विलफ्रेडो परेटो
( Vilfredo Pareto : 1848 – 1923 ]
– इटली के प्रमुख सामाजिक विचारक विलफ्रेंडो परेटो का नाम उन प्रमुख विद्वानों में से एक है जिन्होंने समाजशास्त्रीय चिन्तन को व्यवस्थित बनाने तथा उसे एक दिशा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है । आरम्भ में एक भौतिक विज्ञानी से अर्थशास्त्री तथा बाद में समाजशास्त्री के रूप में परेटो का चिन्तन न केवल बहुमुखी रहा अपितु विभिन्न विज्ञानों के बीच एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण को अपनाते हुए उन्होंने जो विचार प्रस्तुत किए , उनमें तार्किकता और व्यवहारवाद का एक कुशल समन्वय देखने को मिलता है । अपने आरम्भिक चिन्तन से परेटो , फासिज्म अथवा अधिनायकवाद ( Facism ) के दृढ़ समर्थक थे । यही कारण है कि जिस तरह कार्ल मार्क्स को ‘ सर्वहारा वर्ग का पैगम्बर ‘ समझा जाता है , उसी तरह इटली में परेटो को ‘ फासीवाद का पैगम्बर ‘ ( Prophet of Facism ) माना जाता रहा । इसका एक कारण सम्भवतः यह भी है कि मुसोलिनी के प्राध्यापक होने के नाते उन्होंने मुसोलिनी पर जो प्रभाव डाला , उससे इटली में फासिस्ट शासन को और अधिक बल मिला । वास्तविकता यह है कि परेटो का चिन्तन और कृतित्व इतना व्यापक रहा है कि उन्हें केवल ‘ फासीवाद का जनक ‘ अथवा पोषक कह देने से ही उनके चिन्तन की वास्तविकता को नहीं समझा जा सकता । परेटो का जीवन बहुत से उतार – चढ़ावों से युक्त रहा जिन्हें समझे बिना उनके विचारों की मौलिकता और वैज्ञानिकता को नहीं समझा जा सकता ।
जीवन एवं कृतियाँ
( Life and Works )
परेटो का परिवार मूलतः इटली में जेनेवा का निवासी एक सम्पन्न परिवार था जिसमें उनके पिता मार्केज रॉपेल परेटो ( Marqius Raphael Pareto ) मैजिनी ( Mazzini ) के विचारों से प्रभावित होने के कारण जनतान्त्रिक विचारधारा के
अनुयायी थे । इ के फलस्वरूप उन्होंने इटली से बाहर जाकर फ्रांस में शरण ली और वहीं उनका विवाह पेरिस निवासी युवती मैरी मेटीनियर ( Marie Metenier ) से हुआ । यहीं सन् 1948 में विलफ डो परेटो का जन्म हुआ । आपका पूरा नाम विलफ्रडो फ्रेडरिको दामासो परेटो ( Vilfredo Frederico Damaso Pareto ) है । उनके जन्म के लगभग 7 वर्ष के उपरान्त जब इटली की राजनैतिक उथल – पुथल कुछ कम हो गयी तब परेटो का परिवार जुलाई , 1848 में पुनः इटली वापस आ गया । इस प्रकार परेटो की आरस्भिक शिक्षा इटली में ही सम्पन्न हुई । अपनी सेकण्ड़ी स्तर की शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात उन्होंने ट्युरिन के प्रख्यात पोलीटेक्नीक में शिक्षा ग्रहण करना आरम्भ की तथा इस संस्थान में वह 5 वर्ष तक गणित , भौतिक विज्ञान तथा इजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण करते रहे । इसी कोर्स के दौरान परेटो ने ‘ ठोस वस्तु में सन्तुलन के आधारभूत सिद्धान्त ‘ ( The Fundamenal Princi ples of Equilibrium in Solid Bodies ) पर अपनी थीसिस प्रस्तुत की जो बाद में समाज सम्बन्धी उनके अध्ययन की आधारशिला सिद्ध हुई ।
सन् 1817 में स्नातक स्तर की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने ‘ रोम रेल – रोड कम्पनी ‘ में निदेशक के पद पर कार्य करना आरम्भ किया य एपि कुछ समय बाद ही इस पद को छोड़कर फ्लोरेंस में एक लौह – उद्योग कम्पनी में अधिकारी के रूप में कार्य करना आरम्भ कर दिया । यही वह समय था जब परेटो को सम्भ्रान्त परिवारों तथा बुर्जुआ वर्ग के उच्च परिवारों के सम्पर्क में रहने के प्रचुर अवसर प्राप्त हुए । यहीं से वे जन तांत्रिक और उदारतावादी विचारों के दढ़ समर्थक और प्रचारक बनने लगे । सन् 1876 में स्वतन्त्र व्यापार का समर्थन करने वाला दक्षिण पंथी दल जब सत्ता से हट गया तथा उसके स्थान पर वामपंथी नीतियों का समर्थन करने वाला दल सत्तारूढ़ हो गया तब परेटो के विचारों का विरोध किया जाने लगा । सन् 1882 में वामपंथी सरकार का विरोध करने के लिए परेटो – सक्रिय राजनीति से भी सम्बद्ध रहे लेकिन वे इस प्रयास में सफल नहीं हो सके । इसी वर्ष उनके पिता की भी मृत्यु हो गयी । इसके पश्चात् भी परेटो फ्लोरेंस के लौह – उद्योग में कार्य करते रहे लेकिन सन् 1889 में उन्होंने इस उद्योग में निदेशक के पद को छोड़कर रूसी मूल की युवती एलेसान्द्रिता से विवाह कर लिया तथा फीजोल ( Fiesole ) में जाकर रहने लगे । यहां उन्होंने विभिन्न भाषाओं के न केवल प्रमुख ग्रन्थों का अध्ययन करना आरम्भ किया बल्कि वह अर्थशास्त्र के गम्भीर अध्ययन में भी लग गये । इस अवधि में परेटो ने गणितीय तथा सैद्धान्तिक अर्थशास्त्र पर कुछ विलक्षण शोध – पत्र प्रकाशित करवाए जिसके फलस्वरूप अप्रैल , 1893 में उन्हें स्विट्जरलैण्ड के लोशेन विश्वविद्यालय में राजनैतिक अर्थशास्त्र के विशिष्ट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति दे दी गयी । इससे परेटो न केवल इटली में अपने विरोध से बच गये बल्कि उन्हें अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों का व्यापक अध्ययन करने का भी अवसर प्राप्त हुआ ।
अगले ही वर्ष , 46 वर्ष की आयु में परेटो को स्थायी प्रोफेसर बना दिया गया । सन् 1896 में जव उनकी पुस्तक ‘ कोर्स डि इकानांमी पौलिटिक ‘ ( Cours d ‘ Economie Politique ) प्रकाशित हुई तब उन्हें संसार के प्रमुख विद्वानों में गिना जाने लगा । इस प्रकार इजीनियर परेटो एक अर्थशास्त्री परेटो के रूप में बदल गये । अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में परेटो यद्यपि उदारतावादी नीतियों के समर्थक रहे लेकिब इस दौरान अनेक घटनाओं के कारण वे स्वयं अपने विचारों को एकाकी समझने लगे । उन्हें दूसरा आघात तब पहुंचा जब एक भ्रमण से वापस लौटने पर परेटो को यह ज्ञात हुआ कि उनकी पत्नी बहुत – से बहुमूल्य सामानों के साथ परेटो को छोड़कर जा चुकी है । सम्भवतः इसी घटना के प्रभाव से मनुष्य के बारे में परेटो की भावना कुछ कठोर बनने लगी । इस आघात से परेटो लगभग 4 वर्ष तक मानसिक रूप से अस्वस्थ भी रहे । बीमारी के पश्चात् पुनः लोशेन विश्व विद्यालय लौटने पर उन्होंने मानव व्यवहार की विविधता को स्वीकार करते हुए ‘ सामाजिक अर्थशास्त्र ‘ ( Social Economics ) विषय पर भाषण देना आरम्भ किया ।
इस बीच उनका यह भी प्रयत्न रहा कि सामाजिक अध्ययनों के पाठ्यक्रम में सुधार करने के साथ ही उसे इस तरह संयोजित किया जाय जिससे व्यक्ति का ध्यान उन सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारकों की ओर भी आकर्षित हो जो आर्थिक व्यवहारों के स्रोत हैं । इस समय अर्थशास्त्र के बारे में उन्होंने एक अवसर पर कहा कि ‘ एक ही विषय – वस्तु को बार – बार पढ़ाने से मुझे ऐसा लगता है कि जैसे मैं एक रटने वाला तोता बन गया हूँ । ” यहीं से परेटो का जीवन अर्थशास्त्र से समाजशास्त्र की ओर बढ़ने लगा । इस स्थिति को स्पष्ट करते हुए परेटो ने लिखा , ” राजनैतिक अर्थशास्त्र में कार्य करने के बाद एक सीमा पर मुझे यह अनूभव हआ कि इसमें और आगे नहीं बढ़ा जा सकता । इस दशा में मेरे सामने अनेक बाधाएँ आई लेकिन उनमें सबसे बड़ी बाधा यह थी कि सभी प्रकार की सामाजिक घटनाएँ परस्पर निर्भर होती हैं तथा किसी एक कारक के आधार पर ही समाज की विवेचना नहीं की जा सकती । ” उपर्युक्त परिवर्तन के फलस्वरूप परेटो ने ‘ राजनैतिक समाजशास्त्र ‘ ( Politi cal Sociology ) के क्षेत्र में अध्यापन करना आरम्भ किया , यद्यपि कुछ सीमा तक उनकी रुचि आर्थिक और सामाजिक सिद्धान्तों के इतिहास में भी बनी रही । इस समय परेटो की यह धारणा बन गयी कि मानव व्यवहारों का अधिकांश भाग विवेक से संचालित न होकर अनेक भावनाओं , संवेगों , अन्ध – विश्वासों और इसी तरह के अतार्किक विचारों से प्रभावित होता है । उन्होंने यह अनुभव किया कि आर्थिक उदारतावाद के प्रति उनके परिवार तथा मित्रों द्वारा जिन आधारों पर उनका विरोध किया जाता रहा , वे पूरी तरह अतार्किक थे ।
साथ ही जनसाधारण के व्यव हार जिन तर्कों पर आधारित होते हैं , वे अनेक अतार्किक विश्वासों , भावनाओं , भय_ _ सामाजिक विचारक और इसी तरह के संवेगों से प्रभावित होते हैं । सन् 1902 में परेटो की जो पुस्तक ‘ The Socialist Systenn ‘ के नाम से प्रकाशित हुई , उसमें परेटो की इस धारणा का स्पष्ट रूप देखने को मिलता है ।इसके पश्चात् सन 1906 में प्रकाशित उनको पुस्तक ‘ Mannual of Political Economy ‘ में भी परेटो ने इसी प्रकार के विचार व्यक्त किए सन् 1909 में परेटो ने अन्तिम रूप से लोशेन विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करना छोड़ दिया । उन्होंने लोशेन नगर के पास ही सेलिगनी ( Celigny ) में जिस ग्रामीण ढंग के बंगले का निर्माण किया था उसी में जाकर रहना आरम्भ कर दिया । यहीं उनकी रुचि निरन्तर समाजशास्त्र के अध्ययन की ओर बढ़ती गयी । इस समय उन्होंने समाजशास्त्रीय चिन्तन में जो योगदान किया वह 1915 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘ Treatise on General Sociology ‘ में देखने को मिलता है । बाद में अंग्रेजी भाषा में यह पुस्तक ‘ The Mind and Society ‘ के नाम से सन् 1936 में प्रकाशित हुई । अन्ततः सन् 1923 में 75 वर्ष की आयु में विलफ्र डो परेटो का देहान्त हो गया । परेटो ने अपने विचारों को स्पष्ट करने के लिए जो अमूल्य ग्रन्थ लिखे , उनमें से उनके प्रमुख प्रकाशन इस प्रकार हैं :
1 . द कोर्स ऑफ पालिटिकल इकानामी , 1896 ,
2 . द सोशलिस्ट सिस्टम , 1902 ,
3 . मैनुअल ऑफ इकानामिक पोलिटिक्स , 1906 ,
4 . ट्रीटीज़ ऑन जनरल सोशियोलॉजी , 19151
उपर्युक्त पुस्तकों के अतिरिक्त परेटो ने अपने जीवनकाल में ‘ सन् 1990 के पूर्व इटली का सत्तारूढ़ वर्ग ‘ पर भी एक पुस्तक लिखी थी जो उनकी मृत्यु के बाद सन् 1950 में प्रकाशित हुई । इन सभी पुस्तकों से स्पष्ट होता है कि अपनी पहली रचना को छोड़कर बाद की सभी पुस्तकों में परेटो का चिन्तन मुख्यत : समाजशास्त्र की ओर ही उन्मुख रहा । ‘ Treatise on General Sociology ‘ बह सबसे महत्त्व पूर्ण पुस्तक है जिसमें परेटो ने समाजशास्त्र की अवधारणाएँ प्रस्तुत की तथा सामाजिक घटनाओं के विवेचन को अनेक सामाजिक , मनोवैज्ञानिक , आर्थिक तथा राजनैतिक कारकों के सन्दर्भ में स्पष्ट किया । फ्रेंच तथा इटेलियन भाषा में उन्होंने 100 से भी अधिक लेख लिखकर समय – समय पर अपने विचार व्यक्त किए । इन सभी से परेटो का प्रतिभाशाली और मौलिक चिन्तन स्पष्ट होता है । समाजशास्त्रीय चिन्तन के सन्दर्भ में परेटो ने जो विचार प्रस्तुत किए उनमें से कुछ प्रमुख विचारों को समझना आवश्यक है ।
समाजशास्त्र : एक ताकिक – प्रयोगात्मक विज्ञान
( Sociology : A Logico – Experimental Science )
अपने वैज्ञानिक अध्ययन में परेटो का सर्वप्रमुख प्रयास उन साधनों को ज्ञात करना था जिनकी सहायता से मानव व्यवहारों को प्रभावित करने वाले अतार्किक आधारों की तार्किक दृष्टिकोण से विवेचना की जा सके । परेटो कभी भी वेबलिन तथा उन दूसरे विद्वानों से सहमत नहीं रहे जो मानव – व्यवहारों की विवेचना आथिक सिद्धान्तों के आधार पर करना चाहते थे । इसके विपरीत , परेटो का विश्वास था कि स्वयं आर्थिक सिद्धान्तों की विवेचना समाजशास्त्रीय अवधारणाओं के आधार पर होनी चाहिए । इस दृष्टिकोण के द्वारा मानव – व्यवहार से सम्बन्धित उन विशेषताओं को सही ढंग से समझा जा सकता है जिनकी विवेचना करने में आर्थिक बिश्लेषण और अनेक दूसरे अमूर्त सिद्धान्त सिद्ध हो चुके हैं । इस सन्दर्भ में परेटो ने स्पष्ट किया कि समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों का विकास एक ऐसी तार्किकता पर आधारित होना आवश्यक है जो आर्थिक और राजनैतिक चिन्तन को सही दिशा दे सके । समाजशास्त्र का रूप क्या हो सकता है ? इसे स्पष्ट करते हुए परेटो ने लिखा कि समाजशास्त्र वह सामाजिक विज्ञान है जिसका मुख्य कार्य व्यक्तियों की अतार्किक क्रियाओं का विश्लेषण करने के लिए एक तार्किक – प्रयोगात्मक आधार प्राप्त करना है । इस दृष्टिकोण से समाजशास्त्र में उन प्रेरणाओं का अध्ययन किया जाना चाहिए जो सामाजिक जीवन के एक साधन के रूप में लोगों की अतार्किक क्रियाओं को प्रभावित करती है ।
यही कारण है कि अनेक विद्वानों ने परेटो के समाजशास्त्र को ‘ मनोवैज्ञानिक समाजशास्त्र ‘ ( Psychological Sociology ) के नाम से सम्बो धित किया है । वास्तविकता यह है कि परेटो ने जिन अवधारणाओं की सहायता से समाज शास्त्रीय चिन्तन को एक नया रूप देने का प्रयत्न किया , उनमें मनोवैज्ञानिक तत्त्वों का कुछ सीमा तक समावेश अवश्य है लेकिन मूल रूप से उनके समाजशास्त्र को ‘ समन्वयात्मक समाजशास्त्र ‘ ही कहा जा सकता है । यह विज्ञान इस दृष्टिकोण से समन्वयात्मक है कि केवल इसी के द्वारा मानव व्यवहार को प्रभावित करने वाले उन आधारों को समझा जा सकता है जिनका अध्ययन अन्य सामाजिक विज्ञानों द्वारा करना सम्भव नहीं है । इसके पश्चात् भी विभिन्न सामाजिक विज्ञान समाजशास्त्र से इसलिए सम्बन्धित हैं कि वे अपने – अपने अध्ययनों द्वारा विभिन्न कारकों के प्रभाव को जानने में समाजशास्त्र की सहायता कर सकते हैं तथा स्वयं भी समाजशास्त्रीय अवधारणाओं से लाभ उठा सकते है । इस प्रकार परेटो समाजशास्त्र के रूप में एक ऐसे विज्ञान को विकसित करना चाहते थे जिसमें विभिन्न प्रकार की सामाजिक घट नाओं की समानताओं के आधार पर तार्किक सिद्धान्तों को विकसित किया जा सके ।
इस प्रकार परेटो ने अपने समाजशास्त्र को ,’ ताकिक – प्रयोगात्मक विज्ञान ‘ ( Logical Experimental Science ) का नाम दिया । इसका कारण यह है कि एक विज्ञान के रूप में इसे तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की सहायता से ही विकसित किया जा सकता है ।
ताकिक – प्रयोगात्मक पद्धति
( Logico – Experimental Method )
प्राथमिक रूप से विज्ञान का स्नातक होने के कारण परेटो की यह मान्यता थी कि समाजशास्त्र को विज्ञान के रूप में तभी विकसित किया जा सकता है जब इसकी अपनी एक वैज्ञानिक पद्धति हो । परेटो से पहले अनेक विद्वानों ने समाज शास्त्रीय अध्ययनों के लिए भौतिक विज्ञानों की पद्धति को अपनाने पर बल दिया था लेकिन परेटो ने अपनी पुस्तक ‘ ट्रेटीज ऑन जनरल सोशियोलाजी ‘ में काम्ट , स्पेन्सर तथा अनेक दूसरे विद्वानों द्वारा बतलाई गयी पद्धतियों को ‘ झूठे विज्ञानवाद ‘ ( Pseudo – Scientism ) की संज्ञा देते हुए उनका विरोध किया । परेटो का स्पष्ट मत था कि जिन पद्धतियों की सहायता से भौतिक विज्ञानों की विषय – वस्तु का अध्ययन किया जाता है , उनका उपयोग समाजशास्त्रीय अध्ययनों के लिए उपयुक्त नहीं है । वैज्ञानिक समाजशास्त्र के लिए जिस पद्धति की आवश्यकता है , वह निरीक्षण ( Observation ) , वस्तुनिष्ठ अनुभवों तथा इनके आधार पर निकाले गये तर्कपूर्ण निष्कर्षों से सम्बन्धित होना चाहिए ।
वास्तव में समाजशास्त्र एक समन्वयात्मक विज्ञान है , अत : इससे सम्बन्धित अध्ययन अवलोकन और परीक्षण पर आधारित होना आवश्यक है । परेटो ने इस अध्ययन – पद्धति को ‘ ताकिक प्रयोगात्मक पद्धति ‘ का नाम दिया । परेटो द्वारा प्रयुक्त इटेलियन शब्द ‘ एक्सपेरिएन्जा ‘ ( Experienza ) का तात्पर्य विशुद्ध रूप में किए जाने वाले प्रयोगों से न होकर अवलोकन तथा आवश्यकता होने पर उस नियन्त्रित अवलोकन से है जिसकी सहायता से प्राप्त परिणामों को ताकिक रूप से प्रमाणित किया जा सके । इस प्रकार तार्किक – प्रयोगात्मक वह पद्धति है जो अवलोकन पर आधारित प्रयोगों को महत्त्व देती है तथा उनसे प्राप्त परिणामों को तर्क द्वारा प्रमाणित करने की क्षमता रखती है । परेटो के अनुसार तर्क ( Logic ) का तात्पर्य यह है कि अवलोकन के आधार पर विभिन्न घटनाओं के बीच जो सह सम्बन्ध पाया जाय , उससे प्राप्त हीने वाले परिणामों को प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत किया जाय । प्रयोगात्मक ( Expeimental ) शब्द में अवलोकन तथा प्रयोग दोनों की विशेषताओं का समावेश है । प्राकृतिक विज्ञान इसलिए प्रयोगात्मक होते है क्योंकि इनसे सम्बन्धित अवधारणाएँ प्रयोगों के द्वारा ही विकसित की जा सकती इनसे भिन्न , समाजशास्त्रीय अध्ययनों के लिए नियन्त्रित अवलोकन को ही प्रयोग का पूरक माना जा सकता है । इस दृष्टिकोण से समाजशास्त्र के लिए ताकिक प्रयोगात्मक पद्धति एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा प्रयोगसिद्ध समानताओं अथवा विभिन्न तथ्यों के बीच रहने वाले नियमित सम्बन्धों को ज्ञात किया जा सके ।
उपर्युक्त आधार पर परेटो ने स्पष्ट किया कि समाजशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में तभी विकसित किया जा सकता है जब अनुभव के आधार पर विभिन्न सामाजिक घटनाओं का अध्ययन किया जाय , निरीक्षण और प्रयोग के द्वारा तथ्यों की परीक्षा की जाय एवं विभिन्न तथ्यों के बीच पायी जाने वाली समानताओं के आधार पर तार्किक नियमों का निर्माण किया जाय । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जिन तथ्यों अथवा घटनाओं का अध्ययन अवलोकन और परीक्षण के आधार पर नहीं किया जा सकता , उन्हें समाजशास्त्रीय अध्ययन से पृथक रखना चाहिए । यह सम्भव है कि इस पद्धति के द्वारा जो परिणाम प्राप्त हो , वे सामान्य धारणाओं के विपरीत हों लेकिन विज्ञान का उद्देश्य यथार्थ नियमों को प्रस्तुत करना है , लोगों की भावनाओं को सन्तुष्ट करना नहीं । ताकिक – प्रयोगात्मक पद्धति की प्रकृति को परेटो ने जिन विशेषताओं के आधार पर स्पष्ट किया , उन्हें संक्षेप में निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है :
( 1 ) तथ्यात्मकता ( Emperical ) – – परेटो के अनुसार तार्किक – प्रयोगात्मक पद्धति का सम्बन्ध केवल यथार्थ तथ्यों को प्रस्तत करने से है । यथार्थ तथ्य केवल वे ही होते हैं जो अवलोकन अथवा परीक्षण से प्राप्त होते हैं तथा ताकिक रूप से उनकी सत्यता को प्रमाणित किया जा सकता है । इस प्रकार इस पद्धति के द्वारा उन तथ्यों का अध्ययन नहीं किया जा सकता जो अवलोकन , परीक्षण तथा तार्किकता की परिधि के बाहर है ।
( 2 ) भावना – हीनता ( Non – Ethical ) – ताकिक – प्रयोगात्मक पद्धति में व्यक्तिगत भावनाओं अथवा संवेगों का कोई स्थान नहीं है । इसका कारण यह है कि अवलोकन अथवा प्रयोगों से प्राप्त तथ्यों की व्याख्या तर्क के आधार पर ही की जा सकती है , भावना के आधार पर नहीं । इसका तात्पर्य है कि यह पद्धति किसी काल्पनिक विचार अथवा ‘ क्या होना चाहिए ‘ की भ्रान्ति से सम्बन्धित नहीं है बल्कि तथ्यों को ‘ ज्यों – का – त्यों ‘ प्रस्तुत करने पर बल देती है । परेटो ने स्वीकार किया कि इस पद्धति में अवलोकन अथवा निरीक्षण की प्रधानता होने के कारण यह सम्भव है । कि अध्ययनकर्ता की व्यक्तिगत भावनाओं के आधार पर विभिन्न तर्क प्रस्तुत कर दिए जाएं , इसीलिए उनका सुझाव है कि अध्ययनकर्ता को ऐसे किसी भी दोष से बचना बहुत आवश्यक है ।
( 3 ) सरलता ( Simplicity ) – परेटो के अनुसार सरलता विज्ञान का एक आवश्यक गुण है । इसका तात्पर्य है कि इस पद्धति के द्वारा जो परिणाम प्राप्त हों
उनकी विवेचना सरल ढंग से की जानी चाहिए । तार्किक – प्रयोगात्मक पद्धति तथ्यो को उसी तरह सरल रूप में प्रस्तुत करने से सम्बन्धित है जिस तरह यह कार्य प्राकृतिक विज्ञानों में किया जाता है । सरलता का मुख्य सम्बन्ध क्रमबद्धता , सारयुक्त प्रस्तुतीकरण तथा विचारों की स्पष्टता से है ।
( 4 ) अज्ञात तथ्यों का अध्ययन ( Study of Unknown Facts ) – परेटो । यह मानते हैं कि ” अध्ययन का वैज्ञानिक तरीका अज्ञात तथ्यों की व्याख्या ज्ञात तथ्यों के माध्यम से करना है । ” इसका तात्पर्य है कि वर्तमान तथ्यों की विवेचना अतीत के आधार पर करने की अपेक्षा अधिक अच्छा तरीका यह है कि वर्तमान स्थिति के आधार पर अतीत की व्याख्या की जाय । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अतीत की विशेषताओं के आधार पर वर्तमान समाज की विशेषताओं को समझना एक गलत तरीका है । यदि हम यह ज्ञात कर लें कि वर्तमान समाज की विशेषताएँ क्या हैं तो इसके आधार पर हम अपने अतीत को भी अधिक प्रामाणिक ढंग से समझ सकते हैं । इस प्रकार परेटो ने बतलाया कि तार्किक – प्रयोगात्मक पद्धति के द्वारा वर्तमान समाज के ज्ञात तथ्यों को समझकर हम अतीत के उन तथ्यों को भी समझ सकते हैं जो अभी तक अज्ञात रहे हैं ।
( 5 ) निर्भर – योग्य कारकों की खोज ( Search of Dependable Factors ) परेटो के अनुसार , सामाजिक घटनाओं के लिए कोई एक कारक उत्तरदायी नहीं होता । समाज की प्रत्येक घटना का सम्बन्ध अनेक दूसरी घटनाओं से होता है । इस प्रकार यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि कोई भी सामाजिक घटना किसी एक कारक का परिणाम है । तार्किक – प्रयोगात्मक पद्धति का सम्बन्ध उन कारकों की खोज से है जिन्हें विवेचन और विश्लेषण के लिए अधिक निर्भर – योग्य अथवा विश्वस नीय माना जा सकता है । इसी विशेषता का उल्लेख करते हुए परेटो ने यह सुझाव दिया कि नियन्त्रित अवलोकन द्वारा किए जाने वाले प्रयोगों से ही निर्भर – योग्य कारकों की खोज की जा सकती है ।
( 6 ) गणनात्मक विश्लेषण ( Quantitative Analysis ) – अपने आरम्भिक जीवन से ही परेटो गणित को विज्ञान की भाषा मानते रहे थे । इसी दृष्टिकोण से ताकिक – प्रयोगात्मक पद्धति के अन्तर्गत उन्होंने गणित के प्रयोग को आवश्यक माना । इसका तात्पर्य है कि परेटो समाज के गुणात्मक अध्ययन के पक्ष में नहीं थे बल्कि उन्होंने इस पद्धति के अन्तर्गत सामाजिक तथ्यों के गणनात्मक अथवा सांख्यिकीय विश्लेषण को अधिक महत्त्व दिया । परेटो द्वारा प्रस्तुत एक तार्किक – प्रयोगात्मक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की प्रकृति से यह स्पष्ट होता है कि आप समाजशास्त्र के अन्तर्गत किसी भी ऐसे सिद्धान्त , तथ्य अथवा नियम को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं जिसे ताकिक प्रयोगात्मक पद्धति के द्वारा प्रमाणित न किया जा सके । दूसरे शब्दों में व्यक्तिवादी , भावना – प्रधान तथा अत्यधिक नैतिक तथ्य समाजशास्त्र की विषय – सामग्री के बाहर हैं । परेटो ने यह स्वीकार किया कि तार्किक – प्रयोगात्मक पद्धति से बाहर रहने वाले कुछ तथ्य भी सामाजिक जीवन के लिए कभी – कभी उपयोगी हो सकते हैं लेकिन उन्हें सत्य अथवा यथार्थ नहीं कहा जा सकता । इस प्रकार जो चीज उपयोगी है , वह सत्य भी हो , यह आवश्यक नहीं है । इस आधार पर परेटो ने यह निष्कर्ष दिया कि केवल तार्किक – प्रयोगात्मक पद्धति के आधार पर ही समाजशास्त्र को वैज्ञानिक बनाया जा सकता है ।