IVF बच्चों की तस्करी: ₹90,000 से ₹35 लाख का भयानक सौदा, कैसे क्लिनिक ने नवजात शिशुओं को बेचा
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में सामने आया एक चौंकाने वाला मामला, जिसमें एक IVF क्लिनिक पर नवजात शिशुओं की खरीद-फरोख्त का गंभीर आरोप लगा है। ₹90,000 में खरीदे गए बच्चों को IVF बच्चे बताकर ₹35 लाख तक में बेचा जा रहा था। यह मामला न केवल गंभीर आपराधिक कृत्य है, बल्कि भारत में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (Assisted Reproductive Technology – ART) और सरोगेसी (Surrogacy) के क्षेत्र में मौजूद नियामक खामियों और नैतिक दुविधाओं पर भी प्रकाश डालता है। यह घटना उन लाखों जोड़ों के लिए भी चिंता का विषय है जो माता-पिता बनने के लिए ART पर निर्भर हैं।
IVF बच्चों की तस्करी: एक गहन विश्लेषण
यह मामला एक जटिल पहेली के कई टुकड़ों को एक साथ जोड़ता है: मानव तस्करी, IVF तकनीक का दुरुपयोग, अनैतिक चिकित्सा व्यवसाय, और नियामक ढांचे की कमियां। आइए इस समस्या की तह तक जाएं।
1. यह सब शुरू कैसे हुआ? (The Genesis of the Scandal)
* **काला बाजार का उदय:** जब किसी चीज़ की मांग ज़्यादा होती है और वैध रास्ते या तो महंगे होते हैं या पहुँच से बाहर, तो अक्सर काला बाजार पनपता है। बांझपन (infertility) आज एक आम समस्या है, और IVF तकनीक, हालांकि जीवन बदलने वाली है, फिर भी महंगी है। जिन लोगों की आर्थिक स्थिति IVF का खर्च वहन नहीं कर सकती, वे या अवैध और अनैतिक तरीकों की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
* **अस्पष्ट उत्पत्ति:** आरोप है कि ये बच्चे IVF प्रक्रिया के माध्यम से पैदा हुए ही नहीं थे। बल्कि, उन्हें कम उम्र में, संभवतः उन गरीब या बेसहारा माताओं से खरीदा गया था जो आर्थिक तंगी से जूझ रही थीं। फिर, उन्हें IVF के माध्यम से पैदा हुए बच्चे के रूप में पेश किया गया, जिससे उनकी बिक्री का मूल्य बढ़ सके।
* **”बिक्री” का तरीका:** ₹90,000 में बच्चों को “खरीदना” और फिर उन्हें “IVF बच्चे” बताकर ₹35 लाख में “बेचना” एक भयावह व्यवसाय मॉडल को दर्शाता है। इसमें न केवल बच्चों की अस्मिता से खिलवाड़ है, बल्कि यह माता-पिता बनने की चाह रखने वाले जोड़ों के विश्वास का भी हनन है।
2. IVF तकनीक और इसका दुरुपयोग
* **IVF क्या है?** इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें महिला के अंडाणु (egg) और पुरुष के शुक्राणु (sperm) को शरीर के बाहर (प्रयोगशाला में) निषेचित (fertilized) किया जाता है। फिर, विकसित भ्रूण (embryo) को महिला के गर्भाशय (uterus) में प्रत्यारोपित (implanted) किया जाता है।
* **IVF का उद्देश्य:** यह बांझपन से जूझ रहे जोड़ों के लिए एक वरदान साबित हुआ है, जो स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करने में असमर्थ हैं।
* **दुरुपयोग कैसे हुआ?:** इस मामले में, IVF प्रक्रिया का उपयोग एक मुखौटे के रूप में किया गया। असली बच्चे, जिनकी उत्पत्ति दूसरी थी, उन्हें IVF प्रक्रिया के उत्पाद के रूप में प्रस्तुत किया गया। इससे दो मुख्य फायदे हो सकते थे:
* **कानूनी वैधता का भ्रम:** IVF को कानूनी और सामाजिक रूप से स्वीकार्य माना जाता है। ऐसे में, IVF बच्चे के रूप में बेचने से यह एक “वैध” लेन-देन प्रतीत हो सकता था, जबकि वास्तव में यह बाल तस्करी थी।
* **अधिक मूल्य:** “IVF बच्चा” होने का टैग खरीदारों को अधिक प्रीमियम देने के लिए प्रेरित कर सकता था, क्योंकि यह उन जोड़ों के लिए एक अंतिम उपाय माना जाता है जो बच्चे चाहते हैं।
3. मानव तस्करी और नैतिक चिंताएं
* **मानव तस्करी का घिनौना चेहरा:** यह घटना भारत में बाल तस्करी के व्यापक मुद्दे का एक नया और चिंताजनक पहलू है। बच्चे, जो समाज का सबसे कमजोर वर्ग हैं, यहाँ वस्तुओं की तरह खरीदे और बेचे जा रहे हैं।
* **अनैतिक चिकित्सा व्यवसाय:** कुछ अनैतिक डॉक्टर और क्लिनिक अपनी व्यावसायिक महत्वाकांक्षाओं के लिए मानव जीवन और नैतिकता को ताक पर रख देते हैं। यह मामला चिकित्सा पेशे की गरिमा पर एक बड़ा धब्बा है।
* **माता-पिता की भूमिका:** यह आवश्यक है कि हम उन जोड़ों के बारे में भी सोचें जिन्होंने इन बच्चों को खरीदा। क्या वे इस अनैतिक सौदे से पूरी तरह अवगत थे, या वे भी धोखे का शिकार हुए? क्या वे वास्तव में बच्चे चाहते थे और इस प्रक्रिया में अनजाने में शामिल हो गए? इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है।
4. नियामक ढाँचा: क्या यह पर्याप्त है?
भारत में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (ART) और सरोगेसी के नियमन के लिए कई कानून और नीतियां हैं, जिनमें हाल ही में **सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 (Assisted Reproductive Technology – Regulation Act, 2021)** और **सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 (Surrogacy – Regulation Act, 2021)** प्रमुख हैं।
* **ART अधिनियम, 2021:**
* **उद्देश्य:** यह अधिनियम ART (जैसे IVF) सेवाओं की पेशकश करने वाले क्लीनिकों के विनियमन और पर्यवेक्षण के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है।
* **मुख्य प्रावधान:**
* ART क्लीनिकों का पंजीकरण अनिवार्य।
* भ्रूण (embryo) और युग्मकों (gametes) के दान और उपयोग के लिए दिशानिर्देश।
* ART बैंकों की स्थापना।
* ART सेवाओं के व्यावसायिकता (commercialization) पर रोक।
* ART से संबंधित अनुसंधान पर प्रतिबंध।
* **क्या यह विफल हुआ?:** इस मामले में, ऐसा प्रतीत होता है कि या तो क्लिनिक पंजीकृत नहीं था, या पंजीकृत होने के बावजूद उसने नियमों का उल्लंघन किया। यह अधिनियम के प्रवर्तन (enforcement) में कमी की ओर इशारा करता है।
* **सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021:**
* **उद्देश्य:** यह अधिनियम भारत में सरोगेसी को विनियमित करता है, वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगाता है और केवल परोपकारी सरोगेसी (altruistic surrogacy) की अनुमति देता है।
* **मुख्य प्रावधान:**
* केवल भारतीय नागरिक ही सरोगेसी करा सकते हैं।
* सरोगेट मां को कोई मौद्रिक मुआवजा नहीं मिलेगा, सिवाय चिकित्सा खर्चों के।
* सरोगेसी केवल उन महिलाओं के लिए अनुमत है जो बांझपन से पीड़ित हैं और उनके पास बच्चे नहीं हैं।
* एक सरोगेट मां जीवन में केवल एक बार सरोगेसी कर सकती है।
* **संबंधितता:** हालांकि यह मामला सीधे तौर पर सरोगेसी से नहीं जुड़ा है, लेकिन यह ART और सरोगेसी के आसपास के नियामक वातावरण की जटिलताओं को दर्शाता है। दोनों अधिनियमों का उद्देश्य मानव जीवन की गरिमा की रक्षा करना और ऐसी तकनीकों का दुरुपयोग रोकना है।
“कला (ART) को जीवन बदलने की शक्ति के साथ-साथ दुरुपयोग की संवेदनशीलता भी है। नियामक तंत्र को न केवल तकनीकी पहलुओं को संबोधित करना चाहिए, बल्कि मानव गरिमा, नैतिकता और सबसे कमजोर लोगों की सुरक्षा को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।”
5. इस समस्या के कारण (Root Causes)
* **सामाजिक दबाव:** बच्चों की चाहत और समाज द्वारा बच्चों के बिना जोड़े पर डाले जाने वाले सामाजिक दबाव ने IVF और सरोगेसी की मांग बढ़ाई है।
* **आर्थिक भेद्यता:** गरीबी और आर्थिक असुरक्षा महिलाओं को अपने बच्चों को बेचने के लिए प्रेरित कर सकती है, चाहे वह सीधे हो या अप्रत्यक्ष रूप से।
* **ज्ञान की कमी:** बहुत से लोग IVF और सरोगेसी की प्रक्रिया, इसके नैतिक पहलुओं और कानूनी प्रावधानों से अनभिज्ञ हैं।
* **कठोर कानून और धीमी न्याय प्रणाली:** कुछ मामलों में, सख्त कानून होने के बावजूद, उनका प्रभावी प्रवर्तन नहीं हो पाता। साथ ही, न्याय मिलने में देरी भी ऐसे अपराधों को बढ़ावा दे सकती है।
* **जागरूकता की कमी:** ART और सरोगेसी के बारे में जनता और यहां तक कि कुछ चिकित्सा पेशेवरों में भी जागरूकता की कमी हो सकती है।
6. संभावित परिणाम और प्रभाव
* **बच्चों पर प्रभाव:** इन बच्चों के लिए, यह अनिश्चितता और पहचान का संकट पैदा करता है। उनकी वास्तविक जैविक मां कौन है, उनका परिवार कौन है, यह सब अस्पष्ट रहता है।
* **खरीदारों पर प्रभाव:** जिन जोड़ों ने इन बच्चों को खरीदा है, वे कानूनी और नैतिक दुविधा में फंस सकते हैं। उन्हें इस बात का डर हो सकता है कि उनका “अपना” बच्चा वास्तव में अवैध या अनैतिक तरीके से प्राप्त किया गया है।
* **मेडिकल पेशे पर प्रभाव:** ऐसे मामले विश्वसनीय चिकित्सा संस्थानों और डॉक्टरों के प्रति जनता के विश्वास को हिला देते हैं।
* **नैतिक और सामाजिक प्रभाव:** यह समाज में मानव जीवन के मूल्य, वाणिज्यीकरण और नैतिक पतन पर सवाल खड़े करता है।
7. भविष्य की राह: क्या किया जाना चाहिए?
* **प्रभावी प्रवर्तन:** ART और सरोगेसी अधिनियमों का कड़ाई से प्रवर्तन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। नियमों का उल्लंघन करने वाले क्लीनिकों और व्यक्तियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।
* **जागरूकता अभियान:** ART, सरोगेसी, मानव तस्करी और संबंधित कानूनों के बारे में बड़े पैमाने पर जन जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
* **क्लिनिकों की निगरानी:** ART क्लीनिकों और ART बैंकों की नियमित और अप्रत्याशित निगरानी (surprise audits) की जानी चाहिए।
* **पंजीकरण प्रक्रिया को मजबूत करना:** क्लिनिकों के पंजीकरण और लाइसेंसिंग प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और कठोर बनाया जाना चाहिए।
* **बच्चों की सुरक्षा:** ऐसे बच्चों के पुनर्वास और उनकी सुरक्षा के लिए विशेष तंत्र स्थापित किए जाने चाहिए, साथ ही उनकी पहचान और जैविक मूल का पता लगाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
* **अंतर-एजेंसी समन्वय:** पुलिस, स्वास्थ्य विभाग, बाल संरक्षण इकाइयों और अन्य संबंधित सरकारी एजेंसियों के बीच प्रभावी समन्वय आवश्यक है।
* **कानूनी सुधार:** यदि आवश्यक हो, तो कानूनों में और सुधार किए जाएं ताकि ऐसे अनैतिक कृत्यों को रोकने के लिए सभी आवश्यक प्रावधान हों।
* **भावनात्मक समर्थन:** बच्चे चाहने वाले जोड़ों को परामर्श और भावनात्मक समर्थन प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वे किसी भी अनैतिक रास्ते पर न जाएं।
निष्कर्ष (Conclusion)
यह मामला भारतीय समाज में कला (ART) और प्रजनन अधिकारों के नैतिक और कानूनी पहलुओं पर एक गंभीर विचार-विमर्श की आवश्यकता को दर्शाता है। IVF बच्चों की तस्करी एक अस्वीकार्य कृत्य है जो मानव जीवन की गरिमा और सुरक्षा पर सीधा हमला करता है। सरकार, चिकित्सा बिरादरी और नागरिक समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी तकनीकें जीवन बचाने और खुशी देने के लिए हों, न कि मानव तस्करी के घिनौने धंधे के लिए। केवल मजबूत नियामक तंत्र, प्रभावी प्रवर्तन और गहरी सामाजिक जागरूकता ही इस तरह के अपराधों को जड़ से खत्म कर सकती है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. **निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:**
1. सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 भारत में IVF सेवाओं के विनियमन के लिए है।
2. यह अधिनियम ART क्लीनिकों के पंजीकरण को अनिवार्य करता है।
3. यह अधिनियम भ्रूणों के दान और उपयोग के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है।
**उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?**
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (d) 1, 2 और 3
**व्याख्या:** तीनों कथन सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के मुख्य प्रावधानों का सही वर्णन करते हैं।
2. **सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:**
1. यह अधिनियम भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी की अनुमति देता है।
2. इसके अनुसार, सरोगेट मां को कोई मौद्रिक मुआवजा नहीं मिलेगा।
3. केवल भारतीय नागरिक ही सरोगेसी करा सकते हैं।
**उपरोक्त में से कौन से कथन सही नहीं हैं?**
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (a) केवल 1
**व्याख्या:** सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगाता है, केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है। इसलिए, कथन 1 सही नहीं है। कथन 2 और 3 सही हैं।
3. **हालिया IVF बच्चों की तस्करी के मामले में, ₹90,000 में खरीदे गए बच्चों को किस कीमत तक बेचा जा रहा था?**
(a) ₹10 लाख
(b) ₹25 लाख
(c) ₹35 लाख
(d) ₹50 लाख
**उत्तर:** (c) ₹35 लाख
**व्याख्या:** समाचार के अनुसार, बच्चों को ₹35 लाख तक में बेचा जा रहा था।
4. **IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य क्या है?**
(a) किसी महिला के अंडाणु को उसी महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित करना।
(b) पुरुष के शुक्राणु को सीधे महिला के गर्भाशय में डालना।
(c) अंडाणु और शुक्राणु को शरीर के बाहर निषेचित कर भ्रूण बनाना और फिर गर्भाशय में प्रत्यारोपित करना।
(d) बांझपन का इलाज करने के लिए हार्मोनल थेरेपी देना।
**उत्तर:** (c) अंडाणु और शुक्राणु को शरीर के बाहर निषेचित कर भ्रूण बनाना और फिर गर्भाशय में प्रत्यारोपित करना।
**व्याख्या:** IVF की मूल प्रक्रिया शरीर के बाहर निषेचन और भ्रूण प्रत्यारोपण है।
5. **मानव तस्करी के संदर्भ में, IVF तकनीक का दुरुपयोग इस मामले में कैसे किया गया?**
(a) IVF प्रक्रिया के लिए आवश्यक दवाओं की कालाबाजारी करके।
(b) IVF के माध्यम से पैदा हुए बच्चों को अन्य देशों में बेचकर।
(c) गैर-IVF बच्चों को IVF बच्चे बताकर उनकी बिक्री का मूल्य बढ़ाना।
(d) IVF के लिए उपयोग किए गए भ्रूणों को अनैतिक रूप से प्राप्त करके।
**उत्तर:** (c) गैर-IVF बच्चों को IVF बच्चे बताकर उनकी बिक्री का मूल्य बढ़ाना।
**व्याख्या:** इस मामले में मुख्य आरोप यह है कि बच्चों की वास्तविक उत्पत्ति IVF से नहीं थी, लेकिन उन्हें IVF बच्चे बताकर बेचा गया।
6. **निम्नलिखित में से कौन सी संस्था हाल ही में पारित सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत ART क्लीनिकों के विनियमन के लिए जिम्मेदार हो सकती है?**
(a) राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR)
(b) भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI)
(c) राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड और राज्य सरोगेसी बोर्ड
(d) राष्ट्रीय IVF नियामक प्राधिकरण (प्रस्तावित/निहित)
**उत्तर:** (d) राष्ट्रीय IVF नियामक प्राधिकरण (प्रस्तावित/निहित)
**व्याख्या:** ART अधिनियम ART सेवाओं के विनियमन के लिए एक राष्ट्रीय बोर्ड (ARTREG) की स्थापना का प्रावधान करता है, जिसे राष्ट्रीय IVF नियामक प्राधिकरण के रूप में समझा जा सकता है। (नोट: यह प्राधिकार की प्रकृति को समझने के लिए एक संभावित उत्तर है, सटीक नाम अधिनियम में विशेष रूप से वर्णित हो सकता है)।
7. **भारत में सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत, परोपकारी सरोगेसी (Altruistic Surrogacy) का क्या अर्थ है?**
(a) सरोगेट मां को बच्चे के जन्म के बाद उसकी देखभाल के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना।
(b) सरोगेट मां को बच्चे के लिए अधिकतम ₹15 लाख का भुगतान करना।
(c) सरोगेट मां को केवल चिकित्सा खर्चों का भुगतान करना, बिना किसी अतिरिक्त मौद्रिक लाभ के।
(d) सरोगेट मां को बच्चे के पालन-पोषण के लिए जीवन भर आर्थिक सहायता देना।
**उत्तर:** (c) सरोगेट मां को केवल चिकित्सा खर्चों का भुगतान करना, बिना किसी अतिरिक्त मौद्रिक लाभ के।
**व्याख्या:** परोपकारी सरोगेसी में, सरोगेट मां को किसी भी प्रकार का मौद्रिक मुआवजा नहीं मिलता, सिवाय उनके मेडिकल खर्चों के।
8. **निम्नलिखित में से कौन सी समस्या IVF बच्चों की तस्करी को बढ़ावा दे सकती है?**
1. बांझपन की बढ़ती दरें।
2. ART सेवाओं की उच्च लागत।
3. बच्चों की चाहत का सामाजिक दबाव।
4. नियामक ढांचे का अप्रभावी प्रवर्तन।
**सही कूट का चयन करें:**
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4
**उत्तर:** (d) 1, 2, 3 और 4
**व्याख्या:** बांझपन, लागत, सामाजिक दबाव और कमजोर प्रवर्तन, सभी ऐसे कारक हैं जो इस तरह के अवैध धंधों को बढ़ावा दे सकते हैं।
9. **हालिया मामले में, IVF क्लिनिक पर बच्चों की किस प्रकार की तस्करी का आरोप है?**
(a) मानव अंगों की तस्करी।
(b) श्रम के लिए मानव तस्करी।
(c) यौन शोषण के लिए मानव तस्करी।
(d) नवजात शिशुओं की खरीद-फरोख्त।
**उत्तर:** (d) नवजात शिशुओं की खरीद-फरोख्त।
**व्याख्या:** मामले का मुख्य आरोप नवजात शिशुओं की खरीद-फरोख्त से संबंधित है, उन्हें IVF बच्चे बताकर।
10. **निम्नलिखित में से कौन सा सरकारी निकाय भारत में बाल संरक्षण के लिए जिम्मेदार है?**
(a) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)
(b) राष्ट्रीय महिला आयोग
(c) राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR)
(d) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)
**उत्तर:** (c) राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR)
**व्याख्या:** NCPCR भारत में बाल अधिकारों की रक्षा और उन्हें बढ़ावा देने के लिए एक वैधानिक निकाय है।
—
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. **हालिया IVF बच्चों की तस्करी के मामले के आलोक में, भारत में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (ART) और सरोगेसी से संबंधित मौजूदा नियामक ढांचे की प्रभावशीलता का विश्लेषण करें। आप इन प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए क्या सुधार सुझाएंगे?**
* मुख्य बिंदु:
* ART अधिनियम, 2021 और सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के प्रावधानों का उल्लेख।
* इन अधिनियमों के उद्देश्य और सीमाएं।
* वर्तमान मामले में अधिनियमों की संभावित विफलता (पंजीकरण, निगरानी, प्रवर्तन)।
* सुझाव: मजबूत प्रवर्तन, नियमित ऑडिट, जागरूकता, कानूनी दंड, अंतर-एजेंसी समन्वय, आदि।
2. **भारत में बांझपन की बढ़ती दर और बच्चों की चाहत का सामाजिक दबाव, IVF और सरोगेसी की मांग को कैसे बढ़ाता है? इस संदर्भ में, मानव तस्करी और अनैतिक चिकित्सा प्रथाओं के बढ़ते जोखिमों पर चर्चा करें।**
* मुख्य बिंदु:
* बांझपन के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण।
* परिवार और समाज द्वारा बच्चों के बिना जोड़ों पर दबाव।
* ART और सरोगेसी की भूमिका।
* मांग कैसे आपूर्ति को जन्म देती है, जिससे काला बाजार पनपता है।
* मानव तस्करी और अनैतिक क्लिनिकों के लिए अवसर।
3. **”IVF बच्चों की तस्करी” का मामला भारत में मानव तस्करी के समस्या के किस नए पहलू को उजागर करता है? इस तरह के घिनौने कृत्यों से निपटने के लिए सरकार और समाज की क्या सामूहिक जिम्मेदारी बनती है?**
* मुख्य बिंदु:
* मानव तस्करी के पारंपरिक रूपों (जैसे यौन, श्रम) से भिन्नता।
* बच्चों की खरीद-फरोख्त में ART तकनीक का दुरुपयोग।
* संवेदनशील और कमजोर आबादी का शोषण।
* सरकार की जिम्मेदारी: कड़े कानून, प्रभावी प्रवर्तन, निगरानी।
* समाज की जिम्मेदारी: जागरूकता, रिपोर्टिंग, नैतिक आचरण।
* चिकित्सा बिरादरी की जिम्मेदारी: नैतिक अभ्यास, आत्म-नियमन।
4. **सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकियों (ART) के विनियमन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि ऐसे अनैतिक प्रथाओं को रोका जा सके और बांझपन से जूझ रहे जोड़ों का विश्वास बना रहे?**
* मुख्य बिंदु:
* ART क्लीनिकों के लिए सख्त लाइसेंसिंग और पंजीकरण।
* सभी ART प्रक्रियाओं का राष्ट्रीय डेटाबेस।
* भ्रूण और युग्मक दान के लिए पारदर्शी प्रक्रिया।
* क्लिनिकों का नियमित और अप्रत्याशित निरीक्षण।
* व्हिसलब्लोअर (whistleblower) सुरक्षा तंत्र।
* ग्राहकों के लिए स्पष्ट जानकारी और अधिकार।
* नैदानिक और परामर्श सेवाएं।