Toxic Campuses: When Education Breeds Insults, Not Excellence

Toxic Campuses: When Education Breeds Insults, Not Excellence

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, दिल्ली से सटे एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान, शारदा यूनिवर्सिटी के डेंटल विभाग में फैकल्टी द्वारा छात्रों के प्रति अनुचित और अपमानजनक टिप्पणी का मामला सामने आया है। “घर जाओ, रोटियां बनाओ” जैसी व्यक्तिगत अपमानजनक टिप्पणियां, जो खासकर महिला छात्रों को निशाना बनाती हैं, यह दर्शाती हैं कि अकादमिक उत्कृष्टता के केंद्र माने जाने वाले ये संस्थान कभी-कभी अपमान, दुर्व्यवहार और लैंगिक रूढ़िवादिता की जहरीली संस्कृति के गढ़ बन जाते हैं। यह घटना केवल एक विश्वविद्यालय की नहीं, बल्कि देश भर के कई शिक्षण संस्थानों में व्याप्त एक गंभीर समस्या का प्रतीक है, जहाँ छात्र-शिक्षक संबंध पवित्रता की बजाय तनाव और अपमान से भर जाते हैं।

शैक्षणिक संस्थानों में दुर्व्यवहार का बढ़ता ग्राफ: एक चिंताजनक प्रवृत्ति

शैक्षणिक संस्थान ज्ञान के मंदिर होते हैं, जहाँ छात्रों को न केवल किताबी ज्ञान मिलता है, बल्कि वे जीवन मूल्य, सम्मान और व्यावसायिक नैतिकता भी सीखते हैं। लेकिन जब यही मंदिर अपमान, भेदभाव और मानसिक उत्पीड़न का अड्डा बन जाएं, तो यह समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन जाता है। शारदा यूनिवर्सिटी की घटना इस बात का एक दुखद उदाहरण है कि कैसे व्यक्तिगत अपमान, विशेषकर लैंगिक पूर्वाग्रहों से ग्रस्त टिप्पणियाँ, छात्रों के आत्मविश्वास और सीखने की प्रक्रिया को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती हैं।

“ज्ञान का प्रकाश तभी फैलता है जब सम्मान और सुरक्षा का वातावरण हो। जहाँ अपमान होता है, वहाँ सीखने की इच्छा मुरझा जाती है।”

यह घटना सिर्फ एक “कहासुनी” नहीं है। यह एक ऐसे व्यापक पैटर्न का हिस्सा है जहाँ छात्रों, विशेषकर महिला छात्रों को उनकी व्यक्तिगत पहचान, क्षमताओं या उनके भविष्य की आकांक्षाओं पर आधारित अपमान का सामना करना पड़ता है। यह एक गहरे सामाजिक और सांस्कृतिक पूर्वाग्रह को उजागर करता है जो शिक्षा के उच्च स्तर तक पहुँचने के बावजूद समाज में मौजूद है।

“रोटी बनाओ” टिप्पणी का निहितार्थ: लैंगिक संवेदनशीलता और पितृसत्तात्मक मानसिकता

जब एक महिला छात्र को उसकी व्यावसायिक आकांक्षाओं के जवाब में “घर जाओ, रोटी बनाओ” जैसी टिप्पणी की जाती है, तो यह सिर्फ एक अपमानजनक वाक्यांश नहीं होता, बल्कि यह सदियों से चली आ रही पितृसत्तात्मक मानसिकता का प्रतीक होता है। यह टिप्पणी कई गंभीर निहितार्थों को उजागर करती है:

  1. लैंगिक रूढ़िवादिता का सुदृढ़ीकरण: यह इस विचार को पुष्ट करता है कि महिलाओं का प्राथमिक स्थान घर और रसोई है, न कि व्यावसायिक या अकादमिक क्षेत्र। यह उनके करियर और व्यक्तिगत विकास की आकांक्षाओं को कमतर आंकता है।
  2. महिलाओं के सशक्तिकरण में बाधा: यह उन लाखों लड़कियों और महिलाओं के सपनों पर पानी फेरता है जो शिक्षा और करियर के माध्यम से खुद को सशक्त बनाने का प्रयास कर रही हैं। ऐसी टिप्पणियाँ उन्हें हतोत्साहित करती हैं और समाज में उनके स्थान को सीमित करने का प्रयास करती हैं।
  3. भेदभावपूर्ण वातावरण का निर्माण: यह शिक्षण संस्थानों में एक ऐसे वातावरण को बढ़ावा देता है जहाँ महिलाओं को पुरुषों के बराबर नहीं माना जाता, जिससे उनके लिए सीखने और आगे बढ़ने में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
  4. संस्थागत पूर्वाग्रह का संकेत: जब ऐसी टिप्पणियाँ फैकल्टी सदस्यों द्वारा की जाती हैं, तो यह संस्थान के भीतर भी अंतर्निहित लैंगिक पूर्वाग्रहों की उपस्थिति का संकेत देती हैं, जो संस्थान की नैतिकता और मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में लैंगिक समानता की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, या अभी भी शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी लैंगिक भेदभाव जड़ जमाए बैठा है।

एक जहरीली संस्कृति का निर्माण: छात्रों और शिक्षा पर प्रभाव

व्यक्तिगत अपमान और दुर्व्यवहार केवल तात्कालिक तनाव का कारण नहीं बनते, बल्कि यह एक ‘जहरीली संस्कृति’ को जन्म देते हैं जिसके दीर्घकालिक और गंभीर परिणाम होते हैं:

  • मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: लगातार अपमान और आलोचना छात्रों में तनाव, चिंता, अवसाद और आत्म-सम्मान में कमी का कारण बन सकती है। यह उनके शैक्षणिक प्रदर्शन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
  • सीखने की प्रक्रिया में बाधा: एक भयभीत या अपमानित छात्र सीखने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता। उसका ध्यान अपनी सुरक्षा और अपमान से बचने पर केंद्रित हो जाता है, जिससे सीखने की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • संवाद की कमी: जब छात्र शिक्षकों से डरने लगते हैं या अपमानित महसूस करते हैं, तो वे प्रश्न पूछने, संदेह व्यक्त करने या समस्याओं पर चर्चा करने से कतराते हैं, जिससे उनके सीखने की प्रक्रिया में कमी आती है।
  • प्रतिभा का पलायन: कुछ छात्र ऐसे माहौल में रहना पसंद नहीं करते और या तो पढ़ाई छोड़ देते हैं या अन्य संस्थानों में चले जाते हैं, जिससे संस्थान अच्छी प्रतिभा से वंचित हो जाते हैं।
  • विश्वास का क्षरण: यह छात्रों और उनके परिवारों के मन में संस्थान के प्रति विश्वास को कम करता है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है।
  • संस्थागत विकास में बाधा: एक जहरीला माहौल फैकल्टी के मनोबल को भी प्रभावित करता है, जिससे शिक्षण और अनुसंधान की गुणवत्ता गिरती है।

एक शैक्षणिक संस्थान का प्राथमिक उद्देश्य ज्ञान देना है, लेकिन यदि वह सम्मान और सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहता है, तो उसका मूल उद्देश्य ही विफल हो जाता है।

नैतिकता और व्यावसायिक आचार संहिता का क्षरण

सार्वजनिक जीवन में, विशेष रूप से शिक्षण जैसे पवित्र पेशे में, नैतिकता और व्यावसायिक आचार संहिता का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिक्षकों को छात्रों के लिए रोल मॉडल माना जाता है। जब शिक्षक स्वयं अनैतिक व्यवहार करते हैं, तो यह इन मूल्यों का क्षरण करता है:

  • विश्वास का उल्लंघन: छात्रों और अभिभावकों का शिक्षकों पर विश्वास होता है कि वे उनका मार्गदर्शन करेंगे, न कि अपमान। ऐसे व्यवहार इस विश्वास को तोड़ते हैं।
  • शक्ति का दुरुपयोग: शिक्षकों के पास छात्रों पर एक अंतर्निहित शक्ति होती है। व्यक्तिगत अपमान इस शक्ति का अनैतिक दुरुपयोग है। यह अपने पद का लाभ उठाकर किसी को नीचा दिखाने जैसा है।
  • उदाहरण स्थापित करने में विफलता: यदि शिक्षक स्वयं सम्मानजनक व्यवहार नहीं करते, तो वे छात्रों को कैसे सिखा सकते हैं कि समाज में दूसरों के साथ सम्मानपूर्वक कैसे व्यवहार किया जाए?
  • UPSC नैतिकता पेपर से जुड़ाव (GS-4): यह मुद्दा सीधे तौर पर सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, करुणा, सहानुभूति, निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता जैसे मूल्यों से जुड़ा है। एक लोक सेवक, या यहाँ तक कि एक नागरिक के रूप में भी, हमें इन मूल्यों का सम्मान करना चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों में इनका उल्लंघन गहरी चिंता का विषय है।

एक संस्थान की नैतिकता उसके कर्मचारियों के व्यवहार से परिलक्षित होती है। यदि नैतिकता का पतन होता है, तो पूरा संस्थान खोखला हो जाता है।

कानूनी और संस्थागत ढाँचा: कहाँ चूक हो रही है?

भारत में शैक्षणिक संस्थानों और कार्यस्थलों पर उत्पीड़न और भेदभाव से निपटने के लिए कई कानून और नीतियां मौजूद हैं, फिर भी ऐसे मामले सामने क्यों आते हैं? यह हमें मौजूदा तंत्रों की प्रभावकारिता पर सवाल उठाने पर मजबूर करता है।

  1. यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून (POSH Act, 2013): कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, सभी कार्यस्थलों (शैक्षणिक संस्थानों सहित) को आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य करता है। हालाँकि, “रोटी बनाओ” जैसी टिप्पणी सीधे तौर पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा में नहीं आती, लेकिन यह निश्चित रूप से लैंगिक भेदभाव और अपमानजनक व्यवहार है जो एक शत्रुतापूर्ण वातावरण बनाता है।
  2. UGC दिशानिर्देश: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों और कर्मचारियों के उत्पीड़न को रोकने के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनमें भेदभाव, रैगिंग और दुर्व्यवहार के खिलाफ स्पष्ट नीतियां शामिल हैं।
  3. एंटी-रैगिंग कानून: रैगिंग के खिलाफ सख्त कानून हैं, लेकिन व्यक्तिगत अपमान और फैकल्टी द्वारा उत्पीड़न अक्सर इस दायरे से बाहर रह जाता है।
  4. संस्थागत शिकायत निवारण तंत्र: अधिकांश संस्थानों में छात्र शिकायत निवारण प्रकोष्ठ (Student Grievance Redressal Cell) या ओंबुड्समैन होता है। लेकिन इनकी प्रभावशीलता पर अक्सर सवाल उठते हैं।

चुनौतियाँ:

  • जागरूकता की कमी: छात्रों और फैकल्टी दोनों को अक्सर अपने अधिकारों और कर्तव्यों, और शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती।
  • डर और प्रतिशोध का भय: छात्र अक्सर शिकायत करने से डरते हैं क्योंकि उन्हें शैक्षणिक प्रतिशोध या सामाजिक बहिष्कार का डर होता है।
  • निष्पक्षता की कमी: कभी-कभी शिकायत निवारण तंत्र स्वयं निष्पक्ष नहीं होता या मामले को गंभीरता से नहीं लेता, जिससे पीड़ितों का विश्वास टूट जाता है।
  • अस्पष्ट परिभाषाएँ: “व्यक्तिगत अपमान” या “मानसिक उत्पीड़न” की कोई स्पष्ट कानूनी परिभाषा न होने के कारण ऐसे मामलों से निपटना मुश्किल हो जाता है।
  • साक्ष्य का अभाव: ऐसे मामलों में अक्सर प्रत्यक्ष साक्ष्य की कमी होती है, जिससे जांच करना मुश्किल हो जाता है।

कानूनों और नीतियों का होना पर्याप्त नहीं है; उनका प्रभावी कार्यान्वयन और एक सहायक संस्थागत संस्कृति का निर्माण अधिक महत्वपूर्ण है।

मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव

इस तरह के व्यवहार के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव व्यापक होते हैं, जो केवल प्रभावित व्यक्ति तक सीमित नहीं होते:

  • पीड़ितों पर दीर्घकालिक प्रभाव: अपमानित हुए छात्रों में हीन भावना, सामाजिक अलगाव, और भविष्य में पेशेवर वातावरण में भी असुरक्षा की भावना विकसित हो सकती है। यह उनके करियर और व्यक्तिगत जीवन दोनों को प्रभावित कर सकता है।
  • संस्थान की प्रतिष्ठा को क्षति: ऐसी घटनाएँ जब सार्वजनिक होती हैं, तो संस्थान की प्रतिष्ठा को भारी नुकसान पहुँचता है। यह नए छात्रों और फैकल्टी को आकर्षित करने की उसकी क्षमता को प्रभावित करता है।
  • समाज में नकारात्मक संदेश: जब शिक्षा के मंदिर में ही ऐसे व्यवहार होते हैं, तो यह समाज को एक नकारात्मक संदेश देता है कि महिलाओं के प्रति भेदभाव अभी भी स्वीकार्य है, या उच्च शिक्षा में भी सम्मान की कमी है।
  • विश्वास का क्षरण: माता-पिता का शिक्षा प्रणाली पर विश्वास कम होता है, जिससे वे अपने बच्चों को, विशेषकर बेटियों को, उच्च शिक्षा के लिए भेजने में हिचकिचा सकते हैं।
  • ‘बाईस्टैंडर प्रभाव’ (Bystander Effect): जब कोई ऐसी घटना देखता है और उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती, तो दर्शक भी चुप रहना सीख लेते हैं, जिससे समस्या और बढ़ जाती है।

ये केवल व्यक्तिगत घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि ये हमारे समाज के स्वास्थ्य और प्रगति को दर्शाती हैं।

आगे की राह: एक बहु-आयामी दृष्टिकोण

इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए एक व्यापक, बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें संस्थागत, कानूनी, सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर हस्तक्षेप शामिल हों।

  1. जागरूकता और संवेदनशीलता कार्यक्रम (Awareness & Sensitivity Programs):
    • सभी फैकल्टी, स्टाफ और छात्रों के लिए लैंगिक संवेदनशीलता, नैतिक आचरण और समावेशी व्यवहार पर नियमित और अनिवार्य कार्यशालाएँ आयोजित की जाएँ।
    • विशेष रूप से, नए फैकल्टी सदस्यों के लिए ‘ओरिएंटेशन’ में इन मुद्दों को प्रमुखता से शामिल किया जाए।
  2. कड़े प्रवर्तन और त्वरित कार्रवाई (Strict Enforcement & Swift Action):
    • उत्पीड़न और भेदभाव के मामलों पर ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ नीति अपनाई जाए।
    • शिकायतों की त्वरित, निष्पक्ष और पारदर्शी जाँच सुनिश्चित की जाए। दोषी पाए जाने पर उचित और दंडात्मक कार्रवाई की जाए, ताकि यह एक निवारक के रूप में कार्य करे।
    • कार्रवाई सार्वजनिक हो (व्यक्तिगत पहचान बताए बिना), ताकि अन्य लोगों को विश्वास हो।
  3. मजबूत शिकायत निवारण तंत्र (Robust Grievance Redressal Mechanism):
    • शिकायत तंत्र को छात्रों और कर्मचारियों के लिए सुलभ, गोपनीय और भरोसेमंद बनाया जाए।
    • इसमें बाहरी विशेषज्ञ (जैसे काउंसलर या कानूनी पेशेवर) शामिल हों ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।
    • पीड़ितों को शिकायत दर्ज करने में सहायता प्रदान की जाए और प्रतिशोध से सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
  4. पाठ्यक्रम में नैतिकता और मानवीय मूल्यों का समावेश (Inclusion of Ethics & Human Values in Curriculum):
    • स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक, पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा, सम्मान, सहानुभूति, लैंगिक समानता और विविधता को बढ़ावा देने वाले मूल्यों को शामिल किया जाए।
    • विभिन्न दृष्टिकोणों और संस्कृतियों के प्रति सम्मान सिखाया जाए।
  5. शिक्षकों और प्रशासकों का प्रशिक्षण (Training for Faculty & Administrators):
    • शिक्षकों को न केवल उनके विषय में बल्कि छात्रों के साथ प्रभावी संचार, संघर्ष समाधान और एक सहायक वातावरण बनाने के कौशल में भी प्रशिक्षित किया जाए।
    • प्रशासकों को शिकायत निवारण प्रक्रियाओं, कानूनी आवश्यकताओं और नैतिक नेतृत्व में प्रशिक्षित किया जाए।
  6. छात्रों को सशक्त बनाना (Empowering Students):
    • छात्रों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में शिक्षित किया जाए।
    • उन्हें ऐसी स्थितियों में बोलने और दूसरों का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
    • छात्र संघों और मेंटरशिप कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए जो एक सहायक समुदाय बनाते हैं।
  7. संस्थागत जवाबदेही (Institutional Accountability):
    • संस्थानों को एक सुरक्षित और समावेशी वातावरण बनाए रखने के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।
    • UGC और अन्य नियामक निकायों को ऐसे मामलों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और दोषी संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
  8. पुरुषों को लैंगिक संवेदनशीलता के प्रति जागरूक करना: पुरुषों को भी लैंगिक समानता और महिलाओं के प्रति सम्मान के महत्व के बारे में शिक्षित करना उतना ही महत्वपूर्ण है। पितृसत्तात्मक सोच केवल महिलाओं को ही नहीं, बल्कि पुरुषों को भी संकीर्ण दायरों में बांधती है।

निष्कर्ष

शारदा यूनिवर्सिटी में हुई घटना मात्र एक व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं है, बल्कि यह एक गहरी सामाजिक और संस्थागत बीमारी का लक्षण है। यह हमें याद दिलाता है कि शिक्षा का असली उद्देश्य केवल डिग्रियां बांटना नहीं है, बल्कि ऐसे नागरिक तैयार करना है जो ज्ञानी होने के साथ-साथ संवेदनशील, नैतिक और सम्मानजनक भी हों। एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज के निर्माण के लिए यह अनिवार्य है कि हमारे शैक्षणिक संस्थान भय, अपमान और भेदभाव से मुक्त हों। हमें मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाना होगा जहाँ हर छात्र, चाहे वह लड़का हो या लड़की, बिना किसी डर के अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन कर सके, जहाँ “ज्ञान” के साथ “गरिमा” का भी सम्मान हो। यह तभी संभव होगा जब हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझेगा और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देगा, न कि जहरीली मानसिकता को। यह एक सामूहिक प्रयास है – संस्थानों, शिक्षकों, छात्रों और पूरे समाज का।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहां 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 केवल निजी क्षेत्र के कार्यस्थलों पर लागू होता है।
    2. इस अधिनियम के तहत प्रत्येक कार्यस्थल को आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य है, यदि वहाँ 10 या अधिक कर्मचारी हों।
    3. ICC की अध्यक्षता एक पुरुष सदस्य द्वारा की जानी अनिवार्य है ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 3
    (d) 2 और 3

    उत्तर: (b) केवल 2

    व्याख्या:

    • कथन 1 गलत है। यह अधिनियम सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के सभी कार्यस्थलों (शैक्षणिक संस्थानों सहित) पर लागू होता है।
    • कथन 2 सही है। अधिनियम के तहत, यदि किसी कार्यस्थल पर 10 या अधिक कर्मचारी हैं, तो आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य है।
    • कथन 3 गलत है। ICC की अध्यक्षता एक वरिष्ठ महिला कर्मचारी द्वारा की जानी अनिवार्य है।
  2. ‘पितृसत्तात्मक मानसिकता’ के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा/से लक्षण इसकी पहचान है/हैं?

    1. महिलाओं को मुख्य रूप से घरेलू भूमिकाओं तक सीमित मानना।
    2. पुरुषों को निर्णय लेने और नेतृत्व की भूमिकाओं के लिए स्वाभाविक रूप से अधिक उपयुक्त मानना।
    3. लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले सामाजिक और राजनीतिक सुधारों का सक्रिय रूप से समर्थन करना।

    सही कूट का चयन कीजिए:
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (c) 1 और 2

    व्याख्या:

    • कथन 1 और 2 पितृसत्तात्मक मानसिकता के विशिष्ट लक्षण हैं, जहाँ पुरुषों को श्रेष्ठ और महिलाओं को अधीनस्थ माना जाता है।
    • कथन 3 लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है, जो पितृसत्तात्मक मानसिकता के विपरीत है।
  3. भारत में शिक्षा क्षेत्र में लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देने के लिए, निम्नलिखित में से कौन से कदम प्रभावी हो सकते हैं?

    1. शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में लैंगिक समानता मॉड्यूल का समावेश।
    2. पाठ्यक्रम में लैंगिक रूढ़िवादिता को चुनौती देने वाली सामग्री को शामिल करना।
    3. केवल महिला छात्रों के लिए पृथक परामर्श केंद्र स्थापित करना।
    4. संस्थानों में सभी कर्मचारियों और छात्रों के लिए अनिवार्य लैंगिक संवेदनशीलता कार्यशालाएं आयोजित करना।

    सही कूट का चयन कीजिए:
    (a) 1, 2 और 3
    (b) 1, 2 और 4
    (c) 2, 3 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (b) 1, 2 और 4

    व्याख्या:

    • 1, 2 और 4 सभी लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देने वाले प्रभावी कदम हैं।
    • कथन 3 (केवल महिला छात्रों के लिए पृथक परामर्श केंद्र) पूरी तरह से प्रभावी नहीं है, क्योंकि परामर्श केंद्र सभी छात्रों के लिए उपलब्ध होने चाहिए, और लैंगिक संवेदनशीलता की समस्या का समाधान केवल महिलाओं को अलग करने से नहीं होगा। लैंगिक संवेदनशीलता पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
  4. निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद भारत के संविधान में ‘गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार’ से संबंधित है?
    (a) अनुच्छेद 14
    (b) अनुच्छेद 19
    (c) अनुच्छेद 21
    (d) अनुच्छेद 25

    उत्तर: (c) अनुच्छेद 21

    व्याख्या:

    • अनुच्छेद 21 “प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण” का प्रावधान करता है, जिसमें विभिन्न न्यायिक निर्णयों के माध्यम से ‘गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार’ भी शामिल किया गया है।
    • अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार है। अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता का अधिकार है। अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है।
  5. किसी शैक्षणिक संस्थान में ‘जहरीली संस्कृति’ (Toxic Culture) को परिभाषित करने वाले कारकों में शामिल हो सकते हैं:

    1. व्यक्तिगत अपमान और धमकाने का नियमित होना।
    2. शिकायत निवारण तंत्र का अप्रभावी होना।
    3. नेतृत्व द्वारा अनैतिक व्यवहार को अनदेखा करना।
    4. छात्रों और कर्मचारियों के बीच उच्च स्तर का विश्वास और सम्मान।

    सही कूट का चयन कीजिए:
    (a) 1, 2 और 3
    (b) 1, 2 और 4
    (c) 2, 3 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (a) 1, 2 और 3

    व्याख्या:

    • कथन 1, 2 और 3 सभी जहरीली संस्कृति के लक्षण हैं।
    • कथन 4 (उच्च स्तर का विश्वास और सम्मान) एक स्वस्थ संस्कृति का लक्षण है, न कि जहरीली संस्कृति का।
  6. निम्नलिखित में से कौन सा निकाय भारत में उच्च शिक्षा के मानकों को बनाए रखने और समन्वय स्थापित करने के लिए जिम्मेदार है?
    (a) अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE)
    (b) भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI)
    (c) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)
    (d) राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT)

    उत्तर: (c) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)

    व्याख्या:

    • UGC भारत में उच्च शिक्षा के मानकों को बनाए रखने, समन्वय स्थापित करने और वित्तपोषण के लिए एक वैधानिक निकाय है।
    • AICTE तकनीकी शिक्षा से संबंधित है। MCI चिकित्सा शिक्षा से संबंधित है। NCERT स्कूल शिक्षा से संबंधित है।
  7. UPSC के सामान्य अध्ययन पेपर-4 (नैतिकता, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि) के संदर्भ में, एक लोक सेवक के लिए किस मूल्य का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण है जब उसे किसी सहकर्मी द्वारा किए गए दुर्व्यवहार की शिकायत मिलती है?

    1. सहानुभूति
    2. निष्पक्षता
    3. वस्तुनिष्ठता
    4. ये सभी

    उत्तर: (d) ये सभी

    व्याख्या:

    • एक लोक सेवक को ऐसी स्थिति में पीड़ित के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए, मामले की निष्पक्ष जांच करनी चाहिए और वस्तुनिष्ठ तरीके से निर्णय लेना चाहिए, बिना किसी पूर्वाग्रह या व्यक्तिगत संबंधों के प्रभाव में आए। ये सभी मूल्य एक प्रभावी और नैतिक लोक सेवक के लिए आवश्यक हैं।
  8. ‘बाईस्टैंडर प्रभाव’ (Bystander Effect) शब्द का सबसे अच्छा वर्णन कौन सा है?
    (a) जब एक व्यक्ति समूह में दूसरों की उपस्थिति के कारण किसी आपात स्थिति में सहायता प्रदान करने की संभावना कम होती है।
    (b) जब एक व्यक्ति किसी निर्णय के लिए पूरी तरह से स्वयं जिम्मेदार होता है।
    (c) जब एक व्यक्ति दूसरों की राय से प्रभावित हुए बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।
    (d) जब एक व्यक्ति सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन करता है।

    उत्तर: (a) जब एक व्यक्ति समूह में दूसरों की उपस्थिति के कारण किसी आपात स्थिति में सहायता प्रदान करने की संभावना कम होती है।

    व्याख्या:

    • बाईस्टैंडर प्रभाव एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक घटना है जहाँ व्यक्ति किसी आपात स्थिति में दूसरों की उपस्थिति के कारण सहायता प्रदान करने में कम इच्छुक होते हैं। यह जिम्मेदारी के फैलाव से जुड़ा है।
  9. निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘लैंगिक संवेदनशीलता’ को सबसे सटीक रूप से परिभाषित करता है?
    (a) यह केवल महिलाओं के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना है।
    (b) यह लिंगों के बीच जैविक अंतरों को स्वीकार करना है।
    (c) यह समझना और पहचानना है कि लिंग (जेंडर) समाज को कैसे प्रभावित करता है और व्यक्तियों के जीवन अनुभवों को कैसे आकार देता है।
    (d) यह पुरुषों और महिलाओं के लिए समान कानूनी अधिकार सुनिश्चित करना है।

    उत्तर: (c) यह समझना और पहचानना है कि लिंग (जेंडर) समाज को कैसे प्रभावित करता है और व्यक्तियों के जीवन अनुभवों को कैसे आकार देता है।

    व्याख्या:

    • लैंगिक संवेदनशीलता पुरुषों और महिलाओं दोनों के अनुभवों, आवश्यकताओं और दृष्टिकोणों को समझने और उन्हें मान्यता देने की क्षमता है, यह मानते हुए कि लिंग सामाजिक रूप से निर्मित है और यह शक्ति संबंधों को कैसे प्रभावित करता है। यह केवल महिलाओं के मुद्दों तक सीमित नहीं है, न ही केवल जैविक अंतरों तक। समान कानूनी अधिकार इसका एक परिणाम हो सकते हैं, लेकिन परिभाषा व्यापक है।
  10. शैक्षणिक संस्थानों में दुर्व्यवहार के मामलों में, आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की भूमिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. ICC को यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच करने का अधिकार है।
    2. ICC को सभी प्रकार के व्यक्तिगत अपमान और भेदभाव के मामलों की जांच करनी चाहिए, भले ही वे यौन प्रकृति के न हों।
    3. ICC की सिफारिशें संस्थान के लिए बाध्यकारी नहीं होती हैं।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1
    (b) 1 और 2
    (c) 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (a) केवल 1

    व्याख्या:

    • कथन 1 सही है। ICC का प्राथमिक कार्य कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच करना है जैसा कि POSH अधिनियम, 2013 में उल्लिखित है।
    • कथन 2 गलत है। जबकि संस्थान अन्य प्रकार के अपमान और भेदभाव के लिए अपनी नीतियां बना सकते हैं और शिकायत निवारण प्रकोष्ठ (Grievance Redressal Cell) स्थापित कर सकते हैं, ICC विशेष रूप से यौन उत्पीड़न के मामलों से संबंधित है। “रोटी बनाओ” जैसी टिप्पणी, हालांकि अपमानजनक है, सीधे तौर पर ICC के दायरे में तब तक नहीं आती जब तक कि इसे यौन उत्पीड़न के व्यापक संदर्भ में न देखा जाए।
    • कथन 3 गलत है। ICC की सिफारिशें आमतौर पर संस्थान के लिए बाध्यकारी होती हैं, और उन्हें उन पर कार्रवाई करनी होती है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ती व्यक्तिगत अपमान और लैंगिक भेदभाव की घटनाओं को आप किस प्रकार भारतीय समाज में व्याप्त गहरी पितृसत्तात्मक मानसिकता का प्रतिबिंब मानते हैं? इन घटनाओं के सामाजिक-मनोवैज्ञानिक परिणामों का विश्लेषण कीजिए और इनके समाधान हेतु बहु-आयामी दृष्टिकोण सुझाइए। (250 शब्द)
  2. “शिक्षण एक पवित्र पेशा है, और शिक्षकों को छात्रों के लिए रोल मॉडल होना चाहिए।” इस कथन के आलोक में, हाल ही में शैक्षणिक संस्थानों में सामने आए दुर्व्यवहार के मामलों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। व्यावसायिक नैतिकता और संस्थागत जवाबदेही सुनिश्चित करने में क्या चुनौतियां हैं? (250 शब्द)
  3. कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए चर्चा कीजिए कि यह कानून शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं को किस हद तक सुरक्षा प्रदान करता है। ‘व्यक्तिगत अपमान’ और ‘लैंगिक भेदभाव’ जैसे गैर-यौन प्रकृति के दुर्व्यवहारों से निपटने के लिए मौजूदा कानूनी और संस्थागत ढाँचे में किन सुधारों की आवश्यकता है? (150 शब्द)

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[–SEO_TITLE–]Toxic Campuses: When Education Breeds Insults, Not Excellence
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Toxic Campuses: When Education Breeds Insults, Not Excellence

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, दिल्ली से सटे एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान, शारदा यूनिवर्सिटी के डेंटल विभाग में फैकल्टी द्वारा छात्रों के प्रति अनुचित और अपमानजनक टिप्पणी का मामला सामने आया है। “घर जाओ, रोटियां बनाओ” जैसी व्यक्तिगत अपमानजनक टिप्पणियां, जो खासकर महिला छात्रों को निशाना बनाती हैं, यह दर्शाती हैं कि अकादमिक उत्कृष्टता के केंद्र माने जाने वाले ये संस्थान कभी-कभी अपमान, दुर्व्यवहार और लैंगिक रूढ़िवादिता की जहरीली संस्कृति के गढ़ बन जाते हैं। यह घटना केवल एक विश्वविद्यालय की नहीं, बल्कि देश भर के कई शिक्षण संस्थानों में व्याप्त एक गंभीर समस्या का प्रतीक है, जहाँ छात्र-शिक्षक संबंध पवित्रता की बजाय तनाव और अपमान से भर जाते हैं।

शैक्षणिक संस्थानों में दुर्व्यवहार का बढ़ता ग्राफ: एक चिंताजनक प्रवृत्ति

शैक्षणिक संस्थान ज्ञान के मंदिर होते हैं, जहाँ छात्रों को न केवल किताबी ज्ञान मिलता है, बल्कि वे जीवन मूल्य, सम्मान और व्यावसायिक नैतिकता भी सीखते हैं। लेकिन जब यही मंदिर अपमान, भेदभाव और मानसिक उत्पीड़न का अड्डा बन जाएं, तो यह समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन जाता है। शारदा यूनिवर्सिटी की घटना इस बात का एक दुखद उदाहरण है कि कैसे व्यक्तिगत अपमान, विशेषकर लैंगिक पूर्वाग्रहों से ग्रस्त टिप्पणियाँ, छात्रों के आत्मविश्वास और सीखने की प्रक्रिया को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती हैं।

“ज्ञान का प्रकाश तभी फैलता है जब सम्मान और सुरक्षा का वातावरण हो। जहाँ अपमान होता है, वहाँ सीखने की इच्छा मुरझा जाती है।”

यह घटना सिर्फ एक “कहासुनी” नहीं है। यह एक ऐसे व्यापक पैटर्न का हिस्सा है जहाँ छात्रों, विशेषकर महिला छात्रों को उनकी व्यक्तिगत पहचान, क्षमताओं या उनके भविष्य की आकांक्षाओं पर आधारित अपमान का सामना करना पड़ता है। यह एक गहरे सामाजिक और सांस्कृतिक पूर्वाग्रह को उजागर करता है जो शिक्षा के उच्च स्तर तक पहुँचने के बावजूद समाज में मौजूद है।

“रोटी बनाओ” टिप्पणी का निहितार्थ: लैंगिक संवेदनशीलता और पितृसत्तात्मक मानसिकता

जब एक महिला छात्र को उसकी व्यावसायिक आकांक्षाओं के जवाब में “घर जाओ, रोटी बनाओ” जैसी टिप्पणी की जाती है, तो यह सिर्फ एक अपमानजनक वाक्यांश नहीं होता, बल्कि यह सदियों से चली आ रही पितृसत्तात्मक मानसिकता का प्रतीक होता है। यह टिप्पणी कई गंभीर निहितार्थों को उजागर करती है:

  1. लैंगिक रूढ़िवादिता का सुदृढ़ीकरण: यह इस विचार को पुष्ट करता है कि महिलाओं का प्राथमिक स्थान घर और रसोई है, न कि व्यावसायिक या अकादमिक क्षेत्र। यह उनके करियर और व्यक्तिगत विकास की आकांक्षाओं को कमतर आंकता है।
  2. महिलाओं के सशक्तिकरण में बाधा: यह उन लाखों लड़कियों और महिलाओं के सपनों पर पानी फेरता है जो शिक्षा और करियर के माध्यम से खुद को सशक्त बनाने का प्रयास कर रही हैं। ऐसी टिप्पणियाँ उन्हें हतोत्साहित करती हैं और समाज में उनके स्थान को सीमित करने का प्रयास करती हैं।
  3. भेदभावपूर्ण वातावरण का निर्माण: यह शिक्षण संस्थानों में एक ऐसे वातावरण को बढ़ावा देता है जहाँ महिलाओं को पुरुषों के बराबर नहीं माना जाता, जिससे उनके लिए सीखने और आगे बढ़ने में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
  4. संस्थागत पूर्वाग्रह का संकेत: जब ऐसी टिप्पणियाँ फैकल्टी सदस्यों द्वारा की जाती हैं, तो यह संस्थान के भीतर भी अंतर्निहित लैंगिक पूर्वाग्रहों की उपस्थिति का संकेत देती हैं, जो संस्थान की नैतिकता और मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में लैंगिक समानता की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, या अभी भी शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी लैंगिक भेदभाव जड़ जमाए बैठा है।

एक जहरीली संस्कृति का निर्माण: छात्रों और शिक्षा पर प्रभाव

व्यक्तिगत अपमान और दुर्व्यवहार केवल तात्कालिक तनाव का कारण नहीं बनते, बल्कि यह एक ‘जहरीली संस्कृति’ को जन्म देते हैं जिसके दीर्घकालिक और गंभीर परिणाम होते हैं:

  • मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: लगातार अपमान और आलोचना छात्रों में तनाव, चिंता, अवसाद और आत्म-सम्मान में कमी का कारण बन सकती है। यह उनके शैक्षणिक प्रदर्शन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
  • सीखने की प्रक्रिया में बाधा: एक भयभीत या अपमानित छात्र सीखने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता। उसका ध्यान अपनी सुरक्षा और अपमान से बचने पर केंद्रित हो जाता है, जिससे सीखने की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • संवाद की कमी: जब छात्र शिक्षकों से डरने लगते हैं या अपमानित महसूस करते हैं, तो वे प्रश्न पूछने, संदेह व्यक्त करने या समस्याओं पर चर्चा करने से कतराते हैं, जिससे उनके सीखने की प्रक्रिया में कमी आती है।
  • प्रतिभा का पलायन: कुछ छात्र ऐसे माहौल में रहना पसंद नहीं करते और या तो पढ़ाई छोड़ देते हैं या अन्य संस्थानों में चले जाते हैं, जिससे संस्थान अच्छी प्रतिभा से वंचित हो जाते हैं।
  • विश्वास का क्षरण: यह छात्रों और उनके परिवारों के मन में संस्थान के प्रति विश्वास को कम करता है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है।
  • संस्थागत विकास में बाधा: एक जहरीला माहौल फैकल्टी के मनोबल को भी प्रभावित करता है, जिससे शिक्षण और अनुसंधान की गुणवत्ता गिरती है।

एक शैक्षणिक संस्थान का प्राथमिक उद्देश्य ज्ञान देना है, लेकिन यदि वह सम्मान और सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहता है, तो उसका मूल उद्देश्य ही विफल हो जाता है।

नैतिकता और व्यावसायिक आचार संहिता का क्षरण

सार्वजनिक जीवन में, विशेष रूप से शिक्षण जैसे पवित्र पेशे में, नैतिकता और व्यावसायिक आचार संहिता का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिक्षकों को छात्रों के लिए रोल मॉडल माना जाता है। जब शिक्षक स्वयं अनैतिक व्यवहार करते हैं, तो यह इन मूल्यों का क्षरण करता है:

  • विश्वास का उल्लंघन: छात्रों और अभिभावकों का शिक्षकों पर विश्वास होता है कि वे उनका मार्गदर्शन करेंगे, न कि अपमान। ऐसे व्यवहार इस विश्वास को तोड़ते हैं।
  • शक्ति का दुरुपयोग: शिक्षकों के पास छात्रों पर एक अंतर्निहित शक्ति होती है। व्यक्तिगत अपमान इस शक्ति का अनैतिक दुरुपयोग है। यह अपने पद का लाभ उठाकर किसी को नीचा दिखाने जैसा है।
  • उदाहरण स्थापित करने में विफलता: यदि शिक्षक स्वयं सम्मानजनक व्यवहार नहीं करते, तो वे छात्रों को कैसे सिखा सकते हैं कि समाज में दूसरों के साथ सम्मानपूर्वक कैसे व्यवहार किया जाए?
  • UPSC नैतिकता पेपर से जुड़ाव (GS-4): यह मुद्दा सीधे तौर पर सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, करुणा, सहानुभूति, निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता जैसे मूल्यों से जुड़ा है। एक लोक सेवक, या यहाँ तक कि एक नागरिक के रूप में भी, हमें इन मूल्यों का सम्मान करना चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों में इनका उल्लंघन गहरी चिंता का विषय है।

एक संस्थान की नैतिकता उसके कर्मचारियों के व्यवहार से परिलक्षित होती है। यदि नैतिकता का पतन होता है, तो पूरा संस्थान खोखला हो जाता है।

कानूनी और संस्थागत ढाँचा: कहाँ चूक हो रही है?

भारत में शैक्षणिक संस्थानों और कार्यस्थलों पर उत्पीड़न और भेदभाव से निपटने के लिए कई कानून और नीतियां मौजूद हैं, फिर भी ऐसे मामले सामने क्यों आते हैं? यह हमें मौजूदा तंत्रों की प्रभावकारिता पर सवाल उठाने पर मजबूर करता है।

  1. यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून (POSH Act, 2013): कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, सभी कार्यस्थलों (शैक्षणिक संस्थानों सहित) को आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य करता है। हालाँकि, “रोटी बनाओ” जैसी टिप्पणी सीधे तौर पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा में नहीं आती, लेकिन यह निश्चित रूप से लैंगिक भेदभाव और अपमानजनक व्यवहार है जो एक शत्रुतापूर्ण वातावरण बनाता है।
  2. UGC दिशानिर्देश: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों और कर्मचारियों के उत्पीड़न को रोकने के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनमें भेदभाव, रैगिंग और दुर्व्यवहार के खिलाफ स्पष्ट नीतियां शामिल हैं।
  3. एंटी-रैगिंग कानून: रैगिंग के खिलाफ सख्त कानून हैं, लेकिन व्यक्तिगत अपमान और फैकल्टी द्वारा उत्पीड़न अक्सर इस दायरे से बाहर रह जाता है।
  4. संस्थागत शिकायत निवारण तंत्र: अधिकांश संस्थानों में छात्र शिकायत निवारण प्रकोष्ठ (Student Grievance Redressal Cell) या ओंबुड्समैन होता है। लेकिन इनकी प्रभावशीलता पर अक्सर सवाल उठते हैं।

चुनौतियाँ:

  • जागरूकता की कमी: छात्रों और फैकल्टी दोनों को अक्सर अपने अधिकारों और कर्तव्यों, और शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती।
  • डर और प्रतिशोध का भय: छात्र अक्सर शिकायत करने से डरते हैं क्योंकि उन्हें शैक्षणिक प्रतिशोध या सामाजिक बहिष्कार का डर होता है।
  • निष्पक्षता की कमी: कभी-कभी शिकायत निवारण तंत्र स्वयं निष्पक्ष नहीं होता या मामले को गंभीरता से नहीं लेता, जिससे पीड़ितों का विश्वास टूट जाता है।
  • अस्पष्ट परिभाषाएँ: “व्यक्तिगत अपमान” या “मानसिक उत्पीड़न” की कोई स्पष्ट कानूनी परिभाषा न होने के कारण ऐसे मामलों से निपटना मुश्किल हो जाता है।
  • साक्ष्य का अभाव: ऐसे मामलों में अक्सर प्रत्यक्ष साक्ष्य की कमी होती है, जिससे जांच करना मुश्किल हो जाता है।

कानूनों और नीतियों का होना पर्याप्त नहीं है; उनका प्रभावी कार्यान्वयन और एक सहायक संस्थागत संस्कृति का निर्माण अधिक महत्वपूर्ण है।

मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव

इस तरह के व्यवहार के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव व्यापक होते हैं, जो केवल प्रभावित व्यक्ति तक सीमित नहीं होते:

  • पीड़ितों पर दीर्घकालिक प्रभाव: अपमानित हुए छात्रों में हीन भावना, सामाजिक अलगाव, और भविष्य में पेशेवर वातावरण में भी असुरक्षा की भावना विकसित हो सकती है। यह उनके करियर और व्यक्तिगत जीवन दोनों को प्रभावित कर सकता है।
  • संस्थान की प्रतिष्ठा को क्षति: ऐसी घटनाएँ जब सार्वजनिक होती हैं, तो संस्थान की प्रतिष्ठा को भारी नुकसान पहुँचता है। यह नए छात्रों और फैकल्टी को आकर्षित करने की उसकी क्षमता को प्रभावित करता है।
  • समाज में नकारात्मक संदेश: जब शिक्षा के मंदिर में ही ऐसे व्यवहार होते हैं, तो यह समाज को एक नकारात्मक संदेश देता है कि महिलाओं के प्रति भेदभाव अभी भी स्वीकार्य है, या उच्च शिक्षा में भी सम्मान की कमी है।
  • विश्वास का क्षरण: माता-पिता का शिक्षा प्रणाली पर विश्वास कम होता है, जिससे वे अपने बच्चों को, विशेषकर बेटियों को, उच्च शिक्षा के लिए भेजने में हिचकिचा सकते हैं।
  • ‘बाईस्टैंडर प्रभाव’ (Bystander Effect): जब कोई ऐसी घटना देखता है और उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती, तो दर्शक भी चुप रहना सीख लेते हैं, जिससे समस्या और बढ़ जाती है।

ये केवल व्यक्तिगत घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि ये हमारे समाज के स्वास्थ्य और प्रगति को दर्शाती हैं।

आगे की राह: एक बहु-आयामी दृष्टिकोण

इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए एक व्यापक, बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें संस्थागत, कानूनी, सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर हस्तक्षेप शामिल हों।

  1. जागरूकता और संवेदनशीलता कार्यक्रम (Awareness & Sensitivity Programs):
    • सभी फैकल्टी, स्टाफ और छात्रों के लिए लैंगिक संवेदनशीलता, नैतिक आचरण और समावेशी व्यवहार पर नियमित और अनिवार्य कार्यशालाएँ आयोजित की जाएँ।
    • विशेष रूप से, नए फैकल्टी सदस्यों के लिए ‘ओरिएंटेशन’ में इन मुद्दों को प्रमुखता से शामिल किया जाए।
  2. कड़े प्रवर्तन और त्वरित कार्रवाई (Strict Enforcement & Swift Action):
    • उत्पीड़न और भेदभाव के मामलों पर ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ नीति अपनाई जाए।
    • शिकायतों की त्वरित, निष्पक्ष और पारदर्शी जाँच सुनिश्चित की जाए। दोषी पाए जाने पर उचित और दंडात्मक कार्रवाई की जाए, ताकि यह एक निवारक के रूप में कार्य करे।
    • कार्रवाई सार्वजनिक हो (व्यक्तिगत पहचान बताए बिना), ताकि अन्य लोगों को विश्वास हो।
  3. मजबूत शिकायत निवारण तंत्र (Robust Grievance Redressal Mechanism):
    • शिकायत तंत्र को छात्रों और कर्मचारियों के लिए सुलभ, गोपनीय और भरोसेमंद बनाया जाए।
    • इसमें बाहरी विशेषज्ञ (जैसे काउंसलर या कानूनी पेशेवर) शामिल हों ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।
    • पीड़ितों को शिकायत दर्ज करने में सहायता प्रदान की जाए और प्रतिशोध से सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
  4. पाठ्यक्रम में नैतिकता और मानवीय मूल्यों का समावेश (Inclusion of Ethics & Human Values in Curriculum):
    • स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक, पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा, सम्मान, सहानुभूति, लैंगिक समानता और विविधता को बढ़ावा देने वाले मूल्यों को शामिल किया जाए।
    • विभिन्न दृष्टिकोणों और संस्कृतियों के प्रति सम्मान सिखाया जाए।
  5. शिक्षकों और प्रशासकों का प्रशिक्षण (Training for Faculty & Administrators):
    • शिक्षकों को न केवल उनके विषय में बल्कि छात्रों के साथ प्रभावी संचार, संघर्ष समाधान और एक सहायक वातावरण बनाने के कौशल में भी प्रशिक्षित किया जाए।
    • प्रशासकों को शिकायत निवारण प्रक्रियाओं, कानूनी आवश्यकताओं और नैतिक नेतृत्व में प्रशिक्षित किया जाए।
  6. छात्रों को सशक्त बनाना (Empowering Students):
    • छात्रों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में शिक्षित किया जाए।
    • उन्हें ऐसी स्थितियों में बोलने और दूसरों का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
    • छात्र संघों और मेंटरशिप कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए जो एक सहायक समुदाय बनाते हैं।
  7. संस्थागत जवाबदेही (Institutional Accountability):
    • संस्थानों को एक सुरक्षित और समावेशी वातावरण बनाए रखने के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।
    • UGC और अन्य नियामक निकायों को ऐसे मामलों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और दोषी संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
  8. पुरुषों को लैंगिक संवेदनशीलता के प्रति जागरूक करना: पुरुषों को भी लैंगिक समानता और महिलाओं के प्रति सम्मान के महत्व के बारे में शिक्षित करना उतना ही महत्वपूर्ण है। पितृसत्तात्मक सोच केवल महिलाओं को ही नहीं, बल्कि पुरुषों को भी संकीर्ण दायरों में बांधती है।

निष्कर्ष

शारदा यूनिवर्सिटी में हुई घटना मात्र एक व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं है, बल्कि यह एक गहरी सामाजिक और संस्थागत बीमारी का लक्षण है। यह हमें याद दिलाता है कि शिक्षा का असली उद्देश्य केवल डिग्रियां बांटना नहीं है, बल्कि ऐसे नागरिक तैयार करना है जो ज्ञानी होने के साथ-साथ संवेदनशील, नैतिक और सम्मानजनक भी हों। एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज के निर्माण के लिए यह अनिवार्य है कि हमारे शैक्षणिक संस्थान भय, अपमान और भेदभाव से मुक्त हों। हमें मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाना होगा जहाँ हर छात्र, चाहे वह लड़का हो या लड़की, बिना किसी डर के अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन कर सके, जहाँ “ज्ञान” के साथ “गरिमा” का भी सम्मान हो। यह तभी संभव होगा जब हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझेगा और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देगा, न कि जहरीली मानसिकता को। यह एक सामूहिक प्रयास है – संस्थानों, शिक्षकों, छात्रों और पूरे समाज का।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहां 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 केवल निजी क्षेत्र के कार्यस्थलों पर लागू होता है।
    2. इस अधिनियम के तहत प्रत्येक कार्यस्थल को आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य है, यदि वहाँ 10 या अधिक कर्मचारी हों।
    3. ICC की अध्यक्षता एक पुरुष सदस्य द्वारा की जानी अनिवार्य है ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 3
    (d) 2 और 3

    उत्तर: (b) केवल 2

    व्याख्या:

    • कथन 1 गलत है। यह अधिनियम सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के सभी कार्यस्थलों (शैक्षणिक संस्थानों सहित) पर लागू होता है।
    • कथन 2 सही है। अधिनियम के तहत, यदि किसी कार्यस्थल पर 10 या अधिक कर्मचारी हैं, तो आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य है।
    • कथन 3 गलत है। ICC की अध्यक्षता एक वरिष्ठ महिला कर्मचारी द्वारा की जानी अनिवार्य है।
  2. ‘पितृसत्तात्मक मानसिकता’ के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा/से लक्षण इसकी पहचान है/हैं?

    1. महिलाओं को मुख्य रूप से घरेलू भूमिकाओं तक सीमित मानना।
    2. पुरुषों को निर्णय लेने और नेतृत्व की भूमिकाओं के लिए स्वाभाविक रूप से अधिक उपयुक्त मानना।
    3. लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले सामाजिक और राजनीतिक सुधारों का सक्रिय रूप से समर्थन करना।

    सही कूट का चयन कीजिए:
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (c) 1 और 2

    व्याख्या:

    • कथन 1 और 2 पितृसत्तात्मक मानसिकता के विशिष्ट लक्षण हैं, जहाँ पुरुषों को श्रेष्ठ और महिलाओं को अधीनस्थ माना जाता है।
    • कथन 3 लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है, जो पितृसत्तात्मक मानसिकता के विपरीत है।
  3. भारत में शिक्षा क्षेत्र में लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देने के लिए, निम्नलिखित में से कौन से कदम प्रभावी हो सकते हैं?

    1. शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में लैंगिक समानता मॉड्यूल का समावेश।
    2. पाठ्यक्रम में लैंगिक रूढ़िवादिता को चुनौती देने वाली सामग्री को शामिल करना।
    3. केवल महिला छात्रों के लिए पृथक परामर्श केंद्र स्थापित करना।
    4. संस्थानों में सभी कर्मचारियों और छात्रों के लिए अनिवार्य लैंगिक संवेदनशीलता कार्यशालाएं आयोजित करना।

    सही कूट का चयन कीजिए:
    (a) 1, 2 और 3
    (b) 1, 2 और 4
    (c) 2, 3 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (b) 1, 2 और 4

    व्याख्या:

    • 1, 2 और 4 सभी लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देने वाले प्रभावी कदम हैं।
    • कथन 3 (केवल महिला छात्रों के लिए पृथक परामर्श केंद्र) पूरी तरह से प्रभावी नहीं है, क्योंकि परामर्श केंद्र सभी छात्रों के लिए उपलब्ध होने चाहिए, और लैंगिक संवेदनशीलता की समस्या का समाधान केवल महिलाओं को अलग करने से नहीं होगा। लैंगिक संवेदनशीलता पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
  4. निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद भारत के संविधान में ‘गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार’ से संबंधित है?
    (a) अनुच्छेद 14
    (b) अनुच्छेद 19
    (c) अनुच्छेद 21
    (d) अनुच्छेद 25

    उत्तर: (c) अनुच्छेद 21

    व्याख्या:

    • अनुच्छेद 21 “प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण” का प्रावधान करता है, जिसमें विभिन्न न्यायिक निर्णयों के माध्यम से ‘गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार’ भी शामिल किया गया है।
    • अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार है। अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता का अधिकार है। अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है।
  5. किसी शैक्षणिक संस्थान में ‘जहरीली संस्कृति’ (Toxic Culture) को परिभाषित करने वाले कारकों में शामिल हो सकते हैं:

    1. व्यक्तिगत अपमान और धमकाने का नियमित होना।
    2. शिकायत निवारण तंत्र का अप्रभावी होना।
    3. नेतृत्व द्वारा अनैतिक व्यवहार को अनदेखा करना।
    4. छात्रों और कर्मचारियों के बीच उच्च स्तर का विश्वास और सम्मान।

    सही कूट का चयन कीजिए:
    (a) 1, 2 और 3
    (b) 1, 2 और 4
    (c) 2, 3 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (a) 1, 2 और 3

    व्याख्या:

    • कथन 1, 2 और 3 सभी जहरीली संस्कृति के लक्षण हैं।
    • कथन 4 (उच्च स्तर का विश्वास और सम्मान) एक स्वस्थ संस्कृति का लक्षण है, न कि जहरीली संस्कृति का।
  6. निम्नलिखित में से कौन सा निकाय भारत में उच्च शिक्षा के मानकों को बनाए रखने और समन्वय स्थापित करने के लिए जिम्मेदार है?
    (a) अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE)
    (b) भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI)
    (c) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)
    (d) राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT)

    उत्तर: (c) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)

    व्याख्या:

    • UGC भारत में उच्च शिक्षा के मानकों को बनाए रखने, समन्वय स्थापित करने और वित्तपोषण के लिए एक वैधानिक निकाय है।
    • AICTE तकनीकी शिक्षा से संबंधित है। MCI चिकित्सा शिक्षा से संबंधित है। NCERT स्कूल शिक्षा से संबंधित है।
  7. UPSC के सामान्य अध्ययन पेपर-4 (नैतिकता, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि) के संदर्भ में, एक लोक सेवक के लिए किस मूल्य का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण है जब उसे किसी सहकर्मी द्वारा किए गए दुर्व्यवहार की शिकायत मिलती है?

    1. सहानुभूति
    2. निष्पक्षता
    3. वस्तुनिष्ठता
    4. ये सभी

    उत्तर: (d) ये सभी

    व्याख्या:

    • एक लोक सेवक को ऐसी स्थिति में पीड़ित के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए, मामले की निष्पक्ष जांच करनी चाहिए और वस्तुनिष्ठ तरीके से निर्णय लेना चाहिए, बिना किसी पूर्वाग्रह या व्यक्तिगत संबंधों के प्रभाव में आए। ये सभी मूल्य एक प्रभावी और नैतिक लोक सेवक के लिए आवश्यक हैं।
  8. ‘बाईस्टैंडर प्रभाव’ (Bystander Effect) शब्द का सबसे अच्छा वर्णन कौन सा है?
    (a) जब एक व्यक्ति समूह में दूसरों की उपस्थिति के कारण किसी आपात स्थिति में सहायता प्रदान करने की संभावना कम होती है।
    (b) जब एक व्यक्ति किसी निर्णय के लिए पूरी तरह से स्वयं जिम्मेदार होता है।
    (c) जब एक व्यक्ति दूसरों की राय से प्रभावित हुए बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।
    (d) जब एक व्यक्ति सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन करता है.

    उत्तर: (a) जब एक व्यक्ति समूह में दूसरों की उपस्थिति के कारण किसी आपात स्थिति में सहायता प्रदान करने की संभावना कम होती है।

    व्याख्या:

    • बाईस्टैंडर प्रभाव एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक घटना है जहाँ व्यक्ति किसी आपात स्थिति में दूसरों की उपस्थिति के कारण सहायता प्रदान करने में कम इच्छुक होते हैं। यह जिम्मेदारी के फैलाव से जुड़ा है।
  9. निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘लैंगिक संवेदनशीलता’ को सबसे सटीक रूप से परिभाषित करता है?
    (a) यह केवल महिलाओं के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना है।
    (b) यह लिंगों के बीच जैविक अंतरों को स्वीकार करना है।< (c) यह समझना और पहचानना है कि लिंग (जेंडर) समाज को कैसे प्रभावित करता है और व्यक्तियों के जीवन अनुभवों को कैसे आकार देता है।
    (d) यह पुरुषों और महिलाओं के लिए समान कानूनी अधिकार सुनिश्चित करना है।

    उत्तर: (c) यह समझना और पहचानना है कि लिंग (जेंडर) समाज को कैसे प्रभावित करता है और व्यक्तियों के जीवन अनुभवों को कैसे आकार देता है।

    व्याख्या:

    • लैंगिक संवेदनशीलता पुरुषों और महिलाओं दोनों के अनुभवों, आवश्यकताओं और दृष्टिकोणों को समझने और उन्हें मान्यता देने की क्षमता है, यह मानते हुए कि लिंग सामाजिक रूप से निर्मित है और यह शक्ति संबंधों को कैसे प्रभावित करता है। यह केवल महिलाओं के मुद्दों तक सीमित नहीं है, न ही केवल जैविक अंतरों तक। समान कानूनी अधिकार इसका एक परिणाम हो सकते हैं, लेकिन परिभाषा व्यापक है।
  10. शैक्षणिक संस्थानों में दुर्व्यवहार के मामलों में, आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की भूमिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. ICC को यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच करने का अधिकार है।
    2. ICC को सभी प्रकार के व्यक्तिगत अपमान और भेदभाव के मामलों की जांच करनी चाहिए, भले ही वे यौन प्रकृति के न हों।
    3. ICC की सिफारिशें संस्थान के लिए बाध्यकारी नहीं होती हैं।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1
    (b) 1 और 2
    (c) 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (a) केवल 1

    व्याख्या:

    • कथन 1 सही है। ICC का प्राथमिक कार्य कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच करना है जैसा कि POSH अधिनियम, 2013 में उल्लिखित है।
    • कथन 2 गलत है। जबकि संस्थान अन्य प्रकार के अपमान और भेदभाव के लिए अपनी नीतियां बना सकते हैं और शिकायत निवारण प्रकोष्ठ (Grievance Redressal Cell) स्थापित कर सकते हैं, ICC विशेष रूप से यौन उत्पीड़न के मामलों से संबंधित है। “रोटी बनाओ” जैसी टिप्पणी, हालांकि अपमानजनक है, सीधे तौर पर ICC के दायरे में तब तक नहीं आती जब तक कि इसे यौन उत्पीड़न के व्यापक संदर्भ में न देखा जाए।
    • कथन 3 गलत है। ICC की सिफारिशें आमतौर पर संस्थान के लिए बाध्यकारी होती हैं, और उन्हें उन पर कार्रवाई करनी होती है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ती व्यक्तिगत अपमान और लैंगिक भेदभाव की घटनाओं को आप किस प्रकार भारतीय समाज में व्याप्त गहरी पितृसत्तात्मक मानसिकता का प्रतिबिंब मानते हैं? इन घटनाओं के सामाजिक-मनोवैज्ञानिक परिणामों का विश्लेषण कीजिए और इनके समाधान हेतु बहु-आयामी दृष्टिकोण सुझाइए। (250 शब्द)
  2. “शिक्षण एक पवित्र पेशा है, और शिक्षकों को छात्रों के लिए रोल मॉडल होना चाहिए।” इस कथन के आलोक में, हाल ही में शैक्षणिक संस्थानों में सामने आए दुर्व्यवहार के मामलों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। व्यावसायिक नैतिकता और संस्थागत जवाबदेही सुनिश्चित करने में क्या चुनौतियां हैं? (250 शब्द)
  3. कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए चर्चा कीजिए कि यह कानून शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं को किस हद तक सुरक्षा प्रदान करता है। ‘व्यक्तिगत अपमान’ और ‘लैंगिक भेदभाव’ जैसे गैर-यौन प्रकृति के दुर्व्यवहारों से निपटने के लिए मौजूदा कानूनी और संस्थागत ढाँचे में किन सुधारों की आवश्यकता है? (150 शब्द)

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