Get free Notes

सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Click Here

SCO 2023: जयशंकर-शी की भेंट और बदलते भू-राजनीतिक समीकरण

SCO 2023: जयशंकर-शी की भेंट और बदलते भू-राजनीतिक समीकरण

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में गोवा में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात हुई। इस मुलाकात ने कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, खासकर तब जब भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव बना हुआ है। यह भेंट केवल एक औपचारिक मुलाकात से कहीं अधिक है; यह एक जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में दो एशियाई दिग्गजों के बीच संवाद के महत्व को रेखांकित करती है और भविष्य के संबंधों की दिशा को लेकर कई सवाल खड़े करती है। इस मुलाकात ने न केवल भारत-चीन संबंधों पर प्रकाश डाला, बल्कि यह भी दर्शाया कि बहुपक्षीय मंच किस प्रकार सदस्य देशों को कूटनीतिक संवाद का अवसर प्रदान करते हैं, भले ही उनके द्विपक्षीय संबंध कितने ही चुनौतीपूर्ण क्यों न हों।

एससीओ: एक संक्षिप्त परिचय (SCO: A Brief Introduction)

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) यूरेशिया का एक प्रभावशाली राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है। इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है।

  • स्थापना: इसकी शुरुआत 1996 में ‘शंघाई फाइव’ के रूप में हुई थी, जिसमें चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल थे। 2001 में उज्बेकिस्तान के शामिल होने के बाद इसे ‘शंघाई सहयोग संगठन’ का नाम दिया गया।
  • उद्देश्य:
    • क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करना, विशेषकर आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ का मुकाबला करना।
    • सदस्य राज्यों के बीच विश्वास और सद्भाव को बढ़ावा देना।
    • राजनीति, व्यापार, अर्थव्यवस्था, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देना।
    • क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने के लिए मिलकर काम करना।
  • सदस्य देश: वर्तमान में इसके आठ पूर्ण सदस्य हैं: चीन, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान। ईरान भी जल्द ही इसका पूर्ण सदस्य बनने वाला है।
  • पर्यवेक्षक राज्य और संवाद भागीदार: एससीओ में कई पर्यवेक्षक राज्य (जैसे अफगानिस्तान, बेलारूस, मंगोलिया) और संवाद भागीदार (जैसे अजरबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका, तुर्की) भी हैं, जो संगठन की पहुंच और प्रभाव को बढ़ाते हैं।

भारत के लिए एससीओ का महत्व:

भारत 2017 में पाकिस्तान के साथ एससीओ का पूर्ण सदस्य बना। भारत के लिए यह संगठन कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  • भू-रणनीतिक पहुँच: एससीओ भारत को मध्य एशियाई देशों और रूस तक सीधी पहुँच प्रदान करता है, जो ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • आतंकवाद विरोधी सहयोग: एससीओ का क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद के खतरे से निपटने में सहयोग का एक महत्वपूर्ण मंच है। भारत इस मंच का उपयोग क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों पर साझा दृष्टिकोण विकसित करने के लिए करता है।
  • आर्थिक अवसर: सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने से भारत को मध्य एशिया और यूरेशियाई बाजारों तक पहुँचने में मदद मिलती है।
  • बहुपक्षीय कूटनीति: एससीओ भारत को चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों के साथ भी एक साझा मंच पर संवाद बनाए रखने का अवसर प्रदान करता है, जो द्विपक्षीय संबंधों में तनाव के बावजूद कूटनीति के लिए महत्वपूर्ण है। यह भारत को अपनी “बहु-संरेखण” विदेश नीति को प्रदर्शित करने का अवसर भी देता है।
  • पड़ोसी प्रथम नीति का विस्तार: यह मंच भारत को अपने विस्तारित पड़ोस के साथ संबंधों को गहरा करने का अवसर देता है।

भारत-चीन संबंध: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (India-China Relations: A Historical Perspective)

भारत और चीन, एशिया की दो सबसे बड़ी और सबसे पुरानी सभ्यताएँ, अपने संबंधों में उतार-चढ़ाव का एक लंबा इतिहास रहा है। स्वतंत्रता के बाद से, इनके संबंध ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे से लेकर सीमा संघर्ष और वर्तमान तनाव तक कई चरणों से गुजरे हैं।

  • शुरुआती दौर (1950s): भारत, चीन की कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता देने वाले पहले देशों में से था। 1950 के दशक में ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को दर्शाता था। हालांकि, तिब्बत पर चीन का अधिग्रहण और सीमा विवादों की शुरुआत ने धीरे-धीरे तनाव को जन्म दिया।
  • 1962 का युद्ध: सीमा विवाद, विशेष रूप से अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश (तत्कालीन NEFA) को लेकर, 1962 के भारत-चीन युद्ध में परिणत हुआ। इस युद्ध ने दोनों देशों के संबंधों को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाया और विश्वास में कमी आई।
  • स्थगन और सामान्यीकरण (1970s-1980s): युद्ध के बाद संबंधों में एक लंबा ठहराव आया। 1976 में राजनयिक संबंध बहाल हुए और 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चीन यात्रा ने सामान्यीकरण की प्रक्रिया को गति दी। इस यात्रा ने सीमा मुद्दे पर शांति और स्थिरता बनाए रखने पर सहमति के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
  • आर्थिक सहयोग और बढ़ता व्यापार (1990s-2000s): 1990 के दशक के बाद से, दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध तेजी से बढ़े। चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया, लेकिन व्यापार संतुलन हमेशा चीन के पक्ष में रहा, जिससे भारत में चिंताएँ बढ़ीं।
  • सीमा विवादों का पुनरुत्थान और तनाव (2010s-वर्तमान):
    • डोकलाम गतिरोध (2017): भूटान-चीन-भारत ट्राई-जंक्शन पर चीन द्वारा सड़क निर्माण के प्रयास ने डोकलाम में 73 दिनों के सैन्य गतिरोध को जन्म दिया। यह घटना भारत-चीन संबंधों में एक नया निम्न बिंदु थी।
    • गलवान घाटी संघर्ष (2020): पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच एक हिंसक झड़प हुई, जिसमें दोनों पक्षों को हताहत होना पड़ा। यह दशकों में सबसे गंभीर सीमा संघर्ष था और इसने संबंधों को अभूतपूर्व तनाव में डाल दिया। इसके बाद से, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव बना हुआ है और कई दौर की सैन्य और राजनयिक वार्ताएँ हुई हैं, लेकिन पूर्ण विघटन नहीं हो पाया है।
    • वर्तमान स्थिति: सीमा विवाद, व्यापार असंतुलन, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भू-रणनीतिक प्रतिस्पर्धा, और विभिन्न क्षेत्रीय तथा वैश्विक मंचों पर भिन्न दृष्टिकोणों के कारण भारत-चीन संबंध अत्यधिक जटिल बने हुए हैं। भारत लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि सीमा पर शांति के बिना सामान्य संबंध संभव नहीं हैं।

यह ऐतिहासिक यात्रा दर्शाती है कि भारत और चीन के संबंध सिर्फ द्विपक्षीय मुद्दों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीति को भी प्रभावित करते हैं। इसी पृष्ठभूमि में जयशंकर-शी मुलाकात का महत्व और बढ़ जाता है।

जयशंकर-शी मुलाकात का कूटनीतिक महत्व (Diplomatic Significance of Jaishankar-Xi Meeting)

एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की संक्षिप्त मुलाकात (जिसे कई मीडिया रिपोर्टों ने ‘विनिमय’ या ‘शिष्टाचार भेंट’ कहा है) ने कूटनीतिक हलकों में काफी रुचि जगाई है। गलवान संघर्ष के बाद से यह पहली उच्च-स्तरीय, आमने-सामने की बैठक थी, जिसने इसके महत्व को और बढ़ा दिया है।

मुलाकात का संदर्भ:

यह मुलाकात ऐसे समय में हुई जब भारत और चीन के बीच संबंध गलवान संघर्ष के बाद से बेहद तनावपूर्ण हैं। सीमा पर तनाव कम करने के लिए कई दौर की सैन्य और राजनयिक वार्ताएँ हुई हैं, लेकिन कुछ घर्षण बिंदुओं पर सैनिकों का विघटन अभी भी नहीं हो पाया है। भारत लगातार कहता रहा है कि सीमा पर शांति और स्थिरता ही दोनों देशों के बीच सामान्य संबंधों की कुंजी है।

संदेश और निहितार्थ:

  1. संवाद के रास्ते खुले रखने का संकेत: भले ही यह एक संक्षिप्त मुलाकात थी, लेकिन इसने दर्शाया कि दोनों देश, विशेष रूप से चीन, कूटनीतिक संवाद के रास्ते पूरी तरह बंद नहीं करना चाहते हैं। बहुपक्षीय मंच अक्सर ऐसे मौकों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं जहाँ द्विपक्षीय बैठकें सीधे आयोजित करना मुश्किल होता है।
  2. तनाव कम करने की इच्छा का प्रदर्शन: इस मुलाकात को दोनों पक्षों द्वारा सीमा पर तनाव कम करने और संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में एक सूक्ष्म संकेत के रूप में देखा जा सकता है, हालाँकि वास्तविक प्रगति अभी भी अनिश्चित है।
  3. भारत की दृढ़ स्थिति का पुनः पुष्टि: विदेश मंत्री जयशंकर ने मुलाकात के दौरान स्पष्ट रूप से बताया कि सीमा पर शांति और स्थिरता भारत-चीन संबंधों के सामान्यीकरण के लिए आवश्यक है। भारत ने यह रुख लगातार बनाए रखा है कि LAC पर यथास्थिति में बदलाव का कोई भी प्रयास अस्वीकार्य है और यह पूरे द्विपक्षीय संबंध को प्रभावित करता है।
  4. चीन का दृष्टिकोण: चीन अक्सर भारत के साथ अपने संबंधों को एक बड़े भू-राजनीतिक फ्रेमवर्क में देखता है, जहाँ वह भारत को “एक प्रतिद्वंद्वी की बजाय एक भागीदार” के रूप में पेश करने की कोशिश करता है। वे सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों के केवल “एक हिस्से” के रूप में देखते हैं, जबकि भारत इसे “केंद्रीय” मुद्दा मानता है। इस मुलाकात के माध्यम से, चीन ने शायद यह दिखाने की कोशिश की कि वह सामान्य संबंधों की दिशा में प्रयासरत है, जबकि अपनी स्थितियों पर कायम है।
  5. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को संदेश: यह मुलाकात अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश भी देती है कि भारत और चीन, भले ही उनके बीच गंभीर मतभेद हों, संवाद करने को तैयार हैं। यह वैश्विक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर जब एशिया में शक्ति संतुलन लगातार बदल रहा हो।

“एक बात जो हमें माननी होगी वह यह है कि भारत और चीन के संबंध सामान्य नहीं हैं। उन्हें सामान्य बनाने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और अमन-चैन होना चाहिए।” – एस. जयशंकर

यह मुलाकात एक ‘ब्रेकथ्रू’ नहीं थी, लेकिन इसने दोनों देशों के बीच भविष्य में अधिक सार्थक संवाद की संभावना के लिए एक छोटी सी खिड़की खोल दी है। यह दर्शाता है कि कूटनीति कितनी बारीक और जटिल हो सकती है, जहाँ संक्षिप्त आदान-प्रदान भी बड़े संदेश दे सकते हैं।

भारत-चीन संबंधों के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges Facing India-China Relations)

भारत और चीन के संबंध कई जटिल चुनौतियों से घिरे हुए हैं, जो उन्हें एक सतत तनावपूर्ण और प्रतिस्पर्धी स्थिति में रखते हैं। इन चुनौतियों को समझना भविष्य की राह के लिए महत्वपूर्ण है:

  1. सीमा विवाद (Boundary Dispute):
    • वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC): सबसे बड़ी और लगातार चुनौती LAC पर जारी गतिरोध है। 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से स्थिति गंभीर बनी हुई है। दोनों देशों के बीच LAC की अलग-अलग धारणाएँ हैं, जिसके कारण घुसपैठ और गतिरोध होते रहते हैं। चीन LAC पर यथास्थिति बदलने की कोशिश करता रहा है, जबकि भारत अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
    • बुनियादी ढांचा विकास: चीन LAC के पास तेजी से सैन्य और नागरिक बुनियादी ढांचा विकसित कर रहा है, जैसे सड़कें, हवाई पट्टियाँ और गाँव। भारत भी अपनी ओर बुनियादी ढांचा विकास बढ़ा रहा है, जिससे तनाव और बढ़ रहा है।
  2. व्यापार असंतुलन (Trade Imbalance):
    • भारत और चीन के बीच व्यापार की मात्रा बढ़ रही है, लेकिन यह भारी असंतुलित है। चीन का निर्यात भारत को उसके आयात से कहीं अधिक है, जिससे भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है।
    • भारत चीन पर महत्वपूर्ण उत्पादों जैसे सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (APIs), इलेक्ट्रॉनिक घटकों और भारी मशीनरी के लिए अत्यधिक निर्भर है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए चिंता का विषय है।
    • चीन अक्सर भारत के उत्पादों तक बाज़ार पहुँच को प्रतिबंधित करता है, जबकि भारत में चीनी उत्पादों का डंपिंग होता है।
  3. क्षेत्रीय प्रभाव और भू-रणनीतिक प्रतिस्पर्धा (Regional Influence and Geopolitical Competition):
    • दक्षिण एशिया: चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति और दक्षिण एशिया में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं (जैसे CPEC) में बढ़ता निवेश भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय है। चीन पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
    • हिंद-प्रशांत: दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहते हैं। भारत ‘क्वाड’ जैसे समूहों में शामिल है, जिसे चीन अपने खिलाफ एक गठबंधन के रूप में देखता है।
    • समुद्री सुरक्षा: हिंद महासागर में चीनी नौसेना की बढ़ती उपस्थिति भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाती है।
  4. अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भिन्न दृष्टिकोण (Differing Approaches on International Forums):
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC): चीन अक्सर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन नहीं करता है।
    • आतंकवाद: चीन ने अक्सर संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के नेताओं को सूचीबद्ध करने के भारत के प्रयासों को अवरुद्ध किया है।
    • वैश्विक शासन: दोनों देशों के बीच कई वैश्विक मुद्दों, जैसे यूक्रेन युद्ध, जलवायु परिवर्तन के लिए दृष्टिकोण, और विकासशील देशों के मुद्दों पर सहमति नहीं है।
  5. अन्य संवेदनशीलताएँ (Other Sensitivities):
    • तिब्बत: तिब्बत में दलाई लामा और निर्वासित तिब्बती सरकार की उपस्थिति भारत-चीन संबंधों में एक स्थायी संवेदनशील मुद्दा है। चीन भारत को तिब्बत के मामलों में हस्तक्षेप से रोकने के लिए दबाव डालता रहता है।
    • जल विवाद: ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी हिस्से में चीन द्वारा बाँधों के निर्माण की योजनाएँ भारत के लिए चिंता का विषय हैं, क्योंकि यह नदी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए जीवन रेखा है।
    • साइबर सुरक्षा: चीन से जुड़े हैकिंग प्रयासों की खबरें भारत के महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के लिए एक गंभीर खतरा बनी हुई हैं।

इन चुनौतियों के बावजूद, दोनों देशों को एक-दूसरे के साथ संलग्न होना पड़ता है क्योंकि वे दुनिया के सबसे बड़े पड़ोसी हैं और वैश्विक भू-राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संतुलन साधना और इन चुनौतियों का रचनात्मक तरीके से समाधान खोजना ही आगे की राह है।

आगे की राह: भारत के लिए रणनीतिक विकल्प (The Way Forward: Strategic Options for India)

भारत और चीन के बीच जटिल संबंधों को देखते हुए, भारत को अपनी राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए स्थिरता और विकास सुनिश्चित करने के लिए एक बहुआयामी और व्यावहारिक रणनीति अपनानी होगी।

  1. सीमा प्रबंधन को प्राथमिकता (Prioritizing Border Management):
    • दृढ़ता और धैर्य: भारत को LAC पर किसी भी एकतरफा यथास्थिति परिवर्तन को रोकने के लिए अपनी सैन्य दृढ़ता बनाए रखनी चाहिए। साथ ही, सीमा वार्ता में धैर्य रखना चाहिए और विघटन (disengagement) के लिए दबाव डालना चाहिए।
    • बुनियादी ढांचा विकास: अपनी तरफ से सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा विकास को तेज करना ताकि चीन की क्षमताओं के साथ अंतर को कम किया जा सके।
    • खुफिया और निगरानी: LAC पर चीनी गतिविधियों की बेहतर खुफिया जानकारी और निगरानी सुनिश्चित करना।
  2. आर्थिक निर्भरता कम करना (Reducing Economic Dependence):
    • आत्मनिर्भर भारत अभियान: चीन पर आयात निर्भरता कम करने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान को गति देना, विशेषकर महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और दुर्लभ पृथ्वी धातुओं में।
    • आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधीकरण को बढ़ावा देना, चीन से हटकर अन्य विश्वसनीय भागीदारों की ओर देखना।
    • घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा: उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के माध्यम से घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना।
    • गैर-टैरिफ बाधाओं का समाधान: चीन के साथ व्यापार घाटे को कम करने के लिए भारतीय उत्पादों के लिए बेहतर बाजार पहुंच के लिए दबाव डालना।
  3. सामरिक स्वायत्तता बनाए रखना (Maintaining Strategic Autonomy):
    • भारत को किसी भी एक महाशक्ति के साथ खुद को पूरी तरह से संरेखित करने से बचना चाहिए। अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को जारी रखते हुए विभिन्न वैश्विक शक्तियों के साथ संबंध बनाए रखने चाहिए।
    • यह भारत को चीन के साथ बातचीत करने की क्षमता प्रदान करता है, जबकि पश्चिम के साथ भी महत्वपूर्ण संबंध बनाए रखता है।
  4. समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ सहयोग (Cooperation with Like-minded Partners):
    • ‘क्वाड’ (QUAD) जैसे बहुपक्षीय मंचों में सक्रिय भागीदारी जारी रखना, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देते हैं।
    • जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसे देशों के साथ रक्षा और आर्थिक संबंधों को मजबूत करना।
    • ये साझेदारियाँ चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ एक संतुलन प्रदान करती हैं।
  5. बहुपक्षीय मंचों का उपयोग (Utilizing Multilateral Forums):
    • SCO, BRICS, G20 जैसे मंचों का उपयोग कूटनीतिक संवाद के अवसर के रूप में करना, भले ही द्विपक्षीय संबंध तनावपूर्ण हों। ये मंच अप्रत्यक्ष रूप से तनाव कम करने और साझा हितों पर सहयोग के लिए जगह प्रदान करते हैं।
    • भारत को इन मंचों पर अपनी स्थिति को मुखर रूप से रखना चाहिए और क्षेत्रीय तथा वैश्विक मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण को बढ़ावा देना चाहिए।
  6. पीपल-टू-पीपल संपर्क (People-to-People Contact):
    • शैक्षणिक, सांस्कृतिक और पर्यटन आदान-प्रदान को बढ़ावा देना, जहाँ भी संभव हो, दीर्घकालिक समझ और विश्वास निर्माण के लिए।
  7. कूटनीतिक संवाद जारी रखना (Continuing Diplomatic Dialogue):
    • सीमा मुद्दों को हल करने और संबंधों को सामान्य बनाने के लिए सैन्य और राजनयिक चैनलों के माध्यम से लगातार बातचीत बनाए रखना।
    • भारत का ‘तीन-स्तरीय दृष्टिकोण’ (Three-tier approach) – विघटन (disengagement), डी-एस्केलेशन (de-escalation), और डी-बिल्डिंग (de-building) – सीमा पर शांति बहाल करने के लिए महत्वपूर्ण है।

भारत के लिए चीन के साथ एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है – जहाँ दृढ़ता और प्रतिस्पर्धा है, वहीं संवाद के लिए एक खुलापन भी है। यह केवल एक सैन्य या आर्थिक चुनौती नहीं है, बल्कि एक गहरी कूटनीतिक और रणनीतिक चुनौती है जिसे भारत को अपनी बढ़ती वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के साथ जोड़ना होगा।

एससीओ की भूमिका और भविष्य (Role and Future of SCO)

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) क्षेत्रीय सहयोग और सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण मंच है, जिसमें कई महाशक्तियाँ और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं। इसका भविष्य और भारत-चीन संबंधों में इसकी भूमिका कई कारकों पर निर्भर करती है।

क्या एससीओ भारत-चीन संबंधों को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है?

एससीओ एक ऐसा मंच है जहाँ भारत और चीन जैसे सदस्य देश एक साथ आते हैं, भले ही उनके द्विपक्षीय संबंध तनावपूर्ण हों।

  • संवाद का मंच: एससीओ द्विपक्षीय मुद्दों पर सीधे बातचीत के लिए एक मंच प्रदान नहीं करता है, लेकिन यह नेताओं और विदेश मंत्रियों को एक साथ लाने का अवसर देता है। जयशंकर-शी मुलाकात इसका एक उदाहरण है। यह अप्रत्यक्ष रूप से तनाव कम करने में मदद कर सकता है क्योंकि यह संवाद के लिए एक चैनल खुला रखता है।
  • साझा हित: आतंकवाद विरोधी सहयोग (RATS के माध्यम से), क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और ऊर्जा सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में भारत और चीन के साझा हित हैं। इन क्षेत्रों में सहयोग द्विपक्षीय तनाव के बावजूद सकारात्मक माहौल बना सकता है।
  • विश्वास निर्माण: संयुक्त सैन्य अभ्यास (जैसे ‘पीस मिशन’) और सुरक्षा वार्ताएँ सदस्य देशों के बीच कुछ हद तक विश्वास निर्माण में मदद कर सकती हैं।
  • सीमित प्रभाव: हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि एससीओ द्विपक्षीय मुद्दों, विशेष रूप से सीमा विवादों को हल करने के लिए एक प्रत्यक्ष तंत्र नहीं है। सदस्य देशों के बीच गहरे द्विपक्षीय मतभेद अक्सर बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग की सीमा को भी निर्धारित करते हैं। चीन एससीओ को अपने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) को बढ़ावा देने के लिए एक मंच के रूप में भी देखता है, जिस पर भारत को गंभीर आपत्तियां हैं।

संक्षेप में, एससीओ भारत-चीन संबंधों को सीधे ठीक नहीं कर सकता, लेकिन यह संवाद के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है और कुछ साझा सुरक्षा व आर्थिक हितों पर सहयोग को बढ़ावा दे सकता है, जिससे समग्र माहौल में सुधार की संभावना बनती है।

क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता में एससीओ का योगदान:

  • आतंकवाद विरोधी: एससीओ का प्राथमिक ध्यान क्षेत्रीय आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ से लड़ना है। RATS इस संबंध में एक प्रभावी तंत्र है, जो खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त अभ्यास के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान देता है।
  • ड्रग्स तस्करी और संगठित अपराध: एससीओ मादक पदार्थों की तस्करी और अन्य संगठित अपराधों से निपटने के लिए भी सहयोग करता है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • मध्य एशिया में स्थिरता: एससीओ मध्य एशियाई देशों में स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो रूस, चीन, भारत और ईरान जैसे बड़े खिलाड़ियों के लिए महत्वपूर्ण है।

विस्तार के निहितार्थ:

एससीओ का लगातार विस्तार हो रहा है, जिसमें ईरान जल्द ही पूर्ण सदस्य बनने वाला है, और सऊदी अरब, यूएई जैसे देश संवाद भागीदार बनने में रुचि दिखा रहे हैं।

  • बढ़ता भू-राजनीतिक कद: विस्तार एससीओ के भू-राजनीतिक कद को बढ़ाता है, जिससे यह एक विशाल यूरेशियाई ब्लॉक बन जाता है।
  • बहुध्रुवीय विश्व की ओर: एससीओ का विस्तार पश्चिम-केंद्रित वैश्विक व्यवस्था के प्रतिवाद के रूप में एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के उदय को दर्शाता है।
  • नए सदस्यों के साथ चुनौतियाँ: नए सदस्यों के जुड़ने से संगठन के भीतर विभिन्न हितों और दृष्टिकोणों का प्रबंधन अधिक जटिल हो सकता है। उदाहरण के लिए, ईरान के प्रवेश से भारत-ईरान संबंध पर एससीओ का प्रभाव बढ़ सकता है।

एससीओ एक जटिल और विकसित हो रहा संगठन है। इसकी भूमिका सदस्य देशों के द्विपक्षीय संबंधों और व्यापक भू-राजनीतिक प्रवृत्तियों से गहराई से जुड़ी हुई है। यह भारत को महत्वपूर्ण क्षेत्रीय खिलाड़ियों के साथ जुड़ने का एक मंच प्रदान करता है, लेकिन इसे अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए इस मंच का बुद्धिमानी से उपयोग करना होगा।

निष्कर्ष (Conclusion)

एससीओ बैठक में विदेश मंत्री जयशंकर और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच की मुलाकात एक ‘ब्रेकथ्रू’ नहीं थी, लेकिन यह एक सूक्ष्म कूटनीतिक संकेत है कि संवाद के द्वार पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं। भारत-चीन संबंध इतिहास, साझा हितों और गहरी प्रतिस्पर्धा का एक जटिल मिश्रण हैं। सीमा पर तनाव, व्यापार असंतुलन और क्षेत्रीय प्रभाव की होड़ जैसी चुनौतियाँ संबंधों को लगातार तनाव में रखती हैं। भारत ने अपनी ओर से स्पष्ट कर दिया है कि सीमा पर शांति और स्थिरता ही सामान्य संबंधों की कुंजी है, और इस पर कोई समझौता नहीं होगा।

आगे की राह में भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए दृढ़ता, विवेक और दूरदर्शिता का प्रदर्शन करना होगा। इसका अर्थ है सीमा पर अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करना, आर्थिक निर्भरता को कम करना, समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ सहयोग बढ़ाना, और बहुपक्षीय मंचों का उपयोग कूटनीतिक उद्देश्यों के लिए करना। एससीओ जैसे मंच एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों के बावजूद बातचीत और कुछ साझा हितों पर सहयोग के अवसर प्रदान करते हैं। यह मुलाकात इस बात की पुष्टि करती है कि जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में भी, कूटनीति के लिए हमेशा एक जगह होती है, भले ही वह कितनी भी संक्षिप्त क्यों न हो। भारत को एक महाशक्ति के रूप में अपनी भूमिका के अनुरूप इन अवसरों का लाभ उठाना होगा, ताकि एशिया की स्थिरता और वैश्विक संतुलन में सकारात्मक योगदान दिया जा सके।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(उत्तर और व्याख्या नीचे दिए गए हैं)

  1. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. SCO का गठन 1996 में ‘शंघाई फाइव’ के रूप में हुआ था, जिसमें भारत और पाकिस्तान संस्थापक सदस्य थे।
    2. इसका मुख्य उद्देश्य मध्य एशिया में क्षेत्रीय आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ का मुकाबला करना है।
    3. SCO का क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) एक स्थायी निकाय है जो आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को बढ़ावा देता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (A) केवल a और b
    (B) केवल b और c
    (C) केवल a और c
    (D) a, b और c

  2. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. गलवान घाटी संघर्ष 2020 में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हुआ था।
    2. अक्साई चिन क्षेत्र भारत के नियंत्रण में है जबकि अरुणाचल प्रदेश पर चीन अपना दावा करता है।
    3. डोकलाम गतिरोध 2017 में भारत-भूटान-चीन ट्राई-जंक्शन पर हुआ था।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (A) केवल a और b
    (B) केवल b और c
    (C) केवल a और c
    (D) a, b और c

  3. निम्नलिखित में से कौन सा देश शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का पूर्ण सदस्य नहीं है?
    (A) ईरान
    (B) कजाकिस्तान
    (C) पाकिस्तान
    (D) उज्बेकिस्तान
  4. भारत-चीन संबंधों में व्यापार असंतुलन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. भारत और चीन के बीच व्यापार हमेशा चीन के पक्ष में संतुलित रहा है।
    2. भारत फार्मास्युटिकल सामग्री और इलेक्ट्रॉनिक घटकों के लिए चीन पर महत्वपूर्ण रूप से निर्भर है।
    3. ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का उद्देश्य चीन पर भारत की आर्थिक निर्भरता को कम करना है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (A) केवल a और b
    (B) केवल b और c
    (C) केवल a और c
    (D) a, b और c

  5. निम्नलिखित में से कौन सा कथन शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की भूमिका का सबसे अच्छा वर्णन करता है?
    (A) यह केवल एक आर्थिक संगठन है जो सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देता है।
    (B) यह एक सैन्य गठबंधन है जिसका उद्देश्य नाटो के प्रभाव का मुकाबला करना है।
    (C) यह यूरेशिया में क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने वाला एक बहुआयामी संगठन है।
    (D) यह मुख्य रूप से मानवाधिकारों और लोकतंत्र को बढ़ावा देने वाला एक मंच है।
  6. भारत की ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति के संदर्भ में, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की सदस्यता भारत के लिए कैसे प्रासंगिक है?
    (A) यह भारत को केवल पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने में मदद करती है।
    (B) यह भारत को मध्य एशियाई देशों और रूस के साथ गहरे संबंध बनाने में सक्षम बनाती है।
    (C) यह भारत को केवल चीन और पाकिस्तान के साथ अपने विवादों को हल करने का प्रत्यक्ष मंच प्रदान करती है।
    (D) यह भारत को अपनी “पड़ोसी प्रथम” नीति के बजाय केवल वैश्विक शक्तियों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है।
  7. निम्नलिखित में से कौन सी चुनौती भारत और चीन के संबंधों के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है?
    (A) सांस्कृतिक आदान-प्रदान की कमी
    (B) जल संसाधनों का साझा प्रबंधन
    (C) सीमा विवाद और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव
    (D) दोनों देशों के बीच पर्यटन की कमी
  8. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के भीतर भारत के संदर्भ में, RATS (Regional Anti-Terrorist Structure) का क्या महत्व है?
    (A) यह एक आर्थिक मंच है जो सदस्य देशों के बीच व्यापार विवादों को हल करता है।
    (B) यह एक सैन्य प्रशिक्षण केंद्र है जो संयुक्त युद्ध अभ्यास आयोजित करता है।
    (C) यह आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ से निपटने के लिए खुफिया जानकारी साझा करने और सहयोग को बढ़ावा देने वाली एक संरचना है।
    (D) यह एक सांस्कृतिक संगठन है जो सदस्य देशों के बीच विरासत संरक्षण को बढ़ावा देता है।
  9. निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति का सबसे अच्छा वर्णन करता है, जो भारत के लिए चीन से संबंधित चिंता का विषय है?
    (A) यह चीन की आर्थिक रणनीति है जिसका उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ व्यापार बढ़ाना है।
    (B) यह चीन द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप के आसपास नौसैनिक सुविधाओं और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का एक नेटवर्क विकसित करने का प्रयास है।
    (C) यह चीन की सांस्कृतिक पहल है जिसका उद्देश्य एशिया में चीनी भाषा और कला को बढ़ावा देना है।
    (D) यह चीन का एक सैन्य अभ्यास है जिसका उद्देश्य हिंद महासागर में समुद्री सुरक्षा को मजबूत करना है।
  10. SCO के विस्तार के संभावित प्रभावों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. SCO का विस्तार इसके भू-राजनीतिक कद को कम करेगा।
    2. नए सदस्य देशों के जुड़ने से संगठन के भीतर विभिन्न हितों का प्रबंधन अधिक जटिल हो सकता है।
    3. ईरान के पूर्ण सदस्य बनने से SCO का मध्य पूर्व में प्रभाव बढ़ सकता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (A) केवल a और b
    (B) केवल b और c
    (C) केवल a और c
    (D) a, b और c

उत्तर और व्याख्या (Answers and Explanations):

  1. सही उत्तर: (B) केवल b और c
    व्याख्या:

    • कथन a गलत है। SCO का गठन 1996 में ‘शंघाई फाइव’ के रूप में हुआ था, जिसमें चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल थे। भारत और पाकिस्तान 2017 में पूर्ण सदस्य बने।
    • कथन b सही है। SCO का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ का मुकाबला करना है।
    • कथन c सही है। RATS आतंकवाद के खिलाफ सहयोग और खुफिया जानकारी साझा करने के लिए SCO का एक महत्वपूर्ण स्थायी निकाय है।
  2. सही उत्तर: (C) केवल a और c
    व्याख्या:

    • कथन a सही है। गलवान घाटी संघर्ष 2020 में भारत और चीन के बीच LAC पर हुआ था।
    • कथन b गलत है। अक्साई चिन क्षेत्र चीन के नियंत्रण में है (भारत अपना दावा करता है) और अरुणाचल प्रदेश भारत के नियंत्रण में है (चीन उस पर दावा करता है)।
    • कथन c सही है। डोकलाम गतिरोध 2017 में भारत-भूटान-चीन ट्राई-जंक्शन पर हुआ था।
  3. सही उत्तर: (A) ईरान
    व्याख्या: ईरान अभी तक SCO का पूर्ण सदस्य नहीं है, बल्कि जल्द ही बनने वाला है। कजाकिस्तान, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान पूर्ण सदस्य हैं।
  4. सही उत्तर: (B) केवल b और c
    व्याख्या:

    • कथन a गलत है। भारत और चीन के बीच व्यापार हमेशा चीन के पक्ष में भारी असंतुलित रहा है, भारत के पक्ष में नहीं।
    • कथन b सही है। भारत फार्मास्युटिकल सामग्री और इलेक्ट्रॉनिक घटकों जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए चीन पर काफी निर्भर है।
    • कथन c सही है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का एक प्रमुख उद्देश्य चीन सहित किसी भी देश पर आयात निर्भरता को कम करना है।
  5. सही उत्तर: (C) यह यूरेशिया में क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने वाला एक बहुआयामी संगठन है।
    व्याख्या: SCO का उद्देश्य केवल आर्थिक या सैन्य नहीं है, बल्कि यह सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान सहित कई क्षेत्रों में काम करता है।
  6. सही उत्तर: (B) यह भारत को मध्य एशियाई देशों और रूस के साथ गहरे संबंध बनाने में सक्षम बनाती है।
    व्याख्या: SCO भारत को मध्य एशिया और रूस जैसे अपने विस्तारित पड़ोस के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करता है, जो इसकी “पड़ोसी प्रथम” नीति के अनुरूप है, क्योंकि यह इन देशों के साथ सुरक्षा, ऊर्जा और व्यापार संबंधों को बढ़ावा देता है।
  7. सही उत्तर: (C) सीमा विवाद और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव
    व्याख्या: जबकि अन्य विकल्प भी संबंधों में भूमिका निभाते हैं, सीमा विवाद और LAC पर जारी तनाव भारत-चीन संबंधों में सबसे केंद्रीय और गंभीर चुनौती है, जिसने द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य होने से रोका है।
  8. सही उत्तर: (C) यह आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ से निपटने के लिए खुफिया जानकारी साझा करने और सहयोग को बढ़ावा देने वाली एक संरचना है।
    व्याख्या: RATS (Regional Anti-Terrorist Structure) SCO की एक स्थायी संरचना है जो क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए प्रमुख खतरों – आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ – का मुकाबला करने के लिए सदस्य देशों के बीच सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देती है।
  9. सही उत्तर: (B) यह चीन द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप के आसपास नौसैनिक सुविधाओं और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का एक नेटवर्क विकसित करने का प्रयास है।
    व्याख्या: ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति एक भू-राजनीतिक सिद्धांत है जो हिंद महासागर क्षेत्र में बंदरगाहों और अन्य बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के एक नेटवर्क के माध्यम से चीन के बढ़ते समुद्री प्रभाव और पहुंच को संदर्भित करता है। भारत इसे अपनी सुरक्षा के लिए एक संभावित खतरे के रूप में देखता है।
  10. सही उत्तर: (B) केवल b और c
    व्याख्या:

    • कथन a गलत है। SCO का विस्तार इसके भू-राजनीतिक कद को बढ़ाता है, कम नहीं करता।
    • कथन b सही है। नए सदस्यों के जुड़ने से संगठन के भीतर विभिन्न हितों और दृष्टिकोणों का प्रबंधन अधिक जटिल हो सकता है।
    • कथन c सही है। ईरान के पूर्ण सदस्य बनने से SCO का भौगोलिक दायरा मध्य पूर्व तक बढ़ेगा और इस क्षेत्र में इसका प्रभाव भी बढ़ सकता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. “एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक में जयशंकर-शी की मुलाकात, भले ही संक्षिप्त थी, भारत-चीन संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में एक सूक्ष्म कूटनीतिक संकेत है।” इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण करें और बताएं कि सीमा पर तनाव के बावजूद बहुपक्षीय मंच कैसे कूटनीतिक संवाद के लिए अवसर प्रदान करते हैं।
  2. भारत-चीन संबंधों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? इन चुनौतियों के समाधान के लिए भारत को कौन से रणनीतिक विकल्प अपनाने चाहिए, ताकि अपनी राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए स्थिरता सुनिश्चित की जा सके? विस्तार से चर्चा करें।
  3. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने में कितनी प्रभावी भूमिका निभाता है? भारत के लिए SCO की सदस्यता का क्या महत्व है और यह भारत की विदेश नीति को कैसे प्रभावित करता है?

Leave a Comment