Decoding US Tariffs & Trump’s Criticism: India’s 5-Point Message to Washington
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल के दिनों में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत पर लगाए गए 25% टैरिफ (शुल्क) और भारत की अर्थव्यवस्था को ‘मृत’ (dead economy) बताने वाले कटाक्षों ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक गलियारों में हलचल मचा दी है। ऐसे समय में, यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि इन कठोर शब्दों और शुल्कों के पीछे अमेरिका की मंशा क्या है, और भारत इसका जवाब किस प्रकार दे रहा है। यह स्थिति न केवल द्विपक्षीय व्यापार संबंधों को प्रभावित करती है, बल्कि भू-राजनीतिक परिदृश्य को भी जटिल बनाती है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह विषय अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR), अर्थव्यवस्था, व्यापार, और भू-राजनीतिक विश्लेषण जैसे GS पेपर्स के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। आइए, इस पूरे मुद्दे को गहराई से समझते हुए भारत के पांच प्रमुख संदेशों पर प्रकाश डालें, जो इन अमेरिकी कदमों और टिप्पणियों के जवाब में हैं।
पृष्ठभूमि: अमेरिका-भारत व्यापार संबंध में उतार-चढ़ाव
अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक संबंध हमेशा से उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। जहाँ दोनों देश एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण बाजार हैं, वहीं व्यापार घाटा, बाजार पहुंच, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), और टैरिफ जैसे मुद्दे अक्सर तनाव का कारण बनते रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन, विशेष रूप से ट्रम्प प्रशासन, ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति पर जोर देता रहा है, जिसका अर्थ है कि वह अमेरिकी हितों को सर्वोपरि रखता है और अन्य देशों के साथ व्यापार समझौतों को अपने देश के लिए अधिक अनुकूल बनाने का प्रयास करता है।
हालिया टैरिफ वृद्धि और ‘मृत अर्थव्यवस्था’ जैसी टिप्पणियाँ इसी व्यापक रणनीति का हिस्सा मानी जा रही हैं। अमेरिकी प्रशासन का तर्क है कि भारत उन पर अनुचित शुल्क लगाता है, जिससे अमेरिकी उत्पादों की बाजार पहुंच बाधित होती है। वहीं, भारत अपने घरेलू उद्योगों की सुरक्षा और विकास को प्राथमिकता देता है, जिसके लिए वह कुछ आयातित वस्तुओं पर शुल्क लगाना आवश्यक मानता है।
डोनाल्ड ट्रम्प का 25% टैरिफ और ‘मृत अर्थव्यवस्था’ की टिप्पणी
डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा 25% टैरिफ का उल्लेख संभवतः किसी विशिष्ट उत्पाद या उत्पादों के समूह पर लगाए गए शुल्कों के संदर्भ में है, या यह एक व्यापक नीतिगत संकेत है। हालांकि, “dead economy” (मृत अर्थव्यवस्था) जैसी टिप्पणी अधिक गंभीर और चिंताजनक है। यह भारत की आर्थिक स्थिति, उसकी विकास दर, और वैश्विक व्यापार में उसकी भूमिका पर एक नकारात्मक और निराशावादी दृष्टिकोण को दर्शाता है। ऐसे बयानों के कई निहितार्थ हो सकते हैं:
- बातचीत में दबाव बनाना: इस तरह की तीखी भाषा का उपयोग अक्सर बातचीत में दूसरे पक्ष पर दबाव बनाने के लिए किया जाता है, ताकि वे अपनी नीतियों में रियायतें दें।
- घरेलू राजनीति: अमेरिकी प्रशासन अपनी घरेलू राजनीति में भी मजबूत रुख दिखाने के लिए ऐसे बयान दे सकता है।
- भू-राजनीतिक संदेश: यह अन्य देशों को भी एक संकेत हो सकता है कि अमेरिका अपनी व्यापार नीतियों के प्रति कितना कड़ा रुख अपना रहा है।
यह महत्वपूर्ण है कि हम इस तरह की टिप्पणियों को केवल सतही बयान न समझें, बल्कि उनके पीछे छिपे रणनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों को समझने का प्रयास करें।
भारत का जवाबी संदेश: 5 प्रमुख बिंदु
इन अमेरिकी चालों और टिप्पणियों के जवाब में, भारत ने कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर कई संदेश दिए हैं। ये संदेश न केवल अमेरिका को, बल्कि वैश्विक समुदाय को भी भारत के रुख और रणनीतिक सोच को दर्शाते हैं। यहाँ भारत के पाँच प्रमुख संदेशों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत है:
1. ‘साझा विकास’ (Shared Growth) और ‘पारस्परिक सम्मान’ (Mutual Respect) पर जोर
मूल संदेश: भारत इस बात पर जोर दे रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केवल शुल्कों या दबाव की रणनीति पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि साझा विकास और पारस्परिक सम्मान पर आधारित होना चाहिए। भारत का मानना है कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध ऐसे होने चाहिए जो दोनों अर्थव्यवस्थाओं के लिए लाभकारी हों।
व्याख्या:
- साझा विकास: भारत यह संदेश दे रहा है कि वह अमेरिका के साथ एक ऐसे व्यापारिक ढांचे का हिस्सा बनना चाहता है जो दोनों देशों के आर्थिक विकास को गति दे। अमेरिकी उत्पादों के लिए भारतीय बाजार में अवसर हैं, लेकिन उन अवसरों का लाभ उठाने के लिए अमेरिकी कंपनियों को भी भारतीय नियमों और बाजार की वास्तविकताओं का सम्मान करना होगा।
- पारस्परिक सम्मान: ‘मृत अर्थव्यवस्था’ जैसी टिप्पणियाँ इस पारस्परिक सम्मान की भावना के विपरीत हैं। भारत यह स्पष्ट कर रहा है कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को इस तरह से कम आंकना या उसका उपहास करना कूटनीतिक रूप से अनुचित है। भारत अपनी संप्रभुता और आर्थिक नीतियों के प्रति सम्मान की अपेक्षा रखता है।
- उदाहरण: भारत का ‘मेक इन इंडिया’ (Make in India) या ‘आत्मनिर्भर भारत’ (Atmanirbhar Bharat) जैसे अभियान देश के भीतर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हैं, न कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बाधित करने के लिए। ये भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता की यात्रा का हिस्सा हैं, जिसमें वह वैश्विक भागीदारी के लिए भी खुला है।
UPSC प्रासंगिकता: अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR) में ‘सॉफ्ट पावर’, ‘कूटनीतिक संवाद’, ‘बाजार पहुंच’ (Market Access), और ‘वैश्विक साझेदारी’ (Global Partnership) जैसे अवधारणाओं को समझने में सहायक।
2. ‘निर्धारित व्यापार नीतियाँ’ (Calculated Trade Policies) और ‘राष्ट्रीय हित’ (National Interest) की रक्षा
मूल संदेश: भारत यह स्पष्ट कर रहा है कि उसकी व्यापार नीतियाँ बिना सोचे-समझे या पक्षपातपूर्ण तरीके से नहीं बनाई गई हैं, बल्कि ये राष्ट्रीय हितों की रक्षा और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सावधानीपूर्वक निर्धारित की गई हैं।
व्याख्या:
- राष्ट्रीय हित सर्वोपरि: भारत किसी भी अन्य देश की तरह, अपने नागरिकों के आर्थिक कल्याण और देश के समग्र आर्थिक विकास को प्राथमिकता देता है। इसके लिए, आयात पर शुल्क लगाना एक सामान्य और स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय अभ्यास है, खासकर जब घरेलू उद्योगों को सुरक्षा की आवश्यकता हो या जब व्यापार असंतुलन को दूर करना हो।
- संतुलित दृष्टिकोण: भारत अमेरिका से आने वाले उत्पादों पर जो भी शुल्क लगाता है, वह अक्सर उन शुल्कों की प्रतिक्रिया के रूप में होता है जो अमेरिका भारत पर लगाता है, या फिर वैश्विक स्तर पर लागू होने वाले शुल्कों के अनुरूप होता है। यह कोई मनमानी कार्रवाई नहीं है।
- उदाहरण: भारत ने कुछ अमेरिकी इस्पात और एल्युमीनियम उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगाए थे, जो अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने के बाद उठाए गए कदम थे। यह ‘राष्ट्रीय हित’ की रक्षा का एक स्पष्ट उदाहरण है।
UPSC प्रासंगिकता: अर्थव्यवस्था (अर्थशास्त्र) के संदर्भ में ‘व्यापार संरक्षणवाद’ (Trade Protectionism), ‘प्रशुल्क’ (Tariffs), ‘गैर-प्रशुल्क बाधाएं’ (Non-Tariff Barriers), ‘व्यापार घाटा’ (Trade Deficit), और ‘जवाबी शुल्क’ (Retaliatory Tariffs) की अवधारणाएं। GS Paper III (अर्थव्यवस्था) के लिए महत्वपूर्ण।
3. ‘आर्थिक लचीलापन’ (Economic Resilience) और ‘विविधीकरण’ (Diversification) की क्षमता
मूल संदेश: भारत यह संदेश दे रहा है कि वह एक ‘मृत अर्थव्यवस्था’ नहीं है, बल्कि एक जीवंत और लचीली अर्थव्यवस्था है जिसमें चुनौतियों का सामना करने और अवसरों का लाभ उठाने की क्षमता है। इसके साथ ही, भारत अपनी व्यापारिक साझेदारियों में विविधता लाने की ओर भी अग्रसर है।
व्याख्या:
- लचीलापन: भारत की अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही है, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि हो रही है, और सेवा क्षेत्र (Service Sector) तथा डिजिटल अर्थव्यवस्था (Digital Economy) में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। ‘मृत अर्थव्यवस्था’ जैसे लेबल भारत के वास्तविक आर्थिक प्रदर्शन को नहीं दर्शाते। भारत आंतरिक मांग (Domestic Demand) और नवाचार (Innovation) के माध्यम से इन बाहरी दबावों को झेलने में सक्षम है।
- विविधीकरण: भारत अब केवल कुछ देशों पर अपनी व्यापारिक निर्भरता को कम करने का प्रयास कर रहा है। अमेरिका के साथ व्यापार में किसी भी संभावित व्यवधान के प्रभाव को कम करने के लिए, भारत यूरोप, एशिया और अफ्रीका के अन्य देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को मजबूत कर रहा है। यह वैश्विक व्यापार में भारत की स्थिति को और अधिक मजबूत करता है।
- केस स्टडी: भारत का बढ़ता निर्यात, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स, आईटी सेवाओं और ऑटोमोबाइल पार्ट्स में, यह दर्शाता है कि भारतीय उद्योग प्रतिस्पर्धी और गतिशील हैं।
UPSC प्रासंगिकता: अर्थव्यवस्था (अर्थशास्त्र) में ‘आर्थिक विकास’ (Economic Growth), ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (GDP), ‘सेवा क्षेत्र’ (Service Sector), ‘आंतरिक मांग’ (Domestic Demand), ‘निर्यात’ (Exports), ‘आयात’ (Imports), और ‘आर्थिक विविधीकरण’ (Economic Diversification) की अवधारणाएं।
4. ‘नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था’ (Rules-Based International Order) का समर्थन
मूल संदेश: भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए एक निष्पक्ष, पारदर्शी और नियम-आधारित व्यवस्था का समर्थन करता है, जैसा कि विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा स्थापित किया गया है। भारत चाहता है कि व्यापारिक विवादों का समाधान बातचीत और स्थापित नियमों के माध्यम से हो, न कि एकतरफा शुल्कों या धमकियों से।
व्याख्या:
- WTO की भूमिका: भारत अक्सर विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे बहुपक्षीय मंचों का उपयोग करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यापार नीतियाँ वैश्विक नियमों के अनुरूप हों। जब कोई देश एकतरफा शुल्कों को लागू करता है, तो यह नियम-आधारित व्यवस्था को कमजोर करता है।
- साक्ष्य-आधारित निर्णय: भारत का रुख यह है कि व्यापारिक विवादों को तथ्यों और स्थापित मानदंडों के आधार पर हल किया जाना चाहिए। ‘मृत अर्थव्यवस्था’ जैसे अमूर्त आरोप इन मानदंडों में फिट नहीं बैठते।
- वैश्विक सहयोग: इस संदेश के माध्यम से, भारत वैश्विक समुदाय को यह भी याद दिला रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और स्थापित संधियाँ वैश्विक व्यापार की स्थिरता के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं।
UPSC प्रासंगिकता: अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR) में ‘बहुपक्षवाद’ (Multilateralism), ‘विश्व व्यापार संगठन’ (WTO), ‘अंतर्राष्ट्रीय कानून’ (International Law), ‘व्यापार कूटनीति’ (Trade Diplomacy), और ‘संरक्षणवाद’ (Protectionism) के विरोध में ‘मुक्त व्यापार’ (Free Trade) की वकालत।
5. ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) और ‘दृढ़ कूटनीति’ (Firm Diplomacy)
मूल संदेश: भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और वह बाहरी दबावों के आगे आसानी से झुकने वाला नहीं है। भारत कूटनीति के माध्यम से अपने हितों की रक्षा करेगा, लेकिन जरूरत पड़ने पर वह अपनी रक्षात्मक नीतियों को बनाए रखने से भी नहीं हिचकिचाएगा।
व्याख्या:
- दृढ़ रुख: ट्रम्प प्रशासन के आक्रामक व्यापारिक रुख के बावजूद, भारत ने अपने प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के साथ संबंधों को संतुलित करने का प्रयास किया है। वह अमेरिका के साथ अपने द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने के लिए तैयार है, लेकिन केवल तभी जब यह उसके अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप हो।
- लचीली कूटनीति: भारत की विदेश नीति हमेशा से ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ पर आधारित रही है। इसका अर्थ है कि भारत किसी भी एक गुट या शक्ति के साथ पूरी तरह से नहीं जुड़ता, बल्कि अपने हितों के अनुसार स्वतंत्र निर्णय लेता है। यह नीति व्यापारिक वार्ताओं में भी झलकती है।
- संवाद का मार्ग खुला: भारत ने हमेशा बातचीत का मार्ग खुला रखा है। अमेरिका के साथ विभिन्न स्तरों पर संवाद जारी है, ताकि गलतफहमी को दूर किया जा सके और एक सहयोगात्मक समाधान निकाला जा सके। हालाँकि, इस संवाद में भारत का रुख अडिग है।
UPSC प्रासंगिकता: अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR) में ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy), ‘गुटनिरपेक्षता’ (Non-Alignment) का आधुनिक रूप, ‘सक्रिय विदेश नीति’ (Proactive Foreign Policy), और ‘कूटनीतिक वार्ता’ (Diplomatic Negotiations) की रणनीतियाँ।
निष्कर्ष: एक संतुलनकारी कूटनीति
डोनाल्ड ट्रम्प के 25% टैरिफ और ‘मृत अर्थव्यवस्था’ जैसी तीखी टिप्पणियों के जवाब में भारत का रुख स्पष्ट रूप से एक ‘संतुलनकारी कूटनीति’ (Balancing Diplomacy) का प्रदर्शन है। भारत न तो अनावश्यक टकराव चाहता है, और न ही वह अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता करने को तैयार है। भारत यह संदेश दे रहा है कि वह एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति है, जिसकी अपनी विशिष्ट नीतियाँ और सिद्धांत हैं।
UPSC उम्मीदवारों के लिए, इस घटना का विश्लेषण करते समय केवल शुल्कों या आर्थिक आंकड़ों पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए। बल्कि, इसके पीछे की भू-राजनीतिक गतिशीलता, कूटनीतिक रणनीतियों, और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के व्यापक संदर्भ को समझना महत्वपूर्ण है। भारत का यह पांच-सूत्रीय संदेश न केवल अमेरिका को, बल्कि दुनिया भर के अन्य देशों को भी यह दर्शाता है कि भारत अपनी संप्रभुता, अपने आर्थिक विकास और अपने सिद्धांतों के प्रति कितना सचेत और दृढ़ है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: हालिया अंतर्राष्ट्रीय व्यापार चर्चाओं के संदर्भ में, ‘प्रशुल्क’ (Tariff) का सबसे सटीक अर्थ क्या है?
a) किसी देश द्वारा अपने निर्यात पर लगाया जाने वाला कर।
b) विदेशी सामानों पर आयात के समय लगाया जाने वाला कर।
c) घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी।
d) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने वाले नियमों का एक समूह।
उत्तर: b) विदेशी सामानों पर आयात के समय लगाया जाने वाला कर।
व्याख्या: प्रशुल्क (Tariff) एक प्रकार का कर होता है जो सरकार द्वारा आयातित वस्तुओं पर लगाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना और सरकारी राजस्व बढ़ाना होता है। - प्रश्न 2: ‘अमेरिका फर्स्ट’ (America First) नीति का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
a) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
b) अमेरिकी आर्थिक और औद्योगिक हितों को प्राथमिकता देना।
c) वैश्विक व्यापार को पूरी तरह से मुक्त करना।
d) विकासशील देशों को सहायता प्रदान करना।
उत्तर: b) अमेरिकी आर्थिक और औद्योगिक हितों को प्राथमिकता देना।
व्याख्या: ‘अमेरिका फर्स्ट’ एक विदेश और व्यापार नीति है जिसका उद्देश्य अमेरिकी अर्थव्यवस्था, श्रमिकों और उद्योगों के हितों को अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और सहयोग से ऊपर रखना है। - प्रश्न 3: भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ (Atmanirbhar Bharat) पहल का मुख्य लक्ष्य क्या है?
a) भारत को पूर्णतः आत्मनिर्भर बनाकर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से अलग करना।
b) घरेलू विनिर्माण, नवाचार और आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना।
c) केवल सेवा क्षेत्र के विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
d) विदेशी निवेश को पूरी तरह से प्रतिबंधित करना।
उत्तर: b) घरेलू विनिर्माण, नवाचार और आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना।
व्याख्या: आत्मनिर्भर भारत का उद्देश्य भारत को विभिन्न क्षेत्रों में अधिक आत्मनिर्भर बनाना है, जिसमें घरेलू उत्पादन, आयात प्रतिस्थापन और नवाचार को बढ़ावा देना शामिल है, न कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को पूरी तरह से बंद करना। - प्रश्न 4: विश्व व्यापार संगठन (WTO) के संदर्भ में, भारत निम्नलिखित में से किस पर जोर देता है?
a) एकतरफा व्यापार प्रतिबंधों का समर्थन।
b) नियम-आधारित और निष्पक्ष अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था।
c) केवल विकसित देशों के व्यापार हितों की सुरक्षा।
d) संरक्षणवादी नीतियों को बढ़ावा देना।
उत्तर: b) नियम-आधारित और निष्पक्ष अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था।
व्याख्या: भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) के माध्यम से एक निष्पक्ष, पारदर्शी और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली का समर्थन करता है, जो सभी सदस्य देशों के लिए समान अवसर प्रदान करे। - प्रश्न 5: ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) का भारतीय विदेश नीति के संदर्भ में क्या अर्थ है?
a) किसी एक शक्तिशाली देश के साथ पूरी तरह से गठबंधन करना।
b) अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र निर्णय लेना।
c) सभी अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से खुद को अलग करना।
d) केवल आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
उत्तर: b) अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र निर्णय लेना।
व्याख्या: रणनीतिक स्वायत्तता का अर्थ है कि भारत किसी भी बाहरी दबाव या गठबंधन से बंधे बिना, अपने राष्ट्रीय हितों, सुरक्षा और आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की क्षमता रखता है। - प्रश्न 6: यदि कोई देश अपने घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विदेशी उत्पादों पर उच्च प्रशुल्क लगाता है, तो इसे क्या कहा जाता है?
a) मुक्त व्यापार (Free Trade)।
b) संरक्षणवाद (Protectionism)।
c) आर्थिक वैश्वीकरण (Economic Globalization)।
d) बाह्यीकरण (Outsourcing)।
उत्तर: b) संरक्षणवाद (Protectionism)।
व्याख्या: संरक्षणवाद एक ऐसी आर्थिक नीति है जिसमें सरकार घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए आयात पर प्रतिबंध या टैरिफ लगाती है। - प्रश्न 7: भारत के ‘मेक इन इंडिया’ (Make in India) कार्यक्रम का संबंध किस क्षेत्र से है?
a) केवल सेवा क्षेत्र का विस्तार।
b) सूचना प्रौद्योगिकी (IT) का विकास।
c) विनिर्माण (Manufacturing) और उत्पादन को बढ़ावा देना।
d) कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण।
उत्तर: c) विनिर्माण (Manufacturing) और उत्पादन को बढ़ावा देना।
व्याख्या: ‘मेक इन इंडिया’ का मुख्य उद्देश्य भारत को विनिर्माण के लिए एक वैश्विक हब बनाना और देश में उत्पादन और रोजगार के अवसर बढ़ाना है। - प्रश्न 8: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में ‘व्यापार असंतुलन’ (Trade Imbalance) का क्या अर्थ है?
a) जब किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक हो।
b) जब किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक हो।
c) जब दो देशों के बीच व्यापार की मात्रा समान हो।
d) जब कोई देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भाग न ले।
उत्तर: b) जब किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक हो।
व्याख्या: व्यापार असंतुलन तब होता है जब एक देश अपने आयात पर जितना खर्च करता है, उससे कम मूल्य का निर्यात करता है, जिससे व्यापार घाटा (Trade Deficit) होता है। - प्रश्न 9: ‘सॉफ्ट पावर’ (Soft Power) की अवधारणा को निम्नलिखित में से किस द्वारा सबसे अच्छी तरह समझाया जा सकता है?
a) सैन्य शक्ति या आर्थिक दबाव का उपयोग।
b) सांस्कृतिक आकर्षण, राजनीतिक आदर्शों और विदेश नीतियों के माध्यम से प्रभाव डालना।
c) व्यापारिक प्रतिबंधों और शुल्कों का प्रयोग।
d) सीधे सैन्य हस्तक्षेप।
उत्तर: b) सांस्कृतिक आकर्षण, राजनीतिक आदर्शों और विदेश नीतियों के माध्यम से प्रभाव डालना।
व्याख्या: सॉफ्ट पावर किसी देश की वह क्षमता है जिससे वह जबरदस्ती या भुगतान के बजाय आकर्षण और अनुनय के माध्यम से दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करता है, जो उसकी संस्कृति, मूल्यों और नीतियों से उत्पन्न होता है। - प्रश्न 10: ‘जवाबी शुल्क’ (Retaliatory Tariffs) कब लगाए जाते हैं?
a) जब कोई देश अपने घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना चाहता है।
b) जब एक देश दूसरे देश द्वारा लगाए गए शुल्कों के जवाब में उन पर शुल्क लगाता है।
c) जब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने की आवश्यकता हो।
d) जब किसी देश को अपने निर्यात को बढ़ाना हो।
उत्तर: b) जब एक देश दूसरे देश द्वारा लगाए गए शुल्कों के जवाब में उन पर शुल्क लगाता है।
व्याख्या: जवाबी शुल्क तब लगाए जाते हैं जब एक देश दूसरे देश के व्यापार विरोधी उपायों, जैसे कि उच्च प्रशुल्क, के जवाब में उन्हीं या अन्य उत्पादों पर शुल्क लगाता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा भारत पर लगाए गए संभावित 25% टैरिफ और ‘मृत अर्थव्यवस्था’ जैसी टिप्पणियों का विश्लेषण करें। इस संदर्भ में, भारत द्वारा अमेरिका को दिए जा रहे पाँच प्रमुख संदेशों की विस्तार से विवेचना करें और यह बताएं कि ये संदेश भारत की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नीति और कूटनीति को कैसे आकार देते हैं। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 2: ‘राष्ट्रहित सर्वोपरि’ (National Interest First) की नीति के तहत, देश अपनी व्यापारिक नीतियाँ कैसे बनाते हैं? भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों के वर्तमान संदर्भ में, प्रशुल्क (Tariffs) और ‘मृत अर्थव्यवस्था’ जैसी शब्दावली के प्रयोग के पीछे छिपे आर्थिक और कूटनीतिक उद्देश्यों का विश्लेषण करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 3: भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) की अवधारणा का अर्थ समझाते हुए, यह विश्लेषण करें कि वर्तमान भू-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में, भारत अपनी व्यापारिक साझेदारियों को कैसे संतुलित कर रहा है। अमेरिका के साथ व्यापार तनाव के बावजूद, भारत के लचीलेपन और विविधीकरण की क्षमता के महत्व पर प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 4: नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था (Rules-Based International Order) के महत्व पर चर्चा करें। विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सिद्धांतों के आलोक में, उन तरीकों का वर्णन करें जिनसे एकतरफा प्रशुल्क (Unilateral Tariffs) जैसी कार्रवाइयाँ इस व्यवस्था को कमजोर कर सकती हैं, और भारत इस संदर्भ में क्या भूमिका निभा सकता है। (250 शब्द, 15 अंक)