ब्रह्मपुत्र पर चीन का महा-बांध: क्या ‘जल-नियंत्रण’ से भारत के लिए खतरा बढ़ेगा?
चर्चा में क्यों? (Why in News?)
हाल ही में, चीन द्वारा तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी (जिसे चीन में यारलुंग त्सांगपो के नाम से जाना जाता है) पर एक विशाल जलविद्युत बांध परियोजना शुरू करने की खबरें सामने आई हैं। यह परियोजना, विशेष रूप से यारलुंग त्सांगपो के ‘ग्रेट बेंड’ (महान मोड़) क्षेत्र में, चीन की जल-विद्युत महत्वाकांक्षाओं का प्रतीक है और भारत तथा बांग्लादेश जैसे निचले तटवर्ती देशों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई है। इस परियोजना को चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-2025) और 2035 के दीर्घकालिक लक्ष्यों का हिस्सा बताया जा रहा है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा सुरक्षा और जल संसाधन प्रबंधन को मजबूत करना है।
ब्रह्मपुत्र नदी: एक जीवनधारा और साझा विरासत
ब्रह्मपुत्र, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘ब्रह्मा का पुत्र’ है, केवल एक नदी नहीं, बल्कि लाखों लोगों के लिए जीवनरेखा है। यह एशिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है, जिसकी कुल लंबाई लगभग 2,900 किलोमीटर है। यह तीन देशों – चीन (तिब्बत), भारत और बांग्लादेश – से होकर गुजरती है, और इन क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी और संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
नदी का सफर: उद्गम से संगम तक
- तिब्बत में उद्गम (यारलुंग त्सांगपो): ब्रह्मपुत्र का उद्गम तिब्बत के कैलाश पर्वत श्रेणी में अंग्सी ग्लेशियर से होता है, जहाँ इसे यारलुंग त्सांगपो (Yarlung Tsangpo) के नाम से जाना जाता है। यह तिब्बत के पठार में लगभग 1600 किलोमीटर तक पूर्व दिशा में बहती है, एक विशाल और सुदूर क्षेत्र को पार करती है। इसी क्षेत्र में, नदी नामचा बरवा पर्वत के आसपास एक ‘यू’ आकार का गहरा मोड़ लेती है, जिसे ‘ग्रेट बेंड’ कहा जाता है, और यहीं से यह भारत में प्रवेश करती है।
- भारत में प्रवेश (सियांग, ब्रह्मपुत्र): अरुणाचल प्रदेश में यह ‘सियांग’ के नाम से प्रवेश करती है। आगे चलकर दिबांग और लोहित नदियों से मिलने के बाद, यह ‘ब्रह्मपुत्र’ के नाम से जानी जाती है। असम के मैदानी इलाकों में यह एक चौड़ी और शक्तिशाली नदी बन जाती है, जो अपने साथ बड़ी मात्रा में गाद (sediment) और पोषक तत्व लाती है, जिससे यह क्षेत्र कृषि के लिए अत्यधिक उपजाऊ हो जाता है। यह नदी असम की ‘जीवनरेखा’ कहलाती है, जहाँ यह कई बड़े द्वीपों का निर्माण करती है, जिनमें दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप, माजुली भी शामिल है।
- बांग्लादेश में प्रवेश (जमुना): असम से निकलने के बाद, ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में प्रवेश करती है, जहाँ इसे ‘जमुना’ के नाम से जाना जाता है। बांग्लादेश में यह पद्मा (गंगा की मुख्य धारा) से मिलती है, और अंततः मेघना नदी में मिलकर बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है।
ब्रह्मपुत्र का महत्व: क्यों यह इतनी खास है?
ब्रह्मपुत्र सिर्फ पानी का स्रोत नहीं है, बल्कि एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है:
- कृषि और आजीविका: इसके बेसिन में लाखों लोग कृषि, मत्स्य पालन और संबंधित गतिविधियों पर निर्भर करते हैं। इसके पानी से धान, चाय और अन्य फसलों की सिंचाई होती है।
- जैव विविधता: यह नदी कई अद्वितीय प्रजातियों का घर है, जिनमें दुर्लभ मीठे पानी की डॉल्फ़िन, विभिन्न प्रकार की मछलियाँ और प्रवासी पक्षी शामिल हैं। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान जैसे महत्वपूर्ण वन्यजीव अभयारण्य इसके किनारे पर स्थित हैं, जो इसके बाढ़ के मैदानों पर निर्भर करते हैं।
- संस्कृति और व्यापार: यह नदी सदियों से व्यापार मार्गों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का माध्यम रही है। इसके किनारे कई प्राचीन सभ्यताएँ फली-फूली हैं।
- जलविद्युत क्षमता: ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों में विशाल जलविद्युत क्षमता है, जिसे भारत और चीन दोनों ही दोहन करना चाहते हैं।
यह नदी एक साझा प्राकृतिक संसाधन है, जिसका प्रबंधन सभी तटवर्ती देशों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है। चीन की बांध परियोजनाएँ इस संवेदनशील संतुलन को बाधित करने की क्षमता रखती हैं।
चीन की जल-विद्युत महत्वाकांक्षाएँ: यारलुंग त्सांगपो पर क्यों?
चीन विश्व का सबसे बड़ा जलविद्युत उत्पादक है। इसकी ऊर्जा मांग तेजी से बढ़ रही है, और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बदलाव की वैश्विक प्रतिबद्धता के बीच, जलविद्युत चीन के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प है।
चीन के बांध बनाने के पीछे के कारण:
- ऊर्जा सुरक्षा: चीन की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए विशाल ऊर्जा की आवश्यकता है। कोयले पर निर्भरता कम करने और कार्बन उत्सर्जन घटाने के लक्ष्य के साथ, जलविद्युत एक स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत प्रदान करता है।
- क्षेत्रीय विकास: तिब्बत जैसे दूरस्थ और अपेक्षाकृत अविकसित क्षेत्रों में बड़े बांध परियोजनाओं से बुनियादी ढाँचा विकास, रोजगार सृजन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है।
- जल प्रबंधन: बांध बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और शहरी जल आपूर्ति के लिए जल भंडार के रूप में भी कार्य करते हैं। हालांकि, ऊपरी तटवर्ती क्षेत्रों में ये निचले तटवर्ती क्षेत्रों के लिए चुनौतियाँ पैदा कर सकते हैं।
- भू-राजनीतिक लाभ: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि नदियों के ऊपरी प्रवाह पर नियंत्रण चीन को निचले तटवर्ती देशों के खिलाफ एक रणनीतिक लाभ प्रदान करता है, जिससे वह ‘जल-कूटनीति’ या ‘जल-युद्ध’ की स्थिति में आ सकता है।
यारलुंग त्सांगपो पर विशेष ध्यान:
यारलुंग त्सांगपो, विशेष रूप से ग्रेट बेंड क्षेत्र में, दुनिया की सबसे बड़ी अनदोहित जलविद्युत क्षमता में से एक है। यहाँ नदी 2,000 मीटर से अधिक की ऊँचाई से नीचे गिरती है, जिससे विशाल जलविद्युत उत्पादन की संभावनाएँ बनती हैं। यह स्थान चीन के लिए ‘हाइड्रो-पॉवर जैकपॉट’ के समान है। चीन ने पहले ही यारलुंग त्सांगपो पर छोटे रन-ऑफ-द-रिवर बांधों का निर्माण किया है, लेकिन प्रस्तावित ‘ग्रेट बेंड’ परियोजना एक मेगा-डैम है जो थ्री गॉर्जेस डैम (Three Gorges Dam) से भी तीन गुना बड़ी क्षमता वाला बताया जा रहा है।
थ्री गॉर्जेस डैम (Three Gorges Dam): यह यांग्त्ज़ी नदी पर बना दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत बांध है। इसकी क्षमता 22,500 मेगावाट है। ब्रह्मपुत्र पर प्रस्तावित बांध इससे भी बड़ा हो सकता है, जिसकी क्षमता 60,000 मेगावाट तक अनुमानित है। यह न केवल चीन की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद करेगा, बल्कि इसे जल संसाधनों पर अधिक नियंत्रण भी देगा।
भारत के लिए संभावित प्रभाव: एक गंभीर चिंता का विषय
चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र पर बनाया जा रहा मेगा-बांध भारत के लिए बहुआयामी चुनौतियाँ पैदा करता है। ये चुनौतियाँ न केवल जल सुरक्षा से संबंधित हैं, बल्कि पर्यावरणीय, सामाजिक-आर्थिक और रणनीतिक पहलुओं को भी प्रभावित करती हैं।
1. जल प्रवाह पर सीधा प्रभाव:
- सूखे का खतरा (Lean Season Flow Reduction): मानसून के बाद और सर्दियों के महीनों में, जब नदी का जल स्तर स्वाभाविक रूप से कम होता है, बांध द्वारा पानी को रोकने से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों, विशेषकर असम और अरुणाचल प्रदेश में पानी की कमी हो सकती है। इससे कृषि, पीने के पानी की उपलब्धता और स्थानीय उद्योगों पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- बाढ़ का जोखिम (Increased Flood Risk): बांधों में पानी के बड़े पैमाने पर जमाव और फिर अचानक छोड़े जाने से निचले तटवर्ती क्षेत्रों में विनाशकारी बाढ़ आ सकती है। चीन द्वारा बिना पर्याप्त पूर्व सूचना के पानी छोड़ने से भारत को तैयारियों का समय नहीं मिलेगा, जिससे जान-माल का बड़ा नुकसान हो सकता है। यह विशेष रूप से असम के लिए एक गंभीर चिंता है, जो पहले से ही बाढ़ प्रवण क्षेत्र है।
- गाद का प्रवाह (Sediment Flow Alteration): ब्रह्मपुत्र एक गाद-ढोने वाली नदी है, जो अपने साथ उपजाऊ तलछट लाती है, जो इसके बाढ़ के मैदानों की कृषि उत्पादकता के लिए महत्वपूर्ण है। बांध नदी के प्राकृतिक गाद प्रवाह को बाधित करेंगे, जिससे निचले क्षेत्रों में मिट्टी की उर्वरता कम हो सकती है और डेल्टा क्षेत्रों में कटाव बढ़ सकता है।
- भूजल स्तर पर प्रभाव: नदी के प्रवाह में कमी से निचले बेसिन में भूजल स्तर प्रभावित हो सकता है, जिससे पीने के पानी और सिंचाई के लिए भूजल पर निर्भरता बढ़ेगी, जो दीर्घकालिक रूप से अस्थिर है।
2. पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय प्रभाव:
- जैव विविधता पर खतरा: नदी के प्रवाह, तापमान और गाद भार में परिवर्तन से जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (aquatic ecosystem) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। मीठे पानी की डॉल्फ़िन, विभिन्न प्रकार की मछलियाँ और अन्य जलीय जीवों की प्रजातियाँ खतरे में पड़ सकती हैं। बांध मछली के प्रवास मार्गों को बाधित करते हैं, जिससे मत्स्य पालन पर निर्भर समुदायों पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
- आर्द्रभूमि और राष्ट्रीय उद्यानों पर प्रभाव: ब्रह्मपुत्र के किनारे स्थित काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान जैसी महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि और वन्यजीव अभयारण्य नदी के प्राकृतिक बाढ़ चक्र और गाद जमाव पर निर्भर करते हैं। प्रवाह में बदलाव से इन नाजुक पारिस्थितिकी प्रणालियों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।
- नदी का कटाव: गाद के प्रवाह में कमी से नदी के निचले हिस्सों में कटाव बढ़ सकता है, जिससे नदी के किनारे बसे गाँव और खेत नदी में विलीन हो सकते हैं।
3. भूवैज्ञानिक और भूकंपीय जोखिम:
ब्रह्मपुत्र नदी का बेसिन, विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्र, भूवैज्ञानिक रूप से अस्थिर और अत्यधिक भूकंपीय क्षेत्र (seismically active zone) है।
- भूकंप का खतरा: बड़े बांधों का निर्माण, विशेषकर इस तरह के संवेदनशील क्षेत्र में, प्रेरित भूकंपीयता (induced seismicity) को जन्म दे सकता है, जहाँ बांध में जमा भारी मात्रा में पानी टेक्टोनिक प्लेटों पर दबाव डालता है, जिससे भूकंप का खतरा बढ़ जाता है। एक बड़े बांध के टूटने से असम और अरुणाचल प्रदेश में अभूतपूर्व तबाही मच सकती है।
- भूस्खलन का जोखिम: बांध निर्माण से जुड़ी गतिविधियाँ और जलाशयों में पानी का जमाव इस क्षेत्र में भूस्खलन के जोखिम को भी बढ़ा सकता है।
4. सामाजिक-आर्थिक और मानवीय प्रभाव:
- आजीविका पर संकट: लाखों किसान, मछुआरे और अन्य लोग जो सीधे नदी पर निर्भर हैं, उनकी आजीविका खतरे में पड़ जाएगी। जल की कमी या बाढ़ से कृषि उत्पादन में गिरावट आएगी, जिससे खाद्य सुरक्षा प्रभावित होगी और गरीबी बढ़ सकती है।
- विस्थापन: यदि भविष्य में भारत को भी जल भंडारण के लिए अपने स्वयं के बांध बनाने पड़ते हैं, तो इससे स्थानीय समुदायों का विस्थापन और पुनर्वास एक बड़ी चुनौती होगी।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य: पानी की गुणवत्ता और उपलब्धता में बदलाव से जल-जनित बीमारियों का प्रसार हो सकता है।
5. रणनीतिक और सुरक्षा चिंताएँ:
- ‘जल को हथियार के रूप में उपयोग’: चीन द्वारा ऊपरी तटवर्ती देश होने के नाते, उसे पानी को एक रणनीतिक उपकरण के रूप में उपयोग करने की क्षमता मिलती है। बिना पूर्व सूचना के पानी को रोकना या छोड़ना एक प्रकार का ‘जल युद्ध’ बन सकता है, जिससे मानवीय संकट और क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा हो सकती है।
- विश्वास घाटा और द्विपक्षीय संबंध: यह परियोजना पहले से ही तनावपूर्ण भारत-चीन संबंधों में और अधिक अविश्वास पैदा करती है। पारदर्शिता की कमी और एकतरफा निर्णय भविष्य में सहयोग को बाधित कर सकते हैं।
- डेटा साझाकरण: वर्तमान में, भारत और चीन के बीच ब्रह्मपुत्र के संबंध में जल विज्ञान संबंधी डेटा साझा करने का एक समझौता है, विशेषकर बाढ़ के मौसम में। हालांकि, बांधों के कारण डेटा की विश्वसनीयता और समयबद्धता एक मुद्दा बनी हुई है। भारत को डर है कि चीन महत्वपूर्ण डेटा को रोक सकता है।
कुल मिलाकर, चीन का यह मेगा-बांध भारत के लिए एक बहुआयामी चुनौती प्रस्तुत करता है, जिसके लिए एक व्यापक, बहुआयामी और दूरगामी प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।
भारत की प्रतिक्रिया और आगे की राह: चुनौतियों का सामना
भारत ने ब्रह्मपुत्र पर चीन की बांध परियोजनाओं पर लगातार अपनी चिंताएँ व्यक्त की हैं। भारत का रुख हमेशा से यही रहा है कि कोई भी परियोजना निचले तटवर्ती देशों के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाए।
भारत की वर्तमान प्रतिक्रिया और चुनौतियाँ:
- कूटनीतिक संलग्नता: भारत लगातार द्विपक्षीय वार्ता, विशेष रूप से जल मामलों पर विशेषज्ञ-स्तरीय तंत्र (Expert-Level Mechanism – ELM) के माध्यम से, चीन के साथ संवाद में रहा है। मुख्य जोर जल विज्ञान संबंधी डेटा साझा करने पर है, विशेषकर बाढ़ के मौसम में।
- पारदर्शिता की कमी: चीन अपनी बांध परियोजनाओं के बारे में बहुत कम जानकारी साझा करता है। यह पारदर्शिता की कमी भारत की चिंताओं को बढ़ाती है और प्रभावी योजना बनाने में बाधा डालती है।
- अधिकारों का अभाव: चूंकि कोई व्यापक जल-साझाकरण संधि नहीं है, इसलिए भारत के पास अपने अधिकारों का दावा करने के लिए कोई मजबूत कानूनी आधार नहीं है। चीन का तर्क है कि वे ‘रन-ऑफ-द-रिवर’ परियोजनाएँ हैं और वे प्रवाह को बाधित नहीं करते, लेकिन बड़े जलाशयों वाली मेगा-परियोजनाएँ इस दावे को कमजोर करती हैं।
- निचले तटवर्ती देशों के साथ समन्वय: भारत बांग्लादेश के साथ भी अपनी चिंताओं पर समन्वय करता है, क्योंकि बांग्लादेश भी एक निचले तटवर्ती देश के रूप में चीन की गतिविधियों से प्रभावित होगा।
आगे की राह (Way Forward):
इस जटिल चुनौती का सामना करने के लिए भारत को बहुआयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है:
1. सशक्त जल-कूटनीति (Robust Water Diplomacy):
- द्विपक्षीय वार्ता को मजबूत करना: चीन के साथ विशेषज्ञ-स्तरीय तंत्र को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाना। चीन को ब्रह्मपुत्र पर अपने बांधों के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों का आकलन करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को शामिल करने के लिए राजी करना।
- व्यापक जल-साझाकरण संधि: संयुक्त राष्ट्र के ट्रांसबाउंड्री जल पाठ्यक्रमों के गैर-नेविगेशनल उपयोग पर कन्वेंशन (UN Convention on the Law of the Non-Navigational Uses of International Watercourses) के सिद्धांतों के अनुरूप चीन के साथ एक व्यापक जल-साझाकरण संधि के लिए दबाव डालना। यह संधि सभी तटवर्ती देशों के अधिकारों और जिम्मेदारियों को परिभाषित करेगी।
- पारदर्शिता को बढ़ावा देना: चीन पर दबाव बनाना कि वह अपनी परियोजनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी, जैसे कि बांध का आकार, भंडारण क्षमता, जल निकासी कार्यक्रम और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन साझा करे।
2. क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहयोग (Regional and Multilateral Cooperation):
- बांग्लादेश के साथ घनिष्ठ सहयोग: बांग्लादेश के साथ मिलकर एक संयुक्त मोर्चा बनाना, क्योंकि दोनों ही निचले तटवर्ती देश हैं। ब्रह्मपुत्र पर एक साझा दृष्टिकोण विकसित करना और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इसे प्रस्तुत करना।
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों का उपयोग: संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों पर इस मुद्दे को उठाना और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करना।
- मेकांग नदी आयोग मॉडल का अध्ययन: मेकांग नदी आयोग (Mekong River Commission – MRC) जैसे सफल सीमा-पार नदी बेसिन प्रबंधन मॉडलों का अध्ययन करना। हालांकि, चीन मेकांग समझौते का पूर्ण सदस्य नहीं है, फिर भी इसमें सीख लेने योग्य पहलू हो सकते हैं।
3. आंतरिक जल प्रबंधन और अनुकूलन (Internal Water Management & Adaptation):
- तटीय राज्यों में बुनियादी ढाँचा विकास: असम और अरुणाचल प्रदेश में जल भंडारण क्षमता (रेन वाटर हार्वेस्टिंग, छोटे बांध) और बाढ़ प्रबंधन प्रणालियों को मजबूत करना, ताकि चीन के संभावित प्रभावों को कम किया जा सके।
- जल कुशल कृषि को बढ़ावा: ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर जैसी जल कुशल तकनीकों को अपनाने पर जोर देना।
- नदी बेसिन प्रबंधन: ब्रह्मपुत्र बोर्ड को मजबूत करना और नदी बेसिन के लिए एक एकीकृत मास्टर प्लान विकसित करना, जिसमें बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, जलविद्युत और अंतर्देशीय नेविगेशन शामिल हों।
- वैज्ञानिक अनुसंधान और निगरानी: नदी के प्रवाह, गाद, जल गुणवत्ता और जैव विविधता पर डेटा इकट्ठा करने के लिए उन्नत निगरानी प्रणालियाँ स्थापित करना। भूकंपीय जोखिमों का नियमित आकलन करना।
4. तकनीकी समाधान और वैकल्पिक स्रोत:
- वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत: जलविद्युत पर निर्भरता कम करने के लिए सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश बढ़ाना।
- जल पुनर्चक्रण और अपशिष्ट जल उपचार: शहरी और औद्योगिक उपयोग के लिए जल पुनर्चक्रण तकनीकों को बढ़ावा देना।
5. सार्वजनिक जागरूकता और समुदाय की भागीदारी:
- स्थानीय समुदायों और हितधारकों को इस मुद्दे के बारे में जागरूक करना और उन्हें समाधान प्रक्रिया में शामिल करना। उनकी पारंपरिक ज्ञान और अनुकूलन रणनीतियों का उपयोग करना।
निष्कर्ष (Conclusion)
ब्रह्मपुत्र पर चीन की मेगा-बांध परियोजना भारत के लिए एक जटिल और बहुआयामी चुनौती है। यह केवल एक इंजीनियरिंग उपलब्धि नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक और पर्यावरणीय मुद्दा भी है। एक साझा नदी के ऊपरी तटवर्ती देश के रूप में चीन की जिम्मेदारी है कि वह निचले तटवर्ती देशों, विशेषकर भारत और बांग्लादेश के वैध हितों का सम्मान करे।
भारत को कूटनीतिक रूप से सक्रिय, वैज्ञानिक रूप से जागरूक और आंतरिक रूप से मजबूत रहकर इस चुनौती का सामना करना होगा। एकतरफा घोषणाओं और गुप्त निर्माण के बजाय, साझा संसाधनों के प्रबंधन में पारदर्शिता, सहयोग और विश्वास-निर्माण की आवश्यकता है। आखिरकार, ब्रह्मपुत्र किसी एक देश की संपत्ति नहीं, बल्कि हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक लाखों लोगों की साझा विरासत और जीवनरेखा है। इसका स्थायी प्रबंधन ही क्षेत्र की शांति, स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित कर सकता है।