कालिक कारण उत्पन्न किये । शेर सिंह के नेतृत्व में सिक्खों एवं कमांडर गफ के नेतृत्व में अंग्रेजों के बीच 13 जनवरी , 1849 को चिलियानवाला में आंग्ल – सिख युद्ध- II ( 1848-49 ई . ) हुआ । द्वितीय आंग्ल – सिख युद्ध अनिर्णीत रहा परन्तु , अंग्रेजों को अत्यधिक क्षति उठानी पड़ी । तीसरा आंग्ल – सिख युद्ध 21 फरवरी , 1849 को लड़ा गया । इस युद्ध में सिख बुरी तरह पराजित हुए एवं आत्मसमर्पण कर दिया । 29 मार्च , 1849 को लॉर्ड डलहौजी ने पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया । पानीपत के तृतीय युद्ध के पश्चात् ‘ पिंडारी ‘ मालवा में बस गये तथा मराठों के सहायक सैनिक की भूमिका निभाने लगे । 19 वीं शताब्दी के आरम्भ में , चीतू , वासिल मुहम्मद तथा करीम पिंडारियों के प्रमुख नेता थे । पिंडारियों द्वारा अंग्रेजी शासन के अधीन मिर्जापुर एवं शाहाबाद जिलों पर 1812 ई ० में आक्रमण किये गये । पिंडारियों ने 1815 ई ० में निजाम के राज्य तथा 1816 ई ० में उत्तरी सरकार को लूटा । तत्कालीन गर्वनर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स ने 1817 ई ० में पिंडारियों का दमन आरम्भ किया । 1824 ई ० तक पिंडारियों का पूर्णरूपेण सफाया हो गया । नेपाल 1768 ई ० में एक गोरखा राज्य के रूप में अस्तित्व में आया । 1814 ई ० में अंग्रेजों एवं गोरखों के बीच लॉर्ड हेस्टिंग्स के कार्यकाल में हुए संघर्ष में ‘ गोरखे ‘ हार गए । गोरखों एवं अंग्रेजों के बीच मार्च , 1816 ई ० में सुगौली की सन्धि हुई । सुगौली की सन्धि के तहत कुमाऊँ तथा गढ़वाल अंग्रेजों के अधिकार में आ गये ।
सुगौली को सन्धि क तहत गोरखे सिक्किम छोड़ने एवं काठमांडु में एक अंग्रेज रेजीडेंट रखने पर तैयार हो गये ।
1843 ई ० में चार्ल्स नेपियर ने सिंध पर आक्रमण कर दिया एवं इमामगढ़ का दुर्ग जीत लिया । 1843 ई ० के अन्त तक सम्पूर्ण सिन्ध का ब्रिटिश राज में विलय हो गया । ‘ लॉर्ड डलहौजी ‘ के कार्यकाल से पूर्व भरतपुर ( 1826 ई ० ) , कछार ( 1832 ई ० ) , कुर्ग ( 1834 ई ० ) एवं सिक्किम ( 1850 ई ० ) का विलय ब्रिटिश राज्य में हो चुका था । लॉर्ड डलहौजी के व्यपगत् सिद्धान्त ( Doctrine of Lapse ) के तहत् सतारा ( 1848 ई ० ) , बघात ( 1850 ई ० ) , उदयपुर ( 1852 ई ० ) , नागपुर ( 1854 ई ० ) , झांसी ( 1853 ई ० ) . अवध ( 1856 ई ० ) का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय हुआ । अंग्रेजी शासन के विरूद्ध 1768-1921 ई . के बीच कई विद्रोह हुए । • उपर्युक्त में 1857 का विद्रोह सबसे महत्वपूर्ण था । 1770 ई . में पड़े भयानक अकाल के प्रति अंग्रेज सरकार ने उदासीनता . बरती । . . . 1770 ई . में सन्यासियों की तीर्थयात्रा भी अंग्रेजें प्रतिबंधित कर दी । उपर्युक्त दोनों कारणों से सन्यासी विद्रोह ( 1770-1800 ई . ) हुआ । सन्यासी विद्रोह की जानकारी ‘ बंकिम चंद्र चटर्जी ‘ की आनंदमठ ( उपन्यास ) से होती है । 1768 ई . में अकल एवं भूमि – कर के विरोध में बंगाल के मिदनापुर जिले में चुआर विद्रोह हुआ । 1776-77 ई . में बंगाल में ‘ मजनू शाह एव चिराग अली ‘ के नेतृत्व में फकीर विद्रोह ( 1776-77 ई . ) हुआ । ब्रिटिश भूमि – कर व्यवस्था के खिलाफ ‘ वीर काट्टावायान ‘ के नेतृत्व में तमिलनाडु में पॉलीगार विद्रोह ( 1799-1809 ई . ) हुआ । ट्रावणकोर रियासत में 1805 ई . में सहायक संधि के विरोध में दीवान वेलूथम्पी का विद्रोह हुआ । भारत के पश्चिमी घाट में स्थित ‘ खान देश ‘ ‘ सेवरम ‘ के नेतृत्व में झील विद्रोह ( 1812-46 ई . ) हुआ । पश्चिमी घाट पर निवास करने वाली ‘ रामोसी ‘ जाति ने ‘ सरदार चित्तर सिंह के नेतृत्व में रामोसी विद्रोह ( 1822-29 ई . ) किया । 1828 ई . में ‘ गोमधर कुंवर ‘ के नेतृत्व में अहोम राज्य हथियाने के विरोध में अहोम विद्रोह हुआ । बरासात ( बंगाल ) में ‘ टीट मीर ‘ के नेतृत्व में दाढ़ी पर कर लगाए जाने . के विरोध में वहाबी विद्रोह ( 1831 ई . ) हुआ । 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बढ़े भूमि कर एवं क्षेत्र में मुसलमानों एवं सिखों को बसाने के विरोध में ‘ नारायण राव ‘ के नेतृत्व में झारखंड क्षेत्र में कोल विद्रोह ( 1831-32 ई . ) हुआ । पूर्वोत्तर भारत में ‘ राजा तिरूत सिंह के नेतृत्व में खासी विद्रोह ( 1838 ई . ) हुआ । बंगाल के ढ़ाका एवं फरीदपुर जिलों में ‘ हाजी शरीयतुल्ला एवं दादू मिया ‘ के नेतृत्व में भूमि – कर शोषण के विरूद्ध फरायजी आंदोलन ( 1838-57 ई . ) हुआ । भूमि अधिकारी , जमीन्दार तथा साहूकारों के अत्याचार के खिलाफ ‘ सिद्ध कान्हू ‘ के नेतृत्व में संथाल परगना में संथाल विद्रोह ( 1855-56 ई . ) हुआ । संथाल विद्रोह के 1856 ई . में कमीश्नर ब्राउन एवं जनरल लॉयड ने दबाने में सफलता प्राप्त की । जमींदारों , ठेकेदारों , अनियों , सूदखोरों एवं अंग्रेजों के अत्याचार के विरूद्ध दक्षिणी छोटानागपुर के आदिवासियों ने मुंडा विद्रोह ( 1898-1900 ई . ) किया । मुंडा विद्रोह को नेतृत्व बिरसा मुंडा ने प्रदान किया । बिरसा मुंडा ने उलगुलान की उपाधि धारण की तथा स्वयं को ईश्वर का दूत घोषित किया । मुंडा विद्रोह को 1900 ई . तक दबा दिया गया । उड़ीसा में ‘ जगबंधु बख्शी ‘ के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरूद्ध पाइक विद्रोह ( 1817-25 ई . ) हुआ ।
आंध्र प्रदेश के तटवर्ती क्षेत्रों के आस – पास निवास करने वाले आदिवासियों ने रम्पा विद्रोह ( 1879 ई . ) किया ।
कच्छ एवं काठियावाड़ में राजा भारमल को अपदस्थ किए जाने के कारण उसके समर्थकों ने 1819 ई . एवं 1831 ई . में कच्छ विद्रोह . किया । सूरत में नमक कर 50 पैसे से बढ़ाकर | रुपया किए जाने के विरोध में सूरत का नमक विद्रोह ( 1844 ई . ) हुआ । उपर्युक्त विद्रोह की प्रचंडता देखकर अंग्रेजी सरकार ने कर – वृद्धि वापस ले ली । 9 वीं शताब्दी में ‘ दक्षिणी मालाबार ( केरल ) ‘ के मुसलमान पट्टेदारों तथा खेतिहरों को मोपला कहा जाता था । अंग्रेजों ने मालाबार में ‘ स्थाई बंदोबस्त ( Permanent settlement ) ‘ स्थाई बंदोबस्त के कारण जमींदारों के अधिकार बढ़ गए एवं उन्होंने मालाबार के मोपला किसानों को भूमि से बेदखल करना आरंभ कर दिया । उपर्युक्त के विरोध में ‘ सैयद अली मुसलियार ‘ के नेतृत्व में मोपला विद्रोह ( 1836-21 ई . ) हुआ । भारत में अंग्रेजों के विरूद्ध पहला बड़ा विद्रोह 1857 का विद्रोह था । 1857 के विद्रोह की शुरुआत मेरठ में 10 मई 1857 को हुई । 1857 के विद्रोह के तात्कालिक कारण नई एनफील्ड राइफलों में चर्बीदार कारतूसों ( गाय एवं सुअरों की ) का उपयोग था । 29 मार्च , 1857 ई ० को मंगल पाण्डे ने अपने एजुटेंट पर बैरकपुर ( पश्चिम बंगाल ) में आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी । मंगल पाण्डे को सार्जेंट मेजर पर गोली चलाने के जुर्म में 8 अप्रैल 1857 को फाँसी दे दी । 1857 की क्रांति की शुरूआत 10 मई , 1857 को मेरठ की पैदल टुकड़ी 20 नेटिक्इन्फैन्ट्री द्वारा हुई । 11 से 30 मई , 1857 की अवधि में दिल्ली , फीरोजपुर , बम्बई , अलीगढ़ , इटावा , बरेली , मुरादाबाद एवं उत्तर प्रदेश के कई नगरों में विद्रोह का प्रसार हुआ । दिल्ली में विद्रोहियों ने अन्तिम मुगल बादशाह बहादुशाह जफर- II को भारत का सम्राट घोषित कर दिया । जून , 1857 में ग्वालियर , भरतपुर , झाँसी , इलाहाबाद , फैजाबाद , सुल्तानपुर एवं लखनऊ आदि में विद्रोह फैल गया । अगस्त , 1857 ई . तक जगदीशपुर ( बिहार ) इंदौर , सागर एवं नर्मदा घाटी .
में विद्रोह का प्रसार हुआ । सितम्बर , 1857 ई ० में दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया , परन्तु मध्य – भारत में विद्रोह हो गया । मई 1858 ई ० तक अंग्रेजों का कानपुर , लखनऊ , झाँसी आदि पर अधि कार हो गया । जुलाई – दिसम्बर , 1858 ई ० तक सम्पूर्ण भारत में विद्रोह को दबा दिया गया एवं अंग्रेजी राज की पुनर्स्थापना कर दी गई । बंगाल में ‘ दिगंबर एवं विष्णु विश्वास ‘ के नेतृत्व में नीलहा – किसानों पर अत्याचार के विरूद्ध नील विद्रोह ( 1859-61 ई . ) हुआ । 1859 ई . के नील विद्रोह का विवरण ‘ दीनबंधु मित्रा ‘ की चर्चित पुस्तक नील दर्पण में मिलता है । बाद में हिन्दू पैट्रियॉट ‘ के हरीशचंद्र मुखर्जी ने उपर्युक्त आंदोलन को समर्थन दिया । जमीन्दारों की ज्यादती के खिलाफ ‘ यूसुफसराय ‘ के कृषक – संघ ने पाबना विद्रोह ( 1859-61 ई . ) किया । मारवाड़ी एवं गुजराती साहुकारों के शोषण के खिलाफ दक्कन विद्रोह ( 1875-79 ई . ) हुआ । उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में लगान – वृद्धि के विरोध में ‘ बाबा रामचंद्र ‘ के नेतृत्व में किसान आंदोलन ( 1920 ई . ) हुआ । बाबा राम चंद ने 1920 ई . में अवध किसान सभा की स्थापना की । अवध किसान सभा को जवाहर लाल नेहरू , गौरीशंकर मिश्र तथा केदारनाथ जैसे राष्ट्रवादियों का समर्थन मिला । पंजाब में कृषि से संबंधित समस्याओं खलाफ जवाहर मल एवं बाबा राम सिंह के नेतृत्व में कूका आंदोलन ( 1872 ई . ) हुआ । ऊँची लगान एवं चौकीदारी कर के विरूद्ध झारखंड में ‘ जतरा भगत ‘ के नेतृत्व में ताना भगत आंदोलन ( 1914 ई . ) हुआ । ऊँची भूमि – कर के विरोध में ‘ कंपा राम सिंह एवं भुवन सिंह ‘ के नेतृत्व में तेभागा आंदोलन ( 1946 ई . ) हुआ । जमींदारों , साहुकारों एवं सूदखोरों के शोषण के विरूद्ध आंध्र प्रदेश के किसानों ने तेलंगाना आंदोलन ( 1946 ई . ) किया । अंग्रेजों के विशाल भारतीय साम्राज्य का प्रशासन 1757 ई . से 1857 ई . तक ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में रहा । 1857 ई . से 1947 ई . भारत में अंग्रेजी साम्राज्य प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश क्राउन के अधीन था । दोनों ही प्रशासन में भारत के प्रशासन के रूप में गवर्नर , गवर्नर जेनरल एवं वायरायों की नियुक्ति हुई । 1773 ई . के रेग्यूलेटिंग ऐक्ट के अनुसार बंगाल का गवर्नर , बंगाल का गवर्नर जेनरल हो गया । रेग्यूलेटिंग ऐक्ट , 1773 के तहत मद्रास एवं बंबई गवर्नर को ‘ बंगाल के गवर्नर जेनरल ‘ के अधीन कर दिया गया । 1774 ई ० में वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का प्रथम गवर्नर जेनरल बनाया गया । 1833 ई ० में चार्टर एक्ट के प्रावधानों के अनुसार बंगाल के गवर्नर जेनरल को भारत का गवर्नर जेनरल बनाया गया । लार्ड विलियम बेंटिक भारत का प्रथम गवर्नर जेनरल बना । अधिनियम 1858 के द्वारा गवर्नर जनरल को वायसराय की उपाधि दी गई । भारत का प्रथम वायसराय लार्ड कैनिंग था , वह भारत का अन्तिम गवर्नर जेनरल भी था । 1750 ई . में बारेन हेस्टिंग्स ( 1772-85 ई . ) ईस्ट इंडिया कंपनी के क्लर्क के रूप में कलकता पहुंचा । अपनी कार्यकुशलता से वारेन हेस्टिंग्स कासिम बाजार का अधीक्षक बन गया । वारेन हेस्टिंग्स 1772 ई . में बंगाल का गवर्नर तथ 1773 ई . ‘ बंगाल का गवर्नर जेनरल ‘ बना ।
वारेन हेस्टिंग्स के काल में पिटस इण्डिया एक्ट , रोहिला युद्ध , रोहिल खण्ड पर अधिकार , प्रथम मराठा युद्ध , सलवाई की सन्धि तथा द्वितीय मैसूर युद्ध इत्यादि हुए ।
. . 1772 ई ० में वारेन हेस्टिंग्स ने क्लाइव द्वारा लागू की गई द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त कर दिया ।
वारेन हेस्टिंग्स ने 1772 ई . में प्रत्येक जिले में दीवानी एवं एक फौजदारी न्यायालय की स्थापना की । वारेन हेस्टिंग्स ने 1781 में भारत में प्रथम मदरसा , कलकत्ता मदरसा की स्थापना की । वारेन हेस्टिंग्स के शासनकाल में 1782 ई ० में जोनाथन डंकन ने बनारस में एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की । 1776 ई ० में वारेन हेस्टिंग्स के शासनकाल में Code of Gentoo Laws नामक पुस्तक का संस्कृत अनुवाद प्रकाशित हुआ । 1781 ई ० में वारेन हेस्टिंग्स के काल में विलियम जोंस तथा कोलबुक की Digest of Hindu Laws का प्रकाशन हुआ । 1784 ई ० में हेस्टिंग्स के काल में सर विलियम जोंस द्वारा कलकत्ता में . Royal Asiatic society की स्थापना की गई । वारेन हेस्टिंग्स ने चार्ल्स विलिकिंस द्वारा किये गए गीता के प्रथम अंग्रेजी अनुवाद की प्रस्तावना लिखी । चार्ल्स विलिकिंस ने फारसी तथा बांग्ला मुद्रण के लिए ढलाई के अक्षरों का आविष्कार किया । वारेन हेस्टिंग्स के कार्यकाल में 1778 ई ० में हॉलहेड ने ‘ संस्कृत . व्याकरण ‘ प्रकाशित किया । वारेन हेस्टिंग्स ने फतवा – ए – आलमगीरी नामक ग्रन्थ का अनुवाद करवाने का प्रयास किया । 1781 ई ० में वारेन हेस्टिंग्स के कार्यकाल में विलियम जोंस एवं कोलबुक • ने Digest of Hindu Laws प्रकाशित की । वारेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता में एक टकसाल का निर्माण कराया । हेस्टिंग्स ने मुगल सम्राट को मिलने वाली 26 लाख रुपये की वार्षिक पेंशन बन्द कर दी एवं इलाहाबाद तथा ‘ कड़ा ‘ जिले अवध के नवाब को सौंप दिये । वारेन हेस्टिंग्स के काल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को नमक के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त हुआ । 1784 ई . में वारेन हेस्टिंग्स के कार्यकाल में बंगाल में अरेबिक सोसायटी . की स्थापना की गई । वारेन हेस्टिंग्स ने इण्डिया क्ट ( 1784 ई . ) के विरोध में त्यागपत्र दे दिया एवं फरवरी 1785 में वह इंग्लैण्ड चला गया । वारेन हेस्टिंग्स जब 1785 ई ० में वापस इंग्लैण्ड लौटा तो उस पर ब्रिटिश संसद में महाभियोग चलाया गया । अभियोग लगाने वालों में फॉक्स एवं बर्क प्रमुख वक्ता थे । 1795 ई ० में हेस्टिंग्स को महाभियोग के सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया । वारेन हेस्टिंग्स के समय में प्रथम एवं द्वितीय आंग्ल – मराठा युद्ध लड़े गए । 1786 ई ० में कम्पनी ने लार्ड कार्नवालिस ( 178-98 ई . ) को पिट्स . इण्डिया एक्ट के अन्तर्गत गवर्नर जनरल बनाकर भारत भेजा । लार्ड कार्नवालिस ने न्याय प्रशासन में सुधार के लिए ‘ कार्नवालिस कोड ‘ का निर्माण करवाया । ‘ कॉर्नवालिस कोड ‘ के अन्तर्गत राजस्व प्रशासन को न्याय प्रशासन से . अलग कर दिया गया ।
लार्ड कार्नवालिस को सिविल ( नागरिक ) सेना का जन्मदाता माना जाता .
कैनिंग ने इंडियन हाईकोर्ट एक्ट के अन्तर्गत बंबई , कलकत्ता तथा मद्रास में एक – एक उच्च न्यायालय की स्थापना की । कैंनिग के शासनकाल में शिक्षा विभाग खोला गया । कैनिंग के काल में 1857 में कलकत्ता , बंबई और मद्रास विश्वविद्यालय की स्थापना हुई । कैनिंग के शासनकाल में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम -1856 पारित हुआ । मैकॉले द्वारा प्रस्तावित भारतीय दंड सहिता -1858 ( Indian penal code ) को कानून बना दिया गया । कैनिंग के शासनकाल में 1861 ई . में एक भयंकर अकाल पड़ा । 1859-60 ई ० में नील उगाने वाले यूरोपीय और बंगाल के कृषकों के बीच झगड़े हुए । लॉर्ड कैनिंग के समय व्यपगत सिद्धान्त ( Doctrine of Lapase ) यानी राज्य – विलय की नीति को समाप्त कर दिया गया । कैनिंग के बाद 1862 ई . में वायसराय बनें लॉर्ड एल्गिन ( 1862-63 ई . ) बहावी आन्दोलन का दमन किया । लॉर्ड एल्गिन के उपरान्त लार्ड जॉन लॉरेंस ( 1864-63 ई . ) ने भारत का वायसराय बना । लारेंस ने चेम्बवेल हेनरी की अध्यक्षता में एक अकाल आयोग का गठन किया । भारतीय जनपद सेवा में भर्ती होने वाले प्रथम भारतीय सत्येन्द्र नाथ टैगोर थे । सत्येन्द्र नाथ टैगोर की भारतीय जनपद सेवा में भर्ती लॉर्ड लॉरस के शासनकाल में 1864 ई . में हुई । लारेंस ने 1865 ई . में भारत तथा यूरोप के बीच प्रथम समुदी टेलीग्राफ सेवा की शुरूआत की । लॉरेंस ने अफगानिस्तान के सम्बन्ध में अहस्तक्षेप की नीति अपनाई , जिसे शानदार निष्क्रियता के नाम से जाना जाता है । लॉरेंस के बाद लॉर्ड मेयो ( 1869-72 ई . ) भारत का वायसराय बना । लॉर्ड मेयो ने अजमेर में मेयो कॉलेज की स्थापना की । 1872 ई ० में मेयो के शासनकाल में पहली बार भारत में प्रायोगिक जनगणना कराई गई । 1872 ई ० में एक अफगान ने अंडमान में मेयो की चाकू मारकर हत्या कर दी । पंजाब का प्रसिद्ध ‘ कूका आंदोलन ‘ लॉर्ड नॉर्थब्रुक ( 1872-76 ई . ) के शासनकाल में हुआ । नार्थब्रुक के शासनकाल में स्वेज नहर के खुल जाने से भारत – ब्रिटेन व्यापार में भारी वृद्धि हुई । सर रिचर्ड स्ट्रेची के अध्यक्षता में अकाल आयोग का गठन लॉर्ड लिटन ( 1876-80 ई . ) ने किया । भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए 1878 में वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम लॉर्ड लिटन ने पारित किया । लिटन ने भारतीयों को सिविल सर्विस में प्रवेश से रोकने के उद्देश्य से परीक्षा की आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दिया । ब्रिटिश संसद ने लिटन के शासनकाल में राज उपाधि अधिनियम ( Royal Tities Act ) -1876 पारित किया । लिटन के काल में ‘ भारतीय शस्त्र अधिनियम ‘ 1878 ई . में पारित किया गया । लॉर्ड रिपन ( 1880-84 ई . ) ने भारत में स्थानीय स्वशासन की शुरूआत रिपन ने समाचारपत्रों की स्वतन्त्रता को बहाल करते हुए 1882 ई . में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को समाप्त कर दिया । लिटन सिविल सेवा में प्रवेश की आयु को 19 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष कर दिया । लार्ड रिपन ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के उद्देश्य से विलियम हण्टर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया ।
रिपन के शासनकाल में 1881 ई . में सर्वप्रथम भारत में प्रथम नियमित जनगणना करवायी गई ।
रिपन द्वारा ही 1881 ई . में पहला कारखाना अधिनियम ( First Factory Act ) लागू किया गया ।
रिपन के समय में इलबर्ट विधेयक लाया गया , यह विधेयक फौजदारी दण्ड व्यवस्था से संबंधित था ।
इलबर्द बिल विवाद
. पूर्व में यूरोपीयों के मुकदमों की सुनवाई भारतीय न्यायाधीशों द्वारा नहीं होती थी । . इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए रिपन के एक काउंसिल के सदस्य सी ० पी ० इलबर्ट ने एक बिल प्रस्तुत किया , जिस पर अंग्रेजों ने विद्रोह कर दिया इसे श्वेत विद्रोह ( White revolt ) कहा गया । . परिणामस्वरूप इल्बर्ट बिल वापस लेना पड़ा । लार्ड रिपन को भारतीय गवर्नर जनरल या वायसरायों में सबसे उदार था , अतः फ्लोरेंस नाइटिंगल ने रिपन को भारत के उद्धारक को संज्ञा दी । लार्ड रिपन के बाद 1884 ई . में लार्ड डफरिन ( 1884-88 ई ० ) गवर्नर जेनरल बना । लार्ड डफरिन के काल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 ई . में ए ० ओ ० ह्यूम के प्रयासों से हुई । डफरिन के समय बंगाल टेनेन्सी एक्ट , पंजाब टेनेन्सी एक्ट , अवध टेनेन्सी एक्ट पारित हुआ । 1888 ई ० में लॉर्ड लैन्सडाउन ( 1888-94 ई ० ) भारत का वायसराय बना । लॉर्ड लैन्सडाउन ने भारत और अफगानिस्तान के बीच सुनिश्चित कराया । ” भारत को तलवार के बल पर विजित किया गया है और तलवार के बल पर ही इसकी रक्षा की जाएगी ” यह वक्तव्य ‘ लार्ड एल्गिन- II ‘ ( 1894-99 ई . ) ने दिया था । एल्गिन- II के बाद लॉर्ड कर्जन ( 1889-1905 ई . ) भारत का वायसराय बना । Hai लॉर्ड कर्जन पुलिस सुधार के लिये 1902 में ‘ सर एण्ड्यू फ्रेजर ‘ की अध्यक्षता में एक पुलिस आयोग की स्थापना की । लॉर्ड कर्जन ने 1904 ई . में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पास किया गया । कर्जन के कार्यकाल में सैन्य अफसरों के प्रशिक्षण के लिए इंग्लैण्ड के किम्बरले कॉलेज की तर्ज पर क्वेटा में एक कॉलेज खोला गया । लॉर्ड कर्जन ने 1899 ई . के कलकत्ता कॉरपोरशन ऐक्ट पारित किया । कलकत्ता कॉर्प ० ऐक्ट के तहत निगम में चुने हुए सदस्यों की संख्या कम एवं अंग्रेजों की संख्या अधिक कर दी गई । लार्ड कर्जन द्वारा भारत में पहली बार प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1901 पारित करवाया गया । लॉर्ड कर्जन ने 1905 ई ० में बंगाल का विभाजन किया । 1901 ई ० में विक्टोरिया मेमोरियल हॉल का निर्माण लॉर्ड कर्जन ने कलकत्ता में करवाया । लॉर्ड मिन्टो ( 1905-10 ई . ) के काल में बंगाल विभाजन विरोधी एवं स्वदेशी आन्दोलन ( 1906 ई ० ) तथा सूरत में काँग्रेस का विभाजन ( 1907 ई ० ) हुआ । माले मिन्टो सुधार ( 1909 ई ० ) अथवा भारतीय परिषद अधिनियम लॉर्ड मिन्टो के शासनकाल में लाया गया । मिटरों के काल में ढाका में सलीमुल्लाह , आगा खाँ एवं उनके साथियों द्वारा मुस्लिम लीग की स्थापना हुई । बंगाल विभाजन 1911 ई ० में लॉर्ड हार्डिंग- II ( 1910-15 ई . ) द्वारा समाप्त कर दिया गया । लाई हार्डिंग ने 1912 ई . में राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित किया । 23 दिसम्बर , 1912 को दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग पर बम से हमला किया गया ।
विश्वयुद्ध- लॉर्ड हार्डिंग -11 के कार्यकाल में आरम्भ हुआ ।
1916 ई . में लॉर्ड हार्डिंग- || को बनारस हिन्दू विश्वद्यिालय ( BHU ) का कुलाधिपति नियुक्त किया गया । 1919 का ‘ रॉलेट ऐक्ट ‘ लॉर्ड चेम्सफोर्ड ( 1916-21 ई . ) के कार्यकाल में वारित हुआ 13 अप्रैल , 1919 का जालियाँवाला बाग कांड , लॉर्ड चेक्सफोर्ड के शासनकाल में घटित हुआ । 1917 ई ० में शिक्षा पर ‘ सैडलर अयोग ‘ का गठन चेक्सफोर्ड के काल में किया गया । पुना में एक महिला विश्वविद्यालय की स्थापना 1916 ई . में चेक्सफोर्ड के काल में हुई । 1919 ई ० के भारत सरकार अधिनियम मांटेग्यू – चेम्सफोर्ड सुधार भी लॉर्ड चेम्सफोर्ड के काल में लाये गये । लॉर्ड रीडिंग ( 1921-26 ई . ) के काल में चौरी – चौरा घटना घटी ( 5 फरवरी 1922 ) और उसके कारण गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन । वापस लिया गया । र रीडिंग के कार्यकाल में प्रिंस ऑफ वेल्स ने नवम्बर 1921 ई ० में भारत की यात्रा की । . इसके शासनकाल में 1922 ई . में विश्व भारतीय विश्वविद्यालय ने कार्य करना प्रारम्भ किया । लॉर्ड रीडिंग के काल में रॉलेट एक्ट रद्द कर दिया गया । 1923 में भारतीय सिविल सेवा में इंग्लैंण्ड एवं भारत दोनों स्थानों पर एक 1 साथ परीक्षा की शुरूआत लॉर्ड रीडिंग के काल में की गई । 1925 ई . में प्रसिद्ध आर्यसमाजी राष्ट्रवादी स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या T लॉर्ड रीडिंग के काल में हुई । लॉर्ड इरविन ( 1926-31 ई . ) के काल में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरूआत हुई । 5 मार्च 1931 को गाँधी – इरविन समझौते के उपरान्त सविनय अवज्ञा आन्दोलन समाप्त कर दिया गया । लंदन में 1 सितम्बर से 1 दिसम्बर 1931 ई ० तक द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन लॉर्ड विलिंग्टन ( 1931-36 ई . ) के काल में हुआ । की लार्ड विलिंग्टन के समय ही अगस्त 1932 में मैकडोनाल्ड ने प्रसिद्ध सांप्रदायिक निर्णय की घोषणा की । या विलिंग्टन के शासनकाल में 1932 ई . में गोलमेज सम्मेलन -1 || का भी आयोजन हुआ । के विलिंग्टन के शासनकाल में गवर्मेंट ऑफ इण्डिया ऐक्ट -1935 पारित हुआ । । 1942 ई . में भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरूआत लॉर्ड लिनलिथगो के -म समय में हुई थी । लॉर्ड वेवेल ( 1944-47 ई . ) के समय 1945 ई . में शिमला समझौता हुआ । म लार्ड वेवेल के समय ही भारत को जून 1948 के पहले स्वतन्त्र करने की घोषणा तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री लॉर्ड क्लीमेन्ट एटली ने की । लॉर्ड माउन्टबेटन ( मार्च , 1947 – जून , 1948 ) के समय में 4 जून 1947 को भारतीय स्वतन्त्रता विधेयक एटली द्वारा ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत किया गया । ने लार्ड माउन्टबेटन के समय में ही भारत स्वतन्त्र हुआ तथा भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान का निर्माण हुआ । एवं स्वतन्त्र भारत का प्रथम एवं अन्तिम विदेशी / ब्रिटिश गवर्नर जेनरल लार्ड नन माउन्टबेटन था । परतन्त्र भारत का अन्तिम वायसराय लार्ड माउन्टबेटन था । ॉर्ड स्वतन्त्र भारत के प्रथम एवं अन्तिम भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी हुए ।
. . राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा गया है । 1828 ई ० में राजा राममोहन राय ने ‘ ब्रह्म समाज ‘ की स्थापना की । ब्रह्म समाज ने मूर्ति पूजा तथा बलि प्रथा का विरोध किया । 1843 ई ० में देवेन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज का नेतृत्व सम्भाला । देवेन्द्र नाथ टैगोर ने केशवचन्द्र सेन ( 1834-84 ई ० ) को ब्रह्म समाज का आचार्य नियुक्त किया । केशव चन्द्र के अतिशय उदारवाद के कारण ब्रह्म समाज मूल ब्रह्म समाज ( डी ० एन ० टैगोर ) तथा आदि ब्रह्म समाज ( के ० सी ० सेन ) में विभाजित हो गया । बाद में केशव चन्द्र सेन ने ‘ आदि ब्रह्म समाज ‘ से अलग होकर साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना की । दक्कन क्षेत्र में ब्रह्म समाज की नीतियों के प्रसार के लिए गोपाल हरि देशमुख द्वारा 1849 ई ० में परमहंस सभा की स्थापना महाराष्ट्र में की गई । गोपाल हरि देशमुख को लोकहितवादी भी कहा जाता है । 1867 ई . में केशव चन्द्र सेन की प्रेरणा पर बंबई में प्रार्थना समाज की स्थापना हुई । एम ० जी ० राणाडे , एन ० जी ० चन्द्रावरकर तथा आत्मा राम पांडुरंग प्रार्थना समाज के संस्थापक थे । प्रार्थना समाज ने दलित जाति मिशन ( Depressed class Mission ) तथा समाज सेवा संघ ( social service League ) की स्थापना की । महाराष्ट्र में वीडो रिमैरेज एसोसिएशन तथा दक्कन शिक्षा सभा ( Deccan Educational Society ) की स्थापना ‘ एम . जी . राणाडे द्वारा की गई । गोपालकृष्ण गोखले ( राणाडे के शिष्य ) ने भारत सेवक समाज ( Servants of India society ) की स्थापना की । . . . . |
आर्य समाज की स्थापना बंबई ( मुंबई ) में 1875 ई . में की गई । स्वामी दयानन्द सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक थे । स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म मौरवी ( काठियावाड़ , गुजरात ) में 1824 ई . में हुआ । दयानंद के बचपन का नाम मूल शंकर था , उनका निधन अजमेर में 1883 ई . में हुआ । स्वामी दयानन्द ने स्वामी विरजानन्द ( मथुरा ) से ‘ वेद ‘ एवं ‘ हिन्दू दर्शन ‘ की शिक्षा ग्रहण की । स्वामी दयानन्द ने अपना प्रथम उपदेश आगरा में दिया । स्वामी दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की । . स्वामी दयानन्द ने 1882 ई ० में गोरक्षिणी सभाओं की स्थापना की । स्वामी दयानन्द ने वेदों की ओर लौट चलो ( Go back to vedas ) का नारा दिया । स्वामी दयानन्द ने हिन्दू धर्म छोड़ चुके लोगों को वापस इस धर्म में लाने के लिए शुद्धि एवं समागम आन्दोलन चलाया । स्वामी दयानन्द का मानना था – बुरे – से – बुरा देशी राज , अच्छे – से – अच्छे . देश के विभिन्न भागों में विदेशी राज से बेहतर होता है । स्वामी दयानन्द ने स्वदेशी एवं राजनीतिक स्वतन्त्रता के परिप्रेक्ष्य में India for Indians का नारा दिया । शिक्षा के प्रसार के लिए 1886 ई ० में आर्य समाज द्वारा लाहौर में दयानन्द – द एंग्लो वैदिक ( DAV ) स्कूल की स्थापना की गई । भविष्य में सम्पूर्ण देश में DAV स्कूलों की श्रृंखला स्थापित हुई । दयानन्द एंग्लो वैदिक स्कूल DAV College में 1889 ई . में तब्दील हो गया । आर्य समाज ने मूर्ति – पूजा , बहुदेववाद , अवतारवाद , पशुबलि , श्राद्ध , झूठे कर्मकाण्ड आदि का विरोध किया । 1902 ई ० में स्वामी श्रद्धानन्द ने ‘ हरिद्वार ‘ के समीप गुरूकुल कांगड़ी स्थापना की । रामकृष्ण परमहंस ( 1884-86 ई . ) के शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने 1897 ई . में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । रामकृष्ण मिशन की स्थापना वराह नगर ( कोलकाता ) में हुई तथा बाद में इसका मुख्यालय बेलूर मठ ( कोलकाता ) ले जाया गया । स्वामी विवेकानन्द का जन्म 1862 ई . में हुआ , इनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था । स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दू धर्म के पुनरूत्थान के उद्देश्य से ‘ रामकृष्ण मिशन ‘ की स्थापना की । रामकृष्ण मिशन ने निराकार ईश्वर की भक्ति एवं एकेश्वरवाद का प्रचार किया ।
स्वामी विवेकानन्द ने 1893 ई . में शिकागो ( अमेरिका ) में आयोजित .
अंग्रेजों की भू – राजस्व नीति ( ( British Land Revenue Policy )
अंग्रेजों ने भारत में तीन प्रकार की भू – राजस्व व्यवस्था विकसित की 1. स्थाई बंदोबस्त , 2. रैय्यबाड़ी , 3. महालबाड़ी । स्थायी बन्दोबस्त ( Permanent Settlement ) , समरत भारत की 19 % न्या भूमि पर लागू की गई । स्थाई बंदोबस्त व्यवस्था लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा 1793 ई ० में बंगाल , बिहार , उड़ीसा , बनारस एवं उत्तरी कर्नाटक में लागू की गई ।
राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन
भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रारम्भ 1885 ई ० में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना से हुआ । . 1836 ई ० में पहली राजनीतिक संस्था बंग प्रकाशक सभा की स्थापना की गई । 1838 ई ० में बंगाल के जमींदारों ने लैण्ड होल्डर्स सोसायटी की स्थापना की । 1843 ई ० में एक अन्य राजनीतिक सभा बंगाल ब्रिटिश इण्डिया सोसायटी बनी । 28 अक्टूबर , 1851 को ब्रिटिश इण्डिया एसोसिएशन कलकत्ता में बनाया गया । महादेव गोविन्द राणाडे ने 1870 ई ० में पूना में पूना सार्वजनिक सभा या- गठित की । . दादा भाई नौरोजी ने 1866 ई ० में लंदन में ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन की स्थापना की । 1859 ई ० में मद्रास नेटिव एसोसिएशन बनाई , जो यह कलकत्ता की ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की एक शाखा थी । 1884 ई ० में मद्रास महाजन सभा गठित की गई । . .
. . . . .
1875 ई ० में कलकत्ता में ‘ शिशिर कुमार घोष ‘ ने एक संस्था इंडियन लीग का गठन किया । 26 जुलाई , 1875 को ‘ इंडियन लीग ‘ का स्थान इंडियन एसोसिएशन ने इंडियन एसोसिएशन के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनन्द मोहन बोस थे । 1885 ई ० में फिरोजशाह मेहता , के ० टी ० तेलंग एवं बदरुद्दीन तैय्यबजी के प्रयासों से बंबई में एक अन्य संगठन बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन की स्थापना की । भारत का राष्ट्रीस आंदोलन तीन चरणों में हुआ ( 1885-1905 ई . ) , 2. द्वितीय चरण ( 1905-19 ई . ) , 3. तृतीय चरण 1. प्रथम चरण ( 1919-47 ई . ) भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रथम चरण की मुख्य घटना 1885 ई ० में ए.ओ. ह्यूम द्वारा भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना थी । कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर , 1885 ई ० को बम्बई स्थित To गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में हुआ था । कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमेशचन्द्र बनर्जी थे । उपर्युक्त अधिवेशन में 72 प्रतिनिधि शामिल हुए । काँग्रेस की स्थापना के समय लॉर्ड डफरीन भारत का वायसराय था । काँग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष 1887 ई ० में मद्रास में आयोजित ‘ तीसरे ‘ अधिवेशन में बदरुद्दीन तैय्यबजी हुए । काँग्रेस के प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष 1888 ई ० में इलाहाबाद के चौथे अधि वेशन जॉर्ज यूले बने । काँग्रेस के अध्यक्षों में गैर – भारतीयों की संख्या 6 थी , जिनमें विलियम वेडरबर्न को दो बार भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का अध्यक्ष बनने का श्रेय प्राप्त है । काँग्रेस का अध्यक्ष बनने वाली प्रथम महिला / गैर – भारतीय महिला होने का श्रेय एनी बेसेंट को 1917 ई ० में कलकत्ता में आयोजित ’33 वें ‘ अधि वेशन में मिला । काँग्रेस का अध्यक्ष बनने वाली प्रथम भारतीय महिला होने का श्रेय सरोजिनी नायडू को 1925 ई ० में कानपुर में आयोजित ’41 वें ‘ अधि वेशन में प्राप्त हुआ । भारतीय पुरुषों में सर्वाधिक 4 बार काँग्रेस का अध्यक्ष बनने का श्रेय पं ० जवाहर लाल नेहरू को प्राप्त है । राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने सिर्फ एक बार वेलगाँव में काँग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता की जो 1924 ई ० में आयोजित हुआ । देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ ० राजेन्द्र प्रसाद ने भी एक बार 1934 ई ० में बंबई में आयोजित ’49 वें ‘ अधिवेशन में काँग्रेस की अध्यक्षता की । काँग्रेस के इतिहास में दिसंबर1920 में नागपुर अधिवेशन सबसे बड़ा अधिवेशन था , इसमें 14582 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया ।
जिस वक्त भारत आजाद हुआ ( 15 अगस्त , 1947 को ) , उस वक्त काँग्रेस के अध्यक्ष आचार्य जे ० बी ० कृपलानी थे ।
( प्रथम चरण ( 1885-1905 ई ० )
काँग्रेस की स्थापना के बाद अगले 20 वर्षों तक उसकी नीति अत्यन्त उदार थी । इसे बाद के उग्रपन्थी नेताओं ने राजनीतिक भिक्षावृत्ति ( Political Mendicancy ) ELI उदारवादियों में प्रमुख नेता थे – दादाभाई नौरोजी , सुरेन्द्रनाथ बनर्जी , फिरोजशाह मेहता , गोविन्द रानाडे , दीनशा वाचा , गोपालकृष्ण गोखले , मदनमोहन मालवीय आदि । उदारवादियों का उद्देश्य संवैधानिक तरीके से भारत को स्वतन्त्रता दिलाना था । उदारवादियों की मुख्य उपलब्धि अंग्रेजों द्वारा पारित 1892 का भारतीय परिषद् अधिनियम था ।
उदारवादियों के काल में काँग्रेस का व्यापक प्रसार हुआ और उसकी लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई । .
1889 ई ० में गठित काँग्रेस की ब्रिटिश समिति ने इण्डिया नामक एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया । काँग्रेस द्वारा प्रान्तीय परिषद् एवं इम्पीरियल काउंसिल में कुछ परिवर्तन करने के माँग के फलस्वरूप इण्डिया काउंसिल एक्ट -1892 ई ० पारित हुआ । . . . 18 फरवरी , 1905 को ‘ लंदन ‘ में एक भारतीय श्यामजी कृष्ण वर्मा ने इण्डिया हाउस की स्थापना की ।
द्वितीय चरण ( 1905 ई०-1919 ई ० )
द्वितीय चरण में काँग्रेस के भीतर एक नयी विचारधारा उग्रवाद का उदय हुआ । उग्रवादी विचारधारा के प्रमुख नेता थे – बाल गंगाधर तिलक , विपिन चन्द्र पाल , लाला लाजपत राय तथा अरविन्दो घोष । उग्रवादी नेताओं का मानना था कि भीख माँगने से कभी स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती , उसके लिए स्वाबलम्बन , संगठन और संघर्ष की आवश्यकता है । भारत में क्रान्तिकारी गतिविधियों का सूत्रपात 1897 ई ० में महाराष्ट्र में हुआ । बंगाल , पंजाब व महाराष्ट्र भारत में क्रांतिकारी आतंकवाद ( Revolutionary Terrorism ) के प्रमुख केन्द्र थे । 19 वीं शताब्दी के अन्त में बंगाल प्रान्त में असम , बिहार एवं उड़ीसा शामिल थे । लार्ड कर्जन ने 20 जुलाई , 1905 ई ० को बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा की । 16 अगस्त , 1905 ई ० को बंगाल – विभाजन का निर्णय प्रभावी हुआ । इसके तहत् बंगाल के मुस्लिम बहुल क्षेत्र को ‘ पूर्वी बंगाल ‘ एवं हिन्दू बहुल क्षेत्र को ‘ पश्चिमी बंगाल ‘ में विभाजित कर दिया पूर्वी बंगाल ( मुस्लिम बहुल ) का मुख्यालय ढाका को बनाया गया । पश्चिमी बंगाल का मुख्यालय पूर्व की भाँति कलकत्ता में ही रहा । काँग्रेस द्वारा 7 अगस्त , 1905 ई ० को कोलकत्ता के टाउन हॉल में बंग – भंग के विरोध में स्वदेशी आन्दोलन की घोषणा के साथ ‘ बहिष्कार प्रस्ताव पारित किया गया । 16 अक्टूबर 1905 को पूरे बंगाल में शोक दिवस मनाया गया । स्वदेशी आन्दोलन के दौरान ही रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने प्रसिद्ध गीत अमार सोनार बांगला की रचना की । रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित गीत अमार सोनार बांगला को अपनी स्वतन्त्रता ( 1971 ई ० ) के उपरान्त बंग्लादेश ने राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया । स्वदेशी आन्दोलन के दौरान हिन्दू – मुस्लिम ने एक दूसरे की कलाइयों पर राखियाँ बाँधी । इस आन्दोलन में स्वदेशी यानी देशी वस्तुओं का उपयोग तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया । स्वदेशी आन्दोलन के प्रमुख नेता तिलक , अजीत सिंह , लाला लाजपत राय , विपिन चन्द्र पाल , अरविन्दो घोष , लियाकत हुसैन , दादा भाई नौरोजी इत्यादि थे ।
काँग्रेस के उदारवादी नेताओं के आशिक दबाव के परिणामस्वरूप 1892 ई ० का भारतीय परिषद् अधिनियम पारित हुआ । उपर्युक्त अधिनियम द्वारा स्थानीय निर्वाचित निकायों को कुछ अधिकार प्रदान किए गए थे ।
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने कलकत्ता से बंगाली नामक पत्रिका का सम्पादन किया ।
. . 1906 ई ० में कलकत्ता में हुए काँग्रेस में दादाभाई नौरोजी ने पहली बार ऑस्ट्रेलिया एवं कनाडा के उपनिवेशों की तर्ज पर स्वराज की माँग प्रस्तुत की । 1882 ई ० में दयानन्द सरस्वती ने गोरक्षिणी सभाओं का गठन किया , तब से 1895 ई ० तक पश्चिम भारत में अनेक दंगे हुए । काँग्रेस के कई सदस्य गोरक्षिणी सभाओं के सदस्य थे जिनको अनुशासित करने में काँग्रेस विफल रही तथा काँग्रेस की धर्मनिरपेक्ष छवि को धक्का पहुँचा । 30 दिसम्बर 1906 ई ० को ढाका में नवाब सलीमुल्ला के नेतृत्व में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई । मुस्लिम लीग के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता वकार – उल – मुल्क ने की । 1908 ई ० में मुस्लिम लीग का पहला स्थाई अध्यक्ष आगा खाँ को बनाया गया । 1907 ई ० के काँग्रेस के सूरत अधिवेशन ( 1907 ई . ) में काँग्रेस उदारवादी एवं उग्रवादी दो गुटों में विभाजित हो गई । उदारवादियों ( नरम दल ) का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले ने किया तथा उग्रवादियों ( गरम दल ) का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक ने किया । ‘ ऐनी बेसेंट ‘ ने इसे काँग्रेस के इतिहास में सबसे दुख – दायो घटना बताया । तत्कालीन वायसराय ‘ लॉर्ड मिन्टो ‘ तथा ‘ मॉर्ले ‘ ने उदारवादियों को पुचकारने एवं हिन्दू – मुस्लिम सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न करने के उद्देश्य से इण्डिया काउंसिल एक्ट -1909 पारित कराया । 1909 ई ० से पहली बार साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली ( Communal Electorate ) आरम्भ हुई तथा मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र एवं प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई । ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम तथा मेरी के स्वागत के लिए 1911 ई ० में . दिल्ली दरबार का आयोजन वायसराय लार्ड हार्डिंग द्वारा किया गया । दिल्ली दरबार में ही लार्ड हार्डिंग ने बंगाल विभाजन को रद्द करते हुए एक नवीन प्रान्त बिहार के गठन की घोषणा की जिसमें बिहार एवं उड़ीसा शामिल थे । बिहार पूर्ण रूपेण 1912 ई ० में ही अस्तित्व में आ पाया । बांग्ला भाषियों के लिए दोनों बंगालों को मिलाकर एक बंगाल प्रान्त अस्तित्व में आया । दिल्ली दरबार में लार्ड हार्डिंग ने भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाने की घोषणा की । • हिन्दू महासभा की स्थापना 9 अप्रैल , 1915 ई ० को मदन मोहन मालवीय ने हरिद्वार में की । • हिन्दू महासभा में बी.एस. मुंजे एवं लाला लाजपतराय जैसे राष्ट्रवादी नेता थे । • हिन्दू महासभा ने अखण्ड भारत का नारा दिया । 1915 ई ० में मुहम्मद अली जिन्ना के प्रयास से बम्बई में काँग्रेस और मुस्लिम लीग के अधिवेशन साथ – साथ हुए । कांग्रेस एवं लीग पारस्परिक सहयोग द्वारा अंग्रेजी सरकार पर दबाव बनाने की नीति अपनाने पर सहमत हुए । 1916 ई . में हुए उपर्युक्त काँग्रेस – लीग समझौते को लखनऊ समझौता . कहा गया । 1916 ई ० के लखनऊ अधिवेशन में बाल गंगाधर तिलक के प्रयासों से कांग्रेस के दोनों दल एक हो गये । लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता अंबिकाचरण मजूमदार ने किया । लखनऊ अधिवेशन ( 1916 ई . ) में काँग्रेस ने पहली बार साम्प्रदायिक निर्वाचन को स्वीकार किया । अब काँग्रेस एवं मुस्लिम लीग के बीच अगले 3-4 वर्षों के लिए एकता स्थापित हो गई । 28 अप्रैल 1916 ई ० को बाल गंगाधर तिलक ने पूना में इण्डियन होमरूल लीग की स्थापना की । सितम्बर 1916 ई ० में एनी बेसेंट ने मद्रास में होमरूल लीग की स्थापना की ।
एनी बेसेंट की होमरूल लीग से जुड़ने वाले राष्ट्रवादियों में मोतीलाल नेहरू , जवाहरलाल नेहरू , खलीकुज्जमा , तेज बहादुर सपु , सी ० वाई .
चिंतामणि , सी ० पी ० रामास्वामी अय्यर सुब्रह्मण्यम अय्यर हसन इमाम एवं मजहरूल हक आदि प्रमुख थे । एनी बेसेंट ने 1914 में कॉमन वील नामक पत्रिका तथा न्यू इण्डिया नामक दैनिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया और इसके माध्यम से आन्दोलन छेड़ दिया जिसका समर्थन बाल गंगाधर तिलक ने भी किया । तिलक ने मराठा एवं केसरी तथा एनी बेसेंट ने अपने पत्रों कॉमनवील , न्यू इण्डिया तथा यंग इण्डिया ( बंबई ) के माध्यम से होमरूल का व्यापक प्रचार किया । होमरूल आन्दोलन भारत में संवैधानिक तरीके से स्वशासन की माँग को लेकर चलाया गया था । एनी बेसेंट ने 20 अगस्त 1917 को होमरूल लीग समाप्त कर दिया । क्रान्तिकारी आतंकवादी आन्दोलन का आरम्भ 1897 ई ० से हुआ जब चापेकर बन्धुओं ने दो ब्रिटिश अधिकारी की हत्या कर दी । बारीन्द्र कुमार बोष द्वारा 1907 ई . में स्थापित बंगाल की अनुशीलन समिति पहली क्रान्तिकारी संस्था थी । बारीन्द घोष ने ‘ भवानी मन्दिर ‘ नामक पुस्तक की रचना की , जिसमें क्रान्तिकारी संस्थाओं की स्थापना से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त होती है । खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने 1908 ई ० में मुजफ्फरपुर में जॉन किंग्सफोर्ड की हत्या करने के लिए बम फेंका । इसके उपरान्त गिरफ्तारी से बचने के लिए प्रफुल्ल ने खुद को गोली मार लिया । खुदीराम को गिरफ्तार कर फाँसी दे दिया गया । महाराष्ट्र के क्रान्तिकारी विनायक दामोदर सावरकर ने 1904 ई ० में अभिनव भारत नामक गुप्त क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की । क्रान्तिकारी आतंकवादी विचारधारा के प्रचार में बंगाल का समाचार – पत्र संध्या तथा युगांतर और महाराष्ट्र के समाचार – पत्र काल की भूमिका भी महत्वपूर्ण थी । महाराष्ट्र में क्रान्तिकारी आन्दोलन उभारने का श्रेय तिलक के पत्र केसरी को भी जाता है । सचिन्द्रनाथ सन्याल ने क्रान्तिकारी आन्दोलन पर बन्दी जीवन नामक पुस्तक लिखी । 1895 ई . में दामोदर चापेकर एवं बालकृष्ण चापेकर ( दोनों भाई थे ) ने हिन्दू धर्म संरक्षिणी सभा का गठन किया । 1895 ई ० में पूना के प्लेग कमिश्नर रैण्ड एवं आयरेस्ट की हत्या कर दी गई । 1912 ई ० में रास बिहारी बोस और सचिन्द्र सन्याल ने वायसराय लार्ड हार्डिज की हत्या करने के लिए बम फेंका , लेकिन वह बच गया । लॉर्ड हार्डिज पर बम फेंकने के अपराध में जो मुकदमा चला उसे दिल्ली षड्यन्त्र केस कहा गया । विनायक दामोदर सावरकर ने THE INDIAN WAR OF 1 INDEPENDENCE नामक पुस्तक लिखी जिसको अंग्रेजी सरकार ने प्रकाशन से पूर्व ही जब्त कर लिया । अंग्रेजी सरकार ने वी ० डी ० सावरकर को कालापानी की सजा देकर अण्डमान भेज दिया । 21 दिसम्बर , 1909 ई ० को अभिनव भारत संगठन के अनन्त कन्हेरे ने गणेश सावरकर पर राजद्रोह लगाये जाने के विरोध में जैक्सन की हत्या कर दी , कन्हेरे पर नासिक षड्यन्त्र केस चलाया गया । । जुलाई 1909 को ‘ अमृतसर से लंदन गये मदन लाल ढींगरा ने कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी । 1910 ई ० में हावड़ा षड्यन्त्र केस में जतीन मुखर्जी मुख्य अभियुक्त थे । 1912 ई . में दिल्ली षड्यन्त्र केस में मास्टर अमीन चन्द्र ( 1915 ई ० ) , अवध बिहारी ( 1915 ई ० ) एवं बालमुकुन्द को फाँसी की सजा दी गई । 1910 ई ० में ढाका षड्यन्त्र केस में पुलिनदास को 7 वर्षों की सजा दी गई । अलीपुर या मनिकतल्ला षड्यन्त्र केस ( 1908 ई ० ) अरविन्द घोष सहित कई व्यक्तियों पर चलाया गया ।
लाला हरदयाल ( 1884-1938 ई ० ) ने अमेरिका में 1913 ई ० में एक क्रान्तिकारी संगठन गदर पार्टी की स्थापना की ।
सोहन सिंह भाखना ‘ को गदर पार्टी का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया । 1914 ई ० में कोमगाटामारू की घटना घटी । बजबज में यात्रियों और पुलिस के बीच खूनी संघर्ष हुआ , जिसमें 18 व्यक्ति मारे गये एवं 25 घायल हुए । 1926 ई ० में भगत सिंह ने नौजवान सभा ( पंजाब ) की स्थापना की । भगत सिंह , चन्द्रशेखर आजाद , शचीन्द्रनाथ सान्याल , जोगेश चन्द्र चटर्जी एवं राम प्रसाद बिस्मिल ने 1928 ई ० में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की । अगस्त , 1925 ई ० को ‘ काकोरी काण्ड ‘ हुआ , जिसमें रामप्रसाद बिस्मल , राजेन्द्र लाहिड़ी , अशफाकउल्ला खाँ को फाँसी एवं शचीन्द्र बख्शी को आजीवन कारावास की सजा मिली । 30 अक्टूबर 1928 ई ० को लाहौर में साइमन आयोग के विरूद्ध प्रदर्शन करते समय पुलिस की लाठी से लाला लाजपत राय घायल हो गए और . बाद में उनकी मृत्यु हो गयी । हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने ‘ लाला लाजपत राय ‘ की मौत को राष्ट्रीय अपमान मानते हुए 17 दिसम्बर , 1928 ई ० को ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या कर दी । पब्लिक सेफ्टी बिल पास होने के विरोध में 8 अप्रैल 1929 ई ० को बटुकेश्वर दत्त एवं भगत सिंह ने सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में खाली बेंचों पर बम फेंका । 23 मार्च 1931 ई ० को सुखदेव , भगत सिंह एवं राजगुरू को फाँसी पर लटका दिया गया । 27 फरवरी , 1931 को चन्द्रशेखर आजाद की एक ब्रिटिश अधिकारी नॉट बाबर के साथ इलाहाबाद के अल्फेड पार्क में हुई मुठभेड़ में मृत्यु हो गई । 18 अप्रैल 1930 ई ० को क्रान्तिकारियों ने सूर्यसेन के नेतृत्व में चटगाँव शस्त्रागार को लूट लिया । सूर्यसेन को फाँसी की सजा दी गई । 1916 ई . में अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना से भारतीय राजनीति में महात्मा गाँधी का प्रवेश हुआ । चंपारण सत्याग्रह ( 1917 ई . ) , खेड़ा सत्याग्रह ( 1918 ई . ) , अहमदाबाद मिल सत्याग्रह ( 1918 ई . ) , तथा रॉलेट सत्याग्रह ( 1919 ई . ) आदि महात्मा गाँधी के आरंभिक प्रयोग थे । 1917 ई ० में चम्पारण आन्दोलन हुआ । चंपारण आन्दोलन नील की खेती और उससे सम्बन्धित तीन कठिया पद्धति के कारण हुआ । चम्पारण में यूरोपीय बगान मालिक किसानों से जबरन नील की खेती करवाते थे तथा उसका 3/20 वाँ हिस्सा अधिशेष के रूप में वसूलते थे । चम्पारण के किसान नेता राज कुमार शुक्ल के आग्रह पर महात्मा गाँधी चम्पारण गये ।
महात्मा गाँधी ( एक नजर में )
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर , 1869 ई ० में गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था । इनका विवाह 13 वर्ष की अवस्था में कस्तूरबा के साथ हुआ । उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए ये लंदन गये । वहाँ से इन्होंने बैरिस्ट्री की परीक्षा पास की । 1893 ई ० में एक मुकदमें के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए । दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष किया । 1915 ई ० में गाँधीजी वापस भारत आये । 1916 ई ० में उन्होंने साबरमती आश्रम की स्थापना की । 1919 ई ० में ये राजनीति में प्रवेश किए । महात्मा गाँधी ने यंग इंडिया , नवजीवन , हरिजन आदि पत्र – पत्रिकाओं का प्रकाशन किया । गाँधीजी ने हिन्द स्वराज नामक पुस्तक की रचना की । . II – 60 .
. .
1914-19 ई ० में प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन करने को वजह से उन्हें कैसर – ए – हिन्द उपाधि से सम्मानित किया गया था । गाँधीजी ने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बनाया । ग्राम उद्योग संघ , तालीमी संघ एवं गो – रक्षा संघ आदि संगठन गाँधीजी से सम्बन्धित थे । उन्होंने अछूतों को हरिजन की संज्ञा दी तथा उन्हें शेष हिन्दुओं से बराबरी दिलाने के उदेश्य से ‘ मन्दिर प्रवेश कार्यक्रम ‘ चलाया । • गाँधीजी के नेतृत्व में 1919 ई ० से 1947 ई ० तक जो स्वतन्त्रता संग्राम लड़ा गया । उसमें सत्य , अहिन्सा एवं सर्वोदय उनके हथियार थे । महात्मा गाँधी ने चंपारण सत्याग्रह ( 1917 ई . ) किया जिसमें ब्रज किशोर प्रसाद , राजेन्द्र प्रसाद , महादेव देसाई , नरहरिक पारिख , जे ० बी ० कृपलानी ने उनका साथ दिया । विवश होकर ब्रिटिश सरकार को एक कमीशन बैठाना पड़ा और चम्पारण अधिनियम पारित हुआ , यह गाँधी जी की एक बड़ी जीत थी । चम्पारण सत्याग्रह के समय ही रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘ गाँधीजी ‘ को महात्मा की संज्ञा दी । 1918 ई ० में गुजरात के खेड़ा नामक स्थान पर किसानों ने फसल खराब होने के कारण लगान देने से इंकार कर दिया । गाँधी जी ने यहाँ भी किसानों को नेतृत्व प्रदान किया तथा सत्याग्रह किया । खेड़ा आन्दोलन को सरदार वल्लभ भाई पटेल का भरपूर सहयोग मिला । खेड़ा सत्याग्रह को भारत में गाँधीजी द्वारा चलाया जाने वाला पहला वास्तविक किसान सत्याग्रह कहा गया । 1918 ई ० में अहमदाबाद के कपड़ा मिल में वेतन – वृद्धि के सवाल पर मिल मालिकों एवं मजदूरों में झगड़ा हो गया । गाँधीजी ने 35 % तक की मजदूरों के वेतन में बढ़ोत्तरी की माँग की परन्तु सरकार ने अस्वीकार कर दिया । अहमदाबाद मिल मजदूरों ने गाँधीजी के नेतृत्व में हड़ताल की तथा सफलता पायी । ‘ सर रॉलेट ‘ की अनुशंसा पर 18 मार्च , 1919 को ‘ आतंकवादी अपराध अधिनियम ( TCA ) ‘ पारित किया गया । उपर्युक्त अधिनियम को रॉलेट अधिनियम ( Rowlat Act ) भी कहते हैं । रॉलेट अधिनियम के तहत राजद्रोहात्मक कार्यों का संदेह मात्र हो जाने पर ही किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए दो वर्षों के लिए कैद किया जा सकता था । इसे ‘ बिना अपील , बिना वकील तथा बिना दलील ‘ वाला काला कानून कहा गया । रॉलेट एक्ट के विरोध के लिए गाँधीजी ने 6 अप्रैल 1919 को देश – भर में हड़ताल का आह्वान किया । भारतीय जनमानस हड़ताल ( strike ) शब्द से पहली बार परिचित हुआ ।
तृतीय चरण ( 1919-47 ई ० )
इस चरण में राष्ट्रीय आन्दोलन को ‘ बाल गंगाधर तिलक ‘ के निधन ( 1920 ई ० ) से महान क्षति पहुँची । तृतीय चरण में देश को महात्मा गाँधी जैसा महान नेता मिला जिनके नेतृत्व में 1947 ई ० में आजादी हासिल हुई । अत : तृतीय चरण को गाँधीवादी राष्ट्रीयता का युग भीकहा जाता है । रॉलेट ऐक्ट के विरोध में पंजाब में जगह – जगह पर जनसभाएँ आयोजित की जा रही थी । 9 अप्रैल , 1919 ई ० को अंग्रेजी सरकार ने अमृतसर के लोकप्रिय नेताओं डॉ . सत्यपाल एवं डॉ ० किचलू को पंजाब से निष्कासित कर दिया । 13 अप्रैल , 1919 को लोकप्रिय नेताओं के निष्कासन के विरोध में अमृतसर के ‘ जालियाँवाला बाग ‘ में भारी भीड़ जमा हुई ।
13 अप्रैल , 1919 को ही ‘ जेनरल डायर ‘ में जालियाँवाला बाग कांड को अंजाम दिया । जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी नाइट हुड की उपाधि वापस कर दी तथा जमनालाल बजाज ने राय बहादुर की उपाधि लौटा दी । महात्मा गाँधी ने जालियाँवाला बाग घटना के विरोध में कैसर – ए – हिन्द की उपाधि वापस कर दी । वायसराय की कार्यकारिणी के भारतीय सदस्य शंकरन नायर ने जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध स्वरूप इस्तीफा दे दिया । जालियाँवाला बाग कांड की जाँच करने वाले हण्टर आयोग की रिर्पोट में जेनरल डायर के कृत्य को वैध ठहराया गया । प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा टर्की विभाजन के विचार के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा खिलाफत आन्दोलन ( 1919-22 ई . ) शुरू किया गया । खिलाफत आन्दोलन का नेतृत्व मुहम्मद अली एवं शौकत अली ने किया । मौलाना अबुल कलाम आजाद ने भी खिलाफत आन्दोलन को सक्रिय नेतृत्व प्रदान किया । मौलाना आजाद एवं मुहम्मद अली ने क्रमश : अपने पत्रों अल – हिलाल एवं द कॉमरेड के माध्यम से खिलाफत आन्दोलन का प्रचार किया । मुहम्मद अली एवं शौकत अली ने 1919 के आरम्भ में बम्बई में खिलाफत कमेटी बनाई । गाँधीजी ने खिलाफत आंदोलन को ‘ हिन्दू – मुस्लिम एकता ‘ के स्वर्णिम अवसर के रूप में देखा । 23 नवम्बर 1919 को अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का अधिवेशन Immm हुआ जिसकी अध्यक्षता गाँधीजी ने की । 17 अक्टूबर , 1919 को खिलाफत दिवस के रूप में मनाया गया । तुर्की के कमाल पाशा द्वारा खलीफा के पद को 1924 में समाप्त करने के उपरान्त खिलाफत आन्दोलन समाप्त हो गया । कोलाकाता में ‘ लाला जालपत राय ‘ की अध्यक्षता में 20 जून , 2104 को आयोजित अधिवेशन में गाँधी जी के ‘ असहयोग प्रस्ताव को पारित कर दिया गया । गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन 1 अगस्त , 1920 से शुरू हुआ । असहगोग आन्दोलन गाँधीजी के नेतृत्व में काँग्रेस का पहला जन – आन्दोलन था । मो असहयोग आन्दोलन में बहिष्कार कार्यक्रम के अन्र्तगत विदेशी माल का बहिष्कार तथा स्वदेशी माल के उपयोग पर जोड़ दिया गया । असहयोग आन्दोलन पश्चिमी भारत , बंगाल तथा उत्तरी भारत में पूर्ण से सफल रहा । गाँधीजी के आह्ववान पर तिलक स्वराज फण्ड की स्थापना की गई जिसमें एक करोड़ से अधिक रूपया जमा किया गया । इस आन्दोलन के अन्य कार्यक्रम के तहत् नवम्बर , 1921 ई ० को भारत दौरे पर आये प्रिन्स ऑफ वेल्स का बहिष्कार किया गया । सरकारी दमन के तहत अनेक नेता गिरफ्तार कर लिये गये तथा काँग्रेस एवं खिलाफत कमेटियों को गैर – कानूनी घोषित कर दिया गया । असहयोग आन्दोलन के दौरान सर्वप्रथम गिरफ्तार होने वाले नेता मुहम्मद अली थे । माम असहयोग आन्दोलन की शुरूआत के समय भारत का वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड था । लार्ड रीडिंग के वायसराय बनने के उपरान्त असहयोग आन्दोलन पर व्यापक रूप से दमन किया गया ।
5 फरवरी , 1922 ई ० को गोरखपुर जिले के चौरी – चौरा नामक स्थान पर कांग्रेस एवं खिलाफत कमेटी ने एक जुलूस निकाला । पुलिस के व्यवहार से क्रुद्ध होकर जुलूस ने पुलिस एवं थाने पर हमला कर दिया , बड़े पैमाने पर हिन्सा हुई एवं 22 पुलिसकर्मी मारे गये । चौरी – चौरा घटना से आहत हो कर गांधी जी ने 12 फरवरी , 1922 ई ० को असहयोग आन्दोलन का समाप्त कर दिया ।
. . . आन्दोलन समाप्त होते ही सरकार ने 10 मार्च , 1922 ई ० को गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया तथा असन्तोष भड़काने के अपराध में छ : वर्ष की कैद की सजा दी गई । भारत में पहली मजदूर हड़ताल 1877 ई ० में एप्रेस मिल में हुई । 1884 ई ० में भारत का पहला श्रमिक संघ बंबई में बंबई मिलहैंड एसोसिएशन के नाम से स्थापित किया गया , इसके अध्यक्ष एम ० एम ० लोखण्डे थे । 1919 ई ० में जेनेवा में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ( ILO ) की स्थापना हुई । भारत के पहले आधुनिक श्रमिक संघ मद्रास श्रमिक संघ की स्थापना बी ० पी ० वाडिया द्वारा किया गया । ‘ 1920 ई ० में ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस ( AITUC ) का गठन किया गया । AITUC के प्रथम अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे । 1926 ई ० में बी ० पी ० वाडिया के प्रयासों से ‘ ट्रेड यूनियन ऐक्ट ‘ पारित हुआ । 1929 ई ० में अंग्रेजी सरकार ने देश के प्रमुख मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया तथा उन पर मेरठ में ( Meerut Conspiracy Case ) मुकदमा चलाया । सुभाषचन्द्र बोस के प्रयासों से 1938 ई ० में हिन्द मजदूर सेवक संघ की स्थापना की गई । सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा 1947 ई ० में भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस ( INTUC ) की स्थापना की गई । समाजवादियों ने 1948 ई ० में हिन्द मजदूर सभा की स्थापना की । भारत का प्रथम क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियन ” लाल बापटा गिरनी कामगार यूनियन ” था जिसकी स्थापना बम्बई में 1928 में श्रीपाद् अमृत डांगे ने की । एन ० दत्त मजुमदार ने 1939 ई ० में भारतीय वोल्शेविक दल की स्थापना की । सौम्येन्द्रनाथ टैगोर ने ‘ क्रान्तिकारी साम्यवादी दल ‘ का गठन किया । नरेन्द्रनाथ भटाचार्य ( उर्फ मानवेन्द्रनाथ राय ) ने भारत में सबसे पहले non कम्युनिज्म् का प्रचार किया । मामला 1916 ई ० में नरेन्द्रनाथ ने मास्को में आयोजित थर्ड कम्युनिस्ट इन्टरनेशनल Time में भाग लिये । मार 1920 ई ० में एम ० एन ० राय ने ताशकंद में हिन्दुस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया । racel 1924 ई ० में सत्य भक्त ने कानपुर में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की । 1925 ई ० में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( CPI ) की स्थापना हुई , एस ० पी ० घाटे को इसका महामन्त्री बनाया गया । पेशावर षडयन्त्र केस ( 1922-23 ई ० ) , कानपुर षडयन्त्र केस ( 1924 ई ० ) , एवं मेरठ षडयन्त्र केस ( 1924-33 ई ० ) में संलिप्तता के कारण कम्युनिस्टों की ख्याति बहुत बढ़ गई । 1934 ई ० में अंग्रेजी सरकार ने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबन्ध आरोपित कर दिया । अच्युत पटवर्धन , अशोक मेहता तथा जय प्रकाश नारायण बंबई में 1933 ई ० में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ( PSP ) की स्थापना की । पंजाब में भी 1933 ई ० में ही ‘ पंजाब सोशलिस्ट पार्टी ‘ की स्थापना हुई । 17 मई , 1934 ई ० को जय प्रकाश नारायण , आचार्य नरेंद्र देव , मीनू मसानी तथा अशोक मेहता ने मिलकर काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की । कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का पहला अधिवेशन पटना में हुआ जिसकी अध्यक्षता आचार्य नरेन्द्र देव ने की । 1920 ई ० से प्रारम्भ होनेवाले दशक में बंगाल , बिहार , पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में किसान सभाओं का गठन किया गया । बंगाल में अबुल रहीम एवं फजलुल हक के नेतृत्व में कृषक प्रजा पार्टी काली का गठन हुआ । 1930 ई ० में बिहार में स्वामी सहजानन्द के नेतृत्व में बिहार किसान सभा का गठन किया गया ।
11 अप्रैल , 1936 ई ० को लखनऊ में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन किया गया , जिसके अध्यक्ष स्वामी सहजानन्द थे ।
. . . .
. . . .
एन ० जी ० रंगा ने आंध्र प्रदेश में रैय्यत संघ की स्थापना की । मार्च , 1923 में मोतीलाल नेहरू तथा सी ० आर ० दास ने इलाहाबाद में स्वराज पार्टी की स्थापना की । इस पार्टी का गठन काँग्रेस के भीतर एक दबाब समूह ( Pressure Group ) के रूप में किया गया था । स्वराजियों का उद्देश्य था कि काँग्रेस के अन्दर रहकर चुनावों में हिस्सा लेना और विधान परिषद में स्वदेशी सरकार के गठन की मांग को उठाना । स्वराज पार्टी का अध्यक्ष चितरंजन दास तथा सचिव मोतीलाल नेहरू को बनाया गया । नवम्बर , 1923 ई ० के विधानमण्डल चुनावों में स्वराज पार्टी ने हिस्सा लिया । केन्द्रीय विधान मण्डल एवं सेंट्रल प्रोविंस में इस दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ तथा बंगाल में मजबूती से उभरा । 1923 ई ० में अखिल भारतीय खादी बोर्ड ( AIKB ) की स्थापना की गयी ।
1924 ई ० में काँग्रेस की सदस्यता के लिए न्यूनतम अर्हता ‘ कताई ‘ निर्धारित की गई ।
भारत में प्रशासनिक सुधार के सवाल पर 1927 ई ० में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक कमीशन गठित किया गया । साइमन कमीशन में कोई भारतीय सदस्य नहीं था , अत : इसे white man लग commission कहा गया । साइमन कमीशन का भारत में आगमन 3 फरवरी , 1928 ई ० को हुआ । काँग्रेस ने साइमन कमीशन का बहिष्कार एवं विरोध किया । 1928 ई ० में साइमन कमीशन के विरूद्ध प्रदर्शन में पुलिस की लाठी की लि . चोट से लाला लाजपत राय घायल हो गये तथा कुछ दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गयी । साइमन कमीशन ने 1930 ई ० में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसके आधार पर लंदन के गोलमेज सम्मेलनों में विचार – विमर्श हुआ । 10 मई , 1928 ई ० को बंबई में मोती लाल नेहरू की अध्यक्षता में चार सदस्यीय कमिटी ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की , जिसे नेहरू रिपोर्ट कहा गया । नेहरू रिपोर्ट का उद्देश्य भारत के लिए संविधान की रूप – रेखा तैयार करना था । 1929 ई . में रावी नदी के तट पर लाहौर अधिवेशन आयोजित हुआ । लाहौर अधिवेशन ( 1929 ई . ) की अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू ने की । लाहौर अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार कांग्रेस के मंच से पूर्ण स्वराज की मांग की । 31 दिसम्बर , 1929 की आधी रात को नेहरू ने भारतीय स्वतन्त्रता के प्रतीक तिरंगा झण्डा फहराया । 1929 ई ० में कांग्रेस द्वारा नियुक्त एक समिति की रिपोर्ट पर 26 जनवरी , .. 1930 ई ० को ‘ प्रथम स्वतन्त्रता दिवस ‘ के रूप में मनाया गया । 12 मार्च , 1930 ई ० को महात्मा गाँधी ने ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह का प्रारम्भ करके सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरूआत की । महात्मा गाँधी ने 6 अप्रैल , 1930 ई ० को गुजरात के समुद्रतट पर स्थित दाण्डी की 78 अनुयायियों के साथ यात्रा की तथा वहाँ नमक बनाकर कानून तोडा ।
गाँधीजी की 240 मील की यात्रा इतिहास में दाण्डी यात्रा ( DANDY MARCH ) के नाम से प्रसिद्ध है
जवाहरलाल नेहरू को नमक कानून तोड़ने के जुर्म में 14 अप्रैल 1930 को गिरफ्तार कर लिया गया ।
5 मार्च , 1931 ई ० को गाँधी – इरविन समझौता हुआ । गांधी – इरविन समझौते के तहत , काँग्रेस ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन की समाप्ति तथा गाँधी जी के द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने की घोषणा की । गाँधी – इरविन समझौते को दिल्ली समझौता भी कहते हैं । प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 में लंदन में आयोजित किये गये । गोलमेज सम्मेलन -1 की अध्यक्षता तात्कालीन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री ‘ रैम्जे मैकडोनाल्ड ‘ ने की प्रथम गोलमेज सम्मेलन में काँग्रेस के किसी भी प्रतिनिधि ने भाग नहीं लिया जबकि मुस्लिम लीग , हिन्दू महासभा , दलित वर्ग , व्यापारी वर्ग तथा रजवाड़ों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया । काँग्रेस के बहिष्कार के कारण पहला गोलमेज सम्मेलन असफल हो गया । 7 दिम्बर , 1931 ई ० को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन प्रारम्भ हुआ , काँग्रेस की ओर से एकमात्र प्रतिनिधि गाँधीजी थे । दूसरा गोलमेज सम्मेलन स्वतन्त्रता प्राप्ति एवं साम्प्रदायिकता के सवाल पर असफल रहा । 17 नवम्बर , 1932 ई ० को तीसरा गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हुआ , जिसमें काँग्रेस के किसी भी सदस्य ने भाग नहीं लिया तथा यह सम्मेलन बिना किसी निर्णय के समाप्त हो गया । तीनों गोलमेज सम्मेलनों में दलितों के प्रतिनिधि के रूप में डॉ ० बी ० आर ० अम्बेडकर ने भाग लिया । जनवरी , 1932 ई ० में द्वितीय सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया गया । 4 जनवरी , 1932 ई ० को गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया काँग्रेस तथा उसके संगठनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया । ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रैम्जे मैकडोनाल्ड 16 अगस्त 1932 को साम्प्रदायिक अधिनिर्णय प्रस्तुत किया । सांप्रदायिक अधिनिर्णय के अनुसार दलितों को हिन्दुओं से अलग मानते हुए उन्हें अलग प्रतिनिधित्व देने एवं अलग से निर्वाचक मण्डल की व्यवस्था की गई । गाँधीजी ने सांप्रदायिक निर्णय के विरोध में 20 सितम्बर , 1932 ई ० से आमरण अनशन आरम्भ कर दिया । गाँधीजी और बी ० आर ० अम्बेडकर के बीच 26 सितम्बर 1932 को पूना समझौता हुआ जिसके तहत हरिजनों के लिए अलग निर्वाचन मण्डल समाप्त कर दिया गया । दलितों के लिए प्रान्तीय विधानमण्डलों में रिजर्व 71 स्थानों को बढ़ाकर 148 कर दिया गया । गवर्मेंट ऑफ इण्डिया ऐक्ट -1935 के प्रावधानों के अनुसार , 1937 ई ० में प्रान्तीय चुनाव हुए । 1937 के चुनावों में 7 प्रान्तों में काँग्रेस ने अपने मंत्रिमण्डलों का गठन किया । 15 नवम्बर 1939 को प्रान्तीय मन्त्रिमण्डल ने इस्तीफा दे दिया । 15 नवम्बर 1939 को प्रांतों मेंकांग्रेस मंत्रिमंडल ने इस्तीफा दे दिया ।
उपर्युक्त घटना को 22 दिसंबर , 1939 को मुस्लिम लीग ने मुक्ति दिवस के रूप में मनाया ।
जवाहरलाल नेहरू स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री तथा लॉर्ड माउण्टबेटन प्रथम गवर्नर जेनरल बने ।
पाकिस्तान के गवर्नर जेनरल मुहम्मद अली जिना तथा प्रधानमन्त्री लियाकत अली को बनाया गया
राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
17 अक्टूबर , 1940 ई ० को पवनार में गाँधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरूआत की थी । पंजाब के सुनाम नामक स्थान पर जन्मे उधम सिंह ने 13 मार्च , 1940 को लंदन में पंजाब के भूतपूर्व लेफ्टिनेंट गर्वनर जनरल डायर की की गोली मारकर हत्या कर दी । सुभाषचंद्र बोस 1939 ई ० में महात्मा गाँधी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या को हराकर काँग्रेस के अध्यक्ष बने , परन्तु गाँधी से मतभेद के कारण उन्होंने यह पद छोड़ दिया । गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान पठान सत्याग्रहियों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया । हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन 1924 ई ० में शचीन्द्रनाथ सान्याल एवं भगत सिंह द्वारा पूर्व में स्थापित हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को समाप्त करके किया गया था । काँग्रेस द्वारा जालियाँवाला बाग काण्ड की जाँच के लिए मदनमोहन मालवीय की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया । जनरल डायर को जालियाँवाला बाग काण्ड के दौरान हंसराज नामक एक भारतीय ने मदद पहुँचाई । गाँधीजी द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारतीयों को सेना में भर्ती होने का आह्वान किये जाने के कारण उन्हें सार्जेंट ( सेना में भर्ती करने वाला ) की संज्ञा दी गई । अनुशीलन समिति के हेमचन्द्र एवं पी ० एन ० वापट बम बनाने की कला क्रमशः रूस एवं पेरिस में सीखी । देश के लिए कई बार जेल यात्रा करने वाले पहले काँग्रेसी नेता बाल गंगाधर तिलक थे । ” काँग्रेस अपने पतन की ओर लड़खड़ाती हुई बढ़ रही है ” यह बात लॉर्ड डफरीन ने कही । ब्रिटिश सरकार का रूख काँग्रेस के प्रति 1887 के बाद कठोर हो गया । हरमिट ऑफ शिमला ए ० ओ ० ह्युम को कहा जाता है । भारत छोड़ो प्रस्ताव काँग्रेस द्वारा मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में पारित किया गया । राष्ट्रीय युवा दिवस स्वामी विवकानन्द से सम्बन्धित है । सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का बिस्मार्क कहा गया है । देशबन्धु चित्तरंजन दास नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के राजनीतिक गुरू थे । एम ० जी ० राणाडे गोपाल कृष्ण गोखले के राजनीतिक एवं आध्यात्मिक . . गुरू थे । बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद वहाँ की महिलाओं द्वारा बल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि दी गई । सुभाषचन्द्र बोस ने गाँधी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया । रवीन्द्रनाथ टैगोर सर्वप्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने गाँधी को महात्मा कहा । मुहम्म्द अली जिन्ना ने काँग्रेस को सवर्ण हिन्दुओं की फासीवादी काँग्रेस कहा ।
भगत सिंह को शहीद – ए – आजम के नाम से भी जाना जाता
भगत सिंह ने राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान इन्कलाब जिन्दाबाद का नारा दिया । . . वन्दे मातरम् . हे राम खुदी राम बोस सबसे कम उम्र में फाँसी पर चढ़ने वाले क्रान्तिकारी थे । नरेन्द्र गोसाई नामक व्यक्ति ‘ अलीपुर षड्यन्त्र ‘ मामले में सरकारी गवाह बना । मजहरूल हक ने राष्ट्रवादी अहरार आन्दोलन चलाया । पंजाब में चमनदीव ने डण्डा फौज का गठन किया था । सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को बिना ताज का बादशाह की उपाधि मिली । घनश्याम दास बिड़ला महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष थे । आजाद हिन्द फौज का झण्डा काँग्रेस के झण्डे के समान था जिसपर दहाड़ते हुए शेर का चित्र अंकित था ।
सुभाषचन्द्र बोस ने | मई , 1939 ई ० को फॉरवर्ड ब्लॉक नामक पार्टी की स्थापना की । ब्रिटिश सरकार ने इस पार्टी की गतिविधियों के कारण 1940 ई ० में सुभाषचन्द्र बोस के निवास स्थान पर नजरबन्द कर दिया जहाँ से 17 जनवरी , 1941 को वे यूरोप की ओर भाग गये । मुसलमानों के लिए अलग स्वतन्त्र राष्ट्र की परिकल्पना सर्वप्रथम 1930 ई ० में मुहम्मद इकबाल ने इलाहाबाद में प्रस्तुत की । मुसलमानों के लिए पृथक पाकिस्तान की परिकल्पना सर्वप्रथम कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र रहमत अली ने 1933 ई ० में प्रस्तुत की । 22-23 मार्च , 1940 ई ० को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में पहली बार पृथक ‘ पाकिस्तान ‘ राज्य के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया , परन्तु प्रस्ताव में ‘ पाकिस्तान ‘ शब्द का उल्लेख नहीं था । 22 मार्च , 1940 ई ० को मुहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में प्रसिद्ध द्विराष्ट्र सिद्धान्त का प्रतिपादन किया । ‘ पाकिस्तान ‘ योजना को सर्वप्रथम आंशिक मान्यता 1942 ई ० के क्रिप्स मिशन योजना से मिली । 23 मार्च , 1942 ई ० में स्टैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में क्रिप्स मिशन भारत आया । ‘ क्रिप्स मिशन ‘ में भारत को डोमिनियन स्टेटस का दर्जा तथा संविधान सभा के गठन का वादा किया गया । देश के प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा क्रिप्स का प्रस्ताव नकार दिया गया । महात्मा गाँधी ने क्रिप्स प्रस्ताव को आगे की तारीख का चेक ( Post dated cheque ) बताया । बाद में इस वाक्य में जिसका बैंक शीघ्र नष्ट होने वाला था , जवाहरलाल नेहरू ने जोड़ दिया । काँग्रेस कार्यकारिणी ने जुलाई में अपनी ‘ वर्धा बैठक ‘ में 14 जुलाई , 1942 ई ० को भारत छोड़ो नामक प्रस्ताव पारित किया गया । अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी ने बंबई अधिवेशन में गाँधीजी के ऐतिहासिक भारत छोड़ो प्रस्ताव को 8 अगस्त , 1942 ई ० को पास कर दिया । महात्मा गाँधी ने बंबई में करो या मरो ( Do or Die ) का नारा देते हुए भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरूआत की । भारत छोड़ो आन्दोलन को अगस्त क्रान्ति भी कहा जाता है । भारत छोड़ो आन्दोलन के समय ब्रिटिश प्रधानमन्त्री विंस्टन चर्चिल थे ।
आन्दोलन के दौरान 9 अगस्त 1942 को काँग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया ,
काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं ने आन्दोलन को भूमिगत तरीके से चलाने की जिम्मेदारी अपने हाथों में ली । भारत छोड़ो आन्दोलन के शुरूआत के समय भारत का वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो था । साम्यवादी दल तथा मुस्लिम लीग ने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग नहीं . लिया तथा ये भारत छोड़ो आन्दोलन के विरोधी थे । तेज बहादुर सा जैसे उदारवादी एवं डॉ ० भीम राव अम्बेडकर जैसे हरिजन नेताओं ने भी भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध किया । । सितम्बर , 1942 को कैप्टन मोहन सिंह ने मलाया में आजाद हिन्द फौज . के प्रथम डिवीजन का गठन किया जो सफल नहीं हो सका । आजाद हिन्द फौज की स्थापना का सर्वप्रथम विचार कैप्टन मोहन सिंह के . मन में आया था । आजाद हिन्द फौज की स्थापना का वास्तविक श्रेय रास बिहारी बोस को है ।
सुभाषचन्द्र बोस ने 1943 में आजाद हिन्द फौज का नेतृत्व सम्भाला ।
. सुभाषचन्द्र बोस ने हिटलर से भारत की स्वतन्त्रता के लिए सहयोग का आश्वासन प्राप्त किया तथा जर्मनी में फ्री इण्डिया सेन्टर स्थापित किया । सुभाषचन्द्र बोस ने सिंगापुर में 21 अक्टूबर 1943 ई ० को आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की । सुभाषचन्द्र बोस ने नारा दिया तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा । जापानी सेना के साथ ‘ आजाद हिन्द फौज ‘ ने अंडमान तथा निकोबार द्वीपसमूह पर अधिकार कर लिया था । नेताजी ने अंडमान द्वीप का नाम शहीद द्वीप तथा ‘ निकोबार ” का नाम स्वराज द्वीप रखा । सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त , 1945 को फॉर्मोसा द्वीप से टोक्यो जाने के क्रम में एक हवाई दुर्घटना हुई मानी जाती है । द्वितीय विश्वयुद्ध में क्रमश : 6 अगस्त एवं 9 अगस्त , 1945 को जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी पर अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराने जाने के कारण जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया । जापान के आत्मसमर्पण के साथ आजाद हिन्द फौज को जापान द्वारा मिलने वाली मदद समाप्त हो गई । आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों और अधिकारियों पर दिल्ली के लाल किला में मुकदमा चलाया गया । राजगोपालाचारी ने मुस्लिम लीग और काँग्रेस के बीच समझौते के लिए 10 अगस्त 1944 को एक फार्मूला प्रस्तुत किया जिसे सी ० आर ० फार्मुला कहा जाता है । मुस्लिम लीग ने सी ० आर ० फार्मूले को नकार दिया और पाकिस्तान की माँग पर अड़े रहे तथा गाँधीजी के साथ वार्ता को असफल कर दिया । सर्वप्रथम गाँधीजी ने ही मुहम्मद अली जिना को कायदे आजम ( महान नेता ) कहा । 14 जून , 1945 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने स्वशासन से सम्बन्धित एक योजना प्रस्तुत की जिसे वेवेल योजना कहा जाता है । लॉर्ड वेवेल ने संवैधानिक सुधारों के सवाल पर 25 जून , 1945 को शिमला में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन करवाया । एस ० एम ० आई ० एस ० तलवार नामक जहाज के कर्मचारियों द्वारा खराब खाने की शिकायत के कारण 1946 में शाही नौसेना विद्रोह बम्बई में शुरू हुआ । यह विद्रोह सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा जिन्ना के दबाव के कारण 25 फरवरी 1946 ई ० को समाप्त हो गया । सत्ता हस्तांतरण के सवाल पर कैबिनेट मिशन 24 मार्च , 1946 को दिल्ली आया । कैबिनेट मिशन के अध्यक्ष भारत मन्त्री लार्ड पैथिक लारेन्स थे तथा अन्य दो सदस्यों में स्ट्रैफोर्ड क्रिप्स तथा ए ० वी ० अलेक्जेण्डर थे । 16 मई , 1946 को कैबिनेट मिशन ने अपने प्रस्तावों की घोषणा की । गाँधीजी और काँग्रेस ने कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार कर लिया लेकिन मुस्लिम लीग ने इसे अस्वीकृत कर दिया । कैबिनेट मिशन योजना के तहत् 1946 में संविधान सभा का चुनाव 296 सीटों पर हुआ , जिसमें काँग्रेस को 201 तथा मुस्लिम लीग को 73 सीटें प्राप्त हुई । 6 जून , 1946 ई ० को मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन प्रस्तावों को स्वीकार करते हुए पाकिस्तान की लक्ष्य – प्राप्ति हेतु संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया । 16 अगस्त , 1946 ई ० को मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान को प्राप्त करने के लिए ‘ प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस ‘ मनाया । 2 सितम्बर , 1946 को कैबिनेट मिशन योजना ‘ के अनुसार जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अन्तरिम सरकार का गठन किया गया । पाकिस्तान की मांग पूरी न होने के कारण मुस्लिम लीग ने आरम्भ में मन्त्रिमण्डल का बहिष्कार किया । बाद में मुस्लिम लीग इसमें शामिल हुई परन्तु उसने संविधान सभा का बहिष्कार किया ।
20 फरवरी , 1947 ई ० को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार जून , 1948 ई ० तक भारतीयों को सत्ता सौंप देगी ।
. . . . . \
. . 24 मार्च , 1947 को लॉर्ड माउण्टबेटेन को भारत का वायसराय बनाकर भेजा गया । माउण्टबेटन योजना के आधार पर भारत का विभाजन हुआ और 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का निर्माण हुआ । माउण्टबेटन योजना के तहत ब्रिटिश पार्लियामेन्ट ने 18 जुलाई , 1947 ई ० में भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम पारित किया । भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम , 1947 के अनुसार 15 , अगस्त , 1947 ई ० को भारत स्वतन्त्र हुआ ।
. . . . . .
. 1793 ई ० में लार्ड कार्नवालिस ने स्थाई बन्दोबस्त ( Permanent Settle ment ) नामक व्यवस्था भू – राजस्व के क्षेत्र में लागू की । स्थाई बन्दोबस्त के अन्तर्गत भू – राजस्व का 8/9 भाग कम्पनी को तथा 1/9 भाग अपने पास रखता था । कार्नवालिस ने ग्रामीण क्षेत्रों में जमींदारों के पुलिस अधिकार एवं दायित्व दोनों समाप्त कर दिये । लार्ड वेलेजली ( 1798-1805 ई . ) ने ‘ सहायक सन्धि ‘ की पद्धति शुरू की । वेलेजली ने हैदराबाद ( 1798 ई ० ) , मैसूर ( 1799 ई . ) , तंजौर ( 1799 ई . ) , अवध ( 1801 ई . ) पेशवा ( 1801 ई . ) , बरार एवं भोंसले ( 1803 ई ० ) तथा सिन्धिया ( 1804 ई . ) आदि के साथ सहायक सन्धि की । लार्ड वेलेजली ने मेहदी अली खाँ को 1799 ई . तथा जॉन मैल्न को 1800 ई ० में ईरान के शाह के दरबार में भेजा । लार्ड वेलेजली ने फोर्ट विलयम कॉलेज की स्थापना सिविल सेवा में भर्ती किये गये युवकों को प्रशिक्षित करने के लिए किया । लार्ड वेलेजली स्वयं को बंगाल का शेर कहता था । जॉर्ज बार्लो ( 1805-07 ई . ) के कार्यकाल में वेल्लोर का सिपाही विद्रोह हुआ । चार्टर ऐक्ट , 1813 द्वारा कंपनीके व्यापारिक अधिकार अगले 20 वर्षों तक बढ़ा दिए गए । चार्टर ऐक्ट , 1813 द्वारा कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार ( चाय , चीनी छोड़कर ) खत्म कर दिए गए । लार्ड मिन्टो के कार्यकाल में चार्टर एक्ट 1813 ई ० द्वारा पहली बार भारत में शिक्षा की व्यवस्था के लिए 1 लाख रुपये प्रदान करके भारत में पाश्चात्य शिक्षा का प्रादुर्भाव हुआ । लार्ड हेस्टिंग्स के काल में थॉमस मुनरो द्वारा 1820 ई . में मद्रास राज्य में रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू की गई । लार्ड हेस्टिंग्स ( 1813-23 ई . ) ने 28 युद्ध लड़े एवं 120 दुर्ग जीते । आगरा एवं पंजाब में लॉर्ड हेस्टिंग्स ने भू – राजस्व के क्षेत्र में महलवाड़ी व्यवस्था लागू की । भारत के पहले हिन्दी अखबार समाचार भूषण का प्रकाशन लॉर्ड हेस्टिंग्स के शासनकाल में हुआ । 1822 ई . में लॉर्ड हेस्टिंग्स ने बंगाल टेनेंसी एक्ट पारित करवाया , इसके द्वारा निर्धारित हुआ कि किसान जब तक लगान दे रहा है , तब तक उसे जमीन से वंचित नहीं किया जायेगा । लॉर्ड हेस्टिंग्स के जाने के बाद ‘ जॉन एडम्स ‘ ने अस्थाई तौर पर 7 महीने तक गवर्नर जेनरल का पद संभाला । एडम्स के बाद लॉर्ड एम्हर्स्ट ने पद संभाला । प्रथम आंग्ल – बर्मा युद्ध ( 1824-1826 ई ० ) एवं यान्डबू सन्धि लॉर्ड एकहर्ट ( 1823-28 ई . ) के काल में हुई । लार्ड एम्हर्स्ट के समय 1824 ई ० में बैरकपुर का सैन्य विद्रोह हुआ । लॉर्ड विलियम बेंटिक ( 1828-35 ई . ) के कार्य – काल में चार्टर एक्ट -1833 पारित हुआ । लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 1829 ई ० में राजा राम मोहन राय के सहयोग से सती प्रथा का अन्त किया । विलियम बेंटिक ने कर्नल – स्लीमैन की मदद से ठगी प्रथा का अन्त किया । बेंटिक ने 1835 ई . में कलकत्ता में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना की । लॉर्ड विलियम बेंटिक ने शिशु बालिका की हत्या पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया । लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 1835 में मैकाले समिति के आधार पर भारत में शिक्षा का माध्यम ( आधार ) अंग्रेजी को बनाया । लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 1832 ई . में कानून बनाकर दास – प्रथा का निषेध कर दिया । लॉर्ड विलियम बैंटिक ने कानून बनाकर हिन्दू धर्म से दूसरे धर्म को अपनाने वाले व्यक्तियों के लिए पैतृक संपत्ति अधिकार प्रदान किया ।
विलियम बेंटिक ने अदालतों में फारसी भाषा के स्थान पर विकल्प के रूप में अन्य स्थानीय भाषाओं के प्रयोग की अनुमति दी ।
लॉर्ड विलियम बेंटिक ने आगरा में एक सर्वोच्च अपील अदालत की स्थापना की । विलियम बैंटिक के समय में कलकत्ता एवं दिल्ली को जोड़ने वाली ग्रांड ट्रंक रोड का आधुनिक निर्माण हुआ था । उसने ऊपरी गंगा नहर की योजना बनाई तथा उसके लिए सिविल इंजिनियरिंग कॉलेज की स्थापना की । . . . चार्ल्स मेटकॉफ ( 1835-36 ई ० ) ने अपने एक वर्ष के कार्यकाल में प्रेस पर से नियन्त्रण हटाया , इसी कारण उसे भारतीय प्रेस का मुक्ति दाता कहा जाता है । लार्ड ऑकलैंड ( 1936-42 ई . ) के काल में आंग्ल – अफगान युद्ध -1 की समाप्ति , रणजीत सिंह , शाह शुजा एवं अंग्रेजों के बीच 1838 ई ० में त्रिपक्षीय सन्धि से हुई । ‘ आंग्ल – अफगान युद्ध- ॥ ‘ अंग्रेजों ने लॉर्ड एलिनबरो ( 1842-44 ई . ) के शासनकाल 1842 ई . में जीता । लॉर्ड एलिनबरो के शासनकाल में ब्रिटिश साम्राज्य में पूर्णरूपेण सिंध का विलय 91843 ई . ) होगया । प्रथम आंग्ल – सिक्ख युद्ध ( 1845-46 ई ० ) लॉर्ड हार्डिंग ( 1844-48 ई . ) के शासन काल में हुआ । लॉर्ड हार्डिग ने नरबलि – प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाया । लॉर्ड डलहौजी ( 1848-56 ई . ) व्यपगत सिद्धान्त ( doctrine of lapse ) के कारण इतिहास में प्रसिद्ध है । डलहौजी ने लोअर वर्मा अथवा पेगु ( 1856 ई ० ) , सिक्किम ( 1850 ई ० ) , बराड़ ( 1853 ई ० ) एवं अवध ( 1856 ई ० ) आदि का विलय अपने साम्राज्य में कर दिया । डलहौजी ने 1856 ई ० में इसने तोपखाने के मुख्यालय को कलकत्ता से मेरठ स्थानान्तरित किया । डलहौजी सेना का मुख्यालय शिमला में स्थापित किया । डलहौजी को भारत में रेलवे का जनक माना जाता है । डलहौजी के समय भारत में पहली बार 1853 ई . में बम्बई से थाणे के बीच प्रथम रेल चलायी गयी । डलहौजी के कार्यकाल में 1854 ई ० तक कलकत्ता से रानीगंज कोयला – क्षेत्र तक रेल लाईन बिछा दी गई । डलहौजी ने भारत में पहली बार डाक टिकटों ( Postal Stamps ) का चलन आरम्भ किया । डलहौजी ने 1852 ई ० में भारत में पहली बार विद्युत तार ( Electric Telegraph ) व्यवस्था आरम्भ की । डलहौजी ने भारत में पहली बार एक सार्वजनिक निर्माण विभाग ( PWD ) की स्थापना की । डलहौजी के समय में भारतीय नागरिक सेवा ( ICS ) हेतु पहली बार प्रतियोगिता परीक्षा शुरू हुई । 1854 ई . में डलहौजी ने स्वतन्त्र लोक सेवा विभाग की स्थापना की । डलहौजी के काल में शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया । डलहौजी ने शिक्षा सम्बन्धी सुधारों के अन्तर्गत 1854 में वुड्स डिस्पैच को लागू किया । विधवा पुनर्विवाह विधेयक ( 1856 ई ० ) डलहौजी के काल में लाया गया । डलहाजी ने सिंचाई की सुविधा के लिए गंगा नहर का निर्माण करवाया , पंजाब में बारी दोआब नहर पर निर्माण कार्य की नींव डाली । डलहौजी ने परिवहन की सुविधा के लिए ‘ ग्रांड ट्रंक ‘ रोड की मरम्मत करवायी । डलहौजी के काल में 1853 के चार्टर एक्ट आया तथा 1855 ई ० में संथाल विद्रोह हुआ । डलहौजी ने भारत के बन्दरगाहों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए खोल दिया । डलहौजी के बाद लाई कैनिंग ( 1856-62 ई ० ) भारत का गवर्नर जनरल . . . . का . रि व लि . . लार्ड कैनिंग भारत का ब्रिटिश सम्राट के अधीन प्रथम वायसराय था ।
लार्ड कैनिंग के शासन काल में 1857 का विद्रोह हुआ ।
.
.
. . . . . .
कोल्यालयमा • मोहन जोदड़ो से घोड़े के दांत , लोथल से घोडे की लय मणमनियों एवं सुरकोटदा से घोड़े की अस्थियों के अवशेष मिले हैं ।
• जते हुए खेत का प्रथम साक्ष्य प्राक् सैंधव कालीन पुरास्थल कालीबंगा से मिला है ।
• चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से मिले हैं ।
• सैंधव मुहरों में एक श्रृंगी सांड के उत्कीर्ण चित्र सर्वधिक मिले है । . हड़प्पाकालीन पुरोस्थली में कालीबंगा एवं लोथल से हवन कुण्ड के साक्ष्य मिले हैं ।
• ” मेतुहा ‘ सिंधु क्षेत्र का ही प्राचीन नाम था ।
• कुछ नवीन हड़प्पाकालीन पुरास्थल है : खर्वी , कनतासी एवं धौलावीरा ।
• सिंधुवासी बैल को शक्ति का प्रतीक मानते थे । पशुपति महादेव की पूजा किया करते थे । ऋग्वेद में हड़प्पा सभ्यता को ‘ हरियपिया ‘ कहा गया ।
• ऋग्वेद में राजा को ‘ गोप जनस्य ‘ ( प्रजा का रक्षक ) एवं पुरामभेत्ता ( नगरों पर विजय प्राप्त करने वाला ) कहा गया ।
• ऋग्वेद में ‘ बलिहत ‘ ( बलि देने वाला ) शब्द का प्रयोग राजा के प्रति निष्ठा प्रदर्शन के लिए किया गया है ।
• ‘ उपस्ति ‘ एवं ‘ इ ‘ राजा के व्यक्तिगत कर्मचारी होते थे । .ऋग्वैदिक काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी ‘ सिंधु ‘ थी ।
• ऋग्वैदिक काल की सर्वाधिक पवित्र नदी ‘ सरस्वती ‘ थी ।
• ऋग्वैदिक काल के सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता ‘ इन्द्र ‘ थे ।
• ऋग्वेद के ‘ पुरुषसूक्त में सर्वप्रथम शुद्ध शब्द का उल्लेख मिलता है । ऋग्वेद में मछली तथा नमक का उल्लेख नहीं मिलता ।
• ऋग्वेद में ‘ जन ‘ शब्द का उल्लेख 275 बार एवं ‘ विश ‘ शब्द का उल्लेख 170 बार हुआ है ।
• ऋग्वैदिककालीन समाज ‘ पितसन्तात्मक ‘ होता था । ऋग्वैदिककालीन प्रशासन तंत्र ‘ राजतंत्रात्मक ‘ था । 0 ईरानी भाषा के ग्रंथ ‘ अवेस्ता ‘ की तुलना भारतीय ग्रंथ ऋग्वेद से की जाती है ।
• आर्य भारत में सर्वप्रथम ‘ सप्तसैंधव ‘ प्रदेश में बसे ।
० पूर्व वैदिककालीन महिलायें सभा एवं विदथ में भाग लेती थीं । ..ऋग्वेद में एक मात्र थातु ‘ अयस ‘ का उल्लेख मिलता है ।
• ऋग्वेद में बढ़ई , रथकार , बुनकर , चर्मकार , कुम्हार आदि शिल्पियों का उल्लेख मिलता है ।
• ऋग्वैदिक काल में सैनिक कार्य का संचालन ब्रात , गण , ग्राम एवं सर्घ जैसी कबायली इकाईयां करती थीं ।
• ऋग्वेद में गंगा नदी का एक बार तथा जमुना नदी का तीन बार उल्लेख है ।
ऋग्वैदिक काल की महत्वपूर्ण फसल यव ( जौ ) एवं गेहँ थी । जाति व्यवस्था , गोत्र व्यवस्था एवं आश्रम व्यवस्था का उल्लेख सर्वप्रथम उत्तर वैदिक काल में ही मिलता है ।
० उत्तर वैदिक काल की महत्वपूर्ण पर्वत श्रेणियां थीं : त्रिककद , कैज एवं मैनाक ।
• उत्तर वैदिक काल के महत्वपूर्ण देवता प्रजापति ( ब्रह्मा ) के अतिरिक्त विष्या एवं शिव भी महत्वपूर्ण थे ।
भारतीय इतिहास :: 0057
• याज्ञिक प्रक्रिया की जटिलता में वृद्धि के साथ ही यज्ञ में पुरोहितों को महत्व बढ़ा ।
• स्त्रियों की स्थिति पहले की अपेक्षा बदतर हुई ।
● भारत एवं पुरु कबीलों ने मिलकर ‘ कुरु वंश ‘ की स्थापना की । .उत्तर वैदिक काल ‘ विदथ ‘ का अस्तित्व समाप्त हो गया । • अथर्वेद में सभा और समिति को प्रजापति की दो पत्रियों के रूप में प्रस्तुत किया गया ।
• व्यावसायिक संगठन के रूप में श्रेष्ठी , गण , गणपति जैसे संगठनों के प्रकाश में आने के उल्लेख मिलते हैं ।
• राज्याभिषेक के समय राजा को ‘ राजसय यज ‘ का अनुष्ठान करवाना होता था । इस यज्ञ को सम्पन्न करवाने वाले पुरोहित को दान में 2.40,000 गायें दी जाती थी । .
सर्वप्रथम ‘ जाबालोपनिषद् ‘ में चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है । ..पूर्व पापों की पूजा का प्रचलन उत्तर वैदिक काल में हुआ । जनपदों की उत्पत्ति के विषय में उत्तर वैदिक काल में ही जानकारी मिलती है ।
० राजा की उत्पत्ति के विषय में प्रथम साक्ष्य ‘ ऐतरेय ब्राह्मण ‘ से मिलता
• उत्तर वैदिक काल में तण्डल एवं ब्रीहि थान के लिए एवं ‘ ईक्षु ‘ शब्द ईख के लिए प्रयुक्त होता था । 0 ‘ शतपथ ब्राह्मण ‘ में अनेक उत्तर वैदिककालीन विदुषी कन्याओं जैसे गार्गी , गन्धर्व ग्रहीता . मैत्रेयी आदि का उल्लेख मिलता है ।
० शतपथ ब्राह्मण में कृषि की सभी क्रियाओं जैसे कर्षण , वपन , लुनन एवं मृणन का उल्लेख मिलता है । 024 बैलों द्वारा हल खींचे जाने का उल्लेख काठक संहिता से मिलता यजुर्वेद में हिरण्य ( सोना ) , त्रपु ( टिन ) , सीसा , अयस , लौह आदि का विवरण प्राप्त होता है ।
० धनी व्यक्तियों द्वारा प्रयुक्त ‘ सौम ‘ के वस्त्र का उल्लेख सर्वप्रथम ‘ मैत्रायणी संहिता ‘ में मिलता है । • अथर्वेद के अनुसार सर्वप्रथम ‘ पृथ्वैन्य ‘ ने हल और कृषि को जन्म दिया ।
• अथर्ववेद में सामूहिक वाद – विवाद के स्थल को ‘ नरिष्ठा ‘ कहा गया । • उत्तर वैदिक काल की मुख्य फसल चावल और गेहूँ थी ।
• उत्तर वैदिक काल में लाल रंग के मदभाण्ड सर्वाधिक प्रचलन में थे । पाञ्चाल उत्तर वैदिक काल के सर्वाधिक विकसित राष्ट्रों में से था ।
• भारतभूमि से बौद्ध धर्म 12 वीं शताब्दी तक विलुप्त हो गया ।
• बौद्ध धर्म का प्रचार पानि भाषा में किया गया • बुद्ध के ‘ पंचशील सिद्धान्त ‘ का वर्णन छादोग्य उपनिषद् में मिलता है ।
• बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग का स्रोत तैत्तरीय उपनिषद् है । . सुत्तपिटक ‘ को प्रारम्भिक बौद्ध धर्म का एनसाइक्लोपीडिया कहा जाता ।
• बौद्ध ग्रंथों में संस्कृत का प्रयोग ‘ अभिधम्मपिटक ‘ से प्रारम्भ होता है । धेरदाद के महत्वपूर्ण पंथ ‘ सर्वास्तिवाद ‘ की स्थापना राहुलभद्र ने की ।
• बौद्ध धर्म का सर्वाधिक प्रचार कोशल राज्य में हुआ एवं सर्वाधिक
अनुयायी यहीं पर थे । बुद्ध ने पहां सर्वाधिक 21 लास किये थे । दी निकाय में बुद्ध के समय के 6 नगरों का उल्लेख मिलता है । ये हैं – चम्पा , राजगृह , श्रावस्ती , साकेत , कौशाम्बी एवं वाराणसी ।
• बुद्ध को उनके तीन नामों : बुद्ध , तथागत एवं शाक्यमनि के नाम से जाना जाता है ।
• बौद्ध धर्म के त्रिपिटक हैं – विनयपिटक , सुत्तपिटक एवं अभिधम्म पिटक ।
• बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश ऋषिपत्तनम या मृगदाव ( सारनाथ ) में दिया ।
• महात्माबुद्ध अनात्मवादी थे , पर पुनर्जन्म में विश्वास करते थे ।
• अनसावन बौद्ध संघ में लाये गये प्रस्ताव के पाठ को कहा जाता था ।
• बौद्ध संघ में प्रवेश पाने को ‘ उपसम्पदा ‘ कहा जाता था ।
• बौद्ध धर्म के त्रिरत्न थे – बुद्ध , संघ एवं धम्म ।
• शून्यवाद के प्रवर्तक नागार्जन एवं विज्ञानवाद के प्रवर्तक मैत्रेयनाथ थे ।
• वेलवन एवं जेतनन वह स्थान थे , जहां महात्माबुद्ध वर्षाकाल में निवास करते थे ।
• प्रतीत्य समत्पाद बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी सम्पूर्ण शिक्षा का आधार – स्तम्भ है ।
• बुद्ध के नजदीकी शिष्यों में आनन्द , उपालि , सारिपुत्र , मौद्गल्यायन एवं देवदत्त थे ।
• बुद्ध के अनुयायी शासक थे बिम्बसार , प्रसेनजित एवं उदयन् ।
• बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश ‘ श्रावस्ती ‘ में दिये ।
• कमल एवं सांड़ बुद्ध के जन्म का , घोड़ा गृहत्याग का , पीपल ज्ञान का , पदचिह्न निर्वाण का एवं स्तूप मृत्यु का प्रतीक है ।
• गृहपति एवं गृहपत्नी , जो भागवत् धर्म का अनुसरण करते थे , ‘ भागवती ‘ एवं ‘ भागवतम् ‘ कहे जाते थे ।
• भागवत् धर्म का प्रथम विदेशी उपासक यूनानी दूत तक्षशिला निवासी हेलिओडोरस था । ‘ सावर्षम ‘ वासुदेव को कहा जाता था ।
• कृष्ण ‘ वृष्णि ‘ कबीले से सम्बन्धित थे ।
• कृष्ण का वासदेव नाम पाणिनि के समय से मिलता है ।
• सात्वत जाति से ही भागवत् सम्प्रदाय का उदय हुआ ।
• अवतारवाद का सर्वप्रथम स्पष्ट उल्लेख ‘ भगवद्गीता ‘ से मिलता है ।
• जब कृष्ण , विष्णु का तादात्म्य नारायण से स्थापित हुआ तो वैष्णव धर्म का एक नया नाम ‘ पाञ्चरात्रधर्म ‘ प्रकाश में आया ।
• वैष्णव धर्म में ईश्वर को प्राप्त करने के लिए ‘ भक्ति ‘ पर जोर दिया गया ।
• वैष्णव धर्म में मुंदिर एवं मर्तिपजा को विशेष महत्व दिया गया । विष्णु के दस अवतारों में ‘ कृष्ण ‘ का नाम नहीं है ।
• वासुदेव को व्यापक होने के कारण ‘ विष्ण ‘ , विजयी होने के कारण ‘ जिष्ण ‘ , दुःख और पाप हरने के कारण ‘ हरि ‘ , अपनी ओर आकृष्ट करने के कारण ‘ कृष्ण ‘ , वैकुण्ठ धाम के अधिपति होने के कारण ‘ वैकण्ठ ‘ एवं क्षर – अक्षर पुरुष से उत्पत्र होने के कारण पुरुषोत्तम ‘ कहा गया ।
• गुप्त काल में वैष्णव धर्म अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा । दक्षिण में इस M
धर्म का प्रचार – प्रसार वेगी के पूर्वी चालक्यों एवं राष्ट्रकूटों के समय में ने हुआ । दक्षिण भारत में ‘ आलवार ‘ सन्तों ने इस धर्म का प्रचार किया । जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त के अधीन सम्पूर्ण भारत था ।
• चन्द्रगुप्त मौर्य के सौराष्ट्र प्रान्त के शासक पुष्यगप्त ने सुदर्शन तडाग का निर्माण उर्जयत पर्वत पर एक सेतु बना कर किया था ।
• अशोक के लेखों में तीन प्रकार के राज्य – अन्त या प्रत्यन्त , विजित आटवी एवं अपरान्त के उल्लेख मिलते हैं । अन्त राज्य पड़ोस के स्वतन्त्र राज्यों को कहा जाता था । प्रत्यन्त वे राज्य होते हो जो अन्त राज्यों के नजदीक दूसरी सीमा पर स्थित होते थे , इनसे अशोक के राजनयिक सम्बन्ध थे । विजित आटवी जन – जातियां अर्धस्वतन्त्र होती थीं । अपरान्त जातियां राज्य की सीमा पर विद्यमान अधीन जातियाँ धीं ।
अशोक ने अपने शासन काल में 25 बार बंदियों को मुक्त किया था ।
अशोक के राज्य के सीमावर्ती राज्य थे चोल , पाण्ड्य , सत्यपुत्र , केरल 154 पुत्र , ताम्रपर्णी , यवनराज आदि ।
• अशोक ने जनसाधारण की भाषा पालि का प्रयोग किया ।
• अशोक ने अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष से लेकर दसवें वर्ष के बीच बौद्ध धर्म ग्रहण किया ।
• अशोक के बौद्ध धर्म प्रचारकों ने इस धर्म को मध्य एशिया , चीन , जापान , तिब्बत , बर्मा , थाईलैण्ड एवं कम्बोडिया में पहुँचाया ।
• अशोक ने राष्ट्रीय भाषा के रूप में पालि एवं राष्ट्रीय लिपि के रूप ब्राह्मी को अपनाया । सांची , सारनाथ एवं कौशाम्बी स्तम्भ लेखों में अशोक के उन आदेशों का उल्लेख है जिनमें वे महामात्रों को संघ भेद रोकने की आज्ञा देते थे ।
• रानी के स्तम्भ लेख ( कौशाम्बी ) में अशोक की पत्नी करुवाकी द्वारा किये गये दान का वर्णन है । अशोक के एरंगडी अभिलेख में ब्राह्मी लिपि दायें से बायीं ओर लिखी गयी है अशोक के ‘ महास्थान लेख ‘ से अन्न भण्डार के विषय में जानकारी मिलती है । अशोक के एकाश्मक स्तम्भों का सबसे अच्छा उदाहरण सारनाथ का सिंह स्तम्भ है । संकिसा स्तम्भ के शीर्ष पर हाथी बना है ।
• रुम्मिन्देई का स्तम्भ सबसे छोटा ( केवल 21 फुट ऊंचा ) है । इसके शीर्ष पर ‘ घोडा ‘ बना है ।
• रामपरवा स्तम्भ के ( लेख युक्त ) शीर्ष पर सिंह बना है ।
• रामपुरवा स्तम्भ के ( लेख विहीन ) शीर्ष पर ‘ वृषभ ‘ बना है । .1937 में अशोक के लेखों को सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप . ( James Prinsep ) ने पढ़ा । 01750 में टीफेन्थैलर ( Teffenthaler ) ने सबसे पहले दिल्ली में अशोक स्तम्भ का पता लगाया ।
• अशोक के दो लिपियों के शिलालेख ( ग्रीक + आर्मेइक ) शार – ए कना ( कन्धार ) से प्राप्त हुए हैं ।
• भान शिलालेख बैराट पर्वत की चोटी पर स्थित एक शिलाखण्ड पर अंकित
. . • O O था । यहीं से अशोक के बौद्ध धर्म स्वीकार करने उल्लेख मिलता है ।
● मौर्य काल में सर्वाधिक वेतन 48,000 पण एवं सबसे कम वेतन 60 पण था ।
• प्रवहण एक प्रकार का सामूहिक समारोह था । रंगोपजीवी एवं रंगोपजीविनी क्रमशः पुरुष कलाकार एवं स्त्री कलाकार को कहा जाता था ।
• फाह्यान के अनुसार अशोक ने 8 पुराने स्तूपों को खुदवा कर उनके अवशेषों पर करीब 84,000 स्तूप बनवाये । अधिकारियों की धर्म प्रचार यात्रा को ‘ अनसंधान ‘ कहा गया । अर्थशास्त्र में शुद्रों को ‘ आर्य ‘ कहा गया । पतंजलि के महाभाष्य से पता चलता है कि मौर्य काल में देवताओं की मतियों को बेचा जाता था ।
• मौर्य साम्राज्य के पतन के उपरान्त ब्राह्मण साम्राज्य का उदय हुआ , इस साम्राज्य के अन्तर्गत प्रमुख शासक वंश थे- शुंग , कण्व , आंध्र , सातवाहन एवं वाकाटक । .गुर्जरा एवं मास्की अभिलेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है , शेष अभिलेखों में अशोक का नाम देवानामप्रिय प्रियदस्सि उल्लिखित है ।
• ऐसी स्त्रियां जो घर से बाहर नहीं निकलती थीं , कौटिल्य ने ‘ अनिष्कासिनी ‘ कहा ।
• मौर्यकालीन पुलिस को रक्षिन कहा गया ।
• मौर्य काल में पहली बार दासों को कृषि कार्य में संलग्न किया गया ।
• ‘ उपधा परीक्षण ‘ द्वारा राजा मंत्रियों एवं पुरोहितों की नियुक्ति के पूर्व उनका चारित्रिक परीक्षण करता था ।
• राज्य के सप्तांग सिद्धांत को चाणक्य ने प्रतिपादित किया था ।
• भारतीय ग्रंथों में बैक्ट्रियन को यवन , पार्थियन को पहलव , सीथियन को शक एवं यू – ची जाति को कुषाण कहा गया ।
• भारतीय – यूनानी शासक मेनाण्डर ने बौद्ध धर्म एवं हेलियोडोरस ने भागवत धर्म स्वीकार किया ।
• भारतीय – यूनानियों ने ही सर्वप्रथम सोने के सिक्के जारी किये एवं उन पर लेख उत्कीर्ण करवाये ।
• ‘ यवनिका ‘ संस्कृत के नाटकों में पटापेक्ष के लिए प्रयोग होने वाला यूनानी शब्द है ।
• पहला ईसाई धर्म प्रचारक सेंट थामस पहलव शासक ‘ गोदोफर्निस ‘ के समय में भारत आया ।
• शक शासक रुद्रदामन का ‘ जनागढ़ अभिलेख ‘ संस्कृत भाषा का प्रथम सबसे बड़ा अभिलेख है । हिन्दुकुश पर्वत के दक्षिण तरफ सर्वप्रथम ताँबे के सिक्के चलाने का श्रेय कुजल कडफिसेस को दिया जाता है ।
• भूमिदान का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य प्रथम शताब्दी ई ० पू ० ( सातवाहनों के समय ) में मिलता है ।
• महान ‘ सिल्क मार्ग ‘ पर कुषाणों का अधिकार था ।
• कनिष्क ने कश्मीर को जीत कर ‘ कनिष्कपर ‘ नगर की स्थापना की ।
• कुषाणों के समय में राजतंत्र में दैवी तत्वों का समायोजन किया गया एवं इस वंश के राजाओं को ‘ देवपत्र ‘ कहा गया ।
• नागार्जुन की तुलना मार्टिन लूथर से की जाती है । इन्हें भारत का आईस्टाइन ‘ कहा जाता है ।
• वसुमित्र द्वारा रचित ‘ महाविभाष सूत्र ‘ को बौद्ध धर्म का विश्वकोश कहा जाता है ।
• कुषाणों ने अपने प्रांतों में द्वैध शासन की प्रणाली प्रारम्भ की ।
• ‘ मैत्रेय ‘ बुद्ध के नामों में से एक है जिसका उल्लेख सर्वाधिक बार हुआ कनिष्क द्वारा चलाये गये सिक्कों पर ही सर्वप्रथम बुद्ध की मूर्तियों के बने होने के संकेत मिलते हैं ।
• अब तक बुद्ध की मूर्ति दो रूपों में या तो खड़ी हुई या फिर बैठी हुई मिली है । बुद्ध की मर्तियाँ अधिक मात्रा में गंधार कला के अन्तर्गत बनीं ।
• मथुरा कला में सबसे कम मूर्तियाँ ‘ अवलोकितेश्वर बोधिसत्त्व ‘ की मिली है ।
• कुषाणों ने गुप्त स्वर्ण मुद्रा की तुलना में अधिक शुद्ध स्वर्ण मुद्रायें जारी की । दैनिक लेन देन में कषाण लोग ताँबे की मुद्रा का प्रयोग करते थे । ‘ शतमान ‘ चाँदी के बने सिक्के को कहते थे ।
• ‘ काकिनी ‘ ताँबे एवं राँगे से निर्मित सिक्के को कहते थे ।
• ‘ कर्षापण ‘ चार धातु- सोना , चाँदी , ताँबे व सीसे से निर्मित सिक्के को कहते थे । सर्वप्रथम रोमन साम्राज्य के साथ व्यापारिक सम्बन्ध दक्षिण के तमिल राज्यों ने स्थापित किया । पतंजलि ने मथुरा में ‘ सटका ‘ नाम के वस्त्र के पाये जाने का उल्लेख किया ।
• भारत में प्राप्त अधिकांश रोमन स्वर्ण सिक्के रोमन सम्राट आगस्टस एचं टाइबेरियस के समय के हैं । • रोमनवासी भारतीय मसाले , रत्न , वस्त्र एवं पशुपक्षियों में तोता , मोर , लंगूर को पसन्द करते थे । 24 • ‘ अरिकामेड ‘ बन्दरगाह को ‘ पेरिप्लस ऑफ दि एरिथ्रियन सी ‘ में ” पेडोक ‘ नाम से सम्बोधित किया गया है ।
● भारत के पश्चिमी तट पर ‘ बेरीगाजा ‘ बन्दरगाह सबसे अधिक प्राचीन एवं बड़े प्रवेश द्वार वाला बन्दरगाह था ।
• राजारानी वर्ग ( लिच्छवि प्रकार ) की मुद्रायें गुप्त काल की प्रथम मुद्रायें हैं । गुप्त मुना का जन्मदाता चन्द्रगुप्त प्रथम को माना जाता है ।
• समुद्रगुप्त के ‘ इलाहाबाद प्रशस्ति लेख ‘ का लेखक महादण्डनायक ध्रुवभूति का पुत्र हरिषेण था , जो समुद्रगुप्त का सन्धि विग्रहिक , कुमारामात्य एवं महादण्डनायक था । समुद्रगुप्त ने ‘ अश्वमेघाहर्ता ‘ की उपाधि धारण की ।
• समुद्रगुप्त द्वारा पराजित आर्यावर्त में 9 शासक एवं दक्षिणावर्त में 12 शासक थे ।
• गुप्त साम्राज्य का सबसे बड़ा अधिकारी मारामात्य होता था ।
• गुप्तकाल में ‘ द्कूल ‘ रेशम से निर्मित अच्छ वस्त्र को कहा जाता था । चीनाशुक चीनी रेशम को कहा जाता था । गुप्तकाल के अन्तिम चरण में ‘ पाटलिपुत्र ‘ का पतन एवं कन्नौज का उत्थान हुआ । गुप्तकालीन सिक्कों के प्राप्त 16 ढेरों में महत्वपूर्ण ढेर बयाना ( भरतपुर ) का ढेर है । । 7
C / 290 :: सामान्य अध्ययन प्रारम्भिक मूला –
• अजन्ता से मिली 60 गुफाओं में सर्वाधिक प्राचीन गुफा , गुफा संख्या . 9.10 हैं । गुप्तकाल में निर्मित गुफो संख्या 16 , 17 हैं । बाघ की गुफाओं की खोज 1818 में डेंजरफील्ड ने किया था । मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्त काल में हुआ । ‘ गुप्त काल में निर्मित देवगढ़ का दशावतार मंदिर सम्भवतः मंदिर निर्माण का पहला ऐसा उदाहरण है जिसमें ‘ शिखर ‘ का प्रयोग हुआ ।
गुप्त काल में सारनाथ में निर्मित ‘ घमेख का स्तप ‘ अन्य गुप्तकालीन स्तूपों की तरह चबूतरे पर न बनकर घरातल पर ईटो का बना है । – गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की तुलना कुबेर , वरुण , इन्द्र एवं यमराज से की गयी ।
• दण्डपाशिक गुप्तकाल में पुलिस विभाग के प्रमुख को कहा जाता था ।
• प्रस्तपाल अभिलेखों को सुरक्षित रखने वाले अधिकारी को कहा जाता था ।
• गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राओं को अभिलेखों में ‘ दीनार ‘ कहा गया ।
• गुप्तकालीन भारत के पूर्वी तट पर सबसे बड़ा बन्दरगाह ताम्रलिप्ति एवं पश्चिमी तट पर भडौच था । गुप्तकालीन भारत में चीन से रेशम , इधोपिया से हाथी दांत , अरब , ईरान एवं बैक्ट्रिया से घोड़े आयात किये जाते थे ।
फाह्यान के अनुसार गुप्तकालीन बाजारों में साधारण लेन – देन में कौड़ियों के प्रचलन के प्रमाण मिलते हैं । गुप्तकालीन समाज में जाति प्रथा की जटिलता कुष्ठ कम हुई । बाह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्रों को आपात काल में अपने व्यवसाय को छोड़ कर अन्य व्यवसायों को अपनाने की छूट थी ।
• सती होने का प्रथम अभिलेखीय प्रमाण 510 ई ० के एरण अभिलेख से मिलता है । गुप्तकाल में ” शिव ‘ के अर्धनारीश्वर रूप की कल्पना करते हुए शिव एवं पार्वती की मूर्तियों का एक साथ निर्माण प्रारम्भ हुआ । शैव एवं वैष्णव धर्म के समन्वय को दर्शाने वाली भगवान ‘ हरिहर ‘ की मूर्ति का निर्माण एवं त्रिमर्ति के अन्तर्गत ब्रह्मा , विष्णु एवं महेश की पूजा का आरम्भ गुप्त काल में ही हुआ ।
• गुप्त सम्राट कमारगुप्त ने ही सम्भवतः नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी । इसे शक्रादित्य भी कहा जाता था ।
• गुप्तकालीन मंदिर कला का सर्वोत्तम उदाहरण देवगढ़ का दशावतार मंदिर है । गुप्तकालीन मूर्तियों में कुषाणकालीन मूर्तियों की तरह नग्नता एवं कोमकता का दर्शन नहीं होता । गुप्तकाल में ही एकमुखी एवं चतर्मखी शिवलिंग का निर्माण प्रारम्भ हुआ । विष्ण शर्मा द्वारा रचित गुप्तकालीन ग्रंथ ‘ पंचतंत्र की गणना संसार के सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ ‘ बाइबिल ‘ के बाद दूसरे स्थान पर की जाती है ।
गुप्त काल में ही दो जैन सभायें क्रमशः मथुरा एवं बल्लभी में आयोजित की गयी ।
गुप्तकालीन मंदिरों के पावों पर गंगा और यमुना के चित्र सर्वप्रथम गुप्तकाल में ही बनाये गये । कत्रीज पर अधिकार को लेकर हुए त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेने वाली महत्वपूर्ण शक्तियां थीं – गुर्जर – प्रतिहार , राष्ट्रकूट एवं पाल ।
C / 290 :: सामान्य अध्ययन प्रारम्भिक मूला –
• अजन्ता से मिली 60 गुफाओं में सर्वाधिक प्राचीन गुफा , गुफा संख्या . 9.10 हैं । गुप्तकाल में निर्मित गुफो संख्या 16 , 17 हैं । बाघ की गुफाओं की खोज 1818 में डेंजरफील्ड ने किया था ।
मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्त काल में हुआ । ‘ गुप्त काल में निर्मित देवगढ़ का दशावतार मंदिर सम्भवतः मंदिर निर्माण का पहला ऐसा उदाहरण है जिसमें ‘ शिखर ‘ का प्रयोग हुआ ।
गुप्त काल में सारनाथ में निर्मित ‘ घमेख का स्तप ‘ अन्य गुप्तकालीन स्तूपों की तरह चबूतरे पर न बनकर घरातल पर ईटो का बना है । – गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की तुलना कुबेर , वरुण , इन्द्र एवं यमराज से की गयी ।
• दण्डपाशिक गुप्तकाल में पुलिस विभाग के प्रमुख को कहा जाता था ।
• प्रस्तपाल अभिलेखों को सुरक्षित रखने वाले अधिकारी को कहा जाता था ।
• गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राओं को अभिलेखों में ‘ दीनार ‘ कहा गया ।
• गुप्तकालीन भारत के पूर्वी तट पर सबसे बड़ा बन्दरगाह ताम्रलिप्ति एवं पश्चिमी तट पर भडौच था । गुप्तकालीन भारत में चीन से रेशम , इधोपिया से हाथी दांत , अरब , ईरान एवं बैक्ट्रिया से घोड़े आयात किये जाते थे ।
फाह्यान के अनुसार गुप्तकालीन बाजारों में साधारण लेन – देन में कौड़ियों के प्रचलन के प्रमाण मिलते हैं ।
गुप्तकालीन समाज में जाति प्रथा की जटिलता कुष्ठ कम हुई । बाह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्रों को आपात काल में अपने व्यवसाय को छोड़ कर अन्य व्यवसायों को अपनाने की छूट थी ।
• सती होने का प्रथम अभिलेखीय प्रमाण 510 ई ० के एरण अभिलेख से मिलता है ।
गुप्तकाल में ” शिव ‘ के अर्धनारीश्वर रूप की कल्पना करते हुए शिव एवं पार्वती की मूर्तियों का एक साथ निर्माण प्रारम्भ हुआ । शैव एवं वैष्णव धर्म के समन्वय को दर्शाने वाली भगवान ‘ हरिहर ‘ की मूर्ति का निर्माण एवं त्रिमर्ति के अन्तर्गत ब्रह्मा , विष्णु एवं महेश की पूजा का आरम्भ गुप्त काल में ही हुआ ।
• गुप्त सम्राट कमारगुप्त ने ही सम्भवतः नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी । इसे शक्रादित्य भी कहा जाता था ।
• गुप्तकालीन मंदिर कला का सर्वोत्तम उदाहरण देवगढ़ का दशावतार मंदिर है ।
गुप्तकालीन मूर्तियों में कुषाणकालीन मूर्तियों की तरह नग्नता एवं कोमकता का दर्शन नहीं होता ।
गुप्तकाल में ही एकमुखी एवं चतर्मखी शिवलिंग का निर्माण प्रारम्भ हुआ ।
विष्ण शर्मा द्वारा रचित गुप्तकालीन ग्रंथ ‘ पंचतंत्र की गणना संसार के सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ ‘ बाइबिल ‘ के बाद दूसरे स्थान पर की जाती है ।
गुप्त काल में ही दो जैन सभायें क्रमशः मथुरा एवं बल्लभी में आयोजित की गयी । गुप्तकालीन मंदिरों के पावों पर गंगा और यमुना के चित्र सर्वप्रथम गुप्तकाल में ही बनाये गये । कत्रीज पर अधिकार को लेकर हुए त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेने वाली महत्वपूर्ण शक्तियां थीं – गुर्जर – प्रतिहार , राष्ट्रकूट एवं पाल ।
पशन त्रिपक्षीय संघर्ष में अन्तिम विजय गुर्जर – प्रतिहारों की हुई ।
त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेने वाली राष्ट्रकूट शक्ति दक्षिण की पहली ऐसी शक्ति थी जिसने उत्तर भारत पर आक्रमण करने का श्रेय प्राप्त किया ।
त्रिपक्षीय संघर्ष की वास्तविक पहल प्रतिहार नरेश वत्सराज ने की । प्रतिहारवंशी शासक भोज ने ‘ आदिवराह ‘ एवं ‘ प्रभास ‘ की उपाधि धारण की , इसे मिहिर भोज भी कहा जाता है ।
परमार शासक भोज ने ‘ भोजपुर नगर ‘ एवं भोजसर नामक तालाब का निर्माण करवाया । इसने कवि राज नाम की उपाधि धारित की । ‘ चालुक्य शासक मूलराज द्वितीय ने 1178 में आबू पर्वत के निकट मुहम्मद गोरी को पराजित किया ।
• महमूद गजनवी ने ब्राह्मण शाही शासक जयपाल के समय में लगभग 1001 में भारत पर आक्रमण किया । महिपाल को पाल वंश का द्वितीय संस्थापक माना जाता है ।
पाल नरेश धर्मपाल ने प्रसिद्ध ‘ विक्रमशिला विश्वविद्यालय ‘ की स्थापना की । इसने ‘ परमसंगत ‘ की उपाधि धारण की ।
गुजरात के चालुक्य ( सोलंकी ) वंशी शासक भीम प्रथम के शासन काल में लगभग 1025 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया ।
कश्मीर में 724 से लेकर लगभग 1003 के मध्य तीन राजवंश कार्कोट , उत्पल एवं लोहर वंश ने शासन किया । लोहर वंश के अन्तिम शासक जयसिंह के शासन काल में ही कल्हण ने ‘ राजतरंगिणी ‘ की रचना की । इस कृति से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है ।
कश्मीर के लोहर वंश के शासक ‘ हर्ष ‘ को ‘ कश्मीर का नीरो ‘ कहा गया ।
गुप्तोत्तर काल में सूद पर रुपया उधार देने को ‘ कुसीदवृत्ति ‘ कहा गया ।
सर्वप्रथम विदेशी यात्री एवं लेखक हवेनसांग ने कृषि को शुद्रों का व्यवसाय बताया । कायस्थों का सर्वप्रथम वर्णन ‘ याज्ञयवल्क्य स्मृति ‘ में मिलता है । जाति के रूप में इनका पहला उल्लेख ‘ ओशनम स्मति ‘ में मिलता है । ‘ इस समय मूर्तिपूजा से जीविकोपार्जन करने वाले ब्राह्मणों को ‘ देवलक ‘ कहा गया ।
मल्लकर या तरुष्क नामक दण्ड कर अशान्ति फैलाने वाली जातियों से निपटने के लिए लगाया जाता था ।
• गुप्तोत्तर काल का सर्वाधिक प्रसिद्ध बन्दरगाह ताम्रलिप्ति ( बंगाल ) था , कालान्तर में इसका स्थान सप्तग्राम ने ले लिया । इस समय ‘ टुकल ‘ पौधों के रेशे से बनने वाले वस्त्र को , वरोज भड़ौच में बनने वाले एवं चूनारी मध्यदेश में बनने वाले वस्त्र को कहा गया ।
• गुप्तोत्तर काल में श्रेणी के प्रमुख को ‘ महत्तक ‘ एवं वणिकों की श्रेणी के मुखिया को ‘ श्रेष्ठि ‘ कहा जाता था ।
‘ गुप्तोत्तर काल में बंगाल – मलमल , पान सपाडी एवं सन के लिए , कलिंग अच्छे किस्म के धान के लिए , मालवा गत्रा , नील एवं अफीम हेतु तथा गुजरात सूती कपडे एवं चमड़े द्वारा निर्मित वस्तुओं हेतु प्रसिद्ध था । दक्षिण भारत में प्राप्त ‘ ऐरी पत्ती ‘ किस्म की भूमि से होने वाली आय का प्रयोग सिंचाई के साधनों के विकास के लिए किया जाता था । द्वितीय संगम काल का एकमात्र ग्रंथ है- ‘ तोलकाप्पियम ‘ ।
– • संगम कालीन ग्रंथों में शिलप्पदिकारम , मणिमेखलै एवं जीवक चिन्तामणि को महाकाव्य कहा गया । संगमकालीन श्रेष्ठ संग्रह काव्य ग्रंथ तिरुक्कक्करल जिसे कुरल या मुप्पाल भी कहते हैं , को ‘ तमिल बाइबिल ‘ के नाम से जाना जाता है ।
औवैयार एवं नच्चेलियर संगमकालीन प्रसिद्ध कवियत्रियां थीं । शेन गुट्टवन अथवा लालचेर के समय में कण्णगी या पत्नी पूजा की प्रथा प्रारम्भ हुई । दक्षिणी भू – भाग में सर्वप्रथम गन्ने की खेती को आरंभ करवाने का श्रेय तगडूर के राजा अडिगयमान अथवा नइमान को दिया जाता है ।
● चोल शासक करिकाल का उल्लेख तमिल ग्रंथों में ‘ सात सरो के ज्ञाता ‘ के रूप में मिलता है । चेर . चोल एवं पाण्ड्य राज्यों के राजचिह्न क्रमशः धनुष , बाघ , एवं मछली थे ।
पाण्ड्य शासकों ने रोमन सम्राट ऑगस्टस के दरबार में दूत मण्डल भेजे थे । परिप्लस ऑफ एरीट्रियन सी ग्रंथ से नौरा ( कन्नौर ) तोण्डी ( पोत्रानी ) , मुशिरी , नेल्सिड़ा ( कोट्टयम के निकट ) एवं पुहार ( कावेरीपट्टनम ) बन्दरगाहों के विषय में जानकारी मिलती है ।
संगमकालीन कविताओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण बन्दरगाह के रूप में शालियर एवं बन्दर नामक तटों की गणना की जाती है । पहार ( कावेरीपट्टनम ) , तोण्डी एवं मुशिरी में यवन बस्तियों के अवशेष मिले हैं । मुजिरिस में रोमन सम्राट ऑगस्टस के मंदिर के भग्नाशेष मिले हैं ।
अरिकामेड ( पांडेचेरी ) भारत और रोम के मध्य महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध था । पालर नदी पर वसव समुद्र ( मद्रास ) बन्दरगाह था ।
• उरैयर सूती वस्त्रों का सबसे बड़ा केन्द्र था ।
• संगम काल में छात्रों को पिल्लै एवं शिक्षकों को ‘ कणक्काटार ‘ कहा गया ।
• संगम काल में मरवा गोहरण कर्ता को , पुलैयन रस्सी बनाने वालों को , मलवर डाका डालने वालों को एवं एनियर शिकारी को कहा गया । विरुवाम्पलियर ‘ चेर , चोल एवं पाण्ड्य राज्यों के संगम स्थल के रूप में प्रसिद्ध था ।
संगमकालीन समाज 5 वर्गो- ब्राह्मण , अरसर , बेनिगर , बल्लाल एवं वेल्लानर में विभक्त था । संगमकालीन ग्रंथों में प्रेम विवाह को पंचतिण , एकपक्षीय प्रेम को कैकिणै एवं अनुचित प्रेम को पेरुन्दिणै कहा गया ।
. – संगमकालीन सर्वाधिक प्राचीन एवं प्रचलित देवता मुरुगन था , कालान्तर में इसे सब्रह्मण्यम कहा गया । प्रशासककीय कार्यों में राजा के सहयोग के लिए बनाई गयी परिषद को ‘ पंचवारम ‘ कहा जाता था ।
राजा की सभा को नलर्वे एवं राज्य के सर्वोच्च न्यायालय को ‘ मनरम ‘ कहा जाता था । – चोल सत्ता ( 800 से 1200 ) का संस्थापक विजयालय था , इसने ‘ नरकेसरी ‘ की उपाधि धारण की । -चोल लोग कांची के पल्लव राजवंश के सामन्त थे । अकाममानमा नपुमान
का मा अमिमान नमान भारतीय इतिहास :: C / 291
चौलों की प्रारम्भिक राजधानी उरैयर में थी । राजाराज प्रथम ने श्रीलंका के विजित क्षेत्रों का नाम मामण्डी चोलमण्डलम रखा एवं पोल्लोनरुआ को इसकी राजधानी बनाया ।
गंगा घाटी व बंगाल विजय अभियान के बाद राजेन्द्र प्रथम ने ‘ गंगैकोण्डचोल ‘ की उपाधि धारण करते हुए नवीन राजधानी ‘ गंगकोण्डचोलपरम ‘ की स्थापना की ।
– परान्तक प्रथम ने ‘ मदरैकोण्ड ‘ की उपाधि धारण की । परान्तक द्वितीय pl को ‘ सन्दरचोल ‘ कहा जाता था । PD राजाराज प्रथम ने सर्वप्रथम – सर्वेक्षण करवाया , इसने चोल अभिलेखों को ‘ ऐतिहासिक प्रशरित ‘ के साथ लिखवाने की प्रथा की शुरुआत की ।
नगरम स्थानीय समिति व्यापारिक वर्ग से सम्बंधित थी । सभा की कार्यकारी समिति को वरियम कहा जाता था । .. चोल चालुक्य नरेश कुलोत्तुंग प्रथम ने व्यापारिक दूतमण्डल को चीन भेजा था । चोल काल में धान को विनिमय की इकाई के रूप में प्रयोग किया जाता था ।
● चोल काल में द्रविड़ कला के अन्तर्गत निर्मित मंदिरों की विशेषता उनके पिरामिड आकार वाले शिखर होते थे ।
● चोल मंदिर के प्रवेश द्वारों को ‘ गोपुरम् ‘ कहा जाता था । चोलयुगीन स्थापत्य कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण राजाराज द्वारा निर्मित न राजराजेश्वर मंदिर था ।
तमिल भाषा में ‘ रामायण ‘ की रचना करने वाला कवि कंबन कुलोत्तुंग KT 1 तृतीय का राजकवि था । क चोल शासक कुलोत्तुंग द्वितीय के कारण विशिष्टाद्वैतवाद दर्शन के प्रवर्तक रामानुज को चोल दरबार छोड़ कर होयसलों के मैसूर राज्य में जाना पड़ा ।
चोलों के बाद चोल – चालुक्य वंश ने शासन किया । दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों में कुतुबुद्दीन ऐबक एवं खिजखाँ ने सुल्तान की उपाधि नहीं धारण की थी ।
दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक चार वंशों- मुइज्ती , कुत्बी , शम्शी एवं बलबनी को ‘ आरम्भिक तुर्क सुल्तान ‘ कहा गया । इल्तुतमिश एवं बलबन इल्बारी तुर्क कबीले के थे । एवं इल्तुतमिश ने लाहौर के स्थान पर दिल्ली को सल्तनत की राजधानी बनाया ।
* दिल्ली सल्तनत में अक्ता प्रणाली का प्रारम्भ इल्तुतमिश ने किया । – इल्तुतमिश प्रथम शासक था जिसने शुद्ध अरबी पद्धति पर आधारित नर – इल्तुतमिश ने प्रसिद्ध गुलाम तुर्क अमीरों के संघ ‘ चालीसा ‘ की स्थापना को की ।
• बलबन ने दीवान – ए – अर्ज ( सैन्य विभाग ) की स्थापना की । अलाउद्दीन सल्तनत काल का प्रथम शासक था जिसने भूमि की नाप – जोख करायी और साथ में राज्य की समस्त भूमि को ‘ खालसा टंका एवं जीतल सिक्के चलाये ।
सने भूमि ‘ के अन्तर्गत कर लिया । अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने दक्षिण में विजय की ।
Cr292 :: सामान्य अध्ययन प्रारम्भिक मसा
सल्तनतकालीन शासक मबारक खिलजी ने खलीफा की सत्ता को स्वीकारने से इंकार कर स्वयं को खलीफा घोषित किया । गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था जिसने अपने नाम के साथ गाजी शब्द लगाया ।
• दिल्ली सल्तनत का विस्तार अपने चरमोत्कर्ष पर मुहम्मद बिन तुगलक के समय में था । अलाउद्दीन ने दीवान – ए – मुस्तखराज विभाग की स्थापना की ।
भारत पर तैमर के आक्रमण के समय दिल्ली की गद्दी पर नासिरुद्दीन महमद तुगलक विराजमान था । तुगलकवंशी शासक नसीर – उहीन अहमद के समय दिल्ली सल्तनत का विस्तार दिल्ली से पालम तक ही रह गया था ।
• सैय्यदवंशी खिजखाँ ने तैमूर के पुत्र शाहरुख के राजप्रतिनिधि के रूप में शासन किया । .
लोदी वंश के शासक सिकन्दर लोदी ने सर्वप्रथम राजधानी को दिल्ली से आगरा स्थानान्तरित किया । .
मुहम्मद बिन तुगलक ने ‘ दीवान – ए – अमीरकोही ‘ विभाग की स्थापना की । जलालुद्दीन खिलजी ने ‘ दीवाने वकूफ ‘ की स्थापना की ।
• चारागाह कर एवं भवन कर की शुरुआत अलाउद्दीन खिलजी ने की ।
• इसामी के ग्रंथ ‘ फतह – उस – सलातीन ‘ में सर्वप्रथम चरखे का उल्लेख मिलता है ।
• अल बरुनी की पुस्तक ‘ तहकीकाते हिन्द ‘ अरबी भाषा में लिखी गयी है ।
• सल्तनतकालीन मंत्रिपरिषद् को ‘ मजलिस – ए – खलवत ‘ कहा गया ।
• सम्पत्ति की न्यूनतम मात्रा को ‘ निसाब ‘ कहा जाता था । • सल्तनत काल में सर्वप्रथम सिंचाई कर फिरोज तुगलक ने लगाया ।
• मंगोल सरदारों को दलचा ‘ कहा जाता था । . सिंचाई के लिए सर्वप्रथम नहरें गयासुद्दीन तुगलक ने खुदवाया । • कश्मीर के शासक जैनुल आबदीन को ‘ कश्मीर का अकबर ‘ कहा गया ।
• बीजापुर का शासक इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय को अपने राज्य में हिन्दुओं को संरक्षण देने के कारण ‘ जगदगः ‘ कहा गया ।
• इमारतों में गुम्बद एवं मेहराब का प्रयोग तर्को के रोमवासियों से सीखा ।
• अलंकरण में तुर्को द्वारा जीवित वस्तुओं जैसे मानव एवं पशु आकृतियों का प्रयोग निषिद्ध होने के कारण लिखावट एवं ज्यामितीय आकृतियों का अंकन किया जाता था ।
• भारत में प्रथम पूर्णतः इस्लामी परम्परा के आधार पर निर्मित मस्जिद ‘ जमालखाना मस्जिद ‘ है ।
• अलाउद्दीन द्वारा निर्मित ‘ अलाई दरवाजा ‘ कुब्बत उल इस्लाम मस्जिद का प्रवेश द्वार है ।
• शुद्ध रूप में मेहराब का प्रयोग सर्वप्रथम बलबन के मकबरे में हुआ ।
• तुगलक वास्तुकला की विशेषता थी लिन्टल एवं शहतीर के साथ मेहराब का प्रयोग ।
• लोदियों के समय में मकबरों का निर्माण ऊँचे चबूतरे पर किया जाने लगा । – दक्षिण भारत में चिश्ती परम्परा की शुरुआत शेखबरहानदीन गरीब ने की ।
• आइने – अकबरी में अबुल फजल ने चौदह सूफी सिलसिलों का उल्लेख किया है ।
• विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर एवं बुक्का नाम के दो भाइयों ने की ।
• विजयनगर साम्राज्य में शासन करने वाले महत्वपूर्ण 4 राजवंशों का क्रम इस प्रकार था- संगम , सालुव , तुलुव एवं आरविडु ।
• विजयनगर साम्राज्य में सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाला वंश था ‘ संगमवंश ‘ ।
• विजयनगर एवं बहमनी के मध्य संघर्ष का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण था ‘ रायचूर एवं तुंगभद्रा के दोआब ‘ क्षेत्र पर अधिकार । विद्यारण्य नामक वैष्णव सन्त ने हरिहर एवं बुक्का को पुनः हिन्दू बनाया और साथ ही विजयनगर साम्राज्य की स्थापना में सहयोग किया । बुक्का प्रथम ने एक दूतमण्डल चीन भेजा था । . विजयनगर साम्राज्य ‘ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित था । कृष्णदेव राय ने ‘ अमुक्तमाल्यद ‘ , ‘ जाम्बवतीकल्याण ‘ एवं ‘ उषा परिणय ‘ की रचना की । . कृष्णदेव राय का राजकवि पेड्डाना था । इसके राजदरबार में रहने वाले तेलुगु साहित्य के आठ कवियों को ‘ अष्टदिग्गज ‘ कहा गया ।
• कृष्णदेव राय ने ‘ यवनराज स्थापनाचार्य ‘ ‘ आंध्र भोज ‘ ‘ आन्ध्र पितामह ‘ आदि उपाधि धारण किया । • तालिकोटा के युद्ध को ‘ राक्षसी – तंगडी ‘ एवं बेत्री हट्टी की लड़ाई के नाम से भी जाना जाता है ।
• विजयनगर के विरुद्ध बने मुस्लिम महासंघ के सदस्य थे – बीजापुर , अहमद नगर , गोलकुण्डा एवं बीदर । – विजयनगर के चौथे राजवंश आरविड़ वंश के संस्थापक तिरुमल्ल ने ‘ पेनुकोण्डा ‘ को अपनी राजधानी बनाया । विजयनगर साम्राज्य में जुलाहे को ‘ कैकोल्लार ‘ एवं दस्तकारों को ‘ वीर पांचाल ‘ कहा गया । . नाडु की सभा के सदस्यों को ‘ नात्तवर ‘ कहते थे । मनयम आयंगारों को दी गई कर- मुक्त भूमि को कहते थे ।
• विजयनगर नरेश कृष्णदेव राय ने भूमि का सर्वेक्षण करवाया । . गीली भूमि को ‘ नन्जाई ‘ कहते थे । .नकद लगान को सिद्दम कहा जाता था । भंडारवाद ग्राम वे होते थे जिनकी भूमि राज्य के प्रत्यक्ष नियंत्रण में होती थी ।
‘ उम्बलि ‘ भूमि उस भूमि को कहते थे , जो गाँव में कुछ विशेष सेवाओं के बदले दी जाती थी , यह भूमि लगान मुक्त होती थी ।
‘ कुट्टगि ‘ भूमि कुछ बड़े भूस्वामियों तथा मन्दिरों द्वारा पट्टे पर दी जाती था । वेसबाग मनुष्यों के क्रय – विक्रय को कहते थे । ‘ बोमलाट ‘ छाया नाटक को कहते थे । विजयनगर के शासक शैव एवं वैष्णव धर्म के अनुयायी थे ।
विजयनगर आये विदेशी यात्रियों में अब्दुल रज्जाक राजदूत की हैसियत से आया था । • विजयनगर दरबार के महत्वपूर्ण कवि पेड्डाना को ‘ आन्य कविता का
. पितामाई ‘ कहा गया । मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर को माना जाता है ।
1507 में बाबर ने ‘ पादशाह ‘ की उपाधि धारण की । .पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोदी के विरुद्ध ‘ तुगमा नीति ‘ का प्रयोग किया था । पहली बार तोपों का इस्तेमाल बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध में किया । बाबर ने ‘ तुजुके बाबरी ‘ नाम से तुर्की भाषा में आत्मकथा लिखी ।
• 23 जुलाई , 1555 को हुमायूँ एक बार पुनः दिल्ली के तख्त पर बैठा । हुमायूँ ने सप्ताह के सात दिन में सात रंग के कपड़े पहनने का नियम बनाया ।
चौसा के युद्ध ( 1539 ) को जीतने के बाद शेरखाँ ( अफगान ) शेरशाह की उपाधि धारण कर दिल्ली राजसिंहासन पर आसीन हुआ ।
भूमि की पैमाईश के लिए शेरशाह ने 32 अंक वाले ‘ सिकन्दरी गज ‘ एवं ‘ सन की डंडी ‘ का प्रचलन करवाया । शेरशाह ने सिक्का ढलाई के क्षेत्र में चांदी का रुपया एवं तांबे का दाम जारी करवाया ।
शेरशाह ने दिल्ली के पुराने किले के अन्दर 1542 में , किला- ए- कुहना ‘ मस्जिद का निर्माण करवाया ।
• अकबर का जन्म अमरकोट के राणा वीरसाल के महल में हुआ । अकबर को 9 वर्ष की अवस्था में पहली बार गजनी का सुबेदार बनाया गया ।
• अकबर के अल्पायु होने के कारण 1556-1560 तक मुगल साम्राज्य के शासन की जिम्मेदारी बैरम खाँ के हाथों में रही ।
• 13 वर्ष की कम आयु में अकबर का राज्याभिषेक 14 फरवरी , 1556 को कलानौर में हुआ । . अकबर के समय आदिलशाही हिन्दू प्रधानमंत्री हेमू ने ‘ विक्रमादित्य ‘ की उपाधि धारण की । .बैरम खाँ की एक लोहानी अफगान ने 1560 में छुरा भोक कर हत्या कर दी । अकबर ने 1562 में दास प्रथा , 1563 में तीर्थयात्रा कर , 1564 में जजिया कर को समाप्त किया था । अकबर की प्रथम विजय मालवा ( 1561 ) एवं अन्तिम विजय असीरगढ़ ( 1601 ) की थी । अकबर को अपने सैन्य अभियानों में सर्वाधिक सफलता राजस्थान में मिली ।
• 1573 में अकबर द्वारा गुजरात पर किये गये दूसरे आक्रमण को इतिहासकार स्मिथ ने ‘ ऐतिहासिक दृतगामी आक्रमण ‘ कहा ।
• 1562 से पूर्व के अकबर के शासन को हरम की स्त्रियों के प्रभाव में रहने के कारण कुछ इतिहासकारों ने इस काल को ‘ पर्दाशासन ‘ या . ‘ पेटीकोट सरकार ‘ कहा ।
• गुजरात में 1584 में हुए विद्रोह को सफलतापूर्वक दबाने के कारण अकबर ने अब्दुर्रहीम को ‘ खान – खाना ‘ की उपाधि प्रदान की ।
• युसुफजाहियों के विद्रोह को दबाते हुए 1585 में बीरबल की मृत्यु हो गयी । 2 अकबर ने 1571 में ‘ फतेहपुर सीकरी ‘ को अपनी राजधानी बनाया । 1575 में अकबर ने यहाँ पर ‘ इबादतखाने का निर्माण करवाया ।
भारतीय इतिहास :: C / 293 – 1579 में
अकबर ने ‘ महज़र ‘ नामक दस्तावेज जारी कर ‘ सुल्ताने आदिल ‘ की उपाधि धारण की । -1582 में अकबर ने तौहीद – ए – इलाही या दीन – ए – इलाही की घोषणा की । अबुल फजल ने बादशाह अकबर में आग , हवा , पानी एवं भूमि जैसे चार तत्वों के समावेश की बात कही ।
• अकबर ने सूफी मत में आस्था जताते हुए ‘ चिश्ती सम्प्रदाय ‘ को आश्रय दिया । 1583 में अकबर ने नया कैलेण्डर ‘ इलाही संवत ‘ जारी किया ।
• अकबर की भू- राजस्व व्यवस्था का प्रवर्तक टोडरमल था , जिसे ‘ जाब्ती प्रणाली ‘ का जन्मदाता माना जाता है ।
• अकबर ने अपने शासन काल के चौबीसवें वर्ष ( 1580 ) में आइने दहसाला- पद्धति को लागू किया । अकबर ने भूमि की पैमाइश हेतु 41 अंगुल के ‘ इलाही गज ‘ का प्रचलन करवाया । .अकबर की ‘ आईने दहसाला प्रणाली’को टोडरमल बन्दोबस्त भी कहा गया ।
• मुगल काल में कृषकों को ‘ खुदकाश्त ‘ , ‘ पाहीकाश्त ‘ एवं ‘ मुजारियान ‘ में बांटा गया था । • अकबर जहांगीर को ‘ शेखोबाबा ‘ के नाम से पुकारता था ।
• जहाँगीर ने 1602 में वीरसिंह देव द्वारा अबुल फजल की हत्या करवा दी ।
• जहाँगीर ने सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव को फाँसी की सजा दी थी ।
• नूरजहाँ गुट के प्रमुख सदस्य थे- अस्मत बेगम ( नूरजहाँ की माँ ) एत्मादुद्दौला हा ( नूरजहाँ के पिता ) , आसफ खाँ ( नूरजहाँ का भाई ) आदि ।
जहाँगीर के शासनकाल की महत्वपूर्ण उपलब्धि उसकी मेवाड विजय थी । .टामस रो जहाँगीर के समय में भारत आया ।
खुर्रम द्वारा दक्षिण भारत के सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण सफलता अर्जित करने के कारण खुश होकर जहाँगीर ने 1617 में उसको ‘ शाहजहाँ ‘ की उपाधि प्रदान की ।
• शाहजहाँ के शासनकाल का वर्णन बर्नियर , मनूची एवं टेवर्नियर ने L औरंगजेब को ‘ जिंदापीर ‘ के नाम से भी जाना जाता था ।
• औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना , नौरोज त्यौहार , भांग की खेती , गाने बजाने आदि पर प्रतिबंध लगाया था ।
• औरंगजेब ने अपने शासन काल के ग्यारहवं वर्ष में ‘ झरोखा दर्शन ‘ एवं बारहवें वर्ष में ‘ तलादीन ‘ जैसी प्रथा को प्रतिबन्धित कर दिया , इन्होंने 1679 में पुनः ‘ जजिया कर ‘ लगाया , 1669 में औरंगजेब ने हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया ।
• औरंगजेब ने सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर का इस्लाम धर्म न स्वीकार करने के कारण कत्ल करवा दिया । औरंगजेब ने ‘ मुहतसिब ‘ ( सार्वजनिक सदाचार निरीक्षक ) नाम के अधिकारी की नियुक्ति की । • मुगल काल में भूमि का वर्गीकरण पोलज , परती , छच्छर एवं बंजर भूमि में किया गया था । 7 7
C / 294 :: सामान्य अध्ययन प्रारम्भिक C
– मुगल काल में सोने की मुहर , चाँदी का रुपया एवं ताँबे का दाम प्रचलन में थे ।
‘ इलाही ‘ सोने का सर्वाधिक प्रचलित सिक्का एवं ‘ शंसब ‘ सोने का सबसे बड़ा सिक्का होता था । . अकबर ने चौकोर आकार के जलाली ‘ सिक्के वलवाये । .
शाहजहाँ ने ‘ आना ‘ सिक्के का प्रचलन करवाया । .
कोवाड मुगलकाल में दक्षिण भारत में प्रचलित नाप की एक इकाई थी जिससे सूती एवं ऊनी वस्त्रों को मापा जाता था ।
• मुगलकालीन सैन्य संगठन मनसबदारी व्यवस्था पर आधारित था ।
अकबर के शासनकाल के ग्यारहवें वर्ष ( 1567 ) में पहली बार मनसब प्रदान किये जाने का उल्लेख मिलता है ।
– अबुल फजल के अनुसार अकबर ने अपने शासनकाल के अठारहवें वर्ष में दाग प्रथा का प्रचलन करवाया । मनसबदारी प्रथा के अन्तर्गत मराठे सर्वप्रथम जहाँगीर के समय में शामिल किये गये ।
• सर्वाधिक हिन्दू मनसबदार औरंगजेब के समय में थे ।
• मुगलकालीन सेना को ‘ एक भारी चलायमान शहर ‘ की उपमा दी जाती धी ।
• मनसबदारी व्यवस्था में दु- अस्पा एवं सिंह- अस्पा प्रथा की शुरुआत जहाँगीर ने की । .
औरंगजेब ने मनसबदारी व्यवस्था में एक नयी प्रथा ‘ मशरुत ‘ की शुरुआत की ।
• पुगलकालीन स्थापत्य कला के क्षेत्र में पहली बार ‘ आकार ‘ एवं डिजाइन की विविधता का प्रयोग किया गया ।
संगमरमर के पत्थर पर जवाहरात से की गयी जड़ावट , जिसे पित्रा दुरा ( Pitra Dura ) के नाम से जाना जाता है , का प्रथम प्रयोग एत्माद्दौला के मकबरे में किया गया ।
सिकंदराबाद में बने अकबर के मकबरे में हिन्दु , बौद्ध , तैमूरी एवं फारसी शैली का अनोखा संगम देखने को मिलता है ।
. अकबर द्वारा निर्मित अजमेर का किला सर्वाधिक दुर्गीकृत किला है ।
.शाहजहाँ के शासनकाल को ‘ स्थापत्य कला का स्वर्णकाल ‘ कहा जाता है ।
– अकबर के समय में पहली बार भित्ति चित्रकारी की शुरुआत हुई ,
बसावन अकबर के समय का प्रमुख चित्रकार था ।
• जहाँगीर के समय में चित्रकारी अपने चरमोत्कर्ष पर थी , मनोहर इस समय का प्रसिद्ध चित्रकार था ।
अकबर के समय में संगीत के क्षेत्र में गायन की ‘ ध्रुपद शैली ‘ एवं वाद्य यंत्र वीना या वीणा का प्रचार हुआ ।
सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन को अकबर ने ‘ कण्ठाभरणवाणी ‘ की उपाधि प्रदान की ।
• औरंगजेब ने संगीत पर प्रतिबन्ध लगाया , फिर भी इसके समय में . ‘ भारतीय शास्त्रीय संगीत ‘ पर सर्वाधिक पुस्तकें छापी गयीं । .
मुहम्मद शाह पहला मुगल शासक था जिसने उर्दू भाषा के विकास के लिए कार्य किया । उर्दू का रख्ता ‘ भी कहा गया ।
• मुगल काल को गुप्तकाल के बाद का ‘ द्वितीय क्लासिकी युग ‘ कहा जाता है । . . • . .
‘ शिवाजी के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव माँ जीजाबाई एवं गुरु तथा संरक्षक कोणदेव का पड़ा । शिवाजी ने मावल प्रदेश को अपने जीवन की प्रारम्भिक कार्यस्थली बनाया ।
1666 में औरंगजेब ने शिवाजी को कैद कर जयपर भवन में रखा था । .
शिवाजी ने 14 जून , 1674 को गंगाभट्ट द्वारा ‘ छत्रपति ‘ एवं हैंदव धर्मोद्धारक उपाधियों के साथ अपना राज्याभिषेक करवाया था ।
• शिवाजी के पुत्र राजाराम की विधवा ताराबाई मराठाकुल की सर्वाधिक योग्य एवं बहादुर महिला थी ।
.शिवाजी के आठ मंत्रियों की परिषद् को ‘ अष्टप्रधान ‘ कहा जाता था , जिसका प्रधान होता था ‘ पेशवा ‘ । दानाध्यक्ष एवं न्यायाधीश के अतिरिक्त अष्टप्रधान के अन्य मंत्रियों को सैन्य कार्यवाही में भाग लेना होता था ।
• शिवाजी की नियमित सेना को पागा कहा जाता था ।
• शिवाजी ने रस्सी द्वारा माप की व्यवस्था के स्थान पर ‘ काठी ‘ एवं ‘ मानक छडी ‘ का प्रयोग प्रारम्भ करवाया ।
• शिवाजी के समय में मुगल क्षेत्रों से ‘ सरदेशमुखी ‘ एवं ‘ चौथ ‘ वसूला जाता था ।
. शिवाजी की कर व्यवस्था कुछ – कुछ मलिक अम्बर की ‘ कर व्यवस्था ‘ पर आधारित थी ।
.शिवाजी के समय में जमीन पर वंशागत अधिकार रखने वाले व्यक्ति को ‘ मिराजदार ‘ कहा जाता था ।
• शम्भाजी ने औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर को शरण दी थी ।
• शाहू ने 1713 में बालाजी विश्वनाथ को अपना पेशवा बनाया ।
शाहू के द्वितीय पेशवा बाजीराव प्रथम ने हिन्दु जाति की कीर्ति को विस्तृत करने का बीड़ा उठाया । इसने ‘ हिन्दू पद पादशाही ‘ के आदर्श को प्रतिपादित किया । .
बाजीराब प्रथम पेशवाओं में सर्वाधिक योग्य पेशवा था ।
बाजीराव ने 1739 में पुर्तगालियों से सालसेट और बसीन को छीना । बाजीराव ने मार्च , 1737 में दिल्ली पर धावा बोल कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया ।
.शिवाजी के बाद गरिल्ला युद्ध का सबसे बडा संचालक बाजीराव प्रथम था ।
• बाजीराव प्रथम को मराठा राज्य का द्वितीय संस्थापक भी माना जाता . शाहू का तीसरा पेशवा बालाजी बाजीराव संगोला की संधि द्वारा राजा का सर्वोच्च अधिकार सम्पन्न पेशवा बन गया ।
.14 जनवरी , 1761 को हुए पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठा सेना का प्रधान सेनापति विश्वास राव था 1771 में शाह आलम को दिल्ली की गद्दी पर अपने संरक्षण में पुनः बैठाने का कार्य माधवराव की राजनैतिक सफलता की पराकाष्ठा है ।
• बाजीराव द्वितीय मराठा राज्य का अंतिम पेशवा था , इसकी अकुशलता एवं अयोग्यता के कारण ही मराठा शक्ति का पतन हुआ 1
चिनकिलिच खौँ अथवा निजामुल मुल्क ने 1724 में दक्कन में स्वतन्त्र हैदराबाद राज्य की स्थापना की । • स्वतन्त्र अवध राज्य की स्थापना सआदत खाँ बुरहान उल – मुल्क ने 1723 में की ।
• स्वतन्त्र बंगाल राज्य की स्थापना मुर्शिद कुली खाँ तथा अलीवर्दी खाँ ने की ।
• स्वतन्त्र मैसर राज्य की स्थापना हैदर अली ने 1761 में की ।
• रुहेलखण्ड का स्वतन्त्र संस्थापक वीर दाऊद एवं वंगश ( फर्रुखाबाद ) का स्वतन्त्र संस्थापक मुहम्मद खाँ वंगश को माना जाता है ।
• औरंगजेब की मृत्यु के बाद जाट नेता बदन सिंह ने स्वतन्त्र भरतपुर राज्य की स्थापना की ।
• जाट नेता सूरजमल को उसकी योग्यता के कारण ‘ जाटों का अफलातून ‘ या ‘ जाट जाति का प्लूटो ‘ कहा गया ।
• मुगल सम्राट बहादुरशाह प्रथम ( मुअज्जम ) को ‘ शाहे बेखबर ‘ के नाम से भी जाना जाता था ।
बहादुर शाह प्रथम के बारे में सिडनी ओवन का कहना है ‘ यह अन्तिम मुगल सम्राट था , जिसके विषय में कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते हैं । ‘
• मुगल शासक जहाँदार शाह को ‘ लम्पट मूर्ख ‘ की संज्ञा दी गयी थी ।
• सम्राट फर्रुखशियर को ‘ घृणित कायर ‘ कहा जाता था ।
‘ मुहम्मद शाह को ‘ रंगीलाशाह ‘ की उपाधि मिली थी , मुहम्मद शाह के समय में ही दिल्ली पर नादिरशाह एवं अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण हुआ था ।
.1713 से 1720 तक मुगल प्रशासन में सैय्यद बंधुओं ( अब्दुल्ला खाँ एवं हुसैन अली ) का दबदबा बना रहा , इन्हें ‘ नृप निर्माता ‘ की उपाधि मिली थी ।
फर्रुखशियर ने सिख नेता बन्दा बहादर की हत्या करवा दी , इसकी मृत्यु के बाद 1717 में हिन्दुओं पर से जजिया कर को हटा लिया गया ।
शाह आलम द्वितीय के समय में ( 1803 ) अंग्रेजों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया । इसी के समय में 1764 में बक्सर का युद्ध हुआ ।
• बहादुर शाह जफर अंतिम मुगल शासक था ।
• 17 मई , 1498 को पुर्तगाली अन्वेषक वास्को डि गामा कालीकट बन्दरगाह पर उतरा ।
• फ्रांसिस्को डी अल्मेडा भारत में नियुक्त प्रथम पुर्तगाली गवर्नर था । भारत में पुर्तगाली सत्ता का वास्तविक संस्थापक अल्बुकर्क को माना जाता है , वह 1503 में एक छोटी जहाज के नायक के रूप में भारत आया था ।
• अल्बुकर्क ने 1510 में गोवा को बीजापुर के सुल्तान से छीन लिया जिसे ‘ ऐस्तादो डि इण्डिया ‘ या गोवा के नाम से जाना गया । .
अल्बुकर्क ने ‘ कैसाडोस ‘ लोगों को भारत में पुर्तगालियों की आबादी बढ़ाने के लिए भारतीय स्त्रियों से विवाह के लिए प्रोत्साहित किया ! .
फ्रांसिस्को डी अल्मेडा ‘ नीलापानी ‘ नीति के लिए प्रसिद्ध था ।
• 16 वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने सुरक्षित व्यापार के लिए ‘ काफिला प्रणाली ‘ की शुरुआत की ।
• पुर्तगाली दूत अन्तानियो कैनाल अकबर के समय में भारत आया ।
। न भारतीय इतिहास :: C / 295
• हालैण्ड की डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1602 में की गयी ।
• अंग्रेजों ने डचों को 1757 तक भारतीय व्यापार से बेदखल किया था ।
• अंग्रेजी ‘ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ की स्थापना 1602 में की गयी ।
• अंग्रेजों ने पहली व्यापारिक फैक्टरी 1608 में सूरत में खोली ।
अंग्रेजों की ‘ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ को सिक्का डालने का अधिकार पहली बार 1617 में मिला ।
1632 में गोलकुण्डा के सुल्तान द्वारा कम्पनी के लिए जारी किये गये फरमान को ‘ सुनहरा फरमान ‘ कहा गया । .
1639 में मद्रास में की गयी किलेबन्दी को ‘ फोर्ट सेण्ट जार्ज ‘ नाम दिया गया ।
• दक्षिण में अंग्रेजों ने पहली व्यापारिक कोठी की स्थापना 1611 में मसुलीपट्टम में की ।
ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स द्वितीय द्वारा 1668 में बम्बई को दस पौण्ड वार्षिक किराये पर कम्पनी को दे दिया गया ।
1690 में जाब चार्नाक ने आधुनिक कलकत्ता की नींव डाली ।
.1698 में अंग्रेजों ने सुतानटी , कालीकट एवं गोविन्दपुर की जमींदारी 1200 रु ० में प्राप्त कर ‘ फोर्ट विलियम ‘ की स्थापना की । इसके पहले अध्यक्ष ‘ सर चार्ल्स आयर ‘ थे ।
• ‘ फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ की स्थापना 1664 में हुई । फ्रैंको कैरो ने सूरत में 1668 में पहली फ्रेंच फैक्टरी खोली । .
फ्रांसीसियों ने शाइस्ता खाँ द्वारा प्राप्त चन्दरनगर के कारखाने की स्थापना की ।
• रीसवीक संधि द्वारा फ्रांसीसियों को 1697 में पुनः पाण्डिचेरी पर । अधिकार प्राप्त हुआ । .
पाण्डिचेरी फ्रांसीसियों का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था ।
. डेनिशकम्पनी ( डेनमार्क ) की स्थापना भारत में 1661 में हुई ।
1845 में डेनिश कम्पनी को ब्रिटेन ने खरीद लिया । .
मुगल सम्राट फर्रुखशियर द्वारा अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी को जारी किये गये फरमान को ‘ कम्पनी का मैग्नाकार्टा ‘ कहा जाता है ।
रेड डेगन भारत में आने वाला पहला ब्रिटिश जलपोत था ।
• सिराजुद्दौला के बंगाल के नवाब बनने पर पूर्णिया के शौकतजंग एवं ढाका की घसीटी बेगम ने इसका विरोध किया । कम्पनी द्वारा व्यापार के क्षेत्र में की जा रही मनमानी से त्रस्त आकर सिराजुद्दौला ने 20 जून , 1756 को कलकत्ता को अंग्रेजों से छीन लिया ।
• 20 जून , 1756 की रात्रि में चर्चित ‘ काल कोठरी ‘ या ‘ ब्लैकहोल ‘ की घटना घटी । 2 जनवरी , 1757 को क्लाइव ने दोबारा कलकत्ता पर अधिकार कर लिया । 23 जून , 1757 को मुर्शिदाबाद के समीप प्लासी नामक स्थान पर कम्पनी और बंगाल के नवाब के मध्य प्लासी का युद्ध हुआ ।
1758 में क्लाइव को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया । – क्लाइव ने बंगाल में द्वैध शासन की शुरुआत की , इसके समय में अंग्रेजी सैनिकों ने भत्ते को लेकर विद्रोह कर दिया , जिसे ‘ श्वेत विद्रोह ‘ कहा गया ।
40279 1१०५
• बंगाल के नवाब मीरकासिम ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानान्तरित किया । मीरजाफर ( बंगाल के नवाब ) को कर्नल क्लाइव का गीदड़ कहा जाता था ।
.22 अक्टूबर , 1764 को मुगल सम्राट शाह आलम अवध के नवाब शुजाउद्दौला एवं मीरकासिम की सम्मिलित सेना का मुकाबला अंग्रेजी सेना से बक्सर में हुआ । विजयी अंग्रेजी सेना का नेतृत्व हेक्टर मनरो ने किया था ।
.12 अगस्त , 1765 को सम्पन्न इलाहाबाद की संधि के द्वारा कम्पनी को बंगाल , बिहार एवं उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई । .
के ० एम ० पत्रिकर ने बंगाल में क्लाइव के शासनकाल को ‘ लुटेरा राज ‘ की संज्ञा दी ।
• पिण्डारियों का उन्मूलन वारेन हेस्टिंग्स ने किया । भारत में आधुनिक स्वशासन की शुरुआत लार्ड रिपन ने किया । लार्ड कर्जन ने भारत के प्राचीन स्मारकों के पुनरुद्धार और संरक्षण में विशेष रूप से रुचि दिखाई । .लार्ड वेलेजली की ‘ सहायक सन्धि ‘ के तहत अंग्रेजों के साथ सबसे पहले संधि हैदराबाद के निजाम ने किया ।
• विवादास्पद व्यपगत नीति ( डाक्ट्रिन ऑफ लैप्स ) के प्रतिपादक लार्ड डलहौजी थे । . कर्नल स्लीमैन ने विलियम बैंटिक के शासनकाल में ठगी प्रथा का उन्मूलन किया । ब्रिटिश संसद द्वारा वारेन हेस्टिंग्स पर महाभियोग चलाया गया था । .बंगाल में द्वैष शासन व्यवस्था को क्लाइव ने शुरू किया और इसे वारेन हेस्टिग्स ने समाप्त किया । 91760 के बांडीवाश के युद्ध में अंग्रेजो के हाथों पराजित होकर भारत में फ्रांसीसी शक्ति का अन्त हुआ । ,
अंग्रेजों और मराठों के बीच एवं अंग्रेजों और मैसूर के बीच चार – चार युद्ध हुए ।
• विवादास्पद इलबर्ट विधेयक का सम्बन्ध फौजदारी दण्ड विधान से है ।
• 1857 के विद्रोह का महत्वपूर्ण कारण आर्थिक शोषण था ।
• 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण था ‘ चर्बी लगे कारतूसों ‘ का प्रयोग । ये कारतूस एनफील्ड राइफल में प्रयोग किये जाते थे ।
29 मार्च 1857 को अकेले ही विद्रोह करने वाला मंगल पाण्डे 34 वीं नेटिव इन्फैन्ट्री का जवान था । 10 मई , 1857 दिन इतवार समय 5 से 6 बजे के बीच मेरठ की 20 एन ० आई ० पैदल सैनिक टुकड़ी ने विद्रोह की शुरुआत की ।
• 11 मई को मेरठ के विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली पर अधिकार कर मुगल बादशाह शाह आलम को सम्राट घोषित किया ।
• उत्तर प्रदेश में विद्रोह के प्रमुख केन्द्र झांसी , मेरठ , लखनऊ , कानपुर , बरेली , अलीगढ़ , आगरा एवं मथुरा थे । बिहार में जगदीशपुर , राजस्थान में कोटा एवं आवा विद्रोह के मुख्य केन्द्र थे ।
• विद्रोह के मुख्य नेता नाना साहब , रानी लक्ष्मी बाई , तात्या टोपे , कुँवर सिंह , वख्त खान , बेंगम हजरत महल , खान बहादुर खान आदि थे ।
• विद्रोड़ को कुचलने वाले महत्वपूर्ण अंग्रेज कमाण्डर थे- कॉलिन कैंपबेल , यूरोज , कर्नल नील , हेवलाक , जॉन निकल्सन , विलियम टेलर , विन्सेंट आयर आदि । .
1857 के विद्रोह के समय भारत के गवर्नर – जनरल लार्ड कैनिंग थे ।
वीर सावरकर ने 1857 के विद्रोह को राष्ट्रीय संग्राम कहा । .
लारेन्स ने 1857 के विद्रोह को ‘ सैनिक विद्रोह ‘ कहा ।
.टी ० आर ० होम्स ने इस विद्रोह को ‘ बर्बरता तथा सभ्यता के मध्य युद्ध ‘ कहा ।
.1857 के विद्रोह के बाद कम्पनी का शासन समाप्त हो गया । –
इलाहाबाद में आयोजित एक दरबार में लार्ड कैनिंग ने क्राउन के घोषणा पत्र को पढ़कर सुनाया । इस घोषणा पत्र को कुछ इतिहासकारों ने ‘ भारतीय स्वतन्त्रता का मैग्नाकार्टा ‘ की संज्ञा दी ।
.1770 में बंगाल में हुआ संन्यासी विद्रोह नागरिक विद्रोहों में सबसे था , इस विद्रोह में शामिल सन्यासी शंकराचार्य के समर्थक थे ।
• बंकिम चन्द्र चटर्जी के उपन्यास आनन्दमठ में संन्यासी विद्रोह का उल्लेख मिलता है ।
त्रावणकोर राज्य के दीवान वेला टम्पी ने 1805 में विद्रोह किया ।
• 1855-56 में हुए संथाल विद्रोह का नेतृत्व सिद्ध एवं कान्हू ने किया । .1822 में हुए रामोसी विद्रोह का नेतृत्व ‘ चित्तर सिंह ‘ ने किया । .
असम मे 1833 में हुए ‘ खासी विद्रोह ‘ का नेतृत्व तीरत सिंह ने किया । .
असम में 1828 में हुए ‘ अहोम विद्रोह ‘ का नेतृत्व ‘ गोमधर कुँवर ‘ ने किया ।
• बिहार में 1874 में हुए मुंडा विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुण्डा ने किया । 01879-80 में आन्ध्र के तटीय क्षेत्रों में रहने वाली रम्पा जाति के लोगों ने जमींदारों के नये जंगल कानून के विरुद्ध विद्रोह किया ।
• पंजाब के ‘ कूका आन्दोलन ‘ के संस्थापक भगत जवाहरमल थे , इन्हें ‘ सैन साहब ‘ के नाम से भी जाना जाता था । .
सैय्यद अहमद के नेतृत्व में ‘ वहाबी आन्दोलन ‘ ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष गम्भीर चुनौती उत्पत्र की ।
• किसान आन्दोलनों में 1859-60 का नील आन्दोलन , जिसकी चपेट में बंगाल और बिहार के क्षेत्र शामिल थे , तत्कालीन बड़े किसान आन्दोलनों में से एक था ।
• निलहों के शोषण के बारे में दीनबंधु मित्र के नाटक ‘ नील दर्पण ‘ में जानकारी मिलती है ।
1875 में ‘ कुन्बी ‘ किसानों का विद्रोह हुआ । .
मालाबार के मोपला किसानों ने 1836 से 1854 के बीच 22 बार विद्रोह किया । बंगाल में 1776-77 में हुए ‘ फकीर आन्दोलन ‘ का नेतृत्व मजनूशाह ने किया ।
• महाराष्ट्र , बिहार एवं मध्य प्रांत के आदिवासी किसानों द्वारा जंगल नियम के विरुद्ध चलाये गये सत्याग्रह को ‘ जंगल सत्याग्रह ‘ के नाम से जाना जाता है ।
• फरवरी 1918 में ‘ उत्तर प्रदेश किसान सभा ‘ का गठन मदन मोहन मालवीय , गौरीशंकर मिश्र एवं इन्द्र नारायण द्विवेदी के प्रयासों से हुआ ।
• अक्टूबर 1920 में प्रतापगढ़ में ‘ अवध किसान सभा ‘ का गठन किया गया । रामचन्द्र
. . . उत्तर प्रदेश के जिलो हरदोई , बहराइच एवं सीतापुर में ‘ एका आन्दोलन ‘ चलाया गया ।
पहली बार किसान आन्दोलन में भाग लेने के कारण जवाहर लाल नेहरू 1921 में जेल गये ।
करमशाह के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध उत्तरी बंगाल में 1840 से 1850 तक पागलपंथी विद्रोह चलाया गया ।
‘ दादमियाँ के नेतृत्व में फरीदपुर ( बंगाल ) में अंग्रेजों के खिलाफ फरायजी विद्रोह चलाया गया ।
1793 में लार्ड कार्नवालिस ने ‘ स्थायी बन्दोबस्त ‘ व्यवस्था को बंगाल और बिहार में लागू किया ।
स्थायी बन्दोबस्त की योजना जॉन शोर द्वारा बनायी गयी थी ।
1792 में पहली बार रैय्यतवाडी व्यवस्था कर्नल रीड के प्रयत्नों से बारामहाल जिले में लागू की गयी ।
1822 में अंग्रेजों ने गंगा के मैदान , उत्तर – पश्चिम प्रांतों , मध्य भारत के कुछ भागों और पंजाब में महालवाडी व्यवस्था को लागू किया ।
• अंग्रेजों ने रैय्यतवाड़ी व्यवस्था को मद्रास एवं बम्बई प्रेसीडेंसी में लागू किया ।
मार्टिन बर्ड को उत्तर भारत की भूमि कर व्यवस्था का प्रवर्तक माना जाता है ।
कृषि का व्यवसायीकरण सर्वप्रथम बंगाल में किया गया जिसमें सर्वाधिक वाणिज्यीकरण चाय एवं काफी का हुआ ।
भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद मुख्यतः तीन भागों ( क ) व्यापारिक पूँजी का साम्राज्यवाद ( 1756-1812 ) , ( ख ) मुक्त व्यापार पूँजी का साम्राज्यवाद ( 1813-1857 ) एवं ( ग ) वित्त पूँजी का साम्राज्यवाद ( 1858-1947 ) में विभाजित था ।
1756-1812 के काल को निवेश द्वारा भारत से धन के निष्कासन का काल माना जाता है ।
‘ दादनी प्रथा ‘ के अन्तर्गत रुपया पेशगी में किसानों को दिया जाता था ।
गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने ‘ दस्तक प्रणाली ‘ को समाप्त किया ।
• धन निष्कासन का सिद्धान्त दादाभाई नौरोजी ने प्रस्तुत किया
1813 के चार्टर एक्ट द्वारा चाय और चीन के साथ व्यापार को छोड़कर शेष सभी व्यापारिक अधिकारों से कम्पनी को वंचित किया गया ।
.1833 के चार्टर एक्ट द्वारा कम्पनी के सभी व्यापारिक अधिकार वापस ले लिये गये ।
• भारतीय दस्तकारी के पतन का मुख्य कारण मशीनी उत्पादों से भयंकर प्रतिद्वंद्विता थी । .
भारत में प्रथम विद्युत टेलीग्राफ लाइन कलकत्ता से आगरा के मध्य , प्रथम एयरमेल सेवा इलाहाबाद से नैनी तक तथा प्रथम डाक सेवा कलकत्ता एवं मर्शिदाबाद के मध्य शुरू की गयी ।
ब्रिटिश सरकार ने भारत में रेलवे में सर्वाधिक पूँजी निवेश किया । – प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप देशी उद्योगों को लाभ हुआ ।
• मदन मोहन मालवीय को 1916 में स्थापित भारतीय औद्योगिक आयोग का सदस्य चुना गया । . कारखाना अधिनियम 1891 में एक दिन के साप्ताहिक अवकाश
भारताय इतिहास :: C / 297
कारखाना अधिनियम 1881 में बाल श्रमिकों के कल्याण की व्यवस्था की गयी ।
. प्रथम विश्व युद्ध के समय पहली बार भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के लक्षण दिखे ।
• 1929-33 की महान मंदी का सर्वाधिक बुरा प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ा । .
वायसराय लार्ड कर्जन के समय में भारत ने ‘ गोल्ड स्टैण्डर्ड ‘ को अपनाया । .
भारत में विल्सन के सहयोग से 1859 में सर्वप्रथम कागजी महा की शुरुआत हुई ।
● भारत में प्रथम नियमित जनगणना की शुरुआत 1881 में वायसराय लार्ड रिपन ने करवाया ।
• बाल गंगाधर तिलक को बन्दी बनाये जाने के विरोध में 1908 में बम्बई में पहली बार राजनीतिक हड़ताल हुई , जिसकी प्रशंसा लेनिन ने की । .
बम्बई में 1920 में ‘ आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस ‘ A.LTU.C. ) की स्थापना हुई ।
अक्टूबर 1920 में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रथम सम्मेलन की अध्य लाला लाजपत राय ने की । .
एम ० एन ० जोशी ने 1929 में इण्डियन ट्रेड यूनियन फेडरेशन ( I.TU.F. ) की स्थापना की ।
.1921 में एम ० एन ० राय ने ‘ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की ।
.1928 में श्रीपाद अमृत डांगे एवं बेन ब्रेडले के सहयोग से स्थापित ‘ लाल बावटा गिरनी कामगार युनियन ‘ पहला क्रान्तिकारी व्यापारिक संघ था । .
1941 में ‘ इण्डियन लेबर फेडरेशन ‘ की स्थापना ।
.1918 में गांधीजी ने ‘ अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन ‘ की स्थापना की ।
कम्पनी की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश संसद ने 1773 में रेग्युलेटिंग एक्ट पारित किया । .
रेग्यूलेटिंग एक्ट के तहत ही भारत में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गयी ।
1784 में पिट्स इण्डिया एक्ट , 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट की खामियों को दूर करने के लिए पारित किया गया ।
.1813 के चार्टर एक्ट से कम्पनी का भारतीय व्यापार पर से एकाधिकार समाप्त हो गया । इसी एक्ट में सर्वप्रथम भारतीयों की शिक्षा तथा साहित्य के प्रोत्साहन के लिए 1 लाख रु ० वार्षिक खर्च करने की व्यवस्था की गयी थी ।
1833 के चार्टर एक्ट के बाद कम्पनी शुद्ध प्रशासनिक संस्था रह गयी , अब बंगाल का गवर्नर जनरल भारत का गवर्नर जनरल बन गया ।
1861 के भारतीय परिषद् अधिनियम द्वारा सर्वप्रथम भारत सरकार की मंत्रिमण्डलीय व्यवस्था की नींव रखी गयी । पहली बार विभागीय प्रणाली की शुरुआत इसी एक्ट से की गयी ।
C / 298 :: सामान्य अध्ययन प्रारम्भिक जगद
.1858 के अधिनियम के द्वारा कम्पनी से सारे अधिकार ब्रिटिश काउन के अधीन हो गये । . इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर – जनरल का पद वायसराय में परिवर्तित हो गया । . भारत का शासन क्राउन की ओर से देखने के लिए ब्रिटेन में एक ‘ भारत राज्य सचिव ‘ पद की व्यवस्था की गयी ।
1892 के अधिनियम के अन्तर्गत सर्वप्रथम भारतीय सदस्यों को वार्षिक बजट पर बहस करने व उससे सम्बन्धित प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया , पर सदस्यों को मतदान का अधिकार नहीं प्रदान किया गया । .
1909 के मिण्टो- माले सुधार में सर्वप्रथम मसलमानों के लिए पृथकू निर्वाचन क्षेत्र की सुविधा उपलब्ध करायी गयी ।
1919 के माण्टेग्यू- चेम्सफोर्ड सुधार के अन्तर्गत केन्द्र में द्विसदनात्मक व्यवस्था एवं प्रान्तों में द्वैध शासन की व्यवस्था की गयी ।
1919 के सुधारों में ही साम्प्रदायिक निर्वाचन मण्डल को विस्तृत कर सिक्खो , यूरोपीय भारतीय ईसाई , ग्लो – इण्डियन को भी इसमें शामिल कर लिया गया ।
1935 के भारत सरकार अधिनियम के तहत केन्द्र में वैध शासन की व्यवस्था की गयी ।
1935 के अधिनियम में ही प्रान्तों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करने का प्रयास किया गया ।
जवाहर लाल नेहरू ने इस अधिनियम ( 1935 ) को ‘ अनेक ब्रेको बाली , परन्त इन्जन रहित मशीन ‘ की संज्ञा दी ।
.1935 के अधिनियम के तहत ही भारतीय रिजर्व बैंक एवं केन्द्र में एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी ।
• गवर्नर – जनरल की परिषद् के पहले विधि सदस्य मैकाले थे ।
विलियम बैंटिक भारत के प्रथम एवं बंगाल के अन्तिम गवर्नर – जनरल लार्ड कैनिंग भारत के अन्तिम गवर्नर – जनरल तथा प्रथम वायसराय थे ।
भारत के अन्तिम वायसराय एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबेटन थे । .
स्वतन्त्र भारत के पहले एवं अन्तिम भारतीय गवर्नर – जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी थे ।
ग्राण्ट को आधुनिक शिक्षा का जन्मदाता माना जाता है ।
राजा राममोहन राय को आधुनिक शिक्षा का अग्रदूत माना जाता है ।
1837 के बाद सरकारी कार्यों में फारसी के स्थान पर अंग्रेजी का प्रयोग किया जाने लगा ।
• 1854 के शिक्षा के ‘ वड डिस्पैच ‘ को भारतीय शिक्षा का महाधिकार पत्र ( Magna Carta ) कहा जाता है । ..
साइमन कमीशन ने शिक्षा के क्षेत्र में हुए विकास की समीक्षा के लिए हार्टोग समिति की स्थापना की ।
प्रौढ शिक्षा के विकास पर विचार हेतु लिंडसे आयोग स्थापित किया गया ।
• 1919 में विश्वविद्यालयों का संचालन प्रान्तीय सरकारों को सौंप दिया गया ।
1937 में गाँधीजी के नेतृत्व में ‘ अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया ।
शिक्षा के क्षेत्र में ‘ अधोमुखी निस्पंदन सिद्धान्त ‘ ( Filtration Theory ) चार्ल्सवड द्वारा लागू किया गया । भारत में सर्वप्रथम ‘ मुद्रणालय ‘ लाने का श्रेय पुर्तगालियों को है ।
.1557 में गोवा के पादरियों ने भारत में पहली पुस्तक छापी ।
• जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 में भारत में ‘ बंगाल गजट ‘ नाम से पहला समाचार पत्र प्रकाशित किया ।
• जेम्स हिक्की तथा बकिंघम ने पत्रकारिता की प्रारम्भिक अवस्था में ही तटस्थ तथा आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाकर पत्रकारिता के उच्च आदर्श को स्थापित किया । .
किसी भारतीय द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित प्रथम समाचार – पत्र ‘ बंगाल गजट ‘ था । जिसे 1816 में गंगाधर भट्टाचार्य ने प्रकाशित किया ।
राजा राममोहन राय को भारत में राष्ट्रीय प्रेस का संस्थापक माना जाता है ।
स्टेटसमैन अंग्रेजों द्वारा प्रकाशित ऐसा प्रथम समाचार पत्र था जो अपने उदार विचारों के लिए प्रसिद्ध था ।
1878 में लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम से बचने के लिए अमृत बाजार पत्रिका ने रात भर में अपने को बंगाली साप्ताहिक से बदलकर अंग्रेजी साप्ताहिक बना लिया ।
1959 में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र ‘ सोम प्रकाश ‘ एकमात्र ऐसा समाचार पत्र था जिस पर वर्नाक्यलर अधिनियम लाग किया गया ।
• कृष्टोदासपाल को भारतीय पत्रकारिता का राजकुमार कहा जाता है । लार्ड मेटकॉफ को भारतीय समाचार पत्रों का ‘ मुक्तिदाता ‘ कहा जाता ‘ बंगदूत ‘ एक ऐसा समाचार पत्र था जो एक साथ बंगला . हिन्दी , फारसी एवं अंग्रेजी में प्रकाशित होता था ।
• ‘ संध्या ‘ एवं ‘ युगान्तर ‘ पत्रों ने क्रान्ति को प्रोत्साहन दिया ।
• ‘ मराठा ‘ एवं ‘ केसरी ‘ का तिलक से पहले क्रमशः आगरकर एवं केलकर ने संपादन किया ।
1921 में स्थापित प्रेस कमेटी का अध्यक्ष तेज बहादुर सप्रू को चुना गया । .लार्ड कार्नवालिस को नागरिक सेवा का जन्मदाता माना जाता है ।
• 1800 में लार्ड वेलेजली ने सिविल सेवा में चुने जाने वाले लोगों के प्रशिक्षण के लिए कलकत्ता में फोर्ट विलियम कालेज की स्थापना की ।
• सत्येन्द्र नाथ टैगोर ( रबीन्द्र नाथ ठाकुर के भाई ) 1863 में भारतीय सिविल सेवा मे चुने जाने वाले प्रथम भारतीय थे ।
• सिविल सेवा परीक्षा की अधिकतम आयु 1859 में 22 वर्ष , 1864 में 21 वर्ष , 1877 में 19 वर्ष तथा 1893 में 23 वर्ष की गयी ।
• 1870 में ‘ स्टेटयुटरी सिविल सेवा शुरू की गई ।
1886 में सर्वप्रथम राबर्ट्सन की अध्यक्षता में लोक सेवा आयोग की स्थापना हुई ।
• भारतीय नागरिक सेवा को ‘ इस्पात का चौखट ‘ की संज्ञा दी गयी ।
1844 में सरकारी सेवाओं में नियुत्ति के लिए अंग्रेजी को अनिवार्य विषय बनाया गया ।
सैनिकों की योग्यता की जाँच हेतु आयोजित की जाने वाली परीक्षा को किचनर टेस्ट ‘ कहा जाता था ।
.1901 में लार्ड कर्जन ने ‘ इम्पीरियल कैडेट कोर ‘ की स्थापना की ।
. सर्वप्रथम महाराष्ट्र में क्रान्तिकारी आन्दोलन शुरू होने का आभास मिलता है ।
अनुशीलन समिति को भारत की पहली सनियोजित संस्था माना जाता मैडम कामा को ‘ मदर आफ इंडियन रिवोल्यशन ‘ कहा जाता है ।
बाल गंगाधर तिलक को ‘ फादर ऑफ इंडियन अनरेस्ट ‘ कहा जाता है । सॉन फ्रांसिस्को में स्थापित गदर पार्टी के कार्यालय को ‘ युगान्तर आश्रम ‘ के नाम से भी जाना जाता था ।
मुस्लिम राष्ट्रवादियों द्वारा जर्मन एवं ऑटोमन साम्राज्य का समर्थन प्राप्त करने के लिये लिखा गया पत्र , जिसे अंग्रेजों ने पकड़ लिया था , को ‘ सिल्क लेटर कांसपिरेसी ‘ कहा जाता है ।
• अप्रैल 1930 में सूर्यसेन के नेतृत्व में किया गया सशस्त्र अभियान , जिसे ‘ चटगांव आमरी रेड ‘ के नाम से जाना जाता है , उस समय का सबसे बड़ा संयुक्त क्रान्तिकारी अभियान माना जाता है ।
1 नवम्बर , 1913 को सॉन फ्रांसिस्को ( सं ० रा ० अमेरिका ) में लाला हरदयाल ने रामचन्द्र और बरकतुल्ला के सहयोग से गदर पार्टी का गठन किया ।
• भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन तीन चरणों – प्रथम चरण 1885-1905 , द्वितीय चरण 1905-1919 एवं तृतीय चरण 1919-1947 से C गुजरा । .
28 दिसम्बर , 1885 को गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कालेज भवन में ए ० ओ ० राम के प्रयास से ‘ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ‘ की स्थापना की गयी ।
• 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ‘ ब्रिटिश समिति ‘ की स्थापना की गयी ।
• डफरिन ने ‘ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ‘ को अल्पमत का प्रतिनिधि कहा ।
• बदरुद्दीन तैय्यबजी कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष बने ।
• ‘ प्रैण्ड ओल्डमैन ऑफ इण्डिया ‘ के नाम से प्रसिद्ध दादाभाई नौरोजी ने तीन बार 1886,1893 एवं 1906 में कांग्रेस की अध्यक्षता की । बंदरुद्दीन तैय्यबजी एवं राजा शिव प्रसाद सितार – ए – हिंद ने ‘ कांग्रेसी बनो ‘ का नारा दिया ।
• लंदन में श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा 1905 में ‘ इण्डियन होमरूल सोसायटी की स्थापना की गयी । मारग्रेट नोबल ( सिस्टर निवेदिता ) को स्वामी विवेकानंद ने ‘ शेरनी ‘ टैगोर ने ‘ लोकमाता ‘ एवं अरविन्द घोष ने ‘ अग्निशिखा ‘ कहा ।
• डब्ल्यू ० एस ० लंट ने ‘ आइडियाज अबाउट इण्डिया ‘ , ‘ इण्डिया अण्डर रिपन ‘ एवं ‘ माई डायरीज ‘ जैसी पुस्तकों की रचना की । • गोपाल कृष्ण गोखले ने वायसराय कर्जन की तलना औरंगजेब से की ।
• महादेव गोविन्द रानाडे को ‘ महाराष्ट्र का सुकरात ‘ कहा जाता था । .
भारतीय इतिहास :: C / 299
• वित्तपावन ब्राह्मण समुदाय ने महाराष्ट्र में उग्रवाद को जन्म दिया ।
• सर सैय्यद अहमद खाँ ने ‘ तहजीब- अल अखलाक ‘ अखबार का प्रकाशन किया । .
1916 में गाँधीजी ने अहमदाबाद में ‘ साबरमती आश्रम ‘ की स्थापना 1
1918 में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ‘ इण्डियन लिबरल फेडरेशन ‘ की स्थापना की ।
बाल गंगाधर तिलक ने 1893 एवं 1895 में क्रमशः गणपति एवं शिवाजी महोत्सव को प्रारम्भ करवाया ।
गाँथी- इरविन पैक्ट को दिल्ली समझौता ‘ भी कहा जाता है 1917 में ‘ हिन्दू महासभा ‘ की स्थापना की गयी ।
• ‘ आल इण्डिया यूथ कांग्रेस ‘ की स्थापना 1928 में की गयी ।
• बल्लभ भाई पटेल को बारदोली की महिलाओं ने ‘ सरदार ‘ की उपाधि दी ।
• 13 वर्षीय की अल्पायु में रानी नैडिनैल्यू ने नागालैण्ड में गाँधीजी के समर्थन में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलन्द किया ।
.64 दिन की भूख हड़ताल के बाद 14 दिसम्बर , 1931 को लाहौर जेल में जतिन दास की मृत्यु हुई ।
• ए ० ओ ० ह्यूम को ‘ हरमिट ऑफ शिमला ‘ कहा जाता है ।
तेज बहादर सप्र ने ‘ लिबरेशन फेडरेशन ‘ नामक दल की स्थापना की ।
16 अक्टूबर , 1905 को कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया , इस दिन को पूरे बंगाल में शोक दिवस के रूप में मनाया गया ।
• दूसरा बंगाल विभाजन 1947 में किया गया । 1906 में लाका में आगा खाँ , मोहसिन उल मुल्क आदि ने मुस्लिम लीग की स्थापना की ।
• 1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस नरम दल एवं गरम दल में विभाजित हो गयी ।
1906 के कलकत्ता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने ‘ स्वराज्य ‘ की मांग की ।
• प्रथम विश्व युद्ध के समय गाँधी को ‘ रिक्रूटिंग सार्जेन्ट ‘ कहा गया ।
• मोहम्मद अली , हकीम अजमल खां , हसन इमाम आदि ने ‘ एहरार आन्दोलन ‘ की शुरुआत की ।
• गांधीजी ने भारत में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग चम्पारन में किया ।
सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा ऐसे पहले भारतीय थे जिन्हें अंग्रेजों ने किसी प्रांत का गवर्नर बनाया ।
• जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड की जाँच के लिए नियुक्त हण्टर कमीशन ‘ के भारतीय सदस्य थे : सल्तान अहमद खान , जगत नारायण , सर चिमन लाल सीतलवाड़ आदि ।
9 जून , 1937 को मध्य प्रांत ( सेन्ट्रल प्रोविन्सेज ) में डा ० एन ० बी ० खरे द्वारा देश का पहला मंत्रिमण्डल गठित किया गया । ” भारत एक नहीं दो राष्ट है ‘ मोहम्मद अली जित्रा ने कहा था ।
‘ कांग्रेस में बिल्लभ भाई पटेल , राजेन्द्र प्रसाद , डा ० ( अंसारी आदि को ‘ अपरिवर्तनवादी ‘ कहा गया ।
कांग्रेस में मदन मोहन मालवीय , ( लाल ) लाजपत राय एवं एन ० सी ० किलको को ‘ अनक्रियाशीलवादी ‘ कहा गया ।.
31 अगस्त , 1920 को ‘ असहयोग आन्दोलन ‘ शुरू किया गया ।
• गाँधीजी ने 17 अक्टूबर , 1940 को व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू किया , जिसके प्रथम सत्याग्रही विनोबा भावे एवं द्वितीय सत्याग्रही जवाहर लाल नेहरू थे ।
• गाँधीजी ने के नेतृत्व में कांग्रेस ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था । • ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनल्ड ने 1932 में ‘ साम्प्रदायिक निर्णय ‘ । ( कम्यूनल एवार्ड ) की घोषणा की ।
• कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज्य की घोषणा की । .26 जनवरी , 1930 को पहला ‘ स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया ।
• उत्तर- पश्चिम सीमा प्रांत में खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने ‘ लाल कुर्ती ‘ नामक संगठन की स्थापना की ।
• ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के विद्यार्थी रहमत अली चौधरी ने सर्वप्रथम पाकिस्तान शब्द का उल्लेख किया । ५०. पाकिस्तान की प्रथम मांग मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में की गयी ।
होमरूल लीग ‘ की स्थापना बाल गंगाधर तिलक एवं एनी बेसेन्ट ने की ।
1923 में वायसराय लार्ड रीडिंग ने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर नमक कर कानून पारित किया ।
• बंगाल का विभाजन 1911 में वायसराय लाई हार्डिंग के समय में समाप्त किया गया । इसी समय भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित की गयी ।
• 22 दिसम्बर , 1939 को मुस्लिम लीग ने ‘ मुक्ति दिवस ‘ मनाया था ।
• 1943 में हुए मुस्लिम लीग के करांची अधिवेशन में ‘ विभाजन करो और जाओ ‘ का ( Devide and Quit ) नारा दिया गया ।
• मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त , 1946 को ‘ प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस ‘ मनाया ।
रास बिहारी बोस ने टोकियो में 23 जून , 1942 को ‘ इण्डियन इंडिपेन्डेस लीग ‘ की स्थापना की ।
सुभाष चन्द्र बोस ने जुलाई , 1943 में ‘ आजाद हिन्द फौज ‘ एवं इण्डियन इंडिपन्डेन्स लीग की बागडोर को संभाला ।
.सुभाष चन्द्र बोस ने 21 अक्टूबर , 1943 को सिंगापुर में अस्थायी सरकार की स्थापना की ।
.8 अगस्त , 1942 को भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ ।
2 सितम्बर , 1946 को जवाहरल लाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन किया गया
• क्रिप्स प्रस्तावों को गाँधीजी ने ‘ उत्तरतिधीय चेक ‘ ( Post – dated गाँ Cheque ) एवं जुवाहर लाल नेहरू ने ‘ ऐसे बैंक पर जो टूट रहा हो ‘ ‘ हाँ की संज्ञा दी ।
• ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने भारत को जून , 1948 तक स्वतन्त्र करने की घोषणा की ।
1947 के भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम द्वारा 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का निर्माण हुआ ।.15 अगस्त , 1947 को भारत को स्वतन्त्रता मिली ।
9 दिसम्बर , 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई । सबसे अन्त में भारत में हैदराबाद राज्य का विलय हुआ ।
विपिन चन्द्र पाल को बंगाल में ‘ तिलक का सेनापति ‘ कहा गया । होमरूल लीग के सर्वाधिक कार्यालय मद्रास में थे ।
• रौलेट एक्ट को ‘ काला कानून ‘ एवं आतंकवादी अपराध अधिनियम कहा गया । .
18 अगस्त , 1929 को कांग्रेस ने ‘ राजनैतिक पीड़ितों का दिन ‘ मनाया ।
‘ क्रान्ति अमर रहे ‘ का नारा पहली बार 1928 में ‘ हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन ‘ ने दिया ।
• आजाद हिन्द फौज के सैनिकों पर ऐतिहासिक मुकदमा 1945 में दिल्ली के लाल किले में चलाया गया ।
• अप्रैल , 1930 में मास्टर सूर्य सेन के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने चिटगांव शस्त्रागार पर दस दिन तक अधिकार बनाये रखा ।
.1930 में आयोजित प्रथम गोलमेज सम्मेलन में मुस्लिम लीग , हिन्द महासभा , लिबरल फेडरेशन , डा ० बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के अछूत संघ और देशी रियासतों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया ।
1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में मूल अधिकार और आर्थिक कार्यक्रम नामक दस्तावेज को स्वीकार किया गया ।
• अप्रैल , 1942 में प्रकाशित ‘ हरिजन ‘ पत्रिका के अंक में गाँधीजी ने पहली बार अंग्रेजों भारत छोडो ‘ शीर्षक से एक लेख लिखा ।
• जब भारत स्वतंत्र हुआ उस समय ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार सत्ता में थी और प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली थे ।
• स्वतंत्रता प्राप्ति के समय अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष आचार्य जे ० बी ० कृपलानी थे ।
15 नवम्बर , 1930 को लंदन में प्रदर्शन के दौरान ट्रेफल्गर स्क्वायर पर तिरंगा झंडा फहराया गया ।
• जलियांवाला नरसंहार के विरोध में 1 जून , 1919 को रबीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा ‘ सर ‘ उपाधि वापस की गयी ।
अगस्त , 1920 को गाँधीजी द्वारा ‘ कैसर – ए- हिन्द ‘ मैडल ब्रिटिश सरकार को वापस किया गया ।
20 नवम्बर , 1921 को रबीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा शांतिनिकेतन में स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय का उद्घाटन हुआ ।
जार्ज पंचम भारत की यात्रा पर आने वाले पहले ब्रिटिश सम्राट थे ।
• गाँधीजी ने 1919 में ‘ यंग इण्डिया ‘ व ‘ नवजीवन ‘ और 1933 में ‘ हरिजन ‘ का प्रकाशन आरम्भ किया ।
माउंटबेटन योजना के तहत भारत का विभाजन और भारत – पाकिस्तान सीमा का निर्धारण सर सिरील रैडक्लीफ़ की अध्यक्षता में गठित बाउंडरी कमीशन की संस्तुतियों के आधार पर किया गया
.
महत्वपूर्ण बिन्दु ( भा
• सैन्धव सभ्यता में प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही नगर की संज्ञा दी जाती है , ये हैं : हड़प्पा , मोहन जोदड़ो , चान्हुदड़ो , लोथल , कालीबंगा एवं बनवाली ।
• बृहत्स्नानागार के उत्तर तथा दक्षिण की ओर सीढ़ियों का निर्माण किया गया था । सर्वप्रथम जॉन मार्शल ने स्नानागार की खोज की ।
● स्वतन्त्रता के पश्चात् हड़प्पा सभ्यता के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए हैं ।
• सैन्धव सभ्यता के अन्तर्गत केवल कालीबंगा से ही नक्काशीदार ईटों के प्रयुक्त होने के प्रमाण मिले हैं ।
• मोहन जोदड़ो से प्राप्त अत्रागार सम्भवतः सैन्धव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत थी ।
• सर्वप्रथम हड़प्पा सभ्यता से ही ‘ स्वास्तिक ‘ चिह्न के अवशेष मिले हैं । इस चिह्न से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जा सकता है ।
• गुजरात में स्थित रंगपुर और रोजड़ी सैंधव सभ्यता की उत्तरोत्तर की अवस्था का नेतृत्व करते हैं ।
बनवाली एवं कालीबंगा में सैंधव संस्कृति की दो अवस्था- हडप्पा पूर्व एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिलते हैं ।
सैंधव सभ्यता में प्रयुक्त ईंटों का अनुपात था 4 : 2 : 1 ( लम्बाई : चौड़ाई : ऊँचाई ) ।
• पहली बार कपास उपजाने का श्रेय हड़प्पावासियों को है । 5 न
बुद्ध के जीवन की विभिन्न अवस्थाओं के प्रतीक
हाथी – बुद्ध के गर्भावस्था में आने का प्रतीक
. शेर – बुद्ध के ज्ञान से समृद्ध होने का प्रतीक
साँढ – बुद्ध के यौवन का प्रतीक ।
घोड़ा – बुद्ध के गृहत्याग का प्रतीक
सल्तनत कालीन स्थापत्य | ( Architecture during Sultunate )
ढाई दिन का झोंपड़ा ( अजमेर ) कुतुबुद्दीन ऐबक
सुल्तानगढ़ी का मकबरा दिल्ली इल्तुतमिश
इल्तुतमिश का मकबरा दिल्ली इल्तुतमिश
जामी मस्जिद बदायूँ इल्तुतमिश
मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह बदायूँ इल्तुतमिश
हौज – ए – खास बदायूँ इल्तुतमिश
हौज – ए – शौम्सी बदायूँ इल्तुतमिश
शक्सी ईदगाह बदायूँ इल्तुतमिश
अतारकिन का दरवाजा नागौर इल्तुतमिश
कुवावुत – इस्लम – मस्जिद दिल्ली कुतुबुद्दीन ऐबक
कुतुबमीनार दिल्ली कुतुबुद्दीन ऐबक एवं इल्तुतमिश
जामा मस्जिद दिल्ली कुतुबुद्दीन ऐबक
लाल महल दिल्ली बलबन
अलाई दरवाजा दिल्ली अलाउद्दीन खिलजी
आदिलाबाद का किला दिल्ली मुहम्मद – बिन – तुगलक
. ‘ जहाँपनाह नगर दिल्ली मुहम्मद – बिन – तुगलक
फिरोजशाह कोटला दिल्ली फिरोज तुगलक
जामा मस्जिद ,हौज – ए – खास , दिल्ली फिरोज तुगलक
. काली मस्जिद दिल्ली फिरोज तुगलक
खिड़की मस्जिद दिल्ली फिरोज तुगलक
खान – ए – जहाँ तेलंगानी का मकबरा फिरोज तुगलक ( दिल्ली )
हौज – खास मदरसा दिल्ली फिरोज तुगलक
जमायत – ए – खाना मस्जिद दिल्ली अलाउद्दीन खिलजी
सिरी फोर्ट दिल्ली अलाउद्दीन खिलजी
हौज – ए – खास दिल्ली अलाउद्दीन खिलजी
शक्सी ताल दिल्ली अलाउद्दीन खिलजी
तुगलकाबाद नगर ग्याशुद्दीन तुगलक
बेगमपुरी मस्जिद दिल्ली फिरोज तुगलक –
मोठ मस्जिद दिल्ली सिकन्दर लोदी का वजीर
सिकन्दर लोदी का मकबरा खैरपुर इब्राहिम लोदी
अटाला मस्जिद जौनपुर इब्राहिम शाह शर्की
झंझरी मस्जिद जौनपुर इब्राहिम शाह शर्की
बड़ा सोना मस्जिद गौड़ सिकन्दर शाह
कंदम्ब रसुल मस्जिद गौड़ नुसरत शाह
हिंडोलाभवन नरवदा पठार हुशंगशाह
लाल दरवाजा मस्जिद जौनपुर मुहम्मद शाह
अदीना मस्जिद पंडुआ सिकन्दर शाह
माण्डु का किला हुशंग शाह
गोल गुम्बद मस्जिद मुहम्मद आदिलशाह
चार मीनार – कुलीकुतुब शाह |
बीबी का मस्जिद – मुजफ्फर शाह गुजराती की पुत्री
विट्ठल स्वामी मंदिर – कृष्णदेव राय ।
महत्त्वपूर्ण राज्यों के संस्थापक एवं राजधानियाँ
राज्य राजधानी संस्थापक
हर्यक वंश गिरिव्रज बिम्बिसार
शिशुनाग वंश वैशाली शिशुनाग
नन्द वंश पाटलिपुत्र महानन्दिन
मौर्य वंश पाटलिपुत्र चन्द्रगुप्त मौर्य
शुंग वंश पाटलिपुत्र पुष्यमित्र शुंग
कण्व वंश पाटलिपुत्र वसुदेव
चौहान वंश अजमेर वासुदेव
राष्ट्रकूट वंश मान्यखेत दन्तिदुर्ग
चालुक्य ( वातापी ) वातापी जयसिंह प्रथम
प्रतिहार वंश उज्जैन / कन्नौज हरिचन्द्र
पाल वंश मुंगेर गोपाल
परमार वंश उज्जैन उपेन्द्र
गहड़वाल वंश कन्नौज चन्द्रदेव
चन्देल वंश खजुराहो नत्रुक
सातवाहन वंश प्रतिष्ठान सिमुक
वाकाटक वंश नन्दिवर्धन विंध्यशक्ति
गुप्त वंश पाटलिपुत्र श्रीगुप्त
.चोल तंजौर विजयालय
.चालुक्य ( वेंगी ) वेंगी विष्णुवर्द्धन
चालुक्य ( कल्याणी ) वंश मान्यखेत विजयादित्य
पल्लव वंश कांचीपुरम् सिंहविष्णु
सेन वंश काशीपुर / लखनौती सामन्तसेन
दिल्ली सल्तनत के प्रमुख सुल्तान
कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम वंश 1206 – 1210
इल्तुतमिश गुलाम वंश 1210 – 1236
सुल्ताना रजिया गुलाम वंश 1236 – 1240
नासिरुद्दीन महमूद गुलाम वंश 1246 – 1266
बलबन गुलाम वंश 1266 – 1286
जलालुद्दीन खिलजी खिलजी वंश 1290 – 1296
अलाउद्दीन खिलजी खिलजी वंश 1296 – 1316
मुहम्मद बिन तुगलक तुगलक वंश 1325 – 1351
फिरोज तुगलक तुगलक वंश 1351 – 1388
खिज्र खाँ सेयद वंश 1414 – 1421
बहलोल लोदी लोदी वंश 1451 – 1489
सिकन्दर लोदी लोदी वंश 1489 – 1517
इब्राहिम लोदी लोदी वंश 1517 – 1526
विजयनगर के प्रमुख राजवंश
1. संगम वंश 1336-1485 हरिहर एवं बुक्का
2. सालुव वंश 1485 – 1505 नरसिंह सालुव
3. तुलुव वंश 1505 – 1570 वीर नरसिंह
4.आरवीडु वंश 1570 – 1650 तिरुमल्ल
प्रमुख सम्प्रदाय
चिश्ती सम्प्रदाय ( सूफी ) ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती
शत्तारी सिलसिला ( सूफी ) शेख अब्दुल्ला सत्तारी
कादिरी सिलसिला ( सूफी ) सैयद अब्दुल कादिर अल जिलानी
नक्शबंदी सिलसिला ( सूफी ) ख्वाजा उबैदुल्ला
सुहरावर्दी सिलसिला ( सूफी ) शेख हिसाबुद्दीन , उमर सुहरावर्दी •
निपख आन्दोलन दादू दयाल
सिख सम्प्रदाय गुरु नानक
हरि कीर्तन मण्डली महाप्रभु चैतन्य
धर्मदासी सम्प्रदाय कबीरदास
गोसाई संघ महाप्रभु चैतन्य
वारकरी सम्प्रदाय रामदास
महदवी आन्दोलन सैयद मुहम्मद महदी
फिरदौसिया सम्प्रदाय सरकुद्दीन याहिया
मुगल साम्राज्य ( 1526 – 1857 ) के प्रमुख युद्ध
पानीपत का प्रथम युद्ध 1526 बाबर – इब्राहिम लोदी
पानीपत का द्वितीय युद्ध 1556 अकबर – हेमू
चौसा का युद्ध 1539 हुमायूँ – शेरशाह
बिलग्राम की लड़ाई 1540 हुमायूँ – शेरशाह
हल्दीघाटी का युद्ध 1576 अकबर – महाराणा प्रताप
असीरगढ़ का युद्ध 1603 अकबर का अंतिम युद्ध
सामूगढ़ का युद्ध – 1658 दारा – औरंगजेब
करनाल का युद्ध 1739 नादिरशाह – मुहम्मद शाह
मुगल शासकों के मकबरे
बाबर काबुल
हुमायूँ दिल्ली
अकबर सिकन्दरा
जहाँगीर लाहौर .
शाहजहाँ आगरा .
औरंगजेब औरंगाबाद
मुगल वंश के प्रमुख शासक
1 . बाबर 1526-30
2 .हुमायूँ 1530-56
3 . अकबर 1556-1605
4 . जहाँगीर 1605-1627
5 . शाहजहाँ 1627-1658
6 . औरंगजेब 1658-1707
7 . बहादुरशाह प्रथम 1707-1712
8 . जहांदारशाह 1712-1713
9 . फर्रुखसियर 1713-1719
10 . मुहम्मदशा 1719-1748
11 . अहमदशाह 1748-1754
12 . आलमगीर द्वितीय 1754-1758
13 . शाहआलम द्वितीय 1758-1806
14 . अकबर द्वितीय 1806-1837
15 . बहादुरशाह जफर 1837-1857
मुगलकालीन इमारत स्थान निर्माता
एतमादुद्दौला का मकबरा आगरा नूरजहाँ ( सफेद संगमरमर )
लाल किला दिल्ली शाहजहाँ
जामा मस्जिद दिल्ली शाहजहाँ
जामा मस्जिद आगरा जहाँआरा बेगम
ताजमहल आगरा शाहजहाँ
. शेरशाह का मकबरा सासाराम शेरशाह सूरी
पुराना किला दिल्ली शेरशाह सूरी
. लाल किला ( लाल पत्थर ) आगरा अकबर
बुलंद दरवाजा फतेहपुर सीकरी अकबर
अकबर का मकबरा सिकंदरा जहाँगीर
उत्तरमुगलकालीन स्वतंत्र राज्य
बंगाल मुर्शीद कुली खाँ ।
कर्नाटक सआदत उल्ला खाँ ।
रुहेले एवं वंगश पठान वीर दाउद – मुहम्मद खाँ
भरतपुर ( जाट ) चूड़ामन बदन सिंह
हैदराबाद चिनकिलिच खाँ
अवध सआदत खाँ बुरहानुल मुल्क
पंजाब रणजीत सिंह
सिक्ख मिसलें तथा उनके संस्थापक
भंगी मिसल हरिसिंह
सुकरचकिया मिसल चरत सिंह
निशानवालिया मिसल सरदार संगत सिंह
करोड़सिंधिया मिसल बघेल सिंह
सिंहपुरिया मिसल नवाब कपूर सिंह
अहलूवालिया मिसल जस्सासिंह अहलूवालिया
रामगढ़िया मिसल जस्सासिंह रामगढ़िया
फुलकिया मिसल फूल सिंह
कन्हैया मिसल जयसिंह
उल्लेवालिया मिसल गुलाब सिंह
नकाई मिसल हीरा सिंह
शहीदी मिसल बाबा दीप सिंह
भक्ति आन्दोलन
शंकराचार्य अद्वैतवाद
रामानुजाचार्य विशिष्टाद्वैतवाद
निम्बकाचार्य द्वैताद्वैतवाद
वल्लभाचार्य शुद्ध अद्वैतवाद
माध्वाचार्य द्वैतवाद
श्रीकंठ शैव विशिष्टाद्वैतवाद
श्रीपति वीर शैव विशिष्टाद्वैतवाद
भास्कराचार्य भेदाभेदवाद विज्ञान
भिक्षु अविभागाद्वैतवाद
कबीर विशुद्ध द्वैतवाद
प्रमुख विदेशी यात्री
मेगस्थनीज ( यूनानी ) चन्द्रगुप्त मौर्य
डाइमेकस ( सिरिया ) बिन्दुसार
डायोनीसियस ( मिस्र ) बिन्दुसार , अशोक
फाह्यान ( चीन ) चन्द्रगुप्त द्वितीय
ह्वेनसांग ( चीन ) हर्षवर्द्धन
मार्कोपोलो ( इटली ) कायाल ( पाण्ड्य )
पीतर मुन्डी ( इटली ) 17वीं शती शाहजहाँ |
हॉकिन्स , सर टामस रो , जहाँगीर
टेवरनिए ( फ्रांस ) औरंगजेब
र मालाची ( इटली ) औरंगजेब
फ्रोसिस बीयर शाहजहाँ
इब्नबतूता ( मोरक्को ) . म . बिन तुगलक
निकोलो कोन्टी ( इटली ) देवराय – I
अब्दुर्रज्जाक ( फारस ) 1443 ई देवराय – II
अथनासिमस निकिटन ( रूस ). ताजुद्दीन फिरोज
पायस ननीज बरबोसा ( पुर्तगाल ) कृष्णदेव राय
योपीय कम्पनियाँ, स्थापना
1.पुर्तगाली ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1498 ई
2. अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1600 ई .
3.डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1602 ई .
4.डेनिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1616 ई .
5 फ्रांसीसी ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1664 ई .
6,. स्वीडिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी 1731 ई .
शिक्षा आयोग
1.1854 वुड का घोषणा – पत्र
2.1882 हण्टर शिक्षा आयोग
3.1902 विश्वविद्यालय आयोग .
4.1917 सैडलर आयोग
5. 1929 हर्टोग समिति
6. 1935 शिक्षा की वर्धा योजना ( गांधी जी द्वारा प्रस्तुत )
7. 1944 सार्जेन्ट योजना
1857 के विद्रोह नेतृत्वकर्ता
.इलाहाबाद लियाकत अली कर्नल नील
. बनारस लियाकत अली कर्नल नील
.ग्वालियर झाँसी की रानी ह्यूरोज
. जगदीशपुर कुँवर सिंह विलियम टेलर मेजर विसेंट आर्थर
.लखनऊ बेगम हजरत महल कैम्पबेल
.. कानपुर नाना साहब , तात्या टोपे कैम्पबेल
दिल्ली बहादुर शाह जफर निकलसन एवं हडसन
फैजाबाद मौलवी अहमदुल्ला
झॉसी , रानी लक्ष्मीबाई ह्यूरोज
.ग्वालियर रानी लक्ष्मीबाई ह्यूरोज
.फतेहपुर अजीमुल्ला जनरल रेनर्ड
. बरेली खान बहादुर खाँ
स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान प्रचलित वचन
वन्दे मातरम् बंकिमचन्द चटर्जी
करो या मरो महात्मा गाँधी
दिल्ली चलो ` सुभाषचन्द्र बोस
जय हिन्द सुभाषचन्द्र बोस
” सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ” इकबाल
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है राम प्रसाद बिस्मिल
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा सुभाषचन्द्र बोस
वेदों की ओर लौट दयानन्द सरस्वती
पूर्ण स्वराज्य जवाहरलाल नेहरू
हिन्दी , हिन्दू , हिन्दोस्तान भारतेन्दु हरिशचन्द्र
जन – गण – मन अधिनायक जय हे रवीन्द्रनाथ ठाकुर
साइमन कमीशन वापस जाओ लाला लाजपत राय
मेरे सिर पर लाठी का एक – एक प्रहार , अंग्रेजी शासन के कफ़न की कील साबित होगा
लाला लाजपत राय
हू लिव्स इफ इण्डिया डाइज जवाहरलाल नेहरू
स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है बाल गंगाधर तिलक
साम्राज्यवाद का नाश हो भगत सिंह
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा श्याम लाल गुप्ता पार्षद
सम्पूर्ण क्रांति जय प्रकाश नारायण
कर मत दो सरदार वल्लभ भाई पटेल
जय जगत विनोबा भावे
मारो फिरंगी को मंगल पाण्डे
आराम हराम है जवाहरलाल नेहरू
हे राम महात्मा गाँधी
भारत छोड़ो महात्मा गाँधी
जय जवान , जय किसान लाल बहादुर शास्त्री
इन्कलाब जिन्दाबाद भगत सिंह
प्रमुख किसान आन्दोलन
नील आन्दोलन • दिगम्बर एवं विष्णु विश्वास
ताना भगत आंदोलन • जतरा भगत
तेभागा आन्दोलन • कम्पाराम सिंह एवं भवन सिंह
तेलंगाना आन्दोलन • आन्ध्र प्रदेश
पावना विद्रोह • ईशान चंद्र राय , शम्भु पाल
दक्कन विद्रोह 1874
एका आन्दोलन • हरदोई , बहराइच , सीतापुर
मोपला विद्रोह • अली मुसलियर
कूका आन्दोलन भगत जवाहर मल
•रम्पा विद्रोह • सीताराम राजू
भील विद्रोह • सेवाराम
रामोसी विद्रोह चित्तर सिंह
संन्यासी विद्रोह . केना सरकार , दिर्जिनारायण
संथाल विद्रोह सिद्धू एवं कान्हू
अहोम विद्रोह गोमधर कुंवर
पागलपंथी विद्रोह करम शाह
फरायजी विद्रोह दादू मियां
चुआर विद्रोह • दुर्जन सिंह
हो एवं मुण्डा विद्रोह . बिरसा मुण्डा
कोल विद्रोह गोमधर कुंवर
प्रमुख सामाजिक, धार्मिक आन्दोलन
आत्मीय सभा कलकत्ता राजाराम मोहन राय 1815
धर्म सभा कलकत्ता राधाकान्त देव 1829
परमहंस मंडली बम्बई गोपालहरि देशमुख
मोहम्मडन एजूकेशनल कॉन्फ्रेंस अलीगढ़ सैयद अहमद खाँ 1886
सेवा समिति इलाहाबाद एच . एन . कुंजरु 1914
दार – उल – उलूम देवबन्द मौलाना हुसैन अहमद 1866
अहमदिया आन्दोलन पंजाब मिर्जा गुलाम अहमद
नदवाह – उल – उलूम लखनऊ मौलाना शिब्ली नुमानी 1894
आदि ब्रह्म समाज कलकत्ता केशवचन्द्र सेन 1866
इण्डियन सोशल कॉन्फ्रेंस बम्बई एम . जी . रानाडे 1887
रामकृष्ण मिशन बेल्लूर स्वामी विवेकानन्द 1897
भारतीयों द्वारा प्रकाशित समाचार – पत्र
यंग इंडिया महात्मा गाँधी अहमदाबाद
नवजीवन महात्मा गाँधी अहमदाबाद
हरिजन महात्मा गाँधी पूना
इंडिपेन्डेंस मोती लाल नेहरू पूना
आज शिव प्रसाद गुप्त
नेशनल हेराल्ड जवाहर लाल नेहरू दिल्ली
उदन्त मार्तन्ड जुगुल किशोर कानपुर
बंगवासी जोगिन्दर नाथ बोस कलकत्ता
संजीवनी जोगिन्दर नाथ बोस कलकत्ता .
सोम प्रकाश ईश्वर चंद्र विद्यासागर कलकत्ता
अमृत बाजार पत्रिका मोतीलाल घोष कलकत्ता
हिन्दू वीर राघवाचारी मद्रास
नेटिव ओपीनियन वी . एन . मांडलिक बम्बई
केसरी तिलक बम्बई
मराठा तिलक बम्बई
बंगाली सुरेन्द्र नाथ बनर्जी बम्बई
अल हिलाल मो . अबुल कलाम आजाद कलकत्ता
अल विलाग मो . अबुल कलाम आजाद कलकत्ता
भारत मित्र बाल मुकुन्द गुप्त बम्बई
हिन्दोस्तान मदन मोहन मालवीय
कामरेड मौलाना मुहम्मद अली कलकत्ता
प्रताप गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर
गदर गदर पार्टी द्वारा सैन फ्रांसिस्को
हिन्दू पैट्रियाट हरिश्चंद्र मुखर्जी
हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड सच्चिदानन्द सिन्हा उत्तर प्रदेश
ज्ञानप्रदायी नवीन चंद्र राय उत्तर प्रदेश
हिन्दी प्रदीप बाल कृष्ण भट्ट उत्तर प्रदेश
इंडियन रिव्यू जी . ए . नटेशन मद्रास
बम्बई दर्पण बाल शास्त्री बम्बई
कविवचन सुधा भारतेंदु हरिश्चंद्र उत्तर प्रदेश
मॉडर्न रिव्यू रामानंद चटर्जी कलकत्ता
धार्मिक एवं समाज सुधार आन्दोलन
एशियाटिक सोसायटी 1784 विलियम जोन्स
ब्रह्म समाज 1828 राजा राममोहन राय
तत्वबोधिनी सभा 1839 देवेन्द्रनाथ ठाकुर
प्रार्थना समाज 1867 आत्माराम पांडुरंग
आर्य समाज 1875 दयानन्द सरस्वती
रेहनुमाई मजदायासान सभा 1851 दादाभाई नौरोजी
प्रमुख गुप्त क्रान्तिकारी संगठन
अनुशीलन समिति 1902 बंगाल वारिन्द्र कुमार घोष , जतीन्द्र नाथ बनर्जी , प्रबोध मित्र , पुलिन दास ने
अभिनव भारत 1907 महाराष्ट्र वी . डी . सावरकर
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन 1924 बंगाल सचिन सान्याल
इण्डियन इण्डिपेंडेंस लीग 1942 जापान रास बिहारी घोष
मित्र मेला 1904 महाराष्ट्र सावरकर बन्धु ( गणेश एवं वी . डी . सावरकर
गदर पार्टी 1918 सेन फ्रांसिस्को लाला हरदयाल तथा ( अमेरिका ) सोहनसिंह भाकना
सोलह संस्कार
जन्म से पूर्व के संस्कार
( i ) गर्भाधान , ( ii ) पुंसवन तथा ( iii ) सीमान्तोन्नयन
बाल्यावस्था के संस्कार
( iv ) जातकर्म , ( v ) नामकरण , ( vi ) निष्क्रमण , ( vii ) अन्नप्राशन ( viii ) चूडाकर्म , ( ix ) कर्णवेध
विद्याध्ययन से सम्बन्धित संस्कार
( x ) विद्यारम्भ , ( xi ) उपनयन तथा ( xii ) वेदारम्भ
आश्रमों में प्रवेश करने के संस्कार
( xii ) विवाह , ( xiv ) वानप्रस्थ , ( xv ) संन्यास ( e ) मृत्योत्तर संस्कार ( xvi ) अन्त्येष्
दार्शनिक सम्प्रदाय
न्याय गौतम
वैशेषिक कणाद
सांख्य कपिल
योग पतंजलि
मीमांसा जैमिनी
वेदान्त बादरायण
नास्तिक दर्शन . जो वेदो को नहीं मानते हैं
माध्यमिक शून्यवाद नागार्जुन
योगाचार विज्ञानवाद मैत्रेयनाथ
चार्वाक चार्वाक
प्रमुख व्यक्तियों से सम्बन्धित स्थल
ईसामसीह जेरुसलम
आचार्य विनोबा भावे पवनार आश्रम
बाबा आम्टे ‘ आनन्द वन ‘
मां आनन्दमयी ओरेविले
मदर टेरेसा निर्मल हृदय
डॉ . राजेन्द्र प्रसाद सदाकत आश्रम
नेलसन ट्रेफलगर
गुरुनानक तलवंडी
महात्मा गांधी पोरबन्दर / साबरमती
स्वामी रामकृष्ण परमहंस वेलूर
सिकन्दर महान मेसीडोनिया / सिकन्दरिया
जवाहर लाल नेहरू शान्तिवन
नेपोलियन सेंट हेलेना , वाटरलू
गौतम बुद्ध कपिलवस्तु , बोधगया , कुशीनगर
सरदार बल्लभभाई पटेल बारदोली
महाराणा प्रताप चित्तौड़गढ़ / हल्दीघाटी
जैन धर्म
– जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हैं । – जैन धर्म के पहले ( आदि ) तीर्थंकर ऋषभदेव थे ।
– पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे । – वर्द्धमान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर के रूप में पूजे जाते हैं ।
– त्रिरत्न जैन धर्म से सम्बन्धित विचारधारा है ।
महावीर स्वामी का जन्म 599 ई . पू . या 540 ई . पू . में वैशाली के लिच्छवियों की एक शाखा ज्ञातृक वंश में हुआ था । – श्वेताम्बर जैनियों के अनुसार इनका विवाह यशोदा से हुआ जिससे एक कन्या उत्पन्न हुई । इस कन्या का नाम प्रियदर्शना था । – महावीर स्वामी ने . 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग दिया था ।
42 वर्ष की आयु में जृम्भिक गांव के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । ज्ञान प्राप्त करने के बाद महावीर ‘ जिन ‘ , ‘ निर्ग्रन्थ ‘ , ‘ जितेंद्रिय ‘ , ‘ केवलिन ‘ कहलाये । ।
महावीर को साल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई ।
– जैन धर्म के पंचमहाव्रत हैं – 1 . अहिंसा , 2 . अस्तेय , 3 . सत्य , 4 . अपरिग्रह , 5 . ब्रह्मचर्य ।
बौद्ध धर्म
– बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध थे । इनका जन्म 563 ई . पू . में |
-कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक गांव में हुआ इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था ।
– इनकी माता का नाम महामाया था तथा इनके पिता शुद्धोधन थे ।
-29 वर्ष की आयु में इन्होंने गृह त्याग दिया । – इनकी पत्नी यशोधरा थी तथा इनके एक पुत्र राहुल था ।
– घर छोड़ने के बाद ये भ्रमण करते – करते बोधगया में पहुँचे जहाँ इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । – ज्ञान प्राप्त होने पर ये महात्मा बुद्ध के नाम से जाने गये । बौद्ध धर्म की शिक्षाएं एवं सिद्धांत संक्षेप में निम्नलिखित हैं – – चार आर्य सत्य –
( a ) दुःख ,
( b ) दुःख समुदाय ,
( c ) दुःख निरोध , एवं
( d ) दुःख निरोध मार्ग ।
– अष्टांगिक मार्ग – महात्मा बुद्ध ने दुःख निरोध मार्ग के रूप अष्टांगिक मार्ग का प्रतिपादन किया । अष्टांगिक मार्ग को मध्यम मार्ग या मध्यम प्रतिप्रदा के नाम से भी जाना जाता है । इसका वर्णन इस । प्रकार हैं
( i ) सम्यक् दृष्टि ,
( ii ) सम्यक् संकल्प ,
( iii ) सम्यक् वाक् ,
( iv ) सम्यक् कर्मांत ,
( v ) सम्यक् आजीव ,
( vi ) सम्यक् व्यायाम ,
( vii ) सम्यक् स्मृति ,
( viii ) सम्यक् समाधि
हिन्दू धर्म
– हिन्दू धर्म को सनातन धर्म की संज्ञा दी गयी है । यह धर्म प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों , आस्थाओं , विश्वासों , मत मतांतरों आदि का समुच्चय माना जाता है ।
इसका विकास प्राचीन भारत में आर्यों एवं अनार्यों की आस्थाओं के समन्वय से हुआ है ।
– हिन्दू धर्म का मूल स्रोत वेदों में मिलता है ।
चार वेद – ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद एवं अथर्ववेद ही हिन्दू धर्म का आधार है ।
वेदों के अलावा हिन्दू धर्म के अन्य ग्रन्थों में ब्राह्मण ग्रन्थ , आरण्यक , उपनिषद् , स्मृति ग्रन्थ , पुराण , महाकाव्य , सूत्र साहित्य आदि आते हैं । हिन्दू धर्म को वैदिक धर्म के रूप में देखा जाता है । यह धर्म प्रकृति पूजक , बहुदेववादी तथा अनुष्ठानपरक है । वेदों को अपौरुषेय एवं सनातन माना गया है । – –
सिक्ख धर्म
– सिक्ख धर्म की स्थापना गुरु नानक ने 15वीं शताब्दी में पंजाब मे का । – नामक देव का जन्म 1469 ई . में लाहौर के समीप तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ था ।
– नानक के शिष्य मर्दाना तथा बाला बन्धु थे , जो इनके साथ सदैव रहते थे ।
– सिक्ख शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘ शिष्य ‘ शब्द से हुई है । नानक ने निवृत्ति मार्ग की आलोचना की तथा प्रवृत्ति मार्ग की व्याख्या की । नानक ने ‘ गीता ‘ के आधार पर आत्मा का विश्लेषण किया और उसी भाँति आत्मा की विशेषता दर्शित की । – नानक की मृत्यु गुरुदासपुर जिले के करतारपुर ग्राम में हुई । |
– सिक्ख धर्म में दस गुरुओं का उल्लेख मिलता है , जो इस प्रकार है – गुरु नानकदेव , गुरु अंगद , गुरु अमरदास , गुरु रामदास , गुरु अर्जुन देव , गुरु हरगोविन्द , गुरु हर राय , गुरु हर कृष्ण , गुरु तेग बहादुर तथा गुरु गोविन्द सिंह ।
– नानक के शिष्य गुरु अंगद ने उनकी वाणियों को संग्रहित कर गुरुमुखी लिपि में संकलित कराया । – चौथे गुरु रामदास ने ‘ अमृत सरोवर ‘ की नींव रखी ( वर्तमान में अमृतसर ) ।
– सिक्खों के पांचवें गुरु अर्जुन देव ने हरमंदिर साहब ( स्वर्ण मंदिर ) की अमृतसर में स्थापना की । – गुरु अर्जुन देव , गुरु तेग बहादुर , गुरु हरगोविन्द ने मुस्लिम शासकों का सदैव विरोध किया ।
सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने 1699 ई . में खालसा पंथ की स्थापना की । इन्होंने खालसा अनुयायियों को 5 वस्तुओं यानी केश , कंघा , कड़ा , कच्छा और कृपाण धारण करने पर जोर दिया ।
गुरु गोविन्द सिंह के बाद गुरुओं की परम्परा समाप्त हो गयी ।
– गुरु गोविन्द सिंह के बाद ‘ आदिग्रन्थ ‘ को ही गुरु माना जाने लगा ।
सिक्ख धर्म के पांच प्रमुख केंद्र हैं – अकाल तख्त , हरमंदिर साहिब , पटना साहिब , आनन्दपुर साहिब और हुजूर साहिब ।
राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन अवधि में बनी महत्त्वपूर्ण संस्थाएँ
एशियाटिक सोसाइटी 1784 विलियम जोन्स
युवा बंगाल ( तरुण बंगाल ) हेनरी लुई विवियन डिरोजियो ।
ब्रिटिश सार्वजनिक सभा 1843 दादा भाई नौरोजी
रहनुमाई मज्यासन समाज 1851 दादा भाई नौरोजी
साइन्टिफिक सोसाइटी 1862 सर सैयद अहमद खाँ
देश का पहला अन्तरिम मंत्रिमंडल
कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष , विदेशी मामले तथा राष्ट्रमंडल — जवाहर लाल नेहरू
गृह , सूचना तथा प्रसारण — बल्लभ भाई पटेल
रक्षा — बलदेव सिंह
शिक्षा — सी . राजगोपालाचारी
खाद्य एवं कृषि – राजेन्द्र प्रसाद
श्रम — जगजीवन राम
वाणिज्य -आई . आई . चुन्दरीग र
विधि – जोगेन्द्र नाथ मंडल
उद्योग तथा आपूर्ति – जान मथाई
कार्य , खान एवं बंदरगाह –सी . एच . भाभा –
रेलवे — आसफ अली
वित्त : –लियाकत अली खां
संचार –अब्दुल रब नश्तर
स्वास्थ्य –गजान्तर अली खां
प्रथम भारतीय पुरुष
भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति – डॉ। राजेंद्र प्रसाद (1950 – 62)
स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री – पं। जवाहरलाल नेहरू (1947 – 64)
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित, प्रथम भारतीय – डॉ। रवीन्द्र नाथ टैगोर (1913, साहित्य)
भारतीय गणराज्य के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति – डॉ। जाकिर हुSAIN
भौतिकी में नोबेल पुरस्कार के पहले भारतीय प्राप्तकर्ता – सीवी वी। रमन (1930)।
अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय स्क्वाड्रन नेता – राकेश शर्मा (1984)
भारत के पहले फील्ड मार्शल – एसके एच। एफ। जे मानेकशॉ (1971)
स्वतंत्र भारत के पहले कमांडर-इन-चीफ – जनरल करियप्पा (1949)
स्वतंत्र भारत के गवर्नर जनरल – लॉर्ड माउंटबेटन (1947 – 48)
पहले ब्रिटिश गवर्नर जनरल ऑफ़ बंगाल प्रेसीडेंसी – जनरल लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स
प्रथम ब्रिटिश गवर्नर -जेनरल ऑफ इंडिया – लॉर्ड विलियम बैंटिक
अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल और भारत के पहले वायसराय – लॉर्ड कैनिंग
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष – व्योमेश चैन टैक्स बनर्जी (1885),
प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल – सी। राजगोपालाचारी (1948)
प्रथम भारतीय एफ । आर। एस।IFS – ए । Curset G
I C। एस। होने वाले पहले भारतीय – सत्येंद्र नाथ टैगोर (1869)
आईए सी। एस। शामिल होने वाले पहले भारतीय – सत्येंद्र नाथ टैगोर
भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश – न्यायमूर्ति हीरालाल जे। कनिया (1950 – 51) •
वायु सेना के प्रथम प्रमुख – एयर मार्शल एस। मुखर्जी (1954)
नौसेना स्टाफ के पहले प्रमुख – वाइस एडमिरल आर.के. डी। कटरी (1958 – 62)
प्रथम भारतीय पायलट – जेके आर । डी। टाटा (1929)
दक्षिण ध्रुव पर पहुंचने वाले पहले भारतीय – लेफ्टिनेंट राम चरण (1960)
• अंग्रेजी चैनल में तैरने वाले पहले भारतीय – मिहिर सेन (1958):
नेपाली माउंट एवरेस्ट तक पहुँचने के लिए – शेरपा तेनजिंग (1953)
लोकसभा के पहले स्पीकर – जी । वी। मावलंकर (1952 – 57)।
राज्यसभा के पहले उपाध्यक्ष – एस के वी। कृष्णमूर्ति
प्रथम राष्ट्रKAV I – मैथिलीशरण गुप्त
वीर चक्र प्राप्त करने वाले पहले वायु सेना अधिकारी – निर्मलजीत शेखोन (मरणोपरांत)
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश – डॉ। नागेंद्र सिंह,
पहले भारतीय अंटार्कटिका अभियान के नेता – डॉ। सैयद ज़हूर क़ासिम
भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त – सुकुमार सेन
ब्रिटेन के हाउस ऑफ़ कॉमन्स के पहले भारतीय सदस्य – दादा भाई नौरोजी (1892) )
• विश्व बिलियर्ड्स खिताब जीतने वाले पहले भारतीय – विल्सन जोन्स,
सेवा में पास होने वाले पहले भारतीय सेनाध्यक्ष – जनरल विपिनचंद्र जोशी
सार्वजनिक सेवा के लिए रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति थे – सी डी देशमुख
ग्रैमी पुरस्कार से सम्मानित होने वाले भारतीय – पं। रविशंकर
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पहले भारतीय उप प्रबंधक – प्रभाकर आर आर नरवेकर
मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया – लाल बहादुर शास्त्री •
प्रथम भारतीय वैज्ञानिक नोबेल पुरस्कार से सम्मानित – चंद्रशेखर वेंकटरमन
भारत में पहला समाचार पत्र
, जेम्स ऑगस्टस हिक्की का ‘बंगाल गजट’, जो 29 जनवरी, 1781 को प्रकाशित हुआ था, भारत का पहला समाचार पत्र था। 1818 में प्रकाशित पहला भाषाई दैनिक ‘समचार दरपन’ बंगाली दैनिक था। ‘उदंत मार्तंड’ (संपादक – पं। युगल किशोर शुक्ल) पहले हिंदी समाचार पत्र थे।
डाक व तार भारत में
पहली पोस्ट ऑफिस 1727 में कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा खोला गया था,
पहले तार लाइन डायमंड हार्बर और कोलकाता (33.8 किमी) के बीच अक्टूबर 1851 में शुरू किया गया था
,भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार सेवा 1870 ई उत्पन्न (मुंबई से लंदन)।
18 फरवरी 1911 को बमरौली से नैनी (इलाहाबाद) तक पहली एयर मेल सेवा (भारत और दुनिया में) बनाई गई थी ।
FIRS POSTAL TICKET 1852 में जारी की गई थी। T
ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली देश की पहली महिला मुक्केबाज – एम. सी.मैरी कॉम
भारत में रेडियो प्रसारण सेवा की शुरुआत 1927 में मुंबई और कोलकाता में दो गैर-आधिकारिक ट्रांसमीटरों की स्थापना के साथ हुई।
भारत का पहला दूरदर्शन केंद्र प्रायोगिक तौर पर नई दिल्ली में 15 सितंबर 1959 को स्थापित किया गया था।
दूरदर्शन से रंग कार्यक्रमों का प्रसारण 15 अगस्त 1982 को शुरू हुआ।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी
पहला भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’: 19 अप्रैल 1975 को अंतरिक्ष में रखा गया था ।
पहला स्वदेश निर्मित उपग्रह ‘इनसाइट 2 ए’: अंतरिक्ष में रखा गया था। 10 जुलाई 1992.
भारत का पहला आणविक भूमिगत परीक्षण: 18 मई 1974 को पोखरण (जैसलमेर, राजस्थान)।
भारत का पहला बड़े पैमाने पर परमाणु भट्टी: अप्सरा ने 4 अगस्त 1956 को परिचालन शुरू किया।
पहला जल विद्युत केंद्र: दार्जिलिंग (1898 ई।)।
स्वदेशी डिजाइन और पहली स्वदेशी निर्मित मिसाइल: 1988 ई। ‘पृथ्वी’ मिसाइल का प्रक्षेपण किया गया।
पहला टेस्ट ट्यूब बेबी: 1986 ईस्वी बेबी हर्षा का जन्म
पहली टेस्ट ट्यूब BUFFALO में: जन्म 1990 में नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट, करनाल में हुआ। ।
। पहला परिवार नियोजन केंद्र: 1925 में मुंबई में।
अंटार्कटिका पर कदम रखने वाले पहले भारतीय: डॉ। डी। एस। सिरोही (1967 में अमेरिकी वैज्ञानिक अभियान के तहत)
पहला अंटार्कटिक अभियान: 6 दिसंबर 1981 – जनवरी 1982 जेड कासिम के नेतृत्व में ।
पहली भारतीय महिला
फॉर्मूला वन में पहली भारतीय मूल की महिला टीम की प्रिंसिपल – मोनिशा कल्टबॉर्न,
ओलंपिक खेलों के दौरान बैडमिंटन प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतने वाली पहली महिला, साइना नेहवाल
भारत की सर्वोच्च संवैधानिक पद धारण करने वाली पहली महिला हैं – श्रीमती देवी सिंह प्रतिभा पाटिल
LOKSABHA की स्पीकर पहली भारतीय महिला बनीं। 2000 में मीरा क़मर)
नॉर्मन बोरलॉग पुरस्कार पाने वाली पहली भारतीय महिला – डॉ। अमृता पटेल
ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला – एन। पॉली (1924 टेनिस)
भारत रत्न पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली महिला – श्रीमती इंदिरा गांधी,
पहली भारतीय महिला नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने के लिए – मदर टेरेसा
भारत की पहली फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ महिला – सीता वर्थम्बल और भारंगथम्बल (दोनों बहनें)
अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला – कल्पना चावला
भारतीय सिनेमा की पहली नायिका – देविका रानी
पहली बार स्पीकर बनीं राज्य विधान सभा महिलाएँ – श्रीमती शन्नो देवी
एशियाड स्वर्ण पदक विजेता – – कमल जी संधू
राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रथम अध्यक्ष – श्रीमती जयंती पटनायक (1992)
अर्जुन पुरस्कार पाने वाली पहली महिला – एन। लम्सडेन –
प्रथम भारतीय महिला सर्जन – डॉ। प्रेमा मुखर्जी,
डब्ल्यूटीए टेनिस टूर्नामेंट जीतने वाली पहली महिला – सानिया मिर्ज़ा,
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष – एनी बेसेंट (1917),
आरबीआई की पहली डिप्टी गवर्नर – के जे UDESHI
। भारत की महिला विदेश मंत्री – लक्ष्मी एन। मेनन
अंटार्कटिका में जाने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं -MEHARMOOS (1976 में),
भारतीय वायु सेना की पहली महिला पैराट्रूपर – नीता घोष,
100 विकेट लेने वाली पहली भारतीय महिला क्रिकेटर – डायना इडुलजी,
राज्यसभा की पहली महिला महासचिव – वी एस रामादेवी ।
सुप्रीम कोर्ट की प्रथम महिला न्यायाधीश – न्यायमूर्ति मीरा साहिब फातिमा बीबी (1989)
प्रथम महिला रेलवुमन – सुरेखा शंकर यादव
प्रथम भारतीय महिला बुकर पुरस्कार जीतने वाली – अरुंधति राय
प्रथम महिला पेप्सिको की सीईओ – इंद्रा नूई
प्रथम महिला संपादक – कमला स्वामीनाथन
भारतीय प्रथम एयरलाइंस की महिला पायलट
सबसे लंबे समय SPACE स्थान पर रहने वाली पहली महिला – सुनीता विलियम्स,
सबसे कम उम्र की महिला लेखिका, बुकर पुरस्कार विजेता – किरण देसाई,
ओआईसी कार्ड प्राप्त करने वाली पहली महिला – निवृत्ति राय,
संयुक्त राष्ट्र की पहली महिला अध्यक्ष विधानसभा – श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित (1953)
भारतीय राज्य। प्रथम महिला मुख्यमंत्री (यूपी) – श्रीमती सुचेता कृपलानी (1963 – 67)
प्रथम महिला मंत्री – राजकुमारी अमर ता कौर
प्रथम महिला राजदूत – श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित
पहली भारतीय महिला, जिन्होंने माउंट एवरेस्ट – कू । बछेंद्री पाल (1984)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष – एनी बेसेंट (1917)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष – सरोजिनी नायडू (1925)
प्रथम महिला विधायक – एसके मुथुलक्ष्मी रेडी (1926)
पहली महिला आई ए एस अधिकारी – अन्ना राजम जॉर्ज (1950)
राज्य की पहली डीजीपी बनने वाली पहली महिला – कंचन सी। भट्टाचार्य (उत्तराखंड)
पहली महिला राज्यपाल – सरोजिनी नायडू (यूपी)
प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश – लीला सेठ (एचपी , 1991)
• पहली महिला वकील – सी । सोराबजी (इलाहाबाद, 1923)।
प्रथम महिला न्यायाधीश – अन्ना चांडी (1949)
पहली महिला आई पी S। अधिकारी – किरण बेदी (1972)।
सेना पदक जीतने वाली पहली महिला – विमला देवी (CRPF, 1990)
, पहली महिला नोबेल पुरस्कार विजेता – मदर टेरेसा (1979),
दिल्ली की विश्व सुंदरी (मिस वर्ल्ड) – रीता फारिया (1966)
बनने वाली पहली महिला। सिंहासन पर बैठने वाली पहली और एकमात्र मुस्लिम महिला – रजिया बेगम (1236)
अंग्रेजी चैनल पर तैरने वाली पहली महिला – आरती साहा (वर्तमान में आरती गुप्ता)
पहली महिला चिकित्सक ` – आनंदी बाई जोशी
एवरेस्ट दो बार और पहली भारतीय महिला पर चढ़ने वाली । – संतोष यादव
FIRS प्रधानमंत्री – इंदिरा गांधी । ।
जिब्राल्टर जलडमरूमध्य में तैरने वाली पहली महिला _ _ – आरती प्रधान (1988)
रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली महिला _ _ _ – किरण बेदी,
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की महानिदेशक नियुक्त होने वाली पहली महिला – जी । वी। सत्यवती
फर्स्ट वुमन को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया – अमृता प्रीतम
फर्स्ट वुमन को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया – आशापूर्णा देवी (1976)
शतरंज में प्रथम ग्रैंड मास्टर का खिताब पाने वाली पहली महिला – भाग्यश्री थिप्से (1986)
प्रथम दूरदर्शन। समचार वाचिका – प्रतिमा पुरी
राज्यसभा प्रथम महिला उपप्रमुख _ _ _ _ – मार्गेट अल्वा (1962) •
लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित लड़की – अरुणा आसफ अली
प्रथम मिस यूनिवर्स – सुषमाsusmita सेन
महत्वपूर्ण संक्षिप्त नाम
ओशो – आचार्य रजनीश
एडम स्मिथ – अर्थशास्त्र के जनक
एडोल्फ हिटलर – FURER
अल्फ्रेड हिचकॉक – सस्पेंस के मास्टर
एंड्रयू डी। सखारोव – हाइड्रोजन बम के जनक
बाल गंगाधर तिलक – लोकमAMYA
भगत सिंह – शहीद – ए – आज़म
सी। राजगोपालाचारी – राजाजी
सी। । एफ। एंड्रयूज – दीनबंधु
दादाभाई नौरोजी – भारत के ग्रैंड Oldman,
और “भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के जनक”
दादा साहेब फालके – भारतीय सिनेमा पिता
एडमंड स्पेंसर – – कवि के कवि –
अर्नेस्ट रदरफोर्ड -परमाणु भौतिकी के पिता
वेलिंगटन के ड्यूक बर्फ ड्यूक के
फ्लोरेंस नाइटिंगेल – लेडी लैम्प
गियोवन्नी बकासियो – उपन्यास के पिता
गुरचरण सिंह – द ओल्ड मैन ऑफ इंडियन पॉटरी
हेनरिक जे। इबसेन – आधुनिक नाटक के पिता
हेरोडोट्स – इतिहास के पिता
हिप्पोक्रेट्स – चिकित्सा के पिता
होमी जे। भाभा – भारतीय परमाणु विज्ञान के पिता
इंदिरा गांधी – भारत की लौह महिला
जे जे आर डी टाटा – भारत में वैमानिकी के पिता
जमशेद जी। टाटा – भारतीय उद्योगों के जनक
जयप्रकाश नारायण – लोकनायक
जोसेफ प्रीस्टले – आधुनिक रसायन शास्त्र के जनक।
K म । करिअप्पा – भारतीय अमी के ग्रैंड ओल्डमैन
कालिदास – भारतीय शेक्सपियर (भारत के शेक्सपियर)
खान अब्दुल गफ्फार खान – फ्रंटियर गांधी / बादशाह खान / फकर – ए – अफगान एम ।
गोवलकर – गुरुजी
नंदलाल बोस – भारत के आधुनिक चित्रों के जनक
राजाराम मोहन रॉय – भारतीय पुनर्जागरण के पिता
समुद्रगुप्त – भारतीय नेपोलियन
सलीम अली – भारत के पक्षी विशेषज्ञ
सेंट निकोलस – सांता क्लॉज़
सुश्रुत – आधुनिक प्लास्टिक सर्जरी के जनक। ।
थॉमस कुक – आधुनिक पर्यटन के जनक
TUSAR KANTI घोष – भारतीय पत्रकारिता के ग्रैंड ओल्ड मैन।
आंध्र केसरी – टी प्रकाशम
बंगबंधु – शेख मुजीबुर रहमान
बापूजी – महात्मा गांधी
अन्ना – सी एन अन्नादुरई
चाचा – जवाहर लाल नेहरू बार्ड –
सर वाल्टर स्कॉट – उत्तर के आश्चर्य
चाचा हो -डॉ हो ची मिन्ह
टाइगर ऑफ़ स्नो – तेनजिंग नोर्गे
टी टी के टी टी कृष्णामाचारी
गौरैयाSPARROW – मेजर जनरल राजिंदर सिंह
शेर – ए – कश्मीर – शेख मोहम्मद अब्दुल्ला
नाइटिंगेल ऑफ़ इंडिया (भारत का कोकिला) – सरोजिनी नायडू
नेताजी – सुभाष चंद्र बोस
शांत व्यक्ति – लाल बहादुर शास्त्री
सरदार पटेल -IRON MAN
मार्क ट्विन – सैमुअल क्लेमेंस
मेडन क्वीन – एलिजाबेथ – प्रथम
महाम मोहन – पं। मदन मोहन मालवीय
मैन ऑफ डेस्टिनी – नेपोलियन
ली – क्वान – पर्ल एस बक
लिटिल कॉर्पोरल – नेपोलियन
पंजाब केशरी, पंजाब के शेर – लाला लाजपत राय
लाल, बाल, पाल – लाला लाजपत राय,
बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल
किपर – फील्ड मार्शल के। एम। करिअप्पा
किंग मेकर – अर्ल ऑफ़ वर्विशायर
भारत के प्रसिद्ध व्यक्ति और उनसे संबंधित स्थान
तलवंडी गुरु नानक
कपिलवस्तु / बोधगया / लुम्बनी / कुशीनगर गौतम बुद्ध
राजघाट / पोरबंदर / साबरमती / फीनिक्स फार्म महात्मा गांधी
शांति निकेतन रवींद्रनाथ टैगोर
निर्मल हृदय मदर टेरेसा।
सदाकत आश्रम डॉ। राजेंद्र प्रसाद
बाबा आमटे – आनंद वन
BAGLUR ` रामकृष्ण परमहंस
चित्तौड़गढ़ / हल्दीघाटी महाराणा प्रताप
विजयघाट लाल बहादुर शास्त्री
बारादOLI सरदार वल्लभभाई पटेल
पवनार आश्रम आचार्य विनोवा भाव
किसान घाट चौ। चरण सिंह
समता स्थली जगजीवन राम
शांति वन / किशोर मूर्ति भवन जवाहरलाल नेहरू –
शक्ति स्थली इंदिरा गांधी
वीर भूमि राजीव गांधी
जलियांवाला बाग जनरल डायर
भारत में प्रथम
भारत के प्रथम राष्ट्रपति – डॉ। राजेंद्र प्रसाद।
प्रथम प्रधानमंत्री – पंडित जवाहरलाल नेहरू।
पहले पूरी तरह से गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री – अटल बिहारी वाजपेयी।
भारत गणराज्य के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति – डॉ। ज़ाकिर हुसैन।
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले पहले व्यक्ति। -अटल बिहारी वाजपेयी
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाला पहला व्यक्ति – तेनजिंग नोर्गे।
प्रथम उप प्रधान मंत्री – सरदार वल्लभभाई पटेल।
सुप्रीम कोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश – हीरालाल जे। कनिया।
पहले गीतकार को दादा साहब फाल्के पुरस्कार – मजरूह सुल्तानपुरी
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति – CC D. देशमुख
पहले व्यक्ति जिन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। – जी शंकर बदसूरत।
नॉर्मन बोरलॉग पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति – डॉ। अमृता पटेल।
भारतीय सेना के पहले जनरल – जनरल केके एम। कृपया |
प्रथम फील्ड मार्शल – जनरल एस एच। एफ। जे। माणिक शॉ।
प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त – सुकुमार सेन –
प्रथम लोकसभा अध्यक्ष – जीके वी। मावलंकर
– प्रथम अंतरिक्ष यात्री – स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा।
पहले सेनाध्यक्ष – जनरल महाराज राजेंद्र सिंह।
प्रथम नौसेना प्रमुख – वाइस एडमिरल आरके डी। कटारी
प्रथम वायु प्रमुख – एयर मार्शल सर एस मुखर्जी।
पहली पनडुब्बी – IA N. s। Kalabheri।
• पहला विमान वाहक – IA N. s। विक्रांत। ।
पहली मिसाइल – पृथ्वी। ।
पहली मध्यम दूरी की मिसाइल – अग्नि।
पहला आणविक केंद्र 1 – तारापारा।
प्रथम मुक्त विश्वविद्यालय – आंध्र प्रदेश मुक्त विश्वविद्यालय।
पहला विश्वविद्यालय – नालंदा विश्वविद्यालय।
भारतीय प्रिंटिंग प्रेस शुरू करने वाले पहले व्यक्ति – जेम्स हिक्की।
स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री – अबुल कलाम आज़ाद।
भारत का पहला परमाणु रिएक्टर 4 – अप्सरा।
प्रोजेक्ट टाइगर के मुख्य निर्देशक – कैलाश खानखला।
। डेविस कप में खेलने वाले पहले खिलाड़ी – एमवी सलीम और एस। एम। जैकब (एकल)।
बायोस्फीयर रिजर्व – नीलगिरि।
बात कर रहे फिल्म – आलमारा।
सरदार सरोवर बांध के पानी में डूबता हुआ गाँव – बडगाम।
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पहले भारतीय – तेनजिंग नोर्गे।
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला – सुश्री बछेंद्री पाल।
पहला मोबाइल पुलिस स्टेशन – होशियारपुर, पंजाब।
पहला मोबाइल कोर्ट – मेवात, हरियाणा।
पहली शाम दरबार वाला राज्य – गुजरात।
पहली भारतीय अंटार्कटिका अभियान दल के नेता – डॉ। सैयद गहूर कासिम।
भारत – रत्न से सम्मानित प्रथम विदेशी नागरिक – खान अब्दुल गफ्फार खान।
हृदय प्रत्यारोपण के पहले सफल सर्जन, – डॉ। पी। वेणुगोपाल
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पहले अध्यक्ष – रंगनाथ मिश्रा।
एक कैलेंडर वर्ष में पांच जल-ड्रम तैरने वाले पहले भारतीय। – मिहिर सेन –
संविधान सभा के पहले अस्थायी अध्यक्ष -डॉ। सच्चिदानंद सिन्हा।
प्रथम उपराष्ट्रपति ईटी -डॉ। सर्वपल्ली राधाकृष्णन।
नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति – रवीन्द्र नाथ टैगोर।
पहला मुगल सम्राट – बाबर
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष – व्योमेश चंद्र बनर्जी।
पहला आई। सी। एस। – सत्येंद्र नाथ टैगोर
पहले मंगोल ने भारत पर आक्रमण किया – चंगेज खान।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के प्रथम भारतीय मुख्य न्यायाधीश – डॉ। नागेंद्र सिंह।
अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय व्यक्ति – डॉ। अमर्त्य सेन ।
भारत में सबसे अधिक मतों से जीतने वाले सांसद – पीवी वी। नरसिम्हा राव।
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले हिंदी साहित्यकार। -सुमित्रानंदन पंत
ग्रैमी पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति – पं। रवि शंकर।
वर्ल्ड विलियम्स का खिताब जीतने वाले पहले भारतीय – विल्सन जोन्स।
। पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले क्रिकेट खिलाड़ी – सीसी के नायडू
टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले पहले भारतीय – केके एस। रणजीत सिंहजी (इंग्लैंड से)।
परमवीर चक्र से सम्मानित प्रथम व्यक्ति – मेजर सोमनाथ शर्मा।
पहले भारतीय वैज्ञानिक ने चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया – डॉ। हरगोविंद खुराना
राष्ट्रपति भवन में रहने वाले पहले व्यक्ति – लॉर्ड इरविन।
• ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स के पहले भारतीय सदस्य – दादाभाई नौरोजी।
भारत में प्रथम ब्रिटिश गवर्नर जनरल – वारेन हेस्टिंग्स।
ब्रिटिश भारत का पहला वायसराय – लॉर्ड कैनिंग।
स्वतंत्र भारत के पहले विदेशी / पहले ब्रिटिश गवर्नर जनरल – लॉर्ड माउंटबेटन।
स्वतंत्र भारत के पहले / अंतिम भारतीय गवर्नर जनरल – सी। राजगोपालाचारी।
मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय – आचार्य विनोबा भावे।
भारत रत्न से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति – डॉ। सर्वपल्ली राधा कशनन।
अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य बनने वाले पहले भारतीय व्यक्ति – दिलीप सिंह
सैंड।
व्यक्ति को पहले राष्ट्रीय प्रोफेसर पुरस्कार से सम्मानित किया गया – डॉ। सी। वी। रमन।
लोकसभा सदस्यता के लिए पहले वैज्ञानिक चुने गए। । – मेघनाथ साहा
• एक कैलेंडर वर्ष में छह जलडमरूमध्य तैरने वाले पहले। भारतीय – कृवाली श्रवण
प्रथम भारतीय वैज्ञानिक को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया – डॉ। सी। वी। रमन।
प्रथम जनगणना वर्ष (प्रायोगिक) – 1872 ई।
। दस वर्षीय नियमित जनगणना का प्रथम वर्ष – 1881 ई ।
कांग्रेस सत्र में भारत की स्वतंत्रता का प्रस्ताव करने वाला पहला व्यक्ति – हसरत सोहनी।
प्रथम महिला प्रधान मंत्री – श्रीमती इंदिरा गांधी।
प्रथम महिला राज्यपाल – श्रीमती सरोजिनी नायडू।
दूरदर्शन केंद्र – नई दिल्ली (स्था। 1959 ई।)।
समाचार पत्र – बंगाल गजट (जेम्स हिक्की)।
टेलीग्राफ (टेलीग्राफ) – डायमंड हार्बर से कलकत्ता (1853 ई।)।
भारतीय उपग्रह – आर्यभट्ट।
एयर मेल सेवा – इलाहाबाद से नैनी (18 फरवरी, 1911)।
कॉटन टेक्सटाइल मिल – द बॉम्बे स्पिनिंग एंड वीविंग कंपनी (1854 ई।)।
फुटबॉल क्लब – मोहन बागान (स्थापना – 1889 ईस्वी)।
फिंगर प्रिंट ब्यूरो – कलकत्ता ।
आणविक परीक्षण – 18 मई, 1974।
आणविक परीक्षण – साइट – पोखरण (राजस्थान)।
अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार सेवा – बॉम्बे से लंदन।
खुला आकाश हवाई अड्डा – गया (बिहार)।
सौर झील – भुज (कच्छ क्षेत्र, गुजरात)।
हिंदी भाषा का समाचार पत्र – उदंत मार्तड (साप्ताहिक)।
जलविद्युत परियोजना – शिवसमुद्रम (स्था। 1902 ई।)।
उर्वरक कारखाना स्थापित करने के लिए राज्य तमिलनाडु(स्था।190
जिला पूरी तरह से साक्षर आदिवासी आबादी के रूपमें
डूंगरपुर(राजस्थान)।
संयुक्त राष्ट्र में पहली महिला राजदूत – विजया लक्ष्मी पंडित।
मिस यूनिवर्स बनने वाली पहली महिला – सुश्री सुष्मिता सेन ।
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली महिला – मदर टेरेसा।
। प्रथम महिला ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित – आशापूर्णा देवी।
पहली महिला केंद्रीय मंत्री -राजकुमारी अमृता कौर।
भारत की पहली मुस्लिम महिला शासक – रज़िया सुल्तान –
अशोक चक्र से सम्मानित प्रथम महिला – नीरजा मिश्रा।
भारत रत्न से सम्मानित होने वाली पहली महिला – श्रीमती इंदिरा गांधी।
• नाव द्वारा पूरी दुनिया की परिक्रमा करने वाली पहली महिला – उज्जवला पाटिल।
दूरदर्शन (रंग कार्यक्रम) – 15 अगस्त 1982,
टेस्ट ट्यूब बेबी – वीवी हर्ष (जन्म 1986)।
मूक फिल्म – राजा हरिश्चंद्र।
महिला रोजगार कार्यालय – जयपुर।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का उपयोग कर राज्य – केरल
विधानसभा उपचुनाव (अप्रैल 1982)।
• पहला सौर शहर – आनंदपुर साहिब (पंजाब)।
पहला सीएनजी बस सेवा शहर – दिल्ली।
– पहला ई-बिजनेस अखबार – फाइनेंशियल एक्सप्रेस।
– पहला पूरी तरह से कंप्यूटर शिक्षित गाँव – चामग्रावट्टम (केरल)।
पहला निर्यात संवर्धन औद्योगिक पार्क – सीतापुर (जयपुर के पास)।
पहला निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र – कांडला, गजरात।
महिलाओं के लिए पहली केंद्रीय जेल – नई दिल्ली।
टी 20 मैचों में शतक बनाने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर। । – मनीष पांडे –
अनुसूचित जातियों के पहले राष्ट्रपति – केके आर। नारायणन।
अनुसूचित जाति के पहले मुख्य न्यायाधीश – केके जी। बालकृष्णन।
सुखोई – 30, सिंधु घोष प्रथम राष्ट्रपति पनडुब्बी की सवारी करने और सियाचिन की यात्रा करने के लिए –
डॉ। ए। पी। जे। अब्दुल कलाम
प्रथम महिला राष्ट्रपति – प्रतिभा पाटिल।
प्रथम महिला / दलित महिला लोकसभा अध्यक्ष – मीरा कमर
प्रथम वैज्ञानिक राष्ट्रपति – एपीजे अब्दुलकलाम।
प्रथम महिला विदेश सचिव – चोकिला अय्यर।
प्रथम महिला कैबिनेट सचिव – निर्मला बुच।
भारतीय मूल की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री। -कल्पना चावला –
सबसे लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने वाली भारतीय मूल की पहली महिला। युग –
सुनीता विलियम्स
पहली बार बिंबलडन मिश्रित डबल खिताब जीता। भारतीय (2010 में खिताब जीतने के बाद) – लेंडर पेस।
भारत का पहला राज्य पूरी तरह से बैंकिंग – केरल (2011 में घोषित)।
पहला पूरा देश Nr।: वातानुकूलित बस टर्मिनल – मोहाली (पंजाब);
नवंबर 2011 में स्थापित किया गया। भारत का पहला वाणिज्यिक सौर ऊर्जा संयंत्र
– अवन ग्राम, अमृतसर जिला (पंजाब)।
भारत में निर्विरोध लोकसभा चुनाव जीतने वाली पहली महिला
– डिम्पल यादव (वर्ष, 2012 में कन्नौज सीट से)।
भारत का पहला मेगा फूड पार्क – श्रीनी मेगा फूड पार्क, चित्तूर, आंध्र प्रदेश (वर्ष 2012)।
पंचायतों में 50% महिला आरक्षण लागू करने वाला पहला राज्य – बिहार।
50 से अधिक महिला सदस्यों के साथ पहली लोकसभा – 15 वीं लोकसभा (2009 ई।)।
पहली ई-कोर्ट की स्थापना (वर्ष 2009 में) – अहमदाबाद (गुजरात)।
भारत में लंदन कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन का पहला कार्यालय – नई दिल्ली।
पहली स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी (2009 में लॉन्च) – आईएनएस अरिहंत।
कृषि कैबिनेट की स्थापना करने वाला देश का पहला राज्य – बिहार (2011 में)।
प्रथम राष्ट्रीय महिला बैंक की पहली निदेशक – सुब्रह्मण्यम।
15 हजार शाखा कार्यालय खोलने वाला पहला बैंक – भारतीय स्टेट बैंक।
क्रिकेट की पत्रिका ‘विजडन’ के कवर पर 14 उपस्थिति दर्ज करने वाले पहले भारतीय
– सचिन तेंदुलकर
– आर्कटिक में भारत का पहला अनुसंधान केंद्र (2008 में स्थापित) – हिमाद्री।
विश्व का पहला दोहरा शतक बनाने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज – सचिन तेंदुलकर।
ओलंपिक में पहला स्वर्ण पदक जीतने वाले भारतीय खिलाड़ी – अभिनव बिंद्रा।
। भारत का पहला अंडा बैंक – अहमदाबाद में (2012 में स्थापित)।
प्रौद्योगिकी का पहला महिला विश्वविद्यालय।
– इंदिरा गांधी दिल्ली तकनीकी विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (वर्ष 2013 में स्थापित)।
राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद की प्रथम महिला निदेशक – अरुणा बहुगुणा।
पहला राष्ट्रीय महिला बैंक – नरीमन पॉइंट (मुंबई)।
प्रथम महिला डाकघर – नई दिल्ली (स्था। – वर्ष 2013)। पहला ओशनारियम की स्थापना। – गोवा ।
पहला पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत डाकघर
– नई दिल्ली। टेस्ट क्रिकेट में पहली हैट्रिक लेने वाले भारतीय – हरभजन सिंह
टेस्ट क्रिकेट में तिहरा शतक बनाने वाले पहले भारतीय – वीरेंद्र सहवाग।
टेस्ट क्रिकेट में 30 शतक और 10000 रन पूरे करने वाले पहले भारतीय – सुनील गावस्कर –
क्रिकेट के तीनों अंतर्राष्ट्रीय प्रारूपों (टेस्ट, वनडे, ट्वेंटी 20) में शतक बनाने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर।
-सुरेश रैना
टेस्ट क्रिकेट में 15000 रनों और 51 शतकों के रिकॉर्ड तक पहुंचने वाले दुनिया के पहले खिलाड़ी।
– सचिन तेंदुलकर –
विश्व और भारत के पहले खिलाड़ी जिन्होंने 49 एकदिवसीय मैच और 18000 रन बनाए।
-सचिन तेंदुलकर –
20 मैचों में 6 गेंदों पर 6 छक्के लगाने वाले विश्व / भारत के पहले खिलाड़ी। -युवराज सिंह –
भारत के प्रमुख व्यक्तियों के समाधि स्थल
राजघाट -महात्मा गाँधी
शान्तिवन – पं . जवाहर लाल नेहरू
शक्तिस्थल -इन्दिरा गाँधी
विजय घाट -लाल बहादुर शास्त्री
किसान घाट – चौधरी चरण सिंह
समता स्थल -जगजीवन राम
वीर भूमि – राजीव गाँधी
महाप्रयाण घाट -डा . राजेन्द्र प्रसाद
कर्मभूमि -के . आर . नारायण
अभय घाट – मोरारजी देसाई
भारत के प्रमुख व्यक्तियों के लोकप्रिय उपनाम
लोकनायक -जयप्रकाश नारायण
जननायक -कर्पूरी ठाकुर।
गुरुदेव , विश्वकवि , कविगुरु – रवीन्द्रनाथ टैगोर •
शहीद – ए – आजम -भगत सिंह
– दीनबन्धु – सी . एफ . एण्डूज
लिट्ल मास्टर -सुनील गावस्कर
बाबूजी -जगजीवन राम
मास्टर ब्लास्ट – सचिन तेंदुलकर
राजर्षि -पुरुषोत्तम दास टंडन
शेरे कश्मीर – शेख अब्दुल्ला
माता वसन्त – एनी वेसेण्ट
देशरत्न , आजातशत्रु , बिहार का गाँधी- -डॉ . राजेन्द्र प्रसाद
भारतीय पुनर्जागरण के प्रभात नक्षत्र – राजा राममोहन राय
बड़े साहब , बिहार विभूति – – डॉ . अनुग्रह नारायण सिंह
लौह पुरुष – -सरदार वल्लभ भाई पटेल –
राजाजी- -चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
, बापू , युगपुरुष , नेकेड , फकीर – महात्मा गाँधी राष्ट्रपिता
ताऊ –- – चौधरी देवीलाल
चाचा – पं . जवाहर लाल नेहरू
सीमान्त गाँधी – खान अब्दुल गफ्फार खाँ
लोकमान्य -बाल गंगाधर तिलक
गुरुजी – एम . एस . गोलवलकर
आन्ध्र केशरी – टी . प्रकाशम् –
नाइटिंगेल ऑफ इण्डिया -सरोजिनी नायडू
– बिहार केशरी – श्रीकृष्ण सिंह
भारतीय मैकियावेली -चाणक्य
– लाल , बाल , पाल – लाला लाजपत राय , बाल गंगाधर तिलक , विपिन चन्द्र पाल –
पंजाब केशरी -लाला लाजपत राय –
निर्मल हृदय – मदर टेरेसा
महामना – पं . मदन मोहन मोहन मालवीय
बंगाल केशरी -आशुतोष मुखर्जी
– भारत का नेपोलियन -समुद्रगुप्त
हरियाणा हरिकेन – कपिलदेव –
– नेताजी -सुभाष चन्द्र बोस
तूति – ए – हिन्द -अमीर खुसरो
भारत का शेक्सपीयर – कालिदास
शान्तिपुरुष – लाल बहादुर शास्त्री
युवा तुर्क . -चन्द्रशेखर
निराला -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
प्रियदर्शी – – सम्राट अशोक •
विद्रोही कवि- -काजी नजरूल इस्लाम
. मिस्टर क्लीन -राजीव गाँधी
हॉकी का जादूगर -ध्यानचंद
मैसूर का शेर – टीपू सुल्तान
वयोवृद्ध पुरुष -दादा भाई नौरोजी
देशबन्धु – चितरंजन दास
उड़नपरी – पी . टी . ऊषा
स्वर कोकिला -लता मंगेशकर –
महबूब – ए – इलाही -शेख निजामुद्दीन
भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति
भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है , जिसका प्रारम्भ 1954 ई० में किया गया । भारत – रत्न पुरस्कार का संकेत – चिह्न पीपल का पत्ता होता है ।
अब तक जिन व्यक्तियों को इस सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया है उसका विवरण निम्नलिखित हैं
1954 → सर्वपल्ली राधा कृष्णन , चक्रवर्ती राजगोपालाचारी तथा डॉ . चन्द्रशेखर वेंकट रमण ।
1966 → लाल बहादुर शास्त्री ( मरणोपरान्त ) ।
1971 → इन्दिरा गाँधी ।
1991 → राजीव गाँधी ( मरणोपरान्त ) , सरदार वल्लभ भाई पटेल ( मरणोपरान्त ) , मोरारजी देसाई ।
1992 → सुभाष चन्द्र बोस ( मरणोपरान्त ) , जे . आर . डी . टाटा , गुलजारी लाल नन्दा , मौलाना अबुल कलाम आजाद ( मरणोपरान्त )
1997 → ए . P. जे . अब्दुल कलाम , अरुणा आसफ अली ।
1998 → सी . सुब्रमण्यम , एम . एस . सुब्बुलक्ष्मी ।
1999 → जयप्रकाश नारायण ( मरणोपरान्त ) , पंडित रविशंकर , गोपीनाथ बारदोलाई , प्रो० अमर्त्य सेन ।
2000 → लता मंगेशकर , उस्ताद विस्मिल्लाह खाँ ।
2009 → पण्डित भीमसेन जोशी ।
2013 → सचिन तेंदुलकर , डॉ०सी०एन०आर० राव ।
2014 → अटल बिहारी वाजपेयी , पं . मदनमोहन मालवीय ।
भारत के कुछ प्रसिद्ध स्थान
जामा मस्जिद नई दिल्ली
ताजुल मस्जिद भोपाल
शांताक्रुज मुम्बई
शालीमार बाग श्रीनगर
सारनाथ बनारस
लालकिला दिल्ली , आगरा
अमरनाथ कश्मीर
आनंदभवन इलाहाबाद
आईलैण्ड पैलेस उदयपुर
चारमीनार हैदराबाद
दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंटआबू ( राजस्थान )
गेटवे ऑफ इंडिया मुम्बई
बीजापुर गोलकुण्डा का किला हैदराबाद
शांति निकेतन कोलकाता
स्वर्ण मंदिर अमृतसर
विक्टोरिया मेमोरियल कोलकाता
रॉक मेमोरियल कन्याकुमारी तमिलनाडु
ताजमहल आगरा
सांची का स्तूप भोपाल
टावर ऑफ साइलेंस मुम्बई
साइलेंट वैली केरल
त्रिमूर्ति भवन नई दिल्ली
अजंता एलोरा की गुफाएँ औरंगाबाद
एलीफेण्टा मुम्बई
ब्लैक पैगोडा कोणार्क ( भुवनेश्वर )
इंडिया गेट नई दिल्ली
वृंदावन गार्डन मैसूर
बुलंद दरवाजा फतेहपुर सीकरी
बीबी का मकबरा औरंगाबाद
द्वारिका काठियावाड़
कुतुबमीनार नई दिल्ली
महाकालेश्वर उज्जैन
लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर
मीनाक्षी मंदिर मदुरै
गोमतेश्वर प्रतिमा श्रवणबेलगोला ( कर्नाटक )
हैंगिंग गार्डन मुम्बई .
हवामहल जयपुर
हम्पी कर्नाटक
जंतर मंतर जयपुर , दिल्ली ( पाँच स्थान )
दमदम कलकत्ता
मीनाम्बकम् चेन्नई .
पानप दिल्ली
हावड़ा ब्रिज कोलकाता
भारत को स्वतंत्रता किसने प्रदान की ? – ब्रिटिश पार्लियामेंट ने
” राजा को मंदिर का धन जब्त कर लेना चाहिए . ” यह किसका कथन है ? – कौटिल्य . बौद्ध साहित्य मुख्य रूप से किस भाषा में लिखा गया था ? . पालि
• मोहनजोदड़ो की खुदाई किस नदी के तट पर हुई थी ? सिन्धु नदी
• महाबलीपुरम् के रथ मंदिरों का निर्माण किसने कराया था ? – नरसिंह वर्मन प्रथम ने
. सुल्तान फिरोज तुगलक की आत्मकथा का नाम है – फुतुहात – ए – फिरोजशाही .
मुगल शासन में ‘ खालसा ‘ शब्द का तात्पर्य क्या था ? – वह भूमि जिसका स्वामी सम्राट् स्वयं हो .
किस सूफी संत से गयासुद्दीन तुगलक विद्वेष रखता था ? – निजामुद्दीन औलिया .
कौनसा विद्रोह 1816 में प्रारम्भ होकर 1932 तक चला ? . कोल विद्रोह .
बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चार संगोष्ठियाँ हुईं . किस स्थान पर चौथी संगोष्ठी हुई ? – कुन्डलवन .
चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को किस नदी के तट पर हराया ? . नर्मदा .
जेबुन्निसा , जहाँनारा , गुलबदन बेगम व रोशन आरा , मुगल राजकुमारियों में से कौन इतिहासकार थी ? – गुलबदन बेगम .
उत्तर – गुप्तयुग में जो विश्वविद्यालय प्रसिद्ध हो गया था , वह था – नालंदा विश्वविद्यालय .
बाणभट्ट किस सम्राट् के राजदरबारी कवि थे ? – हर्षवर्धन
प्रथम भारतीय शासक कौन था जिसने अरब सागर में भारतीय नौसेना की सर्वोच्चता स्थापित की ? . राजराजा -1 सार संग्रह ।
. मेगस्थनीज ने अपनी भारत यात्रा के वृत्तांत पर जो पुस्तक लिखी थी , उसका क्या नाम था ? – इण्डिका .
सैनिक शक्ति में वृद्धि तथा मध्यस्थों पर नियंत्रण किस शासक की बाजार नियंत्रण नीति का मुख्य उद्देश्य था ? . अलाउद्दीन की
हड़प्पा सभ्यता के किस पुरास्थल को ‘ मृतकों का टीला ‘ कहा जाता है ? मोहनजोदड़ो को
किस मौर्य शासक के पश्चिम एशिया के शासक सेल्यूकस निकेटर की पुत्री हेलेन के साथ वैवाहिक सम्बन्ध थे ? T . चन्द्रगुप्त मौर्य के
. मुहम्मद गजनी ने कितनी बार भारत पर आक्रमण किया था ? 17 बार
वर्धमान को महावीर अथवा जिन कहा जाता है द – सुख – दुःख पर विजय पाने के कारण .
महावीर स्वामी ने जैन धर्म के सिद्धान्तों में कौनसा सिद्धान्त जोड़ा था ? न . ब्रह्मचर्य .
प्रसिद्ध कोणार्क मन्दिर किस देवता के लिए है ? – सूर्य के लिए .
अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण विजय का कार्य किसे सौंपा था ? – मलिक काफूर को .
शेरशाह सूरी किस स्थान पर लड़ते हुए घायल हुआ था जिससे कुछ समय पश्चात् उसकी मृत्यु हो गई थी ? ने . कलिंजर
• सन् 1565 में किस स्थान पर हुए युद्ध के पश्चात् विजयनगर साम्राज्य का पतन हुआ था ? ई तालिकोटा के युद्ध के पश्चात् .
कौनसा सूफी सम्प्रदाय बिहार में लोकप्रिय था ? – फिरदौसी
‘ राजतरंगिणी ‘ का संस्कृत से फारसी में अनुवाद किसने किया था ? – मुल्ला मुहम्मद .
सन् 1905 में बंगाल के विभाजन की घोषणा किस प्रमुख कारण से की गई थी ? एक मुस्लिम बहुल प्रान्त की स्थापना के लिए
भारत को स्वतंत्रता किसने प्रदान की ? – ब्रिटिश पार्लियामेंट ने
” राजा को मंदिर का धन जब्त कर लेना चाहिए . ” यह किसका कथन है ? – कौटिल्य .
बौद्ध साहित्य मुख्य रूप से किस भाषा में लिखा गया था ? . पालि
• मोहनजोदड़ो की खुदाई किस नदी के तट पर हुई थी ? सिन्धु नदी
• महाबलीपुरम् के रथ मंदिरों का निर्माण किसने कराया था ? – नरसिंह वर्मन प्रथम ने .
सुल्तान फिरोज तुगलक की आत्मकथा का नाम है – फुतुहात – ए – फिरोजशाही .
मुगल शासन में ‘ खालसा ‘ शब्द का तात्पर्य क्या था ? – वह भूमि जिसका स्वामी सम्राट् स्वयं हो .
किस सूफी संत से गयासुद्दीन तुगलक विद्वेष रखता था ? – निजामुद्दीन औलिया .
कौनसा विद्रोह 1816 में प्रारम्भ होकर 1932 तक चला ? . कोल विद्रोह
. बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चार संगोष्ठियाँ हुईं . किस स्थान पर चौथी संगोष्ठी हुई ? – कुन्डलवन .
चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को किस नदी के तट पर हराया ? . नर्मदा .
जेबुन्निसा , जहाँनारा , गुलबदन बेगम व रोशन आरा , मुगल राजकुमारियों में से कौन इतिहासकार थी ? – गुलबदन बेगम .
उत्तर – गुप्तयुग में जो विश्वविद्यालय प्रसिद्ध हो गया था , वह था – नालंदा विश्वविद्यालय .
बाणभट्ट किस सम्राट् के राजदरबारी कवि थे ? – हर्षवर्धन
प्रथम भारतीय शासक कौन था जिसने अरब सागर में भारतीय नौसेना की सर्वोच्चता स्थापित की ? . राजराजा -1 सार संग्रह । 8
चोलों ने किनके साथ घनिष्ठ राजनीतिक तथा वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए थे ? – वेंगी के चालुक्य .
ऋग्वेद में सबसे अधिक मंत्र किस देवता की स्तुति में लिखे गए हैं ? – इन्द्र की स्तुति में
मगध राज्य की आरम्भिक राजधानी कहाँ थी ? – गिरिव्रज .
किस सिख गुरु ने विद्रोही राजकुमार खुसरो की सहायता धन और आशीर्वाद से की थी ? गुरु अर्जुनदेव ने
अपने प्रथम पृथक् शिलालेख में किसने कहा है कि ” सभी मनुष्य मेरी सन्तानें हैं ” ? अशोक ने
बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक की रचना हुई महात्मा बुद्ध के निर्वाण प्राप्त करने के पश्चात्
मनुस्मृति किस काल का मानक ग्रन्थ माना जाता है ? शुंग काल का .
हड़प्पा सभ्यता के लोग किसकी पूजा करते थे ? की मातृदेवी की .
सिन्धुवासी चावल का प्रयोग भोजन में करते थे . चावल होने के प्रमाण कहाँ से प्राप्त हुए हैं ? – लोथल और रंगपुर से
चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में गिरनार के समीप सुदर्शन झील का निर्माण किसके द्वारा कराया गया ? पुष्यगुप्त के
सदाह अमीरों का विद्रोह किसके शासनकाल में हुआ था ? – मोहम्मद – बिन – तुगलक के शासनकाल में
. चोलों के कट्टर दुश्मन कौन माने जाते थे ? कल्याणी के चालुक्य .
कम्बोडिया के खमेर शासक से किस चोल शासक की र मित्रता थी ? – राजेन्द्र प्रथम की
. अंग्रेजों ने आत्मरक्षा के विचार से 1700 ई . में ‘ विलियम फोर्ट ‘ की स्थापना कहाँ की ? कलकत्ता में
. किस साहित्यिक कृति से उस क्रान्ति का विवरण मिलता है जिसके द्वारा चन्द्रगुप्त ने कौटिल्य की सहायता से नन्दों का समूल नाश किया था ? – विशाखदत्त का मुद्राराक्षस
. गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल में सोने के सिक्कों के लिए प्रयुक्त होने वाला ‘ दीनार ‘ शब्द किससे निष्पन्न है ? – अरबी .
दिल्ली का वह कौनसा सुल्तान था जिसने भूमि की नाप की आज्ञा निरस्त करके उसके स्थान पर गल्ला बटाई को अपनाया ? – ग्यासुद्दीन तुगलक
कल्हण द्वारा लिखित किस ग्रन्थ में उल्लेख है कि अशोक कश्मीर के श्रीनगर का संस्थापक था ? राजतरंगिणी
. किस मुगल सम्राट ने ‘ दीवान – ए – वजीरात – ए – कुल ‘ नाम से नए पद का गठन किया ? – अकबर ने .
किस मुगल बादशाह को उसकी मृत्यु के बाद आधिकारिक तौर पर ‘ अर्श – आशियानी ‘ ( स्वर्ग में रहने वाला ) कहा गया है ? औरंगजेब .
शिवाजी के काल में परराष्ट्र मामलों के अधिकारी मंत्री की क्या संज्ञा थी ? . सुमन्त .
राजपूताना के किस राज्य ने सबसे पहले अकबर के अन्तर्गत मुगल अधीनता स्वीकार की थी ? – आम्बेर / आमेर
. रोमिला थापर भारतीय इतिहास के किस काल में अपने योगदान के लिए जानी जाती है ? – प्राचीन भारतीय इतिहास .
प्रसिद्ध चित्रकार बिशनदास को किस मुगल शासक की छत्रछाया प्राप्त हुई थी ? – जहाँगीर .
‘ तारीख – ए – फिरोजशाही का रचयिता कौन था ? • शम्स – ए – सिराज अफीफ .
प्राचीन समय में बिहार किस नाम से जाना जाता था ? . मगध .
शेख सलीम चिश्ती की दरगाह कहाँ पर स्थित है ? . फतेहपुर सीकरी में .
वैशेषिक दर्शन के प्रतिपादक कौन थे ? उलुक या कणाद .
निकोली कोन्टी , जिसने देवराय प्रथम के शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य का भ्रमण किया , वह किस देश का था ? – इटली का
सिन्धु सभ्यता का एक स्थल कालीबंगा किस नदी के किनारे स्थित है ? घग्गर .
ऋग्वेद में हल से बनी नालियों को क्या कहा गया है ? – सीता
जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी को किस नदी के किनारे कैवल्य प्राप्त हुआ ? ऋजुपालिका
. कुषाण साम्राज्य का महान् शासक कनिष्क बौद्ध धर्म की किस शाखा का अनुयायी था ? महायान .
सिकन्दर किसका शिष्य था ? अरस्तू का
. जितेन्द्र का मेगुती मन्दिर किसने बनवाया था ? पुलकेशिन द्वितीय ने
महाभारत का पूर्व नाम क्या था ? जयसंहिता
चार वेदों में से किसमें संगीत आदि का वर्णन मिलता – सामवेद
इलाहाबाद स्तम्भ शिलालेख मुख्यरूप से मौर्य शासक अशोक द्वारा स्थापित कराया गया था . यह स्तम्भ शिलालेख किसके विजय अभियानों की जानकारी देता . . समुद्रगुप्त
अब्दुल हमीद लाहौरी मुगल शासक शाहजहाँ के शासनकाल में प्रमुख राजकीय इतिहासकार था . लहौरी ने अपनी किस पुस्तक में शाहजहाँ के शासन कार्यों का वर्णन किया है ? पादशाहनामा में .
विजयनगर का प्रसिद्ध मंदिर विट्ठल स्वामी मंदिर तुलुव वंश के राजा कृष्णदेव राय द्वारा कहाँ बनवाया गया था ? – हम्पी में
विजयनगर के किस सम्राट् ने तेलुगू में ‘ अमुक्त माल्यद ‘ एवं संस्कृत में ‘ जांबवती कल्याणम ‘ नामक ग्रंथ लिखा था ? – कृष्णदेव राय ने
भूमि की माप के आधार पर भू – राजस्व का निर्धारण और प्रति बिस्वा उपज का आकलन सबसे पहले किया गया – अलाउद्दीन खिलजी के अधीन
. मुगल साम्राज्य में भू – राजस्व मुख्यतः किसमें व्यक्त किया जाता था ? चाँदी के रुपए में ( आइन – ए – अकबरी के अनुसार )
. जहाँगीर के दरबार का चित्रकार ख्वाजा मंसूर प्रख्यात चित्रकार था चिड़ियों और पशुओं के रूपचित्रों का
ख्वाजा अब्दुस सामद किसके दरबार का चित्रकार था ? अकबर
किस अभिलेख द्वारा यह ज्ञात होता है कि स्कन्दगुप्त ने मौर्यों द्वारा निर्मित सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था ? जूनागढ़ अभिलेख . .
. . मुस्लिम शासक गैर – मुसलमानों की सम्पत्ति तथा सामान की रक्षा का दायित्व अपने ऊपर लेने के बदले में उनसे कौनसा कर वसूलता था ? जजिया कर
‘ खम्स ‘ लूट का वह धन था , जो युद्ध में शत्रु राज्य की जनता से लूटा जाता था . इस लूट का कितना भाग सैनिकों में बाँट दिया जाता था ? – पाँचवाँ भाग
. एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर के निर्माण को आप किस शासक वंश से सम्बद्ध करेंगे ? राष्ट्रकूट
प्रयाग प्रशस्ति किसके सैन्य अभियान के बारे में जानकारी देती है ? – समुद्रगुप्त .
बौद्ध ग्रन्थों में उल्लिखित ‘ धर्म चक्र प्रवर्तन ‘ है – सारनाथ में दिया गया उनका प्रथम उपदेश
. राजपूताना का वह राज्य , जिसने अकबर की सम्प्रभुता स्वयं स्वीकार नहीं की थी ? – मेवाड़
महाक्षत्रप रूद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख में किन दो महान् सम्राटों का उल्लेख किया गया है ? म – चन्द्रगुप्त और अशोक
• बिहार में स्थित वह स्थल जहाँ प्रथम , द्वितीय व तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था ? – क्रमशः राजगृह , वैशाली व पाटलिपुत्र
भारत में आने वाला वह कौन – सा अरब खगोलशास्त्री था , जिसने वाराणसी जाकर और वहाँ एक दशक तक रहकर संस्कृत और खगोलशास्त्र का अध्ययन किया था ? अलमशर
अकबरनामा के प्रख्यात लेखक अबुल फजल की हत्या किसने की थी ? – वीर सिंह देव बुन्देला
विजयनगर साम्राज्य का प्रसिद्ध शासक कृष्णदेव राय किस राजवंश से सम्बद्ध था ? – तुलुव राजवंश .
महरौली अभिलेख से किस सम्राट् के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है ? – चन्द्रगुप्त द्वितीय
. नृत्य करती हुई नारी की कांस्य मूर्ति सिन्धु सभ्यता के किस स्थान से प्राप्त हुई है ? – मोहनजोदड़ो से
. विदेशी यात्री इब्नबतूता किसके शासनकाल भारत आया था ? मुहम्मद – बिन – तुगलक के शासनकाल में
कोणार्क का सूर्य मन्दिर नरसिंह प्रथम ने बनवाया था . वे किस राजवंश से थे ? • शाही ( पूर्वी ) गंगा राजवंश
फारस से आने वाले अब्दुल रज्जाक की हम्पी यात्रा के समय दक्षिण भारत में विजयनगर का शासक कौन था ? – देवराय द्वितीय
. सिन्ध से लेकर सोनारगाँव ( बांग्लादेश ) तक जाने वाले मार्ग सड़क – ए – आजम का निर्माण किसके द्वारा करवाया गया ? – शेरशाह .
लॉर्ड डलहौजी ने अपहरण की नीति ( Doctrine of Lapse ) के अन्तर्गत सर्वप्रथम किस राज्य को अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन रखा ? सतारा
. ‘ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ की बुराइयों को दूर करने के लिए ‘ रेग्यूलेटिंग एक्ट ‘ ( Regulating Act ) कब पास किया गया ? 1773 ई . में
भारत में अंग्रेजों की सर्वश्रेष्ठता किस युद्ध से स्थापित हो गई ? बक्सर युद्ध से
.अनेकान्तवाद किस धर्म का क्रोड सिद्धान्त एवं दर्शन – जैन धर्म
. प्रसिद्ध विजय विठ्ठल मन्दिर , जिसके 56 तक्षित स्तम्भ संगीतमय स्वर निकालते हैं , कहाँ अवस्थित . हम्पी में
अंगकोरवाट ( अंगकोर ) , कम्बोडिया का एक मन्दिर है . 12 वीं सदी में सूर्यवर्मन , द्वितीय के राज्यकाल में इस मन्दिर का आरम्भिक अभिकल्पना तथा निर्माण कार्य हुआ . यह मन्दिर किस भगवान को समर्पित है ? – विष्णु भगवान .
प्राचीन नगर ‘ तक्षशिला ‘ वर्तमान में इस्लामाबाद ( पाकिस्तान ) से 20 किमी उत्तर – पश्चिम में किस नदी के बीच स्थित था ? – सिन्धु तथा झेलम नदी .
इलाहाबाद ( कौशाम्बी ) अभिलेख मूलतः अशोक द्वारा उत्कीर्ण कराया गया था , किन्तु इससे अभियानों के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है . – समुद्रगुप्त .
शूद्रक द्वारा रचित ‘ मृच्छकटिकम् ‘ नाटक ( प्राचीन भारतीय पुस्तक ) का मुख्य विषय था एक धनी व्यापारी और गणिका की पुत्री की प्रेम गाथा .
चंगेज खाँ के अधीन मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया था – इल्तुतमिश के शासनकाल में
प्रसिद्ध धार्मिक ग्रन्थ भगवद्गीता का सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद 1785 ई . में किसने किया था ? • चार्ल्स विल्किन्स .
सिकन्दर के हमले के समय उत्तर भारत ( मगध ) पर किस राजवंश का शासन था ? नन्द वंश .
प्राचीन समय में राजदरबारों , बड़े – बड़े घरानों में भाटों और चारणों द्वारा प्रातःकाल में गाया जाने वाला राग था – दरबारी राग .
सिन्धु घाटी सभ्यता का स्थल हड़प्पा कहाँ स्थित था ? • ( वर्तमान ) पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर .
वर्धमान को महावीर या जिन क्यों कहा जाता है ? सुख – दुःख पर विजय पाने के कारण .
महाबलीपुरम् किसके शासनकाल में प्रसिद्ध था ? – पल्लवों के शासनकाल में
अशोक ने किस बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण की ? उपगुप्त से .
सुल्तान फिरोज तुगलक की आत्मकथा का नाम क्या – फुतुहात – ए – फिरोजशाही .
अमीर खुसरो किस सुल्तान का दरबारी कवि था ? अलाउद्दीन खिलजी का .
सैयद वंश का संस्थापक कौन था ? – खिज़ खाँ .
मेवाड का कौन सा राणा विक्षिप्त हो गया तथा उसके पुत्र द्वारा मार डाला गया ? राणा कुम्भा
राजवल्लभ , घसीटी बेगम , शौकत जंग किसके प्रधान शत्रु थे ? सिराजुद्दौला के
किसके शासनकाल में भारत में प्रथम रेलवे लाइन बिछाई गई ? – लॉर्ड डलहौजी के शासनकाल में
अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय देवगिरि का शासक कौन था ? रामचन्द्र देव
कनिष्क के शासनकाल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किस नगर में हुआ था ? – कुण्डलवन ( कश्मीर ) .
ईसा पूर्व छठी सदी में विश्व की प्रथम गणतन्त्रात्मक व्यवस्था कहाँ थी ? – वैशाली .
राजगृह का राजकीय चिकित्सक जीवक को , जिसे गणिका के पुत्र के रूप में माना जाता है , उसका नाम सलावती
पानीपत का प्रथम युद्ध इब्राहीम लोदी व के मध्य 1526 ई . में हुआ था . पानीपत के युद्ध में इब्राहीम लोदी की पराजय के प्रमुख कारण – एकता का अभाव , अकुशल सेनापतित्व तथा अफगान सरदारों की उससे क्षुब्धता . बाबर
किसके शासनकाल में मंगोल सेनानायक तैमूर ने 1398 ई . में भारत पर आक्रमण किया था ? – सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद
. प्रसिद्ध विजय विठ्ठल मन्दिर , जिसके 56 तक्षित स्तम्भ संगीतमय स्वर निकालते हैं , कहाँ अवस्थित . हम्पी में
अंगकोरवाट ( अंगकोर ) , कम्बोडिया का एक मन्दिर है . 12 वीं सदी में सूर्यवर्मन , द्वितीय के राज्यकाल में इस मन्दिर का आरम्भिक अभिकल्पना तथा निर्माण कार्य हुआ . यह मन्दिर किस भगवान को समर्पित है ? – विष्णु भगवान .
प्राचीन नगर ‘ तक्षशिला ‘ वर्तमान में इस्लामाबाद ( पाकिस्तान ) से 20 किमी उत्तर – पश्चिम में किस नदी के बीच स्थित था ? – सिन्धु तथा झेलम नदी .
इलाहाबाद ( कौशाम्बी ) अभिलेख मूलतः अशोक द्वारा उत्कीर्ण कराया गया था , किन्तु इससे अभियानों के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है . – समुद्रगुप्त .
शूद्रक द्वारा रचित ‘ मृच्छकटिकम् ‘ नाटक ( प्राचीन भारतीय पुस्तक ) का मुख्य विषय था एक धनी व्यापारी और गणिका की पुत्री की प्रेम गाथा .
चंगेज खाँ के अधीन मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया था – इल्तुतमिश के शासनकाल में
प्रसिद्ध धार्मिक ग्रन्थ भगवद्गीता का सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद 1785 ई . में किसने किया था ? • चार्ल्स विल्किन्स
. सिकन्दर के हमले के समय उत्तर भारत ( मगध ) पर किस राजवंश का शासन था ? नन्द वंश .
प्राचीन समय में राजदरबारों , बड़े – बड़े घरानों में भाटों और चारणों द्वारा प्रातःकाल में गाया जाने वाला राग था – दरबारी राग .
सिन्धु घाटी सभ्यता का स्थल हड़प्पा कहाँ स्थित था ? • ( वर्तमान ) पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर .
वर्धमान को महावीर या जिन क्यों कहा जाता है ? सुख – दुःख पर विजय पाने के कारण .
महाबलीपुरम् किसके शासनकाल में प्रसिद्ध था ? – पल्लवों के शासनकाल में
अशोक ने किस बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण की ? उपगुप्त से
. सुल्तान फिरोज तुगलक की आत्मकथा का नाम क्या – फुतुहात – ए – फिरोजशाही .
अमीर खुसरो किस सुल्तान का दरबारी कवि था ? अलाउद्दीन खिलजी का .
सैयद वंश का संस्थापक कौन था ? – खिज़ खाँ
. मेवाड का कौन सा राणा विक्षिप्त हो गया तथा उसके पुत्र द्वारा मार डाला गया ? राणा कुम्भा
राजवल्लभ , घसीटी बेगम , शौकत जंग किसके प्रधान शत्रु थे ? सिराजुद्दौला के
किसके शासनकाल में भारत में प्रथम रेलवे लाइन बिछाई गई ? – लॉर्ड डलहौजी के शासनकाल में
अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय देवगिरि का शासक कौन था ? रामचन्द्र देव
कनिष्क के शासनकाल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किस नगर में हुआ था ? – कुण्डलवन ( कश्मीर ) .
ईसा पूर्व छठी सदी में विश्व की प्रथम गणतन्त्रात्मक व्यवस्था कहाँ थी ? – वैशाली .
राजगृह का राजकीय चिकित्सक जीवक को , जिसे गणिका के पुत्र के रूप में माना जाता है , उसका नाम सलावती
पानीपत का प्रथम युद्ध इब्राहीम लोदी व के मध्य 1526 ई . में हुआ था . पानीपत के युद्ध में इब्राहीम लोदी की पराजय के प्रमुख कारण – एकता का अभाव , अकुशल सेनापतित्व तथा अफगान सरदारों की उससे क्षुब्धता . बाबर
किसके शासनकाल में मंगोल सेनानायक तैमूर ने 1398 ई . में भारत पर आक्रमण किया था ? – सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद
बंगाल के सेन वंश के राजा लक्ष्मण के किस दरबारी कवि ने ‘ गीतगोविन्द ‘ की रचना की ? . जयदेव .
सांख्य दर्शन के अनुसार संसार का निर्माण प्रकृति से हुआ है . ये द्रव्य ( प्रकृति ) और आत्मा ( पुरुष ) की सत्ता को स्वीकार करते हैं . प्राचीन सांख्य दर्शन के प्रवर्तक कौन माने जाते हैं ? – कपिल मुनि
. किस राष्ट्रकूट शासक ने एलोरा के विख्यात शिव ( कैलाश ) मंदिर का निर्माण कराया था ? – कृष्ण प्रथम ने
अकबर काल में भू – राजस्व व्यवस्था की एक प्रसिद्ध नीति ‘ आइन – ए – दहसाला ‘ पद्धति किसके द्वारा निर्मित की गई थी ? . टोडरमल .
” ईश्वर केवल मनुष्य के सद्गुण को पहचानता है तथा उसकी जाति नहीं पूछता ; आगामी दुनिया में कोई जाति नहीं होगी . ” यह सिद्धान्त किस भक्ति सन्त का है ? गुरुनानक .
कलिंग युद्ध के बाद अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया था . तत्पश्चात् उसने बौद्ध धर्म अपना लिया था . कलिंग युद्ध की विजय तथा क्षत्रियों का वर्णन अशोक के किस शिलालेख ( Rock Edict ) में है ? – शिलालेख- XIII .
शुंग राजवंश का संस्थापक कौन था ? – पुष्यमित्र शुंग .
दिल्ली के किस सुल्तान ने स्वयं को दूसरा सिकन्दर ( सिकन्दर – इ – सानी ) कहा ? . अलाउद्दीन खिलजी ने
‘ शेख – उल – हिन्द ‘ ( Shaikh – ul – Hind ) की पदवी किसको दी गई थी ? ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को .
किसके शासनकाल में मुगलों तथा मेवाड़ के राना के बीच ‘ चित्तौड़ की सन्धि ‘ हस्ताक्षरित हुई ? – जहाँगीर के शासनकाल में .
‘ अकबर ऑफ काश्मीर ‘ किसे कहा गया है ? – जैनुल आबदीन ( Zainul Abedin ) को
• दिल्ली के किस सुल्तान ने कृषि के लिए एक अलग विभाग बनाया तथा ‘ फसलों का चक्रण ‘ ( Rotation of Crops ) करने की योजना बनाई ? – मोहम्मद बिन तुगलक ने
.. कुत्ते तथा मनुष्य के एक साथ कंकाल किस . ‘ इस्तमरारी बन्दोवस्त ‘ ( Permanent Settlement ) ऐतिहासिक स्थान से प्राप्त हुए हैं ? बुर्जहोम ( Burzhom ) से
दिल्ली के किस सुल्तान ने सर्वप्रथम सिंचाई पर कर लगाया ? – फीरोज तुगलक ने
किसके शासनकाल में प्रारम्भ किया गया है ? – लॉर्ड कार्नवालिस के शासनकाल में .
किस गुप्त सम्राट् ने ‘ हूणों को पराजित किया था ? स्कन्दगुप्त ने
किस अभिलेख में रुद्रदामन प्रथम की विभिन्न उपलब्धियाँ वर्णित हैं ? जूनागढ़ अभिलेख में
मगध की प्रारंभिक राजधानी कौनसी थी ? राजगृह ( गिरिव्रज )
किस शासक द्वारा सर्वप्रथम पाटलिपुत्र का राजधानी के रूप में चयन किया गया ? . उदायिन
. विश्व का पहला गणतंत्र वैशाली में किसके द्वारा स्थापित किया गया ? – लिच्छवियों द्वारा .
अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय देवगिरि का शासक कौन था ? रामचन्द्र देव .
एत्मादुद्दौला का मकबरा आगरा में किसने बनवाया था ? नूरजहाँ ने .
मुगल प्रशासन में ‘ मुहतसिब ‘ था . लोक आचरण अधिकारी .
किस सुल्तान ने बेरोजगार युवकों के रोजगार के लिए रोजगार दफ्तर खोला था ? – फिरोज तुगलक
दशमलव प्रणाली के आधार पर सेना का गठन किया था अलाउद्दीन खिलजी ने ‘
कुमार सम्भव ‘ महाकाव्य किस कवि ने लिखा है ? – कालिदास ने
कालिदास किस गुप्त शासक के दरबारी कवि थे ? चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के
महावीर स्वामी को निर्वाण ( मृत्यु ) प्राप्त हुआ था – पावापुरी में . .
बोधगया ( बिहार ) में महाबोधि मंदिर बनाया गया है , जहाँ – गौतमबुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ
भारत के अंतिम मुगल सम्राट् बहादुरशाह जफर को 1857 ई . के विद्रोह में भाग लेने के कारण अंग्रेजों ने कैद करके कहाँ भेजा था ? – रंगून की जेल में
. किस बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म की हीनयान और महायान शाखाओं का उदय हुआ ? – चौथी बौद्ध संगीति में .
किस मुख्य उद्देश्य से अशोक ने अपनी प्रजा में ‘ धम्म ‘ का प्रचार किया था ? – बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु .
शेरशाह सूरी अपने किस कार्य के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है ? प्रशासनिक सुधार के लिए
‘ मुत्तखब – उत – तवारीख ‘ नामक पुस्तक किसने लिखी . • अब्दुल कादिर बदायूँनी ने
अकबर के दरबार में एक विख्यात हिन्दी कवि कौन थे ? अब्दुर्रहीम .
विजय नगर के राज दरबार में आने वाला विख्यात मुस्लिम यात्री कौन था ? अब्दुर रज्जाक .
मुगल सम्राटों में चित्रकला का पारखी कौन था ? – जहाँगीर
● मौर्य साम्राज्य के अन्त के बाद किसका उद्भव हुआ ? – शुंग वंश का •
भारत में यूरोपीय व्यापारियों के आगमन का सही क्रम पुर्तगाली , डच , अंग्रेज , फ्रांसीसी –
1833 के चार्टर एक्ट के अनुसार बंगाल का गवर्नर जनरल अब भारत का गवर्नर जनरल हो गया . इस प्रकार भारत का प्रथम गवर्नर जनरल बना . • लॉर्ड विलियम बैंटिक .
महमूद गजनवी ने कितनी बार भारत पर आक्रमण किए ? अन्तिम आक्रमण का लक्ष्य ( Target ) क्या था ? – 17 बार , सोमनाथ का मन्दिर .
. नूरजहाँ का वास्तविक नाम क्या था ? – मेहरुन्निसा .
किस मुगल सम्राट् की मृत्यु पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हुई , जिसके बारे में कहा गया “ वह जिन्दगी में भी गिरा तथा औंधे मुँह गिरकर जिंदगी से चला गया ? ” – हुमायूँ .
औरंगजेब ने किस सिख गुरु को फाँसी दी ? गुरु तेगवहादुर को
गुजरात का सोमनाथ मन्दिर किस देवता को समर्पित न शिव को
वास्को – डि – गामा प्रारम्भ में भारत के किस बन्दरगाह पर पहुंचा था ? कालीकट पर
बौद्ध संगीतियों के आयोजन स्थल व आयोजनकर्ताओं के सम्बन्ध में सही क्रम क्या है ? राजगृह – अजातशत्रु , वैशाली – कालाशोक , पाटलिपुत्र अशोक तथा कश्मीर – कनिष्क .
चन्द्रगुप्त के शासनकाल में कौनसा यूनानी यात्री भारत आया ? मेगस्थनीज
किस सम्राट् के सम्बन्ध में महरौली अभिलेख से जानकारी प्राप्त होती है ? चन्द्रगुप्त द्वितीय
. फिरोज तुगलक ने किसकी स्मृति में जौनपुर शहर की नींव डाली थी ? मुहम्मद तुगलक की स्मृति में
कुव्वत – उल – इस्लाम मस्जिद का निर्माण किसने करवाया था ? कुतुबुद्दीन ऐबक ने .
शेरशाह की मृत्यु उसकी अन्तिम विजय के समय हो गई थी . यह अन्तिम विजय कौनसी थी ? – कालिंजर की विजय ( 1545 ई . ) .
पानीपत का दूसरा युद्ध 1556 में किस – किस के बीच हुआ था ? हेमू और बैरम खाँ के बीच
मारवाड़ के किस वीर ने आजीवन औरंगजेब से संघर्ष किया , किन्तु आत्मसमर्पण नहीं किया ? दुर्गादास
दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने अपने बाद किसको सिखों का गुरु मनोनीत किया था ? ग्रन्थ साहिब को
. दिल्ली से दौलताबाद हेतु राजधानी के स्थानान्तरण का आदेश किसने दिया था ? – मुहम्मद बिन तुगलक ने .
किसने अपने बादशाह पति के लिए मकबरे का निर्माण कराया था ? – हाजी बेगम ने
• किस मुगल बादशाह ने अंग्रेजों को बंगाल में शुल्क मुक्त व्यापार की सुविधा प्रदान की थी ? जहाँगीर ने
. लोकप्रिय गायत्री मंत्र का उल्लेख किस वेद में किया गया है ? – ऋग्वेद में
. सम्पूर्ण वैदिक साहित्य को चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है , जो उनकी रचना के चार चरण भी माने जाते हैं . यह चार श्रेणियाँ कौनसी हैं ? – संहिता , ब्राह्मण , आरण्यक और उपनिषद् .
किस तुर्क ने लूटमार की नीति छोड़कर भारत में स्थायी शासन की नीति अपनाई ? कुतुबुद्दीन ऐबक ने
अकबर ने ‘ इबादतखाना ‘ की स्थापना कहाँ की थी ? – फतेहपुर सीकरी में .
प्लासी के युद्ध के समय मुगल साम्राज्य का शासक कौन था ? आलमगीर द्वितीय
‘ इलाहाबाद की सन्धि ‘ किन दो पक्षों के बीच हुई थी ? – अंग्रेज और शाहआलम द्वितीय के बीच .
मानव सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता काल से किन दो प्रमुख चीजों की प्राप्ति हुई ? – गेहूँ और कपास .
ऋग्वेद में किस यज्ञ का वर्णन सर्वाधिक बार आया है ? सोम यज्ञ का
मगध की राजधानी राजगृह से पाटिलिपुत्र किस शासक ने स्थानान्तरित की थी ? – उदायिन .
मोहनजोदड़ो कहाँ स्थित है ? – पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में
● प्रथम बौद्ध संगीति ( Conference ) कहाँ आयोजित हुई थी ? – राजगृह में .
बौद्ध संघ के नियम मूलतः किस पुस्तक में दिए गए हैं ? – विनय पिटक में
कनिष्क के समय में आयोजित चतुर्थ बौद्ध संगीति के सभापति कौन थे ? – वसुमित्र ( कश्मीर कुण्डलवन में आयोजित ) –
चीनी तीर्थयात्री फाह्यान किसके शासनकाल में भारत आया ? चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में
माउण्ट आबू में दिलवाड़ा मन्दिर किसने बनवाए ? चालुक्य ( सोलंकी ) शासकों ने -विमलशाह
. विजयनगर राज्य की स्थापना किसने की थी ? – हरिहर और बुक्का ने ( 1336 ई . )
• तमिल ग्रन्थ ‘ तोलकाप्पियम ‘ की विषय – वस्तु क्या है ? व्याकरण और कविता .
मंसूर और माधव किसके दरबार के मुख्य चित्रकार थे ? . जहाँगीर
1699 में ‘ खालसा ‘ की स्थापना किसने की थी ? गुरु गोविन्दसिंह ने
यूनानी लेखकों ने चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए किस नाम का प्रयोग किया है ? सैन्ड्रोकोटस तथा एन्ड्रोकोटस का
अनन्त वर्मन द्वारा निर्मित ‘ लिंगराज ‘ मन्दिर कहाँ स्थित है ? भुवनेश्वर ( ओडिशा ) में
अशोक के काल में आयोजित तृतीय बौद्ध संगीति की अध्यक्षता किस बौद्ध विद्वान् ने की थी ? – मोगलिपुत्र तिस्य ने •
मुगलों की सेना व्यवस्था किस पद्धति से जानी जाती है ? . मनसबदारी पद्धति से .
इब्राहीम खाँ गर्दी किस पेशवा शासक का महत्वपूर्ण सैनिक अधिकारी था ? बालाजी बाजीराव का
नादिरशाह ने किसके शासनकाल में भारत पर आक्रमण किया था ? – मुहम्मद शाह के शासनकाल में
नासिरुद्दीन मुहम्मद के शासनकाल में किस विदेशी आक्रमणकारी ने भारत पर आक्रमण किया था ? • तैमूर ने .
ऋग्वेद में सर्वाधिक सुक्त किन दो देवों को सम्बोधित न 2 – इन्द्र और अग्नि को …
. सन् 1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में मूल अधिकारों के प्रस्ताव का प्रारूप किसने बनाया था ? पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने
किस कांग्रेस अधिवेशन में कार्यकारी कमेटी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन ( Civil Disobedience ) प्रारम्भ करने का अधिकार दिया ? – लाहौर अधिवेशन ( 1929 में )
. 1857 के सिपाही विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल कौन था ? – लॉर्ड कैनिंग .
रौलेट एक्ट के तहत् किसी भी संदेहास्पद व्यक्ति को गिरफ्तार कर गुप्त मुकदमा चलाकर दण्डित करने का प्रावधान था . इस विधेयक को ‘ काला कानून ‘ भी कहा गया . जब रौलेट एक्ट पारित हुआ था , उस समय भारत का वायसराय कौन था ? – लॉर्ड चेम्सफोर्ड .
भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान ‘ फ्री इण्डियन लीजन ‘ नामक सेना किसने बनाई थी ? – सुभाषचन्द्र बोस ने .
सन् 1912 में उर्दू साप्ताहिक पत्र ‘ अल हिलाल ‘ ( Al Hilal ) का प्रकाशन किसके द्वारा किया गया था ? अबुल कलाम आजाद .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ए . ओ . ह्यूम ने की थी . इसका सर्वप्रथम अधिवेशन कहाँ आयोजित किया गया था ? – बम्बई ( मुम्बई ) में ‘
भारत कोकिला ‘ की उपाधि से सम्मानित किसने ‘ गोल्ड थेशहोल्ड ‘ नामक कविता संग्रह की रचना की ? सरोजिनी नायडू .
स्वदेशी आन्दोलन के प्रारम्भ का तात्कालिक कारण क्या था ? – लॉर्ड कर्जन द्वारा किया गया बंगाल विभाजन .
ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स का चुनाव जिस प्रथम भारतीय ने लड़ा था , वह था . दादा भाई नौरोजी •
मराठी पाक्षिक ‘ बहिष्कृत भारत ‘ का 1927 ई . में किसने आरम्भ किया था ? . बी . आर . अम्बेडकर ने
. महाराष्ट्र में लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जगाने के लिए बालगगाधर तिलक ने किस उत्सव की शुरूआत की थी ? – गणपति उत्सव ( 1893 ई . ) एवं शिवाजी उत्सव ( 1895 ई . )
प्रथम बार ‘ वन्देमातरम् ‘ को नारे के रूप में कब अपनाया गया ? 1905 में बंगाल के विभाजन के समय
. गाँधीजी को किसने सावधान किया था कि वह मुस्लिम धार्मिक नेताओं और उनके अनुयायियों के कट्टरपन को प्रोत्साहित न करें ? अजमल खाँ ने .
कानपुर षड्यंत्र मुकदमा किस आन्दोलन के नेताओं के विरुद्ध था ? – साम्यवादी आन्दोलन के
जिन्ना द्वारा चौदह सूत्रों के अन्तर्गत पृथक चुनाव क्षेत्र आदि की माँग के पीछे क्या कारण था ? . नेहरू रिपोर्ट में आए प्रस्तावों से असहमति .
गाँधीजी ने प्रथम आमरण अनशन कब प्रारम्भ किया था ? जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के समय
1918 में किस कारण से काँग्रेस में ( Split ) हुआ ? – मोन्टेग्यू रिपोर्ट के कारण .
1922 में ‘ भील सेवा मण्डल ‘ की स्थापना किसने की थी ? अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर ने
. भारत में पहली बार एक लोक सेवा आयोग की स्थापना किस कानून के द्वारा की गई ? द गवर्नमेण्ट ऑफ इण्डिया एक्ट 1919 के द्वारा
1857 में लखनऊ में विद्रोह ( Revolt ) का नेतृत्व किसने किया था ? बेगम हजरत महल ने
स्वतन्त्रता संग्राम के त्रिगुट ‘ लाल , बाल और पाल ‘ में से कौन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बना ? – लाला लाजपत राय
. मोहम्मद अली जिन्ना का ‘ चौदह सूत्री प्रस्ताव ‘ किसके विरुद्ध था ? – नेहरू रिपोर्ट के .
भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान ‘ कांग्रेस का रेडियो संचालन का श्रेय किसे दिया जाता है ? – ऊषा मेहता को .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष कौन थे ? – बदरुद्दीन तैयबजी .
डॉ . बी . आर . अम्बेडकर ने गोलमेज सम्मेलन की कितनी बैठकों में भाग लिया था ? – तीनों बैठकों में
. 1940 में संचालित वैयक्तिक सत्याग्रह आन्दोलन के जो पहले सत्याग्रही कौन थे ? . विनोबा भावे
यह किसकी उद्घोषणा थी कि ” स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है , मैं इसको लेकर रहूँगा ” ? बाल गंगाधर तिलक की .
बाल गंगाधर तिलक कितनी बार कांग्रेस अध्यक्ष बने ? – एक बार भी नहीं .
एशियाटिक सोसायटी के संस्थापक थे – विलियम जोन्स .
पाकिस्तान की माँग किस वर्ष की गई ? – 1940 में
. मुस्लिम के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था का प्रावधान पहली बार किस एक्ट में किया गया ? – 1909 के एक्ट में
भारत विभाजन के सिद्धान्त को सर्वप्रथम किस नेता ने स्वीकार किया था ? – चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने .
पूना समझौता का प्रमुख लक्ष्य क्या था ? – निचली जातियों का पृथक् प्रतिनिधित्व
. साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस लाठी चार्ज में घायल होने के फलस्वरूप किस राष्ट्रवादी नेता की मृत्यु हुई थी ? लाला लाजपतराय की
.8 अगस्त , 1942 को काँग्रेस के विशेष अधिवेशन में भारत छोड़ो आन्दोलन के लिए प्रस्ताव पारित किया गया यह अधिवेशन कहाँ आयोजित किया गया था ? – मुम्बई में
. 1875 में हुए मराठा कृषक विद्रोह का प्रमुख कारण क्या था ? – गुजराती एवं मारवाड़ी सूदखोरों द्वारा अत्यधिक शोषण
प्रेस पर से सभी प्रतिबन्ध किसके समय में समाप्त किए गए ? – चार्ल्स मेटकॉफ के समय में
1908 में 6 वर्ष के कारावास की सजा किस नेता को हुई थी ? बाल गंगाधर तिलक को
प्रथम विश्व युद्ध में सैनिक विप्लव की तैयारी की सूचना अंग्रेजों को देने वाला देशद्रोही कौन था ? – कृपाल सिंह
लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने वाला क्रान्तिकारी वीर कौन था ? – रासबिहारी बोस .
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के प्रथम अध्यक्ष कौन थे ? – व्योमेश चन्द्र बनर्जी .
मुस्लिम लीग ने ‘ मुक्ति दिवस ‘ कब मनाया था ? 22 दिसम्बर , 1939
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन कहाँ हुआ था ? – बम्बई में
मालाबार क्षेत्र के किसानों ने 1921 में कौनसा विद्रोह किया था ? मोपला विद्रोह
‘ हरमिट ऑफ शिमला ‘ किसे कहा जाता है ? ए . ओ . ह्यूम को
महात्मा गांधी ने प्रथम नागरिक अवज्ञा आन्दोलन ( Civil Disobedience Movement ) किस घटना के पश्चात् प्रारम्भ किया ? – रॉलेट एक्ट लगने पर
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में किस भारतीय ने वायसराय की कार्य परिषद् ( Executive Council ) से त्याग – पत्र दिया था ? सर शंकरन नायर
. किस एक्ट को काला एक्ट के नाम से भी जाना जाता है ? – रॉलेट एक्ट
यह किसका कथन है- ” भारतीय कांग्रेस दल सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करता , यह भारत के बहुमत का प्रतिनिधि नहीं है ? ” – लॉर्ड कर्जन .
संन्यासी विद्रोह का उल्लेख किस पुस्तक में मिलता आनन्द मठ
1924 में बेलगाँव में हुए 39 वें कांग्रेस के अधिवेशन के अध्यक्ष कौन थे ? महात्मा गांधी
. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एकमात्र अधिवेशन , जिसे महात्मा गांधी द्वारा सम्बोधित किया गया था , सम्पन्न हुआ था बेलगाम ( कर्नाटक )
1857 की क्रान्ति के नेता ताँत्या टोपे का वास्तविक नाम क्या था ? . रामचन्द्र पाण्डुरंग
. किसने विदेशी वस्त्रों को नष्ट करने को राष्ट्र के आत्मसम्मान से जोड़ते हुए कहा था कि ” विदेशी वस्त्रों की बर्बादी ही उनके साथ सर्वोत्तम व्यवहार है . ” महात्मा गांधी .
किस आन्दोलन में महात्मा गांधी ने पहली बार भूख हड़ताल का प्रयोग राजनीतिक हथियार के रूप में किया था ? अहमदाबाद मिल मजदूरों की हड़ताल ( 1918 ई . )
. मुस्लिम लीग द्वारा किस तिथि को ‘ सीधी कार्यवाही दिवस ‘ के रूप में निश्चित किया गया था ? 16 अगस्त , 1946 .
‘ अनुशीलन समिति का गठन 1907 ई . में किसने किया था ? . बारीन्द्र घोष और भूपेन्द्र दत्त
. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने कहा था- ” गांधी मर सकते हैं , परन्तु गांधीवाद सदैव बना रहेगा ” ? कराची अधिवेशन , 1931
‘ द इंडियन स्ट्रगल ‘ नामक प्रसिद्ध पुस्तक किसने लिखी ? – सुभाषचन्द्र बोस
‘ वानर सेना ‘ और ‘ मंजरी सेना ‘ का सम्बन्ध है . . असहयोग आन्दोलन से .
प्रमुख क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल को किस जेल में फाँसी दी गई थी ? – गोरखपुर जेल .
1857 ई . के विद्रोह के बारे में सर्वप्रथम इसे ‘ भारत की स्वतन्त्रता की पहली लड़ाई ‘ कहा था – वी . डी . सावरकर
. 1857 में इलाहाबाद में विद्रोह का नेतृत्व किसने किया था ? – लियाकत अली ने
. . ‘ चपाती एवं लाल गुलाब ‘ का सम्बन्ध किस विद्रोह / आन्दोलन से था ? – 1857 के विद्रोह से .
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सन्दर्भ में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भारत की महिला प्रतिनिधि के रूप में किसने भाग लिया ? . सरोजिनी नायडू .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस अधिवेशन में बाल गंगाधर तिलक ने घोषणा की थी कि ” स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है , मैं उसे प्राप्त करके रहूँगा ” ? लखनऊ अधिवेशन ( 1916 ) में .
1906 में लन्दन में ‘ अभिनव भारत ‘ की स्थापना किसने की थी ? – विनायक दामोदर सावरकर ने
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस अधिवेशन में नरम 1 दल एवं गरम दल में विभाजन हुआ ? – सूरत अधिवेशन
1912 में गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग की गाड़ी पर बम किस क्रान्तिकारी ने फेंका था ? -रासबिहारी बोस ने
. ‘ इण्डियन पॉवर्टी एण्ड अन – ब्रिटिश रूल इन इण्डिया ‘ ने पुस्तक किसने लिखी है ? दादा भाई नौरोजी ने
भगतसिंह , राजगुरु और सुखदेव को किस केस में ना फाँसी की सजा दी गई थी ? तु • लाहौर षड़यंत्र केस
. साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस लाठी चार्ज में घायल होने के फलस्वरूप किस ने राष्ट्रवादी नेता की मृत्यु हुई ? लाला लाजपतराय
क्रिप्स मिशन किस वर्ष भारत आया था ? 1942 ई . में
1919 में दिल्ली में हुए अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया था ? महात्मा गांधी
बंगाल विभाजन ( 1905 ) करने में लॉर्ड कर्जन का वास्तविक उद्देश्य क्या था ? – बंगाल में राष्ट्रीयता से जुड़ी शक्तियों को कमजोर करना
रॉलेट एक्ट का उद्देश्य था – मुकदमा चलाए बिना किसी भी व्यक्ति को नजरबन्द करना या
‘ राष्ट्रीय शोक दिवस ‘ कब मनाया गया था ? – बंगाल विभाजन लागू होने के दिन .
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड की जाँच के लिए ब्रिटिश सरकार ने कौनसा कमीशन नियुक्त किया ? . हण्टर कमीशन
” इस विशाल देश में कोई प्रगति सम्भव नहीं है जब तक कि हिन्दू और मुसलमान दोनों मिलकर एक नहीं हो जाते . ” यह कथन किसका है ? – महादेव गोविन्द रानाडे का
‘ भारत सेवक समाज ‘ की स्थापना किसने की ? – गोपाल कृष्ण गोखले ने
. ‘ वन्दे मातरम् ‘ घोष को राष्ट्रीय आन्दोलन से घनिष्ठ रूप से जोड़ने वाली घटना कौनसी थी ? . बंग – भंग .
किस अधिवेशन में एम . ए . जिन्ना ने दो राष्ट्रों के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया था ? – लाहौर अधिवेशन 1940 में
. सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की सामयिक सरकार ( Pro visional Government ) की स्थापना किसने की थी ? सुभाषचन्द्र बोस ने
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड का बदला लेने के लिए जनरल डायर की इंगलैण्ड में हत्या किसने की ? ऊधम सिंह ने
1916 में लखनऊ समझौता किन – किन के बीच हुआ था ? – कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच
1909 में घोषित संवैधानिक सुधारों को किस नाम से जाना जाता है ? – माले – मिण्टो सुधार के नाम से
‘ भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के किस अधिवेशन में पारित हुआ था ? – वर्धा अधिवेशन . ‘
नागपुर चलो ‘ का नारा किस सत्याग्रह के अवसर पर बुलन्द किया गया ? – झण्डा सत्याग्रह के अवसर पर
1930 में चटगाँव को मुक्त कराने में मुख्य भूमिका किस क्रान्तिकारी की थी ? – सूर्यसेन की
महात्मा गांधी की मार्च से सम्बन्धित ‘ डांडी ‘ गुजरात के किस जिले में है ? – नौसारी में
. 1906 में ‘ युगान्तर ‘ समाचार – पत्र किसने प्रकाशित किया था ? -बारीन्द्र कुमार घोष तथा भूपेन्द्रनाथ दत्ता ने
. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लाल , बाल और पाल किसे कहा जाता है ? – लाला लाजपत राय , बाल गंगाधर तिलक और बिपिनचन्द्र पाल को .
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ‘ वहाबी आन्दोलन ‘ का प्रमुख केन्द्र कहाँ था ? पटना में .
स्वदेशी आन्दोलन सबसे पहले कहाँ / कब प्रारम्भ हुआ ? . – बंगाल विभाजन के विरुद्ध प्रारम्भ हुए आन्दोलन के समय .
असहयोग आन्दोलन किस काण्ड के पश्चात् समाप्त हो गया था ? चौरी – चौरा काण्ड के पश्चात् .
कांग्रेस ने गोलमेज सम्मेलन की किस बैठक में भाग नहीं लिया ? पहली व तीसरी बैठक में
भगतसिंह किस संगठन के नेता थे ? हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक सेना के
1916 के लखनऊ अधिवेशन की प्रमुख घटना क्या रही ? – मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में निकटता .
प्रार्थना सभा की स्थापना किसने की ? एम . जी . रानाडे ने .
वी . डी . सावरकर को किस केस में फँसाया गया था ? – नासिक षड्यंत्र केस में .
तीन प्रमुख कृषक आन्दोलनों / विद्रोहों को बताइए चम्पारण सत्याग्रह , खेड़ा सत्याग्रह तथा मोपला विद्रोह
यह कथन किसका है ” वे हमारी बेड़ियों को जितना ही कसेंगे , वे उतनी ही तड़केंगी , उनकी आँखें जितनी ही लाल – पीली होंगी , हमारी आँखें उतनी ही खुलेंगी ” ? रबीन्द्रनाथ टैगोर .
किसने कहा था ” 15 अगस्त मेरे जीवन का सबसे बड़ा अद्भुत और प्रेरक दिवस सिद्ध हुआ ? ” – लॉर्ड माउण्टबेटेन .
‘ विद्रोही ‘ कविता की रचना किसने की थी ? . काजी नजरुल इस्लाम .
गोपालकृष्ण गोखले ने 1905 में सर्वेण्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की , उस समय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन थे ? – गोपालकृष्ण गोखले
कांग्रेस ने किस वर्ष देशी राज्यों की स्वतंत्रता के कार्यक्रम को अपने उद्देश्यों में शामिल किया ? – 1938 में किस स्वतंत्रता सेनानी को 1908 में
अलीपुर सेन्ट्रल जेल में फाँसी दी गई ? – खुदीराम बोस .
सन्यासी विद्रोह का उल्लेख किस पुस्तक में मिलता . आनन्द मठ .
सुभाष चन्द्र बोस ने गांधीजी के साथ मतभेद होने के बाद कौनसी पार्टी बनाई ? . फारवर्ड ब्लॉक
. चर्बी वाले कारतूस के खिलाफ पहला विद्रोह किसने किया ? – मंगल पाण्डे ने बैरकपुर में .
रोलेट एक्ट के विरोध में गांधीजी ने कौनसा आन्दोलन प्रारम्भ किया था ? – असहयोग आन्दोलन
. भारत के लिए संविधान सभा बनाने की घोषणा किसके द्वारा की गई ? – कैबिनेट मिशन द्वारा
9 अगस्त को ‘ क्रान्ति दिवस ‘ के रूप में मनाते हैं , क्योंकि यह है – 1942 में ‘ भारत छोड़ो ‘ प्रस्ताव की स्वीकृति .
किस भारतीय नेता को ‘ लौह – पुरुष ‘ कहा जाता है ? – वल्लभभाई पटेल ●
किसके द्वारा बंगाल का स्थायी मालगुजारी बन्दोबस्त शुरू किया गया था ? – कार्नवालिस
. भारत में गरमदलीय आन्दोलन का पिता किसे कहा जाता है ? . बाल गंगाधर तिलक
. ‘ राष्ट्रीय शोक दिवस कब मनाया गया ? – बंगाल विभाजन लागू होने के दिन
. किस एक्ट के खिालाफ राष्ट्रवादियों का नारा था ‘ प्रतिनिधित्व के बिना कर नहीं ? . 1909 का एक्ट
. पूना में 1905 में ‘ सर्वेन्ट्स ऑफ इण्डिया सोसाइटी ‘ की स्थापना किसने की थी ? गोपाल कृष्ण गोखले ने .
बंगाल में ‘ तत्त्वबोधिनी सभा ‘ की स्थापना किसने की थी ? . देवन्द्रनाथ टैगोर ने .
चम्पारण विद्रोह के परिणामस्वरूप सरकार को कौनसी पद्धति समाप्त करनी पड़ी थी ? – तिनकथिया .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन कहाँ हुआ था ? .
कांग्रेस का प्रथम विभाजन किस अधिवेशन में हुआ था ? – लखनऊ अधिवेशन , 1916 में
. कूका आन्दोलन कहाँ हुआ था ? – पंजाब में
महात्मा गांधी ने प्रथम नागरिक अवज्ञा आन्दोलन ( Civil Disobedience Movement ) किस घटना के पश्चात् प्रारम्भ किया ? – रोलेट एक्ट लगने पर .
गांधीजी ने भारत में प्रथम उपवास ( Fast ) किस घटना के विरोध में रखा था ? अहमदाबाद मिल मजदूरों द्वारा हड़ताल .
एनी बेसेन्ट ने मद्रास में होमरूल लीग की स्थापना कब की थी ? . 1916 में
यह किसका कथन है- ” भारतीय कांग्रेस दल सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करता , यह भारत के बहुमत का प्रतिनिधि नहीं है ? – लॉर्ड कर्जन .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन ( 1929 ) की अध्यक्षता किसने की थी ? जवाहरलाल नेहरू
‘ भारत छोड़ो ‘ ( Quit India ) प्रस्ताव के पश्चात् कांग्रेस के उच्च नेता कब बन्दी बना लिए गए थे ? .9 अगस्त , 1942 को
. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस अधिवेशन में इसका नरम दल एवं गरम दल में विभाजन हुआ ? सूरत अधिवेशन में .
एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना कब हुई थी ? 1784 में
. डाक्टरिन ऑफ लेप्स को लागू करके सतारा राज्य को ब्रिटिश प्रभुसत्ता में कब सम्मिलित कर लिया गया ? – 1848 में .
हकीम अजमल खान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस अधिवेशन के अध्यक्ष थे ? – अहमदाबाद 1921 .
1905 में बंगाल प्रान्त को दो भागों में किसने बाँटा था ? – लॉर्ड कर्जन ने .
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम , 1947 किस दिन प्रभावी हुआ ? . 15 अगस्त , 1947 को
. ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ने तथा भारत के विभाजन की घोषणा किस योजना के अन्तर्गत की थी ? माउण्टबेटन योजना
. रॉलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी ने कौनसा आन्दोलन प्रारम्भ किया था ? . नागरिक अवज्ञा आन्दोलन
स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस को किस जेल में 1908 में फांसी दी गई थी ? अलीपुर सेन्ट्रल जेल
रास बिहारी बोस ने टोकियो में ‘ इंडियन इंडिपेन्डेंस लीग ‘ की स्थापना कब की थी ? – 23 जून , 1942 .
होमरूल लीग के सर्वाधिक कार्यालय कहाँ थे ? – चेन्नई ( मद्रास ) में
1905 में इण्डियन होमरूल सोसायटी की स्थापना लंदन में किसने की ? – श्यामजी कृष्ण वर्मा ने .
भारत के अन्तिम गवर्नर जनरल कौन थे ? – चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
. किस एक्ट को काला एक्ट के नाम से भी जाना जाता है ? . – रॉलेट एक्ट .
“ भारतीय संस्कृति पूरी तरह न हिन्दू है , न इस्लामी और न ही कुछ अन्य , वह सबका संयोजन है . ” यह कथन किसका है ? . महात्मा गांधी का
स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले प्रथम स्वतंत्रता दिवस कब मनाया गया ? 26 जनवरी , 1930 को .
1943 में अस्थायी भारत सरकार की स्थापना कहाँ और किसने की ? सिंगापुर में , सुभाष चन्द्र बोस ने
स्थायी बंदोबस्त के अधीन जमा किए गए भू – राजस्व में जमींदारों का अंश था 1/11 अंश .
ब्रिटिश के विरुद्ध विद्रोही नेता रानी गाइदिल्यू कहाँ की थीं ? – नगालैण्ड की .
वह कौनसा लेखक था जिसने 1857 के विद्रोह को ” स्वतंत्रता का प्रथम युद्ध ‘ कहा ? . विनायक दामोदर सावरकर .
सुभाष चन्द्र बोस ने 1939 में काँग्रेस अध्यक्ष का चुनाव किस आधार पर लड़ा ? – वह एक आक्रामक नीति के पक्ष में थे जिसका कांग्रेस के नेता विरोध कर रहे थे .
भारत की स्वतंत्रता के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष कौन थे ? – जे . बी . कृपलानी .
पंजाब में अहमदिया आन्दोलन किसने प्रारम्भ किया ? – मिर्जा गुलाम अहमद .
नागपुर में 1929 में सम्पन्न ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रेसीडेंट कौन थे ? जवाहरलाल नेहरू ‘
यह एक डूबते हुए बैंक पर अग्रिम तिथि का चेक था . ” क्रिप्स प्रस्ताव के सम्बन्ध में यह कथन किसका था ? महात्मा गांधी का
पूना में 1905 में ‘ सर्वेन्टस् ऑफ इण्डिया सोसाइटी ‘ की स्थापना किसने की थी ? गोपाल कृष्ण गोखले .
स्वाधीन भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर – जनरल कौन थे ? सी . राजगोपालाचारी
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अरूणा आसफ अली किस भूमिगत क्रियाकलाप की प्रमुख महिला संगठक थी ? भारत छोड़ो आन्दोलन
. किस कारागार में जवाहरलाल नेहरू ने ‘ डिस्कवरी ऑफ इण्डिया ‘ पुस्तक लिखी थी ? – अहमदनगर फोर्ट जेल .
ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी को जो उपाधि दी थी और जिसे उन्होंने असहयोग आन्दोलन में वापस कर दिया था , वह थी . कैसर – ए – हिन्द .
महात्मा गांधी एवं सरदार पटेल द्वारा खेड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का कारण था . ब्रिटिश सरकार द्वारा मनमाने लगान निर्धारण तथा उसे माफ करने से मना करने के विरुद्ध विद्रोह
किस एक्ट के खिलाफ राष्ट्रवादियों का नारा था ‘ प्रतिनिधित्व के बिना कर नहीं ? 1909 का एक्ट
. बाल गंगाधर तिलक पर 1897 में किस आधार पर मुकदमा चलाया गया ? – राजद्रोह .
नमक कानून के उल्लंघन में गांधीजी ने एक आन्दोलन शुरू किया था , जिसका नाम था – सविनय अवज्ञा आन्दोलन .
कैबिनेट मिशन कब भारत आया था ? – 1946 में
जब महात्मा गांधी की हत्या हुई , तब किसने कहा था , ” कोई विश्वास नहीं करेगा कि ऐसे शरीर और आत्मा वाला कोई आदमी कभी इस धरती पर चला था ” ? – अल्बर्ट आइंस्टाइन .
नमक सत्याग्रह के समय जब गांधीजी गिरफ्तार कर लिए गए , उस समय किसने आन्दोलन के नेता के रूप में उनका स्थान लिया ? – अब्बास तैयबजी .
बाल गंगाधर तिलक को ‘ लोकमान्य ‘ की उपाधि दी गई थी – होमरूल आन्दोलन के दौरान .
महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत किस वर्ष में लौटे ? 1915 में .
मैक्डोनाल्ड द्वारा प्रस्तावित ‘ कम्यूनल एवार्ड ‘ को गांधीजी द्वारा तुकराए जाने का प्रमुख कारण क्या था ? • दलित वर्ग को हिन्दुओं से अलग करना .
महात्मा गांधी द्वारा द्वितीय सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब प्रारम्भ किया गया ? . 1932 में
. आजाद हिन्द फौज के किन नेताओं पर दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चलाया गया ? – गुरदयाल सिंह ढिल्लो , शाहनवाज खाँ तथा प्रेम सहगल पर .
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के सन्दर्भ में बाग में एकत्रित लोग किसका विरोध कर रहे थे ? सत्यपाल मलिक एवं सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी का
सुभाषचन्द्र बोस ने कांग्रेस के किस अधिवेशन में अध्यक्ष चुने जाने के पश्चात् इस्तीफा दिया था ? त्रिपुरी अधिवेशन ( 1939 ) में
. ‘ व्यक्तिगत सत्याग्रह ‘ आन्दोलन 17 अक्टूबर , 1940 को कहाँ से प्रारम्भ हुआ ? पवनार से .
बिहार में 1857 के विद्रोह का अग्रणी नेता कौन था जिसने आरा में अंग्रेजी फौज से लोहा लिया था ? कुँवरसिंह ( जगदीशपुर ) .
स्वदेशी आन्दोलन के प्रारम्भ का तात्कालिक कारण क्या था ? – लॉर्ड कर्जन द्वारा किया गया बंगाल विभाजन ( 1905 ई . ) .
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अरूणा आसफ अली किस भूमिगत क्रिया – कलाप की प्रमुख महिला संगठक थीं ? भारत छोड़ो आन्दोलन .
भारत में क्रान्तिकारियों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक कमेटी की नियुक्ति की थी . जब रॉलेट एक्ट पारित हुआ था , उस समय भारत का वायसराय कौन था ? – लॉर्ड चेम्सफोर्ड
भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान किसने ‘ फ्री इण्डियन लीजन ‘ नामक सेना बनाई ? 3 – सुभाष चन्द्र बोस .
किसने ‘ सुबहे आजादी ‘ नामक कविता लिखी थी ? – फैज अहमद फैज
गांधी के अनुयायी जे . बी . कृपलानी का पूरा नाम क्या – जीवतराम भगवानदास कृपलानी .
वर्ष 1912 ई . में उर्दू साप्ताहिक अल हिलाल का प्रकाशन किसके द्वारा किया गया था ? – डॉ . अबुल कलाम आजाद
1946 ई . में बनी अन्तरिम सरकार में डॉ . राजेन्द्र प्रसाद के पास कौनसा विभाग था ? – खाद्य तथा कृषि न
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वर्ष 1929 में लाहौर सम्मेलन , जिसमें अंग्रेजों से पूर्ण स्वतंत्रता पाने का संकल्प अंगीकृत किया गया था , किसकी अध्यक्षता में हुआ था ? जवाहरलाल नेहरू
वर्ष 1939 में कांग्रेस को छोड़ने के पश्चात् सुभाष चन्द्र बोस ने किस दल की स्थापना की ? – फॉरवर्ड ब्लॉक
असहयोग आन्दोलन के दौर में अलीगढ़ में किस राष्ट्रीय शिक्षा संस्था को स्थापित किया गया था ? – जामिया मिलिया इस्लामिया को .
तिलक पर राजद्रोह का पहला मुकदमा क्यों चलाया गया था ? – शिवाजी द्वारा अफजल खाँ की हत्या को उचित ठहराने के लिए .
‘ सवर्ण हिन्दुओं की फासीवादी कांग्रेस ‘ कह कर कांग्रेस का चरित्र निरूपण किसने किया था ? – मोहम्मद अली जिन्ना ने .
किसने कहा था ’15 अगस्त मेरे जीवन में सबसे बड़ा अद्भुत और प्रेरक दिवस सिद्ध हुआ ? लॉर्ड माउण्टबैटन ने
. गोपाल कृष्ण गोखले ने 1905 ई . में ‘ सर्वेण्ट्स ऑफ इण्डिया सोसाइटी ‘ की स्थापना की . उस समय कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन था ? – गोपाल कृष्ण गोखले .
‘ पूर्ण स्वराज ‘ ( Complete Independence ) दिवस सर्वप्रथम कब मनाया गया था ? – 26 जनवरी , 1930 ई . को .
‘ कम्युनल अवार्ड ‘ का निर्णय देते समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री कौन थे ? – रेम्जे मेकडोनाल्ड ( Ramsay McDonald ) .
बाल गंगाधर तिलक को ‘ भारतीय असन्तोष का जनक ‘ किसने कहा था ? वेलेन्टाइन शिरोल ने
• हम ब्रिटेन की तबाही की कीमत पर भारत की स्वतंत्रता नहीं चाहते . ‘ यह किसने कहा था ? – महात्मा गांधी ने •
मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन ( 1940 ) की अध्यक्षता किसने की थी ? – मोहम्मद अली जिन्ना •
सन् 1906 में लन्दन में बी . डी . सावरकर ने कौनसे क्रान्तिकारी संगठन का गठन किया था ? – अभिनव भारत
भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरू को किस ‘ वाद ‘ ( केस ) में फाँसी की सजा सुनाई गई थी ? – लाहौर षड्यंत्र केस
भारत छोड़ो आन्दोलन किसकी प्रतिक्रिया में प्रारम्भ किया गया ? . क्रिप्स प्रस्ताव
. ब्रिटिश सरकार ने जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड की जाँच के लिए कौनसा कमीशन नियुक्त किया था ? हण्टर कमीशन ।
महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन ( Civil Disobedience Movement ) कब प्रारम्भ किया था ? 12 मार्च , 1930 को
1905 में किया गया बंगाल विभाजन कब और किस अवसर पर निरस्त घोषित किया गया ? – 1911 में दिल्ली दरबार के आयोजन के समय .
किस योजना के अन्तर्गत ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ने तथा भारत के विभाजन की घोषणा की थी ? • लॉर्ड माउण्टबेटन योजना .
किस क्रान्तिकारी ने कहा था ” हमारे जीवन का उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति है . हिन्दू धर्म हमारे इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमारा पथ प्रदर्शन करेगा ? ” – अरविन्द घोष
महात्मा गांधी का लोक सत्याग्रह ( Mass Movement ) का प्रथम प्रयोग कहाँ किया गया है ? – चम्पारण ( बिहार ) में .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष कौन थी ? – श्रीमती ऐनी बेसेंट .
भारत के उदारवादी नेताओं में किसे ‘ A silvered Tongued Orator ‘ कहा जाता है ? • गोपाल कृष्ण गोखले को .
अंग्रेजों द्वारा बंगाल विभाजन ( Partition of Bengal ) का वास्तविक कारण क्या था ? – बंगाल में राष्ट्रीयता के बढ़ने को रोकना
1946 में नेवी ( Navy ) ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध खुला विद्रोह कहाँ किया था ? • बम्बई ( मुम्बई ) में
. किस एक के अन्तर्गत भारत में ब्रिटिश शासन का अन्त हुआ ? भारत स्वतंत्रता अधिनियम , 1947 ( Indian Inde pendence Act , 1947 ) के अन्तर्गत
‘ The Prophet of Indian Nationalism and Father of Modern India ‘ किसे कहा जाता है ? राजा राममोहन राय को
नीति निर्देशक सिद्धान्तों ( Directive Principles ) के विषय में किसने कहा था- ‘ a cheque payable at the convenience of the Bank ‘ ? के.टी. शाह ने
. किस प्रमुख नेता ने 1917 के चम्पारण सत्याग्रह का विरोध किया , क्योंकि यह महात्मा गांधी की अध्यक्षता में चलाया जा रहा था ? – एन . जी . रंगा ने .
काँग्रेस के किस प्रमुख नेता ने ‘ माउण्टबेटेन प्लान ‘ को अस्वीकार ( Reject ) किया था ? – मौलाना अबुल कलाम आजाद ने .
हिन्दू धर्म में पहला सुधार आन्दोलन ब्रह्म समाज था , जिसकी नींव 1828 ई . में किसने डाली ? राजा राममोहन राय ने .
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के रूप में गांधीजी ने ‘ डाण्डी मार्च ‘ किया था . 12 मार्च , 1930 को
भारत के स्वतंत्रता – संघर्ष के दौरान सबसे पहले सत्याग्रह प्रारम्भ किसने किया था ? महात्मा गांधी ने .
महात्मा गांधी ने 1915 ई . में अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की जो बाद में के रूप में प्रसिद्ध हुआ . – साबरमती आश्रम .
1928 ई . के बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व सरदार बल्लभभाई पटेल ने किया . इसी सत्याग्रह में उन्हें …. ‘ की उपाधि दी गई . सरदार .
सन् 1907 ई . में किस अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला विभाजन हुआ था ? – सूरत अधिवेशन में .
भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रारूप महात्मा गांधी ने बनाया था और इसे … ‘ ने प्रस्तुत किया था . – पं . जवाहरलाल नेहरू .
भारत में प्रथम तीन विश्वविद्यालय ( कलकत्ता , मद्रास , बम्बई ) की स्थापना किस वर्ष में हुई ? – 1857 ई . मे
‘ साइमन कमीशन ‘ भारत में कब आया ? 1927 ई . में
बंगाल का पहला विभाजन कब हुआ था ? 1905 ई . में .
किसने कहा था ” तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा ” ( Give me your blood , I shall give you freedom ) ? सुभाषचन्द्र बोस ने .
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान ‘ बहिष्कृत भारत ‘ नामक विचार पत्र किसने निकाला था ? . बी . आर . अम्बेडकर ने .
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित गोलमेज सम्मेलनों की श्रृंखला में महात्मा गांधी ने किस एक में भाग लिया था ? – द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में .
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन , 1931 की अध्यक्षता किसने की थी ? सरदार वल्लभभाई पटेल ने
1942 में किस ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने क्रिप्स मिशन भारत भेजा ? विस्टन चर्चिल ने
विवेकानन्द को आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन का ‘ आध्यात्मिक पिता ‘ किसने कहा ? सुभाषचन्द्र बोस ने
1857 नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं ? एस . एन . सेन .
‘ उत्तरी भारत के हिन्दू लूथर ‘ ( Hindu Luther of Northern India ) के नाम से कौन जाने जाते थे ? ईश्वर चन्द्र विद्यासागर .
दिल्ली के लाल किले में आई . एन . ए . ( INA ) का प्रसिद्ध मुकदमा किस वर्ष चला ? . 1945 में .
रुहेलखण्ड में किस रोहिला नेता ने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी थी ? खान बहादुर खान ने
कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज ‘ और ‘ वेदान्त कॉलेज की मकी स्थापना किसने की ? राजा राममोहन राय ने
. यंग बंगाल आन्दोलन की पहल मुख्य रूप से किसने की ? – हेनरी विवियन डेरोजियो ने
सत्यशोधक समाज की स्थापना किसने और कब की ? – ज्योतिबा फूले ने , 1873 में
. आजाद हिन्द फौज के किन नेताओं पर दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चलाया गया ? – शाहनवाज खाँ , गुरदयाल सिंह ढिल्लों तथा प्रेम सहगल पर .
‘ भारत छोड़ो आन्दोलन के समय किसने बलिया में ‘ समानान्तर सरकार स्थापित की थी ? चित्तू पांडेय
ने . फैजाबाद में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया था ? अहमदुल्ला ने
डाण्डी यात्री की तुलना नेपोलियन के एल्बा से लौटने के बाद उसकी पेरिस तक यात्रा के साथ किसने की थी ? – सुभाषचन्द्र बोस ने
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के बाद पंजाब में फैली अशान्ति की जाँच के लिए कांग्रेस द्वारा नियुक्त आयोग के अध्यक्ष कौन थे ? प . मोतीलाल नेहरू
. . किस घटना के बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अपना प्रथम असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया ? रौलेट एक्ट का बनना
. रौलेट एक्ट के माध्यम से ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य क्या था ? साधारण कानूनी प्रणाली से छुटकारा प्राप्त करके अपने हाथों में दूरगामी शक्तियाँ लेना .
जेल में अनशन के दौरान किस देशभक्त सेनानी ने अपनी जान दे दी ? जतिनदास ने
. कांग्रेस का वह अधिवेशन जिसमें पहली बार ‘ स्वराज्य ‘ की मांग रखी गई कब तथा कहाँ हुआ तथा इसकी अध्यक्षता किसने की ? – 1906 ई . , कलकत्ता में , दादाभाई नौरोजी ने अध्यक्षता की .
भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली किस वर्ष स्थानान्तरित की गई ? सन् 1911 ई . में .
गांधीजी का डाण्डी मार्च किस आन्दोलन से सम्बन्धित था ? – सविनय अवज्ञा आन्दोलन से
• बंगाल विभाजन के विरुद्ध प्रारम्भ हुए आन्दोलन के समय कौनसा अन्य आन्दोलन प्रारम्भ हुआ ? – स्वदेशी आन्दोलन
. ‘ चौरी – चौरा काण्ड ‘ के कारण कौनसा आन्दोलन समाप्त हो गया ? – असहयोग आन्दोलन
‘ भारत के राजनीतिक असन्तोष का जनक ‘ किन्हें कहा जाता है ? – बालगंगाधर तिलक को
भारत से धन निष्कासन के बारे में सर्वप्रथम किसने लिखा था ? दादा भाई नौरोजी ने
‘ पाकिस्तान ‘ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया ? चौधरी रहमत अली ने
अन्तरिम सरकार में मुस्लिम लीग के कितने सदस्य शामिल थे ? 5 ( पाँच )
भारत छोड़ो आन्दोलन के नेताओं को गिरफ्तार करने के लिए ब्रिटिश शासक द्वारा चलाए गए ऑपरेशन का क्या नाम था ? – ऑपरेशन जीरो आवर
1857 के विद्रोह की असफलता का कारण क्या आँका गया है ? – संगठन एवं नेतृत्व का अभाव
. किसने कहा था ” हिन्दू और मुसलमान भारत की दो आँखें हैं ? ” सर सैयद अहमद खाँ ने .
सत्यशोधक समाज के संस्थापक कौन थे ? ज्योतिबा फूले , तेलंग एवं रानाडे
राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज को किसने पुनर्जीवित किया ? . देवेन्द्रनाथ टैगोर ने .
अलीपुर केस में सरकारी गवाह कौन बन गया था ? . नरेन्द्र गोसाई
असम में 1857 की क्रान्ति का नेता कौन था ? – दीवान मनीराम दत्त
भारत में 1918 में प्रथम मजदूर संघ की स्थापना किसने की थी ? बी . पी . वाडिया ने
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी द्वारा स्थापित किस संगठन का विलय 1886 में इण्डियन नेशनल कांग्रेस में हुआ ? – इण्डियन एसोसिएशन का .
. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की थी ? – रास बिहारी घोष ने
‘ भारत छोड़ो प्रस्ताव ‘ कब वापस ले लिया गया ? 1944 में
जिस कांग्रेस अधिवेशन में ‘ वन्दे मातरम ‘ गान प्रथम बार बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा प्रस्तुत किया गया , उसकी अध्यक्षता किसने की थी ? – रहीमतुल्ला सयानी ने
. ‘ इण्डिपेन्डेन्ट लीग ‘ की स्थापना किसने की ? सुभाषचन्द्र बोस ने
‘ कोलोनाइजेशन बिल ‘ के विरुद्ध सशक्त आन्दोलन चलाने वाले किस भारतीय राजनेता को माण्डले जेल में बन्द किया गया ? . लाला लाजपत राय को .
कांग्रेस के किस अधिवेशन में हिन्दी को सर्वप्रथम राष्ट्रभाषा के रूप में प्रस्तुत किया गया ? बेलगाँव अधिवेशन , 1924 में
‘ व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन 17 अक्टूबर , 1940 में प्रारम्भ हुआ . सर्वप्रथम यह किस स्थान से प्रारम्भ किया गया ? – पवनार से
. क्रान्तिकारी आन्दोलन की पुस्तक ‘ बन्दी जीवन ‘ के लेखक कौन थे ? – शचीन्द्रनाथ सान्याल .
इण्डिया ऑफिस में राजनीतिक सहायक कर्नल विलियम कर्जन वाइली की गोली मारकर हत्या किसने की ? – मदनलाल धींगरा ने .
1923 में स्वराज दल का गठन किसने किया था ? – पं . मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास ने .
भारत की स्वतंत्रता के समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री कौन था ? – क्लीमेंट एटली
• मदास से प्रारम्भ हुए ‘ जस्टिस आन्दोलन ‘ ( 1915-16 ) का प्रमुख उद्देश्य क्या था ? – दलित वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना .
गांधीजी के आन्दोलनों को ‘ राजनीतिक फिरौती ‘ किस वायसराय ने कहा था ? – लॉर्ड लिनलिथगो ने
1857 के ‘ बरेली विद्रोह ‘ का नेता कौन था ? खान बहादुर .
दिल्ली में मुगल सम्राट् की पत्नी ने अंग्रेजों को सूचना देकर विद्रोहियों की योजना असफल कर दी . उसका क्या नाम था ? . जीनत महल
. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के समय भारत का राज्य सचिव ( Secretary of State for India ) कौन था ? – लॉर्ड क्रास .
कौनसा वायसराय अपनी अण्डमान यात्रा के दौरान एक कैदी का शिकार हो गया था ? – लॉर्ड मेयो ‘
भारतीय प्रेस के मुक्तिदाता ‘ किनको कहा जाता है ? सर चार्ल्स मेटकॉफ तथा लॉर्ड मैकाले को .
कांग्रेस को ‘ जनता के अत्यन्त अल्पमत ‘ ( Microsco pic Minority ) का प्रतिनिधि कहा था ? लॉर्ड डफरिन ने
किस प्रसिद्ध मुस्लिम नेता को सरोजिनी नायडू ने ‘ हिन्दू – मुस्लिम एकता का राजदूत ‘ कहा था ? – मोहम्मद अली जिन्ना को .
केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकते समय भगतसिंह के साथ कौन था ? – बटुकेश्वर दत्त .
सन् 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बनारस अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की थी ? – गोपाल कृष्ण गोखले ने .
भारतीय इतिहास में 5 मार्च , 1931 एक महत्वपूर्ण तिथि है , क्योंकि इसी दिन गांधी – इरविन समझौता सम्पन्न हुआ .
1938 में कांग्रेस का अधिवेशन हरीपुरा में आयोजित हुआ . हरीपुरा कहाँ स्थित है ? – गुजरात में
. ‘ द इण्डियन स्ट्रगल ‘ ( The Indian Struggle ) नामक पुस्तक किसने लिखी ? सुभाषचन्द्र बोस ने
HISTORY OF INDIA 300 AD to 1200 AD
HISTORY OF INDIA UP to 300 A.D
Post Views: 30