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समाजशास्त्र की दैनिक चुनौती: अवधारणाओं को पारें, शीर्ष पर पहुँचें!

समाजशास्त्र की दैनिक चुनौती: अवधारणाओं को पारें, शीर्ष पर पहुँचें!

क्या आप समाजशास्त्र की गहरी समझ रखने और अपनी परीक्षा की तैयारी को धार देने के लिए तैयार हैं? हर दिन एक नया अवसर है अपनी अवधारणाओं को परखने और महत्वपूर्ण सिद्धांतकारों की दुनिया में गोता लगाने का। आइए, आज के इस मानसिक व्यायाम से अपनी समाजशास्त्रीय यात्रा को और भी सशक्त बनाएं!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: ‘सांस्कृतिक विलम्ब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने दी?

  1. ए.एल. क्रोबर
  2. विलियम ग्राहम समनर
  3. ऑगस्ट कॉम्ते
  4. एमिल दुर्खीम

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: विलियम ग्राहम समनर ने अपनी पुस्तक ‘फ़ोकवेज़’ (Folkways) में ‘सांस्कृतिक विलम्ब’ (Cultural Lag) की अवधारणा का प्रतिपादन किया। यह अवधारणा बताती है कि किसी समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे रीति-रिवाज, मान्यताएं) की तुलना में अधिक तेज़ी से बदलती है, जिससे सामाजिक तनाव और अनुकूलन की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: समनर ने इस अवधारणा के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन की जटिलताओं को समझाया। उन्होंने भौतिक संस्कृति को ‘टेक्नोलॉजी’ और अभौतिक संस्कृति को ‘मोरल्स’ (Morals) कहा।
  • गलत विकल्प: ए.एल. क्रोबर ने ‘संस्कृति’ (Culture) पर महत्वपूर्ण कार्य किया। ऑगस्ट कॉम्ते को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है और उन्होंने ‘प्रत्यात्मक समाजशास्त्र’ (Positivism) का विकास किया। एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) और ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) जैसी अवधारणाएँ दीं।

प्रश्न 2: समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य (Sociological Imagination) की अवधारणा किसने विकसित की?

  1. सी. राइट मिल्स
  2. इर्विंग गॉफमैन
  3. पीटर एल. बर्जर
  4. हर्बर्ट ब्लूमर

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सी. राइट मिल्स ने अपनी प्रभावशाली पुस्तक ‘द सोशियोलॉजिकल इमेजिनेशन’ (The Sociological Imagination) में इस अवधारणा को विकसित किया। यह व्यक्तिगत समस्याओं को व्यापक सामाजिक संरचनाओं और ऐतिहासिक संदर्भों से जोड़ने की क्षमता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मिल्स के अनुसार, समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य व्यक्ति को उसकी अपनी जीवनी (biography) को समाज के इतिहास (history) और सार्वजनिक संरचना (public structure) के साथ जोड़ने में मदद करता है।
  • गलत विकल्प: इर्विंग गॉफमैन ने ‘सांकेतिक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) और ‘नाटकीय विश्लेषण’ (Dramaturgical Analysis) पर काम किया। पीटर एल. बर्जर ने ‘द सेक्रेड रेवेलेशन’ (The Sacred Revelation) और ‘इनविटेशन टू सोशियोलॉजी’ (Invitation to Sociology) लिखी। हर्बर्ट ब्लूमर ने ‘सांकेतिक अंतःक्रियावाद’ को एक व्यवस्थित सिद्धांत के रूप में विकसित किया।

प्रश्न 3: दुर्खीम के अनुसार, समाज के अध्ययन के लिए कौन सी विधि सबसे उपयुक्त है?

  1. वस्तुनिष्ठ (Objective)
  2. व्यक्तिनिष्ठ (Subjective)
  3. व्याख्यात्मक (Interpretive)
  4. सहज ज्ञान युक्त (Intuitive)

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: एमिल दुर्खीम, समाजशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में स्थापित करना चाहते थे और उन्होंने ‘सामाजिक तथ्यों’ (Social Facts) के अध्ययन पर जोर दिया। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्यों को ‘वस्तुओं की तरह’ (as things) माना जाना चाहिए, जिसका अर्थ है कि उनका अध्ययन वस्तुनिष्ठ, अनुभवजन्य और व्यवस्थित तरीके से किया जाना चाहिए।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में इस दृष्टिकोण को विस्तार से समझाया। उनका मानना था कि समाजशास्त्र को प्राकृतिक विज्ञानों की तरह अनुभवजन्य साक्ष्यों पर आधारित होना चाहिए।
  • गलत विकल्प: ‘व्यक्तिनिष्ठ’, ‘व्याख्यात्मक’ और ‘सहज ज्ञान युक्त’ विधियाँ समाजशास्त्र में वेबर और प्रतीकात्मक अंतःक्रियावादियों द्वारा अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, न कि दुर्खीम द्वारा।

प्रश्न 4: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का कौन सा सिद्धांत असमानता को समाज के लिए आवश्यक और कार्यात्मक मानता है?

  1. मार्क्सवादी सिद्धांत
  2. प्रकार्यवादी सिद्धांत
  3. संघर्ष सिद्धांत
  4. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: प्रकार्यवादी सिद्धांत (Functionalist Theory), विशेष रूप से डेविस और मूर (Davis and Moore) द्वारा विकसित, यह तर्क देता है कि सामाजिक स्तरीकरण समाज के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए आवश्यक है। यह सबसे महत्वपूर्ण पदों के लिए सबसे योग्य व्यक्तियों को आकर्षित करने और प्रेरित करने के लिए एक तंत्र प्रदान करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: प्रकार्यवादियों का मानना है कि पद की महत्ता के अनुसार पुरस्कार (वेतन, प्रतिष्ठा) वितरित किए जाते हैं, जो लोगों को कड़ी मेहनत करने और आवश्यक कौशल विकसित करने के लिए प्रेरित करते हैं।
  • गलत विकल्प: मार्क्सवादी और संघर्ष सिद्धांत असमानता को शक्ति और शोषण के परिणाम के रूप में देखते हैं। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तिगत स्तर पर सामाजिक संपर्क और अर्थ निर्माण पर केंद्रित है।

प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता ‘जाति’ (Caste) व्यवस्था से संबंधित नहीं है?

  1. अंतर्विवाही समूह (Endogamy)
  2. व्यवसाय का वंशानुक्रम (Heredity of Occupation)
  3. गतिशीलता का अभाव (Lack of Mobility)
  4. ऊपरी और निचली जातियों के बीच सहयोग (Cooperation between Upper and Lower Castes)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: भारतीय जाति व्यवस्था में, विभिन्न जातियों के बीच संबंध अक्सर पदानुक्रमित (hierarchical) और अलगाववादी (segregative) होते हैं, जिनमें सहयोग की बजाय निश्चित नियम और प्रतिबंध होते हैं। यद्यपि विभिन्न जातियों के बीच आर्थिक और सामाजिक लेन-देन होते हैं, लेकिन यह ‘सहयोग’ के रूप में परिभाषित नहीं होता।
  • संदर्भ और विस्तार: अंतर्विवाह (Endogamy), व्यवसाय का वंशानुक्रम और गतिशीलता का अभाव (restrictions on social and occupational mobility) जाति व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं हैं।
  • गलत विकल्प: विकल्प (a), (b), और (c) भारतीय जाति व्यवस्था की परिभाषित विशेषताएँ हैं।

प्रश्न 6: ‘अलंकरण’ (Ritualism) की अवधारणा, जो प्रकार्यवादी ढांचे के भीतर विकसित हुई, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?

  1. रॉबर्ट के. मर्टन
  2. टैल्कॉट पार्सन्स
  3. अल्फ्रेड शुट्ज़
  4. हॉवर्ड बेकर

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: रॉबर्ट के. मर्टन ने ‘अलंकरण’ (Ritualism) को ‘एनोमी’ (Anomie) के अपने विश्लेषण के संदर्भ में एक प्रतिमान (pattern) के रूप में पहचाना। यह तब होता है जब व्यक्ति सांस्कृतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के बजाय नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मर्टन के ‘विकृतियों का प्रतिमान’ (Modes of Adaptation) में, अलंकरण नवाचार (Innovation), कर्मकांड (Retreatism) और विद्रोह (Rebellion) से भिन्न है, जहाँ व्यक्ति लक्ष्यों को अस्वीकार कर देता है।
  • गलत विकल्प: टैल्कॉट पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था और प्रकार्यवाद पर व्यापक कार्य किया। अल्फ्रेड शुट्ज़ ने ‘प्रपंचशास्त्र’ (Phenomenology) को समाजशास्त्र में एकीकृत किया। हॉवर्ड बेकर ने ‘डेवियन्स’ (Deviance) और ‘लेबलिंग सिद्धांत’ (Labeling Theory) पर काम किया।

  • प्रश्न 7: ‘संस्थागत पूर्वाग्रह’ (Institutional Bias) का क्या अर्थ है?

    1. किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत पूर्वाग्रह
    2. किसी संस्था के नियमों और प्रथाओं में निहित पूर्वाग्रह
    3. किसी समूह का दूसरे समूह के प्रति पूर्वाग्रह
    4. पूर्वग्रहों का सामाजिकरण

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: ‘संस्थागत पूर्वाग्रह’ तब होता है जब किसी संस्था के नियम, नीतियां, प्रथाएं या सामान्य संचालन अनजाने या जानबूझकर कुछ समूहों के प्रति अनुचित लाभ या हानि पहुंचाते हैं, भले ही इसके पीछे कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा न हो।
    • संदर्भ और विस्तार: यह सामाजिक असमानता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, उदाहरण के लिए, शिक्षा, रोजगार या न्याय प्रणाली में।
    • गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत पूर्वाग्रह है। (c) यह अधिक सामान्य सामाजिक पूर्वाग्रह को दर्शाता है। (d) सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति समाज के मानदंडों को सीखता है।

    प्रश्न 8: ‘परिवार’ (Family) को किस प्रकार की संस्था माना जाता है?

    1. प्राथमिक संस्था
    2. द्वितीयक संस्था
    3. संबंधित संस्था
    4. अवरोधक संस्था

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: परिवार को समाज की ‘प्राथमिक संस्था’ (Primary Institution) माना जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के समाजीकरण, भावनात्मक समर्थन और प्रारंभिक सामाजिक संपर्क का मुख्य स्रोत है। यह वह पहली संस्था है जिससे व्यक्ति का परिचय होता है।
    • संदर्भ और विस्तार: प्राथमिक संस्थाएँ वे हैं जो व्यक्ति के प्रारंभिक विकास और समाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जैसे परिवार, खेल समूह, और पड़ोस।
    • गलत विकल्प: द्वितीयक संस्थाएँ अधिक विशिष्ट उद्देश्य वाली होती हैं (जैसे स्कूल, चर्च)। संबंधित संस्थाएँ अन्य संस्थाओं से जुड़ी होती हैं। अवरोधक संस्थाएँ सामाजिक परिवर्तन को रोकने का प्रयास करती हैं।

    प्रश्न 9: ‘धर्म’ (Religion) के प्रकार्यवादी दृष्टिकोण के अनुसार, यह निम्नलिखित में से कौन सी भूमिका निभाता है?

    1. सामाजिक एकता को बढ़ावा देना
    2. सामूहिक विवेक को मजबूत करना
    3. सामाजिक नियंत्रण स्थापित करना
    4. उपरोक्त सभी

    उत्तर: (d)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: एमिल दुर्खीम जैसे प्रकार्यवादियों के अनुसार, धर्म समाज के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य करता है: यह पवित्र और अपवित्र के बीच भेद करके सामाजिक एकता (social solidarity) को बढ़ावा देता है, यह सामूहिक विवेक (collective conscience) को मजबूत करता है, और यह नैतिकता तथा सामाजिक नियंत्रण (social control) के माध्यम से व्यवस्था बनाए रखने में मदद करता है।
    • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘धर्म के प्रारंभिक रूप’ (The Elementary Forms of Religious Life) में ईश्वर के बजाय समाज को ही पूजनीय मानने का तर्क दिया, जिससे समाज की एकता बढ़ती है।
    • गलत विकल्प: सभी विकल्प धर्म के प्रकार्यात्मक महत्व को दर्शाते हैं, जैसा कि प्रकार्यवादियों द्वारा बताया गया है।

    प्रश्न 10: ‘पूंजीवाद’ (Capitalism) के उदय को वेबर ने किस सामाजिक-धार्मिक आंदोलन से जोड़ा?

    1. कैथोलिक सुधार
    2. प्रोटेस्टेंट नैतिकता
    3. सूफीवाद
    4. बौद्ध धर्म

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: मैक्स वेबर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म’ (The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism) में तर्क दिया कि प्रोटेस्टेंट धर्म की कुछ शाखाओं, विशेष रूप से कैल्विनवाद, ने आधुनिक पूंजीवाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • संदर्भ और विस्तार: वेबर का मानना था कि ‘कार्य के प्रति कर्तव्य’ (duty of calling) और ‘ईश्वर की महिमा के लिए कड़ी मेहनत’ की धारणा ने पूंजी संचय और पुनर्निवेश को प्रोत्साहित किया, जो पूंजीवाद का मूल है।
    • गलत विकल्प: कैथोलिक सुधार, सूफीवाद और बौद्ध धर्म की अपनी-अपनी सामाजिक और धार्मिक मान्यताएँ हैं, लेकिन वेबर के अनुसार, पूंजीवाद के उदय से उनका सीधा संबंध प्रोटेस्टेंट नैतिकता से कम है।

    प्रश्न 11: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक विघटन और मानदंडों के टूटने की स्थिति को दर्शाती है, किससे संबंधित है?

    1. कार्ल मार्क्स
    2. मैक्स वेबर
    3. एमिल दुर्खीम
    4. जॉर्ज सिमेल

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा एमिल दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित की गई थी। यह एक ऐसी सामाजिक स्थिति को संदर्भित करती है जहाँ समाज के सदस्यों के लिए कोई स्पष्ट मानदंड, नियम या मूल्य नहीं होते हैं, या वे ढीले पड़ जाते हैं, जिससे व्यक्ति को दिशाहीनता का अनुभव होता है।
    • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने आत्महत्या (Suicide) के अपने अध्ययन में एनोमी को एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में पहचाना। उन्होंने एनोमी को विशेष रूप से तब उत्पन्न होते देखा जब समाज में तीव्र आर्थिक परिवर्तन या सामाजिक उथल-पुथल होती है।
    • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ‘वर्ग संघर्ष’ (Class Struggle) से जुड़े हैं। मैक्स वेबर ‘कार्य, शक्ति और ‘वर्स्टहेन” (Work, Power, and ‘Verstehen’) के लिए जाने जाते हैं। जॉर्ज सिमेल ने ‘सामाजिक रूपों’ (Social Forms) और ‘शहरी जीवन’ (Urban Life) का अध्ययन किया।

    प्रश्न 12: ‘सांस्कृतिक पुनरुत्पादन’ (Cultural Reproduction) का सिद्धांत, जो बताता है कि शिक्षा प्रणाली कैसे सामाजिक असमानता को बनाए रखती है, किस विचारक से संबंधित है?

    1. पियरे बॉर्डियू
    2. जीन बॉड्रिलार्ड
    3. माइकल फौकॉल्ट
    4. जर्गेन हैबरमास

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: पियरे बॉर्डियू ने ‘सांस्कृतिक पुनरुत्पादन’ (Cultural Reproduction) की अवधारणा विकसित की। उन्होंने तर्क दिया कि शिक्षा प्रणाली, सामाजिक वर्ग के आधार पर छात्रों को विभिन्न ‘सांस्कृतिक पूंजी’ (cultural capital) प्रदान करके सामाजिक असमानता को बनाए रखती है।
    • संदर्भ और विस्तार: बॉर्डियू के अनुसार, अभिजात वर्ग की संस्कृति को ‘वैध’ (legitimate) माना जाता है, और शिक्षा प्रणाली उन छात्रों का पक्ष लेती है जिनके पास यह सांस्कृतिक पूंजी पहले से मौजूद होती है, जिससे वे सामाजिक सीढ़ी पर चढ़ने में सफल होते हैं।
    • गलत विकल्प: जीन बॉड्रिलार्ड ‘सिमुलेशन’ (Simulation) और ‘हाइपररियलिटी’ (Hyperreality) से जुड़े हैं। माइकल फौकॉल्ट ‘शक्ति, ज्ञान और प्रवचन’ (Power, Knowledge, and Discourse) के अध्ययन के लिए जाने जाते हैं। जर्गेन हैबरमास ‘कम्युनिकेटिव एक्शन’ (Communicative Action) के सिद्धांतकार हैं।

    प्रश्न 13: ‘संरचनात्मक प्रकार्यवाद’ (Structural Functionalism) का प्रमुख समर्थक कौन था?

    1. एमिल दुर्खीम
    2. मैक्स वेबर
    3. कार्ल मार्क्स
    4. हरबर्ट स्पेंसर

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: एमिल दुर्खीम को अक्सर संरचनात्मक प्रकार्यवाद के अग्रदूतों में से एक माना जाता है। उन्होंने समाज को एक ऐसे जैविक जीव के रूप में देखा जिसमें विभिन्न अंग (संस्थाएँ) होते हैं जो समाज के अस्तित्व और कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक कार्य करते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने ‘सामाजिक एकता’ (Social Solidarity), ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Conscience) और ‘समाज’ (Society) को प्राथमिकता देने पर जोर दिया। उनके कार्य ने बाद के प्रकार्यवादियों जैसे एल. ट. हॉब्सन, ब्रॉनिस्लॉ मैलिनोव्स्की और अल्फ्रेड रेडक्लिफ-ब्राउन को प्रभावित किया।
    • गलत विकल्प: मैक्स वेबर ‘व्याख्यात्मक समाजशास्त्र’ (Interpretive Sociology) से जुड़े हैं। कार्ल मार्क्स ‘संघर्ष सिद्धांत’ (Conflict Theory) के संस्थापक हैं। हरबर्ट स्पेंसर भी एक प्रमुख प्रकार्यवादी थे, लेकिन दुर्खीम को इस ढांचे का अधिक प्रमुख संस्थापक माना जाता है।

    प्रश्न 14: ‘प्रतिष्ठा’ (Prestige) किस प्रकार के सामाजिक स्तरीकरण का एक आयाम है?

    1. वर्ग (Class)
    2. शक्ति (Power)
    3. संवर्ग (Status)
    4. आय (Income)

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: मैक्स वेबर ने सामाजिक स्तरीकरण को तीन आयामों में विभाजित किया: वर्ग (आर्थिक), संवर्ग (प्रतिष्ठा या सामाजिक सम्मान), और शक्ति (राजनीतिक)। प्रतिष्ठा वह सामाजिक सम्मान या मान्यता है जो किसी व्यक्ति या समूह को उसकी जीवनशैली, शिक्षा, या सामाजिक स्थिति के कारण प्राप्त होती है।
    • संदर्भ और विस्तार: वेबर के अनुसार, कोई व्यक्ति आर्थिक रूप से गरीब हो सकता है लेकिन उच्च प्रतिष्ठा वाला हो सकता है, या इसके विपरीत।
    • गलत विकल्प: वर्ग मुख्य रूप से आर्थिक स्थिति से संबंधित है। शक्ति राजनीतिक या अधिकार से संबंधित है। आय आर्थिक स्थिति का एक और मापक है, लेकिन प्रतिष्ठा सामाजिक मूल्यांकन से अधिक जुड़ी है।

    प्रश्न 15: ‘सार्वभौमिकरण’ (Universalization) और ‘पैराकुलाईजेशन’ (Parochialization) की अवधारणाएँ एमएन श्रीनिवास ने किसके संदर्भ में प्रस्तुत कीं?

    1. जाति व्यवस्था
    2. धार्मिक अनुष्ठान
    3. ग्रामीण सामाजिक संरचना
    4. शहरीकरण

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज के अध्ययन में ‘सार्वभौमिकरण’ (Universalization) और ‘पैराकुलाईजेशन’ (Parochialization) की अवधारणाएँ प्रस्तुत कीं। उन्होंने इन अवधारणाओं का प्रयोग विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों और परंपराओं के प्रसार और स्थानीयकरण को समझाने के लिए किया।
    • संदर्भ और विस्तार: सार्वभौमिकरण वह प्रक्रिया है जहाँ एक स्थानीय परंपरा या अनुष्ठान बड़े पैमाने पर अपनाया जाता है (जैसे, एक क्षेत्र के संत का प्रभाव फैलना), जबकि पैराकुलाईजेशन वह प्रक्रिया है जहाँ एक व्यापक परंपरा या अनुष्ठान को स्थानीय स्तर पर संशोधित या अनुकूलित किया जाता है।
    • गलत विकल्प: ये अवधारणाएँ सीधे तौर पर जाति व्यवस्था, ग्रामीण संरचना या शहरीकरण के मूल विश्लेषण से जुड़ी नहीं हैं, हालांकि इनका प्रभाव इन पर पड़ सकता है।

    प्रश्न 16: ‘समूह-विषाक्तता’ (Groupthink) की अवधारणा किसने विकसित की?

    1. इर्विंग जे. जानिस
    2. अल्बर्ट बंडुरा
    3. फिलिप ज़िम्बार्डो
    4. स्टेनली मिलग्राम

    उत्तर: (a)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: इर्विंग जे. जानिस (Irving J. Janis) ने ‘समूह-विषाक्तता’ (Groupthink) की अवधारणा को विकसित किया। यह एक मनोवैज्ञानिक घटना है जो तब होती है जब किसी समूह में निर्णय लेने की प्रक्रिया में, सदस्यों के बीच सहमति की इच्छा इतनी प्रबल हो जाती है कि वे वैकल्पिक दृष्टिकोणों पर विचार करना बंद कर देते हैं या आलोचनात्मक मूल्यांकन को दबा देते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: जानिस ने अपनी पुस्तक ‘ग्रुपथिंक: साइकोलॉजिकल स्टडी ऑफ फॉरेन-पॉलिसी डिसीजन’ (Groupthink: Psychological Study of Foreign-Policy Decisions) में इस पर विस्तार से चर्चा की।
    • गलत विकल्प: अल्बर्ट बंडुरा ‘सामाजिक अधिगम सिद्धांत’ (Social Learning Theory) के लिए जाने जाते हैं। फिलिप ज़िम्बार्डो ‘स्टैनफोर्ड प्रिजन एक्सपेरिमेंट’ (Stanford Prison Experiment) के लिए प्रसिद्ध हैं। स्टेनली मिलग्राम ‘अल्पावधि आज्ञाकारिता प्रयोग’ (Milgram Experiment on Obedience) के लिए जाने जाते हैं।

    प्रश्न 17: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का एक प्रमुख सिद्धांतकार कौन है?

    1. पीटर एल. बर्जर
    2. ई. क्रॉबी

    3. सत्यता: सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन में, ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) एक व्यापक अवधारणा है जो पारंपरिक समाजों से आधुनिक, औद्योगिक और धर्मनिरपेक्ष समाजों में संक्रमण को संदर्भित करती है। इसमें तकनीकी विकास, शहरीकरण, शिक्षा का प्रसार और राजनीतिक परिवर्तन जैसी प्रक्रियाएँ शामिल हैं।

    4. संदर्भ और विस्तार: आधुनिकीकरण को अक्सर पश्चिमीकरण (Westernization) और औद्योगीकरण (Industrialization) से जोड़ा जाता है, लेकिन यह केवल इन तक सीमित नहीं है।
    5. गलत विकल्प: वैश्वीकरण (Globalization) एक वर्तमान अवधारणा है जो वैश्विक स्तर पर बढ़ती अंतर्संबंधता को दर्शाती है। औद्योगीकरण उत्पादन के तरीके में बदलाव है। पश्चिमीकरण पश्चिमी संस्कृति को अपनाने की प्रक्रिया है।

    6. प्रश्न 20: ‘शक्ति’ (Power) को ‘वैध अधिकार’ (Legitimate Authority) के रूप में वेबर ने किन तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया?

      1. राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक
      2. पारंपरिक, करिश्माई, कानूनी-तर्कसंगत
      3. धार्मिक, सांस्कृतिक, तकनीकी
      4. शाही, तानाशाही, लोकतांत्रिक

      उत्तर: (b)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सत्यता: मैक्स वेबर ने शक्ति के वैध रूपों को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया: (1) पारंपरिक अधिकार (Traditional Authority) – जो परंपराओं और रीति-रिवाजों पर आधारित होता है (जैसे राजशाही), (2) करिश्माई अधिकार (Charismatic Authority) – जो किसी नेता के असाधारण गुणों या करिश्मे पर आधारित होता है, और (3) कानूनी-तर्कसंगत अधिकार (Legal-Rational Authority) – जो नियमों, कानूनों और औपचारिकता पर आधारित होता है (जैसे आधुनिक नौकरशाही)।
      • संदर्भ और विस्तार: ये तीनों प्रकार वेबर के प्रभुत्व (Domination) के विश्लेषण का केंद्रीय हिस्सा हैं।
      • गलत विकल्प: अन्य विकल्प वेबर के वर्गीकरण के अनुरूप नहीं हैं।

      प्रश्न 21: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जो सामाजिक नेटवर्क, विश्वास और सहयोग से प्राप्त लाभों को संदर्भित करती है, किस विचारक से सबसे अधिक जुड़ी है?

      1. जेम्स कोलमन
      2. रॉबर्ट पुटनम
      3. पियरे बॉर्डियू
      4. उपरोक्त सभी

      उत्तर: (d)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सत्यता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा को मुख्य रूप से जेम्स कोलमन, रॉबर्ट पुटनम और पियरे बॉर्डियू जैसे समाजशास्त्रियों द्वारा विकसित किया गया है, हालांकि उनके दृष्टिकोण में सूक्ष्म अंतर हैं। तीनों ही मानते हैं कि सामाजिक नेटवर्क और उनमें निहित विश्वास से व्यक्ति और समाज को लाभ होता है।
      • संदर्भ और विस्तार: कोलमन ने इसे एक संसाधन के रूप में देखा जो व्यक्तियों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। पुटनम ने इसे नागरिक समाज और लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण माना। बॉर्डियू ने इसे एक प्रकार की पूंजी के रूप में देखा जो सामाजिक असमानता को बनाए रखने में भूमिका निभाती है।
      • गलत विकल्प: सभी तीनों विचारक इस अवधारणा के विकास से जुड़े हैं।

      प्रश्न 22: ‘पारिवारिक व्यवस्था’ (Family System) में, ‘समरूपीकरण’ (Endogamy) का अर्थ है:

      1. समूह के भीतर विवाह
      2. समूह के बाहर विवाह
      3. विशिष्ट समूह के सदस्यों के बीच विवाह
      4. किसी भी व्यक्ति से विवाह

      उत्तर: (c)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सत्यता: ‘समरूपीकरण’ (Endogamy) का अर्थ है कि व्यक्ति को अपने ही समूह, उपसमूह, जाति, धर्म, या समुदाय के भीतर विवाह करना चाहिए। यह समाज के भीतर समूहों को अलग रखने और उनकी पहचान को बनाए रखने में मदद करता है।
      • संदर्भ और विस्तार: भारतीय जाति व्यवस्था में समरूपीकरण एक प्रमुख विशेषता है। इसके विपरीत, ‘बहिर्विवाह’ (Exogamy) का अर्थ है समूह के बाहर विवाह करना, जैसे कि गोत्र बहिर्विवाह।
      • गलत विकल्प: (a) ‘समूह के भीतर विवाह’ एक सामान्य कथन है, लेकिन (c) अधिक विशिष्ट और सटीक है। (b) बहिर्विवाह है। (d) यह अनियमित या गैर-पारंपरिक विवाह को दर्शा सकता है।

      प्रश्न 23: ‘आदिवासी समाजों’ (Tribal Societies) के अध्ययन में, ‘पृथक्करण’ (Isolation) के बजाय ‘अंतःक्रिया’ (Interaction) पर जोर देने वाले समाजशास्त्री कौन थे?

      1. गुडे & हेस्के
      2. सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय गाँव के अपने विस्तृत नृवंशविज्ञान (ethnography) के माध्यम से ग्राम जीवन की जटिलताओं और गांवों के बीच अंतःक्रिया (interaction) पर प्रकाश डाला, न कि केवल अलगाव (isolation) पर। उन्होंने ‘ग्राम’, ‘जाति’ और ‘क्षेत्र’ के बीच संबंधों का विश्लेषण किया।

      3. संदर्भ और विस्तार: उनकी पुस्तक ‘इंडियाज विलेज्स’ (India’s Villages) और ‘द रीमेम्बरड वर्ल्ड’ (The Remembered World) जैसे कार्यों ने भारतीय ग्रामीण समाज की गतिशीलता को समझने में मदद की।
      4. गलत विकल्प: अन्य विकल्प भारतीय गांवों के जटिल सामाजिक-आर्थिक संबंधों के विश्लेषण में श्रीनिवास के योगदान को पूरी तरह से नहीं दर्शाते।

      5. प्रश्न 25: ‘पहचान की राजनीति’ (Identity Politics) का संबंध निम्नलिखित में से किससे है?

        1. व्यक्तिगत आकांक्षाओं की पूर्ति
        2. विशेष सामाजिक समूहों (जाति, धर्म, लिंग, जातीयता) के अधिकारों और हितों के लिए संघर्ष
        3. आर्थिक असमानता को कम करना
        4. राजनीतिक दलों का गठन

        उत्तर: (b)

        विस्तृत स्पष्टीकरण:

        • सत्यता: ‘पहचान की राजनीति’ (Identity Politics) एक राजनीतिक दृष्टिकोण है जो किसी विशेष सामाजिक समूह की सामूहिक पहचान (जैसे जाति, धर्म, लिंग, जातीयता, यौन अभिविन्यास) के आधार पर राजनीतिक कार्रवाई और एकजुटता पर केंद्रित होता है। इसका उद्देश्य उस समूह के अधिकारों, हितों और मान्यता के लिए संघर्ष करना है।
        • संदर्भ और विस्तार: यह राजनीतिक लामबंदी का एक शक्तिशाली रूप हो सकता है, लेकिन कभी-कभी इसे विभाजनकारी या संकीर्ण भी माना जा सकता है।
        • गलत विकल्प: (a) व्यक्तिगत आकांक्षाएँ बहुत व्यापक हैं। (c) आर्थिक असमानता एक भिन्न प्रकार की राजनीतिक माँग है (हालांकि पहचान की राजनीति इससे जुड़ सकती है)। (d) राजनीतिक दलों का गठन पहचान की राजनीति का एक परिणाम हो सकता है, लेकिन यह स्वयं अवधारणा नहीं है।

        यह अभ्यास सत्र यहीं समाप्त होता है! आपकी तैयारी के लिए शुभकामनाएँ!

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