शिशु मृत्यु दर का उल्लेख कीजिए
Explain Infant Mortality Rate .
शिशु मृत्यु दर समाज की स्वास्थ्यप्रद स्थिति की सर्वश्रेष्ठ सूचकांक मानी जाती हैं । शिशु मृत्यु दर जितनी कम होगी , जीवन स्तर और जन स्वास्थ्य उतना ही अच्छा होगा तथा प्रजनन दर भी कम होगी क्योंकि वहाँ बच्चों के जीवित रहने की सम्भावना भी अधिक होती है । इसके विपरीत , जहाँ शिशु मृत्यु दर अधिक होती है वहाँ प्रजनन दर भी अधिक होती है । शिशु मृत्यु दर को ज्ञात करने के लिए जीवन के प्रथम वर्ष में हुई मृत्यु दर को इस विशिष्ट समय में हुए जन्मों से भाग दिया जाता है । प्राप्त संख्या को शिशु मृत्यु दर कहा जाता है और जब कभी यह मृत्यु दर प्रति हजार जन्मों पर निकाली जाती है तो प्राप्त भाजनफल को 1000 से गुणा कर दिया जाता है ।
शिशु मृत्यु दर ( Infant Mortality Rate ) शिशु मृत्यु से तात्पर्य आयु के पहले वर्ष की मृत्युओं से है । यह वर्ष जीवन तालिका को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला वर्ष होता है क्योंकि वृद्धावस्था अतिरिक्त सामान्यतया इस वर्ष में होने वाली मृत्युओं की संख्या आयु के किसी अन्य वर्ग की अपेक्षा अधिक ही होती है । इसकी गणना सूत्र निम्न प्रकार है किसी निश्चित वर्ष और क्षेत्र में एक वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की मृत्यु संख्या जनांकिकी- II शिशु मृत्यु दर = -x1000 उसी वर्ष व क्षेत्र में सजीव जन्मे शिशुओं की संख्या Do – 1 अथवा , शिशु मृत्यु दर ( I.M.R. ) = x 1000 B जहाँ , Do – 1 = जीवन के प्रथम वर्ष पूर्ण होने से पूर्व सजीव जन्मे शिशुओं की मृत्यु संख्या नवजात शिशु मृत्यु दर = B = उस वर्ष विशेष में हुए सजीव जन्मे शिशुओं की संख्या शिशु मृत्यु दर को आयु के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जाता है ( i ) नवजात शिशु मृत्यु दर तथा ( ii ) नवजन्मोत्तर काल शिशु मृत्यु दर । ( i ) नवजात शिशु मृत्यु दर ( Neo – natal Mortality Rate ) – यह एक आयु – विशिष्ट मृत्यु दर है इसमें चार सप्ताह अथवा एक माह से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर का अध्ययन किया जाता है । इसकी गणना सूत्र निम्न प्रकार है किसी निश्चित वर्ष और क्षेत्र में एक माह से कम आयु वाले बच्चों की मृत्यु संख्या उसी वर्ष व क्षेत्र में सजीव जन्मे शिशुओं की संख्या x1000
भारत में जन स्वास्थ्य Do 28 B जहाँ , Do- 28 = किसी वर्ष के अन्तर्गत पंजीकृत मृत्युएँ जिनकी आयु 28 दिन या एक माह से कम या इसके बराबर हो । B = उसी वर्ष के अन्तर्गत जन्मे बच्चो की संख्या ( ii ) नवजन्मोत्तर काल शिशु मृत्यु दर ( Post Neo – natal Mortality | Bate ) – प्रथम चार सप्ताह के बाद वर्ष के शेष 48 सप्ताहों में हुई मृत्यु को इसमें सम्मिलित किया जाता है । इसकी गणना भी उपरोन्त गणना के समान होती है । सामान्य रूप से प्रथम चार सप्ताहों में जी शिशु मृत्युएँ होती है वे शारीरिक एवं इन्द्रिय सम्बन्धी समस्याओं के कारण होती हैं जो पूर्व – परिपक्व जन्मों के कारण आ जाते इसके विपरीत , अगले 48 सप्ताहों में होने वाली मृत्युएं अधिकतर अस्वास्थ्यकर निवास स्थिति , गन्दी वस्तुओं को खाने और कुपोषण आदि के कारण होती हैं । जिन राष्ट्रों में शिशु मृत्यु अनुपात कम होता है वह केवल नव जन्म काल के उपरान्त वाले 48 सप्ताहो में होने वाली मृत्युओं के नियन्त्रण के कारण ही होता है । ब्रोग के अनुसार , शिशु मृत्यु की दृष्टि से नव जन्मोत्तर काल के सप्ताह अधिक घातक होते हैं क्योंकि नवजात शिशु जन्म के प्रथम चार सप्ताहो में माँ के दूध पर जीवित रहता है । अतः वह पर्यावरण के प्रदूषण से प्रभावित नहीं होता । इस समयावधि में मृत्यु की सम्भावनाएँ उतनी नहीं होती जितनी नवजन्मोत्तर काल में । अर्थात् नवजात शिशु मृत्यु दर = 113 x 1000 / द्वितीय काल में शिशु प्रदूषित वातावरण का सामना करता है और माँ के दूध के अतिरिक्त अन्य आहार , भी लेना प्रारम्भ करता है । इस अवधि में शिशु की देखभाल भी अपेक्षाकृत कम हो जाती है । अतः उनकी मृत्यु की सम्भावनाएँ भी बढ़ जाती हैं । सामान्यतया जो क्षेत्र एवं देश आर्थिक दृष्टि से पिछड़े होते हैं और जहाँ अशिक्षा है । तथा जनस्वास्थ्य व चिकित्सा की सुविधाओं का अभाव है वहाँ शिशु मृत्यु दर अधिक होती है । इसके विपरीत , विशिष्ट सुविधाओं की उपलब्धता के कारण विकसित देशों में शिशु मृत्यु दर अपेक्षाकृत कम होती है ।
शिशु मृत्यु दर को प्रभावित करने वाले तत्त्व
( Factors Influencing Infant Mortality ) –
शिशु मृत्यु दर को प्रभावित करने वाले तत्त्वों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है
( i ) जन्म सम्बन्धी कारक- जन्म सम्बन्धी कारकों में सामान्यतया शारीरिक एवं इन्द्रिय सम्बन्धी विकारों को सम्मिलित किया जाता है । जैसे – अपरिपक्व जन्म , जन्मजात भ्रष्ट रचना , दम घुटना , जन्म का घाव , प्रसूति ज्वर , अप्रशिक्षित नर्स तथा समय पर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध न होना आदि ।
( ii ) बाह्य कारक – इन कारकों में वे तत्त्व आते हैं जो जन्मोत्तर काल की शिशु मृत्यु दर के लिए उत्तरदायी होते हैं । उदाहरण के लिए माता – पिता का अशिक्षित होना , गरीबी , प्रदूषित वातावरण , संक्रामक रोग , पीलिया , निमोनिया , दुर्घटना , कुपोषण आदि ।