मॉनसून का तांडव: 18 मौतें, बाढ़ और अलर्ट… भारत क्यों झेल रहा प्रकृति का कहर?
चर्चा में क्यों? (Why in News?)
भारत, एक ऐसा देश है जहाँ मॉनसून सिर्फ़ एक मौसमी घटना नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था की धड़कन और जनजीवन का आधार है। यह हर साल अरबों टन पानी लाता है, खेतों को सींचता है, नदियों को भरता है और जीवन का संचार करता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से, यही जीवनदाता मॉनसून, अपने रौद्र रूप से देश के विभिन्न हिस्सों में तबाही मचा रहा है। हाल ही में, उत्तर प्रदेश में मॉनसून के कहर से 18 लोगों की जान चली गई, राजस्थान के कई ज़िले भीषण बाढ़ की चपेट में आ गए, जबकि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया गया है। यह सिर्फ़ एक ख़बर नहीं, बल्कि एक चेतावनी है जो हमें भारत के बदलते मौसमी पैटर्न और इसके दूरगामी परिणामों पर विचार करने के लिए मजबूर करती है। यह लेख इसी तात्कालिक संकट का विश्लेषण करते हुए, मॉनसून की बदलती प्रकृति, आपदा प्रबंधन की चुनौतियों और आगे की राह पर गहन प्रकाश डालता है, जो UPSC उम्मीदवारों के लिए एक समग्र मार्गदर्शिका का काम करेगा।
मॉनसून: भारत का जीवनदाता और कभी-कभी विनाशक
भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसकी 60% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर करती है। ऐसे में, मॉनसून भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। जून से सितंबर तक चलने वाला दक्षिण-पश्चिम मॉनसून देश की वार्षिक वर्षा का लगभग 70% हिस्सा प्रदान करता है। यह ख़रीफ़ की फसलों के लिए जीवनरेखा है, भूजल स्तर को बढ़ाता है, और नदियों व जलाशयों को भरकर बिजली उत्पादन व पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
हालांकि, मॉनसून की प्रकृति अनियमित है। कभी यह प्रचुर मात्रा में वर्षा लाता है, तो कभी सूखे का कारण बनता है। और अब, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के साथ, मॉनसून की अनिश्चितता और चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि हुई है। अत्यधिक वर्षा, अचानक बाढ़, बादल फटना और भूस्खलन जैसी घटनाएँ अब सामान्य होती जा रही हैं, जो बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान करती हैं। वर्तमान में देश के विभिन्न हिस्सों में जो स्थिति देखी जा रही है, वह इसी बदलती और अनिश्चित मॉनसून की प्रकृति का प्रमाण है।
वर्तमान मॉनसून की भीषणता: एक विस्तृत विश्लेषण
हाल की घटनाओं ने भारत के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों पर मॉनसून के विविध और विनाशकारी प्रभावों को उजागर किया है:
उत्तर प्रदेश में त्रासदी और जीवन का नुकसान
उत्तर प्रदेश, जो आमतौर पर मॉनसून की अच्छी वर्षा से लाभान्वित होता है, इस बार अतिवृष्टि और संबंधित घटनाओं का शिकार हुआ है। 18 मौतों की ख़बरें इस बात का संकेत हैं कि किस प्रकार एक सामान्य मॉनसूनी घटना भी अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और अप्रस्तुतता के कारण घातक हो सकती है।
- मृत्यु के प्रमुख कारण:
- दीवारों का ढहना: लगातार बारिश से पुरानी और कमजोर संरचनाओं की नींव कमजोर पड़ जाती है, जिससे वे ढह जाती हैं। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में ऐसी घटनाएँ आम हैं।
- बिजली गिरना: मॉनसून के दौरान अक्सर गरज के साथ बिजली कड़कती है। खुले में काम करने वाले किसान, मजदूर या पेड़ों के नीचे आश्रय लेने वाले लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं।
- पानी में डूबना: अचानक आई बाढ़, जलभराव या खुले मैनहोल में गिरने से मौतें होती हैं।
- सर्पदंश: जलभराव के कारण साँप अपने प्राकृतिक आवास से बाहर निकलकर रिहायशी इलाकों में आ जाते हैं, जिससे सर्पदंश के मामले बढ़ जाते हैं।
- प्रभावित क्षेत्र: राज्य के पूर्वी और मध्य हिस्से, विशेषकर निचले इलाके, जलभराव और बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, जिससे कृषि भूमि और शहरी जीवन दोनों अस्त-व्यस्त हो गए हैं।
राजस्थान में बाढ़ का विकराल रूप
राजस्थान, एक शुष्क और अर्ध-शुष्क राज्य होने के बावजूद, हाल के वर्षों में मॉनसून के दौरान भीषण बाढ़ का सामना कर रहा है। यह एक विरोधाभासी स्थिति है जहाँ कुछ ही घंटों की भारी बारिश सामान्य जीवन को ठप कर देती है।
- बाढ़ के कारण:
- कम विकसित जल निकासी प्रणाली: राज्य के कई शहरों और कस्बों में पर्याप्त और नियोजित जल निकासी प्रणाली का अभाव है, खासकर पुराने शहरों और नए विकसित क्षेत्रों में।
- आकस्मिक वर्षा: मरुस्थलीय मिट्टी की जल सोखने की क्षमता कम होती है, और जब कम समय में बहुत अधिक वर्षा होती है, तो पानी का तेजी से बहाव बाढ़ का रूप ले लेता है।
- नदी प्रणालियों का अतिप्रवाह: लूनी और इसकी सहायक नदियाँ, साथ ही स्थानीय नालों में पानी का असामान्य रूप से बढ़ना।
- अर्बन फ्लडिंग (शहरी बाढ़): शहरों में कंक्रीट के विस्तार, अतिक्रमण और अपशिष्ट प्रबंधन की कमी से जल निकासी अवरुद्ध हो जाती है, जिससे सड़कें और रिहायशी इलाके तालाब बन जाते हैं।
- प्रभावित ज़िले: जोधपुर, पाली, सिरोही, जालोर जैसे ज़िले विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं, जहाँ कई वाहन बह गए और निचले इलाकों में घरों में पानी भर गया।
हिमालयी राज्यों (उत्तराखंड, हिमाचल) पर दोहरी मार
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य मॉनसून के दौरान सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं। यहाँ भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएँ जान-माल के भारी नुकसान का कारण बनती हैं।
- भूस्खलन (Landslides):
- अत्यधिक वर्षा: लगातार और भारी बारिश पहाड़ों की मिट्टी को संतृप्त कर देती है, जिससे मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है और बड़े पैमाने पर भूस्खलन होते हैं।
- अस्थिर भूविज्ञान: युवा और अस्थिर हिमालयी पर्वत श्रृंखलाएँ प्राकृतिक रूप से भूस्खलन के प्रति संवेदनशील हैं।
- अनियोजित निर्माण: सड़क निर्माण, भवन निर्माण और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए पहाड़ों की कटाई से ढलानों को अस्थिर किया जा रहा है।
- बादल फटना (Cloudburst):
- एक छोटी सी जगह पर कम समय में अत्यधिक भारी वर्षा (100 मिमी प्रति घंटा से अधिक) को बादल फटना कहते हैं। इससे अचानक बाढ़ और मलबे का प्रवाह होता है।
- कारण: गर्म, आर्द्र हवा का तेजी से ऊपर उठना और संघनन।
- नदियों में उफान: अलकनंदा, भागीरथी, गंगा, यमुना जैसी प्रमुख नदियों और उनकी सहायक नदियों में जलस्तर बढ़ने से निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
- पर्यटन पर प्रभाव: इन राज्यों में पर्यटन अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख आधार है। आपदाएँ सड़कों को अवरुद्ध करती हैं, जिससे पर्यटकों की आवाजाही रुक जाती है और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
पूर्वी और दक्षिणी भारत (बंगाल, केरल) में भारी बारिश का अलर्ट
बंगाल और केरल, दोनों ही तटीय राज्य हैं और मॉनसून की अग्रिम पंक्ति में स्थित हैं। यहाँ भारी बारिश की चेतावनी और उसके संभावित परिणाम चिंता का विषय हैं।
- पश्चिम बंगाल: गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा क्षेत्र और सुंदरबन जैसे निचले तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा से बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। शहरी क्षेत्रों में जलभराव और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि भूमि का डूबना सामान्य है।
- केरल: 2018 की विनाशकारी बाढ़ के बाद से केरल मॉनसून की अतिसंवेदनशीलता के लिए जाना जाता है। पश्चिमी घाट की ढलानों पर भारी वर्षा से भूस्खलन और अचानक बाढ़ का खतरा रहता है। तटीय कटाव और शहरी जलभराव भी प्रमुख समस्याएँ हैं।
इस तीव्रता के कारण: जलवायु परिवर्तन की भूमिका
वर्तमान मॉनसून की यह असाधारण तीव्रता केवल एक मौसमी घटना नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई गहरे और जटिल कारण हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन सबसे प्रमुख है।
- जलवायु परिवर्तन (Climate Change):
- बढ़ता वैश्विक तापमान: पृथ्वी का तापमान बढ़ने से महासागरों का तापमान भी बढ़ता है। गर्म महासागर अधिक नमी धारण करते हैं, जिससे वर्षा की तीव्रता बढ़ जाती है।
- वर्षा पैटर्न में बदलाव: अब कम दिनों में अधिक बारिश हो रही है, यानी वर्षा के दिनों की संख्या घट रही है लेकिन जब बारिश होती है तो वह अत्यधिक तीव्र होती है। यह ‘एक बार में सब कुछ’ की तरह है, जिससे अचानक बाढ़ का खतरा बढ़ता है।
- चरम मौसमी घटनाएँ: ग्लोबल वार्मिंग के कारण हीटवेव, सूखे, और चरम वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता दोनों में वृद्धि हुई है।
- पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव (Influence of Western Disturbances): कभी-कभी पश्चिमी विक्षोभ (भूमध्य सागर से आने वाली extratropical तूफान प्रणाली) मॉनसून धाराओं के साथ परस्पर क्रिया करते हैं, खासकर उत्तर-पश्चिमी भारत और हिमालयी क्षेत्रों में, जिससे असामान्य रूप से भारी वर्षा होती है।
- शहरीकरण और अनियोजित विकास (Urbanization and Unplanned Development):
- कंक्रीट के जंगल: शहरों में पक्की सड़कों, इमारतों और अन्य कंक्रीट संरचनाओं का फैलाव भूजल के पुनर्भरण को रोकता है और पानी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करता है।
- जल निकासी प्रणाली पर दबाव: पुरानी और अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियाँ बढ़ती शहरी आबादी और तीव्र वर्षा का सामना करने में असमर्थ हैं। नालियों पर अतिक्रमण, कचरा जमाव और अतिक्रमण से जल निकासी की क्षमता और कम हो जाती है।
- आर्द्रभूमि और झीलों का विनाश: प्राकृतिक जल निकासी तंत्र जैसे आर्द्रभूमि और झीलों पर अतिक्रमण कर निर्माण करने से पानी को प्राकृतिक रूप से समाहित करने की क्षमता खत्म हो जाती है, जिससे शहरी बाढ़ आती है।
- वनों की कटाई और पर्यावरण क्षरण (Deforestation and Environmental Degradation):
- वन मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और पानी को धीरे-धीरे रिसने देते हैं। वनों की कटाई से मिट्टी की पकड़ कमजोर होती है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ता है और बाढ़ का पानी तेजी से नीचे आता है।
- पहाड़ी क्षेत्रों में ढलानों पर अस्थिर कृषि पद्धतियाँ और अंधाधुंध खनन भी इस समस्या को गंभीर बनाते हैं।
आपदा प्रबंधन: भारत की क्षमता और चुनौतियाँ
भारत ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों में महत्वपूर्ण प्रगति की है, खासकर 2004 की सुनामी के बाद। हालांकि, वर्तमान मॉनसून आपदाएँ यह दर्शाती हैं कि अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
संस्थागत ढाँचा (Institutional Framework):
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में, यह नीति-निर्माण, योजनाओं के अनुमोदन और आपदा प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश जारी करने वाला शीर्ष निकाय है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF): यह एक विशेष बल है जो आपदाओं के दौरान खोज, बचाव और राहत कार्यों को अंजाम देता है। इनकी त्वरित प्रतिक्रिया और पेशेवर दृष्टिकोण सराहनीय है।
- राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF): NDRF की तर्ज पर राज्यों में गठित, जो स्थानीय स्तर पर प्रारंभिक प्रतिक्रिया देते हैं।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD): मौसम पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी जारी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- केंद्रीय जल आयोग (CWC): बाढ़ पूर्वानुमान और जल स्तर निगरानी में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems):
भारत ने उपग्रह संचार, रडार और स्वचालित मौसम स्टेशनों के उपयोग के माध्यम से प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में सुधार किया है। मोबाइल ऐप और एसएमएस अलर्ट के माध्यम से भी लोगों तक जानकारी पहुँचायी जाती है।
समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन (Community-Based Disaster Management):
स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षण देना और उन्हें आपदा के लिए तैयार करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे अक्सर पहले उत्तरदाता होते हैं। आपदा मित्र योजना जैसी पहलें इसी दिशा में कदम हैं।
चुनौतियाँ (Challenges):
इन प्रगति के बावजूद, कई चुनौतियाँ भारत की आपदा प्रबंधन क्षमताओं को बाधित करती हैं:
- पूर्वानुमान की अनिश्चितता: बादल फटना और अचानक बाढ़ जैसी चरम घटनाओं का सटीक स्थान और समय-आधारित पूर्वानुमान अभी भी एक चुनौती है।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: विशेषकर ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में, जल निकासी, तटबंध, और बाढ़ प्रतिरोधी संरचनाओं का अभाव।
- अनियोजित शहरीकरण: शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक जल निकासी चैनलों पर अतिक्रमण और ठोस अपशिष्ट का अनुचित निपटान बाढ़ को बढ़ाता है।
- पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता की कमी: विकास परियोजनाओं में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की अनदेखी या कमजोर कार्यान्वयन, खासकर हिमालयी जैसे संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्रों में।
- अंतर-एजेंसी समन्वय: विभिन्न सरकारी विभागों (मौसम विभाग, जल संसाधन, राजस्व, पुलिस, सेना) और गैर-सरकारी संगठनों के बीच बेहतर समन्वय की कमी।
- पुनर्वास और राहत कार्य: आपदा के बाद प्रभावित आबादी के लिए त्वरित और प्रभावी पुनर्वास, मुआवजा और दीर्घकालिक आजीविका सहायता सुनिश्चित करना।
- क्षमता निर्माण का अभाव: स्थानीय स्तर पर आपदा प्रतिक्रिया टीमों और स्वयंसेवकों के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण और उपकरण की कमी।
- पुराने नियम और कानून: कई आपदा प्रबंधन नियम और कानून पुराने हैं और बदलती मौसमी घटनाओं के अनुरूप नहीं हैं।
“आपदा प्रबंधन केवल प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह रोकथाम, तैयारी, शमन और पुनर्निर्माण का एक सतत चक्र है।”
मॉनसून की मार का दीर्घकालिक प्रभाव
मॉनसून की चरम घटनाओं के प्रभाव केवल तात्कालिक जान-माल के नुकसान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनके दूरगामी सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिणाम होते हैं।
- अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- कृषि: बाढ़ और जलभराव से खड़ी फसलें नष्ट हो जाती हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है और खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
- बुनियादी ढाँचा: सड़कें, पुल, रेलवे ट्रैक, बिजली के खंभे और संचार नेटवर्क क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे मरम्मत और पुनर्निर्माण में भारी लागत आती है।
- पर्यटन: हिमाचल और उत्तराखंड जैसे राज्यों में पर्यटन पर आधारित अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका लगता है जब सड़कें अवरुद्ध हो जाती हैं और पर्यटक सुरक्षा कारणों से यात्रा रद्द कर देते हैं।
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs): स्थानीय व्यवसायों को भी नुकसान होता है, जिससे रोज़गार और आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- बाढ़ के बाद जलजनित बीमारियाँ (जैसे हैजा, टाइफाइड, डायरिया) और वेक्टर-जनित रोग (जैसे डेंगू, मलेरिया) फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
- स्वच्छ पेयजल की कमी और स्वच्छता सुविधाओं का अभाव स्थिति को और बिगाड़ता है।
- सामाजिक प्रभाव:
- विस्थापन: लोग अपने घरों से विस्थापित होते हैं, जिससे शरणार्थी शिविरों में रहने और सामान्य जीवन की हानि होती है।
- आजीविका का नुकसान: कृषि, मछली पकड़ने और छोटे व्यवसायों पर निर्भर लोगों की आजीविका छीन जाती है।
- शिक्षा: स्कूलों के क्षतिग्रस्त होने या राहत शिविरों के रूप में उपयोग होने से बच्चों की शिक्षा बाधित होती है।
- मनोवैज्ञानिक आघात: आपदा के शिकार लोगों में चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- पर्यावरण पर प्रभाव:
- मिट्टी का कटाव: भारी वर्षा से मिट्टी का कटाव बढ़ता है, जिससे कृषि भूमि की उर्वरता कम होती है और रेगिस्तानीकरण को बढ़ावा मिलता है।
- जैव विविधता का नुकसान: प्राकृतिक आवासों का विनाश और नदियों के मार्ग बदलने से जलीय और स्थलीय जैव विविधता को नुकसान पहुँचता है।
- प्रदूषण: बाढ़ का पानी अपने साथ औद्योगिक और घरेलू कचरा बहाकर ले जाता है, जिससे नदियाँ और जल स्रोत प्रदूषित होते हैं।
आगे की राह: एक बहुआयामी दृष्टिकोण
मॉनसून की चुनौतियों का सामना करने के लिए एक समग्र, बहु-क्षेत्रीय और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें वैज्ञानिक अनुसंधान, बुनियादी ढाँचे का विकास, नीतिगत सुधार और समुदाय-आधारित पहलें शामिल हों।
1. वैज्ञानिक और तकनीकी उपाय:
- मौसम पूर्वानुमान में सुधार:
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) का उपयोग करके अधिक सटीक और स्थानीयकृत मौसम पूर्वानुमान मॉडल विकसित करना।
- डॉपलर रडार नेटवर्क का विस्तार करना।
- रिमोट सेंसिंग और GIS का उपयोग: बाढ़ के मैदानों की मैपिंग, भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों की पहचान, और वास्तविक समय में आपदा की निगरानी के लिए उपग्रह इमेजरी और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का उपयोग।
- बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली (Flood Early Warning Systems): नदी घाटियों में स्वचालित जल स्तर सेंसर और प्रवाह मापक स्थापित करना, और निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को समय पर चेतावनी देने के लिए संचार चैनलों को मजबूत करना।
- “नाउकास्टिंग” पर ध्यान: अगले 3-6 घंटों के लिए अत्यधिक सटीक और तात्कालिक पूर्वानुमान पर जोर, विशेषकर बादल फटने और अचानक बाढ़ के लिए।
2. बुनियादी ढाँचा विकास और प्रबंधन:
- स्मार्ट सिटी प्लानिंग और बेहतर जल निकासी:
- शहरों में एकीकृत जल निकासी मास्टर प्लान विकसित करना और उनका सख्ती से पालन करना।
- पुराने सीवेज और स्टॉर्मवॉटर ड्रेनेज सिस्टम का उन्नयन और उनका नियमित रखरखाव।
- ‘पर्मेएबल पेवमेंट’ (पानी सोखने वाली सड़कें) और ‘ग्रीन रूफ’ (हरी छत) जैसी अभिनव तकनीकों का उपयोग।
- बाढ़ प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचा: पुलों, सड़कों और इमारतों का निर्माण इस तरह से करना जो बाढ़ और भूस्खलन के प्रति अधिक प्रतिरोधी हों।
- बांध और जलाशय प्रबंधन: जलाशयों से पानी छोड़ने के लिए वैज्ञानिक प्रोटोकॉल विकसित करना ताकि बाढ़ को रोका जा सके और सूखे के समय पानी का इष्टतम उपयोग हो सके।
- “रिस्पॉन्सिबल टूरिज्म इंफ्रास्ट्रक्चर”: पहाड़ी क्षेत्रों में विकास करते समय पर्यावरण की वहन क्षमता और भूगर्भीय संवेदनशीलता का पूरा ध्यान रखना।
3. पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिक बहाली:
- वृक्षारोपण और वनीकरण: विशेषकर पहाड़ी और नदी के किनारे वाले क्षेत्रों में सघन वृक्षारोपण करना ताकि मिट्टी का कटाव रोका जा सके और पानी का प्राकृतिक अवशोषण बढ़ाया जा सके।
- आर्द्रभूमि संरक्षण (Wetland Conservation): झीलों, तालाबों और आर्द्रभूमि को प्राकृतिक स्पंज के रूप में संरक्षित करना, जो बाढ़ के पानी को अवशोषित करने में मदद करते हैं।
- नदी कायाकल्प (River Rejuvenation): नदियों और उनकी बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण हटाना, उन्हें प्राकृतिक रूप से बहने देना और उनके पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना।
- मैंग्रोव का संरक्षण: तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव वन तूफानों और सुनामी से रक्षा कवच प्रदान करते हैं।
4. नीतिगत और संस्थागत सुधार:
- आपदा प्रबंधन योजनाओं का नियमित अद्यतन: राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर की आपदा प्रबंधन योजनाओं को नवीनतम वैज्ञानिक डेटा और बदलते जोखिम परिदृश्य के अनुसार नियमित रूप से अद्यतन करना।
- अंतर-राज्यीय सहयोग: साझा नदी घाटियों वाले राज्यों के बीच बेहतर समन्वय और डेटा साझाकरण तंत्र स्थापित करना।
- जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन रणनीतियाँ: भारत की राष्ट्रीय और राज्य नीतियों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को एकीकृत करना और उत्सर्जन में कमी के साथ-साथ अनुकूलन उपायों पर ध्यान केंद्रित करना।
- सार्वजनिक जागरूकता और क्षमता निर्माण: आपदा जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, और समुदायों को प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का जवाब देने और आपदा की स्थिति में खुद को बचाने के लिए प्रशिक्षित करना।
- फसल विविधीकरण और जलवायु-स्मार्ट कृषि: किसानों को ऐसी फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित करना जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक प्रतिरोधी हों, और जल-कुशल कृषि पद्धतियों को अपनाना।
“जल ही जीवन है, लेकिन अनियंत्रित जल विनाश भी ला सकता है। हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर ही आगे बढ़ना होगा।”
निष्कर्ष
मॉनसून भारत के लिए वरदान है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास ने इसे कभी-कभी अभिशाप में बदल दिया है। उत्तर प्रदेश में जानें गँवाना, राजस्थान में बाढ़ का प्रकोप, और हिमालयी व तटीय राज्यों में जारी अलर्ट इस बात की पुष्टिक करते हैं कि हमें अपनी रणनीति को बदलने की तत्काल आवश्यकता है। हमें सिर्फ़ आपदा के बाद प्रतिक्रिया देने के बजाय, सक्रिय रूप से तैयारी करने, जोखिमों को कम करने और लचीला बुनियादी ढाँचा बनाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। यह एक एकीकृत दृष्टिकोण की माँग करता है जहाँ विज्ञान, इंजीनियरिंग, पर्यावरण संरक्षण, नीति-निर्माण और जनभागीदारी मिलकर काम करें। भारत को ‘आपदा प्रतिक्रिया’ से ‘आपदा तैयारी और लचीलापन’ की ओर बढ़ना होगा, ताकि मॉनसून की भीषणता का सामना करते हुए भी हम उसके जीवनदायी स्वरूप का लाभ उठा सकें और अपने देश को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार कर सकें। यह न केवल हमारी अर्थव्यवस्था के लिए, बल्कि हमारे लोगों के जीवन और सुरक्षा के लिए भी अनिवार्य है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
(निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न में दिए गए कथनों पर विचार करें और सही विकल्प का चयन करें)
प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन से कारक भारत में मॉनसून की तीव्रता और अनिश्चितता को बढ़ाने में योगदान करते हैं?
- महासागरीय तापमान में वृद्धि
- शहरीकरण और प्राकृतिक जल निकासी का अवरोधन
- पश्चिमी विक्षोभ का मॉनसून से संपर्क
- वनों की कटाई और मिट्टी का क्षरण
उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) केवल तीन
(d) सभी चार
उत्तर: (d)
व्याख्या: उपर्युक्त सभी कारक भारत में मॉनसून की तीव्रता और अनिश्चितता को बढ़ाने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योगदान करते हैं। महासागरीय तापमान में वृद्धि से अधिक नमी बनती है, जिससे भारी वर्षा होती है। शहरीकरण और अनियोजित विकास जल निकासी को बाधित करते हैं। पश्चिमी विक्षोभ मॉनसून के साथ मिलकर चरम मौसमी घटनाएँ उत्पन्न कर सकते हैं। वनों की कटाई से मिट्टी का कटाव बढ़ता है और पानी का प्राकृतिक अवशोषण कम होता है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ता है।
प्रश्न 2: भारत में बादल फटने (Cloudburst) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह एक छोटी भौगोलिक क्षेत्र में बहुत कम समय में अत्यधिक भारी वर्षा की घटना है।
- यह मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से जुड़ा होता है।
- पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने से अचानक बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 1 सही है। बादल फटना एक छोटी सी जगह पर कम समय में 100 मिमी प्रति घंटा या उससे अधिक वर्षा की घटना है। कथन 3 भी सही है क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में तीव्र ढलानों के कारण बादल फटने से अचानक बाढ़ और भूस्खलन का खतरा काफी बढ़ जाता है। कथन 2 गलत है। बादल फटना मुख्य रूप से तीव्र संवहन (convection) से जुड़ा होता है, न कि सीधे उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से, हालांकि कुछ मामलों में ये चक्रवातों के परिधीय प्रभाव से भी हो सकते हैं। आमतौर पर, यह पहाड़ी क्षेत्रों में होता है जहाँ हवा के तेजी से ऊपर उठने और संघनन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ होती हैं।
प्रश्न 3: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष वैधानिक निकाय है।
- इसकी अध्यक्षता केंद्रीय गृह मंत्री करते हैं।
- इसका मुख्य कार्य आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निर्देश तैयार करना है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 1 और 3 सही हैं। NDMA आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है जो आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निर्देश तैयार करता है। कथन 2 गलत है। NDMA की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं, केंद्रीय गृह मंत्री नहीं।
प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा/से उपाय शहरी बाढ़ (Urban Flooding) को कम करने में सहायक हो सकता/सकते है/हैं?
- कंक्रीट के विस्तार को बढ़ावा देना।
- प्राकृतिक जल निकासी चैनलों का संरक्षण और बहाली।
- पर्मेएबल पेवमेंट (पारगम्य फुटपाथ) का उपयोग।
- अतिक्रमण हटाना और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार।
उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) केवल तीन
(d) सभी चार
उत्तर: (c)
व्याख्या: कथन 2, 3 और 4 शहरी बाढ़ को कम करने में सहायक हैं। प्राकृतिक जल निकासी चैनलों का संरक्षण, पारगम्य फुटपाथ का उपयोग (जो पानी को जमीन में रिसने देते हैं), और अतिक्रमण हटाकर अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार जल निकासी क्षमता को बढ़ाता है। कथन 1 (कंक्रीट के विस्तार को बढ़ावा देना) गलत है, क्योंकि कंक्रीट सतहें पानी के अवशोषण को रोकती हैं और शहरी बाढ़ को बढ़ाती हैं। इसलिए, कुल तीन कथन सही हैं।
प्रश्न 5: भारत में मॉनसून से संबंधित भूस्खलन (Landslides) के कारणों में शामिल हो सकते हैं:
- भारी और निरंतर वर्षा।
- अनियोजित सड़क निर्माण और ढलानों की कटाई।
- वनों की कटाई और अस्थिर कृषि पद्धतियाँ।
- टेक्टोनिक रूप से सक्रिय और अस्थिर हिमालयी भूविज्ञान।
उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) केवल तीन
(d) सभी चार
उत्तर: (d)
व्याख्या: सभी चार कथन भूस्खलन के प्रमुख कारण हैं। भारी वर्षा मिट्टी को संतृप्त कर उसे अस्थिर कर देती है। अनियोजित निर्माण और वनों की कटाई मिट्टी की संरचना को कमजोर करती है। हिमालय स्वयं एक युवा और टेक्टोनिक रूप से सक्रिय पर्वत श्रृंखला है, जो इसे प्राकृतिक रूप से भूस्खलन के प्रति संवेदनशील बनाती है।
प्रश्न 6: ‘आपदा मित्र’ योजना निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?
(a) आपदा प्रभावित क्षेत्रों में सरकारी सहायता प्रदान करना।
(b) स्थानीय समुदायों को आपदा प्रतिक्रिया के लिए प्रशिक्षित करना।
(c) आपदा राहत कोष के लिए धन जुटाना।
(d) आपदा के बाद पुनर्निर्माण परियोजनाओं को लागू करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘आपदा मित्र’ योजना का उद्देश्य स्थानीय समुदायों से स्वयंसेवकों की पहचान करना और उन्हें आपदा के दौरान जीवन रक्षक कौशल और प्राथमिक उपचार के लिए प्रशिक्षित करना है, ताकि वे पहले उत्तरदाता बन सकें और पेशेवर बचाव टीमों के पहुंचने से पहले सहायता प्रदान कर सकें।
प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सा संगठन भारत में बाढ़ पूर्वानुमान और जल स्तर निगरानी के लिए जिम्मेदार है?
(a) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)
(b) भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
(c) केंद्रीय जल आयोग (CWC)
(d) राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA)
उत्तर: (c)
व्याख्या: केंद्रीय जल आयोग (CWC) देश में बाढ़ पूर्वानुमान और जल स्तर की निगरानी के लिए प्रमुख तकनीकी संगठन है। IMD मौसम पूर्वानुमान जारी करता है, लेकिन बाढ़ के जल स्तर और प्रवाह का पूर्वानुमान CWC द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 8: जलवायु परिवर्तन के कारण मॉनसून वर्षा पैटर्न में क्या बदलाव देखे जा रहे हैं?
- वर्षा के कुल दिनों की संख्या में वृद्धि।
- कम समय में तीव्र और अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि।
- वर्षा में क्षेत्रीय असमानता में कमी।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 2 सही है। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में कम समय में तीव्र और अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है। कथन 1 गलत है, क्योंकि वर्षा के कुल दिनों की संख्या में कमी आई है। कथन 3 भी गलत है, क्योंकि वर्षा में क्षेत्रीय असमानताएँ (कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक बारिश, कुछ में सूखा) बढ़ रही हैं।
प्रश्न 9: भारत में बाढ़ और भूस्खलन के बाद जलजनित बीमारियों के फैलने के मुख्य कारण क्या हो सकते हैं?
- स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति में बाधा।
- शौचालय और स्वच्छता सुविधाओं का विनाश।
- पानी के स्रोतों का दूषित होना।
- पानी के ठहराव से मच्छरों का प्रजनन।
उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) केवल तीन
(d) सभी चार
उत्तर: (d)
व्याख्या: सभी चार कथन जलजनित और वेक्टर-जनित बीमारियों के फैलने के प्रमुख कारण हैं। बाढ़ से पेयजल आपूर्ति बाधित होती है और पानी के स्रोत दूषित होते हैं। स्वच्छता सुविधाओं के नष्ट होने से खुले में शौच और अपशिष्ट का फैलाव होता है। पानी के ठहराव से मच्छरों के प्रजनन के लिए अनुकूल वातावरण बनता है, जिससे डेंगू, मलेरिया जैसे रोग फैलते हैं।
प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सा उपाय पारिस्थितिक बहाली और आपदा लचीलापन दोनों में योगदान कर सकता है?
- आर्द्रभूमि (Wetland) संरक्षण।
- मैंग्रोव वनीकरण।
- नदी के बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण हटाना।
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: सभी तीन उपाय पारिस्थितिक बहाली और आपदा लचीलापन दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आर्द्रभूमि प्राकृतिक स्पंज के रूप में काम करती है और बाढ़ के पानी को अवशोषित करती है। मैंग्रोव तटीय क्षेत्रों को तूफानों और सुनामी से बचाते हैं। नदी के बाढ़ के मैदानों को अतिक्रमण मुक्त करने से नदी को प्राकृतिक रूप से फैलने की जगह मिलती है, जिससे बाढ़ का खतरा कम होता है और नदी पारिस्थितिकी तंत्र बहाल होता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-400 शब्दों में दें)
प्रश्न 1: “भारत में मॉनसून अब सिर्फ़ जीवनदाता ही नहीं, बल्कि एक गंभीर आपदा भी बन गया है।” इस कथन के आलोक में, भारत में मॉनसून की बदलती प्रकृति के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करें और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर प्रकाश डालें।
प्रश्न 2: शहरी बाढ़ भारत के कई शहरों के लिए एक आवर्ती समस्या बन गई है। इस समस्या के पीछे के कारणों की जाँच करें और इसके प्रबंधन के लिए आवश्यक बहुआयामी दृष्टिकोणों पर चर्चा करें, जिसमें बुनियादी ढाँचागत और नीतिगत उपाय शामिल हों।
प्रश्न 3: भारत की वर्तमान आपदा प्रबंधन रणनीतियाँ मॉनसून-जनित आपदाओं से निपटने में कहाँ तक सफल रही हैं? उन प्रमुख चुनौतियों की पहचान करें जिनका सामना भारत अभी भी कर रहा है और इन चुनौतियों से निपटने के लिए आगे की राह सुझाएँ।
प्रश्न 4: हिमालयी राज्यों में मॉनसून के दौरान भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाएँ तेजी से बढ़ रही हैं। इन घटनाओं के पीछे के कारणों का विश्लेषण करें और इस क्षेत्र के लिए एक स्थायी विकास मॉडल का प्रस्ताव करें जो आपदा जोखिमों को कम कर सके।