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राहुल गांधी का आरोप: ट्रम्प का दबाव, मोदी की मजबूरी – अडानी की अमेरिकी जांच का पूरा सच!

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**

हाल ही में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों ने भारतीय राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में भूचाल ला दिया है। गांधी का दावा है कि अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, गौतम अडानी समूह के खिलाफ चल रही अमेरिकी जांच का इस्तेमाल भारत पर दबाव बनाने के लिए कर रहे हैं, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस स्थिति का प्रभावी ढंग से सामना करने में असमर्थ हैं, क्योंकि इस जांच ने उनके ‘हाथ बांध’ दिए हैं। इन आरोपों ने न केवल भारत-अमेरिका संबंधों की जटिलताओं को उजागर किया है, बल्कि भारत की घरेलू राजनीति, कॉर्पोरेट गवर्नेंस और आर्थिक संप्रभुता पर भी गहन प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। यह ब्लॉग पोस्ट इन आरोपों की तह तक जाएगा, इसके विभिन्न आयामों का विश्लेषण करेगा, और UPSC उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिक बहुआयामी ज्ञान प्रदान करेगा।

पृष्ठभूमि: अडानी समूह और अमेरिकी जांच (Background: The Adani Group and the US Investigation)**

गौतम अडानी, जिनका व्यापारिक साम्राज्य हाल के वर्षों में तेजी से फैला है, विशेषकर ऊर्जा, बंदरगाहों, हवाई अड्डों और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में, अंतर्राष्ट्रीय पटल पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरा है। हालांकि, सितंबर 2022 में, शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह पर स्टॉक हेरफेर, लेखा धोखाधड़ी और दशकों से चले आ रहे सत्ता के दुरुपयोग के आरोप लगाने के बाद से यह समूह गहन जांच के दायरे में है। इन आरोपों ने कंपनी के शेयर की कीमतों में भारी गिरावट ला दी और समूह की प्रतिष्ठा को धूमिल किया।

इन आरोपों के बाद, यह ज्ञात हुआ कि अमेरिकी न्याय विभाग (Department of Justice) और सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) जैसी अमेरिकी नियामक संस्थाएं अडानी समूह की कुछ व्यावसायिक प्रथाओं की जांच कर रही हैं। यह कोई असामान्य बात नहीं है, क्योंकि अमेरिकी नियामक अक्सर अपनी अधिकार-सीमा के भीतर किसी भी संभावित वित्तीय अनियमितता की जांच करते हैं, खासकर जब अमेरिकी बाजारों में सूचीबद्ध कंपनियों या उनके व्यावसायिक भागीदारों से जुड़ा मामला हो। हालांकि, इस जांच का समय और राजनीतिक बयानबाजी ने इसे अत्यधिक संवेदनशील बना दिया है।

राहुल गांधी के आरोप का विश्लेषण (Analyzing Rahul Gandhi’s Allegations)**

राहुल गांधी के आरोपों के तीन मुख्य स्तंभ हैं:

  1. ट्रम्प का दबाव: उनका आरोप है कि डोनाल्ड ट्रम्प, जो स्वयं भारत में एक परिचित व्यक्ति हैं और भारत-अमेरिका संबंधों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं, अडानी समूह के खिलाफ अमेरिकी जांच को एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। यह ‘दबाव’ किस रूप में है, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसका तात्पर्य यह हो सकता है कि ट्रम्प प्रशासन (या ट्रम्प व्यक्तिगत रूप से) जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं या भारत सरकार पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डाल रहे हैं।
  2. मोदी की असमर्थता: गांधी का दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दबाव का सामना करने में सक्षम नहीं हैं। उनका तर्क है कि अडानी समूह के साथ सरकार के कथित घनिष्ठ संबंधों के कारण, मोदी सरकार जांच के आगे झुकने को मजबूर हो सकती है, या वह इस मुद्दे पर कोई मजबूत रुख नहीं अपना सकती।
  3. ‘बंधे हाथ’: यह वाक्यांश बताता है कि अडानी समूह की जांच के कारण, भारत सरकार की विदेश नीति और कूटनीतिक चालें सीमित हो गई हैं। दूसरे शब्दों में, भारत सरकार को अमेरिका के साथ अपने संबंधों में सावधानी बरतनी पड़ रही है, ताकि अडानी मामले में स्थिति और खराब न हो।

यह आरोप क्यों महत्वपूर्ण हैं? (Why are These Allegations Significant?)**

  • भारत-अमेरिका संबंध: भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, विशेषकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए। यदि अमेरिकी जांच का उपयोग भारत पर राजनीतिक दबाव बनाने के लिए किया जा रहा है, जैसा कि गांधी का आरोप है, तो यह दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।
  • घरेलू राजनीति: विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस, लगातार अडानी समूह और सरकार के बीच कथित सांठगांठ का मुद्दा उठाती रही है। यह आरोप उस नैरेटिव को और मजबूत करता है कि सरकार अपने ‘पसंदीदा’ कॉर्पोरेट घरानों को बचाने की कोशिश कर रही है।
  • आर्थिक संप्रभुता: यदि एक विदेशी शक्ति (या उसका पूर्व नेता) किसी देश की महत्वपूर्ण आर्थिक संस्थाओं के खिलाफ जांच का उपयोग करके सरकार पर दबाव डाल सकता है, तो यह उस देश की आर्थिक संप्रभुता पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाता है।
  • वैश्विक वित्तीय व्यवस्था: अडानी समूह की जांच केवल भारत तक सीमित नहीं है। यह वैश्विक वित्तीय बाजारों में पारदर्शिता, कॉर्पोरेट गवर्नेंस और जवाबदेही के व्यापक मुद्दों को भी उठाती है।

विश्लेषण: क्या यह आरोप सही हो सकते हैं? (Analysis: Could These Allegations Hold True?)**

यह एक जटिल प्रश्न है जिसका सीधा उत्तर देना कठिन है। हालांकि, विभिन्न दृष्टिकोणों से इसका विश्लेषण किया जा सकता है:

1. ट्रम्प के इरादे:

  • संभावित स्वार्थ: डोनाल्ड ट्रम्प एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति अपनाई। वे भारत को एक महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार मानते हैं, लेकिन साथ ही वे अपने राष्ट्रीय हितों को भी प्राथमिकता देते हैं। यह संभव है कि वे अमेरिकी नियामक एजेंसियों की जांच में रुचि रखते हों, या व्यक्तिगत रूप से इसे भारत पर प्रभाव डालने के एक तरीके के रूप में देखते हों।
  • डोमेस्टिक पॉलिटिक्स: ट्रम्प अक्सर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों का इस्तेमाल अपनी घरेलू राजनीति को भुनाने के लिए करते हैं। अडानी जैसे प्रमुख भारतीय व्यवसायी के खिलाफ अमेरिकी जांच, अगर सफल होती है, तो इसे अमेरिकी कानूनों के प्रवर्तन के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है, जो उनके समर्थकों को आकर्षित कर सकता है।
  • ‘कॉम्प्रोमाइज’ का पहलू: यह भी संभव है कि ट्रम्प यह विश्वास करते हों कि अडानी समूह के कुछ व्यापारिक व्यवहार अमेरिकी कानूनों का उल्लंघन करते हैं, और इसलिए वे जांच का समर्थन करते हों।

2. मोदी सरकार की स्थिति:

  • ‘बंधे हाथ’ का सच: यदि अडानी समूह वास्तव में अमेरिकी कानूनों का उल्लंघन कर रहा है, तो भारत सरकार के लिए यह कहना मुश्किल होगा कि ‘हम अमेरिका को हमारे घरेलू व्यापार में हस्तक्षेप नहीं करने देंगे’। विशेषकर यदि जांच वैश्विक वित्तीय प्रणाली से जुड़ी हो।
  • सहजता बनाम मजबूरी: क्या मोदी सरकार वाकई ‘मजबूर’ है, या यह एक ‘सहज’ कूटनीतिक स्थिति है? भारत सरकार के लिए, अमेरिका के साथ संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में, वे किसी भी ऐसे कदम से बचना चाहेंगे जो संबंधों को खराब करे, खासकर जब वह उनके अपने राष्ट्रीय हितों के लिए महत्वपूर्ण हो (जैसे रक्षा, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, आदि)।
  • कॉर्पोरेट-सरकार गठजोड़ पर आरोप: यह आरोप कि सरकार अडानी समूह की पक्षधर है, विपक्ष द्वारा लगातार उठाया जाता रहा है। यदि यह आरोप सच साबित होता है, तो सरकार पर अडानी समूह को बचाने का भारी दबाव होगा, लेकिन अमेरिकी जांच के सामने यह संभव नहीं हो सकता।

3. अडानी समूह की जांच का प्रभाव:

  • वित्तीय और प्रतिष्ठागत क्षति: अमेरिकी जांच अडानी समूह की वित्तीय स्थिति और प्रतिष्ठा को और अधिक नुकसान पहुंचा सकती है। इससे भारत में अन्य कंपनियों के लिए भी विदेशी निवेश आकर्षित करना मुश्किल हो सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संप्रभुता: यह मामला अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में भारत की स्थिति और उसकी संप्रभुता पर भी सवाल उठाता है। क्या भारत एक ऐसी स्थिति में है जहां उसके प्रमुख व्यवसायिक घराने विदेशी जांचों से अत्यधिक प्रभावित होते हैं?

भारत-अमेरिका संबंध पर प्रभाव (Impact on India-US Relations)**

यह स्थिति भारत-अमेरिका संबंधों के लिए एक ‘नाजुक क्षण’ का प्रतिनिधित्व करती है।

  • विश्वास का क्षरण: यदि भारत सरकार को यह महसूस होता है कि अमेरिका जांच का उपयोग एक राजनीतिक हथियार के रूप में कर रहा है, तो इससे दोनों देशों के बीच विश्वास का क्षरण हो सकता है।
  • रणनीतिक असहयोग: बदले में, भारत भी अमेरिका के प्रति अपने सहयोग में नरमी बरत सकता है, जिससे इंडो-पैसिफिक रणनीति जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बाधा आ सकती है।
  • वैश्विक मंच पर चुनौतियां: दोनों देशों को बहुपक्षीय मंचों पर भी एक-दूसरे का समर्थन करने में कठिनाई हो सकती है।

UPSC के लिए प्रासंगिकता: मुख्य परीक्षा के दृष्टिकोण से (Relevance for UPSC: From Mains Perspective)**

यह मुद्दा कई GS पेपरों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:

  • GS-II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations):
    • भारत-अमेरिका संबंध: रणनीतिक साझेदारी, द्विपक्षीय मुद्दे।
    • भू-राजनीति: इंडो-पैसिफिक में शक्ति संतुलन।
    • कूटनीति: आर्थिक हितों और राजनीतिक दबावों का प्रबंधन।
  • GS-II: शासन (Governance):
    • कॉर्पोरेट गवर्नेंस: भारत में पारदर्शिता और जवाबदेही।
    • वित्तीय विनियमन: नियामक एजेंसियों की भूमिका।
    • पारदर्शिता और जवाबदेही: सार्वजनिक जीवन में।
  • GS-III: अर्थव्यवस्था (Economy):
    • वित्तीय बाजार: शेयर बाजार में हेरफेर, निवेशक विश्वास।
    • आर्थिक विकास: विदेशी निवेश, कॉर्पोरेट ऋण।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े आर्थिक पहलू।
  • GS-IV: नैतिकता (Ethics):
    • हितों का टकराव (Conflict of Interest): राजनेताओं और व्यवसायियों के बीच।
    • सार्वजनिक पद का दुरुपयोग।
    • राष्ट्रीय हित बनाम व्यक्तिगत या कॉर्पोरेट हित।

संभावित परिदृश्य और आगे की राह (Potential Scenarios and Way Forward)**

इस मामले के कई संभावित परिणाम हो सकते हैं:

  1. अमेरिकी जांच का निष्कर्ष: अमेरिकी नियामक यह तय करेंगे कि अडानी समूह ने नियमों का उल्लंघन किया है या नहीं। यदि उल्लंघन पाया जाता है, तो कानूनी और वित्तीय परिणाम हो सकते हैं।
  2. भारत सरकार की प्रतिक्रिया: भारत सरकार को इस मामले पर एक संतुलित रुख अपनाना होगा। उसे अपनी संप्रभुता की रक्षा करनी होगी, लेकिन साथ ही अमेरिकी कानूनों का पालन करने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई को भी स्वीकार करना होगा।
  3. राहुल गांधी की भूमिका: विपक्ष इस मुद्दे को आगे भी उठाता रहेगा, जिससे सरकार पर दबाव बना रहेगा।
  4. संबंधों का भविष्य: भारत-अमेरिका संबंध, यदि इस मुद्दे को ठीक से संभाला गया, तो मजबूत हो सकते हैं, अन्यथा कमजोर।

आगे की राह के लिए सुझाव: (Suggestions for the Way Forward):**

  • पारदर्शिता: अडानी समूह को अमेरिकी जांच में पूरी तरह से सहयोग करना चाहिए और पारदर्शी तरीके से अपने वित्तीय मामलों को प्रस्तुत करना चाहिए।
  • नियामक मजबूती: भारत को अपने स्वयं के नियामक तंत्र को मजबूत करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी कॉर्पोरेट घराने उच्चतम मानकों का पालन करें, और बाहरी दबावों के प्रति कम संवेदनशील हों।
  • स्पष्ट कूटनीतिक संवाद: भारत सरकार को अमेरिका के साथ कूटनीतिक स्तर पर स्पष्ट संवाद बनाए रखना चाहिए, अपनी चिंताओं को व्यक्त करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जांच निष्पक्ष और तथ्यों पर आधारित हो।
  • विपक्ष की रचनात्मक भूमिका: विपक्ष को इस मुद्दे को उठाना चाहिए, लेकिन राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखना चाहिए और देश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाले आरोप लगाने से बचना चाहिए।
  • कॉर्पोरेट गवर्नेंस सुधार: इस घटना को भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस को और मजबूत करने के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion)**

राहुल गांधी के आरोप, चाहे वे कितने भी राजनीतिक रूप से प्रेरित हों, भारत की विदेश नीति, घरेलू राजनीति और आर्थिक व्यवस्था से जुड़े गहरे मुद्दों को उजागर करते हैं। अडानी समूह के खिलाफ अमेरिकी जांच, ट्रम्प की संभावित भूमिका, और भारतीय प्रधानमंत्री की कथित ‘मजबूरी’, यह सब मिलकर एक ऐसी तस्वीर बनाते हैं जहां भू-राजनीति, कॉर्पोरेट शक्ति और राष्ट्रीय हित आपस में गुंथे हुए हैं। UPSC उम्मीदवारों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये आरोप केवल एक राजनीतिक बयान नहीं हैं, बल्कि एक जटिल प्रणालीगत मुद्दे का प्रतीक हैं, जिसके बहुआयामी प्रभाव हो सकते हैं। इस मामले को निष्पक्षता, पारदर्शिता और राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखते हुए सुलझाना भारत की भविष्य की दिशा के लिए महत्वपूर्ण होगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

1. हिंडनबर्ग रिसर्च एक अमेरिकी शॉर्ट-सेलर फर्म है जो कंपनियों के वित्तीय स्वास्थ्य पर रिपोर्ट प्रकाशित करती है।

2. अमेरिकी न्याय विभाग (Department of Justice) और सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) दोनों वित्तीय अनियमितताओं की जांच कर सकते हैं।

उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

a) केवल 1

b) केवल 2

c) दोनों 1 और 2

d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: c) दोनों 1 और 2

व्याख्या: हिंडनबर्ग रिसर्च एक जानी-मानी शॉर्ट-सेलर फर्म है। अमेरिकी न्याय विभाग और SEC दोनों ही अपनी-अपनी भूमिकाओं में वित्तीय कदाचार की जांच के लिए अधिकृत हैं।

2. कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हालिया आरोपों के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन से कथन सत्य हैं?

1. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, अडानी समूह के खिलाफ अमेरिकी जांच का इस्तेमाल भारत पर दबाव बनाने के लिए कर रहे हैं।

2. राहुल गांधी का दावा है कि इस स्थिति के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘हाथ बंधे’ हुए हैं।

उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

a) केवल 1

b) केवल 2

c) दोनों 1 और 2

d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: c) दोनों 1 और 2

व्याख्या: यह प्रश्न सीधे तौर पर समाचार के मुख्य दावों पर आधारित है जैसा कि राहुल गांधी द्वारा व्यक्त किया गया है।

3. भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा क्षेत्र महत्वपूर्ण है?

1. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग।

2. रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण।

3. आर्थिक और व्यापारिक संबंध।

4. जलवायु परिवर्तन पर सहयोग।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

a) 1, 2 और 3

b) 1, 2, 3 और 4

c) 2, 3 और 4

d) 1 और 4

उत्तर: b) 1, 2, 3 और 4

व्याख्या: ये सभी क्षेत्र भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, और इनमें कोई भी तनाव दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित कर सकता है।

4. ‘शॉर्ट-सेलर’ (Short-seller) शब्द का संदर्भ निम्नलिखित में से किससे है?

a) एक ऐसा निवेशक जो किसी कंपनी के शेयर की कीमत बढ़ने की उम्मीद करता है।

b) एक ऐसा निवेशक जो किसी कंपनी के शेयर की कीमत गिरने की उम्मीद करता है और पहले शेयर बेचकर (बिना मालिकाना हक के) बाद में कम कीमत पर खरीदकर मुनाफा कमाता है।

c) एक नियामक अधिकारी जो वित्तीय बाजारों की निगरानी करता है।

d) एक ऐसा वित्तीय विश्लेषक जो किसी कंपनी के भविष्य के लाभ का अनुमान लगाता है।

उत्तर: b) एक ऐसा निवेशक जो किसी कंपनी के शेयर की कीमत गिरने की उम्मीद करता है और पहले शेयर बेचकर (बिना मालिकाना हक के) बाद में कम कीमत पर खरीदकर मुनाफा कमाता है।

व्याख्या: शॉर्ट-सेलिंग का अर्थ होता है उधार लिए गए शेयरों को बेचना, इस उम्मीद में कि कीमत गिरेगी और फिर उन्हें खरीदकर वापस किया जा सकेगा, जिससे मुनाफा होगा।

5. भारतीय संविधान के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन सा/से ‘संप्रभुता’ (Sovereignty) के पहलू को संदर्भित करता है/करते हैं?

1. भारत अपने घरेलू और बाहरी मामलों में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।

2. भारत किसी भी विदेशी शक्ति के प्रभुत्व के अधीन नहीं है।

3. भारत के कानून सर्वोच्च हैं और किसी भी विदेशी सरकार द्वारा निर्धारित नहीं किए जा सकते।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

a) केवल 1

b) 1 और 2

c) 2 और 3

d) 1, 2 और 3

उत्तर: d) 1, 2 और 3

व्याख्या: संप्रभुता का अर्थ ही यही है कि राज्य अपने सभी आंतरिक और बाहरी मामलों में स्वतंत्र और सर्वोच्च है।

6. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

1. अमेरिकी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) अमेरिकी शेयर बाजारों में सूचीबद्ध कंपनियों की निगरानी करता है।

2. यदि कोई भारतीय कंपनी अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध है या अमेरिकी निवेशकों से जुड़ी है, तो वह SEC के अधिकार क्षेत्र में आ सकती है।

उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

a) केवल 1

b) केवल 2

c) दोनों 1 और 2

d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: c) दोनों 1 और 2

व्याख्या: SEC की भूमिका अमेरिकी वित्तीय बाजारों की अखंडता को बनाए रखना है, और यह अपनी अधिकार-सीमा का विस्तार अमेरिकी कंपनियों से जुड़े विदेशी परिचालन तक कर सकती है।

7. ‘भू-राजनीति’ (Geopolitics) शब्द का सबसे उपयुक्त वर्णन निम्नलिखित में से कौन सा है?

a) अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का केवल आर्थिक विश्लेषण।

b) किसी देश की विदेश नीति पर भूगोल और राजनीति के बीच अंतर्संबंध का अध्ययन।

c) केवल सैन्य रणनीतियों का अध्ययन।

d) वैश्विक अर्थव्यवस्था का अध्ययन।

उत्तर: b) किसी देश की विदेश नीति पर भूगोल और राजनीति के बीच अंतर्संबंध का अध्ययन।

व्याख्या: भू-राजनीति भौगोलिक कारकों (जैसे स्थान, संसाधन, सीमाएं) के राजनीतिक निर्णयों और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करती है।

8. भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस (Corporate Governance) के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन सी संस्थाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं?

1. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)

2. भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)

3. कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs)

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

a) केवल 1

b) 1 और 2

c) 2 और 3

d) 1, 2 और 3

उत्तर: d) 1, 2 और 3

व्याख्या: RBI बैंकिंग और वित्तीय संस्थानों पर, SEBI पूंजी बाजारों पर, और कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय कंपनियों के पंजीकरण और विनियमन पर प्रमुख नियामक हैं।

9. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

1. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्व चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक सहयोग को बढ़ावा देता है।

2. इस क्षेत्र में नौवहन की स्वतंत्रता (Freedom of Navigation) भारत-अमेरिका दोनों के लिए एक साझा हित का विषय है।

उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

a) केवल 1

b) केवल 2

c) दोनों 1 और 2

d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: c) दोनों 1 और 2

व्याख्या: चीन के बढ़ते प्रभुत्व और समुद्री सुरक्षा संबंधी चिंताएँ भारत और अमेरिका को इंडो-पैसिफिक में मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करती हैं।

10. ‘हितों का टकराव’ (Conflict of Interest) का सबसे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है?

a) एक सरकारी अधिकारी जो अपने गृह जिले में सड़क निर्माण परियोजना का निरीक्षण करता है।

b) एक डॉक्टर जो अपने परिवार के सदस्य का इलाज करता है।

c) एक मंत्री जो उस कंपनी के शेयर रखता है जिसे सरकार ने बड़े अनुबंध दिए हैं।

d) एक प्रोफेसर जो अपने विषय पर एक किताब लिखता है।

उत्तर: c) एक मंत्री जो उस कंपनी के शेयर रखता है जिसे सरकार ने बड़े अनुबंध दिए हैं।

व्याख्या: हितों का टकराव तब होता है जब किसी व्यक्ति के निजी हित (जैसे वित्तीय लाभ) उसके सार्वजनिक या व्यावसायिक कर्तव्यों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. भू-राजनीतिक तनावों के बीच अडानी समूह के खिलाफ अमेरिकी जांच, भारत-अमेरिका संबंधों को कैसे प्रभावित कर सकती है? इस मुद्दे पर भारत सरकार की संभावित कूटनीतिक चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण करें। (250 शब्द, 15 अंक)**

2. राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों के आलोक में, भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस, नियामक निकायों की भूमिका और सरकारी जवाबदेही के बीच नाजुक संतुलन पर चर्चा करें। क्या ऐसी घटनाएँ देश की आर्थिक संप्रभुता को खतरे में डाल सकती हैं?

(250 शब्द, 15 अंक)**

3. ‘ट्रम्प का दबाव, मोदी की मजबूरी’ के आरोप को ध्यान में रखते हुए, अंतरराष्ट्रीय जांचों के संदर्भ में एक देश की आर्थिक नीति और विदेश नीति के बीच परस्पर निर्भरता का समालोचनात्मक परीक्षण करें।

(150 शब्द, 10 अंक)**

4. अडानी समूह के खिलाफ चल रही जांच के मद्देनजर, भारतीय वित्तीय बाजारों में पारदर्शिता और निवेशक विश्वास बनाए रखने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर टिप्पणी करें।

(150 शब्द, 10 अंक)**

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