India’s Silent Strike: Op Sindoor Targets Pakistan’s Nuclear Hub – Is This a Game Changer?

India’s Silent Strike: Op Sindoor Targets Pakistan’s Nuclear Hub – Is This a Game Changer?

चर्चा में क्यों? (Why in News?)

हाल ही में, भू-राजनीतिक गलियारों और रक्षा विश्लेषकों के बीच एक सनसनीखेज रिपोर्ट ने हलचल मचा दी है। यह रिपोर्ट भारत द्वारा पाकिस्तान के परमाणु-संबंधित ठिकाने, किरना हिल्स (Kirana Hills) पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (Op Sindoor) नामक एक कथित मिसाइल हमले का सुझाव देती है। इस दावे का आधार उपग्रह चित्र (satellite images) बताए जा रहे हैं, जो इस क्षेत्र में असामान्य गतिविधि और संभावित क्षति का संकेत देते हैं। यदि यह दावा सत्य है, तो यह घटना भारत-पाकिस्तान संबंधों और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में परमाणु निवारण (nuclear deterrence) के समीकरणों में एक अभूतपूर्व मोड़ साबित हो सकती है। यह केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि भू-रणनीतिक परिदृश्य को फिर से परिभाषित करने वाली एक संभावित घटना है, जिसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं।

ऑपरेशन सिंदूर: क्या हुआ और यह क्यों मायने रखता है? (Operation Sindoor: What Happened and Why It Matters?)

ऑपरेशन सिंदूर, जैसा कि रिपोर्टों में दावा किया गया है, एक ऐसी सैन्य कार्रवाई है जिसके बारे में भारतीय या पाकिस्तानी अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से पुष्टि या खंडन नहीं किया है। फिर भी, इसकी कथित प्रकृति और लक्षित स्थल के कारण यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।

  • कथित घटना: रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत ने एक मिसाइल का उपयोग करके पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित किरना हिल्स को निशाना बनाया। यह हमला एक विशेष लक्ष्य-निर्धारण क्षमता का संकेत देता है, जहाँ एक सटीक हथियार का उपयोग किया गया होगा।
  • प्रमाण का स्रोत: इस दावे का मुख्य आधार सार्वजनिक रूप से उपलब्ध उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले उपग्रह चित्र हैं। इन चित्रों में कथित तौर पर किरना हिल्स क्षेत्र में नए गड्ढे (craters), मलबे या संरचनात्मक क्षति के निशान दिखाई दे रहे हैं, जो एक मिसाइल हमले के अनुरूप हैं। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि उपग्रह चित्र स्वतंत्र, विश्वसनीय जानकारी का एक स्रोत हो सकते हैं, जो अक्सर सरकारों द्वारा जारी आधिकारिक बयानों से भिन्न होते हैं।
  • किराना हिल्स का महत्व: किरना हिल्स को लंबे समय से पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ा एक संवेदनशील स्थल माना जाता रहा है। यह भूमिगत सुविधाओं और परीक्षण स्थलों के लिए जाना जाता है, जो इसे पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठानों के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में स्थापित करता है। 1998 में पाकिस्तान के परमाणु परीक्षणों से पहले भी इस क्षेत्र में परमाणु गतिविधियों की अटकलें लगाई जाती रही हैं।
  • अभूतपूर्व प्रकृति: यदि यह हमला वास्तव में हुआ है और इसने किसी परमाणु-संबंधित सुविधा को निशाना बनाया है, तो यह भारत और पाकिस्तान के बीच पहले की सैन्य झड़पों, जैसे बालाकोट हवाई हमला (2019) से गुणात्मक रूप से भिन्न होगा। बालाकोट एक आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर पर हमला था, जबकि किरना हिल्स पर हमला एक संप्रभु राज्य की परमाणु संपत्ति पर सीधा, अप्रत्यक्ष हमला माना जाएगा। यह परमाणु-सशस्त्र राज्यों के बीच संघर्ष के नियमों को पूरी तरह से बदल सकता है।

भारत और पाकिस्तान के बीच ऐसी किसी भी घटना पर आधिकारिक चुप्पी, जिसे ‘अस्वीकार्य’ (plausible deniability) रणनीति के रूप में देखा जा सकता है, स्थिति की गंभीरता को और बढ़ाती है। यह अनिश्चितता वैश्विक समुदाय के लिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच की शांति एक पतली डोर पर टिकी है।

किराना हिल्स: पाकिस्तान का ‘गुप्त’ परमाणु केंद्र? (Kirana Hills: Pakistan’s ‘Secret’ Nuclear Hub?)

किराना हिल्स, जिसे किरना बार (Kirana Bar) या किरना हिल्स रिसर्च सेंटर (Kirana Hills Research Centre) के नाम से भी जाना जाता है, पाकिस्तान के परमाणु इतिहास में एक रहस्यमय लेकिन महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

1998 में पाकिस्तान के सफल परमाणु परीक्षणों (ऑपरेशन चागई-I) से बहुत पहले, किरना हिल्स को पाकिस्तान के भूमिगत परमाणु परीक्षण और अनुसंधान गतिविधियों के लिए एक संभावित स्थल के रूप में अंतरराष्ट्रीय ध्यान मिला था। यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में सरगोधा शहर के पास स्थित है। इस क्षेत्र में कई छोटी, पथरीली पहाड़ियाँ और ऊबड़-खाबड़ इलाका है, जो इसे गुप्त सुविधाओं के लिए उपयुक्त बनाता है।

महत्व और अटकलें:

  • भूमिगत सुविधाएँ: विश्लेषकों का मानना है कि किरना हिल्स में भूमिगत सुरंगों और प्रयोगशालाओं का एक विस्तृत नेटवर्क मौजूद है, जिसका उपयोग परमाणु हथियार डिजाइन, घटकों के भंडारण या यहाँ तक कि छोटे पैमाने पर परीक्षण के लिए किया जा सकता है।
  • परमाणु कार्यक्रम का केंद्र: हालाँकि पाकिस्तान ने कभी भी किरना हिल्स को आधिकारिक तौर पर अपने परमाणु कार्यक्रम का हिस्सा घोषित नहीं किया है, लेकिन खुफिया एजेंसियों और रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार के विकास और रखरखाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे अक्सर पाकिस्तान के परमाणु कमान और नियंत्रण संरचना का एक हिस्सा माना जाता है।
  • गोपनीयता और सुरक्षा: इसकी रणनीतिक संवेदनशीलता के कारण, किरना हिल्स अत्यधिक सुरक्षित और वर्गीकृत क्षेत्र रहा है। इसके चारों ओर सैन्य नियंत्रण और प्रवेश प्रतिबंधित है, जो इसकी रहस्यमयी स्थिति को और पुख्ता करता है।

यदि ऑपरेशन सिंदूर वास्तव में किरना हिल्स को लक्षित करता है, तो इसका मतलब होगा कि भारत ने न केवल पाकिस्तान की संवेदनशील परमाणु संपत्ति की पहचान की, बल्कि उसे सफलतापूर्वक निशाना बनाने का साहस भी किया। यह एक ‘लाल रेखा’ (red line) को पार करने जैसा होगा, जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

भारत-पाकिस्तान परमाणु समीकरण: एक नाजुक संतुलन (India-Pakistan Nuclear Equation: A Delicate Balance)

भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु शक्तियाँ हैं, और उनके बीच का संबंध अक्सर “परमाणु निवारण” (Nuclear Deterrence) के सिद्धांत पर आधारित रहा है। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ दोनों देश इस डर से बड़े पैमाने पर संघर्ष से बचते हैं कि दूसरा देश परमाणु हथियारों का उपयोग कर सकता है, जिससे “आपसी सुनिश्चित विनाश” (Mutually Assured Destruction – MAD) होगा।

भारत की परमाणु नीति:

  • नो-फर्स्ट-यूज़ (No-First-Use – NFU): भारत की घोषित परमाणु नीति “पहले उपयोग न करने” की है। इसका मतलब है कि भारत परमाणु हथियारों का उपयोग केवल तभी करेगा जब उस पर या उसके सैनिकों पर पहले परमाणु हमला किया गया हो।
  • विश्वसनीय न्यूनतम निवारण (Credible Minimum Deterrence – CMD): भारत का लक्ष्य एक न्यूनतम, लेकिन विश्वसनीय परमाणु क्षमता बनाए रखना है जो किसी भी विरोधी को परमाणु हमले से रोकने के लिए पर्याप्त हो। यह क्षमता दुश्मन पर भारी प्रतिशोध (massive retaliation) सुनिश्चित करने के लिए है।

पाकिस्तान की परमाणु नीति:

  • फर्स्ट-यूज़ विकल्प (First-Use Option – FUO): पाकिस्तान की घोषित नीति में “पहले उपयोग” का विकल्प शामिल है। इसका अर्थ है कि पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों का उपयोग पारंपरिक युद्ध में भारत के भारी सैन्य दबाव को रोकने के लिए कर सकता है, खासकर यदि उसे अपनी हार का सामना करना पड़ रहा हो। इसे “फुल स्पेक्ट्रम निवारण” (Full Spectrum Deterrence) भी कहा जाता है, जहाँ परमाणु हथियार पारंपरिक श्रेष्ठता को संतुलित करने के लिए एक उपकरण के रूप में काम करते हैं।
  • रणनीतिक महत्व: पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों को अपनी सुरक्षा के लिए एक आवश्यक उपकरण मानता है, विशेष रूप से भारत की बड़ी पारंपरिक सेना के खिलाफ।

क्या ऑपरेशन सिंदूर ने संतुलन बिगाड़ा?

यदि किरना हिल्स पर हमला वास्तव में एक परमाणु-संबंधित सुविधा पर हमला था, तो यह परमाणु निवारण के स्थापित नियमों को चुनौती देगा:

  • NFU का परीक्षण: क्या भारत ने NFU नीति के तहत इसे “पहला परमाणु हमला” नहीं माना, बल्कि एक “पारंपरिक” हमला माना, भले ही लक्ष्य परमाणु-संबंधित हो? यह एक ग्रे एरिया (grey area) बनाता है।
  • MAD का जोखिम: ऐसे संवेदनशील लक्ष्य पर हमला MAD सिद्धांत को कमजोर कर सकता है, जिससे दोनों पक्षों के बीच तनाव अप्रत्याशित स्तर तक बढ़ सकता है।
  • निवारण की सीमाएँ: यह घटना दिखाती है कि परमाणु निवारण भी पूरी तरह से संघर्ष को नहीं रोक सकता है, खासकर जब गैर-राज्य अभिनेताओं (terrorists) या सीमा पार से होने वाली घुसपैठ जैसे मुद्दे शामिल हों।

यह घटना (यदि सत्य है) दिखाती है कि दक्षिण एशिया में परमाणु समीकरण कितना जटिल और नाजुक है, और एक भी गलत कदम पूरे क्षेत्र को जोखिम में डाल सकता है।

तकनीकी आयाम: मिसाइल और उपग्रह चित्र (Technical Dimensions: Missiles and Satellite Imagery)

ऑपरेशन सिंदूर की विश्वसनीयता काफी हद तक उपयोग की गई मिसाइल प्रौद्योगिकी और उपग्रह चित्रों की व्याख्या पर निर्भर करती है।

मिसाइल प्रौद्योगिकी:

यदि यह एक मिसाइल हमला था, तो इसमें भारत की उन्नत मिसाइल क्षमताओं का प्रदर्शन निहित होगा।

  • प्रकार: यह एक क्रूज मिसाइल (जैसे ब्रह्मोस, हालांकि इसकी सीमा और लक्ष्य के हिसाब से अनुकूलित) या एक बैलिस्टिक मिसाइल (जैसे पृथ्वी, प्रहार) का सटीक, गैर-परमाणु संस्करण हो सकता है। क्रूज मिसाइलें अपनी कम ऊंचाई और भूभाग-पालन क्षमताओं के कारण रडार से बचते हुए सटीक निशाना साधने में बेहतर होती हैं।
  • सटीकता: किसी भूमिगत या कड़े लक्ष्य (hardened target) को भेदने के लिए उच्च स्तर की सटीकता (CEP – Circular Error Probable) की आवश्यकता होगी। यह Gagan या NavIC जैसे भारत के अपने नेविगेशन उपग्रह प्रणालियों या GPS जैसी बाहरी प्रणालियों के साथ उन्नत मार्गदर्शन प्रणाली के उपयोग का संकेत देता है।
  • पेलोड: हमला एक पारंपरिक, उच्च-विस्फोटक (High-Explosive – HE) वारहेड के साथ किया गया होगा, जिसका उद्देश्य सुविधा को नष्ट करना या निष्क्रिय करना था, न कि परमाणु विस्फोट करना।
  • चुनौतियाँ: भूमिगत सुविधाओं को प्रभावी ढंग से नष्ट करना अत्यंत कठिन है। इसके लिए ‘बंकर बस्टर’ (bunker buster) जैसी विशेष प्रवेश क्षमताओं वाले वारहेड्स की आवश्यकता होती है। यदि क्षति सतह पर दिखाई देती है, तो इसका मतलब है कि या तो हमला सतह पर हुआ या भूमिगत संरचनाएँ सतह से इतनी जुड़ी थीं कि सतह पर भी क्षति दिखाई दी।

उपग्रह चित्र विश्लेषण:

आजकल, वाणिज्यिक उपग्रह कंपनियाँ (जैसे मैक्सार, प्लानेट लैब्स) उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले चित्र प्रदान करती हैं जो पहले केवल सरकारों के पास उपलब्ध थे।

  • चित्रों की भूमिका: ये चित्र किसी घटना के पहले और बाद के दृश्यों की तुलना करके क्षति, नई संरचनाओं या असामान्य गतिविधियों को प्रकट कर सकते हैं। किरना हिल्स के मामले में, उपग्रह चित्रों में नए गड्ढे, ध्वस्त इमारतें या मलबे के निशान कथित हमले के प्रमाण के रूप में देखे जा रहे हैं।
  • विश्लेषण की प्रक्रिया:
    1. तुलनात्मक विश्लेषण: हमले से पहले की तारीख के चित्रों की तुलना हमले के बाद की तारीख के चित्रों से की जाती है।
    2. विसंगतियों की पहचान: किसी भी नए गड्ढे, संरचनात्मक परिवर्तन, या असामान्य मलबा क्षेत्र की पहचान की जाती है।
    3. भौगोलिक संदर्भ: पहचाने गए परिवर्तनों को आसपास के भूभाग और ज्ञात सुविधाओं के संदर्भ में देखा जाता है।
  • सीमाएँ और विश्वसनीयता:

    जबकि उपग्रह चित्र शक्तिशाली प्रमाण हो सकते हैं, उनकी कुछ सीमाएँ भी हैं:

    • व्याख्या: चित्र हमेशा स्पष्ट नहीं होते और उनकी व्याख्या व्यक्तिपरक हो सकती है। एक गड्ढा हमला हो सकता है या सिर्फ निर्माण कार्य का परिणाम।
    • मौसम और प्रकाश: खराब मौसम, बादलों का आवरण या खराब रोशनी विश्लेषण को बाधित कर सकती है।
    • प्रौद्योगिकी सीमाएँ: भूमिगत सुविधाओं को सीधे उपग्रह चित्रों से पहचानना या उनकी क्षति का आकलन करना कठिन है जब तक कि सतह पर स्पष्ट निशान न हों।
    • पुष्टि का अभाव: जब तक संबंधित देश पुष्टि न करें, उपग्रह चित्र केवल संकेत प्रदान करते हैं, निश्चित प्रमाण नहीं। यह ‘अस्वीकार्य’ (plausible deniability) की नीति को बनाए रखने में मदद करता है।

ऑपरेशन सिंदूर के दावों में उपग्रह चित्रों की भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे एक ऐसी घटना के बाहरी प्रमाण प्रदान करते हैं जिस पर आधिकारिक चुप्पी है।

भू-रणनीतिक निहितार्थ: क्षेत्रीय और वैश्विक परिदृश्य (Geopolitical Implications: Regional and Global Landscape)

यदि ऑपरेशन सिंदूर की पुष्टि हो जाती है, तो इसके भू-रणनीतिक निहितार्थ गहरे और दूरगामी होंगे, जो दक्षिण एशिया और वैश्विक स्थिरता दोनों को प्रभावित करेंगे।

क्षेत्रीय प्रभाव:

  • भारत की निवारण रणनीति में बदलाव:

    यह घटना भारत की पारंपरिक ‘रक्षात्मक निवारण’ (defensive deterrence) और ‘नो-फर्स्ट-यूज़’ (NFU) नीति में एक संभावित बदलाव का संकेत दे सकती है। यह भारत की ओर से एक ‘काउंटर-फोर्स’ (counter-force) क्षमता विकसित करने या उसे प्रदर्शित करने का संकेत हो सकता है, जहाँ परमाणु-संबंधित ठिकानों को भी पारंपरिक हथियारों से निशाना बनाया जा सकता है। यह ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ या बालाकोट जैसी कार्रवाइयों से एक कदम आगे होगा।

  • पाकिस्तान की प्रतिक्रिया:

    पाकिस्तान पर अपनी परमाणु संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने और अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता का बचाव करने के लिए जवाबी कार्रवाई करने का दबाव बढ़ेगा। यह उसकी ‘फुल स्पेक्ट्रम निवारण’ नीति को कैसे प्रभावित करेगा, यह देखना बाकी है। क्या वह पारंपरिक स्तर पर प्रतिशोध करेगा, या परमाणु सीमा को लेकर तनाव बढ़ेगा?

  • एस्केलेशन का जोखिम:

    परमाणु शक्तियों के बीच एक परमाणु-संबंधित सुविधा पर हमला ‘एस्केलेशन लैडर’ (escalation ladder) को तेजी से बढ़ा सकता है। यह एक ‘अंधेरे कुएँ’ में पत्थर फेंकने जैसा है – आप नहीं जानते कि प्रतिक्रिया कहाँ रुकेगी। गलत आकलन या संचार की कमी से स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है।

  • चीन की भूमिका:

    चीन, पाकिस्तान का एक रणनीतिक साझेदार और सीपेक (CPEC) का एक प्रमुख निवेशक है, इस क्षेत्र में बढ़ती अस्थिरता से प्रभावित होगा। चीन भारत-पाक संघर्ष में कैसे प्रतिक्रिया देगा – क्या वह मध्यस्थता करेगा, या पाकिस्तान का और अधिक समर्थन करेगा – यह भू-राजनीतिक समीकरणों को और जटिल करेगा।

वैश्विक प्रभाव:

  • परमाणु अप्रसार (Nuclear Non-Proliferation):

    यह घटना परमाणु अप्रसार व्यवस्था (NPT) के लिए एक गंभीर चुनौती होगी, खासकर उन देशों के लिए जो परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। यदि परमाणु-सशस्त्र राष्ट्र एक-दूसरे की परमाणु सुविधाओं पर हमला करने लगते हैं, तो यह वैश्विक परमाणु सुरक्षा के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम करेगा।

  • अंतर्राष्ट्रीय कानून और संप्रभुता:

    किसी अन्य देश की संप्रभु क्षेत्र के भीतर सैन्य कार्रवाई, विशेष रूप से एक परमाणु-संबंधित सुविधा पर, अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों का उल्लंघन हो सकता है। यह आत्मरक्षा के दावों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया के बारे में सवाल उठाएगा।

  • महाशक्तियों की प्रतिक्रिया:

    संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और अन्य प्रमुख शक्तियों पर दक्षिण एशिया में तनाव कम करने के लिए राजनयिक दबाव बढ़ जाएगा। वे मध्यस्थता करने या दोनों पक्षों से संयम बरतने का आग्रह करने के लिए कदम उठा सकते हैं, ताकि एक पूर्ण पैमाने पर संघर्ष को रोका जा सके।

  • निवारण सिद्धांत का पुनर्मूल्यांकन:

    यह घटना वैश्विक स्तर पर परमाणु निवारण सिद्धांतों और ‘MAD’ की अवधारणा पर नए सिरे से बहस छेड़ सकती है। क्या परमाणु हथियार वास्तव में ‘युद्ध रोकने वाले’ हैं, या वे अब संघर्ष के नए रूपों को जन्म दे रहे हैं?

संक्षेप में, ऑपरेशन सिंदूर की रिपोर्टें एक गंभीर चेतावनी हैं कि दक्षिण एशिया में परमाणु खतरा कितना वास्तविक और अनिश्चित है। यह घटना (यदि सत्य है) न केवल भारत और पाकिस्तान के बीच, बल्कि विश्व स्तर पर भी सुरक्षा और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करती है।

नैतिक और कानूनी दुविधाएँ (Ethical and Legal Dilemmas)

ऑपरेशन सिंदूर जैसी कथित घटना, जिसमें एक परमाणु-संबंधित सुविधा को निशाना बनाया गया हो, कई गहरी नैतिक और कानूनी दुविधाएँ पैदा करती है।

नैतिक दुविधाएँ:

  • ‘पहला परमाणु हमला’ बनाम ‘पारंपरिक हमला’: यदि किरना हिल्स में परमाणु सामग्री या घटकों का भंडारण था, तो इस पर एक पारंपरिक मिसाइल हमला भी परमाणु प्रसार और सुरक्षा पर गंभीर अनैतिक परिणाम दे सकता है। यह एक ‘ग्रे जोन’ बनाता है कि क्या यह NFU नीति का उल्लंघन है, भले ही कोई परमाणु हथियार सीधे इस्तेमाल न किया गया हो।
  • उद्देश्य बनाम परिणाम: क्या हमले का उद्देश्य केवल एक सुविधा को निष्क्रिय करना था, या यह पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को बाधित करने का प्रयास था? इरादा चाहे जो भी हो, ऐसे हमले के परिणाम विनाशकारी और अप्रत्याशित हो सकते हैं। एक सुविधा को नुकसान पहुँचने से रेडियोधर्मी सामग्री के रिसाव का जोखिम हो सकता है, जिससे नागरिक आबादी और पर्यावरण को नुकसान हो सकता है।
  • मानव जीवन का मूल्य: सैन्य रणनीतिकार हमेशा जीत और हानि का मूल्यांकन करते हैं, लेकिन परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच की झड़प में मानवीय लागत अप्रत्याशित रूप से अधिक हो सकती है। ऐसे हमलों की नैतिक सीमाएँ कहाँ हैं जो एक बड़े संघर्ष को जन्म दे सकते हैं?

कानूनी दुविधाएँ:

  • अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन: किसी संप्रभु देश के क्षेत्र में, विशेष रूप से एक संवेदनशील सैन्य या परमाणु सुविधा पर, उसकी सहमति के बिना हमला करना अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत एक गंभीर उल्लंघन माना जाता है। यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2(4) का उल्लंघन है, जो राज्यों को बल के उपयोग या धमकी से रोकता है।
  • आत्मरक्षा का अधिकार: राष्ट्र अक्सर सैन्य कार्रवाई को ‘आत्मरक्षा’ के अधिकार के तहत सही ठहराते हैं (संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 51)। हालाँकि, आत्मरक्षा के दायरे को अंतरराष्ट्रीय कानून में संकीर्ण रूप से परिभाषित किया गया है, और इसमें आमतौर पर आसन्न या चल रहे सशस्त्र हमले के खिलाफ कार्रवाई शामिल होती है। क्या किरना हिल्स पर हमला इस दायरे में आएगा, यह बहस का विषय होगा, खासकर यदि कोई आसन्न खतरा सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं किया गया था।
  • सैन्य आवश्यकता और आनुपातिकता: अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) के तहत, हमलों को सैन्य रूप से आवश्यक और लक्षित क्षति के अनुपात में होना चाहिए। क्या एक परमाणु-संबंधित सुविधा पर हमला सैन्य रूप से आवश्यक था, और क्या इससे होने वाली संभावित क्षति किसी सैन्य लाभ के आनुपातिक थी?
  • राज्य संप्रभुता का उल्लंघन: यह घटना एक देश की संप्रभुता के उल्लंघन का एक स्पष्ट उदाहरण है। यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अराजकता को बढ़ावा दे सकता है, जहाँ राज्य नियमों का सम्मान किए बिना एक-दूसरे के क्षेत्र में कार्य करते हैं।

इन नैतिक और कानूनी सवालों के जवाब, अगर घटना की पुष्टि होती है, तो वैश्विक कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय कानूनी निकायों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। वे भविष्य में परमाणु-सशस्त्र देशों के बीच संघर्षों के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकते हैं।

चुनौतियाँ और जोखिम (Challenges and Risks)

ऑपरेशन सिंदूर जैसी स्थिति, यदि सत्य है, तो भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए और व्यापक रूप से वैश्विक समुदाय के लिए कई गंभीर चुनौतियाँ और जोखिम प्रस्तुत करती है।

1. वृद्धि का जोखिम (Risk of Escalation):

  • अंधेरे में संघर्ष: सबसे बड़ा जोखिम यह है कि ऐसी घटना ‘अनपेक्षित वृद्धि’ (unintended escalation) को जन्म दे सकती है। जब परमाणु शक्तियों के बीच एक संवेदनशील लक्ष्य पर हमला होता है, तो प्रतिक्रिया की प्रकृति अनिश्चित हो जाती है। पाकिस्तान, अपनी ‘फर्स्ट-यूज़’ नीति के कारण, पारंपरिक युद्ध में हार का सामना करने पर परमाणु विकल्प की ओर बढ़ सकता है।
  • गलतफहमी और गलत आकलन: संकट के समय में, संचार टूट सकता है या गलत व्याख्या की जा सकती है। एक गलत जानकारी, एक गलत आकलन, या एक अति-प्रतिक्रिया, एक छोटे से टकराव को पूर्ण पैमाने पर युद्ध में बदल सकती है।
  • कमांड और नियंत्रण: उच्च तनाव की स्थिति में, कमांड और नियंत्रण प्रणालियों पर अत्यधिक दबाव होता है। निर्णय लेने की गति बढ़ जाती है, जिससे गलतियों की संभावना भी बढ़ जाती है।

2. गलत सूचना और प्रचार (Misinformation and Propaganda):

  • नैरेटिव का युद्ध: दोनों देश अपनी-अपनी कहानियों को प्रचारित करेंगे, जिससे जनता के बीच भ्रम और भय फैल सकता है। उपग्रह चित्रों की व्याख्या, हमले के उद्देश्य और परिणामों को लेकर विवाद होगा।
  • सूचना का धुंधलापन: सरकारें अक्सर ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साधे रहती हैं या अस्पष्ट बयान जारी करती हैं, जिससे अटकलें और गलत सूचना का प्रसार होता है। यह नागरिकों के बीच अविश्वास पैदा करता है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए स्थिति को समझना मुश्किल बना देता है।

3. अंतर्राष्ट्रीय दबाव और अलगाव (International Pressure and Isolation):

  • कूटनीतिक हस्तक्षेप: वैश्विक शक्तियाँ, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन, दक्षिण एशिया में तनाव कम करने के लिए राजनयिक रूप से हस्तक्षेप करने का प्रयास करेंगे।
  • प्रतिबंधों की संभावना: यदि संघर्ष बढ़ता है और अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जाता है, तो संबंधित देशों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय मंचों में निंदा: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस घटना को लेकर गंभीर बहस और निंदा हो सकती है।

4. क्षेत्रीय अस्थिरता (Regional Instability):

  • निवेश और व्यापार पर प्रभाव: क्षेत्र में बढ़ता तनाव विदेशी निवेश को हतोत्साहित करेगा और व्यापार संबंधों को बाधित करेगा, जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान होगा।
  • आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ: संघर्ष की स्थिति में, दोनों देशों के भीतर आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं, जिसमें आतंकवाद और सीमा पार घुसपैठ की घटनाएँ शामिल हैं।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए, अत्यधिक संयम, पारदर्शी संचार और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ सक्रिय जुड़ाव की आवश्यकता होगी।

आगे की राह: संयम और संवाद (Way Forward: Restraint and Dialogue)

ऑपरेशन सिंदूर जैसी घटना, चाहे वह सत्य हो या नहीं, भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों की नाजुकता को रेखांकित करती है। ऐसे परिदृश्य में, आगे का रास्ता अत्यधिक संयम, रणनीतिक दूरदर्शिता और निरंतर संवाद में निहित है।

  1. डी-एस्केलेशन के उपाय (De-escalation Measures):
    • तत्काल संचार चैनल: दोनों देशों के बीच हॉटलाइन और अन्य सैन्य-से-सैन्य संचार चैनलों को सक्रिय करना महत्वपूर्ण है ताकि किसी भी गलतफहमी को दूर किया जा सके और स्थिति को बढ़ने से रोका जा सके।
    • विश्वास बहाली के उपाय (CBMs): दोनों देशों को परमाणु और पारंपरिक सैन्य गतिविधियों से संबंधित पूर्व-निर्धारित विश्वास बहाली के उपायों (Confidence Building Measures) का पालन करना चाहिए, जैसे कि मिसाइल परीक्षणों के बारे में पूर्व-सूचना देना।
  2. शांत कूटनीति और बैक-चैनल वार्ता (Quiet Diplomacy and Back-Channel Talks):
    • अनौपचारिक माध्यम: सार्वजनिक बयानबाजी से दूर, पर्दे के पीछे अनौपचारिक और गोपनीय वार्ताएँ सबसे प्रभावी हो सकती हैं। यह दोनों पक्षों को बिना चेहरा खोए मुद्दों को समझने और हल करने की अनुमति देता है।
    • तीसरे पक्ष की मध्यस्थता: यदि आवश्यक हो, तो संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन या संयुक्त राष्ट्र जैसे विश्वसनीय तीसरे पक्ष की मध्यस्थता भी तनाव कम करने में सहायक हो सकती है।
  3. परमाणु जोखिम न्यूनीकरण (Nuclear Risk Reduction):
    • सैद्धांतिक स्पष्टता: दोनों देशों को अपनी परमाणु नीतियों और “रेड लाइन्स” (red lines) के बारे में अधिक स्पष्टता स्थापित करनी चाहिए ताकि दूसरे पक्ष द्वारा गलत आकलन की संभावना कम हो।
    • सुरक्षा प्रोटोकॉल की समीक्षा: परमाणु कमांड और नियंत्रण प्रणालियों की मजबूती और सुरक्षा प्रोटोकॉल की नियमित समीक्षा और सुधार आवश्यक है।
  4. क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को प्राथमिकता (Prioritizing Regional and Global Stability):
    • आतंकवाद से मुकाबला: भारत और पाकिस्तान दोनों को आतंकवाद के साझा खतरे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए सहयोग करना चाहिए, क्योंकि यह अक्सर क्षेत्र में तनाव का एक प्रमुख कारण होता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का पालन: दोनों देशों को अंतर्राष्ट्रीय कानून और परमाणु अप्रसार संधियों का सम्मान करना चाहिए ताकि वैश्विक परमाणु सुरक्षा और स्थिरता बनी रहे।
  5. आर्थिक और जन-केंद्रित विकास पर ध्यान (Focus on Economic and People-Centric Development):
    • दीर्घकालिक शांति और स्थिरता के लिए, दोनों देशों को सैन्य टकराव से हटकर आर्थिक विकास, गरीबी उन्मूलन और अपने नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह जनता के बीच संबंधों को बेहतर बनाने में भी मदद करेगा।

भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध एक जटिल रस्सी पर चलने जैसा है, जहाँ हर कदम सावधानी से उठाना होता है। ऑपरेशन सिंदूर जैसी घटनाएँ इस नाजुक संतुलन को और भी चुनौती देती हैं। भविष्य की शांति और स्थिरता के लिए यह आवश्यक है कि दोनों पक्ष संयम बरतें और संवाद के माध्यम से सभी मुद्दों का समाधान खोजने का प्रयास करें।

निष्कर्ष (Conclusion)

ऑपरेशन सिंदूर की रिपोर्टें, यदि उपग्रह चित्रों द्वारा सुझाई गई सीमा तक सत्य हैं, तो यह भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नए और संभावित रूप से खतरनाक अध्याय का संकेत देती हैं। यह घटना पारंपरिक सैन्य हमलों और परमाणु-सशस्त्र राज्यों के बीच की सीमा रेखा को धुंधला कर देती है, जिससे दक्षिण एशिया में परमाणु निवारण के स्थापित सिद्धांतों को चुनौती मिलती है।

यह दिखाता है कि कैसे एक क्षेत्रीय झड़प, यदि अनियंत्रित छोड़ दी जाए, तो वैश्विक सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है। जबकि भारत और पाकिस्तान दोनों ने अपने परमाणु शस्त्रागार को निवारण के लिए बनाए रखा है, इस तरह की कथित कार्रवाइयाँ संकेत देती हैं कि संघर्ष के नए रूप उभर रहे हैं, जहाँ परमाणु सीमा को सीधे पार किए बिना भी रणनीतिक रूप से संवेदनशील लक्ष्यों को निशाना बनाया जा सकता है।

भविष्य में, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और दोनों देशों के नेताओं को अत्यधिक सावधानी और कूटनीति के साथ कार्य करना होगा। स्थिरता बनाए रखने, गलतफहमी से बचने और तनाव को कम करने के लिए निरंतर संवाद, पारदर्शी संचार और विश्वास बहाली के उपायों की आवश्यकता होगी। अन्यथा, यह ‘शांत हमला’ परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच एक बड़े ‘गेम चेंजर’ के रूप में उभर सकता है, जिसके परिणाम किसी ने नहीं सोचे होंगे।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

निम्नलिखित कथनों पर विचार करें और सही उत्तर चुनें:

  1. किरना हिल्स के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह पाकिस्तान में परमाणु हथियारों के भंडारण या परीक्षण से संबंधित एक संदिग्ध स्थल है।
    2. यह भारत-पाक सीमा के निकट, सिंध प्रांत में स्थित है।
    3. इसकी भौगोलिक स्थिति इसे भूमिगत सुविधाओं के लिए उपयुक्त बनाती है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    A. केवल a और b

    B. केवल b और c

    C. केवल a और c

    D. a, b और c

    उत्तर: C

    व्याख्या: किरना हिल्स पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में सरगोधा के पास स्थित है, न कि सिंध प्रांत में। इसे लंबे समय से पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ा एक संवेदनशील स्थल और भूमिगत सुविधाओं के लिए उपयुक्त माना जाता रहा है।

  2. भारत की परमाणु नीति के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. भारत ‘नो-फर्स्ट-यूज़’ (No-First-Use – NFU) की नीति का पालन करता है।
    2. भारत ‘विश्वसनीय न्यूनतम निवारण’ (Credible Minimum Deterrence – CMD) की क्षमता बनाए रखता है।
    3. भारत रासायनिक और जैविक हथियारों के खिलाफ भी परमाणु हमले का विकल्प खुला रखता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    A. केवल a

    B. केवल b और c

    C. केवल a और b

    D. a, b और c

    उत्तर: C

    व्याख्या: भारत की घोषित परमाणु नीति NFU और CMD पर आधारित है। भारत केवल परमाणु हमले के जवाब में या अपने क्षेत्र में परमाणु हमलावरों की उपस्थिति में परमाणु हमला करेगा, न कि रासायनिक या जैविक हथियारों के लिए।

  3. पाकिस्तान की परमाणु नीति के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. पाकिस्तान ‘नो-फर्स्ट-यूज़’ की नीति का पालन करता है।
    2. पाकिस्तान ‘फुल स्पेक्ट्रम निवारण’ (Full Spectrum Deterrence) की क्षमता बनाए रखता है।
    3. पाकिस्तान अपनी पारंपरिक सैन्य शक्ति की कमी को पूरा करने के लिए परमाणु हथियारों को एक महत्वपूर्ण उपकरण मानता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    A. केवल a

    B. केवल b और c

    C. केवल a और b

    D. a, b और c

    उत्तर: B

    व्याख्या: पाकिस्तान की नीति में ‘पहले उपयोग’ का विकल्प शामिल है, इसलिए कथन (a) गलत है। पाकिस्तान अपनी पारंपरिक कमजोरियों को संतुलित करने के लिए ‘फुल स्पेक्ट्रम निवारण’ की क्षमता रखता है।

  4. उपग्रह चित्रों (Satellite Imagery) के उपयोग के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले वाणिज्यिक उपग्रह चित्र, सैन्य ठिकानों पर हुए हमलों का विश्लेषण करने में सहायक हो सकते हैं।
    2. उपग्रह चित्र हमेशा भूमिगत सुविधाओं की सटीक जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
    3. चित्रों की व्याख्या मौसम और प्रकाश की स्थिति से प्रभावित हो सकती है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    A. केवल a और b

    B. केवल b और c

    C. केवल a और c

    D. a, b और c

    उत्तर: C

    व्याख्या: वाणिज्यिक उपग्रह चित्र सैन्य ठिकानों के विश्लेषण में उपयोगी हैं, और उनकी व्याख्या मौसम/प्रकाश से प्रभावित होती है। हालांकि, वे सीधे भूमिगत सुविधाओं की सटीक जानकारी नहीं दे सकते जब तक कि सतह पर स्पष्ट निशान न हों।

  5. ‘आपसी सुनिश्चित विनाश’ (Mutually Assured Destruction – MAD) सिद्धांत क्या है?

    A. यह एक ऐसी नीति है जहाँ एक देश केवल तभी परमाणु हमला करता है जब उस पर पहले हमला किया गया हो।

    B. यह एक सिद्धांत है जहाँ परमाणु युद्ध में शामिल दोनों पक्ष एक-दूसरे को पूरी तरह से नष्ट करने की क्षमता रखते हैं, जिससे किसी भी हमले को रोकना संभव होता है।

    C. यह एक रणनीति है जहाँ एक देश अपने परमाणु हथियारों का उपयोग केवल आतंकवाद के खिलाफ करता है।

    D. यह अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक हिस्सा है जो परमाणु हथियारों के उपयोग को प्रतिबंधित करता है।

    उत्तर: B

    व्याख्या: MAD वह सिद्धांत है जिसमें दो परमाणु-सशस्त्र विरोधी इस डर से बड़े पैमाने पर संघर्ष से बचते हैं कि एक-दूसरे पर हमला करने से दोनों का विनाश होगा।

  6. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन ‘एस्केलेशन लैडर’ (Escalation Ladder) को सबसे अच्छी तरह परिभाषित करता है?

    A. यह एक सैन्य अभ्यास है जहाँ सैनिकों को सीढ़ियों पर चढ़ने का प्रशिक्षण दिया जाता है।

    B. यह संघर्ष के एक ऐसे मॉडल को संदर्भित करता है जहाँ शत्रुता का स्तर धीरे-धीरे बढ़ता है, जिसमें पारंपरिक से परमाणु युद्ध तक का जोखिम शामिल है।

    C. यह एक कूटनीतिक प्रक्रिया है जो अंतर्राष्ट्रीय विवादों को हल करती है।

    D. यह परमाणु बम के परीक्षण के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीक है।

    उत्तर: B

    व्याख्या: एस्केलेशन लैडर एक अवधारणा है जो संघर्ष में वृद्धि के चरणों का वर्णन करती है, जिसमें निम्न-स्तरीय टकराव से लेकर पूर्ण पैमाने पर युद्ध, संभावित परमाणु युद्ध तक शामिल है।

  7. क्रूज मिसाइलों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. वे आमतौर पर जेट इंजन द्वारा संचालित होती हैं और निचले वायुमंडल में उड़ान भरती हैं।
    2. वे बैलिस्टिक मिसाइलों की तुलना में अधिक सटीकता प्रदान कर सकती हैं।
    3. वे रडार से बच निकलने में सक्षम होती हैं।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    A. केवल a और b

    B. केवल b और c

    C. केवल a और c

    D. a, b और c

    उत्तर: D

    व्याख्या: क्रूज मिसाइलें जेट-संचालित होती हैं, निचले वायुमंडल में उड़ती हैं, उच्च सटीकता प्रदान करती हैं, और अक्सर रडार से बचने की क्षमता रखती हैं (स्टील्थ विशेषताएं)।

  8. भारत द्वारा ‘पलाउसिबल डिनायबिलिटी’ (Plausible Deniability) की नीति का संभावित उपयोग क्या दर्शाता है?

    A. किसी सैन्य कार्रवाई की जिम्मेदारी से पूरी तरह से इनकार करना।

    B. किसी कार्रवाई को इस तरह से करना कि सरकार आधिकारिक तौर पर उससे इनकार कर सके, भले ही परोक्ष साक्ष्य मौजूद हों।

    C. किसी सैन्य अभियान की पूरी जानकारी सार्वजनिक रूप से घोषित करना।

    D. मित्र देशों के साथ सैन्य जानकारी साझा करना।

    उत्तर: B

    व्याख्या: प्लाउसिबल डिनायबिलिटी एक ऐसी स्थिति है जहाँ एक व्यक्ति या संगठन किसी कार्रवाई की जिम्मेदारी से इनकार कर सकता है क्योंकि उसके पास उस कार्रवाई के बारे में प्रत्यक्ष ज्ञान होने का कोई निर्णायक सबूत नहीं होता है, भले ही परोक्ष साक्ष्य मौजूद हों।

  9. अंतर्राष्ट्रीय कानून के संदर्भ में, किसी संप्रभु देश के क्षेत्र में, उसकी सहमति के बिना बल का प्रयोग करना आमतौर पर किस अनुच्छेद का उल्लंघन माना जाता है?

    A. संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 51 (आत्मरक्षा)

    B. संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 2(4) (बल के प्रयोग पर प्रतिबंध)

    C. परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का अनुच्छेद IV

    D. अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) का अनुच्छेद 5

    उत्तर: B

    व्याख्या: संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 2(4) सदस्य राज्यों को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में बल के उपयोग या धमकी से रोकता है। अनुच्छेद 51 आत्मरक्षा का अधिकार देता है लेकिन इसकी सीमाएँ हैं।

  10. UPSC के संदर्भ में, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी घटना का अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है?

    1. यह भारत की विदेश नीति और रक्षा रणनीति को समझने में मदद करता है।
    2. यह परमाणु निवारण के सिद्धांतों और उनके व्यवहारिक निहितार्थों को दर्शाता है।
    3. यह उपग्रह प्रौद्योगिकी और उसके भू-रणनीतिक अनुप्रयोगों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    A. केवल a और b

    B. केवल b और c

    C. केवल a और c

    D. a, b और c

    उत्तर: D

    व्याख्या: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी घटनाएँ अंतर्राष्ट्रीय संबंध, सुरक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, और नैतिकता जैसे कई विषयों को छूती हैं, जो UPSC पाठ्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. यदि भारत द्वारा पाकिस्तान के किरना हिल्स पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी मिसाइल हमले की खबरें सत्य हैं, तो यह भारत-पाकिस्तान के परमाणु निवारण समीकरणों को किस प्रकार प्रभावित करेगा? विस्तृत चर्चा कीजिए।
  2. दक्षिण एशिया में परमाणु-सशस्त्र देशों के बीच किसी परमाणु-संबंधित सुविधा पर पारंपरिक हमले के भू-रणनीतिक निहितार्थों का विश्लेषण करें। ऐसी स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की क्या भूमिका हो सकती है?
  3. आधुनिक सैन्य संघर्षों में उपग्रह चित्रों और सटीक-निर्देशित मिसाइलों जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों की भूमिका का मूल्यांकन करें। क्या ये प्रौद्योगिकियाँ ‘अस्वीकार्य’ (plausible deniability) की रणनीति को बढ़ावा देती हैं?
  4. परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच ‘एस्केलेशन लैडर’ को प्रबंधित करने में विश्वास बहाली के उपाय (CBMs) और बैक-चैनल कूटनीति का क्या महत्व है? भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में इन उपायों की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

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