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प्रशांत की सुनामी: जापान-रूस में विनाश, और भारत के लिए चेतावनी

प्रशांत की सुनामी: जापान-रूस में विनाश, और भारत के लिए चेतावनी

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, जापान और रूस के तटीय क्षेत्रों में आए विनाशकारी भूकंप और उसके बाद उत्पन्न हुई सुनामी ने भारी तबाही मचाई है। इस घटना ने न केवल इन देशों के लिए एक भयावह दृश्य प्रस्तुत किया, बल्कि प्रशांत महासागर के चारों ओर बसे अन्य देशों, विशेष रूप से भारत के लिए भी एक गंभीर चेतावनी जारी की है। राहत और बचाव कार्य एजेंसियां ​​अलर्ट पर हैं, यह समझने की कोशिश कर रही हैं कि ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना कैसे किया जाए और भविष्य में इनसे कैसे बचा जाए।

यह घटना हमें उन शक्तिशाली प्राकृतिक शक्तियों की याद दिलाती है जो हमारे ग्रह को नियंत्रित करती हैं, और कैसे एक छोटा सा भूकंप एक बड़े पैमाने पर विनाशकारी सुनामी को जन्म दे सकता है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम जापान और रूस में हुई इस घटना का गहराई से विश्लेषण करेंगे, सुनामी के विज्ञान को समझेंगे, भारत पर इसके संभावित प्रभाव पर चर्चा करेंगे, और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए आवश्यक तैयारियों पर प्रकाश डालेंगे।

भूकंप और सुनामी: एक विनाशकारी जोड़ी (Earthquakes and Tsunamis: A Destructive Duo)

समुद्र के नीचे होने वाले भूकंप, विशेष रूप से जब वे टेक्टोनिक प्लेटों के खिसकने या टकराने से उत्पन्न होते हैं, सुनामी का सबसे आम कारण हैं। टेक्टोनिक प्लेटें पृथ्वी की पपड़ी के बड़े टुकड़े हैं जो लगातार धीमी गति से चल रही हैं। जब ये प्लेटें अचानक एक-दूसरे से टकराती हैं, खिसकती हैं या एक-दूसरे के नीचे चली जाती हैं (सबडक्शन), तो पृथ्वी की सतह पर भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। यदि यह घटना समुद्र के तल पर होती है, तो यह बड़ी मात्रा में पानी को विस्थापित कर सकती है, जिससे विशाल लहरों की एक श्रृंखला उत्पन्न होती है – जिसे हम सुनामी कहते हैं।

एक उपमा: कल्पना कीजिए कि आप एक शांत तालाब में एक बड़ा पत्थर फेंक रहे हैं। पत्थर के गिरने से पानी में तरंगें पैदा होती हैं जो फैलती जाती हैं। सुनामी भी कुछ इसी तरह की होती है, लेकिन ये तरंगें लाखों गुना बड़ी और अधिक शक्तिशाली होती हैं। समुद्र की गहराई में, सुनामी की लहरें अपेक्षाकृत छोटी होती हैं लेकिन बहुत तेज़ी से यात्रा करती हैं (कभी-कभी जेट विमान की गति से भी तेज़)। जैसे-जैसे ये लहरें उथले पानी की ओर बढ़ती हैं, उनकी गति कम हो जाती है, लेकिन उनकी ऊंचाई नाटकीय रूप से बढ़ जाती है, जिससे वे विनाशकारी बन जाती हैं।

जापान और रूस में विनाश का मंजर (The Devastation in Japan and Russia)

जापान, जिसे ‘रिंग ऑफ फायर’ के नाम से जाने जाने वाले भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र में स्थित होने के कारण बार-बार विनाशकारी भूकंपों का सामना करना पड़ता है, इस बार भी इससे अछूता नहीं रहा। रूस के सुदूर पूर्वी तटों ने भी इस विनाशकारी घटना का अनुभव किया।

  • भूकंप की तीव्रता: (यहाँ विशिष्ट भूकंप की तीव्रता और केंद्र का उल्लेख किया जा सकता है, जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होने पर।)
  • सुनामी की लहरें: भूकंप के बाद, कई मीटर ऊंची सुनामी लहरें तटों से टकराईं, जिससे तटीय शहरों और गांवों में भारी तबाही मची। घरों, इमारतों, बुनियादी ढांचे (सड़कें, पुल, बिजली लाइनें) को भारी नुकसान हुआ।
  • जान-माल का नुकसान: दुर्भाग्यवश, इस प्राकृतिक आपदा में लोगों की जान भी गई और कई लोग घायल हुए। प्रभावित क्षेत्रों में जीवन अस्त-व्यस्त हो गया।
  • मानवीय संकट: खाली कराए गए लोगों के लिए आश्रय, भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता की तत्काल आवश्यकता होती है। राहत एजेंसियां ​​इन जरूरतों को पूरा करने के लिए चौबीसों घंटे काम करती हैं।

केस स्टडी: 2011 का तोहोकू भूकंप और सुनामी (Case Study: The 2011 Tohoku Earthquake and Tsunami)

जापान के इतिहास की सबसे विनाशकारी घटनाओं में से एक 11 मार्च 2011 को आया तोहोकू भूकंप और सुनामी थी। 9.0 तीव्रता के इस भूकंप ने प्रशांत महासागर में एक विशाल सुनामी को जन्म दिया, जिसने जापान के उत्तर-पूर्वी तट पर अभूतपूर्व तबाही मचाई। इस आपदा में लगभग 20,000 लोगों की मौत हुई और फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र में गंभीर दुर्घटना हुई, जिसके दीर्घकालिक पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव पड़े। यह घटना जापान की सुनामी तैयारी और प्रतिक्रिया की क्षमता का एक कठोर परीक्षण थी।

राहत और बचाव कार्य: एक दौड़ (Relief and Rescue Operations: A Race Against Time)

जब सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा आती है, तो समय सबसे महत्वपूर्ण कारक होता है। राहत और बचाव कार्य एजेंसियां ​​तुरंत हरकत में आती हैं, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:

  • पहुंच में बाधा: क्षतिग्रस्त सड़कें, पुल और संचार लाइनें बचाव दल के लिए प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंचना मुश्किल बना देती हैं।
  • पानी का खतरा: बाढ़ और निरंतर लहरें बचाव कार्यों को और अधिक खतरनाक बना सकती हैं।
  • संसाधनों की कमी: तत्काल चिकित्सा सहायता, भोजन, पानी और आश्रय की भारी मांग होती है, जिससे संसाधनों पर दबाव पड़ता है।
  • मानसिक आघात: जीवित बचे लोगों को न केवल शारीरिक चोटों से उबरना पड़ता है, बल्कि इस भयावह अनुभव के मनोवैज्ञानिक आघात से भी निपटना पड़ता है।

भारत के लिए चेतावनी: जापान और रूस में आई इस घटना से भारत को भी सबक लेने की जरूरत है। भारत की लंबी तटरेखा है, और सुनामी का खतरा हमेशा बना रहता है, खासकर हिंद महासागर में होने वाली भूगर्भीय गतिविधियों के कारण।

भारत और सुनामी का खतरा (India and the Tsunami Threat)

भारत के विशाल प्रायद्वीप की तीन तरफ से समुद्र से घिरा है, जिससे यह सुनामी के प्रति संवेदनशील है। विशेष रूप से,:

  • पूर्वी तट: बंगाल की खाड़ी में आने वाले भूकंप, हालांकि दुर्लभ हैं, फिर भी सुनामी की लहरें उत्पन्न कर सकते हैं जो आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के तटीय क्षेत्रों को प्रभावित कर सकती हैं।
  • पश्चिमी तट: अरब सागर में भी भूगर्भीय घटनाएं हो सकती हैं, हालांकि इनका प्रभाव पूर्वी तट की तुलना में कम होने की संभावना है।
  • 2004 का हिंद महासागर सुनामी: 26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया के तट पर आए शक्तिशाली भूकंप के कारण उत्पन्न हुई सुनामी ने भारत के पूर्वी तट पर, विशेष रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में विनाशकारी प्रभाव डाला था। इस घटना में हजारों लोग मारे गए थे और संपत्ति का भारी नुकसान हुआ था।

राष्ट्रीय सुनामी चेतावनी केंद्र (National Tsunami Warning Centre – NTWC): भारत के पास एक राष्ट्रीय सुनामी चेतावनी केंद्र है जो प्रशांत सुनामी चेतावनी केंद्र (PTWC) और अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से जानकारी प्राप्त करता है। यह केंद्र भारतीय तटों के लिए सुनामी की भविष्यवाणी और चेतावनी जारी करने के लिए जिम्मेदार है।

सुनामी की तैयारी और शमन (Tsunami Preparedness and Mitigation)

प्रकृति की शक्ति को पूरी तरह से रोकना असंभव है, लेकिन प्रभावी तैयारी और शमन रणनीतियों से हम इसके प्रभाव को काफी कम कर सकते हैं। UPSC के दृष्टिकोण से, यह एक महत्वपूर्ण विषय है:

1. प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems):

  • महत्व: सुनामी की प्रारंभिक चेतावनी जीवन बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जितनी जल्दी चेतावनी मिलती है, लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के लिए उतना ही अधिक समय मिलता है।
  • प्रौद्योगिकी: इसमें भूकंपीय सेंसर, गहरे समुद्र में दबाव रिकॉर्डर (Deep-ocean Assessment and Reporting of Tsunamis – DART), और उपग्रहों का उपयोग शामिल है।
  • भारत में: भारत ने अपनी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को मजबूत किया है, जो भूकंपीय डेटा का लगातार विश्लेषण करती है और तटीय समुदायों तक पहुंचने के लिए एक मजबूत संचार नेटवर्क का उपयोग करती है।

2. सामुदायिक जागरूकता और शिक्षा (Community Awareness and Education):

  • आवश्यकता: तटीय समुदायों को सुनामी के खतरों, चेतावनी संकेतों और सुरक्षित निकासी प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है।
  • तरीके: इसमें मॉक ड्रिल, जागरूकता अभियान, स्कूल पाठ्यक्रम में जानकारी शामिल करना और स्थानीय नेताओं को प्रशिक्षित करना शामिल है।
  • अभियान: स्थानीय भाषाओं में चेतावनी संदेशों का प्रसार और “रन टू हाई ग्राउंड” (ऊंचे स्थान की ओर दौड़ें) जैसे सरल संदेशों को बढ़ावा देना प्रभावी हो सकता है।

3. भूमि उपयोग योजना (Land-Use Planning):

  • चुनौती: सुनामी-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण को नियंत्रित करना।
  • रणनीति: नए विकास को उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों से दूर निर्देशित करना, और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे (अस्पतालों, स्कूलों) को ऐसे स्थानों पर बनाना जो सुनामी से सुरक्षित हों। तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव जैसी प्राकृतिक बाधाओं को बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है।

4. बुनियादी ढांचे का सुदृढ़ीकरण (Infrastructure Strengthening):

  • भूकंप-रोधी निर्माण: इमारतों और अन्य संरचनाओं को भूकंप और सुनामी के झटके झेलने के लिए डिजाइन किया जाना चाहिए।
  • रक्षात्मक संरचनाएं: कुछ क्षेत्रों में, सी-वॉल (sea walls) या बैरियर (barriers) जैसी संरचनाएं लहरों के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकती हैं, हालांकि इनकी लागत और पर्यावरणीय प्रभाव पर विचार करना महत्वपूर्ण है।

5. आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना (Emergency Response Planning):

  • समन्वय: विभिन्न सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और स्थानीय समुदायों के बीच प्रभावी समन्वय आवश्यक है।
  • संसाधन: बचाव दलों, चिकित्सा आपूर्ति, भोजन, पानी और अस्थायी आश्रयों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • निकासी मार्ग: स्पष्ट रूप से चिह्नित निकासी मार्ग और सुरक्षित आश्रय स्थलों का निर्धारण।

UPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु (Key Points for UPSC Exam)

यह विषय भारतीय राजव्यवस्था (भारतीय संघ और राज्य सरकार की भूमिका), पर्यावरण (प्राकृतिक आपदाएं, शमन), भूगोल (भूकंपीय क्षेत्र, सुनामी की उत्पत्ति), विज्ञान और प्रौद्योगिकी (चेतावनी प्रणाली), और आपदा प्रबंधन (तैयारी, प्रतिक्रिया, पुनर्प्राप्ति) जैसे विषयों से जुड़ा हुआ है।

अंतर-सरकारी सहयोग (Inter-governmental Cooperation): सुनामी जैसी क्षेत्रीय आपदाओं से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रारंभिक चेतावनी डेटा साझा करना, सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान करना और संयुक्त बचाव अभियानों में भाग लेना इसमें शामिल है।

शमन के बनाम अनुकूलन (Mitigation vs. Adaptation):

  • शमन (Mitigation): आपदा के कारणों को कम करने या उसके प्रभाव को कम करने के उपाय (जैसे, भवन संहिता, प्रारंभिक चेतावनी)।
  • अनुकूलन (Adaptation): बदलती परिस्थितियों के अनुकूल होने के उपाय (जैसे, सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरण, फसल पैटर्न बदलना)।

सुनामी के संदर्भ में, इन दोनों के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and The Way Forward)

जापान और रूस की घटना एक बार फिर याद दिलाती है कि हमें अपनी तैयारियों को लगातार मजबूत करने की आवश्यकता है।

  • तकनीकी उन्नति: चेतावनी प्रणालियों को और अधिक सटीक और समय पर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी में निवेश जारी रखना।
  • वित्तीय संसाधन: शमन और तैयारी के उपायों के लिए पर्याप्त धन आवंटित करना।
  • सामाजिक-आर्थिक कारक: तटीय क्षेत्रों में रहने वाले कमजोर समुदायों की विशेष जरूरतों को संबोधित करना, जिनके पास अक्सर कम संसाधन होते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन महासागरों को गर्म कर रहा है और समुद्री स्तर को बढ़ा रहा है, जो भविष्य में सुनामी के प्रभावों को और अधिक गंभीर बना सकता है। इस संबंध में शोध जारी रहना चाहिए।

यह सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम अतीत की आपदाओं से सीखें और भविष्य के लिए एक अधिक लचीला समाज का निर्माण करें। जापान और रूस की घटनाओं से मिले सबक हमें एक बार फिर से प्राकृतिक आपदाओं की विनाशकारी शक्ति और उनसे निपटने के लिए हमारी निरंतर सतर्कता की आवश्यकता की याद दिलाते हैं।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. प्रश्न: सुनामी के निर्माण के लिए निम्नलिखित में से कौन सी प्राथमिक घटना जिम्मेदार है?
(a) ज्वालामुखी विस्फोट
(b) क्षुद्रग्रह का प्रभाव
(c) समुद्र के नीचे भूकंप
(d) तीव्र हवाएं
उत्तर: (c)
व्याख्या: सुनामी मुख्य रूप से समुद्र तल पर होने वाले बड़े भूकंपों के कारण उत्पन्न होती हैं, जब बड़ी मात्रा में पानी विस्थापित होता है।

2. प्रश्न: ‘रिंग ऑफ फायर’ किस भूवैज्ञानिक क्षेत्र से संबंधित है?
(a) अटलांटिक महासागर का तल
(b) प्रशांत महासागर की परिधि
(c) आर्कटिक महासागर का मध्य
(d) हिंद महासागर का मध्य
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘रिंग ऑफ फायर’ प्रशांत महासागर की परिधि में स्थित एक चाप है, जो अत्यधिक भूकंपीय और ज्वालामुखी गतिविधि के लिए जाना जाता है। जापान इसी क्षेत्र में स्थित है।

3. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा सुनामी की प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है?
(a) मौसम गुब्बारे
(b) सुनामी बोया (Tsunami Buoys)
(c) दूरबीनों की श्रृंखला
(d) वायुमंडलीय दबाव सेंसर
उत्तर: (b)
व्याख्या: सुनामी बोया, जैसे कि DART (Deep-ocean Assessment and Reporting of Tsunamis) प्रणाली, समुद्र तल पर दबाव परिवर्तनों का पता लगाकर सुनामी की शुरुआती चेतावनी प्रदान करती हैं।

4. प्रश्न: भारत में राष्ट्रीय सुनामी चेतावनी केंद्र (NTWC) कहाँ स्थित है?
(a) मुंबई
(b) चेन्नई
(c) विशाखापत्तनम
(d) कोलकाता
उत्तर: (c)
व्याख्या: राष्ट्रीय सुनामी चेतावनी केंद्र (NTWC) भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के तहत विशाखापत्तनम में स्थित है।

5. प्रश्न: 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी का प्राथमिक कारण क्या था?
(a) सुमात्रा के तट पर 9.1 तीव्रता का भूकंप
(b) अंडमान द्वीप समूह में ज्वालामुखी विस्फोट
(c) मन्नार की खाड़ी में समुद्री भूस्खलन
(d) चक्रवात ‘गज’ का प्रभाव
उत्तर: (a)
व्याख्या: 2004 की हिंद महासागर सुनामी का कारण सुमात्रा, इंडोनेशिया के तट पर 9.1 की तीव्रता का एक बड़ा भूकंप था।

6. प्रश्न: सुनामी के संदर्भ में ‘शमन’ (Mitigation) का क्या अर्थ है?
(a) केवल बचाव कार्य करना
(b) भविष्य में आपदा के प्रभाव को कम करने के उपाय
(c) तत्काल राहत प्रदान करना
(d) जागरूकता अभियान चलाना
उत्तर: (b)
व्याख्या: शमन का तात्पर्य आपदा के जोखिम को कम करने या समाप्त करने के लिए किए गए उपायों से है, जैसे कि मजबूत भवन निर्माण या प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ।

7. प्रश्न: भारत के किस तट पर सुनामी का खतरा पूर्वी तट की तुलना में कम माना जाता है?
(a) कोरोमंडल तट
(b) मालाबार तट
(c) उत्तर सरकार तट
(d) काकीनाडा तट
उत्तर: (b)
व्याख्या: पश्चिमी तट (जैसे मालाबार तट) हिंद महासागर में भूगर्भीय घटनाओं के कारण सुनामी के प्रति पूर्वी तट की तुलना में कम संवेदनशील है, हालांकि यह पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है।

8. प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. सुनामी की लहरें खुले समुद्र में धीमी गति से चलती हैं लेकिन तटों के पास तेज हो जाती हैं।
2. सुनामी की लहरों की ऊर्जा उनके आकार से स्वतंत्र होती है।
सही कथन चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (d)
व्याख्या: कथन 1 गलत है; सुनामी की लहरें खुले समुद्र में बहुत तेज (लगभग 800 किमी/घंटा) चलती हैं और उथले पानी में आने पर धीमी हो जाती हैं। कथन 2 गलत है; सुनामी की ऊर्जा उनकी ऊंचाई और गति पर निर्भर करती है, और उथले पानी में ऊंचाई बढ़ने के साथ ऊर्जा का घनत्व भी बढ़ता है।

9. प्रश्न: सुनामी की तैयारी के लिए ‘ऊंचे स्थान की ओर दौड़ें’ (Run to High Ground) का क्या अर्थ है?
(a) सुरक्षित निकासी के लिए ऊंचे भवनों की ओर जाना
(b) सुनामी आने पर तत्काल समुद्र तट से दूर पहाड़ी या ऊंचे क्षेत्रों की ओर बढ़ना
(c) बचाव कार्यों में भाग लेने के लिए ऊंचे स्थानों का उपयोग करना
(d) सुनामी चेतावनी संकेतों को ऊंचा उठाना
उत्तर: (b)
व्याख्या: यह सुनामी के दौरान एक महत्वपूर्ण सुरक्षा निर्देश है, जिसका अर्थ है कि जैसे ही चेतावनी मिले, तुरंत समुद्र तट से दूर ऊंचे और सुरक्षित स्थानों की ओर बढ़ना।

10. प्रश्न: सुनामी के प्रत्यक्ष प्रभाव को कम करने में कौन सी प्राकृतिक वनस्पति सहायक हो सकती है?
(a) रेगिस्तानी झाड़ियाँ
(b) मैंग्रोव वन
(c) शंकुधारी वन
(d) घास के मैदान
उत्तर: (b)
व्याख्या: मैंग्रोव वन, अपनी घनी जड़ों और तटीय क्षेत्रों में उपस्थिति के कारण, सुनामी की लहरों की ऊर्जा को अवशोषित करने और तट पर उनके प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. प्रश्न: जापान और रूस में हालिया भूकंप-सुनामी की घटनाओं का विश्लेषण करें। इन घटनाओं से प्राप्त सबक का उपयोग करते हुए, भारत के तटीय क्षेत्रों के लिए सुनामी की तैयारी और शमन रणनीतियों पर एक विस्तृत चर्चा प्रस्तुत करें। (250 शब्द)
2. प्रश्न: सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का महत्व बताएं। भारत की राष्ट्रीय सुनामी चेतावनी प्रणाली की प्रभावशीलता और सुधार के लिए संभावित क्षेत्रों पर प्रकाश डालें। (150 शब्द)
3. प्रश्न: ‘प्रकृति का प्रकोप, मानव की तैयारी’ – इस कथन के आलोक में, सुनामी के विनाशकारी प्रभावों से निपटने में सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता की भूमिका का मूल्यांकन करें। (150 शब्द)
4. प्रश्न: भूकंपीय गतिविधि और सुनामी के बीच संबंध की व्याख्या करें। उन प्रमुख भौगोलिक कारकों का उल्लेख करें जो किसी क्षेत्र को सुनामी के प्रति संवेदनशील बनाते हैं। (150 शब्द)

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