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एकीकरण

एकीकरण

 (INTEGRATION)

एकीकरण वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें समाज की विभिन्न इकाइयाँ समाहित होकर एक पूर्ण इकाई बन जाती है।  सहयोगी सामाजिक प्रक्रियाओं में एकीकरण भी एक प्रमुख प्रक्रिया है।  इस प्रक्रिया के द्वारा सामाजिक संरचना और सामाजिक व्यवस्था की विभिन्न उपप्रणालियों के बीच इस तरह एकता विकसित होती है जिसमें कई विभिन्न प्रकार को कुशलतापूर्वक पूरा किया जा सके। साधारण बोलचाल की भाषा में ‘एकीकरण’ का अर्थ एकता (एकजुटता) या रवैया दोनों और विचारो की समानता होती है।  समाजशास्त्र में सामाजिक प्रक्रिया के रूप में एकीकरण का अभिप्राय भिन्न है।  विभिन्न विद्वानों ने एकीकरण के सम्बन्ध में अपने – अपने विचार व्यक्त किए है _ _ _

 आगवर्ण और निमकॉफ (Ogburn & Nimkoff) ने इसकी परिभाषा देते हुए लिखा है, “एकीकरण का तात्पर्य उन बन्धनों हैं: जो कई इकाइयों के बीच एक विशेष प्रणाली को हैं।  विकसित करने के लिए पाया जाता है। इनकी बातो से स्पष्ट होता है कि किसी सामाजिक संरचना या सामाजिक व्यवस्था का निर्माण जिन बहुत – सी इकाइयों से होता है, इन सभी इकाइयों  का एक – दूसरे से सम्बद्ध रहकर अपने – अपने निर्धारित प्रकारों को पूरा करने की दशा को एकीकरण कहा जाता है। उदाहरण वाक्य जब सामाजिक व्यवस्था के कई निर्णायक इकाइयों – अस्तित्व दायित्व, सामाजिक स्तरीकरण की प्रणाली (जाति व्यवस्था), शक्ति और अधिकारों की व्यवस्था।  सामाजिक मल्यो और कई स्थितियों आदि का योगदान होता है, तो यह दशा को सामाजिक एकीकरण कहता है। यह दूसरा उदाहरण है सम  जा सकता है। यदि समाज को एक समग्र के रूप में देखते हैं तो परिवार, धर्म, दायित्व, राजनीति, अर्थव्यवस्था और कानून आदि इसकी निर्णायक इकाइयों है। जब ये सभी एक – दूसरे से संबंधितधत रहकर सम्पूर्ण समाज को समेकित बनाता है तब यह  एकीकरण ने कहा। 

 गिलिन और गिलिन (गिलिन और गिलिन) ने लिखा है, “एकीकरण समरूपता न हो संगठन है। कहने का अभिप्राय यह है कि किसी समाज का निर्माण करने वाले समूहों के विचारों और मूल्यों का सर्वथा समान होना नहीं बल्कि उनकी भावनाओं, दृष्टिकोण और व्यवहारों में है।  एक ऐसा संगठन होना आवश्यक है जिससे सामाजिक व्यवस्था मजबूत हो सके इसी दृष्टिकोण से ऑगवर्न और निमकॉफ ने बताया कि “एकीकरण का तात्पर्य विभिन्न समूहों के बी।  च पाए जाने वाले सहकर्मी संबंधी स्थितियों से है।  ” अर्थात् एकीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो सामाजिक संगठन में वृद्धि करता है।  वास्तव में पूर्ण एकीकरण की दशा किसी भी समाज में संभव नहीं है, क्योकि सामाजिक, सांस्कृतिक आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था में तेजी से परिवर्तन हो रहा है और इस परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले असंतुलन को दर करने के लिए एक नए एकीकरण की आवश्यकता होने लगती है।  ।  यह चक्र हमेशा चलता रहता है। 

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