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समाजशास्त्र की गहराई में उतरें: 25 बहुविकल्पीय प्रश्नों का दैनिक अभ्यास

समाजशास्त्र की गहराई में उतरें: 25 बहुविकल्पीय प्रश्नों का दैनिक अभ्यास

नमस्ते, भावी समाजशास्त्री! आपके समाजशास्त्रीय ज्ञान को पैना करने और आपकी वैचारिक स्पष्टता को चुनौती देने के लिए हम एक और दिन का ज्ञानवर्धक अभ्यास लेकर आए हैं। आज के 25 प्रश्नों के माध्यम से मुख्य अवधारणाओं, प्रमुख विचारकों और समकालीन मुद्दों पर अपनी पकड़ का परीक्षण करें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के विकास में किस समाजशास्त्री का महत्वपूर्ण योगदान है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. जॉर्ज हर्बर्ट मीड
  4. एमिल दुर्खीम

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के संस्थापकों में से एक माना जाता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सामाजिक वास्तविकता व्यक्तियों के बीच अर्थों के निर्माण और साझा करने से उत्पन्न होती है, जो प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड के विचारों को उनकी मृत्यु के बाद उनके छात्रों द्वारा “माइंड, सेल्फ एंड सोसाइटी” (Mind, Self, and Society) नामक पुस्तक में संकलित किया गया था। उनका “सेल्फ” (स्वयं) का सिद्धांत, जो “आई” (I) और “मी” (Me) के बीच अंतःक्रिया पर आधारित है, प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का एक केंद्रीय तत्व है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स वर्ग संघर्ष और उत्पादन के साधनों पर केंद्रित थे। मैक्स वेबर ने “वर्टेहेन” (Verstehen) और नौकरशाही जैसी अवधारणाएं दीं। एमिल दुर्खीम ने सामाजिक एकता और एनोमी (Anomie) जैसे विषयों का अध्ययन किया।

प्रश्न 2: एमिल दुर्खीम के अनुसार, समाज में व्यवस्था और एकजुटता बनाए रखने में ‘साझा चेतना’ (Collective Conscience) की क्या भूमिका है?

  1. यह सामाजिक परिवर्तन का मुख्य चालक है।
  2. यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है।
  3. यह समाज के सदस्यों के बीच साझा मूल्यों, विश्वासों और नैतिकता का समुच्चय है।
  4. यह आर्थिक असमानता को जन्म देती है।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: दुर्खीम के अनुसार, ‘साझा चेतना’ समाज के सदस्यों के सामूहिक मन का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें सामान्य मान्यताएं, मूल्य और नैतिक भावनाएं शामिल होती हैं। यह समाज को एक एकीकृत इकाई के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक “द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी” (The Division of Labour in Society) में यांत्रिक एकजुटता (Mechanical Solidarity) और कार्बनिक एकजुटता (Organic Solidarity) के बीच अंतर करते हुए साझा चेतना के महत्व को समझाया। यांत्रिक एकजुटता में साझा चेतना अधिक मजबूत होती है, जबकि कार्बनिक एकजुटता में यह कम होती है, लेकिन यह फिर भी एकता का आधार बनती है।
  • गलत विकल्प: साझा चेतना सामाजिक परिवर्तन का कारण बनने के बजाय उसे नियंत्रित करती है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित कर सकती है क्योंकि यह सामाजिक मानदंडों और अपेक्षाओं को निर्धारित करती है। यह आर्थिक असमानता से सीधे संबंधित नहीं है।

प्रश्न 3: समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का अर्थ है:

  1. व्यक्तियों द्वारा समाज में निभाई जाने वाली विभिन्न भूमिकाएँ।
  2. समाज को पदानुक्रमित स्तरों या परतों में विभाजन, जहाँ विभिन्न समूहों के पास शक्ति, विशेषाधिकार और संसाधनों तक असमान पहुँच होती है।
  3. व्यक्तियों और समूहों के बीच सामाजिक संबंधों का जाल।
  4. सामाजिक समूहों के बीच विचारों और विश्वासों का आदान-प्रदान।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक स्तरीकरण एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ समाज के सदस्यों को उनकी सामाजिक स्थिति, आय, शिक्षा, व्यवसाय, जाति, लिंग आदि जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर विभिन्न स्तरों में वर्गीकृत किया जाता है। यह वर्गीकरण असमानता पर आधारित होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: सामाजिक स्तरीकरण के विभिन्न रूप हैं जैसे वर्ग (Class), जाति (Caste), लिंग (Gender), आयु (Age) आदि। यह समाज की संरचना का एक अंतर्निहित हिस्सा है और पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रहता है।
  • गलत विकल्प: (a) भूमिकाएँ सामाजिक संरचना का हिस्सा हैं, लेकिन स्तरीकरण का मूल विचार असमानतापूर्ण विभाजन है। (c) सामाजिक संबंध महत्वपूर्ण हैं, लेकिन स्तरीकरण उस व्यवस्था को दर्शाता है जिसके तहत ये संबंध निर्मित होते हैं। (d) विचारों का आदान-प्रदान सांस्कृतिक प्रक्रिया है, स्तरीकरण नहीं।

प्रश्न 4: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा किस सामाजिक प्रक्रिया का वर्णन करती है?

  1. पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण।
  2. निम्न जातियों या जनजातियों द्वारा उच्च जातियों की प्रथाओं, रीति-रिवाजों और विश्वासों को अपनाकर सामाजिक स्थिति में सुधार का प्रयास।
  3. औद्योगीकरण के कारण होने वाले सामाजिक परिवर्तन।
  4. शहरीकरण के कारण पारंपरिक संरचनाओं का विघटन।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतीकरण’ शब्द का प्रयोग किया, जो भारत में एक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया है जिसमें निम्न सामाजिक-जाति समूह उच्च, अधिक प्रतिष्ठित जाति की जीवन शैली, अनुष्ठान, कर्मकांड और पूजा पद्धतियों को अपनाते हैं ताकि वे अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठा सकें।
  • संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने यह अवधारणा विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में, खासकर कर्नाटक के कुर्ग समुदाय के अध्ययन के दौरान विकसित की थी। यह सांस्कृतिक गतिशीलता (Cultural Mobility) का एक रूप है।
  • गलत विकल्प: (a) पश्चिमीकरण (Westernization) पश्चिमी संस्कृति को अपनाने से संबंधित है। (c) औद्योगीकरण आर्थिक और तकनीकी परिवर्तन से जुड़ा है। (d) शहरीकरण ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या के स्थानांतरण से संबंधित है।

प्रश्न 5: कार्ल मार्क्स के अनुसार, ‘अलगाव’ (Alienation) का अनुभव मुख्य रूप से किस वर्ग को होता है?

  1. पूँजीपति वर्ग (Bourgeoisie)
  2. सर्वहारा वर्ग (Proletariat)
  3. बुर्जुआ वर्ग (Petty Bourgeoisie)
  4. भूमिपति वर्ग (Landlords)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: मार्क्स के पूंजीवाद के विश्लेषण में, सर्वहारा वर्ग (श्रमिक वर्ग) को अलगाव का अनुभव होता है क्योंकि वे अपने श्रम के उत्पाद, स्वयं अपने श्रम प्रक्रिया, अपनी मानव प्रजाति (Species-Being) और अपने साथी मनुष्यों से अलग हो जाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने “इकोनॉमिक एंड फिलॉसॉफिकल मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844” (Economic and Philosophical Manuscripts of 1844) में अलगाव की चार मुख्य अवस्थाओं का वर्णन किया है: उत्पाद से अलगाव, उत्पादन प्रक्रिया से अलगाव, स्वयं की प्रजाति से अलगाव, और दूसरों से अलगाव।
  • गलत विकल्प: पूँजीपति वर्ग उत्पादन के साधनों का मालिक होता है और उसे इस प्रकार का अलगाव अनुभव नहीं होता, हालाँकि वे भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं। बुर्जुआ और भूमिपति वर्ग भी उत्पादन के साधनों के मालिक होने की स्थिति के आधार पर श्रमिक वर्ग से भिन्न होते हैं।

प्रश्न 6: ‘नौकरशाही’ (Bureaucracy) की आदर्श-प्रकार (Ideal-Type) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. ताल्कोट पार्सन्स
  3. मैक्स वेबर
  4. C. राइट मिल्स

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: मैक्स वेबर ने नौकरशाही को एक ‘आदर्श-प्रकार’ के रूप में विश्लेषणात्मक उपकरण के रूप में विकसित किया। इसका अर्थ है कि यह एक सैद्धांतिक निर्माण है जो वास्तविकता में शायद ही कभी पूरी तरह से मौजूद होता है, लेकिन इसका उपयोग वास्तविक दुनिया की संस्थाओं को समझने के लिए किया जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर के अनुसार, एक आदर्श-प्रकार की नौकरशाही में पदानुक्रमित संरचना, विशेषज्ञता, लिखित नियम, गैर-व्यक्तिगत संबंध और योग्यता-आधारित नियुक्ति जैसी विशेषताएं होती हैं। उन्होंने इसे आधुनिक समाज में तर्कसंगतता (Rationality) का प्रतीक माना।
  • गलत विकल्प: दुर्खीम ने सामाजिक व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया। पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था और संरचनात्मक-फंक्शनलिज्म पर काम किया। C. राइट मिल्स ने शक्ति अभिजात वर्ग (Power Elite) की अवधारणा दी।

प्रश्न 7: समाजशास्त्रीय अध्ययन में ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा का संबंध किससे है?

  1. सामाजिक अलगाव
  2. सामूहिक चेतना का अभाव या कमजोरी, जहाँ सामाजिक मानदंड अस्पष्ट या शिथिल हो जाते हैं।
  3. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति।
  4. आर्थिक असमानता में वृद्धि।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एनोमी, जिसे एमिल दुर्खीम ने लोकप्रिय बनाया, एक ऐसी स्थिति है जहाँ समाज में कोई स्पष्ट सामाजिक मानदंड या नियम नहीं होते हैं, या वे इतने ढीले हो जाते हैं कि व्यक्तियों को दिशाहीनता और उद्देश्यहीनता का अनुभव होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तकों “द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी” और “सुसाइड” (Suicide) में एनोमी की चर्चा की। उन्होंने दिखाया कि यह सामाजिक व्यवस्था में गड़बड़ी, जैसे आर्थिक संकट या तीव्र सामाजिक परिवर्तन के दौरान बढ़ सकती है।
  • गलत विकल्प: सामाजिक अलगाव (Alienation) मार्क्स से जुड़ा है। व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति और आर्थिक असमानता एनोमी के परिणाम हो सकते हैं, लेकिन स्वयं एनोमी नहीं हैं।

प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सी भारतीय समाज में ‘जाति व्यवस्था’ (Caste System) की मुख्य विशेषता नहीं है?

  1. अंतर्विवाह (Endogamy)
  2. जातीय व्यवसाय (Hereditary Occupation)
  3. अस्पृश्यता (Untouchability)
  4. वर्ग-आधारित सामाजिक गतिशीलता (Class-based Social Mobility)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: जाति व्यवस्था में कठोर अंतर्विवाह (केवल अपनी जाति के भीतर विवाह), जातीय व्यवसाय (वंशानुगत पेशा) और ऐतिहासिक रूप से अस्पृश्यता जैसी विशेषताएं प्रमुख रही हैं। इसके विपरीत, जाति व्यवस्था में सामाजिक गतिशीलता बहुत सीमित और कठिन होती है, और यह मुख्य रूप से जाति के भीतर होती है, न कि वर्ग-आधारित।
  • संदर्भ और विस्तार: जाति व्यवस्था एक जटिल सामाजिक स्तरीकरण प्रणाली है जो भारत में सदियों से विद्यमान है। इसके नियम और प्रथाएं समय के साथ बदलती रही हैं, लेकिन इसकी मूल संरचनात्मक विशेषताएं बनी हुई हैं।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) जाति व्यवस्था की स्पष्ट विशेषताएँ हैं। (d) वर्ग-आधारित सामाजिक गतिशीलता, विशेष रूप से आधुनिक समाजों में, एक अलग अवधारणा है और जाति व्यवस्था की मुख्य विशेषता नहीं है।

प्रश्न 9: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) से तात्पर्य है:

  1. व्यक्तिगत मनोवृत्तियाँ और विश्वास।
  2. समाज के विभिन्न घटकों (जैसे संस्थाएँ, समूह, भूमिकाएँ) के बीच अपेक्षाकृत स्थिर और स्थायी पैटर्न, जो व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
  3. किसी समाज के भौतिक संसाधन।
  4. अल्पकालिक सामाजिक घटनाएँ।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक संरचना समाज के उन अंतर्निहित ढाँचों को संदर्भित करती है जो सामाजिक जीवन को व्यवस्थित करते हैं। इसमें सामाजिक संस्थाएँ (परिवार, शिक्षा, धर्म), सामाजिक स्तरीकरण, भूमिकाएँ और अपेक्षाएँ शामिल हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: संरचनात्मक-फंक्शनलिज्म (Structural-Functionalism) जैसे सिद्धांत सामाजिक संरचना पर बहुत जोर देते हैं, यह तर्क देते हुए कि समाज के विभिन्न हिस्से एक-दूसरे के साथ कैसे जुड़े हुए हैं और कैसे वे समाज की स्थिरता और निरंतरता में योगदान करते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत मनोवृत्तियाँ संरचना का हिस्सा हो सकती हैं, लेकिन वे स्वयं संरचना नहीं हैं। (c) भौतिक संसाधन आर्थिक पहलू हैं। (d) अल्पकालिक घटनाएँ संरचना के बजाय सामाजिक परिवर्तन का हिस्सा हो सकती हैं।

प्रश्न 10: **’सामंती समाजों’** की तुलना में **’औद्योगिक समाजों’** में **’परिवार’** की भूमिका में क्या परिवर्तन आया है?

  1. परिवार की भूमिका अधिक विस्तृत और प्रमुख हो गई है।
  2. परिवार की भूमिका अधिक विशिष्ट (specialized) और संकुचित हो गई है, क्योंकि शिक्षा, मनोरंजन और आर्थिक उत्पादन जैसी कई भूमिकाएँ अन्य संस्थाओं को हस्तांतरित हो गई हैं।
  3. परिवार ने अपनी सभी भूमिकाएँ खो दी हैं।
  4. परिवार केवल विवाह संस्था तक सीमित हो गया है।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: औद्योगिक समाजों के उदय के साथ, परिवार, जो पहले उत्पादन (कृषि, शिल्प) और शिक्षा का एक केंद्रीय इकाई था, की भूमिकाएं कम विशिष्ट हो गईं। शिक्षा, मनोरंजन, और आर्थिक उत्पादन जैसे कार्य अन्य संस्थाओं (जैसे स्कूल, मनोरंजन उद्योग, कारखाने) को सौंप दिए गए।
  • संदर्भ और विस्तार: सामंती समाजों में, परिवार एक विस्तारित इकाई (extended family) के रूप में कार्य करता था, जो आर्थिक, सामाजिक और प्रजनन संबंधी कार्यों का केंद्र था। औद्योगिकरण ने ‘परमाणु परिवार’ (nuclear family) के उदय को प्रोत्साहित किया, जिसकी प्राथमिक भूमिकाएं भावनात्मक समर्थन और समाजीकरण (socialization) तक सीमित हो गईं।
  • गलत विकल्प: परिवार की भूमिका विस्तृत होने के बजाय संकुचित हुई है। इसने अपनी भूमिकाएं खोई नहीं हैं, बल्कि वे दूसरी संस्थाओं को हस्तांतरित हुई हैं। यह केवल विवाह संस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि भावनात्मक और समाजीकरण संबंधी भूमिकाएँ अभी भी महत्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 11: **’संस्कृति’ (Culture)** का सबसे व्यापक समाजशास्त्रीय अर्थ क्या है?

  1. केवल उच्च वर्ग के कलात्मक और बौद्धिक उत्पाद।
  2. एक समाज के सदस्यों द्वारा साझा किए गए व्यवहार के तरीके, ज्ञान, विश्वास, मूल्य, कला, नैतिकता, कानून, रीति-रिवाज और अन्य क्षमताएँ तथा आदतें।
  3. केवल पारंपरिक मूल्य और अनुष्ठान।
  4. तकनीकी प्रगति और औद्योगीकरण।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: संस्कृति एक अत्यंत व्यापक अवधारणा है जो किसी समूह या समाज के सदस्यों द्वारा सीखे गए और साझा किए गए सभी पहलुओं को समाहित करती है। इसमें केवल कला या साहित्य ही नहीं, बल्कि दैनिक जीवन के तरीके, सोच के तरीके, और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने वाले सभी तत्व शामिल हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: एडवर्ड बर्नेट टायलर (Edward Burnett Tylor) ने अपनी पुस्तक “प्रिमिटिव कल्चर” (Primitive Culture) में संस्कृति को “वह जटिल समग्रता जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, नैतिकता, कानून, कसम और कोई भी अन्य क्षमताएं और आदतें शामिल हैं, जिन्हें मनुष्य समाज के सदस्य के रूप में अर्जित करता है” के रूप में परिभाषित किया है।
  • गलत विकल्प: (a) संस्कृति केवल अभिजात वर्ग तक सीमित नहीं है। (c) संस्कृति में परंपराएं शामिल हैं, लेकिन यह केवल पारंपरिक मूल्य या अनुष्ठान नहीं है। (d) तकनीकी प्रगति सांस्कृतिक परिवर्तन का एक कारक हो सकती है, लेकिन यह स्वयं संस्कृति नहीं है।

प्रश्न 12: **’मैरियन जे. लेवी जूनियर’ (Marion J. Levy Jr.)** ने **’आधुनिकीकरण’ (Modernization)** को कैसे परिभाषित किया?

  1. किसी भी समाज का पश्चिमीकरण।
  2. एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें एक समाज की संरचना और संस्कृति, पश्चिमी समाजों के समान, कम पारंपरिक और अधिक “औद्योगिक” विशेषताओं को अपनाती है।
  3. नए तकनीकी उपकरणों का केवल अधिग्रहण।
  4. किसी भी समाज का लोकतंत्रीकरण।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: मैरियन जे. लेवी जूनियर ने आधुनिकीकरण को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जो पारंपरिक समाजों को ऐसे समाजों में बदल देती है जो औद्योगिक समाजों की संरचनात्मक और सांस्कृतिक विशेषताओं को साझा करते हैं। उन्होंने ऐतिहासिक रूप से पश्चिमी समाजों को ऐसे मॉडल के रूप में देखा।
  • संदर्भ और विस्तार: लेवी ने अपनी पुस्तक “द फैमिली गेन इन मॉडर्नाइजेशन” (The Family Revolution in Modernization) में इस विचार को विकसित किया। उनका दृष्टिकोण अक्सर पश्चिमी-केंद्रित (Western-centric) होने के लिए आलोचना का विषय रहा है।
  • गलत विकल्प: आधुनिकीकरण केवल पश्चिमीकरण नहीं है, हालांकि ऐतिहासिक रूप से यह अक्सर एक साथ हुआ है। यह केवल तकनीकी उपकरणों का अधिग्रहण नहीं है, बल्कि व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन है। यह जरूरी नहीं कि लोकतंत्रीकरण को ही लक्षित करे।

प्रश्न 13: **’समूह गतिशीलता’ (Group Dynamics)** के अध्ययन में **’कर्ट लेविन’ (Kurt Lewin)** का क्या योगदान है?

  1. उन्होंने ‘पहचान’ (Identification) की अवधारणा विकसित की।
  2. उन्होंने ‘फील्ड थ्योरी’ (Field Theory) का उपयोग करके समूह व्यवहार, नेतृत्व शैलियों और समूह संघर्ष के कारणों का अध्ययन किया।
  3. उन्होंने सामाजिक परिवर्तन के तीन चरणों (ठहराव, परिवर्तन, पुनःठहराव) का प्रस्ताव दिया।
  4. उन्होंने ‘संरचनात्मक-फंक्शनलिज्म’ की नींव रखी।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: कर्ट लेविन, जिन्हें आधुनिक सामाजिक मनोविज्ञान का संस्थापक पिता माना जाता है, ने ‘फील्ड थ्योरी’ का उपयोग करके समूह के भीतर शक्ति, परिवर्तन और गतिशीलता का विश्लेषण किया। उन्होंने माना कि किसी व्यक्ति का व्यवहार उसके मनोवैज्ञानिक क्षेत्र (psycho-social field) पर निर्भर करता है, जिसमें व्यक्ति और उसके पर्यावरण के बीच अंतःक्रिया शामिल है।
  • संदर्भ और विस्तार: लेविन ने नेतृत्व की तीन शैलियों (सत्तावादी, लोकतांत्रिक, अनुमेय) का भी अध्ययन किया और पाया कि लोकतांत्रिक नेतृत्व सबसे प्रभावी होता है। उन्होंने ‘समूह सामंजस्य’ (group cohesion) और ‘समूह निर्णय’ (group decision) जैसे महत्वपूर्ण अवधारणाओं पर भी काम किया।
  • गलत विकल्प: ‘पहचान’ सामाजिक मनोविज्ञान में एक अलग अवधारणा है। (c) सामाजिक परिवर्तन के तीन चरण कर्ट लेविन से नहीं, बल्कि एडगर शाइन (Edgar Schein) जैसे विचारकों से जुड़े हैं। (d) संरचनात्मक-फंक्शनलिज्म मुख्य रूप से दुर्खीम, पार्सन्स और मर्टन जैसे समाजशास्त्रियों से जुड़ा है।

प्रश्न 14: **’औद्योगीकरण’ (Industrialization)** के परिणामस्वरूप **’शहरीकरण’ (Urbanization)** में क्या संबंध है?

  1. औद्योगीकरण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।
  2. औद्योगीकरण से विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, जो लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिससे शहरीकरण बढ़ता है।
  3. शहरीकरण के कारण औद्योगीकरण धीमा हो जाता है।
  4. औद्योगीकरण और शहरीकरण का कोई संबंध नहीं है।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: औद्योगीकरण, विशेष रूप से कारखानों और अन्य औद्योगिक इकाइयों की स्थापना, शहरों में रोजगार के अवसर पैदा करता है। इसके कारण, ग्रामीण क्षेत्रों के लोग बेहतर आर्थिक संभावनाओं की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं, जिससे शहरी आबादी का घनत्व और आकार बढ़ता है, जो शहरीकरण है।
  • संदर्भ और विस्तार: औद्योगिक क्रांति ने बड़े पैमाने पर शहरीकरण को प्रेरित किया, जिससे पारंपरिक ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं से औद्योगिक शहरी अर्थव्यवस्थाओं में बदलाव आया। यह एक सहसंबद्ध (correlated) प्रक्रिया है, जहाँ औद्योगीकरण शहरीकरण का एक प्रमुख चालक है।
  • गलत विकल्प: औद्योगीकरण ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार कम करता है, बढ़ाता नहीं। (c) शहरीकरण औद्योगीकरण को धीमा नहीं करता, बल्कि अक्सर इसे बढ़ावा देता है। (d) इन दोनों प्रक्रियाओं के बीच एक मजबूत संबंध है।

प्रश्न 15: **’सामाजिक समस्या’ (Social Problem)** को समाजशास्त्रीय रूप से कैसे समझा जाता है?

  1. यह केवल व्यक्तिगत नैतिक पतन का परिणाम है।
  2. यह एक ऐसी स्थिति है जिसे समाज के एक महत्वपूर्ण हिस्से द्वारा समस्या के रूप में पहचाना जाता है और जिसे सामूहिक रूप से समाधान की आवश्यकता होती है।
  3. यह केवल सरकार की असफलता है।
  4. यह केवल प्राकृतिक आपदाओं के कारण उत्पन्न होती है।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, सामाजिक समस्या केवल व्यक्तिगत या नैतिक पतन का परिणाम नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी स्थिति है जो समाज के सदस्यों के एक बड़े समूह द्वारा समस्या के रूप में पहचानी जाती है और जिसके समाधान के लिए सामाजिक कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: सामाजिक समस्याओं में गरीबी, अपराध, बेरोजगारी, भेदभाव, भ्रष्टाचार आदि शामिल हैं। इनकी परिभाषा संदर्भ, समय और समाज के मूल्यों के अनुसार बदल सकती है। सामाजिक समस्याएं अक्सर सामाजिक संरचनाओं, संस्थाओं और सामाजिक प्रक्रियाओं का परिणाम होती हैं।
  • गलत विकल्प: (a), (c), और (d) सामाजिक समस्याओं को अत्यधिक सरलीकृत या एकांगी दृष्टिकोण से देखते हैं, जबकि समाजशास्त्र इन समस्याओं के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कारणों की पड़ताल करता है।

प्रश्न 16: **’संरचनात्मक-फंक्शनलिज्म’ (Structural-Functionalism)** का मुख्य तर्क क्या है?

  1. समाज छोटे-छोटे अंतःक्रियात्मक इकाइयों से बना है।
  2. समाज एक जटिल प्रणाली है जिसके विभिन्न भाग (संरचनाएँ) एक साथ मिलकर कार्य करते हैं ताकि समाज को स्थिर और एकजुट रख सकें।
  3. सामाजिक परिवर्तन हमेशा हिंसक क्रांतियों से आता है।
  4. व्यक्तिगत निर्णय समाज को परिभाषित करते हैं।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: संरचनात्मक-फंक्शनलिज्म, जो एमिल दुर्खीम, हर्बर्ट स्पेंसर और ताल्कोट पार्सन्स जैसे विचारकों से जुड़ा है, यह मानता है कि समाज एक जैविक जीव की तरह है, जहाँ प्रत्येक अंग (सामाजिक संस्था) का एक विशेष कार्य (function) होता है जो पूरे शरीर (समाज) के अस्तित्व और स्थिरता में योगदान देता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत समाज की स्थिरता, सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक सामंजस्य पर जोर देता है। यह देखता है कि कैसे विभिन्न सामाजिक संरचनाएँ (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म) समाज की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।
  • गलत विकल्प: (a) यह प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद से अधिक संबंधित है। (c) संरचनात्मक-फंक्शनलिज्म क्रांति के बजाय क्रमिक परिवर्तन पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है। (d) यह व्यक्तिगत से अधिक संरचनाओं पर जोर देता है।

प्रश्न 17: **’जनसंचार माध्यम’ (Mass Media)** समाज में क्या भूमिका निभाते हैं?

  1. केवल मनोरंजन प्रदान करना।
  2. समाज के सदस्यों को सूचना देना, सामाजिक मूल्यों का प्रसार करना, और जनमत को प्रभावित करना।
  3. केवल सरकार का प्रचार करना।
  4. सामाजिक समस्याओं को पूरी तरह से अनदेखा करना।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: जनसंचार माध्यम समाज में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाते हैं, जिनमें सूचना प्रसार, समाजीकरण (सांस्कृतिक मूल्यों और मानदंडों का प्रसार), मनोरंजन, और सामाजिक एवं राजनीतिक एजेंडा तय करना (agenda-setting) शामिल हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: वे सामाजिक नियंत्रण (social control) के एक शक्तिशाली उपकरण हो सकते हैं, लेकिन वे सामाजिक परिवर्तन और असंतोष को भी बढ़ावा दे सकते हैं। समाजशास्त्री अक्सर जनसंचार माध्यमों के प्रभाव और शक्ति का विश्लेषण करते हैं।
  • गलत विकल्प: जनसंचार माध्यम केवल मनोरंजन का स्रोत नहीं हैं। वे सरकार का प्रचार भी कर सकते हैं, लेकिन उनकी भूमिका इससे कहीं अधिक व्यापक है। वे सामाजिक समस्याओं को अनदेखा करने के बजाय उन्हें उजागर या प्रभावित भी कर सकते हैं।

प्रश्न 18: **’लिंग’ (Gender)** की समाजशास्त्रीय अवधारणा **’जैविक लिंग’ (Sex)** से किस प्रकार भिन्न है?

  1. दोनों समान अर्थ वाले शब्द हैं।
  2. जैविक लिंग जन्म से निर्धारित शारीरिक और जैविक विशेषताएँ हैं, जबकि लिंग सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से निर्मित भूमिकाएँ, व्यवहार और पहचान हैं।
  3. लिंग महिलाओं को संदर्भित करता है, जबकि जैविक लिंग पुरुषों को।
  4. जैविक लिंग सामाजिक है, और लिंग जैविक है।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: समाजशास्त्र में, ‘जैविक लिंग’ (Sex) से तात्पर्य जैविक विशेषताओं (जैसे गुणसूत्र, हार्मोन, जननांग) से है जो किसी व्यक्ति को पुरुष या महिला के रूप में वर्गीकृत करते हैं। इसके विपरीत, ‘लिंग’ (Gender) उन सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक विशेषताओं, भूमिकाओं और अपेक्षाओं को संदर्भित करता है जिन्हें समाज पुरुषों और महिलाओं के लिए निर्दिष्ट करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह भेद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बताता है कि समाज अक्सर यह तय करने में भूमिका निभाता है कि पुरुषों और महिलाओं को कैसा व्यवहार करना चाहिए, चाहे उनकी जैविक भिन्नता कुछ भी हो। यह लैंगिक असमानता और शक्ति संबंधों को समझने में मदद करता है।
  • गलत विकल्प: (a) ये दो भिन्न अवधारणाएँ हैं। (c) यह गलत है। (d) यह परिभाषाओं को उलट देता है।

प्रश्न 19: **’सामाजिक अनुसंधान’ (Social Research)** में **’गुणात्मक विधि’ (Qualitative Method)** का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

  1. संख्यात्मक डेटा एकत्र करना और सांख्यिकीय विश्लेषण करना।
  2. सामाजिक घटनाओं की गहराई, अर्थ और संदर्भ को समझना।
  3. बड़े नमूना आकार का उपयोग करके सामान्यीकरण (generalization) प्राप्त करना।
  4. पूर्वाग्रह-मुक्त, वस्तुनिष्ठ माप सुनिश्चित करना।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: गुणात्मक विधियाँ, जैसे कि गहन साक्षात्कार, फोकस समूह और नृवंशविज्ञान (ethnography), सामाजिक दुनिया को गहराई से समझने पर केंद्रित होती हैं। ये विधियाँ प्रतिभागियों के दृष्टिकोण, अनुभवों और अर्थों को समझने की कोशिश करती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: ये विधियाँ ‘क्यों’ और ‘कैसे’ जैसे प्रश्नों का उत्तर देने के लिए उपयोगी हैं। इनका उपयोग अक्सर नए सिद्धांत विकसित करने या मौजूदा सिद्धांतों को परिष्कृत करने के लिए किया जाता है।
  • गलत विकल्प: (a) यह मात्रात्मक विधि (Quantitative Method) का उद्देश्य है। (c) गुणात्मक अध्ययन अक्सर छोटे नमूना आकारों पर केंद्रित होते हैं और सामान्यीकरण से अधिक गहरी समझ पर जोर देते हैं। (d) जबकि निष्पक्षता वांछनीय है, गुणात्मक विधियों में व्याख्यात्मकता (interpretive) और व्यक्तिपरक (subjective) तत्व अधिक हो सकते हैं।

प्रश्न 20: **’टैलबोट पार्सन्स’ (Talcott Parsons)** के **’सामाजिक व्यवस्था’ (Social System)** के सिद्धांत के अनुसार, समाज को जीवित रखने के लिए कौन सी **’कार्यात्मक आवश्यकता’ (Functional Imperative)** आवश्यक नहीं है?

  1. लक्ष्य प्राप्ति (Goal Attainment)
  2. अनुकूलन (Adaptation)
  3. सीमा-अतिक्रमण (Boundary-crossing)
  4. एकीकरण (Integration)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: टैलबोट पार्सन्स ने AGIL मॉडल (Adaptation, Goal Attainment, Integration, Latency/Pattern Maintenance) प्रस्तुत किया, जो बताता है कि किसी भी सामाजिक प्रणाली को संचालित रहने के लिए चार मुख्य कार्यात्मक आवश्यकताओं को पूरा करना होता है। ‘सीमा-अतिक्रमण’ (Boundary-crossing) इनमें से कोई भी आवश्यक कार्यात्मक आवश्यकता नहीं है।
  • संदर्भ और विस्तार: अनुकूलन (Adaptation): प्रणाली को अपने पर्यावरण के अनुकूल होना पड़ता है। लक्ष्य प्राप्ति (Goal Attainment): प्रणाली को अपने लक्ष्यों को परिभाषित और प्राप्त करना पड़ता है। एकीकरण (Integration): प्रणाली के विभिन्न हिस्सों को एक साथ मिलकर काम करना पड़ता है। सुप्तता/पैटर्न रखरखाव (Latency/Pattern Maintenance): प्रणाली को अपने मूल मूल्यों और पैटर्न को बनाए रखना पड़ता है।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (d) पार्सन्स के AGIL मॉडल के प्रमुख घटक हैं।

प्रश्न 21: **’भारतीय समाज’** के संदर्भ में, **’ट्राइबलाइजेशन’ (Tribalization)** से क्या तात्पर्य है?

  1. जनजातीय समुदायों का शहरी क्षेत्रों में प्रवास।
  2. मुख्यधारा के समाज द्वारा जनजातियों का सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से आत्मसात्करण (assimilation)।
  3. जनजातीय समुदायों के बीच आंतरिक सांस्कृतिक परिवर्तन।
  4. जनजातियों की अपनी विशिष्ट पहचान को मजबूत करना।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: ट्राइबलाइजेशन वह प्रक्रिया है जिसमें जनजातीय समूह (tribes) धीरे-धीरे मुख्यधारा के समाज (जैसे हिंदू धर्म) की संस्कृति, रीति-रिवाजों और सामाजिक संरचनाओं को अपना लेते हैं, जिससे उनकी अपनी विशिष्ट पहचान कमजोर हो जाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह प्रक्रिया अक्सर सांस्कृतिक संपर्क, सामाजिक दबाव और आर्थिक एकीकरण के कारण होती है। यह संस्कृतीकरण (Sanskritization) के समान है, लेकिन अक्सर इसमें अधिक सांस्कृतिक मिश्रण या रूपांतरण शामिल हो सकता है।
  • गलत विकल्प: (a) प्रवासन एक अलग प्रक्रिया है। (c) आंतरिक परिवर्तन ‘ट्राइबलाइजेशन’ नहीं है। (d) यह प्रक्रिया अक्सर पहचान को कमजोर करती है, न कि मजबूत।

प्रश्न 22: **’सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility)** का तात्पर्य है:

  1. समूहों के बीच सांस्कृतिक विचारों का आदान-प्रदान।
  2. एक व्यक्ति या समूह का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में जाना, चाहे ऊपर की ओर, नीचे की ओर, या क्षैतिज रूप से।
  3. किसी समाज की समग्र आर्थिक प्रगति।
  4. व्यक्तियों के बीच सामाजिक संबंधों का निर्माण।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक गतिशीलता वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति या समूह समय के साथ अपनी सामाजिक स्थिति (जैसे आय, शिक्षा, व्यवसाय, या पदानुक्रम में स्थान) बदलते हैं। यह ऊर्ध्वाधर (vertical) (ऊपर या नीचे) या क्षैतिज (horizontal) (समान स्तर पर) हो सकती है।
  • संदर्भ और विस्तार: गतिशीलता का अध्ययन समाज के खुलेपन या बंदपन को समझने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, एक वर्ग-आधारित समाज में क्षैतिज गतिशीलता (जैसे एक ही वर्ग के भीतर विभिन्न व्यवसायों में जाना) आम हो सकती है, जबकि एक जाति-आधारित समाज में ऊर्ध्वाधर गतिशीलता बहुत दुर्लभ होती है।
  • गलत विकल्प: (a) सांस्कृतिक आदान-प्रदान सांस्कृतिक प्रसार है। (c) आर्थिक प्रगति सामाजिक गतिशीलता का एक परिणाम हो सकती है, लेकिन यह स्वयं गतिशीलता नहीं है। (d) सामाजिक संबंध गतिशीलता का एक हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन वे स्वयं गतिशीलता नहीं हैं।

प्रश्न 23: **’समाजशास्त्रीय कल्पनाशक्ति’ (Sociological Imagination)** की अवधारणा किसने दी?

  1. मैक्स वेबर
  2. कार्ल मार्क्स
  3. C. राइट मिल्स
  4. डेविड हार्वे

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: C. राइट मिल्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “द सोशियोलॉजिकल इमेजिनेशन” (The Sociological Imagination) में इस अवधारणा को पेश किया। उनका मानना था कि समाजशास्त्रीय कल्पनाशक्ति हमें व्यक्तिगत जीवन (biography) को सामाजिक संरचना (social structure) और इतिहास (history) से जोड़ने की क्षमता देती है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह क्षमता हमें यह समझने में मदद करती है कि कैसे व्यक्तिगत समस्याएं वास्तव में व्यापक सामाजिक मुद्दों का प्रतिबिंब हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति की बेरोजगारी को केवल व्यक्तिगत अक्षमता के बजाय आर्थिक मंदी जैसे बड़े सामाजिक-आर्थिक संदर्भ में देखना।
  • गलत विकल्प: अन्य विकल्प प्रमुख समाजशास्त्री हैं, लेकिन यह विशेष अवधारणा C. राइट मिल्स से जुड़ी है।

प्रश्न 24: **’धर्म’ (Religion)** की समाजशास्त्रीय भूमिकाओं में क्या शामिल है?

  1. केवल व्यक्तिगत मोक्ष की प्राप्ति।
  2. सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा देना, जीवन को अर्थ प्रदान करना, और सामाजिक नियंत्रण में योगदान करना।
  3. विज्ञान के विकास में बाधा डालना।
  4. राजनीतिक सत्ता को पूरी तरह से अलग रखना।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: समाजशास्त्री धर्म को न केवल एक व्यक्तिगत विश्वास प्रणाली के रूप में, बल्कि एक सामाजिक संस्था के रूप में भी देखते हैं। यह साझा अनुष्ठानों और विश्वासों के माध्यम से सामाजिक एकजुटता (जैसे दुर्खीम ने उल्लेख किया) को बढ़ावा देता है, जीवन की अनिश्चितताओं और कष्टों को समझने के लिए अर्थ प्रदान करता है, और नैतिक मानदंडों के माध्यम से सामाजिक नियंत्रण में भूमिका निभाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने धर्म को ‘पवित्र’ और ‘अपवित्र’ के बीच अंतर करने के रूप में देखा, जो समाज के प्रति गहन लगाव को दर्शाता है। वेबर ने प्रोटेस्टेंट नैतिकता और पूंजीवाद के बीच संबंध का विश्लेषण किया।
  • गलत विकल्प: धर्म का कार्य केवल व्यक्तिगत मोक्ष नहीं है। यह विज्ञान के विकास में बाधा डाल भी सकता है और बढ़ावा भी दे सकता है। धर्म का राजनीति से संबंध जटिल है; यह अक्सर सत्ता से जुड़ा होता है।

प्रश्न 25: **’भारतीय जनजातियों’ (Indian Tribes)** के संबंध में **’आइसोलेशन’ (Isolation)** की नीति का क्या अर्थ है?

  1. जनजातियों को आधुनिक समाज से पूरी तरह से अलग रखना और उनके पारंपरिक जीवन शैली को बनाए रखने देना।
  2. जनजातियों को बाहरी दुनिया से संवाद करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  3. जनजातियों के लिए विकास परियोजनाएँ लागू करना।
  4. जनजातियों का जबरन शहरीकरण।

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: ‘आइसोलेशन’ की नीति भारतीय सरकार द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान या उसके तुरंत बाद अपनाई गई एक प्रारंभिक नीति थी, जिसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों को बाहरी दुनिया के नकारात्मक प्रभावों से बचाना था। इसके तहत, उन्हें आधुनिक समाज से बहुत कम संपर्क रखने की अनुमति थी।
  • संदर्भ और विस्तार: इस नीति की अपनी सीमाएँ थीं और अक्सर इसकी आलोचना की जाती है क्योंकि इसने जनजातियों के विकास और एकीकरण में बाधा डाली। बाद में, ‘एकीकरण’ (Integration) और ‘संरक्षण’ (Protection) जैसी नीतियों को अपनाया गया।
  • गलत विकल्प: (b), (c), और (d) ‘आइसोलेशन’ की नीति के विपरीत हैं, जो अलगाव पर जोर देती है।

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