जनांकिकीय संक्रमण का सिद्धान्त
यह सिद्धान्त यूरोप के अनेक देशों के आँकड़ों पर आधारित है । यह सरल है , तर्क संगत है तथा सभी सिद्धान्तों में सर्वाधिक वैज्ञानिक प्रतीत होता है । वर्तमान जनसंख्या शास्त्रियों का मत है कि प्रत्येक समाज की जनसंख्या को अनेक अवस्थाओं से गुजरना होता है
यह जनसंख्या के विकास का आधुनिकतम सिद्धान्त है जिसे विश्व के अधिकांश अर्थशास्त्रियों व जनसंख्या शास्त्रियों का समर्थन मिला है । । प्रत्येक अवस्था की अपनी विशेषतायें होती हैं । विश्व का कोई देश प्रथम अवस्था में है तो कोई द्वितीय , और कोई तृतीय अवस्था में । इन तीनों अवस्थाओं का संक्षिप्त विवरण निम्न है । प्रथम अवस्था यह अवस्था पिछड़े देशों में होती है । जहाँ जन्म – दर भी ऊँची है तथा मृत्यु दर भी ऊँची है । कृषि , आय का प्रमुख स्त्रोत है – ग्रामीण अर्थव्यवस्था । द्वितीयक उद्योग या तो हैं ही नहीं , यदि हैं तो बहुत छोटे पैमाने पर । तृतीयक उद्योग ( Tertiary Sector ) जैसे – बीमा , बैंक आदि नहीं होते हैं । प्रति व्यक्ति आय कम है अतः बच्चे आय बढ़ाने के स्रोत होने के कारण दायित्व नहीं वरन् पूँजी हैं । कृषि में प्रत्येक उम्र के बच्चे के लिये काम निकल आता है ।
अतः छोटा बच्चा भी आय का स्रोत होता है । बच्चों के विकास , शिक्षा एवं स्वास्थ्य की कोई महत्वाकांक्षा ही नहीं होती , अतः उनमें व्यय नहीं होता है । संयुक्त परिवार – व्यवस्था होती है , अतः लालन – पालन की कोई समस्या नहीं होती है । इन्हीं सब कारणों से प्रथम अवस्था में जन्म – दर ऊँची होती है तथा मृत्यु – दर भी ऊँची होती है । उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय 58
प्रथम चरण में बड़े परिवार के हूवर ने लिखा है अनेक आर्थिक लाभ भी होते हैं । ए ० जे ० कोल एवं इ ० एम ० ” Children contribute at an early age ……… and are traditional source of security In the old age of parents . The prevalent high death rates especially in infancy Imply that such security can be attained only when many children are born . “
द्वितीय अवस्था द्वितीय चरण में अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास की ओर अग्रसर होती है । कृषि के साथ उद्योग भी बढ़ने लगते हैं । परिवहन व शहरीकरण होने से गतिशीलता बढ़ती है । शिक्षा का विस्तार , आय में वृद्धि , भोजन , वस्त्र , आवास , स्वास्थ्य एवं चिकित्सा में सुधार होने से मृत्यु दर घटती है । किन्तु धर्मान्धता , रीति – रिवाज व रूढ़िवादिता के बन्धन ढीले नहीं होते हैं । अतः जन्म दर नहीं घटती है और जनसंख्या – बिस्फोट की स्थिति आ जाती है । तृतीय अवस्था में जीवन स्तर सुधार , मानसिक विकास , नारी शिक्षा , नारी रोजगार में वृद्धि तथा औरतों में जागृति आती है । परिणामस्वरूप औरतें कम बच्चे पसन्द करने लगती हैं , सारे जीवन भर बच्चे खिलाने की अपेक्षा वे अन्य क्षेत्रों में सहयोग करना चाहती हैं , बच्चों की शिक्षा – दीक्षा अच्छी तरह करने की होड़ होने लगती है । शहरीकरण से आर्थिक कशमकश बढ़ती है , साधन कम पड़ने लगते हैं । परिवार नियोजन की विधियाँ विकसित होती हैं । विवाह की आयु बढ़ने लगती है अतः प्रजनन आयु वर्ग का विस्तार घटने लगता है अतः दिखावा- प्रभाव ( Demonstration effect ) अत्यन्त प्रभावशील होता है । अतः जन्म दर घटने लगती है । प्रो ० ए ० जे ० कोल ने निम्न वाक्यों में स्पष्ट किया है कि आर्थिक विकास किस प्रकार छोटे परिवार के प्रति लोगों को प्रेरित करता है ” With the development of economic roles for women outside the home , tends to increase the possibility of economic mobility that can better be achieved with small families , and tends to decrease the economic advantages of a large family . One of the features of economic development is typically Increase urbanisadtion and children are usually more of a burden and less of an assetin an urban setting than in a rural . विश्व के सभी देश इन्हीं तीन प्रमुख अवस्थाओं से गुजर रहे हैं अथवा गुजर चुके हैं । अफ्रीका के कुछ देश प्रथमावस्था में हैं . तो एशिया से कुछ द्वितीय अवस्था में हैं , तथा यूरोपीय देश तृतीय अवस्था में हैं ।
जनसंख्या परिवर्तन की अवस्थाएँ एवं जनांकिकीविदों के विचार जनसंख्या परिवर्तन की अवस्थाओं के सम्बन्ध में जनांकिकीविदों ने अवस्थाओं का वर्गीकरण भिन्न – भिन्न किया है । यही कारण है कि प्रो ० सी ० पी ० ब्लैकर ने पांच अवस्थाएँ बतायी हैं तो प्रो ० थॉम्प्सन एवं नौटेस्ट्रीन एवं बोग ने सभी अवस्थाओं को केवल तीन में वर्गीकृत किया है । ओलेन कारगिल ने पांच अवस्थाएँ बतायी हैं तो कार्ल सैक्स ने मात्र चार अवस्थाएँ बतायी हैं । इनके अलावा प्रो 0 लौन्ड्री , प्रो ० वोग एवं पीटर आर ० काक्स के भी विचार उल्लेखनीय हैं ।
जनसंख्या परिवर्तन की अवस्थाएँ एवं प्रो ० सी ० पी ० ब्लैकर ( Prof. C.P. Blacker
) प्रो ० सी ० पी ० ब्लैकर ने जनांकिकी परिवर्तन की पांच अवस्थाएँ बतायी हैं ।
( 1 ) – प्रथम अवस्था उच्च स्थिर अवस्था ( High Stationary Stage ) : – इस अवस्था में देश आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ तथा अर्द्धविकसित होता है । लोग अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं तथा उनका मुख्य व्यवसाय कृषि होता है और कृषि भी पिछड़ेपन की स्थिति में रहती है । उद्योग धन्धों का विकास नहीं हुआ होता है । कुछ थोड़े से उपभोक्ता वस्तु उद्योग ही रहते हैं । परिवहन , वाणिज्य बैंकिंग एवं बीमा क्षेत्र बहुत पिछड़ी स्थिति में रहते हैं । इससे लोगों की आय का स्तर बहुत नीचा रहता है तथा देश में गरीबी व्याप्त रहती है । संयुक्त परिवार प्रणाली , अशिक्षा , बाल – विवाह तथा अन्या सामाजिक कुरीतियों के कारण जन्म दर ऊँची रहती है । लोग अनपढ़ , गवार , बहमी और भाग्यवादी होते हैं उन्हें संतति निरोध के तरीकों से चिढ़ होती है । बच्चे भगवान की देन और किस्मत की बात समझे जाते हैं । बड़ा परिवार होना गर्व की बात समझी जाती है । सन्तानहीन मां – बाप को समाज में आदर की दृष्टि से नहीं देखा जाता है । देश में जन्म दर में वृद्धि करने वाले सभी कारक मौजूद रहते हैं । ऊँची जन्म – दर के साथ ही साथ मृत्यु दर भी ऊँची रहती है क्योंकि लोगों को घटिया स्तर का अपौष्टिक भोजन प्राप्त होता है जिससे वे कुपोषण के शिकार रहते हैं , स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं का अभाव रहता है , तरह – तरह की बीमारियों , महामारी तथा प्राकृतिक प्रकोपों का शिकार जनसंख्या को बनना पड़ता है । लोग गन्दै स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक सीलनयुक्त तथा रोशनदानहीन घरों में रहते हैं । परिणामस्वरूप रोगग्रस्त हो जाते हैं और उचित चिकित्सा सुविधा के अभाव में मर जाते हैं । शिशु मृत्यु दरें बहुत ऊँची रहती हैं । चूकि इस अवस्था में जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों ही ऊँची रहती है अतः देश की जनसंख्या लगभग स्थिर रहती है । इस प्रकार की स्थिति , अफ्रीका व एशिया महाद्वीप के पिछड़े देशों में देखने को मिलती है ।
( 2 ) द्वितीय अवस्था ( Secund Stage ) : दूसरी अवस्था में देश आर्थिक दृष्टि से कुछ विकास करने लगता है । कृषि की दशा में सुधार होने लगता है । कृषि में यन्त्रीकरण की शुरूआत हो जाने से उत्पादन बढ़ने लगता है । उद्योगों का विकास भी होना प्रारम्भ हो जाता है । पहले जो उपभोक्ता वस्तुएं विदेशों से आयात की जाती थीं वे अब देश में बनने लगती हैं । परिवहन के साधनों का विकास होने लगता है । श्रम की गतिशीलता बढ़ने लगती है । शिक्षा का विस्तार होने लगता है । चिकित्सा तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएं सुलभ होने लगती हैं । रहन – सहन का स्तर बढ़ने लगता है । इन सबका परिणाम यह होता है कि मृत्यु दर घटने लगती है , परन्तु सामाजिक सोच में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता । सामाजिक रीति – रिवाजों के कारण जन्म दर में कोई कमी नहीं आती । लोग परिवार के -आकार पर विशेष नियन्त्रण करने के लिए प्रयत्न नहीं करते क्योंकि परिवार नियोजन के विषय में धार्मिक अन्धविश्वास तथा सामाजिक निषेध मौजूद रहते हैं । मृत्यु दर में कमी होने और जन्म दर में परिवर्तन न होने से जनसंख्या तेजी से बढ़ती है । परिणामस्वरूप जनसंख्या विस्फोट ( population explosion ) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । जनसंख्या की ऊँची वृद्धि दर जो हर वर्ष कुल आबादी में अच्छी वृद्धि कर देती है , के फलस्वरूप कुल राष्ट्रीय आय में वृद्धि के बावजूद प्रति व्यक्ति आय का स्तर नीचा रहता है । इस प्रकार जन सामान्य के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं होता , लोग पिछड़े ही रहते हैं । सत्तर के दशक में भारत इस संक्रमण अवस्था से गुजर चुका है ।
( 3 ) तृतीय अवस्था ( Third Stage ) : – तृतीय अवस्था में औद्योगीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाता है । उन्नत एवं आधुनिक प्रकार की कृषि होने लगती है । उद्योग धन्धों की उन्नति के कारण नगरीकरण तेजी से होने लगता है । प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने लगती है लोगों का जीवन स्तर बढ़ता है । रोजगार हेतु ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों की ओर पलायन होने लगता है । सामाजिक परिवर्तन तेजी से होता है । समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार होता है । वे पुरूषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य में बराबर का हिस्सा निभाने लगती हैं । शिक्षा में पर्याप्त सुधार होता है । लोगों का छोटे परिवार के प्रति झुकाव होने लगता है । रूढ़िवादी , परम्परावादी , अन्धविश्वासी एवं पुराने रीति – रिवाजों का लोग परित्याग करने लगते हैं । विभिन्न तरीकों से जनसंख्या को नियन्त्रित करने का प्रयास किया जाने लगता है । पहले से कम मृत्यु दर और घट जाती है । जन्म दर में भी गिरावट आती है । इससे जन्म – दर एवं मृत्यु दर के बीच अन्तर कम हो जाता है । इससे जनसंख्या की वृद्धि दर कम हो जाती है । इस अवस्था में भी जनसंख्या विस्फोट की स्थिति कुछ हद तक विद्यमान रहती है । इस समय भारत इसी अवस्था से गुजर रहा है ।
( 4 ) चतुर्थ अवस्था ( Fourth Stage ) इस अवस्था में देश उच्च विकसित अवस्था में होता है । लोगों के रहन – सहन का स्तर काफी ऊँचा रहता है । पुरुष तथा स्त्री देर से शादी करना पसन्द करते हैं । लोग स्वतः खुशी से परिवार नियोजन की विधिया अपनाते हैं । इस अवस्था में जन्म क्रम एवं मृत्यु क्रम दोनों ही नियन्त्रित एवं नीचे रहते हैं जिससे सन्तुलन बना रहता है और जनसंख्या के आकार में कोई अन्तर नहीं आता । जनसंख्या में स्थिरता की स्थिति के बाद भविष्य में जनसंख्या घटने का ही डर रहता है । अतः जनसंख्या में वृद्धि हेतु उपाय खोजे जाने लगते हैं । आज यूरोप के विकसित देशों में यह स्थिति देखने को मिलती है .
( 5 ) पंचम अवस्था ( Fifth Stage ) – पांचवीं अवस्था आर्थिक विकास की अन्तिम अवस्था है । इस अवस्था में मृत्यु की अपेक्षा उत्पत्ति कम होती है । फलस्वरूप जनसंख्या का आकार घटता जाता है । देश में पूर्ण रोजगार की स्थिति रहती है । यह अवस्था फांस आदि अति विकसित देशों में देखने को मिलती है । इन अवस्थाओं को चित्र में प्रदर्शित किया गया है । सीधी रेखा द्वारा मृत्यु दर तथा बिन्दु रेखा द्वारा जन्म दर को प्रदर्शित किया गया है । प्रथम अवस्था में जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों ही ऊँची रहने के कारण जनसंख्या में लगभग स्थिरता की दशा में रहती है । जनसंख्या में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता । दूसरी अवस्था में मृत्यु दर बहुत तेजी से गिरती है परन्तु जन्म दर लगभग स्थिर रहती है जिससे दोनों के मध्य तेजी से अन्तर बढ़ता है और जनसंख्या विस्फोट की स्थिति आ जाती है । तीसरी अवस्था में मृत्यु दर के साथ जन्म दर में भी कमी आने लगती है । परन्तु दोनों में पर्याप्त अन्तर रहने के कारण जनसंख्या विस्फोट की स्थिति बनी रहती है । चौथी अवस्था में जन्म एवं मृत्यु दर दोनों गिरती हैं एक स्थान पर दोनों समान हो जाती हैं । पांचवीं अवस्था में पहुंचने पर स्थिति पलट जाती है । जन्म दर की अपेक्षा मृत्यु दर अधिक हो जाती है परिणामस्वरूप कुल के में की लगती है । श्रम पूर्ति की समस्या उत्पन्न हो जाती है ।
जनसंख्या परिवर्तन की अवस्थाएँ एवं प्रो ० थॉम्प्सन , प्रो 0 बोग , व प्रो ० नोटेस्टीन ( Prof. W.S. Thompson , Prof. Bogue , and Prof. F.W. Notestein )
जनसंख्या में परिवर्तन की ब्लैकर ने जो 5 अवस्थाएँ बताई हैं , उसके स्थान पर इन विद्वानों ने परिवर्तन की तीन ही प्रमुख अवस्थाओं का उल्लेख किया है , जो इस प्रकार हैं
( 1 ) जनसंख्या की परिवर्तन से पूर्व की अवस्था ( Pre – transitional ) यह जनसंख्या में परिवर्तन की प्रथम अवस्था है जिसमें जन्म दर और मृत्यु दर पर कोई भी नियन्त्रण नहीं होता । अतः ऐसी स्थिति में जनसंख्या में तेजी से बढ़ने की सम्भावनाएँ अधिक रहती हैं । वास्तव में यह ब्लैकर द्वारा बताई गई ऊँची स्थिरता की प्रथम अवस्था से मिलती – जुलती अवस्था ही है ।
( 2 ) जनसंख्या की परिवर्तन की अवस्था ( Transitional ) यह जनसंख्या में परिवर्तन की दूसरी अवस्था है जिसे ब्लैकर द्वारा बताई गई दूसरी तीसरी और चौथी अवस्था से मिलती – जुलती अवस्था कहा जा सकता है । इसमें यद्यपि जन्म – दर और मृत्यु दर दोनों ही तेजी से घटती हैं । जन्म – दर जहाँ पहले धीरे – धीरे घटती है वहीं कुछ समय बाद इसकी गिरावट में वृद्धि होती है । वह स्थिति तीसरी अवस्था को प्राप्त करने तक बनी रहती है । बोग ने इस अवस्था को तीन उप अवस्थाओं में बाँटा है प्रथम ( पहले ) , द्वितीय ( मध्य ) , तृतीय ( बाद ) की अवस्था । वास्तव में यह विभाजन ब्लैकर द्वारा बताई गई शीघ्र बढ़ने वाली धीरे – धीरे बढ़ने वाली एवं नीची स्थिरता की अवस्था का ही स्वरूप है ।
( 3 ) जनसंख्या की परिवर्तन के बाद की अवस्था ( Post Transitional ) परिवर्तन की तीसरी एवं अन्तिम अवस्था है , जिसमें जन्म दर और मृत्यु दर दोनों ही कम होती है । अतः जनसंख्या वृद्धि की दर या तो शून्य अर्थात् न के बराबर होती है या इसी के आस – पास बहुत ही कम होती है । ऐसा इसलिए सम्भव होता है कि इस स्थिति में गर्भ निरोधक साधनों और तरीका का प्रायः सभी को ज्ञान होता है और इनके अधिकाधिक प्रयोग द्वारा जनसंख्या में सन्तुलन स्थापित किया जाता है । यह अवस्था ब्लैकर द्वारा बताई 5 वीं अवस्था ( घटने वालों के ही समान है । “
जनसंख्या परिवर्तन की अवस्थाएँ एवं प्रो ० कार्ल सेक्स ( Prof. Karl Sax ) कार्ल सैक्स ने जनसंख्या विकास की अवस्थाओं को चार भागों में विभाजित किया है जो इस प्रकार है
( i ) प्रथम अवस्था ( First Stage ) : – इस अवस्था में जन्म एवं मृत्यु दोनों ही दरें ऊँची रहती है तथा जनसंख्या में लगभग स्थिरता की दशा विद्यमान रहती है । यह अवस्था सामान्यतया आर्थिक रूप से पिछड़े देशों में पाई जाती है ।
( 2 ) द्वितीय अवस्था ( Second Stage ) : – इस अवस्था में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि के फलस्वरूप मृत्यु दर में गिरावट आने लगती है । परन्तु सामाजिक , आर्थिक एवं सांस्कृतिक विचारधारा में परिवर्तन नहीं आने से जन्म – दर लगभग समान बनी रहती है जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में बहुत तेजी से वृद्धि होती है । यह अवस्था विकासशील देशों में पायी जाती है ।
( 3 ) तृतीय अवस्था ( Third Stage ) : इस अवस्था में मृत्यु दर घटकर अपने निम्नतम स्तर पर स्थिर होने लगती है और जन्म – दर घटने के क्रम में रहती है , जिसके फलस्वरूप जनसंख्या वृद्धि की गति द्वितीय अवस्था की अपेक्षा कम रहती है । यह अवस्था उन देशों में पायी जाती है जहां विकास पर्याप्त मात्रा में हो चुका होता है ।
( 4 ) चतुर्थ अवस्था ( Fourth Stage ) : – यह जनांकिकीय परिवर्तन की वह अवस्था होती हैं जहां जन्म एवं मृत्यु दर अपने निम्नतम स्तर पर होती है और लगभग समान रहती है । जहां जनसंख्या लगभग स्थिर रहती है उसमें कोई विशेष वृद्धि दृष्टिगोचर नहीं होती । यह अवस्था विकसित देशों में पाई जाती है । कार्ल सैक्स की इन अवस्थाओं को निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है : सैक्स का विचार था कि मध्य की दोनों अवस्थाएँ जनसंख्या विस्फोट की अवस्थाएँ है । प्रथम तथा चतुर्थ अवस्थाएँ साम्य की अवस्थाएँ हैं । जनसंख्या एक अवस्था से दूसरी अवस्था में समान समय में पहुँचना आवश्यक है । एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुँचने में कितना समय लगेगा इसके विषय में प्रो ० सैक्स अनुत्तरित हैं । प्रथम अवस्था द्वितीय अवस्था तृतीय अवस्था अवस्था 60 50 8 A मृत्युदर 40 30 20 जन्मदर 11 D 0 समय 444 जनसंख्या परिवर्तन की अवस्थाएँ एवं प्रो ० लाण्ड्री ( Prof. Lanudry ) प्रो ० लाण्ड्री ने खाद्यान्न आपूर्ति एवं आर्थिक विकास के आधार पर जनांकिकी परिवर्तन को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया है । उनके द्वारा बताई गई ये अवस्थाएँ इस प्रकार हैं
( 1 ) प्राथमिक अवस्था ( Primitive Stage ) – यह जनसंख्या परिवर्तन की वह अवस्था है जिसमें जनसंख्या की मात्रा खाद्यान्नों की आपूर्ति द्वारा निर्धारित होती है । लाण्ड्री का मत था कि यदि उपलब्ध खाद्यान्नों की मात्रा पर्याप्त है तो मृत्यु दर में कमी रहेगी और यदि उपलब्ध खाद्यान्नों की मात्रा , पर्याप्त नहीं है तो मृत्यु दर अधिक होगी । इस तरह , खाद्यान्न बढ़ने से जनसंख्या बढ़ती है और खाद्यान्न घटने से जनसंख्या घट जाती है ।
( 2 ) माध्यमिक अवस्था ( Intermediate Stage ) : – इस अवस्था के अन्तर्गत खाद्यान्न के स्थान पर आर्थिक विकास जनसंख्या की मात्रा को निर्धारित करने लगता है । इस अवस्था में लोग उच्च जीवन स्तर के प्रति सजग होने लगते हैं । लोग संतति निरोधक उपायों को अपनाते हैं , देर से विवाह करते हैं । इससे जन्म दर में गिरावट आने के साथ – साथ मृत्यु दर में भी गिरावट आती है ।
( 3 ) आधुनिक युग ( Modern Epoch ) : यह जनसंख्या परिवर्तन की वह अवस्था है जिसमें जनसंख्या न तो खाद्यान्न पूर्ति से प्रभावित होती है और न ही विकास की दर से प्रभावित होती है । इस समय देश आर्थिक विकास की उत्कर्ष अवस्था में रहता है । इस अवस्था में जन्म – दर गिरने के कारण जनसंख्या वृद्धि में हास प्रारम्भ हो जाता है ।
जनसंख्या परिवर्तन की अवस्थाएँ एवं प्रो ० काक्स ( Prof. Peter R. Cox )
प्रो ० पीटर आरत काक्स ने जनसंख्या परिवर्तन की अवस्थाओं को पांच अवस्थाओं में वर्गीकृत किया है
- माल्थसीय चक्र ( Maltusian Cycle ) आधुनिक चक्र ( Modern Cycle ) शिशु प्रभार ( Baby Boom ) 3 . 4 अन्तरिम चक्र ( Provisional Cycle ) 5 . दीर्घकालीन जनसंख्या चक्र ( Population Cycle in the Long Run )
जनसंख्या परिवर्तन की अवस्थाएँ एवं प्रो ० काउगिल ( Prof. Cowgill )
प्रो ० डोनाल्ड ओलेन काउगिल के अनुसार जनसंख्या का विकास चक्रीय ढंग से होता है । उन्होंने विकास की अवस्थाओं को विकास चक्र ( Growth Cycles ) का नाम दिया । उन्होंने बताया कि जनसंख्या विकास की अवस्थाएँ एक के बाद एक क्रमशः चक्रीय क्रम में आती रहती हैं । ये अवस्थाएँ इस प्रकार हैं
( 1 ) प्राथमिक या माल्थूसियन चक्र ( Primitive or Malthusian Cycle ) : यह अवस्था वह होती है जिसमें जनसंख्या का विकास माल्थस द्वारा बताए गए नियमों के अनुसार होता है । इसमें जन्म दर तो ऊँची और लगभग स्थिर रहती है , परन्तु मृत्यु दर में उतार – चढ़ाव देखा जाता है । ऐसा प्राकृतिक विपत्तियों के कारण होता है । इस तरह मृत्यु दर में उतार – चढ़ाव से जनसंख्या में उच्चावचन होते रहते हैं । जब फसल अच्छी रहती है तो मृत्यु दर घट जाती है । फसल नष्ट होने से अकाल के प्रभाव में मृत्यु दर पुनः बढ़ जाती है । इस तरह कृषि में चक्रीय उतार – चढ़ाव आने से जनसंख्या में भी उतार – चढ़ाव आता है । इस अवस्था का चित्र में दर्शाया गया है । मृत्युदर सुदुर अच्छी समय एम एवं मृत्यु दर
( 2 ) आाधुनिक चक्र ( Modern Cycle ) : – इस चक्र में जन्म एवं मृत्यु दोनों ही दरें गिरती है परन्तु मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक तेजी से गिरती है जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है । जब दोनों दरों में समान रूप से गिरावट आती है तब जनसंख्या स्थिर हो जाती है । यह अवस्था जनसंख्या वृद्धि का संक्रमण काल है । इस अवस्था को चित्र में दर्शाया गया है । जन्मदर मृत्युपर समय चित्र में बिन्दु ‘ A ‘ को ‘ उच्च स्थिरांक ‘ ( High Stationary ) तथा ‘ B ‘ को निम्न स्थिरांक ‘ ( Low Stationary ) बिन्दु कहा जाता है जहां जन्म एवं मृत्यु दरें बराबर होने के कारण जनसंख्या स्थिर है । ‘ A ‘ बिन्दु पर दोनों दरें ऊँची और बराबर हैं तथा ‘ B ‘ बिन्दु पर दोनों घटते – घटते निम्न बिन्दु पर स्थिर हो गयी है ।
( 3 ) भावी- चक्र ( Future Cycle ) – इस चक्र में मृत्यु दर के निम्नतम स्तर पर स्थिर हो – जाने तथा जन्म दर में उतार – चढ़ाव के कारण देश में बच्चों की संख्या अधिक होने लगती है । जिसे काउगिल ने बच्चों की बाढ़ ( Baby boom ) आना कहा है । परन्तु जब जन्म दर कम हो जाती है तब पुनः स्थिति सामान्य हो जाती है । इस अवस्था को चित्र में प्रदर्शित किया गया है । जन्मदर मृत्युवर समय
( 4 ) संभावित – चक्र ( Probable Cycle ) – काउगिल ने एक ऐसे संभावित चक्र की कल्पना की है जिसमें जन्म – दर में वृद्धि मृत्यु दर की अपेक्षा अधिक होती है । ऐसी स्थिति में जनसंख्या में वृद्धि होती है । राबर्ट बी ० वान्स ( Robert B. Vance ) के अनुसार काउगिल की यह अवस्था जनांकिकीय इतिहास में कभी भी देखने में नहीं आयी । इस अवस्था को चित्र में दर्शाया गया है । जन्मदर A 65 एवं मृत्यु दर
काउगिल के में वृद्धि जनसंख्या
( 5 ) वीर्घकालिक जनसंख्या चक्र ( Population Cycle in the Long Ran ) अनुसार दीर्घकालिक जनसंख्या चक्र की अवस्था के अन्तर्गत साधारणतया मृत्यु दर के कम होने पर अथवा जन्म दर में वृद्धि होने के कारण होती है । इसके विपरीत स्थिति में जनसंख्या में कमी आती है । दीर्घकालीन जनसंख्या चक्र का स्वरूप ‘ S ‘ वक्र के आकार की तरह होता है । इसे चित्र में प्रदर्शित किया गया है । Population growth cycle ० समय
जनांकिकी संक्रमण सिद्धान्त एवं विकास देशों हेतु गिकत
( Relevance of Demographic Transition Theory to Developing Countries )
जनांकिकी संक्रमण के इन अवस्थाओं से परिचित होकर आपके मन में जिज्ञासा अवश्य उत्पन्न होगी कि क्या इन अवस्थाओं से सभी विकासशील राष्ट्र गुजरेंगे ? विद्वानों की यह धारणा है कि ऐसा होना अनिवार्य नहीं है । उनका अभिमत है कि विकासशील देश अनेक ऐसी समस्याओं का समाना कर रहे हैं जिनसे विकसित देश अनभिज्ञ थे । जनांकिकीविद प्रो ० आशीष बोस ने अपने शोधों में अनेक समस्याओं का उल्लेख किया है
( 1 ) विकसित देशों में मृत्यु दर में कमी धीरे – धीरे व दीर्घकाल में आई जबकि आधुनिक विकासशील देशों में मृत्यु दर में कमी बड़ी शीघ्रता से आई है ।
( 2 ) विकसित देशों में दुत विकास के कारण मृत्यु दर में कमी आई है । किन्तु विकासशील देशों में मृत्यु दर की कमी का आर्थिक विकास से कोई सम्बन्ध नहीं है ।
( 3 ) विकसित देशों ने कभी भी 40 से अधिक जन्म दर को नहीं झेला था जबकि आधुनिक विकासशील देश 40-60 जन्म दर को झेल रहे हैं ।
( 4 ) विकसित देशों में जहाँ मृत्यु दर में कमी आई . उसके कुछ ही समय बाद जन्म – दर में भी कमी आ गयी । किन्तु विकासशील देशों में जन्म दर में कमी होने के बहुत वर्षों के बाद भी मृत्यु दर में कमी नहीं आ पाई है । ( 5 ) विकासशील देशों में जनसंख्या का जितना अधिक घनत्व है । विकसित देशों में अपने विकास काल में उतना जनघनत्व नहीं था । ( 6 ) विकसित देश अपने विकास के प्रारम्भिक चरण में इतने निर्धन नहीं थे जितने की आज के विकासशील देश हैं । ( 7 ) अठ्ठारहवीं एवं उन्नीसवीं सदी में अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के जितने अवसर विद्यमान थे बीसवीं सदी में नहीं हैं । इसके विपरीत आजकल कोई देश अपनी जनसंख्या की समस्या के समाधान के लिए दूसरे की भूमि का सहारा नहीं ले सकता है । वे न तो उपनिवेशवाद की सहायता ले सकते हैं और न लोगों को दूसरे देशों में भेज सकते हैं । उपरोक्त विशेषताओं का कारण यह कहा जा सकता है कि वर्तमान विकासशील देशों द्वारा उसी जनांकिकी – चक्र के अनुशीलन की बहुत कम सम्भावनायें हैं । गुन्नार मिर्डल के शब्दों में ” The population cycle which would restore near balance between births and deaths , is not in sight in any of the South Astan countries , विकासशील देश नीची आय एवं तीब्रदर से बढ़ती जनसंख्या के जाल में फंसे हैं । जिससे आर्थिक विकास का मार्ग अवरूद्ध हो गया है तथा जनांकिकी चक्र पूरा नहीं हो पा रहा है । अतः जन्म – नियन्त्रण आर्थिक विकास की एक पूर्व शर्त हो गयी है , प्रो ० ए ० जे ० कोल ने भारत के समंक एकत्र कर यह सिद्ध कर दिया है कि जन्म नियन्त्रणों से प्रति उपभोक्ता की आय में बिना जन्म नियन्त्रणों की तुलना में 30 वर्ष में 40 % एवं 60 वर्षों में 100 % की वृद्धि की सम्भावना है
सिद्धान्त की आलोचनाएं ( Criticism of Theory )
जनांकिकी संक्रमण सिद्धान्त की आलोचना से सम्बन्धित बिन्दुओं का अध्ययन कर इसके महत्वपूर्ण पक्ष से आप परिचित हो जायेंगे । यथा
यह सिद्धान्त जनसंख्या परिवर्तन के विभिन्न चरणों में कितना समय लगता है इस बात पर कोई प्रकाश नहीं डालता है ।
प्रथम अवस्था में जन्म – दर तो ऊँचे स्तर पर स्थिर होती है किन्तु मृत्यु दर में प्राकृतिक प्रकोपों के कारण उच्चावचन होते रहते हैं अतः जनसंख्या वृद्धि प्रथम अवस्था में भी परिवर्तनशील रहती है ।
यह सिद्धान्त आर्थिक विकास के विभिन्न चरणों एवं जनांकिकी संक्रमण के चरणों के बीच किसी सम्बन्ध की चर्चा नहीं करता है । जबकि प्रो ० लाइबेन्स्टिन की धारणा है आर्थिक विकास के चरण एवं जनांकिकी संक्रमण की अवस्था साथ – साथ चलती है ।
यह सिद्धान्त प्रथम , द्वितीय एवं तृतीय चरण की व्याख्या तो करता है किन्तु चतुर्थ चरण के विषय में विद्वानों में मतभेद है , कुछ विद्वानों की धारणा है कि जनसंख्या चतुर्थ चरण में बढ़ती है तथा कुछ की धारणा है कि यह स्थिर रहती है । किन्तु कारण स्पष्ट नहीं किया गया है । (
आर्थिक विकास एवं जनांकिकी संक्रमण दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं । केवल विकास के कारण संक्रमण नहीं होता है वरन संक्रमण के कारण भी विकास होता है ।
इस सिद्धान्त की पुष्टि आँकड़ों के आधार पर नहीं की जा सकती है । अतः यह सांख्यिकी विश्लेषण के लिये अयोग्य है ।
संक्रमण सिद्धान्त का मूल्यांकन ( Evaluation of Transition Theory )
जनसंख्या के संक्रमण सिद्धान्त की विवेचना एवं विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि यह सिद्धान्त जनसंख्या वृद्धि का एक सर्वमान्य व्यावहारिक यथार्थवादी एवं वैज्ञानिक सिद्धान्त है । यह सिद्धान्त उन सब साधनों यथा सामाजिक , आर्थिक संस्थागत एवं जैविकीय पर विचार करता है जो जनसंख्या वृद्धि दर को प्रभावित करते हैं । यह सिद्धान्त माल्थस के सिद्धान्त से श्रेष्ठ है क्योंकि यह खाद्यपूर्ति पर जोर नहीं देता और न ही निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है । यह अनुकूलतम सिद्धान्त से भी श्रेष्ठ है जो जनसंख्या वृद्धि के लिए एक मात्र प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि पर बल देता है तथा जनसंख्या को प्रभावित करने वाले अन्य साधनों की उपेक्षा कर जाता है । जैविकीय सिद्धान्त भी एकांगी है ।
जनसंख्या सिद्धान्तों में जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त इसलिए सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह यूरोप के विकसित देशों की जनसंख्या वृद्धि की वास्तविक प्रवृत्तियों पर आधारित है । यह सिद्धान्त विकसित देशों के साथ – साथ विकासशील देशों पर समान रूप से लागू होता है । अफ्रीका महाद्वीप के कुछ बहुत पिछड़े देश अभी भी प्रथम अवस्था में है अथा विश्व के अन्य सभी विकासशील देश दूसरी अवस्था में है । यूरोप के लगभग सभी देश प्रथम दो अवस्थाओं से गुजर कर तीसरी अवस्था एवं चौथी अवस्था में पहुँच चुके हैं । इस तरह यह सिद्धान्त व्यावहारिक रूप से पूरी दुनिया में लागू होता है ।
इसी सिद्धान्त के आधार पर अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक जनांकिकीय माडलों ( Economic Dermographic Models ) का विकास किया है जिससे विकासशील देश अन्तिम अवस्था में पहुँचे तथा आत्मनिर्भर बन सकें । इसी तरह का एक माडल कोल – हूबर माडल ( Coole – Hoover Model ) भारत के लिए बनाया गया है , जो दूसरे विकासशील देशों पर भी लागू किया जा रहा है । जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त की विकासशील देशों के लिए सार्थकता पर कुछ विद्वानों ने प्रश्न चिह्न भी लगाए हैं और यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जिन सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों से विकसित देश गुजर चुके हैं वे आज के विकासशील देशों की परिस्थितियों से भिन्न हैं । फिर भी यह कहा जा सकता है कि जनसंख्या विकास के इस सिद्धान्त को अर्थशास्त्रियों एवं जनसंख्याशास्त्रियों का व्यापक समर्थन प्राप्त है । यह सरल , तर्कसंगत एवं जनसंख्या सिद्धान्तों में सर्वाधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला है ।