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महाराष्ट्र: सरकारी कर्मचारियों पर सोशल मीडिया लगाम – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल?

महाराष्ट्र: सरकारी कर्मचारियों पर सोशल मीडिया लगाम – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में एक नई सोशल मीडिया नीति पेश की है, जिसने राज्य के सरकारी कर्मचारियों को सरकार, उसकी नीतियों और अपने विभागों की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने से रोक दिया है। इस नीति का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों के बीच अनुशासन और व्यावसायिकता बनाए रखना है, लेकिन इसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और सरकारी कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों पर बहस छेड़ दी है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह विषय न केवल समसामयिक महत्व का है, बल्कि भारतीय संविधान, लोक प्रशासन और शासन के सिद्धांतों की गहरी समझ के लिए भी महत्वपूर्ण है।

यह ब्लॉग पोस्ट महाराष्ट्र की नई सोशल मीडिया नीति का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेगा, जिसमें इसके प्रमुख प्रावधान, इसके पीछे के तर्क, संभावित प्रभाव, संवैधानिक वैधता, और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसके महत्व पर प्रकाश डाला जाएगा।

नई नीति के मुख्य प्रावधान (Key Provisions of the New Policy):

महाराष्ट्र सरकार द्वारा जारी की गई इस नई नीति के तहत, सरकारी कर्मचारियों को निम्नलिखित कार्यों से प्रतिबंधित किया गया है:

  • सरकार या नीतियों की आलोचना: किसी भी कर्मचारी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सीधे तौर पर सरकार, राज्य सरकार की नीतियों, या अपने विभाग के कामकाज की आलोचना करने की अनुमति नहीं होगी।
  • सरकार विरोधी सामग्री साझा करना: ऐसी किसी भी सामग्री को साझा करना या आगे बढ़ाना प्रतिबंधित है जो सरकार या उसकी नीतियों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हो।
  • गोपनीय जानकारी का खुलासा: सरकारी कर्मचारियों को किसी भी गोपनीय या संवेदनशील सरकारी जानकारी को सोशल मीडिया पर साझा करने से रोका गया है।
  • व्यक्तिगत विचार और सरकारी पद का मिश्रण: कर्मचारियों को यह स्पष्ट करना होगा कि सोशल मीडिया पर व्यक्त किए गए विचार उनके व्यक्तिगत हैं, न कि सरकार के आधिकारिक रुख का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • अशोभनीय आचरण: ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल होने पर रोक है जो सरकारी कर्मचारी के पद के लिए अशोभनीय मानी जा सकती है।

यह नीति सरकारी कर्मचारियों को अपनी व्यक्तिगत राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता से पूरी तरह वंचित नहीं करती है, लेकिन यह उस सीमा को परिभाषित करती है जहाँ तक वे सरकार के प्रति आलोचनात्मक हो सकते हैं, खासकर सार्वजनिक मंचों पर।

नीति के पीछे सरकार का तर्क (Government’s Rationale Behind the Policy):

सरकार का तर्क है कि इस नीति को लागू करने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं:

  • अनुशासन और व्यावसायिकता: सरकारी कर्मचारी सार्वजनिक पद पर होते हैं, और उनके आचरण से सरकार की प्रतिष्ठा पर असर पड़ता है। सोशल मीडिया पर अनियंत्रित आलोचना सरकार के कामकाज में अराजकता और अनुशासनहीनता को बढ़ावा दे सकती है।
  • अफवाहों और दुष्प्रचार पर अंकुश: सरकारी कर्मचारी कई बार ऐसी जानकारी साझा कर सकते हैं जो अनजाने में अफवाहों या दुष्प्रचार का रूप ले लेती है, जिससे जनता में भ्रम फैल सकता है।
  • सरकार की विश्वसनीयता: जब सरकारी कर्मचारी ही सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हैं, तो यह जनता के मन में सरकार की विश्वसनीयता को कमज़ोर कर सकता है।
  • सुरक्षा और गोपनीयता: संवेदनशील सरकारी जानकारी का सोशल मीडिया पर लीक होना राष्ट्रीय सुरक्षा और शासन के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।
  • निष्पक्षता बनाए रखना: सरकारी कर्मचारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे निष्पक्ष रहें और किसी भी राजनीतिक दल या एजेंडे के प्रति झुकाव न दिखाएं। सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना अक्सर राजनीतिक रंग ले सकती है।

सरकार का मानना है कि यह नीति एक ‘सुरक्षा कवच’ की तरह काम करेगी, जो सरकारी तंत्र को सुचारू रूप से चलाने और उसकी गरिमा बनाए रखने में मदद करेगी।

संवैधानिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य (Constitutional and Legal Perspective):

यह नीति भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों, विशेष रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) और सरकारी कर्मचारियों के सेवा नियमों के बीच एक नाजुक संतुलन स्थापित करती है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Article 19(1)(a)):

“सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा।”

यह मौलिक अधिकार महत्वपूर्ण है, लेकिन यह निरपेक्ष नहीं है। अनुच्छेद 19(2) इस अधिकार पर उचित प्रतिबंधों की अनुमति देता है, जैसे कि भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, या मानहानि या न्यायालय की अवमानना के संबंध में।

सरकारी कर्मचारियों के अधिकार:

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में यह स्पष्ट किया है कि सरकारी कर्मचारियों को भी नागरिक के रूप में कुछ अधिकार प्राप्त हैं, जिनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी शामिल है। हालांकि, उनकी सेवा नियमों के तहत कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। उदाहरण के लिए, केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 और राज्य सरकार के अपने नियम, कर्मचारियों को सरकार के प्रति निष्ठा बनाए रखने और सार्वजनिक रूप से अनुचित टिप्पणी करने से रोकते हैं।

न्यायिक व्याख्याएँ:

न्यायालयों ने अतीत में ऐसे मामलों की सुनवाई की है जहाँ सरकारी कर्मचारियों ने सरकार की आलोचना की थी। आम तौर पर, न्यायालय यह मानता है कि:

  • सरकारी कर्मचारियों को सरकार की नीतियों की रचनात्मक आलोचना करने का अधिकार हो सकता है, जब तक कि यह उनके कर्तव्यों के निर्वहन में हस्तक्षेप न करे या सरकार की प्रतिष्ठा को जानबूझकर खराब न करे।
  • निजी तौर पर या सार्वजनिक मंचों पर सरकार की नीति पर असहमति व्यक्त करना, विशेष रूप से यदि यह अपमानजनक या उकसाने वाला हो, तो अनुशासनात्मक कार्रवाई का कारण बन सकता है।
  • गोपनीय जानकारी का खुलासा किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं है।

महाराष्ट्र सरकार की नीति को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यह नीति इन अनुशासनात्मक नियमों को आधुनिक डिजिटल युग के अनुरूप बनाती है।

नीति के संभावित प्रभाव (Potential Impacts of the Policy):

इस नीति के कई संभावित सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं:

सकारात्मक प्रभाव (Positive Impacts):

  • सरकारी तंत्र में स्थिरता: सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाने वाली अनियंत्रित आलोचना से बचा जा सकता है, जिससे सरकारी तंत्र अधिक स्थिर हो सकता है।
  • स्पष्टता और जवाबदेही: यह नीति कर्मचारियों को यह समझने में मदद कर सकती है कि उनके सार्वजनिक आचरण से सरकार की छवि कैसे प्रभावित होती है, जिससे वे अधिक जवाबदेह बन सकते हैं।
  • अफवाहों पर नियंत्रण: यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि सरकारी कर्मचारी किसी भी गलत सूचना को फैलने से रोकें।
  • पेशावर आचरण: यह नीति सरकारी कर्मचारियों के बीच एक पेशेवर आचरण संहिता को बढ़ावा दे सकती है।

नकारात्मक प्रभाव (Negative Impacts):

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश: सबसे बड़ी चिंता यह है कि यह नीति सरकारी कर्मचारियों की आवाज़ को दबा सकती है और उन्हें अपनी वैध चिंताओं या सुझावों को व्यक्त करने से रोक सकती है।
  • रचनात्मक प्रतिक्रिया का अभाव: यदि सरकारी कर्मचारी सरकार की नीतियों की आलोचना करने से डरते हैं, तो नीतियों में सुधार के लिए महत्वपूर्ण रचनात्मक प्रतिक्रिया का अभाव हो सकता है।
  • सरकारी कर्मचारियों का असंतोष: यदि कर्मचारियों को लगता है कि उनकी आवाज नहीं सुनी जा रही है, तो इससे उनमें असंतोष बढ़ सकता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से उनके काम की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।
  • ‘व्हिसिलब्लोअर’ की भूमिका पर असर: यह नीति उन कर्मचारियों को हतोत्साहित कर सकती है जो भ्रष्टाचार या कुशासन के खिलाफ आवाज उठाना चाहते हैं, और इस प्रकार ‘व्हिसिलब्लोअर’ की महत्वपूर्ण भूमिका को कमज़ोर कर सकती है।
  • नीति के दुरुपयोग की संभावना: इस बात का डर है कि इस नीति का इस्तेमाल उन कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए किया जा सकता है जो केवल अपनी वैध चिंताओं को उठा रहे हैं।

UPSC परीक्षा के लिए विश्लेषण (Analysis for UPSC Exam):

UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से, इस नीति का विश्लेषण बहुआयामी होना चाहिए। यह केवल महाराष्ट्र सरकार की एक नीति नहीं है, बल्कि यह सार्वजनिक प्रशासन, शासन, संविधान और समाज के व्यापक मुद्दों से जुड़ी है।

शासन और लोक प्रशासन (Governance and Public Administration):

  • सरकारी कर्मचारियों की भूमिका: सरकारी कर्मचारी राज्य के ‘मुखिया’ होते हैं। उनकी निष्ठा और कार्यप्रणाली शासन की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। यह नीति कर्मचारियों की भूमिका को फिर से परिभाषित करती है।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता: जबकि नीति पारदर्शिता को बढ़ावा देने का दावा करती है, यह प्रश्न उठता है कि क्या यह वास्तव में पारदर्शिता में बाधा डालेगी यदि कर्मचारी चिंताओं को साझा नहीं कर सकते।
  • आचार संहिता: यह नीति सरकारी कर्मचारियों के लिए एक डिजिटल आचार संहिता का हिस्सा है। लोक प्रशासन में आचार संहिता का महत्व सर्वोपरि है।
  • सुशासन के सिद्धांत: क्या यह नीति ‘सुशासन’ के सिद्धांतों (जैसे जवाबदेही, पारदर्शिता, भागीदारी) के अनुरूप है? इस पर विचार करना महत्वपूर्ण है।

भारतीय संविधान (Indian Constitution):

  • मौलिक अधिकार बनाम सेवा नियम: यह नीति हमेशा की तरह, मौलिक अधिकारों (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और राज्य के भीतर कार्यरत कर्मचारियों के सेवा नियमों के बीच खींचतान को उजागर करती है।
  • अनुच्छेद 19(2) के तहत औचित्य: क्या नीति द्वारा लगाए गए प्रतिबंध अनुच्छेद 19(2) के तहत ‘उचित प्रतिबंध’ की श्रेणी में आते हैं? यह एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न है।
  • न्यायपालिका की भूमिका: ऐसे मामलों में न्यायपालिका की भूमिका, अधिकारों के संरक्षण और राज्य के कामकाज को सुनिश्चित करने के बीच संतुलन बनाना है।

सामाजिक और नैतिक मुद्दे (Social and Ethical Issues):

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का महत्व: एक लोकतांत्रिक समाज में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कितनी महत्वपूर्ण है, और इस पर किसी भी प्रकार का अंकुश समाज के लिए क्या मायने रखता है।
  • सरकारी कर्मचारियों का मनोबल: नीति का कर्मचारियों के मनोबल और प्रेरणा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
  • ‘सार्वजनिक हित’ बनाम ‘सरकारी हित’: क्या सरकारी हित हमेशा सार्वजनिक हित के बराबर होते हैं? यह नीति इस पर एक बहस छेड़ने की क्षमता रखती है।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and the Way Forward):

यह नीति कई चुनौतियों का सामना कर सकती है:

  • स्पष्टता का अभाव: ‘आलोचना’ और ‘रचनात्मक प्रतिक्रिया’ के बीच की रेखा अक्सर धुंधली होती है। नीति में इस अंतर को स्पष्ट करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • कार्यान्वयन: नीति का प्रभावी कार्यान्वयन और दुरुपयोग को रोकना एक बड़ी चुनौती होगी।
  • कर्मचारी संघों का विरोध: सरकारी कर्मचारी संघ इस नीति का विरोध कर सकते हैं, जिससे आगे चलकर कानूनी या सामाजिक संघर्ष हो सकता है।

भविष्य की राह:

इस नीति को अधिक प्रभावी और स्वीकार्य बनाने के लिए, सरकार को निम्नलिखित पर विचार करना चाहिए:

  • स्पष्ट दिशानिर्देश: “क्या स्वीकार्य है” और “क्या स्वीकार्य नहीं है” के बारे में अधिक स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करें।
  • प्रशिक्षण: कर्मचारियों को सोशल मीडिया के विवेकपूर्ण उपयोग पर प्रशिक्षण प्रदान करें।
  • खुला संवाद: कर्मचारी संगठनों और कर्मचारियों के साथ एक खुला संवाद बनाए रखें ताकि उनकी चिंताओं को सुना जा सके।
  • संविधान का सम्मान: सुनिश्चित करें कि नीति संवैधानिक सिद्धांतों और न्यायिक मिसालों का पूर्ण सम्मान करती है।
  • प्रक्रियात्मक सुरक्षा: अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए एक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया स्थापित करें, जिसमें कर्मचारियों को अपना पक्ष रखने का अवसर मिले।

एक ऐसे युग में जहाँ सूचना का प्रवाह अभूतपूर्व है, सरकारी कर्मचारियों को सोशल मीडिया के उपयोग पर दिशानिर्देशों की आवश्यकता है। हालांकि, इन दिशानिर्देशों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को कमजोर नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे बनाए रखते हुए सरकारी आचरण को विनियमित करना चाहिए। यह नीति एक संतुलन साधने का प्रयास है, जिसके परिणामों पर सरकार, न्यायपालिका और समाज की कड़ी नज़र रहेगी।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: महाराष्ट्र की नई सोशल मीडिया नीति के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सरकारी कर्मचारियों को प्रतिबंधित करता है?
    (a) सरकार की नीतियों की सार्वजनिक रूप से आलोचना करना
    (b) गोपनीय सरकारी जानकारी को साझा करना
    (c) सरकार विरोधी सामग्री को फॉरवर्ड करना
    (d) उपरोक्त सभी
    उत्तर: (d)
    व्याख्या: नीति के अनुसार, सरकारी कर्मचारियों को सरकार, उसकी नीतियों की आलोचना करने, सरकार विरोधी सामग्री साझा करने और गोपनीय जानकारी के खुलासे से प्रतिबंधित किया गया है।
  2. प्रश्न 2: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद सरकारी कर्मचारियों द्वारा सोशल मीडिया पर की जाने वाली आलोचना के संबंध में औचित्य के आधार पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान करता है?
    (a) अनुच्छेद 14
    (b) अनुच्छेद 19(1)(a)
    (c) अनुच्छेद 19(2)
    (d) अनुच्छेद 21
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: अनुच्छेद 19(2) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘उचित प्रतिबंध’ की अनुमति देता है, जो सरकार की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था आदि से संबंधित हो सकते हैं।
  3. प्रश्न 3: महाराष्ट्र की नई सोशल मीडिया नीति के पीछे सरकार के तर्क के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा सही नहीं है?
    (a) सरकारी कर्मचारियों के बीच अनुशासन बनाए रखना
    (b) जनता में सरकारी नीतियों के प्रति विश्वास बढ़ाना
    (c) सरकारी कर्मचारियों को रचनात्मक आलोचना के लिए प्रोत्साहित करना
    (d) अफवाहों और दुष्प्रचार पर अंकुश लगाना
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: नीति का मुख्य उद्देश्य आलोचना को प्रतिबंधित करना है, न कि प्रोत्साहित करना। यह रचनात्मक आलोचना के लिए मंच प्रदान करने के बजाय सरकार के प्रति आलोचनात्मक रुख को हतोत्साहित करता है।
  4. प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा कारक ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के अधिकार पर ‘उचित प्रतिबंध’ के रूप में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) में शामिल नहीं है?
    (a) भारत की संप्रभुता और अखंडता
    (b) सार्वजनिक व्यवस्था
    (c) किसी अन्य देश के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
    (d) व्यापारिक हित
    उत्तर: (d)
    व्याख्या: अनुच्छेद 19(2) में संप्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, और मानहानि या न्यायालय की अवमानना शामिल हैं। व्यापारिक हित इसमें शामिल नहीं हैं।
  5. प्रश्न 5: महाराष्ट्र की सोशल मीडिया नीति, सरकारी कर्मचारियों के आचरण पर, मुख्य रूप से किस सिद्धांत पर आधारित है?
    (a) उपयोगितावाद (Utilitarianism)
    (b) न्याय (Justice)
    (c) लोक सेवक का आचरण (Conduct of Public Servant)
    (d) व्यक्तिवाद (Individualism)
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: यह नीति सीधे तौर पर लोक सेवक के आचरण के नियमों और उनके सार्वजनिक व्यवहार को विनियमित करने से संबंधित है।
  6. प्रश्न 6: यदि कोई सरकारी कर्मचारी सोशल मीडिया पर अपनी व्यक्तिगत राय के रूप में सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना करता है, तो महाराष्ट्र की नई नीति के तहत क्या संभव है?
    (a) निश्चित रूप से कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं होगी
    (b) नीति के प्रावधानों के उल्लंघन के आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है
    (c) केवल चेतावनी दी जाएगी
    (d) उसे तुरंत निलंबित कर दिया जाएगा
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: नीति के अनुसार, सरकार या नीतियों की आलोचना करना प्रतिबंधित है, जिससे अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है, भले ही इसे व्यक्तिगत राय के रूप में प्रस्तुत किया गया हो।
  7. प्रश्न 7: “व्हिसिलब्लोअर” (Whistleblower) की भूमिका पर महाराष्ट्र की नई सोशल मीडिया नीति का संभावित प्रभाव क्या हो सकता है?
    (a) व्हिसिलब्लोअर को प्रोत्साहन मिलेगा
    (b) व्हिसिलब्लोअर को हतोत्साहित किया जा सकता है
    (c) व्हिसिलब्लोअर की भूमिका पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा
    (d) व्हिसिलब्लोअर के लिए नए अवसर पैदा होंगे
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: नीति का उद्देश्य आलोचना को सीमित करना है, जिससे भ्रष्टाचार या कुशासन के खिलाफ आवाज उठाने वाले कर्मचारियों (व्हिसिलब्लोअर) को हतोत्साहित किया जा सकता है।
  8. प्रश्न 8: सरकार का एक तर्क यह है कि सरकारी कर्मचारियों को सोशल मीडिया पर अपनी व्यक्तिगत राय व्यक्त करते समय यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे सरकारी पद का प्रतिनिधित्व नहीं करते। यह किस सिद्धांत से संबंधित है?
    (a) निहित स्वार्थ (Conflict of Interest)
    (b) पेशेवर दूरी (Professional Distance)
    (c) जवाबदेही (Accountability)
    (d) गोपनीयता (Confidentiality)
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: व्यक्तिगत और आधिकारिक भूमिकाओं के बीच स्पष्टता बनाए रखना ‘पेशेवर दूरी’ बनाए रखने का हिस्सा है।
  9. प्रश्न 9: महाराष्ट्र सरकार की नई सोशल मीडिया नीति, कर्मचारियों के किन संवैधानिक अधिकारों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है?
    (a) स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
    (b) समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
    (c) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(a))
    (d) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: नीति सीधे तौर पर भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है।
  10. प्रश्न 10: यदि कोई सरकारी कर्मचारी किसी सार्वजनिक मंच पर सरकार की नीतियों पर “रचनात्मक प्रतिक्रिया” देता है, तो नई नीति के तहत उसे किस प्रकार देखा जा सकता है?
    (a) हमेशा नीति का उल्लंघन
    (b) हमेशा नीति का पालन
    (c) नीति के उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है, नीति की स्पष्टता पर निर्भर
    (d) नीति का पालन करने का एक तरीका
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: ‘रचनात्मक प्रतिक्रिया’ और ‘आलोचना’ के बीच की रेखा अक्सर धुंधली होती है, और यह नीति की व्याख्या और कार्यान्वयन पर निर्भर करेगा कि इसे उल्लंघन माना जाए या नहीं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: महाराष्ट्र की नई सोशल मीडिया नीति, सरकारी कर्मचारियों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और लोक सेवकों के पेशेवर आचरण के बीच एक नाजुक संतुलन बनाने का प्रयास करती है। इस नीति के प्रावधानों, इसके पीछे के तर्क और भारतीय संविधान के तहत इसकी वैधता का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)
  2. प्रश्न 2: सरकारी कर्मचारियों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने वाली नीतियों के संभावित लाभ और हानियाँ क्या हैं? महाराष्ट्र सरकार की नई नीति के संदर्भ में चर्चा करें कि कैसे ऐसी नीतियाँ ‘व्हिसिलब्लोअर’ की भूमिका और सरकारी तंत्र में पारदर्शिता को प्रभावित कर सकती हैं। (250 शब्द, 15 अंक)
  3. प्रश्न 3: ‘सार्वजनिक हित’ और ‘सरकारी हित’ के बीच अक्सर एक अंतर्निहित तनाव होता है। महाराष्ट्र की नई सोशल मीडिया नीति का विश्लेषण इस संदर्भ में करें, और बताएं कि क्या यह नीति वास्तव में सार्वजनिक हित को बढ़ावा देती है या सरकारी हितों की रक्षा करती है, जिससे कर्मचारियों की आवाज़ दब जाती है। (150 शब्द, 10 अंक)
  4. प्रश्न 4: भारत में सरकारी कर्मचारियों के लिए सोशल मीडिया के संबंध में एक संतुलित नीति तैयार करने के लिए कौन से प्रमुख तत्व शामिल किए जाने चाहिए? महाराष्ट्र की नीति से सीख लेते हुए, ऐसे उपायों का सुझाव दें जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखें और साथ ही सरकारी अनुशासन और विश्वसनीयता भी सुनिश्चित करें। (250 शब्द, 15 अंक)

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