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– Yes 15. Writing Style: Dynamic Intro (3-4 sentences, unique) – Yes 16. Question Mix: Balanced (Thinkers, Concepts, Institutions, Methods, Indian Society, Rural/Urban, Problems) – Yes (Crucial, will ensure variety) 17. Content Focus: Quiz, no preamble – Yes 18. Question/Solution Format: Numbered list (1-25) – Yes 19. Solution Format: “Detailed Explanation” – Yes 20. Detailed Explanation: Correctness, Context/Elaboration, Incorrect Options – Yes 21. Format: [–SEO_TITLE–],

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      22. All Content in Hindi – Yes (Crucial, will translate all content)
      23. Nothing after [–END_CONTENT–] – Yes

      Confidence Score: 5/5

      Mental Sandbox:
      * I need to ensure the Hindi translations are accurate and convey the sociological nuances.
      * The questions must be distinct and cover a broad spectrum of sociology for effective daily practice.
      * Explanations need to be concise yet informative, providing enough context for learning. For incorrect options, simply stating they are wrong isn’t enough; a brief reason is needed.
      * The introduction must be energetic and in Hindi.
      * I will manually construct 25 questions and explanations, ensuring variety as per the instructions.

      Key Learnings from Sandbox:
      * Careful selection of Hindi terminology is critical.
      * Balancing difficulty and breadth is important for a “high-value” quiz.
      * Ensuring each explanation adds pedagogical value is key to the “insightful” requirement.

      Strategizing complete. I will now proceed with generating the response following these steps.
      [–SEO_TITLE–]समाजशास्त्र की धुरी: अपने ज्ञान को परखने का सुनहरा अवसर!
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      समाजशास्त्र की धुरी: अपने ज्ञान को परखने का सुनहरा अवसर!

      समाजशास्त्र के अभ्यर्थियों, आपका स्वागत है आज के विशेष अभ्यास सत्र में! अपनी अवधारणात्मक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को परखने के लिए तैयार हो जाइए। हर दिन की तरह, आज भी हम समाजशास्त्र के विविध आयामों से 25 चुने हुए प्रश्न लेकर आए हैं, जिनके विस्तृत विश्लेषण से आपकी तैयारी को नई दिशा मिलेगी। आइए, इस बौद्धिक यात्रा की शुरुआत करें!

      समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्नोत्तरी

      निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।


      प्रश्न 1: “सामाजिक संरचना” की अवधारणा को सर्वप्रथम व्यवस्थित रूप से किसने परिभाषित किया?

      1. कार्ल मार्क्स
      2. एमिल दुर्खीम
      3. मैक्स वेबर
      4. ताल्कोट पार्सन्स

      उत्तर: (b)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सटीकता: एमिल दुर्खीम को सामाजिक संरचना की अवधारणा को व्यवस्थित रूप से परिभाषित करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने सामाजिक संरचना को समाज के अपेक्षाकृत स्थायी पहलुओं के रूप में देखा, जो सामाजिक जीवन को आकार देते हैं।
      • संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम ने अपनी कृति ‘समाज में श्रम विभाजन’ (The Division of Labour in Society) में सामूहिक चेतना और सामाजिक एकजुटता के विकास में सामाजिक संरचना की भूमिका पर प्रकाश डाला। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य (social facts) वस्तुनिष्ठ होते हैं और वे बाहरी रूप से व्यक्तियों पर दबाव डालते हैं।
      • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य जोर आर्थिक संरचना (उत्पादन के साधनों और संबंधों) पर था। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया (social action) और उसके अर्थों पर ध्यान केंद्रित किया। ताल्कोट पार्सन्स ने संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक सिद्धांत (structural-functionalism) विकसित किया, जो संरचना को महत्वपूर्ण मानता है, लेकिन दुर्खीम ने इसकी नींव रखी।

      प्रश्न 2: एमिल दुर्खीम के अनुसार, ‘एनामी’ (Anomie) की स्थिति से क्या तात्पर्य है?

      1. समाज में अत्यधिक सामाजिक नियंत्रण
      2. सामाजिक मानदंडों और मूल्यों का क्षरण या अभाव
      3. पारंपरिक मूल्यों का प्रबल होना
      4. व्यक्तिगत स्वार्थ का अत्यधिक बढ़ जाना

      उत्तर: (b)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सटीकता: एनामी (Anomie) वह स्थिति है जब समाज में सामाजिक मानदंडों, मूल्यों और नियमों का क्षरण हो जाता है, जिससे व्यक्तियों में दिशाहीनता और अनिश्चितता की भावना उत्पन्न होती है। दुर्खीम ने इसका प्रयोग विशेषकर सामाजिक परिवर्तनों के दौर में किया।
      • संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम ने ‘एनामी’ की अवधारणा का प्रयोग अपनी दो प्रमुख कृतियों ‘आत्महत्या’ (Suicide) और ‘समाज में श्रम विभाजन’ में किया। उन्होंने बताया कि एनामी आत्महत्या (anomic suicide) का एक प्रमुख कारण बन सकती है, जहाँ व्यक्ति समाज से जुड़ाव महसूस नहीं करता।
      • गलत विकल्प: अत्यधिक सामाजिक नियंत्रण ‘अति-नियमन’ (over-regulation) की ओर ले जा सकता है, जो एनामी से भिन्न है। पारंपरिक मूल्यों का प्रबल होना सामाजिक स्थिरता का संकेत है, न कि एनामी का। व्यक्तिगत स्वार्थ का बढ़ना एनामी का परिणाम हो सकता है, लेकिन यह स्वयं एनामी की परिभाषा नहीं है।

      प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्री ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा से जुड़ा है?

      1. विलियम ग्राहम समनर
      2. विलियम एफ. ऑग्बर्न
      3. रॉबर्ट ई. पार्क
      4. चार्ल्स हॉटन कूले
      5. उत्तर: (b)

        विस्तृत स्पष्टीकरण:

        • सटीकता: विलियम एफ. ऑग्बर्न ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा प्रस्तुत की, जो यह बताती है कि भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक मानदंड, मूल्य, कानून) की तुलना में तेज़ी से बदलती है, जिससे समाज में एक प्रकार का विलंब या असंतुलन उत्पन्न हो जाता है।
        • संदर्भ एवं विस्तार: ऑग्बर्न ने अपनी पुस्तक ‘सोशल चेंज’ (Social Change) में इस विचार को विस्तृत रूप से समझाया। उदाहरण के लिए, मोबाइल तकनीक का तीव्र विकास हुआ, लेकिन उसके उपयोग से संबंधित सामाजिक नियम और शिष्टाचार (अभौतिक संस्कृति) उस गति से विकसित नहीं हो पाए।
        • गलत विकल्प: विलियम ग्राहम समनर ‘लोकप्रियता’ (folkways) और ‘रूढ़ियों’ (mores) जैसे प्रत्ययों के लिए जाने जाते हैं। रॉबर्ट ई. पार्क शिकागो स्कूल के प्रमुख सदस्य थे और उन्होंने शहरी समाजशास्त्र में योगदान दिया। चार्ल्स हॉटन कूले ‘प्राथमिक समूह’ (primary group) और ‘आईने वाला आत्म’ (looking-glass self) जैसी अवधारणाओं के लिए प्रसिद्ध हैं।

        प्रश्न 4: कार्ल मार्क्स के अनुसार, ‘अलगाव’ (Alienation) का सबसे महत्वपूर्ण रूप क्या है?

        1. समाज से अलगाव
        2. उत्पाद से अलगाव
        3. अपने साथी मनुष्यों से अलगाव
        4. उत्पादन की प्रक्रिया से अलगाव

        उत्तर: (d)

        विस्तृत स्पष्टीकरण:

        • सटीकता: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली के तहत श्रमिक को ‘उत्पादन की प्रक्रिया’ से सबसे अधिक अलगाव का अनुभव होता है। वह अपने श्रम के फल (उत्पाद) से, उत्पादन क्रिया से, अपनी मानव प्रजाति-सार (species-essence) से और अपने साथी मनुष्यों से भी अलग-थलग महसूस करता है।
        • संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा मार्क्स की प्रारंभिक कृतियों, विशेष रूप से ‘आर्थिक और दार्शनिक पांडुलिपियां 1844’ (Economic and Philosophic Manuscripts of 1844) में विस्तृत है। अलगाव के कारण श्रमिक अपने श्रम को अपनी इच्छा के विरुद्ध एक थोपी गई गतिविधि के रूप में देखता है।
        • गलत विकल्प: उत्पाद से अलगाव, साथी मनुष्यों से अलगाव और समाज से अलगाव, ये सभी अलगाव के विभिन्न पहलू हैं, लेकिन मार्क्स के अनुसार, उत्पादन की प्रक्रिया से अलगाव इन सभी का मूल कारण है।

        प्रश्न 5: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज के अध्ययन में किस अवधारणा का महत्वपूर्ण उपयोग किया?

        1. वर्ण व्यवस्था
        2. जाति व्यवस्था
        3. सांस्कृतिकरण (Sanskritization)
        4. पश्चिमीकरण (Westernization)
        5. उत्तर: (c)

          विस्तृत स्पष्टीकरण:

          • सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘सांस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा को प्रतिपादित किया, जिसका अर्थ है कि निम्न हिंदू जातियाँ या जनजातियाँ उच्च जातियों की रीति-रिवाजों, कर्मकांडों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का प्रयास करती हैं।
          • संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा उन्होंने अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ (1952) में प्रस्तुत की थी। यह सामाजिक गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण माध्यम है, जहाँ सांस्कृतिक अनुकूलन के द्वारा स्थिति में परिवर्तन आता है।
          • गलत विकल्प: वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था भारतीय समाज की मूलभूत संरचनाएं हैं, लेकिन श्रीनिवास का विशिष्ट योगदान सांस्कृतिकरण है। पश्चिमीकरण एक संबंधित लेकिन भिन्न अवधारणा है, जो पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को दर्शाती है।

          प्रश्न 6: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) द्वारा विकसित ‘आईने वाला आत्म’ (Looking-Glass Self) का सिद्धांत किसके विकास से संबंधित है?

          1. सामाजिक संरचना
          2. सामूहिक चेतना
          3. आत्म (Self) का विकास
          4. सांस्कृतिक मानक

          उत्तर: (c)

          विस्तृत स्पष्टीकरण:

          • सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड का ‘आईने वाला आत्म’ का सिद्धांत यह बताता है कि व्यक्ति का ‘आत्म’ (Self) दूसरों की प्रतिक्रियाओं को देखकर विकसित होता है। हम खुद को वैसे ही देखते हैं जैसे हमें लगता है कि दूसरे हमें देखते हैं।
          • संदर्भ एवं विस्तार: मीड, जो प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) के प्रमुख प्रणेताओं में से एक हैं, के अनुसार, आत्म का विकास तीन चरणों में होता है: तैयारी (preparation), खेल (play) और खेलकूद (game)। इसी प्रक्रिया में व्यक्ति ‘दूसरों’ (others) और ‘सार्वभौमिकीकृत अन्य’ (generalized other) की भूमिकाओं को सीखता है।
          • गलत विकल्प: सामाजिक संरचना, सामूहिक चेतना और सांस्कृतिक मानक महत्वपूर्ण समाजशास्त्रीय अवधारणाएं हैं, लेकिन ‘आईने वाला आत्म’ सीधे तौर पर व्यक्तिगत आत्म (self) के निर्माण से संबंधित है।

          प्रश्न 7: किस समाजशास्त्री ने ‘प्रतीक’ (Symbol) को सामाजिक अंतःक्रिया का केंद्रीय तत्व माना?

          1. ई. क्लिफर्ड गर्ट्ज़
          2. हरबर्ट ब्लूमर
          3. मैक्स वेबर
          4. ए. एल. क्रॉबर

          उत्तर: (b)

          विस्तृत स्पष्टीकरण:

          • सटीकता: हरबर्ट ब्लूमर, जो जॉर्ज हर्बर्ट मीड के शिष्य थे, ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) को व्यवस्थित रूप दिया और इस सिद्धांत के अनुसार, प्रतीक (जैसे भाषा, हाव-भाव, वस्तुएँ) सामाजिक अंतःक्रिया के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अर्थों का संचार करते हैं।
          • संदर्भ एवं विस्तार: ब्लूमर ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के तीन मूल सिद्धांतों को प्रतिपादित किया: (1) मनुष्य वस्तुओं के प्रति उन तरीकों से व्यवहार करते हैं जो उनके बीच मौजूद होते हैं। (2) इन वस्तुओं के लिए उनके द्वारा प्रयुक्त प्रत्यय (अर्थ)। (3) ये अर्थ, व्यक्ति के प्रत्यय से प्राप्त होते हैं, जो उन अंतःक्रियाओं में उत्पन्न और संशोधित होते हैं जो वे दूसरों के साथ करते हैं।
          • गलत विकल्प: क्लिफर्ड गर्ट्ज़ सांस्कृतिक नृविज्ञान (cultural anthropology) के लिए जाने जाते हैं, खासकर ‘गहन व्याख्या’ (thick description) के लिए। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया के अर्थों को महत्वपूर्ण माना, लेकिन प्रतीकों को ब्लूमर जितना केंद्रीय नहीं। क्रॉबर संस्कृति के अध्ययन से जुड़े थे।

          प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) का एक रूप नहीं है?

          1. दास प्रथा (Slavery)
          2. जाति (Caste)
          3. वर्ग (Class)
          4. सहयोग (Cooperation)

          उत्तर: (d)

          विस्तृत स्पष्टीकरण:

          • सटीकता: सहयोग (Cooperation) एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें लोग सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मिलकर काम करते हैं। यह सामाजिक स्तरीकरण का रूप नहीं है, बल्कि यह विभिन्न स्तरीकृत समाजों में भी पाया जा सकता है।
          • संदर्भ एवं विस्तार: दास प्रथा, जाति और वर्ग तीनों ही समाज में लोगों को विभिन्न स्तरों पर श्रेणीबद्ध करने की व्यवस्थाएं हैं, जिनमें शक्ति, विशेषाधिकार और प्रतिष्ठा का असमान वितरण होता है। ये सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख उदाहरण हैं।
          • गलत विकल्प: दास प्रथा, जाति और वर्ग में संपत्ति, शक्ति और प्रतिष्ठा के आधार पर समूहों का पदानुक्रमित विभाजन होता है, जो सामाजिक स्तरीकरण की परिभाषा के अनुरूप है। सहयोग एक परस्पर विरोधी अवधारणा है।

          प्रश्न 9: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा को किसके साथ सबसे अधिक जोड़ा जाता है?

          1. रॉबर्ट पुटनम
          2. पियरे बॉर्डियू
          3. जेम्स कोलमन
          4. इनमें से कोई नहीं

          उत्तर: (b)

          विस्तृत स्पष्टीकरण:

          • सटीकता: पियरे बॉर्डियू को ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा के विकास का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने इसे उन संसाधनों के रूप में परिभाषित किया जो किसी व्यक्ति या समूह को उसके सामाजिक संबंधों (नेटवर्क) से प्राप्त होते हैं।
          • संदर्भ एवं विस्तार: बॉर्डियू के अनुसार, सामाजिक पूंजी, आर्थिक पूंजी (धन) और सांस्कृतिक पूंजी (ज्ञान, शिक्षा) के साथ मिलकर सामाजिक असमानता को बनाए रखने में भूमिका निभाती है। सामाजिक पूंजी व्यक्तियों को सूचना, समर्थन और अवसरों तक पहुँच प्रदान करती है। रॉबर्ट पुटनम और जेम्स कोलमन ने भी इस अवधारणा पर महत्वपूर्ण कार्य किया है, लेकिन बॉर्डियू इसके मूल प्रणेताओं में से हैं।
          • गलत विकल्प: पुटनम ने ‘सामुदायिक सामाजिक पूंजी’ पर अधिक जोर दिया, जबकि कोलमन ने इसे व्यक्तिगत लाभ के साधन के रूप में देखा। बॉर्डियू का कार्य इन दोनों के लिए आधारभूत था।

          प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सा ‘ज्ञान समाज’ (Knowledge Society) का प्रमुख लक्षण नहीं है?

          1. सूचना और ज्ञान का अत्यधिक महत्व
          2. सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व
          3. विनिर्माण (Manufacturing) क्षेत्र का तेजी से विकास
          4. नवाचार (Innovation) और अनुसंधान पर जोर
          5. उत्तर: (c)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: ज्ञान समाज (Knowledge Society) की विशेषता सूचना, ज्ञान और विशेषज्ञता का केंद्रीय महत्व है, जिससे सेवा क्षेत्र (जैसे आईटी, वित्त, शिक्षा) का प्रभुत्व बढ़ता है और नवाचार पर जोर दिया जाता है। विनिर्माण क्षेत्र का तेजी से विकास ज्ञान समाज का प्राथमिक लक्षण नहीं है, बल्कि यह औद्योगिक समाज की विशेषता है।
            • संदर्भ एवं विस्तार: ज्ञान समाज की अवधारणा पीटर ड्रकर (Peter Drucker) और अन्य द्वारा लोकप्रिय की गई। इसमें ज्ञान ही प्रमुख उत्पादन का साधन और कारक बन जाता है, जिससे आर्थिक और सामाजिक संरचनाएं बदल जाती हैं।
            • गलत विकल्प: सूचना और ज्ञान का महत्व, सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व और नवाचार पर जोर, ये सभी ज्ञान समाज की प्रमुख विशेषताएं हैं। विनिर्माण क्षेत्र का प्रभुत्व औद्योगिक समाज का लक्षण है, न कि ज्ञान समाज का।

            प्रश्न 11: ‘आदिम समाज’ (Primitive Society) में सामाजिक नियंत्रण का मुख्य साधन क्या होता है?

            1. कठोर कानून और दंड संहिता
            2. पुलिस और न्यायपालिका
            3. सामाजिक रीति-रिवाज, परंपराएं और लोकमत
            4. मीडिया और जनसंपर्क

            उत्तर: (c)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: आदिम समाजों में, जहाँ औपचारिक संस्थाएं विकसित नहीं होतीं, सामाजिक नियंत्रण मुख्य रूप से अनौपचारिक साधनों जैसे रूढ़िगत नियम, परंपराएं, मान्यताएं, वर्जनाएं (taboos), सामूहिक दंड और लोकमत के माध्यम से किया जाता है।
            • संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम ने ‘यांत्रिक एकजुटता’ (mechanical solidarity) वाले समाजों में इसी तरह के अनौपचारिक नियंत्रण तंत्रों की बात की है, जहाँ सामूहिक चेतना बहुत प्रबल होती है।
            • गलत विकल्प: कठोर कानून, पुलिस, न्यायपालिका, मीडिया और जनसंपर्क ये सभी औपचारिक सामाजिक नियंत्रण के साधन हैं जो आधुनिक और जटिल समाजों में पाए जाते हैं, न कि आदिम समाजों में।

            प्रश्न 12: निम्नलिखित में से कौन सा ‘पारिवारिक विघटन’ (Family Disorganization) का कारण नहीं माना जाता?

            1. तलाक की दर में वृद्धि
            2. औद्योगीकरण और नगरीकरण
            3. पारंपरिक संयुक्त परिवारों का उदय
            4. महिलाओं की बढ़ती आर्थिक स्वतंत्रता

            उत्तर: (c)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: पारंपरिक संयुक्त परिवारों का उदय परिवार के लिए स्थिरता और संरचना का प्रतीक है, न कि विघटन का कारण। इसके विपरीत, यह अक्सर पारिवारिक संगठन को मजबूत करता है।
            • संदर्भ एवं विस्तार: औद्योगीकरण, नगरीकरण, तलाक की बढ़ती दर और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता जैसे कारक अक्सर परिवार की पारंपरिक संरचना को बदलते हैं और इसे कुछ हद तक विघटित (disorganized) कर सकते हैं, जिससे एकल परिवारों का उदय और परिवार के सदस्यों के बीच संबंधों में परिवर्तन आता है।
            • गलत विकल्प: तलाक, औद्योगीकरण, नगरीकरण और महिलाओं की स्वतंत्रता अक्सर पारिवारिक विघटन से जुड़े कारक माने जाते हैं, जबकि संयुक्त परिवारों का उदय इसका विरोधी है।

            प्रश्न 13: ‘सांस्कृतिक परिवर्तन’ (Cultural Change) के लिए सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक कारक कौन सा है?

            1. धार्मिक उपदेश
            2. तकनीकी प्रगति
            3. लोकप्रिय कथाएं
            4. पारंपरिक अनुष्ठान

            उत्तर: (b)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: आधुनिक युग में, तकनीकी प्रगति (जैसे संचार, परिवहन, इंटरनेट) सांस्कृतिक परिवर्तनों को लाने का सबसे तीव्र और व्यापक कारक है। यह विचारों, जीवन शैलियों और मूल्यों के प्रसार को गति देता है।
            • संदर्भ एवं विस्तार: प्रौद्योगिकी अक्सर भौतिक संस्कृति में परिवर्तन लाती है, जिसका प्रभाव अभौतिक संस्कृति पर भी पड़ता है, जैसे कि ऑग्बर्न के ‘सांस्कृतिक विलंब’ सिद्धांत में बताया गया है।
            • गलत विकल्प: धार्मिक उपदेश, लोकप्रिय कथाएं और पारंपरिक अनुष्ठान भी सांस्कृतिक परिवर्तन में भूमिका निभाते हैं, लेकिन तकनीकी प्रगति की तुलना में उनका प्रभाव तुलनात्मक रूप से धीमा और सीमित होता है।

            प्रश्न 14: भारतीय समाज में ‘जाति’ (Caste) का अध्ययन करते समय, कौन सी अवधारणा ‘अंतर्विवाह’ (Endogamy) को स्पष्ट करती है?

            1. अधिकार (Vocation)
            2. जाति-समूह (Jati)
            3. वंश (Lineage)
            4. खान-पान के नियम (Rules of commensality)

            उत्तर: (b)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: भारतीय जाति व्यवस्था में, ‘जाति-समूह’ (Jati) वह मूल इकाई है जो अंतर्विवाह (अपनी ही जाति के भीतर विवाह) के नियम का पालन करती है। यह जाति का सबसे महत्वपूर्ण उप-विभाजन है।
            • संदर्भ एवं विस्तार: एम.एन. श्रीनिवास और अन्य मानवशास्त्रियों ने बताया कि जहाँ ‘वर्ण’ (Varna) एक व्यापक सैद्धांतिक वर्गीकरण है, वहीं ‘जाति’ (Jati) एक स्थानीय, व्यावहारिक और अक्सर व्यवसायाधारित समूह है जो अंतर्विवाह के नियम को दृढ़ता से लागू करता है।
            • गलत विकल्प: अधिकार (व्यवसाय) जाति का एक विशेषता हो सकती है, लेकिन यह स्वयं अंतर्विवाह का नियम नहीं है। वंश (Lineage) रक्त संबंध की रेखा है, और खान-पान के नियम भी जाति व्यवस्था का हिस्सा हैं, लेकिन अंतर्विवाह सीधे तौर पर जाति-समूह (Jati) से जुड़ा है।

            प्रश्न 15: ‘शहरीकरण’ (Urbanization) के कारण ग्रामीण समाज में कौन सा परिवर्तन आने की संभावना कम होती है?

            1. कृषि पर निर्भरता में कमी
            2. सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि
            3. पारंपरिक मूल्यों का सुदृढ़ीकरण
            4. शिक्षा के अवसरों में विस्तार

            उत्तर: (c)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: शहरीकरण, अपने साथ अक्सर औद्योगीकरण, व्यवसायों का विविधीकरण और नए विचारों का प्रवाह लाता है, जिससे ग्रामीण समाजों में पारंपरिक मूल्यों का सुदृढ़ीकरण होने की संभावना कम होती है। इसके बजाय, अक्सर मूल्यों में परिवर्तन या क्षरण देखा जाता है।
            • संदर्भ एवं विस्तार: शहरीकरण से लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं, नए रोजगार तलाशते हैं, और शहरों की जीवन शैली और विचारों के संपर्क में आते हैं। यह सब मिलकर पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं और मूल्यों को चुनौती देता है।
            • गलत विकल्प: औद्योगीकरण से कृषि पर निर्भरता कम होती है। शहरों में अवसरों की अधिकता सामाजिक गतिशीलता बढ़ाती है। शिक्षा के अवसर भी शहरीकरण के प्रभाव से बढ़ते हैं।

            प्रश्न 16: ‘धर्मनिरपेक्षता’ (Secularism) की अवधारणा भारतीय समाज के संदर्भ में किस प्रकार समझी जाती है?

            1. सभी धर्मों का उन्मूलन
            2. राज्य का सभी धर्मों से समान दूरी बनाए रखना
            3. किसी एक प्रमुख धर्म को राष्ट्रीय धर्म घोषित करना
            4. धर्म को निजी जीवन तक सीमित करना

            उत्तर: (b)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य किसी विशेष धर्म को बढ़ावा नहीं देगा, बल्कि सभी धर्मों के प्रति समान दूरी और सम्मान बनाए रखेगा। यह राज्य को धार्मिक मामलों से स्वतंत्र रखता है, लेकिन इसका अर्थ धर्म का अंत नहीं है।
            • संदर्भ एवं विस्तार: भारतीय संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को प्रस्तावना में जोड़ा गया है, जो इस सिद्धांत को रेखांकित करता है कि राज्य सभी नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने, अभ्यास करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
            • गलत विकल्प: धर्मों का उन्मूलन (a) नास्तिकता (atheism) या अधार्मिकता (irreligion) है। किसी एक धर्म को राष्ट्रीय घोषित करना (c) ‘धर्म-आधारित राज्य’ (theocratic state) की ओर ले जाता है। धर्म को निजी जीवन तक सीमित करना (d) धर्मनिरपेक्षता का एक पहलू हो सकता है, लेकिन भारतीय धर्मनिरपेक्षता राज्य और धर्म के बीच अधिक जटिल संबंध को दर्शाती है।

            प्रश्न 17: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) से क्या अभिप्राय है?

            1. किसी व्यक्ति या समूह का समाज में एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना
            2. समाज में समूहों के बीच संघर्ष
            3. सामाजिक असमानता का अध्ययन
            4. सांस्कृतिक मूल्यों का परिवर्तन

            उत्तर: (a)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: सामाजिक गतिशीलता वह प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति या समूह एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में जाता है, चाहे वह ऊपर की ओर (ऊर्ध्वाधर गतिशीलता) हो या नीचे की ओर (ऊर्ध्वाधर गतिशीलता), या समाज के भीतर क्षैतिज रूप से (जैसे एक ही स्तर पर एक पेशा से दूसरे में जाना)।
            • संदर्भ एवं विस्तार: सोरोकिन (Sorokin) ने सामाजिक गतिशीलता के तीन मुख्य प्रकार बताए: ऊर्ध्वाधर, क्षैतिज और अंतर्राष्ट्रीय। यह किसी भी समाज की संरचना की खुली या बंद प्रकृति को समझने में सहायक है।
            • गलत विकल्प: सामाजिक समूहों के बीच संघर्ष (b) सामाजिक विघटन या संघर्ष सिद्धांत से संबंधित है। सामाजिक असमानता (c) स्तरीकरण का अध्ययन है। सांस्कृतिक मूल्यों का परिवर्तन (d) सांस्कृतिक परिवर्तन का विषय है।

            प्रश्न 18: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘प्रायोगिक विधि’ (Experimental Method) का उपयोग मुख्य रूप से किसके लिए किया जाता है?

            1. विस्तृत सांस्कृतिक विवरण प्रदान करना
            2. कार्य-कारण संबंध (Cause-and-effect relationship) स्थापित करना
            3. सर्वेक्षण द्वारा जनमत का पता लगाना
            4. ऐतिहासिक घटनाओं का विश्लेषण करना

            उत्तर: (b)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: प्रायोगिक विधि का मुख्य उद्देश्य दो या दो से अधिक चरों (variables) के बीच कार्य-कारण संबंध स्थापित करना है। इसमें एक चर (स्वतंत्र चर) को नियंत्रित तरीके से बदला जाता है ताकि दूसरे चर (आश्रित चर) पर इसके प्रभाव का मापन किया जा सके।
            • संदर्भ एवं विस्तार: यह विधि प्राकृतिक विज्ञानों में अधिक आम है, लेकिन समाजशास्त्र में भी इसका उपयोग सीमित रूप से किया जाता है, विशेषकर प्रयोगशाला या नियंत्रित फ़ील्ड प्रयोगों में, जैसे कि सामाजिक मनोविज्ञान या व्यवहारिक अर्थशास्त्र में।
            • गलत विकल्प: विस्तृत सांस्कृतिक विवरण (a) नृवंशविज्ञान (ethnography) से संबंधित है। जनमत का पता लगाना (c) सर्वेक्षण विधि से होता है। ऐतिहासिक घटनाओं का विश्लेषण (d) ऐतिहासिक अनुसंधान का विषय है।

            प्रश्न 19: ‘सब-कल्चर’ (Sub-culture) से क्या तात्पर्य है?

            1. किसी समाज के सभी सांस्कृतिक तत्वों का समुच्चय
            2. एक बड़े समाज के भीतर एक विशिष्ट समूह की अपनी संस्कृति
            3. सांस्कृतिक मूल्यों का पूर्ण अभाव
            4. विभिन्न संस्कृतियों का मिश्रण

            उत्तर: (b)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: सब-कल्चर (उप-संस्कृति) एक बड़े, प्रमुख समाज की संस्कृति के भीतर मौजूद एक विशिष्ट समूह की अपनी अलग संस्कृति होती है। इसमें विशिष्ट मूल्य, विश्वास, मानदंड, व्यवहार और जीवन शैली शामिल हो सकती है।
            • संदर्भ एवं विस्तार: उदाहरण के लिए, किसी देश के भीतर युवाओं का समूह, किसी विशेष व्यवसाय के लोग, या किसी विशेष क्षेत्र के लोग अपनी उप-संस्कृति विकसित कर सकते हैं। यह प्रमुख संस्कृति के तत्वों को साझा करते हुए भी अपनी विशिष्टता बनाए रखता है।
            • गलत विकल्प: सभी सांस्कृतिक तत्वों का समुच्चय (a) समग्र संस्कृति है। सांस्कृतिक मूल्यों का अभाव (c) सांस्कृतिक शून्यता (cultural vacuum) या अनास्था (anomie) को दर्शाता है। विभिन्न संस्कृतियों का मिश्रण (d) सांस्कृतिक आत्मसातीकरण (acculturation) या बहुसंस्कृतिवाद (multiculturalism) हो सकता है।

            प्रश्न 20: निम्नलिखित में से कौन सा ‘सामाजिक नियंत्रण’ (Social Control) का एक औपचारिक (Formal) साधन है?

            1. जनमत
            2. धर्म
            3. कानून
            4. शिष्टाचार

            उत्तर: (c)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: कानून सामाजिक नियंत्रण का एक औपचारिक साधन है क्योंकि यह राज्य द्वारा निर्मित, लिखित और लागू किया जाता है, और इसका उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान होता है।
            • संदर्भ एवं विस्तार: औपचारिक सामाजिक नियंत्रण वे व्यवस्थाएं हैं जो समाज द्वारा जानबूझकर और व्यवस्थित रूप से स्थापित की जाती हैं, जैसे कि पुलिस, न्यायपालिका, सरकार और कानून। अनौपचारिक नियंत्रण में परिवार, मित्र, धर्म, रीति-रिवाज और लोकमत शामिल हैं।
            • गलत विकल्प: जनमत, धर्म और शिष्टाचार अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण के साधन हैं, जो समाज के सदस्यों के भीतर से उत्पन्न होते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से व्यवहार को प्रभावित करते हैं।

            प्रश्न 21: ‘संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक सिद्धांत’ (Structural-Functionalism) के अनुसार, समाज को एक ___________ के रूप में देखा जाता है?

            1. संघर्षरत समूहों का मंच
            2. नियंत्रण की अनुपस्थिति वाला क्षेत्र
            3. अंतर-निर्भर भागों वाली एक जटिल प्रणाली
            4. स्थिर और अपरिवर्तनीय व्यवस्था

            उत्तर: (c)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक सिद्धांत समाज को एक जटिल, जीवित जीव की तरह देखता है, जिसके विभिन्न अंग (संरचनाएं) होते हैं जो एक साथ मिलकर कार्य (प्रकार्य) करते हैं ताकि समाज को संतुलित और स्थिर रखा जा सके।
            • संदर्भ एवं विस्तार: एमिल दुर्खीम, हर्बर्ट स्पेंसर और ताल्कोट पार्सन्स जैसे समाजशास्त्रियों ने इस सिद्धांत को विकसित किया। उनका मानना था कि समाज की प्रत्येक संस्था (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म) का एक विशिष्ट कार्य होता है जो पूरे समाज के अस्तित्व और कार्यप्रणाली में योगदान देता है।
            • गलत विकल्प: संघर्षरत समूहों का मंच (a) संघर्ष सिद्धांत (conflict theory) की व्याख्या है। नियंत्रण की अनुपस्थिति (b) अराजकता (anarchy) को दर्शाता है। स्थिर और अपरिवर्तनीय व्यवस्था (d) समाज की गतिशीलता की उपेक्षा करता है, जबकि प्रकार्यवाद परिवर्तन को भी एक प्रक्रिया के रूप में देखता है, लेकिन इसका मुख्य जोर संतुलन पर है।

            प्रश्न 22: ‘नारीवाद’ (Feminism) के अंतर्गत ‘पितृसत्ता’ (Patriarchy) की अवधारणा का क्या अर्थ है?

            1. पुरुषों का महिलाओं पर प्रत्यक्ष दमन
            2. सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में पुरुषों का प्रभुत्व और महिलाओं पर इसका प्रभाव
            3. परिवार में पिता का अंतिम अधिकार
            4. महिलाओं द्वारा संचालित समाज

            उत्तर: (b)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: नारीवादी सिद्धांत में, पितृसत्ता एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था को संदर्भित करती है जहाँ पुरुषों का महिलाओं पर सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व होता है, और यह व्यवस्था महिलाओं के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है।
            • संदर्भ एवं विस्तार: यह केवल व्यक्तिगत व्यवहार तक सीमित नहीं है, बल्कि संस्थागत संरचनाओं, शक्ति संबंधों और सामाजिक मानदंडों में निहित है जो पुरुषों को श्रेष्ठता प्रदान करते हैं।
            • गलत विकल्प: प्रत्यक्ष दमन (a) पितृसत्ता का एक पहलू हो सकता है, लेकिन यह पूरी परिभाषा नहीं है। परिवार में पिता का अंतिम अधिकार (c) पारंपरिक पितृसत्ता का एक रूप है, लेकिन आधुनिक पितृसत्ता व्यापक है। महिलाओं द्वारा संचालित समाज (d) मातृसत्ता (matriarchy) का वर्णन करता है।

            प्रश्न 23: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के अनुसार, समाज का निर्माण कैसे होता है?

            1. बड़े पैमाने की सामाजिक शक्तियों द्वारा
            2. व्यक्तियों के बीच निरंतर प्रतीकात्मक अंतःक्रियाओं द्वारा
            3. राज्य और उसकी नीतियों द्वारा
            4. नियति या भाग्य द्वारा

            उत्तर: (b)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का मूल विचार यह है कि समाज व्यक्तियों के बीच होने वाली निरंतर, अर्थपूर्ण प्रतीकात्मक अंतःक्रियाओं (interactions) का परिणाम है। व्यक्ति प्रतीकों (जैसे भाषा) के माध्यम से अर्थ निर्मित करते हैं और उन्हें साझा करते हैं, जिससे सामाजिक वास्तविकता बनती है।
            • संदर्भ एवं विस्तार: मीड, ब्लूमर और कॉफ़मैन जैसे समाजशास्त्रियों ने इस दृष्टिकोण को विकसित किया। यह मैक्रो-स्तरीय (बड़े पैमाने के) समाजशास्त्रीय सिद्धांतों के विपरीत, माइक्रो-स्तरीय (व्यक्तिगत अंतःक्रियाओं) पर केंद्रित है।
            • गलत विकल्प: बड़े पैमाने की शक्तियां (a) मैक्रो-स्तरीय सिद्धांत (जैसे मार्क्सवाद, संरचनात्मक-प्रकार्यवाद) से संबंधित हैं। राज्य और नीतियां (c) संस्थागत दृष्टिकोण से संबंधित हैं। नियति या भाग्य (d) समाजशास्त्रीय विश्लेषण का हिस्सा नहीं है।

            प्रश्न 24: ‘आधुनिकीकरण सिद्धांत’ (Modernization Theory) के अनुसार, विकासशील देशों के लिए सबसे आवश्यक परिवर्तन क्या है?

            1. अपनी पारंपरिक संस्कृति को बनाए रखना
            2. पश्चिमी देशों की नकल करना
            3. आर्थिक विकास और पश्चिमीकरण को अपनाना
            4. अलगाव और आत्मनिर्भरता

            उत्तर: (c)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: आधुनिकीकरण सिद्धांत, जो 20वीं सदी के मध्य में प्रमुख था, मानता है कि विकासशील देशों को आर्थिक रूप से विकसित होने और ‘आधुनिक’ बनने के लिए पारंपरिक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचनाओं को छोड़कर पश्चिमी देशों के औद्योगीकरण, पूंजीवाद और लोकतंत्रीकरण जैसे मॉडल अपनाने चाहिए।
            • संदर्भ एवं विस्तार: यह सिद्धांत अक्सर पश्चिमी देशों के विकास पथ को एक सार्वभौमिक मॉडल के रूप में देखता है। हालांकि, इसकी आलोचना भी हुई है कि यह स्थानीय संस्कृतियों और ऐतिहासिक संदर्भों की अनदेखी करता है।
            • गलत विकल्प: पारंपरिक संस्कृति बनाए रखना (a) आधुनिकीकरण का विरोध है। पश्चिमी देशों की नकल करना (b) आधुनिकीकरण का एक रूप है, लेकिन ‘आर्थिक विकास और पश्चिमीकरण को अपनाना’ (c) अधिक व्यापक और सटीक है। अलगाव और आत्मनिर्भरता (d) विकास की मुख्यधारा के विपरीत जा सकता है।

            प्रश्न 25: भारत में ‘पिछड़ी जातियों’ (Backward Classes) के उत्थान के लिए निम्नलिखित में से किस उपागम का प्रयोग किया गया है?

            1. केवल संस्कृतिकरण
            2. आरक्षण (Reservation) और सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action)
            3. केवल शिक्षा का प्रसार
            4. जाति व्यवस्था का पूर्ण उन्मूलन

            उत्तर: (b)

            विस्तृत स्पष्टीकरण:

            • सटीकता: भारत में ऐतिहासिक रूप से वंचित और पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए संविधान और सरकारी नीतियों के माध्यम से आरक्षण (जैसे सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों में सीटें) और सकारात्मक कार्रवाई (जैसे विशेष योजनाएं, छात्रवृत्तियां) जैसे उपागम अपनाए गए हैं।
            • संदर्भ एवं विस्तार: इन उपागमों का उद्देश्य उन सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को दूर करना है जिन्होंने इन समुदायों को ऐतिहासिक रूप से पीछे रखा है। ये उपाय सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए हैं।
            • गलत विकल्प: संस्कृतिकरण (a) एक स्वैच्छिक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया है, न कि सरकारी उपागम। केवल शिक्षा का प्रसार (c) एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन यह एकमात्र या प्राथमिक सरकारी उपागम नहीं है। जाति व्यवस्था का पूर्ण उन्मूलन (d) एक आदर्श लक्ष्य है, लेकिन इसके लिए आरक्षण जैसे व्यावहारिक उपागमों का उपयोग किया जाता है।

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