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3 दिन का ‘भारी’ मौसम अलर्ट: पहाड़ से मैदान तक तबाही की आशंका, नदियों के उफान से निपटने की रणनीति

3 दिन का ‘भारी’ मौसम अलर्ट: पहाड़ से मैदान तक तबाही की आशंका, नदियों के उफान से निपटने की रणनीति

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने देश के कई हिस्सों, विशेष रूप से पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों के लिए अगले तीन दिनों में भारी से अत्यंत भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। इस मौसम संबंधी बुलेटिन ने संभावित बाढ़, भूस्खलन और सामान्य जनजीवन पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों की ओर इशारा किया है। नदियों के जलस्तर में वृद्धि और उनके रौद्र रूप धारण करने की आशंका ने प्रशासन और आम जनता दोनों के बीच चिंता बढ़ा दी है। यह स्थिति न केवल तत्काल जोखिम पैदा करती है, बल्कि UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए भी भूगोल, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, और समसामयिक घटनाओं के विश्लेषण के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

यह ब्लॉग पोस्ट इस मौसम अलर्ट के विभिन्न आयामों, इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों, संभावित प्रभावों और इससे निपटने की रणनीतियों पर एक विस्तृत नज़र डालेगा, जो विशेष रूप से UPSC के उम्मीदवारों को भारतीय भू-भाग और उसके खतरों को समझने में मदद करेगा।

मौसम का ‘तांडव’: बारीकियां और वैज्ञानिक आधार

भारत में मौसम का मिजाज अक्सर अप्रत्याशित होता है, खासकर मानसून के मौसम में। यह विशेष अलर्ट उन क्षेत्रीय मौसम प्रणालियों की ओर इशारा करता है जो अत्यधिक वर्षा को प्रेरित कर सकती हैं।

  • मौसमी प्रणाली: यह भारी बारिश का कारण एक विशिष्ट मौसमी प्रणाली हो सकती है, जैसे कि एक निम्न दबाव का क्षेत्र (Low-Pressure Area), अवसाद (Depression), या मानसून ट्रफ (Monsoon Trough) का अपनी सामान्य स्थिति से दक्षिण की ओर खिसकना, जो उप-हिमालयी क्षेत्रों या उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में नमी को आकर्षित कर सकता है।
  • पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) और मानसून का संगम: कई बार, पश्चिमी विक्षोभ, जो भूमध्य सागर से उत्पन्न होकर भारत की ओर बढ़ते हैं, मानसून के साथ मिलकर उत्तर भारत में भारी बारिश का कारण बन सकते हैं।
  • पहाड़ी क्षेत्रों का प्रभाव: हिमालयी क्षेत्र अपनी स्थलाकृति (Topography) के कारण बारिश को और बढ़ा सकते हैं। जब नम हवाएं पहाड़ों से टकराती हैं, तो वे ऊपर उठती हैं, ठंडी होती हैं और संघनित होकर अत्यधिक वर्षा करती हैं।
  • मैदानी क्षेत्रों में बाढ़: पहाड़ी इलाकों से आने वाला अतिरिक्त पानी जब मैदानी इलाकों की नदियों में गिरता है, तो जलस्तर तेजी से बढ़ सकता है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।

उपमा: इसे ऐसे समझिए जैसे एक बड़ा तौलिया (नम हवा) जब एक खुरदरी दीवार (पहाड़) से टकराता है, तो वह दीवार के साथ चिपक कर अधिक पानी (बारिश) छोड़ देता है। मैदानी इलाकों में यह पानी एक संकरी नाली (नदी) में जमा हो जाता है, जो अगर भर जाए तो बाहर फैलने लगती है (बाढ़)।

‘भारी’ अलर्ट का मतलब क्या है? (Impact Analysis)

IMD द्वारा जारी ‘भारी’, ‘बहुत भारी’ या ‘अत्यंत भारी’ बारिश की चेतावनियों का अपना विशिष्ट वैज्ञानिक अर्थ होता है, जिसका सीधा संबंध संभावित खतरों से है:

1. पहाड़ी क्षेत्रों पर प्रभाव: भूस्खलन और अवरुद्ध सड़कें

पहाड़ी इलाकों में मूसलाधार बारिश का सबसे आम और विनाशकारी प्रभाव भूस्खलन (Landslides) है।

  • वैज्ञानिक कारण: अत्यधिक वर्षा मिट्टी को संतृप्त (Saturate) कर देती है, जिससे उसका भार बढ़ जाता है। साथ ही, पानी मिट्टी के कणों के बीच की पकड़ को कमजोर कर देता है। गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में, ढलान पर जमा यह भारी, अस्थिर मिट्टी अचानक नीचे की ओर खिसकने लगती है।
  • परिणाम:
    • सड़कें अवरुद्ध हो सकती हैं, जिससे बचाव और राहत कार्यों में बाधा आती है।
    • गांव और बस्तियां मलबे के नीचे दब सकती हैं।
    • बिजली, संचार और पानी की आपूर्ति बाधित हो सकती है।
    • स्थानीय अर्थव्यवस्था, विशेषकर पर्यटन, बुरी तरह प्रभावित होती है।
  • UPSC प्रासंगिकता: यह आपदा प्रबंधन (Disaster Management), भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) और पर्यावरण (Environment) के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। हिमालयी राज्यों जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, और पूर्वोत्तर राज्यों में यह एक आवर्ती समस्या है।

2. मैदानी क्षेत्रों में नदियां और बाढ़ (Riverine Floods)

पहाड़ों से आने वाले पानी का बहाव मैदानी इलाकों की नदियों के जलस्तर को खतरनाक रूप से बढ़ा सकता है।

  • वैज्ञानिक कारण: जब नदियां अपनी सामान्य क्षमता से अधिक पानी ले जाने लगती हैं, तो वह किनारों से बाहर बहने लगती है। यह पानी अपने साथ कीचड़, गाद और मलबा भी लाता है।
  • परिणाम:
    • बड़े पैमाने पर खेत, घर और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जलमग्न हो जाते हैं।
    • जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, लोग विस्थापित होते हैं।
    • पीने योग्य पानी और स्वच्छता की कमी से बीमारियाँ फैल सकती हैं (जैसे डायरिया, टाइफाइड)।
    • फसलों का भारी नुकसान होता है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ता है।
    • आर्थिक गतिविधियों पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • UPSC प्रासंगिकता: नदी प्रणालियाँ (River Systems), जल प्रबंधन (Water Management), कृषि (Agriculture), अर्थव्यवस्था (Economy) और सामाजिक प्रभाव (Social Impact) से संबंधित। गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, कोसी जैसी नदियाँ अक्सर बाढ़ का कारण बनती हैं।

3. अचानक बाढ़ (Flash Floods) और जलभराव (Waterlogging)

पहाड़ों के साथ-साथ शहरी इलाकों में भी अत्यधिक वर्षा से अचानक बाढ़ और जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

  • कारण:
    • अचानक बाढ़: संकरी घाटियों या चैनलों में बहुत कम समय में अत्यधिक वर्षा से नदियों या नालों में अचानक और तीव्र प्रवाह।
    • शहरी जलभराव: शहरों में कंक्रीटीकरण (Concreteization) और खराब जल निकासी व्यवस्था (Drainage System) के कारण वर्षा का पानी जमीन में रिस नहीं पाता और सतह पर जमा हो जाता है।
  • परिणाम:
    • अचानक बाढ़ अत्यंत घातक होती है क्योंकि इससे बचने का समय बहुत कम मिलता है।
    • शहरी जलभराव से यातायात ठप हो जाता है, संपत्ति को नुकसान पहुंचता है और बीमारियों का खतरा बढ़ता है।
  • UPSC प्रासंगिकता: शहरी नियोजन (Urban Planning), आपदा प्रबंधन, पर्यावरण।

4. बिजली गिरने का खतरा

भारी वर्षा के साथ अक्सर गरज (Thunder) और बिजली (Lightning) भी कड़कती है।

  • वैज्ञानिक कारण: बादलों के अंदर बर्फ के क्रिस्टल और पानी की बूंदों के बीच घर्षण से स्टैटिक इलेक्ट्रिसिटी (Static Electricity) उत्पन्न होती है, जो डिस्चार्ज होने पर बिजली का रूप लेती है।
  • परिणाम: खुले में मौजूद लोगों और जानवरों के लिए यह जानलेवा हो सकता है।
  • UPSC प्रासंगिकता: पर्यावरण, सुरक्षा।

3 दिन की चेतावनी: हमारी तैयारी कैसी है? (Preparedness and Response)

इस तरह की मौसम चेतावनियों को गंभीरता से लेना और उससे निपटने के लिए तैयार रहना महत्वपूर्ण है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में आपदा प्रबंधन क्षमताओं में सुधार किया है, लेकिन अभी भी चुनौतियां बाकी हैं।

4.1 राष्ट्रीय और राज्य स्तर की तैयारी

  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD): मौसम की भविष्यवाणी और चेतावनियों का प्राथमिक स्रोत। IMD द्वारा जारी अलर्ट की सटीकता और समयबद्धता महत्वपूर्ण है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF): ये बल प्रशिक्षित कर्मी और उपकरण लेकर किसी भी आपदा की स्थिति में तत्काल प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार रहते हैं।
  • जिला प्रशासन: जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी डीएम की होती है। वे स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके तैयारी और प्रतिक्रिया का समन्वय करते हैं।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems): बाढ़, भूस्खलन और अन्य खतरों के लिए पहले से चेतावनी देने वाली प्रणालियाँ महत्वपूर्ण हैं।
  • बुनियादी ढांचा: नदियों पर बांध, तटबंध (Embankments), जल निकासी प्रणालियाँ, और भूस्खलन-रोधी उपाय (Anti-landslide measures) जैसी बुनियादी संरचनाएँ कितनी मजबूत और प्रभावी हैं, यह भी तैयारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

4.2 चुनौतियाँ (Challenges)

  • पहाड़ी क्षेत्रों में पहुंच: दुर्गम पहाड़ी इलाकों में समय पर राहत और बचाव कार्य पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है।
  • शहरीकरण और अतिक्रमण: नदी के बाढ़ क्षेत्रों (Flood Plains) में अनियोजित शहरीकरण और अतिक्रमण से बाढ़ का खतरा और नुकसान बढ़ता है।
  • संचार की समस्या: आपदा के दौरान संचार लाइनें अक्सर बाधित हो जाती हैं, जिससे सूचना का आदान-प्रदान मुश्किल हो जाता है।
  • जागरूकता की कमी: आम जनता में आपदाओं से बचाव के उपायों और पूर्व चेतावनी प्रणालियों के बारे में जागरूकता का अभाव।
  • संसाधनों का आवंटन: आपदाओं से लड़ने के लिए पर्याप्त मानव और वित्तीय संसाधनों का हमेशा उपलब्ध न होना।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की चरम घटनाएं (Extreme Weather Events) अधिक बार और अधिक तीव्र हो रही हैं, जिससे भविष्यवाणियां और तैयारी और भी जटिल हो जाती है।

UPSC उम्मीदवारों के लिए यह क्यों महत्वपूर्ण है?

यह मौसम अलर्ट न केवल वर्तमान घटनाओं का एक महत्वपूर्ण बिंदु है, बल्कि UPSC परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है:

  • प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):
    • भूगोल: भारतीय जलवायु, मानसून, नदी प्रणालियाँ, स्थलाकृति, भूस्खलन के कारण, बाढ़ के प्रकार।
    • पर्यावरण: जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएँ, पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव।
    • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: मौसम पूर्वानुमान तकनीकें, पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ।
  • मुख्य परीक्षा (Mains):
    • सामान्य अध्ययन पेपर I (भूगोल): “भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक”, “भारत की प्रमुख नदियाँ और उनकी विशेषताएँ”, “प्राकृतिक आपदाएँ और उनके प्रबंधन”।
    • सामान्य अध्ययन पेपर III (अर्थव्यवस्था और पर्यावरण): “पर्यावरण संरक्षण”, “आपदा प्रबंधन”, “जलवायु परिवर्तन”, “कृषि और खाद्य सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव”।
    • निबंध (Essay): “जलवायु परिवर्तन और उसके भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रभाव”, “भारत में आपदा प्रबंधन: चुनौतियाँ और समाधान”, “प्राकृतिक आपदाएँ: अभिशाप या अवसर”।
  • साक्षात्कार (Interview): वर्तमान घटनाओं पर अपनी समझ और विश्लेषण प्रस्तुत करने की क्षमता का परीक्षण।

आगे की राह: सतत तैयारी और अनुकूलन

इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

  • पूर्व चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करना: नवीनतम तकनीकों का उपयोग करके चेतावनियों की सटीकता और पहुंच बढ़ाना।
  • आपदा-प्रत्यास्थी बुनियादी ढांचे (Disaster-Resilient Infrastructure) का निर्माण: ऐसे ढांचे बनाना जो अत्यधिक मौसम की घटनाओं का सामना कर सकें।
  • सामुदायिक भागीदारी और क्षमता निर्माण: स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षित करना ताकि वे आपदा के समय अपनी सुरक्षा और बचाव स्वयं कर सकें।
  • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील विकास: विकास परियोजनाओं को इस तरह से डिजाइन करना कि वे पर्यावरण और प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कम करें।
  • अंतर-एजेंसी समन्वय: विभिन्न सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय निकायों के बीच प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करना।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन (Climate Change Adaptation): दीर्घकालिक योजनाएँ बनाना जो जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को ध्यान में रखें।

निष्कर्ष:

यह तीन दिवसीय ‘भारी’ मौसम अलर्ट भारत के लिए एक गंभीर अनुस्मारक है कि प्रकृति के प्रकोप से निपटने के लिए हमारी तैयारी कितनी मजबूत है। यह समय है कि हम वैज्ञानिक समझ, प्रभावी प्रतिक्रिया तंत्र और दीर्घकालिक शमन रणनीतियों के माध्यम से इन चुनौतियों का सामना करें। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह अवसर है कि वे इन घटनाओं के पीछे के कारणों, प्रभावों और समाधानों का गहराई से अध्ययन करें, जो न केवल उनकी परीक्षा की तैयारी में मदद करेगा, बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक और भविष्य का प्रशासक बनने के लिए भी तैयार करेगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन सी मौसमी प्रणाली अक्सर उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में अत्यधिक वर्षा और बाढ़ का कारण बनती है, खासकर जब यह हिमालय के करीब आती है?
    1. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance)
    2. मानसून ट्रफ (Monsoon Trough)
    3. पूर्वी जेट स्ट्रीम (Easterly Jet Stream)
    4. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper Air Circulation)

    उत्तर: B (मानसून ट्रफ का दक्षिण की ओर खिसकना और अधिक सक्रिय होना नमी को आकर्षित कर सकता है, जिससे भारी वर्षा हो सकती है।)

  2. प्रश्न 2: पहाड़ी क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश के कारण होने वाले भूस्खलन के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक जिम्मेदार नहीं है?
    1. मिट्टी का अत्यधिक संतृप्त होना
    2. मिट्टी की पकड़ का कमजोर होना
    3. ढलान की स्थिरता में वृद्धि
    4. गुरुत्वाकर्षण बल

    उत्तर: C (बारिश मिट्टी को अस्थिर बनाती है, न कि स्थिर।)

  3. प्रश्न 3: अचानक बाढ़ (Flash Flood) के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
    1. यह धीरे-धीरे विकसित होती है और लंबे समय तक रहती है।
    2. यह संकरी घाटियों में बहुत कम समय में अत्यधिक वर्षा के कारण हो सकती है।
    3. इसमें बहने वाले पानी की गति धीमी होती है।
    4. यह मुख्य रूप से मैदानी इलाकों को प्रभावित करती है।

    उत्तर: B (अचानक बाढ़ तीव्र होती है और संकरी घाटियों में आम है।)

  4. प्रश्न 4: भारत में बाढ़ के लिए जिम्मेदार प्रमुख नदियों में निम्नलिखित में से कौन सी नदी शामिल नहीं है?
    1. कोसी
    2. ब्रह्मपुत्र
    3. गंगा
    4. सतलुज

    उत्तर: D (जबकि सतलुज बेसिन में बाढ़ आ सकती है, कोसी, ब्रह्मपुत्र और गंगा ऐतिहासिक रूप से भारत में बाढ़ के लिए अधिक कुख्यात हैं।)

  5. प्रश्न 5: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    1. केवल मौसम की भविष्यवाणी करना
    2. आपदाओं के दौरान विशेष बचाव और राहत कार्य करना
    3. आपदा प्रबंधन के लिए नीतियों का निर्माण करना
    4. बाढ़ नियंत्रण के लिए बांधों का निर्माण करना

    उत्तर: B (NDRF बचाव और राहत कार्यों के लिए तैनात की जाती है।)

  6. प्रश्न 6: शहरी जलभराव (Urban Waterlogging) का मुख्य कारण निम्नलिखित में से कौन सा है?
    1. नदियों का चौड़ा होना
    2. कंक्रीटीकरण और खराब जल निकासी व्यवस्था
    3. जंगलों की बहुतायत
    4. पहाड़ी ढलानों से कटाव

    उत्तर: B (शहरी क्षेत्रों में अपारगम्य सतहें और अपर्याप्त जल निकासी जलभराव का कारण बनती हैं।)

  7. प्रश्न 7: भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
    1. मुंबई
    2. कोलकाता
    3. नई दिल्ली
    4. चेन्नई

    उत्तर: C (नई दिल्ली)

  8. प्रश्न 8: भूस्खलन के संदर्भ में, ‘स्लोप स्ट्रेंथ’ (Slope Strength) पर निम्नलिखित में से किसका प्रभाव पड़ता है?
    1. मिट्टी की नमी की मात्रा
    2. मिट्टी का प्रकार (जैसे मिट्टी, रेत, चट्टान)
    3. ढलान का कोण
    4. उपरोक्त सभी

    उत्तर: D (ये सभी कारक ढलान की स्थिरता को प्रभावित करते हैं।)

  9. प्रश्न 9: जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाओं (Extreme Weather Events) में वृद्धि के लिए निम्नलिखित में से कौन सी गैसें मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं?
    1. ऑक्सीजन और नाइट्रोजन
    2. कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन
    3. ओजोन और आर्गन
    4. हाइड्रोजन और हीलियम

    उत्तर: B (ये प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें हैं।)

  10. प्रश्न 10: ‘बाढ़ का मैदान’ (Flood Plain) क्या है?
    1. नदी का सबसे गहरा बिंदु।
    2. एक नदी द्वारा अपने किनारों से बाहर बहने पर पानी से ढका हुआ क्षेत्र।
    3. नदी के किनारे का पहाड़ी भाग।
    4. नदी डेल्टा का वह हिस्सा जहाँ तलछट जमा होता है।

    उत्तर: B (यह वह क्षेत्र है जो बाढ़ के दौरान जलमग्न होने की संभावना रखता है।)

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: भारत में भूस्खलन एक गंभीर समस्या है, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में। भूस्खलन के कारणों का विश्लेषण करें और ऐसे कौन से उपाय किए जा सकते हैं जिनसे इन घटनाओं के प्रभाव को कम किया जा सके? (15 अंक, 250 शब्द)
  2. प्रश्न 2: हालिया मौसम अलर्ट को ध्यान में रखते हुए, भारत में बाढ़ प्रबंधन की वर्तमान स्थिति और भविष्य की रणनीतियों पर प्रकाश डालें। इसमें राष्ट्रीय और राज्य स्तर की संस्थाओं की भूमिका और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में इन रणनीतियों की प्रासंगिकता का विश्लेषण करें। (15 अंक, 250 शब्द)
  3. प्रश्न 3: ‘आपदा-प्रत्यास्थी बुनियादी ढांचा’ (Disaster-Resilient Infrastructure) की अवधारणा को स्पष्ट करें और बताएं कि भारत में ऐसे बुनियादी ढांचे के निर्माण की आवश्यकता क्यों है, खासकर बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के संदर्भ में। (10 अंक, 150 शब्द)
  4. प्रश्न 4: सामान्य अध्ययन के पेपर I (भूगोल) और पेपर III (पर्यावरण और आपदा प्रबंधन) के दृष्टिकोण से, इस प्रकार के मौसम संबंधी घटनाक्रमों का अध्ययन कैसे किया जा सकता है? अपने उत्तर में प्रासंगिक विषयों और उप-विषयों का उल्लेख करें। (10 अंक, 150 शब्द)

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