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NEET-UG: हाईकोर्ट ने 75 छात्रों की रि-एग्जाम याचिकाएं खारिज कीं, जानें क्यों नहीं होगी दोबारा परीक्षा

NEET-UG: हाईकोर्ट ने 75 छात्रों की रि-एग्जाम याचिकाएं खारिज कीं, जानें क्यों नहीं होगी दोबारा परीक्षा

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, देश की सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल प्रवेश परीक्षा NEET-UG 2024 एक बार फिर सुर्खियों में है। विभिन्न अनियमितताओं और विवादों के बीच, उच्च न्यायालयों ने कई याचिकाओं पर सुनवाई की है। इसी कड़ी में, 75 ऐसे NEET-UG उम्मीदवारों की याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है, जिन्होंने अपनी परीक्षा दोबारा कराने की मांग की थी। न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि यह मामला ‘रि-एग्जाम’ के लिए उपयुक्त नहीं है। यह निर्णय उस समय आया है जब NEET-UG परीक्षा की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह घटनाक्रम न केवल इन 75 छात्रों के भविष्य को प्रभावित करता है, बल्कि भारतीय परीक्षा प्रणाली और न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाओं पर भी महत्वपूर्ण बहस छेड़ता है।

पूरा मामला क्या है? (What is the whole case?)

NEET-UG (National Eligibility cum Entrance Test – Undergraduate) देश में मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में प्रवेश के लिए आयोजित की जाने वाली एक राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा है। वर्ष 2024 की परीक्षा शुरू से ही विवादों में घिरी रही है:

  1. पेपर लीक के आरोप: परीक्षा से पहले ही कुछ स्थानों पर पेपर लीक होने के आरोप लगे, जिसने छात्रों और अभिभावकों के बीच भारी चिंता पैदा की।
  2. ग्रेस मार्क्स विवाद: परीक्षा के बाद, कुछ छात्रों को समय की कमी या अन्य तकनीकी समस्याओं के कारण ‘ग्रेस मार्क्स’ दिए जाने का निर्णय लिया गया। इस कदम ने भारी विरोध को जन्म दिया, क्योंकि कई छात्रों का मानना था कि इससे परीक्षा की शुचिता प्रभावित हुई है और अनुचित लाभ मिला है।
  3. परिणामों में विसंगतियां: 67 छात्रों के परफेक्ट 720 स्कोर हासिल करने और एक ही केंद्र से कई टॉपर्स के आने जैसी घटनाओं ने परिणामों की प्रामाणिकता पर सवाल खड़े किए।
  4. 75 छात्रों का विशिष्ट मामला: इन्हीं व्यापक विवादों के बीच, 75 ऐसे छात्र सामने आए जिन्होंने अपनी OMR शीट में त्रुटियों, परीक्षा केंद्र पर गलत प्रश्न पत्र मिलने, या परीक्षा के दौरान अनुचित व्यवहार जैसी समस्याओं का आरोप लगाते हुए अपनी परीक्षा दोबारा आयोजित कराने की मांग की। उन्होंने दावा किया कि इन अनियमितताओं के कारण उनका प्रदर्शन बुरी तरह प्रभावित हुआ है और उन्हें न्याय मिलना चाहिए। इन छात्रों ने अपनी शिकायतें लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

यह पूरा घटनाक्रम भारतीय शिक्षा प्रणाली में विश्वास बहाली और परीक्षा संचालन निकायों की जवाबदेही पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।

न्यायालय का रुख और तर्क (Court’s Stance and Rationale)

उच्च न्यायालय ने 75 छात्रों की याचिकाओं को खारिज करते हुए कई महत्वपूर्ण तर्क दिए, जो भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक नज़ीर बन सकते हैं:

  • रि-एग्जाम के लिए उपयुक्त नहीं: न्यायालय ने पाया कि भले ही कुछ तकनीकी या प्रक्रियात्मक त्रुटियां हुई हों, लेकिन वे इतनी गंभीर नहीं थीं कि पूरी परीक्षा को दोबारा आयोजित करने का आधार बन सकें। न्यायालय ने जोर दिया कि रि-एग्जाम केवल तभी उचित होता है जब बड़े पैमाने पर धांधली या ऐसी अनियमितता हो जो परीक्षा की पूरी अखंडता को ही नष्ट कर दे।
  • व्यक्तिगत त्रुटियां बनाम प्रणालीगत विफलता: न्यायालय ने इन 75 छात्रों के दावों को व्यक्तिगत प्रकृति का माना। उदाहरण के लिए, यदि किसी छात्र की OMR शीट में तकनीकी त्रुटि हुई थी, तो न्यायालय ने इसे बड़े पैमाने पर प्रणालीगत विफलता के बजाय एक व्यक्तिगत समस्या माना, जिसके लिए शायद अन्य निवारण तंत्र (जैसे OMR का पुनर्मूल्यांकन) अधिक उपयुक्त होते।
  • सबूतों का अभाव: याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य संभवतः पर्याप्त नहीं थे। न्यायालय ने उन ठोस सबूतों की कमी पाई जो यह साबित कर सकें कि संबंधित त्रुटियों ने वास्तव में उनके परीक्षा परिणामों को इस हद तक प्रभावित किया कि एक नया अवसर देना ही एकमात्र समाधान था।
  • प्रशासनिक बोझ और व्यापक प्रभाव: न्यायालय ने संभवतः इस बात का भी ध्यान रखा कि एक छोटी संख्या के लिए भी दोबारा परीक्षा आयोजित करना राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) पर एक बड़ा प्रशासनिक और वित्तीय बोझ डालेगा। साथ ही, इससे उन लाखों छात्रों में अनिश्चितता बढ़ेगी जिन्होंने पहले ही परीक्षा दे दी है और परिणामों की प्रतीक्षा कर रहे हैं या काउंसलिंग प्रक्रिया में शामिल हो रहे हैं।
  • कानूनी नज़ीर: अतीत में भी, न्यायालयों ने अक्सर परीक्षा परिणामों को रद्द करने या पुनः परीक्षा आयोजित करने में अत्यधिक सावधानी बरती है, जब तक कि धोखाधड़ी या अनियमितता का व्यापक और अकाट्य प्रमाण न हो। न्यायालय का मानना है कि परीक्षा प्रणाली की स्थिरता और predictability भी महत्वपूर्ण है।

न्यायालय का यह निर्णय दर्शाता है कि न्यायिक हस्तक्षेप की अपनी सीमाएं होती हैं। न्यायालय का प्राथमिक कार्य कानून के शासन को बनाए रखना और यह सुनिश्चित करना है कि प्रक्रियात्मक निष्पक्षता हो, न कि अकादमिक या प्रशासनिक निर्णयों को प्रतिस्थापित करना, जब तक कि स्पष्ट और गंभीर अन्याय न हो।

NEET-UG परीक्षा प्रणाली: एक विस्तृत विश्लेषण (NEet-UG Examination System: A Detailed Analysis)

NEET-UG, भारत में चिकित्सा शिक्षा के प्रवेश द्वार के रूप में, एक अत्यधिक प्रतिस्पर्धी और महत्वपूर्ण परीक्षा है। इसकी संरचना, महत्व और चुनौतियों को समझना आवश्यक है:

महत्व (Importance):

  • एकल प्रवेश द्वार: NEET-UG ने देश भर के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए अलग-अलग परीक्षाओं की आवश्यकता को समाप्त करके एक एकल, केंद्रीकृत प्रणाली स्थापित की है, जिससे छात्रों पर से बोझ कम हुआ है।
  • गुणवत्ता नियंत्रण: यह माना जाता है कि एक मानकीकृत परीक्षा देश भर में चिकित्सा शिक्षा में प्रवेश के लिए एक न्यूनतम योग्यता स्तर सुनिश्चित करती है।
  • सीटों का वितरण: यह लाखों छात्रों के लिए एक निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से सीमित मेडिकल सीटों के आवंटन का आधार प्रदान करता है।

संरचना (Structure):

  • संचालन निकाय: राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) द्वारा आयोजित, जो शिक्षा मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन है। NTA का गठन उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश और फेलोशिप के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के लिए किया गया था।
  • पाठ्यक्रम और पैटर्न: परीक्षा में भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान (वनस्पति विज्ञान और प्राणीशास्त्र) विषयों से प्रश्न होते हैं, जो मुख्य रूप से NCERT पाठ्यक्रम पर आधारित होते हैं।

चुनौतियाँ और मुद्दे (Challenges and Issues):

पिछले कुछ वर्षों में, NEET-UG प्रणाली ने कई गंभीर चुनौतियों का सामना किया है, जो इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाती हैं:

  1. पेपर लीक (Paper Leaks): यह सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है। पेपर लीक न केवल परीक्षा की पवित्रता को भंग करते हैं बल्कि लाखों ईमानदार और मेहनती छात्रों के मनोबल को भी तोड़ते हैं। यह एक संगठित अपराध के रूप में उभरा है जिसमें कोचिंग संस्थान और बिचौलिये शामिल होते हैं।
  2. अनुचित साधन (Unfair Means): नकल, ब्लूटूथ डिवाइस का उपयोग, प्रॉक्सी उम्मीदवारों को बिठाना – ये सभी अनुचित साधन हैं जो परीक्षा प्रणाली में घुसपैठ कर रहे हैं।
  3. ग्रेस मार्क्स विवाद (Grace Marks Controversy): यह 2024 की परीक्षा का एक प्रमुख मुद्दा था। परीक्षा के दौरान समय की कमी का सामना करने वाले छात्रों को ग्रेस मार्क्स दिए गए। इस निर्णय की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाए गए, क्योंकि इसका निर्धारण एक स्पष्ट और सार्वजनिक नीति के तहत नहीं किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल देते हुए ग्रेस मार्क्स को रद्द कर दिया और प्रभावित छात्रों को दोबारा परीक्षा का विकल्प दिया।
  4. परीक्षा केंद्रों पर धांधली (Irregularities at Exam Centers): कई बार परीक्षा केंद्रों पर पर्यवेक्षकों की लापरवाही, तकनीकी खराबी या जानबूझकर की गई धांधली के कारण छात्रों को परेशानी उठानी पड़ती है, जिससे उनके प्रदर्शन पर असर पड़ता है।
  5. पारदर्शिता का अभाव (Lack of Transparency): NTA के संचालन और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी के आरोप लगते रहे हैं, खासकर परिणामों और ग्रेस मार्क्स के निर्धारण के संबंध में।
  6. न्यायिक हस्तक्षेप (Judicial Intervention): उपरोक्त मुद्दों के कारण, न्यायालयों को बार-बार परीक्षा संबंधी मामलों में हस्तक्षेप करना पड़ा है, जिससे न केवल न्यायिक प्रणाली पर बोझ पड़ा है बल्कि छात्रों में भी अनिश्चितता बनी रहती है।

ये चुनौतियाँ दर्शाती हैं कि NEET-UG जैसी बड़ी राष्ट्रीय परीक्षा प्रणाली को संचालित करना कितना जटिल है और इसमें निरंतर सुधार की आवश्यकता है। यह केवल एक परीक्षा नहीं, बल्कि लाखों युवाओं के सपनों और भारत के भविष्य के डॉक्टरों का आधार है।

न्यायिक हस्तक्षेप और शिक्षा प्रणाली (Judicial Intervention and Education System)

भारतीय न्यायिक प्रणाली ने हमेशा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और शासन में निष्पक्षता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शिक्षा प्रणाली के संदर्भ में भी न्यायालयों का हस्तक्षेप एक द्विपक्षीय तलवार की तरह है।

आवश्यकता (Necessity):

न्यायालयों का हस्तक्षेप तब आवश्यक हो जाता है जब:

  • मूल अधिकारों का उल्लंघन: यदि किसी परीक्षा या शैक्षिक नीति से छात्रों के समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14), शिक्षा के अधिकार (अनुच्छेद 21A), या किसी अन्य मूल अधिकार का उल्लंघन होता है।
  • प्रक्रियात्मक खामियां: जब परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाएं निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नहीं करती हैं या मनमाने ढंग से कार्य करती हैं, जिससे पारदर्शिता और निष्पक्षता प्रभावित होती है।
  • व्यापक सार्वजनिक हित: जब बड़े पैमाने पर अनियमितताएं या धोखाधड़ी होती है, जिससे बड़ी संख्या में छात्रों का भविष्य प्रभावित होता है और सार्वजनिक विश्वास हिल जाता है। पेपर लीक या बड़े पैमाने पर नकल इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
  • अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग: जब कोई शैक्षिक प्राधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर निर्णय लेता है।

उदाहरण के लिए, NEET-UG में ग्रेस मार्क्स के मामले में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप आवश्यक हो गया था क्योंकि NTA द्वारा ग्रेस मार्क्स देने का निर्णय एक स्पष्ट नीति के तहत नहीं था और इससे हजारों छात्रों के भविष्य पर अनिश्चितता उत्पन्न हो गई थी।

सीमाएं (Limitations):

हालांकि न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक है, इसकी अपनी सीमाएं भी हैं:

  • अकादमिक मामलों में विशेषज्ञता का अभाव: न्यायालय अकादमिक विशेषज्ञ नहीं होते। वे पाठ्यक्रम निर्धारण, मूल्यांकन पद्धति या परीक्षा पैटर्न जैसे विशुद्ध रूप से अकादमिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचते हैं, जब तक कि उनमें स्पष्ट रूप से मनमानी या कानून का उल्लंघन न हो।
  • कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप: परीक्षा आयोजित करना और परिणाम घोषित करना मूल रूप से एक प्रशासनिक कार्य है। न्यायिक हस्तक्षेप, यदि अत्यधिक हो, तो कार्यपालिका के कामकाज में अनावश्यक बाधा डाल सकता है।
  • प्रशासनिक जटिलताएं: बार-बार न्यायिक हस्तक्षेप से परीक्षा प्रक्रियाओं में देरी हो सकती है, जिससे छात्रों में अनिश्चितता और तनाव बढ़ता है। पूरी परीक्षा रद्द करने या दोबारा कराने के आदेश से न केवल आयोजक निकाय पर भारी बोझ पड़ता है, बल्कि उन लाखों छात्रों का भविष्य भी अधर में लटक जाता है जो प्रभावित नहीं हुए थे।
  • नज़ीरों का प्रभाव: एक विशिष्ट मामले में न्यायिक निर्णय भविष्य में समान प्रकृति की कई याचिकाओं को जन्म दे सकता है, भले ही उनमें पर्याप्त आधार न हो।

संतुलन (Balance):

न्यायालयों को न्यायिक समीक्षा के अपने अधिकार और शैक्षिक संस्थानों की स्वायत्तता के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखना होता है। उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रणाली निष्पक्ष और न्यायपूर्ण हो, लेकिन साथ ही इसे इतनी भी अस्थिर न किया जाए कि इसका संचालन असंभव हो जाए। न्यायालयों को केवल तभी हस्तक्षेप करना चाहिए जब स्पष्ट रूप से अन्याय हुआ हो और कोई अन्य प्रभावी उपाय उपलब्ध न हो। 75 छात्रों के मामले में, न्यायालय ने शायद इसी संतुलन को ध्यान में रखा, यह मानते हुए कि व्यक्तिगत शिकायतों के लिए दोबारा परीक्षा एक अत्यधिक और अव्यावहारिक उपाय होगा।

छात्रों पर प्रभाव और भविष्य की राह (Impact on Students and Way Forward)

NEET-UG जैसे बड़े पैमाने की परीक्षाओं में होने वाले विवादों का सबसे बड़ा शिकार छात्र ही होते हैं। इन घटनाओं के दूरगामी प्रभाव होते हैं:

छात्रों पर प्रभाव (Impact):

  • मानसिक तनाव और अनिश्चितता: परीक्षा परिणाम और कानूनी लड़ाई का लंबा खिंचना छात्रों और उनके परिवारों पर भारी मानसिक दबाव डालता है। अनिश्चितता के माहौल में उनका अगला कदम तय करना मुश्किल हो जाता है।
  • आत्मविश्वास में कमी: मेहनती छात्रों के लिए यह निराशाजनक होता है जब उन्हें लगता है कि उनकी मेहनत अनुचित साधनों का उपयोग करने वालों के कारण व्यर्थ हो रही है। इससे शिक्षा प्रणाली और अधिकारियों पर से उनका विश्वास कम होता है।
  • समय और संसाधनों की बर्बादी: कानूनी प्रक्रिया में शामिल होने या परिणाम की प्रतीक्षा करने में छात्रों का कीमती समय और धन बर्बाद होता है, जो वे अपनी पढ़ाई या करियर योजना में लगा सकते थे।

परीक्षा एजेंसियों के लिए सबक (Lessons for Exam Agencies – NTA):

NTA और अन्य परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं को इन घटनाओं से महत्वपूर्ण सबक सीखने होंगे:

  • पारदर्शिता: सभी प्रक्रियाओं, विशेषकर परिणाम घोषणा, ग्रेस मार्क्स नीति और शिकायत निवारण में पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए। जनता को निर्णयों के पीछे का तर्क स्पष्ट रूप से समझना चाहिए।
  • जवाबदेही: NTA को अपनी गलतियों या चूकों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। एक जवाबदेही तंत्र स्थापित होना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
  • सुरक्षा प्रोटोकॉल का सुदृढीकरण: पेपर लीक और अनुचित साधनों को रोकने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए मजबूत सुरक्षा प्रोटोकॉल और निगरानी तंत्र लागू किए जाने चाहिए। इसमें प्रश्न पत्र वितरण, परीक्षा केंद्र पर निगरानी और OMR शीट के प्रबंधन में सुधार शामिल है।
  • कुशल शिकायत निवारण: छात्रों की शिकायतों को गंभीरता से लेने और उनका त्वरित, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से समाधान करने के लिए एक मजबूत और सुलभ शिकायत निवारण तंत्र होना चाहिए।

सरकार की भूमिका (Government’s Role):

सरकार ने इन चुनौतियों का सामना करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:

  • सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024: हाल ही में पारित यह विधेयक परीक्षा में धोखाधड़ी, पेपर लीक और अन्य अनुचित साधनों में शामिल व्यक्तियों या संस्थाओं के लिए कड़े दंड का प्रावधान करता है। इसका उद्देश्य परीक्षा प्रणाली में विश्वास बहाल करना और दोषियों को हतोत्साहित करना है।
  • परीक्षा प्रणाली में सुधार: सरकार को परीक्षा संचालन निकायों की क्षमताओं को मजबूत करने और उन्हें आधुनिक तकनीकों से लैस करने पर ध्यान देना चाहिए।

आगे की राह (Way Forward):

एक मजबूत और विश्वसनीय परीक्षा प्रणाली के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. टेक्नोलॉजी का उपयोग (Leveraging Technology): AI-आधारित निगरानी प्रणाली, बायोमेट्रिक सत्यापन, डिजिटल OMRs, और सुरक्षित डेटा एन्क्रिप्शन जैसी तकनीकों का उपयोग कर पेपर लीक और नकल को रोका जा सकता है। ब्लॉकचेन जैसी तकनीक का भी उपयोग प्रश्न पत्र वितरण और परिणामों को सुरक्षित करने में किया जा सकता है।
  2. कड़े कानून और उनका प्रभावी क्रियान्वयन (Stricter Laws and Effective Implementation): नए कानून जैसे ‘सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024’ का प्रभावी और त्वरित क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए। अपराधियों को मिसाली सजा मिलनी चाहिए ताकि दूसरों को सबक मिले।
  3. जवाबदेही और पारदर्शिता (Accountability and Transparency): परीक्षा संचालन निकायों की जवाबदेही तय की जाए। उनके आंतरिक ऑडिट और प्रदर्शन की समीक्षा नियमित रूप से होनी चाहिए। सभी प्रक्रियाओं को सार्वजनिक किया जाए।
  4. शिक्षण संस्थानों और कोचिंग सेंटरों की जवाबदेही: कोचिंग सेंटरों और शिक्षण संस्थानों को भी जवाबदेह बनाया जाए यदि वे अनुचित साधनों को बढ़ावा देते हैं या उनमें शामिल पाए जाते हैं।
  5. शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करना (Strengthening Grievance Redressal Mechanism): छात्रों के लिए एक आसान, तेज और निष्पक्ष शिकायत निवारण तंत्र होना चाहिए, ताकि उनकी समस्याओं का समय पर समाधान हो सके।
  6. मनोवैज्ञानिक सहायता (Psychological Support): ऐसे विवादों से प्रभावित छात्रों को मनोवैज्ञानिक सहायता और परामर्श प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वे तनाव से निपट सकें और अपने भविष्य की योजना बना सकें।

परीक्षा प्रणाली किसी भी देश की शैक्षिक नींव का स्तंभ होती है। NEET-UG विवाद ने इस नींव में दरारें दिखाई हैं। यह समय है कि सरकार, न्यायिक प्रणाली और परीक्षा संचालन निकाय मिलकर इन दरारों को भरें और एक ऐसी प्रणाली का निर्माण करें जो निष्पक्षता, पारदर्शिता और ईमानदारी के उच्चतम मानकों को बनाए रखे, ताकि प्रत्येक योग्य छात्र को उसका उचित मौका मिल सके।

निष्कर्ष (Conclusion)

NEET-UG के 75 छात्रों की याचिकाओं को खारिज करने का उच्च न्यायालय का निर्णय एक जटिल परिदृश्य को दर्शाता है। एक ओर, यह परीक्षा प्रणाली की स्थिरता और प्रशासनिक व्यवहार्यता बनाए रखने की न्यायिक इच्छा को दर्शाता है; दूसरी ओर, यह लाखों छात्रों द्वारा अनुभव की जा रही अनिश्चितता और असंतोष की गहरी जड़ वाली समस्या को भी उजागर करता है। यह स्पष्ट है कि भारतीय परीक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता है। केवल कड़े कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि उनके प्रभावी कार्यान्वयन, तकनीकी उन्नयन और परीक्षा संचालन निकायों की जवाबदेही व पारदर्शिता में वृद्धि पर भी उतना ही ध्यान देना होगा। अंततः, एक विश्वसनीय और निष्पक्ष परीक्षा प्रणाली का निर्माण ही हमारे युवाओं के भविष्य और देश की प्रगति के लिए आवश्यक है। हमें एक ऐसी प्रणाली की ओर बढ़ना होगा जहां योग्यता ही एकमात्र मानदंड हो, और जहां छात्रों का विश्वास कभी न डिगे।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

1. NEET-UG परीक्षा के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह परीक्षा भारत में चिकित्सा और दंत चिकित्सा महाविद्यालयों में स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आयोजित की जाती है।
2. यह राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) द्वारा आयोजित की जाती है, जो शिक्षा मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त निकाय है।
3. इसका पाठ्यक्रम मुख्य रूप से CBSE के पाठ्यक्रम पर आधारित है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)
व्याख्या:
कथन 1 सही है। NEET-UG भारत में मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में स्नातक प्रवेश के लिए एकल प्रवेश परीक्षा है।
कथन 2 सही है। NEET-UG का आयोजन राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) द्वारा किया जाता है, जो शिक्षा मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संगठन है।
कथन 3 गलत है। NEET-UG का पाठ्यक्रम मुख्य रूप से NCERT पाठ्यक्रम पर आधारित है, न कि विशेष रूप से CBSE के पाठ्यक्रम पर। हालांकि CBSE भी NCERT पाठ्यक्रम का पालन करता है, लेकिन NCERT व्यापक संदर्भ है।

2. भारत में ‘सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024’ के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
1. परीक्षा में धोखाधड़ी और अनुचित साधनों को रोकना।
2. परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना।
3. पेपर लीक और संगठित नकल गिरोहों के लिए कड़े दंड का प्रावधान करना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)
व्याख्या:
कथन 1 सही है। विधेयक का प्राथमिक उद्देश्य परीक्षा में धोखाधड़ी और अनुचित साधनों को रोकना है।
कथन 2 गलत है। विधेयक का उद्देश्य अनुचित साधनों को रोकना है, न कि परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना। यह उनकी जवाबदेही बढ़ाता है।
कथन 3 सही है। विधेयक में पेपर लीक और संगठित नकल गिरोहों के लिए कड़े दंड का प्रावधान है, जिसमें भारी जुर्माना और कारावास शामिल है।

3. भारतीय न्यायपालिका द्वारा शैक्षिक मामलों में हस्तक्षेप के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-से कारक न्यायालय के हस्तक्षेप को आवश्यक बना सकते हैं?
1. मूल अधिकारों का उल्लंघन।
2. परीक्षा में बड़े पैमाने पर प्रक्रियात्मक खामियां।
3. अकादमिक पाठ्यक्रम के निर्धारण में विवाद।
4. सार्वजनिक हित पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)
व्याख्या:
कथन 1, 2 और 4 सही हैं। मूल अधिकारों का उल्लंघन, प्रक्रियात्मक खामियां और सार्वजनिक हित पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव वे स्थितियां हैं जहां न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है।
कथन 3 गलत है। न्यायालय आमतौर पर अकादमिक पाठ्यक्रम के निर्धारण जैसे विशुद्ध रूप से अकादमिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचते हैं, जब तक कि उनमें स्पष्ट रूप से मनमानी या कानून का उल्लंघन न हो।

4. NEET-UG 2024 के संदर्भ में हालिया ‘ग्रेस मार्क्स’ विवाद का मुख्य कारण क्या था?
(a) प्रश्न पत्र लीक होने की व्यापक शिकायतें।
(b) कुछ परीक्षा केंद्रों पर समय की कमी का सामना करने वाले छात्रों को दिए गए अतिरिक्त अंक।
(c) OMR शीटों के मूल्यांकन में मैन्युअल त्रुटियाँ।
(d) परीक्षा परिणाम में अनियमितताओं के कारण कट-ऑफ में अप्रत्याशित वृद्धि।

उत्तर: (b)
व्याख्या: NEET-UG 2024 में ‘ग्रेस मार्क्स’ विवाद का मुख्य कारण यह था कि कुछ परीक्षा केंद्रों पर छात्रों को समय की कमी का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अतिरिक्त अंक (ग्रेस मार्क्स) दिए गए। इस निर्णय की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाए गए थे।

5. भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं में धोखाधड़ी को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों में से एक है:
(a) निजी कोचिंग संस्थानों पर पूर्ण प्रतिबंध।
(b) केवल ऑनलाइन परीक्षाओं का अनिवार्य आयोजन।
(c) सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक का अधिनियमन।
(d) सभी प्रतियोगी परीक्षाओं को रद्द करना और प्रवेश के लिए मेरिट-आधारित प्रणाली लागू करना।

उत्तर: (c)
व्याख्या: सरकार ने प्रतियोगी परीक्षाओं में धोखाधड़ी और अनुचित साधनों को रोकने के लिए ‘सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024’ को अधिनियमित किया है, जिसमें कड़े दंड का प्रावधान है।

6. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक परीक्षा प्रणाली में विश्वास बहाली के लिए सबसे महत्वपूर्ण है?
(a) परीक्षा शुल्क में कमी।
(b) परीक्षा केंद्रों की संख्या में वृद्धि।
(c) परिणामों की घोषणा में पारदर्शिता और प्रक्रियात्मक निष्पक्षता।
(d) केवल सरकारी संस्थानों द्वारा परीक्षा का आयोजन।

उत्तर: (c)
व्याख्या: परीक्षा प्रणाली में विश्वास बहाली के लिए परिणामों की घोषणा में पूर्ण पारदर्शिता और प्रक्रियात्मक निष्पक्षता सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही छात्रों को आश्वस्त करता है कि उनकी मेहनत का सही मूल्यांकन हुआ है।

7. न्यायपालिका शैक्षिक मामलों में हस्तक्षेप करते समय निम्नलिखित में से किस सिद्धांत का पालन करती है?
(a) पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण का सिद्धांत।
(b) अकादमिक मामलों में प्राथमिकता का सिद्धांत।
(c) न्यायिक संयम और आवश्यकता का सिद्धांत।
(d) सभी प्रशासनिक निर्णयों की समीक्षा का सिद्धांत।

उत्तर: (c)
व्याख्या: न्यायपालिका शैक्षिक मामलों में हस्तक्षेप करते समय ‘न्यायिक संयम और आवश्यकता’ के सिद्धांत का पालन करती है, जिसका अर्थ है कि वे तभी हस्तक्षेप करते हैं जब यह पूरी तरह से आवश्यक हो और स्पष्ट अन्याय या कानून का उल्लंघन हो, न कि नियमित रूप से प्रशासनिक या अकादमिक मामलों में।

8. NEET-UG परीक्षा की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित में से कौन-से तकनीकी उपाय सहायक हो सकते हैं?
1. बायोमेट्रिक सत्यापन।
2. AI-आधारित निगरानी प्रणाली।
3. डिजिटल OMR शीट।
4. ब्लॉकचेन-आधारित परिणाम प्रबंधन।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)
व्याख्या: सभी सूचीबद्ध तकनीकी उपाय परीक्षा की पारदर्शिता और सुरक्षा बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। बायोमेट्रिक सत्यापन, AI-आधारित निगरानी, डिजिटल OMR और ब्लॉकचेन तकनीकें क्रमशः पहचान, नकल रोकथाम, मूल्यांकन की सटीकता और परिणाम की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद कर सकती हैं।

9. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद ‘शिक्षा के अधिकार’ से संबंधित है, जो नागरिकों के लिए एक मौलिक अधिकार है?
(a) अनुच्छेद 14
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21A
(d) अनुच्छेद 32

उत्तर: (c)
व्याख्या: अनुच्छेद 21A भारतीय संविधान में ‘शिक्षा के अधिकार’ से संबंधित है, जिसे 86वें संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया था, और यह 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार बनाता है।

10. किसी परीक्षा के संबंध में ‘रि-एग्जाम’ (पुनः परीक्षा) की मांग को न्यायालय आमतौर पर कब स्वीकार करता है?
(a) जब कुछ छात्रों को परीक्षा के दौरान व्यक्तिगत असुविधा हुई हो।
(b) जब परीक्षा में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी या प्रणालीगत विफलता के अकाट्य प्रमाण हों।
(c) जब छात्रों का एक छोटा समूह परिणाम से संतुष्ट न हो।
(d) जब परीक्षा का कट-ऑफ पिछली बार की तुलना में बहुत अधिक हो।

उत्तर: (b)
व्याख्या: न्यायालय आमतौर पर ‘रि-एग्जाम’ की मांग तभी स्वीकार करते हैं जब बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी, पेपर लीक, या ऐसी गंभीर प्रणालीगत विफलता के अकाट्य प्रमाण हों, जो परीक्षा की पूरी अखंडता को ही नष्ट कर दे। व्यक्तिगत असुविधा या असंतोष ऐसे मामलों में पर्याप्त आधार नहीं होते।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

1. “NEET-UG जैसे विवाद भारतीय प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली में अंतर्निहित चुनौतियों को उजागर करते हैं।” इस कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और इन चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रौद्योगिकी और नियामक सुधारों की भूमिका पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

2. भारतीय न्यायपालिका, शैक्षिक मामलों में हस्तक्षेप करते समय, किन सिद्धांतों का पालन करती है? ‘न्यायिक सक्रियता’ और ‘न्यायिक संयम’ के बीच संतुलन स्थापित करने में न्यायपालिका के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए, विशेष रूप से परीक्षा संबंधी विवादों के संदर्भ में। (15 अंक, 250 शब्द)

3. हाल ही में पारित ‘सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024’ के मुख्य प्रावधानों का मूल्यांकन कीजिए। क्या आपको लगता है कि यह विधेयक प्रतियोगी परीक्षाओं की अखंडता सुनिश्चित करने में पर्याप्त है, या अभी भी अतिरिक्त उपायों की आवश्यकता है? विस्तार से चर्चा कीजिए। (20 अंक, 300 शब्द)

4. पारदर्शिता और जवाबदेही किसी भी सफल परीक्षा प्रणाली के दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। भारत में परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसियों (जैसे NTA) के संदर्भ में इन दोनों स्तंभों को मजबूत करने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जा सकते हैं? छात्रों के विश्वास को पुनः प्राप्त करने के लिए आप क्या सुझाव देंगे? (15 अंक, 250 शब्द)

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