IMD का बड़ा खुलासा: भारत में इस बार ‘अतिवृष्टि’ का खतरा? UPSC के लिए आवश्यक जानकारी!
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण पूर्वानुमान जारी किया है, जिसके अनुसार भारत में मानसून के दूसरे, यानी उत्तर-पूर्वी मानसून (या वापसी मानसून) के चरण में सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना है। यह पूर्वानुमान न केवल किसानों, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था, जल प्रबंधन, और आपदा तैयारियों के लिए भी दूरगामी निहितार्थ रखता है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवार के रूप में, इस खबर के पीछे छिपे वैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक पहलुओं को समझना अत्यंत आवश्यक है। यह लेख IMD के इस पूर्वानुमान का गहराई से विश्लेषण करेगा, इसके कारणों, संभावित प्रभावों और UPSC परीक्षा के विभिन्न पहलुओं से इसके संबंध की पड़ताल करेगा।
मानसून का दूसरा चरण: एक विस्तृत परिचय
भारत में मानसून को अक्सर एक ही घटना के रूप में देखा जाता है, लेकिन वास्तव में यह एक जटिल मौसमी प्रणाली है जिसके दो मुख्य चरण होते हैं:
- ग्रीष्मकालीन मानसून (Southwest Monsoon): यह भारत में बारिश का मुख्य स्रोत है, जो आमतौर पर जून से सितंबर तक रहता है। यह हिंद महासागर से आने वाली नम हवाओं के कारण होता है।
- उत्तर-पूर्वी मानसून (Northeast Monsoon) या वापसी मानसून (Retreating Monsoon): यह आमतौर पर अक्टूबर से दिसंबर तक सक्रिय रहता है। इस दौरान, हवाएं उत्तर-पश्चिम दिशा से दक्षिण-पूर्व की ओर लौटती हैं। यह मानसून मुख्य रूप से दक्षिणी भारत, विशेषकर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में वर्षा लाता है।
IMD का नवीनतम पूर्वानुमान विशेष रूप से इस दूसरे चरण, यानी उत्तर-पूर्वी मानसून से संबंधित है। यह चरण भले ही देश के कुल वर्षा योगदान में कम हो, लेकिन इसके द्वारा सिंचित क्षेत्रों के लिए इसका महत्व बहुत अधिक है, खासकर उन क्षेत्रों के लिए जहाँ ग्रीष्मकालीन मानसून कमजोर रहता है।
IMD का पूर्वानुमान: वैज्ञानिक आधार क्या है?
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, जो भारत में मौसम संबंधी सभी आधिकारिक सूचनाओं का स्रोत है, अपने विस्तृत विश्लेषण और मॉडलिंग के आधार पर पूर्वानुमान जारी करता है। इस बार सामान्य से अधिक बारिश की संभावना के पीछे कई कारक हो सकते हैं:
- महासागरीय परिस्थितियाँ: विशेष रूप से हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान (SST) में परिवर्तन मानसून की गतिविधि को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। अल नीनो (El Niño) और ला नीना (La Niña) जैसी घटनाएँ, जो प्रशांत महासागर में SST को प्रभावित करती हैं, अक्सर भारतीय मानसून पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। यदि इन घटनाओं की स्थितियाँ अनुकूल हों, तो वे उत्तर-पूर्वी मानसून को मजबूत कर सकती हैं।
- वायुमंडलीय परिसंचरण (Atmospheric Circulation): वायुमंडल में उच्च और निम्न दाब प्रणालियों का पैटर्न, जेट स्ट्रीम की स्थिति और अन्य वायुमंडलीय कारक भी बारिश के वितरण को निर्धारित करते हैं।
- मॉडलिंग और डेटा: IMD विभिन्न जलवायु मॉडल (जैसे GFS, ECMWF, IMD GCM) का उपयोग करता है जो ऐतिहासिक डेटा और वर्तमान वायुमंडलीय स्थितियों का विश्लेषण करके भविष्य के मौसम का अनुमान लगाते हैं।
“सामान्य से अधिक बारिश” का मतलब है कि IMD द्वारा निर्धारित लंबी अवधि के औसत (Long Period Average – LPA) से 10% या उससे अधिक वर्षा होने की उम्मीद है। LPA आमतौर पर 1951-2000 की अवधि पर आधारित होता है, लेकिन इसे समय-समय पर अद्यतन भी किया जाता है।
सामान्य से अधिक बारिश के संभावित प्रभाव: एक बहुआयामी विश्लेषण
IMD का यह पूर्वानुमान “सामान्य से अधिक बारिश” की संभावना को उजागर करता है, और इसके प्रभाव व्यापक और विविध हो सकते हैं। आइए, इन्हें विभिन्न दृष्टियों से देखें:
1. कृषि क्षेत्र पर प्रभाव:
भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली कृषि, मानसून पर बहुत अधिक निर्भर है। उत्तर-पूर्वी मानसून मुख्य रूप से तमिलनाडु, तटीय आंध्र प्रदेश, रायलसीमा, दक्षिण आंतरिक कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों में रबी फसलों (जैसे धान, तिलहन, दालें) के लिए महत्वपूर्ण है।
- सकारात्मक पहलू:
- जलाशयों का पुनर्भरण: अतिरिक्त बारिश से जलाशयों, झीलों और भूजल स्तर में वृद्धि होगी, जो रबी फसलों और पीने के पानी की आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है।
- फसल उत्पादन में वृद्धि: यदि बारिश समय पर और संतुलित मात्रा में हो, तो यह रबी की फसलों की उपज बढ़ा सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ ग्रीष्मकालीन मानसून कम वर्षा करता है।
- चारा उपलब्धता: चारे की उपलब्धता में सुधार से पशुधन क्षेत्र को लाभ हो सकता है।
- नकारात्मक पहलू (अतिवृष्टि की स्थिति में):
- फसल क्षति: अत्यधिक बारिश और जल-जमाव (waterlogging) से फसलें सड़ सकती हैं, जड़ें कमजोर हो सकती हैं और बीजों का अंकुरण प्रभावित हो सकता है।
- पोषक तत्वों का रिसाव: भारी बारिश से मिट्टी से पोषक तत्व बह सकते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि बाधित हो सकती है।
- कीटों और बीमारियों का प्रकोप: नम और आर्द्र वातावरण कई फफूंद जनित रोगों और कीटों के पनपने के लिए अनुकूल होता है।
- कटाई और भंडारण में समस्या: यदि बारिश कटाई के समय होती है, तो फसल को सुखाने और भंडारित करने में कठिनाई हो सकती है, जिससे गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
केस स्टडी: 2015 में, चेन्नई और तमिलनाडु के कई जिलों में उत्तर-पूर्वी मानसून के दौरान अत्यधिक बारिश (अतिवृष्टि) ने गंभीर बाढ़ की स्थिति पैदा कर दी थी। इससे न केवल जान-माल का भारी नुकसान हुआ, बल्कि धान और अन्य रबी फसलों को भी भारी क्षति पहुंची, जिससे किसानों को भारी आर्थिक झटका लगा।
2. जल प्रबंधन और संसाधन:
- जलाशयों का प्रबंधन: सामान्य से अधिक बारिश से बांधों और जलाशयों में पानी का स्तर बढ़ जाएगा। यह राज्यों के बीच जल-बंटवारे को लेकर तनाव बढ़ा सकता है, विशेष रूप से उन राज्यों में जो पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहे हैं।
- भूजल पुनर्भरण: भूमि में अधिक पानी का रिसाव भूजल स्तर को बढ़ाने में मदद करेगा, जो दीर्घकालिक जल सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
- बाढ़ का खतरा: यदि बारिश की तीव्रता अत्यधिक हो और जल निकासी व्यवस्था अपर्याप्त हो, तो निचले इलाकों और नदी घाटियों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा।
3. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- कृषि जीडीपी: यदि कृषि उत्पादन बढ़ता है, तो यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के कृषि क्षेत्र में योगदान को बढ़ा सकता है। इसके विपरीत, यदि फसल क्षति होती है, तो यह वृद्धि को बाधित कर सकता है।
- खाद्य मुद्रास्फीति: फसल क्षति या उत्पादन में कमी से कुछ वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हो सकती है, जिससे मुद्रास्फीति (inflation) पर दबाव पड़ सकता है।
- बुनियादी ढांचा: भारी बारिश से सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँच सकता है, जिससे मरम्मत और पुनर्निर्माण पर सरकारी खर्च बढ़ेगा।
- बिजली उत्पादन: कुछ जलविद्युत परियोजनाओं के लिए, जलाशयों में बढ़ा हुआ जल स्तर बिजली उत्पादन को बढ़ावा दे सकता है।
4. पर्यावरण और पारिस्थितिकी:
- मिट्टी का कटाव: अत्यधिक बारिश मिट्टी के कटाव (soil erosion) को बढ़ा सकती है, जिससे भूमि की उर्वरता कम हो सकती है।
- जल निकाय: नदियों, झीलों और आर्द्रभूमियों (wetlands) में पानी की मात्रा बढ़ेगी, जो स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।
- जैव विविधता: कुछ प्रजातियों के लिए, बढ़ा हुआ जल स्तर और नमी फायदेमंद हो सकती है, जबकि अन्य के लिए यह हानिकारक हो सकती है।
5. आपदा प्रबंधन और सार्वजनिक स्वास्थ्य:
- बाढ़ और भूस्खलन: भारी बारिश से शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में बाढ़ आ सकती है। पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन (landslides) का खतरा भी बढ़ जाता है।
- रोगों का प्रसार: जल-जमाव मच्छरों और अन्य रोगजनकों के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा कर सकता है, जिससे मलेरिया, डेंगू, और जल-जनित बीमारियों (जैसे हैजा, टाइफाइड) का खतरा बढ़ सकता है।
- तैयारी की आवश्यकता: राज्य और स्थानीय सरकारों को संभावित बाढ़, भूस्खलन और अन्य आपदाओं से निपटने के लिए अपनी तैयारियों को बढ़ाना होगा। इसमें बचाव दल, आश्रय गृह, और चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था शामिल है।
IMD के पूर्वानुमान की चुनौतियाँ और सीमाएँ
यह समझना महत्वपूर्ण है कि मौसम पूर्वानुमान, विशेष रूप से मौसमी पूर्वानुमान, स्वाभाविक रूप से अनिश्चितताओं से भरे होते हैं। IMD का पूर्वानुमान एक संभावना (probability) व्यक्त करता है, न कि निश्चितता।
- स्थानीय भिन्नताएँ: “सामान्य से अधिक बारिश” का मतलब यह नहीं है कि हर जगह बारिश सामान्य से अधिक होगी। कुछ क्षेत्रों में सामान्य या सामान्य से कम बारिश भी हो सकती है।
- समय और तीव्रता: पूर्वानुमान यह नहीं बता सकता कि बारिश कब होगी या उसकी तीव्रता कितनी होगी। एक ही क्षेत्र में लंबे समय तक हल्की बारिश, कम समय में भारी बारिश की तुलना में कम हानिकारक हो सकती है।
- मॉडल की सटीकता: जलवायु मॉडल जटिल प्रणालियों पर आधारित होते हैं और इनमें हमेशा कुछ त्रुटि की गुंजाइश रहती है।
- अप्रत्याशित घटनाएँ: अचानक आने वाले चक्रवात या अन्य स्थानीय मौसमी घटनाएँ भी वर्षा पैटर्न को प्रभावित कर सकती हैं।
UPSC परीक्षा के लिए तैयारी: मुख्य बिंदु
UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवार के लिए, इस खबर को कई दृष्टिकोणों से देखना चाहिए:
1. प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):
- मौसम विज्ञान: मानसून की परिभाषा, ग्रीष्मकालीन और उत्तर-पूर्वी मानसून में अंतर, भारत में वर्षा वितरण, अल नीनो/ला नीना का प्रभाव।
- भूगोल: प्रमुख वर्षा वाले क्षेत्र, फसलें जो उत्तर-पूर्वी मानसून पर निर्भर करती हैं।
- अर्थव्यवस्था: कृषि का जीडीपी में योगदान, खाद्य मुद्रास्फीति, सिंचाई की भूमिका।
- आपदा प्रबंधन: बाढ़, भूस्खलन, उनसे निपटने के उपाय, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)।
- पर्यावरण: मिट्टी का कटाव, जल संचयन, जलवायु परिवर्तन का मानसून पर प्रभाव।
2. मुख्य परीक्षा (Mains):
यह विषय GS-I (भूगोल), GS-III (अर्थव्यवस्था, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आपदा प्रबंधन, पर्यावरण) में प्रासंगिक है।
- प्रश्न 1 (भूगोल/पर्यावरण): “भारत में उत्तर-पूर्वी मानसून के महत्व का वर्णन करें और सामान्य से अधिक वर्षा की भविष्यवाणी के संभावित पर्यावरणीय और आर्थिक निहितार्थों का विश्लेषण करें।”
- प्रश्न 2 (अर्थव्यवस्था/कृषि): “भारतीय कृषि, विशेष रूप से रबी फसलों के संबंध में, IMD के हालिया मानसून पूर्वानुमान के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभावों पर एक विस्तृत चर्चा करें।”
- प्रश्न 3 (आपदा प्रबंधन): “सामान्य से अधिक बारिश की भविष्यवाणी के मद्देनजर, भारतीय राज्यों को संभावित बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए क्या उपाय करने चाहिए? राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन की भूमिका पर प्रकाश डालें।”
- प्रश्न 4 (विज्ञान और प्रौद्योगिकी/पर्यावरण): “जलवायु परिवर्तन कैसे भारतीय मानसून की प्रकृति को बदल रहा है? IMD जैसे राष्ट्रीय मौसम विज्ञान विभागों की भूमिका और भविष्य के पूर्वानुमानों में उनकी चुनौतियों पर टिप्पणी करें।”
भविष्य की राह: अनुकूलन और शमन (Adaptation and Mitigation)
IMD के पूर्वानुमान हमें केवल भविष्य की एक झलक दिखाते हैं; महत्वपूर्ण यह है कि हम इस जानकारी का उपयोग कैसे करते हैं:
- सक्रिय आपदा प्रबंधन: सरकारों को निचले इलाकों को खाली करने, चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने और आपातकालीन सेवाओं को तैयार रखने जैसी सक्रिय योजनाएँ बनानी चाहिए।
- कृषि पद्धतियों में परिवर्तन: किसानों को ऐसी फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो जल-जमाव के प्रति अधिक प्रतिरोधी हों या जिन्हें अलग-अलग समय पर बोया जा सके। ड्रिप सिंचाई जैसी जल-कुशल तकनीकों को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।
- बुनियादी ढांचे का सुदृढ़ीकरण: बाढ़ सुरक्षा के लिए तटबंधों (embankments) को मजबूत करना, जल निकासी प्रणालियों में सुधार करना और शहरी नियोजन में जल-कुशल डिजाइन को शामिल करना आवश्यक है।
- जल संचयन: वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) को बढ़ावा देना, चाहे वह बड़े बांधों के रूप में हो या छोटे सामुदायिक संरचनाओं के रूप में, अतिरिक्त पानी को संग्रहित करने और सूखे के समय उपयोग करने का एक प्रभावी तरीका है।
- अनुसंधान और विकास: बेहतर मौसम पूर्वानुमान मॉडल विकसित करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने वाली प्रौद्योगिकियों में निवेश करना महत्वपूर्ण है।
“हम भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि कब बारिश होगी, लेकिन हम अपनी नाव को तैयार रख सकते हैं।” – यह कहावत मौसम पूर्वानुमानों के संदर्भ में भी उतनी ही प्रासंगिक है।
निष्कर्ष
IMD का यह पूर्वानुमान कि भारत में मानसून के दूसरे हिस्से में सामान्य से अधिक बारिश की संभावना है, एक महत्वपूर्ण घटना है जिसके बहुआयामी प्रभाव होंगे। यह न केवल किसानों और अर्थव्यवस्था के लिए बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी चिंता का विषय है। UPSC उम्मीदवार के तौर पर, इस खबर को सिर्फ एक मौसम रिपोर्ट के रूप में न देखें, बल्कि इसे एक अवसर के रूप में देखें कि आप कैसे एक IAS/IPS अधिकारी के रूप में भारत को इन चुनौतियों का सामना करने और अवसरों का लाभ उठाने में मदद कर सकते हैं। जल प्रबंधन, कृषि नवाचार, आपदा तैयारी और जलवायु-अनुकूल विकास को एकीकृत करना भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होगा।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: भारत में वर्षा के वितरण पर निम्नलिखित में से किसका सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है?
- तिब्बत पठार का तापमान
- प्रशांत महासागर में अल नीनो की स्थिति
- हिंद महासागर की सतह का तापमान
- भारतीय महाद्वीप पर वायुदाब का वितरण
उत्तर: (c)
व्याख्या: जबकि सभी कारक मानसून को प्रभावित करते हैं, हिंद महासागर की सतह का तापमान (SST) विशेष रूप से भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून के लिए सबसे महत्वपूर्ण नियंत्रक माना जाता है। अल नीनो/ला नीना का प्रभाव भी SST के माध्यम से ही आता है। - प्रश्न: उत्तर-पूर्वी मानसून (वापसी मानसून) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी राज्यों में वर्षा लाता है।
2. इस दौरान हवाएं उत्तर-पश्चिम दिशा से दक्षिण-पूर्व की ओर लौटती हैं।
3. यह भारत की कुल वार्षिक वर्षा का एक बड़ा हिस्सा प्रदान करता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?- 1 और 2
- केवल 2
- 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
व्याख्या: उत्तर-पूर्वी मानसून मुख्यतः तमिलनाडु, तटीय आंध्र प्रदेश आदि में बारिश लाता है और हवाएं लौटती हैं। हालांकि, यह भारत की कुल वर्षा का केवल 10-15% ही होता है, इसलिए कथन 3 गलत है। - प्रश्न: “सामान्य से अधिक बारिश” (Above Normal Rainfall) का IMD द्वारा क्या अर्थ समझा जाता है?
- लंबी अवधि के औसत (LPA) से 10% से अधिक वर्षा
- लगातार तीन दिनों तक सामान्य से अधिक बारिश
- किसी भी क्षेत्र में 200 मिमी से अधिक बारिश
- मानसून के सामान्य समापन तिथि से पहले वर्षा
उत्तर: (a)
व्याख्या: IMD के अनुसार, सामान्य से अधिक बारिश का मतलब है कि वर्षा लंबी अवधि के औसत (LPA) से 10% या उससे अधिक है। - प्रश्न: भारत में रबी की फसलों के लिए निम्नलिखित में से कौन सा मानसून सबसे महत्वपूर्ण है?
- ग्रीष्मकालीन मानसून (Southwest Monsoon)
- उत्तर-पूर्वी मानसून (Northeast Monsoon)
- पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances)
- मानसून की वापसी (Retreating Monsoon)
उत्तर: (b)
व्याख्या: उत्तर-पूर्वी मानसून, जो मुख्य रूप से अक्टूबर से दिसंबर तक रहता है, तमिलनाडु, तटीय आंध्र प्रदेश आदि जैसे राज्यों में रबी की फसलों (जैसे धान) के लिए महत्वपूर्ण है। - प्रश्न: अतिवृष्टि (Excessive Rainfall) के कारण होने वाली निम्नलिखित समस्याओं पर विचार करें:
1. फसल की जड़ सड़न
2. मिट्टी से पोषक तत्वों का रिसाव
3. कीटों और फंगल रोगों का प्रकोप
4. बीजों का बेहतर अंकुरण
उपरोक्त में से कौन सी समस्याएँ अतिवृष्टि से जुड़ी हैं?- 1, 2 और 3
- केवल 1 और 4
- 2, 3 और 4
- 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (a)
व्याख्या: अतिवृष्टि से जड़ें सड़ सकती हैं, पोषक तत्व बह सकते हैं और नमी से रोग-कीट बढ़ सकते हैं। हालांकि, अत्यधिक पानी से अंकुरण प्रभावित हो सकता है, बेहतर नहीं। - प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र के योगदान के संदर्भ में, सामान्य से अधिक बारिश का संभावित प्रभाव क्या हो सकता है?
- केवल कृषि जीडीपी में वृद्धि
- केवल खाद्य मुद्रास्फीति में कमी
- कृषि उत्पादन में वृद्धि या क्षति, जो बारिश की तीव्रता और वितरण पर निर्भर करेगा
- हमेशा कृषि उत्पादन में वृद्धि
उत्तर: (c)
व्याख्या: बारिश फायदेमंद या हानिकारक हो सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह कितनी, कब और कहाँ हो रही है। - प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में मौसम पूर्वानुमान जारी करने के लिए जिम्मेदार है?
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
- नीति आयोग
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES)
उत्तर: (c)
व्याख्या: IMD भारत में मौसम विज्ञान के लिए जिम्मेदार मुख्य सरकारी एजेंसी है, जो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन है। - प्रश्न: “ला नीना” (La Niña) की स्थिति का भारतीय मानसून पर सामान्य प्रभाव क्या होता है?
- मानसून को कमजोर करती है
- मानसून को मजबूत करती है
- मानसून पर कोई प्रभाव नहीं डालती
- मानसून के पैटर्न को अप्रत्याशित बनाती है
उत्तर: (b)
व्याख्या: ला नीना की स्थिति आमतौर पर भारतीय मानसून को मजबूत करने से जुड़ी होती है, जिसके परिणामस्वरूप सामान्य से अधिक वर्षा हो सकती है। - प्रश्न: भूस्खलन (Landslides) के संबंध में, सामान्य से अधिक बारिश का क्या प्रभाव हो सकता है?
- भूमि के ढलानों को स्थिर करता है
- भूस्खलन का खतरा कम करता है
- मिट्टी की नमी बढ़ाकर भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाता है
- पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा को कम करता है
उत्तर: (c)
व्याख्या: अत्यधिक बारिश मिट्टी को संतृप्त कर देती है, जिससे उसकी भार वहन क्षमता कम हो जाती है और ढलान अस्थिर होकर भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। - प्रश्न: भारत सरकार की वह कौन सी एजेंसी है जो प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए नीतियां बनाती है और समन्वय करती है?
- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI)
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
- केंद्रीय जल आयोग (CWC)
- भारतीय सेना
उत्तर: (b)
व्याख्या: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष वैधानिक निकाय है, जो नीतियां बनाता है और विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित करता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: IMD के उस पूर्वानुमान का विश्लेषण करें जिसमें भारत में मानसून के दूसरे हिस्से में सामान्य से अधिक बारिश की संभावना जताई गई है। इस पूर्वानुमान के मद्देनजर, भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए संभावित लाभ और हानियों पर विस्तार से चर्चा करें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न: “उत्तर-पूर्वी मानसून” भारत के दक्षिणी राज्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस मानसून की विशेषताओं का वर्णन करें और IMD द्वारा सामान्य से अधिक वर्षा की भविष्यवाणी के कारण उत्पन्न होने वाले जल प्रबंधन और बाढ़ संबंधी चुनौतियों की पड़ताल करें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न: “जलवायु परिवर्तन भारतीय मानसून की अनिश्चितता को बढ़ा रहा है।” इस कथन के आलोक में, IMD जैसे राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठनों की भूमिका और चुनौतियों पर प्रकाश डालें। सामान्य से अधिक बारिश की भविष्यवाणी के संदर्भ में, आपदा न्यूनीकरण और अनुकूलन (Disaster Mitigation and Adaptation) के लिए सरकार द्वारा उठाए जाने वाले संभावित कदमों का सुझाव दें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न: सामान्य से अधिक बारिश की संभावना का भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कृषि, बुनियादी ढांचा और खाद्य मुद्रास्फीति पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (लगभग 150 शब्द)