प्राथमिक समूह

 

प्राथमिक समूह

(PRIMARY GROUP)

कूले ने प्राथमिक समूह को स्वीकार करने के लिए लिखा है – “प्राथमिक समूह से तात्पर्य उन समूहों से है, जिनके नाम स्नेह – सामने का घनिष्ठ सम्बन्ध एवं पारस्परिक सहयोग है । ये समूह कई अथों में प्राथमिक हैं , किन्तु मुख्यत : इस अर्थ मे कि ये व्यक्ति के सामाजिक स्वभाव और आदर्शों के निर्माण में मौलिक हैं । ” इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि प्राथमिक समूह वह समूह है जिनके सदस्यों के बीच आमने – सामने का घनिष्ठ सम्बन्ध है । वे एक – दूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं और आपस में सहयोग की भावना से प्रेरित होकर कार्य करते हैं ।

लुण्डबर्ग ( Lundberg ) ने प्राथमिक समूह की परिभाषा दी । इनके अनुसार , “ प्राथमिक समूह का तात्पर्य | दो या दो से अधिक व्यक्तियों से है जो एक – दूसरे के साथ घनिष्ठ , समान तथा व्यक्तिगत ढंग से व्यवहार करते है । ” यहाँ समूह के सीमित आकार पर विशेष बल दिया गया है साथ ही उनके बीच घनिष्ठता , समानता तथा व्यक्तिगत सम्बन्ध को भी आवश्यक बताया गया है ।

बीयरस्टीड ( Bierstedt ) के अनुसार , “ प्राथमिक समूह से कूले का तात्पर्य उस घनिष्ठ , व्यक्तिगत तथा प्रत्यक्ष व आमने – सामने के समूहों से है जिनमें हम मित्र एवं समान विचार वाले साथी , अपने परिवार के सदस्य तथा दैनिक जीवन के सहयोगी पाते हैं । “

फिक्टर ( Fichter ) के अनुसार , “ प्राथमिक समूह तुलनात्मक रूप से ऐसे लोगो का चुस्त संकलन है , | जिनके बीच बराबर आमने – सामने का सम्बन्ध , एकता की भावना तथा सामान्य सामाजिक मूल्यों के प्रति आस्था पाई जाती है । ‘ ‘

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि प्राथमिक समूह एक ऐसा समूह है , जिसमें सदस्यों के बीच व्यक्तिगत तथा घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है , साथ ही उसका अपेक्षाकृत आकार सीमित होता है ।

 प्राथमिक समूह के उदाहरण ( Example of Primary group ) – कूले ने प्राथमिक समूह को स्पष्ट करते हुए तीन उदाहरण प्रस्तुत किये – परिवार , क्रीड़ा – समूह तथा पड़ोस । आरम्भ में कूले ने इन्हीं समूहों के लिए ‘ प्राथमिक समूह ‘ का प्रयोग किया था । परिवार प्राथमिक समूह का सबसे अच्छा उदाहरण है । परिवार में सदस्यो के बीच घनिष्ठ तथा आमने – सामने का सम्बन्ध होता है । अपेक्षाकृत इसका आकार भी अन्य समूहों से छोटा होता है । परिवार में व्यक्ति सामाजिक गुणों को सीखता है । परिवार में व्यक्ति पारस्परिक सहयोग , त्याग तथा स्नेह आदि को विकसित करता है , जो उसके व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्ण विशेषता बन जाती है । इसके बाद क्रीड़ा – समूह है , जो बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । खेल के साथी तथा विभिन्न प्रकार के खेल भी बच्चों को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं । कूले ने पड़ोस को भी सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण बताया । इस प्रकार कूले ने परिवार ( family ) , क्रीड़ा – समूह ( play group ) तथा पड़ोसी ( Neighbourhood ) को प्राथमिक समूह का आदर्श उदाहरण बताया । प्राथमिक समूह के लिए आमने – सामने के निकट सम्बन्ध पर फैरिस ( R . C . Farris ) ने अपना विचार प्रस्तुत किया । फैरिस के अनुसार प्राथमिक समूह के लिए आमने – सामने का निकट सम्बन्ध आवश्यक नहीं है , क्योंकि कुछ ऐसे भी समूह हैं , जिनके सदस्य आमने – सामने के सम्बन्धों से जुड़े नहीं होते , किन्तु उनके बीच अपनापन होता है । उन लोगों में हम की भावना पाई जाती है , तब ऐसे समूह को प्राथमिक समूह कहा जायेगा

जैसे विभिन्न संबंधकों के बीच का सम्बन्ध।  इसके विपरीत कछ ऐसी समह है, जिनके सदस्यों के बीच आमने – सामने का निकट सम्बन्ध तो होता है, किन्तु उनमें की हम की भावना नहीं पाई जाती है।  इस प्रकार के समूह को प्राथमिक समूह नहीं कह सकते।  जैसे कोर्ट में जज, वकील और अपराधी के बीच आमने – सामने का निकट सम्बन्ध होता है, किन्तु उनमें हम की भावना का अभाव पाया जाता है।  इससे स्पष्ट होता है कि प्राथमिक समूह के लिए आमने – सामने का सम्बन्ध होना आवश्यक नहीं है, बल्कि उनके सदस्यों में बीएम घनिष्ठ सम्बन्ध और ‘हम की भावना’ का होना आवश्यक है।  उनमें परस्पर सहयोग और त्याग का होना भी अनिवार्य है।

MUST READ THIS

MUST READ THIS

 

प्राथमिक समूह के लक्षण

(CHARACTERISTICS OF PRIMARY GROUP)

एक प्राथमिक समूह की विस्तृत जानकारी के आधार पर कछ समाजशास्त्रियों ने इसकी कुछ विशेषताओं को स्पष्ट किया है:

हम की भावना ( We feeling ) – प्राथमिक समूह में हम की भावना पायी जाती है । इसका प्रत्येक सदस्य सिर्फ अपने विषय में नहीं सोचता , बल्कि समूह का प्रत्येक सदस्य दूसरे सदस्यों के हितों को ध्यान में रखकर ही लक्ष्यों को पाने की कोशिश करता है । हम की भावना प्राथमिक समूह का आधार है । बड़े – बड़े संगठनों में कई छोटे – छोटे समूह विकसित होते हैं । धीरे – धीरे इनके सदस्यों के बीच एकता एवं हम की भावना विकसित हो जाती है और ये प्राथमिक समूह कहलाने लगते हैं ।

 

सम्बन्ध स्वयं साध्य ( Relationship itself an end ) — प्राथमिक समूहों के सम्बन्ध ऊपरी व दिखावे के लिए नहीं होते । सदस्यों के बीच जो सम्बन्ध होता है , वह स्वयं समूह का लक्ष्य होता है । यह सम्बन्ध किसी लाभ से सम्बन्धित नहीं होता । प्राथमिक सम्बन्धों में बहुत अधिक घनिष्ठता पायी जाती है । ऐसे सम्बन्ध अन्य समूहों में नहीं बनते । ये प्राथमिक समूहों में ही बनते हैं । अत : सम्बन्ध स्वयं ही अपने – आप में साध्य व लक्ष्य होते हैं ।

 

शारीरिक समीपता (शारीरिक निकटता) – शारीरिक समीपता प्राथमिक समूह की पहली विशेषता है।  शारीरिक समीपता से ही व्यक्तियों के बीच आमने – सामने का सम्बन्ध बनता है।  आमने – सामने का सम्बन्ध सामाजिक संगठन का महत्त्वपूर्ण आधार होता है । इसके द्वारा व्यक्ति | साथ – साथ रहते हैं , बातचीत करते हैं , विचारों एवं भावनाओं का | आदान – प्रदान करते हैं । इससे व्यक्तियों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध बनते हैं । जीवन की हर परिस्थिति में ये लोग एक – दूसरे का साथ देते है । इससे उनके बीच स्थायी सम्बन्ध भी बनता है । लेकिन यहाँ फिर से फैरिस की बातों की याद दिलायी जा रही है । फैरिस ने यह प्रमाणित | किया कि प्राथमिक समूह के लिए आमने – सामने का सम्बन्ध होना अनिवार्य नहीं है । कुछ समूह ऐसे भी होते हैं , जिनके सदस्य विभिन्न भौगोलिक | स्थानों में बसे होते हैं , उनके बीच आमने – सामने का सम्बन्ध नहीं रहता , | लेकिन उनमें ‘ हम की भावना ‘ पाई जाती है । वे एक – दूसरे से निकटता का अनुभव करते हैं ।

समूह का छोटा आकार ( Small size of the Group ) — प्राथमिक समूह की दूसरी विशेषता इसका सीमित आकार होता है । सीमित आकार होने पर ही उनके सदस्यों के बीच घनिष्ठ | सम्बन्ध सम्भव है । कम सदस्यों में अन्त : क्रिया तथा पारस्परिक आदान प्रदान खुलकर होता है । सभी सदस्य एक – दूसरे को अच्छी तरह से | जान पाते है । आमने – सामने का सम्बन्ध भी कम लोगों के बीच सम्भव | है । बहुत बड़े समूह में सदस्यों के बीच आमने – सामने का सम्बन्ध नहीं बन पाता है । प्राथमिक समूह के सम्बन्ध में फेयर चाइल्ड ( Fair Child ) | का विचार है कि यह साधारण तथा 3 – 4 व्यक्तियों से लेकर 50 – 60 व्यक्तियों तक का पाया जाता है । अर्थात् यह अपेक्षाकृत छोटा होता है । यहाँ पर भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि सभी सीमित आकार वाले समूह प्राथमिक समूह नहीं कहला सकते हैं

 

MUST READ ALSO

MUST READ ALSO

 

प्राथमिक समूह में व्यक्ति का विलयन ( Individual | existence ends in Primary group ) – प्राथमिक समूह में व्यक्ति का अहं गौण हो जाता है । व्यक्ति समूह का एक अंग बन जाता है । व्यक्ति अपने स्वार्थ के विषय में नहीं सोचता । प्राथमिक समूह के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्ध इतने घनिष्ठ होते हैं कि

 

सम्बन्धों की स्थिरता और निरन्तरता बन जाता है।  प्राथमिक समूह के सम्बन्ध में फेयर चाइल्ड (फेयरचाइल्ड) (स्थायीता और निरंतरता का विचार है कि यह साधारण और 3 – 4 व्यक्तियों से लेकर 50 – 60 ity) व्यक्तियों तक का पाया जाता है।  अर्थात यह प्रत्याशित लघु होता है (vi) सामान्य वर्ण है।  यहाँ पर भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि सभी सीमित आकार (सामान्य चरित्र) वाले समूह प्राथमिक समूह नहीं कहला सकते हैं।  कई छोटी – छोटी समितियाँ बहुत दिनों तक एक साथ कार्य करती हैं, उनके बीच आपसी बातचीत प्रतन और अन्तर्वासना भी होती है लेकिन उन सदस्यों के बीच प्राथमिक सम्बन्ध नहीं बन पाता है।  अत: केवल।  सीमित आकार से कोई भी समूह प्राथमिक समूह नहीं बन सकता है।  स्व: जन्म (सहज निर्माण) – प्राथमिक समूह का जन्म स्वत: रूप से होता है।  सोच निर्माण सो होता है, किंतु उसी समूहों में प्राथमिक सम्बन्ध का अभाव पाया जाता है।  प्राथमिक हे

सम्बन्ध व्यक्ति की इच्छा के फलस्वरूप बनते है तथा अपने आप ही विकसित होते है । इस प्रकार के सम्बन्ध के लिए किसी को दबाव नहीं दिया जा सकता । ऐसे सम्बन्ध अचेतन रूप से विकसित होते है । सभी सदस्य ‘ हम की भावना ‘ से प्रेरित होकर साथ – साथ रहते हैं तथा अपनी समस्याओं का समाधान करते हैं ।

सामान्य उत्तरदायित्व ( Common Responsibility ) – प्राथमिक समूहों में सामान्य उत्तरदायित्व पाये जाते हैं । ये उत्तरदायित्व किसी एक सदस्य के नहीं होते , वरन् सबका और सबके लिए होते हैं । समूह का प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक कार्य को करना अपना कर्त्तव्य समझता है । सामूहिक कल्याण प्राथमिक समूह का अन्तिम लक्ष्य होता है । इसी लक्ष्य से प्रेरित होकर कार्य करना उनके सदस्यों का नैतिक दायित्व बन जाता है । उदाहरण के लिए परिवार को लें । परिवार में सभी सदस्यों के हितों को ध्यान में रखा जाता है । माता – पिता अपने बच्चों का लालन – पालन करते हैं और बच्चे भी बुढ़ापा में माता – पिता का सहारा बनते हैं । यहाँ उत्तरदायित्व दोनों ओर से होता है । प्राथमिक समूह के सभी सदस्यों के दायित्व असीमित होते हैं । इसे निश्चित नहीं किया जा सकता ।

सम्बन्धों की स्थिरता एवं निरन्तरता ( Permanency and Continuity ) – प्राथमिक समूहों में सदस्यों के बीच के सम्बन्ध स्थायी प्रकृति के होते हैं । साथ – साथ रहने से अथवा निकट रहने से सदस्यों के बीच घनिष्ठता उत्पन्न होती है । उनके सम्बन्ध घनिष्ठ होने के कारण स्थायी बन जाते हैं । इसके सदस्यों के बीच हमेशा अन्त : क्रिया का माध्यम बना रहता है । इसके कारण सम्बन्धों की निरन्तरता भी बनी रहती है । प्राथमिक समूह प्रत्येक समाज में किसी – न – किसी रूप में पाये जाते हैं । इनके सदस्यों में प्राथमिक सम्बन्धों का होना अनिवार्य है । सम्बन्धों पर समय का प्रभाव पड़ता है । सम्बन्ध जितना पुराना होता है उतना ही घनिष्ठ भी होता जाता है । इस प्रकार इन समूहों के सदस्यों के सम्बन्ध में स्थिरता एवं निरन्तरता बनी रहती है ।

सामान्य चरित्र ( Common Character ) – प्राथमिक समूहों के सदस्यों में सामान्य उद्देश्य , सामान्य उत्तरदायित्व की भावना पायी जाती है । एक सदस्य के हित में दूसरे का हित निहित रहता है । विशिष्ट उद्देश्य अथवा व्यक्ति के लिए कोई भी काम नहीं किया जाता । समूह के सामान्य आधार पर सभी सदस्य एक साथ विचार करते हैं तथा उसकी पूर्ति करते हैं । इस प्रकार प्राथमिक समूह में एक सामान्य चरित्र होता है ।

 

व्यक्तिगत संबंध (व्यक्तिगत संबंध) प्राथमिक समूहों के सदस्यों के सम्बन्ध व्यक्तिगत होते हैं।  इस सम्बन्ध का आधार कोई प्रलोभन नहीं होता है।  बल्कि व्यक्ति – व्यक्ति से सम्बन्ध स्थापित करता है।  इस प्रकार के सम्बन्ध में निष्पक्षता नहीं पायी जाती है।  व्यक्ति – व्यक्ति से किसी तरह का संकोच नहीं करता आर आपस में खुलकर बातचीत करता है।  व्यक्ति यह नहीं सोचता कि दूसरे सदस्य थेक।  व्याक्त यह सोच नहीं है कि दूसरे सदस्य उसके विषय में क्या सोचेंगे।  एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ जो सम्बन्ध पाया जाता है वह अपने आप में व्यक्तिगत होता है।  वह सम्बन्ध अन्य व्यक्तियों के साथ स्थापित नहीं किया जा सकता है।

सम्पूर्ण सम्बन्ध (समावेशी संबंध) प्राथमिक सम्बन्ध व्यक्ति के जीवन के किसी एक पहलू या गुण से सम्बन्धित नहीं होता है।  इसका सम्बन्ध सम्पूर्ण व्यक्तित्व से होता है अर्थात् प्राथमिक समूह में व्यक्ति के किसी एक गुण को नहीं बल्कि उसे सम्पूर्ण रूप से स्वीकार करते हैं।  अन्य समूहों में सदस्यों के बीच का सम्बन्ध किसी एक पहल से संबंधित होता है किन्तु प्राथमिक समह में ऐसा नहीं पाया जाता है।  परिवार के सदस्यों के बीच का सम्बन्ध किसी एक पक्ष से सम्बन्धित नहीं होता है।  परिवार का प्रत्येक सदस्य एक – दूसरे के सम्पूर्ण पहलुओं से संबंधित होता है।  पति – पत्नी के बीच का सम्बन्ध सम्पूर्णता का बोधक है।  पति – पत्नी खुशी – दुःख सभी में एक – दूसरे के प्रति उत्तरदायी होते हैं।  उनके बीच शारीरिक, मानसिक और सांस्कृतिक संबंध होता है।  अन्य दफ्तरों व संसाधनों में काम करने वाले व्यक्तियों के बीच का सम्बन्ध किसी एक पहलू से संबंधित होता है।  जैसे स्कूल व कॉलेजों में शिक्षक और छात्र के बीच का सम्बन्ध शिक्षा से संबंधित होता है।

सम्बन्धों का हंदतरन सम्भव नहीं (संबंध का हस्तांतरण संभव नहीं) – प्राथमिक समूहों के अंतर्गत स्थापित होने वाले सम्बन्ध व्यक्तिगत होते हैं।  इसे अन्य व्यक्ति के लिए हिसारदित नहीं किया जा सकता है।  प्राथमिक समूहों में व्यक्तियों के बीच एक विशेष सम्बन्ध स्थापित होता है और यह विशेष सम्बन्ध उन लोगों तक ही सीमित होता है।  ये सम्बन्ध का हन्दतरन सम्भव नहीं है।  उदाहरण के लिए, माता – पिता का बच्चों के साथ सम्बन्ध, पड़ोस के साथ अन्य सम्बन्ध।  ये सम्बन्ध अन्य व्यक्तियों को हंदकारित नहीं किया जा सकता।  दूसरे समूहों में जो सम्बन्ध होते हैं उनका हश्तनत सम्भव होता है।  शिक्षक और छात्र के बीच का सम्बन्ध या दफ्तरों में काम करने वाले व्यक्तियों के सम्बन्ध को ह हिंदबारित किया जा सकता है, क्योंकि इसके बीच का सम्बन्ध उस समूह के नियमों से निर्देशित होता है और उनके सदस्यों को उसके अनुसार काम करना पड़ता है।

प्राथमिक समूहों का महत्त्व भूमि (IMPORTANCE OF PRIMARY GROUP)

प्राथमिक समूहों में व्यक्तियों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध बनते हैं और कई सामाजिक गुणों का विकास होता है।  व्यक्ति का समाजीकरण इन्हीं समन्स के अन्तर्गत होता है।  प्राथमिक समूहों के द्वारा ही समाज के तौर – तरीके, रीति – रिवाज और आदर्श मल्यों को व्यक्ति सीखता है।  व्यक्ति जब जन्म लेता है तो वह सिर्फ एक जैवकीय प्राणी मात्र होता है किन्त प्राथमिक समहों (परिवार, पड़ोस, खेल – समूह) में धीरे – धीरे मानव सुलभ गुणों को विकसित करता है और समाज का एक सक्रिय सदस्य बन जाता है।  इस प्रकार मनुष्य के स्वभाव के निर्माण में प्राथमिक समूह की बहत ही महत्त्वपर्ण अमिका होती है।  परिवार में व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।  परिवार में कछ ऐसी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, जो अन्य समूहों के द्वारा सम्भव नहीं है।  प्राथमिक समूह के महत्त्व व टाइप्य को इस प्रकार समझा जा सकता है

मनोवैज्ञानिक सुरक्षा ( Psychological Security ) – प्राथमिक समूह अपने सदस्यों को मनोवैज्ञानिक सरक्षा प्रदान करता है । प्राथमिक समूह के सदस्य आपस में घुल – मिलकर बातचीत करने तथा विचारों – भावनाओं का आदान – प्रदान करते हैं । ऐसे वातावरण में व्यक्ति अपने – आपको अधिक सुरक्षित महसूस करता है । इन समहों में व्यक्ति अपनी चिन्ताओं से मुक्त होकर मानसिक सन्तुष्टि का अनुभव करता है । अपने परिवार में व मित्रों से व्यक्ति अपनी परेशानियों को बताता है । वह समझता है कि संकट के समय में उसे अपने परिवार के लोग तथा – मित्र सहायता करेंगे । इस प्रकार वह तनाव से मुक्ति पाता है और व्यक्तिगत सुरक्षा एवं भावनात्मक सरक्षाका अनुभव करता है ।

 वृद्धों एवं असहायों का सहारा ( Helpful for old and orphans ) – प्राथमिक समूहों में वृद्धों एवं असहायों को भी सुरक्षा एवं सहारा मिलते हैं । अधिक उम्र होने पर शरीर शिथिल एवं कमजोर हो जाता है । ऐसे समय में व्यक्ति अपने सारे कार्य को स्वयं नहीं कर पाता । अकेला जीवन व्यतीत करना मुश्किल हो जाता है । ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति को परिवार में सहारा मिलता है । अनाथ एवं असहाय बच्चों तथा व्यक्तियों को भी प्राथमिक समूहों में सुरक्षा मिलती है।  अन्य प्रकार के समूहों में इस प्रकार के लोगों को कोई जगह नहीं मिल पाती ।

  मनोरंजन में सहायक (मनोरंजन या मनोरंजन में सहायक) – प्राथमिक समूहों में हर उम के लोगों का मनोरंजन हो जाता है।  इस समूह के द्वारा ऐसा वातावरण बनता है, जिसमें व्यक्ति का स्वस्थ मनोरंजन होता है।  समूह का प्रत्येक सदस्य एक – दूसरे के साथ बातचीत, हँसी – मजाक आदि करता है, जिससे उनका मन लग जाता है।  उन्हें मन लगाने के लिए अन्य जगह जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।  प्राथमिक समूह के अन्तर्गत लोगों का सम्बन्ध स्पष्ट नहीं होता है।  इसके सदस्य अनौपचारिक रूप से अपना मनोरंजन कर लेते हैं।  प्राथमिक समूह मनोरंजन के केंद्र के रूप में व्यक्ति के जीवन में बहुत ही महत्वाकांक्षीपूर्ण भूमिका अदा करता है।  ।।

समाजीकरण में सहायक (सामाजीकरण में सहायक) –

प्राथमिक समूह समाजीकरण की माख भमिका अदा करता है। प्रत्येक समाज के अपने तरीके – तरीके और रीति – रिवाज होते हैं? व्यक्ति।  को उसी के अनार व्यवहार करना पड़ता है। व्यक्ति प्राथमिक समूहों द्वारा हा समाज के नियमों से परिचित होता है और पके अनार व्यवहार करना सीखता है। बच्चा परिवार में जन्म।  लेता है, उसके बाद खेल – समूहों और पड़ोस में मा इन् समान समनों में वह धीरे – धीर सारा चाजा को सीखता है और समाज का एक सक्रिय सदस्य बन जाता है। अन्य समहों के द्वारा भी व्यक्ति का समाजीकरण होता है, किंतु इन प्रभावों का असर नहीं होता है।

व्यक्तित्व के विकास में सहायक ( Helpful in the Development of Personality ) – प्राथमिक समूहों का व्यक्तित्व के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान होता है । व्यक्ति जब जन्म लेता है तो वह हाड़ – मांस का एक पुतला होता है , किन्तु परिवार में उसका भरण – पोषण होता है और वह बड़ा होता है । धीरे – धीरे वह खेल – समूहों एवं पड़ोस में जाता है और सामाजिक गुणों को सीखता है । व्यक्ति  में सहानुभूति , दया , त्याग , प्रेम , सहनशीलता और सहयोग आदि के गुण विकसित होते हैं । ये सारे गुण प्राथमिक सम्बन्धों के कारण ही उत्पन्न होते हैं । इन्हीं गुणों के कारण वह एक अच्छे व्यक्तित्व का व्यक्ति कहलाने लगता है । इससे सामाजिक अनुकूलन में भी सहायता मिलती है । इस प्रकार प्राथमिक समूहों का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य व्यक्तित्व का विकास करना है ।

सामाजिक अनुकूलन में सहायक ( Helpful in Social Adjustment ) — प्राथमिक समूह व्यक्ति को समाज के साथ अनुकूलन में भी मदद करता है । सामाजिक दशाओं एवं परिस्थितियों के अनुसार प्राथमिक समूह व्यक्ति के विचारों एवं भावनाओं को विकसित करता है । प्राथमिक समूहों के द्वारा व्यक्ति वैसे गुणों व नियमों को सीखता है जिससे वह समाज में अच्छी तरह सामंजस्य बना सके । व्यक्ति एक आदर्श नागरिक के गुणों को सीखते हुए समाज व राज्य के नियमों का पालन करता है । इससे सामाजिक अनुकूलन में काफी सुविधा प्राप्त होती है ।

सामाजिक नियंत्रण में सहायक ( Helpful in Social Control ) प्रत्येक समाज के अपने आदर्श एवं नियम होते हैं । प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह समाज के आदर्शों एवं नियमों का पालन करे । व्यक्ति का व्यवहार इनके विरुद्ध न हो तथा | वह मनमाने ढंग से अपने हितों को पूर्ति न करे । इसके लिए समाज अपने सदस्यों के व्यवहार पर नियंत्रण लगाता है । समाज विभिन्न साधनों के द्वारा व्यक्तियों के व्यवहार पर नियंत्रण लगाता है ।

 

MUST READ ALSO

MUST READ ALSO

  संस्कृति का संचार (संस्कृति का संचरण) सांस्कृतिक विशेषताओं का परिचय प्राथमिक समूहों के द्वारा ही होता है।  प्राथमिक समूहों में व्यक्ति अपने धर्म, परम्परा, प्रथा और नैतिकता आदि को जानता है।  इन्हीं समूहों के माध्यम से संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ह हिंदबारित होती है।

प्राथमिक समूह के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए किम्बल यंग (किम्बलयॉन्ग) ने कहा है कि “प्राथमिक समूह मानव संघों के सबसे मौलिक प्रतिनिधित्व है।” सम्भवतः ये उतने ही प्राचीन है जैसा कि मानव – जीवन।  प्राथमिक समूह सरल ढंग से ऐसे समुदायों का निर्माण करते है, जो हमेशा से व्यक्ति की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने में सबसे अधिक महत्वाकांक्षीपूर्ण साबित हुआ है।]

मेकाइवर एंड पेज ने प्राथमिक समूह के सम्बन्ध में अपने विचार को व्यक्त करते हुए बताया कि “प्राथमिक समूह द्वारा मानव की, मानव के लिए और मानव – समाज के लिए बनियादी आवश्यकता की अधिकतम पूर्ति होती है।”

कूले ने प्राथमिक समूह को “सामाजिक संरचना”  का केन्द्र – बिंदु ‘और’ मानव स्वभाव की पोषिका ‘कहा है।  प्राथमिक समूह व्यक्ति को सामाजिक प्राणी बनाने में बहुत ही महत्वाकांक्षीपूर्ण भूमिका अदा करता है।  ये भावनात्मक सुरक्षा की महान स्रोत है।  कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को प्राथमिक समूह के द्वारा सम्पूर्ण सुरक्षा मिलती है और संस्कृति और सामाजिक गुणों का विकास होता है।

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top