History of Nationalism in Modern India 1857 to 1947 AD

History of Nationalism in Modern India 1857 to 1947 AD

 

आधुनिक भारत में राष्ट्रीयता का इतिहास (1857 से 1947)

भारत में राष्ट्रीयता का विकास एक लंबी और कठिन प्रक्रिया थी, जो 1857 से लेकर 1947 तक विभिन्न आंदोलनों, संघर्षों और ऐतिहासिक घटनाओं के माध्यम से हुआ। इस दौरान भारतीय समाज ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। भारतीय राष्ट्रीयता की यह यात्रा भारतीय समाज, राजनीति और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करने वाली थी।

1857 का विद्रोह: प्रारंभिक संघर्ष

1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला युद्ध कहा जाता है, भारतीय राष्ट्रीयता के प्रारंभिक चरण के रूप में माना जाता है। यह विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ एक विशाल संघर्ष था, जो दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, मेरठ और अन्य स्थानों पर फैला। हालांकि यह विद्रोह असफल रहा, फिर भी इसने भारतीयों में अपने अधिकारों के लिए जागरूकता पैदा की। विद्रोह की असफलता के बाद ब्रिटिश शासन ने भारतीयों पर कठोर दमन किया, लेकिन यह विद्रोह भारतीयों में एक नई सोच और स्वतंत्रता की भावना पैदा करने वाला था।

ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार और भारतीय समाज पर प्रभाव

1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में अपनी पकड़ मजबूत कर ली और देश में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए। औद्योगिक क्रांति के प्रभाव, रेलवे का निर्माण, और प्रशासनिक सुधारों के कारण भारतीय समाज में नए सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हुए। हालांकि, भारतीयों ने इन परिवर्तनों को अपने पक्ष में नहीं देखा, क्योंकि इनका उद्देश्य केवल ब्रिटिश साम्राज्य की मजबूती था। यह काल भारतीय राष्ट्रीयता के गठन की प्रक्रिया का आरंभिक चरण था, जिसमें भारतीय समाज ने अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होने की आवश्यकता को महसूस किया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885)

1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की स्थापना हुई, जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रमुख संगठन बन गया। इसका उद्देश्य भारतीयों के अधिकारों की रक्षा करना और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करना था। प्रारंभ में कांग्रेस ने सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाया, लेकिन धीरे-धीरे यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता प्राप्ति की ओर बढ़ा। कांग्रेस ने भारतीयों को राजनीतिक जागरूकता और उनके अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाने का कार्य किया।

1890-1905: साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ असंतोष

19वीं शताबदी के अंतिम दशकों में भारतीय समाज में असंतोष बढ़ने लगा। ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयों की दमनकारी नीतियों, जैसे आयकर बढ़ाना, भूमि राजस्व में वृद्धि करना, और सांस्कृतिक धरोहर को दबाना, ने भारतीयों में विरोध की भावना को उभार दिया। इस समय में भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में जागरूकता फैलने लगी।

स्वदेशी आंदोलन (1905) और बंगाल विभाजन का विरोध इस समय की प्रमुख घटनाएँ थीं। 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ, जिसे अंग्रेजों ने भारतीयों के बीच धर्म और जाति के आधार पर असहमति उत्पन्न करने के उद्देश्य से किया था। इस विभाजन के विरोध में व्यापक आंदोलन हुआ, जिसे स्वदेशी आंदोलन के रूप में जाना जाता है। इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीयता को एकजुट किया और यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक विरोध में बदल गया।

गांधीजी का आगमन और असहमति आंदोलन (1915-1947)

महात्मा गांधी का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रवेश 1915 में हुआ। गांधीजी ने अपनी सत्य और अहिंसा की नीति से भारतीयों को एकजुट किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध का रास्ता अपनाया। 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीयों को आक्रोशित किया, और इसके बाद गांधीजी ने असहमति आंदोलन (Non-Cooperation Movement) की शुरुआत की। इस आंदोलन का उद्देश्य भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विद्रोह करने के लिए प्रेरित करना था।

गांधीजी का यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीयता के विकास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उन्होंने स्वदेशी वस्त्रों का उपयोग, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, और ब्रिटिश संस्थाओं का बहिष्कार करने की अपील की। यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया और भारतीयों के बीच एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। गांधीजी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ निर्णायक संघर्ष किया।

नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930)

1930 में गांधीजी ने नमक सत्याग्रह (Salt March) का नेतृत्व किया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। गांधीजी ने दांडी यात्रा की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ नमक बनाने पर ब्रिटिश कर को चुनौती दी। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीयता के एक और प्रतीक बन गया। इसके बाद गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें भारतीयों ने ब्रिटिश कानूनों को न मानने का संकल्प लिया। यह आंदोलन भी बहुत व्यापक हुआ और भारतीयों में एकजुटता की भावना को प्रगति दी।

द्वितीय विश्व युद्ध और भारतीय राजनीति

द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक नया मोड़ आया। ब्रिटिश सरकार ने भारत को युद्ध में शामिल होने के लिए बाध्य किया, लेकिन भारतीय नेताओं ने स्वतंत्रता की मांग की। 1942 में गांधीजी ने ‘Quit India Movement’ (भारत छोड़ो आंदोलन) की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से तुरंत भारतीय स्वतंत्रता की मांग की। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक निर्णायक संघर्ष बन गया और भारतीयों की राष्ट्रीयता को और मजबूत किया।

मुस्लिम लीग और विभाजन

मुस्लिम लीग, जो 1906 में स्थापित हुई थी, ने धीरे-धीरे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से अलग दिशा में कदम बढ़ाया। 1940 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की, जो अंततः भारतीय विभाजन का कारण बनी। कांग्रेस ने विभाजन का विरोध किया, लेकिन मुस्लिम लीग के दबाव के कारण 1947 में भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान का निर्माण हुआ।

निष्कर्ष

1857 से 1947 तक भारतीय राष्ट्रीयता का विकास एक संघर्षपूर्ण प्रक्रिया थी। इस दौरान भारतीयों ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विविध आंदोलनों के माध्यम से अपने अधिकारों की रक्षा की और स्वतंत्रता प्राप्ति की दिशा में अग्रसर हुए। महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह जैसे नेताओं ने भारतीय राष्ट्रीयता को एक नया रूप दिया। 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली, और भारतीय राष्ट्रीयता का एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ।


1. प्रश्न: 1857 का विद्रोह भारतीय राष्ट्रीयता के विकास में किस प्रकार महत्वपूर्ण था?
उत्तर:

  1. 1857 का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला संगठित आंदोलन था।
  2. इसे ‘सिपाही विद्रोह’ या ‘भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम’ भी कहा जाता है।
  3. यह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारतीयों के असंतोष का प्रतीक था।
  4. विद्रोह में सभी वर्गों ने भाग लिया, लेकिन यह असफल हो गया।
  5. इसने भारतीयों में एकता और आत्मसम्मान की भावना को जन्म दिया।
  6. विद्रोह ने भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एकजुट होने का प्रेरित किया।
  7. इसके बाद भारतीय राष्ट्रीयता के आंदोलन को एक नई दिशा मिली।
  8. इसे एक कड़ा संदेश मिला कि ब्रिटिश शासन को चुनौती दी जा सकती है।
  9. 1857 ने भारतीय जनमानस में राष्ट्रवाद की बीज बोई।
  10. यह स्वतंत्रता संग्राम की नींव बनी।

2. प्रश्न: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन कब और क्यों हुआ था?
उत्तर:

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन 1885 में हुआ।
  2. इसकी स्थापना के पीछे ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों की एकजुटता का विचार था।
  3. पहले यह एक संगठन था जो ब्रिटिश प्रशासन के साथ सहयोगी था।
  4. धीरे-धीरे, यह भारतीयों के राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाला संगठन बन गया।
  5. इसकी स्थापना के मुख्य उद्देश्य भारतीयों को एक मंच प्रदान करना था।
  6. कांग्रेस ने भारत में स्वराज की मांग की शुरुआत की।
  7. यह भारतीय राष्ट्रीयता के विचार को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कदम था।
  8. कांग्रेस ने 1906 में ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग की।
  9. यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक केंद्रीय भूमिका निभाने लगा।
  10. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने राष्ट्रवाद को एक स्थिर दिशा दी।

3. प्रश्न: सवाराज या पूर्ण स्वराज की अवधारणा किसने दी थी?
उत्तर:

  1. सावरकर और लोकमान्य तिलक जैसे नेताओं ने ‘पूर्ण स्वराज’ की अवधारणा दी थी।
  2. यह विचार 1900 के दशक की शुरुआत में लोकप्रिय हुआ।
  3. लोकमान्य तिलक ने ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा दिया।
  4. इस नारे ने भारतीयों में स्वतंत्रता के लिए उत्साह पैदा किया।
  5. तिलक के नेतृत्व में कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध बढ़ाया।
  6. यह विचार भारतीयों को आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रेरित करता था।
  7. सावरकर ने इसे संगठित विद्रोह और ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ संघर्ष के रूप में समझा।
  8. पूर्ण स्वराज की अवधारणा ने राष्ट्रवाद की भावना को और मजबूत किया।
  9. यह राष्ट्रीय आंदोलन की प्रमुख मांग बन गई।
  10. बाद में गांधीजी ने इसे अपनी राजनीतिक रणनीति में शामिल किया।

4. प्रश्न: गांधीजी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में किस प्रकार की भूमिका निभाई?
उत्तर:

  1. महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रभावशाली नेता बने।
  2. उन्होंने सत्याग्रह और अहिंसा की नीति अपनाई।
  3. गांधीजी ने 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में असहमति जताई।
  4. गांधीजी का 1919 में असहमति आंदोलन ने बड़े पैमाने पर जन जागरूकता बढ़ाई।
  5. उन्होंने नमक सत्याग्रह (1930) और Quit India Movement (1942) का नेतृत्व किया।
  6. गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ आर्थिक और सामाजिक संघर्ष किया।
  7. उन्होंने खादी और स्वदेशी वस्त्रों के उपयोग का आह्वान किया।
  8. उनका नेतृत्व भारतीय समाज के विभाजन को एकजुट करने में मददगार रहा।
  9. उनका अहिंसक आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों का सबसे बड़ा हथियार बन गया।
  10. गांधीजी की नीतियों से भारतीय राष्ट्रीयता को नई दिशा मिली।

5. प्रश्न: असहमति आंदोलन (Non-Cooperation Movement) का महत्व क्या था?
उत्तर:

  1. असहमति आंदोलन 1920 में गांधीजी द्वारा शुरू किया गया था।
  2. यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रतिरोध का पहला बड़ा आंदोलन था।
  3. आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के साथ सहयोग न करना था।
  4. इसमें छात्रों, वकीलों और व्यापारियों का समर्थन मिला।
  5. आंदोलन में भारत में ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार किया गया।
  6. इस आंदोलन ने भारतीय समाज में एक नई जागरूकता उत्पन्न की।
  7. गांधीजी ने स्वदेशी उत्पादों को अपनाने पर जोर दिया।
  8. आंदोलन के दौरान असहमति और सत्याग्रह के सिद्धांतों का पालन किया गया।
  9. आंदोलन के कारण ब्रिटिश शासन को कठिनाई हुई।
  10. यह भारतीय राष्ट्रीयता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।

6. प्रश्न: भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के कारण और परिणाम क्या थे?
उत्तर:

  1. भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में गांधीजी द्वारा शुरू किया गया था।
  2. यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक निर्णायक संघर्ष था।
  3. इस आंदोलन के दौरान भारत भर में हड़तालें, प्रदर्शन और असहमति गतिविधियाँ हुईं।
  4. गांधीजी ने ‘Do or Die’ का नारा दिया।
  5. ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए सख्त कदम उठाए।
  6. हजारों स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार किया गया।
  7. आंदोलन असफल रहा, लेकिन इसने भारतीयों को एकजुट किया।
  8. आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीयता को एक नई ऊर्जा दी।
  9. यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण की शुरुआत थी।
  10. यह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ व्यापक असहमति को दर्शाता था।

7. प्रश्न: स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Movement) का उद्देश्य और प्रभाव क्या था?
उत्तर:

  1. स्वदेशी आंदोलन 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ शुरू हुआ था।
  2. इसका उद्देश्य ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार करना और स्वदेशी वस्त्रों का प्रचार करना था।
  3. स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय उद्योगों और वस्त्र उद्योगों को बढ़ावा दिया।
  4. इस आंदोलन में भारतीयों ने अंग्रेजों के खिलाफ अपने उत्पादों को प्राथमिकता दी।
  5. आंदोलन ने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ाया।
  6. इसमें छात्रों और व्यापारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  7. स्वदेशी आंदोलन के कारण ब्रिटिश साम्राज्य को वित्तीय नुकसान हुआ।
  8. यह आंदोलन भारतीय राजनीतिक जागरूकता के बढ़ने का प्रतीक था।
  9. आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध को और मजबूत किया।
  10. स्वदेशी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण कड़ी था।

8. प्रश्न: जलियांवाला बाग हत्याकांड का भारतीय राष्ट्रीयता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  1. जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 में हुआ था।
  2. ब्रिटिश जनरल डायर ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलवाईं।
  3. इस घटना में सैकड़ों भारतीयों की मौत हो गई।
  4. यह घटना भारतीयों के दिलों में गहरी चोट के रूप में अंकित हो गई।
  5. इस हत्याकांड ने भारतीयों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ गहरी नफरत पैदा की।
  6. इसके परिणामस्वरूप असहमति आंदोलन और राष्ट्रीय संघर्ष को और बढ़ावा मिला।
  7. यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।
  8. गांधीजी ने इस घटना को ब्रिटिश शासन की क्रूरता का प्रतीक बताया।
  9. जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय राष्ट्रीयता की भावना को तीव्र किया।
  10. यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण घटना बन गई।

9. प्रश्न: गांधीजी का छाती फाड़ने वाला आंदोलन (Salt March) क्यों महत्वपूर्ण था?
उत्तर:

  1. गांधीजी ने 1930 में नमक सत्याग्रह (Salt March) शुरू किया।
  2. यह ब्रिटिश शासन द्वारा लगाए गए नमक कर के खिलाफ विरोध था।
  3. गांधीजी ने 240 मील लंबी यात्रा की और नमक बनाने के अधिकार की मांग की।
  4. इस आंदोलन ने भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट किया।
  5. नमक सत्याग्रह के कारण ब्रिटिश साम्राज्य को अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना करना पड़ा।
  6. गांधीजी ने अहिंसक प्रतिरोध की नीति का पालन किया।
  7. इस आंदोलन ने भारतीयों में आत्मनिर्भरता और स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा दिया।
  8. यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीयता का एक मजबूत प्रतीक बन गया।
  9. नमक सत्याग्रह

ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
10. यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था।


10. प्रश्न: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में मुस्लिम लीग की भूमिका क्या थी?
उत्तर:

  1. मुस्लिम लीग का गठन 1906 में हुआ था।
  2. इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के अधिकारों की रक्षा करना था।
  3. मुस्लिम लीग ने शुरू में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ सहयोग किया।
  4. 1940 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के निर्माण की मांग की।
  5. यह विभाजन और दो देशों के निर्माण का प्रमुख कारण बना।
  6. मुस्लिम लीग ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के साथ अलग दिशा में कदम बढ़ाए।
  7. यह विभाजन की प्रक्रिया को तेज करने का कारण बनी।
  8. मुस्लिम लीग ने अपनी आवाज को मजबूत करने के लिए भारत के विभाजन की मांग की।
  9. 1947 में भारतीय विभाजन और पाकिस्तान के गठन की अनुमति दी।
  10. मुस्लिम लीग की भूमिका भारतीय राष्ट्रीयता की दिशा में महत्वपूर्ण थी।

 


11. प्रश्न: इंडियन नेशनल कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद किस प्रकार बढ़े?
उत्तर:

  1. शुरुआत में, कांग्रेस और मुस्लिम लीग का उद्देश्य समान था।
  2. दोनों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया, लेकिन उनके दृष्टिकोण अलग थे।
  3. कांग्रेस ने भारतीय राष्ट्रीयता को बढ़ावा दिया, जबकि मुस्लिम लीग ने मुस्लिम समुदाय के अधिकारों की रक्षा की।
  4. 1906 में मुस्लिम लीग का गठन हुआ, जो मुस्लिम समुदाय के हितों को ध्यान में रखते हुए काम करने लगी।
  5. कांग्रेस ने भारतीय एकता पर जोर दिया, जबकि मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग प्रतिनिधित्व की मांग की।
  6. 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच लखनऊ समझौता हुआ, जिसमें दोनों के बीच सहयोग बढ़ा।
  7. हालांकि, 1940 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की, जिससे दोनों के बीच मतभेद और बढ़े।
  8. कांग्रेस ने पाकिस्तान की मांग का विरोध किया, जबकि मुस्लिम लीग ने इसे अपना मुख्य लक्ष्य बना लिया।
  9. यह मतभेद 1947 में विभाजन के रूप में सामने आए।
  10. कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच विभाजन भारतीय राष्ट्रीयता की दिशा में एक अहम मोड़ था।

12. प्रश्न: विभाजन और भारत-पाकिस्तान का निर्माण क्यों हुआ?
उत्तर:

  1. विभाजन के कारण भारतीय समाज में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़े।
  2. मुस्लिम लीग ने 1940 में पाकिस्तान की मांग की, जिसे कांग्रेस ने नकारा।
  3. कांग्रेस ने भारत के एकजुट रहने की बात की, लेकिन मुस्लिम लीग ने अलग राष्ट्र की आवश्यकता बताई।
  4. विभाजन के कारण दोनों देशों में सांप्रदायिक दंगे और हिंसा की घटनाएँ बढ़ीं।
  5. गांधीजी और नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने स्वतंत्रता की प्राप्ति को प्राथमिकता दी।
  6. 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के साथ पाकिस्तान का निर्माण हुआ।
  7. यह विभाजन लाखों लोगों की जान और संपत्ति के नुकसान का कारण बना।
  8. विभाजन ने भारतीय राष्ट्रीयता को एक नए रूप में आकार दिया।
  9. इसने भारतीय समाज को धार्मिक, सांप्रदायिक और राजनीतिक विभाजन का सामना कराया।
  10. विभाजन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का दुखद परिणाम था।

13. प्रश्न: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस का योगदान क्या था?
उत्तर:

  1. सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे।
  2. उन्होंने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा’ का नारा दिया।
  3. बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से असहमत होकर, इंडियन नेशनल आर्मी (INA) की स्थापना की।
  4. उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान और जर्मनी से समर्थन प्राप्त करने की कोशिश की।
  5. सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक अंतरराष्ट्रीय आयाम दिया।
  6. उनकी INA ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ संघर्ष किया और भारतीयों में नई उम्मीद जागृत की।
  7. उनका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य को भारतीय भूमि से बाहर निकालना था।
  8. बोस ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक नई रणनीति अपनाई।
  9. उनका योगदान भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के लिए बहुत महत्वपूर्ण था।
  10. सुभाष चंद्र बोस का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान भारतीय राष्ट्रीयता के इतिहास में अमिट रहेगा।

14. प्रश्न: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिला नेताओं की भूमिका क्या थी?
उत्तर:

  1. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  2. रानी लक्ष्मीबाई, जिन्होंने झांसी की रानी के रूप में ब्रिटिशों से संघर्ष किया, एक प्रमुख महिला नेता थीं।
  3. सशस्त्र संघर्ष के साथ-साथ महिलाओं ने असहमति आंदोलन और विभाजन के दौरान सक्रिय भूमिका निभाई।
  4. अरुणा आसफ अली ने Quit India Movement के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  5. कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने समाज सुधार के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम में भी योगदान दिया।
  6. सरोजिनी नायडू ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रमुख नेता के रूप में कार्य किया।
  7. कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर अहिंसा और सत्याग्रह के आंदोलनों में योगदान दिया।
  8. महिलाओं ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों और आंदोलनों में हिस्सा लिया।
  9. भारतीय महिलाओं ने भारतीय राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल किया।
  10. महिला नेताओं की भूमिका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है।

15. प्रश्न: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भगत सिंह का योगदान क्या था?
उत्तर:

  1. भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के युवा नेता थे।
  2. उनका प्रमुख उद्देश्य ब्रिटिश शासन को हिंसक प्रतिरोध के माध्यम से उखाड़ फेंकना था।
  3. उन्होंने 1929 में दिल्ली विधानसभा में बम फेंका, जिससे ब्रिटिश सरकार को संदेश दिया गया।
  4. भगत सिंह ने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा दिया, जो स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया।
  5. उनका विश्वास था कि हिंसा के माध्यम से ही ब्रिटिश शासन को उखाड़ा जा सकता है।
  6. भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद और राजगुरु के साथ मिलकर कई क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया।
  7. उन्हें 1931 में फांसी दी गई, लेकिन उनका बलिदान भारतीयों के लिए प्रेरणा बना।
  8. भगत सिंह का योगदान भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
  9. उनके संघर्ष ने भारतीय युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
  10. भगत सिंह भारतीय राष्ट्रीयता के एक महान प्रतीक बन गए, जिनकी वीरता आज भी प्रेरणा देती है।

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NOTES

History of the Modern World 1858 AD to 1945 AD

History Of India 1757 to 1857 AD

History of the Modern World 1858 AD to 1945 AD

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