जाति और वर्ग में अन्तर

जाति और वर्ग में अन्तर

  ( Distinction between Caste and Class )

वर्ग( Class )

  ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिनकी समान सामाजिक प्रस्थिति होती है । प्रत्येक समाज में अनेक प्रस्थितियाँ पाई जाती है । फलस्वरूप उनके अनुसार अनेक वर्ग भी पाए जाते हैं । जब जन्म के अतिरिक्त अन्य किसी आधार पर समाज को विभिन्न समूहों में विभाजित किया जाता है तो प्रत्येक समूह को वर्ग कहा जाता है । कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं

मैक्ईवर एवं पेज ( Maclver and Page ) ने वर्ग को परिभाषित करते हुए लिखा है , ‘ सामाजिक वर्ग समुदाय का वह भाग है जो सामाजिक प्रस्थिति के आधार पर शेष भाग से पृथक होता है । ” इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि वर्ग का आधार सामाजिक प्रस्थिति है । यानि एक समान प्रस्थिति के लोग एक वर्ग का निर्माण करते जो अन्य वर्गों से भिन्न होते हैं ।

 गिन्सबर्ग ( Ginsberg ) के शब्दों में , ” वर्ग व्यक्तियों के ऐसे समूह को कहा जा सकता है जो व्यवसाय , धन , शिक्षा , जीवन – शैली , विचार , भाव , मनोवृत्ति और व्यवहार के आधार पर समान हो या इनमें से एक – दो ही आधारों पर उनमें समानता की चेतना हो जो उन्हें अपने एक समूह या वर्ग का बोध कराती हो । ” इस परिभाषा से तीन बातें स्पष्ट होती हैं वर्ग व्यक्तियों का एक समूह है , ( ii ) वर्ग – निर्माण के अनेक आधार हैं – व्यवसाय , धन , शिक्षा , जीवन – शैली व मनोवृत्ति आदि और ( iii ) वर्ग के लिए चेतना का होना , जिसे वर्ग चेतना कहा जाता है ।

मावर्स एवं एंगेल्स ( Marxand Engels ) ने लिखा है , ‘ विभिन्न व्यक्तियों के एक साथ मिलने से वर्ग तभी बनता है , जब वे एक वर्ग के रूप में दूसरे वर्ग के विरुद्ध संघर्ष करते हैं , अन्यथा वे परस्पर प्रतियोगी होने के नाते एक दत्तरे के विरोधी या दश्मन ही रहते हैं । ” इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि वर्ग का आधार संघर्ष है । यानि बिना संघर्ष के टपणे की कल्पना नहीं की जा सकती । यह संघर्ष आर्थिक हितों के आधार पर होता है । उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर ऐसा कह सकते हैं – वर्ग व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो सामाजिक व तत्त्वों पर आधारित है और जिनमें वर्ग – चेतना के गुण होते हैं ।

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वर्ग की विशेषताएँ

( Characteristics of Class )

 निश्चित संस्तरण ( Definite Hierarchy ) – सामाजिक वर्ग कुछ श्रेणियों में विभक्त होते हैं । इनमें से कुछ श्रेणियों का स्थान ऊँचा और कुछ का नीचा होता है । जो उच्च वर्ग के सदस्य होते हैं उनके सदस्यों की संख्या तो सबसे कम होती है लेकिन प्रतिष्ठा सबसे अधिक होती है । इसके विपरीत जो निम्न वर्ग के सदस्य होते हैं उनके सदस्यों की संख्या तो अधिक होती है , लेकिन उनका महत्त्व और सम्मान सबसे कम होता है । इस प्रकार की स्थिति का यह स्वाभाविक परिणाम होता है कि उच्च वर्ग के सदस्य प्रायः निम्न वर्ग के सदस्यों से दर रहने में अपना गौरव समझते हैं । दूसरे शब्दों में , सामाजिक दूरी को नोति को प्रोत्साहन – मिलता है ।

अर्जित व्यवस्था ( Achieved System ) : वर्ग का आधार कर्म है । एक व्यक्ति अपने कर्म के बल पर धनी या गरीब , उद्योगपति या श्रमिक , विशेषज्ञ , प्राध्यापक , डॉक्टर , इंजीनियर या किसान हो सकता है । उसी के अनुसार उसका वर्ग बनता है । इस प्रकार वर्ग अर्जित की जाती है । इसे व्यक्ति अपने प्रयत्न से प्राप्त करता है ।

वर्ग – संघर्ष ( Class Conflict ) : इस विशेषता का उल्लेख मार्क्स ने किया है । मार्क्स का कहना है कि वर्गों के बीच संघर्ष ही वह तत्व है , जो समाज में वर्गों के अस्तित्व का बोध कराता है । संघर्ष के बिना वर्ग की कल्पना नहीं की जा सकती है और यह संघर्ष आर्थिक हितों के आधार पर होता है । इस प्रकार वर्ग की अवधारणा एवं विशेषताओं के आधार पर स्पष्ट है कि वर्ग सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रचलित आधार है ।

 संस्तरण ( Hierarchy ) : वर्ग की एक प्रमुख विशेषता ‘ संस्तरण ‘ कही जाती है । इसका अर्थ यह है कि समाज में वर्गों की एक श्रेणी होती है जिसमें उच्चतम से निम्नतम अनेक वर्ग होते हैं । इन वर्गों में स्पष्टत : उच्च एवं निम्न का संस्तरण देखा जाता है । इस संस्तरण के अनुसार ही पद , प्रतिष्ठा एवं सुविधाओं में भिन्नता देखी जाती है ।

  ऊँच – नीच की भावना ( Feeling of Superiority – Inferiority ) : वर्गों में ऊँच – नीच की भावना देखी जाती है । एक वर्ग के सदस्य दसरे वर्गों के सदस्यों के प्रति उच्चता या निम्नता की भावना रखते हैं । उदाहरणस्वरूप धनी वर्ग एवं निर्धन वर्ग के बीच एक – दूसरे के प्रति यह भावना स्पष्ट रूप से देखी जाती है ।

  सामान्य जीवन ( Common Life ) – समाज के विभिन्न वर्गों के सदस्य अपने – अपने विशेष ढंग से जीवन – यापन करते हैं । धनी वर्ग के जीवन – यापन का तरीका मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग से भिन्न होता है । धनी वर्ग अधिक से अधिक अपव्यय करने में अपनी शान समझता है । मध्यम वर्ग प्रायः रूढ़ियों और प्रथानों में जकड़ा रहता है तथा निम्न वर्ग का तरीका इन दोनों ही से बिलकुल भिन्न होता है ।

आर्थिक आधार की महत्ता ( Importance of Economic Basis ) माथिक स्थिति वर्ग – निर्माण का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है । आधुनिक समाज पूंजीवादी या प्रौद्योगिक है । इन समाजों में लिंग , प्रायु आदि वर्ग की सदस्यता से विशेष सम्बन्ध नहीं है । आर्थिक दृष्टि से समृद्धि या हीनता लोगों को उच्च वर्ग , मध्य और निम्न वर्ग में विभाजित करती रहती है ।

  खुलापन और उतार चढ़ाव ( Openness and Shifting ) – वर्गों की प्रकृति खुली हुई होती है । इसका अभिप्राय : यह है कि यदि कोई व्यक्ति विशेष योग्य अथवा कार्यकुशल है तो वह किसी भी वर्ग की सदस्यता ग्रहण कर सकता है अथवा अलग – अलग प्राधारों पर एक साथ अनेक वर्गों का सदस्य हो सकता है । इसी स्थिति को दर्शाते हुए बोटोमोरे ने लिखा है कि ” सामाजिक वर्ग अपेक्षाकृत उन्मुक्त होते हैं अथवा नहीं , उनका प्राधार निर्विवाद रूप से आर्थिक है , लेकिन वे आर्थिक समूहों से अधिक हैं । ” सामाजिक वर्गों में उतार – चढ़ाव होते रहना भी सामान्य बात है । कोई भी गरीब व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बनकर धनी वर्ग में सम्मिलित हो सकता है । इसी प्रकार यदि किसी धनी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति एकदम गिर जाती है तो वह उस वर्ग से फिसल कर मध्यम अथवा निम्न वर्ग में जा सकता है । वर्गगत स्थिति में यह परिवर्तन आर्थिक स्थिति के अनुरूप अपने – अाप हो जाता है ।

 अजित सदस्यता ( Achieved Membership ) सामाजिक वर्ग की उपरोक्त चौथी और पांचवी विशेषता से यह एक स्पष्ट है कि वर्ग की सदस्यता जन्म पर ही नहीं बल्कि को ग्यता , कुशलता और आर्थिक सम्पन्नता पर निर्भर करती है । वर्ग की सदस्यता के लिए व्यक्ति को प्रयत्नशील होना पड़ता है । यदि कोई व्यक्ति निम्न वर्ग का है तो उच्च वर्ग में प्रवेश के लिए उसे अपनी योग्यता सिद्ध करनी होगी । स्थायी रूप से व्यक्ति उसी वर्ग में रह पाता है जिसके अनुरूप उसमें योग्यता होती है ।

 वर्गों की अनिवार्यता ( Essentiality of Classes ) – – – वर्गों की समाज में उपस्थिति अनिवार्य है । सभी व्यक्ति योग्यता , कार्यक्षमता , रुचि , बुद्धि प्रादि की दष्टि से समान नहीं होते । अत : यह स्वाभाविक है कि व्यक्तियों को उनकी । योग्यतानुसार पद और सम्मान मिले । ऐसा होने पर ही सामाजिक व्यवस्था स्थायी रूप से बनी रह सकती है । मार्क्सवाद में वर्गहीन समाज की कल्पना की गई है । लेकिन यह सुनिश्चित है कि इस प्रकार का समाज कभी स्थापित नहीं हो सकता । ।

कम स्थिरता ( Less Stability ) – धन , शिक्षा , व्यवसाय प्रांति र अस्थायी प्रकृति के होते हैं , अतः उन पर आधारित वर्ग – व्यवस्था भी एक स्थिर धारणा है । जो आज धनी है वह कल निर्धन हो सकता है ।

उप – वर्ग ( Sub – classes ) – सामाजिक वर्ग में प्रत्येक वर्ग के अन्तर्गत उप – वर्ग होते हैं । उदाहरणार्थ , धनी वर्ग में धन पर अधिकार के आधार पर पोटति – वर्ग . लखपति – वर्ग अनेक उप – वर्ग आदि विभिन्न उप – वर्ग पाए जाते हैं ।

  जीवन अवसर ( Life Chances ) – मैक्स वेबर ने वर्ग की एक विशेषता ‘ जीवन अवसर ‘ ( Life Chance ) की ओर संकेत किया है । तद्नुसार , ” हम एक समूह को तब वर्ग कह सकते हैं जब उसके सदस्यों को जीवन के कुछ विशिष्ट अवसर समान रूप से प्राप्त हों । “

 वर्ग – परिस्थिति ( Class Situation ) – इस विशेषता की ओर भी , जो जीवन अवसर से सम्बन्धित है , मैक्स वेवर ने ही ध्यान आकर्षित किया है । किसी वर्ग के अधिकार में सम्पत्ति के होने अथवा न होने से एक विशिष्ट परिस्थिति का जन्म होता है जिसमें वर्ग निवास करता है । यदि वर्ग के सदस्यों के पास सम्पत्ति होती है तो स्वभावत : उसे अधिक धनोपार्जन , अधिक क्रय और उच्च जीवन – स्तर बनाए रखने प्रादि के अवसर प्राप्त होंगे । संयुक्त रूप में इन अवसरों से एक ऐसी विशिष्ट परिस्थिति का निर्माण होगा जिसमें उस वर्ग के सदस्यों को निवास करना होगा । यही वर्ग : परिस्थिति ( Class Situation ) है ।

समान जीवन – शैली ( Common Life Style ) : एक वर्ग के सदस्यों की जीवन – शैली में समानता देखी जाती है जो दूसरी तरफ अन्य वर्गों से भिन्न भी होता है । एक वर्ग के लोगों के कपड़े , खान – पान , मकान का स्वरूप , रहन – सहन एवं तौर – तरीकों में अधिकतर समानता होती है । साथ ही एक वर्ग के सदस्यों का पारिवारिक ब वैवाहिक सम्बन्ध भी अपने वर्ग – समूहों तक सीमित होते हैं ।

  वर्ग – चेतना ( Class Conciousness ) : वर्ग – चेतना वर्ग की आधारभूत विशेषता है । इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वर्ग के सदस्यों में इसका बोध होता है कि उसका सामाजिक – आर्थिक – राजनीतिक पद व प्रतिष्ठा दूसरे वर्गों की तुलना में कैसी है । यही वह भावना जो एक वर्ग के सदस्यों को आपस में बांधे रखता है ।

सीमित सामाजिक सम्बन्ध ( Restricted Social Relations ) : एक वर्ग के सदस्यों का सामाजिक सम्बन्ध प्राय : अपने वर्ग तक ही सीमित होता है । इनका खाना – पीना , उठना – बैठना एवं अन्य अन्त : क्रियात्मक सम्बन्ध अपने वर्ग के लोगों के साथ होता है । साथ ही , ये अन्य वर्गों से एक निश्चित सामाजिक दुरी बनाए रखते हैं । यही सामाजिक सम्बन्धों की सीमितता है , जो वर्ग की एक खास विशेषता है ।

 गतिशीलता ( Mobility ) : वर्ग की एक खास विशेषता गतिशीलता है । यह जन्म पर आधारित नहीं है , बल्कि यह योग्यता , क्षमता यानि कर्मशीलता पर आधारित है । फलस्वरूप एक निम्न वर्ग का सदस्य अपनी योग्यता व क्षमता के बल पर उच्च वर्ग में सम्मिलित हो सकता है । उसी तरह एक व्यक्ति असफलता के माध्यम से नीचे के वर्ग की ओर जा सकता है । इस प्रकार वर्गों की प्रकृति में खलापन है । (

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जाति और वर्ग में अन्तर

  ( Distinction between Caste and Class )

 

‘ ( 1 ) जाति – प्रणाली एक बन्द वर्ग है जबकि वर्ग – प्रेरणाली एक खुला या मुक्त वर्ग है । जाति में सामाजिक स्तर का निर्धारण जन्म से होता है और किसी दूसरी जाति में सम्मिलित होने का अवसर नहीं मिलता । इसके विपरीत वर्ग – व्यवस्था में मनुष्य की असमानतामों को मान्यता मिलती है । इसमें व्यक्ति को उन्नति के लिए समान अवसर दिए जाते हैं । अपनी योग्यता के बेल पर व्यक्ति एक वर्ग से दूसरे वर्ग में प्रवेश कर सकता है ।

 2 जाति में व्यक्तिगत क्षमता और योग्यता की उपेक्षा की जाती है । वर्ग में स्थिति इससे बिल्कुल विपरीत होती है । अपनी योग्यता के बल पर व्यक्ति समाज के उच्च वर्ग में पहुंच सकता है ।

3.जाति को स्तरीकरण की बन्द व्यवस्था और वर्ग को खली व्यवस्था के रूप में देखा जाता है । सामान्यतः वर्गों की प्रकृति खुली हुई समझ ली जाती है परंतु वास्तव में प्रत्येक वर्ग अपने से निम्नवर्ग के सदस्य को अपने वर्ग में आने से रोकता है और साधारणतया अपने वर्ग के सदस्यों से ही संबंधों की स्थापना करता है । व्यावहारिक रूप से विभिन्न वर्गों के बीच भी वर्ग – अंतर्विवाह की नीति अपनाई जाती है । यही कारण है कि जैसे कुछ विद्वानों ने जाति और वर्ग में कोई मौलिक भेद स्वीकार नहीं किया है । फिर भी यह निश्चित है कि अपनी प्रकृति , कार्यों और निषेधों में जाति और वर्ग की एक – दूसरे से भिन्न धारणाएं हैं जिन्हें निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है

 4.जाति सामाजिक स्तरीकरण का एक बंद स्वरूप है जबकि वर्ग में खुलापन है । कोई भी व्यक्ति एक जाति को छोड़कर दूसरी जाति की सदस्यता ग्रहण नहीं कर सकता । प्रत्येक जाति के नियम भी दूसरी जातियों से भिन्न होते हैं । इसके विपरीत वर्ग की सदस्यता का द्वार सभी के लिए खुला है । एक व्यक्ति अपनी संपति , योग्यता , कुशलता के अनुसार किसी भी वर्ग का सदस्य बन सकता है ।

5.जाति की सदस्यता का आधार जन्म है । व्यक्ति एक बार जिस जाति में जन्म लेता है , आजीवन उसी जाति का सदस्य बना रहता है । लेकिन वर्ग की सदस्यता व्यक्ति के कार्यों और प्रयत्नों पर आधारित होती है और वह अपनी योग्यता द्वारा अपने वर्ग में परिवर्तन कर सकता है ।

6.व्यक्ति को जाति की सदस्यता प्राप्त करने का प्रयत्न करना नहीं पड़ता बल्कि यह समाज की ओर से प्रदत्त होती है । यही कारण है कि जाति में स्थिरता होती है । दसरी ओर वर्ग की सदस्यता पूर्णत : व्यक्ति के निजी प्रयत्नों का फल है और इन प्रयत्नों में परिवर्तन होने से वर्ग की सदस्यता में भी परिवर्तन हो जाता है ।

 . 7.प्रत्येक जाति का एक निश्चित व्यवसाय होता है और उसी के द्वारा आजीविका उपार्जित करना उस जाति के सदस्यों का नैतिक कर्त्तव्य है । लेकिन वर्ग – व्यवस्था में कोई सदस्य अपनी रूचि और साधनों के अनुसार किसी भी व्यवसाय का चुनाव कर सकता है ।

  . 8.प्रत्येक जाति आवश्यक रूप से अपने सदस्यों को अपनी ही जाति के अन्तर्गत विवाह – सम्बन्ध स्थापित करने पर बाध्य करती है । इसके विपरीत वर्ग में इस प्रकार का कोई निश्चित नियम नहीं होता । इसके बावजूद एक वर्ग के सदस्य अपने वर्ग में ही विवाह सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं । 6 . वर्ग में उच्चता का आधार आर्थिक है जबकि जाति का स्तर समाज द्वारा निर्धारित होता है । जातियों के निर्माण का आधार अनेक धार्मिक तथा सांस्कृतिक विश्वास हैं । इस दृष्टिकोण से जाति पवित्रता तथा अपवित्रता सम्बन्धी बहुत से नियमों की एक व्यवस्था है । वर्ग – व्यवस्था में पवित्रता अथवा अपवित्रता सम्बन्धी किसी प्रकार के विश्वासों का समावेश नहीं होता ।

  1. जाति – व्यवस्था में व्यवसाय का निश्चय बहुत कुछ जन्म से हो जाता है । वर्ग – व्यवस्था में स्वेच्छानुसार व्यवसाय चुनने की स्वतन्त्रता रहती है । ।

10.जाति की सदस्यता जन्मजात होती है । यह समाज की ओर से उसे अपने – आप प्राप्त हो जाती है । इसके विपरीत वर्ग की सदस्यता अजित की जाती है । एक वर्ग से दुसरे वर्ग में व्यक्ति अपने प्रयासों से ही प्रवेश कर पाता है ।

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