तथ्य बनाम फसाना: ट्रम्प के टैरिफ पर फैली अफवाहों का सच, MEA ने किया पर्दाफाश!
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा विभिन्न देशों पर लगाए गए टैरिफ (शुल्क) को लेकर अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक परिदृश्य में काफी गहमागहमी का माहौल था। इस दौरान, भारत की संभावित प्रतिक्रियाओं के बारे में मीडिया और सोशल मीडिया पर कई तरह की अटकलें और गलत सूचनाएं फैलाई जा रही थीं। इन अटकलों पर अंकुश लगाने और तथ्यात्मक स्थिति स्पष्ट करने के उद्देश्य से, भारत के विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs – MEA) ने सामने आकर इन अफवाहों का खंडन किया और स्पष्ट किया कि सरकार की प्रतिक्रिया के बारे में जो भी कहा जा रहा है, उसमें सच्चाई का अंश बहुत कम है। यह घटना भारत की विदेश नीति, कूटनीतिक संचार और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों की जटिलताओं को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण केस स्टडी प्रस्तुत करती है।
यह ब्लॉग पोस्ट UPSC परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए इस मुद्दे की गहराई से पड़ताल करेगा। हम समझेंगे कि ये टैरिफ क्या थे, इनसे भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता था, MEA ने क्यों हस्तक्षेप किया, और इस पूरी घटना से हम कूटनीति, संचार और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बारे में क्या सीखते हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ: एक पृष्ठभूमि (Donald Trump’s Tariffs: A Background)
डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति कार्यकाल की एक प्रमुख विशेषता उनकी “अमेरिका फर्स्ट” (America First) नीति थी, जिसके तहत उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों को अमेरिकी हितों के लिए पुनर्मूल्यांकन करने और अमेरिकी उद्योगों, विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए टैरिफ का एक शक्तिशाली हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।
- लक्ष्य: ट्रम्प प्रशासन का मुख्य तर्क यह था कि कई देश, विशेष रूप से चीन, अमेरिका के साथ व्यापार में अनुचित लाभ उठा रहे थे। उनके अनुसार, ये देश अमेरिकी उत्पादों पर उच्च टैरिफ लगाते थे, जबकि अमेरिकी बाजार में अपने उत्पादों को कम शुल्क पर बेचते थे। इसके अलावा, बौद्धिक संपदा की चोरी और जबरन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जैसे मुद्दों को भी उठाया गया था।
- कार्यवाही: इन चिंताओं के जवाब में, ट्रम्प प्रशासन ने वैश्विक स्तर पर स्टील, एल्यूमीनियम और अन्य वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा दिया। इसमें यूरोपीय संघ (EU), कनाडा, मेक्सिको और चीन जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदार शामिल थे।
- प्रभाव: इन टैरिफों का वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। इसने देशों के बीच व्यापार तनाव को बढ़ाया और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए। कई देशों ने जवाबी कार्रवाई के तौर पर अमेरिकी उत्पादों पर अपने टैरिफ बढ़ा दिए, जिससे एक “व्यापार युद्ध” (Trade War) की स्थिति उत्पन्न हो गई।
UPSC प्रासंगिकता: अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR), अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, भू-अर्थशास्त्र (Geoeconomics), वैश्विक संगठन (जैसे WTO) और भारत की विदेश नीति के दृष्टिकोण से ट्रम्प की टैरिफ नीतियां एक महत्वपूर्ण विषय रही हैं।
भारत पर संभावित प्रभाव और अटकलों का जन्म (Potential Impact on India and Birth of Speculation)
हालांकि अमेरिका के टैरिफ का सीधा निशाना मुख्य रूप से चीन और कुछ अन्य विकसित देश थे, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था के आपस में जुड़े होने के कारण भारत भी इससे अछूता नहीं रहा।
- प्रत्यक्ष प्रभाव: भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाली कुछ वस्तुएं, जैसे स्टील, एल्यूमीनियम और कुछ ऑटोमोटिव पार्ट्स, सीधे तौर पर इन शुल्कों की चपेट में आ सकती थीं। इससे भारतीय निर्यातकों को नुकसान होने की आशंका थी।
- अप्रत्यक्ष प्रभाव:
- आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव: यदि अमेरिका किसी देश से आयात कम करता, तो वह संभावित रूप से भारत जैसे अन्य देशों से उसी वस्तु की खरीद बढ़ा सकता था। यह भारत के लिए अवसर भी हो सकता था, लेकिन साथ ही यह वैश्विक अनिश्चितता भी पैदा करता था।
- वैश्विक मंदी का डर: व्यापार युद्धों से वैश्विक आर्थिक विकास धीमा होने का खतरा था, जिसका अप्रत्यक्ष असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता था।
- भू-राजनीतिक दबाव: अमेरिका के प्रमुख साझेदार देशों पर टैरिफ लगाने से एक ऐसा माहौल बन रहा था जहाँ भारत जैसे देशों को भी अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को लेकर सतर्क रहना पड़ रहा था।
इन जटिलताओं और अनिश्चितताओं के बीच, मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भारत की प्रतिक्रिया को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जाने लगीं। कुछ रिपोर्टों में भारत के संभावित जवाबी शुल्कों की बात की गई, कुछ में भारत द्वारा किसी भी कार्रवाई से बचने की रणनीति का उल्लेख था, तो कुछ में भारत के अमेरिका के साथ कूटनीतिक वार्ताओं के अलग-अलग परिदृश्यों का वर्णन किया गया। ये “अफवाहें” या “गलत सूचनाएं” इसलिए भी प्रभावी हो गईं क्योंकि यह एक संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक मुद्दा था, जिस पर सरकार का आधिकारिक रुख तुरंत स्पष्ट नहीं था।
“जब अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अनिश्चितता का माहौल होता है, तो जानकारी का अभाव या अधूरी जानकारी, गलत सूचनाओं के फैलने का उपजाऊ मैदान बन जाती है। ऐसे में, मीडिया और जनता दोनों ही संभावित परिणामों की अटकलें लगाने लगते हैं।”
विदेश मंत्रालय का हस्तक्षेप: “Disinformation being spread” (Ministry of External Affairs’ Intervention: “Disinformation being spread”)
जब अटकलों का बाजार गर्म होने लगा और यह लगने लगा कि ये अनौपचारिक चर्चाएं जनमत को प्रभावित कर सकती हैं या गलत नीतिगत संदेश दे सकती हैं, तब विदेश मंत्रालय (MEA) ने सक्रिय भूमिका निभाई। MEA का यह कदम भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण पहलू को दर्शाता है: ‘रणनीतिक संचार’ (Strategic Communication)।
- MEA की भूमिका: विदेश मंत्रालय भारत की विदेश नीति का मुख्य प्रहरी और संचारक है। यह न केवल अन्य देशों के साथ संबंध बनाता है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के रुख को भी स्पष्ट करता है। जब भी भारत की विदेश नीति या अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित महत्वपूर्ण मामले चर्चा में आते हैं, तो MEA का आधिकारिक बयान ही अंतिम सत्य माना जाता है।
- “Disinformation being spread” का अर्थ: MEA के इस कथन का सीधा मतलब था कि भारत की प्रतिक्रिया या भारत के रुख के बारे में जो भी बातें सार्वजनिक रूप से फैलाई जा रही हैं, वे तथ्यात्मक रूप से गलत हैं या भ्रामक हैं। यह संकेत था कि सरकार की ओर से कोई आधिकारिक घोषणा या नीतिगत निर्णय अभी तक नहीं लिया गया है, जो इन अफवाहों की पुष्टि करता हो।
- शाब्दिक अर्थ से परे: इस एक छोटे से वाक्य के पीछे कई गहरे अर्थ छिपे थे:
- स्पष्टता का संदेश: यह आम जनता, मीडिया, व्यापारिक समुदायों और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों को एक स्पष्ट संदेश था कि सरकार की ओर से आई जानकारी पर ही भरोसा करें।
- अफवाहों पर अंकुश: यह उन अटकलों को तुरंत रोकने का एक प्रयास था जो अनावश्यक चिंता या गलतफहमी पैदा कर सकती थीं।
- सक्रिय कूटनीति: यह दर्शाता है कि भारत सरकार केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं है, बल्कि अपनी छवि और सूचना प्रवाह को प्रबंधित करने के लिए सक्रिय कदम भी उठाती है।
- आत्मविश्वास का प्रदर्शन: यह सरकार के आत्मविश्वास को भी दर्शाता है कि वह अनिश्चितता के समय में भी अपने संचार को नियंत्रित कर सकती है।
UPSC प्रासंगिकता: सरकारी संचार, कूटनीतिक प्रोटोकॉल, सूचना युद्ध (Information Warfare) और राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से MEA का यह कदम अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह बताता है कि कैसे सरकारें अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को मजबूत करने और गलत सूचनाओं का मुकाबला करने के लिए अपने संचार साधनों का उपयोग करती हैं।
भारत की प्रतिक्रिया: अटकलों से हकीकत तक (India’s Response: From Speculation to Reality)
MEA द्वारा अफवाहों का खंडन करने के बाद, वास्तविक कूटनीतिक और व्यापारिक प्रतिक्रिया को समझना आवश्यक हो जाता है। भारत की प्रतिक्रिया आमतौर पर बहुआयामी और रणनीतिक होती है, जिसमें कई कारकों को ध्यान में रखा जाता है:
- आर्थिक प्रभाव का आकलन: सबसे पहले, भारत सरकार प्रत्येक टैरिफ का अपने निर्यात, आयात और समग्र अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले विशिष्ट प्रभाव का गहन विश्लेषण करती है। इसमें यह देखा जाता है कि कौन से क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
- WTO का मंच: भारत अक्सर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित विवादों को सुलझाने के लिए विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे बहुपक्षीय मंचों का उपयोग करता है। यदि टैरिफ WTO के नियमों का उल्लंघन करते पाए जाते हैं, तो भारत उस मंच पर अपना मामला उठा सकता है।
- द्विपक्षीय वार्ता: टैरिफ लगाने वाले देश के साथ सीधे कूटनीतिक और व्यापारिक स्तर पर बातचीत करना भी एक महत्वपूर्ण कदम होता है। इसमें उन विशिष्ट चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया जाता है जिनके कारण टैरिफ लगाए गए, साथ ही भारत अपने निर्यातकों के हितों की रक्षा के लिए भी बातचीत करता है।
- जवाबी उपाय (Retaliatory Measures): सबसे अंतिम विकल्प के रूप में, यदि अन्य सभी प्रयास विफल हो जाते हैं और भारत के हित गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं, तो भारत भी जवाबी शुल्क लगा सकता है। हालांकि, यह कदम सोच-समझकर उठाया जाता है क्योंकि यह व्यापार युद्ध को और बढ़ा सकता है।
- रणनीतिक चुप्पी: कुछ संवेदनशील मामलों में, सरकार रणनीतिक रूप से चुप्पी साधने या न्यूनतम जानकारी जारी करने का विकल्प चुन सकती है। यह तब किया जाता है जब सार्वजनिक चर्चा से स्थिति बिगड़ सकती है।
इस विशिष्ट मामले में: MEA के खंडन से यह स्पष्ट था कि भारत उस समय तक कोई बड़ा, सार्वजनिक जवाबी कदम उठाने की घोषणा नहीं कर रहा था। इसका मतलब यह हो सकता है कि भारत द्विपक्षीय वार्ताओं या WTO जैसे मंचों पर मामले को सुलझाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा था, या प्रभाव इतना कम था कि तत्काल प्रतिक्रिया की आवश्यकता महसूस नहीं की गई।
UPSC प्रासंगिकता: यह खंड भारत की विदेश व्यापार नीति, कूटनीति के साधनों, अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों की भूमिका और भारत के वैश्विक व्यापारिक संबंधों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
सफलता और विफलता के मानदंड: कूटनीति का मूल्यांकन (Criteria for Success and Failure: Evaluating Diplomacy)
किसी भी कूटनीतिक कार्रवाई या संचार की सफलता को विभिन्न पैमानों पर मापा जा सकता है। इस मामले में, MEA की कार्रवाई को दो मुख्य तरीकों से देखा जा सकता है:
सफलता के पहलू:
- अफवाहों पर अंकुश: MEA अपने मुख्य उद्देश्य में सफल रहा – उसने फैलाई जा रही गलत सूचनाओं को प्रभावी ढंग से रोका।
- स्पष्टता प्रदान करना: इसने एक अनिश्चित समय में सरकारी रुख के बारे में स्पष्टता प्रदान की।
- घरेलू विश्वसनीयता: यह दिखाता है कि सरकार अपने संचार को गंभीरता से लेती है, जिससे घरेलू स्तर पर विश्वसनीयता बढ़ती है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा: यह भारत को एक जिम्मेदार और सचेत अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी के रूप में प्रस्तुत करता है, जो तथ्यों पर आधारित संचार में विश्वास रखता है।
चुनौतियाँ और आगे की राह:
- अफवाहों की प्रकृति: सोशल मीडिया युग में, गलत सूचनाएं तेजी से फैलती हैं। MEA की प्रतिक्रिया के बावजूद, कुछ लोग अभी भी अफवाहों पर विश्वास कर सकते हैं।
- दीर्घकालिक प्रभाव: इस प्रतिक्रिया का दीर्घकालिक प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत अमेरिकी टैरिफ के मुद्दों को कूटनीतिक रूप से कैसे संभालता है।
- पारदर्शिता बनाम गोपनीयता: कूटनीति में अक्सर संतुलन बनाना पड़ता है – जनता को सूचित रखने और रणनीतिक जानकारी को गोपनीय रखने के बीच।
- निरंतर निगरानी: भारत को वैश्विक व्यापारिक और भू-राजनीतिक रुझानों की निरंतर निगरानी करनी होगी और आवश्यकतानुसार अपनी प्रतिक्रियाओं को अनुकूलित करना होगा।
UPSC प्रासंगिकता: यह भाग कूटनीति के मूल्यांकन, सार्वजनिक नीति के विश्लेषण और रणनीतिक संचार के महत्व को समझने में मदद करता है।
निष्कर्ष: सूचना युद्ध में सत्य की शक्ति (Conclusion: The Power of Truth in Information Warfare)
डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ पर भारत की प्रतिक्रिया को लेकर फैलाई गई गलत सूचनाओं को MEA द्वारा खंडित करने का मामला वैश्विक कूटनीति और संचार के आधुनिक युग का एक सूक्ष्म अध्ययन है। यह घटना हमें सिखाती है कि:
- सूचना की भूमिका: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सूचना एक अत्यंत शक्तिशाली हथियार है। गलत सूचनाएं देशों के बीच गलतफहमी, तनाव और अविश्वास पैदा कर सकती हैं।
- सरकार की जिम्मेदारी: सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने नागरिकों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सटीक और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करें, विशेषकर संवेदनशील मुद्दों पर।
- रणनीतिक संचार का महत्व: एक प्रभावी विदेश नीति के लिए केवल ठोस कूटनीतिक कार्य ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि अपने रुख को स्पष्ट रूप से संप्रेषित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
- तथ्यों की जीत: अंततः, तथ्य और सत्य ही सूचना युद्ध में विजयी होते हैं। MEA का हस्तक्षेप इस बात का प्रमाण है कि सही समय पर तथ्यात्मक स्पष्टीकरण, भ्रामक अटकलों पर भारी पड़ सकता है।
UPSC के उम्मीदवार के रूप में, आपको न केवल अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं के तथ्यों को जानना चाहिए, बल्कि यह भी समझना चाहिए कि सरकारें सूचनाओं का प्रबंधन कैसे करती हैं, कूटनीतिक संदेश कैसे प्रेषित करती हैं, और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने हितों की रक्षा के लिए किन रणनीतियों का उपयोग करती हैं। यह घटना भारत की विदेश नीति की जटिलताओं को दर्शाती है, जहां आर्थिक, राजनीतिक और संचार संबंधी रणनीतियाँ आपस में गुंथी हुई हैं।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: हाल के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विवादों के संदर्भ में, “टैरिफ” (Tariff) शब्द का सबसे उपयुक्त अर्थ क्या है?
A. किसी देश द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर।
B. किसी देश द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर।
C. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुगम बनाने के लिए सरकारी सब्सिडी।
D. देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौतों का उल्लंघन।
उत्तर: A
व्याख्या: टैरिफ एक प्रकार का कर है जो आयातित वस्तुओं पर लगाया जाता है, जिसका उद्देश्य घरेलू उद्योगों की रक्षा करना या राजस्व उत्पन्न करना होता है। - प्रश्न 2: “अमेरिका फर्स्ट” (America First) नीति किस अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यकाल से प्रमुखता से जुड़ी है?
A. बराक ओबामा
B. डोनाल्ड ट्रम्प
C. जॉर्ज डब्लू. बुश
D. बिल क्लिंटन
उत्तर: B
व्याख्या: डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत संरक्षणवादी व्यापार नीतियों और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के पुनर्मूल्यांकन पर जोर दिया था। - प्रश्न 3: विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा “Disinformation being spread” का खंडन करने का प्राथमिक उद्देश्य क्या था?
A. विदेशी सरकारों के साथ बातचीत शुरू करना।
B. भारत की निर्यात नीतियों की घोषणा करना।
C. भारत की प्रतिक्रिया के बारे में फैली गलत सूचनाओं को रोकना।
D. विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शिकायत दर्ज करना।
उत्तर: C
व्याख्या: MEA का मुख्य उद्देश्य भारत की प्रतिक्रिया के संबंध में जनता के बीच फैलाई जा रही भ्रामक जानकारी या अटकलों को स्पष्ट करना और खंडित करना था। - प्रश्न 4: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में “जवाबी उपाय” (Retaliatory Measures) का क्या अर्थ है?
A. किसी देश द्वारा मुक्त व्यापार समझौते का पालन करना।
B. एक देश द्वारा दूसरे देश द्वारा लगाए गए टैरिफ या व्यापार बाधाओं के जवाब में उसी तरह की कार्रवाई करना।
C. अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मध्यस्थता के लिए अनुरोध करना।
D. किसी देश के उत्पादों का बहिष्कार करना।
उत्तर: B
व्याख्या: जवाबी उपाय एक ऐसी कूटनीतिक और आर्थिक रणनीति है जिसमें एक देश दूसरे देश की व्यापारिक नीतियों के विरुद्ध उसी तरह की नीतियां अपनाता है। - प्रश्न 5: भारत की विदेश नीति में “रणनीतिक संचार” (Strategic Communication) का क्या महत्व है?
A. केवल घरेलू समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना।
B. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के हितों, रुख और नीतियों को स्पष्ट, सुसंगत और प्रभावी ढंग से संप्रेषित करना।
C. अन्य देशों से गुप्त सूचनाएं प्राप्त करना।
D. केवल आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
उत्तर: B
व्याख्या: रणनीतिक संचार का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि को सकारात्मक बनाए रखना और भारत के रुख को प्रभावी ढंग से पहुंचाना है। - प्रश्न 6: विश्व व्यापार संगठन (WTO) का प्राथमिक कार्य क्या है?
A. सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करना।
B. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए नियमों का निर्धारण और उन पर अमल कराना।
C. देशों के बीच व्यापार युद्धों को बढ़ावा देना।
D. केवल विकसित देशों के व्यापारिक हितों की रक्षा करना।
उत्तर: B
व्याख्या: WTO वैश्विक स्तर पर व्यापार नियमों को विनियमित करने और सदस्य देशों के बीच व्यापार विवादों को सुलझाने के लिए एक मंच प्रदान करता है। - प्रश्न 7: भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा किसी मुद्दे पर “स्पष्टीकरण” जारी करने का क्या प्रभाव हो सकता है?
A. अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अस्थिरता बढ़ाना।
B. घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों के बीच अनिश्चितता बढ़ाना।
C. अफवाहों को शांत करना और तथ्यात्मक जानकारी प्रदान करना।
D. केवल मीडिया की नकारात्मक रिपोर्टिंग को बढ़ावा देना।
उत्तर: C
व्याख्या: सरकारी स्पष्टीकरण का उद्देश्य अक्सर अनिश्चितता को दूर करना और जनता को सही जानकारी देना होता है। - प्रश्न 8: वैश्वीकरण (Globalization) के संदर्भ में, एक देश की आर्थिक नीतियां दूसरे देशों को कैसे प्रभावित कर सकती हैं?
A. केवल सीधे व्यापारिक संबंधों के माध्यम से।
B. आपूर्ति श्रृंखलाओं, निवेश प्रवाह और बाजार की भावनाओं के माध्यम से।
C. केवल द्विपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से।
D. केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से।
उत्तर: B
व्याख्या: वैश्विक अर्थव्यवस्था की परस्पर संबद्धता के कारण, एक देश की नीतियां आपूर्ति श्रृंखलाओं, निवेश और बाजार की धारणाओं को प्रभावित कर सकती हैं। - प्रश्न 9: “सूचना युद्ध” (Information Warfare) का सबसे सटीक वर्णन क्या है?
A. केवल सैन्य अभियानों का वर्णन।
B. किसी लक्षित दर्शकों को प्रभावित करने, धोखा देने या हेरफेर करने के लिए सूचना का उपयोग।
C. केवल सरकारी संचार का एक रूप।
D. केवल तकनीकी या साइबर हमलों का वर्णन।
उत्तर: B
व्याख्या: सूचना युद्ध में किसी भी माध्यम से सूचना का उपयोग करके विरोधियों को कमजोर या प्रभावित करना शामिल है। - प्रश्न 10: भारत की विदेश व्यापार नीति में, सरकार कौन से कारक भारत के संभावित निर्यात पर टैरिफ के प्रभाव का आकलन करते समय ध्यान में रखती है?
A. केवल निर्यात किए गए उत्पाद की मात्रा।
B. निर्यात का मूल्य, संबंधित क्षेत्र में रोजगार, अन्य देशों के साथ व्यापार संतुलन, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर प्रभाव।
C. केवल निर्यातकों की व्यक्तिगत लाभप्रदता।
D. केवल निर्यात के लिए उपयोग की जाने वाली शिपिंग विधियाँ।
उत्तर: B
व्याख्या: सरकार निर्यात पर टैरिफ के प्रभाव का आकलन करते समय व्यापक आर्थिक और भू-राजनीतिक कारकों पर विचार करती है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में संरक्षणवादी नीतियों (जैसे टैरिफ) के बढ़ते चलन को देखते हुए, भारत की विदेश व्यापार नीति के समक्ष क्या प्रमुख चुनौतियाँ हैं? इन चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत किन कूटनीतिक और आर्थिक रणनीतियों का उपयोग कर सकता है? (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न 2: “रणनीतिक संचार” (Strategic Communication) भारत की विदेश नीति का एक अभिन्न अंग है। हाल के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विवादों के संदर्भ में, विदेश मंत्रालय द्वारा “गलत सूचनाओं” का खंडन करने के महत्व का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (लगभग 150 शब्द)
- प्रश्न 3: वैश्विक अनिश्चितता के दौर में, सूचना का प्रबंधन (Information Management) एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक उपकरण बन गया है। भारत द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को स्पष्ट करने और गलत सूचनाओं का खंडन करने के लिए अपनाई जाने वाली विभिन्न विधियों की विवेचना करें। (लगभग 200 शब्द)