₹100 करोड़ और चीन की मदद: क्या फिर से धधक रही हैं आतंक की भट्ठियां?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में एक चौंकाने वाली खबर ने पूरे क्षेत्र की सुरक्षा चिंताओं को फिर से बढ़ा दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जिस आतंकी बुनियादी ढाँचे को कथित तौर पर “ऑपरेशन सिंदूर” जैसी कार्रवाई में तबाह कर दिया गया था, उसे पाकिस्तान सरकार द्वारा 100 करोड़ रुपये का आवंटन कर फिर से दुरुस्त किया जा रहा है। इस पुनरुत्थान में चीन की प्रतिष्ठित गेझोउबा ग्रुप कंपनी का संपर्क एक और परत जोड़ता है, जिससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या पाकिस्तान एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय दबाव को धता बताते हुए आतंकी गतिविधियों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर रहा है। यह घटनाक्रम न केवल भारत के लिए बल्कि संपूर्ण दक्षिण एशियाई क्षेत्र और वैश्विक आतंकवाद-विरोधी प्रयासों के लिए गंभीर निहितार्थ रखता है।
ऑपरेशन सिंदूर: अतीत का एक विस्मृत अध्याय (Operation Sindoor: A Forgotten Chapter of the Past)
जिस “ऑपरेशन सिंदूर” का जिक्र खबर में किया गया है, वह अतीत की ऐसी सैन्य या खुफिया कार्रवाई की ओर इशारा करता है, जिसका उद्देश्य सीमा पार से संचालित होने वाले आतंकी ठिकानों को नष्ट करना था। आमतौर पर, ऐसे ऑपरेशन गहन खुफिया जानकारी, सटीक योजना और त्वरित निष्पादन पर आधारित होते हैं, ताकि आतंकी संगठनों की कमर तोड़ी जा सके और उनकी क्षमताओं को निष्क्रिय किया जा सके।
कल्पना कीजिए एक जटिल ऑपरेशन जिसमें हेलीकॉप्टर, ड्रोन और विशेष बल शामिल हैं, जो पहाड़ी इलाकों में छिपे हुए शिविरों पर हमला करते हैं। ऑपरेशन सिंदूर का लक्ष्य केवल आतंकवादियों को मारना नहीं, बल्कि उनकी संपूर्ण “फैक्ट्रियों” को ध्वस्त करना था – यानी प्रशिक्षण शिविर, हथियार डिपो, संचार केंद्र और लॉजिस्टिक हब। जब ऐसी कार्रवाई सफल होती है, तो माना जाता है कि उस क्षेत्र से आतंकवादी खतरा काफी हद तक कम हो गया है। लेकिन वर्तमान खबर संकेत देती है कि यह सफलता शायद अस्थायी थी या अब उसे जानबूझकर पलटा जा रहा है। यह एक ऐसे पौधे को उखाड़ने जैसा है जिसकी जड़ें गहरी हों; अगर जड़ें रह जाएं या पानी मिलता रहे, तो वह फिर से उग आता है।
“आतंकी फैक्ट्रियां”: उनका स्वरूप और कार्यप्रणाली (Terror Factories: Their Nature and Modus Operandi)
जब हम “आतंकी फैक्ट्रियों” की बात करते हैं, तो यह सिर्फ ईंट-पत्थर की इमारतों का समूह नहीं होता, बल्कि यह एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र होता है जो आतंकवाद को पोषित करता है। इसमें कई घटक शामिल होते हैं:
- प्रशिक्षण शिविर (Training Camps): ये ऐसे स्थान होते हैं जहाँ रंगरूटों को हथियार चलाने, विस्फोटक बनाने, गुरिल्ला युद्ध और शहरी हमलों की ट्रेनिंग दी जाती है। यहाँ उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से कट्टरपंथ की राह पर धकेला जाता है।
- प्रचार और कट्टरपंथ केंद्र (Propaganda & Radicalization Hubs): ये मदरसे या अन्य धार्मिक संस्थान हो सकते हैं जहाँ युवाओं को विशेष विचारधाराओं के तहत उकसाया जाता है और उन्हें “जिहाद” के नाम पर हिंसा के लिए तैयार किया जाता है। यहाँ नफरत भरे भाषण और सामग्री का प्रसार किया जाता है।
- लॉजिस्टिक्स और हथियार डिपो (Logistics & Arms Depots): इन “फैक्ट्रियों” में हथियारों, गोला-बारूद, संचार उपकरणों और अन्य सैन्य साजो-सामान का भंडारण होता है। ये सीमा पार घुसपैठ और हमलों के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराते हैं।
- वित्तीय पोषण नेटवर्क (Financial Networks): ये केंद्र विभिन्न स्रोतों से धन इकट्ठा करते हैं, जिसमें अवैध व्यापार (नशीले पदार्थ, हथियार), हवाला लेनदेन और दान शामिल हैं। यह धन आतंकवादियों की भर्ती, प्रशिक्षण, हथियार खरीद और संचालन के लिए उपयोग होता है।
- कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (Command & Control Centers): यहाँ से आतंकी अभियानों की योजना बनाई जाती है, उनका समन्वय किया जाता है और उन्हें निर्देशित किया जाता है। ये अक्सर सुरक्षित स्थानों पर स्थित होते हैं और अत्याधुनिक संचार प्रणालियों से लैस होते हैं।
“आतंकी फैक्ट्रियां” केवल भौतिक स्थान नहीं, बल्कि एक विचार, एक नेटवर्क और एक पारिस्थितिकी तंत्र हैं जो चरमपंथी विचारधाराओं से पोषित होते हैं और विध्वंसक गतिविधियों को अंजाम देते हैं। इन्हें ध्वस्त करने के लिए केवल सैन्य कार्रवाई ही पर्याप्त नहीं, बल्कि वैचारिक और वित्तीय मोर्चे पर भी लड़ाई लड़नी होगी।
पाकिस्तान का दुस्साहस: ₹100 करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय दबाव (Pakistan’s Audacity: ₹100 Crore and International Pressure)
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान पर लंबे समय से आतंकवाद को पनाह देने और उसे बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं। इस खबर में ₹100 करोड़ का आवंटन करना एक ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान पहले से ही वित्तीय संकट से जूझ रहा है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे संस्थानों से सहायता प्राप्त कर रहा है। यह कदम पाकिस्तान के लिए एक “लाइफलाइन” मानी जाने वाली अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने की कोशिशों के बिल्कुल विपरीत है।
- FATF की तलवार: FATF एक अंतर-सरकारी निकाय है जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारित करता है। पाकिस्तान कई वर्षों तक FATF की ‘ग्रे लिस्ट’ में रहा, जिसका अर्थ था कि उसे अपनी सीमाओं के भीतर आतंकवादी वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने में रणनीतिक कमियां थीं। ग्रे लिस्ट में रहने से देश की अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और विदेशी निवेश प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। 100 करोड़ रुपये का यह आवंटन सीधे तौर पर आतंकवादी अवसंरचना के लिए धन उपलब्ध कराने के बराबर है, जो FATF के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और पाकिस्तान को फिर से ‘ग्रे लिस्ट’ में या शायद ‘ब्लैक लिस्ट’ में धकेल सकता है।
- राजकीय संरक्षण का प्रमाण: यदि यह खबर सत्य है, तो यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पाकिस्तान सरकार प्रत्यक्ष रूप से आतंकी बुनियादी ढाँचे के पुनरुत्थान में शामिल है। यह केवल “गैर-राज्य अभिनेताओं” का समर्थन नहीं, बल्कि आतंकवाद को राज्य नीति के एक उपकरण के रूप में उपयोग करने का एक बड़ा और निर्लज्ज प्रयास है।
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की परीक्षा: यह घटनाक्रम वैश्विक समुदाय के लिए एक बड़ी परीक्षा है, विशेष रूप से उन देशों के लिए जो आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का दावा करते हैं। क्या वे पाकिस्तान के इस कदम की निंदा करेंगे? क्या वे उस पर आर्थिक और राजनीतिक दबाव डालेंगे? या फिर भू-राजनीतिक हितों को तरजीह दी जाएगी?
यह ₹100 करोड़ का निवेश न केवल एक आर्थिक सहायता है, बल्कि एक वैचारिक समर्थन भी है। यह पाकिस्तान की उस ज़िद को दर्शाता है कि वह आतंकवाद को अपनी “रणनीतिक गहराई” का एक अभिन्न अंग मानता है, भले ही इसकी कीमत उसे वैश्विक अलगाव के रूप में चुकानी पड़े।
चीन की भूमिका: एक रणनीतिक गठजोड़? (China’s Role: A Strategic Alliance?)
इस पूरे मामले में चीन की गेझोउबा ग्रुप कंपनी का नाम आना कई गंभीर सवाल खड़े करता है। गेझोउबा ग्रुप एक बड़ी चीनी राज्य-स्वामित्व वाली इंजीनियरिंग और निर्माण कंपनी है, जो दुनियाभर में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में शामिल है, खासकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के तहत।
क्या है गेझोउबा ग्रुप?
यह कंपनी जलविद्युत परियोजनाओं, सड़कों, पुलों और अन्य बड़ी परियोजनाओं के निर्माण में माहिर है। CPEC के तहत पाकिस्तान में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में इसकी भागीदारी है। ऐसे में एक सिविल कंस्ट्रक्शन कंपनी का आतंकी ठिकानों की मरम्मत से जुड़ना सामान्य नहीं है।
संभावित निहितार्थ:
- दोहरे उपयोग वाली अवसंरचना (Dual-Use Infrastructure): यह संभव है कि कंपनी को किसी नागरिक बुनियादी ढाँचे की मरम्मत का काम दिया गया हो, लेकिन इसका इस्तेमाल अप्रत्यक्ष रूप से या गुप्त रूप से आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, संचार लाइनों, सड़कों या बिजली ग्रिड की मरम्मत जो बाद में आतंकवादी शिविरों को लाभ पहुंचा सकती है।
- चीन-पाकिस्तान का रणनीतिक गठजोड़: चीन और पाकिस्तान को “सदाबहार दोस्त” के रूप में जाना जाता है। CPEC इस दोस्ती का आर्थिक आधार है। चीन भारत को घेरने और अपने भू-राजनीतिक प्रभाव का विस्तार करने के लिए पाकिस्तान को एक महत्वपूर्ण मोहरे के रूप में देखता है। यदि चीन की कंपनी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आतंकी ठिकानों के पुनर्निर्माण में शामिल है, तो यह वैश्विक आतंकवाद-विरोधी प्रयासों के लिए एक बड़ा झटका होगा और चीन की भूमिका पर गंभीर संदेह पैदा करेगा।
- तकनीकी सहायता और संसाधन: गेझोउबा जैसी बड़ी कंपनी के पास उन्नत इंजीनियरिंग क्षमताएं और भारी उपकरण होते हैं। इनका उपयोग कठिन इलाकों में भी बुनियादी ढाँचा विकसित करने या उसे दुरुस्त करने के लिए किया जा सकता है, जो सामान्य तौर पर आतंकी संगठनों की पहुंच से बाहर होगा।
- अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण का उल्लंघन: यदि यह साबित हो जाता है कि एक चीनी राज्य-नियंत्रित कंपनी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आतंकी ठिकानों के पुनर्निर्माण में सहायता कर रही है, तो यह चीन की अंतर्राष्ट्रीय छवि और उसके “गैर-हस्तक्षेप” के दावे के लिए गंभीर चिंता का विषय होगा। यह उसे वैश्विक आतंकवाद के लिए एक परोक्ष समर्थक के रूप में भी खड़ा कर सकता है।
यह सिर्फ आर्थिक सहयोग नहीं, बल्कि एक गहरा रणनीतिक तालमेल है, जहाँ चीन पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक रूप से मजबूत करके अपने क्षेत्रीय हितों को साधने की कोशिश कर रहा है, भले ही इसकी कीमत आतंकवाद को फिर से बढ़ावा देने के रूप में चुकानी पड़े।
भारत के लिए निहितार्थ: सुरक्षा चुनौतियाँ और कूटनीतिक प्रतिक्रिया (Implications for India: Security Challenges and Diplomatic Response)
पाकिस्तान में आतंकी “फैक्ट्रियों” का पुनरुत्थान भारत के लिए गंभीर सुरक्षा चुनौतियाँ पैदा करता है। भारत को दशकों से सीमा पार आतंकवाद का सामना करना पड़ रहा है, और यह नया घटनाक्रम इस खतरे को और भी बढ़ा देगा।
सुरक्षा चुनौतियाँ:
- बढ़ी हुई घुसपैठ: आतंकी ठिकानों के फिर से सक्रिय होने से प्रशिक्षित आतंकवादियों की भारत में घुसपैठ की कोशिशें बढ़ सकती हैं, विशेषकर जम्मू-कश्मीर और पंजाब जैसे सीमावर्ती राज्यों में।
- आतंकी हमलों का खतरा: पुनर्जीवित ठिकानों से प्रशिक्षित और सुसज्जित आतंकवादी भारत के प्रमुख शहरों, महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों और नागरिकों को निशाना बनाने की कोशिश कर सकते हैं।
- कट्टरपंथ और अलगाववाद को बढ़ावा: पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठन भारत में कट्टरपंथी विचारधारा का प्रसार करने और युवाओं को बरगलाने का प्रयास करेंगे, जिससे आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ेंगी।
- साइबर और हाइब्रिड युद्ध: आधुनिक आतंकी संगठन अब केवल शारीरिक हमलों तक सीमित नहीं हैं; वे साइबर हमलों, ड्रोन के उपयोग और सोशल मीडिया के माध्यम से दुष्प्रचार फैलाने जैसे “हाइब्रिड युद्ध” के तरीकों का भी उपयोग करते हैं।
- वित्तीय आतंकवाद: हवाला जैसे माध्यमों से भारत में आतंकी वित्तपोषण का प्रवाह बढ़ सकता है, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ेगा।
भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया:
- वैश्विक मंचों पर उजागर करना: भारत को संयुक्त राष्ट्र, FATF, G20 और अन्य द्विपक्षीय वार्ताओं में पाकिस्तान के इस कृत्य को पूरी तरह से उजागर करना होगा। यह दर्शाना होगा कि कैसे पाकिस्तान आतंकवाद को राज्य नीति के रूप में इस्तेमाल कर रहा है और अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कर रहा है।
- चीन पर दबाव: चीन की गेझोउबा कंपनी की संभावित संलिप्तता के लिए चीन पर कूटनीतिक दबाव बनाना होगा। यह चीन के “आतंकवाद विरोधी” दावों पर सवाल उठाएगा।
- खुफिया और सुरक्षा तंत्र को मजबूत करना: सीमा पार घुसपैठ को रोकने के लिए सीमा सुरक्षा बल (BSF) और सेना को और अधिक आधुनिक उपकरणों और खुफिया जानकारी के साथ मजबूत करना। आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों को भी सक्रिय करना।
- कानूनी और वित्तीय उपाय: आतंकी वित्तपोषण को रोकने के लिए कानूनों को मजबूत करना और वित्तीय निगरानी बढ़ाना।
- क्षेत्रीय सहयोग: आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए आसियान, बिम्सटेक जैसे क्षेत्रीय समूहों के साथ सहयोग बढ़ाना।
“आतंकवाद को ‘अच्छा’ और ‘बुरा’ के आधार पर बांटने की वैश्विक प्रवृत्ति ने आतंकवाद को एक कैंसर बना दिया है जो अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को निगल रहा है। जब तक राज्य प्रायोजित आतंकवाद को निर्णायक रूप से संबोधित नहीं किया जाता, तब तक दुनिया सुरक्षित नहीं रह सकती।”
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका और निष्क्रियता (Role and Inactivity of the International Community)
आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन अक्सर यह निष्क्रियता या चुनिंदा प्रतिक्रिया से ग्रस्त रही है। पाकिस्तान में आतंकी फैक्ट्रियों के कथित पुनरुत्थान के संदर्भ में यह प्रवृत्ति और भी स्पष्ट हो जाती है।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की अपेक्षित भूमिका:
- एकजुट निंदा: किसी भी राज्य द्वारा आतंकवाद को दिए जा रहे समर्थन की स्पष्ट और एकजुट निंदा।
- प्रतिबंध और दबाव: आतंकवाद को समर्थन देने वाले देशों पर कड़े आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंध लगाना।
- खुफिया जानकारी साझा करना: आतंकवादी खतरों और नेटवर्क के बारे में खुफिया जानकारी का प्रभावी साझाकरण।
- क्षमता निर्माण: उन देशों की सहायता करना जो आतंकवाद से लड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
- कानूनी ढाँचा: अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी कानूनों और संधियों को मजबूत करना और उनका पालन सुनिश्चित करना।
निष्क्रियता के कारण:
- भू-राजनीतिक हित: कई बड़े देश अपने भू-राजनीतिक हितों को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई से ऊपर रखते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ देश पाकिस्तान को चीन के खिलाफ या अफगानिस्तान में अपने हितों के लिए एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में देखते हैं, जिससे उस पर कड़ा दबाव डालने में हिचकिचाहट होती है।
- आर्थिक हित: चीन जैसे देश जो पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर आर्थिक निवेश कर रहे हैं (जैसे CPEC), वे पाकिस्तान के आतंकवाद रिकॉर्ड पर अपनी आँखें बंद कर लेते हैं ताकि उनके निवेश सुरक्षित रहें।
- दोहरे मानदंड: कुछ देशों में आतंकवाद की परिभाषा पर सहमति नहीं है, या वे आतंकवादियों को “स्वतंत्रता सेनानी” के रूप में वर्गीकृत करते हैं, जिससे एक एकीकृत प्रतिक्रिया कमजोर पड़ती है।
- चीन का वीटो पावर: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में चीन का वीटो पावर एक बड़ी बाधा है। कई बार, जब भारत या अन्य देश पाकिस्तानी आतंकवादियों को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की कोशिश करते हैं, तो चीन अक्सर तकनीकी रोक लगा देता है या वीटो का उपयोग करता है।
- सूचना का अभाव/विश्वास की कमी: कभी-कभी, सबूतों की कमी या विभिन्न देशों की खुफिया एजेंसियों के बीच विश्वास की कमी भी प्रभावी सहयोग में बाधा डालती है।
यह निष्क्रियता आतंकवाद को पनपने का मौका देती है और उन देशों को प्रोत्साहन देती है जो इसे अपनी नीति के उपकरण के रूप में उपयोग करते हैं। जब तक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय “एक राष्ट्र, एक आवाज़” के साथ आतंकवाद के खिलाफ खड़ा नहीं होता, तब तक यह चुनौती बनी रहेगी।
आगे की राह: भारत की रणनीति और वैश्विक सहयोग (Way Forward: India’s Strategy and Global Cooperation)
आतंकवादी ठिकानों के पुनरुत्थान की यह खबर भारत के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि सतर्कता और सक्रियता दोनों ही आवश्यक हैं।
भारत की रणनीति:
- सशक्त सुरक्षा ढाँचा:
- सीमा प्रबंधन: नियंत्रण रेखा (LoC) और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर निरंतर निगरानी, घुसपैठ रोधी ग्रिड को और मजबूत करना, आधुनिक सेंसर, ड्रोन और खुफिया तकनीक का अधिकतम उपयोग।
- खुफिया और निगरानी: आंतरिक और बाहरी खुफिया एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय, तकनीकी खुफिया जानकारी का संग्रहण और विश्लेषण।
- काउंटर-रैडिकलाइजेशन: युवाओं को कट्टरपंथ से बचाने के लिए प्रभावी सामाजिक कार्यक्रम और जागरूकता अभियान चलाना।
- साइबर सुरक्षा: आतंकी संगठनों द्वारा साइबर स्पेस के उपयोग को रोकने के लिए मजबूत साइबर सुरक्षा प्रणाली विकसित करना।
- आक्रामक कूटनीति:
- अंतर्राष्ट्रीय दबाव: पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट में वापस धकेलने और उस पर आर्थिक व राजनीतिक दबाव बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर अमेरिका, यूरोपीय संघ और G7 देशों से सक्रिय रूप से संपर्क करना।
- चीन को जवाबदेह ठहराना: चीन की कंपनियों की संलिप्तता पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाना और बीजिंग पर इस मुद्दे पर जवाब देने का दबाव डालना। चीन को यह एहसास दिलाना कि आतंकवाद के मुद्दे पर उसके दोहरे मानदंड उसकी वैश्विक साख को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
- द्विपक्षीय संबंधों का लाभ: उन देशों के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंध बनाना जो आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़े हैं।
- कानूनी और वित्तीय उपाय:
- टेरर फाइनेंसिंग पर नकेल: हवाला नेटवर्क और क्रिप्टो-करेंसी के माध्यम से होने वाले आतंकी वित्तपोषण को रोकने के लिए मजबूत कानून और बेहतर प्रवर्तन तंत्र।
- आतंकवादी संपत्ति जब्त करना: आतंकवाद से जुड़ी संपत्तियों को जब्त करने और उनके वित्तीय स्रोतों को अवरुद्ध करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
- निवारक क्षमताएँ: यदि आवश्यक हो, तो सीमा पार से संचालित होने वाले आतंकी ठिकानों के खिलाफ निवारक कार्रवाई करने की क्षमता बनाए रखना, जैसा कि अतीत में किया गया है (उदाहरण के लिए सर्जिकल स्ट्राइक)।
वैश्विक सहयोग:
- UN की भूमिका: संयुक्त राष्ट्र को अधिक प्रभावी बनाना ताकि वह आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले राज्यों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई कर सके।
- बहुपक्षीय मंच: शंघाई सहयोग संगठन (SCO), ब्रिक्स (BRICS) और अन्य क्षेत्रीय व वैश्विक मंचों पर आतंकवाद विरोधी सहयोग को बढ़ावा देना।
- सूचना साझाकरण: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खुफिया जानकारी, सर्वोत्तम प्रथाओं और प्रौद्योगिकी का निर्बाध साझाकरण।
- एकजुट परिभाषा: आतंकवाद की एक सार्वभौमिक और स्वीकार्य परिभाषा पर सहमति बनाना ताकि किसी भी देश को “अच्छे” या “बुरे” आतंकवादी का वर्गीकरण करने का बहाना न मिले।
यह लड़ाई लंबी और जटिल है, लेकिन भारत को आतंकवाद के खिलाफ अपनी “जीरो टॉलरेंस” नीति पर दृढ़ रहना होगा और क्षेत्रीय व वैश्विक भागीदारों के साथ मिलकर काम करना होगा ताकि आतंक की इन “भट्ठियों” को हमेशा के लिए बुझाया जा सके।
निष्कर्ष (Conclusion)
“ऑपरेशन सिंदूर” के बाद तबाह हुई “आतंकी फैक्ट्रियों” का पाकिस्तान सरकार के ₹100 करोड़ के सहयोग और चीनी कंपनी की कथित मदद से फिर से सक्रिय होना एक चेतावनी है। यह न केवल भारत की सुरक्षा के लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता और वैश्विक आतंकवाद-विरोधी प्रयासों के लिए एक गंभीर चुनौती है। यह घटनाक्रम पाकिस्तान के राज्य-प्रायोजित आतंकवाद के गहरे जड़ें जमाए व्यवहार और अंतर्राष्ट्रीय दबाव को धता बताने की उसकी दुस्साहसिक प्रकृति को उजागर करता है।
चीन की भागीदारी भू-राजनीतिक गठबंधनों की जटिलता और वैश्विक आतंकवाद से निपटने में आने वाली बाधाओं को दर्शाती है। भारत को अपनी सुरक्षा को मजबूत करने, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को दृढ़ता से उठाने और वैश्विक सहयोग के लिए दबाव बनाने की आवश्यकता है। जब तक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय आतंकवाद के खिलाफ एक एकीकृत और निर्णायक रुख नहीं अपनाता, तब तक आतंक की ये भट्ठियां धधकती रहेंगी और दुनिया को अपनी लपटों में झुलसाती रहेंगी। यह समय सक्रियता, दृढ़ संकल्प और सामूहिक कार्रवाई का है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए लेख के आधार पर दें।)
1. “ऑपरेशन सिंदूर” के संदर्भ में, जैसा कि लेख में उल्लेख किया गया है, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह एक सैन्य या खुफिया कार्रवाई थी जिसका उद्देश्य सीमा पार से संचालित आतंकी ठिकानों को नष्ट करना था।
- इस ऑपरेशन का मुख्य लक्ष्य आतंकवादियों को मारना था, न कि उनकी बुनियादी ढाँचे को ध्वस्त करना।
- लेख में यह सुझाव दिया गया है कि ऑपरेशन सिंदूर की सफलता अस्थायी थी या उसे पलटा जा रहा है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: लेख में “ऑपरेशन सिंदूर” को एक ऐसी कार्रवाई बताया गया है जिसका उद्देश्य आतंकी ठिकानों को नष्ट करना था (कथन 1 सही)। यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इसका लक्ष्य केवल आतंकवादियों को मारना नहीं, बल्कि उनकी संपूर्ण “फैक्ट्रियों” को ध्वस्त करना था, इसलिए कथन 2 गलत है। लेख बताता है कि इन ठिकानों को फिर से दुरुस्त किया जा रहा है, जिससे इसकी सफलता की अस्थायीता या उसे पलटने का संकेत मिलता है (कथन 3 सही)।
2. “आतंकी फैक्ट्रियां” शब्द, जैसा कि लेख में प्रयुक्त हुआ है, निम्नलिखित में से किन घटकों को समाहित करता है?
- प्रशिक्षण शिविर और हथियार डिपो।
- प्रचार और कट्टरपंथ केंद्र।
- लॉजिस्टिक्स नेटवर्क और वित्तीय पोषण तंत्र।
- कमांड एंड कंट्रोल सेंटर।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
व्याख्या: लेख में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि “आतंकी फैक्ट्रियां” एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र हैं जिसमें प्रशिक्षण शिविर, प्रचार केंद्र, लॉजिस्टिक्स/हथियार डिपो, वित्तीय नेटवर्क और कमांड एंड कंट्रोल सेंटर शामिल होते हैं। इसलिए, सभी कथन सही हैं।
3. वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारित करता है।
- ग्रे लिस्ट में रहने से किसी देश की अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- ₹100 करोड़ का आवंटन सीधे तौर पर आतंकवादी अवसंरचना के लिए धन उपलब्ध कराने के बराबर है, जो FATF के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: FATF मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण के लिए मानक निर्धारित करता है (कथन 1 सही)। ग्रे लिस्ट में रहने से देश की विश्वसनीयता प्रभावित होती है और विदेशी निवेश मुश्किल होता है (कथन 2 सही)। लेख में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि 100 करोड़ का आवंटन FATF सिद्धांतों का उल्लंघन है (कथन 3 सही)।
4. चीन की गेझोउबा ग्रुप कंपनी के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह एक चीनी राज्य-स्वामित्व वाली इंजीनियरिंग और निर्माण कंपनी है।
- यह मुख्य रूप से CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) के तहत छोटे पैमाने की परियोजनाओं में शामिल है।
- लेख में आशंका जताई गई है कि कंपनी की भागीदारी से ‘दोहरे उपयोग वाली अवसंरचना’ का विकास हो सकता है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: गेझोउबा ग्रुप एक बड़ी चीनी राज्य-स्वामित्व वाली कंपनी है (कथन 1 सही)। यह बड़े पैमाने की परियोजनाओं, विशेषकर CPEC के तहत, में शामिल है, न कि छोटे पैमाने की (कथन 2 गलत)। लेख में स्पष्ट रूप से ‘दोहरे उपयोग वाली अवसंरचना’ की आशंका जताई गई है (कथन 3 सही)।
5. भारत के लिए पाकिस्तान में आतंकी फैक्ट्रियों के पुनरुत्थान के संभावित निहितार्थों में शामिल हो सकते हैं:
- भारत में प्रशिक्षित आतंकवादियों की घुसपैठ में वृद्धि।
- भारत में कट्टरपंथ और अलगाववाद को बढ़ावा।
- आतंकी संगठनों द्वारा हाइब्रिड युद्ध के तरीकों का अधिक उपयोग।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: लेख में स्पष्ट रूप से ये तीनों बिंदु भारत के लिए सुरक्षा चुनौतियों के रूप में उल्लिखित हैं: बढ़ी हुई घुसपैठ, कट्टरपंथ को बढ़ावा और हाइब्रिड युद्ध के तरीकों का उपयोग। इसलिए, सभी कथन सही हैं।
6. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में निष्क्रियता के कारणों में से एक नहीं है:
(a) भू-राजनीतिक हितों को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई से ऊपर रखना।
(b) कुछ देशों में आतंकवाद की परिभाषा पर सहमति का अभाव।
(c) चीन द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में वीटो पावर का लगातार उपयोग।
(d) आतंकवाद के खिलाफ एक एकीकृत अंतर्राष्ट्रीय सेना का गठन।
उत्तर: (d)
व्याख्या: विकल्प (a), (b) और (c) तीनों ही लेख में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता के कारणों के रूप में उल्लिखित हैं। “आतंकवाद के खिलाफ एक एकीकृत अंतर्राष्ट्रीय सेना का गठन” निष्क्रियता का कारण नहीं है, बल्कि एक संभावित समाधान हो सकता है (जो कि अभी तक साकार नहीं हुआ है), इसलिए यह सही उत्तर नहीं है।
7. भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन से कदम लेख में सुझाए गए हैं?
- सीमा प्रबंधन और घुसपैठ रोधी ग्रिड को मजबूत करना।
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान और चीन पर दबाव बनाना।
- टेरर फाइनेंसिंग पर नकेल कसने के लिए कानून और प्रवर्तन को मजबूत करना।
- आवश्यकता पड़ने पर सीमा पार से संचालित होने वाले आतंकी ठिकानों के खिलाफ निवारक कार्रवाई करना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
व्याख्या: लेख में “आगे की राह: भारत की रणनीति” खंड में ये सभी बिंदु स्पष्ट रूप से उल्लिखित हैं: सशक्त सुरक्षा ढाँचा (सीमा प्रबंधन), आक्रामक कूटनीति (अंतर्राष्ट्रीय दबाव), कानूनी और वित्तीय उपाय (टेरर फाइनेंसिंग), और निवारक क्षमताएँ (सीमा पार कार्रवाई)। इसलिए, सभी कथन सही हैं।
8. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- CPEC चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) का एक महत्वपूर्ण घटक है।
- चीन, भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान को एक महत्वपूर्ण मोहरे के रूप में देखता है।
- गेझोउबा ग्रुप जैसी चीनी कंपनियों द्वारा बुनियादी ढाँचे का निर्माण हमेशा केवल नागरिक उद्देश्यों के लिए होता है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
व्याख्या: CPEC, BRI का हिस्सा है (कथन 1 सही)। चीन भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान का उपयोग करता है (कथन 2 सही)। लेख में ‘दोहरे उपयोग वाली अवसंरचना’ की आशंका जताई गई है, जिसका अर्थ है कि बुनियादी ढाँचा नागरिक के साथ-साथ अन्य उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल हो सकता है, इसलिए कथन 3 गलत है।
9. पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) द्वारा ‘ग्रे लिस्ट’ में रखे जाने का प्राथमिक कारण क्या रहा है?
(a) पाकिस्तान का भारी विदेशी कर्ज।
(b) अपनी सीमाओं के भीतर आतंकवादी वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने में रणनीतिक कमियां।
(c) परमाणु प्रसार के संबंध में चिंताएँ।
(d) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन।
उत्तर: (b)
व्याख्या: लेख में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि पाकिस्तान को FATF की ‘ग्रे लिस्ट’ में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण से निपटने में रणनीतिक कमियों के कारण रखा गया था।
10. लेख के अनुसार, वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी लड़ाई के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण ‘आगे की राह’ क्या है?
(a) आतंकवाद की एक सार्वभौमिक परिभाषा पर सहमति बनाना।
(b) अधिक संयुक्त सैन्य अभ्यास करना।
(c) सीमा शुल्क नियमों का मानकीकरण करना।
(d) व्यक्तिगत देशों द्वारा आर्थिक सहायता बढ़ाना।
उत्तर: (a)
व्याख्या: लेख के “आगे की राह: भारत की रणनीति और वैश्विक सहयोग” खंड में “एकजुट परिभाषा” के तहत स्पष्ट रूप से लिखा है कि आतंकवाद की एक सार्वभौमिक और स्वीकार्य परिभाषा पर सहमति बनाना महत्वपूर्ण है ताकि किसी देश को दोहरे मानदंड अपनाने का बहाना न मिले।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. “आतंकी फैक्ट्रियों” के पुनरुत्थान में पाकिस्तान सरकार द्वारा ₹100 करोड़ के आवंटन को आप राज्य-प्रायोजित आतंकवाद के किस रूप में देखते हैं? वैश्विक आतंकवाद-निरोधक प्रयासों पर इसके क्या निहितार्थ होंगे? विस्तार से चर्चा कीजिए।
2. चीन की गेझोउबा ग्रुप कंपनी की कथित संलिप्तता पाकिस्तान में आतंकी बुनियादी ढाँचे के पुनरुत्थान को किस प्रकार एक नया आयाम देती है? इस चीन-पाकिस्तान गठजोड़ का भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय भू-राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? विश्लेषण कीजिए।
3. पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों के फिर से सक्रिय होने के संदर्भ में, भारत के लिए प्रमुख सुरक्षा चुनौतियाँ क्या हैं? इन चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत को अपनी कूटनीतिक और सुरक्षा रणनीति में क्या बदलाव लाने चाहिए? मूल्यांकन कीजिए।
4. “जब तक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय आतंकवाद को ‘अच्छा’ और ‘बुरा’ के आधार पर बांटता रहेगा, तब तक यह चुनौती बनी रहेगी।” इस कथन के आलोक में, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता के कारणों का विश्लेषण कीजिए और इसके समाधान के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, चर्चा कीजिए।