संघर्ष
(CONFLICT)
संघर्ष के अन्तर्गत एक व्यक्ति या समूह दूसरे व्यक्ति या समूह की इच्छाओं का दमन करके या उन्हें हानि करने के बारे में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है। संघर्ष नए युग की देन नहीं है, बल्कि यह आदिकाल से ही प्रत्येक समाज और समय में पाया जाता है। संघर्ष भिन्न – भिन्न प्रकार का हो सकता है। जब व्यक्ति अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हिंसक साधनों का प्रयोग करता है तो संघर्ष शुरू हो जाता है। समाज में व्यक्तियों या समूहों के बीच सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक और
मनोवैज्ञानिक कारणों से संघर्ष उत्पन्न होता है।संघर्ष की परिभाषा कई विद्वानों ने दी है। यहाँ कुछ प्रमुख परिभाषाओं की चर्चा की जा रही है।
मेकाइवर एंड पेज के अनुसार, ‘सामाजिक संघर्ष में वे सभी गतिविधियाँ सम्मिलित हैं, जिनमें मनुष्य किसी भी उद्देश्य के लिए एक – दूसरे के विरुद्ध विवाद करते हैं।
गिलिन और गिलिन के शब्दों में “संघर्ष वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति या समूह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति अपने प्रतिद्वंद्वी को प्रत्यक्ष रूप से हिंसा या हिंसा की धमकी देकर करना चाहता है। इस परिभाषा में हिंसात्मक तरीके पर बल दिया गया है। अर्थात् संघर्ष में। हिंसात्मक साधनों का उपयोग करना पड़ता है। इस तरह के कई उदाहरण हमें विश्व के इतिहास में देखने को मिलते हैं। महात्मा गाँधी ने अहिंसात्मक ढंग से संघर्ष किया और उन्हें सफलता भी मिली।
ग्रीन (ग्रीन) के अनुसार, ‘संघर्ष विचारपूर्वक दूसरे या दूसरों की इच्छा के विरोध, प्रतिकार या दमन के प्रयत्न को कहता है। इस परिभाषा में संघर्ष को विचारशील प्रक्रिया बताया गया। गया है। विरोध और बलपूर्वक रोकने को संघर्ष कहा गया है। इसका अर्थ में यह सहयोग के प्रतिकूल है।
कूले (कोले) ने संघर्ष को स्पष्ट करते हुए लिखा है। , “संघर्ष और सहयोग पृथक् तत्त्व नहीं हैं, बल्कि उस एक प्रक्रिया के विभिन्न चरण हैं जिसमें दोनों तत्त्वों का बराबर समावेश होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि संघर्ष और सहयोग एक – दूसरे से अलग नहीं, बल्कि एक ही संकेतक के दो पहलू हैं। संघर्ष के साथ सहयोग और सहयोग के साथ संघर्ष भी पाया जाता है। दोनों को पृथक् द्वारा नहीं समझा जा सकता है। इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि संघर्ष एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके अंतरर्गत एक व्यक्ति या समूह अपने उद्देश्यों और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दूसरे व्यक्ति या समूह का दमन करने का प्रयत्न करता है या उनके विरुद्ध कार्य करता है।
संघर्ष के लक्षण
(CHARECTERISTICS OFCONFLICT)
संघर्ष विघटनकारी प्रक्रिया के साथ – साथ एक अनिवार्य प्रक्रिया भी है। यह हिंसात्मक या अहिंसात्मक हो। हो सकता है। संघर्ष की कुछ प्रमुख इस प्रकार है
i ) दो या दो से अधिक व्यक्ति अथवा समूह ( Two or more persons or groups )
( ii ) चेतन प्रक्रिया ( Deliberate Process )
( iii ) व्यक्तिगत प्रक्रिया ( Personal Process )
( iv ) सांवेगिक प्रक्रिया ( Emotional Process ) ,
( v ) अनिरन्तर प्रक्रिया ( Intermittent Process )
( vi ) सार्वभौमिक प्रक्रिया ( Universal Process )
( vii ) अनेक स्वरूप ( Different Forms
संघर्ष के स्वरूप
( Forms of Conflict )
संघर्ष के विभिन्न स्वरूप होते है । भिन्न – भिन्न समाजशास्त्रियों ने अपने – अपने दष्टिकोण से संघर्ष के स्वरूप । का उल्लेख किया है । मेकाइबर एवं पेज ( Maciver and Page ) ने संघर्ष के दो रूपों की चर्चा की है
(i) प्रत्यक्ष संघर्ष (प्रत्यक्ष संघर्ष) इस प्रकार के संघर्ष में व्यक्ति या समूह अपने उद्देश्यों और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रत्यक्ष रूप से दूसरे व्यक्ति या समूह को क्षति पहुंचता है। इसमें दोनों पक्ष आमने – सामने के सम्बन्ध द्वारा एक – दूसरे को जानते हैं। साम्प्रदायिक दंगे, युद्ध और अन्य झूठ – लड़ाई इत्यादि प्रत्यक्ष संघर्ष के उदाहरण है। कहने का अर्थ यह है कि यह संघर्ष में एक – दूसरे को प्रत्यक्ष रूप से देखता है।
(ii) अप्रत्यक्ष संघर्ष (अप्रत्यक्ष संघर्ष) – इस संघर्ष में एक पक्ष दूसरे पक्ष को अप्रत्यक्ष रूप से हानि या क्षति नियंत्रणता है। अप्रत्यक्ष संघर्ष में एक व्यक्ति या समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दूसरे व्यक्ति या समूह के सिद्धांतों को अप्रत्यक्ष रूप से बाधा पहँचाता है अर्थात एक पक्ष दसरे पक्ष के प्रत्यक्ष संपर्क में नहीं आता है। विभिन्न राष्ट्रों के बीच शीतयद्ध (शीत युद्ध) इसका बहत ही अच्छा उदाहरण है। विभिन्न व्यापारियों के बीच इस प्रकार का संघर्ष चलता है। उनके बीच प्रत्यक्ष रूप से संघर्ष नहीं होता है। एक पक्ष दूसरे पक्ष के बिना आमने – सामने आये नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है।
गिलिन और गिलिन (गिलिन और गिलिन) ने पाँच प्रकार के संघर्ष की चर्चा की है
(i) वैयक्तिक संघर्ष (व्यक्तिगत संघर्ष) जब संघर्ष व्यक्ति – व्यक्ति के बीच होता है तो उसे वैयक्तिक संघर्ष कहता है। इसमें एक व्यक्ति अपने हित और नीतियों की पूर्ति के लिए दूसरे व्यक्ति के हितों को नुकसान पहुंचता है। इस प्रकार के संघर्ष में ईर्ष्या, द्वेष और घृणा के भाव भी पाया जाता है। पति – पत्नी के बीच तलाक का प्रसंग इसका अच्छा उदाहरण है।
(ii) नस्लीय संघर्ष – जब संघर्ष दो लोगों के बीच होता है तब ऐसे संघर्ष को प्रचलित संघर्ष कहते हैं।] एक प्रजाति दूसरी प्रजाति के संपर्क में आती है और शारीरिक विशेषता के आधार पर दूसरी प्रजाति को हीन समझती है और दबाने की कोशिश करती है तब इस प्रकार के संघर्ष होते हैं। अमेरिका में काले और गोरे के बीच होने वाला संघर्ष इसका ज्वलंत उदाहरण है। आधुनिक समाज में रंग और नस्ल भेद दिनोदिन उगता रहा है।
(iii) वर्ग – संघर्ष (वर्ग संघर्ष) समाज में विभिन्न आधार पर वर्ग होते हैं। जब एक वर्ग अपने हित और हिती की पूर्ति के लिए दूसरे वर्ग के हित को नुकसान पहुँचाने का प्रयत्न करते हैं तो ऐसे संघर्ष को वर्ग – संघर्ष कहते हैं। इस प्रकार का संघर्ष प्रत्येक समाज में हर काल में होता है। इसके सन्दर्भ में कार्ल मार्क्स (कार्ल मार्क्स) ने कहा है, विश्व के मानव का इतिहास वर्ग – संघर्ष का इतिहास रहा है। वर्तमान युग में मजदूरो और पूँजीपतियों के बीच होने वाला संघर्ष वर्ग – संघर्ष है। समाज में जब भी विभिन्न वर्गों के बीच स्वार्थ और हित टकराने लगते है तो वर्ग – संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ।
(iv) राजनीतिक संघर्ष (राजनीतिक संघर्ष) – राजनीतिक संघर्ष के दो रूप होते हैं –
(A) अंतराष्ट्रीय संघर्ष (इंटरकाउंटरी संघर्ष) – इसके अंतर्गत एक ही राष्ट्र के विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष होता है। एक राजनीतिक समूह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए दूसरे राजनीतिक दल को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है।
(B) अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष (अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष) – इस प्रकार का संघर्ष विभिन्न राष्ट्रो के खीच होता है। जब विश्व के कुछ देश अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए अन्य राष्ट्रों के हितों को नकसान पहँचाते हैं तब ऐसे संघर्ष को अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष कहते हैं।
किंग्सले डेविस (किंग्सले डेविस) ने संघर्ष के दो रूप बताए
- आंशिक संघर्ष (आंशिक संघर्ष) – इस प्रकार के आत्मविश्वास में दो पक्षों के बीच समझौता होने के बाद लक्ष्यों की प्राप्ति के साधनों को लेकर विरोध पाया जाता है।
- पूर्ण संघर्ष (कुल संघर्ष) – इसमें प्रतिबद्धता नहीं हुई है और लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए। शारीरिक शक्ति या बल का प्रयोग होता है। डेविस ने पूर्ण संघर्ष और आंशिक संघर्ष में सिर्फ मात्रा का अन्तर बताया है।
संघर्ष का महत्त्व
( Importance of Conflict )
वास्तव में संघर्ष समाज के लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है जितना कि सहयोग । इसके सन्दर्भ में मेकाइवर एवं पेज का कहना है कि ” समाज संघर्ष मिश्रित सहयोग है ” ( Societyi isco . oneration crossed by conflict ) अर्थात् समाज के मूल्य में दोनों प्रक्रियाओं के संतलन पर ही समाज का संतुलन भी आधारित है । संघर्ष के द्वारा जहाँ बाहा समूह को परेशानी और तबाही झेलनी पड़ती है वहीं अन्तःसमह के लिए यह बहत इट तक प्रकार्यात्मक साबित होता है ।
यह समूह के लोगों को जोड़ता है । जब भारत में अंग्रेजी शासन था । तब यह देश विभिन्न सूबों और प्रदेशों में बंटा हुआ था । यहाँ अनेक राजे – महाराजे अंग्रेजी शासन के अधीनस्थ अपना शासन चला रहे थे । किन्तु आजादी की लड़ाई ने भारत के विभिन्न सूबों और प्रदेशों को सिर्फ जोड़ने का ही काम नहीं किया बल्कि विभिन्न सम्प्रदायों और जातियों को भी एक सूत्र में पिरोने का काम किया । कोसर ने संघर्ष के प्रकार्यात्मक पहल पर काफी बल दिया है । संघर्ष के बिना समाज में अच्छा काम नहीं हो पाता । समतामूलक समाज के लिए संघर्ष नितान्त आवश्यक है । आज जो भी वर्ग सामाजिक विकास की मुख्य धारा में जड़े हैं , उनके संघर्ष का परिणाम है ।
वास्तव में संघर्ष ने सामाजिक विकास की गति को तेज किया है ।संघर्ष की महत्ता पर अन्य विद्वानों ने भी प्रकाश डाला है । रयटर और हार्ट ( Reuter and Hart ) न इसक महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है , ” संघर्ष समाप्त आत्म चेतना और सामूहिक चेतना का आधार है तथा साथ ही यह इनके विकास का कारण भी है ” । कहने का अभिप्राय यह है कि संघर्ष से ही समाज के सदस्य जागरूक एवं चेतनशील बनते हैं तथा एकता के सूत्र में बँधते हैं । व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों ही समस्याओं के लिए कभी – कभी संघर्ष की आवश्यकता पड़ती है । संघर्ष के बिना न तो व्यक्ति ही आगे बढ़ सकता ह आर न ही देश या समाज । किन्तु निश्चित सीमा से अधिक संघर्ष हानिकारक होता है । समाज में संघर्ष के अनेक रूप वर्तमान हैं और यह एक स्थायी तथ्य भी है । सामाजिक असमानता , अत्याचार तथा भ्रष्टाचार आदि को दूर करने के लिए भी संघर्ष आवश्यक होता है । इसके अभाव में एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण करता है और करता रहेगा । इसी सन्दर्भ में कार्ल मार्क्स ने कहा है कि मानव समाज का इतिहास वर्ग – संघर्ष का इतिहास है । समाज में बुराइयों को समाप्त करने के लिए आंशिक संघर्ष लाभदायक होता है । आंशिक संघर्ष समाज में हमेशा से होता आ रहा है , किन्तु पूर्ण या खुले संघर्ष का प्रयोग हानिकारक होता है । यह जरूरी नहीं है कि संघर्ष हिंसात्मक ही हो । अहिंसात्मक संघर्ष के द्वारा भी बड़े – बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है । बीसेंज तथा बीसेंज ने कहा है ” अधिक संघर्ष विनाशकारी है और यह समस्याओं के समाधान की अपेक्षा अधिक समस्याएँ उत्पन्न करता है । इस प्रकार स्पष्ट होता है कि समाज में सहयोग के साथ – साथ संघर्ष भी आवश्यक है ।