‘भगवान भरोसे कश्मीर’: प्रियंका गांधी के तीखे बोल और भारत का भविष्य
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और सांसद, प्रियंका गांधी वाड्रा ने लोकसभा में जम्मू और कश्मीर की वर्तमान स्थिति पर एक तीखा बयान दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि “कश्मीर में लोग सरकार भरोसे गए और उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया।” यह बयान न केवल कश्मीर के लोगों की जमीनी हकीकत की ओर इशारा करता है, बल्कि देश की सर्वोच्च विधायी संस्था में सरकार की नीतियों और उनके कार्यान्वयन पर एक गंभीर प्रश्नचिन्ह भी खड़ा करता है। संसद में इस तरह की टिप्पणियां राजनीतिक बहस को तेज करती हैं और देश के सामने मौजूद जटिल चुनौतियों को सामने लाती हैं, जो UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
यह बयान एक ऐसे समय में आया है जब जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद से लगातार विकास, सुरक्षा और राजनीतिक सामान्यीकरण के दावे किए जा रहे हैं। ऐसे में, कांग्रेस जैसे प्रमुख विपक्षी दल का यह आरोप सीधे तौर पर सरकार के इन दावों को चुनौती देता है। यह लेख इस घटना की तह तक जाएगा, प्रियंका गांधी के बयान के निहितार्थों का विश्लेषण करेगा, कश्मीर की वर्तमान स्थिति पर विस्तार से प्रकाश डालेगा, और UPSC के दृष्टिकोण से इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करेगा।
प्रियंका गांधी का वार: ‘सरकार भरोसे गए, भगवान भरोसे छोड़ दिए’ – क्या है यह आरोप?
प्रियंका गांधी वाड्रा का यह बयान कश्मीर के आम नागरिकों की निराशा और असुरक्षा की भावना को व्यक्त करने का एक प्रयास है। उनके अनुसार, सरकार ने जो वादे या उम्मीदें कश्मीर के लोगों से की थीं, वे पूरी नहीं हुई हैं। ‘सरकार भरोसे गए’ का तात्पर्य है कि लोग उम्मीद कर रहे थे कि केंद्र सरकार उनकी समस्याओं का समाधान करेगी, सुरक्षा प्रदान करेगी, विकास को बढ़ावा देगी और राजनीतिक मुख्यधारा में उन्हें शामिल करेगी। लेकिन ‘भगवान भरोसे छोड़ दिए’ कहने का अर्थ है कि सरकार की ओर से कोई ठोस या प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है, और अब स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग केवल भाग्य के भरोसे जी रहे हैं।
इस बयान को कई संदर्भों में देखा जा सकता है:
- सुरक्षा की स्थिति: क्या कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति वास्तव में इतनी खराब है कि आम नागरिक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं? क्या आतंकवाद विरोधी अभियानों का असर लोगों के दैनिक जीवन पर पड़ रहा है?
- विकास और आजीविका: अनुच्छेद 370 हटने के बाद से आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के सरकारी दावों के बावजूद, क्या स्थानीय अर्थव्यवस्था पटरी पर है? क्या लोगों की आजीविका के साधन सुरक्षित हैं?
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व: क्या कश्मीर के लोगों को उचित राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल रहा है? क्या जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं मजबूत हुई हैं?
- सरकार की जवाबदेही: क्या सरकार अपनी नीतियों के कार्यान्वयन में विफल रही है, या इन चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त संसाधन और इच्छाशक्ति की कमी है?
UPSC के दृष्टिकोण से कश्मीर: एक बहुआयामी विश्लेषण
जम्मू और कश्मीर की स्थिति भारत की आंतरिक सुरक्षा, राष्ट्रीय अखंडता और शासन प्रणाली के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। UPSC परीक्षा में, इस विषय से संबंधित प्रश्न लगातार पूछे जाते हैं, खासकर सामान्य अध्ययन के पेपर II (शासन, राजनीति, सामाजिक न्याय) और पेपर III (सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण) में।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और अनुच्छेद 370
भारत के स्वतंत्रता के समय से ही जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय एक जटिल मुद्दा रहा है। 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, लेकिन इसमें कुछ विशेष शर्तें थीं, जिनके तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था, जिसे अनुच्छेद 370 के तहत संवैधानिक मान्यता दी गई थी। इस अनुच्छेद के तहत, जम्मू और कश्मीर को अपने संविधान, ध्वज और कुछ विशेष कानूनों को बनाए रखने की स्वायत्तता थी।
5 अगस्त 2019 को, भारत सरकार ने राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को निष्प्रभावी कर दिया और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू और कश्मीर, तथा लद्दाख में विभाजित कर दिया। सरकार का तर्क था कि यह कदम राष्ट्रीय एकीकरण, आतंकवाद का मुकाबला करने और क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक था।
“अनुच्छेद 370 को निरस्त करना भारत की एकता और अखंडता को मजबूत करने की दिशा में एक साहसिक कदम था। इसका उद्देश्य कश्मीर घाटी में व्याप्त अलगाववाद और आतंकवाद को समाप्त करना तथा विकास और सुशासन को सुनिश्चित करना है।” – सरकार का संभावित पक्ष
2. अनुच्छेद 370 के बाद की स्थिति: विकास, सुरक्षा और राजनीति
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, सरकार ने कई कदम उठाए हैं:
- सुरक्षा: केंद्रीय सुरक्षा बलों की उपस्थिति बढ़ाई गई, आतंकवादी गतिविधियों पर नकेल कसने के प्रयास किए गए।
- विकास: बड़े पैमाने पर निवेश, बुनियादी ढांचे का विकास, पर्यटन को बढ़ावा देने और रोजगार सृजन के वादे किए गए। नए औद्योगिक नीति की घोषणा की गई।
- राजनीति: राज्य का दर्जा बहाली और विधानसभा चुनावों का वादा किया गया। स्थानीय निकायों को मजबूत करने पर जोर दिया गया।
हालांकि, जमीनी हकीकत अक्सर जटिल होती है। प्रियंका गांधी जैसे नेताओं के बयान इसी जटिलता की ओर इशारा करते हैं:
- आतंकवादी घटनाएं: भले ही बड़ी आतंकवादी वारदातों में कमी आई हो, लेकिन छिटपुट घटनाएं, लक्षित हत्याएं (Targeted Killings) अभी भी चिंता का विषय हैं। ये घटनाएं स्थानीय आबादी में भय और असुरक्षा पैदा करती हैं।
- आर्थिक प्रभाव: कोविड-19 महामारी और अन्य वैश्विक कारकों के अलावा, सुरक्षा संबंधी चिंताओं और राजनीतिक अनिश्चितता का भी स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा है। पर्यटन धीरे-धीरे लौट रहा है, लेकिन पूरी तरह से सामान्य होने में समय लग रहा है।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व: स्थानीय चुनावों के बाद, एक नई राजनीतिक संरचना उभर रही है। लेकिन, राष्ट्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय दलों के बीच संवाद और भरोसे का माहौल बनाना अभी भी एक चुनौती है।
- लोगों का विश्वास: क्या कश्मीर के लोगों को लगता है कि उनकी आवाज सुनी जा रही है? क्या वे वास्तव में राष्ट्रीय मुख्यधारा का हिस्सा महसूस करते हैं? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
3. प्रियंका गांधी के बयान के निहितार्थ (Implications of Priyanka Gandhi’s Statement)
प्रियंका गांधी के बयान को केवल एक राजनीतिक टिप्पणी के रूप में देखना अपर्याप्त होगा। इसके व्यापक निहितार्थ हैं:
- विपक्ष की भूमिका: यह सरकार की नीतियों की आलोचना करने और जनता की चिंताओं को उठाने में विपक्ष की भूमिका को रेखांकित करता है। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि सरकार को जवाबदेह ठहराया जाए।
- जमीनी हकीकत का आईना: यह बयान कश्मीर के कुछ वर्गों द्वारा महसूस की जा रही निराशा और अलगाव की भावना को प्रतिबिंबित कर सकता है। सरकार के लिए यह एक संकेत है कि दावों और हकीकत के बीच की खाई को पाटना आवश्यक है।
- धारणा प्रबंधन (Perception Management): इस तरह के बयान राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर की स्थिति के बारे में धारणाओं को प्रभावित कर सकते हैं।
- UPSC के लिए प्रासंगिकता: उम्मीदवारों को विभिन्न दृष्टिकोणों को समझना चाहिए – सरकार का पक्ष, विपक्षी दल की चिंताएं, और सबसे महत्वपूर्ण, जमीनी स्तर पर रहने वाले आम नागरिकों की स्थिति।
‘सरकार भरोसे गए, भगवान भरोसे छोड़ दिए’ – विभिन्न दृष्टिकोण
इस कथन के पीछे कई कारण हो सकते हैं, और हमें सभी दृष्टिकोणों को समझना चाहिए:
सरकार का पक्ष (The Government’s Stand)
सरकार यह तर्क दे सकती है कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से कश्मीर में अभूतपूर्व विकास हुआ है।:
- निवेश: नए निवेशों से रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं।
- सुरक्षा: आतंकवाद की घटनाओं में कमी आई है, और सुरक्षा ग्रिड मजबूत हुआ है।
- कानूनी सुधार: अब केंद्र सरकार के कानून सीधे लागू होते हैं, जिससे व्यवस्था में एकरूपता आई है।
- लोकतंत्र: स्थानीय निकाय चुनावों में रिकॉर्ड मतदान हुआ है, और राज्य का दर्जा बहाली की प्रक्रिया जारी है।
सरकार यह भी कह सकती है कि ‘भगवान भरोसे छोड़ने’ का आरोप निराधार है क्योंकि विकास, सुरक्षा और शासन के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।
विपक्ष का दृष्टिकोण (Opposition’s Perspective)
विपक्षी दल, जैसे कि कांग्रेस, अक्सर यह तर्क देते हैं कि सरकारी दावों के बावजूद, जमीनी हकीकत अलग है।
- असुरक्षा: लक्षित हत्याएं दिखाती हैं कि नागरिक अभी भी सुरक्षित नहीं हैं।
- आर्थिक मंदी: युवाओं के लिए पर्याप्त रोजगार के अवसर पैदा नहीं हुए हैं।
- राजनीतिक शून्यता: जब तक जमीनी स्तर पर राजनीतिक प्रक्रियाएं पूरी तरह से बहाल नहीं हो जातीं, तब तक लोगों में विश्वास पैदा करना मुश्किल है।
- अविश्वास: लोगों को लग सकता है कि उनकी आवाज नहीं सुनी जा रही है, जिससे अलगाव की भावना बढ़ सकती है।
आम नागरिकों का अनुभव (The Common Citizen’s Experience)
यह समझना महत्वपूर्ण है कि कश्मीर के आम नागरिकों का अनुभव विविध हो सकता है। कुछ लोग सरकार के प्रयासों से संतुष्ट हो सकते हैं, जबकि अन्य निराश हो सकते हैं।
- डर और उम्मीद: कुछ लोग सुरक्षा की स्थिति को लेकर आशंकित हैं, जबकि अन्य विकास की उम्मीद कर रहे हैं।
- धैर्य की परीक्षा: वादों को हकीकत में बदलने में समय लगता है, और लोग धैर्य खो सकते हैं।
- पहचान का प्रश्न: कुछ लोगों के लिए, यह केवल विकास का नहीं, बल्कि पहचान और स्वायत्तता का भी प्रश्न है।
“हम शांति चाहते हैं, विकास चाहते हैं, और यह भी चाहते हैं कि हमारे बच्चों को सुरक्षित भविष्य मिले। सरकार की नीतियां कैसी भी हों, अगर उनका जमीनी असर सकारात्मक नहीं दिखता, तो हमें निराश होना ही पड़ेगा।” – एक स्थानीय निवासी का संभावित कथन।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and Way Forward)
जम्मू और कश्मीर की स्थिति को सामान्य बनाने और लोगों का विश्वास जीतने में कई चुनौतियाँ हैं:
प्रमुख चुनौतियाँ:
- सुरक्षा: स्थानीय आतंकवादियों की भर्ती को रोकना और विदेशी समर्थित आतंकवाद को पूरी तरह से समाप्त करना।
- राजनीतिक एकीकरण: पूर्ण राज्य का दर्जा बहाली और समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया सुनिश्चित करना।
- आर्थिक विकास: टिकाऊ रोजगार सृजन और स्थानीय उद्योगों को पुनर्जीवित करना।
- विश्वास निर्माण: सरकार और स्थानीय आबादी के बीच विश्वास की खाई को पाटना।
- मानवाधिकार: यह सुनिश्चित करना कि आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो।
भविष्य की राह:
- समावेशी संवाद: सभी हितधारकों के साथ खुले और ईमानदार संवाद को बढ़ावा देना।
- स्थानीय नेतृत्व का सशक्तीकरण: जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करना और स्थानीय नेताओं को सशक्त बनाना।
- संतुलित दृष्टिकोण: सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए, विकास और राजनीतिक समाधान पर भी समान जोर देना।
- जमीनी हकीकत को समझना: केवल रिपोर्टों पर निर्भर रहने के बजाय, जमीनी हकीकत को प्रत्यक्ष रूप से समझना और उसके अनुसार नीतियां बनाना।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: सरकारी योजनाओं और उनके कार्यान्वयन में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना।
प्रियंका गांधी का बयान एक महत्वपूर्ण संकेत है कि सरकार को अपनी नीतियों के कार्यान्वयन और उनके सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव पर लगातार आत्म-मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। कश्मीर की स्थिति केवल सुरक्षा या विकास का मामला नहीं है; यह विश्वास, समावेशिता और लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने का भी मामला है। UPSC उम्मीदवारों को इस जटिलता को समझना चाहिए और विभिन्न दृष्टिकोणों का विश्लेषण करते हुए एक संतुलित उत्तर तैयार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: हाल ही में लोकसभा में कांग्रेस नेता द्वारा ‘कश्मीर में लोग सरकार भरोसे गए और उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया’ कथन के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कारक इस कथन का आधार हो सकता है?
(a) स्थानीय अर्थव्यवस्था में तीव्र सुधार
(b) आतंकवाद की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि
(c) विकास पहलों के धीमी गति से कार्यान्वयन और स्थानीय लोगों में असुरक्षा की भावना
(d) राज्य का दर्जा बहाली की तत्काल घोषणा
उत्तर: (c)
व्याख्या: प्रियंका गांधी के बयान का तात्पर्य यह है कि सरकारी वादे पूरे नहीं हुए और लोगों को निराशा हाथ लगी। यह धीमी गति से विकास या असुरक्षा की भावना के कारण हो सकता है, जो उनके कथन को बल देता है। अन्य विकल्प सीधे तौर पर इस संदर्भ में फिट नहीं बैठते। - प्रश्न: अनुच्छेद 370 के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था।
2. इसे 5 अगस्त 2019 को निष्प्रभावी किया गया।
3. इसके तहत, केवल रक्षा, विदेश मामले और संचार भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में थे।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
व्याख्या: अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता देता था और इसे 5 अगस्त 2019 को निष्प्रभावी किया गया। इसके तहत, भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा वित्त, मुद्रा आदि भी शामिल थे, लेकिन इन क्षेत्रों में भी राज्य सरकार की सहमति आवश्यक थी। इसलिए, कथन 3 गलत है। - प्रश्न: अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत जम्मू और कश्मीर को किन दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया?
(a) जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख
(b) जम्मू, कश्मीर और लद्दाख
(c) केवल जम्मू और कश्मीर
(d) केवल लद्दाख
उत्तर: (a)
व्याख्या: जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत, राज्य को जम्मू और कश्मीर (विधानमंडल के साथ) और लद्दाख (विधानमंडल के बिना) नामक दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया। - प्रश्न: जम्मू और कश्मीर के भारत में विलय के समय, विलय पत्र (Instrument of Accession) पर किसने हस्ताक्षर किए थे?
(a) शेख अब्दुल्ला
(b) पंडित जवाहरलाल नेहरू
(c) महाराजा हरि सिंह
(d) लॉर्ड माउंटबेटन
उत्तर: (c)
व्याख्या: 26 अक्टूबर 1947 को, जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन शासक, महाराजा हरि सिंह ने भारत डोमिनियन में विलय के लिए विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। - प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी एक प्रमुख चुनौती है जिसका सामना भारत सरकार जम्मू और कश्मीर में कर रही है?
(a) पर्यटन को अत्यधिक बढ़ावा मिलना
(b) लक्षित हत्याओं (Targeted Killings) का जारी रहना
(c) स्थानीय निकायों का अत्यधिक सशक्त होना
(d) राष्ट्रीय एकता का पूर्ण रूप से बहाल होना
उत्तर: (b)
व्याख्या: लक्षित हत्याएं स्थानीय आबादी में भय और असुरक्षा पैदा करती हैं और सरकार के लिए एक बड़ी सुरक्षा चुनौती बनी हुई हैं। अन्य विकल्प वर्तमान जमीनी हकीकत का सटीक प्रतिनिधित्व नहीं करते। - प्रश्न: ‘राष्ट्रीय एकीकरण’ के संदर्भ में, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के पक्ष में सरकार का मुख्य तर्क क्या था?
(a) कश्मीर को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाना
(b) भारत की एकता और अखंडता को मजबूत करना और अलगाववाद को समाप्त करना
(c) सांस्कृतिक विविधता को बढ़ाना
(d) पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना
उत्तर: (b)
व्याख्या: सरकार का मुख्य तर्क यह था कि अनुच्छेद 370 कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा था, और इसे हटाकर भारत की एकता और अखंडता को मजबूत किया जा सकता है। - प्रश्न: प्रियंका गांधी वाड्रा जैसे विपक्षी नेताओं के बयानों का महत्व UPSC के संदर्भ में किस लिए है?
(a) केवल राजनीतिक प्रचार के लिए
(b) सरकार की नीतियों की आलोचना प्रस्तुत करने के लिए
(c) जमीनी हकीकत और जनता की चिंताओं को उजागर करने के लिए
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: विपक्षी नेताओं के बयान राजनीतिक प्रचार का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन वे सरकार की नीतियों की आलोचना और जमीनी हकीकत को भी सामने लाते हैं, जो UPSC उम्मीदवारों के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण बनाने में मदद करता है। - प्रश्न: कश्मीर में हाल के दिनों में ‘स्थानीय आबादी में असुरक्षा की भावना’ को निम्नलिखित में से कौन सा कारक सबसे अधिक प्रभावित कर सकता है?
(a) नए निवेशों का बड़ी संख्या में आना
(b) सड़कों और पुलों का तेजी से निर्माण
(c) आतंकवादियों द्वारा नागरिकों को निशाना बनाना (Targeted Killings)
(d) पर्यटकों की संख्या में वृद्धि
उत्तर: (c)
व्याख्या: लक्षित हत्याएं सीधे तौर पर नागरिकों की सुरक्षा को प्रभावित करती हैं और असुरक्षा की भावना पैदा करती हैं। - प्रश्न: जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत, किस केंद्र शासित प्रदेश को विधानमंडल के बिना बनाया गया था?
(a) जम्मू और कश्मीर
(b) लद्दाख
(c) दिल्ली
(d) चंडीगढ़
उत्तर: (b)
व्याख्या: जम्मू और कश्मीर अधिनियम, 2019 के तहत, लद्दाख को विधानमंडल के बिना एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, जबकि जम्मू और कश्मीर को विधानमंडल के साथ केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। - प्रश्न: ‘सरकार भरोसे गए, लेकिन भगवान भरोसे छोड़ दिए’ – इस कथन में ‘भगवान भरोसे छोड़ दिए’ का क्या निहितार्थ हो सकता है?
(a) सरकार ने धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया।
(b) लोगों को समस्याओं के समाधान के लिए सरकार पर भरोसा नहीं रहा और वे अनिश्चित भविष्य के सहारे जी रहे हैं।
(c) सरकार ने लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं।
(d) क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हुई है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: इस मुहावरे का अर्थ है कि उम्मीदें पूरी नहीं हुईं और अब स्थिति ऐसी है कि लोग केवल भाग्य के भरोसे हैं, जिसका तात्पर्य निराशा और सरकार पर भरोसे की कमी से है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: “प्रियंका गांधी वाड्रा के लोकसभा में दिए गए बयान ‘कश्मीर में लोग सरकार भरोसे गए और उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया’ के आलोक में, अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू और कश्मीर की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करें। सरकार की नीतियों, स्थानीय आबादी की चिंताओं और सुरक्षा परिदृश्य पर प्रकाश डालें।” (15 अंक, 250 शब्द)
- प्रश्न: “जम्मू और कश्मीर की सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक स्थिति को सामान्य बनाने में मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं? इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार की रणनीतियों और भविष्य की राह का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।” (15 अंक, 250 शब्द)
- प्रश्न: “अनुच्छेद 370 के निरस्त होने को राष्ट्रीय एकीकरण और सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाता है। इस कदम के पक्ष और विपक्ष में तर्कों का विश्लेषण करें, और यह भी बताएं कि ‘जमीनी हकीकत’ को समझने के लिए विपक्षी नेताओं के बयानों का क्या महत्व है।” (20 अंक, 300 शब्द)
- प्रश्न: “कश्मीर की स्थिति को समझने के लिए केवल सुरक्षा-केंद्रित दृष्टिकोण पर्याप्त नहीं है। विकास, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और विश्वास निर्माण जैसे अन्य आयामों पर विचार करते हुए, इस क्षेत्र में स्थायी शांति और समृद्धि कैसे प्राप्त की जा सकती है, इस पर अपने विचार प्रस्तुत करें।” (15 अंक, 250 शब्द)