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न्यायपालिका का ‘क्रिकेट स्टेडियम’ वाला बयान: बालाजी केस में स्टालिन सरकार की फटकार क्यों?

न्यायपालिका का ‘क्रिकेट स्टेडियम’ वाला बयान: बालाजी केस में स्टालिन सरकार की फटकार क्यों?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मामले में तमिलनाडु सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। यह फटकार तमिलनाडु के पूर्व मंत्री वी. सेंथिल बालाजी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनकी पेशी (production) से संबंधित थी। न्यायाधीशों ने कहा कि यदि अभियुक्तों की शारीरिक उपस्थिति सुनिश्चित करनी है, तो “आरोपियों की पेशी के लिए क्रिकेट स्टेडियम की जरूरत होगी”। इस टिप्पणी के साथ ही, अदालत ने राज्य सरकार के कामकाज और आरोपी को अदालत में पेश करने के तरीके पर गंभीर सवाल उठाए, जिसने न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संबंधों को फिर से चर्चा के केंद्र में ला दिया है। यह घटनाक्रम न केवल कानूनी बिरादरी, बल्कि देश के हर उस नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है जो शासन, न्याय प्रणाली और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांतों में रुचि रखता है।

न्यायपालिका की ‘क्रिकेट स्टेडियम’ टिप्पणी: संदर्भ और निहितार्थ

सुप्रीम कोर्ट की यह तीखी टिप्पणी तमिलनाडु के एक हाई-प्रोफाइल मामले से जुड़ी है, जिसमें राज्य के पूर्व मंत्री वी. सेंथिल बालाजी मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों का सामना कर रहे हैं। मामला तब गरमाया जब बालाजी को प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद, उन्हें मेडिकल कारणों से अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इस स्थिति में, उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही को आगे बढ़ाना और उन्हें अदालत में पेश करना एक जटिल मुद्दा बन गया।

अदालत ने विशेष रूप से इस बात पर चिंता व्यक्त की कि जिस तरह से अभियुक्तों को अदालत में पेश किया जा रहा है, वह अदालती प्रक्रियाओं की गरिमा और दक्षता पर सवाल उठाता है। “क्रिकेट स्टेडियम” वाली उपमा का प्रयोग इस बात को रेखांकित करने के लिए किया गया था कि अभियुक्त की सुरक्षित और व्यवस्थित पेशी सुनिश्चित करने के लिए कितनी अधिक व्यवस्थाओं की आवश्यकता पड़ती है, जिससे यह आभास होता है कि प्रक्रियाएं सामान्य नहीं हैं। यह टिप्पणी सिर्फ एक व्यक्ति की पेशी के बारे में नहीं थी, बल्कि यह राज्य की मशीनरी द्वारा कानूनी प्रक्रियाओं के पालन में बरती जाने वाली कथित लापरवाही या अक्षमता पर एक व्यापक चिंता थी।

सुप्रीम कोर्ट की फटकार के पीछे की मुख्य चिंताएँ:

  • कानूनी प्रक्रियाओं का पालन: अदालतें यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं कि अभियुक्तों को कानून के अनुसार अदालत में पेश किया जाए।
  • राज्य की जिम्मेदारी: राज्य सरकार और उसकी एजेंसियों का यह कर्तव्य है कि वे अदालत के आदेशों का पालन करें और अभियुक्तों की सुरक्षित तथा समय पर पेशी सुनिश्चित करें।
  • अदालती समय का सदुपयोग: अभियुक्तों को अदालत में पेश करने में होने वाली देरी या अव्यवस्था अदालती समय की बर्बादी करती है, जिससे न्याय मिलने में विलंब होता है।
  • कार्यपालिका और न्यायपालिका का टकराव: इस तरह की स्थितियाँ अक्सर कार्यपालिका (सरकार) और न्यायपालिका (अदालत) के बीच शक्तियों के पृथक्करण और एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र को लेकर तनाव पैदा करती हैं।

बालाजी केस: पृष्ठभूमि और कानूनी जटिलताएँ

वी. सेंथिल बालाजी मामला तमिलनाडु की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ रहा है। बालाजी, जो डीएमके सरकार में मंत्री थे, पर आरोप है कि उन्होंने 2011-2016 के दौरान AIADMK शासन में परिवहन मंत्री रहते हुए नौकरी के बदले रिश्वत लेने की योजना में भाग लिया था। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत उनके खिलाफ मामला दर्ज किया है।

गिरफ्तारी के बाद, बालाजी की स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ गई और उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस कारण, उन्हें सीधे तौर पर अदालत में पेश नहीं किया जा सका। यहीं से कानूनी जटिलताएँ शुरू हुईं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तमिलनाडु सरकार और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया, खासकर अभियुक्त की पेशी और उसके इलाज को लेकर।

“जब हम किसी को अदालत में पेश करने की बात करते हैं, तो यह एक सीधी प्रक्रिया होनी चाहिए, न कि एक ऐसा तमाशा जिसके लिए ‘क्रिकेट स्टेडियम’ जैसी विशाल व्यवस्था की आवश्यकता पड़े। यह हमारे न्यायिक सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।” – (संभावित उद्धरण, मामले की प्रकृति के अनुसार)

इस मामले में उठाए गए मुख्य कानूनी मुद्दे थे:

  • गिरफ्तारी की वैधता: क्या ईडी ने बालाजी को गिरफ्तार करने में निर्धारित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया?
  • मेडिकल आधार पर पेशी में छूट: क्या अभियुक्त को मेडिकल आधार पर अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होने से छूट दी जा सकती है, और यदि हाँ, तो किन शर्तों पर?
  • ED का अधिकार क्षेत्र: क्या ईडी के पास उस अभियुक्त की कस्टडी लेने का अधिकार है जिसे राज्य पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है?
  • राज्य सरकार की भूमिका: राज्य सरकार का यह कर्तव्य है कि वह अभियुक्त की पेशी सुनिश्चित करे, खासकर जब वह राज्य की हिरासत में हो या राज्य की मशीनरी से संबंधित हो।

न्यायपालिका की फटकार के पीछे के सिद्धांत: शक्तियों का पृथक्करण और न्यायिक समीक्षा

सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप भारतीय संविधान के दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित है: शक्तियों का पृथक्करण (Separation of Powers) और न्यायिक समीक्षा (Judicial Review)।

1. शक्तियों का पृथक्करण:

भारतीय संविधान विधायिका (Legislature), कार्यपालिका (Executive) और न्यायपालिका (Judiciary) के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन करता है। प्रत्येक अंग अपने-अपने क्षेत्रों में कार्य करता है, लेकिन यह सिद्धांत पूर्ण नहीं है; शक्तियों के ओवरलैप और नियंत्रण-संतुलन (Checks and Balances) की व्यवस्था भी है।

  • कार्यपालिका का कर्तव्य: सरकार का यह कर्तव्य है कि वह कानूनों को लागू करे और अदालतों के आदेशों का पालन करे। इसमें अभियुक्तों को अदालत में पेश करना भी शामिल है।
  • न्यायपालिका की भूमिका: न्यायपालिका का कार्य कानूनों की व्याख्या करना, न्याय प्रदान करना और यह सुनिश्चित करना है कि कार्यपालिका तथा विधायिका संविधान के दायरे में रहकर कार्य करें।

जब अदालतें कार्यपालिका की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती हैं, तो यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का ही एक हिस्सा है, जहाँ न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी अंग अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करे या अपनी जिम्मेदारियों से पीछे न हटे।

2. न्यायिक समीक्षा:

न्यायिक समीक्षा वह शक्ति है जिसके द्वारा अदालतें कार्यपालिका और विधायिका के कार्यों की संवैधानिकता की जांच कर सकती हैं। बालाजी मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने न केवल अभियुक्त की पेशी की प्रक्रिया पर, बल्कि उस पूरी व्यवस्था पर भी सवाल उठाया जिसने इस स्थिति को जन्म दिया।

“न्यायपालिका का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि कानूनी प्रक्रियाएँ सुचारू रूप से चलें। जब प्रक्रियाओं में बाधा आती है, तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ता है ताकि व्यवस्था पटरी पर रहे।”

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने यह संकेत दिया कि यदि सरकारें या उनकी एजेंसियां ​​कानूनी प्रक्रियाओं के अनुपालन में शिथिलता बरतती हैं, तो उन्हें इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा। यह भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक निवारक के रूप में भी कार्य करता है।

‘क्रिकेट स्टेडियम’ वाली उपमा: क्या यह न्यायपालिका का अतिरेक है? (कार्यपालिका बनाम न्यायपालिका का दृष्टिकोण)सुप्रीम कोर्ट की “क्रिकेट स्टेडियम” वाली टिप्पणी को कुछ लोग कार्यपालिका के कामकाज में न्यायपालिका के अत्यधिक हस्तक्षेप के रूप में देख सकते हैं। वहीं, न्यायपालिका के दृष्टिकोण से, यह प्रणाली की अक्षमता और सरकारी एजेंसियों की ढिलाई पर एक आवश्यक टिप्पणी है।

कार्यपालिका का संभावित दृष्टिकोण:

  • स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: अभियुक्त की गिरफ्तारी के बाद स्वास्थ्य खराब होना एक ऐसी स्थिति है जो अभियुक्त के नियंत्रण से बाहर हो सकती है, और ऐसे में चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था करना सरकार की जिम्मेदारी है।
  • अदालती प्रक्रियाएँ: कभी-कभी, अभियुक्तों को अस्पताल से अदालत तक ले जाना सुरक्षा और लॉजिस्टिक्स की दृष्टि से जटिल हो सकता है, जिसके लिए विशेष व्यवस्था की आवश्यकता हो सकती है।
  • राजनीतिक मंशा: कुछ सरकारें अदालती टिप्पणियों को अपनी राजनीतिक छवि खराब करने के प्रयास के रूप में भी देख सकती हैं।

न्यायपालिका का दृष्टिकोण:

  • कानूनी प्रक्रिया की गरिमा: अदालतें चाहती हैं कि उनकी प्रक्रियाओं का सम्मान हो और अभियुक्तों को अदालतों के समक्ष निष्पक्ष रूप से पेश किया जाए।
  • जवाबदेही: न्यायिक व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर न हो।
  • न्याय में विलंब: ऐसी अव्यवस्थाएँ न्याय प्रक्रिया को धीमा कर सकती हैं, जिससे न्याय के उद्देश्य को ही क्षति पहुँचती है।

यह बहस शक्तियों के संतुलन की एक शाश्वत दुविधा को दर्शाती है। अदालतें अपनी स्वतंत्रता और न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करती हैं, जबकि सरकारें अपनी प्रशासनिक और कार्यकारी शक्तियों का। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य को न केवल अभियुक्तों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि न्यायिक प्रक्रियाएँ बाधित न हों।

UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: मुख्य परीक्षा और प्रारंभिक परीक्षा

यह मामला UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से ‘शासन’, ‘न्यायपालिका’, ‘भारतीय संविधान’ और ‘समसामयिक मामले’ जैसे विषयों के लिए।

मुख्य परीक्षा (Mains) के लिए प्रासंगिकता:

  1. शक्तियों का पृथक्करण: कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन और टकराव। इस मामले का उपयोग एक केस स्टडी के रूप में किया जा सकता है कि कैसे न्यायपालिका कार्यपालिका के कामकाज पर नियंत्रण रखती है।
  2. न्यायिक समीक्षा: न्यायिक समीक्षा का दायरा और सीमाएं। अदालतें कब हस्तक्षेप कर सकती हैं और कब नहीं।
  3. प्रक्रियात्मक न्याय: कानूनी प्रक्रियाओं का पालन कितना महत्वपूर्ण है और इसमें विफलता के क्या परिणाम हो सकते हैं।
  4. सरकारी जवाबदेही: सरकारी मशीनरी द्वारा कानूनी आदेशों का पालन न करने पर जवाबदेही तय करना।
  5. कानून और व्यवस्था: अभियुक्तों की पेशी और सुरक्षा सुनिश्चित करने में राज्य सरकार की भूमिका।

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) के लिए प्रासंगिकता:

  • संवैधानिक प्रावधान: संविधान के वे अनुच्छेद जो शक्तियों के पृथक्करण, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों (जैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता) से संबंधित हैं।
  • विशिष्ट कानून: जैसे कि मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) और गिरफ्तारी से संबंधित अन्य प्रक्रियात्मक कानून।
  • न्यायिक निर्णय: सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले और उनकी प्रासंगिकता।
  • संस्थाएँ: प्रवर्तन निदेशालय (ED) और उसकी शक्तियाँ।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह

इस तरह की घटनाएँ कई अंतर्निहित चुनौतियों को उजागर करती हैं:

  • न्यायिक संस्थानों पर बोझ: बार-बार होने वाले ऐसे टकराव न्यायिक संस्थानों पर अतिरिक्त बोझ डालते हैं।
  • समन्वय का अभाव: विभिन्न सरकारी एजेंसियों और न्यायपालिका के बीच प्रभावी समन्वय की कमी।
  • कानूनी प्रक्रियाओं में सुधार की आवश्यकता: डिजिटल उपस्थिति या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके अभियुक्तों की पेशी को अधिक कुशल बनाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए स्पष्ट दिशानिर्देश और सुरक्षा उपाय होने चाहिए।

भविष्य की राह:

  • स्पष्ट दिशानिर्देश: अभियुक्तों की पेशी, विशेषकर स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के मामलों में, के लिए स्पष्ट और सुसंगत दिशानिर्देश विकसित किए जाने चाहिए।
  • तकनीकी अपनाना: अदालतों को आरोपी की डिजिटल या वीडियो उपस्थिति के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए, जहां यह सुरक्षित और व्यावहारिक हो।
  • सर्वोच्च प्राथमिकता: सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानूनी प्रक्रियाओं के पालन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए, ताकि न्यायिक प्रणाली की गरिमा और दक्षता बनी रहे।
  • संस्थागत सम्मान: न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच आपसी सम्मान और सहयोग, ताकि प्रभावी शासन सुनिश्चित किया जा सके।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट की “क्रिकेट स्टेडियम” वाली टिप्पणी केवल एक नाटकीय बयान नहीं था; यह भारत की न्यायिक प्रणाली और शासन की गुणवत्ता पर एक महत्वपूर्ण प्रतिबिंब है। यह हमें याद दिलाता है कि कानून का शासन तभी प्रभावी हो सकता है जब सभी अंग – कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों – अपनी-अपनी भूमिकाओं को गंभीरता से निभाएं और एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र का सम्मान करें। बालाजी केस में तमिलनाडु सरकार को मिली फटकार, न्यायपालिका द्वारा शक्तियों के संतुलन और जवाबदेही सुनिश्चित करने के अपने प्रयासों का एक उदाहरण है, जो UPSC उम्मीदवारों के लिए शासन और कानून के राज के सिद्धांतों को समझने में एक मूल्यवान पाठ प्रदान करता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. वी. सेंथिल बालाजी मामला मुख्य रूप से किस प्रकार के अपराध से संबंधित है?
(a) आतंकवाद
(b) मनी लॉन्ड्रिंग
(c) साइबर अपराध
(d) पर्यावरण प्रदूषण
उत्तर: (b)
व्याख्या: यह मामला मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत दर्ज आरोपों से संबंधित है।

2. भारतीय संविधान में शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत निम्नलिखित में से किस अंग के कार्यों को स्पष्ट रूप से अलग करता है?
(a) केवल विधायिका और कार्यपालिका
(b) केवल कार्यपालिका और न्यायपालिका
(c) केवल न्यायपालिका और विधायिका
(d) विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका
उत्तर: (d)
व्याख्या: भारतीय संविधान विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का विभाजन करता है।

3. प्रवर्तन निदेशालय (ED) किस केंद्रीय मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है?
(a) गृह मंत्रालय
(b) वित्त मंत्रालय
(c) कानून और न्याय मंत्रालय
(d) कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय
उत्तर: (b)
व्याख्या: प्रवर्तन निदेशालय (ED) राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।

4. सुप्रीम कोर्ट द्वारा “आरोपियों की पेशी के लिए क्रिकेट स्टेडियम की जरूरत होगी” टिप्पणी का मुख्य आशय क्या था?
(a) अभियुक्तों को स्टेडियम में ही पेश करना
(b) पेशी की प्रक्रिया में अव्यवस्था और अतिरिक्त व्यवस्थाओं की आवश्यकता
(c) अभियुक्तों को खेल गतिविधियों में शामिल करना
(d) सुरक्षा कारणों से स्टेडियम का उपयोग
उत्तर: (b)
व्याख्या: यह टिप्पणी अभियुक्तों को अदालत में पेश करने की प्रक्रिया में सरकारी मशीनरी द्वारा बरती जा रही संभावित अव्यवस्था या अक्षमता पर चिंता व्यक्त करती है।

5. निम्नलिखित में से कौन सी अदालतें ‘न्यायिक समीक्षा’ (Judicial Review) की शक्ति का प्रयोग कर सकती हैं?
(a) केवल सर्वोच्च न्यायालय
(b) केवल उच्च न्यायालय
(c) सभी अधीनस्थ न्यायालय
(d) सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय
उत्तर: (d)
व्याख्या: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13, 32, 226, और 227 के तहत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्राप्त है।

6. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ (Personal Liberty) की सुरक्षा से संबंधित है?
(a) अनुच्छेद 14
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 22
उत्तर: (c)
व्याख्या: अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करता है।

7. मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) किस वर्ष अधिनियमित किया गया था?
(a) 1995
(b) 2002
(c) 2005
(d) 2010
उत्तर: (b)
व्याख्या: PMLA मूल रूप से 2002 में अधिनियमित किया गया था और इसमें बाद में संशोधन किए गए हैं।

8. ‘नियंत्रण और संतुलन’ (Checks and Balances) की व्यवस्था का उद्देश्य क्या है?
(a) शक्तियों को एक अंग में केंद्रित करना
(b) सरकार के तीनों अंगों को एक-दूसरे के प्रति जवाबदेह बनाना
(c) कार्यपालिका को सर्वोच्च बनाना
(d) न्यायपालिका की शक्तियों को सीमित करना
उत्तर: (b)
व्याख्या: नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि कोई भी अंग अत्यधिक शक्तिशाली न हो और सरकार के तीनों अंग एक-दूसरे पर अंकुश रखें।

9. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से संबंधित ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’ (Independence of Judiciary) के बारे में क्या सही है?
(a) इसका अर्थ है कि न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका के हस्तक्षेप से मुक्त रहना चाहिए।
(b) यह न्याय सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
(c) यह संविधान द्वारा संरक्षित है।
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और निष्पक्ष न्याय के लिए आवश्यक है।

10. वी. सेंथिल बालाजी किस राज्य के पूर्व मंत्री थे?
(a) केरल
(b) कर्नाटक
(c) तमिलनाडु
(d) आंध्र प्रदेश
उत्तर: (c)
व्याख्या: वी. सेंथिल बालाजी तमिलनाडु के पूर्व मंत्री हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “भारतीय संविधान में शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत एक पूर्ण विभाजन नहीं है, बल्कि एक नियंत्रण और संतुलन की प्रणाली है।” इस कथन के प्रकाश में, बालाजी केस में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का विश्लेषण करें और बताएं कि यह कैसे कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन को दर्शाता है। (लगभग 150 शब्द)

2. भारतीय न्यायिक प्रणाली में ‘न्यायिक समीक्षा’ की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। क्या सुप्रीम कोर्ट की बालाजी केस जैसी टिप्पणियाँ न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) का उदाहरण हैं, या वे न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हस्तक्षेप? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें। (लगभग 250 शब्द)

3. वी. सेंथिल बालाजी मामले में अभियुक्त की पेशी को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने में राज्य सरकार की जिम्मेदारियों पर प्रकाश डाला है। इस संदर्भ में, अभियुक्तों की सुरक्षित और समय पर अदालती पेशी सुनिश्चित करने में राज्य की भूमिका और उसमें आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करें। (लगभग 200 शब्द)

4. “न्याय में विलंब, न्याय से वंचित करना है।” इस कहावत के आलोक में, बालाजी मामले जैसी परिस्थितियाँ न्यायिक प्रक्रिया की दक्षता और गरिमा को कैसे प्रभावित कर सकती हैं? अभियुक्तों की अदालती उपस्थिति के संबंध में आधुनिक तकनीकों के संभावित उपयोग पर प्रकाश डालें। (लगभग 200 शब्द)

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