विज्ञानों का संस्तरण
( Hierarchy of Sciences )
समाजशास्त्र के जनक आगस्त कॉम्ट ‘ समाजशास्त्र ‘ को एक विशिष्ट प्रस्थिति प्रदान करना चाहते थे । इसके लिए उन्हें एक ऐसे सुदृढ़ आधार की आवश्यकता थी जिसके माध्यम से वे अन्य विज्ञानों की तुलना में समाजशास्त्र की विशिष्टता को प्रतिस्थापित कर सकें । कॉम्ट के पूर्ववर्ती विचारकों में सेण्ट साइमन ( Saint Siman ) ने वैज्ञानिक तरीके से विज्ञानों का वर्गीकरण अवश्य किया था किन्तु कॉम्ट ने वैज्ञानिकता के दृष्टिकोण से इस वर्गीकरण को स्वीकार न करते हुए इसे और अधिक वैज्ञानिक रूप से स्पष्ट करने पर बल दिया । इस दृष्टिकोण से कॉम्ट ने अपनी पुस्तक ‘ पाजिटिव फिलासफी ‘ ( Positive Philosphy ) में जहां एक ओर अन्य विज्ञानों से समाजशास्त्र के सम्बन्ध को स्पष्ट किया , वहीं दूसरी ओर एक नवीन विज्ञान होने के पश्चात् भी इसके आधारभूत महत्त्व एवं व्यापक अध्ययन – क्षेत्र पर प्रकाश डाला । कॉस्ट द्वारा प्रस्तुत ‘ विज्ञानों का संस्तरण ‘ उनके इसी प्रयास का परिणाम है कॉम्ट ने विभिन्न विज्ञानों के पारस्परिक सम्बन्ध तथा संस्तरण को जिस रूप में स्पष्ट किया , वह मुख्यतः दो निम्नांकित सिद्धान्तों पर आधारित है :
( 1 ) निर्भरता का बढ़ता हुआ क्रम ( Order of Increasing Depen dence ) – कॉम्ट के द्वारा प्रतिपादित इन विज्ञानों के संस्तरण की पहली मान्यता यह है कि ज्ञान के विकास के साथ इसकी प्रत्येक आगामी अथवा नयी शाखा अपने से पहले के ज्ञान पर अधिक निर्भर होती चली जाती है । इसका तात्पर्य है कि सबसे पहले विकसित होने वाला ज्ञान अथवा विज्ञान सबसे अधिक स्वतन्त्र होमा जबकि ज्ञान की प्रत्येक आगामी शाखा अपने से पूर्व के सभी विज्ञानों अथवा ज्ञान की शाखाओं पर अधिक निर्भर होगा । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जैसे – जैसे ज्ञान की शाखाएँ विकसित होती हैं , वैसे – वैसे वे पूर्ववर्ती विज्ञानों पर अधिक आश्रित या निर्भर होती जाती हैं ।
( 2 ) घटती हुई सामान्यता एवं बढ़ती हुई जटिलता ( Decreasing Generality and Increasing Complexity ) – कॉम्ट ने अपने प्रथम सिद्धान्त के पूरक के रूप में इस दूसरे सिद्धान्त का प्रतिपादन किया । कॉम्ट का कहना है कि जैसे – जैसे किसी एक विज्ञान की दूसरे विज्ञान पर निर्भरता बढ़ती जायेगी वैसे – वैसे उसकी सामान्यता में कमी होती जायेगी । किसी विज्ञान में यह सामान्यता जितनी कम होगी , उसकी जटिलता में उतनी ही अधिक वृद्धि देखने को मिलेगी । इसका तात्पर्य है कि जो विज्ञान जितना अधिक नवीन होगा , वह उतना ही अधिक सामान्य लेकिन जटिल होगा । इसका कारण यह है कि जिस विज्ञान की विषय – वस्तु जितनी सरल होगी वह विज्ञान अन्य विज्ञानों पर उतना ही कम निर्भर होगा और जैसे – जैसे किसी विज्ञान की मरम्मत वस्तु में विशिष्टता आती जायेगी वैसे – वैसे उस विज्ञान की अन्य वज्ञानों ती जायेगी । इस सामान्यता और जटिलता के बारे में कॉम्ट का कहना है कि जो घटनाएँ सामान्य होती है अर्थात् सार्वभौमिक रूप से पाई जाती हैं उनका अध्ययन करना आसान होता है । अतः उस विज्ञान की अध्ययन – वस्तु भी सरल होगी परन्तु जैसे – जैसे किसी विज्ञान की अध्ययन – वस्तु में विशेषीकरण आता जायेगा , उसकी जटिलता भी बढ़ती जाती है ।
इस आधार पर कहा जा सकता है कि सरल घटनाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान सबसे अधिक सरल और सामान्य होता है क्योंकि सरल घटनायें पहले घटित होती है । इस प्रकार सबसे पहले विकसित होने वाला विज्ञान सबसे अधिक सामान्य और कम से कम जटिल होगा । दूसरा विज्ञान उससे अधिक जटिल तथा अपेक्षाकृत कम सामान्य होगा । इस क्रम में आने वाले तीसरे , चौथे और आगामी विज्ञानों में सामान्यता कम और जटिलता बढ़ती जायेगी । इस प्रकार जो विज्ञान जितना अधिक जटिल और अन्य विज्ञानों पर जितना अधिक निर्भर होता है , विज्ञानों के संस्तरण में वही अन्तिम स्थान पर होगा । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कॉम्ट ने निर्भरता के क्रम एवं जटिलता के बीच समानुपातिक सम्बन्ध बतलाया है । कॉम्ट के द्वारा बतलाये गये विज्ञानों के संस्तरण को हम निम्न चार्ट के माध्यम से समझ सकते हैं : 1 . विषय 2 . बढ़ती हई निर्भरता बढ़ती हुई जटिलता का क्रम आत्म – निर्भर सरलतम विज्ञान गणित खगोलशास्त्र गणित पर निर्भर गणित से जटिल प्राकृतिक विज्ञान ( रसायन / भौतिकी ) गणित और खगोल पर निर्भर गणित , खगोल से जटिल जीव विज्ञान ( प्राणीशास्त्र वनस्पतिशास्त्र ) गणित , खगोल तथा प्राकृतिक विज्ञानों पर निर्भर गणित , खगोल तथा प्राकृतिक विज्ञानों से जटिल समाजशास्त्र गणित , खगोल , प्राकृतिक विज्ञानों तथा जीव विज्ञान पर निर्भर सर्वाधिक जटिल विज्ञान
( 1 ) गणित ( Mathematics ) – जैसा कि हम प्रारम्भ में उल्लेख कर चुके हैं , विज्ञानों के संस्तरण में जिस विज्ञान की विषय – वस्तु जितनी अधिक सरल होगी , वह उतना ही सामान्य होगा । गणित विज्ञान अत्यन्त प्राचीन एवं विशुद्ध विज्ञान है । गणित में निहित तथ्यों की विवेचना के लिए अन्य विज्ञानों की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती । उदाहरण के लिए , दो और दो चार होते हैं , यह तथ्य सार्वभौमिक है । इस तरह कॉम्ट ने विज्ञानों के संस्तरण में प्रथम स्थान गणित विज्ञान को प्रदान किया क्योंकि इसके सिद्धान्तों की सत्यता के लिए उसे दूसरे विज्ञान पर निर्भर नहीं रहना पड़ता ।
( 2 ) खगोल विज्ञान ( Astronony ) – – विज्ञानों के संस्तरण में द्वितीय स्थान पर खगोलशास्त्र आता है जो अपने से पहले के विज्ञान गणित पर निर्भर है , अतः सिद्धान्तानुसार यह विज्ञान गणित से अधिक जटिल है । गणित पर निर्भरता की पुष्टि के लिए कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं । खगोलशास्त्र की विषय – वस्तु का सम्बन्ध अन्तरिक्ष और पृथ्वी ( स्थलीय ) की घटनाओं से होता है । सामान्यतया खगोलशास्त्र में ग्रहों , सूर्य , चन्द्रमा , दिन , रात आदि से सम्बन्धित नियमों का अध्ययन किया जाता है । इन समस्त अध्ययनों का सत्यापन गणित की सहायता से ही किया जाता है । वास्तव में , स्थलीय घटनाओं का सम्बन्ध खगोलीय घटनाओं से ही होता है । खगोलशास्त्र में ग्रह , नक्षत्रों , तारों आदि के बीच दूरी व उनके परिभ्रमण का निर्धारण आदि गणित के माध्यम से ही किया जा सकता है । प्राचीन काल से ही ऋतुओं , मौसम , जलवायु आदि से सम्बन्धित जानकारी के लिए समय – सारिणी की आवश्यकता महसूस हुई । गणित के माध्यम से सूर्य , चन्द्रमा , पृथ्वी आदि के परिभ्रमण के आधार पर वर्ष , माह , दिन का निर्धारण किया गया । इस प्रकार गणित पर आधारित खगोलीय जानकारी के आधार पर ही वर्ष का कैलेण्डर तैयार किया गया ।
( 3 ) प्राकृतिक विज्ञान ( Natural Sciences ) – – विज्ञानों के संस्तरण में तृतीय स्थान प्राकृतिक विज्ञानों का है जिनमें मुख्यतः भौतिकी तथा रसायनशास्त्र को सम्मिलित किया जाता है । भौतिकी ( Physics ) और रसायनशास्त्र ( Chemistry ) क्रमशः गणित और खगोलशास्त्र पर निर्भर हैं , इसलिए इनकी विषय – वस्तु की जटिलता अपने से पूर्व के दोनों विज्ञानों से अधिक है । भौतिकशास्त्र में जो अध्ययन किया जाता है , उसकी पुष्टि खगोल व गणित विज्ञान के बिना सम्भव नहीं है । उदाहरण के लिए , गुरुत्वीय त्वरण की जानकारी के लिए हमें खगोलशास्त्र और गणित का अध्ययन करना आवश्यक है । गुरुत्वीय त्वरण के मान में विविधता होती है । इसके मान पर अक्षांश तथा ऊँचाई का प्रभाव पड़ता है । इस तरह भौतिकी के अध्ययन हेतु खगोल सम्बन्धी जानकारी आवश्यक है । इसके साथ ही भौतिकी के सिद्धान्तों की पुष्टि गणित के बिना भी नहीं हो सकती क्योंकि मान निकालने के लिए समीकरण में गणनात्मक तथ्यों का प्रयोग किया जाता है । भौतिकशास्त्र की तरह रसायनशास्त्र में भी रासायनिक प्रतिक्रियाओं की जानकारी खगोल एवं गणित शास्त्र के बिना जा सकती । उदाहरण के लिए , यह मापने के लिए कि किसा रमायनि4 प्रतिक्रिया में लवण , क्षार , अम्ल आदि के अण हैं , हमें गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है । इस क्षेत्र में खगोल सम्बन्धी जानकारी भी इसलिए आवश्यक है कि इसी के द्वारा यह जाना जा सकता है कि कोई रासायनिक तत्त्व अपने स्थलीय परिवेश में प्रकृति के प्रति कितना सक्रिय या निष्क्रिय होगा । उदाहरण के लिए , Na ( सोडियम ) अत्यन्त ज्वलनशील पदार्थ है । इसे जानने के पश्चात् कि बाह्य वातावरण का इस पर क्या प्रभाव पड़ता है । सोडियम को मिट्टी को तेल में रखा जाता है । इस तरह प्राकृतिक विज्ञानों की विषय – वस्तु अपने पूर्ववर्ती विज्ञानों पर निर्भर रहती है । इसीलिए कॉन्ट का मत है कि प्राकृतिक विज्ञान गणित एवं खगोल शास्त्र से अधिक जटिल हैं ।
( 4 ) जीव विज्ञान ( Biology ) – जीव विज्ञान में बनस्पति एवं प्राणियों का अध्ययन किया जाता है । वनस्पति से सम्बन्धित अध्ययन के लिए भी हमें क्रमशः गणित , खगोल एवं प्राकृतिक विज्ञानों पर निर्भर रहना पड़ता है । इसके साथ ही जीव विज्ञान के अध्ययन के लिए गणित , खगोलशास्त्र एवं प्राकृतिक विज्ञानों से सम्बन्धित जानकारी भी आवश्यक है । जन्तु विज्ञान ( Zoology ) के बारे में कुछ भी जानने से पहले पूर्ववर्ती विज्ञानों का ज्ञान होना आवश्यक है । उदाहरण के लिए , एक सावयव अथवा शरीर अपना कार्य करता रहे , इसके लिए उसे भोजन की आवश्यकता होती है जबकि भोजन के घटकों को हम रसायनशास्त्र की मदद से ही समझ सकते हैं । सामान्यतया भोजन के रासायनिक वर्गीकरण में प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट , वसा , खनिज लवण , विटामिन्स तथा जल आदि प्रमुख घटक हैं । अतः इन रासायनिक तत्त्वों की प्रतिक्रियाओं , इनके अनुपात आदि के लिए रसायनशास्त्र का ज्ञान होना आवश्यक है । प्राणिशास्त्र भौतिकशास्त्र से भी सम्बन्धित है क्योंकि भौतिकशास्त्र से ही हमें ताप , भार आदि का ज्ञान होता है । प्राणी – विज्ञान खगोलशास्त्र पर भी निर्भर करता है । किसी भी देश के लोगों के रहन – सहन , सभ्यता , संस्कृति तथा आर्थिक उन्नति आदि का जलवायु से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है । प्रारम्भ से ही ऐसा माना जाता रहा है कि जलवायु का प्राणी के व्यवहारों , स्वास्थ्य और मानसिकता पर प्रभाव पड़ता है । अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि प्राणियों पर भी चन्द्रमा की विभिन्न स्थितियों के भिन्न – भिन्न प्रभाव पड़ते हैं । ऋतु – परिवर्तन का भी प्राणियों पर प्रभाव पड़ता है । स्पष्ट है कि जीव विज्ञान जहाँ एक ओर खगोलशास्त्र से सम्बन्धित है , वहीं इसका गणित तथा प्राकृतिक विज्ञानों से भी घनिष्ठ सम्बन्ध है । इस तरह कॉम्ट ने जीवशास्त्र को अपने पूर्ववर्ती विज्ञानों से अधिक जटिल और अधिक निर्भर विज्ञान माना है ।
( 5 ) समाजशास्त्र ( Sociology ) – समाजशास्त्र चूंकि नवीनतम विज्ञान है अतः सिद्धान्तानुसार इसमें बढ़ती हुई निर्भरता एवं बढ़ती हुई जटिलता की विशेषता सबसे अधिक है । इसी कारण कॉम्ट ने इसे ‘ विशिष्टतम विज्ञान ‘ माना है । इस की अवधारणा प्रस्तुत करते हुए कॉम्ट ने कहा कि ” सामूहिक सामाजिक तथ्यों का अध्ययन करने वाला विज्ञान ही समाजशास्त्र है । ” समाजशास्त्र की विषय – वस्तु अत्यधिक जटिल है क्योंकि कॉम्ट के अनुसार यह विज्ञान अपने पूर्ववर्ती विज्ञानों पर सबसे अधिक निर्भर है । उदाहरण के लिए , सामहिक क्रियाओं या किसी समाज में पाये जाने वाले सम्बन्धों का अध्ययन करने अथवा उनका अनुमापन ( Measurement ) करने के लिए हमें गणित की जरूरत होती है । सच तो यह है कि वर्तमान समस्त सामाजिक शोधों में सांख्यिकीय का प्रयोग हो रहा है । समाजशास्त्र खगोलशास्त्र पर भी निर्भर है क्योंकि वैज्ञानिक खोजों से यह स्पष्ट हुआ है कि सामाजिक जीवन काफी सीमा तक भौगोलिक दशाओं से भी प्रभावित होता है । खगोलशास्त्र के पश्चात् प्राकृतिक विज्ञानों ( भौतिकी / रसायन ) का अध्ययन भी समाजशास्त्र की विषय – वस्तु को प्रभावित करता है । इसका कारण यह है कि मनुष्य का शरीर पाँच तत्त्वों से मिलकर बना है तथा इन तत्त्वों के प्रभावों का विश्लेषण करके ही यह ज्ञात किया जा सकता है कि पर्यावरणीय प्रभाव किस प्रकार एक समूह के सदस्यों और उसकी संस्कृति को प्रभावित करते हैं । जीव एवं वनस्पति विज्ञानों के अध्ययनों तथा उनके परिणामों के आधार पर ही औषधि एवं चिकित्सा आदि का उद्भव हुआ है । चिकित्सा एवं समाज के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध है या यह भी कहा जा सकता है कि औषधि के बिना मनुष्य और समाज दोनों ही रोगग्रस्त हो सकते हैं । चिकित्सा के समाजशास्त्र ( Sociology of Medicine ) के अध्येताओं ने भी कहा है कि ” औषधि एक सामाजिक तथ्य है । ” 37 औषधि में जिन वनस्पतियों का मिश्रण होता है , उनका व्यवस्थित अध्ययन वनस्पति शास्त्र में किया जाता है । इस प्रकार , समाजशास्त्र की विषय – वस्तु को जीव विज्ञान एवं वनस्पति विज्ञान भी प्रभावित करते हैं । इस प्रकार , हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र अपने से पूर्व के सभी विज्ञानों पर सर्वाधिक निर्भर एवं जटिलतम विज्ञान है । विज्ञानों के संस्तरण के माध्यम से कॉम्ट ने समाजशास्त्र को पूर्ववर्ती विज्ञानों की तुलना में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया । इस सिद्धान्त में निहित जटिलता और विकास के समानुपातिक सम्बन्धों के आधार पर ही कॉम्ट को उद्विकासवादी विचारक की श्रेणी में भी रखा जा सकता है ।
समालोचना ( Critical Appraisal )
अगस्ट कॉम्ट वे पहले आधुनिक चितक हैं जिन्होंने समाजशास्त्र विषय का न केवल नामकरण किया बल्कि इसे पूर्ववर्ती विज्ञानों के अन्तर्गत महत्त्वपूर्ण स्थान भी दिया । इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यदि हम कॉम्ट का मूल्यांकन उनके कृतित्व के काल को ध्यान में रखकर करें तो उनके प्रत्येक योगदान को आलोचना की परिधि से बाहर माना जा सकता है लेकिन यदि बौद्धिक धरातल पर उनके चितन की व्याख्या की जाये तो ऐसे अनेक प्रश्न उत्पन्न होते हैं जो उनके चितन के समक्ष आलोचना के अनेक प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं । रेमण्ड ऐरों ने लिखा है कि ‘ आगस्ट कॉस्ट दार्शनिकों में समाजशास्त्री और समाजशास्त्रियों में दार्शनिक कहे जाते हैं । किसी व्यक्ति की इससे बड़ी आलोचना नहीं हो सकती । रेमण्ड ऐरों ने यह बात मुख्यतः कॉम्ट की पुस्तक प्रथम सिद्धान्त ( First Principle ) के आधार पर कही है जिसमें कॉम्ट ने मानवीय एकता , मनुष्य की अवधारणा उसकी प्रकृति और व्यक्ति तथा सामूहिकता का उल्लेख किया है । यह भी सच है कि वर्तमान सन्दर्भ में कॉम्ट द्वारा प्रतिपादित समाजशास्त्र की विषय – वस्तु एवं उसकी परिभाषा को पूर्ण रूप से मान्यता प्राप्त नहीं हो सकी है । सामाजिक स्थितिकी एवं गत्यात्मकता से सम्बन्धित उनकी मान्यताएँ अधूरी प्रतीत होती हैं । चितन के तीन स्तरों का उल्लेख करते हुए कॉम्ट इन्हें एक निश्चित क्रम में प्रस्तुत करते हैं जबकि विभिन्न समाजों में विकास की यह अवस्थाएँ न तो उतने निश्चित क्रम में पायी जा सकती हैं और न ही एक ही समाज के विभिन्न समूहों में इस क्रम का कोई सामान्य रूप देखने को मिलता है । चिन्तन के इन स्तरों के आधार पर | सामाजिक संगठन के स्वरूपों में उत्पन्न होने वाले परिवर्तन को भी कॉम्ट अधिक स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं कर सके । प्रत्यक्षवादी पद्धति की चर्चा करते हुए कॉम्ट नैतिकता और बौद्धिकता तथा धर्म और विज्ञान के जाल में कुछ इस तरह से उलझ गये कि कुछ विद्वानों को यह कहने के लिए विवश होना पड़ा कि ” प्रत्यक्षवाद का जन्मदाता ही सर्वाधिक अप्रत्यक्ष वादी अथवा अवैज्ञानिक है । ” इस प्रकार कॉम्ट द्वारा प्रतिपादित विभिन्न सिद्धान्तों की अनेक आधारों पर कटु आलोचना की गई है । इस तथ्य में कोई सन्देह नहीं कि – कॉम्ट द्वारा आलोचना के स्तर से ऊपर उम्कर प्रतिपादित विचारों में अनेक कमियाँ हैं लेकिन आलोचना के स्तर से ऊपर उठकर यदि हम कॉम्ट की उपादेयता का उल्लेख करें तो कॉस्ट का चितन समाजशास्त्र में नींव के पत्थर की भाँति दिखाई देता है । यदि हम इस तथ्य पर विचार करें कि जब समाजशास्त्र के प्रारम्भिक सिद्धान्तों का भी कोई वैज्ञानिक अस्तित्व नहीं था . उस समय कॉम्ट द्वारा समाजशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कितना आधारभूत योगदान किया गया , निःसन्देह एक समाजशास्त्रीय विचारक के रूप में कॉम्ट की उपादेयता सिद्ध हो जाती है । समाजशास्त्र में आज प्रकार्यवादी अध्ययनों को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जाता है जबकि यह अध्ययन कॉम्ट द्वारा प्रतिपादित प्रत्यक्षवाद एवं समाज की साव या संरचना जैसी अवधारणाओं की सहायता से ही विकसित हो सके । सच तो यह है कि विज्ञानों के संस्तरण के सन्दर्भ में कॉम्ट ने ‘ सरलता से जटिलता ‘ की दिशा में बाले परिवर्तन ही जिस प्रवृत्ति को स्पष्ट किया , वह आज भी अनेक महत्त्वपूर्णआधार है ।