शांति की ओर भारत का कदम: फिलिस्तीन के लिए UN की 3-दिवसीय बैठक में भागीदारी का गहरा विश्लेषण
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारत ने फिलिस्तीनी मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय बैठक में भाग लेने का निर्णय लिया है। यह कदम अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मंच पर भारत की सक्रिय भूमिका को रेखांकित करता है, विशेष रूप से एक ऐसे संघर्ष के समाधान में जो दशकों से वैश्विक एजेंडे पर रहा है। यह भागीदारी न केवल भारत की विदेश नीति के सिद्धांतों को दर्शाती है, बल्कि फिलिस्तीनी लोगों के प्रति उसके दीर्घकालिक समर्थन को भी पुनः पुष्टि करती है। यह लेख इस महत्वपूर्ण घटना का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेगा, जिसमें इसके ऐतिहासिक संदर्भ, भारत की स्थिति, बैठक के उद्देश्य, संभावित परिणाम और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसका महत्व शामिल होगा।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत और फिलिस्तीनी मुद्दा (Historical Context: India and the Palestine Issue)
भारत और फिलिस्तीनी लोगों के बीच संबंध दशकों पुराने हैं, जो औपनिवेशिक विरोधी आंदोलनों से जुड़े हुए हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, भारत ने फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय के अधिकार का पुरजोर समर्थन किया। यह समर्थन आज भी भारत की ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ (दो-राज्य समाधान) की नीति में परिलक्षित होता है, जो इजराइल और फिलिस्तीन को एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहने की वकालत करता है।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement – NAM): भारत, NAM के एक प्रमुख सदस्य के रूप में, हमेशा उन राष्ट्रों के साथ खड़ा रहा है जिन्होंने स्वतंत्रता और आत्म-निर्णय के लिए संघर्ष किया। फिलिस्तीनी मुद्दा NAM के एजेंडे में हमेशा प्राथमिकता पर रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र में भारत का वोट: भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में फिलिस्तीन के पक्ष में कई प्रस्तावों पर मतदान किया है, जिसमें फिलिस्तीन को पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार करने का समर्थन भी शामिल है।
- मानवीय सहायता: भारत ने फिलिस्तीनी क्षेत्रों को लगातार मानवीय और विकास सहायता प्रदान की है, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
यह ऐतिहासिक संबंध भारत की वर्तमान भागीदारी को एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं। यह केवल एक कूटनीतिक चाल नहीं है, बल्कि दीर्घकालिक प्रतिबद्धता का विस्तार है।
2. संयुक्त राष्ट्र की बैठक: उद्देश्य और महत्व (The UN Meet: Objectives and Significance)
संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित यह तीन दिवसीय बैठक, फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों और हाल के घटनाक्रमों पर चर्चा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करती है। इसके मुख्य उद्देश्यों में शामिल हैं:
- फिलिस्तीनी प्रश्न की समीक्षा: बैठक का प्राथमिक उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न निकायों के माध्यम से फिलिस्तीनी प्रश्न की वर्तमान स्थिति की समीक्षा करना और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए इसे एजेंडे पर बनाए रखना है।
- मानवाधिकारों का उल्लंघन: यह बैठक फिलिस्तीनी क्षेत्रों में इजरायल द्वारा कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन और अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति इसके अनुपालन पर भी प्रकाश डाल सकती है।
- समाधान के रास्ते तलाशना: सदस्य देशों के बीच संवाद को बढ़ावा देना ताकि दो-राज्य समाधान (Two-State Solution) जैसे स्थायी समाधान के रास्तों पर फिर से विचार किया जा सके।
- मानवीय स्थिति का आकलन: गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में बिगड़ती मानवीय स्थिति पर चर्चा करना और तत्काल सहायता की आवश्यकता पर जोर देना।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सुदृढ़ करना: फिलिस्तीनी मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय एकजुटता को मजबूत करना और सदस्य देशों के बीच सहयोग के नए तरीके खोजना।
भारत की भागीदारी यह दर्शाती है कि वह इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है। यह बैठक उन देशों के लिए भी एक अवसर है जो इस संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान में विश्वास करते हैं, ताकि वे अपनी आवाज़ उठा सकें और रचनात्मक समाधानों के लिए दबाव बना सकें।
3. भारत की स्थिति और विदेश नीति के सिद्धांत (India’s Stand and Foreign Policy Principles)
भारत की विदेश नीति हमेशा शांति, सहिष्णुता और अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान पर आधारित रही है। फिलिस्तीनी मुद्दे पर भारत का रुख इन सिद्धांतों का एक स्पष्ट उदाहरण है:
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व: भारत इजरायल और फिलिस्तीन के बीच एक ऐसे समाधान का समर्थन करता है जहाँ दोनों राज्य एक-दूसरे के साथ शांति और सुरक्षा में सह-अस्तित्व में रह सकें।
- आत्मनिर्णय का अधिकार: भारत फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार को मान्यता देता है और एक स्वतंत्र, संप्रभु और व्यवहार्य फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का समर्थन करता है।
- अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन: भारत का मानना है कि सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय कानून, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और जिनेवा कन्वेंशन का पालन करना चाहिए।
- द्विपक्षीय संबंध: भारत के इजरायल के साथ भी मजबूत द्विपक्षीय संबंध हैं, जो प्रौद्योगिकी, रक्षा और कृषि जैसे क्षेत्रों में फैले हुए हैं। यह भारत की कूटनीति की जटिलता को दर्शाता है – जहाँ वह एक ओर फिलिस्तीनी लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखता है, वहीं दूसरी ओर इजरायल के साथ भी अपने संबंधों को मजबूत करता है।
उपमा: भारत का रुख एक कुशल नाविक की तरह है जो विपरीत धाराओं के बीच संतुलन बनाए रखते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ता है। यह न तो फिलिस्तीन की ओर पूरी तरह झुकता है और न ही इजरायल से पूरी तरह मुंह मोड़ता है, बल्कि एक संतुलित और न्यायसंगत समाधान की दिशा में प्रयास करता है।
4. बैठक में भारत की भूमिका और योगदान (India’s Role and Contribution in the Meet)
इस बैठक में भारत की उपस्थिति कई मायनों में महत्वपूर्ण होगी:
- कूटनीतिक प्रभाव: एक बड़ी आबादी वाले और उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में, भारत के पास वैश्विक मंच पर महत्वपूर्ण कूटनीतिक प्रभाव है। भारत की आवाज शांतिपूर्ण समाधानों के लिए एक शक्तिशाली तर्क प्रदान कर सकती है।
- अनुभव साझा करना: भारत, जिसने स्वयं भाषाई, धार्मिक और क्षेत्रीय विविधता के साथ एक बहुलवादी समाज का निर्माण किया है, अपने अनुभवों को साझा कर सकता है कि कैसे विभिन्न समुदायों के बीच सह-अस्तित्व संभव है।
- मानवीय सहायता का प्रस्ताव: भारत इस बैठक में फिलिस्तीनी क्षेत्रों में अपनी मानवीय और विकास सहायता बढ़ाने के नए प्रस्ताव रख सकता है।
- शांति प्रयासों में सक्रियता: भारत अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के अपने संकल्प को दोहरा सकता है और फिलिस्तीनी मुद्दे के समाधान के लिए रचनात्मक सुझाव दे सकता है।
उदाहरण: जिस प्रकार भारत ने अतीत में अन्य अंतरराष्ट्रीय संघर्षों के समाधान में मध्यस्थता और शांति स्थापना में भूमिका निभाई है, उसी प्रकार वह इस मंच पर भी रचनात्मक संवाद को बढ़ावा देने में योगदान दे सकता है।
5. बैठक के संभावित परिणाम और चुनौतियाँ (Potential Outcomes and Challenges of the Meet)
इस तरह की संयुक्त राष्ट्र बैठकें अक्सर बहुआयामी परिणाम लाती हैं:
संभावित सकारात्मक परिणाम:
- बढ़ी हुई जागरूकता: फिलिस्तीनी मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जागरूकता को और बढ़ाया जा सकता है।
- एकजुटता का प्रदर्शन: उन देशों की एकजुटता का प्रदर्शन जो शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं।
- मानवीय सहायता में वृद्धि: फिलिस्तीनी क्षेत्रों के लिए अधिक मानवीय सहायता का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
- कूटनीतिक पहल: नए कूटनीतिक प्रयासों को गति मिल सकती है।
चुनौतियाँ:
- अंतर्राष्ट्रीय सहमति का अभाव: इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर विभिन्न देशों के अलग-अलग विचार हैं, जिससे एक सर्वसम्मत समाधान तक पहुंचना मुश्किल हो सकता है।
- वास्तविक प्रभाव का अभाव: संयुक्त राष्ट्र की बैठकें अक्सर घोषणाओं तक सीमित रह जाती हैं, जिनका जमीनी स्तर पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: संघर्ष के दोनों पक्षों और प्रमुख वैश्विक शक्तियों में स्थायी शांति के लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी एक बड़ी बाधा बनी हुई है।
- इजरायल का रुख: इजरायल का वर्तमान रुख, जैसे कि बस्तियों का विस्तार और फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर नियंत्रण, शांति वार्ता को जटिल बनाता है।
- भू-राजनीतिक कारक: मध्य पूर्व की जटिल भू-राजनीतिक स्थिति और विभिन्न क्षेत्रीय शक्तियों के हित इस संघर्ष को और अधिक जटिल बनाते हैं।
blockquote: “शांति केवल युद्ध की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि न्याय, व्यवस्था और सद्भाव की उपस्थिति है।” – यह कथन फिलिस्तीनी मुद्दे के समाधान के लिए आवश्यक व्यापक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है।
6. UPSC परीक्षा के लिए तैयारी (Preparation for UPSC Exam)
यह विषय UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
I. प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) के लिए:
उम्मीदवारों को निम्नलिखित पर ध्यान देना चाहिए:
- ऐतिहासिक तथ्य: भारत और फिलिस्तीन के बीच संबंधों का इतिहास, भारत की ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ नीति।
- संयुक्त राष्ट्र और इसके प्रस्ताव: UNSC और UNGA में फिलिस्तीन से संबंधित प्रमुख प्रस्ताव (जैसे UNSC Resolution 242, 194, 2334)।
- अंतरराष्ट्रीय संगठन: संयुक्त राष्ट्र के संबंधित निकाय जैसे UNRWA (United Nations Relief and Works Agency for Palestine Refugees in the Near East)।
- भूगोल: फिलिस्तीनी क्षेत्र (वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी, पूर्वी यरुशलम), इजरायल की बस्तियाँ।
- चालू घटनाक्रम: वर्तमान राजनीतिक स्थितियाँ, भारत की हालिया भागीदारी।
II. मुख्य परीक्षा (Mains) के लिए:
उम्मीदवारों को विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए:
- GS-I (आधुनिक भारतीय इतिहास/विश्व इतिहास): भारत के स्वतंत्रता संग्राम और उसके विश्व पर प्रभाव के संदर्भ में फिलिस्तीनी मुद्दा।
- GS-II (अंतर्राष्ट्रीय संबंध):
- भारत की विदेश नीति और उसके सिद्धांत।
- प्रमुख वैश्विक घटनाएं और उनका भारत पर प्रभाव।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठन और भारत की भागीदारी।
- मध्य पूर्व में संघर्ष और भारत के हित।
- इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष का विश्लेषण, इसके कारण, परिणाम और समाधान के प्रयास।
- ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ की व्यवहार्यता और चुनौतियाँ।
- भारत की ‘लुक ईस्ट’ (Act East) और ‘वेस्ट पॉलिसी’ (West Policy) के संदर्भ में मध्य पूर्व का महत्व।
- GS-IV (नैतिकता, अखंडता और योग्यता): अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता, शांति और न्याय के सिद्धांत।
7. भविष्य की राह: शांति की ओर कदम (The Way Forward: Steps Towards Peace)
फिलिस्तीनी प्रश्न का स्थायी समाधान केवल राजनयिक वार्ता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एकजुट प्रयासों से ही संभव है। भारत जैसी भूमिकाएँ महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन्हें कुछ प्रमुख पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए:
- अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन: यह सुनिश्चित करना कि सभी पक्ष अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का पालन करें।
- बातचीत को बढ़ावा: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच सीधी बातचीत के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करना।
- मानवीय सहायता का विस्तार: फिलिस्तीनी लोगों की मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सहायता जारी रखना और बढ़ाना।
- आर्थिक विकास को बढ़ावा: फिलिस्तीनी अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देना ताकि स्थिरता और शांति की नींव मजबूत हो सके।
- जनता के बीच समझ: दोनों समुदायों के बीच समझ और सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों का समर्थन करना।
भारत का इस संयुक्त राष्ट्र बैठक में भाग लेना एक सकारात्मक संकेत है। यह दर्शाता है कि भारत वैश्विक शांति और न्याय के लिए अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखता है और एक बहुध्रुवीय दुनिया में रचनात्मक भूमिका निभाने को तैयार है। फिलिस्तीनी लोगों के लिए न्याय और शांति की दिशा में हर कदम महत्वपूर्ण है, और भारत का यह कदम उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. भारत हमेशा से ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ का समर्थक रहा है।
2. भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में फिलिस्तीन को पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार करने के पक्ष में मतदान किया है।
3. भारत के इजरायल के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
व्याख्या: कथन 1 और 2 सही हैं। भारत के इजरायल के साथ मजबूत राजनयिक और आर्थिक संबंध हैं (कथन 3 गलत है)।
2. संयुक्त राष्ट्र राहत और निर्माण एजेंसी (UNRWA) मुख्य रूप से निम्नलिखित में से किसके लिए काम करती है?
(a) इजरायल में शरणार्थियों की सहायता
(b) जॉर्डन में शरणार्थियों की सहायता
(c) सीरिया में शरणार्थियों की सहायता
(d) फिलिस्तीनी शरणार्थियों की सहायता
उत्तर: (d)
व्याख्या: UNRWA की स्थापना 1949 में फिलिस्तीनी शरणार्थियों की सहायता के लिए की गई थी।
3. निम्नलिखित में से कौन सा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का प्रस्ताव इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी क्षेत्रों में बस्तियों के निर्माण को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अवैध घोषित करता है?
(a) UNSC Resolution 242
(b) UNSC Resolution 194
(c) UNSC Resolution 2334
(d) UNSC Resolution 478
उत्तर: (c)
व्याख्या: UNSC Resolution 2334 (2016) ने इजरायल की बस्तियों को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध माना।
4. भारत ने फिलिस्तीनी मुद्दे पर अपने समर्थन को व्यक्त करते हुए किस अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सक्रिय भूमिका निभाई है?
(a) G20
(b) ब्रिक्स (BRICS)
(c) गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM)
(d) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
उत्तर: (c)
व्याख्या: भारत, गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के एक प्रमुख सदस्य के रूप में, फिलिस्तीनी मुद्दे का एक लंबे समय से समर्थक रहा है।
5. ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ का अर्थ है:
(a) इजरायल और जॉर्डन का एकीकरण।
(b) एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य का इजरायल के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
(c) एक संघीय इजरायल-फिलिस्तीनी राज्य।
(d) गाजा और वेस्ट बैंक का एकीकरण।
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ का अर्थ है एक स्वतंत्र, संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य का इजरायल के साथ शांति और सुरक्षा में सह-अस्तित्व।
6. भारत द्वारा फिलिस्तीनी क्षेत्रों को प्रदान की जाने वाली सहायता का प्रमुख क्षेत्र क्या है?
(a) केवल सैन्य सहायता
(b) केवल कूटनीतिक समर्थन
(c) मानवीय और विकास सहायता
(d) वित्तीय सहायता के बजाय केवल तकनीकी सहायता
उत्तर: (c)
व्याख्या: भारत फिलिस्तीनी क्षेत्रों को स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचे और मानवीय सहायता के रूप में विकास सहायता प्रदान करता है।
7. संयुक्त राष्ट्र की तीन दिवसीय बैठक का प्राथमिक उद्देश्य क्या हो सकता है?
(a) इजरायल को पुरस्कृत करना
(b) फिलिस्तीनी मुद्दे की समीक्षा और समाधान के रास्ते खोजना
(c) रूस-यूक्रेन संघर्ष पर चर्चा करना
(d) जलवायु परिवर्तन पर नए समझौते करना
उत्तर: (b)
व्याख्या: बैठक का मुख्य उद्देश्य फिलिस्तीनी प्रश्न की समीक्षा करना और स्थायी समाधान के तरीकों पर चर्चा करना है।
8. निम्नलिखित में से कौन सा देश फिलिस्तीनी क्षेत्रों के भविष्य पर संयुक्त राष्ट्र में चर्चा के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं?
1. भारत
2. संयुक्त राज्य अमेरिका
3. ईरान
4. रूस
सही कूट का प्रयोग करें:
(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
व्याख्या: सभी प्रमुख वैश्विक और क्षेत्रीय शक्तियां, उनके अलग-अलग विचारों के बावजूद, फिलिस्तीनी मुद्दे पर चर्चा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
9. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की बैठक में भारत की भागीदारी का क्या महत्व हो सकता है?
(a) भारत की कूटनीतिक उपस्थिति बढ़ाना
(b) फिलिस्तीनी मुद्दे पर अपनी प्रतिबद्धता दोहराना
(c) शांतिपूर्ण समाधानों के लिए सक्रिय भूमिका निभाना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: भारत की भागीदारी उपरोक्त सभी कारणों से महत्वपूर्ण है।
10. मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता के लिए कौन सा कारक सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है?
(a) केवल तेल की कीमतें
(b) केवल क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग
(c) इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष का न्यायसंगत समाधान
(d) केवल अंतरराष्ट्रीय सैन्य हस्तक्षेप
उत्तर: (c)
व्याख्या: इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष का न्यायसंगत और स्थायी समाधान मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण शर्त है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. “भारत की विदेश नीति हमेशा बहुआयामी रही है, जो राष्ट्रीय हितों और नैतिक सिद्धांतों दोनों से प्रेरित है।” इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के प्रति भारत के दृष्टिकोण का विश्लेषण करते हुए इस कथन की पुष्टि करें। (लगभग 250 शब्द)
*(यह प्रश्न भारत की विदेश नीति के सिद्धांतों, इजरायल के साथ इसके संबंधों और फिलिस्तीनी मुद्दे पर इसके समर्थन के बीच संतुलन को समझने पर केंद्रित है।)*
2. संयुक्त राष्ट्र की बैठकें अक्सर शांति स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन उनके कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ होती हैं। फिलिस्तीनी मुद्दे के संदर्भ में, ऐसी बैठकों के संभावित परिणामों और कार्यान्वयन की बाधाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (लगभग 250 शब्द)
*(यह प्रश्न संयुक्त राष्ट्र की बैठकों की प्रभावशीलता, उनके उद्देश्यों और उन बाधाओं के बारे में पूछता है जो स्थायी समाधान को रोकती हैं।)*
3. ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ को इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक स्वीकार्य समाधान माना जाता है। इसके पक्ष और विपक्ष में तर्कों का विश्लेषण करें और भारत इस समाधान को प्राप्त करने में क्या भूमिका निभा सकता है? (लगभग 250 शब्द)
*(यह प्रश्न “टू-स्टेट सॉल्यूशन” की अवधारणा, उसकी व्यवहार्यता पर बहस और भारत जैसे देशों के संभावित योगदान का विश्लेषण करने के लिए कहता है।)*