भारत में मानसून का विकराल रूप: क्यों बढ़ रही हैं मौतें और विनाशकारी बाढ़ की घटनाएँ?

भारत में मानसून का विकराल रूप: क्यों बढ़ रही हैं मौतें और विनाशकारी बाढ़ की घटनाएँ?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

मानसून, जो भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा माना जाता है, इस वर्ष अपने विकराल रूप के कारण सुर्खियों में है। उत्तर प्रदेश में भारी बारिश, बिजली गिरने और दीवार गिरने जैसी घटनाओं के चलते 18 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, शुष्क माने जाने वाले राजस्थान के कई इलाकों में मूसलाधार बारिश ने बाढ़ जैसी स्थिति पैदा कर दी है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन व बादल फटने की घटनाओं का खतरा बढ़ गया है, जबकि पश्चिम बंगाल और केरल जैसे तटीय राज्यों को भी भारी बारिश के लिए अलर्ट पर रखा गया है। यह घटनाक्रम न केवल मानसून की अप्रत्याशित प्रकृति को उजागर करता है, बल्कि भारत के सामने जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन से जुड़ी गंभीर चुनौतियों को भी रेखांकित करता है।

मानसून: भारत की जीवनरेखा और उसका बदलता मिजाज

मानसून सिर्फ बारिश का एक मौसम नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी का अभिन्न अंग है। सदियों से भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर रही है, लेकिन हाल के वर्षों में इसके व्यवहार में उल्लेखनीय परिवर्तन देखा गया है।

मानसून क्या है? (Understanding the Monsoon)

सरल शब्दों में, मानसून बड़े पैमाने पर होने वाली मौसमी हवाओं का उलटफेर है जो पृथ्वी की सतह के गर्म होने और ठंडा होने के परिणामस्वरूप होता है। भारत के संदर्भ में, हम मुख्य रूप से दो मानसून की बात करते हैं:

  1. दक्षिण-पश्चिमी मानसून (South-West Monsoon): यह भारत का प्राथमिक वर्षा लाने वाला मानसून है, जो जून से सितंबर तक सक्रिय रहता है। यह हवाएँ हिंद महासागर से भारतीय उपमहाद्वीप की ओर चलती हैं, जहाँ हिमालय पर्वतमाला उन्हें रोकती है और व्यापक वर्षा का कारण बनती है। इसकी शुरुआत का संबंध उच्च तापमान से गर्म हुए तिब्बती पठार, अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) के उत्तर की ओर खिसकने और अफ्रीका के पूर्वी तट पर सोमाली जेट धारा के मजबूत होने से है।
  2. उत्तर-पूर्वी मानसून (North-East Monsoon): यह अक्टूबर से दिसंबर तक सक्रिय रहता है और मुख्य रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश के दक्षिणी तट और केरल में वर्षा लाता है। ये हवाएँ उत्तरी मैदानों से बंगाल की खाड़ी की ओर चलती हैं।

मानसून भारत के लगभग 60% कृषि क्षेत्र को सींचता है, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है। यह भूजल स्तर को रिचार्ज करता है, नदियों को पानी से भरता है और हमारी पारिस्थितिकी को बनाए रखता है।

मानसून के बदलती प्रकृति के कारण (Reasons for Changing Monsoon Patterns)

आज जिस मानसून का हम अनुभव कर रहे हैं, वह कुछ दशकों पहले के मानसून से काफी भिन्न है। यह अब केवल एक मौसमी घटना नहीं, बल्कि एक जटिल जलवायु प्रणाली बन गया है जो वैश्विक कारकों से प्रभावित है। इसके बदलती प्रकृति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  • जलवायु परिवर्तन (Climate Change): वैश्विक तापन महासागरों को गर्म कर रहा है, जिससे वायुमंडल में अधिक नमी जमा हो रही है। यह अत्यधिक वर्षा की घटनाओं का कारण बनता है। अध्ययनों से पता चलता है कि भारतीय मानसून अब कम दिनों में अधिक तीव्र वर्षा कर रहा है, जिससे बाढ़ और सूखे दोनों की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
  • हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole – IOD): यह हिंद महासागर के पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों के बीच समुद्र की सतह के तापमान में अंतर है। सकारात्मक IOD भारतीय मानसून को मजबूत कर सकता है, जबकि नकारात्मक IOD इसे कमजोर कर सकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण IOD की तीव्रता और आवृत्ति में बदलाव आ रहा है।
  • एल नीनो-दक्षिणी दोलन (El Niño-Southern Oscillation – ENSO): प्रशांत महासागर में होने वाली यह घटना भारतीय मानसून को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। एल नीनो की स्थिति में प्रशांत महासागर की सतह का पानी गर्म हो जाता है, जिससे आमतौर पर भारत में मानसून कमजोर होता है और सूखे की संभावना बढ़ती है।
  • शहरीकरण और वनों की कटाई (Urbanization and Deforestation): शहरीकरण के कारण भूमि उपयोग में बदलाव (कंक्रीट के जंगल), झीलों और वेटलैंड्स का अतिक्रमण, और वनों की कटाई से स्थानीय मौसम पैटर्न प्रभावित होते हैं। वनों की कटाई से मिट्टी की जल धारण क्षमता कम हो जाती है, जिससे भूस्खलन और अचानक बाढ़ का खतरा बढ़ता है।
  • वायु प्रदूषण (Air Pollution): वायुमंडल में निलंबित कण (एरोसोल) बादलों के निर्माण को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे वर्षा के पैटर्न में बदलाव आ सकता है। कुछ शोध बताते हैं कि एरोसोल मानसून को कमजोर कर सकते हैं या उसके वितरण को बदल सकते हैं।

अत्यधिक मानसूनी घटनाओं के प्रभाव (Impacts of Extreme Monsoon Events)

मानसून का बदला हुआ व्यवहार सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी और विनाशकारी प्रभाव हैं जो समाज, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।

1. मानवीय और सामाजिक प्रभाव (Humanitarian and Social Impacts)

  • जान-माल का नुकसान: अचानक बाढ़, भूस्खलन और बिजली गिरने से सीधे तौर पर लोगों की जान जाती है, जैसा कि उत्तर प्रदेश की हालिया घटना में देखा गया। घर, संपत्ति और पशुधन का नुकसान भी बड़े पैमाने पर होता है।
  • विस्थापन और आजीविका का नुकसान: बाढ़ और भूस्खलन से प्रभावित लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ता है, जिससे वे विस्थापित हो जाते हैं। कृषि और गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों में आजीविका के साधन छिन जाते हैं।
  • स्वास्थ्य संकट: बाढ़ के पानी के जमा होने से पानी जनित बीमारियाँ (जैसे हैजा, टाइफाइड, डायरिया) और वेक्टर जनित बीमारियाँ (जैसे डेंगू, मलेरिया) फैलने का खतरा बढ़ जाता है। स्वच्छता और पेयजल की कमी स्थिति को और बिगाड़ देती है।
  • मनोवैज्ञानिक आघात: आपदा का प्रत्यक्ष अनुभव करने वाले या अपने प्रियजनों और संपत्ति को खोने वाले लोगों को गंभीर मनोवैज्ञानिक आघात और तनाव का सामना करना पड़ता है।

2. आर्थिक प्रभाव (Economic Impacts)

  • कृषि को क्षति: भारतीय कृषि का बड़ा हिस्सा मानसून पर निर्भर है। अत्यधिक वर्षा या सूखे दोनों ही स्थितियों में फसलें बर्बाद हो जाती हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है। यह खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
  • बुनियादी ढाँचे का विनाश: सड़कें, पुल, रेलवे लाइनें, बिजली के खंभे और संचार नेटवर्क बाढ़ और भूस्खलन से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे मरम्मत और पुनर्निर्माण में भारी लागत आती है।
  • व्यापार और पर्यटन में बाधा: परिवहन बाधित होने से आपूर्ति श्रृंखलाएँ प्रभावित होती हैं, जिससे व्यापारिक गतिविधियाँ रुक जाती हैं। पर्यटन क्षेत्रों में बाढ़ और भूस्खलन पर्यटन को चौपट कर सकते हैं।
  • औद्योगिक उत्पादन में गिरावट: पानी भरने से औद्योगिक इकाइयाँ बंद हो जाती हैं या उनकी उत्पादन क्षमता कम हो जाती है, जिससे समग्र आर्थिक विकास प्रभावित होता है।

3. पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impacts)

  • मृदा अपरदन और भूस्खलन: तीव्र वर्षा से मिट्टी का ऊपरी उपजाऊ हिस्सा बह जाता है, जिससे कृषि भूमि की उर्वरता कम होती है। पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएँ आम हो जाती हैं, जिससे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता है।
  • जैव विविधता पर असर: बाढ़ से वन्यजीवों के आवास नष्ट हो जाते हैं और स्थानीय प्रजातियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में पानी की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
  • जल निकायों का प्रदूषण: बाढ़ का पानी अपने साथ कचरा, रसायन और सीवेज बहाकर नदियों, झीलों और अन्य जल स्रोतों में ले जाता है, जिससे वे प्रदूषित हो जाते हैं।
  • भूजल का अति-उपयोग/अति-दोहन: सूखे की स्थिति में भूजल का अधिक दोहन होता है, जबकि अत्यधिक वर्षा में उचित जल संचयन न होने से पानी व्यर्थ बह जाता है।

क्षेत्रीय केस स्टडीज़: मानसून का प्रकोप कहाँ और कैसे?

हाल की घटनाएँ भारत के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में मानसून के विविध और गंभीर प्रभावों को दर्शाती हैं:

उत्तर प्रदेश: मानवीय क्षति का केंद्र

उत्तर प्रदेश में 18 मौतों की घटना ने मानसून के मानवीय खतरे को उजागर किया है। शहरी क्षेत्रों में दीवार गिरने, बिजली गिरने और ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में काम करते समय या नदियों में डूबने से मौतें हुई हैं। यह दिखाता है कि खराब निर्माण, बिजली के तारों की उचित सुरक्षा न होना और बुनियादी जागरूकता की कमी कैसे आपदा को बढ़ा सकती है। राज्य के शहरीकरण के पैटर्न और पुराने घरों की स्थिति भी इन घटनाओं में एक कारक रही है।

राजस्थान: शुष्क भूमि पर बाढ़ का अप्रत्याशित संकट

राजस्थान में बाढ़ एक विरोधाभास है। यह एक शुष्क राज्य है जहाँ वर्षा की कमी एक आम समस्या है। लेकिन, हाल की घटनाओं में, कुछ ही घंटों की मूसलाधार बारिश ने शहरी क्षेत्रों में जलभराव और ग्रामीण इलाकों में अचानक बाढ़ ला दी। यह इंगित करता है कि अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियाँ, अतिक्रमण और शहरी नियोजन की कमी ने सामान्य वर्षा को भी एक आपदा में बदल दिया है। यहाँ की मिट्टी की संरचना भी तीव्र जल निकासी में बाधा बनती है, जिससे पानी सतह पर जमा हो जाता है।

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश: पहाड़ों की नाजुकता

हिमालयी राज्यों उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश का अलर्ट विशेष चिंता का विषय है। ये क्षेत्र भूस्खलन, बादल फटने और अचानक आने वाली बाढ़ (फ्लैश फ्लड) के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। अनियोजित निर्माण, ढलानों पर वनों की कटाई, और नदी घाटियों में अतिक्रमण ने इन क्षेत्रों को और भी नाजुक बना दिया है। प्रत्येक मानसून में यहाँ सड़क अवरोध, यात्रियों का फँसना और जान-माल का नुकसान एक आम बात हो गई है। यहाँ की भूवैज्ञानिक अस्थिरता और अत्यधिक ढलान इसे और खतरनाक बनाते हैं।

पश्चिम बंगाल और केरल: तटीय और डेल्टाई चुनौतियाँ

पश्चिम बंगाल (विशेषकर गंगा डेल्टा क्षेत्र) और केरल (पश्चिमी घाट के कारण) दोनों ही अत्यधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्र हैं। ये घनी आबादी वाले हैं और तटीय क्षरण, तूफान और समुद्र के स्तर में वृद्धि के प्रति भी संवेदनशील हैं। भारी बारिश के साथ ज्वार की ऊँची लहरें तटीय बाढ़ को बढ़ा सकती हैं। अपर्याप्त शहरी जल निकासी, नदियों में गाद जमना और मैंग्रोव जैसी प्राकृतिक बाधाओं का विनाश इन राज्यों में बाढ़ की गंभीरता को बढ़ा देता है।

आपदा प्रबंधन में चुनौतियाँ (Challenges in Disaster Management)

भारत में आपदा प्रबंधन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन मानसून की बदलती प्रकृति के कारण नई चुनौतियाँ सामने आ रही हैं:

  1. पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की सटीकता: स्थानीय स्तर पर सटीक और समय पर मौसम का पूर्वानुमान लगाना अभी भी एक चुनौती है, विशेषकर अचानक आने वाली घटनाओं (जैसे बादल फटना) के लिए। “लास्ट-माइल” कनेक्टिविटी और चेतावनी को प्रभावी ढंग से समुदाय तक पहुँचाना भी महत्वपूर्ण है।
  2. अक्षम बुनियादी ढाँचा: देश का बड़ा हिस्सा अभी भी पुराने और कमजोर बुनियादी ढाँचे पर निर्भर है जो जलवायु-अनुकूल नहीं है। सड़कें, पुल और भवन चरम मौसम की घटनाओं का सामना करने में सक्षम नहीं हैं।
  3. अनियोजित शहरीकरण: शहरों में जल निकासी प्रणालियों का अभाव, प्राकृतिक जल निकायों (झीलों, वेटलैंड्स) पर अतिक्रमण, और floodplain (बाढ़ के मैदानों) पर निर्माण ने शहरों को ‘बाढ़-ग्रस्त’ बना दिया है।
  4. पर्याप्त संसाधनों की कमी: आपदा प्रतिक्रिया, राहत और पुनर्वास के लिए वित्तीय, मानव और तकनीकी संसाधनों की उपलब्धता और उनका त्वरित संचलन एक चुनौती बनी हुई है।
  5. सार्वजनिक जागरूकता और तैयारी का अभाव: अक्सर लोग आपदा से बचाव के उपायों और प्रारंभिक चेतावनी संकेतों के प्रति जागरूक नहीं होते हैं, जिससे जान-माल का नुकसान बढ़ जाता है।
  6. अंतर-राज्यीय और अंतर-विभागीय समन्वय: बड़ी आपदाओं के लिए विभिन्न राज्यों और सरकारी विभागों के बीच प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करना एक जटिल कार्य है।
  7. डेटा और अनुसंधान का अभाव: विशिष्ट स्थानीय जलवायु पैटर्न और उनके प्रभावों पर पर्याप्त डेटा और अनुसंधान की कमी प्रभावी अनुकूलन रणनीतियों को विकसित करने में बाधा डालती है।

आगे की राह: एक समग्र दृष्टिकोण (Way Forward: A Holistic Approach)

मानसून के बदलते मिजाज और उससे उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए एक बहुआयामी और समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें शमन (Mitigation) और अनुकूलन (Adaptation) दोनों शामिल हों।

1. बेहतर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और पूर्वानुमान (Enhanced Early Warning Systems and Forecasting)

  • स्थान-विशिष्ट पूर्वानुमान: रडार नेटवर्क, उपग्रह डेटा और AI/ML आधारित मॉडलों का उपयोग करके अत्यंत स्थानीयकृत और उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले मौसम पूर्वानुमान विकसित करना।
  • समुदाय-आधारित चेतावनी: SMS, सामुदायिक रेडियो, मोबाइल ऐप और स्वयंसेवकों के माध्यम से चेतावनी को ‘अंतिम मील’ तक पहुँचाना, ताकि समय पर निकासी सुनिश्चित हो सके।

2. जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचा (Climate-Resilient Infrastructure)

  • ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर: शहरी बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों (जैसे वेटलैंड्स, वर्षा उद्यान) का विकास और संरक्षण।
  • मजबूत निर्माण: नई सड़कों, पुलों और इमारतों का निर्माण इस तरह से करना जो अत्यधिक वर्षा और हवाओं का सामना कर सकें। मौजूदा कमजोर ढाँचों का सुदृढ़ीकरण।
  • जल निकासी में सुधार: शहरों में व्यापक और प्रभावी जल निकासी प्रणालियों का निर्माण और रखरखाव, अतिक्रमण हटाना।

3. एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (Integrated Water Resource Management – IWRM)

  • वर्षा जल संचयन: व्यक्तिगत घरों, इमारतों और सार्वजनिक स्थानों पर वर्षा जल संचयन को अनिवार्य करना।
  • नदी-जोड़ो परियोजनाएँ (सतर्कता के साथ): जल अधिशेष क्षेत्रों से घाटे वाले क्षेत्रों में पानी को स्थानांतरित करने की संभावनाओं का पता लगाना, लेकिन पर्यावरणीय प्रभावों का गहन मूल्यांकन करते हुए।
  • बांधों और जलाशयों का कुशल प्रबंधन: बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और पेयजल आपूर्ति के लिए जलाशयों के संचालन को अनुकूलित करना।

4. कृषि और ग्रामीण अनुकूलन (Agricultural and Rural Adaptation)

  • जलवायु-स्मार्ट कृषि: सूखा-प्रतिरोधी और बाढ़-प्रतिरोधी फसल किस्मों को बढ़ावा देना, फसल विविधीकरण, और सटीक सिंचाई तकनीकें।
  • मिट्टी और जल संरक्षण: कंटूर बंडिंग, छत खेती, और एग्रोफोरेस्ट्री जैसी प्रथाओं को अपनाकर मृदा अपरदन को रोकना।
  • पशुधन का प्रबंधन: बाढ़ संभावित क्षेत्रों में पशुधन की सुरक्षा और बीमा कवरेज।

5. प्रभावी आपदा प्रतिक्रिया और पुनर्वास (Effective Disaster Response and Rehabilitation)

  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) को मजबूत करना: उन्हें नवीनतम उपकरणों, प्रशिक्षण और त्वरित तैनाती क्षमताओं से लैस करना।
  • सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करना और उन्हें आपदा प्रतिक्रिया में शामिल करना।
  • वित्तीय तंत्र: आपदा प्रभावितों के लिए त्वरित मुआवजा और पुनर्वास के लिए मजबूत बीमा योजनाएँ और वित्तीय सहायता तंत्र विकसित करना।

6. नीतिगत और नियामक उपाय (Policy and Regulatory Measures)

  • भूमि उपयोग योजना (Land Use Planning): बाढ़ के मैदानों, वेटलैंड्स और संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्रों में निर्माण पर सख्त प्रतिबंध लगाना।
  • भवन संहिताएँ: भूकंप और बाढ़ प्रतिरोधी भवन संहिताओं को सख्ती से लागू करना।
  • कानूनी ढाँचा: आपदा प्रबंधन अधिनियम को और मजबूत करना और राज्यों के बीच प्रभावी सहयोग सुनिश्चित करना।

7. अनुसंधान और विकास (Research and Development)

  • जलवायु मॉडल और पूर्वानुमान क्षमताओं में सुधार के लिए अत्याधुनिक अनुसंधान में निवेश करना।
  • नवीन अनुकूलन प्रौद्योगिकियों (जैसे जल शुद्धिकरण, सौर ऊर्जा समाधान) का विकास।

मानसून भारत के लिए एक वरदान है, लेकिन इसका बदलता मिजाज एक चेतावनी भी है। यह सिर्फ एक मौसमी घटना नहीं, बल्कि एक जटिल पारिस्थितिकीय और सामाजिक चुनौती है जिसके लिए तत्काल और समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता है। सरकार, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र और आम नागरिकों के सामूहिक प्रयासों से ही हम इस ‘मानसून फ्यूरी’ का सामना कर सकते हैं और एक लचीला (resilient) तथा सुरक्षित भविष्य बना सकते हैं।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. प्रश्न 1: भारतीय मानसून के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. दक्षिण-पश्चिमी मानसून जून से सितंबर तक भारत में वर्षा का प्राथमिक स्रोत है।
    2. एल नीनो की घटना आमतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में कमजोर मानसून और कम वर्षा से जुड़ी होती है।
    3. हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) के सकारात्मक चरण का संबंध आमतौर पर भारत में सूखे की स्थिति से होता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    1. केवल 1 और 2
    2. केवल 2 और 3
    3. केवल 1 और 3
    4. 1, 2 और 3

    उत्तर: a

    व्याख्या:

    कथन 1 सही है। दक्षिण-पश्चिमी मानसून भारत में वर्षा का मुख्य स्रोत है।

    कथन 2 सही है। एल नीनो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के सतह के पानी के गर्म होने से संबंधित है और यह अक्सर भारत में कमजोर मानसून का कारण बनता है।

    कथन 3 गलत है। हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) के सकारात्मक चरण का संबंध आमतौर पर भारत में बेहतर मानसून और अधिक वर्षा से होता है, जबकि नकारात्मक IOD सूखे की स्थिति पैदा कर सकता है।

  2. प्रश्न 2: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. यह आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
    2. प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष होते हैं।
    3. यह आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ, योजनाएँ और दिशानिर्देश तैयार करने के लिए जिम्मेदार है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    1. केवल 1 और 2
    2. केवल 2 और 3
    3. केवल 1 और 3
    4. 1, 2 और 3

    उत्तर: d

    व्याख्या: तीनों कथन सही हैं। NDMA आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं, और यह आपदा प्रबंधन के लिए नीतियां और दिशानिर्देश तैयार करता है।

  3. प्रश्न 3: भारत में अचानक बाढ़ (Flash Floods) के बढ़ते मामलों के संभावित कारणों में शामिल हैं:

    1. जलवायु परिवर्तन के कारण कम समय में तीव्र वर्षा।
    2. नदी घाटियों और बाढ़ के मैदानों में बढ़ता अतिक्रमण।
    3. अनियोजित शहरीकरण और अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियाँ।
    4. वनोन्मूलन और पहाड़ी ढलानों पर अस्थिर निर्माण।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    1. केवल 1, 2 और 3
    2. केवल 2, 3 और 4
    3. केवल 1 और 4
    4. 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: d

    व्याख्या: सभी चारों कारण भारत में अचानक बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं। जलवायु परिवर्तन तीव्र वर्षा की घटनाओं को बढ़ाता है, जबकि अतिक्रमण, अपर्याप्त जल निकासी और वनोन्मूलन जैसे मानवीय कारक इन आपदाओं के प्रभाव को गंभीर बनाते हैं।

  4. प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन-सा/से कदम जलवायु-अनुकूल कृषि (Climate-Smart Agriculture) का हिस्सा हो सकता है/सकते है/हैं?

    1. सूखा-प्रतिरोधी और बाढ़-प्रतिरोधी फसल किस्मों का उपयोग।
    2. परंपरागत गहन सिंचाई पद्धतियों को बढ़ावा देना।
    3. कृषि विविधीकरण और मिश्रित फसल पैटर्न अपनाना।
    4. वर्षा जल संचयन और कुशल सिंचाई तकनीकों को अपनाना।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    1. केवल 1, 2 और 3
    2. केवल 1, 3 और 4
    3. केवल 2 और 4
    4. 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: b

    व्याख्या:

    कथन 1, 3 और 4 जलवायु-स्मार्ट कृषि के प्रमुख घटक हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और कृषि उत्पादकता बढ़ाने में मदद करते हैं।

    कथन 2 गलत है। परंपरागत गहन सिंचाई पद्धतियाँ जल संसाधनों का अक्षम उपयोग हैं और जलवायु-स्मार्ट कृषि के सिद्धांतों के विपरीत हैं। इसके बजाय, सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप, स्प्रिंकलर) जैसी कुशल तकनीकों को बढ़ावा दिया जाता है।

  5. प्रश्न 5: ‘ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर’ शब्द निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?

    1. केवल नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का विकास।
    2. शहरी क्षेत्रों में पेड़ों और पार्कों का निर्माण।
    3. प्राकृतिक प्रणालियों (जैसे वेटलैंड्स, वर्षा उद्यान) का उपयोग करके जल प्रबंधन और आपदा शमन।
    4. पर्यावरण के अनुकूल भवन निर्माण सामग्री का उपयोग।

    उत्तर: c

    व्याख्या: ‘ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर’ एक व्यापक अवधारणा है जिसमें जल प्रबंधन, बाढ़ नियंत्रण और पर्यावरणीय लाभों के लिए प्राकृतिक और अर्ध-प्राकृतिक प्रणालियों का उपयोग शामिल है। इसमें वर्षा उद्यान, वेटलैंड्स, हरी छतें और पारगम्य फुटपाथ जैसे तत्व शामिल हैं जो पानी को अवशोषित करते हैं और शहरी बाढ़ को कम करते हैं।

  6. प्रश्न 6: भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले कारकों के संदर्भ में, ‘ला नीना’ (La Niña) की घटना के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?

    1. यह आमतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में सूखे की स्थिति से जुड़ी होती है।
    2. यह पूर्वी प्रशांत महासागर के सतह के पानी के असामान्य रूप से गर्म होने से संबंधित है।
    3. यह आमतौर पर भारतीय मानसून को मजबूत करती है और अधिक वर्षा लाती है।
    4. इसका भारतीय मानसून पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

    उत्तर: c

    व्याख्या: ला नीना घटना प्रशांत महासागर के सतह के पानी के असामान्य रूप से ठंडा होने से संबंधित है और यह आमतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में एक मजबूत और बेहतर मानसून से जुड़ी होती है।

  7. प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन-सी आपदाएँ, मानसून के अत्यधिक वर्षा चरण से सीधे संबंधित हो सकती हैं?

    1. भूस्खलन
    2. सूखा
    3. शहरों में जलभराव
    4. नदी में बाढ़

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    1. केवल 1, 2 और 3
    2. केवल 2 और 4
    3. केवल 1, 3 और 4
    4. 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: c

    व्याख्या:

    भूस्खलन, शहरों में जलभराव और नदी में बाढ़ सीधे तौर पर मानसून के अत्यधिक वर्षा चरण से संबंधित हैं।

    सूखा अत्यधिक वर्षा नहीं, बल्कि वर्षा की कमी से संबंधित है। हालांकि, मानसून की बदलती प्रकृति (अत्यधिक वर्षा के बाद सूखे की लंबी अवधि) के कारण सूखे की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है, लेकिन यह सीधे अत्यधिक वर्षा का परिणाम नहीं है।

  8. प्रश्न 8: शहरी बाढ़ (Urban Flooding) की समस्या के प्रमुख कारणों में शामिल हैं:

    1. प्राकृतिक जल निकासी चैनलों पर अतिक्रमण।
    2. कंक्रीट और पक्की सतहों का बढ़ता अनुपात।
    3. पुराने और अपर्याप्त सीवेज और जल निकासी नेटवर्क।
    4. शहरी क्षेत्रों में वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    1. केवल 1, 2 और 3
    2. केवल 2, 3 और 4
    3. केवल 1, 3 और 4
    4. 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: a

    व्याख्या:

    कथन 1, 2 और 3 शहरी बाढ़ के प्रमुख कारण हैं। अतिक्रमण, पक्की सतहों का बढ़ना (जो पानी के अवशोषण को रोकते हैं) और अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियाँ शहरी बाढ़ को बढ़ाती हैं।

    कथन 4 गलत है। शहरी क्षेत्रों में वृक्षारोपण को बढ़ावा देना शहरी बाढ़ को कम करने में मदद करता है क्योंकि पेड़ पानी को अवशोषित करते हैं और मिट्टी के कटाव को रोकते हैं, यह बाढ़ का कारण नहीं है।

  9. प्रश्न 9: भारत में आपदा प्रबंधन के संबंध में, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का प्राथमिक कार्य क्या है?

    1. आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ और दिशानिर्देश बनाना।
    2. आपदा से पहले शमन उपायों की योजना बनाना और उन्हें लागू करना।
    3. आपदा की स्थिति में विशेषज्ञ खोज, बचाव और राहत अभियान चलाना।
    4. आपदा प्रभावित क्षेत्रों में दीर्घकालिक पुनर्वास कार्यक्रम संचालित करना।

    उत्तर: c

    व्याख्या: NDRF का प्राथमिक कार्य एक विशेष बहु-कुशल, स्टैंडबाय बल के रूप में आपदा की स्थिति में विशेषज्ञ खोज, बचाव और राहत अभियान चलाना है। नीतियाँ बनाना NDMA का कार्य है, जबकि शमन और पुनर्वास व्यापक आपदा प्रबंधन चक्र के अन्य चरण हैं।

  10. प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन-सा/से कारक भारतीय मानसून के पैटर्न में बदलाव के लिए जिम्मेदार हो सकता है/सकते है/हैं?

    1. ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ता समुद्री सतह तापमान।
    2. हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) में परिवर्तन।
    3. पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई।
    4. वायुमंडल में एयरोसोल का बढ़ता स्तर।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    1. केवल 1 और 2
    2. केवल 2, 3 और 4
    3. केवल 1, 3 और 4
    4. 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: d

    व्याख्या: सभी चारों कारक भारतीय मानसून के पैटर्न में बदलाव के लिए जिम्मेदार हैं। ग्लोबल वार्मिंग और समुद्री सतह का तापमान, IOD में परिवर्तन, वनों की कटाई और वायुमंडल में एयरोसोल का बढ़ता स्तर सभी मानसून के व्यवहार को प्रभावित करते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. हाल के वर्षों में भारतीय मानसून के व्यवहार में आए बदलावों की व्याख्या कीजिए। इन परिवर्तनों के पीछे प्रमुख कारण क्या हैं और समाज, अर्थव्यवस्था तथा पर्यावरण पर इनके क्या दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं? (250 शब्द)

  2. भारत में शहरी बाढ़ की समस्या गंभीर होती जा रही है। राजस्थान और उत्तर प्रदेश में हाल की घटनाओं के संदर्भ में, इस समस्या के कारणों का विश्लेषण कीजिए और इसके समाधान के लिए ‘ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर’ सहित अभिनव दृष्टिकोणों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)

  3. “आपदा प्रबंधन केवल प्रतिक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति शामिल है।” इस कथन के आलोक में, भारत में मानसून-संबंधी आपदाओं से निपटने के लिए एक व्यापक और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिए। (150 शब्द)

  4. जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के कारण भारत को ‘जलवायु-अनुकूल’ बुनियादी ढाँचे और ‘जलवायु-स्मार्ट’ कृषि को अपनाने की तत्काल आवश्यकता है। इन अवधारणाओं को स्पष्ट कीजिए और भारत के संदर्भ में इनके महत्व एवं कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए। (250 शब्द)

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