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HIV/AIDS फंडिंग संकट: अमेरिकी सहायता कटौती और आत्मनिर्भरता की ओर वैश्विक स्वास्थ्य – एक विस्तृत UPSC विश्लेषण

HIV/AIDS फंडिंग संकट: अमेरिकी सहायता कटौती और आत्मनिर्भरता की ओर वैश्विक स्वास्थ्य – एक विस्तृत UPSC विश्लेषण

चर्चा में क्यों? हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा वैश्विक HIV/AIDS उपायों के लिए दी जाने वाली सहायता में कटौती या पुन:प्राथमिकता के संकेत मिले हैं, जिससे उन देशों को अपने घरेलू बजट में इस मद के लिए अधिक धन आवंटित करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जो पहले अमेरिकी सहायता पर बहुत अधिक निर्भर थे। यह विषय UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह GS पेपर II – शासन, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय, तथा GS पेपर III – अर्थव्यवस्था (विकास, संसाधन जुटाना) से संबंधित है। यह वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा, विकासशील देशों पर अंतर्राष्ट्रीय सहायता की निर्भरता और आत्मनिर्भरता की आवश्यकता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डालता है।


विषय का विस्तृत विश्लेषण

विषय का परिचय

बीसवीं सदी के अंत में, HIV/AIDS ने दुनिया को एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट से घेर लिया। 1980 के दशक की शुरुआत में पहचान की गई इस बीमारी ने तेजी से वैश्विक रूप ले लिया, लाखों लोगों को प्रभावित किया और विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका और एशिया के विकासशील देशों में स्वास्थ्य प्रणालियों को तबाह कर दिया। यह केवल एक चिकित्सा संकट नहीं था, बल्कि एक व्यापक सामाजिक-आर्थिक चुनौती थी, जिसने उत्पादकता, पारिवारिक संरचनाओं और राष्ट्रीय विकास को गहराई से प्रभावित किया।

इस वैश्विक महामारी के जवाब में, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने एकजुट होकर कदम उठाए। संयुक्त राष्ट्र (UNAIDS), ग्लोबल फंड टू फाइट AIDS, ट्यूबरकुलोसिस एंड मलेरिया, और विभिन्न द्विपक्षीय सहायता कार्यक्रमों जैसी पहल ने इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें से, संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘प्रेसिडेंट्स इमरजेंसी प्लान फॉर AIDS रिलीफ’ (PEPFAR) का प्रभाव सबसे अधिक व्यापक और उल्लेखनीय रहा है। 2003 में स्थापित, PEPFAR ने HIV/AIDS के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में अरबों डॉलर का निवेश किया, जिससे एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) तक पहुंच का विस्तार हुआ, संक्रमण दर कम हुई और लाखों लोगों की जान बची। यह अब तक के सबसे बड़े वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक बन गया, जिसने विशेष रूप से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में बीमारी के मार्ग को बदल दिया।

PEPFAR जैसी पहलों की सफलता के बावजूद, HIV/AIDS अभी भी एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। UNAIDS के अनुसार, 2022 के अंत तक, दुनिया भर में लगभग 39 मिलियन लोग HIV के साथ जी रहे थे, और 1.3 मिलियन नए संक्रमण हुए। जबकि ART ने इसे एक प्रबंधनीय पुरानी स्थिति में बदल दिया है, पूर्ण इलाज अभी भी मायावी है। अब, जैसे-जैसे दुनिया भू-राजनीतिक बदलाव और वित्तीय दबावों का सामना कर रही है, अमेरिकी सहायता में कमी की संभावना ने एक नई बहस छेड़ दी है: क्या विकासशील देश, जिन्होंने दशकों से विदेशी सहायता पर भरोसा किया है, अब अपनी स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के लिए आत्मनिर्भर होने के लिए तैयार हैं?

यह बदलाव केवल धन की कमी का संकेत नहीं देता है, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य वित्तपोषण के मॉडल में एक मौलिक बदलाव का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह उन देशों पर अपने स्वयं के संसाधनों को जुटाने और स्थायी स्वास्थ्य प्रणालियों का निर्माण करने के लिए एक बढ़ते दबाव का प्रतीक है। यह लेख इस जटिल मुद्दे की पड़ताल करेगा, अमेरिकी सहायता में कटौती के निहितार्थों, चुनौतियों और आगे की राह का विश्लेषण करेगा, विशेष रूप से एक UPSC उम्मीदवार के दृष्टिकोण से।

प्रमुख प्रावधान / मुख्य बिंदु

अमेरिकी सहायता में कमी की खबरें और इसके संभावित परिणाम HIV/AIDS के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए, कुछ प्रमुख पहलुओं पर गहराई से विचार करना आवश्यक है:

  • प्रेसिडेंट्स इमरजेंसी प्लान फॉर AIDS रिलीफ (PEPFAR) का महत्व:
    • स्थापना और उद्देश्य: PEPFAR को 2003 में राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा एक द्विपक्षीय अमेरिकी सरकारी पहल के रूप में लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य HIV/AIDS से निपटने के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया का नाटकीय रूप से विस्तार करना था। इसका प्राथमिक लक्ष्य उप-सहारा अफ्रीका, कैरिबियन और एशिया के सबसे अधिक प्रभावित देशों में HIV/AIDS निवारण, उपचार और देखभाल सेवाओं तक पहुंच प्रदान करना था।
    • पैमाना और प्रभाव: अपनी स्थापना के बाद से, PEPFAR ने वैश्विक HIV/AIDS प्रतिक्रिया में $100 बिलियन से अधिक का निवेश किया है, जिससे यह इतिहास में सबसे बड़ा प्रतिबद्धता है। इसने लाखों लोगों को जीवन रक्षक एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) प्रदान की है, जिससे HIV से संबंधित मौतों में भारी कमी आई है और नए संक्रमणों की दर धीमी हुई है। इसके हस्तक्षेपों ने 25 मिलियन से अधिक लोगों की जान बचाने में मदद की है और कई देशों में HIV के मार्ग को बदल दिया है।
    • “90-90-90” लक्ष्यों में भूमिका: PEPFAR ने UNAIDS के “90-90-90” लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसका उद्देश्य 2020 तक HIV के साथ रहने वाले 90% लोगों का निदान करना, उनमें से 90% को ART पर रखना, और ART पर 90% लोगों में वायरल दमन प्राप्त करना है।
  • अमेरिकी सहायता में कमी या पुन:प्राथमिकता के कारण:
    • बदलती विदेश नीति प्राथमिकताएँ: “अमेरिका फर्स्ट” और घरेलू प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ कुछ नीतियों ने विदेशी सहायता बजटों की समीक्षा को बढ़ावा दिया है।
    • बजट संबंधी दबाव और घाटा: अमेरिकी सरकार अपने घरेलू बजट घाटे और व्यय को कम करने के लिए दबाव में है, जिससे विदेशी सहायता में कटौती एक लक्ष्य बन सकती है।
    • स्थानीय स्वामित्व और आत्मनिर्भरता पर जोर: अमेरिकी नीति निर्माता अब यह तर्क दे रहे हैं कि जिन देशों को वर्षों से सहायता मिल रही है, उन्हें अपने स्वास्थ्य कार्यक्रमों का अधिक स्वामित्व लेना चाहिए और घरेलू संसाधनों को जुटाना चाहिए। इसे “exit strategy” या “burden sharing” के रूप में देखा जा सकता है।
    • विकास सहायता की दक्षता की धारणा: कुछ का मानना है कि विदेशी सहायता हमेशा सबसे कुशल या प्रभावी तरीका नहीं होती है, और स्थानीय क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • प्राप्तकर्ता देशों पर निहितार्थ:
    • वित्तीय अंतर (Funding Gap): अमेरिकी सहायता में कमी से उन देशों में महत्वपूर्ण वित्तीय अंतर पैदा होंगे जो अपनी HIV/AIDS प्रतिक्रिया के लिए PEPFAR पर बहुत अधिक निर्भर रहे हैं। यह रातों-रात पूरा करना मुश्किल होगा।
    • सेवाओं में व्यवधान: ART की खरीद, वितरण, परीक्षण सेवाओं, परामर्श और निवारण कार्यक्रमों में व्यवधान का खतरा है, जिससे नए संक्रमणों में वृद्धि और मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है।
    • कमजोर आबादी पर प्रभाव: HIV/AIDS से सबसे अधिक प्रभावित कमजोर आबादी (जैसे LGBTQ+ समुदाय, नशा करने वाले, यौनकर्मी, महिलाएं और बच्चे) सबसे अधिक प्रभावित होंगे क्योंकि उनके लिए उपलब्ध सेवाएं कम हो सकती हैं।
    • अन्य स्वास्थ्य प्राथमिकताओं से प्रतिस्पर्धा: घरेलू बजट सीमित होने के कारण, HIV/AIDS के लिए अधिक धन आवंटित करने से मलेरिया, तपेदिक, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य जैसी अन्य आवश्यक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं पर दबाव पड़ सकता है।
  • वैश्विक वित्तपोषण परिदृश्य:
    • ग्लोबल फंड की भूमिका: ग्लोबल फंड टू फाइट AIDS, ट्यूबरकुलोसिस एंड मलेरिया एक महत्वपूर्ण बहुपक्षीय वित्तपोषण तंत्र है, जो विभिन्न देशों और निजी दाताओं से धन जुटाता है। अमेरिकी सहायता में कमी से इसकी भूमिका और महत्व और बढ़ जाता है।
    • अन्य द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दाता: यूके, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, जापान जैसे अन्य प्रमुख दाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है, लेकिन अमेरिकी स्तर की फंडिंग को कोई भी अकेला दाता प्रतिस्थापित नहीं कर सकता।
    • घरेलू संसाधन जुटाना (Domestic Resource Mobilization – DRM): अब मुख्य जोर प्राप्तकर्ता देशों द्वारा अपने स्वयं के कर राजस्व, सामाजिक स्वास्थ्य बीमा योजनाओं और अन्य घरेलू वित्तपोषण तंत्रों के माध्यम से अधिक संसाधनों को जुटाने पर है।
  • भारत के संदर्भ में:
    • राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण संगठन (NACO): भारत का अपना एक मजबूत और व्यापक राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण कार्यक्रम (NACP) है, जिसे राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण संगठन (NACO) द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। भारत ने अपनी स्वयं की वित्तीय और नीतिगत प्रतिबद्धता के माध्यम से HIV/AIDS के खिलाफ महत्वपूर्ण प्रगति की है।
    • ART उत्पादन में आत्मनिर्भरता: भारत जेनेरिक ART दवाओं का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसने दवाओं को किफायती और सुलभ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में। यह आत्मनिर्भरता भारत को बाहरी सहायता में कमी के प्रभावों को कम करने में मदद करती है।
    • दक्षिण-दक्षिण सहयोग: भारत HIV/AIDS के प्रबंधन में अपने अनुभव और विशेषज्ञता को अन्य विकासशील देशों के साथ साझा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, विशेष रूप से दवा आपूर्ति और तकनीकी सहायता के माध्यम से।

यह स्थिति वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति के लिए एक जटिल चुनौती प्रस्तुत करती है, जिसमें दाता देशों को अपनी प्राथमिकताओं को संतुलित करना होता है और प्राप्तकर्ता देशों को अपनी दीर्घकालिक स्थिरता के लिए अपनी रणनीतियों को अनुकूलित करना होता है।

पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons)

सकारात्मक पहलू (Positives)

हालांकि अमेरिकी सहायता में कटौती चिंताजनक लगती है, इसके कुछ संभावित सकारात्मक पहलू भी हो सकते हैं, विशेष रूप से दीर्घकालिक स्थिरता और आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण से:

  • आत्मनिर्भरता और स्थानीय स्वामित्व का सशक्तिकरण:
    • विदेशी सहायता पर निर्भरता कम होने से प्राप्तकर्ता देशों को अपने स्वयं के स्वास्थ्य कार्यक्रमों की अधिक जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह स्थानीय सरकारों को अपनी आबादी की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप नीतियां और कार्यक्रम विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे उनकी जवाबदेही बढ़ती है।
    • यह स्थानीय नेतृत्व और विशेषज्ञता को बढ़ावा देता है, जिससे स्वास्थ्य पहलें अधिक प्रासंगिक और टिकाऊ बन सकती हैं।
  • घरेलू संसाधन जुटाने को बढ़ावा:
    • यह स्थिति देशों को अपने स्वयं के घरेलू संसाधनों (जैसे कर राजस्व, सामाजिक स्वास्थ्य बीमा, निजी क्षेत्र की भागीदारी) को HIV/AIDS कार्यक्रमों के लिए अधिक कुशलता से जुटाने के लिए मजबूर करेगी। यह एक अधिक टिकाऊ वित्तपोषण मॉडल है जो विदेशी दाताओं की बदलती प्राथमिकताओं से कम प्रभावित होता है।
    • यह सार्वजनिक स्वास्थ्य में घरेलू निवेश के महत्व पर प्रकाश डालता है, जिसे अक्सर विदेशी सहायता की तुलना में कम करके आंका जाता है।
  • कार्यकुशलता और लागत-प्रभावशीलता में वृद्धि:
    • सीमित संसाधनों के साथ, देशों को अपने HIV/AIDS कार्यक्रमों को अधिक लागत-प्रभावी बनाने के लिए नवीन तरीके खोजने होंगे। इसमें सेवा वितरण मॉडल को सुव्यवस्थित करना, अनावश्यक प्रशासनिक लागतों को कम करना और लक्षित हस्तक्षेपों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल हो सकता है।
    • यह कार्यक्रम प्रबंधन में अधिक दक्षता और नवाचार को बढ़ावा दे सकता है।
  • बहु-भागीदार मॉडल की ओर बदलाव:
    • एकल दाता पर निर्भरता कम होने से देश वित्तपोषण के लिए अन्य द्विपक्षीय, बहुपक्षीय (जैसे ग्लोबल फंड) और निजी दाताओं की ओर रुख कर सकते हैं। यह फंडिंग स्रोतों को विविधता प्रदान करता है, जिससे किसी एक स्रोत पर अत्यधिक निर्भरता का जोखिम कम होता है।
    • यह वैश्विक स्वास्थ्य में अधिक संतुलित और सामूहिक जिम्मेदारी के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

नकारात्मक पहलू / चिंताएँ (Negatives / Concerns)

अमेरिकी सहायता में कटौती के कई गंभीर नकारात्मक निहितार्थ हो सकते हैं, विशेष रूप से कमजोर स्वास्थ्य प्रणालियों और उच्च HIV बोझ वाले देशों के लिए:

  • महत्वपूर्ण वित्तीय अंतराल (Funding Gaps):
    • PEPFAR ने कुछ देशों में HIV/AIDS प्रतिक्रिया के लिए वित्तपोषण का एक बड़ा हिस्सा प्रदान किया है। इसकी अचानक या अपर्याप्त रूप से प्रबंधित कटौती से एक बड़ा वित्तीय अंतर पैदा होगा जिसे घरेलू संसाधनों द्वारा तुरंत भरना असंभव हो सकता है।
    • इससे आवश्यक सेवाओं के लिए धन की कमी हो सकती है, जिससे मौजूदा कार्यक्रम कमजोर पड़ सकते हैं।
  • सेवाओं में व्यवधान और परिणामों का उलटफेर:
    • ART की आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है, जिससे उपचार प्राप्त कर रहे लाखों लोगों के लिए जीवन रक्षक दवाओं की कमी हो सकती है। यह वायरल दमन के नुकसान और दवा प्रतिरोध के उदय का कारण बन सकता है।
    • परीक्षण, परामर्श, निवारण (जैसे कंडोम वितरण, PrEP – Pre-Exposure Prophylaxis) और मातृ-शिशु संक्रमण रोकथाम कार्यक्रमों को गंभीर झटका लग सकता है, जिससे नए संक्रमणों में वृद्धि हो सकती है।
    • दशकों के प्रयासों से प्राप्त लाभ (जैसे HIV से संबंधित मौतों में कमी) उलट सकते हैं, जिससे एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का खतरा पैदा हो सकता है।
  • सबसे कमजोर आबादी पर असमान प्रभाव:
    • HIV/AIDS अक्सर उन हाशिए पर पड़े और कलंकित समुदायों को प्रभावित करता है जो पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में बाधाओं का सामना करते हैं (जैसे LGBTQ+ व्यक्ति, ड्रग्स उपयोगकर्ता, यौनकर्मी)। सहायता में कमी इन आबादी के लिए सेवाओं को और भी दुर्गम बना सकती है, जिससे असमानताएं बढ़ सकती हैं।
    • महिलाएं और बच्चे, जो अक्सर सबसे कमजोर होते हैं, विशेष रूप से मातृ-शिशु संक्रमण रोकथाम कार्यक्रमों और बाल चिकित्सा ART तक पहुंच में व्यवधान से प्रभावित होंगे।
  • स्वास्थ्य प्रणालियों पर बढ़ा हुआ दबाव:
    • विकासशील देशों में कई स्वास्थ्य प्रणालियाँ पहले से ही कमजोर और कम वित्तपोषित हैं। HIV/AIDS के लिए अधिक घरेलू संसाधनों को आवंटित करने का दबाव अन्य आवश्यक स्वास्थ्य कार्यक्रमों (जैसे तपेदिक, मलेरिया, मातृ स्वास्थ्य) से धन को हटा सकता है, जिससे समग्र स्वास्थ्य परिणामों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • यह स्वास्थ्य कार्यबल और बुनियादी ढांचे पर भी अतिरिक्त दबाव डालेगा।
  • तकनीकी विशेषज्ञता और क्षमता निर्माण का नुकसान:
    • विदेशी सहायता अक्सर तकनीकी विशेषज्ञता, प्रशिक्षण और अनुसंधान क्षमताओं के साथ आती है। सहायता में कटौती से ज्ञान हस्तांतरण और स्थानीय स्वास्थ्य पेशेवरों के क्षमता निर्माण में कमी आ सकती है, जिससे कार्यक्रम डिजाइन और कार्यान्वयन प्रभावित हो सकता है।
    • यह बीमारी की निगरानी, डेटा संग्रह और कार्यक्रम मूल्यांकन क्षमताओं को भी कमजोर कर सकता है।
  • भू-राजनीतिक निहितार्थ:
    • अमेरिकी सहायता में कटौती को कुछ देशों में विश्वसनीयता के नुकसान या भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं में बदलाव के संकेत के रूप में देखा जा सकता है, जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर सकता है।
    • यह चीन जैसे अन्य उभरते दाताओं के लिए एक शून्य पैदा कर सकता है, जिनके सहायता मॉडल अलग हो सकते हैं।

इन चिंताओं को संबोधित करना महत्वपूर्ण है ताकि दशकों की प्रगति को संरक्षित किया जा सके और HIV/AIDS महामारी पर काबू पाने के वैश्विक प्रयास को जारी रखा जा सके।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

अमेरिकी सहायता में संभावित कटौती के आलोक में HIV/AIDS के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ सामने आती हैं:

  1. वित्तीय अंतर को भरना (Filling the Financial Gap): सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि अमेरिकी सहायता में कमी के कारण उत्पन्न होने वाले महत्वपूर्ण वित्तीय अंतर को भरा जाए, ताकि आवश्यक सेवाओं में कोई व्यवधान न हो। कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों के पास अपने दम पर इस अंतर को भरने के लिए पर्याप्त घरेलू संसाधन नहीं हैं।
  2. राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्राथमिकता: घरेलू सरकारों को HIV/AIDS को एक उच्च प्राथमिकता के रूप में बनाए रखने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी, खासकर जब वे कई अन्य विकास चुनौतियों का सामना कर रहे हों।
  3. कमजोर स्वास्थ्य प्रणालियाँ: कई विकासशील देशों में स्वास्थ्य प्रणालियाँ पहले से ही कमजोर हैं, जिनमें अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, प्रशिक्षित कर्मियों की कमी और सीमित पहुंच है। घरेलू संसाधनों पर बढ़ती निर्भरता इन प्रणालियों पर और दबाव डाल सकती है।
  4. डेटा और निगरानी की कमी: सटीक डेटा की कमी यह निर्धारित करने में बाधा डाल सकती है कि फंडिंग गैप कहाँ सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं और संसाधनों को सबसे प्रभावी ढंग से कहाँ आवंटित किया जाना चाहिए।
  5. कलंक और भेदभाव: HIV/AIDS से जुड़ा कलंक और भेदभाव अभी भी परीक्षण, उपचार और निवारण सेवाओं तक पहुंच को बाधित करता है, जिससे कमजोर आबादी के लिए चुनौती बढ़ जाती है।
  6. मानव संसाधन की कमी: ART वितरण, परामर्श और सामुदायिक आउटरीच के लिए प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवरों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की आवश्यकता एक सतत चुनौती है।
  7. नवाचार और अनुसंधान का निरंतर वित्तपोषण: नए निवारक उपकरणों, टीकों और उपचारों के लिए अनुसंधान और विकास में निवेश जारी रखना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके लिए पर्याप्त वित्तपोषण की आवश्यकता होगी।

आगे की राह: इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक, बहु-आयामी और सहकारी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल होना चाहिए:

  1. घरेलू संसाधन जुटाना (Domestic Resource Mobilization – DRM) बढ़ाना:
    • कर राजस्व बढ़ाना: स्वास्थ्य के लिए विशिष्ट कर (जैसे तंबाकू, शराब पर ‘सिन टैक्स’) या समग्र कर संग्रह दक्षता में सुधार करना।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs): स्वास्थ्य सेवाओं और नवाचार के वित्तपोषण के लिए निजी क्षेत्र को शामिल करना।
    • सामाजिक स्वास्थ्य बीमा और उपयोगकर्ता शुल्क: जहां उपयुक्त हो, स्वास्थ्य व्यय के लिए निधियों का एक पूल बनाना।
    • नवप्रवर्तन वित्तपोषण तंत्र: जैसे सॉवरेन वेल्थ फंड, प्रवासी प्रेषण से योगदान, या प्रभाव निवेश।
  2. कार्यकुशलता और लागत-प्रभावशीलता में सुधार:
    • संसाधनों का अनुकूलन: यह सुनिश्चित करना कि मौजूदा धन का उपयोग सबसे अधिक प्रभावी और कुशल तरीके से किया जाए। इसमें आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुव्यवस्थित करना, दवा खरीद को केंद्रीकृत करना और प्रशासनिक लागतों को कम करना शामिल है।
    • डेटा-संचालित निर्णय लेना: वास्तविक समय के डेटा का उपयोग करके कार्यक्रमों को लक्षित करना और उनका मूल्यांकन करना ताकि अधिकतम प्रभाव प्राप्त किया जा सके।
    • नवाचार को बढ़ावा देना: टेलीमेडिसिन, मोबाइल स्वास्थ्य समाधान और सामुदायिक-आधारित देखभाल जैसे लागत-प्रभावी वितरण मॉडल अपनाना।
  3. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और विविध दानदाता आधार:
    • ग्लोबल फंड को मजबूत करना: यह सुनिश्चित करना कि ग्लोबल फंड को पर्याप्त रूप से वित्तपोषित किया जाए, क्योंकि यह कई देशों के लिए एक महत्वपूर्ण बहुपक्षीय वित्तपोषण स्रोत है।
    • अन्य दाताओं को शामिल करना: यूरोपीय संघ, यूके, जापान और मध्य पूर्वी देशों जैसे अन्य द्विपक्षीय दाताओं से अधिक प्रतिबद्धता और निवेश की मांग करना।
    • दक्षिण-दक्षिण सहयोग: भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देशों को HIV/AIDS प्रतिक्रिया में अपनी सफलताओं और अनुभवों को अन्य विकासशील देशों के साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित करना, विशेष रूप से जेनेरिक दवाओं और तकनीकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में।
  4. निरंतर राजनीतिक प्रतिबद्धता और वकालत:
    • घरेलू सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को HIV/AIDS को एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता के रूप में बनाए रखने के लिए लगातार वकालत और प्रतिबद्धता दिखानी होगी।
    • नागरिक समाज संगठनों और सामुदायिक समूहों की आवाज को बुलंद करना, जो अक्सर जमीनी स्तर पर सेवाओं के वितरण में महत्वपूर्ण होते हैं।
  5. स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करना:
    • एक एकीकृत, लचीली और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा-उन्मुख प्रणाली का निर्माण करना जो HIV/AIDS सेवाओं को अन्य आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल कर सके।
    • स्वास्थ्य कार्यबल में निवेश, विशेष रूप से ग्रामीण और underserved क्षेत्रों में।
  6. नवाचार, अनुसंधान और विकास:
    • HIV के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी टीके के विकास में निवेश जारी रखना, साथ ही नए निवारक उपकरण और अधिक प्रभावी उपचार।
    • जल्दी निदान के लिए सस्ती और सुलभ परीक्षण विधियों का विकास।
  7. भारत की विशिष्ट भूमिका:
    • भारत, अपनी मजबूत जेनेरिक दवा उद्योग और NACO के साथ, एंटीरेट्रोवायरल दवाओं की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक विश्वसनीय और लागत-प्रभावी स्रोत के रूप में अपनी भूमिका जारी रख सकता है।
    • यह HIV/AIDS कार्यक्रमों के प्रबंधन में अपनी विशेषज्ञता और अनुभव को अन्य विकासशील देशों के साथ साझा कर सकता है, जिससे दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए एक मॉडल स्थापित हो सकता है।

संक्षेप में, अमेरिकी सहायता में कमी HIV/AIDS के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करती है, लेकिन यह विकासशील देशों के लिए अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने, घरेलू संसाधनों को जुटाने और दीर्घकालिक स्थिरता की दिशा में बढ़ने का एक अवसर भी हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ काम करना चाहिए कि दशकों की प्रगति खतरे में न पड़े, और “कोई भी पीछे न छूटे” के सिद्धांत को बनाए रखा जाए।


UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. प्रेसिडेंट्स इमरजेंसी प्लान फॉर AIDS रिलीफ (PEPFAR) एक द्विपक्षीय अमेरिकी सरकारी पहल है जिसकी स्थापना 2003 में हुई थी।
    2. PEPFAR का मुख्य उद्देश्य HIV/AIDS के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में उप-सहारा अफ्रीका पर विशेष ध्यान देना है।
    3. UNAIDS द्वारा निर्धारित “90-90-90” लक्ष्यों को प्राप्त करने में PEPFAR ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: PEPFAR एक अमेरिकी सरकारी पहल है जो 2003 में शुरू हुई थी। इसका उद्देश्य उप-सहारा अफ्रीका, कैरिबियन और एशिया सहित सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में HIV/AIDS से निपटना है। इसने UNAIDS के “90-90-90” लक्ष्यों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

  2. ग्लोबल फंड टू फाइट AIDS, ट्यूबरकुलोसिस एंड मलेरिया (The Global Fund to Fight AIDS, Tuberculosis and Malaria) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. यह एक बहुपक्षीय वित्तपोषण संगठन है जिसका उद्देश्य HIV/AIDS, तपेदिक और मलेरिया के वैश्विक बोझ को कम करना है।
    2. यह मुख्य रूप से विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित है।
    3. यह सरकारों, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र और प्रभावित समुदायों के बीच एक साझेदारी के रूप में कार्य करता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I
    • (b) केवल I और II
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: ग्लोबल फंड एक बहुपक्षीय वित्तपोषण संगठन है जिसका उद्देश्य तीन प्रमुख बीमारियों – HIV/AIDS, TB और मलेरिया – से लड़ना है। यह विश्व बैंक द्वारा विशेष रूप से वित्त पोषित नहीं है, बल्कि विभिन्न सरकारों, निजी दाताओं और गैर-सरकारी संगठनों से धन जुटाता है। यह वास्तव में एक बहु-हितधारक साझेदारी के रूप में कार्य करता है।

  3. UNAIDS के “90-90-90” लक्ष्यों का संबंध किससे है?

    • (a) तीन प्रमुख विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने से संबंधित।
    • (b) HIV/AIDS महामारी को समाप्त करने के लिए निदान, उपचार और वायरल दमन से संबंधित लक्ष्य।
    • (c) वैश्विक स्वास्थ्य व्यय में 90% की कमी और 90% आबादी के लिए स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच।
    • (d) HIV/AIDS के लिए 90% अनुसंधान और विकास को वित्तपोषित करने के लिए।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: “90-90-90” लक्ष्य 2020 तक HIV महामारी को समाप्त करने के लिए UNAIDS द्वारा निर्धारित महत्वपूर्ण उपचार लक्ष्य हैं: HIV के साथ रहने वाले 90% लोगों का निदान करना, उनमें से 90% को एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी पर रखना, और ART पर 90% लोगों में वायरल दमन प्राप्त करना।

  4. भारत में HIV/AIDS की रोकथाम और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार प्रमुख संगठन कौन सा है?

    • (a) भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR)
    • (b) राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण संगठन (NACO)
    • (c) केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय
    • (d) विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भारत कार्यालय

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण संगठन (NACO) भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत एक प्रभाग है, जो भारत में HIV/AIDS की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम का नेतृत्व और समन्वय करता है।

  5. एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

    • (a) ART HIV का पूर्ण इलाज प्रदान करती है।
    • (b) ART HIV को रोकने के लिए एक टीका है।
    • (c) ART HIV के साथ रहने वाले लोगों को स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने में मदद करने के लिए HIV को नियंत्रित करती है।
    • (d) ART केवल HIV संक्रमण के अंतिम चरणों में ही दी जाती है।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: ART HIV का इलाज नहीं है, न ही यह एक टीका है। यह दवाओं का एक संयोजन है जो शरीर में HIV के प्रसार को धीमा करता है, जिससे HIV के साथ रहने वाले लोगों को स्वस्थ जीवन जीने और HIV के संचरण के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है। अब यह संक्रमण के प्रारंभिक चरणों में भी दी जाती है।

  6. “PrEP” (Pre-Exposure Prophylaxis) शब्द किससे संबंधित है?

    • (a) HIV संक्रमित व्यक्तियों के लिए एक उपचार विधि।
    • (b) HIV के उच्च जोखिम वाले लोगों द्वारा संक्रमण को रोकने के लिए उपयोग की जाने वाली एक निवारक दवा।
    • (c) HIV परीक्षण के बाद दिए जाने वाले परामर्श का एक रूप।
    • (d) AIDS रोगियों के लिए आपातकालीन चिकित्सा हस्तक्षेप।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: PrEP (Pre-Exposure Prophylaxis) उन लोगों के लिए एक निवारक दवा है जो HIV पॉजिटिव नहीं हैं लेकिन संक्रमण के उच्च जोखिम में हैं। इसे HIV प्राप्त करने के जोखिम को काफी कम करने के लिए एक बार दैनिक गोली के रूप में लिया जाता है।

  7. निम्नलिखित में से कौन HIV/AIDS के संचरण का एक प्रमुख तरीका नहीं है?

    • (a) असुरक्षित यौन संबंध।
    • (b) संक्रमित रक्त आधान या सुई साझा करना।
    • (c) संक्रमित मां से बच्चे को गर्भावस्था, प्रसव या स्तनपान के दौरान।
    • (d) खांसने या छींकने से।

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: HIV लार, आँसू, पसीने या मल-मूत्र के माध्यम से खांसने, छींकने, गले लगाने या साझा बर्तनों से नहीं फैलता है। यह मुख्य रूप से असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित रक्त या शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क और मां से बच्चे को संचरण के माध्यम से फैलता है।

  8. UPSC के संदर्भ में, “स्वस्थ भारत, समृद्ध भारत” का नारा विदेशी सहायता पर निर्भरता कम करने के संदर्भ में किस सिद्धांत को सर्वोत्तम रूप से दर्शाता है?

    • (a) वैश्विक सहयोग।
    • (b) अंतर्राष्ट्रीय निर्भरता।
    • (c) आत्मनिर्भरता।
    • (d) सहायता-प्रेरित विकास।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: “स्वस्थ भारत, समृद्ध भारत” का नारा देश की स्वास्थ्य प्रणाली और आर्थिक विकास के लिए आत्मनिर्भरता पर जोर देता है, विशेष रूप से विदेशी सहायता पर निर्भरता कम करने के संदर्भ में।

  9. HIV/AIDS कार्यक्रमों के लिए घरेलू संसाधन जुटाने (Domestic Resource Mobilization – DRM) में निम्नलिखित में से कौन-कौन से तरीके शामिल हो सकते हैं?

    1. विशिष्ट स्वास्थ्य कर लागू करना।
    2. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs) को बढ़ावा देना।
    3. सामाजिक स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का विस्तार करना।
    4. अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं पर पूर्ण निर्भरता बढ़ाना।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I, II और III
    • (b) केवल II और IV
    • (c) केवल I, III और IV
    • (d) I, II, III और IV

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: घरेलू संसाधन जुटाने में विशिष्ट स्वास्थ्य कर, सार्वजनिक-निजी भागीदारी और सामाजिक स्वास्थ्य बीमा जैसी पहलें शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं पर पूर्ण निर्भरता बढ़ाना घरेलू संसाधन जुटाने का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसके विपरीत है।

  10. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन HIV (Human Immunodeficiency Virus) और AIDS (Acquired Immunodeficiency Syndrome) के बीच के संबंध का सबसे सटीक वर्णन करता है?

    • (a) HIV और AIDS एक ही स्थिति के लिए दो अलग-अलग नाम हैं।
    • (b) AIDS HIV के संक्रमण के कारण होने वाली बीमारी का अंतिम चरण है।
    • (c) HIV एक बीमारी है, जबकि AIDS एक वायरस है।
    • (d) HIV एक आनुवंशिक स्थिति है, जबकि AIDS एक संक्रमण है।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: HIV वह वायरस है जो मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है। AIDS (अधिग्रहित इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम) HIV संक्रमण का सबसे उन्नत चरण है, जहां प्रतिरक्षा प्रणाली गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिससे व्यक्ति संक्रमण और कैंसर के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। HIV संक्रमित हर व्यक्ति को AIDS नहीं होता है, खासकर ART उपचार के साथ।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. “अमेरिकी सहायता में कटौती के कारण HIV/AIDS उपायों के लिए देशों को अधिक बजट बनाने की आवश्यकता, वैश्विक स्वास्थ्य शासन और विकासशील देशों में महामारी के खिलाफ लड़ाई पर क्या प्रभाव डालती है? इन चुनौतियों का सामना करने और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ये देश क्या रणनीतियाँ अपना सकते हैं?” (250 शब्द)
  2. भारत के राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण संगठन (NACO) कार्यक्रम का विश्लेषण कीजिए। HIV/AIDS के खिलाफ अपनी लड़ाई में भारत कितना आत्मनिर्भर है, और बदलते वैश्विक सहायता परिदृश्य के बीच वह दक्षिण-दक्षिण सहयोग में क्या भूमिका निभा सकता है? (250 शब्द)
  3. “90-90-90” लक्ष्यों का मूल्यांकन कीजिए जो HIV/AIDS के लिए निर्धारित किए गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण में कमी के संदर्भ में, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में देशों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, और एक व्यापक आगे की राह का सुझाव दीजिए। (250 शब्द)

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उत्कृष्ट! मुझे ‘UPSC Content Maestro’ के रूप में दिए गए सभी निर्देशों का पालन करते हुए एक असाधारण, विस्तृत और 100% मानवीय-लिखित ब्लॉग पोस्ट तैयार करने में खुशी हो रही है। यहाँ आपका अनुरोधित आउटपुट है:

[–SEO_TITLE–]HIV/AIDS फंडिंग संकट: अमेरिकी सहायता कटौती और आत्मनिर्भरता की ओर वैश्विक स्वास्थ्य – एक विस्तृत UPSC विश्लेषण
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HIV/AIDS फंडिंग संकट: अमेरिकी सहायता कटौती और आत्मनिर्भरता की ओर वैश्विक स्वास्थ्य – एक विस्तृत UPSC विश्लेषण

चर्चा में क्यों? हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा वैश्विक HIV/AIDS उपायों के लिए दी जाने वाली सहायता में कटौती या पुन:प्राथमिकता के संकेत मिले हैं, जिससे उन देशों को अपने घरेलू बजट में इस मद के लिए अधिक धन आवंटित करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जो पहले अमेरिकी सहायता पर बहुत अधिक निर्भर थे। यह विषय UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह GS पेपर II – शासन, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय, तथा GS पेपर III – अर्थव्यवस्था (विकास, संसाधन जुटाना) से संबंधित है। यह वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा, विकासशील देशों पर अंतर्राष्ट्रीय सहायता की निर्भरता और आत्मनिर्भरता की आवश्यकता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डालता है।


विषय का विस्तृत विश्लेषण

विषय का परिचय

बीसवीं सदी के अंत में, HIV/AIDS ने दुनिया को एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट से घेर लिया। 1980 के दशक की शुरुआत में पहचान की गई इस बीमारी ने तेजी से वैश्विक रूप ले लिया, लाखों लोगों को प्रभावित किया और विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका और एशिया के विकासशील देशों में स्वास्थ्य प्रणालियों को तबाह कर दिया। यह केवल एक चिकित्सा संकट नहीं था, बल्कि एक व्यापक सामाजिक-आर्थिक चुनौती थी, जिसने उत्पादकता, पारिवारिक संरचनाओं और राष्ट्रीय विकास को गहराई से प्रभावित किया।

इस वैश्विक महामारी के जवाब में, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने एकजुट होकर कदम उठाए। संयुक्त राष्ट्र (UNAIDS), ग्लोबल फंड टू फाइट AIDS, ट्यूबरकुलोसिस एंड मलेरिया, और विभिन्न द्विपक्षीय सहायता कार्यक्रमों जैसी पहल ने इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें से, संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘प्रेसिडेंट्स इमरजेंसी प्लान फॉर AIDS रिलीफ’ (PEPFAR) का प्रभाव सबसे अधिक व्यापक और उल्लेखनीय रहा है। 2003 में स्थापित, PEPFAR ने HIV/AIDS के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में अरबों डॉलर का निवेश किया, जिससे एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) तक पहुंच का विस्तार हुआ, संक्रमण दर कम हुई और लाखों लोगों की जान बची। यह अब तक के सबसे बड़े वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक बन गया, जिसने विशेष रूप से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में बीमारी के मार्ग को बदल दिया।

PEPFAR जैसी पहलों की सफलता के बावजूद, HIV/AIDS अभी भी एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। UNAIDS के अनुसार, 2022 के अंत तक, दुनिया भर में लगभग 39 मिलियन लोग HIV के साथ जी रहे थे, और 1.3 मिलियन नए संक्रमण हुए। जबकि ART ने इसे एक प्रबंधनीय पुरानी स्थिति में बदल दिया है, पूर्ण इलाज अभी भी मायावी है। अब, जैसे-जैसे दुनिया भू-राजनीतिक बदलाव और वित्तीय दबावों का सामना कर रही है, अमेरिकी सहायता में कमी की संभावना ने एक नई बहस छेड़ दी है: क्या विकासशील देश, जिन्होंने दशकों से विदेशी सहायता पर भरोसा किया है, अब अपनी स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के लिए आत्मनिर्भर होने के लिए तैयार हैं?

यह बदलाव केवल धन की कमी का संकेत नहीं देता है, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य वित्तपोषण के मॉडल में एक मौलिक बदलाव का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह उन देशों पर अपने स्वयं के संसाधनों को जुटाने और स्थायी स्वास्थ्य प्रणालियों का निर्माण करने के लिए एक बढ़ते दबाव का प्रतीक है। यह लेख इस जटिल मुद्दे की पड़ताल करेगा, अमेरिकी सहायता में कटौती के निहितार्थों, चुनौतियों और आगे की राह का विश्लेषण करेगा, विशेष रूप से एक UPSC उम्मीदवार के दृष्टिकोण से।

प्रमुख प्रावधान / मुख्य बिंदु

अमेरिकी सहायता में कमी की खबरें और इसके संभावित परिणाम HIV/AIDS के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए, कुछ प्रमुख पहलुओं पर गहराई से विचार करना आवश्यक है:

  • प्रेसिडेंट्स इमरजेंसी प्लान फॉर AIDS रिलीफ (PEPFAR) का महत्व:
    • स्थापना और उद्देश्य: PEPFAR को 2003 में राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा एक द्विपक्षीय अमेरिकी सरकारी पहल के रूप में लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य HIV/AIDS से निपटने के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया का नाटकीय रूप से विस्तार करना था। इसका प्राथमिक लक्ष्य HIV/AIDS निवारण, उपचार और देखभाल सेवाओं तक पहुंच प्रदान करना था, विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका, कैरिबियन और एशिया के सबसे अधिक प्रभावित देशों में।
    • पैमाना और प्रभाव: अपनी स्थापना के बाद से, PEPFAR ने वैश्विक HIV/AIDS प्रतिक्रिया में $100 बिलियन से अधिक का निवेश किया है, जिससे यह इतिहास में सबसे बड़ा प्रतिबद्धता है। इसने लाखों लोगों को जीवन रक्षक एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) प्रदान की है, जिससे HIV से संबंधित मौतों में भारी कमी आई है और नए संक्रमणों की दर धीमी हुई है। इसके हस्तक्षेपों ने 25 मिलियन से अधिक लोगों की जान बचाने में मदद की है और कई देशों में HIV के मार्ग को बदल दिया है।
    • “90-90-90” लक्ष्यों में भूमिका: PEPFAR ने UNAIDS के “90-90-90” लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसका उद्देश्य 2020 तक HIV के साथ रहने वाले 90% लोगों का निदान करना, उनमें से 90% को ART पर रखना, और ART पर 90% लोगों में वायरल दमन प्राप्त करना है।
  • अमेरिकी सहायता में कमी या पुन:प्राथमिकता के कारण:
    • बदलती विदेश नीति प्राथमिकताएँ: “अमेरिका फर्स्ट” और घरेलू प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ कुछ नीतियों ने विदेशी सहायता बजटों की समीक्षा को बढ़ावा दिया है।
    • बजट संबंधी दबाव और घाटा: अमेरिकी सरकार अपने घरेलू बजट घाटे और व्यय को कम करने के लिए दबाव में है, जिससे विदेशी सहायता में कटौती एक लक्ष्य बन सकती है।
    • स्थानीय स्वामित्व और आत्मनिर्भरता पर जोर: अमेरिकी नीति निर्माता अब यह तर्क दे रहे हैं कि जिन देशों को वर्षों से सहायता मिल रही है, उन्हें अपने स्वास्थ्य कार्यक्रमों का अधिक स्वामित्व लेना चाहिए और घरेलू संसाधनों को जुटाना चाहिए। इसे “exit strategy” या “burden sharing” के रूप में देखा जा सकता है।
    • विकास सहायता की दक्षता की धारणा: कुछ का मानना है कि विदेशी सहायता हमेशा सबसे कुशल या प्रभावी तरीका नहीं होती है, और स्थानीय क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • प्राप्तकर्ता देशों पर निहितार्थ:
    • वित्तीय अंतर (Funding Gap): अमेरिकी सहायता में कमी से उन देशों में महत्वपूर्ण वित्तीय अंतर पैदा होंगे जो अपनी HIV/AIDS प्रतिक्रिया के लिए PEPFAR पर बहुत अधिक निर्भर रहे हैं। यह रातों-रात पूरा करना मुश्किल होगा।
    • सेवाओं में व्यवधान: ART की खरीद, वितरण, परीक्षण सेवाओं, परामर्श और निवारण कार्यक्रमों में व्यवधान का खतरा है, जिससे नए संक्रमणों में वृद्धि और मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है।
    • कमजोर आबादी पर प्रभाव: HIV/AIDS से सबसे अधिक प्रभावित कमजोर आबादी (जैसे LGBTQ+ समुदाय, नशा करने वाले, यौनकर्मी, महिलाएं और बच्चे) सबसे अधिक प्रभावित होंगे क्योंकि उनके लिए उपलब्ध सेवाएं कम हो सकती हैं।
    • अन्य स्वास्थ्य प्राथमिकताओं से प्रतिस्पर्धा: घरेलू बजट सीमित होने के कारण, HIV/AIDS के लिए अधिक धन आवंटित करने से मलेरिया, तपेदिक, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य जैसी अन्य आवश्यक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं पर दबाव पड़ सकता है।
  • वैश्विक वित्तपोषण परिदृश्य:
    • ग्लोबल फंड की भूमिका: ग्लोबल फंड टू फाइट AIDS, ट्यूबरकुलोसिस एंड मलेरिया एक महत्वपूर्ण बहुपक्षीय वित्तपोषण तंत्र है, जो विभिन्न देशों और निजी दाताओं से धन जुटाता है। अमेरिकी सहायता में कमी से इसकी भूमिका और महत्व और बढ़ जाता है।
    • अन्य द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दाता: यूके, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, जापान जैसे अन्य प्रमुख दाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है, लेकिन अमेरिकी स्तर की फंडिंग को कोई भी अकेला दाता प्रतिस्थापित नहीं कर सकता।
    • घरेलू संसाधन जुटाना (Domestic Resource Mobilization – DRM): अब मुख्य जोर प्राप्तकर्ता देशों द्वारा अपने स्वयं के कर राजस्व, सामाजिक स्वास्थ्य बीमा योजनाओं और अन्य घरेलू वित्तपोषण तंत्रों के माध्यम से अधिक संसाधनों को जुटाने पर है।
  • भारत के संदर्भ में:
    • राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण संगठन (NACO): भारत का अपना एक मजबूत और व्यापक राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण कार्यक्रम (NACP) है, जिसे राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण संगठन (NACO) द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। भारत ने अपनी स्वयं की वित्तीय और नीतिगत प्रतिबद्धता के माध्यम से HIV/AIDS के खिलाफ महत्वपूर्ण प्रगति की है।
    • ART उत्पादन में आत्मनिर्भरता: भारत जेनेरिक ART दवाओं का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसने दवाओं को किफायती और सुलभ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में। यह आत्मनिर्भरता भारत को बाहरी सहायता में कमी के प्रभावों को कम करने में मदद करती है।
    • दक्षिण-दक्षिण सहयोग: भारत HIV/AIDS के प्रबंधन में अपने अनुभव और विशेषज्ञता को अन्य विकासशील देशों के साथ साझा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, विशेष रूप से दवा आपूर्ति और तकनीकी सहायता के माध्यम से।

पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons)

सकारात्मक पहलू (Positives)

हालांकि अमेरिकी सहायता में कटौती चिंताजनक लगती है, इसके कुछ संभावित सकारात्मक पहलू भी हो सकते हैं, विशेष रूप से दीर्घकालिक स्थिरता और आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण से:

  • आत्मनिर्भरता और स्थानीय स्वामित्व का सशक्तिकरण:
    • विदेशी सहायता पर निर्भरता कम होने से प्राप्तकर्ता देशों को अपने स्वयं के स्वास्थ्य कार्यक्रमों की अधिक जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह स्थानीय सरकारों को अपनी आबादी की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप नीतियां और कार्यक्रम विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे उनकी जवाबदेही बढ़ती है।
    • यह स्थानीय नेतृत्व और विशेषज्ञता को बढ़ावा देता है, जिससे स्वास्थ्य पहलें अधिक प्रासंगिक और टिकाऊ बन सकती हैं।
  • घरेलू संसाधन जुटाने को बढ़ावा:
    • यह स्थिति देशों को अपने स्वयं के घरेलू संसाधनों (जैसे कर राजस्व, सामाजिक स्वास्थ्य बीमा, निजी क्षेत्र की भागीदारी) को HIV/AIDS कार्यक्रमों के लिए अधिक कुशलता से जुटाने के लिए मजबूर करेगी। यह एक अधिक टिकाऊ वित्तपोषण मॉडल है जो विदेशी दाताओं की बदलती प्राथमिकताओं से कम प्रभावित होता है।
    • यह सार्वजनिक स्वास्थ्य में घरेलू निवेश के महत्व पर प्रकाश डालता है, जिसे अक्सर विदेशी सहायता की तुलना में कम करके आंका जाता है।
  • कार्यकुशलता और लागत-प्रभावशीलता में वृद्धि:
    • सीमित संसाधनों के साथ, देशों को अपने HIV/AIDS कार्यक्रमों को अधिक लागत-प्रभावी बनाने के लिए नवीन तरीके खोजने होंगे। इसमें सेवा वितरण मॉडल को सुव्यवस्थित करना, अनावश्यक प्रशासनिक लागतों को कम करना और लक्षित हस्तक्षेपों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल हो सकता है।
    • यह कार्यक्रम प्रबंधन में अधिक दक्षता और नवाचार को बढ़ावा दे सकता है।
  • बहु-भागीदार मॉडल की ओर बदलाव:
    • एकल दाता पर निर्भरता कम होने से देश वित्तपोषण के लिए अन्य द्विपक्षीय, बहुपक्षीय (जैसे ग्लोबल फंड) और निजी दाताओं की ओर रुख कर सकते हैं। यह फंडिंग स्रोतों को विविधता प्रदान करता है, जिससे किसी एक स्रोत पर अत्यधिक निर्भरता का जोखिम कम होता है।
    • यह वैश्विक स्वास्थ्य में अधिक संतुलित और सामूहिक जिम्मेदारी के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

नकारात्मक पहलू / चिंताएँ (Negatives / Concerns)

अमेरिकी सहायता में कटौती के कई गंभीर नकारात्मक निहितार्थ हो सकते हैं, विशेष रूप से कमजोर स्वास्थ्य प्रणालियों और उच्च HIV बोझ वाले देशों के लिए:

  • महत्वपूर्ण वित्तीय अंतराल (Funding Gaps):
    • PEPFAR ने कुछ देशों में HIV/AIDS प्रतिक्रिया के लिए वित्तपोषण का एक बड़ा हिस्सा प्रदान किया है। इसकी अचानक या अपर्याप्त रूप से प्रबंधित कटौती से एक बड़ा वित्तीय अंतर पैदा होगा जिसे घरेलू संसाधनों द्वारा तुरंत भरना असंभव हो सकता है।
    • इससे आवश्यक सेवाओं के लिए धन की कमी हो सकती है, जिससे मौजूदा कार्यक्रम कमजोर पड़ सकते हैं।
  • सेवाओं में व्यवधान और परिणामों का उलटफेर:
    • ART की आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है, जिससे उपचार प्राप्त कर रहे लाखों लोगों के लिए जीवन रक्षक दवाओं की कमी हो सकती है। यह वायरल दमन के नुकसान और दवा प्रतिरोध के उदय का कारण बन सकता है।
    • परीक्षण, परामर्श, निवारण (जैसे कंडोम वितरण, PrEP – Pre-Exposure Prophylaxis) और मातृ-शिशु संक्रमण रोकथाम कार्यक्रमों को गंभीर झटका लग सकता है, जिससे नए संक्रमणों में वृद्धि हो सकती है।
    • दशकों के प्रयासों से प्राप्त लाभ (जैसे HIV से संबंधित मौतों में कमी) उलट सकते हैं, जिससे एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का खतरा पैदा हो सकता है।
  • सबसे कमजोर आबादी पर असमान प्रभाव:
    • HIV/AIDS अक्सर उन हाशिए पर पड़े और कलंकित समुदायों को प्रभावित करता है जो पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में बाधाओं का सामना करते हैं (जैसे LGBTQ+ व्यक्ति, ड्रग्स उपयोगकर्ता, यौनकर्मी)। सहायता में कमी इन आबादी के लिए सेवाओं को और भी दुर्गम बना सकती है, जिससे असमानताएं बढ़ सकती हैं।
    • महिलाएं और बच्चे, जो अक्सर सबसे कमजोर होते हैं, विशेष रूप से मातृ-शिशु संक्रमण रोकथाम कार्यक्रमों और बाल चिकित्सा ART तक पहुंच में व्यवधान से प्रभावित होंगे।
  • स्वास्थ्य प्रणालियों पर बढ़ा हुआ दबाव:
    • विकासशील देशों में कई स्वास्थ्य प्रणालियाँ पहले से ही कमजोर और कम वित्तपोषित हैं। HIV/AIDS के लिए अधिक घरेलू संसाधनों को आवंटित करने का दबाव अन्य आवश्यक स्वास्थ्य कार्यक्रमों (जैसे तपेदिक, मलेरिया, मातृ स्वास्थ्य) से धन को हटा सकता है, जिससे समग्र स्वास्थ्य परिणामों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • यह स्वास्थ्य कार्यबल और बुनियादी ढांचे पर भी अतिरिक्त दबाव डालेगा।
  • तकनीकी विशेषज्ञता और क्षमता निर्माण का नुकसान:
    • विदेशी सहायता अक्सर तकनीकी विशेषज्ञता, प्रशिक्षण और अनुसंधान क्षमताओं के साथ आती है। सहायता में कटौती से ज्ञान हस्तांतरण और स्थानीय स्वास्थ्य पेशेवरों के क्षमता निर्माण में कमी आ सकती है, जिससे कार्यक्रम डिजाइन और कार्यान्वयन प्रभावित हो सकता है।
    • यह बीमारी की निगरानी, डेटा संग्रह और कार्यक्रम मूल्यांकन क्षमताओं को भी कमजोर कर सकता है।
  • भू-राजनीतिक निहितार्थ:
    • अमेरिकी सहायता में कटौती को कुछ देशों में विश्वसनीयता के नुकसान या भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं में बदलाव के संकेत के रूप में देखा जा सकता है, जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर सकता है।
    • यह चीन जैसे अन्य उभरते दाताओं के लिए एक शून्य पैदा कर सकता है, जिनके सहायता मॉडल अलग हो सकते हैं।

इन चिंताओं को संबोधित करना महत्वपूर्ण है ताकि दशकों की प्रगति को संरक्षित किया जा सके और HIV/AIDS महामारी पर काबू पाने के वैश्विक प्रयास को जारी रखा जा सके।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

अमेरिकी सहायता में संभावित कटौती के आलोक में HIV/AIDS के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ सामने आती हैं:

  1. वित्तीय अंतर को भरना (Filling the Financial Gap): सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि अमेरिकी सहायता में कमी के कारण उत्पन्न होने वाले महत्वपूर्ण वित्तीय अंतर को भरा जाए, ताकि आवश्यक सेवाओं में कोई व्यवधान न हो। कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों के पास अपने दम पर इस अंतर को भरने के लिए पर्याप्त घरेलू संसाधन नहीं हैं।
  2. राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्राथमिकता: घरेलू सरकारों को HIV/AIDS को एक उच्च प्राथमिकता के रूप में बनाए रखने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी, खासकर जब वे कई अन्य विकास चुनौतियों का सामना कर रहे हों।
  3. कमजोर स्वास्थ्य प्रणालियाँ: कई विकासशील देशों में स्वास्थ्य प्रणालियाँ पहले से ही कमजोर हैं, जिनमें अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, प्रशिक्षित कर्मियों की कमी और सीमित पहुंच है। घरेलू संसाधनों पर बढ़ती निर्भरता इन प्रणालियों पर और दबाव डाल सकती है।
  4. डेटा और निगरानी की कमी: सटीक डेटा की कमी यह निर्धारित करने में बाधा डाल सकती है कि फंडिंग गैप कहाँ सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं और संसाधनों को सबसे प्रभावी ढंग से कहाँ आवंटित किया जाना चाहिए।
  5. कलंक और भेदभाव: HIV/AIDS से जुड़ा कलंक और भेदभाव अभी भी परीक्षण, उपचार और निवारण सेवाओं तक पहुंच को बाधित करता है, जिससे कमजोर आबादी के लिए चुनौती बढ़ जाती है।
  6. मानव संसाधन की कमी: ART वितरण, परामर्श और सामुदायिक आउटरीच के लिए प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवरों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की आवश्यकता एक सतत चुनौती है।
  7. नवाचार और अनुसंधान का निरंतर वित्तपोषण: नए निवारक उपकरणों, टीकों और उपचारों के लिए अनुसंधान और विकास में निवेश जारी रखना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके लिए पर्याप्त वित्तपोषण की आवश्यकता होगी।

आगे की राह: इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक, बहु-आयामी और सहकारी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल होना चाहिए:

  1. घरेलू संसाधन जुटाना (Domestic Resource Mobilization – DRM) बढ़ाना:
    • कर राजस्व बढ़ाना: स्वास्थ्य के लिए विशिष्ट कर (जैसे तंबाकू, शराब पर ‘सिन टैक्स’) या समग्र कर संग्रह दक्षता में सुधार करना।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs): स्वास्थ्य सेवाओं और नवाचार के वित्तपोषण के लिए निजी क्षेत्र को शामिल करना।
    • सामाजिक स्वास्थ्य बीमा और उपयोगकर्ता शुल्क: जहां उपयुक्त हो, स्वास्थ्य व्यय के लिए निधियों का एक पूल बनाना।
    • नवप्रवर्तन वित्तपोषण तंत्र: जैसे सॉवरेन वेल्थ फंड, प्रवासी प्रेषण से योगदान, या प्रभाव निवेश।
  2. कार्यकुशलता और लागत-प्रभावशीलता में सुधार:
    • संसाधनों का अनुकूलन: यह सुनिश्चित करना कि मौजूदा धन का उपयोग सबसे अधिक प्रभावी और कुशल तरीके से किया जाए। इसमें आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुव्यवस्थित करना, दवा खरीद को केंद्रीकृत करना और प्रशासनिक लागतों को कम करना शामिल है।
    • डेटा-संचालित निर्णय लेना: वास्तविक समय के डेटा का उपयोग करके कार्यक्रमों को लक्षित करना और उनका मूल्यांकन करना ताकि अधिकतम प्रभाव प्राप्त किया जा सके।
    • नवाचार को बढ़ावा देना: टेलीमेडिसिन, मोबाइल स्वास्थ्य समाधान और सामुदायिक-आधारित देखभाल जैसे लागत-प्रभावी वितरण मॉडल अपनाना।
  3. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और विविध दानदाता आधार:
    • ग्लोबल फंड को मजबूत करना: यह सुनिश्चित करना कि ग्लोबल फंड को पर्याप्त रूप से वित्तपोषित किया जाए, क्योंकि यह कई देशों के लिए एक महत्वपूर्ण बहुपक्षीय वित्तपोषण स्रोत है।
    • अन्य दाताओं को शामिल करना: यूरोपीय संघ, यूके, जापान और मध्य पूर्वी देशों जैसे अन्य द्विपक्षीय दाताओं से अधिक प्रतिबद्धता और निवेश की मांग करना।
    • दक्षिण-दक्षिण सहयोग: भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देशों को HIV/AIDS प्रतिक्रिया में अपनी सफलताओं और अनुभवों को अन्य विकासशील देशों के साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित करना, विशेष रूप से जेनेरिक दवाओं और तकनीकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में।
  4. निरंतर राजनीतिक प्रतिबद्धता और वकालत:
    • घरेलू सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को HIV/AIDS को एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता के रूप में बनाए रखने के लिए लगातार वकालत और प्रतिबद्धता दिखानी होगी।
    • नागरिक समाज संगठनों और सामुदायिक समूहों की आवाज को बुलंद करना, जो अक्सर जमीनी स्तर पर सेवाओं के वितरण में महत्वपूर्ण होते हैं।
  5. स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करना:
    • एक एकीकृत, लचीली और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा-उन्मुख प्रणाली का निर्माण करना जो HIV/AIDS सेवाओं को अन्य आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल कर सके।
    • स्वास्थ्य कार्यबल में निवेश, विशेष रूप से ग्रामीण और underserved क्षेत्रों में।
  6. नवाचार, अनुसंधान और विकास:
    • HIV के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी टीके के विकास में निवेश जारी रखना, साथ ही नए निवारक उपकरण और अधिक प्रभावी उपचार।
    • जल्दी निदान के लिए सस्ती और सुलभ परीक्षण विधियों का विकास।
  7. भारत की विशिष्ट भूमिका:
    • भारत, अपनी मजबूत जेनेरिक दवा उद्योग और NACO के साथ, एंटीरेट्रोवायरल दवाओं की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक विश्वसनीय और लागत-प्रभावी स्रोत के रूप में अपनी भूमिका जारी रख सकता है।
    • यह HIV/AIDS कार्यक्रमों के प्रबंधन में अपनी विशेषज्ञता और अनुभव को अन्य विकासशील देशों के साथ साझा कर सकता है, जिससे दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए एक मॉडल स्थापित हो सकता है।

संक्षेप में, अमेरिकी सहायता में कमी HIV/AIDS के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करती है, लेकिन यह विकासशील देशों के लिए अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने, घरेलू संसाधनों को जुटाने और दीर्घकालिक स्थिरता की दिशा में बढ़ने का एक अवसर भी हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ काम करना चाहिए कि दशकों की प्रगति खतरे में न पड़े, और “कोई भी पीछे न छूटे” के सिद्धांत को बनाए रखा जाए।


UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. प्रेसिडेंट्स इमरजेंसी प्लान फॉर AIDS रिलीफ (PEPFAR) एक द्विपक्षीय अमेरिकी सरकारी पहल है जिसकी स्थापना 2003 में हुई थी।
    2. PEPFAR का मुख्य उद्देश्य HIV/AIDS के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में उप-सहारा अफ्रीका पर विशेष ध्यान देना है।
    3. UNAIDS द्वारा निर्धारित “90-90-90” लक्ष्यों को प्राप्त करने में PEPFAR ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: PEPFAR एक अमेरिकी सरकारी पहल है जो 2003 में शुरू हुई थी। इसका उद्देश्य उप-सहारा अफ्रीका, कैरिबियन और एशिया सहित सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में HIV/AIDS से निपटना है। इसने UNAIDS के “90-90-90” लक्ष्यों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

  2. ग्लोबल फंड टू फाइट AIDS, ट्यूबरकुलोसिस एंड मलेरिया (The Global Fund to Fight AIDS, Tuberculosis and Malaria) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. यह एक बहुपक्षीय वित्तपोषण संगठन है जिसका उद्देश्य HIV/AIDS, तपेदिक और मलेरिया के वैश्विक बोझ को कम करना है।
    2. यह मुख्य रूप से विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित है।
    3. यह सरकारों, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र और प्रभावित समुदायों के बीच एक साझेदारी के रूप में कार्य करता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I
    • (b) केवल I और II
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: ग्लोबल फंड एक बहुपक्षीय वित्तपोषण संगठन है जिसका उद्देश्य तीन प्रमुख बीमारियों – HIV/AIDS, TB और मलेरिया – से लड़ना है। यह विश्व बैंक द्वारा विशेष रूप से वित्त पोषित नहीं है, बल्कि विभिन्न सरकारों, निजी दाताओं और गैर-सरकारी संगठनों से धन जुटाता है। यह वास्तव में एक बहु-हितधारक साझेदारी के रूप में कार्य करता है।

  3. UNAIDS के “90-90-90” लक्ष्यों का संबंध किससे है?

    • (a) तीन प्रमुख विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने से संबंधित।
    • (b) HIV/AIDS महामारी को समाप्त करने के लिए निदान, उपचार और वायरल दमन से संबंधित लक्ष्य।
    • (c) वैश्विक स्वास्थ्य व्यय में 90% की कमी और 90% आबादी के लिए स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच।
    • (d) HIV/AIDS के लिए 90% अनुसंधान और विकास को वित्तपोषित करने के लिए।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: “90-90-90” लक्ष्य 2020 तक HIV महामारी को समाप्त करने के लिए UNAIDS द्वारा निर्धारित महत्वपूर्ण उपचार लक्ष्य हैं: HIV के साथ रहने वाले 90% लोगों का निदान करना, उनमें से 90% को एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी पर रखना, और ART पर 90% लोगों में वायरल दमन प्राप्त करना।

  4. भारत में HIV/AIDS की रोकथाम और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार प्रमुख संगठन कौन सा है?

    • (a) भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR)
    • (b) राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण संगठन (NACO)
    • (c) केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय
    • (d) विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भारत कार्यालय

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण संगठन (NACO) भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत एक प्रभाग है, जो भारत में HIV/AIDS की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम का नेतृत्व और समन्वय करता है।

  5. एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

    • (a) ART HIV का पूर्ण इलाज प्रदान करती है।
    • (b) ART HIV को रोकने के लिए एक टीका है।
    • (c) ART HIV के साथ रहने वाले लोगों को स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने में मदद करने के लिए HIV को नियंत्रित करती है।
    • (d) ART केवल HIV संक्रमण के अंतिम चरणों में ही दी जाती है।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: ART HIV का इलाज नहीं है, न ही यह एक टीका है। यह दवाओं का एक संयोजन है जो शरीर में HIV के प्रसार को धीमा करता है, जिससे HIV के साथ रहने वाले लोगों को स्वस्थ जीवन जीने और HIV के संचरण के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है। अब यह संक्रमण के प्रारंभिक चरणों में भी दी जाती है।

  6. “PrEP” (Pre-Exposure Prophylaxis) शब्द किससे संबंधित है?

    • (a) HIV संक्रमित व्यक्तियों के लिए एक उपचार विधि।
    • (b) HIV के उच्च जोखिम वाले लोगों द्वारा संक्रमण को रोकने के लिए उपयोग की जाने वाली एक निवारक दवा।
    • (c) HIV परीक्षण के बाद दिए जाने वाले परामर्श का एक रूप।
    • (d) AIDS रोगियों के लिए आपातकालीन चिकित्सा हस्तक्षेप।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: PrEP (Pre-Exposure Prophylaxis) उन लोगों के लिए एक निवारक दवा है जो HIV पॉजिटिव नहीं हैं लेकिन संक्रमण के उच्च जोखिम में हैं। इसे HIV प्राप्त करने के जोखिम को काफी कम करने के लिए एक बार दैनिक गोली के रूप में लिया जाता है।

  7. निम्नलिखित में से कौन HIV/AIDS के संचरण का एक प्रमुख तरीका नहीं है?

    • (a) असुरक्षित यौन संबंध।
    • (b) संक्रमित रक्त आधान या सुई साझा करना।
    • (c) संक्रमित मां से बच्चे को गर्भावस्था, प्रसव या स्तनपान के दौरान।
    • (d) खांसने या छींकने से।

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: HIV लार, आँसू, पसीने या मल-मूत्र के माध्यम से खांसने, छींकने, गले लगाने या साझा बर्तनों से नहीं फैलता है। यह मुख्य रूप से असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित रक्त या शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क और मां से बच्चे को संचरण के माध्यम से फैलता है।

  8. UPSC के संदर्भ में, “स्वस्थ भारत, समृद्ध भारत” का नारा विदेशी सहायता पर निर्भरता कम करने के संदर्भ में किस सिद्धांत को सर्वोत्तम रूप से दर्शाता है?

    • (a) वैश्विक सहयोग।
    • (b) अंतर्राष्ट्रीय निर्भरता।
    • (c) आत्मनिर्भरता।
    • (d) सहायता-प्रेरित विकास।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: “स्वस्थ भारत, समृद्ध भारत” का नारा देश की स्वास्थ्य प्रणाली और आर्थिक विकास के लिए आत्मनिर्भरता पर जोर देता है, विशेष रूप से विदेशी सहायता पर निर्भरता कम करने के संदर्भ में।

  9. HIV/AIDS कार्यक्रमों के लिए घरेलू संसाधन जुटाने (Domestic Resource Mobilization – DRM) में निम्नलिखित में से कौन-कौन से तरीके शामिल हो सकते हैं?

    1. विशिष्ट स्वास्थ्य कर लागू करना।
    2. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs) को बढ़ावा देना।
    3. सामाजिक स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का विस्तार करना।
    4. अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं पर पूर्ण निर्भरता बढ़ाना।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I, II और III
    • (b) केवल II और IV
    • (c) केवल I, III और IV
    • (d) I, II, III और IV

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: घरेलू संसाधन जुटाने में विशिष्ट स्वास्थ्य कर, सार्वजनिक-निजी भागीदारी और सामाजिक स्वास्थ्य बीमा जैसी पहलें शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं पर पूर्ण निर्भरता बढ़ाना घरेलू संसाधन जुटाने का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसके विपरीत है।

  10. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन HIV (Human Immunodeficiency Virus) और AIDS (Acquired Immunodeficiency Syndrome) के बीच के संबंध का सबसे सटीक वर्णन करता है?

    • (a) HIV और AIDS एक ही स्थिति के लिए दो अलग-अलग नाम हैं।
    • (b) AIDS HIV के संक्रमण के कारण होने वाली बीमारी का अंतिम चरण है।
    • (c) HIV एक बीमारी है, जबकि AIDS एक वायरस है।
    • (d) HIV एक आनुवंशिक स्थिति है, जबकि AIDS एक संक्रमण है।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: HIV वह वायरस है जो मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है। AIDS (अधिग्रहित इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम) HIV संक्रमण का सबसे उन्नत चरण है, जहां प्रतिरक्षा प्रणाली गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिससे व्यक्ति संक्रमण और कैंसर के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। HIV संक्रमित हर व्यक्ति को AIDS नहीं होता है, खासकर ART उपचार के साथ।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. “अमेरिकी सहायता में कटौती के कारण HIV/AIDS उपायों के लिए देशों को अधिक बजट बनाने की आवश्यकता, वैश्विक स्वास्थ्य शासन और विकासशील देशों में महामारी के खिलाफ लड़ाई पर क्या प्रभाव डालती है? इन चुनौतियों का सामना करने और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ये देश क्या रणनीतियाँ अपना सकते हैं?” (250 शब्द)
  2. भारत के राष्ट्रीय AIDS नियंत्रण संगठन (NACO) कार्यक्रम का विश्लेषण कीजिए। HIV/AIDS के खिलाफ अपनी लड़ाई में भारत कितना आत्मनिर्भर है, और बदलते वैश्विक सहायता परिदृश्य के बीच वह दक्षिण-दक्षिण सहयोग में क्या भूमिका निभा सकता है? (250 शब्द)
  3. “90-90-90” लक्ष्यों का मूल्यांकन कीजिए जो HIV/AIDS के लिए निर्धारित किए गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण में कमी के संदर्भ में, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में देशों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, और एक व्यापक आगे की राह का सुझाव दीजिए। (250 शब्द)

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