ललन सिंह के ‘शहीद’ वाले बयान पर बवाल: सीजफायर और राष्ट्रीय सुरक्षा पर गरमाई राजनीति
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें वे जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों को “शहीद” के रूप में संबोधित करते हुए प्रतीत हो रहे हैं। इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में गरमागरम बहस छेड़ दी है, खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा और संघर्ष क्षेत्रों में भारतीय सेना के अभियानों को लेकर। इसी बीच, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से यह सवाल किया है कि उन्होंने संघर्ष विराम (सीजफायर) के दौरान भारतीय सेना के हमलों को क्यों रोका? ये दोनों घटनाक्रम मिलकर राष्ट्रीय सुरक्षा के जटिल मुद्दों को उजागर करते हैं और UPSC उम्मीदवारों के लिए एक गहन विश्लेषण का अवसर प्रदान करते हैं।
ललन सिंह का विवादित बयान: संदर्भ और निहितार्थ
वीडियो में ललन सिंह के शब्दों को लेकर अलग-अलग व्याख्याएं सामने आई हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वे किसी विशेष संदर्भ में बात कर रहे थे, जबकि अन्य इसे आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति के रूप में देख रहे हैं। इस तरह के बयानों के गंभीर राजनीतिक और सामाजिक निहितार्थ होते हैं:
- राजनीतिक ध्रुवीकरण: इस तरह के बयान अक्सर राजनीतिक दलों के बीच ध्रुवीकरण को बढ़ाते हैं। एक तरफ, सत्तारूढ़ दल और उसके सहयोगी इस तरह के बयानों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बता सकते हैं, वहीं दूसरी ओर, विपक्षी दल इसे सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने के अवसर के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
- जनता की धारणा: ऐसे बयान आम जनता के बीच भ्रम और अनिश्चितता पैदा कर सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां सुरक्षा बल आतंकवाद से लड़ रहे हैं। यह सुरक्षा बलों के मनोबल पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: भारत के आंतरिक सुरक्षा मामलों पर नेताओं के बयान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देखे जाते हैं और इसका देश की छवि पर प्रभाव पड़ सकता है।
एक विशेषज्ञ की दृष्टि में: यह समझना महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक नेताओं को अपने शब्दों के चयन में अत्यंत सतर्क रहना चाहिए, खासकर जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों की हो। “शहीद” शब्द का प्रयोग सामान्यतः उन सैनिकों के लिए किया जाता है जो देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर करते हैं। आतंकवादियों के लिए इस शब्द का प्रयोग न केवल हताहतों के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाता है, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से उनके कृत्यों को भी महिमामंडित कर सकता है।
राहुल गांधी का सीजफायर पर सवाल: ऑपरेशन की प्रभावशीलता
राहुल गांधी का सीजफायर के दौरान हमलों को रोकने का सवाल, राष्ट्रीय सुरक्षा की एक अलग और महत्वपूर्ण परत को उजागर करता है। यह बिंदु ऑपरेशन की रणनीति, राजनीतिक निर्णय और उसके परिणामों से जुड़ा है।
सीजफायर: एक रणनीतिक उपकरण?
सीजफायर, या युद्धविराम, एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें दोनों पक्ष अस्थायी रूप से या स्थायी रूप से शत्रुता समाप्त करने पर सहमत होते हैं। इसके कई उद्देश्य हो सकते हैं:
- मानवीय कारण: नागरिकों को होने वाले नुकसान को कम करना, चिकित्सा सहायता की अनुमति देना।
- शांति वार्ता: राजनीतिक समाधान खोजने के लिए बातचीत का अवसर प्रदान करना।
- सामरिक लाभ: दुश्मन की कमजोरियों का पता लगाना या अपने बलों को पुनर्गठित करना।
चुनौतियां: सीजफायर का उल्लंघन एक आम बात है, खासकर जब विरोधी पक्ष इसका दुरुपयोग करने की फिराक में हो। ऐसे में, सीजफायर के दौरान भी जवाबी कार्रवाई की रणनीति को लेकर दुविधा बनी रहती है।
राजनाथ सिंह का जवाब और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति
जब ऐसे प्रश्न उठाए जाते हैं, तो रक्षा मंत्री या सरकार का जवाब राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और राजनीतिक नेतृत्व के दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है। क्या सीजफायर के दौरान आक्रामक कार्रवाई को रोका गया था, और यदि हाँ, तो इसके पीछे क्या कारण थे? क्या यह एक सुनियोजित राजनीतिक निर्णय था या कोई सामरिक चूक?
UPSC के लिए प्रासंगिकता: प्रारंभिक परीक्षा में, उम्मीदवार सीजफायर, संघर्ष विराम, और ऐसे समझौतों से जुड़े देशों या क्षेत्रों के बारे में पूछ सकते हैं। मुख्य परीक्षा में, राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में ऐसे निर्णयों के प्रभाव, भारत की विदेश नीति और रक्षा रणनीतियों पर इन घटनाओं के विश्लेषण की अपेक्षा की जाती है।
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद: एक सतत चुनौती
ललन सिंह के बयान का सीधा संबंध जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की वर्तमान स्थिति से है। यह क्षेत्र दशकों से आतंकवाद और अलगाववाद से जूझ रहा है।
आतंकवाद की प्रकृति और उसके समर्थक
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की प्रकृति समय के साथ बदलती रही है। प्रारंभ में, यह बाहरी समर्थन, विशेष रूप से पाकिस्तान से पोषित था। हालांकि, हाल के वर्षों में, स्थानीय युवाओं की भर्ती और ‘लोन वुल्फ’ हमलों (जहां एक व्यक्ति अकेले ही हमला करता है) में वृद्धि देखी गई है।
समर्थन के स्रोत:
- बाहरी समर्थन: प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता, और हथियारों की आपूर्ति।
- विचारधारा: चरमपंथी विचारधाराओं का प्रचार।
- स्थानीय सहानुभूति: कुछ मामलों में, स्थानीय आबादी का एक छोटा वर्ग या व्यक्तिगत शिकायतें आतंकवादियों को आश्रय या सूचना प्रदान करने में योगदान कर सकती हैं।
भारत की प्रतिक्रिया: सैन्य और राजनीतिक
भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें शामिल हैं:
- सैन्य अभियान: आतंकवादियों को खत्म करने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा लगातार ऑपरेशन चलाए जाते हैं।
- कठोर कानून: राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) जैसे कानूनों का उपयोग।
- विकास और सुलह: स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना और राजनीतिक प्रक्रिया में उन्हें शामिल करना।
- सीमा प्रबंधन: घुसपैठ को रोकने के लिए सीमा पर कड़े उपाय।
ऑपरेशन सिंदूर: इस संदर्भ में, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अभियानों का उद्देश्य आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों को नष्ट करना और उनकी गतिविधियों को बाधित करना होता है। इन अभियानों की सफलता या विफलता पर राजनीतिक बयानों का गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा पर राजनीतिक बहसों का प्रभाव
राजनीतिक बयान, चाहे वे अनजाने में ही क्यों न हों, राष्ट्रीय सुरक्षा पर दूरगामी प्रभाव डाल सकते हैं।
सुरक्षा बलों का मनोबल
जब सार्वजनिक हस्तियाँ, विशेष रूप से राजनीतिक नेता, ऐसे बयान देते हैं जो आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति दर्शाते हैं, तो यह उन सुरक्षा कर्मियों के मनोबल को प्रभावित कर सकता है जो हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर देश की सेवा करते हैं। वे खुद को तिरस्कृत या अमान्य महसूस कर सकते हैं।
जनता का विश्वास
सफल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जनता का विश्वास सर्वोपरि है। ऐसे बयान जनता में यह धारणा पैदा कर सकते हैं कि सरकार आतंकवाद के प्रति गंभीर नहीं है, या कि राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किया जा रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति
वैश्विक मंच पर, भारत को आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई को सही ठहराना पड़ता है। जब देश के ही नेता विवादास्पद बयान देते हैं, तो यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच भारत के रुख को कमजोर कर सकता है और उन देशों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है जो भारत को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सहयोग करते हैं।
UPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण विषय
यह घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न पहलुओं को छूता है:
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims)
- भारतीय सुरक्षा बल: विभिन्न सुरक्षा बलों (सेना, अर्धसैनिक बल) की भूमिका और संरचना।
- जम्मू-कश्मीर: राज्य का विशेष दर्जा, आतंकवाद का इतिहास, महत्वपूर्ण अधिनियम (जैसे UAPA), और हाल की सुरक्षा नीतियां।
- कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध: भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंध, आतंकवाद के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
- भारतीय राजव्यवस्था: राजनीतिक दलों की भूमिका, नेताओं की सार्वजनिक बयानबाजी के नियम।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- GS-I: भारतीय समाज पर आतंकवाद का प्रभाव, सामाजिक न्याय।
- GS-II: भारत की विदेश नीति, द्विपक्षीय संबंध, अंतर्राष्ट्रीय संगठन, शासन (Governance)।
- GS-III: भारतीय अर्थव्यवस्था और आधुनिकीकरण, पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन, आतंकवाद, आर्थिक विकास, सीमा प्रबंधन।
- GS-IV: नैतिकता, सत्यनिष्ठा और योग्यता (Ethics, Integrity, and Aptitude)। सार्वजनिक जीवन में नेताओं की बयानबाजी की नैतिकता, राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति जिम्मेदारी।
विश्लेषण: क्यों, क्या, कैसे, पक्ष, विपक्ष, चुनौतियाँ और भविष्य की राह
क्यों? (Why?): ललन सिंह का बयान राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर राजनीतिक बयानबाजी के बढ़ते ध्रुवीकरण का एक उदाहरण है, जबकि राहुल गांधी का सवाल सरकार की रक्षा नीतियों पर विपक्ष के नियंत्रण और जवाबदेही की मांग को दर्शाता है। दोनों ही भारत की आंतरिक सुरक्षा और राजनीतिक परिदृश्य के महत्वपूर्ण पहलू हैं।
क्या? (What?): मुख्य मुद्दे हैं: आतंकवादियों को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों का महत्व, सीजफायर के दौरान सामरिक निर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा पर राजनीतिक बयानों का प्रभाव, और सुरक्षा बलों का मनोबल।
कैसे? (How?): यह घटनाक्रम हमें सिखाता है कि कैसे राजनीतिक बयानबाजी राष्ट्रीय सुरक्षा के ताने-बाने को प्रभावित कर सकती है। सीजफायर के दौरान रक्षा रणनीति का निर्णय एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक विचार शामिल होते हैं।
पक्ष (Pros):
- राजनीतिक बहस राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर जनता का ध्यान आकर्षित करती है।
- विपक्ष सरकार की नीतियों पर सवाल उठाकर जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
- सीजफायर मानवीय कारणों या शांति वार्ता के लिए एक अवसर प्रदान कर सकता है।
विपक्ष (Cons):
- संवेदनशील मुद्दों पर गैर-जिम्मेदाराना बयान राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर कर सकते हैं।
- सीजफायर का उल्लंघन करके आतंकवादियों को अप्रत्यक्ष समर्थन मिल सकता है।
- राजनीतिक दल राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनावी मुद्दा बनाकर उसका दुरुपयोग कर सकते हैं।
- सुरक्षा बलों का मनोबल गिर सकता है।
चुनौतियाँ (Challenges):
- आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने के लिए एक सुसंगत और प्रभावी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बनाए रखना।
- राजनीतिक नेताओं के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर आम सहमति सुनिश्चित करना।
- डिजिटल युग में गलत सूचना और भड़काऊ बयानों का प्रसार रोकना।
- सीजफायर के दौरान जवाबी कार्रवाई की रणनीति को संतुलित करना, ताकि किसी भी प्रकार की दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई का मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके, वहीं शांति प्रक्रिया को भी बल मिले।
भविष्य की राह (Way Forward):
“राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है और इस पर किसी भी प्रकार की राजनीतिक बयानबाजी को अत्यंत सावधानी और जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए।”
- संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी: सभी राजनीतिक नेताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति अपनी संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी को समझना चाहिए।
- रणनीतिक संचार: सरकार को संवेदनशील मुद्दों पर अपनी नीतियों और निर्णयों को स्पष्ट रूप से संप्रेषित करना चाहिए ताकि जनता और सुरक्षा बलों में विश्वास बना रहे।
- सर्वदलीय बैठकें: महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर सर्वदलीय बैठकें आयोजित करके आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
- जन जागरूकता: आतंकवाद की प्रकृति, उसके खतरों और राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्व के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में सहयोग जारी रखना और अपनी नीतियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना।
उपमा: मान लीजिए राष्ट्रीय सुरक्षा एक नाजुक संतुलन बनाने वाली कला है। एक तरफ सेना के जांबाज सैनिक हैं जो अपनी जान की बाजी लगाकर संतुलन बनाए रखते हैं, और दूसरी तरफ विभिन्न राजनीतिक दल हैं जो निर्णय लेते हैं। अगर राजनीतिक दल संतुलन बिगाड़ने वाले बयान देते हैं, तो पूरे ढांचे के ढहने का खतरा हो जाता है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. जम्मू और कश्मीर में वर्तमान में लागू राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित निम्नलिखित में से कौन सा अधिनियम है?
(a) टाडा (TADA)
(b) पोटा (POTA)
(c) गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA)
(d) आर्म्स एक्ट, 1959
उत्तर: (c)
व्याख्या: टाडा और पोटा अब अप्रचलित हो गए हैं। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) वर्तमान में आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधियों से निपटने के लिए सबसे प्रमुख कानून है।
2. “सीजफायर” (Ceasefire) का सबसे उपयुक्त अर्थ क्या है?
(a) एक देश द्वारा दूसरे पर हमला करना।
(b) अस्थायी रूप से शत्रुता को समाप्त करने पर सहमति।
(c) सैन्य बलों को पूर्ण निरस्त्रीकरण।
(d) गुप्त अभियानों की शुरुआत।
उत्तर: (b)
व्याख्या: सीजफायर, या युद्धविराम, संघर्ष में शामिल पक्षों के बीच शत्रुता को रोकने या रोकने की एक औपचारिक व्यवस्था है।
3. निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में आंतरिक सुरक्षा के लिए प्राथमिक रूप से जिम्मेदार है?
(a) भारतीय थल सेना
(b) सीमा सुरक्षा बल (BSF)
(c) केंद्रीय गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs)
(d) राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (National Security Council)
उत्तर: (c)
व्याख्या: केंद्रीय गृह मंत्रालय देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए समग्र रूप से जिम्मेदार है, जबकि सीमा सुरक्षा बल (BSF) विशेष रूप से सीमा सुरक्षा के लिए तैनात है। भारतीय थल सेना बाहरी रक्षा में प्राथमिक भूमिका निभाती है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित नीतिगत सलाह देती है।
4. “लोन वुल्फ” (Lone Wolf) हमलावर का क्या अर्थ है?
(a) एक समूह जो अन्य देशों से समर्थन प्राप्त करता है।
(b) एक व्यक्ति जो किसी संगठन से सीधे जुड़े बिना या प्रेरित हुए अकेले हमला करता है।
(c) सरकारी नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वाले नागरिक।
(d) सेना द्वारा किया गया कोई भी सामरिक हमला।
उत्तर: (b)
व्याख्या: “लोन वुल्फ” हमलावर एक व्यक्ति होता है जो किसी स्थापित आतंकवादी समूह से सीधे जुड़े बिना या उसकी प्रत्यक्ष प्रेरणा के बिना, अकेले ही हिंसक कार्य करता है।
5. जम्मू और कश्मीर में राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित कौन सा ऑपरेशन “ऑपरेशन सिंदूर” से जुड़ा हो सकता है (संदर्भ के अनुसार)?
(a) आतंकवादी ठिकानों पर घुसपैठ रोधी अभियान।
(b) आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों को लक्षित करने वाला अभियान।
(c) सीमा पार से होने वाली तस्करी को रोकने का अभियान।
(d) नागरिक आबादी की सुरक्षा के लिए चलाया गया अभियान।
उत्तर: (b)
व्याख्या: “ऑपरेशन सिंदूर” जैसे नाम आमतौर पर आतंकवादियों के गुप्त या मजबूत ठिकानों पर कार्रवाई के लिए उपयोग किए जा सकते हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां आतंकवाद सक्रिय है।
6. राजनीतिक नेताओं द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर दिए जाने वाले बयानों का मुख्य प्रभाव निम्नलिखित में से किस पर पड़ सकता है?
(a) केवल विपक्षी दलों का समर्थन।
(b) सुरक्षा बलों का मनोबल और जनता का विश्वास।
(c) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार।
(d) केवल आर्थिक नीतियां।
उत्तर: (b)
व्याख्या: राजनीतिक नेताओं के बयान सुरक्षा बलों के मनोबल को सीधे प्रभावित कर सकते हैं और जनता के बीच सरकार की नीतियों के प्रति विश्वास को बढ़ा या घटा सकते हैं।
7. भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में, “कठोर कानून” (Draconian Laws) का क्या तात्पर्य है?
(a) वे कानून जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अत्यधिक प्रतिबंधित करते हैं।
(b) वे कानून जो केवल आर्थिक अपराधों से निपटते हैं।
(c) वे कानून जो शांतिपूर्ण विरोध को प्रोत्साहित करते हैं।
(d) वे कानून जो केवल अंतरराष्ट्रीय संधियों से संबंधित हैं।
उत्तर: (a)
व्याख्या: “कठोर कानून” उन कानूनों को संदर्भित करते हैं जो सरकार को असामान्य रूप से व्यापक शक्तियां प्रदान करते हैं, अक्सर व्यक्तिगत स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों को प्रतिबंधित करते हैं, जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उचित ठहराया जाता है।
8. निम्नलिखित में से कौन सी संस्था राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के कार्यालय को रिपोर्ट करती है?
(a) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)
(b) इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB)
(c)RAW (Research and Analysis Wing)
(d) B और C दोनों
उत्तर: (d)
व्याख्या: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के कार्यालय को रिपोर्ट करने वाली प्रमुख खुफिया एजेंसियां इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और RAW (Research and Analysis Wing) हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सूचनाओं का एकत्रीकरण और विश्लेषण करती हैं।
9. जम्मू और कश्मीर में अलगाववादी आंदोलनों को बढ़ावा देने में निम्नलिखित में से किस कारक का ऐतिहासिक रूप से योगदान रहा है?
(a) केवल आर्थिक विकास की कमी।
(b) केवल बाहरी समर्थन और विचारधारात्मक प्रचार।
(c) बाहरी समर्थन, विचारधारात्मक प्रचार, और कभी-कभी स्थानीय शिकायतों का मिश्रण।
(d) केवल सरकार की नीतियां।
उत्तर: (c)
व्याख्या: जम्मू और कश्मीर में अलगाववादी आंदोलनों को बाहरी समर्थन (जैसे पाकिस्तान से), विचारधारात्मक प्रचार, और स्थानीय स्तर पर उत्पन्न शिकायतों या असंतोष के मिश्रण से ऐतिहासिक रूप से बढ़ावा मिला है।
10. किसी भी देश के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि रखने का सबसे मजबूत कारण क्या है?
(a) आर्थिक विकास को अधिकतम करना।
(b) देश की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
(c) अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करना।
(d) सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: राष्ट्रीय सुरक्षा का प्राथमिक उद्देश्य देश की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और अपने नागरिकों की जीवन और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. “आतंकवादियों को शहीद कहना” जैसे सार्वजनिक बयानों के राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ने वाले बहुआयामी प्रभावों का विश्लेषण करें। इन बयानों के कारण उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए राजनीतिक नेताओं की भूमिका और जिम्मेदारियों पर चर्चा करें।
(Word Limit: 250 Words)
2. जम्मू और कश्मीर में संघर्ष विराम (सीजफायर) के उपयोग और उसके दौरान अपनाई जाने वाली रणनीतियों पर टिप्पणी करें। ऐसे में आक्रामक कार्रवाई रोकने के निर्णय के पक्ष और विपक्ष में तर्कों का मूल्यांकन करें, और राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में इसके निहितार्थों पर प्रकाश डालें।
(Word Limit: 250 Words)
3. भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में, राजनीतिक ध्रुवीकरण और सार्वजनिक बहसों का सरकारों की नीतियों पर किस प्रकार प्रभाव पड़ता है? इस संदर्भ में, नेताओं द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बयानबाजी की नैतिकता पर एक विस्तृत चर्चा करें।
(Word Limit: 150 Words)
4. “ऑपरेशन सिंदूर” जैसे अभियानों की सफलता को सुनिश्चित करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति, सैन्य रणनीति और सार्वजनिक समर्थन के बीच अंतर्संबंध का विश्लेषण करें।
(Word Limit: 150 Words)