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बारिश का कहर: देश भर में रेड अलर्ट, भूस्खलन और बाढ़ का खतरा – UPSC के लिए संपूर्ण विश्लेषण

बारिश का कहर: देश भर में रेड अलर्ट, भूस्खलन और बाढ़ का खतरा – UPSC के लिए संपूर्ण विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल के दिनों में भारत के विभिन्न राज्यों में हुई अत्यधिक वर्षा ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में भारी बारिश के कारण रेड अलर्ट जारी किया गया है, वहीं उत्तराखंड के गौरीकुंड में भूस्खलन ने केदारनाथ यात्रा को बाधित कर दिया है। ओडिशा में भी बैतरणी नदी खतरे के निशान को पार कर गई है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। यह स्थिति न केवल तत्काल राहत और बचाव कार्यों की मांग करती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन और बुनियादी ढांचे की भेद्यता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी प्रकाश डालती है, जो UPSC परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं।

यह ब्लॉग पोस्ट इन घटनाओं के पीछे के कारणों, उनके व्यापक प्रभावों, और UPSC परीक्षा के विभिन्न पहलुओं, विशेष रूप से भूगोल, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, और शासन से संबंधित मुद्दों पर एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

1. वर्तमान स्थिति का विस्तृत अवलोकन

देश के विभिन्न हिस्सों में अभूतपूर्व वर्षा ने कई गंभीर समस्याएं खड़ी कर दी हैं:

  • मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान: इन राज्यों में भारी बारिश के कारण नदियों का जलस्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया है। निचले इलाकों में पानी घुस गया है, जिससे स्थानीय लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के अभियान चलाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बलों (NDRF और SDRF) को तैनात किया गया है। सड़कों के टूटने और बिजली आपूर्ति बाधित होने की खबरें भी आ रही हैं।
  • उत्तराखंड: गौरीकुंड में हुए भूस्खलन ने चारधाम यात्रा, विशेष रूप से केदारनाथ मार्ग को पूरी तरह से बंद कर दिया है। सैकड़ों श्रद्धालु फंसे हुए हैं, और बचाव दल फंसे हुए लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। भूस्खलन की घटनाएं पहाड़ी क्षेत्रों में नाजुक पारिस्थितिकी और मानव निर्मित संरचनाओं पर निर्माण के प्रभावों को उजागर करती हैं।
  • ओडिशा: बैतरणी नदी का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है, जिससे नदी के किनारे बसे गांवों में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। सरकार ने निचले इलाकों के लोगों को निकालने और राहत सामग्री पहुंचाने के लिए कमर कस ली है।

2. भारी बारिश और बाढ़ के पीछे के कारण (The “Why”)

ऐसी तीव्र और व्यापक वर्षा केवल एक मौसम की घटना नहीं है; इसके पीछे कई जटिल कारक जिम्मेदार हैं:

2.1. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:

वैज्ञानिकों का मानना है कि वैश्विक तापन (Global Warming) के कारण मौसम के पैटर्न में अप्रत्याशित बदलाव आ रहे हैं। इससे ‘चरम मौसमी घटनाएं’ (Extreme Weather Events) जैसे भारी वर्षा, सूखा, और लू का प्रकोप बढ़ रहा है।

  • वातावरण में अधिक नमी: गर्म वातावरण अधिक जलवाष्प (Water Vapor) धारण कर सकता है। जब यह आर्द्र हवा वर्षा के लिए अनुकूल परिस्थितियों में आती है, तो यह बहुत अधिक मात्रा में वर्षा करा सकती है।
  • जेट स्ट्रीम में बदलाव: जेट स्ट्रीम (Jet Streams) हवा की तेज धाराएं हैं जो मौसम को प्रभावित करती हैं। जलवायु परिवर्तन इन धाराओं को प्रभावित कर सकता है, जिससे वे अधिक अस्थिर हो जाती हैं और बारिश के सिस्टम को लंबे समय तक एक ही क्षेत्र में बनाए रख सकती हैं, जिससे अत्यधिक वर्षा होती है।

2.2. मानसून का व्यवहार:

मानसून भारतीय उपमहाद्वीप के लिए जीवन रेखा है, लेकिन इसका व्यवहार हमेशा समान नहीं रहता।

  • मानसून की सक्रियता: कभी-कभी, बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में बनने वाले निम्न दबाव के क्षेत्र (Low-Pressure Systems) मानसून की रेखाओं को सक्रिय कर देते हैं, जिससे एक साथ कई क्षेत्रों में भारी बारिश होती है।
  • अल नीनो/ला नीना का प्रभाव: प्रशांत महासागर में अल नीनो (El Niño) और ला नीना (La Niña) जैसी घटनाएं भी भारतीय मानसून को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकती हैं, हालांकि इसका सीधा संबंध हमेशा स्पष्ट नहीं होता।

2.3. स्थानीय कारक:

  • शहरीकरण और अनियोजित विकास: शहरी क्षेत्रों में कंक्रीट की सतहें वर्षा जल को सोखने के बजाय उसे सतह पर ही बहा देती हैं, जिससे जलभराव और बाढ़ की समस्या बढ़ जाती है। अनियोजित निर्माण, विशेषकर पहाड़ी और नदी तटीय क्षेत्रों में, जल निकासी प्रणालियों को बाधित करता है।
  • वनों की कटाई: वनों की कटाई मिट्टी के कटाव को बढ़ाती है और भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाती है। पेड़ जल अवशोषण में भी मदद करते हैं।
  • भौगोलिक स्थिति: पहाड़ी और तटीय क्षेत्र स्वाभाविक रूप से भूस्खलन और बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

3. भूस्खलन और बाढ़ का प्रभाव (The “What” and “Impact”)

ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के बहुआयामी प्रभाव होते हैं:

3.1. मानव जीवन पर प्रभाव:

  • जानमाल का नुकसान: बारिश और भूस्खलन के कारण होने वाली मौतों और चोटों की संख्या चिंताजनक है।
  • विस्थापन: हजारों लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाने को मजबूर हैं, जिससे अस्थायी आश्रय स्थलों पर दबाव बढ़ रहा है।
  • स्वास्थ्य जोखिम: बाढ़ के पानी से कई बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ जाता है, जैसे डायरिया, टाइफाइड और त्वचा संबंधी संक्रमण। मलबे और क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे से भी चोटें लग सकती हैं।

3.2. आर्थिक प्रभाव:

  • कृषि का विनाश: फसलें बर्बाद होने से किसानों को भारी नुकसान होता है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ सकता है।
  • बुनियादी ढांचे का नुकसान: सड़कें, पुल, बिजली लाइनें और संचार नेटवर्क क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे सामान्य जीवन और आर्थिक गतिविधियां रुक जाती हैं। यात्रा और परिवहन बाधित होने से आपूर्ति श्रृंखला पर भी असर पड़ता है।
  • पर्यटन पर प्रभाव: गौरीकुंड जैसी घटनाओं से चारधाम यात्रा का बंद होना, पर्यटन पर निर्भर स्थानीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाता है।
  • सरकारी खर्च में वृद्धि: राहत और पुनर्वास कार्यों के लिए सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ता है।

3.3. पर्यावरणीय प्रभाव:

  • मिट्टी का कटाव: तीव्र वर्षा और भूस्खलन मिट्टी की ऊपरी परत को बहा ले जाते हैं, जिससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती है।
  • जल प्रदूषण: बाढ़ का पानी सीवेज, रसायन और अन्य प्रदूषकों को अपने साथ बहाकर लाता है, जिससे नदियों और जल स्रोतों का प्रदूषण बढ़ता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण: भूस्खलन से वनों और वन्यजीवों का आवास नष्ट हो जाता है।

4. आपदा प्रबंधन: चुनौतियाँ और समाधान (The “How” and “Solutions”)

ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए एक मजबूत और प्रभावी आपदा प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता होती है।

4.1. वर्तमान आपदा प्रबंधन की संरचना:

भारत में आपदा प्रबंधन के लिए एक त्रि-स्तरीय (केंद्र, राज्य और जिला) ढांचा मौजूद है।

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): यह नीति निर्माण, योजना और समन्वय के लिए जिम्मेदार है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF): ये दल बचाव और राहत कार्यों में सीधे तौर पर शामिल होते हैं।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005: यह अधिनियम देश में आपदा प्रबंधन के लिए कानूनी और संस्थागत ढांचा प्रदान करता है।

4.2. चुनौतियाँ:

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems): हालांकि इन प्रणालियों में सुधार हुआ है, फिर भी कई दूरदराज के इलाकों तक सटीक और समय पर चेतावनी पहुंचाना एक चुनौती है।
  • स्थानीय क्षमता निर्माण: आपदाओं से निपटने के लिए स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षित और सुसज्जित करने की आवश्यकता है।
  • बुनियादी ढांचे की भेद्यता: कई क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा पुरानी डिजाइन का है और आधुनिक आपदा प्रतिरोधी मानकों को पूरा नहीं करता।
  • समन्वय की कमी: विभिन्न एजेंसियों के बीच प्रभावी समन्वय कई बार एक समस्या बन जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन (Climate Change Adaptation): अल्पकालिक राहत के साथ-साथ दीर्घकालिक अनुकूलन रणनीतियों को लागू करना एक बड़ी चुनौती है।

4.3. समाधान और आगे की राह:

“आपदा प्रबंधन केवल प्रतिक्रिया के बारे में नहीं है, बल्कि यह जोखिम को कम करने, तैयारी करने, प्रतिक्रिया देने और पुनर्प्राप्त करने के बारे में है।” – NDMA का मूल सिद्धांत।

  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: उपग्रह इमेजरी, ड्रोन, और मोबाइल ऐप का उपयोग जोखिम वाले क्षेत्रों की निगरानी, ​​जनता को चेतावनी देने और बचाव कार्यों में सहायता के लिए किया जाना चाहिए।
  • बुनियादी ढांचे का सुदृढ़ीकरण: नई निर्माण परियोजनाओं को ‘डिजास्टर-रेसिलिएंट’ (Disaster-Resilient) मानकों के अनुसार डिजाइन किया जाना चाहिए, खासकर पहाड़ी और तटीय क्षेत्रों में। मौजूदा ढांचों को भी सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
  • वन और जल संरक्षण: वनों की कटाई को रोकना, वृक्षारोपण को बढ़ावा देना और जल निकासी प्रणालियों का आधुनिकीकरण करना महत्वपूर्ण है। नदी घाटी परियोजनाओं का पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • समुदाय-आधारित तैयारी: स्थानीय समुदायों को आपदाओं के लिए प्रशिक्षित करने और स्थानीय स्तर पर संसाधन जुटाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ‘कम्युनिटी रिस्क रिडक्शन’ (Community Risk Reduction) योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए।
  • नीतिगत सुधार: आपदा प्रबंधन अधिनियम को जलवायु परिवर्तन और नए जोखिमों को ध्यान में रखते हुए अद्यतन किया जाना चाहिए।
  • अंतर-एजेंसी समन्वय: विभिन्न सरकारी विभागों, सेना, एनजीओ और स्थानीय निकायों के बीच समन्वय को बेहतर बनाने के लिए नियमित अभ्यास और बैठकें आयोजित की जानी चाहिए।
  • जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक प्रयासों में योगदान देने के साथ-साथ, उन जलवायु परिवर्तनों के अनुकूल होने की रणनीतियों को विकसित करना जो पहले से ही अपरिहार्य हैं।

5. UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

यह विषय UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है:

  • सामान्य अध्ययन पेपर I (भूगोल): भारत का भौतिक भूगोल, प्रमुख प्राकृतिक संसाधन, भारत के विभिन्न भागों में अवस्थित प्रमुख उद्योग। इसमें भूस्खलन, बाढ़, चक्रवात जैसे भौगोलिक घटनाएँ शामिल हैं।
  • सामान्य अध्ययन पेपर II (शासन): सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास, सामाजिक न्याय, स्वास्थ्य, शिक्षा और मानव संसाधनों से संबंधित मुद्दे। इसमें आपदा प्रबंधन नीतियां, राहत और पुनर्वास तंत्र, और सरकारी संस्थाओं की भूमिका शामिल है।
  • सामान्य अध्ययन पेपर III (अर्थव्यवस्था और पर्यावरण): पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण निवारण और शमन, पर्यावरण प्रभाव आकलन। इसमें जलवायु परिवर्तन, उसका प्रभाव और इससे निपटने के उपाय भी शामिल हैं। आपदा प्रबंधन एक महत्वपूर्ण उप-विषय है।
  • निबंध (Essay): इस विषय पर ‘जलवायु परिवर्तन के प्रभाव’, ‘भारत में आपदा प्रबंधन की चुनौतियाँ’, या ‘पहाड़ी क्षेत्रों में सतत विकास’ जैसे विषयों पर निबंध लिखा जा सकता है।
  • साक्षात्कार (Interview): समसामयिक घटनाओं पर अपनी समझ और विश्लेषण क्षमता को प्रदर्शित करने का अवसर मिलता है।

6. भविष्य की ओर: एक सतत दृष्टिकोण

भारी बारिश और भूस्खलन जैसी घटनाएं हमें याद दिलाती हैं कि हम प्रकृति की शक्तियों से अछूते नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन के इस युग में, हमें केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि सक्रिय और भविष्योन्मुखी होना होगा। इसका अर्थ है:

  • लचीलेपन का निर्माण: समुदायों, बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्थाओं में लचीलापन (Resilience) बढ़ाना ताकि वे झटकों को सहन कर सकें और जल्दी ठीक हो सकें।
  • सतत विकास: विकास की ऐसी नीतियां अपनाना जो पर्यावरण की रक्षा करें और भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता न करें।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, और इसके समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है।

यह स्थिति भारत के लिए अपनी आपदा प्रबंधन क्षमताओं को मजबूत करने, जलवायु परिवर्तन के प्रति अपनी तैयारियों को बेहतर बनाने और विकास की ऐसी राह अपनाने का एक महत्वपूर्ण क्षण है जो हमें भविष्य की प्राकृतिक आपदाओं से बेहतर ढंग से निपटने में सक्षम बनाए।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा राज्य हाल की भारी बारिश की रिपोर्ट में ‘रेड अलर्ट’ वाले राज्यों में शामिल नहीं है?

    (a) मध्य प्रदेश
    (b) गुजरात
    (c) महाराष्ट्र
    (d) राजस्थान

    उत्तर: (c) महाराष्ट्र

    व्याख्या: समाचारों के अनुसार, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में रेड अलर्ट जारी किया गया था। महाराष्ट्र में उस समय ऐसी कोई विशेष रिपोर्ट नहीं थी।
  2. प्रश्न: गौरीकुंड में भूस्खलन के कारण किस महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा मार्ग को बंद कर दिया गया है?

    (a) बद्रीनाथ मार्ग
    (b) गंगोत्री मार्ग
    (c) केदारनाथ मार्ग
    (d) यमुनोत्री मार्ग

    उत्तर: (c) केदारनाथ मार्ग

    व्याख्या: गौरीकुंड में भूस्खलन के कारण केदारनाथ मार्ग को बंद करना पड़ा है।
  3. प्रश्न: बैतरणी नदी वर्तमान में किस राज्य में खतरे के निशान पर है?

    (a) पश्चिम बंगाल
    (b) ओडिशा
    (c) आंध्र प्रदेश
    (d) झारखंड

    उत्तर: (b) ओडिशा

    व्याख्या: ओडिशा में बैतरणी नदी खतरे के निशान पर बह रही है।
  4. प्रश्न: चरम मौसमी घटनाओं (Extreme Weather Events) में वृद्धि का एक प्रमुख कारण निम्नलिखित में से किसे माना जाता है?

    (a) सौर ज्वालाओं में वृद्धि
    (b) पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन
    (c) जलवायु परिवर्तन (Climate Change)
    (d) उल्कापिंडों का प्रभाव

    उत्तर: (c) जलवायु परिवर्तन (Climate Change)

    व्याख्या: जलवायु परिवर्तन को चरम मौसमी घटनाओं, जैसे अत्यधिक वर्षा और बाढ़, में वृद्धि का एक प्रमुख कारण माना जाता है।
  5. प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का गठन किस अधिनियम के तहत किया गया था?

    (a) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
    (b) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
    (c) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल अधिनियम, 2007
    (d) जल संसाधन विकास अधिनियम, 2010

    उत्तर: (b) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005

    व्याख्या: NDMA की स्थापना आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत की गई थी।
  6. प्रश्न: भूस्खलन के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक योगदान नहीं देता है?

    (a) तीव्र वर्षा
    (b) वनों की कटाई
    (c) भूकंप
    (d) भारी हिमपात

    उत्तर: (d) भारी हिमपात

    व्याख्या: तीव्र वर्षा, वनों की कटाई और भूकंप भूस्खलन के प्रमुख कारण हैं। भारी हिमपात, हालांकि अप्रत्यक्ष रूप से पिघलने पर जल प्रवाह को प्रभावित कर सकता है, सीधे तौर पर भूस्खलन का कारण नहीं बनता।
  7. प्रश्न: शहरी क्षेत्रों में जलभराव की समस्या के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारण प्रमुख है?

    (a) अत्यधिक पेड़ लगाना
    (b) पारगम्य सतहों (Permeable Surfaces) की कमी
    (c) बेहतर जल निकासी प्रणालियाँ
    (d) भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन

    उत्तर: (b) पारगम्य सतहों (Permeable Surfaces) की कमी

    व्याख्या: शहरी क्षेत्रों में कंक्रीट और डामर जैसी अपारगम्य सतहों की अधिकता वर्षा जल को सोखने से रोकती है, जिससे जलभराव होता है।
  8. प्रश्न: ‘आपदा प्रतिरोधी’ (Disaster-Resilient) बुनियादी ढांचे का उद्देश्य क्या है?

    (a) आपदाओं को पूरी तरह से रोकना
    (b) आपदाओं के प्रभाव को कम करना और क्षति से उबरने की क्षमता बढ़ाना
    (c) केवल तत्काल राहत प्रदान करना
    (d) आपदा प्रबंधन कर्मियों को प्रशिक्षित करना

    उत्तर: (b) आपदाओं के प्रभाव को कम करना और क्षति से उबरने की क्षमता बढ़ाना

    व्याख्या: आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचा इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि वह आपदाओं का सामना कर सके और क्षति होने पर जल्दी ठीक हो सके।
  9. प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का मुख्य कार्य क्या है?

    (a) आपदाओं के लिए धन आवंटित करना
    (b) विशिष्ट आपदाओं के दौरान बचाव और राहत कार्य करना
    (c) आपदा प्रबंधन नीतियां बनाना
    (d) अंतर्राष्ट्रीय आपदा सहायता प्रदान करना

    उत्तर: (b) विशिष्ट आपदाओं के दौरान बचाव और राहत कार्य करना

    व्याख्या: NDRF एक विशेष बल है जो गंभीर आपदाओं के समय बचाव और राहत अभियानों में विशेषज्ञता रखता है।
  10. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सी घटना ‘चरम मौसमी घटना’ (Extreme Weather Event) का उदाहरण है?

    (a) सामान्य मानसून वर्षा
    (b) मध्यम तापमान
    (c) अत्यधिक भारी वर्षा (Heavy Rainfall)
    (d) सौम्य हवाएँ

    उत्तर: (c) अत्यधिक भारी वर्षा (Heavy Rainfall)

    व्याख्या: अत्यधिक भारी वर्षा, जो सामान्य पैटर्न से बहुत अलग और तीव्र होती है, एक चरम मौसमी घटना है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न: हालिया बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं के आलोक में, भारत में प्रभावी आपदा प्रबंधन के समक्ष प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण करें और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भविष्य की तैयारियों को बढ़ाने के लिए नीतिगत सुझाव दें। (लगभग 250 शब्द)
  2. प्रश्न: “चरम मौसमी घटनाएं (Extreme Weather Events) जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष परिणाम हैं।” इस कथन की पुष्टि करते हुए, भारत के भौगोलिक परिदृश्य पर ऐसे घटनाओं के बहुआयामी प्रभावों (आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय) की विस्तार से चर्चा करें। (लगभग 150 शब्द)
  3. प्रश्न: पहाड़ी क्षेत्रों में अनियोजित विकास और अवसंरचना परियोजनाओं ने भूस्खलन के जोखिम को कैसे बढ़ाया है? इस जोखिम को कम करने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों का सुझाव दें। (लगभग 150 शब्द)
  4. प्रश्न: भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर ‘आपदा प्रतिरोधी’ (Disaster-Resilient) समाजों के निर्माण की आवश्यकता और उसके लिए आवश्यक उपायों पर चर्चा करें। (लगभग 250 शब्द)

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