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‘शपथ लें या माफी मांगें’: राहुल गांधी को चुनाव आयोग की दो टूक – राष्ट्रव्यापी बहस का केंद्र

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

भारतीय राजनीति में एक अभूतपूर्व घटनाक्रम में, भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को एक सख्त निर्देश जारी किया है। यह निर्देश एक कथित आपत्तिजनक बयान के संबंध में है, जिसे आयोग ने “निराधार” और “समाज में विभाजनकारी” करार दिया है। आयोग ने राहुल गांधी से या तो सार्वजनिक रूप से अपने इस बयान के लिए माफी मांगने या फिर एक विशेष शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा है, जिसमें कहा गया हो कि वे भविष्य में इस तरह के बयान नहीं देंगे। यह मामला न केवल राहुल गांधी के लिए बल्कि भारतीय लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, राजनीतिक दलों के आचरण और चुनाव आयोग की शक्तियों के इर्द-गिर्द एक गहन राष्ट्रीय बहस को जन्म दे रहा है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटनाक्रम संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका, चुनाव प्रक्रिया की शुचिता और राजनीतिक संवाद के मानकों को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है।

ECI बनाम राहुल गांधी: पूरा घटनाक्रम

यह पूरा विवाद राहुल गांधी द्वारा कथित तौर पर दिए गए एक बयान से उपजा है, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार पर “चौकीदार चोर है” जैसे नारे का इस्तेमाल किया था, लेकिन इसे थोड़ा और विवादास्पद तरीके से प्रस्तुत किया था। चुनाव आयोग को कई शिकायतें मिलीं, जिनमें यह आरोप लगाया गया कि यह बयान मतदाताओं को गुमराह करने और सेना के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां करने के समान है।

चुनाव आयोग ने अपनी जाँच के बाद, राहुल गांधी के बयान को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123(4) (भ्रष्टाचार आचरण) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत आपत्तिजनक पाया। आयोग ने राहुल गांधी को एक नोटिस जारी कर उनसे स्पष्टीकरण मांगा।

राहुल गांधी की ओर से प्रतिक्रिया में, उनके प्रतिनिधियों ने तर्क दिया कि उनके बयानों का इरादा किसी भी नागरिक, विशेषकर भारतीय सशस्त्र बलों का अपमान करना नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि “चौकीदार चोर है” जैसे नारों का प्रयोग राजनीतिक विमर्श का एक स्थापित हिस्सा रहा है और इसका अर्थ शाब्दिक नहीं बल्कि लाक्षणिक है।

“चुनाव आयोग के पास आचार संहिता लागू करने और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की शक्ति है। हालाँकि, यह शक्ति कहाँ तक जाती है और क्या यह राजनीतिक भाषणों को नियंत्रित करने का एक उपकरण बन सकती है, यह एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न है।”

इसके बावजूद, चुनाव आयोग अपने रुख पर कायम रहा और राहुल गांधी से या तो अपने बयान पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगने या एक विशिष्ट प्रारूप में एक स्व-घोषणा पत्र (शपथ पत्र) प्रस्तुत करने के लिए कहा, जिसमें कहा गया हो कि वे भविष्य में ऐसे विवादास्पद या विभाजनकारी बयान नहीं देंगे। आयोग का यह कदम अभूतपूर्व माना जा रहा है, क्योंकि आमतौर पर आयोग ऐसे मामलों में केवल चेतावनी या निंदा जारी करता है, लेकिन सार्वजनिक माफी या शपथ पत्र की मांग अपेक्षाकृत दुर्लभ है।

ECI की शक्तियां और भूमिका: संवैधानिक परिप्रेक्ष्य

चुनाव आयोग (ECI) एक स्थायी संवैधानिक निकाय है, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 द्वारा स्थापित किया गया है। इसका मुख्य कार्य देश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और सुचारू चुनाव सुनिश्चित करना है। आयोग की शक्तियों में शामिल हैं:

  • चुनावों की अधिसूचना जारी करना।
  • मतदाताओं की सूची तैयार करना और उसका नवीनीकरण करना।
  • चुनावों की तारीखें तय करना।
  • आदर्श आचार संहिता (MCC) लागू करना और उसका उल्लंघन होने पर कार्रवाई करना।
  • चुनावों का संचालन और पर्यवेक्षण करना।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता देना और उनके चुनाव चिह्नों का आवंटन करना।
  • चुनावी कदाचार के मामलों में जाँच करना और कार्रवाई करना।

ECI की शक्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 है, जो चुनाव संबंधी मामलों के लिए विस्तृत कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। धारा 123(4) विशेष रूप से उन बयानों से संबंधित है जो किसी उम्मीदवार की उम्मीदवारी या किसी अन्य उम्मीदवार के बारे में हैं और जिन्हें सार्वजनिक हित में प्रकाशित या प्रसारित किया जाता है, और जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाकर वोट हासिल करने का प्रयास करते हैं।

“चौकीदार चोर है” जैसे नारे का विश्लेषण:

  • राजनीतिक अभिव्यक्ति: राजनीतिक रैलियों में, इस तरह के नारे अक्सर सत्तारूढ़ सरकार की नीतियों या प्रदर्शनों पर आलोचना के रूप में उपयोग किए जाते हैं। इनका अर्थ अक्सर शाब्दिक न होकर लाक्षणिक होता है।
  • ECI की चिंता: चुनाव आयोग के लिए, यह चिंता का विषय तब बन जाता है जब ऐसे नारे सैनिकों या राष्ट्र की अखंडता से जुड़े हों, या जब वे व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को गंभीर रूप से धूमिल करते हों और मतदाताओं को गुमराह करने का इरादा रखते हों। आयोग का यह तर्क हो सकता है कि “चौकीदार” शब्द का प्रयोग सैनिकों से जोड़कर किया गया, जो सशस्त्र बलों के प्रति अनादर हो सकता है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम आचार संहिता: यहाँ मुख्य द्वंद्व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) और एक निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए आचार संहिता (अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध) के बीच है।

राहुल गांधी के लिए चुनाव आयोग का निर्देश: पक्ष और विपक्ष

चुनाव आयोग द्वारा राहुल गांधी को “शपथ लें या माफी मांगें” का निर्देश राजनीतिक गलियारों में गरमागरम बहस का विषय बन गया है। इसके पक्ष और विपक्ष में कई तर्क दिए जा रहे हैं:

पक्ष में तर्क (Arguments in Favour):

  1. आचार संहिता का पालन: चुनाव आयोग का कर्तव्य है कि वह आदर्श आचार संहिता लागू करे। यदि किसी नेता का बयान आचार संहिता का उल्लंघन करता है, तो आयोग को कार्रवाई करनी चाहिए।
  2. संतुलित दृष्टिकोण: आयोग ने केवल चेतावनी देने के बजाय, माफी या भविष्य में इस तरह के आचरण से बचने की शपथ का विकल्प देकर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है। यह एक विशेष मामले में कार्रवाई को सामान्यीकृत करने से बचाता है।
  3. लोकतांत्रिक मानकों की रक्षा: ऐसे कठोर बयानों को रोकना, खासकर जो समाज को विभाजित कर सकते हैं, लोकतांत्रिक विमर्श के लिए महत्वपूर्ण है। आयोग का लक्ष्य राजनीतिक भाषा के स्तर को ऊपर उठाना हो सकता है।
  4. समान कानून: यदि अन्य नेताओं के ऐसे ही बयानों पर कार्रवाई हुई है, तो राहुल गांधी के मामले में भी वही मानक लागू होने चाहिए।

विपक्ष में तर्क (Arguments Against):

  1. अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण: आलोचकों का तर्क है कि चुनाव आयोग का यह निर्देश उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। आयोग को केवल चुनावी नियमों को लागू करना चाहिए, न कि राजनीतिक भाषणों की सामग्री को नियंत्रित करना या सार्वजनिक माफी/शपथ जैसी व्यक्तिगत कार्रवाई का आदेश देना।
  2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन: यह कदम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने जैसा लग सकता है, खासकर जब बयान को राजनीतिक व्यंग्य या आलोचना के रूप में देखा जा रहा हो।
  3. भेदभाव का आरोप: कुछ लोगों का मानना ​​है कि यह कार्रवाई विशेष रूप से एक राजनीतिक दल के नेता को निशाना बनाने के लिए की गई है, और अन्य दलों के नेताओं द्वारा दिए गए समान या इससे भी अधिक आपत्तिजनक बयानों को नजरअंदाज किया गया है।
  4. अत्यधिक शक्ति का दुरुपयोग: यह आयोग द्वारा अपनी शक्तियों के संभावित दुरुपयोग का मामला हो सकता है, जहाँ वह एक राजनीतिक विवाद में अनुचित रूप से हस्तक्षेप कर रहा है।
  5. शपथ का औचित्य: एक नागरिक या नेता से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने या भविष्य में ऐसा न करने की शपथ लेने के लिए कहना, शायद ही कभी निष्पक्ष सुनवाई या न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होता है।

“भारतीय संविधान, विशेष रूप से अनुच्छेद 19, नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। हालाँकि, यह अधिकार असीमित नहीं है और राष्ट्र की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और मानहानि, अवमानना ​​या किसी अन्य मामले से संबंधित कुछ उचित प्रतिबंधों के अधीन है।”

UPSC परीक्षा के लिए महत्व

यह घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):

  • संवैधानिक निकाय: चुनाव आयोग की स्थापना, संरचना, शक्तियाँ और कार्य (अनुच्छेद 324)।
  • कानूनी प्रावधान: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, विशेष रूप से धारा 123 (भ्रष्टाचार आचरण)।
  • मौलिक अधिकार: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) और इसके अपवाद (अनुच्छेद 19(2))।
  • आदर्श आचार संहिता: इसके प्रावधान और ECI द्वारा इसका प्रवर्तन।
  • IPC की धाराएँ: यदि प्रासंगिक हों, जैसे मानहानि, आदि।

मुख्य परीक्षा (Mains):

  • निबंध: “भारतीय लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राजनीतिक जवाबदेही” या “चुनाव आयोग की भूमिका: प्रहरी या नियंत्रक?” जैसे विषयों पर।
  • सामान्य अध्ययन पेपर II (शासन, राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध):
    • संवैधानिक निकायों की भूमिका और स्वतंत्रता।
    • चुनाव सुधार और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता।
    • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और चुनावी कानून।
    • राजनीतिक दलों का आचरण और उन पर नियंत्रण।
    • मौलिक अधिकारों और राज्य की शक्तियों के बीच संतुलन।
  • सामान्य अध्ययन पेपर IV (नैतिकता, सत्यनिष्ठा और योग्यता):
    • नैतिक आचरण के मानक, विशेष रूप से सार्वजनिक जीवन में।
    • जवाबदेही और पारदर्शिता।
    • लोक सेवकों के लिए आचार संहिता।

चुनौतियाँ और आगे की राह

यह मामला कई चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है:

  1. ECI की शक्तियों की सीमा: क्या ECI के पास ऐसे व्यक्तिगत निर्देश जारी करने की शक्ति है? क्या यह न्यायिक शक्ति की तरह है?
  2. राजनीतिक भाषण का मापदंड: कब एक राजनीतिक बयान व्यक्तिगत हमला, भड़काऊ, या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन जाता है? इस मापदंड को परिभाषित करना एक सतत चुनौती है।
  3. ECI की निष्पक्षता: ऐसे मामलों में ECI की कार्रवाई को निष्पक्ष और गैर-पक्षपाती दिखना चाहिए, ताकि जनता का विश्वास बना रहे।
  4. शपथ या माफी का प्रभाव: क्या इस तरह के निर्देश वास्तव में राजनीतिक नेताओं को जिम्मेदार ठहराते हैं, या यह केवल एक राजनीतिक पैंतरा बन जाता है?

आगे की राह:

  • स्पष्ट दिशा-निर्देश: चुनाव आयोग को अपने अधिकार क्षेत्र और उन शक्तियों की सीमा पर अधिक स्पष्टता प्रदान करनी चाहिए जो वह आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर उपयोग कर सकता है।
  • न्यायिक समीक्षा: ऐसे मामलों को अंततः अदालतों द्वारा भी परखा जा सकता है, जो ECI की शक्तियों और उनके अनुप्रयोग पर महत्वपूर्ण निर्णय दे सकते हैं।
  • राजनीतिक दलों में आत्म-नियमन: राजनीतिक दलों को स्वयं भी अपने सदस्यों के लिए ऐसे दिशानिर्देश बनाने चाहिए जो सभ्य राजनीतिक विमर्श को बढ़ावा दें।
  • जन जागरूकता: नागरिकों को भी यह समझने की आवश्यकता है कि वे क्या सुन रहे हैं और किस तरह के बयानों को स्वीकार करना है।

निष्कर्ष

राहुल गांधी और चुनाव आयोग के बीच का यह विवाद एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है जो भारतीय राजनीति, कानून और नैतिकता के कई पहलुओं को छूता है। यह घटनाक्रम इस बात पर प्रकाश डालता है कि चुनाव आयोग को न केवल निष्पक्ष और स्वतंत्र रहना है, बल्कि अपनी शक्तियों का प्रयोग विवेकपूर्ण और संवैधानिक सीमाओं के भीतर करना है। वहीं, राजनीतिक नेताओं को भी अपनी अभिव्यक्ति में संयम बरतना चाहिए ताकि वे राष्ट्रीय एकता और गरिमा को बनाए रख सकें। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह एक उत्कृष्ट केस स्टडी है जो उन्हें भारत में शासन, राजनीति और संवैधानिक नैतिकता की बारीकियों को गहराई से समझने में मदद करेगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद भारत के चुनाव आयोग (ECI) की स्थापना और शक्तियों से संबंधित है?
a) अनुच्छेद 315
b) अनुच्छेद 324
c) अनुच्छेद 352
d) अनुच्छेद 280

उत्तर: b) अनुच्छेद 324
व्याख्या: अनुच्छेद 324 भारत के चुनाव आयोग की स्थापना, नियंत्रण, निर्देशन और भारत में चुनावों के संचालन का प्रावधान करता है।

2. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की निम्नलिखित में से कौन सी धारा “भ्रष्टाचार आचरण” को परिभाषित करती है, जिसमें मतदाताओं को गुमराह करने वाले बयान भी शामिल हो सकते हैं?
a) धारा 123(3)
b) धारा 123(4)
c) धारा 123(5)
d) धारा 123(6)

उत्तर: b) धारा 123(4)
व्याख्या: धारा 123(4) उन बयानों से संबंधित है जो किसी उम्मीदवार या किसी अन्य उम्मीदवार के बारे में प्रकाशित या प्रसारित किए जाते हैं और जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाकर वोट प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

3. आदर्श आचार संहिता (MCC) का उल्लंघन होने पर, निम्नलिखित में से कौन सी कार्रवाई चुनाव आयोग द्वारा की जा सकती है?
1. उम्मीदवार की उम्मीदवारी रद्द करना
2. किसी राजनीतिक दल की मान्यता निलंबित करना
3. संबंधित उम्मीदवार/नेता को चेतावनी जारी करना
4. चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगाना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
a) केवल 1 और 4
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1, 2 और 4
d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: c) केवल 1, 2 और 4
व्याख्या: हालांकि आयोग चेतावनी जारी कर सकता है (3), लेकिन उम्मीदवारी रद्द करना, मान्यता निलंबित करना, या चुनाव पर रोक लगाना उसकी गंभीर शक्तियाँ हैं जो गंभीर उल्लंघन पर लागू हो सकती हैं। आयोग के पास इस तरह की शक्तियों का विवेक है।

4. भारतीय संविधान का कौन सा मौलिक अधिकार राजनीतिक भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है?
a) अनुच्छेद 14
b) अनुच्छेद 19
c) अनुच्छेद 21
d) अनुच्छेद 25

उत्तर: b) अनुच्छेद 19
व्याख्या: अनुच्छेद 19(1)(a) नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है।

5. अनुच्छेद 19(2) के तहत, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए जा सकने वाले “उचित प्रतिबंधों” में निम्नलिखित में से कौन शामिल नहीं है?
a) भारत की संप्रभुता और अखंडता
b) राज्य की सुरक्षा
c) अवमानना ​​या मानहानि
d) आर्थिक असमानता को बढ़ावा देना

उत्तर: d) आर्थिक असमानता को बढ़ावा देना
व्याख्या: अनुच्छेद 19(2) में सूचीबद्ध प्रतिबंधों में सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार, नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, मानहानि, और राज्य की सुरक्षा, संप्रभुता व अखंडता शामिल हैं, लेकिन आर्थिक असमानता नहीं।

6. चुनाव आयोग के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह एक संवैधानिक निकाय है।
2. इसके सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
3. सदस्यों का कार्यकाल राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है।
4. आयोग चुनाव आयुक्तों के साथ-साथ क्षेत्रीय आयुक्तों की भी नियुक्ति कर सकता है।
सही कथन चुनें:
a) 1, 2 और 4
b) 1 और 3
c) 2, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: a) 1, 2 और 4
व्याख्या: चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है (1)। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है (2)। उनका कार्यकाल निश्चित होता है (6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो), यह राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर नहीं करता (3 गलत है)। आयोग क्षेत्रीय आयुक्तों की नियुक्ति भी कर सकता है (4)।

7. “चौकीदार चोर है” जैसे नारे को चुनाव आयोग द्वारा आपत्तिजनक मानने का मुख्य कारण क्या हो सकता है?
a) यह नारे लगाने वाले की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करता है।
b) यह भारत के प्रधान मंत्री की प्रतिष्ठा को धूमिल करता है।
c) यह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन कर सकता है यदि इसे सैनिकों या राष्ट्रीय प्रतीकों से जोड़ा जाए और मतदाताओं को गुमराह करे।
d) यह सीधे तौर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 500 (मानहानि) का उल्लंघन करता है।

उत्तर: c) यह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन कर सकता है यदि इसे सैनिकों या राष्ट्रीय प्रतीकों से जोड़ा जाए और मतदाताओं को गुमराह करे।
व्याख्या: चुनाव आयोग की मुख्य चिंता आचार संहिता का उल्लंघन और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को बनाए रखना है। जबकि यह प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा को प्रभावित कर सकता है (b) या मानहानि (d) के करीब हो सकता है, आयोग की कार्रवाई का प्राथमिक आधार आचार संहिता का उल्लंघन है, खासकर जब इसमें सार्वजनिक हित या सैनिकों जैसे संवेदनशील मुद्दे शामिल हों।

8. निम्नलिखित में से कौन सा अधिनियम चुनाव से संबंधित भ्रष्टाचार आचरणों के लिए दंड का प्रावधान करता है?
a) भारतीय संविधान
b) भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860
c) जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951
d) उपरोक्त सभी

उत्तर: c) जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951
व्याख्या: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 विशेष रूप से चुनावों के दौरान भ्रष्टाचार आचरण (जैसे धारा 123) और उनके लिए दंड का प्रावधान करता है। IPC कुछ सामान्य अपराधों को कवर करता है, लेकिन चुनाव-विशिष्ट मुद्दे मुख्य रूप से R.P. Act के तहत आते हैं।

9. चुनाव आयोग द्वारा “शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करें या देश से माफी मांगें” का निर्देश किस संदर्भ में अद्वितीय माना जा रहा है?
a) यह पहली बार है जब आयोग ने किसी नेता के खिलाफ नोटिस जारी किया है।
b) यह पहली बार है जब आयोग ने किसी नेता को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का आदेश दिया है।
c) यह पहली बार है जब आयोग ने किसी नेता से भविष्य में इस तरह के बयान न देने का हलफनामा मांगा है।
d) b) और c) दोनों

उत्तर: d) b) और c) दोनों
व्याख्या: हालांकि आयोग ने पहले भी कार्रवाई की है, लेकिन सार्वजनिक माफी मांगने या भविष्य में आचरण के लिए हलफनामा देने जैसा विशिष्ट आदेश एक असामान्य और महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

10. राजनीतिक भाषणों पर उचित प्रतिबंध लगाने के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन सा सिद्धांत प्रासंगिक है?
a) “स्पष्ट और वर्तमान खतरा” (Clear and Present Danger) सिद्धांत
b) “नुकसान का सिद्धांत” (Harm Principle)
c) “न्यायिक पुनरीक्षण” (Judicial Review)
d) “निर्वाचन आयोग का विवेक” (ECI’s Discretion)

उत्तर: a) “स्पष्ट और वर्तमान खतरा” (Clear and Present Danger) सिद्धांत
व्याख्या: यद्यपि यह सिद्धांत अमेरिकी कानून से उत्पन्न हुआ है, यह भाषण पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक महत्वपूर्ण मानदंड रहा है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रतिबंध केवल तभी लगाए जाएं जब भाषण से समाज को एक वास्तविक और तत्काल खतरा हो। भारतीय संदर्भ में, यह अनुच्छेद 19(2) के तहत “उचित प्रतिबंधों” की व्याख्या में सहायक हो सकता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. भारतीय लोकतंत्र में, आदर्श आचार संहिता (MCC) के प्रवर्तन में चुनाव आयोग (ECI) की भूमिका महत्वपूर्ण है। हालिया घटनाक्रमों, जैसे कि राहुल गांधी के मामले में ECI के निर्देशों, के आलोक में, ECI की शक्तियों की सीमा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इसके संभावित प्रभाव और चुनावी निष्पक्षता सुनिश्चित करने में इसकी प्रभावशीलता का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)
2. “राजनीतिक संवाद में सभ्य भाषा और जवाबदेही बनाए रखना, सार्वजनिक जीवन में नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।” इस कथन के आलोक में, राहुल गांधी के बयान और चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया पर चर्चा करें। क्या ऐसे निर्देश, भाषण की स्वतंत्रता का उल्लंघन किए बिना, राजनीतिक जवाबदेही को बढ़ावा दे सकते हैं? (150 शब्द, 10 अंक)
3. चुनाव आयोग को भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के प्रहरी के रूप में देखा जाता है। हालाँकि, कुछ निर्णयों या कार्रवाइयों से उस पर पक्षपात या अति-उत्साह का आरोप लगाया जाता है। ECI की शक्तियों का प्रयोग करते समय किन संवैधानिक और नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से जब वह राजनीतिक नेताओं के भाषणों को विनियमित करने का प्रयास करता है? (250 शब्द, 15 अंक)
4. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, के तहत “भ्रष्टाचार आचरण” की अवधारणा का विश्लेषण करें। ECI द्वारा समय-समय पर जारी किए गए दिशानिर्देशों और इस अधिनियम की धाराओं का उपयोग करके, यह बताएं कि कैसे चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया की शुचिता बनाए रखने का प्रयास करता है, और इसमें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। (150 शब्द, 10 अंक)

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