भ्रष्टाचार के निराकरण के उपाय वे सुझाव
भ्रष्टाचार की समस्या वास्तव में एक गम्भीर समस्या है और इसके लिए बहुत से कारण जिम्मेदार हैं । अतः इसके निराकरण के लिए भी बहुमुखी प्रयत्नों की आवश्यकात है । कुछ उपाय व सुझावों को हम इस प्रकार से प्रस्तुत कर सकते हैं
( 1 ) राजनीतिज्ञों के नैतिक स्तर में सुधार सर्वप्रथम आवश्यक है भ्रष्टाचार निवारण के लिए । नैतिक रूप में गिरे राजनीतिज्ञों द्वारा संचालित सरकार प्रायः ऐसे कानून बनाती है जिनसे उनकी अपनी पार्टी को या उन्हें समर्थन देने वाले कुछ विशेष समूहों – व्यापारी या उद्योगपतियों को ही लाभ हो । श्री सलीवन ( Sullivan ) ने लिखा है , वास्तव में संगठित अपराध बिना भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के प्रोत्साहन के जिन्दा नहीं रह सकता । इसके साथ ही उनको भ्रष्टाचारी पुलिस का वरद हस्त प्राप्त होना भी आवश्यक है । ” अतः भ्रष्टाचार के नियन्त्रण के लिए यह आवश्यक है कि राजनीतिजों का नैतिक स्तर ऊँचा हो और वे अपने जीवन में अधिक ईमानदारी अपनाएँ ।
( 2 ) पुलिस अधिकारियों में ईमानदारी भी एक आवश्यक शर्त है । पुलिस का वास्तविक डर अगर लोगों के दिल में है तो अधिकांश प्रष्टाचार स्वतः ही समाप्त हो जाए । पर जब लोगों को यह विश्वास होता है कि कोई अपराध करके पुलिस के पंजे से सिफारिश या घूस के आधार पर छूटा जा सकता है जो समाज में भ्रष्टाचार खुले तौर पर फलता है । अतः पुलिस को ईमानदार होना ही पड़ेगा ।
( 3 ) अन्य प्रमुख सरकारी अधिकारियों में भी ईमानदारी व कर्त्तव्यपरायणता के गुण को विकसित करना होगा । इन अधिकारियों में आय – कर , विक्री – कर , आबकारी व कस्टम अधिकारी , सार्वजनिक निर्माण विभाग अधिकारी और रेलवे अधिकारी ( टिकट चेकर ) आदि सम्मिलित हैं जिनका सीधा सम्बन्ध समुदाय के आय के साधनों और रुपये – पैसे से है । इन अधिकारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि भ्रष्टाचार निरोध विभाग ( Anticorruption Depart ment ) तथा सी . आई . डी . विभाग के अधिकारी स्वयं भ्रष्टाचार से दूर रहें और घूस या सिफारिश से प्रभावित होकर भ्रष्टाचारी अधिकारियों को न छोडें ।
( 4 ) अदालत में व्याप्त भ्रष्टाचार को भी हमें पहले दूर करना होगा । अदालत न्याय करने की संस्था है । वहीं जब अन्याय व भ्रष्टाचार फैला होता है तो समाज में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला होता है : अतः यह आवश्यक है कि न्यायाधीश वर्ग को पक्षपात – विहीन और किसी भी राजनीतिक दबाव व सिफारिशों से स्वतन्त्र रहना चाहिए ।
( व्यापारियों व उद्योगपतियों में ईमानदारी की भावना को पनपाने का भी प्रयत्न करना होगा । इन्हें यह समझाना होगा कि व्यापार में सफलता ईमानदारी और खरे व्यापार के आधार पर भी सम्भव है और उनकी ईमानदारी पर आम जनता का कल्याण कितना अधिक निर्भर करता है ।
( 6 ) भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रचार भी इस दिशा में सहायक सिद्ध हो सकता है । सक्रिय प्रचार के द्वारा ही लोगों में यह भावना भरी जा सकती है कि भ्रष्ट उपाय समाज – विरोधी ही नहीं , स्वयं व्यक्ति – विरोधी । भी हैं । प्रचार के साधन के रूप में समाचार – पत्र पत्रिका , चलचित्र आदि की सहायता ली जा सकती है ।
( 7 ) कानून का सरलीकरण भी भ्रष्टाचार को दूर करने का एक आवश्यक उपाय है । कानून की जटिलता को समझ सकने के कारण ही बहत से लोग सरकारी कर्मचारियों व वकील आदि के चक्कर में पड़ जाते हैं और अपना काम करवाने के लिए घूस आदि देते हैं । अतः यह आवश्यक है कि कानून ऐसा हो कि सबकी समझ में आ जाए ।
( 8 ) फर्जी विज्ञापन पर सरकारी रोक लगाने से भी अनेक भ्रष्टाचार कम हो सकेंगे । नौकरी खाली हैं का फर्जी विज्ञापन देकर जो लोग फार्म व परीक्षा की फीस हजारों लोगों से इकट्ठी करते हैं , दस रुपये में रेडियों भेजने का विज्ञापन देकर जो लोग प्लास्टिक का खिलौना – रेडियो भेजकर लोगों को धोखा देते हैं – इसी प्रकार के हजारों किस्म के फर्जी विज्ञापन देने और गलत काम करने वालों के लिए कड़ी सजा की व्यवस्था करनी होगी । तभी इस प्रकार के भ्रष्टाचार का उन्मूलन सम्भव होगा ।
( 9 ) नैतिक शिक्षा व धार्मिक उपदेश का उचित प्रबन्ध भी इस दिशा में हितकर सिद्ध हो सकता है । हमारा उद्देश्य लोगों की किसी धर्म – विशेष के सम्बन्ध में बताना नहीं होगा , अपितु सभी धर्म के जो अच्छे व सामान्य ( common ) उपदेश व आचार हैं उनके बारे में अवगत कराना होगा । इसके लिए सभी धर्म के विशेषज्ञों को सक्रिय होना होगा । नैतिक शिक्षा तो स्कूल में आरम्भिक कक्षाओं से ही शुरू कर देना होगा जिससे आने वाली पीढ़ी का नैतिक स्तर पर्याप्त ऊँचा उठ सके । नैतिक शिक्षा व धार्मिक उपदेश लोगों के भौतिकवादी उग्र दृष्टिकोण को मन्द करने में सहायक होगा और लोग धन को ही सब – कुछ मान लेने की गलती नहीं करेंगे । इससे भी भ्रष्टाचार का उन्मूलन सम्भव होगा ।
( 10 ) सेवारत सभी वर्ग के लोगों की आर्थिक उन्नति व उनमें जनकल्याण के प्रति जागरूकता भी भ्रष्टाचार के उन्मूलन की दिशा में सहायक होगी । जनकल्याण की भावना लोगों के दिल में जगानी होगी , समाज व राष्ट्र के प्रति उन्हें उनके कर्त्तव्य के सम्बन्ध में सचेत करना होगा और उनमें यह विश्वास पैदा करना होगा कि व्यक्तिगत स्वार्थ सामुदायिक स्वार्थ के आगे तुच्छ है । यह बात केवल प्रचार या खोखले उपदेश के आधार पर ही नहीं अपितु सेवारत सभी वर्ग के लोगों के वेतनमान में आवश्यक संशोधन करके उनकी आर्थिक दशा को सुधारने से ही सम्भव होगी । अनेक छोटे – मोटे कर्मचारी दो – चार रुपए की तो बात दूर रही , दस – बीस पैसों तक की घूस ले लेते हैं और लेते हैं इसलिए कि उन्हें जितना वेतन मिलता है उससे उनके परिवार का भरण – पोषण सम्भव नहीं होता । इस अभाव की स्थिति को दूर करना होगा ।
( 11 ) अन्त में , भ्रष्टाचार के विरूद्ध कठोर नियम बनाना और उसे कठोरता से लाग करना भी भ्रष्टाचार को कम करने के लिए आवश्यक है । यह कानून अमीर – गरीब पर समान रूप से लाग किया जाए और उच्च सामाजिक स्थिति , धन , पद या सिफारिश को किसी भी प्रकार की पान्यता न देकर प्रत्येक भ्रष्ट व्यक्ति के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था करनी होगी । यदि यह पता चल जाए कि किसी व्यक्ति ने अपने उच्च पद , धन , सामाजिक मर्यादा आदि की आड़ लेकर भ्रष्टाचार को अपनाया है या भ्रष्टाचार को सरंक्षण प्रदान किया है तो उसके लिए कठोरतम दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए ; तभी भ्रष्टाचार की बुराई का अन्त सम्भव हो सकता है ।