ग्रामीण नेता
( Rural Leadership)
ग्रामीण शक्ति संरचना में नेतृत्व का महत्त्वपूर्ण स्थान है । वर्तमान जटिल समाज में हमारी सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से नेतृत्व पर ही आधारित है । इसका कारण यह है कि समाज में ऐसे व्यक्तियों की संख्या बहुत कम होती है जिनमें से किसी विषय पर स्वयं निर्णय लेने की अथवा परिस्थितियों का पूर्वानुमान करने की क्षमता हो । प्रत्येक समुदाय में अधिकांश व्यक्ति उन थोड़े से व्यक्तियों का अनुसरण मात्र करते हैं जिनमें नेतत्व की क्षमता विद्यमान होती है । चिताम्बर का कथन है ” प्रत्येक समाज की शक्ति संरचना के अन्तर्गत कुछ व्यक्ति इतने पाक्तिशाली तथा सूझ – बूझ वाले होते हैं जो दूसरों को प्रोत्साहन , प्रेरणा तथा मार्गदर्शन देकर उनकी क्रियानों को प्रभावित करते हैं । इसी विशेषता को हम नेतृत्व कहते हैं जबकि ऐसे व्यक्तियों को नेता , शक्ति धारक , शक्ति सम्पन्न मानव , शक्ति केन्द्र अथवा शक्तिशाली प्रभिजन कह सकते हैं ।
इसका तात्पर्य है कि जिन व्यक्तियों में एक – विशेष समूह अथवा समुदाय की समस्याओं को समझने और उनका समाधान करने की अधिक क्षमता होती है , वे स्वाभाविक रूप से एक छोटे अथवा बड़े – क्षेत्र का नेतत्व करने लगते हैं । इसी दृष्टिकोण से नेतृत्व को एक सामाजिक तथ्य ( Social Phenomenon ) कहा जाता है यह ध्यान रखना प्रावश्यक है कि नेतृत्व भी एक तुलनात्मक अवधारणा ( Relative Concept ) है । इसका अभिप्राय है कि जिस व्यक्ति में नेतृत्व के गुण होते हैं उसमें अनुसरण करने के गुण भी पाए जाते हैं । लेकिन जब अनुसरण करने की अपेक्षा व्यक्ति की नेतृत्वशील प्रवृत्ति अधिक विकसित हो जाती है तथा एक बड़ी संख्या में व्यक्तियों द्वारा इसे स्वीकार कर लिया जाता है तब वह व्यक्ति समूह में नेता की प्रस्थिति प्राप्त कर लेता है । जनतान्त्रिक समाजों में प्राज समाजशास्त्रियों , राजनीतिशास्त्रियों तथा मनोवैज्ञानिकों की रुचि नेतृत्व के अध्ययन के प्रति निरन्तर बढ़ती जा रही है , लेकिन ग्रामीण नेतृत्व के सन्दर्भ में अध्ययन करने वाले विद्वानों की संख्या अपेक्षाकृत रूप से ग्राज भी बहुत कम है ।
प्रस्तुत विवेचन से हमारा उद्देश्य ग्रामीण नेतृत्व की अवधारणा को स्पष्ट करने के साथ ही यह देखना भी है कि परम्परागत , ग्रामीण नेतत्व की अवधारणा को स्पष्ट करने के साथ ही यह देखना भी है कि परम्परागत , ग्रामीण नेतृत्व की तलना में आज नेतृत्व से सम्बन्धित कौनसी नवीन प्रवृत्तियां जन्म ले रही हैं तथा उन्होंने ग्रामीण जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया है ।
नेतृत्व की अवधारणा
( Concept of Leadership )
कि विभिन्न विद्वानों ने नेतृत्व की अवधारणा को अनेक प्रकार से स्पष्ट किया है । शाब्दिक रूप से ( नेता ) का तात्पर्य किसी भी ऐसे व्यक्ति से समझा जाता है जो मार्गदर्शक , मुखिया किसी विषय में कशल , प्राज्ञा देने वाला अथवा व्यवहार कुशल हो । लोकतान्त्रिक दृष्टिकोण से नेतृत्व का अर्थ ऐसी स्थिति से समझा जाता है जिसमें कुछ व्यक्ति स्वेच्छा से किसी दूसरे व्यक्ति के आदेशों का पालन कर रहे हों । यदि किसी व्यक्ति में शक्ति के आधार पर अन्य व्यक्तियों से इच्छित व्यवहार करा लेने की । क्षमता है तो इसे भी नेतृत्व की अवधारणा के अन्तर्गत सम्मिलित कर लिया जाता है । वास्तव में यह सभी अर्थ अत्यधिक संकुचित हैं । व्यावहारिक रूप से नेतृत्व व्यवहार का वह ढंग है जिसमें एक व्यक्ति सरों के व्यवहार से प्रभावित होने की अपेक्षा अपने व्यवहार से दूसरे व्यक्तियों को अधिक प्रभावित | करता है । यह कार्य चाहे दवाव के द्वारा किया गया हो अथवा व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों को प्रशित करके ।
पिगर ( Piger ) ने नेतृत्व को परिभाषित करते हुए कहा है कि ” नेतृत्व व्यक्तित्व और पर्यावरण के सम्बन्धों को नष्ट करने वाली एक धारणा है । यह उस स्थिति की विवेचना करती है । जिसमें एक व्यक्ति ने एक विशेष पर्यावरण के अन्तर्गत इस प्रकार स्थान ग्रहण कर लिया हो कि उसकी इच्छा भावना और अन्तष्टि किसी सामान्य लक्ष्य को पाने के लिए दूसरे व्यक्तियों को अनुशासित करती है तथा उन पर नियन्त्रण रखती है । ” इस परिभाषा के आधार पर समीकरण के रूप में कहा जा सकता है कि का विशिष्ट पर्यावरण + व्यक्ति की स्थिति x निर्देश नेतृत्व ।
इसका तात्पर्य है कि व्यक्ति एक विशेष पर्यावरण में यह प्राथिक , धार्मिक , राजनीतिक , शिक्षा सम्बन्धी अथवा मनोरंजन और कोई भी क्षेत्र हो सकता है , जब एक विशेष स्थान प्राप्त कर लेता है तो वह अपने गुणों अथवा क्षमता के द्वारा दूसरे व्यक्तियों के व्यवहारों को प्रभावित करने लगता है । यही स्थिति नेतृत्व की स्थिति कहलाती है । लेपियर तथा फार्क्सवर्थ ( Lapier & Farnsworth ) के अनुसार ” नेतृत्व वह व्यवहार है जो दूसरे लोगों के व्यवहारों को उससे कहीं अधिक प्रभावित करता है जितना कि दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार नेता को प्रभावित करते हैं । ” इस परिभाषा के द्वारा लेपियर ने नेतत्व को नेता और उसके अनुयायियों के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों के आधार पर स्पष्ट किया है ।
एक नेता केवल अनुयायियों के व्यवहारों को प्रभावित नहीं बल्कि उनके व्यवहारों से स्वयं भी प्रभावित होता है । लेकिन जब नेता का प्रभाव तुलनात्मक रूप से अधिक हो जाता है तभी उसके व्यवहार को नेतृत्व के रूप में स्वीकार किया जाता है । माम सीमेन तथा मॉरिस ( Seeman and Morris ) के शब्दों में ” नेतृत्व का तात्पर्य एक व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले उन कार्यों से है जो दूसरे व्यक्तियों को एक विशेष दिशा में प्रभावित करते हैं । ” इससे स्पष्ट होता है कि दूसरे व्यक्तियों के व्यवहारों को प्रभावित कर लेना ही नेतृत्व नहीं है बल्कि नेतृत्व का तात्पर्य उनके व्यवहारों को एक निश्चित अथवा इच्छित दिशा की पोर मोड़ना है । लगभग इसी आधार पर टीड ने लिखा है , ” नेतृत्व एक ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लोगों को सहयोग देने के लिए प्रभावित किया जा सके । ” उदाहरण के लिए ग्राम एक सामाजिक इकाई है जिसमें एक अथवा अनेक ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता होती है जो अन्य व्यक्तियों के सामने उनके लक्ष्यों का निर्धारण कर सकें तथा उनको प्राप्त करने के लिए सभी लोगों को मिलजुल कर कार्य करने की प्रेरणा दे सकें । टीड के अनुसार , ” प्रभाव के इसी प्रतिमान को हम नेतत्व कह सकते हैं । “
नेतृत्व की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए यह आवश्यक है कि नेतृत्व एवं प्रभूत्व के अन्तर को स्पष्ट कर लिया जाये । किम्बाल यंग के शब्दों में , ” प्रभुत्व को शक्ति के एक ऐसे साधन के रूप में देखा जा सकता है जिसका उपयोग एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति की मनोवत्तियों और क्रियाओं को नियन्त्रित करने तथा उन्हें परिवर्तित करने के लिए किया जाता है । ” इस दृष्टिकोण से प्रभत्व में शक्ति अथवा सत्ता का तत्त्व आवश्यक रूप से जुड़ा हुअा रहता है ।
प्रभुत्व द्वारा व्यक्तियों के व्यवहारों में जो परिवर्तन लाए जाते हैं वह साधारणतया दबाव के द्वारा होते हैं । इसके विपरीत नेतत्व व्यक्तियों के व्यवहारों में जो परिवर्तन उत्पन्न करता है वह ऐच्छिक होता है । उदाहरण के लिए यदि एक अधिकारी अपने कार्यालय में दूसरे कर्मचारियों के व्यवहारों में इच्छित परिवर्तन करता है तो इसे प्रभुत्व कहा जाएगा , नेतृत्व नहीं । इसके अतिरिक्त नेतृत्व की सफलता के लिए नेता और उसके अनुयायियों तथा पारस्परिक त्याग का होना आवश्यक है जबकि प्रभुत्व को बिना किसी घनिष्ठता और त्याग के भी बनाए रखा जा सकता है ।
एण्डरसन ( Anderson ) का कथन है कि नेतृत्व से सम्बन्धित व्यवहार साधारणतया प्रगतिशील होते हैं जबकि प्रभुत्व में रूढ़िवादी तत्त्व अधिक होते हैं । इसके उपरान्त भी यह स्वीकार करना होगा कि नेतृत्व और प्रभुत्व को पूरी तरह एक दूसरे से पृथक् नहीं . किया जा सकता । इसका कारण यह है कि नेतृत्व में भी कुछ व्यक्ति नेता के अनुयायी होते हैं और प्रभुत्व में भी कुछ व्यक्तियों को किसी व्यक्ति के अधीन रहकर कार्य करना पड़ता है । इसी ग्राधार पर किम्बाल यंग ने लिखा है जिसे हम साधारणतया नेतृत्व कहते हैं , उसकी विवेचना सही तौर पर प्रभुत्व के रूप में ही की जानी चाहिए ।
उपयूक्त परिभाषाओं से नेतृत्व की चार प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं । वे हैं – नेता , अनुगामी , परिस्थिति एवं कार्य ( Leader , Followers , Situation and Task ) । TOP नेता – प्रत्येक समूह का एक नेता होता है जो समूह के लोगों के साथ विभिन्न समयों में अन्तः क्रिया करता है और उनसे सम्बन्ध स्थापित करता है ।
वह समूह के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य करता है । इसका यह तात्पर्य नहीं है कि जिस प्रकार का कार्य नेता करता है , समूह के दूसरे व्यक्ति नहीं कर सकते । नेतत्व का कार्य समूह के सदस्यों में विभाजित किया जा सकता है किन्तु विशिष्ट रूप से उन्हें पूरा करने का भार नेता पर ही होता है । किसी भी समूह के नेता की पहचान करने की अनेक विधियाँ हैं जिसमें से समाजमिति ( Sociometry ) भी एक है । नेता अधिक कुशल , योग्य , अनुभवी एवं बुद्धिमान होता है इसलिए वह समूह में अन्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक प्रभावी होता है । मागअनुगामी – समूह में नेता के अतिरिक्त वे व्यक्ति होते हैं जो नेता का अनुगमन करते हैं , उन्हें हम अनुगामी कहते हैं । बिना अनुगामी के कोई नेता नहीं हो सकता ( We cannot think of Leader without Followers ) । अतः जब तक ऐसे कुछ व्यक्ति नहीं होंगे जो एक व्यक्ति की प्राज्ञा माने या उसका अनुगमन करें तब तक नेतृत्व उत्पन्न नहीं होगा । सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि नेता एवं अनुगामियों में सक्रिय अन्त : क्रिया हो । उद्देश्य की प्राप्ति एवं अान्दोलन के लिए यह भी आवश्यक है कि अनुगामी नेता का नेतृत्व स्वीकार करें और नेता अनुगामियों की अपेक्षानों के अनुसार कार्य करें ।
अनुगामी अपने नेता के व्यवहार से अधिक प्रभावी होते हैं । इसका यह अर्थ नहीं कि अनुगामियों का नेता के व्यवहार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता , किन्तु प्रभाव सापेक्ष रूप में देखा जा सकता है ।
नेतृत्व उभयपक्षीय है । ( Leadership is a two – way affair ) , किन्तु पारस्परिक प्रभाव की मात्रा में अन्तर होता है । किन परिस्थिति – नेता और अनुयायी किसी परिस्थिति में ही अन्तःक्रिया करते हैं । परिस्थिति में हम मूल्यों एवं अभिवृत्तियों को सम्मिलित करते हैं । नेता एवं उसके अनुगामियों को अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सामाजिक मूल्यों एवं अभिवृतियों को ध्यान में रखकर ही योजना बनानी होती है ।
हम परिस्थिति में कुछ पक्षों को गिन सकते हैं , जैसे – ( 1 ) समुह के लोगों के पारस्परिक सम्बन्ध , ( 2 ) समूह की एक इकाई होने के नाते विशेषताएँ , ( 3 ) समूह के सदस्यों की संस्कृति की विशेषताएँ , ( 4 ) भौतिक परिस्थितियां , जिनमें समूह को क्रियाशील होना है , ( 5 ) सदस्यों के मूल्य , अभिवृत्तियों एवं विश्वास ग्रादि । परिस्थिति का समूह के नेतृत्व निर्धारण में महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है । कार्य – कार्य से तात्पर्य उन क्रियानों से है जो कि समूह द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सामूहिक रूप से दी जाती है । कार्य को पूरा करने के लिए नेता से विभिन्न प्रकार की क्षमताओं की अपेक्षा की जाती है । कार्य की प्रकृति नेता को कार्य करने के लिए प्रेरणा प्रदान करती है । इस प्रकार हम देखते हैं कि नेतृत्व में नेता , अनुयायी , परिस्थिति और कार्य चार महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं । नेतृत्व किसी एक अथवा कुछ का विशेषाधिकार नहीं कहा जा सकता । जैसा कि लूथर कहते हैं , ” कोई भी व्यक्ति जो साधारण लोगों की तुलना में दूसरों को सामाजिक – मनोवैज्ञानिक प्रेरणा प्रदान करने में दक्ष हो और सामूहिक प्रत्युत्तर को प्रभावी बना देता हो वह नेता कहा जा सकता है । “
नेतृत्व को और अधिक स्पष्ट रूप से समझने के लिए हम उसके कुछ महत्त्वपूर्ण पक्षों पर विचार करेंगे
( 1 ) औपचारिक एवं अनौपचारिक प्रभावों की दृष्टि से नेतत्व में भेद पाया जाता है . किन्त नेतत्व की परिस्थिति में दोनों ही पक्ष सम्मिलित होते हैं । एक औपचारिक परिस्थिति में जो व्यक्ति नेता होता है वह अनौपचारिक में भी हो सकता है और इसके विपरीत स्थिति भी हो सकती है जब एक औपचारिक नेता अनौपचारिक व प्रभावी नेता की उपस्थिति में प्रभावहीन हो ।
( 2 ) नेतृत्व का निर्धारण मात्रा के सन्दर्भ में ही मापना सम्भव है । एक व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न समय में और विभिन्न परिस्थितियों में नेतृत्व की अलग – अलग मात्रा को प्रकट कर सकता है । नेतृत्व समूह अथवा समाज के लोगों में विभिन्न मात्रा में विभाजित और वितरित हो सकता है । एक ही व्यक्ति सभी स्थितियों एवं समय में नेतत्व करे यह आवश्यक नहीं । अलग – अलग समय एवं परिस्थितियों में नेता बदल सकते हैं ।
( 3 ) जो व्यक्ति नेतृत्व करते हैं उनमें कार्य को पूरा करने की प्रभावी योग्यता एवं क्षमता होती है । विभिन्न कार्यों को पूरा करने तथा विभिन्न समय एवं परिस्थिति के अनुसार अलग – अलग गुणों वाले नेतानों की आवश्यकता होती है । इसलिए ही एक व्यक्ति सभी परिस्थितियों में सफल नेतृत्व नहीं कर सकता ।
( 4 ) नेतृत्व की विशेषताएं व्यक्तिगत होती हैं । वे जिस परिस्थिति में कार्य किया जा रहा है उससे सम्बन्धित होती हैं । यही कारण है कि एक व्यक्ति किसी एक परिस्थिति में नेता होता है वही दूसरी में नहीं ।
( 5 ) नेतृत्व केवल प्रतिष्ठा पद और क्षमता से ही सम्बन्धित नहीं वरन् इसका सम्बन्ध प्रभावपूर्ण ढंग से कार्य को पूरा करने से भी है । अगर नेता की कोई भी गतिविधि दिखाई नहीं देती है तो हम कहेंगे की नेतृत्व बड़ा कमजोर है ।
( 6 ) नेतृत्व में सामाजिक अन्तःक्रिया सम्मिलित है जो समूह के सदस्यों में परस्पर तथा नेता और अनुयायियों के बीच और व्यक्ति तथा समूहों के बीच होती है । पिगर का मत है कि नेतृत्व पारस्परिक उत्तेजना की प्रक्रिया है ।
( 7 ) नेता का समूह में केन्द्रीय स्थान होता है । कई बार नेता बिना अपने अनुयायियों के सुझाव के ही समूह के लिए कई क्रिया – कलाप प्रारम्भ करता है ।
( 8 ) नेतृत्व का प्रभाव यह होता है कि सारे समूह द्वारा सामूहिक रूप से क्रिया की जाती है ।
( 9 ) नेतृत्व संचयी प्रकृति का है । एक व्यक्ति जब किसी परिस्थिति में अपनी भूमिका निभाता है तो उस पर अनेक प्रकार से दबाव पाते हैं ।
( 10 ) नेतृत्व प्रौपचारिक अथवा अनौपचारिक हो सकता है । समाज की शक्ति संरचना में औपचारिक नेतृत्व का प्रभाव अनौपचारिक की तुलना में कम होता है ।
( 11 ) नेतृत्व का क्षेत्र विस्तृत होता है । एक छोटे समूह की क्रियानों को निर्देशन देने से लेकर सम्पूर्ण राष्ट्र की गतिविधियों तक नेतत्व का क्षेत्र व्याप्त है ।
एक नेता के गुण
( Attributes of a Leader )
एक व्यक्ति के सफल नेता बनने के लिए उसमें अनेक शारीरिक एवं मानसिक विशेषताएं होनी चाहिए । ये विशेषताएँ क्या हों ? इस वात पर मनोवैज्ञानिकों में मतभेद हैं । टीड ने 10 सामान्य गुणों को एक नेता के लिए प्रावश्यक माना है । अॉलपोर्ट अच्छे नेता में 21 और श्रीबनार्ड 31 गुणों को वांछनीय मानते हैं । वाइण्ड ने 20 मनोवैज्ञानिकों द्वारा बताए गए नेता के 79 गुणों का उल्लेख किया है ।
श्री एम . एन . बसु ने एक नेता में निम्नांकित 10 गुणों को आवश्यक माना है
( 1 ) नेता का व्यक्तित्व सुदृढ़ हो ।
( 2 ) नेता दूसरों के प्रति सहानुभूति रखने वाला हो ।
( 3 ) नेता एक अच्छा वक्ता होना चाहिए क्योंकि वह अपने भाषण से भीड को अपने al प्रभाव में लाता है ।
( 4 ) नेता की अभिव्यक्ति स्पष्ट होनी चाहिए । उसकी मौखिक अभिव्यक्ति से लोग सरलता से आकषित हो जाते हैं
( 5 ) नेता को समूह मनोविज्ञान का अच्छा ज्ञान होना चाहिए ।
( 6 ) नेता ईमानदार होना चाहिए । (
7 ) नेता में नैतिकता एवं दयालुता होनी चाहिए ।
( 8 ) नेता में अपने आपको परिस्थितियों के अनुकूल ढालने की क्षमता होनी चाहिए ।
( 9 ) नेता को सभी प्रकार की सूचनाओं से अवगत होना चाहिए ।
( 10 ) नेता अनेक हितों को लेकर चलने वाला होना चाहिए ।
उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त भी नेता में कुछ और गुणों की अपेक्षा की जाती है जो इस प्रकार से हैं
शारीरिक गुण – नेता शारीरिक दृष्टि से हृष्ट – पुष्ट होना चाहिए । स्टागडिल तथा गोविन की मान्यता है कि लम्बाईनेतत्व का विशेष गुण है । बेलिग्रेथ , गोविन तथा पेट्रीज प्रादि ने अपने अध्ययन में पाया कि नेता भारी भरकम शरीर वाले थे । शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ , सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्व वाला व्यक्ति नेता के रूप में अधिक पसन्द किया जाता है ।
बुद्धिमान – एक नेता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सामान्य लोगों की तुलना में अधिक बुद्धिमान हो , क्योंकि कई बार विकट परिस्थितियों में उसे निर्णय लेना होता है , वह लोगों का मार्गदर्शन और नियन्त्रण करता है ।
प्रात्म – विश्वास – नेता में दृढ़ प्रात्म – विश्वास होना चाहिए । कई बार वह संघर्षमय परिस्थितियों से जूझता है । अपने साहस एवं आत्म – विश्वास के आधार पर ही वह लोगों को अपने भाषण से आकर्षित करता है । कॉक्स , ड्रेक तथा गिब आदि विद्वानों ने अपने अध्ययनों में पाया कि नेता अपूर्व प्रात्म – विश्वास से भरपूर थे ।
सामाजिकता – नेता व्यवहार कुशल एवं सभी के साथ सम्बन्ध बनाए रखने वाला होना चाहिए । गुडएनफ , कंटेल तथा स्टाइस , मूर तथा न्यू कॉम्ब प्रादि सभी विद्वान् सफल नेतृत्व के लिए व्यक्ति में सामाजिकता को आवश्यक मानते हैं ।
संकल्प शक्ति – नेता में दृढ़ संकल्प शक्ति होनी चाहिए । अनेक विद्वानों ने अपने अध्ययनों में यह पाया कि नेता की संकल्प शक्ति सामान्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक थी । संकल्प शक्ति के आधार पर ही व्यक्ति निर्णय लेने , उत्तरदायित्व निभाने और प्रात्म – संयम बनाए रखने के योग्य होता है ।
परिश्रमी – नेता बनने के लिए आवश्यक है कि वह परिश्रमी हो । कठोर परिश्रम एवं लगन के कारण ही वे समूह के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल होते हैं । नेता को परिश्रम करते देख अन्य लोग भी उसका अनुसरण करते हैं । गांव में ऐसे व्यक्ति की प्रतिष्ठा अधिक होती है जो कठोर परिश्रम करता है ।
ल्पनाशक्ति – नेता में कल्पना शक्ति होना आवश्यक है । उसी आधार पर वह योजना बनाता है , उन्हें क्रियान्वित करता है और भविष्य में आने वाली कठिनाइयों का अन्दाज लगाकर उनका समाधान ढूंढता है ।
अन्तर्दष्टि – एक नेता में अन्तर्दृष्टि का होना आवश्यक है । इस गुण के आधार पर वह अपने अनुयायियों की मानसिक स्थिति का पता लगा लेता है और उसके अनुरूप अपने आचरण को बदलता है । भविष्य की परिस्थितियों का वह पहले से ही मूल्यांकन कर उनके अनुसार कदम उठाता है ।
लचीलापन – अच्छा नेता वहीं माना जाता है जो समय एवं परिस्थितियों के अनुरूप अपने को ढाल ले । नवीन परिस्थितियों के अनुसार प्राचरण में परिवर्तन लाना सफल नेतृत्व के लिए पावश्यक है अन्यथा वह रूढ़िवादी और परिवर्तन विरोधी माना जाता है ।
उद्दीपकता – एक नेता को कुशल , प्रफुल्ल , कार्य के लिए तत्पर , स्पष्टवादी , मौलिक , प्रसन्नचित्त , उत्साही एवं स्फूर्ति वाला होना चाहिए ।
उपर्युक्त सभी सामान्य गुणों की उपस्थिति एक सफल नेता के लिए आवश्यक है । इसका यह तात्पर्य नहीं कि नेता में इनके अतिरिक्त और कोई गुण नहीं होने चाहिए अथवा जिनमें ये सभी गुण होंगे वह अावश्यक रूप से नेता बनेगा ही । यदि समय एवं परिस्थितियों से उपयुक्त विशेषताएं रखने वाले व्यक्ति का मेल हो जाता है तो उसके नेता बनने की पूरी – पूरी सम्भावना रहती है ।
नेतृत्व के प्रकार
( Types of Leadership )
नेतृत्व की उत्पत्ति , नेता के व्यवहार , नेता एवं अनुयायियों के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों के आधार पर नेताओं के अनेक प्रकार देखने को मिले हैं । हमन्यहाँ कुछ प्रकार के नेताओं का उल्लेख करेंगे :
. एफ . सी . बार्टलेट का वर्गीकरण बार्टलेट ने नेतानों के तीन प्रकार बताए है ।
( 1 ) संस्थात्मक नेता – यह किसी संस्था का प्रशासक अथवा मैनेजर होता है । ऐसे नेता की सत्ता परम्परा , प्रथाओं , मन्दिर , चर्च , मस्जिद , स्कूल अथवा आर्थिक व्यवस्था पर आधारित होती है ।
( 2 ) प्रभुत्वशील नेता – ऐसा नेता आक्रामक दबाव रखने वाला और कठोर कार्यवाही करने वाला होता है ।
( 3 ) हृदयग्राही नेता – ऐसा नेता शब्दों एवं संकेतों के द्वारा अपना नियन्त्रण कायम रखता है , वह चापलूसी , सुझाव एवं मौखिक सलाह का प्रयोग भी करता है ।
. किम्बाल यंग द्वारा नेता का वर्गीकरण । यंग ने सात प्रकार के नेताओं का उल्लेख किया है ?
( 1 ) राजनीतिक नेता – ऐसा नेता अाधुनिक प्रजातन्त्र की देन है । उसका कार्य क्षेत्र साधारणत : शहर अथवा राज्य स्तर पर होता है । वह किसी राजनीतिक दल से सम्बन्धित होता है । वह संघर्ष की देन होता है और सत्ता हथियाने के लिए संघर्ष का वातावरण बनाता है । अतः वह एक अच्छा संघर्षका होना चाहिए तथा उसमें संगठन बनाने की योग्यता होनी चाहिए जिससे कि चुनाव में सफलता प्राप्त कर सके ।
( 2 ) प्रजातन्त्रात्मक नेता – – ऐसे नेता भी प्रजातन्त्र की देन हैं किन्तु ये राजनीतिक दल के बाहर भी क्रियाशील होते हैं । ऐसे नेता सहिष्णु , अनुकूलन करने वाले और समझौता कराने वाले होते हैं । वे कानून और व्यवस्था में दृढ़ विश्वास रखते हैं ।
( 3 ) नौकरशाही नेता – ऐसे नेता सरकारी तन्त्र की देन हैं । ये नेता व्यावहारिक , संद्धान्तिक बुद्धिमान और अपने कर्तव्य एवं कार्य के प्रति अनुशासित होते हैं । वे कानून के आधार पर ही कोई निर्णय लेते हैं । वे एक निश्चित कार्य प्रणाली को ही बनाए रखने का प्राग्रह करते हैं ।
( 4 ) कटनीतिज्ञ – – ऐसे नेता सरकार द्वारा निश्चित किए गए नियमों के अनुसार ही कार्य करते हैं । ये किसी सरकार अथवा संस्था के प्रतिनिधि होते हैं । अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ये दोहरी नीति का प्रयोग करते हैं । वे अपने शब्दों का प्रयोग बड़े नाप – तौल के करते हैं । कहा जाता है कि जब एक कटनीतिज्ञ ‘ हाँ ‘ कहता है तो उसका अर्थ होता है ‘ शायद ‘ जब वह ‘ शायद ‘ कहता है तो उसका प्रर्थ है ‘ नहीं ‘ और जब वह नहीं कहता है तो इसका अर्थ है कि वह कूटनीतिज्ञ नहीं है ।
( 5 ) सुधारक – प्रजातन्त्रात्मक समाज में ऐसे नेता सामान्यतः कई मिल जाते हैं जो प्रचलित सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था में पाए जाने वाले अनेक दोषों को दूर करने और नई व्यवस्था लाने का प्रयास करते हैं । वे उग्र क्रान्तिकारी तो नहीं होते किन्तु परिवर्तन एवं सुधार के प्रति भावूक अवश्य होते हैं । वे अपने सिद्धान्तों के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहते ।
( 6 ) प्रान्दोलक – प्रान्दोलक कट्टर सुधारवादी विचारों का होता है । वह मूल सिद्धान्तों . का प्रसार चाहता है और उनका विरोध करने पर शीघ्र उत्तेजित हो जाता है । उसमें समझौते का अभाव होता है , वह स्वभाव से उग्र और असहिष्णु होता है । वह हिंसा के द्वारा अपने लक्ष्य की प्राप्ति चाहता है ।
( 7 ) सिद्धान्तवादी – ऐसा नेता अव्यावहारिक होता है । वह आन्दोलन में विश्वास नहीं करता है । वह ताकिक अधिक होता है । इस बात की उसे परवाह नहीं होती कि उसके सिद्धान्त व्यवहार में लाए जा सकते हैं अथवा नहीं । वह अपने सिद्धान्तों को संगठित व योजनाबद्ध रूप में प्रस्तुत करता है ।
. ऑरेनस्टीन का वर्गीकरण ऑरेनस्टीन ने गांवों के नेता को दो प्रमुख भागों में बांटा है । अनौपचारिक के पुनः दो उप । भाग बताए हैं । इसे हम इस तरह रख सकते हैं नेतृत्व matौनपचारिक अनौपचारिक स्वीकती स्वीकत सक्रिय निष्क्रिय
( 1 ) प्रौपचारिक नेता इस श्रेणी में गांव के वे सभी नेता आते हैं जिनकी नियुक्ति प्रौपचारिक प्रक्रिया एवं नियमों के अनुसार होती है । गांव का सरपंच , पटवारी , ग्राम सेवक , अध्यापक आदि औपचारिक नेता की श्रेणी में आते हैं ।
( 2 ) अनौपचारिक नेता – गाँव में ऐसे कई नेता होते हैं जिनकी नियुक्ति किसी नियम अथवा सरकारी प्रक्रिया द्वारा नहीं होती है । गांवों में ऐसे नेता का अधिक प्रभाव होता है । ये औपचारिक नेताओं को भी प्रभावित करते हैं । अनौपचारिक नेताओं को भी दो उप – भागों में विभक्त किया गया है इंधन ( A ) स्वीकृत , ( B ) अस्वीकृत ।
( A ) स्वीकृत नेता – ये वे नेता होते हैं जिन्हें गांव के लोग अपना नेता स्वीकार करते हैं । गाँव में उनका दबदबा और प्रभुत्व होता है । स्वीकृत नेताओं को भी पुनः दो उप – भागों में बाँट सकते हैं – एक निष्क्रिय एवं दूसरे पक्रिया निष्क्रिय नेताओं से समय – समय पर सलाह प्राप्त की जाती है । उनके आचरणों का लोग अनुगमन करते हैं । उनके गुण दूसरों के लिए प्रेरणा की बात होती है । किन्तु वे किसी को भी अपनी बात मानने के लिए बाध्य नहीं करते । ये उच्च प्रादर्श , बड़ी आयु एवं उच्च जाति तथा समाज में अच्छी प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति होते हैं । गाँव का पुरोहित , मन्दिर के पुजारी , ज्योतिषी , सन्त एवं साधुओं को हम इस श्रेणी में रख सकते हैं । मोहिनी सक्रिय नेतानों में वे व्यक्ति प्राते हैं जो शक्तिशाली होते हैं और लोगों पर अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं । वे किसी कार्य के लिए लोगों को प्रोत्साहन दे सकते हैं अथवा किसी कार्य को न करने के लिए रोक सकते हैं । उनके इस कार्य के पीछे बहुमत का बल होता है । कई बार उनके निर्णय अधिकांश लोगों की इच्छा के विरुद्ध भी हो सकते हैं । वे शान से रहते हैं लोगों से बेगार लेते हैं तथा मौका आने पर छल , कपट , बल एवं प्रलोभन का प्रयोग भी करते हैं ।
( B ) अस्वीकृत नेता – गांव में कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो कार्य को किसी भी प्रकार से पूरा कर लेते हैं । उनमें कोई विशेष गुण नहीं होते और वे अपनी शक्ति के आधार पर ही नेतृत्करते हैं । ये व्यक्ति शारीरिक बल प्रयोग एवं लाठी के बल पर ही अपना कार्य चलाते हैं । लोगों पर इनका भय और आतंक छाया रहता है । गांव के लठैत इस प्रकार के नेतामों की श्रेणी में आते हैं ।