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बिजली का मौत का तार: हरिद्वार मंदिर भगदड़ से सबक – भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा पर एक गंभीर मंथन

बिजली का मौत का तार: हरिद्वार मंदिर भगदड़ से सबक – भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा पर एक गंभीर मंथन

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, उत्तराखंड के हरिद्वार में एक प्रसिद्ध मंदिर में हुई एक दुखद घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। भारी भीड़ के बीच, एक बिजली का तार टूटने की घटना ने भयावह भगदड़ मचा दी, जिसमें 8 लोगों की जान चली गई और कई अन्य घायल हो गए। यह घटना सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि हमारे देश में भीड़ प्रबंधन, सार्वजनिक सुरक्षा और बुनियादी ढांचे से जुड़े गंभीर सवालों को उठाती है, खासकर धार्मिक स्थलों और बड़े सार्वजनिक समारोहों के संदर्भ में। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह मामला आपदा प्रबंधन, सामाजिक न्याय, शासन और सुरक्षा जैसे विषयों के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

यह ब्लॉग पोस्ट इस दुखद घटना के पीछे के कारणों, इसके सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों, और सबसे महत्वपूर्ण, UPSC परीक्षा के विभिन्न पहलुओं के लिए इसके निहितार्थों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करेगा। हम समझेंगे कि कैसे एक साधारण बिजली का तार इतने बड़े विनाश का कारण बन सकता है, और इससे हम क्या सबक सीख सकते हैं।

घटना का विस्तृत विश्लेषण: क्या हुआ और क्यों?

हरिद्वार, जो अपनी आध्यात्मिकता और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है, हर साल लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। ऐसे में, किसी भी अप्रिय घटना का प्रभाव बहुत व्यापक होता है। इस विशेष घटना में, यह बताया गया कि मंदिर परिसर में या उसके आसपास बिजली की आपूर्ति करने वाली एक लाइन किसी कारणवश टूट गई। यह टूटी हुई लाइन, संभवतः लाइव (विद्युत प्रवाहित) होने के कारण, भीड़ में घबराहट का कारण बनी।

जब लोगों का एक बड़ा समूह एक साथ अचानक किसी खतरे का सामना करता है, तो प्राकृतिक रूप से बचने की प्रवृत्ति (stampede instinct) सक्रिय हो जाती है। लोग अक्सर बिना सोचे-समझे, बस आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं, जिससे धक्का-मुक्की होती है। यदि रास्ता संकरा हो, या प्रवेश/निकास बिंदु संकीर्ण हों, तो यह स्थिति और भी विकट हो जाती है। बिजली के तार का मामला और भी खतरनाक हो जाता है क्योंकि यह सीधे तौर पर शारीरिक नुकसान (बिजली का झटका) पहुंचाने की क्षमता रखता है, जो घबराहट को कई गुना बढ़ा देता है।

संभावित कारण (Possible Triggers):

  • खराब या पुराना बुनियादी ढांचा: बिजली के तार और संबंधित उपकरण समय के साथ खराब हो सकते हैं, खासकर कठोर मौसम की स्थिति में। यदि नियमित रखरखाव और निरीक्षण नहीं किया जाता है, तो ऐसे तार कमजोर हो जाते हैं और टूट सकते हैं।
  • अत्यधिक भीड़: धार्मिक त्योहारों या विशेष अवसरों पर, मंदिरों में क्षमता से अधिक भीड़ हो सकती है। इससे न केवल संरचना पर दबाव पड़ता है, बल्कि हर छोटे-बड़े खतरे पर प्रतिक्रिया भी तीव्र और अनियंत्रित हो जाती है।
  • अप्रत्याशित मौसम की स्थिति: तेज हवाएं, भारी बारिश या बिजली कड़कना भी बिजली के तारों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
  • अनधिकृत या असुरक्षित विद्युत कनेक्शन: कभी-कभी, बड़े सार्वजनिक स्थानों पर अस्थायी या अनधिकृत विद्युत कनेक्शन लगाए जाते हैं जो सुरक्षा मानकों का पालन नहीं करते।
  • सुरक्षा चूक: भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त सुरक्षा कर्मियों की अनुपस्थिति, स्पष्ट दिशा-निर्देशों की कमी, या आपातकालीन निकास मार्गों का अवरुद्ध होना भी स्थिति को खराब कर सकता है।

UPSC के दृष्टिकोण से प्रासंगिकता: किन विषयों से जुड़ा है यह मामला?

यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों और विषयों के लिए एक महत्वपूर्ण केस स्टडी प्रस्तुत करती है।

1. सामान्य अध्ययन पेपर I: भारतीय समाज

  • सामाजिक मुद्दे: भीड़ प्रबंधन, धार्मिक स्थलों पर सुरक्षा, भीड़ द्वारा उत्पन्न जोखिम, सामाजिक मनोविज्ञान (घबराहट और भगदड़ के पीछे की प्रतिक्रियाएं)।
  • सांस्कृतिक पहलू: भारत में धार्मिक मेलों और समारोहों का महत्व, और उनके साथ आने वाली चुनौतियाँ।

2. सामान्य अध्ययन पेपर II: शासन, राजनीति और प्रशासन

  • शासन (Governance): सार्वजनिक सुरक्षा के लिए सरकारी नीतियां, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका, राज्य आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारियां, प्रोटोकॉल और दिशानिर्देश।
  • प्रशासन (Administration): स्थानीय प्रशासन की भूमिका, जिला मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारियां, पुलिस की भूमिका, आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र।
  • कानून और न्याय: सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा मानकों का प्रवर्तन, संबंधित कानूनों और विनियमों की समीक्षा।

3. सामान्य अध्ययन पेपर III: आपदा प्रबंधन

  • आपदा प्रबंधन: मानव निर्मित आपदाएं (man-made disasters), निवारण (prevention), शमन (mitigation), तैयारी (preparedness), प्रतिक्रिया (response), और पुनर्प्राप्ति (recovery) के सिद्धांत।
  • बुनियादी ढांचा: सार्वजनिक स्थानों पर बिजली और अन्य बुनियादी ढांचे की सुरक्षा, उसकी निगरानी और रखरखाव।
  • सुरक्षा: सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग, जोखिम मूल्यांकन (risk assessment)।

4. सामान्य अध्ययन पेपर IV: नैतिकता और सत्यनिष्ठा

  • नैतिक दुविधाएं: भीड़ प्रबंधन में तैनात अधिकारियों के सामने आने वाली नैतिक चुनौतियाँ।
  • सार्वजनिक सेवा का मूल्य: नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रति सरकारी एजेंसियों की जवाबदेही और सत्यनिष्ठा।
  • नैतिक शासन: सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करने में विफलता के नैतिक निहितार्थ।

भीड़ प्रबंधन: एक जटिल चुनौती

भारत में, विशेष रूप से धार्मिक त्योहारों और मेलों के दौरान, भीड़ प्रबंधन हमेशा एक बड़ी चुनौती रही है। यह घटना इस समस्या की गंभीरता को फिर से रेखांकित करती है।

क्या है भीड़ प्रबंधन?

भीड़ प्रबंधन से तात्पर्य बड़ी संख्या में लोगों की आवाजाही, व्यवहार और सुरक्षा को नियंत्रित करने और निर्देशित करने की प्रक्रिया से है, ताकि अव्यवस्था, भगदड़ और अन्य खतरनाक स्थितियों को रोका जा सके। इसमें योजना, निगरानी, ​​नियंत्रण और त्वरित प्रतिक्रिया शामिल है।

भीड़ प्रबंधन की प्रमुख चुनौतियाँ:

  • अत्यधिक संख्या: धार्मिक स्थलों पर आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या अक्सर योजनाकारों की अपेक्षाओं से अधिक हो जाती है।
  • अप्रत्याशित व्यवहार: भीड़ में लोग अक्सर व्यक्तिगत सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए अप्रत्याशित व्यवहार कर सकते हैं।
  • स्थान की सीमाएं: संकरे रास्ते, भीड़ भरे गलियारे, और अपर्याप्त निकास द्वार स्थिति को गंभीर बना सकते हैं।
  • सूचना का अभाव: भीड़ को सटीक और समय पर सूचना (जैसे आपातकालीन निकास, खतरे की चेतावनी) का संचार करना कठिन होता है।
  • संसाधनों की कमी: पर्याप्त सुरक्षा कर्मी, निगरानी उपकरण और आपातकालीन चिकित्सा सुविधाएं अक्सर अपर्याप्त हो सकती हैं।
  • मौसम का प्रभाव: खराब मौसम भीड़ के प्रवाह और सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।

बुनियादी ढांचा और सुरक्षा: कहाँ होती है चूक?

हरिद्वार मंदिर भगदड़ में बिजली के तार का टूटना एक गंभीर चूक की ओर इशारा करता है। सार्वजनिक स्थानों, विशेष रूप से मंदिरों और बड़े समारोहों में, बुनियादी ढांचे की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

“सार्वजनिक स्थानों पर बुनियादी ढांचे की अवहेलना केवल लापरवाही नहीं, बल्कि एक गंभीर सुरक्षा चूक है जो अनगिनत जिंदगियों को जोखिम में डाल सकती है।”

चिंता के क्षेत्र:

  • नियमित निरीक्षण और रखरखाव: बिजली के तारों, ट्रांसफार्मर, जनरेटर और अन्य विद्युत उपकरणों का नियमित, वैज्ञानिक निरीक्षण और रखरखाव अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें संभावित कमजोरियों की पहचान करना और उन्हें ठीक करना शामिल है।
  • सामग्री की गुणवत्ता: सार्वजनिक स्थानों पर उपयोग की जाने वाली बिजली की तारों और उपकरणों की गुणवत्ता उच्च मानकों वाली होनी चाहिए ताकि वे बाहरी कारकों (जैसे मौसम, तनाव) का सामना कर सकें।
  • डिजाइन और स्थापना: बिजली के तारों को इस तरह से डिजाइन और स्थापित किया जाना चाहिए कि वे अत्यधिक भीड़ या खिंचाव के संपर्क में न आएं। उन्हें सुरक्षित रूप से समेटा जाना चाहिए और सुरक्षात्मक कवर का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • आपातकालीन बिजली समाधान: आपातकालीन स्थिति के लिए बैकअप पावर की व्यवस्था करते समय, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना भी आवश्यक है।
  • निगरानी प्रणाली: महत्वपूर्ण स्थानों पर विद्युत प्रवाह और उपकरणों की निगरानी के लिए सेंसर और अन्य निगरानी प्रणालियों का उपयोग किया जा सकता है।

आपदा प्रबंधन: निवारण से प्रतिक्रिया तक

यह घटना हमें भारत के आपदा प्रबंधन ढांचे की प्रभावशीलता पर सवाल उठाने के लिए मजबूर करती है, विशेष रूप से मानव निर्मित आपदाओं के संबंध में।

आपदा प्रबंधन के चार चरण:

  1. निवारण (Prevention) और शमन (Mitigation): आपदाओं को होने से रोकना या उनके प्रभाव को कम करना। इस मामले में, बिजली के बुनियादी ढांचे का उचित रखरखाव और सुरक्षा मानक सुनिश्चित करना निवारण का हिस्सा है।
  2. तैयारी (Preparedness): आपदाओं का सामना करने के लिए योजना बनाना, संसाधन जुटाना और प्रशिक्षण देना। इसमें भीड़ प्रबंधन योजनाएं, आपातकालीन निकासों की पहचान, और सुरक्षा कर्मियों की तैनाती शामिल है।
  3. प्रतिक्रिया (Response): आपदा होने के बाद तुरंत कार्रवाई करना। इसमें बचाव कार्य, चिकित्सा सहायता, और घायलों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना शामिल है।
  4. पुनर्प्राप्ति (Recovery): आपदा के बाद सामान्य स्थिति बहाल करना। इसमें पुनर्वास, पुनर्निर्माण और प्रभावित लोगों को सहायता प्रदान करना शामिल है।

इस मामले में हमारी भूमिका:

यह घटना दर्शाती है कि निवारण और तैयारी के चरणों में कहीं न कहीं गंभीर चूक हुई। बिजली के तार का टूटना सीधे तौर पर निवारण की विफलता है, और यदि यह घटना अधिक लोगों को प्रभावित कर सकती थी, तो यह तैयारी की कमी को भी दर्शाता है।

नैतिक और प्रशासनिक जवाबदेही

इस दुखद घटना के लिए कौन जिम्मेदार है? यह एक ऐसा प्रश्न है जो अंततः प्रशासनिक और नैतिक जवाबदेही की ओर ले जाता है।

  • स्थानीय प्रशासन: मंदिरों और सार्वजनिक समारोहों के आसपास सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने की प्राथमिक जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की होती है।
  • मंदिर प्रबंधन: मंदिर प्रबंधन समितियों को भी अपनी परिसरों के भीतर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  • बिजली विभाग: बिजली के बुनियादी ढांचे की देखरेख करने वाले विभाग भी अपनी भूमिका निभाने में विफल रहे हैं।
  • आयोजक: यदि यह किसी विशेष आयोजन के दौरान हुआ, तो आयोजकों की भी जिम्मेदारी बनती है।

UPSC के दृष्टिकोण से, यह समझना महत्वपूर्ण है कि ऐसी त्रासदियों के बाद, न केवल जांच और मुआवजे की मांग होती है, बल्कि प्रशासनिक सुधारों की भी आवश्यकता होती है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।

सुझाए गए उपाय और भविष्य की राह

हरिद्वार मंदिर भगदड़ जैसी घटनाओं से सबक सीखते हुए, भविष्य में सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

1. कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल और मानक:

  • धार्मिक स्थलों और बड़े सार्वजनिक समारोहों के लिए विस्तृत सुरक्षा प्रोटोकॉल विकसित और लागू किए जाने चाहिए।
  • सभी बुनियादी ढांचों, विशेष रूप से बिजली के तारों और उपकरणों के लिए सख्त सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • विद्युत विभाग द्वारा नियमित और गहन ऑडिट (audits) किए जाने चाहिए।

2. उन्नत भीड़ प्रबंधन तकनीक:

  • भीड़ की गणना और भविष्यवाणी के लिए प्रौद्योगिकी (जैसे AI-आधारित निगरानी, ​​सेंसर) का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • स्पष्ट साइनेज (signage), मार्किंग और निर्देशित निकास मार्गों का निर्माण किया जाना चाहिए।
  • भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया जाना चाहिए।
  • आपातकालीन सेवाओं (अग्निशमन, चिकित्सा) के लिए एक प्रभावी समन्वय तंत्र होना चाहिए।

3. बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण:

  • पुराने और खराब बिजली के बुनियादी ढांचे को आधुनिक और सुरक्षित प्रणालियों से बदला जाना चाहिए।
  • सभी बिजली के तारों को भूमिगत करने या उन्हें सुरक्षित रूप से ढकने पर विचार किया जा सकता है।
  • मौसम की मार से बचाने के लिए उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए।

4. जागरूकता और प्रशिक्षण:

  • आम जनता को सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित व्यवहार और आपातकालीन स्थितियों में प्रतिक्रिया के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
  • सुरक्षा कर्मियों और आयोजकों के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।

5. जवाबदेही का तंत्र:

  • किसी भी चूक के मामले में त्वरित और पारदर्शी जांच सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  • जिम्मेदार अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।

निष्कर्ष

हरिद्वार मंदिर भगदड़ एक दिल दहला देने वाली घटना थी जिसने 8 अनमोल जानें छीन लीं। यह घटना हमें हमारी सामूहिक जिम्मेदारी की याद दिलाती है – चाहे वह सरकार हो, स्थानीय प्रशासन हो, आयोजक हों, या स्वयं नागरिक। बिजली के तार का टूटना एक ऐसी घटना है जिसे उचित योजना, रखरखाव और निगरानी से टाला जा सकता था। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह मामला एक गंभीर अनुस्मारक है कि कैसे शासन, बुनियादी ढांचा, सुरक्षा और मानवीय कारक आपस में जुड़े हुए हैं। इन मुद्दों को समझना और उनके समाधान के बारे में सोचना हमारे देश के उज्जवल और सुरक्षित भविष्य के लिए आवश्यक है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी त्रासदियां फिर कभी न हों, और हमारी प्राथमिकता हमेशा ‘जीवन की सुरक्षा’ ही रहे।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. **प्रश्न:** हरिद्वार मंदिर भगदड़ जैसी घटनाओं के संदर्भ में, ‘आपदा प्रबंधन’ के चार मुख्य चरणों का सही क्रम क्या है?
(a) तैयारी, प्रतिक्रिया, पुनर्प्राप्ति, निवारण
(b) निवारण, शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया, पुनर्प्राप्ति
(c) प्रतिक्रिया, तैयारी, निवारण, पुनर्प्राप्ति
(d) शमन, प्रतिक्रिया, पुनर्प्राप्ति, तैयारी
**उत्तर:** (b)
**व्याख्या:** आपदा प्रबंधन के पारंपरिक चार चरण हैं: निवारण (Prevention), शमन (Mitigation), तैयारी (Preparedness), प्रतिक्रिया (Response) और पुनर्प्राप्ति (Recovery)। इन चरणों का लक्ष्य आपदाओं के प्रभाव को कम करना और उनसे प्रभावी ढंग से निपटना है।

2. **प्रश्न:** भारत में सार्वजनिक स्थानों पर होने वाली भगदड़ के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक जिम्मेदार हो सकता है?
1. अत्यधिक भीड़
2. संकरे और अवरुद्ध निकास मार्ग
3. खराब बुनियादी ढांचा (जैसे बिजली के तार)
4. भीड़ को नियंत्रित करने में सुरक्षा कर्मियों की अक्षमता
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 1, 2, 3 और 4
(d) केवल 3 और 4
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** भगदड़ कई कारकों का परिणाम होती है, जिनमें अत्यधिक भीड़, अपर्याप्त निकास, खराब बुनियादी ढांचा और सुरक्षा प्रबंधन में विफलता शामिल हैं। हरिद्वार की घटना में बिजली का तार (खराब बुनियादी ढांचा) एक महत्वपूर्ण कारण बना, जिसने भीड़ के व्यवहार को प्रभावित किया।

3. **प्रश्न:** राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह आपदा प्रबंधन के लिए नीतियां, योजनाएं और दिशानिर्देश तैयार करता है।
2. यह केंद्र सरकार के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
3. यह केवल प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
**उत्तर:** (a)
**व्याख्या:** NDMA आपदा प्रबंधन के लिए नीतियां और दिशानिर्देश तैयार करता है और केंद्र सरकार के लिए नोडल एजेंसी है। यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों तरह की आपदाओं के प्रबंधन से संबंधित है, इसलिए कथन 3 गलत है।

4. **प्रश्न:** ‘मानव निर्मित आपदा’ (Man-made disaster) का सबसे उपयुक्त उदाहरण कौन सा है?
(a) भूकंप
(b) सुनामी
(c) परमाणु दुर्घटना
(d) ज्वालामुखी विस्फोट
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** मानव निर्मित आपदाएं वे होती हैं जो मानवीय गतिविधियों या त्रुटियों के कारण उत्पन्न होती हैं, जैसे कि औद्योगिक दुर्घटनाएं, परमाणु दुर्घटनाएं, रासायनिक रिसाव, आग, और भगदड़। भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी विस्फोट प्राकृतिक आपदाएं हैं।

5. **प्रश्न:** हरिद्वार जैसी धार्मिक स्थलों पर भीड़ प्रबंधन के लिए निम्नलिखित में से कौन सा उपाय सबसे प्रभावी होगा?
(a) केवल अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती।
(b) केवल भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग।
(c) एक एकीकृत योजना जिसमें भीड़ को बांटना, सुरक्षित निकास मार्ग, और आपातकालीन सेवाओं का समन्वय शामिल हो।
(d) भक्तों को केवल मंदिर के नियमों का पालन करने का निर्देश देना।
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** प्रभावी भीड़ प्रबंधन के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें भौतिक व्यवस्था (जैसे भीड़ को बांटना), सुरक्षा (पुलिस), और आपातकालीन प्रतिक्रिया (चिकित्सा, अग्नि) का समन्वय शामिल हो।

6. **प्रश्न:** भारत में सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित में से कौन सी संस्थाएं जिम्मेदार हैं?
1. स्थानीय प्रशासन (जिला प्रशासन)
2. पुलिस विभाग
3. संबंधित विभाग (जैसे बिजली विभाग)
4. आयोजक (यदि कोई हो)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2, 3 और 4
(d) केवल 3 और 4
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा एक साझा जिम्मेदारी है जिसमें स्थानीय प्रशासन, पुलिस, संबंधित तकनीकी विभाग (जैसे बिजली), और यदि कोई विशेष आयोजन है तो आयोजक भी शामिल होते हैं।

7. **प्रश्न:** ‘शमन’ (Mitigation) शब्द का संबंध आपदा प्रबंधन के किस चरण से है?
(a) आपदा आने से पहले जोखिम को कम करना
(b) आपदा आने के तुरंत बाद की प्रतिक्रिया
(c) आपदा के बाद सामान्य स्थिति बहाल करना
(d) आपदा की तैयारी करना
**उत्तर:** (a)
**व्याख्या:** शमन (Mitigation) का अर्थ है किसी आपदा के घटित होने की संभावना को कम करना या उसके संभावित हानिकारक प्रभावों को कम करना। इसमें जोखिम मूल्यांकन, निवारक उपाय और बुनियादी ढांचे का सुदृढ़ीकरण शामिल है।

8. **प्रश्न:** हरिद्वार मंदिर भगदड़ के संदर्भ में, ‘बुनियादी ढांचे की सुरक्षा’ के तहत निम्नलिखित में से किस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है?
1. बिजली के तारों की गुणवत्ता और रखरखाव
2. इमारतों की संरचनात्मक स्थिरता
3. आपातकालीन निकास द्वारों की स्पष्टता और उपलब्धता
4. अग्निशमन उपकरणों की उपलब्धता
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2, 3 और 4
(d) केवल 3 और 4
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** सार्वजनिक स्थानों पर बुनियादी ढांचे की सुरक्षा में विद्युत प्रणाली, संरचनात्मक अखंडता, निकास प्रणाली और अग्नि सुरक्षा जैसे सभी पहलू शामिल होते हैं।

9. **प्रश्न:** भारतीय समाज के संदर्भ में, धार्मिक स्थलों पर भीड़ के मनोविज्ञान के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?
(a) धार्मिक स्थलों पर भीड़ हमेशा शांत और व्यवस्थित रहती है।
(b) भीड़ में व्यक्ति का व्यवहार व्यक्तिगत जिम्मेदारी से पूरी तरह मुक्त हो जाता है।
(c) भय या घबराहट की स्थिति में, ‘लड़ने या भागने’ (fight or flight) की प्रवृत्ति प्रबल हो सकती है, जिससे अनियंत्रित प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं।
(d) धार्मिक स्थानों पर भीड़ का मनोविज्ञान शहरी भीड़ से बिल्कुल अलग होता है।
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** भीड़ मनोविज्ञान जटिल होता है। भय और घबराहट जैसी भावनाएं ‘लड़ने या भागने’ की प्रतिक्रिया को ट्रिगर कर सकती हैं, जिससे भगदड़ जैसी घटनाएं हो सकती हैं। भीड़ में व्यक्ति की व्यक्तिगत जिम्मेदारी कम हो सकती है, लेकिन यह पूरी तरह से समाप्त नहीं होती।

10. **प्रश्न:** आपदाओं के संदर्भ में, ‘प्रतिक्रिया’ (Response) चरण में क्या शामिल है?
(a) भविष्य में आपदाओं को रोकना
(b) आपदा से उत्पन्न होने वाले प्रभावों को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई
(c) आपदा के दीर्घकालिक प्रभावों से निपटना
(d) आपदा के जोखिमों का मूल्यांकन करना
**उत्तर:** (b)
**व्याख्या:** प्रतिक्रिया (Response) चरण में आपदा घटित होने के बाद जीवन बचाने, क्षति को कम करने और आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए तत्काल किए जाने वाले कार्य शामिल होते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. **प्रश्न:** हरिद्वार मंदिर भगदड़ जैसी मानव निर्मित आपदाओं के बढ़ते मामलों को देखते हुए, भारत में प्रभावी भीड़ प्रबंधन के लिए एक मजबूत ढांचा विकसित करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में, भारत के सार्वजनिक स्थानों, विशेष रूप से धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों पर भीड़ प्रबंधन की चुनौतियों का विश्लेषण करें और इसके समाधान हेतु उपायों का सुझाव दें। (250 शब्द)

*(संकेत: इसमें भीड़ के मनोविज्ञान, बुनियादी ढांचे की भूमिका, प्रशासनिक समन्वय, प्रौद्योगिकी का उपयोग, और निवारक उपायों जैसे पहलुओं को शामिल करें।)*

2. **प्रश्न:** “आपदा प्रबंधन का प्राथमिक लक्ष्य निवारण और शमन है, न कि केवल प्रतिक्रिया।” इस कथन के आलोक में, हरिद्वार मंदिर भगदड़ जैसी घटनाओं से सीखते हुए, भारत में सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढांचे (जैसे बिजली के तार, निकास मार्ग) के रखरखाव और उन्नयन की महत्ता पर चर्चा करें। (150 शब्द)

*(संकेत: बिजली के तारों की विफलता को एक प्रमुख कारण बताते हुए, निवारक उपायों जैसे नियमित निरीक्षण, गुणवत्ता नियंत्रण और तकनीकी उन्नयन पर जोर दें।)*

3. **प्रश्न:** हरिद्वार मंदिर भगदड़ में हुई मौतों और चोटों के लिए प्रशासनिक और नैतिक जवाबदेही के मुद्दों पर प्रकाश डालें। सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने में सरकारी एजेंसियों और संबंधित प्राधिकरणों की भूमिका और उनके उत्तरदायित्वों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (150 शब्द)

*(संकेत: विभिन्न हितधारकों (स्थानीय प्रशासन, मंदिर प्रबंधन, बिजली विभाग) की भूमिकाओं को परिभाषित करें और जवाबदेही तय करने के तंत्र पर चर्चा करें।)*

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