संरचनावाद एवं उत्तर – संरचनावाद :
सी . लेवी स्ट्रॉस एवं एम . फोकाल्ट
( Structuralism and Post – Structuralism : C. Levi Strauss and M. Foucault )
संरचनावाद ( Structuralism ):
बीसवीं शताब्दी के सामाजिक विज्ञान व मानविकी में संरचनावाद एक सोचने का तरीका या विश्लेषण प्रयोग की विधि है । वे समुदाय , जिनका विस्तार मानवीय भाषाओं लोककथाओं के सांस्कृतिक प्रयोग व साहित्य प्रयोग तक होता है , संरचनावाद उनका क्रमबद्ध रूप में , उनके सम्बन्धों एवं सबसे छोटे अंशों के प्रकार्यों का अध्ययन एवं विश्लेषण करता है । संरचनावाद एक बौद्धिक आन्दोलन है जिसकी जड़ें फ्रांस के समाजशास्त्र में संरचनावाद क्या है ? निहित हैं । दुर्थीम , मार्क्स एवं क्लाउड संरचनावाद सामाजिक घटनाओं के लेवी स्ट्रॉस ने संरचनावाद पर काफी अध्ययन का एक ऐसा उपागम है जिसमें प्रकाश डाला है । सामाजिक संरचना की सामाजिक क्रिया की अपेक्षा सामाजिक संरचना परिभाषा सामाजिक अन्तःक्रियाओं तथा को अधिक महत्व दिया जाता है । सामाजिक सम्बन्धों के माध्यम से की संरचनावाद मूल रूप में इस विचार पर गई है । किन्तु यूरोप के संरचनावादी आधारित है कि सामाजिक यथार्थ के समाजशास्त्री संरचना की सामाजिक | बहुधा अस्थिर एवं बदलते हुए चेहरे के पीछे अन्तःक्रिया तथा सामाजिक सम्बन्धों के कुछ छुपी हुई संरचनाएँ होती हैं । आधार पर की गई परिभाषा को स्वीकार नहीं करते हैं । उनका मत है कि व्यक्ति जो कहता है तथा जिस प्रकार सोचता है , वही उसके व्यवहार को प्रभावित करता है । अतः भाषा और विचार ही सामाजिक संरचना की परिभाषा है । स्थावेलेस तथा एलिसन बुल्फ ने संरचनावाद की एक अलग प्रकार से परिभाषा दी है उनके अनुसार , ” विश्व के सन्दर्भ में जैसा हमारा अनुभव है वैसी ही सामाजिक संरचना है अर्थात् हमारे दैनिक जीवन का अनुभव ही सामाजिक संरचना का सार तत्व है । ” संरचनावाद से सम्बन्धित समाजशास्त्री दो भागों में विभक्त हैं –
यूरोपीय संरचनावादी एवं
अमेरिकन – ब्रिटिश संरचनावादी ।
यूरोपीय संरचनावादी भाषा और विचार को संरचना
संरचनावाद का परिचय ( Introduction of Structuration ) ) संरचनावाद आधुनिक सामाजिक विज्ञान व मानविकी में एक सोचने का तरीका या विश्लेषण करने की विधि है । ऐसे विचार जिनका विस्तार मानवीय भाषाओं तथा लोक कथाओं के सांस्कृतिक प्रयोग व साहित्य प्रयोगात्मक होता है संरचनात्मक उनका क्रमबद्ध रूप से अध्ययन एवं विश्लेषण करता है । संरचनावाद की परिभाषा संरचनावाद एक बौद्धिक आन्दोलन है जिसकी जड़ें फ्रांस के समाजशास्त्र में निहित हैं दुखीम , मार्क्स एवं क्लाऊड लेवी स्ट्रॉस ने संरचनावाद पर काफी प्रकाश डाला है ।
सामाजिक अन्त : क्रियाओं तथा सामाजिक सम्बन्धों के माध्यम से की गई है किन्तु यूरोप के संरचनावादी समाजशास्त्री संरचना की सामाजिक अन्तःक्रिया तथा सामाजिक सम्बन्धों के आधार पर की गई परिभाषा को स्वीकार नहीं करते हैं । उनका मत है कि व्यक्ति जो कहता है तथा जिस प्रकार सोचता है , वही उसके व्यवहार को प्रभावित करता है । अतः भाषा और विचार ही सामाजिक संरचना की परिभाषा हैं ।
संरचनावाद से सम्बन्धित समाजशास्त्री दो भागों में विभक्त हैं ।
यूरोपीय संरचनावादी एवं
अमेरिकन – ब्रिटिश संरचनावादी ।
यूरोपीय संरचनावादी भाषा और विचार को संरचना का मूल आधार मानते हैं , जबकि अमेरिकन – ब्रिटिश संरचनावादी व्यक्तियों के मध्य पाए जाने वाले सामाजिक सम्बन्धों को सामाजिक संरचना का आधार मानते हैं ।
इस सम्प्रदाय के समाजशास्त्री समाज को समझने के लिए लोगों के वास्तविक व्यवहार को समझने पर जोर देते हैं । इनका मत है कि आनुभविक अध्ययन के आधार पर प्राप्त निष्कर्ष ही सामाजिक संरचना का ज्ञान कराते हैं ।
यूरोपीय संरचनावादियों में प्रमुख विचारक लेवी स्ट्रॉस तथा माइकल फोकाल्ट हैं , जबकि अमेरिकन संरचनावादियों में पीटर ब्लाऊ प्रमुख
पीटर ब्लाऊ का मत है कि संरचनावाद भाषा और वैचारिकी से जुड़ा नहीं है , बल्कि संरचना कुछ नियमों पर आधारित होती है यह नियम आधुनिक अध्ययन पर आधारित है । ब्लाऊ का मत है कि सामाजिक संरचनावाद का उद्देश्य समाज में एकीकरण पैदा करना है और एकीकरण के लिए वह समूह और नियमों को तलाशने पर जोर देता है जो मानव जीवन के सभी स्तरों , चाहे वह आदिवासी जीवन का हो या आधुनिक विकसित जीवन का हो , में पाए जाते हैं ।
संरचनावाद तुलनात्मक दृष्टि से वर्तमान समय में विकसित बौद्धिक जगत की एक सामान्य विचारधारा है , जोकि संशोधन की प्रक्रिया में है । परम्परागत संरचनावाद का जन्म फ्रांस में हुआ जिसमें क्लाऊड लेवी स्ट्रॉस की प्रमुख भूमिका रही है ।
फ्रांस के संरचनावादियों का मत है कि संरचनावाद की जड़े भाषा में निहित हैं । संरचनात्मक भाषा विज्ञान में एफ डी सौसर का नाम प्रमुख है और सौसर को संरचनावादी सिद्धान्त का जनक माना जाता है
सौसर के अनुसार प्रत्येक भाषा की प्रमुख व्याकरण होती है । जो भाषा की बोली से भिन्न है । भाषा एक अमूर्त व्यवस्था है जिसमें स्वर और वचन होते हैं । स्वर में अनेक तत्त्व होते हैं जिनके पारस्परिक सम्बन्धों का निर्धारण होता है । स्वर के तत्त्व भाषा के वचन को समझने में सहायता करते हैं । सौसर का भाषा विज्ञानी अध्ययन केवल भाषा पर ही नहीं बल्कि परम्पराओं के अन्तर्निहित नियम , जो भाषा को चलाते हैं , पर आधारित था और यह संरचनावादियों की विचारधारा की प्रमुख विशेषता है ।
सौसर ने संरचनात्मक भाषा विज्ञान को विकसित किया है । सौसर भाषाओं पर आधारित संरचना के पक्षधर थे , जोकि सभी के लिए समान हो अत : उनका अध्ययन गहरे अध्ययन पर आधारित था । चूँकि वह संरचनावाद आधारित तथ्यों की अपेक्षा गहरी संरचना को महत्त्व देता है अत : यह मार्क्स एवं फ्रायड के दृष्टिकोण के समान्तर उसका एक भाग है । यह दोनों अन्तर्निहित कार्यों , अचेतन प्रेरणाओं और ट्रान्सपर्सनल शक्तियों को ज्यादा महत्त्व देते थे । चेतनाओं और व्यक्ति की पसन्द का कम ध्यान देते हैं । इसीलिए मार्क्सवाद एवं फ्रायडवाद के समान ही संरचनावाद में लगातार व्यष्टि का आधुनिक ह्रास , स्वयं का वृहद् रेखाचित्र एवं अवैयक्तिक सिद्धान्त को महत्त्व दिया जाने लगा ।
एन्थनी गिडेन्स
Capitalism and Modern Social Theory ( 1971 )
- Politics and Sociology in the Thought of Max Weber ( 1972 )
- The Class Structure of the Advanced Societies ( 1973 )
- Positivism and Sociology ( 1974 ) . Studies in Social and Political Theory ( 1977 )
- Bey and Left and Right : The Future of Radical Politics ( 1994 )
- Emile Durkheim ( 1978 ) . Central Problems in Social Theory – Sociology : ABrief but Critical Introduction ( 1982 )
- The Constitution of Society ( 1984 )
- The Nation , State and Violence ( 1985 ) अगानिमाये . The Consequences of Modernity ( 1990 ) . Modernity and Self Identity ( 1991 )
- The Transformation of Intimacy ( 1992 )
– In Defence of Sociology ( 1996 )
गिडेन्स का प्रमुख कार्य संरचनाकरण का सिद्धान्त है । गिडेन्स ने विवेचनात्मक समाजशास्त्र के अन्तर्गत कई नवीन प्रवृत्तियों को प्रतिपादित मि किया । गिडेन्स के विचारों में समीक्षा का पुट है तथा विश्लेषण अभिव्यक्ति को तर्कपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करने की विलक्षण प्रतिभा है ।
संरचनाकरण सिद्धान्त की पृष्ठभूमि निर्माण में उसने ब्रिटिश तथा अमेरिकी दार्शनिक के कर्म सिद्धान्त में व्याप्त असंगति की ओर ध्यान आकर्षित किया है ।
गिडेन्स का विचार है कि सामाजिक क्रियाएँ समय एवं स्थान में घटती हैं इसलिए गिडेन्स ने अपने संरचनाकरण सिद्धान्त को अप्रकार्यवादी घोषणा – पत्र कहा है ।
इनका मत है कि मानव इच्छाओं से मानव इतिहास का पलायन तथा उस पलायन के परिणामों की मानव क्रिया पर कारणात्मक प्रभावों के रूप में वापसी सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषता है
संरचनावादी विचारों में गिडेन्स ने काल इतिहास तथा समकालीन ऐतिहासिक विकासशील विभाजनों पर प्रकार्यवादी चिन्तन की तुलना में अधिक जोर दिया है ।
गिडेन्स का मत है कि प्रत्येक सामाजिक कार्यकर्ता समाज के , जिसका वह सदस्य है , पुनरुत्पादन की दशाओं के बारे में बहुत अधिक जानकारी रखता है ।
उनका मत है कि सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं को , जिस सामाजिक व्यवस्था का ये निर्माण करते हैं या पुनरुत्पादन करते हैं , उसका ज्ञान होता है ।
यह संरचना की द्वैत अवधारणा की एक आवश्यक विशेषता है । इस सन्दर्भ में वह व्यावहारिक चेतना जिस पर कर्ता सामाजिक क्रिया की रचना में विवेचनात्मक चेतना से अन्तर व्यक्त करता है ।
कर्ताओं में पाए जाने वाले विमर्शात्मक या तर्कमूलक अन्तः प्रवेश की प्रकृति एवं विषय क्षेत्र में गिडेन्स ने काफी महत्त्वपूर्ण माना है और इसे सामूहिकता में नियन्त्रण का द्वन्द्व कहा है ।
गिडेन्स के संरचनात्मक सिद्धान्त की मान्यताएँ
गिडेन्स के संरचनाकरण सिद्धान्त की निम्न मान्यताएँ हैं
- संरचनावादी सिद्धान्त भाषा और समाज दोनों की संरचना में पार्थक्य द्वारा अन्तराल का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।
- संरचनाकरण कालिक आयाम को अपने विश्लेषण के केन्द्र में रखने की कोशिश करता है ।
- संरचनावाद प्रकार्यवाद की तुलना में सामाजिक सम्पूर्णता के अधिक उपयुक्त एवं सन्तोषप्रद अवबोधन का निरूपण करता है । गिडेन्स का मतहै कि इस बिन्दु को समझने के लिए संरचना एवं व्यवस्था में अन्तर दिया जाना आवश्यक होगा , क्योंकि इसका संरचनावादी एवं प्रकार्यवादी चिन्तन में अभाव है । 4. संरचनावाद सामाजिक पुनरुत्पादन के सिद्धान्त पर जोर देता है । 5. संरचनावाद वस्तु तथा विषय के द्वैत को अतिक्रमण करने का प्रयत्न करता है । 6. गिडेन्स का मत है कि स्व – विमर्श को दो दृष्टियों से संरचित किया जाना चाहिए । ( अ ) समाज के सदस्यों के सन्दर्भ में जिनके आचरणों का अध्ययन किया जाना चाहिए । ( ब ) मानव प्रयास के रूप में स्वयं समाज विज्ञान के सन्दर्भ में । 7. संरचनावादी सिद्धान्त ने सांस्कृतिक वस्तुओं के उत्पादन के विश्लेषण में स्थायी योगदान दिया है ।