प्रजननता को निर्धारित करने वाले प्रमुख तत्वों में उल्लेखनीय तत्व हैं
जनांकिकीय कारक ( Demographical Factors )
- कम आयु में विवाह
- अधिकांश जनसंख्या का ग्रामीण होना
सामाजिक कारक ( Social Factors )
इसके अन्तर्गत निम्न कारक उल्लेखनीय है
- शिक्षा का स्तर निम्न
- धार्मिक अन्धविश्वास ,
- लड़कों को अधिक महत्त्व
- संयुक्त परिवार
- आर्थिक कारक ( Economic Factors )
- व्यावसायिक ढाँचे में प्राथमिक उद्योगों की प्रधानता
- रहन – सहन का स्तर
- औद्योगीकरण
- सामाजिक / आर्थिक सुरक्षा
अन्य कारक ( Other Factors ) इसके साथ ही अन्य कारक भी प्रजननता को प्रभावित करते हैं ; जैसे – भौगोलिक दशाएं , नगरीकरण इत्यादि ।
किंग्सले डेविस एवं ज्यूडिश ब्लेक ने प्रजननता को प्रभावित करने वाले तत्त्वों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है एक शिशु तभी पैदा हो सकता है-
- जब सहवास हो
- सहवास के परिणामस्वरूप गर्भाधान हो
- गर्भ सफलतापूर्वक अपनी अवधि पूरी करे तथा सुरक्षित प्रसव हो ।
इन तीन अवस्थाओं को डेविस ने Intermediate Variables कहा है । इनमें कुल ग्यारह कारक सम्मिलित हो सकते है ।
प्रजननशीलता को प्रभावित करने वाले तत्त्वों में प्रो . डी . एस नाग ने तीन वर्गों में विभाजित किया है
- जैविक तत्व
- प्रत्यक्ष सामाजिक तत्व
- अप्रत्यक्ष सामाजिक तत्त्व
प्रो . डोनाल्ड बोग द्वारा प्रजननता का वर्गीकरण प्रो . डोनाल्ड बोग ने भी प्रजननता को प्रभावित करने वाले आठ कारक बताए है
- वैवाहिक स्तर- इसके अन्तर्गत आयु , तलाक आदि कारक सम्मिलित है ।
- शैक्षणिक स्तर इसके अन्तर्गत शिक्षित तथा अशिक्षित को सम्मिलित किया जाता है ।
- क्षेत्रीय वितरण– ग्रामीण एवं नए नगरीय क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है ।
- वातावरण में – गरम वातावरण है या ठण्डा ।
- जीवनस्तर में निम्न मध्यम तथा उच्च
- आय में उच्च आय वर्ग / गृह कार्य , रोजगार प्राप्त ।
- परिवार संयुक्त परिवार तथा एकल परिवार । 8. रोजगार – बेरोजगार / गृह कार्य / रोजगार प्राप्त ।
शैक्षिक स्तर , वैवाहिक स्तर , नगरीकरण , आर्थिक स्तर , व्यवसाय , धर्म एवं सामाजिक रीति – रिवाज , सामाजिक गतिशीलता , मृत्यु दर , भौगोलिक कारण , जैविकीय तत्व , प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सामाजिक तत्त । इन तत्वों का विश्लेषण एवं उनकी अन्तर्निर्भरता क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत है ।
आर्थिक स्तर ( Economic Status )
आर्थिक स्तर भी प्रजननता को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । जनांकिकी अध्ययनों से यह निष्कर्ष सामने आता है कि धनी व्यक्तियों की तुलना में गरीबों के यहाँ अधिक बच्चे होते हैं । प्रजनन दरों में इस अन्तर के विभिन्न कारण हो सकते हैं धन मनुष्य का वह साधन है । अपनी बलवती इच्छाओं , मनोरंजन के साधनों की पूर्ति , संसार के सुख सुविधाओं व साधनों की पूर्ति कर सकता है ।
अपना साध्य धनी व्यक्ति निर्धनों की तुलना में भिन्न बनाता है फलतः प्रजनन दर उच्च नहीं हो पाती जबकि निर्धनों में उपर्युक्त -प्रवृत्तियों के अभाव के कारण प्रजनन दर निम्न नहीं हो पाती रहन – सहन का स्तर निम्न होने के कारण गरीब व्यक्ति इस बात से प्रभावित नहीं होता है कि एक और बच्चा होने से मेरा रहन सहन का स्तर और गिर जायेगा उसको वह बहुत सहज भाव से लेता है जबकि धनी व्यक्ति इसको गंभीरता से लेता है कि दो बच्चों से अधिक होने पर उनका रहन – सहन का स्तर गिर जायेगा ।
व्यवसाय ( Occupation )
व्यवसाय का प्रजनन दर से गहरा सम्बन्ध होता है । व्यावसायिक ढाँचे का परिवार के आकार तथा जन्म दर के स्तर पर गहरा प्रभाव पड़ता है । विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में . कार्यरत लोगों की प्रजनन दर भिन्न भिन्न होती है । जो लोग शारीरिक श्रम करते हैं उनकी प्रजनन दर अपेक्षाकृत मानसिक श्रमिकों के अधिक होती है । कृषि एवं कृषिगत कार्यों में लगे श्रमिकों एवं भू – स्वामियों के प्रजनन दर में भिन्नता पायी जाती है ।
प्रायः मजदूर अशिक्षित एवं गाँवों में निवास करता है । आर्थिक दृष्टि से कमजोर होता है , विवाह की आयु निम्न होती है , परिवार नियोजन एवं उसके विधियों के प्रयोग व जानकारी निम्न होने के कारण प्रजनन दर निन्न नहीं रख पाता है । शहरों में कार्यरत या निवास करने वाली महिलाएं अपने रहन – सहन के स्तर एवं शारीरिक सौष्ठव को अस्तुलित नहीं होना देना चाहती इसके लिए बहुत सजग रहती है फलतः प्रजनन दर निम्न रहता है ।
शैक्षिक स्तर ( Educational Status )
प्राथमिक कारकों को को जानने में सक्षम एवं सबसे महत्वपूर्ण करने में महत्वपूर्ण के हो जायेंगे । प्रजननशीलता के निर्धारक कारक है । • यह प्रजननशीलता को प्रत्यक्ष अच्छी तरह समझ लेने के बाद अब आप प्रजनन के निर्धारक तत्वों में शिक्षा का स्तर प्रमुख एवं परोक्ष रूप से प्रभावित तत्वों समझ के भूमिका निभाती है । शिक्षा मानव को बुद्धिमान एवं विवेकवान बनाकर योग्य बनाती है कि परिवार में बच्चों का क्या महत्व है . है कितने बच्चे होने होना चाहिए . दो चाहिए कब जन्म बच्चों के बीच या बड़े के क्या लाभ हैं । शिक्षित व्यक्ति अपने परिवार समय अन्तराल कितना होना चाहिए , छोटे परिवार के वर्तमान एवं भविष्य के प्रति पात्वाकाक्षी होता है । वह यह निर्णय लेने में अति बच्चों की संख्या की संख्या कितनी है कि सक्षम होता उसके परिवार में चाहिए । अपनी आर्थिक संसाधनों के आधार पर कितने बच्चों S दर को कम उसका स्वप्न छोटा परिवार की परवरिश में । उसे असुविधा नहीं होगी । इस तरह शिक्षित व्यक्ति प्रजनन करने के सम्बन्ध में दृढ़ता एवं उत्साह अधिक दिखाता है सुखी परिवार में पूर्ण होता है । परिवार नियोजन का अर्थ वह अपने अन्तःकरण से स्वीकार कर हृदयंगम कर लेता है । इसके विपरीत अशिक्षित व्यक्ति या समाज में बुद्धि विवेकहीनता के कारण व्यक्ति प्रजनन सम्बन्धी सही निर्णय लेने में समर्थ नहीं होता है ।
अशिक्षा , अज्ञानता , रूढ़ियों , कुरीतियों , अन्धविश्वास की बेड़ियाँ परिवार नियोजन , परिवार कल्याण या बच्चे बस दो ही अच्छे की अवधारणा को समझने में बाधक का काम करते हैं । विभिन्न सर्वेक्षणों – अनुसंधानों से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि शैक्षिक स्तर में वृद्धि होने पर जन्म – दर घटती है । यहीं पर अन्तर्निर्भरता की बात आती है । शिक्षा के स्तर में वृद्धि के साथ – साथ शारीरिक , मानसिक , समाजिक , आर्थिक तथा ऐसे जनांकिकीय परिवर्तन हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप जन्म – दर अवश्यसंभावी घट जाती है । शिक्षा एवं उसके स्तर बनाये व उठाये रखने में लगने वाले अधिक समय के कारण विवाह की आयु में वृद्धि हो जाती है । प्रजनन के अवसर में कमी हो जाती है । यह बात महिला एवं पुरूष दोनों पर समान रूप से लागू होती है ।
इस सम्बन्ध में चन्द्रशेखरन , ई ० एम ० ड्राइवर ( Differentiate Fertility in Central India ) , कुमुदनी डांडेकर के सर्वेक्षण उल्लेखनीय हैं जो स्पष्ट करते हैं . कि शिक्षा के स्तर तथा प्रजननशीलता के मध्य नकारात्मक सह सम्बन्ध ( Negative Co relation ) पाया जाता है ।
वैवाहिक स्तर ( Marital Status )
प्रजननता निर्धारक तत्वों में वैवाहिक स्तर एक प्रमुख निर्धारक कारक है । प्रजनन दर में विभिन्नता इस बात पर निर्भर करती है कि पुनरूत्पादन काल के कितने वर्ष ऐसे थे जबकि सन्तानोत्पादन की पूर्ण सम्भावना थी अर्थात् वैवाहिक जीवन का काल कितना था । यह बात सीधे विवाह की आयु की ओर संकेत करते हैं । जहाँ विवाह की आयु अधिक होती है अथवा ऐसी सामाजिक एवं आर्थिक दशाएँ विद्यमान है कि बिना विवाह के या विलम्बित विवाह के रहा जा सकता है वहाँ प्रजनन दर कम होती है । इसके विपरीत जहाँ विवाह की आयु कम होती है वहाँ प्रजनन अवसर अधिक मिलने के कारण प्रजनन दर अधिक होती है । बच्चे अधिक होते हैं फलतः परिवार का आकार भी बड़ा रहता है । विवाह प्रजननता की पूर्ण शर्त है । यूरोप में लगभग 90 % पुरूष एवं 83 % स्त्रियाँ विवाह करती हैं , अमेरिका में 90 % पुरुष एवं 92 % स्त्रियाँ विवाह करती हैं । लेकिन भारत में विवाह लगभग सबका ( 99 % पुरुष व स्त्री ) सभी का होता है । विवाह की न्यूनतम आयु चीन एवं भारत के कृषि समाज में है तो उच्चतम आयु यूरोपीय देशों में है । विवाह की आयु के अलावा तलाक , पुनर्विवाह , विधवा – विवाह , बहुपति व बहुपत्नी प्रथा भी प्रजनन दर पर प्रभाव डालते हैं । उच्च जातियों में प्रजनन दर अपेक्षाकृत विभिन्न जातियों के निम्न होने का एक कारण यह भी है कि समाज में विधवा विवाह , पुनर्विवाह और बहु विवाह इत्यादि को हेय दृष्टि से देखा जाता है । ई 0 एम 0 ड्राइवर ने अपने शोध में यह पाया कि 18 वर्ष के ऊपर विवाह होने पर औसत बच्चे 35 , एवं कम उम्र यथा 13-17 में 41 व 13 से कम आयु विवाह की होने पर बच्चों की औसत जन्म दर 53 पायी गई ।
नगरीकरण ( Urbanization )
नगरीकरण या शहरीकरण का भी प्रजनन दर पर प्रभाव पड़ता है । आर्थिक नियोजन , विकास एवं औद्योगीकरण के कारण ग्रामीण जनसंख्या शहरों में बसने लगती है । शहरी या नगरी आबादी में वृद्धि होने इस कारण भी प्रजनन दर प्रभावित होता है । नगरी जनसंख्या की प्रजनन दर कम एवं गाँवों की जननदर विभिन्न सर्वेक्षणों में अधिक पायी गयी है । नगरीय परिवारों के छोटे होने के कई कारण हो सकते हैं यथा – ( 1 ) नगरों में निवास करने वाले परिवारों के सदस्य भिन्न – भिन्न संस्थाओं व कार्यालयों में कार्यरत रहते हैं जिससे उनका सम्बन्ध परिवार के सदस्यों के अलावा बाहरी लोगों से भी होता है जो -उनके विचारों में परिवर्तिन कर देते हैं ।
ग्रामीण परिवेश में बच्चों को दायित्व न समझ कर बालश्रम के रूप में सम्पत्ति माना जाता है जबकि नगरी में जागरूकता के कारण
बालश्रम के स्थान पर बढ़ते बच्चों की संख्या दायित्व बोध कराते हैं ।
( 3 ) नगरी सभ्यता एवं संस्कृति में विकास के प्रति महत्वाकांक्षा अधिक होती है । बड़े एवं संयुक्त परिवार प्रणाली जो गाँवों में अधिकांशतः निवास करती है उनके महत्वाकांक्षा को पूरा होने में बाधक होती हैं ।
( 4 ) गाँवों में बच्चे बुढ़ापे की लाठी एवं भगवान की देन माने जाते हैं । नगरीकरण एवं शिक्षा का स्तर लोगों को परिवार में बच्चे क्यों और कब के औचित्य को समझने में मदद करती है । फलतः पुनरोत्पादन सम्बन्धी निर्णय महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । प्रजनन नियंत्रण के उपाय को लागू करना , जानकारी की कमी , प्रजनन को मनोरंजन का साधन मानना ऐसे तत्व हैं जो ग्रामीण प्रजनन दर को बढ़ा देते हैं जबकि नगरी जनसंख्या में जागरूकता के कारण कमी ला देते हैं । अधिक शिशु मृत्यु दर गाँवों में जबकि शहरी चिकित्सा सुविधाओं के कारण नगरों में शिशु मृत्यु दर की संभावना कम होने का तत्व भी प्रजनन को प्रभावित करता है
धर्म एवं सामाजिक रीति – रिवाज
( Religion and Social Customs )
प्रजनन दर निर्धारण करने वाले तत्वों में धर्म एवं सामाजिक रीति – रिवाज की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है । बच्चों की आवश्यकता , परिवार आकार , जन्म अन्तराल पुत्र कामना , धर्म के अनुयायियों की संख्या बढ़ाना पारिवारिक व सामाजिक प्रथायें प्रत्येक दृष्टिकोण से प्रजननता को प्रभावित करते हैं । संसार के विभिन्न देशों में पाया गया है कि कैथोलिक ईसाइयों में उच्च प्रजनन दर एवं यहूदियों में निम्न प्रजनन दर पाई जाती है । भारत में मुसलमान धार्मिक परमपराओं एवं रूढ़ियों में जकड़े जाने के कारण परिवार का आकार बड़ा कर लेते हैं । संतति निग्रह या परिवार नियोजन परिवार कल्याण में बाधक मानते है ।
समाज में शीघ्र विवाह करने की प्रथा या धर्म शास्त्रों के निर्देश के अनुपालन न करना पाप का भागी माना जाता है । यथा – ” अष्टवर्षा भवेद्गौरी न वर्षा च रोहणी । दश वर्षा भवेत्कन्या तत् अहर्व रजस्वला । ” अर्थात् रजस्वला होने के पूर्व लड़कियों की शादी हो जानी चाहिए । समाज में पु ‘ नामक नरक से मात्र पुत्र ही मुक्ति दिलाता है पुत्रियों नहीं इस आस्था के कारण पुत्र का मोह अधिक पुत्रियों को जन्म दे देता है ।
पुत्र की कामना ( Male Child Preference )
प्रजनन दर को सीधे प्रभावित करता है । उस पर एक नहीं वरन् दो से अधिक पुत्र , क्योंकि शिशु मृत्यु दर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक होती है यह भावना प्रजनन दर को बढ़ा देता है । विभिन्न देशों ने लड़के एवं लड़कियों की विवाह की आयु वैधानिक ढंग से निर्धारित कर रखी है लेकिन अभी भी कम उम्र में बच्चों की शादी का प्रचलन समाप्त नहीं हो पा रहा है । बाल विवाह भारत में एक लोकप्रिय प्रथा अभी भी बनी है ।
सामाजिक गतिशीलता ( Social Mobility )
सामाजिक गतिविधियों में अत्यधिक सक्रिय एवं गतिशील तभी रहा जा सकता है जब परिवार में बच्चों की संख्या अधिक न हो । व्यक्ति अपने विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है । अपनी आर्थिक संवृद्धि , यश – कीर्ति प्रतिष्ठा गौरव के लिए समाज के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ चढ़कर भाग लेना चाहता है । यह तभी संभव हो पाता है जब प्रजनन दर निम्न हो । अधिक प्रजनन दर होने पर सामाजिक गतिशीलता कम होती है । 6.4.1.8 मृत्यु क्रम ( Mortality Rate ) प्रजनन दर , मृत्यु दर से भी प्रभावित होता है । जहाँ बाल एवं शिशु मृत्यु दर ऊँची होती है वहाँ प्रजनन दर उच्च होता है । क्योंकि व्यक्ति यह सोचता है कि एक दो ही बच्चे रहने एवं आकस्मिक मृत्यु होने पर परिवार समाप्त हो जायेगा । कौन वंश चलायेगा ? की भावना प्रजनन दर को बढ़ा देती है । जहाँ शिशु जीवित रहने की प्रत्याशा अधिक होती है वहाँ प्रजनन दर निम्न रहता है ।
भौगोलिक कारण ( Geogrphical Factors )
देश की भौगोलिक संरचना , जलवायु , भू कि संरचना तथा देश में उपलब्ध खाद्य सामग्री भी . प्रजनन दर को निर्धारित करती है । गरम जलवायु वाले देशों के साथ यह विशेषता होती है , लड़कियों का शारीरिक विकास अपेक्षाकृत शीत प्रधान देशों के शीघ्र एवं अधिक होता है । फलतः वे शीघ्र प्रजनन के योग्य हो जाती हैं । उनका मातृत्व काल अधिक बढ़ जाता है और प्रजनन दर भी बढ़ जाता है । इन प्रदेशों के रहन – सहन का स्तर एवं खान पान में इस प्राकर की प्रवृत्तियों अधिक होती हैं जिससे Sex desire बढ़ती है । शीत कटिबन्धीय प्रदेशों में लड़कियों में परिपक्वता आयु देर से आती है । मातृत्व काल देर से आता है । काम भावना अपेक्षाकृत अधिक न होने पर प्रजनन दर अपेक्षाकृत कम ही रहता है । में
जैविकीय तत्व ( Biological Factors )
प्रो ० डी ० एस ० नाग ने प्रजनन को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख तत्वों में जैविकीय तत्व कोप्रधानता दी है । प्रजननशीलता व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं उपलब्ध सुविधाओं से प्रभावित होती है । स्वास्थ्य सुविधाओं में विस्तार होने से प्रजनन शक्ति ( Capacity to Reproduce ) में वृद्धि होती है । प्रजननशीलता रोगों , बीमारियों यथा – एड्स , कैंसर , बांझपन इत्यादि का भी असर होता है । इधर कई दशकों से स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं चिकित्सकीय सुविधाओं में वृद्धि होने के कासा विश्व के सभी देशों में प्रजनन शक्ति एक प्रजननशीलता में वृद्धि हुई है फलतः जनसंख्या में वृद्धि हुई है ।
प्रत्यक्ष सामाजिक तत्व ( Direct Social Factors )
इसके अन्तर्गत उन तत्वों को सम्मिलित किया जाता है जो जनसंख्या वृद्धि या घटाते हैं । इन तत्वों में जनसंख्या पर नियंत्रण करने वाले कारकों यथा संतति निग्रह , परिवार नियोजन विधियों , गर्भ समापन , भ्रूण हत्या , शिशु या बाल हत्या आदि को सम्मिलित किया जाता है । को सीधे बढ़ाते आत्म संयम
अप्रत्यक्ष सामाजिक तत्व ( Indirect Social Factors )
अप्रत्यक्ष सामाजिक तत्वों के अन्तर्गत वो कारक सम्मिलित किये जाते हैं जो सीधे प्रजननशीलता को प्रभावित करते हैं । यथा विवाह की आयु तलाक , अलगाव , बिलगाव ( पति से दूरी ) , वैधव्य , बहुपत्नी प्रथा , पति – पत्नी के मध्य सामाजिक , धार्मिक रीति – रिवाजों के कारण दूरी या अलगाव , गर्भधारण एवं प्रसवोपरान्त अलगाव , विवाहोपरान्त आत्म संयम इत्यादि । उपर्युक्त तत्वों का अध्ययन कर आप विज्ञ हो गये हैं कि कौन – कौन से तत्व प्रजननता से सम्बन्धित हैं जो जनसंख्या वृद्धि के कारक हैं और उनकी आपसी अन्तनिर्भरता की क्या स्थिति है ।