Money and Banking

Money and Banking

 

मनी एंड बैंकिंग: एक गहरी समझ

(Money and Banking: A Deep Understanding)

प्रस्तावना

मनी और बैंकिंग (Money and Banking) आधुनिक अर्थव्यवस्था के दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। ये दोनों एक-दूसरे से जुड़ी हुई प्रणाली हैं, जो वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन और वितरण सुनिश्चित करती हैं। बैंकिंग प्रणाली में विभिन्न प्रकार के वित्तीय संस्थान, बैंक, और अन्य वित्तीय सेवाएं शामिल होती हैं, जो देश की आर्थिक स्थिरता और विकास को सुनिश्चित करती हैं। मनी और बैंकिंग पर विचार करते हुए यह समझना आवश्यक है कि धन का प्रवाह कैसे होता है और बैंकिंग प्रणाली किस प्रकार इसे नियंत्रित करती है। इस लेख में हम मनी और बैंकिंग के महत्व, उसकी भूमिका, बैंकिंग प्रणाली, और मौद्रिक नीतियों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

1. मनी (Money) का महत्व

धन (Money) एक सामान्य मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है, जो वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान को सुगम बनाता है। यह व्यापार, निवेश, और उपभोग के लिए आवश्यक है। मनी की तीन मुख्य विशेषताएँ होती हैं:

  1. विनिमय का सामान्य माध्यम (Medium of Exchange): धन वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान करने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका है। जब लोग किसी वस्तु को खरीदने के लिए पैसे का उपयोग करते हैं, तो वह विनिमय का एक सामान्य माध्यम बन जाता है।
  2. मूल्य का माप (Unit of Account): धन का उपयोग वस्तुओं और सेवाओं की कीमत को मापने के लिए किया जाता है। इससे कीमतों की तुलना और निर्धारित करना आसान हो जाता है।
  3. संचय (Store of Value): धन का उपयोग भविष्य में लेन-देन के लिए किया जाता है। यह समय के साथ अपनी मूल्य स्थिरता को बनाए रखता है और उपभोक्ताओं को भविष्य में इसे खर्च करने के लिए सक्षम बनाता है।

धन के रूप में विभिन्न प्रकार के रूपों का उपयोग किया जाता है, जैसे- नकद मुद्रा, चेक, बांड, और डिजिटल मुद्रा (Cryptocurrency) आदि। इन सभी का उद्देश्य समाज में व्यापार और लेन-देन को सुगम बनाना है।

2. बैंकिंग प्रणाली (Banking System)

बैंकिंग प्रणाली अर्थव्यवस्था का अभिन्न हिस्सा है, जो वित्तीय सेवाएं प्रदान करने, पैसे का प्रबंधन करने और मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने का कार्य करती है। बैंकिंग प्रणाली में विभिन्न प्रकार के बैंक शामिल होते हैं, जैसे:

  1. वाणिज्यिक बैंक (Commercial Banks): यह बैंक लोगों से जमा राशि स्वीकार करते हैं और उन्हें ऋण प्रदान करते हैं। इन बैंकों का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना है। ये विभिन्न प्रकार की सेवाएँ जैसे- बचत खाता, चालू खाता, व्यक्तिगत ऋण, व्यवसायिक ऋण आदि प्रदान करते हैं।
  2. केंद्रीय बैंक (Central Bank): केंद्रीय बैंक, जैसे भारत में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करता है। यह बैंकों को पैसे उधार देता है और मौद्रिक नीति तय करता है। केंद्रीय बैंक का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था की स्थिरता बनाए रखना और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है।
  3. सहकारी बैंक (Cooperative Banks): सहकारी बैंक आमतौर पर छोटे समुदायों या विशिष्ट समूहों को वित्तीय सेवाएं प्रदान करते हैं। इनका उद्देश्य लाभ कमाने के बजाय समाज की सेवा करना होता है।
  4. वित्तीय संस्थाएँ (Financial Institutions): ये संस्थाएँ बैंकों के अलावा अन्य वित्तीय सेवाएं प्रदान करती हैं, जैसे- बीमा, निवेश, और पेंशन योजना आदि।

बैंकिंग प्रणाली का एक और महत्वपूर्ण कार्य है, बैंकों के बीच ऋण वितरण और मुद्रा आपूर्ति को संतुलित रखना। बैंकों के पास ऋण देने की क्षमता होती है, लेकिन वे केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करते हैं, ताकि अर्थव्यवस्था में अत्यधिक धन का संचार न हो और मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सके।

3. मौद्रिक नीति (Monetary Policy)

मौद्रिक नीति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करता है। इसका मुख्य उद्देश्य मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, और आर्थिक विकास को संतुलित रखना होता है। मौद्रिक नीति को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:

  1. सख्त मौद्रिक नीति (Tight Monetary Policy): जब केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति को घटाना चाहता है, तो वह ब्याज दरों को बढ़ाता है और बैंकों से अधिक प्रावधान (Reserves) रखने के लिए कहता है। इसका उद्देश्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है।
  2. लचीली मौद्रिक नीति (Loose Monetary Policy): जब अर्थव्यवस्था में मंदी होती है, तो केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को घटा सकता है और बैंकों को अधिक ऋण देने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। इसका उद्देश्य निवेश और उत्पादन को बढ़ाना होता है।

मौद्रिक नीति के उपकरण निम्नलिखित होते हैं:

  1. रेपो रेट (Repo Rate): यह वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देता है। जब केंद्रीय बैंक रेपो रेट बढ़ाता है, तो बैंकों से ऋण लेने की लागत बढ़ जाती है, जिससे मुद्रा आपूर्ति घटती है। इसके विपरीत, रेपो रेट घटाने से ऋण सस्ता होता है और मुद्रा आपूर्ति बढ़ती है।
  2. कैश रिजर्व रेट (CRR): यह वह न्यूनतम राशि है जो बैंकों को केंद्रीय बैंक के पास जमा करनी होती है। इसका उद्देश्य बैंकों की तरलता को नियंत्रित करना है।
  3. स्टैट्युटरी लिक्विडिटी रेशियो (SLR): यह वह अनुपात है, जिसके तहत बैंकों को अपनी जमा राशि का एक हिस्सा सरकारी सिक्योरिटीज या अन्य लिक्विड संपत्तियों के रूप में रखना होता है।
  4. क्वांटिटेटिव ईasing (QE): यह एक ऐसी मौद्रिक नीति है, जिसमें केंद्रीय बैंक बाजार में अतिरिक्त धन प्रवाहित करता है, ताकि व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिले।

4. बैंकों का कार्य (Functions of Banks)

बैंकों के विभिन्न कार्य होते हैं, जो उन्हें अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण बनाते हैं:

  1. ऋण प्रदान करना: बैंक अपने ग्राहकों को विभिन्न प्रकार के ऋण प्रदान करते हैं, जैसे- व्यक्तिगत ऋण, गृह ऋण, शिक्षा ऋण, और व्यापार ऋण। यह ऋण व्यापारों को स्थापित करने, शिक्षा प्राप्त करने, और घर खरीदने में मदद करते हैं।
  2. संचय सेवाएं: बैंक बचत खाता, चालू खाता, और समय जमा खाता जैसी सेवाएँ प्रदान करते हैं। ये खाते व्यक्तियों और व्यवसायों को धन सुरक्षित रखने की सुविधा प्रदान करते हैं।
  3. धन का स्थानांतरण: बैंक धन के स्थानांतरण की प्रक्रिया को सरल बनाते हैं, जैसे- अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर धन स्थानांतरण, चेक द्वारा भुगतान, और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान सेवाएं।
  4. सुरक्षा सेवाएँ: बैंक अपने ग्राहकों के पैसे की सुरक्षा के लिए विभिन्न सुविधाएं जैसे- लॉकर सेवाएँ प्रदान करते हैं। इसके अलावा, बैंकों के पास आधुनिक सुरक्षा प्रणाली होती है, जो पैसे की चोरी और धोखाधड़ी से बचाती है।
  5. बाजार से जुड़ी सेवाएँ: बैंक निवेश, शेयर बाजार से जुड़ी सेवाएं, और म्यूचुअल फंड्स जैसी सेवाएं प्रदान करते हैं, जो निवेशकों को निवेश के अवसरों का लाभ लेने में मदद करती हैं।

5. वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion)

वित्तीय समावेशन का मतलब है कि सभी लोगों को बुनियादी बैंकिंग सेवाएं प्राप्त हों, चाहे वे ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हों या शहरी क्षेत्रों में। इसका उद्देश्य उन लोगों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करना है जो पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली से बाहर हैं। वित्तीय समावेशन से गरीबों और कमजोर वर्गों को बैंकिंग सेवाओं का लाभ मिलता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।

भारत सरकार ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं, जैसे- जन धन योजना, प्रधानमंत्री रोजगार योजना, और अन्य वित्तीय शिक्षा कार्यक्रम। इन योजनाओं का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों तक बैंकिंग सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करना है।

निष्कर्ष

मनी और बैंकिंग प्रणाली देश की आर्थिक प्रगति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। बैंकों द्वारा वित्तीय सेवाओं का वितरण, मुद्रा आपूर्ति का प्रबंधन और मौद्रिक नीतियों का पालन आर्थिक स्थिरता और विकास को सुनिश्चित करता है। वित्तीय समावेशन, केंद्रीय बैंक की नीतियाँ, और बैंकों के कार्य समाज में धन का समुचित वितरण और स्थिरता प्रदान करते हैं। मनी और बैंकिंग के इन पहलुओं को समझना हमारे लिए आवश्यक है, ताकि हम अर्थव्यवस्था के कार्यप्रणाली और विकास के प्रभावी हिस्सेदार बन सकें।

 

1. मनी और बैंकिंग का महत्व क्या है?

उत्तर:

  1. मनी और बैंकिंग प्रणाली अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
  2. बैंकिंग, धन के संचलन में सुधार करता है।
  3. मनी, विनिमय का माध्यम है।
  4. बैंकों के माध्यम से बचत और निवेश बढ़ता है।
  5. यह व्यापार और उद्योग को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  6. मुद्रा और बैंकिंग प्रणाली आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है।
  7. यह वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करती है।
  8. कर्ज की उपलब्धता से उपभोक्ता और व्यवसायी लाभान्वित होते हैं।
  9. मुद्रा नीति में सुधार से मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
  10. बैंकिंग प्रणाली से बेरोज़गारी कम होती है और रोजगार सृजन होता है।

2. बैंकिंग प्रणाली के प्रकार क्या हैं?

उत्तर:

  1. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (Public Sector Banks)
  2. निजी क्षेत्र के बैंक (Private Sector Banks)
  3. सहकारी बैंक (Cooperative Banks)
  4. विदेशी बैंक (Foreign Banks)
  5. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (Regional Rural Banks)
  6. विकास बैंक (Development Banks)
  7. निवेश बैंक (Investment Banks)
  8. वित्तीय संस्थान (Financial Institutions)
  9. केंद्रीय बैंक (Central Bank)
  10. उपभोक्ता बैंक (Consumer Banks)

3. केंद्रीय बैंक की भूमिका क्या है?

उत्तर:

  1. केंद्रीय बैंक मुद्रा का नियंत्रण करता है।
  2. यह बैंकों को रिजर्व देता है।
  3. यह सरकार के बैंकर के रूप में कार्य करता है।
  4. विदेशी मुद्रा का भंडारण करता है।
  5. ब्याज दरों को नियंत्रित करता है।
  6. केंद्रीय बैंक वित्तीय प्रणाली की निगरानी करता है।
  7. मुद्रा नीति की घोषणा करता है।
  8. बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता बनाए रखता है।
  9. यह बैंकों को ऋण प्रदान करता है।
  10. यह वित्तीय संकट के समय में हस्तक्षेप करता है।

4. बैंकिंग में ‘ऋण’ (Loan) का क्या महत्व है?

उत्तर:

  1. ऋण से व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
  2. यह उपभोक्ताओं को अधिक खरीदारी करने की शक्ति देता है।
  3. व्यवसायों के लिए पूंजी प्राप्त करने का एक माध्यम है।
  4. इससे रोजगार सृजन होता है।
  5. छोटे और मझोले उद्योगों को प्रोत्साहन मिलता है।
  6. ब्याज दरों के माध्यम से बैंकों को आय होती है।
  7. देश की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  8. यह बैंकों के लिए लाभकारी होता है।
  9. ऋण की विभिन्न श्रेणियाँ हैं – व्यक्तिगत, व्यापारिक, शिक्षा, आदि।
  10. यह उधारी के माध्यम से उपभोक्ताओं की जीवनशैली में सुधार करता है।

5. मुद्रास्फीति (Inflation) का अर्थ और प्रभाव क्या है?

उत्तर:

  1. मुद्रास्फीति का अर्थ है कीमतों में लगातार वृद्धि।
  2. यह खरीद शक्ति को घटाती है।
  3. मुद्रा का मूल्य कम होता है।
  4. उपभोक्ताओं के खर्च में वृद्धि होती है।
  5. आय के असमान वितरण को बढ़ावा देती है।
  6. बैंकों को उच्च ब्याज दरें निर्धारित करनी पड़ती हैं।
  7. यह निर्यातकों के लिए फायदेमंद हो सकती है।
  8. स्थिरता के लिए इसे नियंत्रित किया जाना चाहिए।
  9. उच्च मुद्रास्फीति से बचत कम होती है।
  10. सरकार और केंद्रीय बैंक के द्वारा इसे नियंत्रित किया जाता है।

6. बैंकिंग प्रणाली में ‘ब्याज दर’ (Interest Rate) का महत्व क्या है?

उत्तर:

  1. ब्याज दर बैंकों की कर्ज देने की लागत को निर्धारित करती है।
  2. यह बचत पर मिलने वाली आय को प्रभावित करती है।
  3. उच्च ब्याज दरों से कर्ज महंगा हो जाता है।
  4. यह उपभोक्ता खर्च को प्रभावित करता है।
  5. बैंकों के लिए यह आय का प्रमुख स्रोत होता है।
  6. ब्याज दरों के द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है।
  7. यह निवेशकों के लिए आकर्षक होती है।
  8. केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को बदलकर अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
  9. यह निवेश के निर्णयों को प्रभावित करती है।
  10. यह अर्थव्यवस्था के समग्र स्वास्थ्य को संकेत देती है।

7. रिजर्व बैंक (RBI) की प्रमुख नीतियाँ क्या हैं?

उत्तर:

  1. मुद्रा नीति का निर्धारण करना।
  2. बैंकों के लिए न्यूनतम रिजर्व अनुपात (CRR) निर्धारित करना।
  3. रेपो दर और रिवर्स रेपो दर का निर्धारण करना।
  4. मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाना।
  5. केंद्रीय बैंक के रूप में काम करना।
  6. वित्तीय प्रणाली की स्थिरता बनाए रखना।
  7. बैंकों के बीच नियामक निगरानी रखना।
  8. विदेशी मुद्रा का प्रबंधन करना।
  9. सरकारी खजाने के लिए उधारी प्रबंधन करना।
  10. बैंकिंग प्रणाली के लिए सुधारात्मक कदम उठाना।

8. ‘बैंक डेफॉल्ट’ (Bank Default) का क्या मतलब है?

उत्तर:

  1. बैंक द्वारा अपने वित्तीय दायित्वों का पालन न करना।
  2. यह बैंकों की वित्तीय स्थिति के बिगड़ने को दर्शाता है।
  3. कर्ज़ चुकाने में असमर्थता को दिखाता है।
  4. ग्राहकों के विश्वास को नुकसान पहुंचता है।
  5. सरकार द्वारा इसे नियंत्रित किया जाता है।
  6. इससे आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता है।
  7. बैंकों का नियमन और निगरानी केंद्रीय बैंक द्वारा की जाती है।
  8. यह बैंकों को पुनर्निर्माण की आवश्यकता दर्शाता है।
  9. इसे ‘निष्क्रिय ऋण’ (Non-Performing Assets) भी कहा जाता है।
  10. बैंक डिफॉल्ट से बचने के लिए बैंकों को रिजर्व रखना होता है।

9. मुद्रास्फीति और डिफ्लेशन (Deflation) में क्या अंतर है?

उत्तर:

  1. मुद्रास्फीति में कीमतें बढ़ती हैं, जबकि डिफ्लेशन में कीमतें घटती हैं।
  2. मुद्रास्फीति से मुद्रा का मूल्य घटता है, जबकि डिफ्लेशन में मुद्रा का मूल्य बढ़ता है।
  3. मुद्रास्फीति से मांग बढ़ती है, जबकि डिफ्लेशन से मांग घटती है।
  4. मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिए विकासकारी हो सकती है, जबकि डिफ्लेशन मंदी का संकेत होता है।
  5. मुद्रास्फीति से ब्याज दरों में वृद्धि होती है, जबकि डिफ्लेशन से ब्याज दरें कम हो सकती हैं।
  6. मुद्रास्फीति से कारोबार को बढ़ावा मिलता है, जबकि डिफ्लेशन से व्यापार में मंदी आती है।
  7. मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना मुश्किल होता है, जबकि डिफ्लेशन को प्रोत्साहित करना मुश्किल होता है।
  8. मुद्रास्फीति से कर्ज लेने की प्रेरणा मिलती है, जबकि डिफ्लेशन से कर्ज चुकाना कठिन हो सकता है।
  9. डिफ्लेशन से व्यापारियों को नुकसान हो सकता है, जबकि मुद्रास्फीति उन्हें लाभ पहुंचाती है।
  10. केंद्रीय बैंक मुद्रा नीति के माध्यम से दोनों को नियंत्रित करने की कोशिश करता है।

10. बैंकिंग में ‘NPAs’ का क्या महत्व है?

उत्तर:

  1. NPA (Non-Performing Assets) से तात्पर्य उन ऋणों से है, जो समय पर भुगतान नहीं किए जाते।
  2. ये बैंक की बैलेंस शीट को प्रभावित करते हैं।
  3. NPAs से बैंकों की लाभप्रदता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  4. इससे बैंक की पूंजी घट सकती है।
  5. NPAs से बैंकों को अधिक ब्याज दरों का निर्धारण करना पड़ सकता है।
  6. यह बैंकों के लिए वित्तीय संकट का संकेत होता है।
  7. NPAs को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक और सरकार द्वारा कदम उठाए जाते हैं।
  8. उच्च NPAs से निवेशकों का विश्वास घटता है।
  9. यह बैंकों को ऋण देने में संकोच करने पर मजबूर करता है।
  10. NPAs के समाधान के लिए विशेष प्राधिकरण जैसे NCLT का गठन किया गया है।

11. बैंकिंग के क्षेत्र में ‘डिजिटलाइजेशन’ का क्या महत्व है?

उत्तर:

  1. डिजिटल बैंकिंग से सेवा की गति बढ़ी है।
  2. यह ग्राहकों को 24×7 सेवा प्रदान करता है।
  3. डिजिटल पेमेंट्स की सुविधा ने लेन-देन को आसान बनाया है।
  4. यह लागत को कम करता है।
  5. डिजिटल बैंकिंग से वित्तीय समावेशन में वृद्धि हुई है।
  6. यह पारदर्शिता और सुरक्षा में सुधार करता है।
  7. डिजिटल बैंकिंग से बैंकों के लिए

अधिक लाभ संभव है। 8. मोबाइल बैंकिंग ने ग्राहकों को आसानी से सेवाएं उपलब्ध कराई हैं। 9. बैंकों की शाखाओं की आवश्यकता कम हुई है। 10. यह बैंकों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाता है।

12. ‘क्रेडिट क्रंच’ का क्या मतलब है?

उत्तर:

  1. जब बैंक लोन देने में संकोच करते हैं तो उसे क्रेडिट क्रंच कहा जाता है।
  2. यह आमतौर पर आर्थिक संकट के समय होता है।
  3. इसमें कर्ज की उपलब्धता घट जाती है।
  4. इसे ‘वित्तीय संकुचन’ भी कहा जाता है।
  5. इससे अर्थव्यवस्था में मंदी आ सकती है।
  6. बैंकों का जोखिम बढ़ने के कारण यह स्थिति उत्पन्न होती है।
  7. इसका प्रभाव छोटे व्यापारियों पर ज्यादा पड़ता है।
  8. क्रेडिट क्रंच से बेरोजगारी बढ़ सकती है।
  9. यह केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप से नियंत्रित किया जा सकता है।
  10. क्रेडिट क्रंच से वित्तीय संस्थाओं को भी नुकसान हो सकता है।

13. ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की संरचना क्या है?

उत्तर:

  1. भारतीय रिजर्व बैंक की मुख्यालय मुंबई में स्थित है।
  2. इसका संचालन गवर्नर और उप-गवर्नरों द्वारा किया जाता है।
  3. RBI का कार्यकुशल संचालन 4 उप-गवर्नरों द्वारा होता है।
  4. यह समिति द्वारा वित्तीय नीतियों का निर्धारण करती है।
  5. RBI के पास मुद्रा जारी करने का अधिकार है।
  6. यह भारत सरकार के वित्तीय सलाहकार के रूप में काम करता है।
  7. RBI की कार्यप्रणाली का निर्धारण भारतीय संसद द्वारा होता है।
  8. यह बैंकिंग प्रणाली के साथ मिलकर काम करता है।
  9. RBI के पास विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन है।
  10. यह राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली को नियंत्रित करता है।

14. ‘ब्याज दर’ और ‘लाभप्रदता’ का आपसी संबंध क्या है?

उत्तर:

  1. ब्याज दरें सीधे लाभप्रदता को प्रभावित करती हैं।
  2. उच्च ब्याज दरें बैंकों के लिए अधिक आय का स्रोत होती हैं।
  3. कर्ज़ लेने की लागत बढ़ने से उपभोक्ता खर्च में कमी आती है।
  4. यह निवेशकों के निर्णयों को प्रभावित करती है।
  5. उधारी पर ब्याज अधिक होने से लाभप्रदता में कमी हो सकती है।
  6. बैंक अपने ब्याज दरों को लाभप्रदता के अनुसार समायोजित करते हैं।
  7. उच्च ब्याज दरें बैंकों को अधिक कर्ज़ देने में संकोच करवा सकती हैं।
  8. यह बैंक की समग्र वित्तीय स्थिति को प्रभावित करता है।
  9. बैंकों द्वारा तय की जाने वाली ब्याज दरों से उद्योग की गति प्रभावित होती है।
  10. इसे समग्र अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण रखने के लिए सही दिशा में निर्धारित किया जाता है।

15. ‘बैंक रिस्क’ (Bank Risk) के प्रकार क्या हैं?

उत्तर:

  1. क्रेडिट जोखिम – ऋण चुकाने में असमर्थता।
  2. ब्याज दर जोखिम – ब्याज दरों में बदलाव से होने वाली हानि।
  3. मुद्रास्फीति जोखिम – मुद्रास्फीति के कारण मूल्य में गिरावट।
  4. विदेशी मुद्रा जोखिम – विदेशी मुद्रा दरों में उतार-चढ़ाव।
  5. तरलता जोखिम – पूंजी की कमी या दायित्वों को समय पर न चुकाना।
  6. मार्केट जोखिम – बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण होने वाली हानि।
  7. ऑपरेशनल जोखिम – प्रणालीगत असफलताएँ या मानव त्रुटियाँ।
  8. ऋण पुनर्निर्माण जोखिम – कर्ज़ के पुनर्भुगतान में समस्याएँ।
  9. देशीय जोखिम – विशेष देशों में वित्तीय संकट।
  10. संपत्ति का मूल्य गिरने का जोखिम – संपत्तियों की कीमत में कमी।

16. ‘बैंक फेल्योर’ (Bank Failure) के कारण क्या हो सकते हैं?

उत्तर:

  1. एनपीए में वृद्धि – अधिक कर्ज़ का भुगतान न होना।
  2. तरलता संकट – पर्याप्त नकद राशि की कमी।
  3. व्यवस्थापकीय खराब निर्णय – गलत निवेश रणनीतियाँ।
  4. अपर्याप्त पूंजी – निवेश के लिए पर्याप्त पूंजी की कमी।
  5. आर्थिक मंदी – अर्थव्यवस्था के संकट से बैंक प्रभावित होते हैं।
  6. ब्याज दर में अत्यधिक परिवर्तन – बाजार के उतार-चढ़ाव।
  7. घोटाले – धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार से बैंक को नुकसान।
  8. किसी विशिष्ट क्षेत्र का संकट – जैसे रियल एस्टेट, कृषि, आदि।
  9. संवेदनशीलता – बाजार के उतार-चढ़ाव से त्वरित प्रतिक्रिया।
  10. नियामकीय जांच की कमी – कमजोर नियमों और निगरानी की वजह से।

17. ‘वित्तीय समावेशन’ (Financial Inclusion) का उद्देश्य क्या है?

उत्तर:

  1. सभी नागरिकों को बैंकिंग सेवाओं का लाभ मिलना।
  2. निर्धन और पिछड़े वर्गों को वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्रदान करना।
  3. कर्ज़, बचत और बीमा की सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
  4. डिजिटल भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देना।
  5. गरीबों के लिए सरल वित्तीय उत्पादों की सुलभता।
  6. सशक्त बनाना ताकि लोग अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकें।
  7. समाज में वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देना।
  8. क्षेत्रीय और ग्रामीण बैंकों के माध्यम से सेवाओं का प्रसार।
  9. आर्थिक असमानताओं को कम करना।
  10. विकासशील देशों में समग्र विकास में योगदान करना।

18. ‘गोल्ड स्टैंडर्ड’ (Gold Standard) क्या है?

उत्तर:

  1. गोल्ड स्टैंडर्ड प्रणाली में मुद्रा का मूल्य सोने से तय होता था।
  2. इसमें मुद्रा के निर्गमन की सीमा सोने के भंडार पर आधारित होती थी।
  3. यह 19वीं शताब्दी के अंत तक प्रचलित था।
  4. इस प्रणाली में मुद्रा की स्थिरता सुनिश्चित होती थी।
  5. यह केंद्रीय बैंक द्वारा संचालित होती थी।
  6. मुद्रा को सोने से बदलने का अधिकार था।
  7. यह मुद्रा के मानक के रूप में काम करता था।
  8. यह प्रणाली व्यापार और अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन के लिए उपयुक्त थी।
  9. 20वीं सदी के मध्य में यह प्रणाली समाप्त हो गई।
  10. गोल्ड स्टैंडर्ड को आधुनिक फियाट करेंसी से बदल दिया गया।

19. ‘संकट’ (Crisis) के समय बैंकों को किस प्रकार की सहायता मिलती है?

उत्तर:

  1. केंद्रीय बैंक बैंकों को संकटकालीन ऋण प्रदान करता है।
  2. सरकार बैंकों के लिए पुनर्निर्माण योजनाएँ लागू करती है।
  3. अंतर्राष्ट्रीय संगठन जैसे IMF सहायता प्रदान करते हैं।
  4. वित्तीय सहायता से बैंकों की तरलता सुनिश्चित की जाती है।
  5. बैंकों को ब्याज दरों में राहत मिलती है।
  6. ऋण पुनर्गठन योजनाएँ लागू होती हैं।
  7. सरकार बैंकों के संकट को नियंत्रित करने के लिए नियमों में छूट देती है।
  8. विशेषज्ञों की सहायता से वित्तीय स्थिति सुधारी जाती है।
  9. प्रमुख संपत्तियों के अधिग्रहण की योजनाएँ बनाई जाती हैं।
  10. संकट के समय केंद्रीय बैंक द्वारा तरलता सहायता दी जाती है।

20. बैंकिंग प्रणाली में ‘अर्थशास्त्र’ का क्या योगदान है?

उत्तर:

  1. यह बैंकिंग प्रक्रियाओं के सिद्धांतों को समझाता है।
  2. अर्थशास्त्र के सिद्धांतों से ऋण के प्रवाह का निर्धारण होता है।
  3. वित्तीय संकट और समाधान के उपायों पर विचार करता है।
  4. मुद्रा और वित्तीय नीतियों के प्रभाव का विश्लेषण करता है।
  5. बैंक की लाभप्रदता और वित्तीय स्थिरता का अध्ययन करता है।
  6. यह बैंकों को बेहतर निर्णय लेने में मदद करता है।
  7. वित्तीय बाजारों के उतार-चढ़ाव को समझाता है।
  8. मांग और आपूर्ति के सिद्धांतों के आधार पर ब्याज दरें निर्धारित होती हैं।
  9. यह वित्तीय समावेशन की आवश्यकता को दर्शाता है।
  10. आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए बैंकों को रणनीतियाँ सुझाता है।

21. ‘ऑनलाइन बैंकिंग’ के फायदे क्या हैं?

उत्तर:

  1. यह बैंकों की सेवाओं को हर समय उपलब्ध कराता है।
  2. इसमें लंबी कतारों से बचत होती है।
  3. पैसे ट्रांसफर करने की प्रक्रिया तेज होती है।
  4. यह उपभोक्ताओं के लिए सुरक्षित और आसान होता है।
  5. ऑनलाइन लेन-देन में समय की बचत होती है।
  6. यह मोबाइल और कंप्यूटर दोनों पर उपलब्ध है।
  7. इसमें व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा मजबूत होती है।
  8. खर्च कम होता है, क्योंकि शाखाओं की आवश्यकता

नहीं होती। 9. यह बैंक के लिए भी लागत प्रभावी है। 10. विभिन्न प्रकार की सेवाएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं।

22. ‘नकद प्रबंधन’ (Cash Management) का बैंकिंग में क्या महत्व है?

उत्तर:

  1. नकद प्रबंधन से बैंकों की तरलता बनाए रखी जाती है।
  2. यह ऋण की भुगतान क्षमता सुनिश्चित करता है।
  3. इसकी मदद से बैंकों को अपने निवेशों को सुव्यवस्थित करने में सहायता मिलती है।
  4. यह बचत और खर्च के बीच संतुलन बनाए रखता है।
  5. नकद प्रबंधन बैंकों के ऑपरेशनल लागत को कम करता है।
  6. बैंकों को असंभावित संकटों के लिए तैयार करता है।
  7. यह बैंकों को अपनी दीर्घकालिक रणनीतियों में मदद करता है।
  8. नकद प्रबंधन से बैंकों की वित्तीय स्थिरता बनाए रहती है।
  9. इसके माध्यम से बैंकों की भविष्यवाणी क्षमता में सुधार होता है।
  10. नकद प्रबंधन के उपायों से बैंकों की आय बढ़ाई जाती है।

 

23. ‘बैंकिंग सेक्टर में सुधार’ (Banking Sector Reforms) के क्या उद्देश्य हैं?

उत्तर:

  1. बैंकिंग प्रणाली की दक्षता बढ़ाना।
  2. बैंकों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना।
  3. ऋण वितरण की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना।
  4. बैंकिंग में डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देना।
  5. वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करना।
  6. बैंकों के जोखिम प्रबंधन को सुधारना।
  7. गैर-निष्पादित ऋण (NPA) की दर को घटाना।
  8. ग्राहकों के लिए बेहतर बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना।
  9. बैंकों के स्वामित्व और प्रबंधन संरचना को सुधारना।
  10. बैंकों की पूंजी व्यवस्था को मजबूत बनाना।

24. ‘नोटबंदी’ (Demonetization) का बैंकिंग प्रणाली पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर:

  1. बैंकों में जमा राशि में वृद्धि हुई।
  2. डिजिटल भुगतान में वृद्धि हुई।
  3. नोटबंदी के कारण बैंकों की नकदी आपूर्ति पर असर पड़ा।
  4. काले धन के प्रवाह में कमी आई।
  5. बैंकों में अधिक ट्रांजैक्शन हुआ।
  6. बैंकिंग प्रणाली में पारदर्शिता बढ़ी।
  7. छोटे और मझोले व्यापारियों को नकदी संकट का सामना करना पड़ा।
  8. ऋण लेने की प्रक्रिया थोड़ी धीमी हो गई।
  9. सरकार ने बैंकों को अधिक निगरानी करने के लिए कहा।
  10. वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला।

25. ‘दीनदयाल अंत्योदय योजना’ (Deendayal Antyodaya Yojana) का बैंकिंग में क्या योगदान है?

उत्तर:

  1. यह योजना गरीबों को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ने के लिए है।
  2. इसके तहत, गरीबों को माइक्रो फाइनेंस का लाभ मिलता है।
  3. यह बैंकिंग संस्थानों को ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार करने में मदद करती है।
  4. यह वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देती है।
  5. योजना के तहत, गरीबों को सस्ती ब्याज दरों पर ऋण मिलता है।
  6. यह योजना महिलाओं को भी आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है।
  7. ग्रामीण विकास में योगदान करती है।
  8. यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम है।
  9. योजना के द्वारा गरीब परिवारों को सुरक्षा का एहसास होता है।
  10. इससे सरकारी योजनाओं का लाभ ज्यादा लोगों तक पहुंचता है।

26. ‘बैंकिंग धोखाधड़ी’ (Banking Fraud) के प्रकार क्या हैं?

उत्तर:

  1. चेक धोखाधड़ी – नकली चेक का उपयोग करना।
  2. क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी – गलत तरीके से कार्ड की जानकारी प्राप्त करना।
  3. फर्जी ऋण आवेदन – बिना योग्यत के ऋण लेना।
  4. संपत्ति धोखाधड़ी – संपत्ति के दस्तावेजों में हेराफेरी।
  5. ऑनलाइन धोखाधड़ी – इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से धोखाधड़ी।
  6. बैंक कर्मचारियों द्वारा धोखाधड़ी – बैंक के अंदर कर्मचारियों द्वारा धोखाधड़ी।
  7. फर्जी दस्तावेज़ तैयार करना – झूठे दस्तावेज़ों के आधार पर कर्ज़ लेना।
  8. उधारी धोखाधड़ी – उधारी का भुगतान न करना।
  9. ऑपरेशनल धोखाधड़ी – सिस्टम में हेराफेरी द्वारा वित्तीय हानि।
  10. बीमा धोखाधड़ी – बीमा कंपनियों के माध्यम से धोखाधड़ी।

27. ‘सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम’ (MSME) के लिए बैंकिंग सेवाएँ क्या हैं?

उत्तर:

  1. बैंकों द्वारा MSME को सस्ती ब्याज दरों पर कर्ज़ मिलता है।
  2. बैंकों द्वारा MSME के लिए विशेष ऋण योजनाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं।
  3. बैंकों द्वारा इन उद्यमों के लिए आसान ऋण पुनर्भुगतान योजनाएँ दी जाती हैं।
  4. MSME को तकनीकी और वित्तीय मार्गदर्शन मिलता है।
  5. यह योजनाएँ उनकी पूंजी संरचना को बेहतर बनाती हैं।
  6. बैंकों द्वारा MSME को सुरक्षित भुगतान सेवाएं प्रदान की जाती हैं।
  7. MSME को उच्च गुणवत्ता वाले निवेश विकल्प मिलते हैं।
  8. बैंकों द्वारा MSME के लिए डिजिटल प्लेटफार्म उपलब्ध कराए जाते हैं।
  9. सरकार द्वारा MSME के लिए विशेष वित्तीय सहायता योजनाएँ लागू की जाती हैं।
  10. यह योजनाएँ MSME को बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाए रखने में मदद करती हैं।

28. ‘बैंकिंग के अनुकूल डिजिटल भुगतान प्रणाली’ (Digital Payment Systems) के लाभ क्या हैं?

उत्तर:

  1. यह लेन-देन को तेज और सरल बनाती है।
  2. डिजिटल भुगतान से नकदी की आवश्यकता कम होती है।
  3. यह उपभोक्ताओं के लिए अधिक सुरक्षा और पारदर्शिता प्रदान करती है।
  4. डिजिटल भुगतान से बैंकों को अधिक ट्रांजैक्शन शुल्क मिलता है।
  5. इससे व्यापारियों का संचालन सरल हो जाता है।
  6. डिजिटल भुगतान से कर प्रणाली को बढ़ावा मिलता है।
  7. यह ग्राहकों को 24×7 भुगतान सेवाएं उपलब्ध कराती है।
  8. यह वित्तीय समावेशन में मदद करती है।
  9. यह काले धन को कम करने में सहायक है।
  10. यह देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सरल बनाता है।

29. ‘वित्तीय नीति’ (Monetary Policy) क्या है?

उत्तर:

  1. यह केंद्रीय बैंक द्वारा तय की जाती है।
  2. इसका उद्देश्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है।
  3. यह ब्याज दरों को निर्धारित करती है।
  4. केंद्रीय बैंक द्वारा मुद्रा की आपूर्ति नियंत्रित की जाती है।
  5. इसके द्वारा समग्र आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया जाता है।
  6. इसमें रिजर्व अनुपात (CRR) और रेपो दर जैसी व्यवस्थाएँ होती हैं।
  7. यह आम तौर पर एक वित्तीय वर्ष के लिए निर्धारित की जाती है।
  8. इसका लक्ष्य आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है।
  9. यह मुद्रा नीति और क्रेडिट को नियंत्रण में रखती है।
  10. इसके माध्यम से केंद्रीय बैंक ऋण की उपलब्धता को प्रभावित करता है।

30. ‘मुद्रा’ (Currency) के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

उत्तर:

  1. कागज़ी मुद्रा – जैसे 10, 20, 50, 100, 500 और 2000 रुपये के नोट।
  2. सिक्के – 1, 2, 5, 10 रुपये के सिक्के।
  3. डिजिटल मुद्रा – जैसे क्रिप्टोकरेंसी (Bitcoin, Ethereum आदि)।
  4. विदेशी मुद्रा – अन्य देशों की मुद्रा, जैसे अमेरिकी डॉलर।
  5. मेटलिक मुद्रा – सोने, चांदी या अन्य धातु से बनी मुद्रा।
  6. स्मार्ट कार्ड – जैसे डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड।
  7. बैंक नोट – केंद्रीय बैंक द्वारा जारी की जाने वाली कागज़ी मुद्रा।
  8. वायदा मुद्रा – वह मुद्रा जो भविष्य में भुगतान के लिए होती है।
  9. वर्चुअल मुद्रा – जो केवल ऑनलाइन लेन-देन के लिए प्रयोग होती है।
  10. मुद्रा सट्टा – विदेशी मुद्रा बाजार में व्यापारित होने वाली मुद्रा।

 

 

31. ‘मुद्रास्फीति’ (Inflation) क्या है और इसके प्रभाव क्या होते हैं?

उत्तर:

  1. मुद्रास्फीति का मतलब है वस्त्रों और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि।
  2. यह कीमतों के सामान्य स्तर में समय के साथ निरंतर वृद्धि होती है।
  3. इससे उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति घटती है।
  4. मुद्रास्फीति उच्च ब्याज दरों को जन्म देती है।
  5. यह गरीब और मध्य वर्ग के लिए आर्थिक दबाव बढ़ाता है।
  6. मुद्रास्फीति निवेशकों के लिए अनिश्चितता उत्पन्न कर सकती है।
  7. यह उद्योगों के लिए उत्पादन लागत बढ़ाती है।
  8. केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए नीतियाँ बनाता है।
  9. मुद्रास्फीति से मुद्रा की मूल्यह्रास हो सकता है।
  10. नियंत्रित मुद्रास्फीति आर्थिक वृद्धि को प्रेरित कर सकती है।

32. ‘संकटकालीन वित्तीय उपाय’ (Crisis Financial Measures) क्या होते हैं?

उत्तर:

  1. केंद्रीय बैंक संकट के समय बैंकों को आपातकालीन ऋण प्रदान करता है।
  2. सरकार बैंकों के लिए वित्तीय पैकेज की घोषणा करती है।
  3. बैंकों को अपने ऋण पुनर्गठन कार्यक्रमों को लागू करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
  4. बैंकों को पूंजी बढ़ाने के लिए शेयर जारी करने की अनुमति मिलती है।
  5. संकट के समय ब्याज दरों में कटौती की जाती है।
  6. वित्तीय संस्थाएँ अपने जोखिम को कम करने के लिए नए उपाय अपनाती हैं।
  7. बैंकों को एक दूसरे से नकद राशि उधार देने की अधिक स्वतंत्रता मिलती है।
  8. वित्तीय संस्थाओं के लिए सरकार गारंटी प्रदान करती है।
  9. बैंकों को नियामक छूट दी जाती है।
  10. संकट के दौरान वित्तीय बाजारों को स्थिर रखने के लिए केंद्रीय बैंक हस्तक्षेप करता है।

33. ‘बैंक ट्रांसफर’ (Bank Transfer) की प्रक्रिया क्या है?

उत्तर:

  1. बैंक ट्रांसफर का मतलब एक खाता से दूसरे खाते में धन का स्थानांतरण है।
  2. यह किसी भी बैंक खाते से दूसरे खाते में राशि भेजने की प्रक्रिया है।
  3. यह प्रक्रिया ऑनलाइन या ऑफलाइन हो सकती है।
  4. NEFT, RTGS और IMPS बैंक ट्रांसफर के प्रमुख तरीके हैं।
  5. इसमें ट्रांसफर शुल्क लगाया जा सकता है।
  6. यह प्रक्रिया सटीक और सुरक्षित होती है।
  7. ट्रांसफर के लिए प्राप्तकर्ता के बैंक खाता विवरण की आवश्यकता होती है।
  8. एक बैंक से दूसरे बैंक में धन भेजने के लिए SWIFT का उपयोग किया जाता है।
  9. ऑनलाइन ट्रांसफर में ज्यादा समय नहीं लगता और यह त्वरित होता है।
  10. यह प्रक्रिया दोनों पक्षों को बैंक द्वारा पुष्टिकरण प्रदान की जाती है।

34. ‘स्मार्ट बैंकिंग’ (Smart Banking) क्या है?

उत्तर:

  1. स्मार्ट बैंकिंग डिजिटल प्लेटफार्म पर आधारित बैंकिंग सेवाओं का एक रूप है।
  2. इसमें ऑनलाइन बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग और एटीएम सेवाएँ शामिल हैं।
  3. यह उपयोगकर्ताओं को किसी भी स्थान से बैंकों की सेवाओं का उपयोग करने की सुविधा प्रदान करता है।
  4. स्मार्ट बैंकिंग में लेन-देन की प्रक्रिया अधिक तेज और सुरक्षित होती है।
  5. इसमें ग्राहकों को मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से खातों की स्थिति देखने, बिल भुगतान करने आदि की सुविधा मिलती है।
  6. यह बिना शाखाओं के भी बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
  7. इसमें स्मार्ट कार्ड और पर्सनल फाइनेंस मैनेजमेंट टूल्स का उपयोग होता है।
  8. बैंकिंग को सरल बनाने के लिए नई तकनीकों का समावेश होता है।
  9. स्मार्ट बैंकिंग में डेटा सुरक्षा और प्राइवेसी पर ध्यान दिया जाता है।
  10. यह व्यापारियों और उपभोक्ताओं के लिए एक सहज अनुभव प्रदान करता है।

35. ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ (RBI) की प्रमुख भूमिका क्या है?

उत्तर:

  1. भारतीय रिजर्व बैंक देश का केंद्रीय बैंक है और इसके पास मुद्रा जारी करने का अधिकार है।
  2. यह देश की मौद्रिक नीति को निर्धारित करता है।
  3. यह वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए काम करता है।
  4. RBI बैंकिंग प्रणाली की निगरानी और विनियमन करता है।
  5. यह मुद्रा स्फीति और मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करता है।
  6. RBI का काम सरकारी खजाने का संचालन करना है।
  7. यह विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन करता है।
  8. यह सार्वजनिक ऋण का प्रबंधन भी करता है।
  9. RBI के पास बैंकिंग संस्थाओं को पंजीकरण और लाइसेंस प्रदान करने का अधिकार है।
  10. RBI बैंकों को ऋण देने के लिए आवश्यक नीतियां और दिशा-निर्देश प्रदान करता है।

36. ‘क्रेडिट रेटिंग’ (Credit Rating) का बैंकिंग क्षेत्र में क्या महत्व है?

उत्तर:

  1. क्रेडिट रेटिंग से एक व्यक्ति या संस्था की ऋण चुकाने की क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है।
  2. यह बैंकों को यह निर्णय लेने में मदद करता है कि उन्हें कर्ज़ देना चाहिए या नहीं।
  3. उच्च क्रेडिट रेटिंग से ब्याज दरों में कमी आ सकती है।
  4. यह निवेशकों को जोखिम का अनुमान लगाने में मदद करती है।
  5. बैंकों को जोखिम प्रबंधन में सहायता मिलती है।
  6. यह वित्तीय संस्थाओं को अपने ऋण पोर्टफोलियो को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  7. यह संस्थाओं के लिए वित्तीय स्वास्थ्य का एक संकेतक है।
  8. यह ऋण देने के लिए आवश्यक शर्तों को निर्धारित करता है।
  9. क्रेडिट रेटिंग की जानकारी को कर्ज़दाता और निवेशक ध्यान से देखते हैं।
  10. यह आर्थिक नीतियों में सुधार को प्रभावित करता है।

37. ‘न्यूनतम बैलेंस’ (Minimum Balance) क्या है?

उत्तर:

  1. न्यूनतम बैलेंस वह राशि है जो खाता धारक को अपने खाते में हमेशा बनाए रखनी होती है।
  2. इसे बैंक द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  3. यदि खाता धारक इस न्यूनतम राशि से कम बैलेंस रखता है, तो उसे शुल्क देना पड़ सकता है।
  4. यह बैंकों को खाता प्रबंधन की सुविधा प्रदान करता है।
  5. कुछ खातों में बिना शुल्क के न्यूनतम बैलेंस की आवश्यकता होती है।
  6. यह बैंकों को तरलता बनाए रखने में मदद करता है।
  7. इस बैलेंस को बचत खातों और चालू खातों में लागू किया जाता है।
  8. यह उपभोक्ताओं को बैंकिंग सेवाओं की सही तरीके से उपयोग करने के लिए प्रेरित करता है।
  9. कुछ बैंकों में विशेष योजनाओं के तहत न्यूनतम बैलेंस की आवश्यकता नहीं होती।
  10. न्यूनतम बैलेंस के उल्लंघन पर बैंकों द्वारा शुल्क लिया जाता है।

38. ‘लेटर ऑफ क्रेडिट’ (Letter of Credit) क्या है?

उत्तर:

  1. यह एक वित्तीय दस्तावेज है जो बैंक द्वारा जारी किया जाता है।
  2. इसे व्यापारिक लेन-देन में सुरक्षा प्रदान करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  3. यह बैंक की ओर से विक्रेता को भुगतान की गारंटी देता है।
  4. यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में विशेष रूप से उपयोगी होता है।
  5. यह शर्तों के अनुसार भुगतान की पुष्टि करता है।
  6. यह बैंक के द्वारा जारी किया जाता है और इसमें बैंक का वचन होता है।
  7. लेटर ऑफ क्रेडिट से व्यापारी को जोखिम कम होता है।
  8. यह खरीदारी में भरोसा और सुरक्षा प्रदान करता है।
  9. इसे भुगतान के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  10. यह दोनों पक्षों के बीच विवादों से बचने में मदद करता है।

39. ‘बैंक के राष्ट्रीयकरण’ (Nationalization of Banks) का क्या महत्व था?

उत्तर:

  1. बैंक के राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना था।
  2. यह राज्य के नियंत्रण में बैंकिंग सेवाओं को लाता है।
  3. यह बैंकों को गरीबों और किसानों को कर्ज़ देने के लिए प्रेरित करता है।
  4. यह सरकारी नीतियों के तहत बैंकिंग की सेवा को विस्तार देता है।
  5. राष्ट्रीयकरण से बैंकिंग क्षेत्र में सरकारी भूमिका को बढ़ावा मिलता है।
  6. इससे बैंकों की कार्यप्रणाली में सुधार हुआ।
  7. यह बैंकों को अधिक अनुशासन और जवाबदेही प्रदान करता है।
  8. राष्ट्रीयकरण से बैंकिंग प्रणाली को सशक्त किया गया।
  9. यह सार्वजनिक संपत्ति के रूप में बैंकिंग संस्थाओं को रखता है।
  10. इससे छोटे उद्योगों को कर्ज़ और वित्तीय मदद मिलती है।

40. ‘रेपो रेट’ (Repo Rate) क्या है और इसका बैंकिंग प्रणाली पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर:

  1. रेपो रेट वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक बैंकों को पैसे उधार देता है।
  2. यह ब्याज दर बैंक के लिए ऋण

प्राप्त करने की लागत को निर्धारित करती है। 3. रेपो रेट में वृद्धि से ब्याज दरों में बढ़ोतरी होती है। 4. यह मुद्रा आपूर्ति को प्रभावित करता है। 5. केंद्रीय बैंक इसका उपयोग मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए करता है। 6. रेपो रेट में कमी से ऋण सस्ता होता है और निवेश बढ़ता है। 7. यह बैंकों को केंद्रीय बैंक से ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। 8. रेपो रेट का सीधे तौर पर कर्ज लेने की दरों पर असर पड़ता है। 9. इसे केंद्रीय बैंक द्वारा मौद्रिक नीति के तहत तय किया जाता है। 10. रेपो रेट में परिवर्तन से पूरे बैंकिंग क्षेत्र में प्रभाव पड़ता है।

 

41. ‘बैंकिंग प्रणाली’ (Banking System) क्या है?

उत्तर:

  1. बैंकिंग प्रणाली वह संरचना है जिसमें विभिन्न बैंकों और वित्तीय संस्थाओं का समावेश होता है।
  2. यह ऋण, बचत, निवेश, और मुद्रा आपूर्ति से संबंधित सेवाएं प्रदान करती है।
  3. बैंकिंग प्रणाली में केंद्रीय बैंक, वाणिज्यिक बैंक और सहकारी बैंक शामिल होते हैं।
  4. यह प्रणाली अर्थव्यवस्था में धन के प्रवाह को नियंत्रित करती है।
  5. बैंकिंग प्रणाली का उद्देश्य वित्तीय सेवाएं प्रदान करना और मुद्रा का प्रबंधन करना है।
  6. यह सरकार की मौद्रिक नीति के तहत कार्य करती है।
  7. बैंकों के पास ऋण देने, जमा स्वीकार करने और मुद्रा चलाने की अनुमति होती है।
  8. बैंकिंग प्रणाली की सहायता से आर्थिक विकास में योगदान होता है।
  9. यह प्रणाली आर्थिक गतिविधियों को स्थिर और संतुलित रखने के लिए काम करती है।
  10. बैंकों की गतिविधियों को केंद्रीय बैंक द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

42. ‘बैंकिंग सब्सिडी’ (Banking Subsidy) क्या है?

उत्तर:

  1. बैंकिंग सब्सिडी वह वित्तीय सहायता है जो सरकार द्वारा बैंकों को प्रदान की जाती है।
  2. यह सब्सिडी आमतौर पर गरीब वर्ग और कृषि क्षेत्र के लिए होती है।
  3. यह ऋणों की ब्याज दरों में कमी के रूप में दी जाती है।
  4. इसका उद्देश्य लोगों को सस्ती और सुलभ बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करना है।
  5. यह विशेष योजनाओं के तहत ऋण प्रदान करने में मदद करती है।
  6. सरकार बैंकिंग क्षेत्र में वित्तीय समावेशन बढ़ाने के लिए सब्सिडी देती है।
  7. बैंकिंग सब्सिडी से किसानों को भी लाभ होता है।
  8. इसका उद्देश्य छोटे और मझोले व्यवसायों को समर्थन देना है।
  9. यह सब्सिडी ऋणों के पुनर्भुगतान के लिए भी दी जा सकती है।
  10. यह योजनाएं बैंकों को आर्थिक विकास में मदद करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

43. ‘एनपीए’ (NPA – Non Performing Assets) क्या है और इसका अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता है?

उत्तर:

  1. एनपीए वह ऋण होते हैं जो समय पर चुकाए नहीं जाते हैं।
  2. जब बैंकों द्वारा दिया गया ऋण 90 दिनों तक चुकाया नहीं जाता, तो उसे एनपीए माना जाता है।
  3. एनपीए का मतलब है कि ऋणदाता का पैसा जोखिम में होता है।
  4. इसका अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह बैंकों की तरलता को प्रभावित करता है।
  5. एनपीए से बैंक का लाभ कम हो जाता है।
  6. बैंकों को नए ऋण देने में कठिनाई होती है क्योंकि वे पहले से चुकाए गए ऋणों से परेशान होते हैं।
  7. एनपीए की वृद्धि से बैंकों की वित्तीय स्थिति कमजोर होती है।
  8. इसके कारण बैंकों को अधिक प्रावधानों (Provisioning) की आवश्यकता होती है।
  9. एनपीए के कारण निवेशकों का विश्वास कम हो सकता है।
  10. इसके समाधान के लिए सरकार और बैंक दोनों को मिलकर कदम उठाने पड़ते हैं।

44. ‘कृषि ऋण’ (Agricultural Loan) क्या है?

उत्तर:

  1. कृषि ऋण किसानों को कृषि गतिविधियों के लिए बैंकों द्वारा दिया जाता है।
  2. यह ऋण किसानों को उनके खेतों की देखभाल, बीज, खाद, और उपकरण खरीदने में मदद करता है।
  3. सरकार द्वारा कृषि ऋण पर सब्सिडी और कम ब्याज दरें दी जाती हैं।
  4. यह ऋण फसल की उगाई के लिए और पशुपालन के लिए भी दिया जाता है।
  5. किसानों को यह ऋण आमतौर पर शॉर्ट टर्म या लांग टर्म के लिए मिलता है।
  6. कृषि ऋण का उद्देश्य कृषि क्षेत्र को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना है।
  7. यह ऋण ब्याज दरों में छूट और अन्य सुविधाएं प्रदान करता है।
  8. किसानों को ऋण की चुकौती के लिए विशेष योजनाओं का पालन करने की आवश्यकता होती है।
  9. कृषि ऋण से ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और रोजगार सृजन होता है।
  10. इस ऋण की वापसी की अवधि और शर्तें सरकार के निर्णय पर निर्भर करती हैं।

45. ‘मोनेटरी पॉलिसी’ (Monetary Policy) का उद्देश्य क्या है?

उत्तर:

  1. मोनेटरी पॉलिसी का उद्देश्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है।
  2. यह केंद्रीय बैंक के द्वारा तय की जाती है।
  3. इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है।
  4. यह ब्याज दरों को नियंत्रित कर अर्थव्यवस्था को संतुलित करती है।
  5. मोनेटरी पॉलिसी मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करती है।
  6. यह उधारी की लागत और ऋण देने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है।
  7. इसका उद्देश्य काले धन के प्रवाह को नियंत्रित करना है।
  8. यह निवेश और बचत के बीच संतुलन बनाए रखती है।
  9. मोनेटरी पॉलिसी के द्वारा बेरोजगारी की दर को भी नियंत्रित किया जाता है।
  10. यह आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार की नीतियों का समर्थन करती है।

46. ‘सोने का मानक’ (Gold Standard) क्या है?

उत्तर:

  1. सोने का मानक वह प्रणाली है जिसमें मुद्रा का मूल्य सोने से जुड़ा होता है।
  2. इस प्रणाली के तहत, मुद्रा का आदान-प्रदान सोने के मूल्य के आधार पर किया जाता है।
  3. यह प्रणाली बैंकिंग में एक स्थिरता और सुरक्षा प्रदान करती है।
  4. सोने का मानक मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  5. यह प्रणाली वैश्विक व्यापार के लिए एक आम मूल्य निर्धारण प्रणाली थी।
  6. इसके तहत, प्रत्येक मुद्रा का मूल्य सोने के भंडार से तय किया जाता था।
  7. सोने का मानक सरकार को मुद्रा में अधिक कागज जारी करने से रोकता था।
  8. यह आर्थिक संकट के दौरान मुद्रा अवमूल्यन को रोकता था।
  9. 20वीं शताब्दी में अधिकांश देशों ने इसे छोड़ दिया था।
  10. इस प्रणाली के द्वारा वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित होती थी।

47. ‘नेट बैंकिंग’ (Net Banking) क्या है?

उत्तर:

  1. नेट बैंकिंग, जिसे इंटरनेट बैंकिंग भी कहा जाता है, एक ऑनलाइन सेवा है।
  2. इसके द्वारा ग्राहक अपनी बैंकिंग सेवाओं का उपयोग इंटरनेट के माध्यम से कर सकते हैं।
  3. नेट बैंकिंग में खातों की स्थिति देखना, धन ट्रांसफर करना, और बिल भुगतान करना शामिल है।
  4. यह सुविधा 24×7 उपलब्ध होती है, जिससे ग्राहकों को सुविधा मिलती है।
  5. नेट बैंकिंग से कागजी लेन-देन में कमी आती है और समय की बचत होती है।
  6. यह प्रणाली पूरी तरह से सुरक्षित होती है, जो ग्राहकों की जानकारी को संरक्षित रखती है।
  7. ग्राहकों को बैंक शाखाओं में जाने की आवश्यकता नहीं होती है।
  8. यह बैंकिंग क्षेत्र में डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देती है।
  9. नेट बैंकिंग का उपयोग कर लोग धन को जल्दी और आसानी से ट्रांसफर कर सकते हैं।
  10. इसके द्वारा बैंक अपनी सेवाओं को अधिक सुलभ और पारदर्शी बनाता है।

48. ‘वित्तीय समावेशन’ (Financial Inclusion) क्या है?

उत्तर:

  1. वित्तीय समावेशन का उद्देश्य वित्तीय सेवाओं को हर वर्ग तक पहुँचाना है।
  2. इसका मुख्य उद्देश्य गरीबों, किसानों और ग्रामीण इलाकों में वित्तीय सेवाएँ प्रदान करना है।
  3. यह बैंकों को अपनी शाखाओं का विस्तार करने के लिए प्रेरित करता है।
  4. वित्तीय समावेशन से लोगों को बचत, ऋण और बीमा जैसी सुविधाओं का लाभ मिलता है।
  5. इसका उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है।
  6. सरकार ने कई योजनाओं के माध्यम से वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया है।
  7. यह अर्थव्यवस्था में धन का प्रवाह बढ़ाता है और विकास को उत्तेजित करता है।
  8. बैंकिंग क्षेत्र में डिजिटलीकरण से वित्तीय समावेशन में मदद मिलती है।
  9. यह बेरोजगारी को कम करने में भी सहायक है।
  10. वित्तीय समावेशन से लोगों को आर्थिक स्वतंत्रता और सुरक्षा मिलती है।

49. ‘रेगुलेटरी बैंकिंग’ (Regulatory Banking) क्या है?

उत्तर:

  1. रेगुलेटरी बैंकिंग में केंद्रीय बैंक या नियामक संस्थाएँ बैंकिंग गतिविधियों पर निगरानी रखती हैं।
  2. इसका उद्देश्य वित्तीय स्थिरता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।
  3. यह बैंकों को ऋण देने, जमा स्वीकार करने, और अन्य वित्तीय गतिविधियों पर नियम और दिशानिर्देश प्रदान करता है।
  4. रेगुलेटरी बैंकिंग के द्वारा बैंकिंग जोखिमों को नियंत्रित किया जाता है।
  5. इसके तहत बैंक अपनी पूंजी संरचना और लिक्विडिटी पर नियंत्रण रखते हैं।
  6. यह

प्रणाली बैंकों को ग्राहकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार ठहराती है। 7. रेगुलेटरी बैंकिंग का उद्देश्य बैंकिंग धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार से बचाव करना है। 8. यह बैंकों के जोखिम प्रबंधन और नियामक अनुपालन की निगरानी करता है। 9. केंद्रीय बैंक और वित्तीय नियामक संस्था इस प्रक्रिया के तहत कार्य करते हैं। 10. रेगुलेटरी बैंकिंग से बैंकों का संचालन पारदर्शी और विश्वसनीय बनता है।

50. ‘बैंकिंग साक्षरता’ (Banking Literacy) क्या है?

उत्तर:

  1. बैंकिंग साक्षरता का मतलब है वित्तीय सेवाओं और बैंकिंग प्रक्रियाओं की समझ।
  2. इसका उद्देश्य लोगों को बैंकिंग उत्पादों और सेवाओं के बारे में शिक्षित करना है।
  3. यह बैंकों द्वारा ग्राहकों को सही तरीके से वित्तीय सेवाएँ उपलब्ध कराने की प्रक्रिया है।
  4. बैंकिंग साक्षरता से लोग बेहतर तरीके से वित्तीय निर्णय ले सकते हैं।
  5. यह वित्तीय योजना, निवेश, बचत, और ऋण प्रबंधन पर केंद्रित होती है।
  6. इसके द्वारा लोगों को विभिन्न बैंकिंग टूल्स और ऐप्स का सही उपयोग सिखाया जाता है।
  7. यह समाज में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देता है।
  8. सरकार और बैंक कई तरह की प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से बैंकिंग साक्षरता बढ़ाते हैं।
  9. यह धोखाधड़ी और वित्तीय जोखिमों से बचने में मदद करता है।
  10. बैंकिंग साक्षरता से ग्राहकों को अपनी वित्तीय स्थिति को सुधारने में सहायता मिलती है।

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